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A
Update 39
हिचकोले खाती बस मे सभी जाग गए. बलबीर के कहने के मुताबिक बस ड्राइवर ने मौका संभल लिया. और बस को धीरे धीरे एक जगह पर रोक दिया. बस रुकी तब बारी बारी सभी उतरने लगे. और सभी उतारते ही बस के उस आगे वाले पंचर टायर को देख कर मुँह सिकोड रहे थे.
डॉ : अरे ड्राइवर उस्ताद कितनी देर लगेगी टायर बदली करने मे???
ड्राइवर : ज्यादा वक्त नहीं लगेगा साहब. बस आप लोग थोड़ी देर बाते कीजिये. मै लगा देता हु.
लम्बे वक्त बैठे रहने के कारन कोई तो रोड़ के किनारे टॉयलेट कर रहा था तो कोई अंगड़ाई ले रहा था. एक ड्राइवर दूसरे ड्राइवर की पक्का मदद करता है. बलबीर तुरंत ही ड्राइवर की मदद मे लग गया. कोमल को भी टॉयलेट जाना था. पर हर तरफ तो मर्द ही थे. वो इधर उधर देख रही थी. तभि उसकी मदद दाई माँ ने की.
दाई माँ : रे सारे एक तरफ जाओ. इतउ औरतन ने जाने दो.
दाई माँ के कहने पर एक साइड खाली हो गई. कोमल दाई माँ को देख कर मुस्कुराने लगी. और दाई माँ कोमल के पास आई.
दाई माँ : (स्माइल) चल री छोरी. तोए मुतास आय रही होंगी.
(चल लड़की. तुझे पेशाब आ रही होंगी )
दाई माँ और कोमल सुमशान सडक पर अँधेरे मे ही चलने लगे. दाई माँ का तो डर से कोई मतलब नहीं. पर कोमल को भी बिलकुल डर नहीं लग रहा था. चलते चलते दोनों बाते भी कर रहे थे.
कोमल : माँ... इस बार तो मै तुम्हे अपने साथ लेकर ही जाउंगी.
दाई माँ : हे रिन दे बावड़ी. मेय जैसी कपालन का करेगी वाह ठोरी. (हे रहने दे पगली. मेरे जैसी कपालन क्या करेंगी वहां)
कोमल : माँ... बकवास नहीं. या तो मै तुम्हारे साथ चलूंगी. या तो आप मेरे साथ. अब बोलो कहा चलोगी.
कोमल ने तो मानो अल्टीमेटम ही दे दिया. वही दाई माँ अपने घाघरे को ऊपर किए रोड के किनारे ही बैठ गई. अँधेरे मे इतना डीप तो नहीं दिख रहा था. लेकिन सररर.... सी आवाज आई तो कोमल को पता चल गया की दाई माँ मूत रही है. कोमल को हसीं आ गई. और वो हस पड़ी.
कोमल : (स्माइल) माँ..... आप तो पुरे बेशरम हो.
दाई माँ : हे यहाँ को देखेगो. बैठजा यही ठोरी. (हे यहाँ कौन देखेगा. यही बैठ जा)
कोमल भी बैठ गई. और वैसे ही मूतने लगी. कोमल को ऐसे किसी के साथ मूतने मे सरम भी आ रही थी. भले ही वो दाई माँ भी क्यों ना हो. पर उसे मझा भी आ रहा था. कोमल ने गर्दन घुमाई और दाई माँ की तरफ देखा.
कोमल : (स्माइल) माँ मै आप की भी फ्लाइट की टिकिट बुक कर रही हु.
कोमल मूत ते हुए ही आगे के इरादे बता रही थी. वही दाई माँ खड़ी हो गई.
दाई माँ : हे रिन दे. मै हवाई जहाज ते ना जाऊ. मोए डर लगेगो.
(हे रहने दे. मै हवाई जहाज से नहीं जाउंगी. मुजे डर लगेगा.
कोमल भी खड़ी हुई और उसे जोरो की हसीं आई.
कोमल : (हस्ते हुए) माँ तुम्हे भी डर लगता है???
दाई माँ ने घाघरे के किसी कोने से बीड़ी का बंडल और माचिस निकली. एक बीड़ी जलाते दाँत मे दबाते हुए अपने इरादे जता दिए.
दाई माँ : रेलगाड़ी ते चलेगी तो ठीक है. बरना(वरना) रीन दे.
कोमल को कैसे भी मना नहीं करती. भले देर से पहोचे. पर दाई माँ साथ आए तो.
कोमल : (स्माइल) ठीक है. तो मै रिजर्वेशन कर देती हु सुबह ही.
दाई माँ भी इस बार बीड़ी फूकते मुस्कुराने लगी. पर कोमल का ध्यान अब जाकर बीड़ी पर गया. दाई माँ ने मूतने के बाद हाथ भी नहीं धोए.
कोमल : माँ..... कम से कम हाथ तो धो लेती.
दाई माँ : हे मै कपालन हु. मोए कछु फरक ना परे.
(हे मै कपालन हु. मुजे कोई फर्क नहीं पड़ता.)
कोमल ने तुरंत दाई माँ की बीड़ी उनके मुँह से छीन ली. और कोमल बीड़ी को अपने होठो से लगाए एक कश मार देती है.
कोमल : और मै कपालन की बेटी.
दोनों एक साथ हस पड़े. कोमल ने भी बिना हाथ धोए दाई माँ के जैसे बीड़ी पी. लेकिन दाई माँ समझ गई की कोमल पहले भी बीड़ी पी चुकी है. क्यों की कोमल को बिलकुल खांसी नहीं आई. वो दोनों चलते हुए फिर बस के पास पहोच गए. वहां बलबीर बस का टायर लगा रहा था. पाना से टायर के नट कश रहा था. और ड्राइवर उसके पास खड़ा था. कोमल और दाई माँ को आते देख डॉ रुस्तम उनकी तरफ बढा.
दाई माँ : रे और कितनो टेम लगेगा?? ( और कितना टाइम लगेगा??)
डॉ : बस हो गया माई.
डॉ रूसतम ने कोमल की तरफ देखा. और मुस्कुरा दिए. वो समझ गए की कोमल कुछ पूछना चाहती है. मगर बात कहा से स्टार्ट करें.
डॉ : (स्माइल) कोमल... आप जो पूछना चाहती हो. वो सीधा पूछो. किसी बात के शारुआत का इंतजार करने की जरुरत नहीं है.
कोमल : एक डायन और कितना खतरनाक हो सकती है. मतलब की वो कितना निचे तक गिर सकती है.
दाई माँ : रे बता ज्या ने. (बता इसे.)
डॉ रुस्तम बोलने ही वाले थे की बलबीर की आवाज ने बिच मे रोक दिया.
बलबीर : सारे बैठो अपनी अपनी जगह पर.
डॉ रुस्तम इस बार हस दिए. और उन्होंने बस की तरफ हिशारा किया. सभी लाइन लगाकर बारी बारी बस मे चढने लगे. बलबीर बस के डोर की तरफ ही खड़ा था. डॉ रुस्तम फिर दाई माँ बस मे चढ़े. उनके पीछे कोमल थी. जब कोमल के चढने की बारी आई तो उसने एक शारारत की. उसने बलबीर के गाल पर एक चुम्बन लिया. और झट से बस मे चढ़ गई. कुछ लोग अभी बस मे चढ़ना बाकि थे.
जिसमे सतीश वगेरा भी थे. बलबीर तो शर्म से पानी पानी हो गया. वही सतीश वगेरा तो हस पड़े. सभी बस मे बैठ गए. सबसे आखिर मे बलबीर चढ़ा. उसने देखा की कोमल दाई माँ वाली शीट पर नहीं अपनी शीट पर है. मतलब की उसकी ही बगल वाली शीट पर. बलवीर वही रुक गया तो दाई माँ ने उसे टोका.
दाई माँ : का हेगो??? (क्या हो गया??)
बलबीर ने बस ना मे सर हिलाया.
दाई माँ : तो फिर बैठ काए ना रो?? (तो फिर बैठ क्यों नहीं रहा??)
बलबीर कुछ बोला नहीं और सर निचे किए अपनी शीट की तरफ जाने लगा. पीछे सतीश और दो तीन लड़के मुँह दबाकर हसने लगे. अब बारी आई शीट पर बैठने की. लेकिन कोमल की शारारत तो रुक ही नहीं रही थी. उसने अपने गाल की तरफ हिशारा किया. मतलब की मुजे पप्पी दो. बलबीर ने मुँह सिकोड़ा. और ना मे सर हिलाया. कोमल कन्धा झटक कर सामने देखने लगी.
मतलब साफ था की पप्पी दो तो ही वो उसे उसकी शीट पर बैठने देगी. बलबीर घूम गया. और दाई माँ के पास पहोंचा.
दाई माँ : हे तू ज्या कहा आएगो. तू अपनी जगह बैठ. (तू यहाँ कहा आ गया. तू अपनी जगह बैठ)
पीछे सतीश एंड पार्टी हस पड़े. तो दाई माँ भी समझ गई की कोई शारारत बलबीर के साथ हो रही है. बलबीर बेचारा पीछे मुड़ा. और वापस कोमल के पास पहोंचा. अब उसके पास कोई चारा ही नहीं था. मगर जब बलबीर कोमल की तरफ झूका तो कोमल ने एकदम से फेस बलबीर की तरफ कर दिया. बलबीर जो किश कोमल के गाल पर देने वाला था. वो कोमल के लिप्स पर हो गई.
बलबीर एकदम से पीछे हुआ. और कोमल मुश्कुराती हलका सा सरमाती शारारत से खड़ी हुई और दाई माँ के पास जाकर उनकी बगल मे बैठ गई. उसके आते दाई माँ भी मुश्कुराने लगी. भले ही उन्हें पता ना हो. पर यह तो समझ गए की कोमल ने बलबीर के साथ कोई शारारत जरूर की है. बलबीर अपनी जगह बैठ गया.
और बस चल पड़ी. कविता कभी दाई माँ की तरफ देखती है. तो कभी डॉ रुस्तम की तरफ. डॉ रुस्तम समझ गए. और कोमल की तरफ घूम गए.
डॉ : एक डेढ़ घंटे मे पहोच जाएंगे.
कोमल : तो जल्दी बताइये ना. आखिर डायन और कितनी हद तक जा सकती है???
डॉ साहब ने कोमल को एक और कहानी सुनाई.
डॉ : बिहार छपरा मे एक लड़का रहता था. रवि. रवि यादव. बहोत ही गरीब परिवार का महेनत मजदूरी करने वाला गरीब 26 साल का लड़का था.
उसकी माँ रमा की उम्र कुछ 50 के आस पास ही थी. एक बड़ी बहन सपना 28 साल. जिसकी शादी की उम्र हो चुकी थी. पर शादी ही नहीं हो पा रही थी. पता नहीं क्या हो जाता की लड़की के लिए रिस्ता तो आता. उसे पसंद भी करते. पर अपने आप किसी ना किसी कारन से टूट जाता. इसके आलावा दो बहने और थी.
निशा 20 साल की और तनीषा 18 साल की. इसके आलावा एक भाई था विकास. जो 11 साल का था. मगर जब वो चार साल का था. तब से ही उसे कोई रोग लग गया. बीमारी क्या कुछ समझ नहीं आई. हाथ पाऊ मुड़ने लगे. जबड़ा मुड़ने लगा. जैसे लकवा मार गया हो. रवि के पिटा राजेश प्रसाद की मौत उस वक्त 10 साल पहले ही हुई थी. इसके आलावा उनकी एक बूढी दादी भी थी.
लोग उन्हें कुकू बुलाते थे. सायद वो 70 पार की होंगी. उनकी उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता था. रवि कभी इट भठे पार काम करता तो कभी दिन दहाड़ी पर. अपने परिवार को बचाने के लिए उसने बहोत महेनत की. लेकिन घर ऊपर आ ही नहीं पता था. घर मे कभी किसी को तो कभी किसी को बीमारी लगती ही रहती.
एक दिन अचानक से तनीषा की तबियत ख़राब होने लगी. उसको भी वही असर होने लगा. जो छोटे भाई विकास को उसकी चार साल की उम्र मे हुआ था. रवि और उसकी माँ रमा को समझ नहीं आया की उसे हुआ क्या. तनीषा के भी हाथ पाऊ अकड़ने लगे. मुँह का जबड़ा टेढ़ा होने लगा. रवि जो विकाश के साथ हुआ. वो तनीषा के साथ नहीं होने देना चाहता था.
इस लिए वो उसे तुरंत बिहार पटना के बड़े सरकारी होशपिटल मे ले गया. डॉक्टरों को भी समझ नहीं आ रहा था. इसी बिच रवि और बड़ी बहन सपना पैसो का इंतजाम करने के लिए अपने घर छपरा आए. और जब घर पहोचे तो उनका दिमाग़ घूम गया.
Update 39
हिचकोले खाती बस मे सभी जाग गए. बलबीर के कहने के मुताबिक बस ड्राइवर ने मौका संभल लिया. और बस को धीरे धीरे एक जगह पर रोक दिया. बस रुकी तब बारी बारी सभी उतरने लगे. और सभी उतारते ही बस के उस आगे वाले पंचर टायर को देख कर मुँह सिकोड रहे थे.
डॉ : अरे ड्राइवर उस्ताद कितनी देर लगेगी टायर बदली करने मे???
ड्राइवर : ज्यादा वक्त नहीं लगेगा साहब. बस आप लोग थोड़ी देर बाते कीजिये. मै लगा देता हु.
लम्बे वक्त बैठे रहने के कारन कोई तो रोड़ के किनारे टॉयलेट कर रहा था तो कोई अंगड़ाई ले रहा था. एक ड्राइवर दूसरे ड्राइवर की पक्का मदद करता है. बलबीर तुरंत ही ड्राइवर की मदद मे लग गया. कोमल को भी टॉयलेट जाना था. पर हर तरफ तो मर्द ही थे. वो इधर उधर देख रही थी. तभि उसकी मदद दाई माँ ने की.
दाई माँ : रे सारे एक तरफ जाओ. इतउ औरतन ने जाने दो.
दाई माँ के कहने पर एक साइड खाली हो गई. कोमल दाई माँ को देख कर मुस्कुराने लगी. और दाई माँ कोमल के पास आई.
दाई माँ : (स्माइल) चल री छोरी. तोए मुतास आय रही होंगी.
(चल लड़की. तुझे पेशाब आ रही होंगी )
दाई माँ और कोमल सुमशान सडक पर अँधेरे मे ही चलने लगे. दाई माँ का तो डर से कोई मतलब नहीं. पर कोमल को भी बिलकुल डर नहीं लग रहा था. चलते चलते दोनों बाते भी कर रहे थे.
कोमल : माँ... इस बार तो मै तुम्हे अपने साथ लेकर ही जाउंगी.
दाई माँ : हे रिन दे बावड़ी. मेय जैसी कपालन का करेगी वाह ठोरी. (हे रहने दे पगली. मेरे जैसी कपालन क्या करेंगी वहां)
कोमल : माँ... बकवास नहीं. या तो मै तुम्हारे साथ चलूंगी. या तो आप मेरे साथ. अब बोलो कहा चलोगी.
कोमल ने तो मानो अल्टीमेटम ही दे दिया. वही दाई माँ अपने घाघरे को ऊपर किए रोड के किनारे ही बैठ गई. अँधेरे मे इतना डीप तो नहीं दिख रहा था. लेकिन सररर.... सी आवाज आई तो कोमल को पता चल गया की दाई माँ मूत रही है. कोमल को हसीं आ गई. और वो हस पड़ी.
कोमल : (स्माइल) माँ..... आप तो पुरे बेशरम हो.
दाई माँ : हे यहाँ को देखेगो. बैठजा यही ठोरी. (हे यहाँ कौन देखेगा. यही बैठ जा)
कोमल भी बैठ गई. और वैसे ही मूतने लगी. कोमल को ऐसे किसी के साथ मूतने मे सरम भी आ रही थी. भले ही वो दाई माँ भी क्यों ना हो. पर उसे मझा भी आ रहा था. कोमल ने गर्दन घुमाई और दाई माँ की तरफ देखा.
कोमल : (स्माइल) माँ मै आप की भी फ्लाइट की टिकिट बुक कर रही हु.
कोमल मूत ते हुए ही आगे के इरादे बता रही थी. वही दाई माँ खड़ी हो गई.
दाई माँ : हे रिन दे. मै हवाई जहाज ते ना जाऊ. मोए डर लगेगो.
(हे रहने दे. मै हवाई जहाज से नहीं जाउंगी. मुजे डर लगेगा.
कोमल भी खड़ी हुई और उसे जोरो की हसीं आई.
कोमल : (हस्ते हुए) माँ तुम्हे भी डर लगता है???
दाई माँ ने घाघरे के किसी कोने से बीड़ी का बंडल और माचिस निकली. एक बीड़ी जलाते दाँत मे दबाते हुए अपने इरादे जता दिए.
दाई माँ : रेलगाड़ी ते चलेगी तो ठीक है. बरना(वरना) रीन दे.
कोमल को कैसे भी मना नहीं करती. भले देर से पहोचे. पर दाई माँ साथ आए तो.
कोमल : (स्माइल) ठीक है. तो मै रिजर्वेशन कर देती हु सुबह ही.
दाई माँ भी इस बार बीड़ी फूकते मुस्कुराने लगी. पर कोमल का ध्यान अब जाकर बीड़ी पर गया. दाई माँ ने मूतने के बाद हाथ भी नहीं धोए.
कोमल : माँ..... कम से कम हाथ तो धो लेती.
दाई माँ : हे मै कपालन हु. मोए कछु फरक ना परे.
(हे मै कपालन हु. मुजे कोई फर्क नहीं पड़ता.)
कोमल ने तुरंत दाई माँ की बीड़ी उनके मुँह से छीन ली. और कोमल बीड़ी को अपने होठो से लगाए एक कश मार देती है.
कोमल : और मै कपालन की बेटी.
दोनों एक साथ हस पड़े. कोमल ने भी बिना हाथ धोए दाई माँ के जैसे बीड़ी पी. लेकिन दाई माँ समझ गई की कोमल पहले भी बीड़ी पी चुकी है. क्यों की कोमल को बिलकुल खांसी नहीं आई. वो दोनों चलते हुए फिर बस के पास पहोच गए. वहां बलबीर बस का टायर लगा रहा था. पाना से टायर के नट कश रहा था. और ड्राइवर उसके पास खड़ा था. कोमल और दाई माँ को आते देख डॉ रुस्तम उनकी तरफ बढा.
दाई माँ : रे और कितनो टेम लगेगा?? ( और कितना टाइम लगेगा??)
डॉ : बस हो गया माई.
डॉ रूसतम ने कोमल की तरफ देखा. और मुस्कुरा दिए. वो समझ गए की कोमल कुछ पूछना चाहती है. मगर बात कहा से स्टार्ट करें.
डॉ : (स्माइल) कोमल... आप जो पूछना चाहती हो. वो सीधा पूछो. किसी बात के शारुआत का इंतजार करने की जरुरत नहीं है.
कोमल : एक डायन और कितना खतरनाक हो सकती है. मतलब की वो कितना निचे तक गिर सकती है.
दाई माँ : रे बता ज्या ने. (बता इसे.)
डॉ रुस्तम बोलने ही वाले थे की बलबीर की आवाज ने बिच मे रोक दिया.
बलबीर : सारे बैठो अपनी अपनी जगह पर.
डॉ रुस्तम इस बार हस दिए. और उन्होंने बस की तरफ हिशारा किया. सभी लाइन लगाकर बारी बारी बस मे चढने लगे. बलबीर बस के डोर की तरफ ही खड़ा था. डॉ रुस्तम फिर दाई माँ बस मे चढ़े. उनके पीछे कोमल थी. जब कोमल के चढने की बारी आई तो उसने एक शारारत की. उसने बलबीर के गाल पर एक चुम्बन लिया. और झट से बस मे चढ़ गई. कुछ लोग अभी बस मे चढ़ना बाकि थे.
जिसमे सतीश वगेरा भी थे. बलबीर तो शर्म से पानी पानी हो गया. वही सतीश वगेरा तो हस पड़े. सभी बस मे बैठ गए. सबसे आखिर मे बलबीर चढ़ा. उसने देखा की कोमल दाई माँ वाली शीट पर नहीं अपनी शीट पर है. मतलब की उसकी ही बगल वाली शीट पर. बलवीर वही रुक गया तो दाई माँ ने उसे टोका.
दाई माँ : का हेगो??? (क्या हो गया??)
बलबीर ने बस ना मे सर हिलाया.
दाई माँ : तो फिर बैठ काए ना रो?? (तो फिर बैठ क्यों नहीं रहा??)
बलबीर कुछ बोला नहीं और सर निचे किए अपनी शीट की तरफ जाने लगा. पीछे सतीश और दो तीन लड़के मुँह दबाकर हसने लगे. अब बारी आई शीट पर बैठने की. लेकिन कोमल की शारारत तो रुक ही नहीं रही थी. उसने अपने गाल की तरफ हिशारा किया. मतलब की मुजे पप्पी दो. बलबीर ने मुँह सिकोड़ा. और ना मे सर हिलाया. कोमल कन्धा झटक कर सामने देखने लगी.
मतलब साफ था की पप्पी दो तो ही वो उसे उसकी शीट पर बैठने देगी. बलबीर घूम गया. और दाई माँ के पास पहोंचा.
दाई माँ : हे तू ज्या कहा आएगो. तू अपनी जगह बैठ. (तू यहाँ कहा आ गया. तू अपनी जगह बैठ)
पीछे सतीश एंड पार्टी हस पड़े. तो दाई माँ भी समझ गई की कोई शारारत बलबीर के साथ हो रही है. बलबीर बेचारा पीछे मुड़ा. और वापस कोमल के पास पहोंचा. अब उसके पास कोई चारा ही नहीं था. मगर जब बलबीर कोमल की तरफ झूका तो कोमल ने एकदम से फेस बलबीर की तरफ कर दिया. बलबीर जो किश कोमल के गाल पर देने वाला था. वो कोमल के लिप्स पर हो गई.
बलबीर एकदम से पीछे हुआ. और कोमल मुश्कुराती हलका सा सरमाती शारारत से खड़ी हुई और दाई माँ के पास जाकर उनकी बगल मे बैठ गई. उसके आते दाई माँ भी मुश्कुराने लगी. भले ही उन्हें पता ना हो. पर यह तो समझ गए की कोमल ने बलबीर के साथ कोई शारारत जरूर की है. बलबीर अपनी जगह बैठ गया.
और बस चल पड़ी. कविता कभी दाई माँ की तरफ देखती है. तो कभी डॉ रुस्तम की तरफ. डॉ रुस्तम समझ गए. और कोमल की तरफ घूम गए.
डॉ : एक डेढ़ घंटे मे पहोच जाएंगे.
कोमल : तो जल्दी बताइये ना. आखिर डायन और कितनी हद तक जा सकती है???
डॉ साहब ने कोमल को एक और कहानी सुनाई.
डॉ : बिहार छपरा मे एक लड़का रहता था. रवि. रवि यादव. बहोत ही गरीब परिवार का महेनत मजदूरी करने वाला गरीब 26 साल का लड़का था.
उसकी माँ रमा की उम्र कुछ 50 के आस पास ही थी. एक बड़ी बहन सपना 28 साल. जिसकी शादी की उम्र हो चुकी थी. पर शादी ही नहीं हो पा रही थी. पता नहीं क्या हो जाता की लड़की के लिए रिस्ता तो आता. उसे पसंद भी करते. पर अपने आप किसी ना किसी कारन से टूट जाता. इसके आलावा दो बहने और थी.
निशा 20 साल की और तनीषा 18 साल की. इसके आलावा एक भाई था विकास. जो 11 साल का था. मगर जब वो चार साल का था. तब से ही उसे कोई रोग लग गया. बीमारी क्या कुछ समझ नहीं आई. हाथ पाऊ मुड़ने लगे. जबड़ा मुड़ने लगा. जैसे लकवा मार गया हो. रवि के पिटा राजेश प्रसाद की मौत उस वक्त 10 साल पहले ही हुई थी. इसके आलावा उनकी एक बूढी दादी भी थी.
लोग उन्हें कुकू बुलाते थे. सायद वो 70 पार की होंगी. उनकी उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता था. रवि कभी इट भठे पार काम करता तो कभी दिन दहाड़ी पर. अपने परिवार को बचाने के लिए उसने बहोत महेनत की. लेकिन घर ऊपर आ ही नहीं पता था. घर मे कभी किसी को तो कभी किसी को बीमारी लगती ही रहती.
एक दिन अचानक से तनीषा की तबियत ख़राब होने लगी. उसको भी वही असर होने लगा. जो छोटे भाई विकास को उसकी चार साल की उम्र मे हुआ था. रवि और उसकी माँ रमा को समझ नहीं आया की उसे हुआ क्या. तनीषा के भी हाथ पाऊ अकड़ने लगे. मुँह का जबड़ा टेढ़ा होने लगा. रवि जो विकाश के साथ हुआ. वो तनीषा के साथ नहीं होने देना चाहता था.
इस लिए वो उसे तुरंत बिहार पटना के बड़े सरकारी होशपिटल मे ले गया. डॉक्टरों को भी समझ नहीं आ रहा था. इसी बिच रवि और बड़ी बहन सपना पैसो का इंतजाम करने के लिए अपने घर छपरा आए. और जब घर पहोचे तो उनका दिमाग़ घूम गया.