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Chapter
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बेहद जबरदस्त शुरुआत.. देवनागरी लेखन समूह में आपका स्वागत है#१.नरक या भूलोक?
एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।
उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"
आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।
उसी दिन सुबह...
"मेरे शोना को भूख लगी?" अपने पति की तरफ नीली-भूरी आंखों से घूरते हुए विद्या ने कहा. आरव ने मासूमियत में अपना सिर 'हां' में हिलाया।
"आप क्या सिर हिला रहे हैं? मैं मेरे सोना से कह रही हूं।" तिरछा मुंह करते हुए उसने अपना हाथ पेट पर रख दिया।
आरव का मुंह खुला...
विद्या आंखे दूसरी तरफ करते हुए: "अगर भूख लगी है तो खा लीजिए, आपसे कोई पूछने नहीं वाला।"
आरव मुस्कुराते हुए: "मेरा दिल जब तक नहीं मानेगा, तब तक मैं कैसे खा सकता हूं।" विद्या ने कहने वाली थी, 'मैं किसी का दिल नहीं,' लेकिन उसने नहीं कहा और ऊपर एक बार देखके मुंह तिरछा कर लिया।
"अच्छा, अभी के लिए बाय, ये मनाने का खेल वापस आने पर जारी रखेंगे।"
आरव ने फिर विद्या के गालों को चूमा और "I love you, वेदु।" इतना कहने पर जब जवाब नहीं आया तो चेहरा थोड़ा नीचे गिर गया। और थोड़ा निराश होकर वह से चला गया। विद्या उसके जाने पर थोड़ी मुस्कुराई।
उन्हें इन सब में मजा आता था, आरव उस पर जान छिड़कता। 6 फीट का आदमी और सरहद पर लड़ने वाले फौजी की तरह मजबूत शरीर के साथ ही गुस्सा होने के बावजूद वो विद्या के सामने एक बिल्ली की तरह रहता। वो दोनों एक-दूसरे को पाकर खुश थे।
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पुलिस स्टेशन, सोनावला...
"तो कैसी है विद्या की तबियत, गुस्सा ठंडा हुआ कि नहीं?" आरव को थाने आते ही पहला सवाल उसके सीनियर विमल ने पूछा।
आरव मुस्कुराते हुए: "अभी तो कुछ नहीं हुआ। बाकी हमारी मैडम मान गई।"
विमल: "हां, परमिशन मिली है, और कल रात डीएम मैडम से ब्लूप्रिंट भी ले लिया है।"
आरव: "कितने आदमी होंगे सर वहां?"
विमल: "कमिश्नर साहब को उनके इंटरनल सोर्स से 34 बताया गया है।"
आरव: "कमाल है, वो सब इस मिशन के लिए मान गए, खास कर डीएम मैडम।"
विमल: "ऊपर से प्रेशर है उन पर शायद, मिस्टर सालुंखे जैसी हस्ती को बंदी जो बनाया है शेरा ने।"
आरव: "हां, अब पुलिस अमीर और गुंडों की रखैल जो हैं।"
विमल: "लेकिन तुम निराश मत हो, एक दिन इस पूरी गंदगी को हम साफ जरूर करेंगे। तुम्हारे जैसे अफसर के साथ काम कर मुझे भी मजा आता है।"
आरव, विमल की बात पर मुस्कुराया।
विमल (ब्लूप्रिंट पर उंगली रखते हुए): "ये रास्ते से हम जाएंगे, कम से कम कैजुअल्टी के साथ मिस्टर सालुंखे को बचाएंगे।"
आरव ने मुंह बनाते हुए: "हां, उसे तो लाना ही पड़ेगा।"
विमल (आंखें बड़ी करते हुए): "तुमने शायद सुना नहीं, कम से कम, ये मत भूलो हम पुलिस अफसर हैं, हममें और उनमें फर्क है।"
आरव (चेहरा ढीला होते हुए): "यस सर।"
आरव का गुस्सा विमल की तरफ नहीं, उन गुंडों की तरफ था। सभी तैयारी के साथ आरव और विमल एक बड़ी सी इमारत के ऊपर आ गए। उसके करीब एक बड़ी सी सफेद इमारत थी। अंदर से किसी कॉलेज की तरह थी। कुछ गुंडों को ठिकाने लगाकर वो नीचे जाने लगे। आरव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ तो गड़बड़ जरूर थी। वो सीढ़ियों से निचली मंजिल पर जाने लगे। शेरा गोदाम में था।
*पॉप*
*थड*
*थड*
आरव के साथियों की लाशें गिरने लगीं, एकदम से जैसे 100 बंदूकें किसी ने चला दी हों। पीछे मुड़ने तक एक गोली आरव की पीठ पर लग गई। जल्द से जल्द जितने बचे सिपाही थे वो सीढ़ियों के भीतर छिप गए। बाकी आसपास के कमरों में छुपे हुए थे। सभी लोग डर चुके थे, उन सभी को अब सिर्फ मौत दिख रही थी। इस तरह अचानक से हमला होने पर आरव भी थोड़ा डर गया था।
विमल: "ये कैसे हो सकता है, इतने लोग कैसे? ऐसे तो हम बचे 20 अफसर भी मर जाएंगे।"
आरव (दांत भींचते हुए): "सर, आप अभी भी समझ नहीं पाए, हमें फंसाया गया है। और अब नीचे हमारे साथी भी फंसे हुए हैं।"
विमल गुस्से से: "शिट शिट शिट।"
दोनों फ्रस्टेटेड और गुस्से में थे। नीचे शेरा के 35 नहीं बल्कि 100 से भी ज्यादा आदमी थे और वो भी हथियारों के साथ। विमल बस भगवान से दुआ मांग रहा था कि ये दिन उसका आखिरी न हो।
विमल अपना सिर पछतावे से हिलाते हुए: "अब हमें किसी तरह यहां से निकलना होगा।इतने पुलिस के साथ हम कुछ नहीं कर पाएंगे।"
आरव: "नहीं सर हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। अगर अभी भागे तो आगे हमें ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा, वो भी इतने सारे हरामखोर एक साथ।"
विमल: "तुम पागल हो गए हो क्या? उनमें से आधे भी हम नहीं मार सकते।"
विमल आरव की काबिलियत जानता था, लेकिन परिस्थिति इतनी आसान नहीं थी। आरव ने उसकी एक ना सुनी पूरी जोश और गुस्से के साथ बंदूक में गोलियां भरने लगा।
एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।
उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"
आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।
बंदूक की आवाज नीचे से बढ़ गई। विमल अपनी सांसों को काबू कर बचे अफसरों के साथ उतरने लगा तभी नीचे धमाका हुआ। इस पर आरवने पीछे विमल की तरफ देखा। जैसे बता रहा हो ये बम उसने फेंका था।
फिर जो विमल ने देखा वो कभी भूल नहीं सकेगा वो एक को मार पाता तब तक 10 लाशें नीचे गिरी हुई थीं। आरव को न तो खून से कोई घिनौना पन नजर आ रहा था और न ही किसी चीज की फिक्र थी। ये कोई लढाई नहीं कोहराम था। सीर क्षणों में फट रहे थे। जैसे उन साधारण इंसानों के बीच आरव एक दैत्य था। आरव की बंदूक जब एक वक्त खाली हुई और सामने से कोई आया तो नीचे पड़ी लाश को एक हाथ से उठाकर किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करने लगा और अपनी बंदूक भरने लगा।
कुछ ही मिनटों में लाशों का ढेर वहां पर बन गया। इस वक्त सभी लोग खून से लथपथ थे, आरव, सभी से तेज होने के बावजुड़ फिर भी उसे ही गोलियां लगी थीं। उसकी जगह कोई और होता तो मारा गया होता। सभी की आंखे फटी हुई थी। वो सब बचे हुए लोग एक साथ नीचे जाने लगे।
कुछ ही पल में सभी गोदाम जैसी जगह पहुंच गए। उस अंधेरे में उन्हें झरने की आवाज आने लगी।
उसी के साथ एक आवाज उनके कानों में पड़ी। "आइए, आइए, लगता है स्वागत में बहुत कमी पड़ गई आपके, 'विमल साहब' ।"
विमल अपनी बंदूक आगे कर इधर-उधर देखते हुए: "शेरा खुद को कानून के हवाले कर दे। तेरा जिंदा बचना अब हमारे हाथों में है।"
तभी वहां पर रोशनी हुई। उस गोदाम के बीचो-बीच एक बड़ा सा गड्ढा था। जहां से पानी के झरने जैसी आवाज आ रही थी।
गोदाम और पूरी इमारत ब्लूप्रिंट में उन्होंने देखी थी उससे बेहद अलग थी, इसलिए आरव ने आंखें बड़ी करके विमल की तरफ देखा। विमल समझ गया कि उनके साथ कोई बड़ा खेल हुआ था। उसका भी चेहरा इस बात से चिंता में चला गया।
उसी के सामने शेरा मिस्टर सालुंखे के पीछे खड़ा था और बंदूक सालुंखे पर तानी हुई थी।
शेरा: "अब क्या राय है विमल साहब आपकी?"
उसका इतना कहना था कि आरव ने बंदूक सीधे मिस्टर सालुंखे के ऊपर तानी, एक वक्त के लिए सालुंखे के साथ शेरा की भी सांसें रुक गईं।
"लगता है, इन जनाब को मरने का बहुत शौक है।"
*धाड़*
आरव ने अपना पूरा शरीर विमल की ओर झोंक दिया और गोली शेरा पर चला दी। शेरा के सर पर गोली लगते ही पानी में गिर गया और उसकी गोली आरव के सीने से जा लगी।
आरव की धड़कने एकदम से धीमी होने लगी, उसे अपना पूरा जीवन उल्टा दिखायी देने लगा, उसके सामने सबसे पहले तस्वीर अपनी पत्नी की आई जो कि गर्भ से थी, बाद में उसकी मां और उसके पिता की।
उसकी धड़कन अब बंद हो गई थी। विमल रोने लगा उसने अपना सबसे करीबी दोस्त जो खोया था।
............
कुछ महीनों बाद।
आरव का नजरिया.....
"मरीज को होश आ रहा है, जाओ डॉक्टर साहब को बुलाओ।" ये आवाज मेरे कानों में पड़ी। कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने हलके से आंखें खोली सामने एक औरत खड़ी जो कि शायद नर्स थी। आंखें पूरी खोल पाता तब तक मेरी फिर से आंखें बंद हो गई।
एक औरत की आवाज बहुत बार आती रही, वो मेरे पास आकर बहुत बार रोई।
धीरे-धीरे अब आसपास का शोर मुझे सुनाई देने लगा। शरीर बेहद हल्का महसूस कर रहा था। दवाइयों की महक आने लगी। तभी मैंने हलके से आंखे खोली।
"शुभम, अब कैसा महसूस कर रहे हो।" सामने खड़ी नर्स ने पूछा। मैं कुछ नहीं बोला, कितने दिनों से अस्पताल में था ये भी नहीं जानता था।
"ठीक है, आपका परिवार बाहर है उनसे मिल लीजिए।" ये बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।
तभी दरवाजे से एक औरत आई।
"बेटा, मुझे लगा था, मैं तुम्हे हमेशा केलिए खो दूंगी।" इतना कहते हुए वो औरत रोने लगी।
मैं पहचान नहीं पाया कि ये कौन है? और मेरे लिए इतना क्यों रही है। कही इस औरत को गलत फ़ैमी तो नहीं हुई कि मैं इसका बेटा हु। बहुत से सवाल मेरे मन थे और कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। जैसे उसे औरत शायद में जानता हु। लेकिम उस औरत को टोकने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। फिर वो मेरी तरफ उत्सुकता से देख रही थी कि मैं कुछ बोलूं।
मैने पूछा: "विद्या कहा है।"
उसने बारीक आंखों से देखकर कहा :" कौन विद्या बेटा, तू किसकी बात कर रहा है, शायद तू श्वेता की तो बात नहीं कर रहा। तेरी बहन आ रही है, पिताजी भी आयेंगे जल्दी।"
मैं कुछ भी समझ नहीं पाया: "मेरी बहन, मेरे पिता ये क्या बाते कर रही है? आप है कौन?।"
मेरी बात सुनते ही उन्होंने भौवें ऊपर की : "बेटा कैसी बाते कर रहा है तू।"
मैने अपना सर भींच चिल्लाते हुए कहा: "मैं कैसी बाते बाते कर रहा हु मतलब, आप पागलों जैसी बाते कर रही है, विद्या कहा है?, उसे बुलाइए।"
वो औरत एकदम से रोते हुए बाहर की और भाग गई। क्या हो रहा था, मैं समझ नहीं पाया। इसीलिए बैठने की कोशिश करने लगा।
फिर मुझे अजीब सा एहसास हुआ। पूरा शरीर बेहद हल्का महसूस हो रहा था। जब नीचे की और नजर डाली, मैं दुबला हो चुका था, लेकिन सबसे अजीब बात ये थी कि मेरा शरीर पहले से ज्यादा गोरा था।मैंने डर के मारे झटके से उठने की कोशिश की।
"शुभम तुम ये क्या कर रहे हो,अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुए हो।" नर्स तेजी से अंदर आने लगी और मुझे संभालते हुए पलंग पर बैठाने की कोशिश करने लगी।
तभी मुझे ध्यान आया, 'शुभम' ये नाम क्यों अपनासा लग रहा है। मुझे अजीब सी बात महसूस हुई, वो औरत तो शुभम की मां है, मैं उसे जानता हु।लेकिन कैसे? ये क्या हो रहा है, कही मैं नरक में तो नहीं हु। मेरे दिमाग में अभी कुछ यादें आने लगी थी। ये मेरी यादें नहीं शुभम की थी। फिर मेरा ध्यान एक स्टील की टेबल पर गया उसमें देखा तो दिमाग एकदम से फटने लगा।ये!!
मेरे सामने अंधेरा छा गया।
"बेटा तुम्हारा नाम बताओगे?" डॉ. ने पूछा।
मैंने हार मानते हुए : "शुभम।"
इतना कहने पर शुभम की मां ने खुशी की सांस ली। जिसका नाम शायद सुचित्रा था। ये मुझे कैसे पता, मत पूछो। पास ही मैं शुभम की बहन श्वेता खड़ी थी, वो शुभम से एक साल बड़ी थी, वो खुश नजर नहीं आ रही थी। शायद
शुभम से उसकी जमती नहीं थी। यादे बहुत धुंधली थी, जैसे किसी सपने की तरह मैं समझ पा रहा था कि वो मेरी नहीं है। और शायद मुझे शुभम के बारे में पता भी नहीं था, ऐसा लग रहा था लेकिन डॉ.जैसे सवाल पूछते गए मुझे वो उत्तर धुंधले तरीके से याद आने लगे।
डॉ. को यकीन हो गया कि मेरी यादाश्त ठीक है, और इतना कहकर सुचित्रा को बाहर बुलाया।
बाहर क्या बताया मुझे नहीं पता लेकिन इन सब से पागल होने लगा, मुझे मेरी मां और विद्या की चिंता होने लगी, विमल शेरा उन सब का क्या हुआ? कही इन सब में उनका तो कुछ लेना देना नहीं। मैं बहुत सोचने लगा, विमल पर शक करने जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन मरनेसे पहले उसे ही देखा था। उसे जरूर इस सब के बारे में पता होगा। कही मैं जिंदा तो नहीं और शुभम मेरी शरीर में तो नहीं, ये सब सवाल आते ही मैंने सामने देखा, श्वेता जो शुभम से शायद 2 साल बड़ी थी।
मैने कहा : " श्वेता, अपना फोन देना प्लीज।"
श्वेता ने उठ दबाते हुए कहा:" दीदी, और फोन की क्या जरूरत पड़ गई ऐसी।"
मैं सर खुजाते हुए : सॉरी दीदी, थोड़ा जरूरी काम है।
इतना कहकर फोन उससे खींच लिया।वो कुछ बोल पाती तब तक मैने मेरा नाम सर्च किया, आरव जंगले, तभी मुझे मराठी न्यूज आर्टिकल दिखा जिसमें बताया गया कि आरव जंगले जाने माने उद्योगपति को बचाते हुए शाहिद हो चुके है, जिनकी एक गर्भवती पत्नी है। आर्टिकल 6 महीने पुराना था।
तभी मुझे अहसास हुआ, इसका मतलब कि शायद मेरा बच्चा अब बिना पिता के जन्म लेगा और जब उसे सबसे ज्यादा मेरी जरूरत थी मैं नहीं हु।
ये सोचते ही आंसुओं से आंखे गीली हों गई। और खुदको रोने से रोक नहीं
पाया। तभी मेरे हाथ से श्वेता ने फोन खींच लिया।
"तुम रो क्यों रहे हो? और क्या पढ़ रहे थे।"
मैने कुछ नहीं कहा, अब मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे, लेकिन खुदको शांत कराने लगा।
........
तो इसका मतलब आपने शुरुवात पढ़ ली है। अगर समझने में मुश्किल हुई हो, तो फिक्र मत करो धीरे धीरे सब समझ आएगा। देवनागरी हिंदी में मेरा पहला प्रयोग है, और इस जॉनर में भी, अगला भाग जल्द ही आयेगा, बने रहिए।
कहानी सही जा रही है
आरव ने आज 2 काम किए हैं जो पुलिस की नजर में आये अब उसकी तलाश होगी
लेकिन ये भी है कि दोनों को एक साथ तभी जोड़ने वाला सिर्फ विमल है क्योंकि विद्या की शिकायत पर वो पर्सनल लेवल पर ढ़ूंढ़ेगा और विजू के कातिल को सिर्फ गौतम और उसके साथी जानते हैं या आदित्य
विद्या के सामने से भागना आरव के करैक्टर के साथ मैच नहीं करता, वो शुभम नहीं दिमाग से आरव है, एक सुलझा पुलिसवाला। कुछ बात घुमाकर विद्या से पहचान बनाता
जैसा kamdev99008 भैया ने कहा, विद्या से भागना कुछ अलग लगा मुझे।
बाकी बढ़िया अपडेट। क्लब में कम रोशनी थी तो पहचान होना मुश्किल है, जब तक गौतम या उसके दोस्त खुद सामने न आए।
Shaandar jabardast Romanchak Update![]()
Mind blowing writing skills Bhai shubham ko Vidya ke sath dosti kar leni chahiye Aisa kuch ho to achha rahega![]()
Bahut hi mazedar update
Update 5
Wah kya gazab ki update post ki he Anatole Bro,
Shubham ka ye wala rup dekhkar gautam & party ki to fat ke chaar ho gayi.........
Viju ko bhi nipta diya shubham ne..............
Keep rocking Bro
बहुत ही जबरदस्त अपडेट है ! एक दम ग़ज़ब का अपडेट दिया आपने विजू को निपटा दिया!
और गेम भी सही से सेट कर दिया है !
जबरदस्त
Intazar rahega agle amazing update ka
बेहद जबरदस्त शुरुआत.. देवनागरी लेखन समूह में आपका स्वागत है
पटकथा अति-रोचक है.. लिखते रहिएगा..!!
भाग 5 आ गया हैWow bahut badiya story hai ,next update ka intjaar rahega
धन्यवाद भाई।बेहद जबरदस्त शुरुआत.. देवनागरी लेखन समूह में आपका स्वागत है
पटकथा अति-रोचक है.. लिखते रहिएगा..!!
ShukriyaWow bahut badiya story hai ,next update ka intjaar rahega
Shaandar jabardast Romanchak Update#५.वो झूठा नहीं था।
विद्या के घर पे आज बहुत से लोग आए हुए थे जिसमें उसके माता-पिता, उसकी दीदी, जिजाजी और आरव की मां।
सभी लोग खाना खा रहे थे।
विद्या :"दीदी, 'सुयोग' क्यों नहीं आया।"
सुयोग ,शारदा यानी विद्या की बहन का बेटा।
शारदा :" स्कूल ट्रिप थी उसकी, वरना वो अपनी मौसी के यहां आने से कभी मना नहीं करता।"
विद्या :"कोई बात नहीं, ट्रीप से आणे के बाद भेज देना।"
विद्या की मां शीला बोली:"बेटी, उसकी कोई जरूरत नहीं, 'सुयोग' की भी पढ़ाई होगी।"
विद्या :" मां तीसरी या चौथी कक्षा में होगा वह, इतनी भी कोई पढ़ाई नहीं रहती।"
शीला:"हमारे हिसाब से नहीं रहती, लेकिन उनके हिसाब से वहीं बहुत है। कोई बात नहीं वैसे भी मैं हु ना अब यहां, और तुम्हारे पिताजी भी है, जबसे यहा आने की बात हुई तब से उन्हें रहा नहीं जा रहा था।"
विद्या:"वो तो होगा ही, अब उनके मन में प्यार है मेरे लिए।"
विद्या की बात पर शीला उसे आंख दिखाते हुए:"हा प्यार उनके मन में प्यार है, हमारे मन में नफरत।"
विद्या अपनी मां की बातों पर मुस्कुराई साथ ही सभी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान थी।
विद्या अपनी बहन के साथ कमरे में बात कर रही थी। उसके काम के बारे में दिन के बारे में बता रही थी। कैसे विद्या सब कुछ सम्भल रहीं है।
विद्या:"दीदी आप खुशनसीब हो आपके पास जीजू है, सुयोग है, एक छोटा सा परिवार। जिंदगी में और क्या चाहिए।"
शारदा ने इस पर कुछ नहीं कहा। उसके चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आई। वहीं अचानक से विद्या ने अपनी आंखे दूसरी और कर ली। उसकी आंखे थोड़ी सी गीली हो चुकी थी।
विद्या:"दीदी सॉरी।"
शारदा:"कोई बात नहीं, तेरी बड़ी बहन हु, तुझे मेरी खुशियों से कभी जलन नहीं होगी पता है।"
विद्या:"हा पर अपनी तरफ देखती हु, तो आंसू निकल हीं जाते है।"
शारदा:"तेरी जिदंगी भी अभी कहा खतम हुई है, अभी जिंदगी बच्ची है। अब तो तेरे पास नौकरी है, और आरव भी चाहेगा की तू खुश रहे।"
इतना कहते हुए शारदा ने विद्या का चेहरा अपनी तरफ किया।
विद्या की आंखे अब भर चुकी थी :"बात ये नहीं कि, मैं खुश नहीं होना चाहती। पर जब सोचती हु मैने आरव के साथ देखे सपने। हमारा बच्चा जिसे मैं संभाल नहीं पाई। जो उनकी निशानी बन कर मेरे पास रहता।"
शारदा:"तुम खुदको इस बात के लिए कोस नहीं सकती तुम्हारी जिसमें गलती ना हो। अब तुम देखो घर को किस तरह संभाल रही हो। तुम कभी भी कोई काम गलत नहीं कर सकती, ये सभी जानते है। सभी आरव के लिए दुखी है।"
विद्या ने कुछ नहीं कहा बस सर ना में घुमाया।
अब आंसू गालों पर आ चुके थे।
विद्या:"अभी एक साल भी नहीं हुआ, और मां मेरी दूसरी शादी कराने पर तुली है। आरव ठीक था, मां उसे पसंद नहीं करती थी।"
शारदा:"अब मैं इस बारे में कुछ नहीं बोल सकती, तुम्हारी शादी के लिए मैं और तेरे जीजा ही थे सबसे आगे थे। लेकिन मां को पता है कि तुम उससे कितना प्यार करती हो, वो भला नफरत कैसे करेगी आरव से। अब तो 'आरव की मा' भी तुम्हारी शादी के लिए कह रही है। पूरी जिंदगी अकेली नहीं काटी जाती इसिलिए बस सब को चिंता हैं।"
विद्या ने रेखा जी जैसे बात निकली तो शारदा की तरफ देखा।
शारदा:" सच कह रही हु, तू खुद उनसे पूछ ले। उनकी बाते मासे होती रहती है। वो भी चाहती है कि तुम्हारा परिवार हो। वो तुम्हे बेटी मानती है। उन्हें इस तरह तुझे अकेला देख कर अच्छा थोड़ी लगेगा।"
विद्या शारदा की बात पर चुपचाप रही।
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सुचित्रा जल्दी जल्दी में शुभम के कमरे में पहुंची। अंदर जाने से पहले शुभम अचानक सामने खड़ा हुआ। शुभम अपने कपड़े पहनते हुए दरवाजे के बीचोबीच खड़ा हो गया।
"माँ, क्या हुआ?" शुभम ने बटन लगाते हुए कहा। वो अब कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था।
सुचित्रा जैसे अपनी सोच से बाहर आकर : "कल मुझे क्यों नहीं जगाया? और इतनी रात को कपड़े धोने की क्या जरूरत पड़ी?"
शुभम थोड़ा सोचते हुए उसने कल रात खून से साने कपड़े धोकर ऊपर सुखा दिए थे :"वो.. वो दअरसल आज दोपहर को मुझे दोस्तो के साथ बाहर जाना था और और उस शर्ट पर दाग लगे हुए थे, इसीलिए.." शुभम कुछ आगे बोलता तब तक
सुचित्रा : "तुम्हे कबसे गर्द रंग की शर्ट पसंद आने लगी? और खुद धोने की क्या जरूरत थी?"
शुभम की नजरे सोचते इधर उधर हुए घुमाई, जैसे उसे जवाब आसपास से मिल जायेगा।
शुभम : "मैं बस आपको तकलीफ नहीं देना चाहता था। और मुझे आने में भी कल देर हो गई। वैसे श्वेता की तैयारी हुई कि नहीं, जाना है।"
शुभम की बात सुन सुचित्रा को अजीब लगा। वो उसके मुंह से आप बोलना,और बोलने का तरीका कितना बदल गया है उसके अभी ध्यान आया। सुचित्रा कुछ बोलती तब तक श्वेता वहां आ गई और जाने की बात करने लगी।
सुचित्रा : "अच्छा, तुम्हारे वापस आने पर बात करेंगे, वैसे कल चेतन मामा आए थे और तुम थे नहीं इसीलिए आज जाकर मिल लेना।"
शुभम ने चेहरा बनाते हुए : "क्यों मिलना है? किसी और दिन मिल लूंगा।"
शुभम की बात पर सुचित्रा ने आंखे दिखाई :"अच्छा वैसे तो बहुत मामा-मामा करते थे, अब क्या हुआ, और वैसे भी घर नहीं जाना है, उनके ऑफिस से ही चले जाना।"
श्वेता :" हा, मां तुम चिंता मत करो जाते वक्त उनकी फाउंडेशन से होकर आयेंगे।" इतना कहकर उसने कुछ आंखों से इशारा किया मैं समझ नहीं पाया।
सुचित्राने भी आंखों से इशारा करते हुए कहा :"हा ठीक है, मिल लेना।"
मैं कुछ समझ नहीं पाया, गाड़ी पर बैठते वक्त मैने श्वेता से पूछा। " क्या बात चल रही थी?"
श्वेता :"क्या?"
मैने गाड़ी चालू करदी फिर वो बैठी।
मैं :"वही इशारों से क्या चल रहा था?"
श्वेता :"तुम्हे उससे क्या? तुम अब घर पर नहीं रहते, रहते तो पता होता।"
मैंने आईने से पीछे देखते हुए :"ऐसी क्या बात है, अब बताओ भी?"
श्वेता : "कोई बात नहीं बस कोई इंसान है, चेतन मामा के साथ अन्वी फाउंडेशन में काम करता हैं, अब इसके आगे का तुम खुद मामा से पूछ लो।"
कोण इंसान हैं? कही शुभम के मामा की प्रेमिका वगेरे तो नही। लेकिन अन्वी नाम सुनते ही, मेरे दिमाग में कोई तो बात सता रही थी, ये नाम मैने कही तो सुना हुआ था कहा सुना था मुझे याद नहीं आ रहा था। शायद शुभम ने उसकी मामा की वजह से सुना हो लेकिन ये नाम मैने अभी कुछ दिनों पहले सुना था।
________
कॉलेज में आकर वही पकाने वाले लेक्चर में बैठना था। ब्रेक में मेरा किसी से भी यहा पर बात करने का मन नहीं हो रहा था। खासकर आदित्य से, जो कि बाते ऐसे बता रहा था कि जैसे मैं बच्चा हु।उसकी बाते सुनते वक्त मुझे ऐसा लगा कोई घूर रहा है, ये कोई और नहीं बल्कि गौतम और उसकी गैंग थीं। वो तीनो मूर्ति बने मेरी तरफ देख रहे थे। मुझे लगा नहीं था वो तीनो आज आयेंगे भी। कल रात के हादसे के बाद, लेकिन शायद मैने सोचा उससे मजबूत है।
कुछ देर बाद दो लड़किया आकर बैठ गई, गौतम ने नजर उनकी तरफ कर नकली सी मुस्कान दी। और कुछ उनकी बाते चालू हो गई।
मैं तभी अपनी जगह से उठा।
आदित्य बोला : "कहा जा रहे हो?"
फिर उसकी नजर गौतम पर गई "तुम्हे उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं।"
मैं : "तुम मेरी चिंता मत करो, मैं अभी आया।"
मेरे इतना कहने पर आदित्य का चेहरा उतर गया। वो कुछ बोलता तब तक, मैं गौतम की तरफ चल दिया।
मेरे जाते ही उन पांचों की नजरे मेरी तरफ हुई।
मैं :"मुझे तुम तीनो से कुछ बात करनी है, तुम जाओ।" मैने उन लड़कियों को इशारा करते हुए कहा।
उसमें से एक लड़की बोली जिसका नाम शायद से श्रेया था : "गौतम, ये कैसी बतदमीजी कर रहा है, देखो शायद अपनी जगह नहीं जानता। और ऐसे बात करने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?"
मैं कुछ बोलता तभी गौतम बोला : "जाओ तुम दोनों, मैं करता हु बात।"
वो कुछ बोलती तब तक उन्हें ओम ने इशारे से जाने को कहा। वो आंखे दिखाते हुए वहा से चली गई।
गौतम उनके जाने पर : "शुभम, श्रेया की बात को दिल पर मत लो, वो नादान है।"
उसकी हा में हा करते हुए बाकी भी कुछ बोलते।
मैं : "उससे मुझे कोई फरक नहीं पड़ता, मैं तो तुम सबसे माफी मांगना चाहता हु।"
ये सुनकर तीनों ने एकदूसरे की तरफ देखा। लगभग तीनों का गला एक ही समय सुख गया।
गौतम : "हमे माफ करदो, हमने तुम्हे जो भी कहा और किया वो अनजाने में किया, अब ऐसा कभी नहीं होगा।"
गौतम की बात पर बाकी दोनों ने उसके तरफ देखा और : "हा... हा बिल्कुल हम सब शर्मिंदा है, और तुम्हारे बारे में भी किसीको कुछ नहीं बताएंगे। तुम जो कहोगे वही करेंगे।"
उन तीनों की बात सुन ऐसा लगा कि ये कितने हरामी है, इतना सब होने के बाद भी उन्हें अक्ल नहीं आई। अभी भी जैसे मैं कोई गैंग हु और ये उसमें में इन्हें शामिल करवा रहा हु ऐसे बर्ताव कर रहे है। लेकिन उन्हें समझाते हुए बोला।
मैं: " नहीं, गलती मेरी थी जो वो सब, तुम सब के सामने हुआ। और मेरा उद्देश्य तुम्हे डराने का बिल्कुल नहीं था, मैं बस इतना चाहूंगा कि ये बात किसीको पता ना चले। अगर तुम किसीको इस बारे मे बताना भी चाहोगे, तो मैं तुम तीनो को कुछ नहीं होने दूंगा।"
मुझे लग रहा था कि उन्हें कुछ राहत की सांस मिलेगी अगर मैं बताऊं कि उन्हें नुकसान पहुंचाने का मेरा उद्देश्य नहीं। लेकिन वो तीनो अब बहुत डर गए शायद उन्होंने मेरी बात का गलत मतलब निकाल दिया।
भलेही उनका पुलिस को मेरे बारे में बताना मेरे लिए घातक था, लेकिन उन लड़कों जो सदमा मेरी वजह से जो मिला है, वो मैं कभी नहीं चाहता था। क्योंकि मैं कानून की नजरों में गलत था और खुदकी नजरों में भी लेकिन ये गलत काम करना एक जरूरत थी।
वो फिरसे मुझसे माफी मांगने लगे, मुझे थोड़ा बुरा लगा, कुछ और कहता तब तक मेरे पीछे आदित्य को आता देख मैं वहा से अलग हुआ।
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एक आदमी अस्पताल में लेटा हुआ , उसके सामने दो हवलदार और एक पुलिस अफसर जो कि 'विमल' था। शरीर पर बहुत से ज़ख्म थे वो बोलने के भी काबिल नहीं था। विमल ने डॉक्टर को इशारा किया, और डॉक्टर वहा से चला गया। फिर से अपनी नजरे उस जख्मी इंसान के तरफ की।
विमल :"गणेश, जिसने पंधरा साल की उम्र में अपना पहला खून किया, बाद में पुलिस से बचाकर शेरा के लिए काम करने लगे, उसके बाद विजू के लिए, और उसका उसे इनाम अब इतने सालों बाद मिला।"
गणेश विमल को घूरते हुए चुपचाप रहा। विमल गणेश की तरफ देख मुस्कुराया।
विमल : "वैसे तुम्हारा नसीब सबसे खराब है, 30 लाशे मिली, जिनपर गोलियां चाकू और कांच बहुत से घाव है, लेकिन तुम ही बचे।"
इतना कहकर विमल ने अपना पैर गणेश के पास रख कुर्सी पर पीछे हुआ।
विमल : " ठीक है, तो बताओ किसके आदमी थे जिन्होंने विजू की गैंग पर हमला किया।"
अपना सर ना में घुमाते हुए गणेश: " नहीं।"
विमल ने सीधे लात उसके शरीर पर रख दी।
गणेश लगभग आंसू निकालकर चिल्लाने लगा।
विमल: "अगर तू नहीं बताएगा, तो जल्द ही भगवान से पूछेगा कि तुझे जिंदा क्यों रखा। तो इसीलिए सीधे शब्दों में बता दे।"
गणेश बोलने कोशिश करते हुए: " वो एक ... अकेला था।"
विमल : "क्या बोला? ये कौन सी गैंग है 'अकेला'।"
विमल ने अपने साथी हवलदारों की तरफ देखा। जैसे कभी नाम सुना है कि नहीं।
गणेश :"नहीं अ ए....एक लड़का आ.. था वो बस।"
विमल : "क्या बकवास कर रहा है? नशा उतरा नहीं क्या तेरा।"
गणेश :" नह ..ही साहब, वो अठारह ह ह साल का.."
आगे उसके शब्द धीरे से निकले।
विमलने झट से हवलदार की तरफ देखते ही हवलदार बाहर भाग कर गया, कुछ ही क्षणों में डॉक्टर वहा पर आ गए
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मेरा दिमाग वैसे ही आदित्य ने खराब कर दिया था। कॉलेज छूटा और मैं श्वेता के लिए पार्किंग में राह देख खड़ा था।
"शुभम, क्या हुआ तुम्हे, ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो?" आदित्य मेरे पास आकर बोला। इस वक्त मेरा सब्र का बांध टूट गया।
मैं :"देखो तुम्हे मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। तुम जिस शुभम को जानते थे वो अब नहीं रहा, तुम्हे बुरा लगेगा लेकिन यही सच है। एक्सीडेंट के बाद तुम जिस भी शुभम को जानते थे वो नहीं रहा।"
आदित्य आगे कुछ नहीं बोला। मेरे इस तरह के शब्दों से उसके हाव भाव बदल गए। उसके कदम अचानक वहीं रुक गए।
मैं : " देखो मैं तुम्हे बुरा महसूस नहीं करवाना चाहता, लेकिन मुझे लगता है मैं तुम्हे जानता भी नहीं हु, बस इतना की तुम एक अच्छे लड़के हो मुझ जैसे इंसान के साथ रहना तुम्हारे लिए सही नहीं है।"
आदित्य ने अपना सर नीचे किया उसे बुरा शायद बहुत लगा था : "ठीक है।" इतना कहकर वो जाने लगा फिर रुककर। "मैं जिस शुभम को जानता हु, वो गैरजिम्मेदार था लेकिन उसने कभी मुझसे झूठ नहीं बोला, वो झूठा नहीं था। या तो तुम बदल गए हो या फिर मैं जिस दोस्त को जानता हु वो है ही नहीं।"
इतना कहकर वो वहां से चला गया। उसके लिए मुझे बुरा लग रहा था लेकिन बात सच थी। उसका दोस्त यह है ही नहीं सिर्फ मैं हु। मेरा मुंह अब उतर चुका था।
तभी सामने से तेजी से चलते हुए श्वेता आयि। लगभग चिल्लाते हुए।"चलो।"
मैं :" क्या हुआ?"
फिर श्वेता ने आंखे दिखाते हुए : " मैने कहा ना चुपचाप चलो तो चलो।"
मैने आगे कुछ ना बोलकर गाड़ी शुरू की वो पीछे बैठ गई।
आगे जाकर जब लगा कि वो शांत हो गई है तो पूछा।
"क्या हुआ? मुझे बताओगी।"
श्वेता :"तुम क्या कर लोगे?"
मैं : " बताओ तो सही।"
श्वेता : "कुछ नहीं, चलो हमे मामा से मिलने जाना है।"
जरूर कुछ तो हुआ है, बाद में पूछना पड़ेगा।
मैं : "वैसे तुमने बताया नहीं क्या इशारे कर रही थी, मां से."
श्वेता :"कुछ नहीं, वो कल मामा आए थे, बोल रहे थे मां से उन्हें एक लड़की पसंद है, शायद उनके यहां शादी की बात करने के लिए मम्मी से पूछने बोल रहे थे कि नानी से कहे।"
मैं : " अच्छा।"
श्वेता :"अच्छा क्या अच्छा? तुम खुश नहीं हो, चेतन मामा शादी कर रहे है।"
मैं :" मैं क्यों खुश होऊंगा?"
श्वेता :"क्यों तुम्हे ही तो शादी पार्टी वगैरह में मजा आता है।"
मैं कुछ बोल ना पाया और हम अन्वी संस्था के पास पहुंच गए।
श्वेता झट से ऊपर चली गई। शायद वहां पर चेतन का ऑफिस था। मैं इधर उधर देखते हुए अंदर जाने लगा। तभी मेरी नजर मेरी विद्या पर पड़ी, सबसे पहला सवाल मेरे मन आया कि ये यह क्या कर रही है। लेकिन जब उसे किसी से फोन पर बात करते हुए देखा तो मैं समझ गया कि क्या होने वाला है।
मैं श्वेता के पीछे जाने वाला था मामा के पास जो कि शायद ऊपर था। लेकिन मैं सीधे विद्या की तरफ चला गया।
विद्या थोड़ी डर गई थी।
मैं : "मैडम दरअसल मुझे आपसे बात करनी थी, उस दिन हो नहीं पाई।"
विद्या : "रुको मैं नहीं जानती तुम यहां क्यों आए हो, लेकिन मैने पुलिस को अभी कॉल किया है वो आते ही होंगे और एक कदम भी आगे बढ़ाया तो यहा भीड़ खड़ी हो जाएगी।"
मैं :"सुनिए मुझे सच में आपसे बात करनी है, औंर मैं आपका पिछा नहीं बल्की आपसे बात करना चाह रह था."
विद्या :"क्या बात करनी है तुम्हे?"
मैं :"बहुत जरुरी है, आरव से जुडी बात है।"
विद्या ने नाम सुनते ही इधर उधर देखा। वो बाहर आई,मैं उसके साथ सीढ़ियों के पास खड़ा हुआ:"तुम इतना जोखिम उठाकर बात करना चाहते हो ,इसीलिए तुम्हे मौका दे रही हु, वैसे भी कुछ मिनिट में पुलिस आएगी। तुम्हारा क्या संबंध है आरव से।"
मैं :"अकेले में बात कर सकते है, यहां बहुत से लोग है।"
विद्या :"नहीं जो कहना है यही कहो। कोई नहीं सुनेगा।"
मैने उस पर कुछ नहीं बोला। इस तरह मुझ पर विद्या का भरोसा ना देख बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन उसकी इसमें गलती नहीं थी।
मैं :"दअरसल मैं आरव को जानता हु, उनकी मौत जिस जगह पर हुई थी, ड्रग्स के रैकेट को पकड़ते वक्त दरअसल वो जगह अभी अन्वी फाउंडेशन को दी गई है रेंट पर।"
विद्या:"ये तुम्हे कैसे पता? और इसका क्या संबंध आरव से।"
मैं :"दअरसल मैं वहा पर एक बार जा कर आया हु, और वो जगह अभी भी ड्रग्स का अड्डा है।"
विद्या:"क्या बकवास कर रहे हो? और ये बात सच हैं तो पुलिस को बताओ।"
मैं:"हा, बता देता लेकिन मैं किसी पर भरोसा नहीं करता,और आप यहां पर काम करती है इसीलिए।"
विद्या:"इन सब से तुम्हारा क्या संबंध।"
मैं:"इन सबसे सभी का संबंध है। ये हमारे शहर बर्बाद कर रहे है। और ऊपर से आरव को मैं जानता था।"
विद्या:"मैने तो कभी नहीं देखा तुम्हे, और तुम्हारी बातों पर भरोसा कैसे कर लू।"
मैं:"आपने पुलिस को फोन लगाया मैं उनके सामने ये बाते बोल दूंगा। और इतना बड़ा जोखिम मैं क्यों लूंगा अगर मेरी बात झूठी होगी तो।"
तभी मुझे पीछे से श्वेता की आवाज आई, उसके साथ उसके मामा भी थे। मैं मुड़ा साथ ही मैं विद्या भी मुड़ी।
चेतन:"मैं ऊपर इंतजार कर रहा था, और तुम नीचे खड़े होकर विद्याजी से बात कर रहे हो।"
विद्या:"सर आप इसे जानते हो।"
चेतन:"जानते हो मतलब मेरी बहन का लड़का है, बताया नहीं था 'कोमा' मे था।"
विद्या:"हा, मतलब अच्छे से जानते होगे।"
विद्या की मैने ना मैं इशारा किया।
चेतन:"वैसे शुभम तुम यहां क्या कर रहे थे?"
मैं:"वो बस पूछताछ कर रहा था, आपकी संस्था के बारे मे।"
तभी सामने से विमल पुलिस की गाड़ी में आया।
विद्या:"सर पांच मिनिट मुझे बस काम है आती हु।" इतना कहकर विद्या वहां पर चली गई। उसकी बातों से लग रहा था कि विद्या ने पूरी बाते विमल को बता दी
है। क्योंकि विमल की नजर अचानक मेरी तरफ हुई। ये नजर में जानता था, में भी पुलिस वाला था। ऊपर से विमल को अच्छी तरह से पहचानता था। उसे शक तो हुआ था। वो फिर चल गया। शायद वो शुभम के मामा के सामने मेरी पूछताछ नहीं करवाना चाहती थी।
और मुझे पता था विमल मुझसे मिलने जरूर आएगाl
.........लाइक दो और अपने विचार लिखो।मैं घूमने गया था, उसके बाद वापस आने पर थोड़ा काम में बिजी हो गया। एक महीना लगा है लेकिन अगला भाग जल्दी आएगा।