पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
रसिक पर हमले का जूठा आरोप लगाने के बाद से, शीला और उसके बीच संबंध काफी बिगड़ चुके थे.. शीला के लाख माफी मांगने पर भी रसिक का गुस्सा कम नहीं हो रहा था.. पर अब शीला ने रसिक को मनाने का मन बना लिया था.. सुबह रसिक के आने पर शीला ने ढेरों मिन्नते कर रसिक को मना लिया और फिर शुरू हुआ.. वही पुराना शीला-रसिक का रसीला खेल.. खूँटे जैसे तगड़े लंड और गदराई शीला के बीच का जबरदस्त द्वन्द..
शीला के घर के ड्रॉइंगरूम में चल रही इस धुआंधार चुदाई के दौरान, मदन बेडरूम से बाहर निकलकर आया.. रसिक तो नहीं पर शीला ने उसे देख लिया और मदन चुपचाप बेडरूम में चला गया..
एक धमाकेदार संभोग के बाद, शीला सोफ़े पर नंगे बदन ढेर होकर पड़ी थी और रसिक उसे उसी अवस्था में छोड़कर निकल गया.. चरमसीमा के अप्रतिम आनंद से होश खो बैठी शीला के दोनों छेद और शरीर, रसिक के पुष्ट वीर्य से सने हुए थे.. इसी बीच मदन बाहर आकर शीला को इस अवस्था में देखता है.. अपनी पत्नी को किसी और संग चुदाई के बाद देखने में उसे अजीब सी उत्तेजना होने लगी.. शीला के तृप्त चुदे हुए, वीर्य सने भोसड़े को सूंघकर वह उत्तेजित हो उठा और उसने शीला की गीली पिच पर अपनी बेटिंग शुरू कर दी..
अब आगे..
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शाम का समय हो रहा था.. पीयूष के आलीशान बंगले के खिड़की और दरवाजे बंद थे..
उसके बेडरूम से सिसकियों की आवाज़ें आ रही थी.. उसमें से एक आवाज तो कविता की थी यह जाहीर सी बात थी.. पीयूष उस वक्त अपनी ऑफिस में था.. तो कौन था वह दूसरा व्यक्ति???
कमरे में अंधेरा था.. बेडरूम के नरम बिस्तर पर कविता अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक चढ़ाकर तकिये पर लेटी हुई थी.. उसकी आँखें बंद थी और वह अपने हाथों से तकिये की नरम रुई को.. उत्तेजना के मारे नोच रही थी..
ब्लाउज उसने अभी भी पहन रखा था पर उसकी साड़ी का पल्लू बिखरा पड़ा था.. घुटने से मोड़कर दोनों टांगों को फैलाएं हुए वह लेटी थी.. उसकी दोनों टांगों के बीच एक इंसानी आकृति अपना चेहरा कविता की चूत पर दबाए हुए थी.. और वही था कविता की निरंतर सिसकियों का कारण..!!!
कविता की गीली पुच्ची में अपनी जीभ डालकर.. अंदर के लाल अमरुदी हिस्से को रगड़ रगड़कर चाटने के बाद जब वह चेहरा ऊपर उठा तब कविता ने बड़े ही स्नेह के साथ उसके बालों को सहलाया
"दीदी, अब मेरी बारी" कहते हुए अब फाल्गुनी कविता के बगल में लेट गई.. और कमर उठाकर अपनी जीन्स और पेन्टी उतारने लगी..
पीयूष के संग समस्यात्मक वैवाहिक जीवन से झूझ रही कविता.. अपने जिस्म को आग को बुझाने के लिए फाल्गुनी का सहारा ले रही थी.. जब से उसे फाल्गुनी और अपने पिता सुबोधकांत के बीच के संबंधों के बारे में पता चला था तब से उन दोनों के बीच बचीकूची शर्म का पर्दा हट गया था.. शुरुआत के समय में वह फाल्गुनी से नफरत करती थी जब उसे फाल्गुनी और पापा के नाजायज ताल्लुकात के बारे में पता चला.. पर समय रहते उस नफरत की तीव्रता कम होती चली.. गुस्सा उतारने के बाद, गहराई से सोचने पर उसे प्रतीत हुआ था की फाल्गुनी उसके पापा के हाथों शिकार ही बनी थी.. उसके बाद दोनों के बीच दूरियाँ कम होती गई.. बाद में यह भी पता चला की मौसम और फाल्गुनी के बीच भी सजातीय यौन संबंध थे.. जब तरुण अस्पताल में भर्ती था.. तब कविता, मौसम और फाल्गुनी अपने जिस्मों की गर्मी सांझा भी कर चुकी थी
पीयूष के बेरुखी भरे बर्ताव से कविता काफी दुखी थी.. न उसके पास कभी समय था.. और न ही कविता के प्रति वह पहला वाला झुकाव..!! अन्य जरूरतों को कविता परिवार और दोस्तों के संग पूरा कर लेती थी.. पर जिस्म की अनबुझी प्यास से वह दिन रात तपती रहती थी.. रसिक के साथ हुए धमाकेदार संभोग का सुरूर कुछ दिनों तक तो रहा.. पर फिर उसका शरीर फिर से भोग मांगने लगा..
कविता का न कोई ऐसा पुरुष संपर्क था और न ही उसमे ऐसी हिम्मत थी की वह विवाहेतर संबंध के बारे में सोच सकें.. अब तक उसे जो भी मिल पाया था, वह सब शीला भाभी की बदौलत ही था.. फिर वो पिंटू हो या रसिक..!! लेकिन शीला तो अपने शहर रहती थी.. वो वहाँ बैठे बैठे उसकी कैसे मदद कर पाती..!!!
ऐसे में ही उसे फाल्गुनी याद आई..!! इससे पहले भी वह दोनों तीन बार लेस्बियन संबंधों का आनंद ले चुकी थी..!! वैसे फाल्गुनी के लिए सेक्स की कोई कमी नहीं थी.. राजेश से संपर्क होने के बाद उसका काम-जीवन खुशनुमा सा था.. फिर भी वह कविता दीदी के बुलाने पर उन्हें मना नहीं कर पा रही थी.. वासना के कारण नहीं पर सहानुभूति के चलते वह शायद कविता से यह संबंध जारी रख रही थी
अपनी उत्तेजना से उभरते हुए कविता ने एक स्नेहभरी नजर, बगल में लेटी फाल्गुनी की तरफ डाली.. वह उठी और फाल्गुनी के स्तनों को हल्के से दबाकर उसकी टांगों के बीच अपने सिर को डालकर बेड पर लेट गई.. जैसे ही फाल्गुनी ने अपनी जांघें और खोली, उसकी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे चूत के होंठ फैल गए.. चूत की दरार पर हल्की सी नमी दिख रही थी.. जो स्वाभाविक तौर पर उनके संसर्ग के कारण ही उत्पन्न हुई थी..
कविता ने कुछ देर तक उसकी प्यारी मुनिया को देखती रही.. फिर उसने योनि के उस मांसल पिंड को सहलाया.. अपनी उंगलियों से चूत की परतों को फैलाकर अपने अधर करीब ले गई.. चूत की मीठी गंध सूंघते हुए कविता के होंठ खुले और उसकी जीभ बाहर निकलकर फाल्गुनी के गुनगुने छेद में घुस गई.. फाल्गुनी कराह उठी..!! उसके कूल्हें बिस्तर से एक इंच ऊपर उठ गए..
कुछ महिलाएं समलैंगिक संबंधों में अधिक सहज और सुरक्षित महसूस करती हैं.. उन्हें लगता है कि एक स्त्री के साथ रिश्ता बनाने में उन्हें अधिक गर्मजोशी, कोमलता और समझ मिलती है.. महिलाएं अक्सर एक-दूसरे की भावनाओं को बेहतर ढंग से समझती हैं और एक-दूसरे के साथ अधिक संवेदनशीलता से पेश आती हैं.. वे एक-दूसरे के साथ खुलकर बात कर सकती हैं और अपनी समस्याओं को साझा कर सकती हैं, जिससे उन्हें मानसिक रूप से मजबूती मिलती है.. चूंकि ऐसे संबंधों से गर्भधारण होने का कोई खतरा नहीं होता इसलिए यह संबंध सुरक्षित भी होते है औ कोई मानसिक दबाव भी नहीं होता
विषमलैंगिक संबंधों में अक्सर पारंपरिक भूमिकाओं और अपेक्षाओं का दबाव होता है, जैसे कि घर संभालने, बच्चे पैदा करने आदि.. समलैंगिक संबंधों में यह दबाव नहीं होता, जिससे महिलाएं अपने रिश्ते को अपनी शर्तों पर जी सकती हैं.. यही कारण है कि कुछ महिलाएं समलैंगिक संबंधों को अधिक पसंद करती हैं..
हालांकि ऐसे कुछ संबंध तब भी विकसित होते है जब स्त्री को संभोग साथी के रूप में कोई पुरुष उपलब्ध न हो.. जैसा की कविता के मामले में था
जैसे जैसे कविता की जीभ फाल्गुनी के यौनांग में अंदर बाहर होती रही.. वैसे वैसे फाल्गुनी की उत्तेजना का स्तर बढ़ता गया.. उसने अपनी दोनों टांगों को कविता के कंधों पर डाल दिया.. और अपना टॉप ऊपर उठाकर स्तनों को उजागर करते हुए मसलने लगी..
चूत चाटते हुए कविता की आँखें, अपने स्तनों को मसल रही.. निप्पलों को मरोड़ रही फाल्गुनी पर स्थिर थी.. चाटते हुए कविता को एक पल के लिए यह विचार आया.. की यह वही चूत थी जिसे उसके पिता भी कभी चाटते थे.. और इसमें अपना लिंग घुसाकर चोदते भी थे.. अनगिनत बार उन्हों ने अपना वीर्य स्खलन इस सुराख में किया होगा.. एक पल के लिए उसे घिन सी आने लगी.. वह फाल्गुनी की जांघों के मध्य से उठ खड़ी होना चाहती थी.. पर कविता के इन विचारों से अनजान फाल्गुनी, अपनी आँखें बंद कर कविता को ऐसे दबोचे हुए थी की वह चाहकर भी उठ खड़ी नहीं हो सकी..
अपनी क्लीट को रगड़ते हुए जब फाल्गुनी कांपते हुए झड़ी और शांत हुई, तब उसके पैरों के बीच से कविता का छुटकारा हुआ.. कविता उठी और फाल्गुनी के बगल में लेट गई..
काफी देर तक दोनों शांत ही पड़ी रही..
कविता करवट बदलकर लेटी हुई थी तभी फाल्गुनी ने उसकी बाहों के नीचे से हाथ डालकर कविता की चूचियों को पकड़कर हौले हौले दबाना शुरू कर दिया.. कविता के चेहरे पर मुस्कान आ गई..!!
फाल्गुनी: "आप से कुछ कहना था दीदी"
कविता: "हाँ बोल न..!!"
फाल्गुनी: "मुझे नौकरी मिल गई है..!!"
कविता ने आँखें खोली और फाल्गुनी की तरफ खुश होकर देखते हुए बोली "अरे वाह..!! क्या बात है,.!! कहाँ मिली यह जॉब?"
फाल्गुनी: "राजेश अंकल की कंपनी में ही.. मौसम की शादी पर जब मिले थे तब मैंने उन्हे अपना रिज्यूम दिया था.. उनके इंडस्ट्री में कई कॉन्टेक्टस है इसलिए..!! तो कुछ दिनों पहले उन्हों ने ही मुझे जॉब ऑफर कर दी अपनी ऑफिस में"
कविता: "यह तो बड़ी अच्छी बात है..!! पर वहाँ तू रहेगी कहाँ?"
फाल्गुनी: "फिलहाल कुछ तय नहीं किया पर राजेश अंकल ने कहा की वह कुछ इंतेजाम करेंगे"
कुछ सोचकर कविता ने कहा "ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.. हमारा पुराना घर खाली ही तो पड़ा है.. पहले वैशाली और पिंटू वहाँ रहते थे पर अब तो वो लोग भी यहाँ आ गए.. तू वहीं रहना.. शीला भाभी और मदन भैया भी पड़ोस में है तो तुझे कुछ दिक्कत भी नहीं होगी"
फाल्गुनी ने हिचकते हुए कहा "मगर.. दीदी..!!!"
कविता: "मगर-वगर कुछ नहीं.. मैंने कह दिया ना.. अब तू वहीं पर रहेगी.. जब तक तेरा जी चाहे"
फाल्गुनी: "एक बार पीयूष जीजू को भी पूछ लेते"
पीयूष का नाम सुनते ही मुंह बिगाड़ते हुए कविता ने कहा "कोई जरूरत नहीं है उससे पूछने की.. वह घर मेरा भी तो है..!! और वैसे भी, तेरे वहाँ रहने के लिए पीयूष थोड़े ही मना करेगा..!! ऐसा है तो मैं एक बार बात कर उसे बता दूँगी.. ठीक है..!!"
फाल्गुनी के पास मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था, उसने कहा "ठीक है दीदी"
यह संवाद उठकर खत्म होते ही फाल्गुनी खड़ी होकर कपड़े पहनने लगी..
कविता: "अरे, इतनी जल्दी क्या है..!! बैठ थोड़ी देर.. मैं कॉफी बनाकर लाती हूँ"
फाल्गुनी: "नहीं दीदी.. मुझे शॉपिंग करने जाना है.. कज़िन की शादी है.. मुंबई जाना है.. सोचा आज सारी शॉपिंग निपटा लूँ"
कविता: "ठीक है.. जाते वक्त दरवाजा बंद करते हुए जाना.. मैं कुछ देर तक यहीं लेटी हूँ.. थोड़ा आराम करने के बाद उठूँगी"
फाल्गुनी ने अपनी जीन्स की चेईन बंद करते हुए कहा "ओके दीदी"
उसके जाने के बाद, कविता अपने सर पर हाथ रखे लेटी रही.. पीयूष के अलावा भी एक अन्य समस्या उठ खड़ी हुई थी.. जो उसके ध्यान में आई थी.. जो काफी चौंकाने वाली भी थी.. पर बिना कुछ तफतीश के, कविता किसी नतीजे पर पहुंचना नहीं चाहती थी..!!
पर आज उसने तय किया था.. की वह जानकर ही रहेगी की आखिर क्या बात थी..!! यदि जो उसने सुना था और उससे जो भी प्रतीत हो रहा था, अगर सच निकला तो यह कविता के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बन सकता था
कविता ने उठकर कपड़े पहने और बाथरूम में जाकर अपने बाल ठीक किए.. एक कप कॉफी पीने के बाद वह इस बात की तह तक जाने के इरादे से घर के बाहर निकली
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पीयूष को आज ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गई.. घर से निकलकर वह बेंक गया था.. जहां पर कुछ काम निपटाने में उसे अधिक वक्त लग गया.. वह जब ऑफिस पहुंचा तब सारे कर्मचारी अपने अपने काम में व्यस्त थे.. उसके आने की किसी को खबर तक नहीं लगी..
पीयूष अपनी केबिन की ओर जाने लगा.. उसकी केबिन के बिल्कुल सामने ही वैशाली का टेबल था.. वहाँ से गुजरते वक्त पीयूष ने देखा की.. हाथ लगने की वजह से वैशाली के टेबल पर पड़ा पेन-स्टेंड नीचे गिर गया था.. और अंदर रखी तीन-चार पेन.. पेंसिल और मार्कर नीचे गिरकर बिखर गए थे..
वैशाली अपने घुटने मोड़कर उकड़ूँ होकर बैठी हुई थी.. टेबल के नीचे तक चली गई पेन-पेंसिल को अपना हाथ डालकर निकालने की कोशिश कर रही थी.. उसने डीप-नेक टॉप पहना हुआ था जो केवल कमर तक लंबा था.. नीचे टाइट जीन्स पहना था.. झुकने के वजह से उसका टॉप थोड़ा सा ऊपर हो गया था और उसका जीन्स नीचे उतर गया था.. उसकी लाल रंग की पेन्टी की हल्की सी पट्टी द्रश्यमान थी.. और उसकी मांसल गदराई गांड की दरार का ऊपरी हिस्सा भी नजर आ रहा था
वैशाली के स्तन और कूल्हें बेहद मांसल और गोलाईदार थे.. टाइट जीन्स बड़ी मुश्किल से उन चूतड़ों को संभाले हुए था.. पर झुकने की वजह से अब वो भी नहीं हो पा रहा था.. पीयूष वहीं थम गया.. वैशाली की पीठ उसके तरफ थी.. वह अब भी अंदर तक चली गई पेन को हाथ टटोलकर ढूंढ रही थी..
उसकी भरी भरी गांड की सेक्सी दरार को देखकर पीयूष का मन किया की वो वहीं अपना लंड निकालकर उसमें घुसा दे..!!! पीयूष को वह पुराना समय याद आ गया.. जब उसने वैशाली को उस बन रहे मकान में.. रेत के ढेर पर रगड़ रगड़कर चोदा था.. उसके बेडरूम की खिड़की पर चढ़कर, जाली से लंड डालकर चुसवाया था..!! उस वक्त भी वैशाली के नंगे बदन को देखकर वह पागल हो गया था.. अब तो वह और गदरा गई थी.. पीयूष ने तो वैशाली की माँ को भी नंगा देखा था.. और अब वह अनुमान लगा सकता था की आगे जाकर वैशाली के जिस्म का जादू और नशीला होता जाएगा..!! एक बार फिर से मन कर गया पीयूष का.. की उसे अभी केबिन में ले जाएँ और टेबल पर ही नंगी करके चोद दे..!!!
"अरे पीयूष, तुम कब आए??" वैशाली की आवाज सुनते ही पीयूष की विचार शृंखला टूटी.. वह संभल गया..
वैशाली अब खड़ी हो गई थी.. और अपना टॉप ठीक कर रही थी.. झुकने के परिश्रम की वजह से उसके स्तन, ब्रा के अंदर अस्तव्यस्त हो गए थे.. पीयूष के सामने ही वह टॉप के अंदर हाथ डालकर ब्रा को ठीक करने लगी..
पीयूष को ज्ञात हुआ की वह मूर्खों की तरह वैशाली को तांक रहा था और इस बात से वैशाली भी वाकिफ थी
"ओह हाँ.. मैं.. मैं अभी आया..तुम कुछ ढूंढ रही थी?" पीयूष ने बोखलाते हुई कहा
"कुछ नहीं.. वो तो पेन नीचे गिर गई थी वही ढूंढ रही थी" वैशाली ने अपनी कातिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा
आगे क्या कहें, यह समझ नहीं आ रहा था पीयूष को..!! वह नजरें झुकाए वैशाली के करीब से गुज़रता हुआ अपनी केबिन में चला गया.. वैशाली के शरीर पर लगे मादक परफ्यूम की गंध ने उसे झकझोर कर रख दिया.. एक शैतानी मुस्कान के साथ वैशाली उसे जाते हुए देखती रही..!!
केबिन के अंदर पहुंचकर उसने राजेश को फोन किया.. अमरीका वाला एक्सपोर्ट ऑर्डर अपने दूसरे चरण में पहुँच रहा था..!! अब उसे मदन और राजेश की बेहद जरूरत थी.. एक अच्छी बात यह थी की पिंटू के आ जाने से पीयूष का काफी कार्यभार कम हुआ था.. पिंटू अपने काम में बहुत काबिल था और पीयूष का पुराना दोस्त भी था.. यहाँ तक की वह पिंटू को अपने बजाए अमरीका भेजने की सोच रहा था और उसकी तैयारी भी कर चुका था