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Adultery तेरे प्यार में .....

dhparikh

Well-Known Member
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228
#३०

मेरी समझ में बहुत कुछ आ रहा था बहुत कुछ मुझे तलाशना था. मेरी जमीन पर हीरे बिखरे हुए थे , इतनी बेफिक्री से इन्हें वो ही छोड़ सकता था जिसे परवाह ही नहीं हो . सुनसान रात में मैं खेतो पर खड़े खड़े सोच रहा था की बहनचोद कुछ तो पंगा है इधर , आस्मां में बिजली कड़कने लगी थी , हवाए तेज हो चली थी पर मेरा दिल मुझे कह रहा था की जंगल में चल. मैंने मोटर के पास रखी टोर्च उठाई और बाड में बने छेद से होते हुए जंगल में घुस गया. धड़कन बढ़ सी गयी थी जंगल अपने शबाब पर था , रात में हर पेड़-पत्ता ऐसे लगे की आदमी ही खड़े हो. गहरी सांसे लेते हुए मैं सधे कदमो से खान की तरफ चले जा रहा था . बेशक ये कोई बहुत बढ़िया टाइम नहीं था वहां जाने पर इन्सान की गांड में अजीब किस्म की चुल लगी रहती है .

खैर, एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था जो अँधेरी रात में शांति से खड़ी थी , बूंदा-बंदी शुरू हो गयी थी .मुहाने पर जमा पानी से बचते हुए मैं खान में मार्बल की दीवारों को महसूस करते हुए अन्दर चले जा रहा था . फिर मैंने रौशनी की . कुछ चमगादड़ मेरे सर के ऊपर से होते हुए बाहर निकल गए. रौशनी में खान किसी भुतहा जगह से कम नहीं लग रही थी .

“टप टप ” टपकते पानी की धारा ही थी जो उस सन्नाटे से जंग लड़ रही थी . मजदूरो के टूटे-फूटे औजारों के पास से होते हुए मैं और गहराई में उतरे जा रहा था . कुछ और आगे जाने पर मार्बल गायब ही तो हो गया कच्ची दीवारे जिनमे से अजीब सी बदबू आ रही थी , शायद पानी की वजह से मैंने हाथ लगा कर देखा गीलापन था . क्या था ये मुझे समझ नहीं आ रहा था खैर, मैं खांसते हुए आगे को बढ़ा .पता नहीं क्यों सांसे भारी सी लगने लगी थी , बार बार खांसना पड़ रहा था .थोडा और आगे जाने पर खान की चौड़ाई घटने लगी थी या मेरा भरम था .

पर फिर दीवारों में मुझे जो दिखा मैं समझ गया , हीरो का ठिकाना इधर इसी खान में ही था . टोर्च की रौशनी में चमकते वो टुकड़े. ये किसी अजूबे से कम नहीं था पर वहां पर सिर्फ हीरे ही नहीं थे, वो खान संगम थी, मार्बल , हीरे और पत्थरों का , गजब . मुझे समझ आ रहा था की पिताजी को इस दुर्लभता के बारे में अवश्य ही मालूम हो गया होगा. पर केवल पिताजी को ही ये राज नहीं मालूम था , खेतो पर मिले टुकड़े प्रमाण थे की कोई और भी राजदार था. पर मेरे लिए ये अब महत्वहीन था मेरी दिलचस्पी अभी भी उसी सवाल में थी की पैसा नहीं तो क्या. ये खान धन का अथाह स्त्रोत थी , हो सकता था की पिताजी ने यहाँ से हीरे लिए हो . हो सकता था की चाचा को भी मालूम हो क्योंकि वो भी अचानक से अमीर हुआ था .

संभलते हुए मैं थोडा और आगे बढ़ने लगा . कच्ची दीवारों से पानी चूने लगा था कही कहीं उसका भराव हो रहा था , पता नहीं क्या था यहाँ पर मुझे घुटन होने लगी थी ,संकरी गलियों से होते हुए मैं टोर्च के सहारे आगे बढ़ रहा था . एक समय ऐसा आया जब टोर्च की रौशनी अँधेरे में कम पड़ने लगी . रात पता नहीं कितनी बीती कितना बाकि थी उत्सुकता की चरम सीमा को छूने की मेरी लालसा मुझे न जाने कहाँ ले जा रही थी पानी मेरी कमर तक आ चूका था . कायदे से मुझे वापिस लौटना चाहिए था . मेरी खांसी बढती जा रही थी , सांसे उलझ रही थी , मैंने सामने एक दरवाजा देखा .लोहे की कुण्डी खोलने में मुझे ज़माने भर का जोर लगाना पड़ा जैसे ही मैंने अन्दर कदम रखे धड़कने थम सी गयी, मेरे सामने ऐसा कुछ था जिसे समझने के लिए मेरे होश, होश में नहीं रहे.

आँख खुली तो पूरा बदन भीगा हुआ था , बरसात मेरे चेहरे पर पड़ रही थी , आसमान में अँधेरा था और मैं जली हुई झोपडी के पास उस गोल पत्थर पर पड़ा था . कोई तो था जो मुझे वहां से यहाँ लेकर आया था . कोई तो था जिसे खान का राज मालूम था कोई तो था जो शायद मुझ पर नजर रखे हुए था . खैर मैं वापिस खेतो पर आया और चारपाई पर पसर गया, आँखों में नींद नहीं थी मन में हजारो विचार थे जो कुछ देखा था उसे समझने के लिए मुझे फिर से खान में जाना होगा . सुबह मैं शहर के लिए निकल गया किसी सुनार से मिलने के लिए

“इनकी क्या कीमत हो सकती है लाला ” मैंने जोहरी से कहा

जोहरी ने बहुत देर तक हीरो को जांचा-परखा और बोला- हैं तो खालिस चीज पर गुणवत्ता का स्तर ज्यदा नहीं है

मैं- समझा नहीं मैं

जोहरी- मतलब की ये बिना पके हीरे है , फिलहाल इनकी कीमत ज्यादा नहीं है

मैं- कोई बात नहीं , किसी और जोहरी से मिल लेता हु

जोहरी- अरे रुक भाई , कितने में बेचेगा इनको तू ही बता

मैं- कच्चा खिलाडी नहीं मैं , हीरे मूल्यवान होते है ये बात किसी से छुपी नहीं

जोहरी- ये छोटा क़स्बा है यहाँ इनकी कीमत कोई नहीं दे पायेगा पर अगर तू कुछ दिन रुके तो मैं बड़े शहर में बात कर लूँगा वहां तुझे बढ़िया कीमत मिल जाएगी मेरा कमीशन काट के.

मैं- मैं तुझे वैसे ही कुछ हीरे दे दूंगा, तू इनकी कीमत बता बेचना ना बेचना बाद की बात है .

जोहरी- इनको ठीक से तराशने के बाद लाखो में जाएगी बात

मैं- ठीक है बुला ले अपने खरीदार को

जोहरी- माल कितना है

मैं- जितना भी है बहुत है .

जोहरी- तीन दिन बाद यही मुलाकात होगी.

एक समय था जब इसी शहर में आने का आने का इतना चाव रहता था , दो समोसे, कुछ रसगुल्ले इतनी ही लालसा रहती थी . समय के साथ शहर भी बदल गया था , वो किताबो की दुकान जहा से हमने उपन्यास पढने सीखे बंद हो गयी थी .भूख सी लगी थी तो थोडा बहुत खाया और वापिस गाँव की बस पकड ली इस उम्मीद में की कोई नहीं राह जरुर मिलेगी जो मेरी जिन्दगी को राहत देगी. गाँव आने के बाद शिवाले पर चला गया बाबा संग बैठ कर चाय पी ही रहा था की तभी भाभी वहां पर आ गयी.........


“बात करनी है तुमसे ” बोली वो
Nice update.....
 

parkas

Well-Known Member
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303
#३०

मेरी समझ में बहुत कुछ आ रहा था बहुत कुछ मुझे तलाशना था. मेरी जमीन पर हीरे बिखरे हुए थे , इतनी बेफिक्री से इन्हें वो ही छोड़ सकता था जिसे परवाह ही नहीं हो . सुनसान रात में मैं खेतो पर खड़े खड़े सोच रहा था की बहनचोद कुछ तो पंगा है इधर , आस्मां में बिजली कड़कने लगी थी , हवाए तेज हो चली थी पर मेरा दिल मुझे कह रहा था की जंगल में चल. मैंने मोटर के पास रखी टोर्च उठाई और बाड में बने छेद से होते हुए जंगल में घुस गया. धड़कन बढ़ सी गयी थी जंगल अपने शबाब पर था , रात में हर पेड़-पत्ता ऐसे लगे की आदमी ही खड़े हो. गहरी सांसे लेते हुए मैं सधे कदमो से खान की तरफ चले जा रहा था . बेशक ये कोई बहुत बढ़िया टाइम नहीं था वहां जाने पर इन्सान की गांड में अजीब किस्म की चुल लगी रहती है .

खैर, एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था जो अँधेरी रात में शांति से खड़ी थी , बूंदा-बंदी शुरू हो गयी थी .मुहाने पर जमा पानी से बचते हुए मैं खान में मार्बल की दीवारों को महसूस करते हुए अन्दर चले जा रहा था . फिर मैंने रौशनी की . कुछ चमगादड़ मेरे सर के ऊपर से होते हुए बाहर निकल गए. रौशनी में खान किसी भुतहा जगह से कम नहीं लग रही थी .

“टप टप ” टपकते पानी की धारा ही थी जो उस सन्नाटे से जंग लड़ रही थी . मजदूरो के टूटे-फूटे औजारों के पास से होते हुए मैं और गहराई में उतरे जा रहा था . कुछ और आगे जाने पर मार्बल गायब ही तो हो गया कच्ची दीवारे जिनमे से अजीब सी बदबू आ रही थी , शायद पानी की वजह से मैंने हाथ लगा कर देखा गीलापन था . क्या था ये मुझे समझ नहीं आ रहा था खैर, मैं खांसते हुए आगे को बढ़ा .पता नहीं क्यों सांसे भारी सी लगने लगी थी , बार बार खांसना पड़ रहा था .थोडा और आगे जाने पर खान की चौड़ाई घटने लगी थी या मेरा भरम था .

पर फिर दीवारों में मुझे जो दिखा मैं समझ गया , हीरो का ठिकाना इधर इसी खान में ही था . टोर्च की रौशनी में चमकते वो टुकड़े. ये किसी अजूबे से कम नहीं था पर वहां पर सिर्फ हीरे ही नहीं थे, वो खान संगम थी, मार्बल , हीरे और पत्थरों का , गजब . मुझे समझ आ रहा था की पिताजी को इस दुर्लभता के बारे में अवश्य ही मालूम हो गया होगा. पर केवल पिताजी को ही ये राज नहीं मालूम था , खेतो पर मिले टुकड़े प्रमाण थे की कोई और भी राजदार था. पर मेरे लिए ये अब महत्वहीन था मेरी दिलचस्पी अभी भी उसी सवाल में थी की पैसा नहीं तो क्या. ये खान धन का अथाह स्त्रोत थी , हो सकता था की पिताजी ने यहाँ से हीरे लिए हो . हो सकता था की चाचा को भी मालूम हो क्योंकि वो भी अचानक से अमीर हुआ था .

संभलते हुए मैं थोडा और आगे बढ़ने लगा . कच्ची दीवारों से पानी चूने लगा था कही कहीं उसका भराव हो रहा था , पता नहीं क्या था यहाँ पर मुझे घुटन होने लगी थी ,संकरी गलियों से होते हुए मैं टोर्च के सहारे आगे बढ़ रहा था . एक समय ऐसा आया जब टोर्च की रौशनी अँधेरे में कम पड़ने लगी . रात पता नहीं कितनी बीती कितना बाकि थी उत्सुकता की चरम सीमा को छूने की मेरी लालसा मुझे न जाने कहाँ ले जा रही थी पानी मेरी कमर तक आ चूका था . कायदे से मुझे वापिस लौटना चाहिए था . मेरी खांसी बढती जा रही थी , सांसे उलझ रही थी , मैंने सामने एक दरवाजा देखा .लोहे की कुण्डी खोलने में मुझे ज़माने भर का जोर लगाना पड़ा जैसे ही मैंने अन्दर कदम रखे धड़कने थम सी गयी, मेरे सामने ऐसा कुछ था जिसे समझने के लिए मेरे होश, होश में नहीं रहे.

आँख खुली तो पूरा बदन भीगा हुआ था , बरसात मेरे चेहरे पर पड़ रही थी , आसमान में अँधेरा था और मैं जली हुई झोपडी के पास उस गोल पत्थर पर पड़ा था . कोई तो था जो मुझे वहां से यहाँ लेकर आया था . कोई तो था जिसे खान का राज मालूम था कोई तो था जो शायद मुझ पर नजर रखे हुए था . खैर मैं वापिस खेतो पर आया और चारपाई पर पसर गया, आँखों में नींद नहीं थी मन में हजारो विचार थे जो कुछ देखा था उसे समझने के लिए मुझे फिर से खान में जाना होगा . सुबह मैं शहर के लिए निकल गया किसी सुनार से मिलने के लिए

“इनकी क्या कीमत हो सकती है लाला ” मैंने जोहरी से कहा

जोहरी ने बहुत देर तक हीरो को जांचा-परखा और बोला- हैं तो खालिस चीज पर गुणवत्ता का स्तर ज्यदा नहीं है

मैं- समझा नहीं मैं

जोहरी- मतलब की ये बिना पके हीरे है , फिलहाल इनकी कीमत ज्यादा नहीं है

मैं- कोई बात नहीं , किसी और जोहरी से मिल लेता हु

जोहरी- अरे रुक भाई , कितने में बेचेगा इनको तू ही बता

मैं- कच्चा खिलाडी नहीं मैं , हीरे मूल्यवान होते है ये बात किसी से छुपी नहीं

जोहरी- ये छोटा क़स्बा है यहाँ इनकी कीमत कोई नहीं दे पायेगा पर अगर तू कुछ दिन रुके तो मैं बड़े शहर में बात कर लूँगा वहां तुझे बढ़िया कीमत मिल जाएगी मेरा कमीशन काट के.

मैं- मैं तुझे वैसे ही कुछ हीरे दे दूंगा, तू इनकी कीमत बता बेचना ना बेचना बाद की बात है .

जोहरी- इनको ठीक से तराशने के बाद लाखो में जाएगी बात

मैं- ठीक है बुला ले अपने खरीदार को

जोहरी- माल कितना है

मैं- जितना भी है बहुत है .

जोहरी- तीन दिन बाद यही मुलाकात होगी.

एक समय था जब इसी शहर में आने का आने का इतना चाव रहता था , दो समोसे, कुछ रसगुल्ले इतनी ही लालसा रहती थी . समय के साथ शहर भी बदल गया था , वो किताबो की दुकान जहा से हमने उपन्यास पढने सीखे बंद हो गयी थी .भूख सी लगी थी तो थोडा बहुत खाया और वापिस गाँव की बस पकड ली इस उम्मीद में की कोई नहीं राह जरुर मिलेगी जो मेरी जिन्दगी को राहत देगी. गाँव आने के बाद शिवाले पर चला गया बाबा संग बैठ कर चाय पी ही रहा था की तभी भाभी वहां पर आ गयी.........


“बात करनी है तुमसे ” बोली वो
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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259
#३०

मेरी समझ में बहुत कुछ आ रहा था बहुत कुछ मुझे तलाशना था. मेरी जमीन पर हीरे बिखरे हुए थे , इतनी बेफिक्री से इन्हें वो ही छोड़ सकता था जिसे परवाह ही नहीं हो . सुनसान रात में मैं खेतो पर खड़े खड़े सोच रहा था की बहनचोद कुछ तो पंगा है इधर , आस्मां में बिजली कड़कने लगी थी , हवाए तेज हो चली थी पर मेरा दिल मुझे कह रहा था की जंगल में चल. मैंने मोटर के पास रखी टोर्च उठाई और बाड में बने छेद से होते हुए जंगल में घुस गया. धड़कन बढ़ सी गयी थी जंगल अपने शबाब पर था , रात में हर पेड़-पत्ता ऐसे लगे की आदमी ही खड़े हो. गहरी सांसे लेते हुए मैं सधे कदमो से खान की तरफ चले जा रहा था . बेशक ये कोई बहुत बढ़िया टाइम नहीं था वहां जाने पर इन्सान की गांड में अजीब किस्म की चुल लगी रहती है .

खैर, एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था जो अँधेरी रात में शांति से खड़ी थी , बूंदा-बंदी शुरू हो गयी थी .मुहाने पर जमा पानी से बचते हुए मैं खान में मार्बल की दीवारों को महसूस करते हुए अन्दर चले जा रहा था . फिर मैंने रौशनी की . कुछ चमगादड़ मेरे सर के ऊपर से होते हुए बाहर निकल गए. रौशनी में खान किसी भुतहा जगह से कम नहीं लग रही थी .

“टप टप ” टपकते पानी की धारा ही थी जो उस सन्नाटे से जंग लड़ रही थी . मजदूरो के टूटे-फूटे औजारों के पास से होते हुए मैं और गहराई में उतरे जा रहा था . कुछ और आगे जाने पर मार्बल गायब ही तो हो गया कच्ची दीवारे जिनमे से अजीब सी बदबू आ रही थी , शायद पानी की वजह से मैंने हाथ लगा कर देखा गीलापन था . क्या था ये मुझे समझ नहीं आ रहा था खैर, मैं खांसते हुए आगे को बढ़ा .पता नहीं क्यों सांसे भारी सी लगने लगी थी , बार बार खांसना पड़ रहा था .थोडा और आगे जाने पर खान की चौड़ाई घटने लगी थी या मेरा भरम था .

पर फिर दीवारों में मुझे जो दिखा मैं समझ गया , हीरो का ठिकाना इधर इसी खान में ही था . टोर्च की रौशनी में चमकते वो टुकड़े. ये किसी अजूबे से कम नहीं था पर वहां पर सिर्फ हीरे ही नहीं थे, वो खान संगम थी, मार्बल , हीरे और पत्थरों का , गजब . मुझे समझ आ रहा था की पिताजी को इस दुर्लभता के बारे में अवश्य ही मालूम हो गया होगा. पर केवल पिताजी को ही ये राज नहीं मालूम था , खेतो पर मिले टुकड़े प्रमाण थे की कोई और भी राजदार था. पर मेरे लिए ये अब महत्वहीन था मेरी दिलचस्पी अभी भी उसी सवाल में थी की पैसा नहीं तो क्या. ये खान धन का अथाह स्त्रोत थी , हो सकता था की पिताजी ने यहाँ से हीरे लिए हो . हो सकता था की चाचा को भी मालूम हो क्योंकि वो भी अचानक से अमीर हुआ था .

संभलते हुए मैं थोडा और आगे बढ़ने लगा . कच्ची दीवारों से पानी चूने लगा था कही कहीं उसका भराव हो रहा था , पता नहीं क्या था यहाँ पर मुझे घुटन होने लगी थी ,संकरी गलियों से होते हुए मैं टोर्च के सहारे आगे बढ़ रहा था . एक समय ऐसा आया जब टोर्च की रौशनी अँधेरे में कम पड़ने लगी . रात पता नहीं कितनी बीती कितना बाकि थी उत्सुकता की चरम सीमा को छूने की मेरी लालसा मुझे न जाने कहाँ ले जा रही थी पानी मेरी कमर तक आ चूका था . कायदे से मुझे वापिस लौटना चाहिए था . मेरी खांसी बढती जा रही थी , सांसे उलझ रही थी , मैंने सामने एक दरवाजा देखा .लोहे की कुण्डी खोलने में मुझे ज़माने भर का जोर लगाना पड़ा जैसे ही मैंने अन्दर कदम रखे धड़कने थम सी गयी, मेरे सामने ऐसा कुछ था जिसे समझने के लिए मेरे होश, होश में नहीं रहे.

आँख खुली तो पूरा बदन भीगा हुआ था , बरसात मेरे चेहरे पर पड़ रही थी , आसमान में अँधेरा था और मैं जली हुई झोपडी के पास उस गोल पत्थर पर पड़ा था . कोई तो था जो मुझे वहां से यहाँ लेकर आया था . कोई तो था जिसे खान का राज मालूम था कोई तो था जो शायद मुझ पर नजर रखे हुए था . खैर मैं वापिस खेतो पर आया और चारपाई पर पसर गया, आँखों में नींद नहीं थी मन में हजारो विचार थे जो कुछ देखा था उसे समझने के लिए मुझे फिर से खान में जाना होगा . सुबह मैं शहर के लिए निकल गया किसी सुनार से मिलने के लिए

“इनकी क्या कीमत हो सकती है लाला ” मैंने जोहरी से कहा

जोहरी ने बहुत देर तक हीरो को जांचा-परखा और बोला- हैं तो खालिस चीज पर गुणवत्ता का स्तर ज्यदा नहीं है

मैं- समझा नहीं मैं

जोहरी- मतलब की ये बिना पके हीरे है , फिलहाल इनकी कीमत ज्यादा नहीं है

मैं- कोई बात नहीं , किसी और जोहरी से मिल लेता हु

जोहरी- अरे रुक भाई , कितने में बेचेगा इनको तू ही बता

मैं- कच्चा खिलाडी नहीं मैं , हीरे मूल्यवान होते है ये बात किसी से छुपी नहीं

जोहरी- ये छोटा क़स्बा है यहाँ इनकी कीमत कोई नहीं दे पायेगा पर अगर तू कुछ दिन रुके तो मैं बड़े शहर में बात कर लूँगा वहां तुझे बढ़िया कीमत मिल जाएगी मेरा कमीशन काट के.

मैं- मैं तुझे वैसे ही कुछ हीरे दे दूंगा, तू इनकी कीमत बता बेचना ना बेचना बाद की बात है .

जोहरी- इनको ठीक से तराशने के बाद लाखो में जाएगी बात

मैं- ठीक है बुला ले अपने खरीदार को

जोहरी- माल कितना है

मैं- जितना भी है बहुत है .

जोहरी- तीन दिन बाद यही मुलाकात होगी.

एक समय था जब इसी शहर में आने का आने का इतना चाव रहता था , दो समोसे, कुछ रसगुल्ले इतनी ही लालसा रहती थी . समय के साथ शहर भी बदल गया था , वो किताबो की दुकान जहा से हमने उपन्यास पढने सीखे बंद हो गयी थी .भूख सी लगी थी तो थोडा बहुत खाया और वापिस गाँव की बस पकड ली इस उम्मीद में की कोई नहीं राह जरुर मिलेगी जो मेरी जिन्दगी को राहत देगी. गाँव आने के बाद शिवाले पर चला गया बाबा संग बैठ कर चाय पी ही रहा था की तभी भाभी वहां पर आ गयी.........


“बात करनी है तुमसे ” बोली वो
“बात करनी है तुमसे ” बोली वो
अब भी भाभी से बात करने या उसकी बात सुनने की गुन्जाईश बची है क्या?
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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बहुत ही शानदार अपडेट दिए हैं भाई मौत और चूतों ने दिमाग का भोसड़ा कर दिया है पता ही नहीं चल पा रहा है कि कौन अपना है...सबकी चूत मार चुका है और सबसे मरवा भी चुका है...
धीरे-धीरे कहानी अपने शबाब पर जा रही है
 
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