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xoxo0781

Mom = love of my life ❤️
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Update: Week me mostly sunday ko milega

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Hero - Raj (20 sal)
Raj ki maa - Sakshi (42 sal) - Main Heroine
Raj ki Behen - Neha (18 sal)
Raj ke papa(late) - Rajdeep

Raj ki Mausi - Radha (43 sal)

Radha ki Beti - Preeti (19 sal)


Out off family

Sakshi ki Best Friend from her school = Naina (35 sal)
Raj ka Best Friend from his childhood = Saurabh

Amit Sir(Sports Teacher) - 45 sal = Tharki (Ladkibaazi se badnaam hai)

Vineet(Awara Student) - 18 sal = Neha ki class me padhta hai
 
Last edited:

xoxo0781

Mom = love of my life ❤️
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Update-4

Deleted... I was going in the wrong direction

A big thank you to everyone who guided me in the right direction.


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Last edited:

Arpan003

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63
Nice
कुछ 6 महीने बाद,

नया मोड़: अमित सर का Arrival

यह उन दिनों की बात है जब साक्षी की ज़िंदगी में एक अजीब सा ठहराव आ गया था। पति के जाने के बाद, उसकी दुनिया बस बच्चों और स्कूल तक सिमट गई थी। वो खुद को भूल चुकी थी, और उसके अंदर एक गहरा खालीपन घर कर गया था। तभी एंट्री होती है अमित सर की। स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर, स्मार्ट, हैंडसम करीब 30 साल का होगा। उसकी चाल-ढाल ऐसी थी कि स्कूल की लड़कियाँ भी उस पर फ़िदा रहती थीं, और कुछ टीचर्स भी।

लेकिन अमित की हकीकत कुछ और थी। वो सिर्फ़ दिखने में ही शरीफ़ था। असल में, वो एक नंबर ka लड़कीबाज़ tha। लड़कियों को फँसाना, उसका नाजायज फ़ायदा उठाना, और फिर छोड़ देना, Blackmail karna — ये उसका पुराना शगल था। इस बात की किसी को कानो-कान खबर नहीं थी, सिवाय राज के। राज को अमित सर के बारे में थोड़ी-बहुत बातें पता थीं, जो उसने अपने दोस्तों से सुनी थीं, पर उसने कभी इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था।

अमित प्लेबॉय था, वो काफ़ी लड़कियो को फसा चुका था, वो nude photos, videos से ब्लैकमेल करके उनका फायदा उठाता था। एक ऐसा आदमी जिसके चेहरे पर "स्मार्ट और शरीफ़" का नक़ाब है,

वो बहुत अच्छा जानता है कि कैसे लड़कियों के दिलों में घुसा जाए… कैसे उनकी अकेलापन का फायदा उठाया जाए… और कैसे एक अच्छी महिला को भी एक झूठी दुनिया में खींच लिया जाए।

अमित ने साक्षी को काफ़ी समय से नोटिस करना शुरू कर दिया था।
उसकी खूबसूरती, Simplicity, उनकी संस्कारी चाल-ढाल और 42 की उम्र में भी बरकरार उनकी खूबसूरती—सब कुछ उसे अपनी ओर खींच रहा था। उसे पता था कि साक्षी अकेली हैं, और शायद यही उसके लिए एक मौक़ा था। और उसे पता था — ऐसे दिलों में एक छोटी सी ठोकर से भी दरार पड़ जाती है।

अमित ने अपनी आँखों में एक मीठी-सी चमक भर ली।
उसकी मुस्कान थी, जैसे वो बस एक अच्छा इंसान हो।
उसकी बातें थीं, जैसे वो एक सच्चा दोस्त हो।
लेकिन उसका दिल जानता था — ये सब कुछ सिर्फ़ एक शिकार के लिए है।

वो एक ऐसा इंसान है, जो दर्द को नहीं समझता… बल्कि उसका फायदा उठाता है।

(स्कूल का मैदान बच्चों की चहल-पहल से गुलज़ार था। पी.टी. पीरियड के बाद बच्चे अपनी क्लास में जा रहे था। स्कूल की छुट्टी के बाद, साक्षी अपनी कॉपी चेक कर रही थीं। अमित वहीं से गुज़र रहे था था, जब अमित उसके पास आया।)

अमित (मुस्कुराते हुए, जान-बूझकर आवाज़ धीमी करके): "मैम, अभी तक यहीं हैं? आज तो वैसे भी मेरा दिन बन गया आपको देखकर।"

साक्षी ने सिर उठाया, हल्की सी मुस्कान दी। पर साथ ही एक हल्की सी खुशी भी दे गया।
एक अरसे बाद किसी ने उनकी तारीफ की थी,ऐसे कॉम्प्लीमेंट उसे सालों से नहीं मिले था… एक बाहर के आदमी ने उन्हें देखा…
ऐसा तो नहीं हुआ था, राजदीप के जाने के बाद से। राज तारीफ करता था पर साक्षी उसको बेटे की नज़र से ही देखती थी और बेटे का प्यार ही मानती थी।

साक्षी: "अरे अमित सर, नमस्ते। बस थोड़ी कॉपीज़ रह गई थीं, वही निपटा रही थी।"

उनकी आवाज़ में एक सामान्यता है, लेकिन उसके अंदर कुछ उथल-पुथल होने लगती है।
उन्हें लगता है कि किसी ने उन्हें देखा है… उन्हें महसूस किया है।

अमित: "मैम, आप इतनी मेहनत करती हैं ना, तो कभी-कभी मुझे लगता है कि स्कूल वालों को आपको 'बेस्ट टीचर ऑफ़ द डिकेड' का अवॉर्ड दे देना चाहिए। सीरियसली, आपकी जैसी dedication मैंने किसी में नहीं देखी।"

अमित की बातें साक्षी के दिल के एक कोने में घुस जाती हैं।
उसके चेहरे पर एक हल्की सी लाली छा जाती है।
कितने सालों बाद किसी ने उसे देखा… किसी ने उसे पहचाना…
उसके भीतर का वो खालीपन, जो हमेशा एक गहरे गड्ढे जैसा लगता था, उसमें एक छोटा सा धक्का लगता है।
कुछ उम्मीद की किरण जैसे जगती है।

साक्षी: "अरे-अरे, ऐसी कोई बात नहीं है अमित सर। ये तो मेरा काम है।"

अमित (करीब आते हुए, आवाज़ में थोड़ी चिकनाई): "काम तो है मैम, पर हर कोई आपके जितना प्यार और लगन से काम नहीं करता। और ये सिर्फ़ काम की बात नहीं है, मैम। आपकी personality... आपकी simplicity... कमाल है।"

साक्षी थोड़ी असहज हुईं, पर उसके दिल को ये बातें छू रही थीं। राजदीप के जाने के बाद किसी ने उसे ऐसे सराहा नहीं था।

साक्षी: "थैंक यू अमित सर।"

अमित: "मैम, एक बात पूछूँ? आप कभी परेशान या उदास दिखती हैं, तो मुझे बहुत बुरा लगता है। आपकी हँसी में जो जादू है ना, वो आपकी आँखों में दिखने वाली उदासी में खो जाता है। आप हमेशा खुश क्यों नहीं रहतीं?"

ये बात साक्षी के दिल में घुल जाती है।
उसके भीतर की एक दीवार कुछ कमज़ोर होने लगती है।
कितने सालों से किसी ने उसके दर्द को देखा था?
किसी ने उसकी उदासी को समझा था?

उसने कभी किसी से अपने दर्द की बात नहीं की थी। किसी ने उसके खालीपन को ऐसे महसूस नहीं किया था।
उसकी आँखें नीचे झुक जाती हैं।
वो कुछ कह नहीं पातीं।
सिर्फ़ एक छोटी सी साँस लेती हैं…

साक्षी (निगाहें झुकाकर): "ऐसी कोई बात नहीं है अमित सर। बस... ज़िंदगी है, चलती रहती है।"

वो बाहर से ठीक दिखना चाहती हैं, लेकिन अंदर से एक बाढ़ उमड़ रही है।
उसके दिल में एक प्रश्न उठता है — क्या मैं वाकई खुश हूँ?
और अब ये सवाल एक अजनबी ने पूछ दिया है।
उसके अंदर की दुनिया थोड़ी सी हिल जाती है।

अमित सर (jhuthi हमदर्दी दिखाते हुए): "नहीं मैम, मैं आपकी आँखों में देखता हूँ। एक गहराई है वहाँ, एक दर्द है। काश मैं कुछ कर पाता... आपको हँसाने के लिए। वैसे, अगर आपको कभी किसी चीज़ की ज़रूरत हो या बस यूं ही बात करनी हो ना, तो अमित हमेशा हाज़िर है।"

अमित सर ने अपनी बात कहते हुए हल्के से साक्षी के हाथ पर हाथ रख दिया। साक्षी को एक अजीब सी सिहरन हुई। सालों बाद किसी मर्द का स्पर्श, वो भी इस तरह। उसने अपना हाथ तुरंत नहीं खींचा। एक पल के लिए उसे अच्छा लगा।

साक्षी (हल्के से हाथ हटाते हुए): "नहीं-नहीं अमित सर, ऐसी कोई बात नहीं है। थैंक यू। अब मुझे चलना चाहिए।"

अमित: "ठीक है मैम। ख्याल रखिएगा अपना। और हाँ, हमेशा हँसते रहिए, क्योंकि आपकी ये मुस्कान ना, बहुत कीमती है।"

साक्षी हल्की सी मुस्कान के साथ वहाँ से निकल गईं, पर अमित सर की बातें और उसका स्पर्श उसके दिमाग में घूमता रहा। उसे लगा, जैसे कोई उसके सूखे पड़े बागान में पहली बार पानी डाल रहा हो। अमित की मीठी बातों और सहानुभूति ने साक्षी के मन में एक नया दरवाज़ा खोल दिया था। वो जानती थी कि ये फ्लर्टिंग थी, पर उसका अकेला मन उस ध्यान को रोक नहीं पा रहा था। धीरे-धीरे, साक्षी के मन में अमित सर के लिए एक अजीब सी 'इंप्रेशन' बननी शुरू हो गई थी। उसके अंदर का खालीपन उस attention को ऐसे सोख रहा था, जैसे प्यासी ज़मीन पानी को।
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### अमित का जाल: झूठे प्यार का दिखावा

अमित ने साक्षी के खालीपन को बखूबी भांप लिया था। उसे पता था कि पति को खो चुकी इस lady को अब सहानुभूति, ध्यान और शायद थोड़े प्यार की ज़रूरत है। और अमित, जो खुद एक शातिर लड़कीबाज़ था और नाजायज़ फ़ायदा उठाने में माहिर, साक्षी को अपने जाल में फँसाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे था। वो blackmail करने में भी पीछे नहीं हटता था, उसका मकसद नेक नहीं था, उसका एकमात्र लक्ष्य साक्षी को अपने शिकंजे में लेना था।

अगले कुछ दिनों तक अमित ने साक्षी को फँसाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया।

स्कूल में, वो हर मौक़े पर साक्षी के आसपास मंडराता। लंच ब्रेक में अचानक उसके पास पहुँच जाना, स्टाफ रूम में सिर्फ़ साक्षी से आँखें मिलाकर बात करना, या फिर जानबूझकर स्कूल के बाद देर तक रुकना ताकि साक्षी से अकेले में बात हो सके।

अमित (मीठी आवाज़ में): "मैम, आज आप थोड़ी उदास लग रही हैं। सब ठीक तो है ना? अगर कुछ बात हो, तो आप मुझसे शेयर कर सकती हैं।"

साक्षी, जो इन सब की आदी नहीं थीं, पहले थोड़ी झिझकतीं, पर अमित की हमदर्दी भरी बातें उसे कहीं न कहीं सुकून देतीं। उसके पास वैसे भी कोई नहीं था जिससे वो अपने दिल की बात कह सकें।

एक दिन, जब साक्षी क्लास से बाहर निकल रही थीं, अमित कॉरिडोर में ही मिल गया।

अमित: "मैम, आपकी क्लास से गुज़र रहा था, और सच कहूँ... आप कितनी ख़ुबसूरत है और एक बेहतरीन टीचर हैं।"

साक्षी (शर्माते हुए): "आप भी ना अमित सर, ज़रूरत से ज़्यादा तारीफ़ करते हैं।"

अमित (धीरे से, जैसे सिर्फ़ उन्हीं के लिए हो): "जो सच है, वही कहता हूँ मैम। आपकी आँखों में वो गहराई है ना, जो हर किसी में नहीं मिलती। मैं तो कभी-कभी सोचता हूँ, आपके पति कितने खुशनसीब होंगे..."

ये सुनकर साक्षी की आँखें भर आईं। राजदीप का ज़िक्र सुनकर उसे हमेशा दर्द होता था, पर अमित की आवाज़ में सहानुभूति थी, कोई सवाल नहीं।

साक्षी (आवाज़ में नमी): "वो अब नहीं हैं अमित सर। चार साल हो गए।"

अमित सर (तुरंत उसके हाथ को छूते हुए, हल्के से दबाकर): "ओह, मैं... मैं माफ़ी चाहता हूँ मैम। मुझे नहीं पता था। मेरा मतलब था... कोई भी आपको पाकर खुद को खुशनसीब समझेगा।"

उसका स्पर्श और उसके शब्द, साक्षी के लिए एक मरहम की तरह था। उसे लगा जैसे अमित उसके दर्द को समझ रहे हैं। अमित ने तुरंत बात बदली, उसे हँसाने की कोशिश की, और साक्षी ने पाया कि उसके साथ बात करते हुए वो अपने खालीपन को कुछ देर के लिए भूल जाती हैं।

अमित यहीं नहीं रुका। उसने साक्षी को यह महसूस कराना शुरू कर दिया कि वो उसके लिए खास हैं। वो कभी उसके लिए पानी की बोतल ले आता, कभी उसके लिए स्टाफ रूम में कुर्सी खींच देता, और कभी-कभी तो बस बेवजह उसके पास आकर खड़े हो जाता, जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रहे हों। उनकी आँखों में एक झूठा आकर्षण था, जो साक्षी की अकेली आँखों को असली लगने लगा था।

साक्षी को लगने लगा था कि अमित सर सच्चे हैं, उसे उनसे कोई उम्मीद नहीं है, बस वो एक अच्छे इंसान हैं। अमित सर की नकली हमदर्दी और मीठी बातें साक्षी के अकेले दिल में धीरे-धीरे अपनी जगह बना रही थीं। वो जानती थीं कि ये सब शायद "जस्ट फ़्लर्टिंग" है, पर उसके अंदर का अकेलापन उस attention को ऐसे सोख रहा था, जैसे प्यासी ज़मीन पानी को। साक्षी धीरे-धीरे अमित सर की इस फर्जी 'केयर' पर इंप्रेस होती जा रही थीं, और उसे इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि ये सब एक गहरे जाल का हिस्सा था।

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### जाल गहराता है: "प्यार" के झूठे वादे

अमित को पता था कि अब दांव खेलने का सही वक़्त है। साक्षी उसके झूठे दिखावे और मीठी बातों के जाल में फँसती जा रही थीं। उसका अकेलापन और भावनात्मक ज़रूरतें अमित के लिए सबसे बड़ा हथियार थीं। अमित ने अब अपनी चालें और तेज़ी से चलनी शुरू कर दी थीं। उसका एक ही मक़सद था: साक्षी को फँसाना और उसका नाजायज़ फ़ायदा उठाना।

यह सब एक सोमवार की शाम को शुरू हुआ। स्कूल की छुट्टी के बाद, साक्षी स्टाफ रूम में अकेली थीं, कुछ कॉपी चेक कर रही थीं। बाहर हल्की बारिश शुरू हो गई थी।

अमित (स्टाफ रूम में आते हुए, जानबूझकर गहरी आवाज़ में): "अरे मैम, अभी तक यहीं? बारिश भी शुरू हो गई है, आप भीग जाएँगी।"

साक्षी ने सिर उठाया, हल्की सी मुस्कान दी। "हाँ अमित सर, बस ये आख़िरी सेट रह गया था।"

अमित (उसके पास वाली कुर्सी खींचते हुए, बेहद नज़दीक होकर बैठते हैं): "मैम, आप ना, बहुत हार्डवर्किंग हैं। और इतनी ख़ूबसूरत भी। कभी-कभी सोचता हूँ, आप जैसी लेडी को इतना अकेला क्यों रहना पड़ता है।"

साक्षी को यह बात सुनकर एक अजीब सी चुभन हुई। उनकी आँखों में पल भर के लिए उदासी तैर गई। "ऐसी कोई बात नहीं है अमित सर।"

अमित (उसके हाथ को हल्के से छूते हुए, जैसे कोई धूल हटा रहे हों): "नहीं मैम, मैं आपकी आँखों में देखता हूँ। वो गहराई, वो दर्द... आप बहुत कुछ छुपाती हैं अपने अंदर। काश... काश मैं आपकी उदासी दूर कर पाता।"

साक्षी को उसके स्पर्श से एक अजीब सी सिहरन हुई। उसे लगा, जैसे सालों बाद कोई उसे सचमुच देख रहा हो, महसूस कर रहा हो। उसने अपना हाथ नहीं हटाया।

साक्षी (धीरे से, आवाज़ में थोड़ी हिचकिचाहट): "आप क्यों परेशान हो रहे हो सर? मैं ठीक हूँ।"

अमित सर (थोड़ा झुककर, उनकी आँखों में देखते हुए): "मैं परेशान होता हूँ मैम, क्योंकि आपकी हँसी में जो चमक है ना, वो गुम हो गई है। मैं बस ये चाहता हूँ कि आप फिर से खुलकर हँसें, अपनी ज़िंदगी जिएँ।"

उसने फिर से साक्षी का हाथ थामा और इस बार हल्का सा सहलाया। साक्षी का दिल तेज़ी से धड़का। ये स्पर्श उसे एक अजीब सा सुकून दे रहा था, जो उसने लंबे समय से महसूस नहीं किया था। उसके गाल हल्के से गुलाबी हो गए।

अमित सर (आवाज़ में धीमी, सम्मोहित करने वाली): "मैम, आप ना, एक बहुत ख़ास इंसान हैं। मुझे नहीं पता क्यों, पर मुझे आपके लिए बहुत फ़िक्र होती है।"

साक्षी ने अपनी आँखें नीची कर लीं। उसे लगा जैसे अमित सर उसके खालीपन को भर रहे हों। यह एक ऐसी भावना थी जिसे वो पहचान नहीं पा रही थीं, पर जो उसे बेहद अच्छी लग रही थी।

साक्षी (धीमे स्वर में): "शुक्रिया अमित सर।"

अमित सर (अपनी जीत महसूस करते हुए, और करीब आता हैं): "शुक्रिया मत कहिए मैम। मैं बस इतना चाहता हूँ कि आप अपनी ख़ुशी को दोबारा ढूँढ़ लें। और अगर मैं उसमें थोड़ी भी मदद कर पाऊँ, तो ये मेरे लिए बहुत होगा।"

उसने धीरे से साक्षी के कंधे को छुआ, और फिर उनकी उँगलियाँ हल्के से उसके बालों में फ़िर गईं, जैसे उसे ठीक कर रहे हों। साक्षी पूरी तरह मोहित हो चुकी थीं। उसका मन तर्क-वितर्क से परे, उस ध्यान और स्नेह को महसूस कर रहा था जिसकी उसे बहुत ज़रूरत थी।

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फ़िल्म की तारीख़ और उसके बाद जो कुछ हुआ, उससे पहले के हफ़्तों में, अमित सर ने साक्षी को अपने जाल में फँसाने के लिए बारीक चालें चली थीं। उनका मक़सद सिर्फ़ शारीरिक नज़दीकी नहीं था, बल्कि साक्षी को भावनात्मक रूप से अपने वश में करना था, ताकि वह उसकी हर बात मानने लगे। अमित ने साक्षी की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत, हर दबे हुए दर्द को पहचाना और उसी पर वार किया।

हर दिन नया बहाना

अगले कुछ हफ़्तों तक अमित सर ने साक्षी के करीब आने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा। उनका हर दिन, कोई न कोई नया बहाना होता, साक्षी से बात करने का, उसके आस-पास मंडराने का। यह सब इतना स्वाभाविक लगता था कि साक्षी को कभी शक ही नहीं हुआ कि यह सब अमित की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।

अगले कुछ हफ़्तों तक अमित सर ने यही सिलसिला जारी रखा।

स्टाफ रूम में 'चाय-कॉफी' का सहारा:
दोपहर का लंच ब्रेक हो या शाम की छुट्टी से पहले का समय, जब साक्षी स्टाफ रूम में अकेली होतीं, तो अमित सर अचानक वहाँ प्रकट हो जाते।
"मैम, ये कॉफी आपके लिए। आपको देखकर लगा आप थोड़ी थकी हुई हैं।" अमित सर कहते, उसके चेहरे पर सच्ची फ़िक्र का भाव होता।
जब वह कप साक्षी के हाथों में थमाते, तो जानबूझकर उसका हाथ छू लेते। यह स्पर्श इतना हल्का और क्षणिक होता कि साक्षी उसे सिर्फ़ एक सद्भावना मानतीं, पर उसके अंदर एक अजीब सी सिहरन दौड़ जाती थी। उसे लगता कि कोई उसकी परवाह कर रहा है।

कॉरिडोर में 'किताब' का बहाना:
कभी-कभी अमित सर कॉरिडोर में साक्षी के क्लास से निकलने का इंतज़ार करते।
"मैम, आपने वो नई किताब पढ़ी? मैंने देखी थी, मुझे लगा ये आपको पसंद आएगी।" किताब देते हुए वह जानबूझकर साक्षी के हाथों को थोड़ा ज़्यादा देर पकड़े रहते। उनकी उंगलियाँ साक्षी की उंगलियों से हल्की-हल्की टकरातीं।
साक्षी को यह सब अजीब लगता, पर अमित की आँखों में दिखने वाली 'सरलता' उसे रोक देती। उसे लगता कि अमित तो बस एक नेक दिल इंसान है।

स्कूल के बाद 'लिफ्ट' का प्रपोजल:
बारिश के दिनों में या देर शाम स्कूल छूटने के बाद, अमित सर हमेशा साक्षी को घर छोड़ने का प्रस्ताव देते।
"मैम, आज मेरी गाड़ी यहीं खड़ी है। अगर आप चाहें तो मैं आपको घर तक छोड़ सकता हूँ। बारिश अभी भी हो रही है।"
अगर साक्षी मना करतीं, तो अमित सर तुरंत कहते, "नो प्रॉब्लम, मैं भीगता हुआ चला जाऊँगा। आप बस अपना ख्याल रखिएगा।" यह त्याग का दिखावा साक्षी को और ज़्यादा प्रभावित करता। उसे लगता कि अमित उसके लिए कितनी परेशानी उठाने को तैयार है।


तारीफों का जाल और साक्षी का भावनात्मक खालीपन

अमित सर हर छोटी-मोटी चीज़ पर साक्षी की तारीफ़ करते रहते थे—उनकी साड़ी, उनके बाल, उनकी मुस्कान, उनके पढ़ाने का तरीक़ा, उनकी आवाज़।
"साक्षी मैम, आज आपकी साड़ी में आप कितनी सुंदर लग रही हैं!"
"मैम, आपके पढ़ाने का तरीक़ा लाजवाब है, बच्चों को आपसे कितना कुछ सीखने को मिलता है।"

वो साक्षी को लगातार यह महसूस कराते रहे कि वो कितनी ख़ूबसूरत, कितनी ख़ास, और कितनी काबिल हैं। यह सब बातें साक्षी के अकेले दिल में रस घोल रही थीं। उन्हें पता था कि एक विवाहित आदमी उनसे ऐसे बात नहीं कर सकता, पर अमित सर अनमैरिड था, और साक्षी के दिल में अपने पति राजदीप के अलावा किसी दूसरे आदमी के लिए कोई जगह थी ही नहीं। इसलिए उन्हें अमित की बातों में कोई बुरा इरादा नज़र नहीं आता था।

साक्षी को ये सब नया और बहुत अच्छा लग रहा था। उसके अंदर का गहरा खालीपन, जो सालों से उसे खाए जा रहा था, अमित के इस लगातार मिलते ध्यान (attention) को ऐसे सोख रहा था जैसे रेगिस्तान में पानी। वह जानती थी कि ये फ़्लर्टिंग है, एक तरह की छेड़छाड़, पर उसका अकेला और प्यार को तरसता दिल इसे प्यार की एक नई उम्मीद के तौर पर देखने लगा था। उसे अमित सर सच्चे और हमदर्द लगने लगे थे, एक ऐसे इंसान जो उसके दर्द को समझते हैं और उसे फिर से हँसते हुए देखना चाहते हैं।


साक्षी, धीरे-धीरे, अमित सर के इस झूठे 'प्यार' के जाल में पूरी तरह फँसती जा रही थीं, उसे इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि ये सब एक गहरी चाल का हिस्सा था—एक नाजायज़ फ़ायदा उठाने की साज़िश। अमित सर का जाल अब पूरी तरह से फैल चुका था, और साक्षी अनजाने में उसमें उलझती जा रही थीं, अपने भावनात्मक धोखे से बेख़बर।

अमित सर का जाल अब पूरी तरह से फैल चुका था, और साक्षी अनजाने में उसमें उलझती जा रही थीं।
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### अमित का बारीक जाल: हर छोटी बात, बड़ा असर

अमित को अब अपनी जीत साफ़ दिख रही थी। उसने साक्षी के स्वभाव, उनकी ज़रूरतों और उसके खालीपन को बहुत बारीकी से पढ़ लिया था। उसे पता था कि साक्षी को अब सिर्फ़ मीठी बातें नहीं, बल्कि ऐसा ध्यान चाहिए जो उसे महसूस कराए कि वो फिर से किसी के लिए खास हैं। अमित ने हर छोटी से छोटी चीज़ पर काम किया, जो साक्षी के अकेले दिल में जगह बना सके। उसका मक़सद था साक्षी को भावनात्क रूप से फँसाना ताकि वो उसका नाजायज़ फ़ायदा उठा सकें।

अमित ने हर मौक़े को भुनाया, हर बातचीत को एक कदम आगे बढ़ाया।

एक दिन, स्कूल के स्टाफ रूम में, साक्षी अपनी मैथ्स की किताबों में कुछ ढूँढ रही थीं। वो थोड़ी परेशान दिख रही थीं क्योंकि उसे एक ख़ास नोट नहीं मिल रहा था।

अमित सर (धीरे से पास आते हुए): "क्या हुआ मैम? कुछ ढूँढ रही हैं?"

साक्षी (निराशा से): "हाँ अमित सर, पता नहीं कहाँ रख दिया। एक बच्चे को कल मैंने एक ख़ास तरीक़े से सम समझाया था, उसी का नोट था।"

अमित सर ने कुछ नहीं कहा, बस उसके पास आकर खड़े हो गए और देखने लगे। फिर अचानक उनकी नज़र एक पुरानी, मोटी किताब के बीच दबे एक छोटे से कागज़ पर पड़ी।

अमित सर: "मैम, ये देखिए! क्या ये वही है?"

साक्षी ने देखा, और उनकी आँखों में चमक आ गई। "अरे हाँ! यही है अमित सर! शुक्रिया, बहुत शुक्रिया। मुझे लगा था कि ये खो गया।"

अमित सर (मुस्कुराते हुए): "आप इतनी केयरलेस कैसे हो सकती हैं मैम? इतनी ज़रूरी चीज़ को ऐसे छोड़ देती हैं।" उसने धीरे से वो कागज़ साक्षी के हाथ में रखा, और उनकी उंगलियाँ कुछ पल के लिए साक्षी की उंगलियों से छू गईं। साक्षी को ये स्पर्श अब असहज नहीं लगता था, बल्कि एक सुकून देता था।

एक और दिन, स्कूल के बाहर तेज़ धूप थी। साक्षी अपनी स्कूटी निकालने जा रही थीं। अमित सर अपनी बाइक के पास खड़े था।

अमित सर: "मैम, आज धूप बहुत तेज़ है। आप मेरी छतरी ले लीजिए"

साक्षी: "अरे नहीं अमित सर, भूल गई थी।"

अमित सर: "ये लीजिए मैम। धूप बहुत नुकसान करती है, और आपकी ये सुंदरता..." उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, पर उसका अंदाज़ ऐसा था जैसे वो साक्षी की ख़ूबसूरती की कितनी फ़िक्र करते हैं।

साक्षी को ये छोटा सा इशारा बहुत बड़ा लगा। किसी ने कभी उसके लिए इतनी छोटी चीज़ का भी ध्यान नहीं रखा था। उसने रुमाल लिया, उसके गालों पर हल्की लाली आ गई। "शुक्रिया अमित सर।"

अमित सर: "नो मेंशन मैम। आपका ख्याल रखना तो बनता है और प्लीज़ आप school के बाहर मुझे sir ना कहिए"

धीरे-धीरे, अमित ने साक्षी की हर छोटी आदत को पहचान लिया। उसे पता था कि साक्षी को काली चाय पसंद है, उसे सुबह अख़बार पढ़ने की आदत है, और वो अक्सर अपनी चाबियाँ भूल जाती हैं।

अगर साक्षी स्टाफ रूम में थीं और चाय का वक़्त होता, अमित सर उसके लिए काली चाय का कप ले आता, बिना पूछे।
अगर साक्षी क्लास से निकलतीं, अमित सर दरवाज़े पर खड़े मिलता, और उसे एक प्यारी सी मुस्कान देते।
कभी-कभी, जब साक्षी किसी बात पर हल्की सी हँसतीं, अमित सर तुरंत कहते, "वाह मैम, आपकी हँसी कितनी प्यारी है! ऐसे ही हँसते रहिए।"

साक्षी, जो अब तक अपने आस-पास की दुनिया से कट चुकी थीं, इन छोटी-छोटी बातों पर पिघलने लगीं। अमित सर का ये बारीक ध्यान उसके दिल को छू रहा था। उसे लगा कि अमित सर उसके दर्द को समझता हैं, उनकी ज़रूरतों को जानते हैं, और उसे फिर से खुश देखना चाहते हैं। ये सब उसे प्यार का एहसास दिला रहा था, एक ऐसा एहसास जिसकी उसके जीवन में सालों से कमी थी।

अमित सर ने साक्षी के मन में एक विश्वास पैदा कर दिया था कि वो उसके लिए सही इंसान हैं, एक ऐसा सहारा जिसकी उसे ज़रूरत है। साक्षी को ये सब अच्छा लगने लगा था, और वो अमित के इस झूठे दिखावे पर पूरी तरह इंप्रेस हो चुकी थीं। उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि ये सब एक गहरे और खतरनाक जाल का हिस्सा था, जिसका मक़सद सिर्फ़ उसका नाजायज़ फ़ायदा उठाना था।

अमित का जाल अब साक्षी को पूरी तरह से घेर रहा था।

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### जाल में फँसती साक्षी: पर राज अनजाना

अमित सर का बनाया जाल अब साक्षी को धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा था। उनकी खालीपन और सालों से ना मिला ध्यान, अमित की मीठी बातों और दिखावटी सहानुभूति में डूब रहा था। साक्षी को लगने लगा था कि अमित ही वो इंसान है जो उसे समझता है, उनकी परवाह करता है। उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि ये सब एक गहरे और गंदे खेल का हिस्सा था, जहाँ अमित का एक ही मक़सद था – उसे बहकाना और नाजायज़ फ़ायदा उठाना।

अमित सर हर दिन अपनी चाल को और पुख्ता कर रहा था। वो जानता था कि साक्षी को सीधे-सीधे बहकाना मुश्किल होगा, इसलिए उसने emotional जुड़ाव का रास्ता चुना।

एक शाम, स्कूल के बाद, साक्षी स्टाफ रूम से निकल रही थीं। बाहर हल्की फुहार पड़ रही थी।

अमित सर (उसके पीछे आते हुए): "मैम, आप फिर भीग जाएँगी। लाइए मैं आपको अपनी छतरी दे दूँ।"

साक्षी: "अरे नहीं अमित सर, उसकी ज़रूरत नहीं।"

अमित: "प्लीज़ साक्षी मैम आप मुझे sir ना बुलाया करे "

अमित सर (छतरी खोलते हुए, उसके ऊपर कर देते हैं): "कैसी बात करती हैं मैम! आपकी तबीयत बिगड़ गई तो? आप अपना ख्याल नहीं रखतीं, पर मुझे तो फ़िक्र होती है ना।"

वो छतरी साक्षी के ऊपर करके खुद बारिश में भीगते हुए उसके साथ चलने लगा। साक्षी को ये देखकर अजीब सा अहसास हुआ। कोई उसके लिए इतना क्यों करेगा? उसके पति के जाने के बाद किसी ने उसे इतनी छोटी सी बात के लिए भी इतनी परवाह नहीं दिखाई थी।

साक्षी (मन में): "कितने अच्छा हैं अमित। आजकल कौन इतना ख्याल रखता है किसी का?"

अगले कुछ दिनों में अमित ने अपनी कोशिशें और तेज़ कर दीं।
उसने साक्षी का फ़ोन नंबर ले लिया, और वो साक्षी को फ़ोन पर मैसेज भेजने लगा, कभी स्कूल के काम को लेकर, कभी बस यूँ ही उसका हाल-चाल पूछने के लिए।

मैसेज (अमित): "मैम, आज स्कूल में आपका लेक्चर बहुत शानदार था। बच्चों को मैथ्स इतनी आसानी से कोई नहीं समझा सकता।"
मैसेज (अमित): "मैम, मुझे रात को नींद नहीं आई। आपकी आँखों में आज उदासी देखी थी, सोचा सब ठीक तो है ना?"

साक्षी को ये मैसेज पहले तो अजीब लगे, पर धीरे-धीरे वो इनका इंतज़ार करने लगीं। उसे लगा, जैसे कोई उसके जीवन में रौशनी भर रहा हो। उसके एकाकीपन में ये मैसेज एक सहारा बनने लगे। वो रिप्लाई भी करने लगी।

एक दिन, अमित सर ने साक्षी को स्टाफ रूम में एक कप कॉफी ऑफर की।

अमित सर: "मैम, थोड़ी थकान लग रही है आपको। ये कॉफ़ी पीजिए, मूड फ्रेश हो जाएगा।"

साक्षी (मुस्कुराते हुए): "अमित, आप तो बहुत ख्याल रखते हैं मेरा। थैंक यू।"

अमित सर (आँखों में देखकर, हल्की सी मुस्कान के साथ): "आपके लिए तो कुछ भी मैम। आप बस खुश रहिए।"

उसने कॉफी का कप साक्षी के हाथों में दिया और उनकी उंगलियों को हल्के से छू लिया। इस बार साक्षी ने अपना हाथ नहीं खींचा। एक पल के लिए दोनों की नज़रें मिलीं, और साक्षी को लगा जैसे अमित की आँखों में एक अजीब सी चमक है, जो उसे अपनी ओर खींच रही है। उसे महसूस हुआ कि ये सिर्फ़ दोस्ती से बढ़कर है, पर वो इस फीलिंग को कोई नाम नहीं दे पा रही थीं।

साक्षी को अमित की ये सारी बातें और उसका ध्यान बेहद अच्छा लगने लगा था। उसका दिमाग ये जानता था कि ये सब 'कुछ ज़्यादा' हो रहा है, पर उसका दिल, जो सालों से प्यार और attention के लिए तरस रहा था, इस सब पर विश्वास करने लगा था। अमित सर की हर हरकत, हर शब्द, साक्षी के मन में उसके लिए एक सकारात्मक छवि बना रहा था। वो धीरे-धीरे अमित के मीठे जाल में फँसती जा रही थीं, उसे लग रहा था कि अमित ही वो इंसान है जो उसके जीवन में फिर से खुशियाँ ला सकता है।

इस सबके बीच, राज को इसकी कोई भनक नहीं थी। वो अपनी माँ के लिए बढ़ रही अपनी अजीब भावनाओं से ही जूझ रहा था। उसे पता नहीं था कि जिस माँ के लिए वो इतना परेशान है, वो अनजाने में किसी और के षड्यंत्र का शिकार हो रही है। क्या राज इस सच से पर्दा उठा पाएगा, या अमित सर अपने इरादों में कामयाब हो जाएँगे?
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### जाल और गहरा: साक्षी का बहकाव

अमित अब अपनी चालों में और तेज़ हो गया था। उसके दिमाग में एक ही लक्ष्य था: साक्षी को बहकाना और उसका नाजायज़ फ़ायदा उठाना, और वह इसमें कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। साक्षी का गहरा अकेलापन और भावनात्मक ज़रूरतें अमित के लिए सबसे बड़ा हथियार थीं, और वह हर दिन इस बात को पुख्ता कर रहा था कि साक्षी उसके बिना अधूरी हैं, उसे अमित के सहारे की ज़रूरत है।

स्टाफ रूम में: चाय और स्पर्श का जाल
एक शुक्रवार की शाम, स्कूल में एक लंबी स्पोर्ट्स मीटिंग थी। मीटिंग इतनी लंबी खिंची कि जब ख़त्म हुई, तो काफ़ी देर हो चुकी थी। स्टाफ रूम में अब साक्षी और अमित ही आख़िरी लोग बचे थे। बाहर हल्की-हल्की ठंड बढ़ रही थी और अँधेरा गहरा रहा था।

अमित (सहानुभूति दिखाते हुए, अपनी आवाज़ में चिंता घोलते हुए): "मैम, आज तो बहुत देर हो गई। मुझे लगा था मीटिंग जल्दी ख़त्म हो जाएगी।" उसकी आवाज़ ऐसी थी, जैसे वह साक्षी की थकान को महसूस कर रहा हो।

साक्षी (थकी हुई आवाज़ में, कंधे झुकाकर): "हाँ अमित, आज तो सर दर्द होने लगा है। इतनी देर तक बैठना..."

अमित (तुरंत उसके पास आते हुए, आवाज़ में गहरी फ़िक्र): "ओह, ऐसा है क्या? लाइए, मैं आपको थोड़ी चाय या कॉफ़ी बना दूँ? स्टाफ रूम में सब सामान है। आपको अभी कुछ गरम मिल जाए तो अच्छा लगेगा।"

साक्षी को ये सुनकर एक अजीब सा सुकून मिला। उसे लगा, अमित सच में उनकी कितनी फ़िक्र करता है। सालों बाद किसी ने उनके लिए इतनी छोटी सी बात पर भी इतनी परवाह दिखाई थी। "नहीं-नहीं अमित, रहने दीजिए। आप भी थक गए होंगे।" साक्षी ने हल्की सी झिझक दिखाई, पर उसके मन में चाय पीने की इच्छा थी।

अमित (मुस्कुराते हुए, उसके हाथ को हल्के से पकड़ते हुए, जैसे उसे सहारा दे रहा हो): "थकान नहीं मैम, आपकी सेहत ज़्यादा ज़रूरी है। आप बैठिए, मैं बस दो मिनट में लाता हूँ।" अमित ने साक्षी को बैठने का इशारा किया और खुद किचन की ओर बढ़ गया।

साक्षी वहीं बैठ गईं, उनके दिल को ये छोटी सी परवाह एक गहरा सुकून दे रही थी। अमित चाय लेकर आया और एक कप साक्षी को दिया। कप से उठती गरम भाप और चाय की महक ने साक्षी को थोड़ा बेहतर महसूस कराया।

अमित: "ये लीजिए मैम, थोड़ी राहत मिलेगी।"

साक्षी: "शुक्रिया, आप सच में बहुत अच्छे हैं।"

अमित (उसके पास वाली कुर्सी पर बैठते हुए, आवाज़ में नर्म, लगभग फुसफुसाते हुए): "अच्छाई-बुराई क्या मैम। बस, आपको खुश देखना चाहता हूँ। आपकी मुस्कान में जो जादू है ना, वो मुझे बहुत पसंद है।"

उसने धीरे से साक्षी का हाथ थामा और अपने हाथ में ले लिया। इस बार साक्षी ने कोई विरोध नहीं किया। उसके अंदर की सारी झिझक, सारी सीमाएँ, अमित के इस नरम और आश्वस्त करने वाले स्पर्श के आगे पिघल रही थीं। अमित ने उसके हाथ को हल्के से सहलाया। साक्षी की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं। अमित ने साक्षी का हाथ अपने होठों तक ले जाकर हल्के से चूमा। साक्षी को ये स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था, एक ऐसी गर्माहट जो उसने सालों से महसूस नहीं की थी। यह स्पर्श उसके अकेलेपन पर एक मरहम की तरह था।

अमित (धीमी, बहकाने वाली आवाज़ में, उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए): "साक्षी, आपकी आँखें कितनी गहरी हैं। इनमें कितना कुछ छुपा है। मुझे लगता है, मैं आपकी हर बात समझ सकता हूँ।"

साक्षी के मन में एक अजीब सी सिहरन हुई। "इसने मुझे पहली बार मेरे नाम से बोला है।" यह विचार उसके दिमाग में कौंधा। यह एक निजीकरण था, जो अमित के जाल को और मजबूत कर रहा था।

अमित ने अपने अंगूठे से साक्षी के हाथ की हथेली पर धीरे-धीरे फेरना शुरू कर दिया। साक्षी को अपने शरीर में एक अजीब सी सिहरन महसूस हुई, जो उसके पूरे शरीर में फैल गई। उसके गालों पर हल्की लाली फैल गई।

साक्षी (धीमे स्वर में, आवाज़ में हल्की घबराहट): "अमित..."

अमित (उसे रोकते हुए, अपनी उंगली उसके होठों पर रखते हुए): "शश्श... बस कुछ देर ऐसे ही रहने दीजिए। आप इतना बोझ उठाती हैं, इतनी जिम्मेदारियाँ निभाती हैं, कभी-कभी तो आपको भी सहारे की ज़रूरत होती है ना? मुझे अपना सहारा बनने दीजिए।

अमित ने धीरे से अपना दूसरा हाथ साक्षी के कंधे पर रखा और उसे अपने करीब खींचने लगे। साक्षी ने हल्की सी साँस ली, पर हटी नहीं। उसके अंदर का खालीपन और प्यार की भूख इतनी प्रबल थी कि वो अमित के इस छलावे में पूरी तरह डूबती जा रही थीं। अमित ने धीरे से अपना चेहरा साक्षी के करीब लाया। साक्षी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे पता था कि ये क्या हो रहा है, पर वो खुद को रोक नहीं पा रही थीं।

अमित ने साक्षी के गले पर हल्के से किस किया, फिर उसके कान के पास फुसफुसाए, "आप बहुत ख़ूबसूरत हैं साक्षी। काश आप जानतीं कि आप कितनी अनमोल हैं।" साक्षी का शरीर शिथिल पड़ गया था। उसे ये सब अजीब लग रहा था, पर साथ ही एक अनजाना सुख भी मिल रहा था। अमित ने धीरे से अपना एक हाथ साक्षी की कमर पर रखा और उसे और करीब खींच लिया, उसको को अपने से सटा लिया।

वो ख़ुद को साक्षी के सामने ले गया और उसकी प्यारी आखों में डूबने लगा, धीरे से अपने लिप्स को साक्षी के लिप्स पे रख दिया, ये उनका पहला किस था।
साक्षी ने अपनी आँखें बंद कर लीं।
उनकी आत्मा चीख रही थी — "रुको!"
लेकिन उनका शरीर… बोल रहा था — "अब मत रोको।"

साक्षी को ये इतना अच्छा लग रहा था कि वो मना ही ना कर सकी, वो ख़ुद को भूल चुकी थी।

अमित साक्षी का कंट्रोल ले रहा था। वो साक्षी को वही चोद सकता था क्यों की अभी ये वक्त पे सब लोग निकल चुके थे। पर वो ऐसा करता नहीं क्यों की उसके मन में कुछ और बड़ा प्लान चल रहा था।

उनकी लिप किस अब बहुत passionate हो गई थी,
जैसे ही अमित अपनी जीभ साक्षी के मुंह में डाल देता है, साक्षी का शरीर ठिठक गया।
साक्षी को जैसे शॉक ही लगता है। वो अपना कंट्रोल खो देती है और अमित की जीभ को ज़ोर से suck करने लगती है
ऐसा करने से अमित जैसे आसमान में उड़ रहा था।
लेकिन फिर धीरे-धीरे, साक्षी भी उसी तरह जवाब देने लगीं।

जैसे वो किसी पुरानी याद को फिर से सहेज रही हों। जैसे वो किसी पुराने प्यार को ढूँढ़ रही हों। लेकिन ये प्यार नहीं था…
ये एक नए शिकार का शुरुआती पल था।
धीरे-धीरे वो अपना हाथ साक्षी के mammo पे रख देता है और धीरे-धीरे उनको दबाना चालू करता है।
ये सब महसूस करके साक्षी पागल हो जाती है।
फिर धीरे से साक्षी भी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देती है & वो भी ज़ोर से suck करता है।
दोनों एकदूसरे का थूक पीने लगते है

दोनों के शरीर एक-दूसरे से चिपक गए। दोनों एक दूसरे में hug करते हुए किस कर रहे थे। साक्षी के बदन में एक अजीब सी ऊर्जा/आग दौड़ रही थी। एक ऐसी ऊर्जा, जिसे साक्षी ने बहुत सालों बाद महसूस किया था। सालों से दबा हुआ अकेलापन और शारीरिक इच्छाएँ अब जागृत हो रही थीं। उसे लग रहा था जैसे वो एक ऐसे भँवर में फँस रही हैं जहाँ से निकलना मुश्किल है, पर वो निकलना भी नहीं चाहती थीं। अमित ने देखा कि साक्षी पूरी तरह उसके काबू में आ रही हैं।

किस इतना डीप हो जाती है, दोनों को सांस लेने में दिक्कत हो जाती है।

फिर अचानक साक्षी ने किस तोड़ दिया।
उसकी आँखें खुलीं, और वो खुद को समझ नहीं पा रही थीं। उसके चेहरे पर शर्म, गुस्सा था

साक्षी(थोड़ा हाँफते हुए, आवाज़ में काँप): "ये… ये गलत है, अमित सर। मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं एक माँ हूँ… एक विधवा महिला हूँ…, मैं ये सब कैसे कर सकती हूँ?"

लेकिन उसकी आवाज़ में वो आत्मविश्वास नहीं था। वो खुद को समझाना चाह रही थीं, लेकिन उनका शरीर उनके खिलाफ़ बोल रहा था।
अमित ने साक्षी की इस कमज़ोरी को भाँप लिया। उसे पता था कि ये सिर्फ़ दिखावा है, प्रतिरोध का आख़िरी झोंका। उसने एक धीमी, मोहक मुस्कान दी और साक्षी के कान के पास झुककर फुसफुसाया।

अमित (मुस्कुराते हुए, उनके कान में, आवाज़ में नशा घोलते हुए): "आप एक खूबसूरत, हॉट और सेक्सी लेडी हैं, साक्षी जी। एक ऐसी लेडी, जिसे भीतर से जलते देखकर मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। आपके अंदर एक आग है, जिसे बाहर आने दीजिए।" उसके शब्द किसी ज़हर की तरह साक्षी के कानों में घुल रहे थे, जो उनके अंदर की दबी इच्छाओं को और भड़का रहे थे।


साक्षी ने अपना मुँह छुड़ाया, लेकिन वो अमित से दूर नहीं गईं।
वो खड़ी रहीं…
कुछ नहीं कह पाईं।
कुछ नहीं कर पाईं।

साक्षी ने अपना मुँह छुड़ाया, लेकिन वह अमित से दूर नहीं गईं। उनके पैर ज़मीन से चिपके हुए थे, उनका शरीर हिल नहीं पा रहा था। वो वहीं खड़ी रहीं… कुछ नहीं कह पाईं। कुछ नहीं कर पाईं। उनकी आँखें अमित की आँखों में उलझी हुई थीं, और वह अमित के नियंत्रण में आती जा रही थीं।

अमित ने उसे अपनी ओर देखा।
उसको पता था…
वो उसके अंदर की खालीपन को समझ गया है।
वो उसे अपने जाल में लगभग फंसा चुका है।


अमित (आवाज़ में जीत का भाव, पर ऊपर से शांत): "चलिए मैम, मैं आपको घर छोड़ देता हूँ। इतनी रात को आपको अकेले नहीं जाना चाहिए।" यह एक प्रपोजल नहीं, बल्कि एक आदेश था, जिसे साक्षी ने बिना विरोध के मान लिया।


साक्षी ने सिर हिलाया।
वो कुछ नहीं बोल पाईं।
उसके अंदर एक तूफ़ान चल रहा था… शर्मिंदगी, डर, अपराध बोध, और एक अजीब सी, बेकाबू इच्छा—जो उन्हें बहा ले जाने को तैयार था।
उसका दिमाग सुन्न था, और शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना थी, जो उसे अमित की ओर खींच रही थी।



वो अमित के पीछे-पीछे चल दीं, जैसे कोई सम्मोहित व्यक्ति चलता है। अमित की बाइक पर बैठ गईं, और जैसे ही वह अमित के करीब बैठीं, उसकी गर्मी उसके शरीर में घुल गई। उनके भीतर की एक बात जाग रही थी… एक ऐसी बात, जिसे वो बहुत सालों से दबाए बैठी थीं—शारीरिक नज़दीकी और प्यार की तीव्र भूख।


जैसे ही वो बाइक पर बैठीं, उसे लगा —
क्या वो वाकई वही लड़की हैं, जो कभी राजदीप के साथ प्यार की तलाश में थीं?
क्या वो वाकई वही महिला हैं, जो अपने बच्चों के लिए जी रही थीं?

उसे ये सब सोच के ख़ुद के ऊपर बहुत शर्म और गुस्सा आने लगा, अपनी इस कमज़ोरी पर जो अमित के सामने उजागर हो गई थी।

वो अमित के पीछे बैठी थीं, लेकिन उनके दिल में राजदीप की यादें थीं।
उस आदमी की याद, जिसने उन्हें प्यार किया था…
जिसके स्पर्श में वो खुद को पाती थीं।

और अमित के स्पर्श में वो खुद को ढूँढ़ने की कोशिश कर रही थीं।
क्योंकि राजदीप के बाद…
उनके अंदर कुछ बचा ही नहीं था।
सिर्फ़ खालीपन था…
और आज उस खालीपन में एक छोटी सी आग जल उठी थी, जिसे अमित ने अपनी चालबाज़ी से भड़काया था।
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बाइक की सवारी: रोमांस

जब अमित साक्षी को अपने घर ले जाने के लिए राज़ी कर चुका था, तो उसने अपनी बाइक निकालने की पेशकश की, जबकि कैब का विकल्प भी था। अमित जानता था कि बाइक पर साक्षी उसके और क़रीब आएगी, और उसे अपने इरादों को आगे बढ़ाने का एक और मौक़ा मिलेगा। साक्षी उसके साथ बाइक पर बैठ गईं, उसके मन में एक अजीब सा रोमांच था।

अमित ने अपनी बाइक स्टार्ट की। दिल्ली की सर्द शाम में हवा तेज़ी से चल रही थी। साक्षी पीछे बैठीं, उसने अमित के कंधे पर हल्के से हाथ रखा हुआ था। अमित ने धीमी गति से शुरुआत की, कुछ ही दूर चलने पर, अमित ने जानबूझकर तेज़ ब्रेक मारा। साक्षी को इसका अंदाज़ा नहीं था, और वो झटके से आगे की ओर झुकीं। उसके नरम स्तन अमित की पीठ से जाकर टकराए। साक्षी थोड़ी असहज हुईं और झट से सीधी हो गईं।

अमित (आवाज़ में हल्की हँसी और बनावटी फ़िक्र): "अरे मैम! ध्यान से! मुझे लगा सामने कुछ आ गया था। आप ना, मुझे थोड़ा टाइट पकड़ लीजिए, वरना गिर जाएँगी।" उसकी आवाज़ में एक छिपी हुई शरारत थी।

साक्षी का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसे ये सब थोड़ा अजीब लगा, पर अमित की आवाज़ में जो फ़िक्र थी, उसे वो नकार नहीं पाईं। उसने अमित की कमर को पकड़ लिया। अमित को साक्षी के mamme अपनी पीठ पर महसूस हो रहे थे, और उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान फैल गई।

अमित ने अब अपनी चाल बदल दी। उसने बार-बार, बेवजह हल्के-हल्के ब्रेक मारने शुरू कर दिए। हर बार साक्षी आगे की ओर झुकतीं, और उसके मुलायम स्तन अमित की पीठ से फिर से टकराते। हर बार साक्षी को एक अजीब सी सिहरन होती। उनका दिल ज़ोरों से धड़कने लगता। अमित ये सब महसूस कर रहा था और उसके चेहरे पर एक छिपी हुई जीत तैर रही थी।

अमित (एक और बार ब्रेक मारने के बाद, आवाज़ में थोड़ा शरारत भरा अंदाज़): "मैम, मैंने आपसे कहा था ना, थोड़ा टाइट पकड़िए। आप इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हैं!"

साक्षी अब काफ़ी असहज महसूस कर रही थीं, पर साथ ही उसके अंदर एक अनजानी उत्तेजना भी जाग रही थी। सालों बाद किसी मर्द का स्पर्श, वो भी इतनी नज़दीकी से, उसके अंदर दबी हुई इच्छाओं को जगा रहा था। उन्होंने अमित की कमर को और कसकर पकड़ लिया, इस बार थोड़ा झुककर। उसके mamme अब directly अब अमित की पीठ से लगातार छू रहे

अमित को समझ आ गया कि उसका दांव सही पड़ रहा है। उसने अब जानबूझकर मोड़ों पर थोड़ा तेज़ी से बाइक मोड़ना शुरू कर दिया, ताकि साक्षी को और ज़्यादा झुकना पड़े और उसके शरीर का दबाव उसकी पीठ पर बढ़े। साक्षी हर मोड़ पर अमित से चिपक जातीं। उसे एक अजीब सी गर्मजोशी और उत्तेजना महसूस हो रही थी।

अमित (धीरे से, जैसे सिर्फ़ उन्हीं के लिए हो): "मैम, डरिए मत। मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगा। बस मुझ पर भरोसा रखिए।"

ये शब्द, साथ में अमित की ये हरकत साक्षी का दिमाग हिला रही थी। वो बहक रही थीं। उसे अमित का करीब होना अच्छा लग रहा था, एक ऐसा एहसास जो उसे सालों से नहीं मिला था।

अमित को समझ आ गया कि उसका दांव सही पड़ रहा है। उसने अब जानबूझकर मोड़ों पर थोड़ा तेज़ी से बाइक मोड़ना शुरू कर दिया, ताकि साक्षी को और ज़्यादा झुकना पड़े और उसके mamme का दबाव उसकी पीठ पर बढ़े। साक्षी हर मोड़ पर अमित से चिपक जातीं। उसे एक अजीब सी गर्मजोशी और उत्तेजना महसूस हो रही थी।

अमित अब साक्षी को पूरी तरह से बहकाने में लगा था। वह हर दिन साक्षी को ये महसूस करा रहा था कि उनके बीच एक खास रिश्ता बन रहा है, एक ऐसा रिश्ता जो प्यार और समझ पर आधारित है। साक्षी, अपने अकेलेपन के चलते, उसके इस छलावे को सच मानती जा रही थीं। उसे अमित के स्पर्श और उसकी बातों से अब आराम और उत्तेजना दोनों मिलने लगे थे। साक्षी धीरे-धीरे उसके नाजायज़ इरादों के जाल में गहराई से फँसती जा रही थीं, उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि ये सब उसके लिए कितना खतरनाक साबित होने वाला है।

इस सबके बीच, राज को अपनी माँ की ज़िंदगी में आ रहे इस नए बदलाव की कोई भनक नहीं थी। उसे अमित की फ़ितरत का अंदाज़ा था, पर उसे ये नहीं पता था कि उसकी अपनी माँ ही अब उसके जाल में फँसती जा रही हैं। क्या राज को कभी ये सच पता चलेगा?
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### फ़िल्म की तारीख: एक नए जाल की शुरुआत

अमित को अब अपनी जीत साफ़ नज़र आ रही थी। साक्षी उसके झूठे प्यार और अटेंशन में पूरी तरह से डूब चुकी थीं। उसका अकेलापन और भावनात्मक ज़रूरतें अमित के लिए सबसे बड़ा हथियार थीं। अब वक़्त आ गया था अपने प्लान को एक कदम और आगे बढ़ाने का। अमित ने साक्षी को एक फ़िल्म देखने के लिए बुलाया।

एक दोपहर, स्कूल के बाद, स्टाफ रूम लगभग खाली था। साक्षी अपनी कुछ कॉपीज़ समेट रही थीं, जब अमित ने धीरे से दरवाज़े पर आकर उन्हें रोका। उसकी आवाज़ में एक ऐसी गहराई थी जो साक्षी को अपनी ओर खींचती थी।

अमित (आवाज़ में धीमी, बेहद आत्मीयता घोलते हुए): "साक्षी, मुझे आपसे कुछ कहना था... ज़रा प्राइवेट में।"

साक्षी का दिल एक पल के लिए धड़क उठा। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे उसे लगा अमित कुछ बहुत ख़ास कहने वाले हैं।

साक्षी: "हाँ अमित? कहिए।"

अमित: "मैम, मुझे लगता है आजकल आप बहुत तनाव में हैं। काम का बोझ, घर की ज़िम्मेदारियाँ... ये सब संभालते हुए आप ख़ुद का बिलकुल ध्यान नहीं रखतीं। आपकी आँखों में हमेशा एक उदासी दिखती है, और मुझे यह देखकर अच्छा नहीं लगता।" अमित के शब्दों में एक सच्ची परवाह का दिखावा था, जो साक्षी के अकेले दिल को छू गया।

साक्षी ने चुपचाप सुना। उसे अमित की बात सच लगी। वह वाकई अकेली और थकी हुई थी।

अमित: "तो मैंने सोचा... क्यों न एक शाम हम थोड़ा रिलैक्स करें? एक नई फ़िल्म लगी है, मैंने सुना है बहुत अच्छी है। क्या आप मेरे साथ चलना चाहेंगी? सिर्फ़ दो पल अपने लिए, दुनिया से दूर।" उसकी आवाज़ में एक नर्म गुज़ारिश थी, जैसे वह साक्षी के भले के लिए ही यह सब कर रहा हो पर वो अंदर के बहुत चालाक था ।

साक्षी एक पल को हैरान रह गईं। फ़िल्म? किसी मर्द के साथ बाहर जाना? पति के जाने के बाद उसने ऐसा कुछ नहीं किया था। उसका संस्कारी मन, जो सालों से समाज के दायरे में बँधा था, तुरंत विरोध पर उतर आया। यह उसके लिए बहुत बड़ा कदम था।

साक्षी (थोड़ा झिझकते हुए, अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक करते हुए): "अमित, मैं... मैं कैसे? मेरा मतलब... मैं बाहर नहीं जाती ऐसे। आप समझते हैं ना मेरी सिचुएशन।"

अमित (उनके हाथ को हल्का सा छूते हुए, उसकी उंगलियों को सहलाते हुए): "अरे मैम, इसमें क्या बड़ी बात है? बस एक फ़िल्म ही तो है। और मैं हूँ ना आपके साथ। आपको किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं। मैं आपका पूरा ध्यान रखूँगा।" उसने अपनी आवाज़ और नर्म कर ली, उसमें एक अजीब सा सम्मोहन घोल दिया। "बस एक दोस्त के तौर पर नहीं, बल्कि एक ऐसे शख़्स के तौर पर, जो सच में आपको खुश देखना चाहता है, मैं चाहता हूँ कि आप थोड़ी ख़ुश रहें, साक्षी। यह आपका हक़ है।"

अमित के आश्वस्त करने वाले शब्दों, उसके स्पर्श, और उसकी आँखों में दिख रही गहरी चाहत ने साक्षी की बची-खुची हिचकिचाहट को कम कर दिया। उसके दिल में एक अजीब सी चाहत जाग उठी—थोड़ी देर के लिए ही सही, इस अकेलेपन से बाहर निकलने की, खुद को किसी के लिए ख़ास महसूस करने की।

साक्षी (धीमे स्वर में, लगभग फुसफुसाते हुए): "ठीक है अमित... पर... मैं घर पर क्या कहूँगी? राज और नेहा..." उसकी आवाज़ में अब भी थोड़ी चिंता थी।

अमित (मुस्कुराते हुए, जैसे उसे हर जवाब पता हो): "आप चिंता मत करिए। मैं आपके लिए शाम को एक कैब भेज दूँगा। आप बच्चों को बता देना कि किसी दोस्त से मिलने जा रही हो, जो हॉस्पिटल में है, और आपको शायद रात को थोड़ी देर वहीं रुकना पड़े। कोई शक नहीं करेगा। और राज तो वैसे भी आपकी हर बात पर भरोसा करता है।"


साक्षी को ये आइडिया सही लगा। उसके अंदर का खालीपन अब इतनी तीव्रता से महसूस हो रहा था कि वह उसे इस मौके को गँवाने नहीं दे रहा था, भले ही इसके लिए उसे झूठ बोलना पड़े। अमित के मीठे शब्दों और उसके विश्वास ने साक्षी को पूरी तरह से नियंत्रित कर लिया था।
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