यह मेरे अठारहवें जनमदिन के कुछ ही दिनो बाद की बात है जब मैने ग़लती से अपने पिता के एक छोटे से गुपत स्थान को ढूँढ लिया. इस छोटी सी जगह मे मेरे पिता जी अपने राज़ छिपा कर रखते थे. ये गुपत स्थान बेहद व्यक्तिगत चीज़ों का ख़ज़ाना था. इनमे कुछ सस्ती ज्वेलरी थी जिनकी कीमत बाज़ारु कीमत से ज़्यादा शायद जज़्बाती तौर पर थी. कुछ उनके पुराने दोस्तो के फोटोग्रॅफ्स थे, कुछ कभी नज़दीकी लोगो द्वारा लिखी गयी चिट्ठियाँ थी. कुछ अख़बारों के कटाउट थे जो शायद उनके मतलब के थे. एक खास किसम का मार्का लिए दो रुमाल थे, इस मार्क को मैं जानता नही था. कुछ सिनिमास के, प्लेस के, और क्रिकेट मॅचस के टिकेट थे जो उन्होने इस्तेमाल नही किए थे.
उसके बाद कुछ ख़ास चीज़ें सामने आई. तीन प्रेम पत्र जो उनकी माशूकों ने उनको लिखे थे. दो खत किसी एक औरत के लिखे हुए थे जिसने नीचे, खत के अंत में अपने नाम के सुरुआती अक्षर स से साइन किए हुए थे जो मेरी मम्मी के तो यकीनी तौर पर नही थे. तीसरा खत किसी ऐसी औरत का था जिसका दिल मेरे पिता ने किसी मामूली सी बात को लेकर तोड़ दिया था और वो मेरे पिता से वापस आने की भीख माँग रही थी. इसके अलावा मुझे तीन तस्वीरे या यूँ कहे कि तीन महिलाओं की तस्वीरें मिली. सभी एक से एक सुंदर और जवान, और यही मेरे पिता का असली राज़ था जिसे उन्होने दुनिया से छिपाया हुआ था. उनमे से एक तस्वीर को देख कर मैने फ़ौरन पहचान लिया, वो मेरी आंटी थी, मेरे पिताजी के बड़े भाई की पत्नी यानी उनकी बड़ी भाबी. लेकिन तस्वीर देखकर मैं यह नही कह सकता था कि तस्वीर उसकी मेरे ताऊ से शादी करने के पहले की थी या बाद की.
इन सबको देखना कुछ कुछ दिलचस्प तो था मगर उतना नही जितना मैने जगह ढूढ़ने पर सोचा था. मुझे अपने पिता के अतीत से कुछ लेना देना नही था मगर मुझे ताज्जुब था कि यह सब मेरी मम्मी की नज़रों से कैसे बचा रह गया और अगर उसे मिला तो उसने इनको जलाया क्यों नही. या तो उन्होने ने इस समान की कोई परवाह नही की थी क्योंकि मेरे पिता भी अब अतीत का हिस्सा बन चुके थे या शायद यह जगह अभी तक उनकी निगाह से छिपी हुई थी.
इस सब समान मे जिस चीज़ ने मेरा ध्यान खींचा वो थी एक बेहद पुरानी काले रंग की जिल्द वाली किताब. वो किताब जब मैने खोलकर देखी तो मालूम चला कि कामसूत्र पर आधारित थी. किताब मे पेन्सिल से महिला और पुरुष को अलग अलग मुद्राओं मे संभोग करते हुए दिखाया गया था या पेन्सिल से अलग अलग आसनों में संभोग की ड्रॉयिंग्स बनाई हुई थी. मेरे जवान जिस्म में हलचल सी हुई, मुझे लगा मेरे हाथ में कोई किताब नही बल्कि दुनिया का कोई अजूबा लग गया था.
हमारा गाँव जो सूरत से कोई चालीस किमी की दूरी पर था, कोई 200 परिवारों का आशियाना था. गाँव में खेतीबाड़ी और पशुपालन का काम था. जवान लोग ज़्यादातर सूरत मे काम धंधा करते थे. इसलिए गाँव में मेरे जैसे जवान मर्द कम नही तो ज़्यादा भी नही थे. उस ज़माने में वो किताब एक तरह से मेरे मनोरंजन का खास साधन बन गयी थी. मेरी माँ सुबह मे खेतो में काम करती थी और मेरी बड़ी बेहन घर पर एक दुकान चलाती थी जो मेरे पिताजी की विरासत थी. दुपहर मे मेरी माँ दुकान पर होती और बेहन घर में खाना तैयार करती. मेरा काम था दुपहर मे खेतो मे काम करना और फिर अपनी दुधारू गाय भैसो को चारा पानी देना जो अक्सर शाम तक चलता था जैसा कयि बार जानवरों के चरते चरते दूर निकल जाने पर होता है. शाम में हमारा परिवार एक ही रुटीन का पालन करता था. मैं खेतो से बुरी तरह थका हारा कीचड़ से सना घर आता और ठंडे पानी से नहाता. मेरी बेहन मुझे गरमा गर्म खाना परोसती और फिर से अपने सिलाई के काम मे जुट जाती जिसमे से उसे अच्छी ख़ासी कमाई हो जाती थी. कई परिवार जिनके मरद सहर में अच्छी ख़ासी कमाई करते थे उनकी औरते महँगे कपड़े सिल्वाती और अच्छी ख़ासी सिलाई देती. मेरी मम्मी शाम को हमारे पड़ोसी और उसकी एक ख़ास सहेली शोभा के घर चली जाती और फिर दोनो आधी रात तक गाँव भर की बाते करती. इसलिए मम्मी से सुबह में जल्दी उठा नही जाता था जिस कारण सुबह मेरी बेहन दुकान चलाती थी. मेरी माँ खेतो में सुबह को काम करती जो कि काम कम ज़्यादा बहाना सुंदर थी
उसके बाद कुछ ख़ास चीज़ें सामने आई. तीन प्रेम पत्र जो उनकी माशूकों ने उनको लिखे थे. दो खत किसी एक औरत के लिखे हुए थे जिसने नीचे, खत के अंत में अपने नाम के सुरुआती अक्षर स से साइन किए हुए थे जो मेरी मम्मी के तो यकीनी तौर पर नही थे. तीसरा खत किसी ऐसी औरत का था जिसका दिल मेरे पिता ने किसी मामूली सी बात को लेकर तोड़ दिया था और वो मेरे पिता से वापस आने की भीख माँग रही थी. इसके अलावा मुझे तीन तस्वीरे या यूँ कहे कि तीन महिलाओं की तस्वीरें मिली. सभी एक से एक सुंदर और जवान, और यही मेरे पिता का असली राज़ था जिसे उन्होने दुनिया से छिपाया हुआ था. उनमे से एक तस्वीर को देख कर मैने फ़ौरन पहचान लिया, वो मेरी आंटी थी, मेरे पिताजी के बड़े भाई की पत्नी यानी उनकी बड़ी भाबी. लेकिन तस्वीर देखकर मैं यह नही कह सकता था कि तस्वीर उसकी मेरे ताऊ से शादी करने के पहले की थी या बाद की.
इन सबको देखना कुछ कुछ दिलचस्प तो था मगर उतना नही जितना मैने जगह ढूढ़ने पर सोचा था. मुझे अपने पिता के अतीत से कुछ लेना देना नही था मगर मुझे ताज्जुब था कि यह सब मेरी मम्मी की नज़रों से कैसे बचा रह गया और अगर उसे मिला तो उसने इनको जलाया क्यों नही. या तो उन्होने ने इस समान की कोई परवाह नही की थी क्योंकि मेरे पिता भी अब अतीत का हिस्सा बन चुके थे या शायद यह जगह अभी तक उनकी निगाह से छिपी हुई थी.
इस सब समान मे जिस चीज़ ने मेरा ध्यान खींचा वो थी एक बेहद पुरानी काले रंग की जिल्द वाली किताब. वो किताब जब मैने खोलकर देखी तो मालूम चला कि कामसूत्र पर आधारित थी. किताब मे पेन्सिल से महिला और पुरुष को अलग अलग मुद्राओं मे संभोग करते हुए दिखाया गया था या पेन्सिल से अलग अलग आसनों में संभोग की ड्रॉयिंग्स बनाई हुई थी. मेरे जवान जिस्म में हलचल सी हुई, मुझे लगा मेरे हाथ में कोई किताब नही बल्कि दुनिया का कोई अजूबा लग गया था.
हमारा गाँव जो सूरत से कोई चालीस किमी की दूरी पर था, कोई 200 परिवारों का आशियाना था. गाँव में खेतीबाड़ी और पशुपालन का काम था. जवान लोग ज़्यादातर सूरत मे काम धंधा करते थे. इसलिए गाँव में मेरे जैसे जवान मर्द कम नही तो ज़्यादा भी नही थे. उस ज़माने में वो किताब एक तरह से मेरे मनोरंजन का खास साधन बन गयी थी. मेरी माँ सुबह मे खेतो में काम करती थी और मेरी बड़ी बेहन घर पर एक दुकान चलाती थी जो मेरे पिताजी की विरासत थी. दुपहर मे मेरी माँ दुकान पर होती और बेहन घर में खाना तैयार करती. मेरा काम था दुपहर मे खेतो मे काम करना और फिर अपनी दुधारू गाय भैसो को चारा पानी देना जो अक्सर शाम तक चलता था जैसा कयि बार जानवरों के चरते चरते दूर निकल जाने पर होता है. शाम में हमारा परिवार एक ही रुटीन का पालन करता था. मैं खेतो से बुरी तरह थका हारा कीचड़ से सना घर आता और ठंडे पानी से नहाता. मेरी बेहन मुझे गरमा गर्म खाना परोसती और फिर से अपने सिलाई के काम मे जुट जाती जिसमे से उसे अच्छी ख़ासी कमाई हो जाती थी. कई परिवार जिनके मरद सहर में अच्छी ख़ासी कमाई करते थे उनकी औरते महँगे कपड़े सिल्वाती और अच्छी ख़ासी सिलाई देती. मेरी मम्मी शाम को हमारे पड़ोसी और उसकी एक ख़ास सहेली शोभा के घर चली जाती और फिर दोनो आधी रात तक गाँव भर की बाते करती. इसलिए मम्मी से सुबह में जल्दी उठा नही जाता था जिस कारण सुबह मेरी बेहन दुकान चलाती थी. मेरी माँ खेतो में सुबह को काम करती जो कि काम कम ज़्यादा बहाना सुंदर थी