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Incest वो कौन थी..? भाग २

Chutphar

Mahesh Kumar
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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम महेश कुमार है. अभी तक आपने मेरी कहानियों में मेरे बारे में जान ही लिया होगा. सबसे पहले तो मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मेरी सभी कहानियां काल्पनिक हैं, ये बस मनोरंजन के के लिये है इनका किसी के साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं है. अगर किसी‌ को ऐसा लगता है तो यह मात्र ये एक संयोग ही होगा।

जैसा कि‌ आपने मेरी पिछली कहानी
"वो कौन थी..?" में पढ़ा था कि सुमन दीदी की‌ शादी में किसी‌ अनजान के साथ मेरे सम्बन्ध बन गए थे, मगर मैं ये नहीं जान सका कि "वो कौन थी..?" अब उसके आगे का वाकिया लिख रहा हूँ... उम्मीद है ये आपको पसन्द आयेगी..
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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सुमन दीदी की शादी के बाद मैं वापस अपने घर पर तो आ गया, मगर घर पर आने के बाद भी मैं यही सोचता रहा कि आखिर ‘वो कौन थी?’ जिसके साथ मैंने सम्बन्ध बनाये थे..?

कुछ दिनों तक‌ तो‌ मेरे दिमाग में बस वो ही चलता रहा, फिर किसी तरह मैंने उसे दिमाग से निकालकर अपना ध्यान वापस पढ़ाई में लगाया और जैसे तैसे अपनी बाहरवीं की परीक्षा समाप्त कर ली।

परीक्षाएं समाप्त होने के बाद अब मेरी छुट्टियां चल रही थीं और परीक्षा परिणाम आने में अभी समय था। वैसे तो सब ठीक ही चल रहा था, मगर मेरे भैया उस समय छुट्टी आये हुए थे, इसलिये अब शायद आगे कुछ लिखने की जरूरत नहीं है.. आप खुद समझदार हैं.

भैया के घर पर होने से मै अपनी भाभी के साथ तो कुछ कर नही सकता था मगर फिर भी छुट्टियां चल रही थीं, इसलिये मैं अपनी मस्ती में मस्त था, पढ़ाई लिखाई कुछ नहीं.. बस दोस्तों के साथ मस्ती चल रही थी, पर भैया घर पर हों और मैं मस्ती करता फिरूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता...

आखिर एक दिन भैया ने मेरी क्लास लगा ही ली- "छुट्टियों में तुम सारा दिन घूमते रहते हो, इससे तो अच्छा है, आगे के लिये कोई तैयारी कर लिया करो या फिर कोई कोर्स ही कर लो. तुम कम्प्यूटर कोर्स क्यों नहीं कर लेते हो? आजकल कम्प्यूटर की हर जगह जरूरत भी है" आखिर में भैया ने मुझे कम्प्यूटर कोर्स करने के लिये आदेश सा सुना दिया...

अब मैं भी क्या कहता, भैया को मैंने भी हां भर दी, मगर मेरा दिल छुट्टियों में पढ़ाई या फिर कम्प्यूटर कोर्स करने का बिल्कुल भी नहीं था. आखिरकार छुट्टियां होती ही किस लिये हैं. मगर भैया को तो मैं मना भी नहीं कर सकता था।

भैया के कहने‌ पर मैं उसी दिन शहर के सभी कम्प्यूटर सेन्टरों में घूम फिर आया मगर सभी जगह कोर्स शुरू हो चुके थे और कोर्स के बीच में कोई दाखिला‌ देने को‌ तैयार नहीं था। एक दो जगह वो दाखिला देने‌ के लिये तैयार भी हो गए थे, तो मैंने मना कर दिया...

मैंने जब ये भैया को बताया तो उन्होंने ये कहते हुए मुझे काफी डांट सुनाई कि "तुमने पहले से ध्यान क्यों नहीं रखा कि कोर्स कब से शुरू हो रहा है, तुम्हें अपने भविष्य की कोई चिंता है कि नहीं? बस सारा दिन अपने आँवारा दोस्तों के साथ घूमते रहते हो..."

एक बार तो मैं अब दिल ही दिल‌ में खुश हो गया कि चलो भैया से डांट तो सुननी पड़ी, मगर कम्प्यूटर कोर्स से तो पीछा छूट गया, मगर फिर दो दिन बाद ही भैया किसी‌ काम से पास के ही शहर गए हुए थे, जब वो शहर से वापस आये तो उन्होंने मुझे बताया कि वहां पर भी बड़े कोर्स तो शुरू हो गए हैं मगर दस बारह सप्ताह का एक छोटा कोर्स इसी सोमवार से शुरू होने वाला है. अभी कम से कम वो कोर्स तो कर ही लो, इसके बाद बड़ा कोर्स देखेंगे...

वो कोर्स दूसरे शहर में था, इसलिये मैंने अब बहाना बनाया कि इतनी दूर आना जाना कैसे होगा? एक बार तो भैया ने भी मेरी बात पर सहमति जताई, मगर तभी मेरे पापा ने बताया कि रोजाना आने जाने की क्या जरूरत है, उस शहर में सुमेर यानि गांव वाले रामेसर चाचा का बड़ा लड़का रहता है, तुम उसके घर पर रहकर भी तो पढ़ाई कर सकते हो.

आपने मेरी पहले कि कहानियो मे पढा होगा सुमेर भैया सुमन दीदी के सबसे बङे भाई है जो की शहर मे रहते है। उनकी शहर मे ही नौकरी लग गयी थी इसलिये बीवी बच्चो‌ के साथ वो शहर मे ही रहते थे। गाँव तो कभी कभार बस छुट्टियों मे ही जाते थे।

मेरे भैया को भी अब ये बात सही लगी इसलिये अगले ही दिन भैया मुझे वहां लेकर पहुंच गये। मेरा दाखिला कम्प्यूटर सेन्टर में करवाने के बाद भैया मुझे अब रामेसर चाचा के लड़के के घर लेकर जाने‌ लगे. मगर दूसरे के घर बन्धन में रहना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिये मैंने भैया को बताया कि दूसरे के घर रहना मुझे अच्छा नहीं लगता, इससे अच्छा तो मैं रोजाना घर से ही आना जाना कर लूंगा. मगर भैया ने उल्टा मुझे ही डांट दिया... "यहां रहेगा तो कुछ पढ़ाई तो कर लेगा, अगर घर पर रहा तो सारा दिन अपने आवारा दोस्तो के साथ ही घूमता रहेगा..!"
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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मेरे अब लाख मना करने पर भी भैया मुझे रामेसर चाचा के लड़के के घर लेकर पहुंच गए. वैसे तो वो नौकरी करते हैं मगर उस दिन‌ उन्होंने भी आफिस से छुट्टी ली हुई थी, इसलिये वो हमें घर पर ही मिल गये। मेरे भैया ने जब उनको मेरे कम्प्यूटर कोर्स के बारे में बताया तो उन्होंने तुरन्त हां कर दी, उल्टा वो तो काफी खुश भी हो गए थे। अब तो मेरे लिये बचने का कोई भी तरीका नहीं था. खैर भैया के आगे मैं कर भी क्या सकता था..?

मेरे भैया और रामेसर चाचा का लड़का बातें कर ही रहे थे कि तब तक उनकी छोटी लड़की प्रिया हमारे लिये चाय नाश्ता ले आई। चाय नाश्ता टेबल पर रखने के लिये प्रिया अब जैसे ही वो नीचे झुकी मुझे जैसे एक हजार वोल्ट का झटका सा लगा, क्योंकि उसने एक तो गले में वैसी ही पतली सी चैन पहनी हुई थी, जैसी सुमन दीदी के तिलक वाली रात मैने पहचानी थी, उपर से उसमे दिल‌ के आकार का लॉकेट भी लगा हुवा था..

अब ऐसी चैन‌ पहनने वाली लड़की‌ की तलाश तो मैं सुमन की शादी से ही कर रहा था... "तो क्या सुमन की शादी में उस रात मैंने जिस लड़की के साथ सम्बन्ध बनाये थे वो प्रिया थी..?"

तभी मैंने सोचा कि अरे! मैंने प्रिया के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं! जरूर वो प्रिया ही थी, क्योंकि प्रिया काफी हंसमुख और तेज तर्रार लड़की है और सभी से ही वो हंसी मजाक भी करती रहती है। सुमन की शादी में भी सबसे ज्यादा प्रिया ही शरारत कर रही थी, जरूर वो प्रिया ही थी और ये तो मेरी ही गलती थी कि मैंने उस पर ध्यान ही नहीं दिया था।

चाय नाश्ता रख कर प्रिया वापस चली गयी मगर मैं प्रिया के बारे में ही सोचता रह गया. प्रिया के बारे में जानने के बाद मुझे अब ये कम्प्यूटर कोर्स कोई लॉटरी लगने से कम नहीं लग रहा था। जिस कम्प्यूटर कोर्स से मैं पीछा छुड़ाने की सोच रहा था, उससे मेरे हाथ इतना बड़ा खजाना लग जाएगा, ये तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

चाय नाश्ता करने के बाद मैं और भैया वापस अपने घर के लिये निकल गये। मुझे अब अपना सामान‌ लेकर इतवार को सुमेर भैया के घर आना था, क्योंकि सोमवार से मेरा कम्प्यूटर कोर्स शुरू होना था, मगर प्रिया के बारे में जानने के बाद मैं उनके घर आने के लिये इतना उतावला हो गया कि रास्ते में ही मैंने भैया से बोल दिया कि मैं कल ही अपना सामान लेकर यहां आ जाता हूँ...

मेरी बात सुनकर भैया अब थोड़ा चौंक से गए और.."अभी तक तो तुझे उनके‌ घर रहना पसंद नहीं था, अब क्या हो गया..?" भैया ने मुझे घुरकर देखते हुवे कहा।

मैंने भैया को यह बात कहकर गलती तो कर दी थी, मगर फिर मैंने बात को सम्भालते हुए भैया को बताया कि "अब उनके घर रहकर ही मुझे कोर्स करना है तो एक दो दिन पहले जाकर अपना सामान आदि ठीक से लगा लूंगा और उनके परिवार के हिसाब से वहां रहने‌ के लिये अपने आपको तैयार भी कर लूंगा.."

भैया ने भी कहा कि वो तो ठीक है मगर कल तो बुधवार ही है.. इतनी जल्दी जाकर भी क्या करेगा, शनिवार को चले जाना. मैंने भी अब किसी तरह दो दिन निकाले और शनिवार को दोपहर में ही रामेसर चाचा के लड़के के घर पहुंच गया...
 

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बस पांच लोगों का ही परिवार था उनका, जिसमें सुमेर भैया मतलब रामेसर चाचा के लड़के, जो कि लगभग 40 साल के थे, उनकी पत्नी सुलेखा भाभी, उनकी उम्र का तो मुझे पता नहीं, मगर देखने वो‌ मुश्किल से 27-28 साल की ही लगती थीं। ऊपर से वो थीं भी बहुत खूबसूरत, जिससे उनकी उम्र को बताना मुश्किल था। सुमेर भैया की बड़ी लड़की नेहा, जो की बी.ए. के अन्तिम वर्ष में थी, छोटी लड़की प्रिया, उसने बारहवीं की परीक्षा दी हुई थी और सबसे छोटा लड़का कुशल, जिसने अभी आठवीं की परीक्षा दी हुई थी.

अब आप‌ ये सोच रहे होंगे कि सुमेर भैया और सुलेखा भाभी की उम्र में तो इतना फासला हो सकता है मगर जब उनकी बड़ी लड़की बी.ए. के अन्तिम वर्ष की पढ़ाई कर रही है, तो सुलेखा भाभी की उम्र 27-28 साल कैसे हो सकती है..?

चलो मैं आपको बता देता हूँ, दरअसल सुलेखा भाभी सुमेर भैया की दूसरी‌ पत्नी हैं। सुमेर भैया की बचपन में ही शादी हो गयी थी‌ और नेहा व प्रिया जब 9-10 साल की थीं, तभी उनकी पहली पत्नी का देहान्त हो गया था। उसके बाद सुमेर भैया ने सुलेखा भाभी से शादी कर ली, जिससे उन्हें कुशल पैदा हुआ। नेहा और प्रिया सुमेर भैया की पहली पत्नी की सन्तान हैं और सुलेखा भाभी का बस एक ही लड़का कुशल है, जिसने अभी आठवीं की ही‌ परीक्षा दी हुई थी।

उनके घर पर पहले ही पता था कि मैं आने वाला हूँ इसलिये उन्होंने पहले से ही मेरे लिये कमरा तैयार कर दिया था। उनका घर ज्यादा बड़ा तो नहीं था, मगर एक ड्राइंगरूम व तीन कमरे एक छोटे परिवार के लिये पर्याप्त थे, जिसमें से एक कमरा उन्होंने मुझे दे दिया, एक कमरा प्रिया के मम्मी-पापा के लिये था और एक कमरे में वो तीनों भाई बहन सोते थे। पहले का तो पता नहीं, मगर मेरे पहुंचने के बाद वो लोग ऐसे ही सोने लगे।

मेरी कम्प्यूटर कक्षा सुबह आठ बजे से एक बजे तक ही होती थी, उसके बाद मैं घर आ जाता था. घर आकर मैं या तो सबके साथ कुछ देर टी वी देख लेता, या फिर सो जाता था। अगले चार-पांच दिन में ही मैं उनके घर में ऐसे घुल मिल गया, जैसे कि मैं उनके‌ परिवार का ही हिस्सा हूँ..!

सुमेर भैया से तो मैं इतना नहीं मिल पाता था मगर उनकी पत्नी सुलेखा भाभी, उनके बच्चे नेहा, प्रिया व कुशल बहुत मिलनसार थे। सुमेर भैया उम्र में मुझसे काफी‌ बड़े थे इसलिये उनसे तो मैं कम ही बात करता था, मगर सुलेखा भाभी से मैं खुलकर बात कर लेता था, क्योंकि उनका व्यवहार ही कुछ ऐसा था।

सुलेखा भाभी तो मुझसे काफी हंसी मजाक भी करती रहती थीं, जितना अच्छा उनका व्यवहार था, देखने में भी वो उतनी ही खूबसूरत थीं। सही में सुलेखा भाभी की खूबसूरती और उनके हंसी मजाक को देखकर कभी कभी तो मेरा दिल करता था कि क्यों ना मैं प्रिया को छोड़कर सुलेखा भाभी को पटाने के लिये लग जाऊं. मगर मेरे दिल‌ में प्रिया के साथ बिताई उस रात की एक कसक बाकी थी, इसलिये मैं प्रिया के साथ ही अकेले में मिलने की कोशिश करता रहता था...

मेरे अब पहले चार पांच दिन तो ऐसे ही गुजर गए, जिनमें प्रिया के साथ अकेले में तो मेरी कोई बात नहीं हो सकी, मगर फिर भी सबके सामने जब मै उससे बात करता था, तो वो मेरी बातों का हंस हंस कर ही जवाब देती थी। उसके इस व्यवहार से लगता नही था उस रात जिस लड़की के साथ मैने सम्बन्ध बनाये, वो लड़की प्रिया हो सकती है..? क्योंकि कभी‌ कभी तो मुझे लगता था जैसे वो खुद मुझ पर नजर सी रखती थी, की मै क्या कर रहा हुँ और कहाँ जा रहा हुँ..?

प्रिया का व्यवहार तो बिल्कुल सामान्य ही था मगर हां उसकी एक बात मैंने जरूर गौर की थी, जबसे मै उनके घर आया था तब से उसने वो चेन पहनना बन्द कर दिया था। शायद उसे पता था कि उस चैन से मैं उसे पहचान लूंगा इसलिये उसने वो चेन पहनना बन्द कर दिया था, और ऐसा व्यवहार भी वो शायद जानबूझकर ही करती थी..? ताकी मै उस पर शक ना करुँ..!

पर ऐसे तो कुछ होने वाला था नही। जब तक‌ मै‌ उससे खुलकर बात नही कर लेता तब ये सब ऐसे ही चलना था, मगर उससे अकेले मे बात करने का मुझे कोई मौका ही नही मिल‌ रहा था। प्रिया की बड़ी बहन नेहा, उसका भाई कुशल और उनकी मम्मी सुलेखा भाभी सारा दिन एक तो घर में ही रहते थे, ऊपर से उन तीनों भाई बहनों का कमरा भी एक ही था।

वैसे तो स्कूल खुल गए थे, मगर प्रिया ने बारहवीं की परीक्षा दी हुई थी तो उसके छोटे भाई ने भी आठवीं की। ये दोनो ही बोर्ड की परीक्षाएं होती है और आपको तो पता ही है की बोर्ड की परीक्षा का परिणाम आने में समय लगता है। इस वक्त उनकी छुट्टियां चल रही थीं इसलिये प्रिया व उसका भाई सारा दिन घर में ही रहते थे।

प्रिया की बड़ी बहन नेहा वैसे तो सुबह कॉलेज जाती थी मगर दोपहर तक वो भी कॉलेज से आ जाती थी। इसलिये प्रिया के साथ अकेले में बात करने का कोई मौका ही नही मिलता था। प्रिया से अकेले मे बात करने के लिये मैने जानबूझकर उन तीनों भाई बहन के कमरे मे भी जाने लगा ताकि अधिक से अधिक प्रिया के पास रह सकूं और हो सकता है इस बहाने उससे अकेले में बात करने का कोई मौका ही मिल‌ जाए, मगर ऐसा कोई मौका मुझे मिल नहीं रहा था...
 

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अब ऐसे ही एक दिन दोपहर को मैं उनके कमरे में चला गया। वे सब बैठकर कैरम खेल रहे थे। मुझे देखकर प्रिया का भाई मुझे भी अपने साथ खेलने के लिये कहने लगा। मैं तो अब चाहता ही यही था, इसलिये मैं भी तुरन्त उनके साथ कैरम खेलने के लिये बैठ गया...

कैरम खेलते खेलते मैं उनसे बातें भी करने की कोशिश ‌कर रहा था. इसलिये मैने पहले‌ तो सामान्य पढ़ाई की ही बातो से शुरुआत की, फिर धीरे धीरे सुमन दीदी की शादी पर आ गया। अब सुमन दीदी की शादी‌ की बात करते समय मैं प्रिया के चेहरे की तरफ ही देख रहा था। दरअसल मैं देखना चाहता था कि उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है, मगर उसने तो मेरी तरफ देखा तक नहीं, वो तो बस नेहा की तरफ तो कभी कैरम की तरफ ही देखती रही।

मैं अब आगे कोई बात करता, तब तक नेहा ने बात का विषय बदल दिया और कुशल से उसकी स्कूल के बारे में पूछने लगी। मैंने भी अब कुछ देर इधर उधर की बातें की और फिर से सुमन‌ दीदी की शादी पर आ गया। इस बार मैंने सीधा ही तिलक वाली उस रात का जिक्र करते हुए कहा- "पता नहीं उस रात मेरी रजाई में कौन घुस गया था, उसने सारी रात मुझे सोने ही नहीं दिया। मैं अब भी प्रिया के चेहरे की तरफ ही देख रहा था।

मेरी बात सुनते ही एक बार तो प्रिया के चेहरे पर शर्म के से भाव उभर आये, उसने पहले तो नेहा की तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखकर शरारत से हंसते हुए कहा- "क्यों झूठ बोल रहे हो, तुम तो ऐसे सो रहे थे, जैसे कि तुम्हें होश ही नहीं हो, पता है उस रात तुमने एक रजाई तो नीचे बिछा रखी थी और एक रजाई को ओढ़कर सो रहे थे, तुमसे रजाई लेने के लिये हमने तुम्हें कितना जगाया मगर तुम उठे ही नहीं.."

अभी प्रिया आगे कुछ कहती, तभी.. "बाद में खेलना, मम्मी ने रसोई साफ करने के लिये बताया था ना, पहले उसे साफ कर लेते हैं...!" नेहा ने उठते हुए प्रिया से कहा।

“दीदी, बाद में कर लेंगे ना!” प्रिया ने मना करते हुए कहा भी, मगर नेहा ने जानबूझ कर उसे हाथ पकड़कर उठा लिया और उसे अपने साथ लेकर कमरे से बाहर चली गयी। नेहा ने सारा काम खराब कर दिया था। मुझे उस पर गुस्सा तो आ रहा था, मगर मैं कर भी क्या सकता था. इसलिये मैं भी उठकर अब अपने कमरे में आ गया...

प्रिया के गले की चैन को तो मैंने अच्छी तरह से पहचान लिया था, जिसको अब उसने पहनना बन्द कर दिया था। उस चैन से तो लगता था कि उस रात प्रिया ही मेरे साथ थी मगर उसकी बातों व हरकतों से मुझे उस पर कुछ शंका सी लग रही थी. क्योंकि उस रात की बातें तो वो ऐसे खुलकर कर रही थी‌, जैसे कि उसे कुछ पता ही नहीं या फिर पता नही जानबूझ कर वो अनजान बनने की कोशिश कर रही थी।

अगर उस रात प्रिया मेरे साथ नहीं थी तो मेरे आने के बाद उसने वो चेन पहनना क्यों बन्द कर दिया? ये भी एक बड़ा सवाल था..? हो सकता है वो जानबूझ कर अनजान बनने का नाटक कर रही हो। अब तो मुझे बस उससे अकेले में मिलने का इन्तजार था मगर ऐसा कोई मौका मुझे मिल ही नहीं रहा था और मेरी तड़प बढ़ती जा रही थी।
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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जब पाँच सात दिन तक मुझे ऐसा कोई भी मौका नहीं मिला, तो एक दिन मैं खुद ही योजना बनाकर कम्प्यूटर क्लास से जल्दी घर आ गया। मेरी ये योजना लगभग कामयाब भी रही क्योंकि उस समय घर में बस प्रिया और सुलेखा भाभी ही थे। प्रिया की बहन नेहा कॉलेज में गयी हुई थी तो उसका भाई कुशल पास के ही मैदान में क्रिकेट खेल रहा था।

घर पहुंचते ही सबसे पहले तो मैंने सुलेखा भाभी को देखा जोकि रसोई में खाना बना रही थीं। उन्होंने मेरे जल्दी घर आने का कारण पूछा तो मैंने बहाना बना‌ दिया कि आज कम्प्यूटर कोर्स वाले की बिजली खराब हो गयी है और बिना बिजली के कम्प्यूटर चल नहीं सकते इसलिये आज उन्होंने सभी की छुट्टी कर दी।

इसके बाद मैं सीधा प्रिया के कमरे में चला गया। प्रिया कपड़े प्रेस कर रही थी. उसने भी मेरे जल्दी घर आने का कारण पूछा इसलिये..
“तुम्हें नहीं पता जल्दी क्यों आया हूँ?” मैंने हंसते हुए कहा ‌और सीधा ही प्रिया को पीछे से पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया।

अब ऐसे अचानक हमला करने से वो भी घबरा गयी और...
“अउअ.. ओय.. यऐ.. क्या कर रहा है? छ्.छ्.ओ … छोड़ मुझे!” उसने हकलाते हुए कहा।

तब तक मेरे हाथों ने उसकी दोनों गोलाईयों को दबोच लिया और उन्हे जोरों से मसल दिया, जिससे वो सहम‌ सी गयी और..
"अअअह.. ओओओयीईईई...!" कहके चिहुंक पड़ी।

प्रिया के इस तरह चिँहुकने से मैंने‌ भी उसकी गोलाईयो को छोड़ दिया और एक‌ हाथ से उसके चेहरे को अपनी तरफ करके सीधा ही उसके नर्म‌ नाजुक होंठों को मुँह में भर कर जोरों से चूसना शुरु कर दिया...
मगर तभी...
"उऊऊह … ओओययय …" जोरों से चीखते हुए प्रिया ने अपनी पूरी ताकत से मुझे धकेल‌कर अपने से दूर कर दिया।

वो इतनी जोर से चीखी थी कि मैं भी अब सहम‌ सा गया और मेरी उसे दोबारा पकड़ने की मेरी हिम्मत ही नहीं हुई, मगर तभी...
"क्या हुआ..?" रसोई से ही सुलेखा भाभी की भी आवाज सुनाई दी।

सुलेखा भाभी की आवाज सुनते ही मेरी तो जैसे अब सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गयी। मैं कभी प्रिया की तरफ तो कभी दरवाजे को देखने‌ लगा। प्रिया की सांसें अभी भी फूली हुई थीं.. बदन कांप रहा था तो फटी फटी आंखों से वो भी मुझे घूर घूर कर देखे जा रही थी।

अब प्रिया कुछ कहती तब तक सुलेखा भाभी कमरे में ही आ गईं और... "क्या हुआ.. क्यों चिल्ला रही है..?" सुलेखा भाभी ने डांटते हुए प्रिया से‌ पुछा।

अब क्या होगा? मेरी पिटाई होने में अब तो बस प्रिया‌ के जवाब देने की‌‌ देर थी। मुझे मेरी पिटाई होना अब तय ही‌ लग रहा था इसलिये मैं विनती भरी नजरों से प्रिया को देख रहा‌ था, मगर तभी प्रिया ने भी मेरी तरफ देखा… अब प्रिया के देखते ही डर के मारे अपने आप ही मेरी नजरें नीची हो गईं और मैं अपनी बगल झांकने लगा...
 

kill_l

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अच्छी शुरुवात। अगले अपडेट के इंतज़ार में।
 

sexy ritu

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मस्त स्टार्ट लेकिन वो प्रिया की जगह नेहा तो नही थी?
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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मस्त स्टार्ट लेकिन वो प्रिया की जगह नेहा तो नही थी?
ये तो आगे पढने पर ही पता चलेगा..?
 
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