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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
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LustyArjuna

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भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग में

सस्स्स् लगता है अब मोनी के कोमार्य भेदन का समय नजदीक है।
 
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arushi_dayal

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भाग 144


अब तक अपने पढ़ा…

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।


अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया

अब आगे…

सोनू वापस बाल्टी में पानी भरने लगा उसे वह दिन याद आने लगा जब बनारस में लगभग यही स्थिति उत्पन्न हो गई थी तब भी सुगना उसे इसी प्रकार रसोई से नहाते हुए देख रही थी।

सोनू जैसे-जैसे उसे दिन के बारे में सोचता गया उसके मन में तरह-तरह की भावनाएं आने लगीं और मन शैतान होने लगा।

।।।।।।पुराने भाग 83 से उद्धृत।।।।


उस दिन सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

।।।। उद्धरण समाप्त ।।।


ऐसा नहीं था कि उस दृश्य के बारे में सोनू अकेला सोच रहा था सुगना भी अपने दिमाग में उन्हीं दृश्यों को याद कर रही थी। कैसे सोनू हैंडपंप पर नहा रहा था और जब उसने उसे पानी चलाने के लिए हैंडपंप पर बुलाया उसका कलेजा धक-धक कर रहा था फिर भी उसने सोनू के लिए हैंड पंप चलाए और…. हे भगवान उस दिन उसने सोनू के लंड को साक्षात साबुन में लिपटे हुए देखा था।

तभी बाल्टी और लोटे की आवाज से सुगना की तंद्रा टूटी और उसकी आंखों के सामने ठीक वही दृश्य दिखाई पड़ने लगे सोनू सुगना की तरफ अपना चेहरा कर बाल्टी से अपने बदन पर पानी डालने लगा मजबूत सीने से उतरती पानी की बूंदे सोनू की कमर पर बंधी धोती से टकराती और धीरे-धीरे उसके अधोभाग को भिगोने लगी।


कुछ ही देर में पतली धोती सोनू के लंड को छुआ पाने में असमर्थ थी। भीगी हुई धोती के पीछे उसका लंड अब दिखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे सपेरे ने काले नाग को सफेद कपड़े से ढक रखा हो। सुगना अब भी सोनू को एक टक देख रही थी पर निगाहें सोनू के चेहरे से हटकर उसकी जांघों के बीच तक जा पहुंची थी जिसे सोनू ने बखूबी महसूस कर लिया था अचानक सोनू में आवाज लगाई ..

दीदी तनी हैंड पंप चला दे पानी खत्म हो गईल बा..

सुगना का कलेजा एक बार फिर धक-धक करने लगा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई और आंगन में आ गई।

क्या खूबसूरत नजारा था। सुहाग सेज पर बिछने को तैयार एक सजी-धजी अप्सरा हैंडपंप चला रही थी और उसके समक्ष एक गठीला नौजवान उसके सामने उसी पानी से नहा रहा था।

उस दिन बनारस में जो कुछ हुआ था आज वह पुनः घटित हो रहा था पर परिस्थितिया तब अलग थी आज अलग।

सोनू और सुगना दोनों उस दिन की यादों में खोए हुए थे तभी सोनू ने अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। सुगना सोचने लगी…हे भगवान क्या सोनू भी वही सोच रहा है?

सुगना मन ही मन सोचने लगी हे भगवान क्या सोनू ने उस दिन जो किया था जानबूझकर किया था क्या सच में वह अपना लंड उसे दिखाना चाह रहा था। नहीं नहीं उस दिन तो वह लाली का इंतजार कर रहा था। अब तक सुगना यही समझ रही थी कि उस दिन उसने सोनू का लंड अकारण ही देख लिया था पर आज सुगना को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में सोनू के हाथ उसकी जांघों तक पहुंच गए और वही हुआ जिसका डर था। सोनू के हाथ में उसका तना और फूला हुआ लंड आ चुका था। सोनू की हथेलियों ने उसके लंड पर साबुन मलना शुरू कर दिया। स्थित ठीक उसी दिन जैसी हो चुकी थी सुगना एक टक सोनू के लंड को देख रही थी तभी सोनू ने अपनी आंखें खोल दी और मुस्कुराते हुए बोला..

“का देखत बाड़े? पहले नईखे देखले का?

सुगना झेंप गई वह कुछ बोली नहीं अपितु उसने अपनी आंखें हटा ली।

“ले पानी भर गइल अब जल्दी नहा ले” सुगना ने बखूबी बात बदल दी”

“दीदी तनी पीठ पर साबुन लगा दे”

सुगना हिचकिचा रही थी तभी सोनू ने फिर कहा..

“आज का लाज लगता पहले भी तो लगावले बाड़ू”

सुगना क्या कहती वह धीरे-धीरे सोनू के पास पहुंच गई और उसकी मांसल पीठ पर साबुन लगाने लगी नजरे बरबस ही सोनू के लंड पर जा रही थी जो सोनू के मजबूत हाथों में आगे पीछे हो रहा था कभी उसका सुपड़ा उछल कर बाहर आता कभी सोनू अपनी हथेलियों से उसे ढक लेता ऐसा लग रहा था जैसे सोनू सुगना को दिखाकर उसे हिला रहा था।

अचानक सोनू ने अपना हाथ पीछे किया और सुगना की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

सजी-धजी सुगना सोनू की गोद में आकर गिर गई। एक तरफ सुगना लहंगा चोली में पूरी तरह सजी-धजी थी दूसरी तरफ सोनू साबुन में लिपटा हुआ नंग धड़ंग..

नियति इस अनोखे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रही थी।

“ई का कईले. तोहरे खातिर अतना सजनी धजनी सब बिगाड़ देले.” सुगना ने अपने चेहरे पर झूठी नाराजगी के भाव लाते हुए कहा परंतु सोनू की गोद में आकर आज उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि जिस सोनू को उसने अब तक अपनी गोद में उठाया था वह सोनू आज स्वयं उसे गोद में लेने लायक हो गया था।

सोनू ने सुगना को चूमने की कोशिश की तभी सुगना ने कहा

“अरे हमार लहंगा भी खराब हो गईल देख साबुन लाग गइल”

सोनू ने सुगना के चेहरे को छोड़कर उसके लहंगे की तरफ देखा लहंगे के ठीक ऊपर सुगना की सुंदर नाभी दिखाई पड़ गई। गोरे सपाट पेट पर मणि जैसी चमकती नाभि को देखकर सोनू मदहोश होने लगा..

खूबसूरती अनुभव और संयम की चीज है इसका रसपान जितना धीरे हो उतना अच्छा।

सुगना ने सोनू की गोद से उठने की कोशिश की पर सोनू के मजबूत हाथों ने सुगना को यथा स्थिति में रहने के लिए विवश कर दिया यद्यपि यह जबरदस्ती नहीं थी परंतु एक मजबूत इशारा जरूर था।

सोनू के साबुन लगे हाथ सुगना की गोरे पेट पर थे.. सुगना सिहर उठी.. उसने आज के लिए न जाने क्या-क्या सोचा था और क्या हो रहा था.

अचानक सोनू ने सुगना के लहंगे की डोरी खींच दी कमर पर कसा लहंगा ढीला हो गया।

“ई का करत बाड़े “ सुगना ने शरमाते हुए सोनू का ध्यान अपनी तरफ खींचा..

एक बार फिर सोनू सुगना के चेहरे की तरफ देखने लगा पर उसके हाथ ना रुके सुगना का लहंगा नीचे सरकता जा रहा था.. यह सोनू की सम्मोहक आंखों का जादू था या सोनू और सुगना के बीच गहरे प्यार का नतीजा सुगना की कमर स्स्वतः ही उठती गई और लहंगा धीरे-धीरे उसकी जांघों से नीचे आ गया…

सुगना ने जैसे ही अपनी कमर नीचे की उसके गदराए नितंबों पर सोनू के तने हुए लंड का संपर्क हुआ..

सुगना सहम गई उसने स्वयं को सोनू की गोद में व्यवस्थित करने की कोशिश की और सोनू के लंड को अपनी जांघों के बीच से बाहर आ जाने दिया शायद यही उसके पास एक मात्र रास्ता था.

सुगना की यह हरकत सोनू बखूबी महसूस कर रहा था.. पर वह लगातार सुगना की आंखों में देखे जा रहा था जैसे उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं परंतु आज सुगना बीच-बीच में मारे शर्म के अपनी आंखें बंद कर ले रही थी सोनू का बर्ताव आज पूरी तरह मर्दाना था उसका छोटा सोनू अब मर्द बन चुका था..

तभी सुगना ने अपने लहंगे को अपने घुटनों पिंडलियों और फिर पैर से बाहर निकलते हुए महसूस किया। सुगना के पैरों की पायल की हुक ने लहंगे को फंसा कर रोकने की कोशिश की पर सोनू के हल्के तनाव से वह प्रतिरोध भी टूट गया और सुगना का लहंगा हैंडपंप के बगल में पड़ा अपनी मालकिन को नग्न देख रहा था वह उसकी आबरू बचाने में नाकाम और लाचार पड़ा अब अपनी नग्न मालकिन की खूबसूरती निहार रहा था।

लहंगे पर विजय प्राप्त करने के बाद सोनू के हाथ सुगना की चोली से खेलने लगे। अब जब भरतपुर लुट ही चुका था सुगना ने चोली के हक को भी खुल जाने दिया उसका ध्यान ब्रा पर केंद्रित था वह उसे किसी हाल में भिगोना नहीं चाहती थी यही एकमात्र ब्रा थी जिसे पहन कर उसे वापस जाना था।

चोली का हुक खुलने के बाद सुगना ने शरमाते हुए धीरे से बोला..

“ब्रा के मत भीगईहे ईहे पहन के जाए के बा” इतना कहकर सुगना ने स्वयं अपने हाथों से ब्रा के हुक को खोलने लगी। सुगना को अंदेशा था की सोनू पहले की भांति कभी भी ब्रा के हुक तोड़ सकता है वह पहले भी ऐसा कर चुका था। सुगना की चूचियों को देखने के लिए कोई भी अधीर हो जाता सोनू भी इससे अछूता नहीं था। पर आज सोनू ने सुगना की मदद की और ब्रा को सुरक्षित सुगना के शरीर से अलग कर दूर रख दिया…

हल्की धूप में चमकता सुगना का नग्न बदन देखकर सोनू की वासना भड़क उठी…

सुगना की आत्मा प्रफुल्लित थी उसे नग्न तो होना ही था बिस्तर पर ना सही घर के खुले आंगन में ही सही। वह पहले भी सरयू सिंह के साथ यह आनंद ले चुकी थी पर आज वह अपने सोनू की बाहों में थी।

सुगना के होठों पर लाली और चमकता चेहरा सोनू को अपनी और खींच रहा था सोनू ने अपना सर झुकाया और अपनी हथेली से सुगना के सर को हल्का ऊपर उठाया और अपने होंठ सुगना के होठों से सटा दिए…

सुगना और सोनू में एक दूसरे के भीतर समा जाने की होड़ लग गई। सुगना और सोनू की जीभ को एक दूसरे के मुख में प्रवेश कर उसकी गर्मी का आकलन करने लगी।

सोनू का दाहिना हाथ चूचियों को सहला रहा था जैसे वह उन्हें तसल्ली दे रहा हूं कि चुंबन का अवसर उन्हें भी अवश्य प्राप्त होगा और हुआ भी वही..

सुगना के अधरो का अमृत पान करने के पश्चात सोनू सुगना की चूचियों की तरफ आ गया…आज सोनू का दिया मंगलसूत्र ही चूचियों की रक्षा करने पर आमादा था जब-जब सोनू सुगना की चूचियों को मुंह में भरने की कोशिश करता वह मंगलसूत्र उसके आड़े आ जाता..

सोनू अधीर हो रहा था और सुगना मुस्कुरा रही थी.. इधर सोनू सुगना की चुचियों में खोया था उधर उसकी नासिका में इत्र की सुगंध आ रही थी…

उस मोहक और मादक सुगंध की तलाश में सोनू ने चुचियों का आकर्षण छोड़ दिया और अपना सर और नीचे करता गया…

पर सोनू अपनी गर्दन को और नहीं झुका पाया यह संभव भी नहीं था सुगना की नाभि तक आते-आते उसके गर्दन की लोच खत्म हो गई..

सुगना द्वारा अपनी जांघों पर लगाए गए इत्र की खुशबू सोनू की नथनो में भर रही थी…सुगना की जांघों के बीच से झांकता उसका लंड उसे दिखाई पड़ रहा था पर वह चाहकर भी इस अवस्था में सुगना के बुर को चूम पाने में असमर्थ था..

स्थिति को असहज होते देख सुगना ने कहा

“अब मन भर गइल न… तब चल नहा ले…”

“दीदी एक बात बताओ की ई विशेष इत्र काहे लगावल जाला?” सोनू ने सुगना की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा..


इस दौरान वह सुगना की चूचियों को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते जा रहा था.. और बाएं हाथ से उसके गर्दन को सहारा दिए हुए थे सुगना सोनू की गोद में थी।

सुगना मन ही मन सोच रही थी कि वह कभी छोटे सोनू को इसी प्रकार अपनी गोद में लिया करती थी परंतु तब शायद वह दोनों वासना मुक्त थे। पर आज स्थिति उलट थी छोटा सोनू अब पूर्ण मर्द था और सुगना उम्र में बड़े होने के बावजूद अभी कमसिन कचनार थी..

“बता ना दीदी ..” सुगना मुस्कुराने लगी वह जानती थी कि सोनू उसे छेड़ रहा है लाली सोनू को उस पारंपरिक इत्र के प्रयोग और उसकी अहमियत पहले ही बता चुकी थी।

“तोरा मालूम नइखे का…”

“ना” सोनू भोली सूरत बनाते हुए बोला..

“लाली सुहागरात में ना लगवले रहे का..”

“ना “ सोनू सुगना के गाल से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..हथेलियां चूचियों को अपने आगोश में भरने का अब भी प्रयास कर रहीं थी..

“अच्छा रुक बतावत बानी”

सुगना ने खुद को सोनू की गोद में व्यवस्थित किया पर गोद से उतरी नहीं..और अपनी कातिल मुस्कान लिए अपनी आंखों से अपनी पनियाई बुर की तरफ इशारा करते हुए अपनी जांघें खोल दी और बोला..

“एकर पुजाई खातिर लगावल जाला…”

सोनू की आंखों ने सुगना की निगाहों का पीछा किया और सुगना की रसभरी गुलाबी बुर उसे दिखाई पड़ गई…

सोनू की हथेली जब तक सुगना की चूची को छोड़कर उसकी बुर को अपने आगोश में ले पाती सुगना के कोमल हाथों ने सोनू की मजबूत कलाई थाम ली और उसे आगे बढ़ने से रोक लिया.. और अपनी बुर के कपाट अपनी जांघों से फिर बंद कर दिए. सोनू का लंड अब अभी जांघों के बीच था..

“अभी ना… पहिले नहा ले “ सुगना ने सोनू से कहा और उसे सांत्वना स्वरूप एक मीठा सा चुंबन दे दिया।

“ठीक बा ..पहले साबुन त लगा दे..”सोनू ने शरारती लहजे में कहा। सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था।

सोनू ने सुगना पर अपनी पकड़ ढीली की और सुगना सावधानी पूर्वक खड़ी हो गई. उसे अपनी नग्नता का एहसास तब हुआ जब सोनू ने अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटा दिया.. और अपने नथुनों से सुगना के इत्र की खुशबू सूंघने लगा..

सुगना के काम रस की खुशबू और इत्र की खुशबू दोनों ने सोनू को कामान्ध कर दिया.. वह अधीर होकर सुगना की बुर को चूमने की कोशिश करने लगा..

सुगना खड़ी थी इस अवस्था में सोनू के होंठ बुर के होठों से मिल नहीं पा रहे थे। सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियां से सुगना के कूल्हे पकड़े और उसे अपनी तरफ हल्के से खींचा। सुगना का बैलेंस बिगड़ा और उसने सोनू का सर थामकर खुद को गिरने से बचाया।

सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना ने स्वेच्छा से उसके सर को अपनी बुर की तरफ धकेला है। सोनू और भी कामुक हो गया उसने अपनी लंबी जीभ निकाली और सुगना की जांघों के बीच गहराई तक उतार दी। सुगना की बुर की सुनहरी दरार से रस चुराते हुए सोनू की जीभ सुगना के भागनाशे से तक आ पहुंची…


सोनू की जिह्वा अपनी बहन के अमृत रस से शराबोर हो गई..

सोनू ने अपना सर अलग किया और सुगना की तरफ देखा उसकी जीभ और होंठो से सुगना की बुर की लार अब भी टपक रही थी..

“दीदी ठीक लागत बा नू..?”

सुगना मदहोश थी अपने छोटे भाई का यह प्रश्न इस अवस्था में बेमानी थी। बुर की लार सुगना की अवस्था चीख चीख कर बता रही थी..

सुगना मारे शर्म के पानी पानी थी उसने अपनी पलके बंद कर ली और एक बार फिर सोनू के सर को अपनी जांघों से सटा दिया..

सोनू एक बार फिर उसे अमृत कलश से अमृत चाटने की कोशिश करने लगा सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ उसे लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी…सुगना को यह मंजूर नहीं था आज उसे जी भर कर काम सुख का आनंद लेना था उसने सोनू के सर को खुद से अलग करते हुए कहा

“तोरा शरीर का पूरा साबुन सूख गया है पहले नहा ले यह सब बाद में…”

सोनू ने सुगना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके नितंबों पर से अपना हाथ हटा लिया…

और सुगना की तरफ देखते हुए बोला

“दीदी ठीक बा नहला द” सोनू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी उसने सुगना को सोनू के बचपन की याद दिला दी। पर आज परिस्थितिया भिन्न थी ।

नंगी सुगना आगे झुकी बाल्टी में से लोटे में पानी निकला इस दौरान उसकी झूलती हुई चूचियां सोनू की आंखों के सामने थिरक रही थी। सोनू से बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से सुगना की चूची पकड़ ली। सुगना को जैसे करंट सा लगा..

“ए सोनू बाबू अभी छोड़ दे हम गिर जाएब.. तंग मत कर”

नंगी सुगना क्या-क्या बचाती सब कुछ दिन की दूधिया रोशनी में सोनू की आंखों के सामने था। गोरी मांसल जांघों के बीच सुगना की बुर के फूले हुए होंठ और उसमें में से लटकती हुई काम रस की बूंद सोनू का ध्यान खींचे हुए थी..

सुगना ने लौटे का पानी सोनू के सर पर डाल दिया.. सोनू ने अपने हाथों से पानी को अपने सर और बदन पर फैलाया तब तक सुगना एक बार और लोटे से पानी उसके सर पर डाल चुकी थी।

सुगना साबुन उठाने के लिए सोनू के बगल में झुकी और सोनू की पीठ पर साबुन मलने लगी। जांघों में हो रही हलचल से बुर की फांके सोनू के आंखों के सामने बार-बार उस गुलाबी छेद को दिखा रही थी जो इस सृष्टि की रचयिता थी। सोनू से रहा न गया उसकी उंगलियों ने सुगना की बुर से लटकती हुई लार को छीनने की कोशिश की.. और उसने सुगना की संवेदनशील बुर पर अपनी उंगलियां फिरा दी। सुगना चिहुंक उठी और अपना संतुलन खो बैठी परंतु सोनू ने उसे संभाल लिया और वह सीधा सोनू की गोद में आ गिरी..

सुगना के दोनों पैर सोनू की कमर के दोनों तरफ थे। सोनू का लंड सुगना और उसके पेट के बीच फंस गया था। सोनू और सुगना का चेहरा एक दूसरे के सामने था…भरी भरी चूचियां सोनू के मजबूत सीने से सटकर सपाट हो रही थी पर निप्पलो का तनाव सोनू महसूस कर पा रहा था।

सोनू अपनी मजबूत बाहों से सुगना को अपनी तरफ खींचा हुआ था और अपनी मजबूत जांघों से सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए था।

सोनू सुगना की आंखों में देखते हुए बेहद का कामुक अंदाज में बोला..

“तू इतना सुंदर काहे बाड़ू “ सोनू सुगना की सपाट और चिकनी पीठ पर अपने हाथ फेरे जा रहा था।

इस बार सुगना ने प्रति उत्तर में सोनू के अधरों को चूम लिया और अपनी हथेलियां में पड़े साबुन को सोनू की पीठ पर मलने लगी..

सुगना जैसे-जैसे सोनू की पीठ पर साबुन लगाती गई उसकी चूचियां लगातार सोनू के सीने से रगड़ खाती रहीं और सोनू का लंड सुगना के पेट से रगड़ खाकर और तनता चला गया। लंड में हो रही संवेदना सोनू को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू का लंड सुगना की नाभि से टकरा रहा था।

सुगना ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने पंजों पर जोर लगाया और अपने कूल्हे को थोड़ा ऊंचा किया ताकि वह सोनू की पीठ पर आसानी से पहुंच सके…

सुगना की बुर भी साथ-साथ उठ गई थी.. सोनू ने सुगना को अपने और समीप खींचा और सुगना की बुर के होठों पर सोनू के लंड ने दस्तक दे दी।

सुगना सोनू की पीठ पर साबुन लगाती रही और जाने अनजाने अपनी बुर को सोनू के लंड के सुपाड़े पर हल्के-हल्के रगड़ती रही यह संवेदना जितना सोनू को पसंद आ रही थी उतना ही सुगना को दोनों चुप थे पर आनंद में शराबोर थे। सुगना की चूचियां सोनू के चेहरे से सट रही थी वह उन्हें अपने होठों में भरने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था।

सोनू की हथेलियां सुगना के नंगे नितंबों पर घूम रही थी धीरे-धीरे वह नितंबों के बीच की घाटी में उतरती गई और आखिरकार सोनू की भीगी उंगलियों ने सुगना की गुदांज गांड को छू लिया…

सुगना अपना संतुलन एक बार फिर खो बैठी पर इस बार उसे सोनू के मजबूत खूंटे का सहारा मिला सोनू का लंड जो अब तक सुगना की बुर को चूम रहा था अब उसकी गहराइयों में उतरता गया…

कई महीनो बाद आज सोनू का मजबूत लंड सुगना की बुर में प्रवेश कर रहा था.. सुगना की बुर अब अभी सोनू के लिए तंग ही थी। सुगना ने अपने अंदर एक भराव महसूस हुआ और जब तक सुगना संभल पाती सोनू के लंड ने उसके गर्भाशय को चूम लिया.. सुगना कराह उठी..

“आह सोनू बाबू तनी धीरे से….”

उसने अपने होठों को अपने दांतों से दबाया और खुद को व्यवस्थित करने लगी लंड अब भी सुगना के गर्भाशय पर दबाव बनाया हुआ था.. खुद को संतुलित करने के बाद

सुगना ने सोनू की तरफ घूरकर देखा जैसे उससे पूछ रही हो कि उसने उसकी गांड को क्यों छुआ?

सोनू को अपनी गलती पता थी उसने तुरंत अपनी उंगलियां सुगना की गांड से हटा ली और सुगना के होठों को अपने होठों के बीच भर लिया। उसने अपनी जांघों को थोड़ा ऊंचा कर उसने सुखना को ऊपर उठने में मदद की और फिर अपनी जांघें फैला दी सुगना एक बार फिर लंड पर पूरी तरह बैठ गई और सोनू के लंड ने सुगना के किले में अपनी जगह बना ली। सोनू ने अपनी जांघें ऊंची और नीची कर अपने लंड को सुखना की बुर में धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबने लगी। सोनू ने जो गलती सुगना की गांड को छू कर की थी शायद उसने उसका प्रायश्चित कर दिया था सुगना खुश थी और सोनू भी।

सोनू का लंड सुगना की बुर में जड़ तक धस चुका था.. सुगना सोनू की गर्दन को पकड़ कर अपना बैलेंस बनाए हुए थी। कुछ पलों के लिए गहरी शांति हो गई थी। पर सोनू का लंड अंदर थिरक रहा था…

सोनू और सुगना संभोग की मुद्रा में आ चुके थे। सुगना की पलकें बंद हो चुकी थी वह आनंद में डूबी थी..

क्या हुआ कैसे हुआ कहना कठिन था पर सुगना की कमर अब हिल रही थी सोनू का लंड उसकी दीदी सुगना की बुर से कुछ पलों के लिए बाहर आता और फिर सुगना की प्यासी बर उसे पूरी तरह लील देती…

सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
सोनू की वासना आज जागृत थी वह मन ही मन इस मिलन को यादगार बनाना चाह रहा था.. उसके नथुनों में सुगना के काम रास और उस इत्र की खुशबू अब भी आ रही थी ..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया.. और सोनू केअंतरमन को पढ़ने का प्रयास करने लगी।



शेष अगले भाग में…
वाह आनंद जी... आख़िरकार चिर प्रतिशित सुगना और सोनू का सम्भोग कार्यक्रम शुरू हुआ।दोनों आज अकेले मैं जवानी के सागर भी खूब गोते लगाने को तैयार है। सोनू एक तगड़ा जवान मर्द और सुगना एक जवान मदमस्त योवना। रिश्ते की परिभाषा और महत्वत्ता को पीछे छोड़ दोनों एक दूजे को संपूर्ण आनंद और संतुष्टि देने को उत्तावले हैं..:आशा है अगला अपडेट और कामुक और रसभरा होगा
 

Shubham babu

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भाग 144


अब तक अपने पढ़ा…

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।


अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया

अब आगे…

सोनू वापस बाल्टी में पानी भरने लगा उसे वह दिन याद आने लगा जब बनारस में लगभग यही स्थिति उत्पन्न हो गई थी तब भी सुगना उसे इसी प्रकार रसोई से नहाते हुए देख रही थी।

सोनू जैसे-जैसे उसे दिन के बारे में सोचता गया उसके मन में तरह-तरह की भावनाएं आने लगीं और मन शैतान होने लगा।

।।।।।।पुराने भाग 83 से उद्धृत।।।।


उस दिन सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

।।।। उद्धरण समाप्त ।।।


ऐसा नहीं था कि उस दृश्य के बारे में सोनू अकेला सोच रहा था सुगना भी अपने दिमाग में उन्हीं दृश्यों को याद कर रही थी। कैसे सोनू हैंडपंप पर नहा रहा था और जब उसने उसे पानी चलाने के लिए हैंडपंप पर बुलाया उसका कलेजा धक-धक कर रहा था फिर भी उसने सोनू के लिए हैंड पंप चलाए और…. हे भगवान उस दिन उसने सोनू के लंड को साक्षात साबुन में लिपटे हुए देखा था।

तभी बाल्टी और लोटे की आवाज से सुगना की तंद्रा टूटी और उसकी आंखों के सामने ठीक वही दृश्य दिखाई पड़ने लगे सोनू सुगना की तरफ अपना चेहरा कर बाल्टी से अपने बदन पर पानी डालने लगा मजबूत सीने से उतरती पानी की बूंदे सोनू की कमर पर बंधी धोती से टकराती और धीरे-धीरे उसके अधोभाग को भिगोने लगी।


कुछ ही देर में पतली धोती सोनू के लंड को छुआ पाने में असमर्थ थी। भीगी हुई धोती के पीछे उसका लंड अब दिखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे सपेरे ने काले नाग को सफेद कपड़े से ढक रखा हो। सुगना अब भी सोनू को एक टक देख रही थी पर निगाहें सोनू के चेहरे से हटकर उसकी जांघों के बीच तक जा पहुंची थी जिसे सोनू ने बखूबी महसूस कर लिया था अचानक सोनू में आवाज लगाई ..

दीदी तनी हैंड पंप चला दे पानी खत्म हो गईल बा..

सुगना का कलेजा एक बार फिर धक-धक करने लगा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई और आंगन में आ गई।

क्या खूबसूरत नजारा था। सुहाग सेज पर बिछने को तैयार एक सजी-धजी अप्सरा हैंडपंप चला रही थी और उसके समक्ष एक गठीला नौजवान उसके सामने उसी पानी से नहा रहा था।

उस दिन बनारस में जो कुछ हुआ था आज वह पुनः घटित हो रहा था पर परिस्थितिया तब अलग थी आज अलग।

सोनू और सुगना दोनों उस दिन की यादों में खोए हुए थे तभी सोनू ने अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। सुगना सोचने लगी…हे भगवान क्या सोनू भी वही सोच रहा है?

सुगना मन ही मन सोचने लगी हे भगवान क्या सोनू ने उस दिन जो किया था जानबूझकर किया था क्या सच में वह अपना लंड उसे दिखाना चाह रहा था। नहीं नहीं उस दिन तो वह लाली का इंतजार कर रहा था। अब तक सुगना यही समझ रही थी कि उस दिन उसने सोनू का लंड अकारण ही देख लिया था पर आज सुगना को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में सोनू के हाथ उसकी जांघों तक पहुंच गए और वही हुआ जिसका डर था। सोनू के हाथ में उसका तना और फूला हुआ लंड आ चुका था। सोनू की हथेलियों ने उसके लंड पर साबुन मलना शुरू कर दिया। स्थित ठीक उसी दिन जैसी हो चुकी थी सुगना एक टक सोनू के लंड को देख रही थी तभी सोनू ने अपनी आंखें खोल दी और मुस्कुराते हुए बोला..

“का देखत बाड़े? पहले नईखे देखले का?

सुगना झेंप गई वह कुछ बोली नहीं अपितु उसने अपनी आंखें हटा ली।

“ले पानी भर गइल अब जल्दी नहा ले” सुगना ने बखूबी बात बदल दी”

“दीदी तनी पीठ पर साबुन लगा दे”

सुगना हिचकिचा रही थी तभी सोनू ने फिर कहा..

“आज का लाज लगता पहले भी तो लगावले बाड़ू”

सुगना क्या कहती वह धीरे-धीरे सोनू के पास पहुंच गई और उसकी मांसल पीठ पर साबुन लगाने लगी नजरे बरबस ही सोनू के लंड पर जा रही थी जो सोनू के मजबूत हाथों में आगे पीछे हो रहा था कभी उसका सुपड़ा उछल कर बाहर आता कभी सोनू अपनी हथेलियों से उसे ढक लेता ऐसा लग रहा था जैसे सोनू सुगना को दिखाकर उसे हिला रहा था।

अचानक सोनू ने अपना हाथ पीछे किया और सुगना की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

सजी-धजी सुगना सोनू की गोद में आकर गिर गई। एक तरफ सुगना लहंगा चोली में पूरी तरह सजी-धजी थी दूसरी तरफ सोनू साबुन में लिपटा हुआ नंग धड़ंग..

नियति इस अनोखे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रही थी।

“ई का कईले. तोहरे खातिर अतना सजनी धजनी सब बिगाड़ देले.” सुगना ने अपने चेहरे पर झूठी नाराजगी के भाव लाते हुए कहा परंतु सोनू की गोद में आकर आज उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि जिस सोनू को उसने अब तक अपनी गोद में उठाया था वह सोनू आज स्वयं उसे गोद में लेने लायक हो गया था।

सोनू ने सुगना को चूमने की कोशिश की तभी सुगना ने कहा

“अरे हमार लहंगा भी खराब हो गईल देख साबुन लाग गइल”

सोनू ने सुगना के चेहरे को छोड़कर उसके लहंगे की तरफ देखा लहंगे के ठीक ऊपर सुगना की सुंदर नाभी दिखाई पड़ गई। गोरे सपाट पेट पर मणि जैसी चमकती नाभि को देखकर सोनू मदहोश होने लगा..

खूबसूरती अनुभव और संयम की चीज है इसका रसपान जितना धीरे हो उतना अच्छा।

सुगना ने सोनू की गोद से उठने की कोशिश की पर सोनू के मजबूत हाथों ने सुगना को यथा स्थिति में रहने के लिए विवश कर दिया यद्यपि यह जबरदस्ती नहीं थी परंतु एक मजबूत इशारा जरूर था।

सोनू के साबुन लगे हाथ सुगना की गोरे पेट पर थे.. सुगना सिहर उठी.. उसने आज के लिए न जाने क्या-क्या सोचा था और क्या हो रहा था.

अचानक सोनू ने सुगना के लहंगे की डोरी खींच दी कमर पर कसा लहंगा ढीला हो गया।

“ई का करत बाड़े “ सुगना ने शरमाते हुए सोनू का ध्यान अपनी तरफ खींचा..

एक बार फिर सोनू सुगना के चेहरे की तरफ देखने लगा पर उसके हाथ ना रुके सुगना का लहंगा नीचे सरकता जा रहा था.. यह सोनू की सम्मोहक आंखों का जादू था या सोनू और सुगना के बीच गहरे प्यार का नतीजा सुगना की कमर स्स्वतः ही उठती गई और लहंगा धीरे-धीरे उसकी जांघों से नीचे आ गया…

सुगना ने जैसे ही अपनी कमर नीचे की उसके गदराए नितंबों पर सोनू के तने हुए लंड का संपर्क हुआ..

सुगना सहम गई उसने स्वयं को सोनू की गोद में व्यवस्थित करने की कोशिश की और सोनू के लंड को अपनी जांघों के बीच से बाहर आ जाने दिया शायद यही उसके पास एक मात्र रास्ता था.

सुगना की यह हरकत सोनू बखूबी महसूस कर रहा था.. पर वह लगातार सुगना की आंखों में देखे जा रहा था जैसे उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं परंतु आज सुगना बीच-बीच में मारे शर्म के अपनी आंखें बंद कर ले रही थी सोनू का बर्ताव आज पूरी तरह मर्दाना था उसका छोटा सोनू अब मर्द बन चुका था..

तभी सुगना ने अपने लहंगे को अपने घुटनों पिंडलियों और फिर पैर से बाहर निकलते हुए महसूस किया। सुगना के पैरों की पायल की हुक ने लहंगे को फंसा कर रोकने की कोशिश की पर सोनू के हल्के तनाव से वह प्रतिरोध भी टूट गया और सुगना का लहंगा हैंडपंप के बगल में पड़ा अपनी मालकिन को नग्न देख रहा था वह उसकी आबरू बचाने में नाकाम और लाचार पड़ा अब अपनी नग्न मालकिन की खूबसूरती निहार रहा था।

लहंगे पर विजय प्राप्त करने के बाद सोनू के हाथ सुगना की चोली से खेलने लगे। अब जब भरतपुर लुट ही चुका था सुगना ने चोली के हक को भी खुल जाने दिया उसका ध्यान ब्रा पर केंद्रित था वह उसे किसी हाल में भिगोना नहीं चाहती थी यही एकमात्र ब्रा थी जिसे पहन कर उसे वापस जाना था।

चोली का हुक खुलने के बाद सुगना ने शरमाते हुए धीरे से बोला..

“ब्रा के मत भीगईहे ईहे पहन के जाए के बा” इतना कहकर सुगना ने स्वयं अपने हाथों से ब्रा के हुक को खोलने लगी। सुगना को अंदेशा था की सोनू पहले की भांति कभी भी ब्रा के हुक तोड़ सकता है वह पहले भी ऐसा कर चुका था। सुगना की चूचियों को देखने के लिए कोई भी अधीर हो जाता सोनू भी इससे अछूता नहीं था। पर आज सोनू ने सुगना की मदद की और ब्रा को सुरक्षित सुगना के शरीर से अलग कर दूर रख दिया…

हल्की धूप में चमकता सुगना का नग्न बदन देखकर सोनू की वासना भड़क उठी…

सुगना की आत्मा प्रफुल्लित थी उसे नग्न तो होना ही था बिस्तर पर ना सही घर के खुले आंगन में ही सही। वह पहले भी सरयू सिंह के साथ यह आनंद ले चुकी थी पर आज वह अपने सोनू की बाहों में थी।

सुगना के होठों पर लाली और चमकता चेहरा सोनू को अपनी और खींच रहा था सोनू ने अपना सर झुकाया और अपनी हथेली से सुगना के सर को हल्का ऊपर उठाया और अपने होंठ सुगना के होठों से सटा दिए…

सुगना और सोनू में एक दूसरे के भीतर समा जाने की होड़ लग गई। सुगना और सोनू की जीभ को एक दूसरे के मुख में प्रवेश कर उसकी गर्मी का आकलन करने लगी।

सोनू का दाहिना हाथ चूचियों को सहला रहा था जैसे वह उन्हें तसल्ली दे रहा हूं कि चुंबन का अवसर उन्हें भी अवश्य प्राप्त होगा और हुआ भी वही..

सुगना के अधरो का अमृत पान करने के पश्चात सोनू सुगना की चूचियों की तरफ आ गया…आज सोनू का दिया मंगलसूत्र ही चूचियों की रक्षा करने पर आमादा था जब-जब सोनू सुगना की चूचियों को मुंह में भरने की कोशिश करता वह मंगलसूत्र उसके आड़े आ जाता..

सोनू अधीर हो रहा था और सुगना मुस्कुरा रही थी.. इधर सोनू सुगना की चुचियों में खोया था उधर उसकी नासिका में इत्र की सुगंध आ रही थी…

उस मोहक और मादक सुगंध की तलाश में सोनू ने चुचियों का आकर्षण छोड़ दिया और अपना सर और नीचे करता गया…

पर सोनू अपनी गर्दन को और नहीं झुका पाया यह संभव भी नहीं था सुगना की नाभि तक आते-आते उसके गर्दन की लोच खत्म हो गई..

सुगना द्वारा अपनी जांघों पर लगाए गए इत्र की खुशबू सोनू की नथनो में भर रही थी…सुगना की जांघों के बीच से झांकता उसका लंड उसे दिखाई पड़ रहा था पर वह चाहकर भी इस अवस्था में सुगना के बुर को चूम पाने में असमर्थ था..

स्थिति को असहज होते देख सुगना ने कहा

“अब मन भर गइल न… तब चल नहा ले…”

“दीदी एक बात बताओ की ई विशेष इत्र काहे लगावल जाला?” सोनू ने सुगना की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा..


इस दौरान वह सुगना की चूचियों को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते जा रहा था.. और बाएं हाथ से उसके गर्दन को सहारा दिए हुए थे सुगना सोनू की गोद में थी।

सुगना मन ही मन सोच रही थी कि वह कभी छोटे सोनू को इसी प्रकार अपनी गोद में लिया करती थी परंतु तब शायद वह दोनों वासना मुक्त थे। पर आज स्थिति उलट थी छोटा सोनू अब पूर्ण मर्द था और सुगना उम्र में बड़े होने के बावजूद अभी कमसिन कचनार थी..

“बता ना दीदी ..” सुगना मुस्कुराने लगी वह जानती थी कि सोनू उसे छेड़ रहा है लाली सोनू को उस पारंपरिक इत्र के प्रयोग और उसकी अहमियत पहले ही बता चुकी थी।

“तोरा मालूम नइखे का…”

“ना” सोनू भोली सूरत बनाते हुए बोला..

“लाली सुहागरात में ना लगवले रहे का..”

“ना “ सोनू सुगना के गाल से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..हथेलियां चूचियों को अपने आगोश में भरने का अब भी प्रयास कर रहीं थी..

“अच्छा रुक बतावत बानी”

सुगना ने खुद को सोनू की गोद में व्यवस्थित किया पर गोद से उतरी नहीं..और अपनी कातिल मुस्कान लिए अपनी आंखों से अपनी पनियाई बुर की तरफ इशारा करते हुए अपनी जांघें खोल दी और बोला..

“एकर पुजाई खातिर लगावल जाला…”

सोनू की आंखों ने सुगना की निगाहों का पीछा किया और सुगना की रसभरी गुलाबी बुर उसे दिखाई पड़ गई…

सोनू की हथेली जब तक सुगना की चूची को छोड़कर उसकी बुर को अपने आगोश में ले पाती सुगना के कोमल हाथों ने सोनू की मजबूत कलाई थाम ली और उसे आगे बढ़ने से रोक लिया.. और अपनी बुर के कपाट अपनी जांघों से फिर बंद कर दिए. सोनू का लंड अब अभी जांघों के बीच था..

“अभी ना… पहिले नहा ले “ सुगना ने सोनू से कहा और उसे सांत्वना स्वरूप एक मीठा सा चुंबन दे दिया।

“ठीक बा ..पहले साबुन त लगा दे..”सोनू ने शरारती लहजे में कहा। सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था।

सोनू ने सुगना पर अपनी पकड़ ढीली की और सुगना सावधानी पूर्वक खड़ी हो गई. उसे अपनी नग्नता का एहसास तब हुआ जब सोनू ने अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटा दिया.. और अपने नथुनों से सुगना के इत्र की खुशबू सूंघने लगा..

सुगना के काम रस की खुशबू और इत्र की खुशबू दोनों ने सोनू को कामान्ध कर दिया.. वह अधीर होकर सुगना की बुर को चूमने की कोशिश करने लगा..

सुगना खड़ी थी इस अवस्था में सोनू के होंठ बुर के होठों से मिल नहीं पा रहे थे। सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियां से सुगना के कूल्हे पकड़े और उसे अपनी तरफ हल्के से खींचा। सुगना का बैलेंस बिगड़ा और उसने सोनू का सर थामकर खुद को गिरने से बचाया।

सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना ने स्वेच्छा से उसके सर को अपनी बुर की तरफ धकेला है। सोनू और भी कामुक हो गया उसने अपनी लंबी जीभ निकाली और सुगना की जांघों के बीच गहराई तक उतार दी। सुगना की बुर की सुनहरी दरार से रस चुराते हुए सोनू की जीभ सुगना के भागनाशे से तक आ पहुंची…


सोनू की जिह्वा अपनी बहन के अमृत रस से शराबोर हो गई..

सोनू ने अपना सर अलग किया और सुगना की तरफ देखा उसकी जीभ और होंठो से सुगना की बुर की लार अब भी टपक रही थी..

“दीदी ठीक लागत बा नू..?”

सुगना मदहोश थी अपने छोटे भाई का यह प्रश्न इस अवस्था में बेमानी थी। बुर की लार सुगना की अवस्था चीख चीख कर बता रही थी..

सुगना मारे शर्म के पानी पानी थी उसने अपनी पलके बंद कर ली और एक बार फिर सोनू के सर को अपनी जांघों से सटा दिया..

सोनू एक बार फिर उसे अमृत कलश से अमृत चाटने की कोशिश करने लगा सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ उसे लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी…सुगना को यह मंजूर नहीं था आज उसे जी भर कर काम सुख का आनंद लेना था उसने सोनू के सर को खुद से अलग करते हुए कहा

“तोरा शरीर का पूरा साबुन सूख गया है पहले नहा ले यह सब बाद में…”

सोनू ने सुगना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके नितंबों पर से अपना हाथ हटा लिया…

और सुगना की तरफ देखते हुए बोला

“दीदी ठीक बा नहला द” सोनू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी उसने सुगना को सोनू के बचपन की याद दिला दी। पर आज परिस्थितिया भिन्न थी ।

नंगी सुगना आगे झुकी बाल्टी में से लोटे में पानी निकला इस दौरान उसकी झूलती हुई चूचियां सोनू की आंखों के सामने थिरक रही थी। सोनू से बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से सुगना की चूची पकड़ ली। सुगना को जैसे करंट सा लगा..

“ए सोनू बाबू अभी छोड़ दे हम गिर जाएब.. तंग मत कर”

नंगी सुगना क्या-क्या बचाती सब कुछ दिन की दूधिया रोशनी में सोनू की आंखों के सामने था। गोरी मांसल जांघों के बीच सुगना की बुर के फूले हुए होंठ और उसमें में से लटकती हुई काम रस की बूंद सोनू का ध्यान खींचे हुए थी..

सुगना ने लौटे का पानी सोनू के सर पर डाल दिया.. सोनू ने अपने हाथों से पानी को अपने सर और बदन पर फैलाया तब तक सुगना एक बार और लोटे से पानी उसके सर पर डाल चुकी थी।

सुगना साबुन उठाने के लिए सोनू के बगल में झुकी और सोनू की पीठ पर साबुन मलने लगी। जांघों में हो रही हलचल से बुर की फांके सोनू के आंखों के सामने बार-बार उस गुलाबी छेद को दिखा रही थी जो इस सृष्टि की रचयिता थी। सोनू से रहा न गया उसकी उंगलियों ने सुगना की बुर से लटकती हुई लार को छीनने की कोशिश की.. और उसने सुगना की संवेदनशील बुर पर अपनी उंगलियां फिरा दी। सुगना चिहुंक उठी और अपना संतुलन खो बैठी परंतु सोनू ने उसे संभाल लिया और वह सीधा सोनू की गोद में आ गिरी..

सुगना के दोनों पैर सोनू की कमर के दोनों तरफ थे। सोनू का लंड सुगना और उसके पेट के बीच फंस गया था। सोनू और सुगना का चेहरा एक दूसरे के सामने था…भरी भरी चूचियां सोनू के मजबूत सीने से सटकर सपाट हो रही थी पर निप्पलो का तनाव सोनू महसूस कर पा रहा था।

सोनू अपनी मजबूत बाहों से सुगना को अपनी तरफ खींचा हुआ था और अपनी मजबूत जांघों से सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए था।

सोनू सुगना की आंखों में देखते हुए बेहद का कामुक अंदाज में बोला..

“तू इतना सुंदर काहे बाड़ू “ सोनू सुगना की सपाट और चिकनी पीठ पर अपने हाथ फेरे जा रहा था।

इस बार सुगना ने प्रति उत्तर में सोनू के अधरों को चूम लिया और अपनी हथेलियां में पड़े साबुन को सोनू की पीठ पर मलने लगी..

सुगना जैसे-जैसे सोनू की पीठ पर साबुन लगाती गई उसकी चूचियां लगातार सोनू के सीने से रगड़ खाती रहीं और सोनू का लंड सुगना के पेट से रगड़ खाकर और तनता चला गया। लंड में हो रही संवेदना सोनू को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू का लंड सुगना की नाभि से टकरा रहा था।

सुगना ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने पंजों पर जोर लगाया और अपने कूल्हे को थोड़ा ऊंचा किया ताकि वह सोनू की पीठ पर आसानी से पहुंच सके…

सुगना की बुर भी साथ-साथ उठ गई थी.. सोनू ने सुगना को अपने और समीप खींचा और सुगना की बुर के होठों पर सोनू के लंड ने दस्तक दे दी।

सुगना सोनू की पीठ पर साबुन लगाती रही और जाने अनजाने अपनी बुर को सोनू के लंड के सुपाड़े पर हल्के-हल्के रगड़ती रही यह संवेदना जितना सोनू को पसंद आ रही थी उतना ही सुगना को दोनों चुप थे पर आनंद में शराबोर थे। सुगना की चूचियां सोनू के चेहरे से सट रही थी वह उन्हें अपने होठों में भरने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था।

सोनू की हथेलियां सुगना के नंगे नितंबों पर घूम रही थी धीरे-धीरे वह नितंबों के बीच की घाटी में उतरती गई और आखिरकार सोनू की भीगी उंगलियों ने सुगना की गुदांज गांड को छू लिया…

सुगना अपना संतुलन एक बार फिर खो बैठी पर इस बार उसे सोनू के मजबूत खूंटे का सहारा मिला सोनू का लंड जो अब तक सुगना की बुर को चूम रहा था अब उसकी गहराइयों में उतरता गया…

कई महीनो बाद आज सोनू का मजबूत लंड सुगना की बुर में प्रवेश कर रहा था.. सुगना की बुर अब अभी सोनू के लिए तंग ही थी। सुगना ने अपने अंदर एक भराव महसूस हुआ और जब तक सुगना संभल पाती सोनू के लंड ने उसके गर्भाशय को चूम लिया.. सुगना कराह उठी..

“आह सोनू बाबू तनी धीरे से….”

उसने अपने होठों को अपने दांतों से दबाया और खुद को व्यवस्थित करने लगी लंड अब भी सुगना के गर्भाशय पर दबाव बनाया हुआ था.. खुद को संतुलित करने के बाद

सुगना ने सोनू की तरफ घूरकर देखा जैसे उससे पूछ रही हो कि उसने उसकी गांड को क्यों छुआ?

सोनू को अपनी गलती पता थी उसने तुरंत अपनी उंगलियां सुगना की गांड से हटा ली और सुगना के होठों को अपने होठों के बीच भर लिया। उसने अपनी जांघों को थोड़ा ऊंचा कर उसने सुखना को ऊपर उठने में मदद की और फिर अपनी जांघें फैला दी सुगना एक बार फिर लंड पर पूरी तरह बैठ गई और सोनू के लंड ने सुगना के किले में अपनी जगह बना ली। सोनू ने अपनी जांघें ऊंची और नीची कर अपने लंड को सुखना की बुर में धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबने लगी। सोनू ने जो गलती सुगना की गांड को छू कर की थी शायद उसने उसका प्रायश्चित कर दिया था सुगना खुश थी और सोनू भी।

सोनू का लंड सुगना की बुर में जड़ तक धस चुका था.. सुगना सोनू की गर्दन को पकड़ कर अपना बैलेंस बनाए हुए थी। कुछ पलों के लिए गहरी शांति हो गई थी। पर सोनू का लंड अंदर थिरक रहा था…

सोनू और सुगना संभोग की मुद्रा में आ चुके थे। सुगना की पलकें बंद हो चुकी थी वह आनंद में डूबी थी..

क्या हुआ कैसे हुआ कहना कठिन था पर सुगना की कमर अब हिल रही थी सोनू का लंड उसकी दीदी सुगना की बुर से कुछ पलों के लिए बाहर आता और फिर सुगना की प्यासी बर उसे पूरी तरह लील देती…

सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
सोनू की वासना आज जागृत थी वह मन ही मन इस मिलन को यादगार बनाना चाह रहा था.. उसके नथुनों में सुगना के काम रास और उस इत्र की खुशबू अब भी आ रही थी ..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया.. और सोनू केअंतरमन को पढ़ने का प्रयास करने लगी।



शेष अगले भाग में…
Bahot hi khubsurati se likh rahe bhai 👌👌👌👍👍☺️
 

LustyArjuna

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भाग 140
हम धीरे-धीरे होटल की तरफ पर चल पड़े। सोनी बार-बार उसे लड़के के बारे में सोच रही थी क्या उसने उसे नग्न देख लिया था जिस समय वह अपनी पैंटी खोज रही थी उसे समय वह निश्चित ही पूरी तरह नग्न थी। हे भगवान वह आदमी क्या सोच रहा होगा…सोनी की बुर जो बाहर से गीली थी अब अंदर से भी गीली होने लगी।

अपनी नग्नता का सोनी ने भी उतना ही आनंद लिया था जितना उसके आस पड़ोस के युवक-युवतियों उसे देख कर लिया था। सोनी अनजाने में भी कामुकता की ऐसी मिसाल पेश कर देती थी जो उसके आस पास के पुरुषों में स्वाभाविक रूप उत्तेजना फैला दे रही थी।

उधर वह लड़का सोनी के बारे में सोच रहा था…

अब आगे

रात को होटल के कोमल बिस्तर पर मैं और सोनी एक दूसरे को बाहों में लिए लेटे हुए थे।सोनी टीवी के रिमोट से लगातार चैनल बदल रही थी…उसे कोई चैनल पसंद ही नहीं आ रहा था। मैं तो चादर में मुंह डाले कभी उसकी चूचियों को चूमता कभी उसकी भरी भरी चूचियों से खेल रहा था…

अचानक सोनी ने मेरा सर चादर से बाहर निकालते हुए बोला .

ये क्या है? यहां होटल में ये सब?

टीवी पर प्रतिबंधित कंटेंट का मैसेज आ रहा था..

सोनी ने उत्सुकता से मुझसे पूछा..

“यस कर दूं?

“तुम्हारा मन कर दो…”

मैने खुद को वापस चादर के अंदर कर लिया और सोनी की चूचियों को चूमने लगा।

उधर टीवी पर सोनी की पसंदीदा पोर्न चालू हो चुकी थी…एक नीग्रो और एक विदेशी लड़की का संभोग जारी था…सोनी एकटक उसे देख रही थी और मेरा काम आसान कर रही थी। नयन सुख का असर जांघों के बीच भी दिखाई पड़ रहा था। बुर नीचे अपनी लार छोड रही थी।

बीच बीच में मै भी टीवी पर चल रहे दृश्यो का जायजा ले लेता।

सोनी से उत्तेजना और बर्दाश्त न हुई और हम एक बार फिर गुत्थंगुथा हो गए। वह मेरे ऊपर आ चुकी थी। सोनी के बड़े लंड की चाहत अब परवान चढ़ चुकी थी। जब तक मैं यह सोच रहा था. मेरा लंड अपनी सोनी की बुर के आगोश में आ चुका था।

सोनी की कमर हिलना शुरू हो चुकी थी मैं उसके स्तनों और नितंबों पर बराबर ध्यान देते हुए संभोग का आनंद लेने लगा।


मैंने सोनीसे पूछा

"वह बिल काउंटर वाला लड़का तुम्हें याद है"

"हां वह कामुक निगाहों से मुझे देख रहा था"

"हां मैंने भी बात नोटिस की थी"

"फिर भी आपने मुझे बिल देने भेज दिया था।"


मैं हंसने लगा

"मैंने सोचा जब वह तुम्हें देख ही रहा है तो और ध्यान से देख ले." मैंने महसूस किया था कि सोनीकी कमर गति में थोड़ी तेजी आ रही थी वह इन बातों से उत्तेजित हो रही थी।

“बीच पर तो साले ने हद ही कर दी” सोनी में बात आगे बढ़ते हुए कहा..

“हां सच में, उसे तुम्हारी पैंटी कैसे मिल गई” मैंने उत्सुकता बस पूछा।

सोनी मुस्कुराने लगी और बड़ी अदा से बोली…

“लगता है वो तैरते हुए आया होगा और पैंटी की डोरी खींच कर पैंटी खींच ले गया होगा …..और लाइए डिजाइनर पैंटी “

सोनी की पेटी अद्भुत थी सिर्फ आगे और पीछे त्रिकोण के आकार में दो कपड़े जो अगल-बगल से कुछ रेशम की डोरियों से बंधे हुए थे..

“लगता है वह तुम्हारे नितंबों के जाल में फंस गया..” मैं सोनी के गदर आए हुए चूतड़ों को सहलाए जा रहा था

सोनी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसके चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी विजयी मुस्कान थी उसे अपने खजाने का बखूबी अहसास था।


मैंने फिर कहा

"वह लड़का कितना विशालकाय था सोचो उसका लंड कैसा होगा" मैंने सोनी की दुखती रग पर हाथ रख दिया।

सोनीअपनी कमर और तेजी से हिलाने लगी मुझे लगता है इस तरह खुलकर उस नीग्रो के लंड की बातें सुनकर वह अत्यधिक उत्तेजित हो चली थी. उसका चेहरा वासना से लाल हो गया था. वह और बात करने की हालत में नहीं थी। वह लगातार अपने स्तनों को मेरे सीने से रगड़ते हुए मेरे होठों को चूम रही थी और अपनी कमर को अद्भुत गति से हिला रही थी। मैं उसके नितंबों को अपने हाथों से अपनी तरफ खींचे हुआ था तथा अंगुलियों से उसकी गांड को छू रहा था गुदगुदा रहा था।

आ ….. ई…………सोनी बुरी तरह हाफ रही थी…. अचानक वह शांत हो गई पर उसकी कमर अब भी धीरे-धीरे चल रही थी। शायद सोनी अब स्खलित हो रही थी उसकी बुर की कंपकपाहट अद्भुत थी मैं भी उसके साथ साथ स्खलित होने लगा। मैंने सोनी की बुर वीर्य से भर दिया था। वह पसीने से लथपथ हो चुकी थी। मैं उसे जी भर कर प्यार कर रहा था। कुछ देर बाद उसके शांत होने के पश्चात मैने उसकी चुचियों से खेलते हुए कहा...

“एक चैलेंज है तुम्हारे लिए…”

“क्या…” सोनी ने अपनी पलके बंद किए हुए पूछा।

“पहले हां बोलो तभी बताऊंगा..”

“अरे मुझे क्या पता आपका चैलेंज क्या है..” सोनी ने अपनी आंख खोली और मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए बोला..

"सोनी क्या तुम उस नीग्रो लड़के का वीर्य दोहन कर सकती हो?" मैंने उत्तेजना में यह उचित या अनुचित बात कह दी…

सोनी ने अपनी आंख पूरी खोली..

“ये क्या बात है..मजाक है क्या? न उससे जान पहचान न मिलना जुलना और सीधा वीर्य दोहन…” सोनी ने अपनी आंखें मेरे चेहरे पर गड़ाते हुए कहा..

विकास पूरे आत्मविश्वास से सोनी को समझाते हुए बोला

“अरे यहां के पुरुष बस इसी फिराक में रहते हैं किसी ने मौका दिया और उसके साथ हो लिए..कई औरते जिन्हें बड़ा हथियार पसंद होता है वो अक्सर इनके संपर्क आ जाती हैं “ मैने सोनी को समझाते हुए बोला..


"और यदि इस दौरान उसने मेरे से जबरदस्ती संभोग कर लिया तब…...मैं तो मर ही जाऊंगी ? उसने मेरे सीने से अपना सर चिपकाते हुए कहा।

मुझे हंसी आ गई…पर मैने अपनी हंसी पर अंकुश लगाते

“अरे पागल वो ऐसा कभी नहीं कर सकता..”

सोनी शायद मेरी बात से संतुष्ट न थी। मैने आगे उसे समझाने की कोशिश की..


"वह रेस्टोरेंट् होटल से जुड़ा हुआ है उसकी इतनी हिम्मत नहीं होगी की वह यहां के अतिथियों से इस प्रकार का व्यवहार करें परंतु मुझे नहीं लगता कि तुम इतनी हिम्मत जुटा पाओगी कि उसके लंड के दर्शन कर पाओ और उसका वीर्य दोहन कर सको"

सोनीमुस्कुराते हुए बोली

"और यदि कर दिया तो?"

मैंने कहा

"तुम जब भी कहोगी तुम्हारी एक बात बिना कहे मान लूंगा चाहे वह कुछ भी हो"


वह मुस्कुराते हुए बोली…

"आपका हुकुम सर आंखों पर कल शाम तक उस काले नीग्रो का वीर्य मेरे हाथों में होगा मेरे आका" वो मुस्कुरा रही थी।

मैंने भी मुस्कुराते हुए उसे चूम लिया और कल के दिन के बारे में सोचते हुए सो गया।

(मैं सोनी)

अगली सुबह विकास सेमिनार के लिए निकल चुका था। उसके होटल से जाने के बाद मुझे अपने चैलेंज को पूरा करने के लिए तैयार होना था. मुझे अपनी सहेली की बातें याद आ रही थीं। उसने मुझसे कहा था सोनी यदि संभव हो तो वहां जाकर किसी नीग्रो का लंड देखना। वहां मेल प्रॉस्टिट्यूट या जिगोलो बड़े आसानी से उपलब्ध होते हैं। हम सभी ने उस काले लंड को टीवी पर तो देखा है पर क्या हकीकत में वह वैसा ही होता है?


तुम्हें विकासके साथ साउथ अफ्रीका जाने का मौका मिल रहा है हो सकता है तुम्हे यह अवसर मिले तुम इस अवसर को अपने हाथ से जाने मत देना।

जीवन में कामुकता का अतिरेक अमिट छाप छोड़ता है यह हमारे जीवन की अनोखी याद होती है. वैसे भी विकास तुम्हारी इच्छाओं का मान रखता है।.

मैं अपनी सहेली की इन बातों को ध्यान में रखते हुए पूरी तरह मन बना चुकी थी। मैं स्वयं भगवान द्वारा बनाई गई अद्भुत कलाकृति थी और वैसा ही वह अद्भुत विशालकाय नीग्रो. मुझे भगवान ने सुंदर शरीर के अलावा सोचने समझने की अद्भुत शक्ति भी दी थी. मुझे उनके द्वारा बनाई गई हर कलाकृति को देखने और भोगने का अधिकार था.

विकास ने जो दलील मुझे दी थी मैं उससे भी आश्वस्त थी कि वह नीग्रो मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। आखिर मैं भी तो उसका वीर्य दोहन ही करने वाली थी कत्ल नहीं। मैने अपनी दूसरी बिकनी निकाली और मन में कुछ डर और उत्साह लिए तैयार होने लगी।

यह बिकिनी बेहद खूबसूरत थी यह सुर्ख लाल रंग की रेशम की बनी हुई थी। मैं इस बिकिनी को पहन कर जब आईने के सामने गई तो मैंने अपनी सुंदरता और इस मदमस्त यौवन के लिए भगवान को एक बार फिर शुक्रिया कहा। उन्होंने मुझे धरती पर शायद इसीलिए भेजा था कि मैं अपनी कामुकता की पूर्ति कर सकूं। मैंने बिकनी के ऊपर एक काली जालीदार टॉप पहन ली। यह टॉप मेरे शरीर की बनावट को और भी अच्छी तरह से उजागर कर रही थी। ढकी हुई नग्नता ज्यादा उत्तेजक होती है. टॉप मेरे नितंबों तक आ रही थी पर उसे ढकने में नाकामयाब हो रही थी।

मैं सज धज कर उस नीग्रो से मिलने चल पड़ी। बीच पर अकेले जाते समय मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था पर मेरा उद्देश्य निर्धारित था। कुछ ही देर में मैं उस रेस्टोरेंट के सामने बीच पर पहुंच गई मैंने अपनी जालीदार टॉप को रेत पर रख दिया और समुंद्र की लहरों का आनंद लेने चल पड़ी। मैं बार-बार होटल की तरफ ही देख रही थी। मेरे मन में इच्छा थी कि वह लड़का मुझे देख कर बीच पर आए।

सुबह का वक्त था रेस्टोरेंट में बियर पीने वालों की कमी थी। कुछ ही देर में मैंने उस लड़के को बीच पर टहलते हुए देखा। वह बार-बार मुझे देख रहा था। उसके मन में निश्चय ही सोच रहा होगा कि आज मैं अकेली क्यों हूं? मैं कुछ देर अठखेलियां करने के बाद समुन्द्र से बाहर आई. वह मेरी जालीदार नाइटी के ठीक बगल में खड़ा था. वह लगभग 7 फुट ऊँचा हट्टा कट्टा जवान था। चौड़ा सीना पुस्ट जाँघे पतली कमर और जाँघों की जोड़ पर आया उभार उसकी मर्दानगी को प्रदर्शित करता था एक ही कमी थी उसका चेहरा और रंग।

मैं उसके पास आ चुकी थी। जैसे ही मैं अपनी टॉप को उठाने के लिए झुकी मेरे नितंब उसकी आंखों के ठीक सामने आ गए. मैं यह जान गयी थी कि वह मुझे घूर रहा है। मेरा रास्ता आसान हो रहा था। मैं उसके रेस्टोरेंट की तरफ चल पड़ी। वह भी मुझे पीछे से देखते हुए रेस्टोरेंट की तरफ आने लगा।

मैं अभी भी इस बात से घबराई थी कि यदि कहीं उत्तेजना वश उसने मुझ पर संभोग के लिए दबाव बनाया मैं उसे किस प्रकार ठुकरा पाऊंगी उस नीग्रो से संभोग करना मेरे बस का नहीं था। मैं कोमलंगी और सामान्य युवती थी। मुझ में उत्तेजना तो बहुत थी पर उसके विशालकाय लिंग को अपनी बुरमें समाहित करने की क्षमता शायद मुझ में नहीं थी । मुझे सिर्फ उत्तेजना और कामुकता में ही आनंद आता था। किसी अन्य पुरुष से संभोग मैने अब तक नहीं किया था पर जब से विकास ने इस वीर्य दोहन के कार्य के लिए मुझे चेलेंज किया था तो मैंने भी उसे स्वीकार कर लिया था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी उस काल्पनिक इच्छा के पीछे भाग रही थी जिसे विकास से साझा करना कठिन था पर वो बिना कहे शायद यह समझ गया था।

मैं रेस्टोरेंट् में एक किनारे की टेबल पर जाकर बैठ गई। मेरा चेहरा रिसेप्शन की तरफ था। अचानक उस लड़के को मैंने अपनी तरफ आते देखा उसने एक सुंदर टी-शर्ट और बरमूडा पहना हुआ था। वह आने के बाद मुझसे बोला (वह मुझसे अंग्रेजी में ही बात कर रहा था पर मैं पाठकों की सुविधा के लिए उसे हिंदी में व्यक्त कर रही हूँ)

मैम आप क्या लेना पसंद करेंगी?

मैं उससे इस तरह अचानक बात करने में घबरा रही थी। मैंने जल्दी बाजी में बोल दिया

“रेड वाइन” मैं उससे नज़रें नहीं मिला रही थी।


“मैम एक बार आप यहां की स्पेशल डिश ट्राई कीजिए”

उसने आग्रह किया

क्या है वो..

उसने अंग्रेजी में डिश का जो भी नाम बताया वो नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना था पर दोबारा पूछ कर मैं खुद को नासमझ नहीं जताना चाहती थी..


“ठीक है ले आइए”

कुछ ही देर में वह समुद्री मछली से बनी हुई एक डिश और रेड वाइन लेकर आ गया। मैं अभी भी अपनी कामुक अदाओं के साथ टेबल पर बैठी हुई थी। जैसे ही वह मेरा ऑर्डर रखकर जाने को हुआ मैंने उससे कहा…

यहां पास में कोई आईलैंड नहीं है क्या? मैने हिम्मत जुटा कर उससे बात करने की कोशिश की। जबकि विकास मुझे यहां के बारे में सब कुछ समझा चुका था।

मेरी बात सुनकर वो खुश हो गया और बोला..

“एक आईलैंड है तो पर वह यहां से थोड़ा दूर है वहां सिर्फ प्राइवेट बोट से जाया जा सकता है.”


“ओके थैंक यू”

“मैम, यदि आप वहां जाना चाहती हैं तो मैं आपको ले जा सकता हूं। आप मेरी प्राइवेट बोट पर वहां जा सकती हैं।” उसने आगे बढ़कर कहा..

“आपका नाम क्या है।”

“मैम अल्बर्ट” उसने अपना आईकार्ड भी दिखाया।

इसके बाद तो वह बिना रुके अपनी वोट और उस आईलैंड के बारे में ढेर सारी बातें बताने लगा। मैंने बात खत्म करते हुए अंततः कहा..

“ठीक है।”

वो खुश हो गया। उसने अपने साथी को इशारा किया और कुछ देर किसी से फोन पर बातें की। अपनी वाइन खत्म करने के बाद मैं उसकी बोट में सवार होकर आइलैंड के लिए निकल रही थी। अल्बर्ट ने ट्रिप के लिए आवश्यक सामान बोट में रख लिया था।

जैसा विकास ने समझाया था अब तक सब कुछ वैसा ही हो रहा था। मुझे विकास की जानकारी पर संदेह हो रहा था सब कुछ इतना आसानी से घट रहा था जैसे यह सुनियोजित हो।

अल्बर्ट का दोस्त भी उसी की तरह हट्टा कट्टा था। वो बोट चला रहा था। जैसे- जैसे वोट बीच से दूर हो रही थी मेरी धड़कन तेज हो रही थी। मैं आज दो अपरिचित हट्टे कट्टे मर्दो के साथ एक अपरिचित आईलैंड पर जा रही थी। मेरे साथ वहां क्या होने वाला था यह तो वक्त ही बताता पर मैं उत्तेजित थी। मुझे परिस्थितियों और भगवान पर भरोसा था।


अल्बर्ट मेरे पास आकर मुझसे बातें कर रहा था। वह मुझे उस आईलैंड के बारे में बता रहा था। उसकी बातों से मुझे मालूम हुआ कि वह आईलैंड खूबसूरत तो था और वहां अन्य लोगों का आना जाना नहीं था। सिर्फ होटल में रहने वाले कुछ पर्यटक वहां जाते थे। वह अभी पर्यटन के हिसाब से विकसित नहीं हुआ था। मेरा डर एक बार के लिए और बढ़ गया। उस सुनसान आईलैंड पर इन दो मर्दों के साथ अकेले घूमना और अपने उद्देश्य की पूर्ति करना यह एक अजीब कार्य था।

मैं निर्विकार भाव से होने वाली घटनाओं की प्रतीक्षा कर रही थी। कुछ ही देर में वह टापू दिखाई देने लगा। मैं उस टापू की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध थी। वहां पहुंचने से कुछ ही देर पहले समुंद्र में कई सारी छोटी-छोटी मछलियां तैरती हुई दिखाई दी। अल्बर्ट ने मुझे बताया कि यह मछलियां किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाती बल्कि जब यह आपके शरीर से टकराती हैं तो आपको अद्भुत आनंद देती हैं। उसने मुझसे कहा आप चाहे तो पानी में उतर कर इसका आनंद ले सकती हैं।

उसने मुझसे यह भी पूछा कि आपको स्विमिंग आती है? मैंने ना में सर हिला दिया. पर मैं मछलियों की सुंदरता देखकर पानी में उतरने को तैयार हो गई. मैंने अल्बर्ट को भी पानी में आने को कहा. मुझे अकेले डर लग रहा था. मैने अपनी जालीदार टॉप को एक बार फिर बाहर कर दिया।

मैंने उस टॉप को वही वोट पर रखा और अल्बर्ट के साथ पानी में कूद गयी। बोट चला रहा दूसरा युवक कुछ देर के लिए मेरी नग्नता का आनंद ले पाया। मैं और अल्बर्ट पानी में थे मछलियां बार-बार मेरी जाँघों और स्तनों से टकराती और अलग किस्म की उत्तेजना देती। कई बार वह मेरे कमर को पूरी तरह से घेर लेती थीं । कई बार अल्बर्ट अपने हाथों से उन मछलियों को मेरे शरीर से हटाया। अल्बर्ट के हाथ अपने पेट और नितंबों पर लगते ही मेरी उत्तेजना बढ़ गई। उसकी बड़ी-बड़ी हथेलियां मेरे नितंबों से अकस्मात ही टकरा रही थी। जब उसे इसका एहसास होता वह तुरंत ही बोल उठता सॉरी मैंम


मैंने अल्बर्ट से कहा ..

"इट्स ओके, आई एम इंज्योयिंग फीसेस आर मैग्नीफिसेंट"

सचमुच उन छोटी मछलियों का स्पर्श मुझे रोमांचक लग रहा था वह अपने छोटे-छोटे होठों से मेरी जाँघों और पेट को छू रही थीं। मुझे गुदगुदी हो रही थी और साथ ही साथ उत्तेजना भी।

कुछ मछलियां तो जैसे शैतानी करने के मूड में थी। वह बार-बार मेरी दोनों जांघों के बीच घुसने का प्रयास कर रही थीं। अपने होठों से वह मेरी त्वचा को कभी चुमतीं तथा तथा कभी चूसतीं। वो कभी इधर हिलती कभी उधर मुझे सचमुच उत्तेजना महसूस होने लगी।


ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति ने भी मुझे छेड़ने के लिए इन सुकुमार मछलियों को भेज दिया था। वो मेरी बुरको भी चूमने की कोशिश कर रहीं थीं। मेरी बुर ने बिकनी की चादर ओढ़ रखी थी वह मन ही मन मैदान में उतरने को तैयार थी उसे सिर्फ मेरे सहयोग के प्रतीक्षा थी वह चाह कर भी अपनी चादर हटा पाने में असमर्थ थी।

मेरा पूरा शरीर मछलियों के चुंबन का आनंद ले रहा था मैंने अपनी बुरको दुखी नहीं किया। मैंने अपने दोनों हाथ नीचे किये और अपनी बिकनी को खींचकर अपनी जांघो तक कर दिया। एक पल के।लिए मैं भूल गई कि अल्बर्ट पास ही था…यद्यपि उसका ध्यान अपने साथी से बात करने में था।

पानी की ठंडी ठंडी धार मेरी बुरके होठों को छूने लगी।


कुछ मछलियां मेरे पेट और स्तनों के आसपास भी थी मैं गर्दन तक पानी में डूबी हुई थी।

छोटी छोटी मछलीयां मेरी दोनों जांघों के बीच से बार-बार निकलती वह बुरके होठों को चुमतीं। बुरभी अब खुश हो गई थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह मछलियों के लिए अपना प्रेम रस उत्सर्जित कर रही थी बुरका यह प्रेम रस मछलियों को कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया था वह उसके होठों से प्रेम रस पीने को आतुर दिख रही थीं।


कुछ ही देर में मेरी बुरके होठों पर मछलियों का जमावड़ा लगने लगा मैंने अपनी दोनों जाँघें सटा दीं। मछलियां तितर-बितर हो गई मेरे होठों पर मुस्कान आ गयी । जिसे देखकर अल्बर्ट ने कहा

"मैम आर यू इंजॉयिंग"

"यस दीस फिशेस आर मैग्नीफिसेंट" मेरे इतना कहते-कहते छोटी-छोटी मछलियों ने मेरी जांघों के जोड़ पर एकबार फिर जमावड़ा लगा लिया वो मेरी दोनों जांघों को फैलाने का असफल प्रयास कर रही थीं मैंने अपना दिल बड़ा करते हुए अपनी जांघों को फैला दिया एक बार फिर मेरी बुरका प्रेम रस उन्हें तृप्त कर रहा था वह उत्तेजित होकर बुरके दोनों होठों के बीच से प्रेम रस लूटने के प्रयास में थी मेरी उत्तेजना चरम पर थी जी करता था कि मैं अपने स्तनों पर से भी वह आवरण हटा दूं जो मेरी बिकनी के ऊपरी भाग ने उन्हें दिया हुआ था वह भी इस अद्भुत सुख की प्रतीक्षा में थे परंतु मैं यह हिम्मत नहीं जुटा पाई अल्बर्ट बगल में ही था समुंद्र के स्वच्छ जल में मेरे स्तन स्पष्ट दिखाई दे जाते।

मेरी बुरपर मछलियों का आक्रमण तेजी से हो रहा मेरी बुरमचल रही थी वह मुझ से मदद की गुहार मांग रही थी पर मैंने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया मैं उसे स्खलित होते हुए देखना चाहती थी। आखिर इस उत्तेजना के लिए वह स्वयं आगे आई थी मछलियां बुर के दोनों होठों के बीच घुसने का प्रयास कर रही थी पर उनमें इतनी ताकत नहीं थी आज भी विकास को बुर के मुख में लंड को प्रवेश कराने में कुछ ताकत तो अवश्य लगानी पड़ती थी यह ताकत लगाना छोटी और प्यारी मछलियों के बस का नहीं था।


इसी दौरान मछलियों ने मेरी गांड को भी घेर लिया जैसे ही मैं अपने घुटने थोड़ा ऊपर करती मेरी गांड उनकी जद में आ जाती और मेरे घुटने नीचे करते ही वह गांड से दूर भाग जातीं। मेरे नितंबों का दबाव झेल पाना उनके लिए कठिन हो जाता। मुझे अब इस खेल में मजा आने लगा था चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मैं आकाश को देख रही थी और प्रकृति की यह अद्भुत रचनाएं मेरी उत्तेजना को एक नया आयाम दे रहीं थीं।

जब मछलियां मेरी बुरके दोनों होंठो के बीच घुसने का प्रयास कर रही थीं। तभी कुछ मछलियों में मेरी भग्नासा को अपना निशाना बना लिया। उसका विशेष आकार उन्हें अपना आहार जैसा महसूस हुआ। वह तेजी से उसे चूस चूस कर खाने का प्रयास करने लगीं।


मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था मैंने अपने हाथों से उन्हें हटाने का प्रयास किया पर मेरे हाथ कमर तक पहुंचकर ही रुक गए। मुझे वह उत्तेजना अद्भुत महसूस हो रही थी। मैंने अपनी बुरको सिकोड़ कर उसके होठों को करीब लाने की कोशिश की। मछलियां कुछ देर के लिए वहां से हटीं पर आकुंचन के हटते ही वह दोबारा उसके होठों पर आ गयीं। ( आज यही क्रिया कीगल क्रिया के नाम से जानी जाती है )

मैं यह अद्भुत खेल ज्यादा देर नहीं खेल पाई मेरी बुरस्खलित होने लगी. मेरी बुर मछलियों के इस अद्भुत प्रेम से हार चुकी थी. उसके होंठ फैल चुके थे मछलियां जी भर कर प्रेम रस पी रही थी. मेरा मुंह खुला हुआ था आंखें आकाश की तरफ देखती हुई अद्भुत प्रकृति को धन्यवाद अर्पित कर रही थीं।

मुझे मदहोश देखकर अल्बर्ट ने कहा

मैंम आर यू कंफर्टेबल

मैं मैं वापस अपनी चेतना में लौट आई अपने हाथ नीचे किया और पेटी को वापस ऊपर कर अपनी अमानत को ढक लिया। वापस नाव पर चढ़ना बेहद कठिन था अल्बर्ट को आखिर मेरी मदद करनी पड़ी मुझे नाव पर चढ़ने के लिए अल्बर्ट ने मेरे नितंबों को थाम लिया और ऊपर की तरफ धकेला .. किसी पराए मर्द का मजबूत हाथ आज पहली बार मेरे नितंबों से सट रहा था…मुझे अभी विकास का चैलेंज पूरा करना था…


कुछ होने वाला था…

क्या सोनी कामयाब रहेगी…या ये कामयाबी उसे महंगी पड़ेगी…

शेष अगले भाग में..


अगला एपिसोड पाठकों की प्रतिक्रिया आते ही उन्हें भेज दिया जाएगा।

सोनी की उत्तेजना तो बढ़ती ही जा रही हैं, कही सरयु सिंह से पेहले निग्रो ही ना फाड़ डाले।
 
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ChaityBabu

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भाग 144


अब तक अपने पढ़ा…

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।


अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया

अब आगे…

सोनू वापस बाल्टी में पानी भरने लगा उसे वह दिन याद आने लगा जब बनारस में लगभग यही स्थिति उत्पन्न हो गई थी तब भी सुगना उसे इसी प्रकार रसोई से नहाते हुए देख रही थी।

सोनू जैसे-जैसे उसे दिन के बारे में सोचता गया उसके मन में तरह-तरह की भावनाएं आने लगीं और मन शैतान होने लगा।

।।।।।।पुराने भाग 83 से उद्धृत।।।।


उस दिन सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

।।।। उद्धरण समाप्त ।।।


ऐसा नहीं था कि उस दृश्य के बारे में सोनू अकेला सोच रहा था सुगना भी अपने दिमाग में उन्हीं दृश्यों को याद कर रही थी। कैसे सोनू हैंडपंप पर नहा रहा था और जब उसने उसे पानी चलाने के लिए हैंडपंप पर बुलाया उसका कलेजा धक-धक कर रहा था फिर भी उसने सोनू के लिए हैंड पंप चलाए और…. हे भगवान उस दिन उसने सोनू के लंड को साक्षात साबुन में लिपटे हुए देखा था।

तभी बाल्टी और लोटे की आवाज से सुगना की तंद्रा टूटी और उसकी आंखों के सामने ठीक वही दृश्य दिखाई पड़ने लगे सोनू सुगना की तरफ अपना चेहरा कर बाल्टी से अपने बदन पर पानी डालने लगा मजबूत सीने से उतरती पानी की बूंदे सोनू की कमर पर बंधी धोती से टकराती और धीरे-धीरे उसके अधोभाग को भिगोने लगी।


कुछ ही देर में पतली धोती सोनू के लंड को छुआ पाने में असमर्थ थी। भीगी हुई धोती के पीछे उसका लंड अब दिखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे सपेरे ने काले नाग को सफेद कपड़े से ढक रखा हो। सुगना अब भी सोनू को एक टक देख रही थी पर निगाहें सोनू के चेहरे से हटकर उसकी जांघों के बीच तक जा पहुंची थी जिसे सोनू ने बखूबी महसूस कर लिया था अचानक सोनू में आवाज लगाई ..

दीदी तनी हैंड पंप चला दे पानी खत्म हो गईल बा..

सुगना का कलेजा एक बार फिर धक-धक करने लगा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई और आंगन में आ गई।

क्या खूबसूरत नजारा था। सुहाग सेज पर बिछने को तैयार एक सजी-धजी अप्सरा हैंडपंप चला रही थी और उसके समक्ष एक गठीला नौजवान उसके सामने उसी पानी से नहा रहा था।

उस दिन बनारस में जो कुछ हुआ था आज वह पुनः घटित हो रहा था पर परिस्थितिया तब अलग थी आज अलग।

सोनू और सुगना दोनों उस दिन की यादों में खोए हुए थे तभी सोनू ने अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। सुगना सोचने लगी…हे भगवान क्या सोनू भी वही सोच रहा है?

सुगना मन ही मन सोचने लगी हे भगवान क्या सोनू ने उस दिन जो किया था जानबूझकर किया था क्या सच में वह अपना लंड उसे दिखाना चाह रहा था। नहीं नहीं उस दिन तो वह लाली का इंतजार कर रहा था। अब तक सुगना यही समझ रही थी कि उस दिन उसने सोनू का लंड अकारण ही देख लिया था पर आज सुगना को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में सोनू के हाथ उसकी जांघों तक पहुंच गए और वही हुआ जिसका डर था। सोनू के हाथ में उसका तना और फूला हुआ लंड आ चुका था। सोनू की हथेलियों ने उसके लंड पर साबुन मलना शुरू कर दिया। स्थित ठीक उसी दिन जैसी हो चुकी थी सुगना एक टक सोनू के लंड को देख रही थी तभी सोनू ने अपनी आंखें खोल दी और मुस्कुराते हुए बोला..

“का देखत बाड़े? पहले नईखे देखले का?

सुगना झेंप गई वह कुछ बोली नहीं अपितु उसने अपनी आंखें हटा ली।

“ले पानी भर गइल अब जल्दी नहा ले” सुगना ने बखूबी बात बदल दी”

“दीदी तनी पीठ पर साबुन लगा दे”

सुगना हिचकिचा रही थी तभी सोनू ने फिर कहा..

“आज का लाज लगता पहले भी तो लगावले बाड़ू”

सुगना क्या कहती वह धीरे-धीरे सोनू के पास पहुंच गई और उसकी मांसल पीठ पर साबुन लगाने लगी नजरे बरबस ही सोनू के लंड पर जा रही थी जो सोनू के मजबूत हाथों में आगे पीछे हो रहा था कभी उसका सुपड़ा उछल कर बाहर आता कभी सोनू अपनी हथेलियों से उसे ढक लेता ऐसा लग रहा था जैसे सोनू सुगना को दिखाकर उसे हिला रहा था।

अचानक सोनू ने अपना हाथ पीछे किया और सुगना की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

सजी-धजी सुगना सोनू की गोद में आकर गिर गई। एक तरफ सुगना लहंगा चोली में पूरी तरह सजी-धजी थी दूसरी तरफ सोनू साबुन में लिपटा हुआ नंग धड़ंग..

नियति इस अनोखे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रही थी।

“ई का कईले. तोहरे खातिर अतना सजनी धजनी सब बिगाड़ देले.” सुगना ने अपने चेहरे पर झूठी नाराजगी के भाव लाते हुए कहा परंतु सोनू की गोद में आकर आज उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि जिस सोनू को उसने अब तक अपनी गोद में उठाया था वह सोनू आज स्वयं उसे गोद में लेने लायक हो गया था।

सोनू ने सुगना को चूमने की कोशिश की तभी सुगना ने कहा

“अरे हमार लहंगा भी खराब हो गईल देख साबुन लाग गइल”

सोनू ने सुगना के चेहरे को छोड़कर उसके लहंगे की तरफ देखा लहंगे के ठीक ऊपर सुगना की सुंदर नाभी दिखाई पड़ गई। गोरे सपाट पेट पर मणि जैसी चमकती नाभि को देखकर सोनू मदहोश होने लगा..

खूबसूरती अनुभव और संयम की चीज है इसका रसपान जितना धीरे हो उतना अच्छा।

सुगना ने सोनू की गोद से उठने की कोशिश की पर सोनू के मजबूत हाथों ने सुगना को यथा स्थिति में रहने के लिए विवश कर दिया यद्यपि यह जबरदस्ती नहीं थी परंतु एक मजबूत इशारा जरूर था।

सोनू के साबुन लगे हाथ सुगना की गोरे पेट पर थे.. सुगना सिहर उठी.. उसने आज के लिए न जाने क्या-क्या सोचा था और क्या हो रहा था.

अचानक सोनू ने सुगना के लहंगे की डोरी खींच दी कमर पर कसा लहंगा ढीला हो गया।

“ई का करत बाड़े “ सुगना ने शरमाते हुए सोनू का ध्यान अपनी तरफ खींचा..

एक बार फिर सोनू सुगना के चेहरे की तरफ देखने लगा पर उसके हाथ ना रुके सुगना का लहंगा नीचे सरकता जा रहा था.. यह सोनू की सम्मोहक आंखों का जादू था या सोनू और सुगना के बीच गहरे प्यार का नतीजा सुगना की कमर स्स्वतः ही उठती गई और लहंगा धीरे-धीरे उसकी जांघों से नीचे आ गया…

सुगना ने जैसे ही अपनी कमर नीचे की उसके गदराए नितंबों पर सोनू के तने हुए लंड का संपर्क हुआ..

सुगना सहम गई उसने स्वयं को सोनू की गोद में व्यवस्थित करने की कोशिश की और सोनू के लंड को अपनी जांघों के बीच से बाहर आ जाने दिया शायद यही उसके पास एक मात्र रास्ता था.

सुगना की यह हरकत सोनू बखूबी महसूस कर रहा था.. पर वह लगातार सुगना की आंखों में देखे जा रहा था जैसे उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं परंतु आज सुगना बीच-बीच में मारे शर्म के अपनी आंखें बंद कर ले रही थी सोनू का बर्ताव आज पूरी तरह मर्दाना था उसका छोटा सोनू अब मर्द बन चुका था..

तभी सुगना ने अपने लहंगे को अपने घुटनों पिंडलियों और फिर पैर से बाहर निकलते हुए महसूस किया। सुगना के पैरों की पायल की हुक ने लहंगे को फंसा कर रोकने की कोशिश की पर सोनू के हल्के तनाव से वह प्रतिरोध भी टूट गया और सुगना का लहंगा हैंडपंप के बगल में पड़ा अपनी मालकिन को नग्न देख रहा था वह उसकी आबरू बचाने में नाकाम और लाचार पड़ा अब अपनी नग्न मालकिन की खूबसूरती निहार रहा था।

लहंगे पर विजय प्राप्त करने के बाद सोनू के हाथ सुगना की चोली से खेलने लगे। अब जब भरतपुर लुट ही चुका था सुगना ने चोली के हक को भी खुल जाने दिया उसका ध्यान ब्रा पर केंद्रित था वह उसे किसी हाल में भिगोना नहीं चाहती थी यही एकमात्र ब्रा थी जिसे पहन कर उसे वापस जाना था।

चोली का हुक खुलने के बाद सुगना ने शरमाते हुए धीरे से बोला..

“ब्रा के मत भीगईहे ईहे पहन के जाए के बा” इतना कहकर सुगना ने स्वयं अपने हाथों से ब्रा के हुक को खोलने लगी। सुगना को अंदेशा था की सोनू पहले की भांति कभी भी ब्रा के हुक तोड़ सकता है वह पहले भी ऐसा कर चुका था। सुगना की चूचियों को देखने के लिए कोई भी अधीर हो जाता सोनू भी इससे अछूता नहीं था। पर आज सोनू ने सुगना की मदद की और ब्रा को सुरक्षित सुगना के शरीर से अलग कर दूर रख दिया…

हल्की धूप में चमकता सुगना का नग्न बदन देखकर सोनू की वासना भड़क उठी…

सुगना की आत्मा प्रफुल्लित थी उसे नग्न तो होना ही था बिस्तर पर ना सही घर के खुले आंगन में ही सही। वह पहले भी सरयू सिंह के साथ यह आनंद ले चुकी थी पर आज वह अपने सोनू की बाहों में थी।

सुगना के होठों पर लाली और चमकता चेहरा सोनू को अपनी और खींच रहा था सोनू ने अपना सर झुकाया और अपनी हथेली से सुगना के सर को हल्का ऊपर उठाया और अपने होंठ सुगना के होठों से सटा दिए…

सुगना और सोनू में एक दूसरे के भीतर समा जाने की होड़ लग गई। सुगना और सोनू की जीभ को एक दूसरे के मुख में प्रवेश कर उसकी गर्मी का आकलन करने लगी।

सोनू का दाहिना हाथ चूचियों को सहला रहा था जैसे वह उन्हें तसल्ली दे रहा हूं कि चुंबन का अवसर उन्हें भी अवश्य प्राप्त होगा और हुआ भी वही..

सुगना के अधरो का अमृत पान करने के पश्चात सोनू सुगना की चूचियों की तरफ आ गया…आज सोनू का दिया मंगलसूत्र ही चूचियों की रक्षा करने पर आमादा था जब-जब सोनू सुगना की चूचियों को मुंह में भरने की कोशिश करता वह मंगलसूत्र उसके आड़े आ जाता..

सोनू अधीर हो रहा था और सुगना मुस्कुरा रही थी.. इधर सोनू सुगना की चुचियों में खोया था उधर उसकी नासिका में इत्र की सुगंध आ रही थी…

उस मोहक और मादक सुगंध की तलाश में सोनू ने चुचियों का आकर्षण छोड़ दिया और अपना सर और नीचे करता गया…

पर सोनू अपनी गर्दन को और नहीं झुका पाया यह संभव भी नहीं था सुगना की नाभि तक आते-आते उसके गर्दन की लोच खत्म हो गई..

सुगना द्वारा अपनी जांघों पर लगाए गए इत्र की खुशबू सोनू की नथनो में भर रही थी…सुगना की जांघों के बीच से झांकता उसका लंड उसे दिखाई पड़ रहा था पर वह चाहकर भी इस अवस्था में सुगना के बुर को चूम पाने में असमर्थ था..

स्थिति को असहज होते देख सुगना ने कहा

“अब मन भर गइल न… तब चल नहा ले…”

“दीदी एक बात बताओ की ई विशेष इत्र काहे लगावल जाला?” सोनू ने सुगना की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा..


इस दौरान वह सुगना की चूचियों को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते जा रहा था.. और बाएं हाथ से उसके गर्दन को सहारा दिए हुए थे सुगना सोनू की गोद में थी।

सुगना मन ही मन सोच रही थी कि वह कभी छोटे सोनू को इसी प्रकार अपनी गोद में लिया करती थी परंतु तब शायद वह दोनों वासना मुक्त थे। पर आज स्थिति उलट थी छोटा सोनू अब पूर्ण मर्द था और सुगना उम्र में बड़े होने के बावजूद अभी कमसिन कचनार थी..

“बता ना दीदी ..” सुगना मुस्कुराने लगी वह जानती थी कि सोनू उसे छेड़ रहा है लाली सोनू को उस पारंपरिक इत्र के प्रयोग और उसकी अहमियत पहले ही बता चुकी थी।

“तोरा मालूम नइखे का…”

“ना” सोनू भोली सूरत बनाते हुए बोला..

“लाली सुहागरात में ना लगवले रहे का..”

“ना “ सोनू सुगना के गाल से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..हथेलियां चूचियों को अपने आगोश में भरने का अब भी प्रयास कर रहीं थी..

“अच्छा रुक बतावत बानी”

सुगना ने खुद को सोनू की गोद में व्यवस्थित किया पर गोद से उतरी नहीं..और अपनी कातिल मुस्कान लिए अपनी आंखों से अपनी पनियाई बुर की तरफ इशारा करते हुए अपनी जांघें खोल दी और बोला..

“एकर पुजाई खातिर लगावल जाला…”

सोनू की आंखों ने सुगना की निगाहों का पीछा किया और सुगना की रसभरी गुलाबी बुर उसे दिखाई पड़ गई…

सोनू की हथेली जब तक सुगना की चूची को छोड़कर उसकी बुर को अपने आगोश में ले पाती सुगना के कोमल हाथों ने सोनू की मजबूत कलाई थाम ली और उसे आगे बढ़ने से रोक लिया.. और अपनी बुर के कपाट अपनी जांघों से फिर बंद कर दिए. सोनू का लंड अब अभी जांघों के बीच था..

“अभी ना… पहिले नहा ले “ सुगना ने सोनू से कहा और उसे सांत्वना स्वरूप एक मीठा सा चुंबन दे दिया।

“ठीक बा ..पहले साबुन त लगा दे..”सोनू ने शरारती लहजे में कहा। सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था।

सोनू ने सुगना पर अपनी पकड़ ढीली की और सुगना सावधानी पूर्वक खड़ी हो गई. उसे अपनी नग्नता का एहसास तब हुआ जब सोनू ने अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटा दिया.. और अपने नथुनों से सुगना के इत्र की खुशबू सूंघने लगा..

सुगना के काम रस की खुशबू और इत्र की खुशबू दोनों ने सोनू को कामान्ध कर दिया.. वह अधीर होकर सुगना की बुर को चूमने की कोशिश करने लगा..

सुगना खड़ी थी इस अवस्था में सोनू के होंठ बुर के होठों से मिल नहीं पा रहे थे। सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियां से सुगना के कूल्हे पकड़े और उसे अपनी तरफ हल्के से खींचा। सुगना का बैलेंस बिगड़ा और उसने सोनू का सर थामकर खुद को गिरने से बचाया।

सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना ने स्वेच्छा से उसके सर को अपनी बुर की तरफ धकेला है। सोनू और भी कामुक हो गया उसने अपनी लंबी जीभ निकाली और सुगना की जांघों के बीच गहराई तक उतार दी। सुगना की बुर की सुनहरी दरार से रस चुराते हुए सोनू की जीभ सुगना के भागनाशे से तक आ पहुंची…


सोनू की जिह्वा अपनी बहन के अमृत रस से शराबोर हो गई..

सोनू ने अपना सर अलग किया और सुगना की तरफ देखा उसकी जीभ और होंठो से सुगना की बुर की लार अब भी टपक रही थी..

“दीदी ठीक लागत बा नू..?”

सुगना मदहोश थी अपने छोटे भाई का यह प्रश्न इस अवस्था में बेमानी थी। बुर की लार सुगना की अवस्था चीख चीख कर बता रही थी..

सुगना मारे शर्म के पानी पानी थी उसने अपनी पलके बंद कर ली और एक बार फिर सोनू के सर को अपनी जांघों से सटा दिया..

सोनू एक बार फिर उसे अमृत कलश से अमृत चाटने की कोशिश करने लगा सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ उसे लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी…सुगना को यह मंजूर नहीं था आज उसे जी भर कर काम सुख का आनंद लेना था उसने सोनू के सर को खुद से अलग करते हुए कहा

“तोरा शरीर का पूरा साबुन सूख गया है पहले नहा ले यह सब बाद में…”

सोनू ने सुगना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके नितंबों पर से अपना हाथ हटा लिया…

और सुगना की तरफ देखते हुए बोला

“दीदी ठीक बा नहला द” सोनू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी उसने सुगना को सोनू के बचपन की याद दिला दी। पर आज परिस्थितिया भिन्न थी ।

नंगी सुगना आगे झुकी बाल्टी में से लोटे में पानी निकला इस दौरान उसकी झूलती हुई चूचियां सोनू की आंखों के सामने थिरक रही थी। सोनू से बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से सुगना की चूची पकड़ ली। सुगना को जैसे करंट सा लगा..

“ए सोनू बाबू अभी छोड़ दे हम गिर जाएब.. तंग मत कर”

नंगी सुगना क्या-क्या बचाती सब कुछ दिन की दूधिया रोशनी में सोनू की आंखों के सामने था। गोरी मांसल जांघों के बीच सुगना की बुर के फूले हुए होंठ और उसमें में से लटकती हुई काम रस की बूंद सोनू का ध्यान खींचे हुए थी..

सुगना ने लौटे का पानी सोनू के सर पर डाल दिया.. सोनू ने अपने हाथों से पानी को अपने सर और बदन पर फैलाया तब तक सुगना एक बार और लोटे से पानी उसके सर पर डाल चुकी थी।

सुगना साबुन उठाने के लिए सोनू के बगल में झुकी और सोनू की पीठ पर साबुन मलने लगी। जांघों में हो रही हलचल से बुर की फांके सोनू के आंखों के सामने बार-बार उस गुलाबी छेद को दिखा रही थी जो इस सृष्टि की रचयिता थी। सोनू से रहा न गया उसकी उंगलियों ने सुगना की बुर से लटकती हुई लार को छीनने की कोशिश की.. और उसने सुगना की संवेदनशील बुर पर अपनी उंगलियां फिरा दी। सुगना चिहुंक उठी और अपना संतुलन खो बैठी परंतु सोनू ने उसे संभाल लिया और वह सीधा सोनू की गोद में आ गिरी..

सुगना के दोनों पैर सोनू की कमर के दोनों तरफ थे। सोनू का लंड सुगना और उसके पेट के बीच फंस गया था। सोनू और सुगना का चेहरा एक दूसरे के सामने था…भरी भरी चूचियां सोनू के मजबूत सीने से सटकर सपाट हो रही थी पर निप्पलो का तनाव सोनू महसूस कर पा रहा था।

सोनू अपनी मजबूत बाहों से सुगना को अपनी तरफ खींचा हुआ था और अपनी मजबूत जांघों से सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए था।

सोनू सुगना की आंखों में देखते हुए बेहद का कामुक अंदाज में बोला..

“तू इतना सुंदर काहे बाड़ू “ सोनू सुगना की सपाट और चिकनी पीठ पर अपने हाथ फेरे जा रहा था।

इस बार सुगना ने प्रति उत्तर में सोनू के अधरों को चूम लिया और अपनी हथेलियां में पड़े साबुन को सोनू की पीठ पर मलने लगी..

सुगना जैसे-जैसे सोनू की पीठ पर साबुन लगाती गई उसकी चूचियां लगातार सोनू के सीने से रगड़ खाती रहीं और सोनू का लंड सुगना के पेट से रगड़ खाकर और तनता चला गया। लंड में हो रही संवेदना सोनू को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू का लंड सुगना की नाभि से टकरा रहा था।

सुगना ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने पंजों पर जोर लगाया और अपने कूल्हे को थोड़ा ऊंचा किया ताकि वह सोनू की पीठ पर आसानी से पहुंच सके…

सुगना की बुर भी साथ-साथ उठ गई थी.. सोनू ने सुगना को अपने और समीप खींचा और सुगना की बुर के होठों पर सोनू के लंड ने दस्तक दे दी।

सुगना सोनू की पीठ पर साबुन लगाती रही और जाने अनजाने अपनी बुर को सोनू के लंड के सुपाड़े पर हल्के-हल्के रगड़ती रही यह संवेदना जितना सोनू को पसंद आ रही थी उतना ही सुगना को दोनों चुप थे पर आनंद में शराबोर थे। सुगना की चूचियां सोनू के चेहरे से सट रही थी वह उन्हें अपने होठों में भरने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था।

सोनू की हथेलियां सुगना के नंगे नितंबों पर घूम रही थी धीरे-धीरे वह नितंबों के बीच की घाटी में उतरती गई और आखिरकार सोनू की भीगी उंगलियों ने सुगना की गुदांज गांड को छू लिया…

सुगना अपना संतुलन एक बार फिर खो बैठी पर इस बार उसे सोनू के मजबूत खूंटे का सहारा मिला सोनू का लंड जो अब तक सुगना की बुर को चूम रहा था अब उसकी गहराइयों में उतरता गया…

कई महीनो बाद आज सोनू का मजबूत लंड सुगना की बुर में प्रवेश कर रहा था.. सुगना की बुर अब अभी सोनू के लिए तंग ही थी। सुगना ने अपने अंदर एक भराव महसूस हुआ और जब तक सुगना संभल पाती सोनू के लंड ने उसके गर्भाशय को चूम लिया.. सुगना कराह उठी..

“आह सोनू बाबू तनी धीरे से….”

उसने अपने होठों को अपने दांतों से दबाया और खुद को व्यवस्थित करने लगी लंड अब भी सुगना के गर्भाशय पर दबाव बनाया हुआ था.. खुद को संतुलित करने के बाद

सुगना ने सोनू की तरफ घूरकर देखा जैसे उससे पूछ रही हो कि उसने उसकी गांड को क्यों छुआ?

सोनू को अपनी गलती पता थी उसने तुरंत अपनी उंगलियां सुगना की गांड से हटा ली और सुगना के होठों को अपने होठों के बीच भर लिया। उसने अपनी जांघों को थोड़ा ऊंचा कर उसने सुखना को ऊपर उठने में मदद की और फिर अपनी जांघें फैला दी सुगना एक बार फिर लंड पर पूरी तरह बैठ गई और सोनू के लंड ने सुगना के किले में अपनी जगह बना ली। सोनू ने अपनी जांघें ऊंची और नीची कर अपने लंड को सुखना की बुर में धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबने लगी। सोनू ने जो गलती सुगना की गांड को छू कर की थी शायद उसने उसका प्रायश्चित कर दिया था सुगना खुश थी और सोनू भी।

सोनू का लंड सुगना की बुर में जड़ तक धस चुका था.. सुगना सोनू की गर्दन को पकड़ कर अपना बैलेंस बनाए हुए थी। कुछ पलों के लिए गहरी शांति हो गई थी। पर सोनू का लंड अंदर थिरक रहा था…

सोनू और सुगना संभोग की मुद्रा में आ चुके थे। सुगना की पलकें बंद हो चुकी थी वह आनंद में डूबी थी..

क्या हुआ कैसे हुआ कहना कठिन था पर सुगना की कमर अब हिल रही थी सोनू का लंड उसकी दीदी सुगना की बुर से कुछ पलों के लिए बाहर आता और फिर सुगना की प्यासी बर उसे पूरी तरह लील देती…

सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
सोनू की वासना आज जागृत थी वह मन ही मन इस मिलन को यादगार बनाना चाह रहा था.. उसके नथुनों में सुगना के काम रास और उस इत्र की खुशबू अब भी आ रही थी ..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया.. और सोनू केअंतरमन को पढ़ने का प्रयास करने लगी।



शेष अगले भाग में…
Nice But Moni Ko Bhi Lekar Aiyye Beech beech mein
 

Rebel.desi

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बहन के प्रति उसके मन में आकर्षण तभी उत्पन्न हुआ था जब वह किशोरावस्था से गुजर रहा था स्त्री शरीर की पहली परिकल्पना उसने अपनी बड़ी बहन के रूप में ही की थी। अपनी किशोरावस्था में जब-जब वह बहना के अंगों को देखता उसे अंदर ही अंदर एक अजब सी संवेदना होती पर मन में पाप अपराध बोध भी जन्म लेता।

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macssm

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भाग 144


अब तक अपने पढ़ा…

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।


अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया

अब आगे…

सोनू वापस बाल्टी में पानी भरने लगा उसे वह दिन याद आने लगा जब बनारस में लगभग यही स्थिति उत्पन्न हो गई थी तब भी सुगना उसे इसी प्रकार रसोई से नहाते हुए देख रही थी।

सोनू जैसे-जैसे उसे दिन के बारे में सोचता गया उसके मन में तरह-तरह की भावनाएं आने लगीं और मन शैतान होने लगा।

।।।।।।पुराने भाग 83 से उद्धृत।।।।


उस दिन सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

।।।। उद्धरण समाप्त ।।।


ऐसा नहीं था कि उस दृश्य के बारे में सोनू अकेला सोच रहा था सुगना भी अपने दिमाग में उन्हीं दृश्यों को याद कर रही थी। कैसे सोनू हैंडपंप पर नहा रहा था और जब उसने उसे पानी चलाने के लिए हैंडपंप पर बुलाया उसका कलेजा धक-धक कर रहा था फिर भी उसने सोनू के लिए हैंड पंप चलाए और…. हे भगवान उस दिन उसने सोनू के लंड को साक्षात साबुन में लिपटे हुए देखा था।

तभी बाल्टी और लोटे की आवाज से सुगना की तंद्रा टूटी और उसकी आंखों के सामने ठीक वही दृश्य दिखाई पड़ने लगे सोनू सुगना की तरफ अपना चेहरा कर बाल्टी से अपने बदन पर पानी डालने लगा मजबूत सीने से उतरती पानी की बूंदे सोनू की कमर पर बंधी धोती से टकराती और धीरे-धीरे उसके अधोभाग को भिगोने लगी।


कुछ ही देर में पतली धोती सोनू के लंड को छुआ पाने में असमर्थ थी। भीगी हुई धोती के पीछे उसका लंड अब दिखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे सपेरे ने काले नाग को सफेद कपड़े से ढक रखा हो। सुगना अब भी सोनू को एक टक देख रही थी पर निगाहें सोनू के चेहरे से हटकर उसकी जांघों के बीच तक जा पहुंची थी जिसे सोनू ने बखूबी महसूस कर लिया था अचानक सोनू में आवाज लगाई ..

दीदी तनी हैंड पंप चला दे पानी खत्म हो गईल बा..

सुगना का कलेजा एक बार फिर धक-धक करने लगा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई और आंगन में आ गई।

क्या खूबसूरत नजारा था। सुहाग सेज पर बिछने को तैयार एक सजी-धजी अप्सरा हैंडपंप चला रही थी और उसके समक्ष एक गठीला नौजवान उसके सामने उसी पानी से नहा रहा था।

उस दिन बनारस में जो कुछ हुआ था आज वह पुनः घटित हो रहा था पर परिस्थितिया तब अलग थी आज अलग।

सोनू और सुगना दोनों उस दिन की यादों में खोए हुए थे तभी सोनू ने अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। सुगना सोचने लगी…हे भगवान क्या सोनू भी वही सोच रहा है?

सुगना मन ही मन सोचने लगी हे भगवान क्या सोनू ने उस दिन जो किया था जानबूझकर किया था क्या सच में वह अपना लंड उसे दिखाना चाह रहा था। नहीं नहीं उस दिन तो वह लाली का इंतजार कर रहा था। अब तक सुगना यही समझ रही थी कि उस दिन उसने सोनू का लंड अकारण ही देख लिया था पर आज सुगना को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में सोनू के हाथ उसकी जांघों तक पहुंच गए और वही हुआ जिसका डर था। सोनू के हाथ में उसका तना और फूला हुआ लंड आ चुका था। सोनू की हथेलियों ने उसके लंड पर साबुन मलना शुरू कर दिया। स्थित ठीक उसी दिन जैसी हो चुकी थी सुगना एक टक सोनू के लंड को देख रही थी तभी सोनू ने अपनी आंखें खोल दी और मुस्कुराते हुए बोला..

“का देखत बाड़े? पहले नईखे देखले का?

सुगना झेंप गई वह कुछ बोली नहीं अपितु उसने अपनी आंखें हटा ली।

“ले पानी भर गइल अब जल्दी नहा ले” सुगना ने बखूबी बात बदल दी”

“दीदी तनी पीठ पर साबुन लगा दे”

सुगना हिचकिचा रही थी तभी सोनू ने फिर कहा..

“आज का लाज लगता पहले भी तो लगावले बाड़ू”

सुगना क्या कहती वह धीरे-धीरे सोनू के पास पहुंच गई और उसकी मांसल पीठ पर साबुन लगाने लगी नजरे बरबस ही सोनू के लंड पर जा रही थी जो सोनू के मजबूत हाथों में आगे पीछे हो रहा था कभी उसका सुपड़ा उछल कर बाहर आता कभी सोनू अपनी हथेलियों से उसे ढक लेता ऐसा लग रहा था जैसे सोनू सुगना को दिखाकर उसे हिला रहा था।

अचानक सोनू ने अपना हाथ पीछे किया और सुगना की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

सजी-धजी सुगना सोनू की गोद में आकर गिर गई। एक तरफ सुगना लहंगा चोली में पूरी तरह सजी-धजी थी दूसरी तरफ सोनू साबुन में लिपटा हुआ नंग धड़ंग..

नियति इस अनोखे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रही थी।

“ई का कईले. तोहरे खातिर अतना सजनी धजनी सब बिगाड़ देले.” सुगना ने अपने चेहरे पर झूठी नाराजगी के भाव लाते हुए कहा परंतु सोनू की गोद में आकर आज उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि जिस सोनू को उसने अब तक अपनी गोद में उठाया था वह सोनू आज स्वयं उसे गोद में लेने लायक हो गया था।

सोनू ने सुगना को चूमने की कोशिश की तभी सुगना ने कहा

“अरे हमार लहंगा भी खराब हो गईल देख साबुन लाग गइल”

सोनू ने सुगना के चेहरे को छोड़कर उसके लहंगे की तरफ देखा लहंगे के ठीक ऊपर सुगना की सुंदर नाभी दिखाई पड़ गई। गोरे सपाट पेट पर मणि जैसी चमकती नाभि को देखकर सोनू मदहोश होने लगा..

खूबसूरती अनुभव और संयम की चीज है इसका रसपान जितना धीरे हो उतना अच्छा।

सुगना ने सोनू की गोद से उठने की कोशिश की पर सोनू के मजबूत हाथों ने सुगना को यथा स्थिति में रहने के लिए विवश कर दिया यद्यपि यह जबरदस्ती नहीं थी परंतु एक मजबूत इशारा जरूर था।

सोनू के साबुन लगे हाथ सुगना की गोरे पेट पर थे.. सुगना सिहर उठी.. उसने आज के लिए न जाने क्या-क्या सोचा था और क्या हो रहा था.

अचानक सोनू ने सुगना के लहंगे की डोरी खींच दी कमर पर कसा लहंगा ढीला हो गया।

“ई का करत बाड़े “ सुगना ने शरमाते हुए सोनू का ध्यान अपनी तरफ खींचा..

एक बार फिर सोनू सुगना के चेहरे की तरफ देखने लगा पर उसके हाथ ना रुके सुगना का लहंगा नीचे सरकता जा रहा था.. यह सोनू की सम्मोहक आंखों का जादू था या सोनू और सुगना के बीच गहरे प्यार का नतीजा सुगना की कमर स्स्वतः ही उठती गई और लहंगा धीरे-धीरे उसकी जांघों से नीचे आ गया…

सुगना ने जैसे ही अपनी कमर नीचे की उसके गदराए नितंबों पर सोनू के तने हुए लंड का संपर्क हुआ..

सुगना सहम गई उसने स्वयं को सोनू की गोद में व्यवस्थित करने की कोशिश की और सोनू के लंड को अपनी जांघों के बीच से बाहर आ जाने दिया शायद यही उसके पास एक मात्र रास्ता था.

सुगना की यह हरकत सोनू बखूबी महसूस कर रहा था.. पर वह लगातार सुगना की आंखों में देखे जा रहा था जैसे उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं परंतु आज सुगना बीच-बीच में मारे शर्म के अपनी आंखें बंद कर ले रही थी सोनू का बर्ताव आज पूरी तरह मर्दाना था उसका छोटा सोनू अब मर्द बन चुका था..

तभी सुगना ने अपने लहंगे को अपने घुटनों पिंडलियों और फिर पैर से बाहर निकलते हुए महसूस किया। सुगना के पैरों की पायल की हुक ने लहंगे को फंसा कर रोकने की कोशिश की पर सोनू के हल्के तनाव से वह प्रतिरोध भी टूट गया और सुगना का लहंगा हैंडपंप के बगल में पड़ा अपनी मालकिन को नग्न देख रहा था वह उसकी आबरू बचाने में नाकाम और लाचार पड़ा अब अपनी नग्न मालकिन की खूबसूरती निहार रहा था।

लहंगे पर विजय प्राप्त करने के बाद सोनू के हाथ सुगना की चोली से खेलने लगे। अब जब भरतपुर लुट ही चुका था सुगना ने चोली के हक को भी खुल जाने दिया उसका ध्यान ब्रा पर केंद्रित था वह उसे किसी हाल में भिगोना नहीं चाहती थी यही एकमात्र ब्रा थी जिसे पहन कर उसे वापस जाना था।

चोली का हुक खुलने के बाद सुगना ने शरमाते हुए धीरे से बोला..

“ब्रा के मत भीगईहे ईहे पहन के जाए के बा” इतना कहकर सुगना ने स्वयं अपने हाथों से ब्रा के हुक को खोलने लगी। सुगना को अंदेशा था की सोनू पहले की भांति कभी भी ब्रा के हुक तोड़ सकता है वह पहले भी ऐसा कर चुका था। सुगना की चूचियों को देखने के लिए कोई भी अधीर हो जाता सोनू भी इससे अछूता नहीं था। पर आज सोनू ने सुगना की मदद की और ब्रा को सुरक्षित सुगना के शरीर से अलग कर दूर रख दिया…

हल्की धूप में चमकता सुगना का नग्न बदन देखकर सोनू की वासना भड़क उठी…

सुगना की आत्मा प्रफुल्लित थी उसे नग्न तो होना ही था बिस्तर पर ना सही घर के खुले आंगन में ही सही। वह पहले भी सरयू सिंह के साथ यह आनंद ले चुकी थी पर आज वह अपने सोनू की बाहों में थी।

सुगना के होठों पर लाली और चमकता चेहरा सोनू को अपनी और खींच रहा था सोनू ने अपना सर झुकाया और अपनी हथेली से सुगना के सर को हल्का ऊपर उठाया और अपने होंठ सुगना के होठों से सटा दिए…

सुगना और सोनू में एक दूसरे के भीतर समा जाने की होड़ लग गई। सुगना और सोनू की जीभ को एक दूसरे के मुख में प्रवेश कर उसकी गर्मी का आकलन करने लगी।

सोनू का दाहिना हाथ चूचियों को सहला रहा था जैसे वह उन्हें तसल्ली दे रहा हूं कि चुंबन का अवसर उन्हें भी अवश्य प्राप्त होगा और हुआ भी वही..

सुगना के अधरो का अमृत पान करने के पश्चात सोनू सुगना की चूचियों की तरफ आ गया…आज सोनू का दिया मंगलसूत्र ही चूचियों की रक्षा करने पर आमादा था जब-जब सोनू सुगना की चूचियों को मुंह में भरने की कोशिश करता वह मंगलसूत्र उसके आड़े आ जाता..

सोनू अधीर हो रहा था और सुगना मुस्कुरा रही थी.. इधर सोनू सुगना की चुचियों में खोया था उधर उसकी नासिका में इत्र की सुगंध आ रही थी…

उस मोहक और मादक सुगंध की तलाश में सोनू ने चुचियों का आकर्षण छोड़ दिया और अपना सर और नीचे करता गया…

पर सोनू अपनी गर्दन को और नहीं झुका पाया यह संभव भी नहीं था सुगना की नाभि तक आते-आते उसके गर्दन की लोच खत्म हो गई..

सुगना द्वारा अपनी जांघों पर लगाए गए इत्र की खुशबू सोनू की नथनो में भर रही थी…सुगना की जांघों के बीच से झांकता उसका लंड उसे दिखाई पड़ रहा था पर वह चाहकर भी इस अवस्था में सुगना के बुर को चूम पाने में असमर्थ था..

स्थिति को असहज होते देख सुगना ने कहा

“अब मन भर गइल न… तब चल नहा ले…”

“दीदी एक बात बताओ की ई विशेष इत्र काहे लगावल जाला?” सोनू ने सुगना की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा..


इस दौरान वह सुगना की चूचियों को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते जा रहा था.. और बाएं हाथ से उसके गर्दन को सहारा दिए हुए थे सुगना सोनू की गोद में थी।

सुगना मन ही मन सोच रही थी कि वह कभी छोटे सोनू को इसी प्रकार अपनी गोद में लिया करती थी परंतु तब शायद वह दोनों वासना मुक्त थे। पर आज स्थिति उलट थी छोटा सोनू अब पूर्ण मर्द था और सुगना उम्र में बड़े होने के बावजूद अभी कमसिन कचनार थी..

“बता ना दीदी ..” सुगना मुस्कुराने लगी वह जानती थी कि सोनू उसे छेड़ रहा है लाली सोनू को उस पारंपरिक इत्र के प्रयोग और उसकी अहमियत पहले ही बता चुकी थी।

“तोरा मालूम नइखे का…”

“ना” सोनू भोली सूरत बनाते हुए बोला..

“लाली सुहागरात में ना लगवले रहे का..”

“ना “ सोनू सुगना के गाल से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..हथेलियां चूचियों को अपने आगोश में भरने का अब भी प्रयास कर रहीं थी..

“अच्छा रुक बतावत बानी”

सुगना ने खुद को सोनू की गोद में व्यवस्थित किया पर गोद से उतरी नहीं..और अपनी कातिल मुस्कान लिए अपनी आंखों से अपनी पनियाई बुर की तरफ इशारा करते हुए अपनी जांघें खोल दी और बोला..

“एकर पुजाई खातिर लगावल जाला…”

सोनू की आंखों ने सुगना की निगाहों का पीछा किया और सुगना की रसभरी गुलाबी बुर उसे दिखाई पड़ गई…

सोनू की हथेली जब तक सुगना की चूची को छोड़कर उसकी बुर को अपने आगोश में ले पाती सुगना के कोमल हाथों ने सोनू की मजबूत कलाई थाम ली और उसे आगे बढ़ने से रोक लिया.. और अपनी बुर के कपाट अपनी जांघों से फिर बंद कर दिए. सोनू का लंड अब अभी जांघों के बीच था..

“अभी ना… पहिले नहा ले “ सुगना ने सोनू से कहा और उसे सांत्वना स्वरूप एक मीठा सा चुंबन दे दिया।

“ठीक बा ..पहले साबुन त लगा दे..”सोनू ने शरारती लहजे में कहा। सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था।

सोनू ने सुगना पर अपनी पकड़ ढीली की और सुगना सावधानी पूर्वक खड़ी हो गई. उसे अपनी नग्नता का एहसास तब हुआ जब सोनू ने अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटा दिया.. और अपने नथुनों से सुगना के इत्र की खुशबू सूंघने लगा..

सुगना के काम रस की खुशबू और इत्र की खुशबू दोनों ने सोनू को कामान्ध कर दिया.. वह अधीर होकर सुगना की बुर को चूमने की कोशिश करने लगा..

सुगना खड़ी थी इस अवस्था में सोनू के होंठ बुर के होठों से मिल नहीं पा रहे थे। सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियां से सुगना के कूल्हे पकड़े और उसे अपनी तरफ हल्के से खींचा। सुगना का बैलेंस बिगड़ा और उसने सोनू का सर थामकर खुद को गिरने से बचाया।

सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना ने स्वेच्छा से उसके सर को अपनी बुर की तरफ धकेला है। सोनू और भी कामुक हो गया उसने अपनी लंबी जीभ निकाली और सुगना की जांघों के बीच गहराई तक उतार दी। सुगना की बुर की सुनहरी दरार से रस चुराते हुए सोनू की जीभ सुगना के भागनाशे से तक आ पहुंची…


सोनू की जिह्वा अपनी बहन के अमृत रस से शराबोर हो गई..

सोनू ने अपना सर अलग किया और सुगना की तरफ देखा उसकी जीभ और होंठो से सुगना की बुर की लार अब भी टपक रही थी..

“दीदी ठीक लागत बा नू..?”

सुगना मदहोश थी अपने छोटे भाई का यह प्रश्न इस अवस्था में बेमानी थी। बुर की लार सुगना की अवस्था चीख चीख कर बता रही थी..

सुगना मारे शर्म के पानी पानी थी उसने अपनी पलके बंद कर ली और एक बार फिर सोनू के सर को अपनी जांघों से सटा दिया..

सोनू एक बार फिर उसे अमृत कलश से अमृत चाटने की कोशिश करने लगा सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ उसे लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी…सुगना को यह मंजूर नहीं था आज उसे जी भर कर काम सुख का आनंद लेना था उसने सोनू के सर को खुद से अलग करते हुए कहा

“तोरा शरीर का पूरा साबुन सूख गया है पहले नहा ले यह सब बाद में…”

सोनू ने सुगना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके नितंबों पर से अपना हाथ हटा लिया…

और सुगना की तरफ देखते हुए बोला

“दीदी ठीक बा नहला द” सोनू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी उसने सुगना को सोनू के बचपन की याद दिला दी। पर आज परिस्थितिया भिन्न थी ।

नंगी सुगना आगे झुकी बाल्टी में से लोटे में पानी निकला इस दौरान उसकी झूलती हुई चूचियां सोनू की आंखों के सामने थिरक रही थी। सोनू से बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से सुगना की चूची पकड़ ली। सुगना को जैसे करंट सा लगा..

“ए सोनू बाबू अभी छोड़ दे हम गिर जाएब.. तंग मत कर”

नंगी सुगना क्या-क्या बचाती सब कुछ दिन की दूधिया रोशनी में सोनू की आंखों के सामने था। गोरी मांसल जांघों के बीच सुगना की बुर के फूले हुए होंठ और उसमें में से लटकती हुई काम रस की बूंद सोनू का ध्यान खींचे हुए थी..

सुगना ने लौटे का पानी सोनू के सर पर डाल दिया.. सोनू ने अपने हाथों से पानी को अपने सर और बदन पर फैलाया तब तक सुगना एक बार और लोटे से पानी उसके सर पर डाल चुकी थी।

सुगना साबुन उठाने के लिए सोनू के बगल में झुकी और सोनू की पीठ पर साबुन मलने लगी। जांघों में हो रही हलचल से बुर की फांके सोनू के आंखों के सामने बार-बार उस गुलाबी छेद को दिखा रही थी जो इस सृष्टि की रचयिता थी। सोनू से रहा न गया उसकी उंगलियों ने सुगना की बुर से लटकती हुई लार को छीनने की कोशिश की.. और उसने सुगना की संवेदनशील बुर पर अपनी उंगलियां फिरा दी। सुगना चिहुंक उठी और अपना संतुलन खो बैठी परंतु सोनू ने उसे संभाल लिया और वह सीधा सोनू की गोद में आ गिरी..

सुगना के दोनों पैर सोनू की कमर के दोनों तरफ थे। सोनू का लंड सुगना और उसके पेट के बीच फंस गया था। सोनू और सुगना का चेहरा एक दूसरे के सामने था…भरी भरी चूचियां सोनू के मजबूत सीने से सटकर सपाट हो रही थी पर निप्पलो का तनाव सोनू महसूस कर पा रहा था।

सोनू अपनी मजबूत बाहों से सुगना को अपनी तरफ खींचा हुआ था और अपनी मजबूत जांघों से सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए था।

सोनू सुगना की आंखों में देखते हुए बेहद का कामुक अंदाज में बोला..

“तू इतना सुंदर काहे बाड़ू “ सोनू सुगना की सपाट और चिकनी पीठ पर अपने हाथ फेरे जा रहा था।

इस बार सुगना ने प्रति उत्तर में सोनू के अधरों को चूम लिया और अपनी हथेलियां में पड़े साबुन को सोनू की पीठ पर मलने लगी..

सुगना जैसे-जैसे सोनू की पीठ पर साबुन लगाती गई उसकी चूचियां लगातार सोनू के सीने से रगड़ खाती रहीं और सोनू का लंड सुगना के पेट से रगड़ खाकर और तनता चला गया। लंड में हो रही संवेदना सोनू को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू का लंड सुगना की नाभि से टकरा रहा था।

सुगना ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने पंजों पर जोर लगाया और अपने कूल्हे को थोड़ा ऊंचा किया ताकि वह सोनू की पीठ पर आसानी से पहुंच सके…

सुगना की बुर भी साथ-साथ उठ गई थी.. सोनू ने सुगना को अपने और समीप खींचा और सुगना की बुर के होठों पर सोनू के लंड ने दस्तक दे दी।

सुगना सोनू की पीठ पर साबुन लगाती रही और जाने अनजाने अपनी बुर को सोनू के लंड के सुपाड़े पर हल्के-हल्के रगड़ती रही यह संवेदना जितना सोनू को पसंद आ रही थी उतना ही सुगना को दोनों चुप थे पर आनंद में शराबोर थे। सुगना की चूचियां सोनू के चेहरे से सट रही थी वह उन्हें अपने होठों में भरने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था।

सोनू की हथेलियां सुगना के नंगे नितंबों पर घूम रही थी धीरे-धीरे वह नितंबों के बीच की घाटी में उतरती गई और आखिरकार सोनू की भीगी उंगलियों ने सुगना की गुदांज गांड को छू लिया…

सुगना अपना संतुलन एक बार फिर खो बैठी पर इस बार उसे सोनू के मजबूत खूंटे का सहारा मिला सोनू का लंड जो अब तक सुगना की बुर को चूम रहा था अब उसकी गहराइयों में उतरता गया…

कई महीनो बाद आज सोनू का मजबूत लंड सुगना की बुर में प्रवेश कर रहा था.. सुगना की बुर अब अभी सोनू के लिए तंग ही थी। सुगना ने अपने अंदर एक भराव महसूस हुआ और जब तक सुगना संभल पाती सोनू के लंड ने उसके गर्भाशय को चूम लिया.. सुगना कराह उठी..

“आह सोनू बाबू तनी धीरे से….”

उसने अपने होठों को अपने दांतों से दबाया और खुद को व्यवस्थित करने लगी लंड अब भी सुगना के गर्भाशय पर दबाव बनाया हुआ था.. खुद को संतुलित करने के बाद

सुगना ने सोनू की तरफ घूरकर देखा जैसे उससे पूछ रही हो कि उसने उसकी गांड को क्यों छुआ?

सोनू को अपनी गलती पता थी उसने तुरंत अपनी उंगलियां सुगना की गांड से हटा ली और सुगना के होठों को अपने होठों के बीच भर लिया। उसने अपनी जांघों को थोड़ा ऊंचा कर उसने सुखना को ऊपर उठने में मदद की और फिर अपनी जांघें फैला दी सुगना एक बार फिर लंड पर पूरी तरह बैठ गई और सोनू के लंड ने सुगना के किले में अपनी जगह बना ली। सोनू ने अपनी जांघें ऊंची और नीची कर अपने लंड को सुखना की बुर में धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबने लगी। सोनू ने जो गलती सुगना की गांड को छू कर की थी शायद उसने उसका प्रायश्चित कर दिया था सुगना खुश थी और सोनू भी।

सोनू का लंड सुगना की बुर में जड़ तक धस चुका था.. सुगना सोनू की गर्दन को पकड़ कर अपना बैलेंस बनाए हुए थी। कुछ पलों के लिए गहरी शांति हो गई थी। पर सोनू का लंड अंदर थिरक रहा था…

सोनू और सुगना संभोग की मुद्रा में आ चुके थे। सुगना की पलकें बंद हो चुकी थी वह आनंद में डूबी थी..

क्या हुआ कैसे हुआ कहना कठिन था पर सुगना की कमर अब हिल रही थी सोनू का लंड उसकी दीदी सुगना की बुर से कुछ पलों के लिए बाहर आता और फिर सुगना की प्यासी बर उसे पूरी तरह लील देती…

सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
सोनू की वासना आज जागृत थी वह मन ही मन इस मिलन को यादगार बनाना चाह रहा था.. उसके नथुनों में सुगना के काम रास और उस इत्र की खुशबू अब भी आ रही थी ..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया.. और सोनू केअंतरमन को पढ़ने का प्रयास करने लगी।



शेष अगले भाग में…
बहोत अच्छे बहोत badhiya update diya hai ✍️ 👌 😍 😋
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