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★☆★ Xforum | Ultimate Story Contest 2025 ~ Reviews Thread ★☆★

Lucifer

ReFiCuL
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Unfortunately We are facing a server issue which limits most users from posting long posts which is very necessary for USC entries as all of them are above 5-7K words ,we are fixing this issue as I post this but it'll take few days so keeping this in mind the last date of entry thread is increased once again,Entry thread will be closed on 7th May 11:59 PM. And you can still post reviews for best reader's award till 13th May 11:59 PM. Sorry for the inconvenience caused.

You can PM your story to any mod and they'll post it for you.

Note to writers :- Don't try to post long updates instead post it in 2 Or more posts. Thanks. Regards :- Luci
 
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Supreme
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एकदम अलग ही लेवल की लव स्टोरी लाए हो पंडितजी. ला ज़वाब. आप ने तो भावुक कर दिया. पहले तो महसूस हुआ की 90 से 95 के आस पास की मोवी जैसा आभास हुआ. शेखर ने सीखा की याद मे शादी नहीं की. बस उसकी यादो मे जीता रहा. बदलो की वो कल्पना करते रहा. जो कभी उसने सीखा से वादा किया था. बदलो के पार वाली कल्पना.

जब शेखर ने सीखा का नंबर ढूढ़ा और call किया तब किसी छोटी बच्ची ने फ़ोन उठाया. मुजे लगा आप धड़कन part 2 दिखाओगे. पार अमेज़िंग. आप ने कुछ नया किया. वो सीखा की गॉद ली हुई बेटी निकली. और शिखा उसे किस हालत मे मिली. कैंसर पीड़ित. आप ने सीखा की हकात का ब्यौरा भी एकदम हकीकत सटीक जैसा ही किया.

जो हकीकत जैसा आभास कराता है. लेकिन कहानी के रंग मंच पर कुछ प्रेरणा दायक किया. सीखा खुद अनाथ थी. और उसने दो बेटियां गोद की. बगैर शादी किए माँ बनी. आप ने तो हमें बहोत कुछ सीखा दिया. कागज पर भी और दिल पर भी.


भावुक कर दिया यार. आप ने रिडर होने का पूरा फायदा उठाया जनाब. बहोत कहानियाँ आप ने पढ़ी है. पूरा एक्सपीरियंस एक छोटी सी कहानी मे झोक दिया. ला ज़वाब कहानी.
Ek writer pahle ek reader hi to hota hai devi ji :approve: Hamne to bas kosis ki, ki aap sabko ek emotional love story di jaye, ab usme hum kaamyaab huye ya nahi ye to aap sab hi bata sakte hsin:blush1: Khair, sikha kewal ye chahti thi ki kam se kam 2 baccho ko to anaath ka naam na mile, jisme wo kaamyaab bhi rahi, rahi baat uski to jeevan me kabhi kabhi sab kuch itni aasaani se kaha milta hai:verysad: Sab niyati ka khel hai, wahi sikha ke sath hua.

Thank you so so much for your amazing review and superb support :hug:
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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159
Avsji हमारी मित्रता से पहले मै आप की कहानी से प्रभावित हो चुकी थी. ये मेरा सौभाग्य है की आप ने हमें मित्रता योग्य समझा. बूढ़े कहते है ना की जैसी रंगत वैसी संगत. तो असर हम पर भी दिख रहा है. आप ने कुछ रिवॉल्यूशनकरने का जज़्बा हम मे जगाया है. तो हम भी आगे बढ़ रहे है. ये कांटेस्ट आप ही जीतो ऐसी भगवान से प्रार्थना रहेगी.

Shetan जी, ये चौथी USC है मेरी। इसलिए जीतने हारने से परे हो चुका हूं। ये कहानी इसलिए लिखी क्योंकि लिखने की खुजली मची हुई थी 🤣🤣
वैसे, शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आपको भी मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी कहानियों के रिव्यू पढ़ कर लग रहा है, कि आपको सफलता अवश्य मिलेगी। 🙏👍
 

Avaran

एवरन - I am Unpredictable
Supreme
5,192
16,690
174
Hahahahahaha.........8000 words hone ke baad story ko long karne se story contest se bahar ho jati......apke suggestion me koi damm nhi hai.......apna suggestions apne paas rakho...or pahle contest ka rules padh lo.....fir yaha suggetion dene ana......chale aate hai kaha kaha se muh utha kar...
धन्यवाद आपका एक सुंदर review answer के लिए।
(बोल तोह में भी बहुत कुछ सकता हूँ, और वो भी बहुत ही मीठी वाणी में पर क्या है न मैं अपना standard गिरा नहीं सकता इतना सबकुछ बोल कर ।
 

vakharia

Supreme
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174
कहानी समीक्षा: कत्ल की रात
लेखक महोदय: DEVIL MAXIMUM




"कत्ल की रात" एक जटिल, परतदार और घटनाओं से भरी हिंदी रहस्य-रोमांच कथा है जो कश्मीर की बर्फीली वादियों से शुरू होकर कोर्टरूम ड्रामे और अंत में प्रायश्चित तक पहुँचती है। लेखक ने कहानी में अपराध, प्रेम, छल, बदला, और इंसाफ के ताने-बाने को गूंथने की ईमानदार कोशिश की है।

बर्फ से ढकी कश्मीर की रात, धुंध और पहाड़ी रास्ता—इन सबने कहानी की शुरुआत में ही सस्पेंस का एक रोमांचक माहौल रच दिया। पाठक को यह महसूस होता है कि वह दृश्य देख रहा है, पढ़ नहीं रहा।

लेखक ने बार-बार मोड़ देकर जिज्ञासा को बनाए रखा है। धीरज उर्फ गौतम की पहचान से लेकर कोर्ट में किरण का जीवित लौटना, सब कुछ एक मास-अपील वाली हिंदी फिल्म जैसा रोमांच देता है।

धीरज, सुनीता, रवि, इंस्पेक्टर महेश – हर किरदार की अपनी पृष्ठभूमि है, उनके निर्णयों के पीछे भावना और परिस्थिति है। विशेषकर धीरज का अंत में सच्चाई स्वीकार करना कहानी को एक नैतिक ऊँचाई प्रदान करता है।

अदालत का अंतिम कथन—“कानून की नजर में मुजरिम, इंसाफ की नजर में बेगुनाह”—पूरे कथानक का भावनात्मक और दार्शनिक शिखर है।


कई घटनाएँ जैसे संयोग से धीरज का वापस लौटना, सुनीता का बेहोश हो जाना, कोर्ट में किरण का प्रकट होना—कथानक को भावनात्मक ज़रूर बनाते हैं, लेकिन यथार्थवाद के पैमाने पर इन्हें थोड़ा खींचा हुआ माना जा सकता है। लगभग सभी पात्रों की बोलचाल का तरीका एक जैसा है—अति विनम्र, पुस्तकात्मक। इससे कभी-कभी उनके चरित्र की विशिष्टता फीकी पड़ती है। कहानी की लंबाई और विवरण अत्यधिक है। कुछ दृश्य (विशेषकर पुलिस पूछताछ और कोर्ट सीन) को थोड़ा संक्षिप्त करके भी वही प्रभाव पैदा किया जा सकता था। सुनीता, किरण और रानी—तीनों महिलाएँ कहीं न कहीं पुरुष पात्रों की परिस्थितियों के इर्द-गिर्द ही सीमित रहीं। कहानी में इन पात्रों को और सशक्त दिखाया जा सकता था।

🔍 अंतिम निष्कर्ष:


"कत्ल की रात" एक ऐसी रहस्यकथा है जो लोकप्रिय हिंदी सिनेमा और साहित्य की लय में बहती है। यह एक मनोरंजक पठनीय अनुभव देती है, जिसमें संवेदना और नैतिक द्वंद्व भी है। यद्यपि यह वास्तविकता की सीमाओं को कुछ जगहों पर पार करती है, लेकिन कथा में रचा गया जज्बाती न्याय, पाठक के मन को संतोष देता है।

रेटिंग: 8/10
 

vakharia

Supreme
5,922
20,467
174
प्रिय avsji महोदय,

आपके साहित्यिक कार्यों की सराहना मैंने पूर्व में कई बार सुनी है। आपके लेखन की गूंज और आपकी लेखनी की परिपक्वता की चर्चा इस फोरम पर आदरपूर्वक होती रही है। यह मेरे लिए एक सौभाग्य की बात है कि मुझे पहली बार आपके किसी रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी लिखने का अवसर मिला है।

पिछले वर्ष की कहानी प्रतियोगिता में आपके विजयी होने की जानकारी निःसंदेह आपकी रचनात्मक क्षमता का प्रमाण है। ऐसे सम्मानित लेखक की रचना को पढ़ना और उस पर विचार प्रकट करना, मेरे लिए एक सीखने और समझने की प्रक्रिया भी है।

✒️ समीक्षा-पत्र:

“अपशगुनी” – जब वृक्ष केवल वृक्ष नहीं होता
लेखक महोदय:
avsji


कहानी “अपशगुनी” पढ़ते समय मुझे यह बार-बार महसूस हुआ कि यह केवल एक वृक्ष की कथा नहीं है, बल्कि एक सम्पूर्ण समाज की सामूहिक स्मृति, पीढ़ियों की चेतना और विश्वास-अविश्वास के द्वंद्व की अद्भुत अनुगूंज है। जिस प्रकार शरतचंद्र एक साधारण पात्र के माध्यम से समाज का दर्पण प्रस्तुत करते हैं, वैसे ही avsji ने इस कहानी में अमरूद के वृक्ष को प्रतीक बनाकर एक पूरे परिवार के मानसिक, भावनात्मक और वैचारिक संक्रमण को बयाँ किया है।

अमरूद का पेड़ यहाँ केवल एक वनस्पति तत्व नहीं है। यह जीवन की जिजीविषा, सहज उत्क्रांति, और निर्दोष साक्षीभाव का प्रतीक है। यह पेड़ बढ़ता है—बिना किसी के सहयोग के, फिर मनुष्य उसे सहयोग देने लगता है, उससे स्नेह करता है, उससे प्रेरणा लेता है… और अंत में उसी पर अपने जीवन के दुःखों का ठीकरा फोड़ता है। यह 'विकास-घटना' किसी वृक्ष की नहीं, मनुष्य की स्वार्थी मानसिकता की है।

avsji का लेखन कौशल इस बात में दिखता है कि कहानी किसी एक पात्र पर केंद्रित नहीं है, बल्कि पूरा परिवार—भाई, बहन, माता-पिता, भाभियाँ, और यहाँ तक कि भावी पीढ़ियाँ भी—एक बहुस्वरात्मक संगति में इस वृत्तांत का हिस्सा बनती हैं। प्रत्येक का दृष्टिकोण, द्वंद्व, मोह, कुंठा और उसकी परिणति बहुत ही यथार्थवादी और मनोवैज्ञानिक रूप से विश्वसनीय है।

कहानी की सबसे गहरी परत उस ‘मानसिक संक्रमण’ की है जिसमें एक अत्याधुनिक, राजनैतिक रूप से सशक्त स्त्री (अम्मा) धीरे-धीरे एक अंधविश्वास-ग्रस्त, निराश, नियंत्रण-प्रिय स्त्री बन जाती है। यह रूपांतरण असहज करता है, परंतु अविश्वसनीय नहीं लगता—क्योंकि वृद्धावस्था, असहायता, और सामाजिक संरचना का दबाव इसी तरह से व्यक्तित्व को मोड़ता है।

avsji की लेखन शैली प्रांजल, विमर्शात्मक और भावनात्मक गहराई से भरपूर है। एक लंबे कथा-वृत्त में कहीं भी कथा बोझिल नहीं होती, क्योंकि उसका प्रवाह विचारशील और आत्मीय है। कहीं-कहीं संवाद इतने सजीव हैं कि पाठक को पात्रों के बीच खड़ा कर देते हैं। उदाहरण के लिए—गिल्लू की विद्रोहभरी मुस्कान और उसका “अब तो किसी अपशगुन की भी ख़ैर नहीं”—यह पंक्ति केवल व्यंग्य नहीं, एक पूरी पीढ़ी की आवाज़ है।

अमरूद का वृक्ष और गुलाब के पौधे—एक सहज और एक सहेजा गया—इन दोनों की तुलना समाज की उस प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है जहाँ प्राकृतिक सहजता की उपेक्षा होती है, और जो कृत्रिम है, उसे संरक्षण मिलता है। पेड़ का “अपशगुनी” होना उसी मानसिकता की देन है जो जीवन के सहज विकास से डरती है।

यह कहानी महज़ एक वृक्ष की हत्या की नहीं, बल्कि एक विचार की हत्या की कथा है। यह संघर्षशील वृक्ष ‘मनुष्य की चेतना’ का प्रतिरूप है, और गिल्लू द्वारा बीज बोना एक नया बीजवपन है—सामाजिक क्रांति का, तार्किक पुनर्जागरण का।


🔖 अंतिम निष्कर्ष:


“अपशगुनी” एक असाधारण कहानी है जो सामान्य प्रतीकों के माध्यम से असामान्य गहराइयाँ स्पर्श करती है। यह कहानी नहीं, एक आंदोलन है—संवेदना, प्रतिरोध और बदलाव का।


रेटिंग:
अंक देना अनुचित होगा… यह कहानी किसी भी ‘रेटिंग सिस्टम’ से परे है
 
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vakharia

Supreme
5,922
20,467
174
कहानी समीक्षा: RITUAL
लेखक महोदय: harshit1890

"RITUAL" एक थ्रिलर कहानी होने के साथ साथ, गहराई में उतरी हुई मनोवैज्ञानिक और प्रतीकात्मक यात्रा भी है, जो बदले, पाप, और मानव मन की तहों को बारीकी से उकेरती है।

सबसे पहले बात करें इसकी बुनावट की, कहानी की लंबाई के बावजूद लेखक ने कथानक में लगातार जिज्ञासा बनाए रखी है। प्रतीकात्मक हत्याएं, पुरानी किताब, रहस्यमयी गाँव, और विक्रांत की जाँच – सब कुछ एक सिनेमाई स्केल पर बसा हुआ लगता है। संवाद सरल और वास्तविक हैं, और पुलिस प्रक्रिया को समझदारी से दर्शाया गया है।

कथानक में जो सबसे प्रभावशाली है, वह है विक्रांत का पात्र – एक ऐसा इंसान जो सिर्फ हत्याओं को नहीं सुलझा रहा, बल्कि अपने भीतर के टूटे हुए इंसान को भी जोड़ने की कोशिश कर रहा है। उसके बदले की आग धीरे-धीरे पाठक के भीतर भी उतर जाती है।

विशेष उल्लेख उन सीन्स का भी होना चाहिए जहाँ लेखक ने ग्राफिक इमेजरी और सस्पेंस को बेहतरीन ढंग से चित्रित किया है — विशेषकर गुफा वाले दृश्य और रिचुअल सीन में जो टोन है, वह हिम्मत की मांग करता है और लेखक ने उसे बखूबी निभाया है।

कहानी पर अपने कुछ सुझाव भी देना चाहूँगा..

कहानी अपनी तीव्रता में इतनी बहती है कि कई बार कुछ घटनाएं लंबी और विस्तृत लगने लगती हैं, जिनकी संक्षिप्तता कहानी की धार को और पैना कर सकती थी। संवादों में कहीं-कहीं पुनरावृत्ति है, और कई विवरण ऐसे हैं जो अगर संकेतों में कहे जाते तो पाठक की कल्पना को और जगह मिलती।

अंत के ट्विस्ट्स प्रभावशाली हैं लेकिन अंतिम कुछ पंक्तियाँ और भी ज़्यादा प्रभाव छोड़ सकती थीं यदि ‘गुफा वाला रहस्य’ थोड़े और संकेतों के साथ पहले बोया जाता।

अंतिम निष्कर्ष:
कुल मिलाकर, "RITUAL" एक साहसी, भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण, और रचना की दृष्टि से समृद्ध कहानी है। यह उन कहानियों में से है जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, बल्कि अनुभव की जाती हैं। लेखक harshit1890 का यह प्रयास एक पूर्ण लंबी थ्रिलर के रूप में प्रशंसनीय है और यह दिखाता है कि यदि लेखक चाहे, तो वह क्राइम और मनोवैज्ञानिक कथा के बीच एक नया मानदंड गढ़ सकता है।

रेटिंग: 8/10
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,469
24,677
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प्रिय avsji महोदय,

आपके साहित्यिक कार्यों की सराहना मैंने पूर्व में कई बार सुनी है। आपके लेखन की गूंज और आपकी लेखनी की परिपक्वता की चर्चा इस फोरम पर आदरपूर्वक होती रही है। यह मेरे लिए एक सौभाग्य की बात है कि मुझे पहली बार आपके किसी रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी लिखने का अवसर मिला है।

पिछले वर्ष की कहानी प्रतियोगिता में आपके विजयी होने की जानकारी निःसंदेह आपकी रचनात्मक क्षमता का प्रमाण है। ऐसे सम्मानित लेखक की रचना को पढ़ना और उस पर विचार प्रकट करना, मेरे लिए एक सीखने और समझने की प्रक्रिया भी है।

✒️ समीक्षा-पत्र:

“अपशगुनी” – जब वृक्ष केवल वृक्ष नहीं होता
लेखक महोदय:
avsji


कहानी “अपशगुनी” पढ़ते समय मुझे यह बार-बार महसूस हुआ कि यह केवल एक वृक्ष की कथा नहीं है, बल्कि एक सम्पूर्ण समाज की सामूहिक स्मृति, पीढ़ियों की चेतना और विश्वास-अविश्वास के द्वंद्व की अद्भुत अनुगूंज है। जिस प्रकार शरतचंद्र एक साधारण पात्र के माध्यम से समाज का दर्पण प्रस्तुत करते हैं, वैसे ही avsji ने इस कहानी में अमरूद के वृक्ष को प्रतीक बनाकर एक पूरे परिवार के मानसिक, भावनात्मक और वैचारिक संक्रमण को बयाँ किया है।

अमरूद का पेड़ यहाँ केवल एक वनस्पति तत्व नहीं है। यह जीवन की जिजीविषा, सहज उत्क्रांति, और निर्दोष साक्षीभाव का प्रतीक है। यह पेड़ बढ़ता है—बिना किसी के सहयोग के, फिर मनुष्य उसे सहयोग देने लगता है, उससे स्नेह करता है, उससे प्रेरणा लेता है… और अंत में उसी पर अपने जीवन के दुःखों का ठीकरा फोड़ता है। यह 'विकास-घटना' किसी वृक्ष की नहीं, मनुष्य की स्वार्थी मानसिकता की है।

avsji का लेखन कौशल इस बात में दिखता है कि कहानी किसी एक पात्र पर केंद्रित नहीं है, बल्कि पूरा परिवार—भाई, बहन, माता-पिता, भाभियाँ, और यहाँ तक कि भावी पीढ़ियाँ भी—एक बहुस्वरात्मक संगति में इस वृत्तांत का हिस्सा बनती हैं। प्रत्येक का दृष्टिकोण, द्वंद्व, मोह, कुंठा और उसकी परिणति बहुत ही यथार्थवादी और मनोवैज्ञानिक रूप से विश्वसनीय है।

कहानी की सबसे गहरी परत उस ‘मानसिक संक्रमण’ की है जिसमें एक अत्याधुनिक, राजनैतिक रूप से सशक्त स्त्री (अम्मा) धीरे-धीरे एक अंधविश्वास-ग्रस्त, निराश, नियंत्रण-प्रिय स्त्री बन जाती है। यह रूपांतरण असहज करता है, परंतु अविश्वसनीय नहीं लगता—क्योंकि वृद्धावस्था, असहायता, और सामाजिक संरचना का दबाव इसी तरह से व्यक्तित्व को मोड़ता है।

avsji की लेखन शैली प्रांजल, विमर्शात्मक और भावनात्मक गहराई से भरपूर है। एक लंबे कथा-वृत्त में कहीं भी कथा बोझिल नहीं होती, क्योंकि उसका प्रवाह विचारशील और आत्मीय है। कहीं-कहीं संवाद इतने सजीव हैं कि पाठक को पात्रों के बीच खड़ा कर देते हैं। उदाहरण के लिए—गिल्लू की विद्रोहभरी मुस्कान और उसका “अब तो किसी अपशगुन की भी ख़ैर नहीं”—यह पंक्ति केवल व्यंग्य नहीं, एक पूरी पीढ़ी की आवाज़ है।

अमरूद का वृक्ष और गुलाब के पौधे—एक सहज और एक सहेजा गया—इन दोनों की तुलना समाज की उस प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है जहाँ प्राकृतिक सहजता की उपेक्षा होती है, और जो कृत्रिम है, उसे संरक्षण मिलता है। पेड़ का “अपशगुनी” होना उसी मानसिकता की देन है जो जीवन के सहज विकास से डरती है।

यह कहानी महज़ एक वृक्ष की हत्या की नहीं, बल्कि एक विचार की हत्या की कथा है। यह संघर्षशील वृक्ष ‘मनुष्य की चेतना’ का प्रतिरूप है, और गिल्लू द्वारा बीज बोना एक नया बीजवपन है—सामाजिक क्रांति का, तार्किक पुनर्जागरण का।


🔖 अंतिम निष्कर्ष:


“अपशगुनी” एक असाधारण कहानी है जो सामान्य प्रतीकों के माध्यम से असामान्य गहराइयाँ स्पर्श करती है। यह कहानी नहीं, एक आंदोलन है—संवेदना, प्रतिरोध और बदलाव का।


रेटिंग:
अंक देना अनुचित होगा… यह कहानी किसी भी ‘रेटिंग सिस्टम’ से परे है

प्रिय vakharia वखारिआ भाई : अतिशय प्रशंसा भरे इस विश्लेषण से मन आह्लादित हो गया। ♥️ ♥️ ♥️ 🙏🙏🙏

आगे की कहानियाँ अच्छी बन पड़े, उनमें सुधार आ सके, उसके लिए पाठकों और समालोचकों की आलोचना अच्छी होती है, लेकिन यदि इस तरह की प्रशंसा मिल जाए, तो यह कहना गलत होगा कि किसी भी लेखक को आनंद न होने लगे! बहुत बहुत धन्यवाद! 🙏🙏🙏

बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि आपको यह कहानी पसंद आई - यह मेरे लिए सबसे बड़ा पारितोषिक है। मेरी कोशिश मेरी हर कहानी से यही रहती है कि पाठकों का अच्छी तरह से मनोरंजन हो सके, और यदि संभव हो, तो उनको एक दो अच्छे सन्देश दे सकूँ। यह कहानी भी उसी कोशिश की लम्बी ज़ंजीर में एक और कड़ी है।
कहानी के लिए यह आपने जो सुन्दर सा पोस्टर बनाया है, उसके लिए अन्तस्तल से धन्यवाद! बड़ा ही मोहक चित्र है, जिसको मैं आगे इस्तेमाल करूँगा (प्रतियोगिता के समाप्त हो जाने के बाद)!

आपने जो लिखा, "अमरूद का वृक्ष और गुलाब के पौधे—एक सहज और एक सहेजा गया—इन दोनों की तुलना समाज की उस प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है जहाँ प्राकृतिक सहजता की उपेक्षा होती है, और जो कृत्रिम है, उसे संरक्षण मिलता है। पेड़ का “अपशगुनी” होना उसी मानसिकता की देन है जो जीवन के सहज विकास से डरती है।" -- वो इतना सुन्दर और काव्यात्मक है कि क्या कहें! शब्दों का ताना बाना बुनने में तो भाई आप भी कम नहीं लगते -- यह एक विलक्षण प्रतिभा है!

आशा है कि आपने भी इस प्रतियोगिता में कुछ न कुछ लिखा होगा। यदि हाँ, तो शीघ्र ही पढ़ने को इच्छुक हूँ, और यदि नहीं, तो आपसे यही निवेदन है कि आप कुछ लिखें अवश्य!

पुनः, इस प्रेम भरी विवेचना और आपके समय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
 
Last edited:

Mrxr

ᴇʏᴇꜱ ʀᴇᴠᴇᴀʟ ᴇᴠᴇʀʏᴛʜɪɴɢ ᴡʜᴀᴛ'ꜱ ɪɴ ᴛʜᴇ ʜᴇᴀʀᴛ
4,413
2,703
144
Story ; Born Again For the cup
Written by ; Avaran
Story line ;
Fantasy​

Story aveer naam ke ladke ki hai jo god ki galti ki wajah se mar jata hai, toh god usko ek wish mangne ko dete hain, aur aveer wish me india ki taraf se world Cup khelne ki wish mangta hai.

Positive points

  • Story me fun, motivation aur emotions dikhai dete hai.
  • Kabhi-kabhi sapne bhi hame kuch kar dikhane ka hausla de jate hai real life me.
  • Story me team ki sporting spirit dikhai gai hai.

Negative points

  • Story ke kuch scene lambe hone se bore karte hai.
  • Aveer ka har match me accha perform karna,story ko thoda dramatic aur unnatural banata hai.
  • God ke character ko aur dikhaya ja sakta tha.
  • Jab aveer ko god ne team india me bheja, toh aveer ki soul ko kis ki body me dala tha.

Mistakes

Story me kanhi kanhi words mistakes hain.Aveer ke characters me thoda struggl dala ja sakta tha,jisse vo aur realistic lagta.story ke mid me god ke kuch scenes dikhaye ja sakte the.

Story bahut acchi aur saafi se likhi gai hai, jo padhne me flow deti,

Rating ; 7/10
 

vakharia

Supreme
5,922
20,467
174
प्रिय vakharia वखारिआ भाई : अतिशय प्रशंसा भरे इस विश्लेषण से मन आह्लादित हो गया। ♥️ ♥️ ♥️ 🙏🙏🙏

आगे की कहानियाँ अच्छी बन पड़े, उनमें सुधार आ सके, उसके लिए पाठकों और समालोचकों की आलोचना अच्छी होती है, लेकिन यदि इस तरह की प्रशंसा मिल जाए, तो यह कहना गलत होगा कि किसी भी लेखक को आनंद न होने लगे! बहुत बहुत धन्यवाद! 🙏🙏🙏

बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि आपको यह कहानी पसंद आई - यह मेरे लिए सबसे बड़ा पारितोषिक है। मेरी कोशिश मेरी हर कहानी से यही रहती है कि पाठकों का अच्छी तरह से मनोरंजन हो सके, और यदि संभव हो, तो उनको एक दो अच्छे सन्देश दे सकूँ। यह कहानी भी उसी कोशिश की लम्बी ज़ंजीर में एक और कड़ी है।
कहानी के लिए यह आपने जो सुन्दर सा पोस्टर बनाया है, उसके लिए अन्तस्तल से धन्यवाद! बड़ा ही मोहक चित्र है, जिसको मैं आगे इस्तेमाल करूँगा (प्रतियोगिता के समाप्त हो जाने के बाद)!

आपने जो लिखा, "अमरूद का वृक्ष और गुलाब के पौधे—एक सहज और एक सहेजा गया—इन दोनों की तुलना समाज की उस प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है जहाँ प्राकृतिक सहजता की उपेक्षा होती है, और जो कृत्रिम है, उसे संरक्षण मिलता है। पेड़ का “अपशगुनी” होना उसी मानसिकता की देन है जो जीवन के सहज विकास से डरती है।" -- वो इतना सुन्दर और काव्यात्मक है कि क्या कहें! शब्दों का ताना बाना बुनने में तो भाई आप भी कम नहीं लगते -- यह एक विलक्षण प्रतिभा है!

आशा है कि आपने भी इस प्रतियोगिता में कुछ न कुछ लिखा होगा। यदि हाँ, तो शीघ्र ही पढ़ने को इच्छुक हूँ, और यदि नहीं, तो आपसे यही निवेदन है कि आप कुछ लिखें अवश्य!

पुनः, इस प्रेम भरी विवेचना और आपके समय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏

प्रिय avsji,

बहुत खुशी हुई यह जानकर कि आपको मेरी समीक्षा पसंद आई।

आपने पूछा कि क्या मैंने प्रतियोगिता में कोई कहानी लिखी है—तो जी हाँ, मैंने दो कहानियाँ भेजी हैं।

पहली कहानी, एक हजार वर्ष पूर्व की एक राजसी कहानी है, जिसमें पारिवारिक व्यभिचार का तत्व भी सम्मिलित है – यदि आप ऐसे विषय की कथा पढ़ने में सहज हो तो अवश्य पढ़ें।

दूसरी कहानी एक अत्यंत जज्बाती और रोमेन्टीक कहानी है।

दोनों कहानियों के लिंक नीचे साझा कर रहा हूँ।

आप इन्हें पढ़ सकते हैं और अगर आप चाहें तो आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मुझे बेहद खुशी होगी। 🙂


घोर पाप - एक वर्जित प्रेम कथा

The train that never stops..

आपकी रचनात्मक दृष्टि और समझ मुझे बहुत प्रभावित करती है, इसीलिए आपकी राय मेरे लिए विशेष मायने रखती है। पढ़कर आपकी प्रतिक्रिया देंगे तो बहुत खुशी होगी..

सादर..

वखारिया
 
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vakharia

Supreme
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कहानी समीक्षा: परिंदा
लेखक: Shetan

image

गत वर्ष की विजेता, चंदगी राम पहलवान जैसी कथा की रचयिता Shetan जी की और एक पेशकश..

"परिंदा" एक ऐसी कहानी है जो युद्ध और सीमा के पार के रिश्तों को एक मानवीय दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करती है। लेखिका ने इस कथा में देशभक्ति, मित्रता, प्रेम, और त्याग जैसे विषयों को एक साथ पिरोने का साहसी प्रयास किया है। एक पायलट की मजबूरी और दूसरे मुल्क में फंसने की सिचुएशन को बड़े ही सिनेमाई और भावनात्मक तरीके से चित्रित किया गया है।

कहानी वीरू और सरफ़राज़ की दोस्ती को केंद्र में रखकर चलती है, जो दुश्मन देशों के बीच मानवता और रिश्तों की ताकत को दर्शाती है। खासतौर पर वह दृश्य जब सरफ़राज़ उसे वापस भेजने की कोशिश करता है, बेहद मार्मिक बन पड़ा है।

लेखिका ने लगभग एक फिल्म स्क्रिप्ट जैसी डिटेलिंग के साथ कहानी को पेश किया है – जिसमें फ्लैशबैक, भावनात्मक क्षण, रिश्तों की पेचीदगियाँ और किरदारों की निजी यात्राएँ सम्मिलित हैं। इससे पाठक का ध्यान अंत तक बना रहता है।

नार्को टेस्ट के दौरान वीरू की बेहोशी में बोले गए संवाद उसके चरित्र को गहराई देते हैं और उसकी टूटन को सामने लाते हैं।

पाकिस्तानी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय दबाव के ज़िक्र से कहानी को यथार्थ की ज़मीन पर भी टिकाया गया है, जिससे यह केवल भावुक कथा नहीं रह जाती।

कहानी की एक मात्र कमी के बारे में लिखने का साहस करूंगा.. केवल वर्तनी और व्याकरण संबंधी त्रुटियों की ओर संकेत करना चाहूँगा, क्योंकि मुझे लगता है कि यदि इन त्रुटियों से बचा जाता, तो इस कहानी का प्रभाव और महत्त्व सौ गुना बढ़ सकता था। एक बार फिर क्षमा चाहता हूँ कि मैंने इन कमियों की ओर ध्यान दिलाने का साहस किया, परंतु यह इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि ये छोटी-मोटी भूलें एक बेहतरीन कहानी के शानदार प्रभाव को कुछ कम कर रही हैं।"सक्स/शख्स", "हेरत/हैरत", "गहेरी मुछे/गहरी मुछें ", "सायरिया/शायरियाँ", "इंजेक्शनलगा", जैसी कई शब्द त्रुटियाँ हैं जो एक पाठक के लिए पढ़ने में रुकावट पैदा करती हैं। इससे कहानी की गंभीरता और प्रभाव कुछ हद तक कमजोर हो जाता है।

✍️ अंतिम निष्कर्ष:
"परिंदा" एक ऐसी कहानी है जो बारूद के धुएँ के बीच भी इंसानियत की खुशबू तलाशने का प्रयास करती है। इसमें सैनिकों की जिंदगियों की जटिलता, सीमा पार दोस्ती की मासूमियत, और व्यक्तिगत त्रासदी की छाया – सब एकसाथ गूँथ दिए गए हैं।

लेखिका को इस भावनात्मक यात्रा के लिए बधाई – यह परिंदा अब उड़ चुका है...
🕊️✍️
 
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