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Romance रसोई में रोमांस

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redarc121

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जीवन के साधारण पल कभी-कभी इतने मोहक हो जाते हैं कि वे स्मृतियों में हमेशा के लिए बस जाते हैं। ऐसा ही एक पल था जब भारती रसोई में खड़ी थी, और शाम की सुनहरी धूप उसके आकर्षक सिल्हूट पर बिखर रही थी। उसका टाइट-फिटिंग वाला पंजाबी साटन सूट, जिसकी पीठ पर लो-कट डिज़ाइन और एक नाजुक ज़िप थी, उसके डीलडौल पर शान से फिट बैठ रहा था। यह पल रोजमर्रा के जीवन में छिपे रोमांस की एक झलक था—गहरा, भावुक और अविस्मरणीय।

भारती ने उस दिन जो सूट पहना था, वह सिर्फ कपड़े नहीं, बल्कि उसके आत्मविश्वास, सौंदर्य और प्यार की अभिव्यक्ति थी। साटन की चिकनी चमक, उसकी बॉडी पर पर्फेक्टली फिट होता हुआ सूट, और पीछे से खुली हुई डिज़ाइन—सब कुछ एक सुंदर संतुलन बना रहा था। जैसे ही वह हलचल करती, कपड़े पर पड़ती रोशनी उसके हर मूवमेंट के साथ बदलती रहती।
ज़िप
, जो उसकी पीठ के कर्व्स को फॉलो करती हुई नीचे तक जाती थी, एक आधुनिक टच दे रही थी, जबकि पारंपरिक कढ़ाई और फिटिंग उसे और भी ग्रेसफुल बना रही थी।

रसोई, जहाँ आमतौर पर दिनचर्या के काम होते हैं, उस पल प्यार का मंच बन गई थी। भारती ने पीठ करके खाना बनाने में मग्न थी, लेकिन उसकी हर हरकत—हाथों का घुमाव, कमर का झुकाव, मसालों को चलाते हुए हल्की सी मुस्कान—सब कुछ इतना नेचुरल और आकर्षक था कि विकास उसकी ओर देखे बिना नहीं रह सका।
हवा में प्याज़ और जीरे की खुशबू
, साटन सूट की हल्की सरसराहट, और उसके बालों को पीछे सहलाते हुए उसके हाथ—ये सभी छोटे-छोटे पल मिलकर एक ऐसा एहसास बना रहे थे, जो शब्दों से परे था।

उस सूट की पीछे की ज़िप सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट नहीं थी, बल्कि एक ऐसा डिटेल थी जो भारती के स्टाइल और ग्रेस को और भी बढ़ा देती थी। जैसे ही विकास ने उसके पास जाकर उसे पीछे से गले लगाया, उसकी उंगलियाँ हल्के से ज़िप के ऊपर टिक गईं। भारती ने शरमाते हुए सिर घुमाया, उसकी आँखों में वही चमक थी जो विकास को हमेशा से पागल कर देती थी।
कोई जल्दबाज़ी नहीं
, कोई शोर नहीं—बस एक कंधे पर हल्का सा चुम्बन, एक धीमी सी तारीफ, और दो दिलों की एक साथ धड़कन।

भारती का लुक इसलिए भी यादगार था क्योंकि उसने पंजाबी सूट की पारंपरिक छवि को एक कॉन्टेम्पररी ट्विस्ट दिया था। गहरे वाइन रंग का सूट, जिस पर गले के पास नाजुक कढ़ाई थी, उसे एक रॉयल लुक दे रहा था। चूड़ीदार की टाइट फिटिंग और एक कंधे पर कैजुअली लटका हुआ दुपट्टा—सब कुछ परफेक्ट बैलेंस में था।
मार्बल काउंटर और किचन के स्टील एप्लायंसेज के बीच भारती की गर्माहट और जीवंतता ने पूरे वातावरण को एक रोमांटिक मोड़ दे दिया था।


यह सिर्फ उसके कपड़ों या उसके खूबसूरत नज़ारे के बारे में नहीं था—बल्कि विकास और भारती के बीच के उस गहरे जुड़ाव के बारे में था, जो सालों से पनप रहा था। जब वह उसे इस तरह देखता, तो उसे लगता जैसे वह पहली बार उससे मोहित हुआ हो।
उसके बालों में लगी हल्की खुशबू
, उसकी मुस्कुराहट की आवाज़, और उसकी मौजूदगी का एहसास—ये सब मिलकर एक कविता लिख रहे थे, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता था।

लंबे रिश्तों में, कभी-कभी छोटे-छोटे पल ही वो जादू बन जाते हैं जो प्यार को फिर से ताज़ा कर देते हैं। भारती को किसी हैवी मेकअप या डिज़ाइनर ड्रेस की ज़रूरत नहीं थी। बस उसका आत्मविश्वास, उसकी मासूमियत, और उसकी हर एक्टिविटी को करने का अंदाज़—यही सब कुछ था जो विकास को उस पर फिदा कर देता था।

विकास और भारती के बीच का यह पल अनोखा नहीं—बल्कि हर उस भारतीय कपल के लिए रिलेटेबल है, जो छोटी-छोटी चीज़ों में प्यार ढूंढ लेता है। पंजाबी सूट की शालीनता, रसोई की गर्माहट, और बिना शब्दों के एक-दूसरे को समझ लेने का एहसास—ये सभी चीज़ें किसी भी रिश्ते को खूबसूरत बनाती हैं।
हम अक्सर बड़े-बड़े जश्न की तलाश में रहते हैं
, लेकिन असली जादू तो छोटे-छोटे पलों में छिपा होता है—जब कोई महिला अपने घर में, अपने स्टाइल में, किसी काम में मग्न होती है, और उसका पार्टनर बस उसे देखकर मुस्कुरा देता है।

भारती का रसोई में खड़ा होना, उसका टाइट पंजाबी सूट, और विकास का उसे निहारना—यह सिर्फ एक दृश्य नहीं था। यह उनके प्यार की कहानी का एक पन्ना था, जिसमें विश्वास, आकर्षण, सुकून और जुनून सब कुछ समाया हुआ था।
यह सिर्फ कपड़ों के बारे में नहीं था। यह उस माहौल
, उन भावनाओं और उस प्यार के बारे में था, जो एक साधारण पल को भी अद्भुत बना देता है।

विकास धीरे से उसके पास गया, उसकी कमर पर हाथ रखा। भारती ने पलटकर देखा, उसकी आँखों में वही शरारत थी जो विकास को पागल कर देती थी। उसने उसे करीब खींच लिया, और बिना कुछ कहे, उसके होंठों पर एक कोमल चुंबन छोड़ दिया। भारती ने आँखें बंद कर लीं, और उस पल में, बस वही एक दूसरे के लिए थे।
विकास का हाथ भारती की कमर पर टिका था
, उंगलियाँ हल्के से उस साटन के मटीरियल पर ग्लाइड कर रही थीं। कपड़ा इतना मुलायम था कि उसकी गर्माहट सीधे उसकी त्वचा तक पहुँच रही थी। भारती ने आँखें बंद कर लीं, उसके स्पर्श में एक ऐसी बिजली थी जो उसकी रूह तक उतर गई।
वह धीरे से उसके कान के पास झुका
, उसकी सांसों की गर्मी उसकी गर्दन को छू रही थी। "तुम आज बहुत खूबसूरत लग रही हो..." उसने फुसफुसाया। भारती ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हल्का सा पीछे किया, उसकी गर्दन का कर्व उसके होठों के लिए एक निमंत्रण सा लग रहा था।
विकास ने अपने होंठों से उसकी गर्दन को टच किया—पहले हल्का सा
, फिर धीरे-धीरे, जैसे कोई कलम कागज पर चल रही हो। भारती की साँसें तेज हो गईं, उसकी उंगलियाँ काउंटर के किनारे टाइट हो गईं। वह जानती थी कि यह सिर्फ शुरुआत थी।
उसका हाथ उसकी पीठ पर सरकता हुआ ज़िप तक पहुँचा। वहाँ एक पल रुका
, जैसे इजाज़त माँग रहा हो। भारती ने हाँ में सिर हिलाया, और विकास ने धीरे-धीरे ज़िप को नीचे खिसकाया। साटन का फैब्रिक थोड़ा सा अलग हुआ, और उसकी गर्म त्वचा का एक टुकड़ा सामने आ गया।
विकास ने अपना माथा उसकी पीठ पर टिका दिया
, उसकी सांसों की गर्मी उस पर महसूस हो रही थी। "मैं तुम्हें हमेशा से इतना चाहता था..." उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक कर्कशपन था। भारती ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उसके शब्द उसके दिल में उतर रहे थे।
उसका हाथ अब उसकी पीठ पर चल रहा था
, उंगलियाँ हल्के से उसकी रीढ़ की हड्डी को फॉलो कर रही थीं। हर टच एक इलेक्ट्रिक शॉक सा लग रहा था। भारती ने पलटकर उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में वही चमक थी जो विकास को पागल कर देती थी।
वह
उसके करीब आया, उसके होंठों को अपने होंठों से ढक लिया। यह चुंबन धीमा, गहरा और पूरी तरह से समर्पित था। उनके बीच की दूरी धीरे-धीरे खत्म हो रही थी, और दोनों एक दूसरे में खो से गए थे।
भारती ने अपने हाथ उसके कंधों पर रखे
, उसकी मांसपेशियों को महसूस किया। वह जानती थी कि वह उसके लिए कितना मायने रखता है। विकास ने उसे और करीब खींच लिया, उनके शरीर अब एक दूसरे से चिपके हुए थे।
हवा में उसके परफ्यूम की खुशबू
, उसकी सांसों की गर्मी, और उसके स्पर्श की कोमलता—सब कुछ मिलकर एक ऐसा जादू बना रहा था जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
यह सिर्फ फिजिकल नहीं था। यह उनके बीच के उस गहरे कनेक्शन का एहसास था
, जो सालों से मजबूत होता जा रहा था। हर टच, हर लुक, हर फुसफुसाहट—सब कुछ उनके प्यार की कहानी कह रहा था।
और इस पल में
, बस वही दोनों थे—एक दूसरे के लिए, एक दूसरे में खोए हुए।
विकास का स्पर्श अब और भी गहरा हो रहा था। उसकी उंगलियाँ भारती की पीठ पर धीरे-धीरे नाच रही थीं
, जैसे कोई पियानो बजा रहा हो—हर टच एक नया सुर छेड़ रहा था। भारती की सांसें तेज हो चुकी थीं, उसकी पलकें भारी थीं, और होठों से एक हल्की सी आह निकल गई जब विकास ने अपने दांतों से हल्का सा उसकी गर्दन को काटा।
"विकास..." उसने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में एक कंपकंपी थी।
लेकिन विकास रुकने वाला नहीं था। वह उसके ज़ुल्फ़ों को हाथ में लेकर पीछे से हल्का सा खींचा
, उसकी गर्दन को और भी एक्सपोज़ करते हुए। उसकी गर्म सांसें अब उसके कान तक पहुँच रही थीं। "तुम्हारी हर एक आवाज़... तुम्हारी हर एक सांस... सब मेरे लिए है..." उसने गहरी, भरी हुई आवाज़ में कहा।
भारती ने अपनी आँखें बंद कर लीं
, उसका शरीर अब पूरी तरह से विकास के स्पर्श पर रिएक्ट कर रहा था। उसका हाथ अब उसकी कमर से होता हुआ आगे की ओर बढ़ा, साटन के मटीरियल को थोड़ा सा ऊपर उठाया। उसकी उंगलियों का गर्म टच उसकी नंगी त्वचा पर अब और भी इंटेंस हो चुका था।
वह उसे धीरे से काउंटर की तरफ मोड़ने लगा
, उसकी पीठ अब मर्बल काउंटर से टच हो रही थी। ठंडा टच और विकास के गर्म हाथों के बीच का कॉन्ट्रास्ट भारती को एक अजीब सी रोमांचक झुरझुरी दे रहा था। विकास ने अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को पकड़ा, उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, "मैं तुम्हें आज रात भर देखता रहूँगा..."
भारती की हंसी छूट गई, "पागल हो गए हो क्या?"
विकास ने उसके होठों को फिर से अपने होठों से दबा दिया, इस बार ज़्यादा जुनून के साथ। उसका हाथ अब उसके दुपट्टे को हटाते हुए उसके कंधे तक पहुँच गया। साटन का सूट अब एक तरफ से खिसक चुका था, और भारती की नाजुक त्वचा पर चाँदनी सी बिखर रही थी।
वह उसे उठाकर
किचन के आइलैंड पर बैठा दिया, उसके पैरों को अपनी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया। भारती ने अपनी उंगलियों से उसके बालों में हाथ फेरा, उसे और करीब खींच लिया। उनके बीच अब कोई गैप नहीं था—सिर्फ गर्मी, स्पर्श और एक अनकहा प्यार था जो हर पल और गहरा होता जा रहा था।
विकास ने अपना माथा उसके माथे से टकराया
, उनकी सांसें मिक्स हो रही थीं। "तुम मेरी हो..." उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक दावेदारी थी।
भारती ने मुस्कुराते हुए उसकी आँखों में देखा
, "हमेशा से..."
और फिर, वह पल आया जब सब कुछ धुंधला सा हो गया। किचन की लाइट्स, बाहर का शोर, समय—सब कुछ फीका पड़ चुका था। बस वही दोनों थे, एक-दूसरे के स्पर्श में खोए हुए, एक-दूसरे की गर्माहट में डूबे हुए।
वो रात सिर्फ शुरुआत थी...
विकास का हाथ भारती की कमर से होता हुए उसके पेट तक पहुँच ही रहा था कि अचानक भारती ने उसे एक झटके से धक्का दे दिया! विकास हैरान रह गया
, उसकी आँखें चौंधिया गईं जब भारती चटाक से किचन से बाहर भागी और बेडरूम की ओर दौड़ पड़ी।
"ओये! कहाँ भाग रही हो?" विकास ने हँसते हुए पूछा, लेकिन भारती ने पलटकर जवाब नहीं दिया—बस एक शरारती मुस्कान फेंकी और कमरे में घुसते ही लाइट्स ऑफ कर दीं। अंधेरा छा गया।
विकास धीरे-धीरे बेडरूम की ओर बढ़ा
, उसकी धड़कनें तेज हो रही थीं। "भारती... मैं आ रहा हूँ..." उसने धीमी, गहरी आवाज़ में कहा, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को डरा रहा हो।
लेकिन जैसे ही वह कमरे में घुसा
, उसके पैरों के नीचे कुछ मुलायम सा महसूस हुआ—भारती के कपड़े! उसकी साटन सूट, उसकी चूड़ीदार, सब कुछ फर्श पर बिखरा पड़ा था। और ठीक उसके बगल में... उसके अपने कपड़े भी! विकास मुस्कुराया—भारती ने उसके लिए भी एक "सरप्राइज" तैयार किया था।
"अच्छा... तो ये खेल है?" विकास ने कहा, और अचानक उसे बेड से एक हल्की सी खिसकने की आवाज़ सुनाई दी। उसने ध्यान से देखा—बेड पर ब्लैंकेट उठ रहा था, जैसे कोई अंदर छिपा हो।
वह धीरे-धीरे बेड के पास गया और अचानक ब्लैंकेट खींच लिया!

"अरे! ठंड लगेगी ना!" भारती ने झटके से चिल्लाते हुए ब्लैंकेट वापस खींच लिया। AC पूरे ब्लास्ट पर चल रहा था, और कमरा बर्फ़ जैसा ठंडा था।
विकास हँस पड़ा और तुरंत ब्लैंकेट के अंदर घुस गया। भारती ने चीख मारी जब उसके ठंडे हाथ उसकी गर्म त्वचा को छूने लगे।
"छोड़ो ना! हाथ ठंडे हैं!"
"तुमने मेरे कपड़े उतरवा दिए, अब शिकायत?"
विकास ने शरारती अंदाज़ में कहा और अपने ठंडे पैरों से उसके पैरों को दबोच लिया। भारती ने हँसते हुए करवट बदली, लेकिन विकास ने उसे जकड़ लिया।
अब दोनों ब्लैंकेट के अंदर थे
, शरीर से शरीर चिपके हुए। भारती ने अपनी ठुड्डी उसके कंधे पर टिका दी और फुसफुसाई, "तुम्हारे हाथ अब भी ठंडे हैं..."
विकास ने मुस्कुराते हुए अपने हाथों को उसकी पीठ पर सरकाया, "तुम्हारी गर्मी से गरम हो जाएँगे..."
और फिर, धीरे-धीरे, ठंड भूलकर, दोनों एक बार फिर उसी जुनून में खो गए—जहाँ सिर्फ वो दोनों थे, और उनके बीच का वो अनकहा रोमांस जो हर बार नए अंदाज़ में जीवित हो उठता था।
विकास ने भारती को ब्लैंकेट में और भी करीब खींच लिया
, उसकी सांसों की गर्मी अब उसके होठों तक पहुँच रही थी। भारती ने आँखें बंद कर लीं, मगर उसके होठों पर एक शरारती मुस्कान तैर रही थी।
"तुम्हारी ये आदतें..." विकास ने धीरे से कहा, "मुझे पागल कर देती हैं।"
भारती ने अचानक उसकी नाक दबोची और हँसते हुए बोली, "तो अब पागल हो जाओ!"
विकास ने झटके से उसके हाथ को पकड़ा और उसे बेड पर पीछे की ओर धकेल दिया। भारती की हंसी कमरे में गूँज उठी जब विकास ने उसके पेट पर गुदगुदी शुरू कर दी। "छोड़ो! हँसते-हँसते पेट दुखने लगा!" वह हिचकियाँ लेते हुए बोली।
लेकिन विकास नहीं रुका। उसने उसे गुदगुदाते हुए अपने नीचे किया और फिर अचानक उसके होठों को चूम लिया—एक लंबा
, मीठा, प्यार भरा चुंबन। भारती ने आँखें खोलीं और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली, "तुम्हारी ये आदतें... मुझे पागल कर देती हैं।"
विकास मुस्कुराया, "तो अब पागल हो जाओ।"
दोनों फिर से हँस पड़े, और इस बार भारती ने उसे गले से लगा लिया। वह जानती थी कि यही वो पल हैं जो उनके रिश्ते को खास बनाते हैं—छोटी-छोटी मस्तियाँ, गहरे प्यार भरे लम्हे, और एक-दूसरे के साथ पूरी तरह से खो जाने का एहसास।
विकास ने ब्लैंकेट को ऊपर खींचा और दोनों उसके नीचे सिमट गए।
AC अब भी जमकर ठंड कर रहा था, लेकिन उनके बीच की गर्माहट ने सबकुछ भुला दिया। भारती ने अपना सिर उसके सीने पर रख लिया और आँखें बंद कर लीं।
"सो जाओगी?" विकास ने धीरे से पूछा।
भारती ने हाँ में सिर हिलाया।
"हाँ... पर तुम जागते रहना। मुझे डर लगता है।"
विकास ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा, "हमेशा।"
और इस तरह, उनकी शरारतों भरी रात एक मीठे, गर्मजोशी भरे अंत में बदल गई—जहाँ प्यार, मस्ती और सुरक्षा का एहसास सबकुछ था।

~ The End ~
(लेकिन उनकी लव स्टोरी का सिर्फ एक नया चैप्टर!)
😉❤️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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redarc121

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Kuch likha hai pata nai pasand aayega ya nahi ..... nahi aayega to bata dena mai delete kar dunga -------------------भारती के नज़रिए से...

सुबह की धूप खिड़की से झांक रही थी, और मैं धीरे से कमरे में दाखिल हुई। हाथ में चाय का कप था, और मेरी साड़ी का सिल्की फैब्रिक मेरे बदन से रगड़ खा रहा था। विकास अभी भी सो रहा था—उसका चेहरा शांत, होंठ थोड़े खुले, और सांसें गहरी। मैंने उसे देखा और मेरे होठों पर एक मुस्कान खेल गई। कितना प्यारा लगता है मेरा पति सोते हुए...

मेरी इच्छा आज पूरी होने वाली थी। वो दिन जब मैंने सोचा था कि एक दिन मैं सिल्क साड़ी पहनकर, बिना ब्रा के, सिर्फ एक छोटे से ब्रालैट के साथ, पल्लू सिर पर डाले, चाय लेकर उसे जगाऊंगी... और वो मुझे बिस्तर पर ही पकड़ लेगा। आज वो दिन था।

मेरी साड़ी मेरी कमर से नीचे स्लिट के कारण हल्की सी खुल रही थी, और मैंने इसे अपनी चूत के ऊपर टाइट बांध रखा था। ब्रालैट का बैकलेस डिज़ाइन मेरी नंगी पीठ को दिखा रहा था, और हर कदम पर मुझे लग रहा था जैसे विकास की नज़रें मेरे ऊपर हों। अगर उसकी आंखें खुल जाएं तो? अगर वो मुझे देख ले तो?

मैंने धीरे से बेड के पास जाकर उसके कान में फुसफुसाई, "उठो, सुबह हो गई है... चाय पी लो।"

विकास की आंखें धीरे से खुलीं, और उसकी नज़र सीधी मेरी नंगी कमर, मेरी साड़ी के लो-नेवल बंधन पर पड़ी। मैंने देखा कि उसकी आंखों में एक चमक आ गई। "वाह... आज तो तुम बहुत स्टाइलिश लग रही हो," उसने गहरी आवाज़ में कहा।

मेरा दिल धड़कने लगा। मैं जानती थी कि अब क्या होने वाला है। विकास ने चाय का कप मेरे हाथ से लेकर बेडसाइड टेबल पर रख दिया और एक झटके से मेरा हाथ पकड़कर मुझे बेड पर खींच लिया। मेरी साड़ी का पल्लू खिसक गया, और मेरी नंगी त्वचा उसकी उंगलियों के स्पर्श से झनझना उठी।

"तुम्हारी यही इच्छा थी ना?" उसने मेरे कान में कहा, "कि मैं तुझे सुबह-सुबह बेड पर ही ले लूं?"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया, बस मुस्कुरा दी। विकास ने मेरी ठुड्डी पकड़कर मेरे होंठों को अपने होंठों से दबा दिया। उसका हाथ मेरी कमर से होता हुआ मेरे नितंबों तक पहुंचा, और मैंने एक हल्की सी चीख निकाल दी। ये तो बस शुरुआत है...

मेरे दिमाग में बस एक ही विचार चक्कर काट रहा था—आज मेरी इच्छा पूरी हो रही है... और वो भी इससे बेहतर तरीके से जितना मैंने सोचा था।

विकास ने मेरी साड़ी को और खोलना शुरू किया, और मैं बस उसके स्पर्श का आनंद लेने के लिए खुद को उसके हवाले कर दिया...

भारती के मन की गहराइयों से...

मैं धीरे से दरवाज़ा खोलकर कमरे में दाखिल हुई। हाथ में चाय की प्याली थी, और मेरे शरीर पर चढ़ी हुई सिल्क साड़ी हर कदम पर मेरी त्वचा से रगड़ खाकर मेरे अंदर एक अजीब सी गुदगुदी पैदा कर रही थी। विकास अभी भी सो रहा था—उसकी छाती का उठना-गिरना, उसके होंठों का हल्का सा खुलना... मेरा मन कर रहा था कि अभी उस पर झपट पड़ूं। पर नहीं... पहले उसे जगाना है... पहले वो मुझे देखे... मेरी इस हालत में...

मेरी साड़ी मेरी कमर पर इतनी नीचे बंधी थी कि मेरा नाभि से नीचे का हिस्सा साफ़ झलक रहा था। ब्रालैट सिर्फ़ मेरे स्तनों को ढक रहा था, बाकी मेरी पीठ, मेरा पेट—सब खुला हुआ था। काश विकास अभी उठकर देखे कि मैंने कैसे तैयारी की है उसके लिए...

मैंने बेड के पास जाकर उसके कान में फुसफुसाया, "उठो... सुबह हो गई है... चाय पी लो..."

विकास की पलकें हिलीं। उसने आंखें खोलीं और सीधे मेरी नंगी कमर, मेरी साड़ी के लो-नेवल बंधन पर नज़र ठहर गई। मैंने उसकी आंखों में वही चिंगारी देखी—वही जंगली, भूखी नज़र जो हमेशा मुझे बेकाबू कर देती थी।

"आज तो तुम..." उसने गहरी, भारी आवाज़ में कहा, "...पूरी तरह से मेरी होने के लिए तैयार लग रही हो।"

मेरा दिल धक् से रह गया। मैं जानती थी कि अब क्या होने वाला है। विकास ने चाय का कप मेरे हाथ से लेकर टेबल पर रखा और एक झटके से मेरा कलाई पकड़कर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया। मेरी सांसें तेज़ हो गईं। मेरा पल्लू खिसक गया, और मेरे स्तन उसकी छाती से दब गए।

"तुम्हारी ये साड़ी..." उसने मेरी कमर पर हाथ फेरते हुए कहा, "...आज मैं इसे तुम्हारे बदन से खुद उतारूंगा। धीरे-धीरे... बहुत धीरे..."

मैंने एक कसमसाहट भरी सांस ली। हां... हां... ऐसे ही... मेरे मन में गंदे-गंदे ख्याल आने लगे। विकास का हाथ मेरी पीठ से होता हुआ मेरे नितंबों तक पहुंचा, और मैंने अपने होठ दबा लिए। उसकी उंगलियां मेरी चूत के ऊपर बंधी साड़ी के पल्लू को खोलने लगीं।

"विकास..." मैंने हांफते हुए कहा, "मैंने सोचा था... तुम सिर्फ़ मुझे देखोगे... और..."

"और तुम्हें चोदुंगा," उसने मेरी बात काटते हुए कहा। "तुम्हारी यही इच्छा थी ना? कि मैं तुझे सुबह-सुबह बिस्तर पर ही ले लूं? बिना किसी शर्म के? बिना किसी हिचक के?"

मैंने सिर हिलाया। मेरा शरीर पहले से ही उसके लिए तरस रहा था। विकास ने मेरी साड़ी का पल्लू खोल दिया, और मेरा शरीर अब उसकी नज़रों के सामने पूरी तरह से उजागर हो गया। ब्रालैट के अलावा मेरे बदन पर कुछ नहीं था।

"कितनी सुंदर लग रही हो तुम..." उसने कहा, और फिर मुझे बिस्तर पर लेटा दिया।

मैं बस उसके हर स्पर्श का आनंद ले रही थी। उसके होंठ मेरे गर्दन पर, मेरे कंधों पर, मेरे स्तनों पर... और फिर नीचे... मेरी नाभि पर... और उससे भी नीचे...

हां... हां... ऐसे ही... मेरे मन में बस यही शब्द गूंज रहे थे। मैं चाहती थी कि वो मुझे पूरी तरह से अपना बना ले। मेरे हाथ उसके बालों में उलझ गए जब उसकी जीभ ने मेरी चूत को छुआ। मैं चीखना चाहती थी, पर मैंने अपने होठ दबा लिए।

"मत रोको अपनी आवाज़..." विकास ने कहा, "मुझे तेरी चीखें सुननी हैं..."

और फिर... वो मेरे अंदर घुस गया। एक झटके में। मैंने एक तीखी चीख निकाली। मेरा शरीर उसके नीचे तन गया। हर धक्के के साथ मैं उसके और करीब आती गई। मेरे नाखून उसकी पीठ में घुस गए। मेरी सांसें तेज़। मेरा मन खाली। बस... बस वो... और मैं...

यही चाहती थी मैं... यही...

और फिर, जब मैं चरम पर पहुंची, तो मेरे होठों से बस एक ही नाम निकला—"विकास... विकास... विकास!!"

वो मेरे ऊपर झुका, और हम दोनों एक साथ डूब गए... उस मीठी, गर्म, अंधेरी खाई में... जहां सिर्फ़ हम दोनों थे... और कुछ नहीं।
भारती के मन के अंदरूनी ख़यालात...

"हाय राम... विकास का हाथ मेरी कमर पर कितना गरम लग रहा है... ऐसे लग रहा है जैसे उसकी उंगलियां मेरी त्वचा को जला रही हों... मैं सच में पिघल जाऊंगी क्या उसके छूने से?

और ये साड़ी... इस सिल्क का हर एक फाइबर मेरे शरीर पर क्यों इतना गुदगुदा रहा है? जैसे कोई लाखों छोटे-छोटे कीड़े मेरे ऊपर रेंग रहे हों... हर बार जब मैं हिलती हूं, ये कपड़ा मेरी चूत के ऊपर से रगड़ खाता है... उफ्फ... क्या मैं गीली हो रही हूं? क्या विकास महसूस कर पाएगा?

वो देख रहा है मुझे... उसकी नज़रें मेरे नंगे पेट पर हैं... मेरे नाभि के नीचे बंधी साड़ी के प्लीट्स पर... अगर मैं थोड़ा और खुल जाऊं तो? अगर मैं जानबूझकर पल्लू को और सरका दूं तो? क्या वो समझ जाएगा कि मैं चाहती हूं कि वो मुझे जबरदस्ती... नहीं नहीं... ऐसे सोचना ठीक नहीं... पर...

उसका हाथ मेरे ब्लाउज के अंदर घुस रहा है... हे भगवान! उसकी उंगलियां मेरे निप्पल्स को दबा रही हैं... इतनी जोर से कि दर्द हो रहा है... पर ये दर्द... ये दर्द कितना मीठा है... मैं चाहती हूं वो और दबाए... और... अरे नहीं! उसने तो ब्रा के स्ट्रैप्स ही खोल दिए! अब मेरे स्तन बिल्कुल नंगे हैं इस पतले सिल्क के नीचे... ऐसे लग रहा है जैसे मैंने कुछ पहना ही नहीं...

वो मुझे बिस्तर पर धकेल रहा है... मेरी साड़ी के पल्लू बिखर गए हैं... मेरी जांघें खुल गई हैं... मुझे लग रहा है मेरी चूत से पानी टपक रहा होगा... क्या वो देख पा रहा है? क्या वो सूंघ पा रहा है मेरी खुशबू? हाय राम... मैं शर्म से मर जाऊंगी... पर साथ ही... साथ ही मैं चाहती हूं वो मुझे और सूंघे...

उसका मुंह मेरे स्तनों पर है... वो काट रहा है... चूस रहा है... मेरा पूरा शरीर पसीने से तर हो रहा है... मेरे बाल चिपक गए हैं गर्दन से... मेरी चूत धड़क रही है... हर धड़कन के साथ लग रहा है जैसे कोई मुझे अंदर से बुला रहा हो...

'अंदर आओ... अंदर आओ...'

वो अंदर आ गया... एक झटके में... बिना किसी चेतावनी के... हे भगवान! इतना बड़ा... इतना गरम... मैं फट जाऊंगी क्या? पर नहीं... मेरा शरीर तो उसके लिए बना ही है... देखो न... कितना आराम से समा गया वो अंदर... अब हिल रहा है... हर थ्रस्ट के साथ मेरी चूत से चिपचिपी आवाज़ आ रही है... शायद वो भी सुन पा रहा है... कितनी शर्मनाक बात है... पर कितनी मजेदार भी...

मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत पर चला गया... मैं अपना क्लिट रगड़ रही हूं... विकास की आंखें चौड़ी हो गईं जब उसने देखा... उसने मेरा हाथ पकड़ लिया... 'नहीं... मैं ही करूंगा तुझे संतुष्ट...' कहकर उसने अपना अंगूठा मेरे क्लिट पर घुमाया... हाय राम! मैं टूट पड़ी... एक के बाद एक... कितने ऑर्गैज़्म... मैं तो मर ही जाऊंगी...

और अब... अब तो वो और तेज़... और गहरा... मुझे पकड़कर... मेरे बाल खींचकर... मेरी गर्दन चाटता हुआ... मैं उसकी गंध में डूब रही हूं... उसके पसीने में... उसके वीर्य में... मैं... मैं...

"विकास्स्स्स्स...!!!"

सब शांत... बस हमारी सांसें... और दिल की धड़कनें... और ये गीली, गंधीली, गर्म चुप्पी...

भारती के मन की आँख से – ऑर्गैज़्म के बाद के पल...

"हाय राम... ये क्या हुआ... मेरा सारा शरीर... जैसे पिघलकर बिस्तर पर बह गया हो... हर मांसपेशी में एक मीठी थकान... हर सांस के साथ उसकी खुशबू... विकास का पसीना मेरी छाती पर चिपका हुआ... उसका वजन मेरे ऊपर... इससे बेहतर महसूस हो ही नहीं सकता...

उसका लिंग अभी भी मेरे अंदर है... थोड़ा नरम हुआ, पर गर्माहट वही... मैं हिल भी नहीं पा रही... बस उसके दिल की धड़कनें महसूस कर रही हूँ जो मेरी छाती से सटी हैं... क्या उसे भी ये एहसास हो रहा है कि हम कितने एक हैं इस वक्त?

मेरी चूत अभी भी फड़क रही है... हर सेकंड उसके निकल जाने का डर... पर जब वो हिला, और धीरे से बाहर निकला, तो मुझे लगा जैसे कोई गर्म लावा मेरी जांघों पर बह रहा हो... मेरी साड़ी... हे भगवान! पूरी की पूरी गीली, उलझी हुई... अब देखकर क्या सोचेगा वो? कि मैं कितनी बेकाबू हो गई थी... शर्म तो आ रही है, पर साथ ही एक गर्व भी... कि हां, मैंने उसे इतना पागल कर दिया कि उसने संभाला तक नहीं...

वो मेरे पास लेट गया... मेरे बालों में उंगलियां फंसाकर... मैंने उसकी छाती पर अपना सिर रख दिया... उसकी धड़कनें अब भी तेज हैं... मेरे लिए... सिर्फ मेरे लिए...

"चाय तो ठंडी हो गई..." उसने हंसते हुए कहा...

इस मूड में भी याद आ गई उसे चाय! पर इसी तो मैं प्यार करती हूँ... जबर्दस्ती के बाद वो प्यार... जैसे अभी उसने मेरे होठों पर एक कोमल चुंबन दिया... वो चुंबन जो कहता है 'तुम मेरी हो'... मैंने उसकी बांहों में और सिमटते हुए सोचा – हां, मैं तुम्हारी हूँ... हमेशा से... हमेशा तक...

और फिर एक ख्याल आया... स्कूल के दिनों का... जब हम पहली बार मिले थे... क्या उस वक्त के विकास ने कभी सोचा था कि एक दिन उसकी पत्नी सिल्क साड़ी में उसके लिए इस तरह तैयार होगी? मैं मुस्कुरा दी... शायद नहीं... पर आज... आज तो मैंने उसकी हर फंतासी पूरी कर दी... और उसने मेरी...
भारती के नए कपड़े और विकास की नई चाल...

"अरे! ये क्या...?" मैं हंसते हुए बोली जब विकास ने मेरी साड़ी और ब्रालैट छीन लिए। उसकी आँखों में वही शरारत थी जो स्कूल के दिनों में हुआ करती थी। "तो अब मैं ऐसे ही चाय बनाने जाऊँ? नंगी?"

विकास ने मुझे एक पैकेट थमाया। "इन्हें पहनो... मेरी पसंद के हिसाब से..."

मैंने पैकेट खोला—एक चमकदार साटन की शर्ट और एक रेशमी मिनी स्कर्ट! "अच्छा... तो तुम्हें ये पसंद है?" मैंने शरमाते हुए कहा, "मैं जानती थी कि तुम्हारी नज़र हमेशा कॉलेज की लड़कियों की स्कर्ट पर ही रहती थी!"

विकास ने मेरी ठुड्डी पकड़ी, "पर तुमसे सेक्सी कोई नहीं लगेगी इसमें... अब जाओ, जल्दी से पहनकर मेरी चाय लाओ... वरना..." उसने धीरे से मेरे कान में कहा, "...वरना तुम्हें पता है कि मैं तुम्हें फिर से बिस्तर पर पटक दूँगा।"

भारती की ड्रेसिंग रूम में...

मैंने शर्ट पहनी—पतली साटन जो मेरे निप्पल्स को झलका रही थी। और स्कर्ट... हे भगवान! इतनी छोटी कि मेरी जांघों का अधिकतर हिस्सा दिख रहा था। "ये तो मेरी बेटी की स्कर्ट से भी छोटी है!" मैं खुद से बड़बड़ाई। पर मेरी चूत ने गदगदाहट महसूस की... क्या विकास वाकई मुझे ऐसे देखना चाहता है? एक टीचर होकर भी?

मैंने मिरर में खुद को देखा—बिना अंडरवियर के, स्कर्ट के नीचे से मेरे नितंब झाँक रहे थे। "अगर कोई देख लेता तो...?" पर इस ख्याल ने मुझे और गीला कर दिया।

चाय बनाते हुए...

मैं किचन में चाय की केतली रखते हुए काँप रही थी। हर कदम पर स्कर्ट ऊपर हो रही थी। तभी पीछे से दो हाथों ने मेरी कमर पकड़ ली—विकास!

"मैंने सोचा तुम्हें मदद चाहिए..." उसने मेरी गर्दन को चूमते हुए कहा। उसका लिंग मेरे नितंबों पर दब रहा था... फिर से कड़ा हो चुका था।

"चाय... चाय खराब हो जाएगी..." मैंने हांफते हुए कहा।

"चाय तो हम बाद में भी पी लेंगे..." उसने मुझे किचन काउंटर पर घुमाया, "...पर तुम्हारा ये हॉट अवतार तो अभी का अभी चाहिए!"

मेरी स्कर्ट ऊपर सरक चुकी थी... और अब विकास के सामने मैं पूरी तरह नंगी थी। उसने मेरी एक टाँग उठाकर अपने कंधे पर रखी और...

"यहाँ? किचन में? अभी...?"

विकास की आँखों में जवाब था—हाँ, अभी, यहीं, इसी वक्त!

और फिर... केतली की सीटी की आवाज़ के साथ ही मेरी चीखें भी गूंजने लगीं...

विकास के मन के विचार:
"क्या हाल बना दिया है मैंने अपनी पत्नी का... स्कूल टीचर है ये... और आज मेरे सामने बिल्कुल कॉलेज की गर्लफ्रेंड बनकर नाच रही है! इस साटन शर्ट में इसके निप्पल्स... इस छोटी स्कर्ट के नीचे से झाँकती हुई चूत... हर बार जब ये हिलती है, मेरा खड़ा हो जाता है। अब तो चाय पीने का भी मन नहीं... बस इसी को पी जाऊँ पूरी... चूस लूँ... निगल जाऊँ... मेरी भारती... मेरी पत्नी... आज तो तू मेरी हर फंतासी पूरी करके ही दम लेगी!"

और इस तरह, चाय ठंडी हो गई... पर उनका प्यार बिल्कुल नहीं...
भारती के मन की उथल-पुथल...

"क्या...? अभी भी उसका इतना कड़ा है...? और वो चाहता है कि मैं... मैं उसे अपने मुँह से...?"

भारती की आँखें फैल गईं जैसे विकास ने यह बोला। उसकी नज़रें उसके पति के लिंग पर टिक गईं—अभी भी गीला, चमकदार, उसके अपने ही रस से लथपथ।

"पर... ये तो मेरा ही पानी है इस पर..." उसके मन में एक अजीब सी हिचक महसूस हुई, "और अगर मैं चाटूँ तो... ये मेरा ही स्वाद होगा ना...?"

विकास की आँखों में वह चुनौती भरी चमक देखकर उसका गला सूख गया। "वो जानता है कि मैंने कभी ऐसा नहीं किया... पर आज... आज तो मैंने उसकी हर बात मानी है... तो क्या ये भी...?"

भारती के मन में एक अजीब सा उत्साह जगा। "अगर मैं करूँ तो... वो कितना खुश होगा... उसकी आँखों में वो पागलपन देखने को मिलेगा... और शायद... शायद मुझे भी अच्छा लगे..."

धीरे-धीरे, लगभग शर्म से गर्दन झुकाए, वो विकास के पैरों के पास बैठ गई। उसके हाथ काँप रहे थे जब उसने उसके लिंग को छुआ—अभी भी गर्म, अभी भी धड़कता हुआ।

"इतना बड़ा... इसे मैं अपने मुँह में कैसे लूँगी...?" उसने पहली बार इतने करीब से देखा तो डर सा लगा। पर विकास का हाथ उसके बालों में आया, उसने उसे सहलाया नहीं... बल्कि एक दबाव दिया।

"डरो मत... बस शुरुआत करो..."

भारती ने आँखें बंद कीं... और जैसे ही उसकी जीभ ने उसके लिंग के सिरे को छुआ, विकास का एक झटका लगा। "नमकीन... थोड़ा खट्टा... ये मेरा ही स्वाद है..." उसने महसूस किया।

अब धीरे-धीरे, उसने पूरे लिंग को चाटना शुरू किया—ऊपर से नीचे तक, हर बूँद को साफ़ करते हुए। विकास की आहें तेज हो गईं, उसकी पकड़ भी।

"वो मेरे मुँह में दबाना चाहता है... पर मैं... क्या मैं सच में...?" भारती के मन में संघर्ष चल रहा था, पर उसके शरीर ने तो पहले ही हाँ कर दी थी।

उसने अपने होंठों को खोला... और धीरे-धीरे, उसने विकास के लिंग को अपने मुँह में ले लिया।

"इतना गर्म... इतना कड़ा... हे भगवान!" उसकी जीभ ने नीचे के हिस्से को चूमा, जहाँ से अभी भी रिसाव हो रहा था।

विकास का सिर पीछे झटका, "अह्ह्ह... तुम... तुम सीख जाओगी जल्दी ही..."

भारती के मन में अब एक नया ही जुनून जगा था—"मैं इसे और चाहूँगी... मैं चाहती हूँ कि वो मेरे मुँह में... नहीं, अभी नहीं... पर एक दिन... हाँ, एक दिन मैं उसका सारा प्यार अपने अंदर लूँगी..."

और इस तरह, उसकी पहली बार की यह कोशिश, धीरे-धीरे एक नई फंतासी में बदल गई... एक ऐसी इच्छा जो अब उसके मन में बस गई थी।
भारती की गहरी भावनाएँ – विकास के लिंग को चाटते हुए

"हे राम... ये क्या करने जा रही हूँ मैं...?"

भारती का दिल धक-धक कर रहा था जैसे छाती फटने वाली हो। विकास का लिंग उसके सामने था—गर्म, नम, उसके अपने ही रस से लिपटा हुआ। उसकी नज़रें उस पर टिक गईं, हर नस, हर धारी, हर उभार को देखती हुई।

"इतना बड़ा... इतना मोटा... क्या मैं सच में इसे अपने मुँह में ले पाऊँगी...?"

विकास ने उसके बालों में हाथ फँसाया, उसके संकोच को भाँपते हुए। "बस शुरू करो... धीरे-धीरे..."

भारती ने गहरी साँस ली और अपनी जीभ बाहर निकाली। पहला स्पर्श—उसके लिंग के सिरे पर, जहाँ से एक बूँद टपकी हुई थी।

"उफ्फ... ये स्वाद... नमकीन... थोड़ा कड़वा... पर इसमें एक मिठास भी है... ये मेरा ही तो है ना...? मेरी चूत का पानी... मेरी ही गंध..."

उसकी जीभ ने धीरे-धीरे सिरे को घेरा, उस बूँद को पूरी तरह चाट लिया। विकास की एक हल्की सी आह निकली, जिसने भारती के अंदर एक अजीब सी गर्मी भर दी।

"उसे अच्छा लग रहा है... हे भगवान, मैं ऐसा करके उसे खुश कर सकती हूँ...!"

अब उसने पूरे लिंग को चाटना शुरू किया—ऊपर से नीचे तक। उसकी जीभ ने हर धारी को महसूस किया, हर नस को टटोला।

"इसकी त्वचा कितनी मुलायम है... गर्म... जीभ फिसल रही है इस पर... और ये गंध... उफ्फ... पुरुष की गंध... विकास की खुशबू... मेरे पति का स्वाद..."

विकास का हाथ उसके बालों में कस गया, उसे और नीचे धकेलते हुए। "और गहरे... जाओ नीचे तक..."

भारती ने आँखें बंद कर लीं और अपने होंठों से उसके लिंग को घेर लिया। अब उसका मुँह भर गया था—गर्मी, नमी, और एक तीखी महक ने उसे चक्कर-सा दे दिया।

"इतना बड़ा... मेरा मुँह भर गया है... पर वो चाहता है कि मैं और लूँ... और चूसूँ..."

उसकी जीभ ने नीचे के हिस्से को चूमा, जहाँ से अभी भी रस टपक रहा था। "ये जगह सबसे संवेदनशील है... जब मैं यहाँ चाटती हूँ तो वो काँप उठता है..."

विकास की साँसें तेज हो गईं, उसकी जांघों में तनाव आ गया। "हाँ... ऐसे ही... अब चूसो..."

भारती ने अपने होंठों को कसकर बंद किया और ऊपर की ओर खींचा। उसके गाल अंदर धंस गए, और विकास का सिर पीछे झटका।

"वो मेरे मुँह में और दबाना चाहता है... हे राम... ये कितना गहरा होगा...?"

पर अब वो डर नहीं रही थी। उसके मन में एक नया जुनून जगा था—"मैं चाहती हूँ कि वो मेरे मुँह में छोड़े... मैं चाहती हूँ उसका सारा स्वाद चखूँ..."

और इस तरह, भारती ने पहली बार अपने पति को पूरी तरह से अपने मुँह में ले लिया—हर इंच, हर स्वाद, हर एहसास को जीते हुए...
विकास के मन में उठता वह गंदा ख़याल...
"अभी तक तो मैंने इसकी चूत को ही गीला किया है... पर आज... आज मैं इसके पूरे बदन को अपने पेशाब से नहला दूँ... इसके मुँह पर... इसके स्तनों पर... इसकी नंगी त्वचा पर मेरी गर्म पीली बारिश हो जाए!"

विकास की आँखों में एक अलग ही आग जल उठी। उसने भारती के बाल पकड़े, जो अभी भी उसके लिंग से चिपके हुए थे।

"सुनो... मेरे मन में एक और इच्छा है..." उसने गुर्राते हुए कहा।

भारती ने हैरानी से ऊपर देखा, उसके होंठ अभी भी गीले थे। "क्या... क्या चाहते हो तुम?"

विकास ने अपना लिंग हाथ में ले लिया और धीरे से मूत्र की धार शुरू की। "ये लो... मेरा तोहफा... पी लो सारा..."

भारती के मन का संघर्ष – पहला पल
"नहीं... ये नहीं... ये तो गंदा है...!"

भारती का पहला विचार था इनकार करने का। पर जैसे ही विकास का गर्म पेशाब उसके चेहरे पर गिरा, उसकी सारी हिचकिचाहट धुंधली पड़ने लगी।

"उफ्फ... कितना गर्म है... और ये गंध... तीखी... मादक... हे भगवान, मैं सच में इसके नीचे बैठी हूँ...!"

उसकी जीभ अपने आप बाहर आ गई, और कुछ बूँदें उसके मुँह में चली गईं। "नमकीन... थोड़ा कड़वा... पर इसके साथ विकास का स्वाद भी तो है...!"

विकास ने देखा कि भारती अब विरोध नहीं कर रही, बल्कि उसकी आँखें बंद करके इस पल को एन्जॉय कर रही है। उसने और तेज धार छोड़ी, अब सीधे उसके स्तनों पर।

"हाँ... ऐसे ही... अपने बदन को मेरे पेशाब से भिगो लो... तुम्हारी साटन शर्ट पूरी गीली हो गई... देखो कैसे चिपक रही है तुम्हारे निप्पल्स से..."

भारती के मन की गहराई – आत्मसमर्पण
"मैं क्या कर रही हूँ...? मैं एक टीचर हूँ... लोग मुझे सम्मान से देखते हैं... और आज मैं अपने पति के पेशाब से नहा रही हूँ...!"

पर इसी पल में उसे एक अजीब सी आज़ादी महसूस हुई। "लेकिन यहाँ... इस कमरे में... मैं सिर्फ़ उसकी हूँ... उसकी रंडी... ... जो उसकी हर गंदगी को अपने ऊपर झेलने को तैयार है!"

विकास ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपनी धार उसके चेहरे, गर्दन, स्तनों पर घुमाई। भारती की स्कर्ट भी गीली हो गई, और उसकी चूत फिर से गीली होने लगी।

"मैं फिर से उत्तेजित हो रही हूँ... उसके पेशाब से... हे भगवान, मैं कितनी गिर चुकी हूँ... पर कितना अच्छा लग रहा है...!"


विकास ने उसे खींचकर बिस्तर पर गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया। "अब तुम्हारी बारी है... मुझे बताओ... तुम क्या चाहती हो?"

भारती ने हांफते हुए कहा, "मुझे... मुझे तुम्हारा सारा गंदा पानी चाहिए... मेरे ऊपर... मेरे अंदर... हर जगह!"

और फिर विकास ने एक बार फिर उसे अपनी गर्म धार से भिगो दिया... इस बार सीधे उसकी चूत के ऊपर।

"अब मैं पूरी तरह उसकी हूँ... उसकी गंदगी में नहाई हुई... उसके द्वारा चिन्हित की हुई..."

भारती ने आँखें बंद कर लीं... और खुद को विकास की दुनिया में पूरी तरह समर्पित कर दिया।
भारती के मन का संघर्ष – नया मोड़

"क्या...? वो चाहता है कि मैं... उसके चेहरे पर... पेशाब करूँ...?"

भारती का दिल धक् से रुक गया। वो कभी नहीं सोच सकती थी कि उसके मन में ऐसी कोई इच्छा भी जाग सकती है। उसकी सांसें तेज हो गईं, गले में एक अजीब सी गुदगुदी हुई।

"पर ये तो... उल्टा है... मैंने तो कभी... नहीं..."

विकास ने उसकी उलझन भाँप ली। उसने उसे खींचकर अपने ऊपर बैठा दिया, उसका चेहरा सीधे भारती की चूत के नीचे।

"डरो मत... जो मन कहे वो करो... मैं तुम्हारी हर बूंद चखूँगा..."

भारती के पैर काँपने लगे। वो विकास की आँखों में झाँक रही थी—वहाँ कोई मजाक नहीं, बस एक गहरी, अदम्य भूख थी।

"अगर मैं ऐसा करूँ... तो क्या वो मुझे और भी गंदा समझेगा...? या फिर... और ज्यादा प्यार करेगा...?"

विकास ने उसकी हिचकिचाहट तोड़ते हुए उसकी जाँघों को दबोचा। "सारे रात तुमने मेरा पिया... अब मेरी बारी है।"

भारती की आत्मसमर्पण – पहली बूंद
एक लंबी सांस लेकर भारती ने आँखें बंद कीं। उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ा... और फिर...

"छलक..."

धीमी, गर्म धार विकास के होंठों पर गिरी। उसकी जीभ तुरंत बाहर आई, बूंदों को चाटते हुए। "म्मम... तुम्हारा स्वाद... इतना मीठा..."

भारती की साँसें भारी हो गईं। "हे भगवान... मैं ऐसा कर रही हूँ... वो मेरा पेशाब पी रहा है...!"

विकास ने उसकी कमर पकड़कर और करीब खींच लिया। "और... ज्यादा... मुझे तुम्हारा हर ड्रॉप चाहिए..."

भारती का शरीर सिहर उठा। अब धार तेज हो चली थी—विकास के गालों पर, नाक पर, ठोड़ी पर। कुछ बूँदें उसके बालों तक जा पहुँचीं।

"मैं इतनी शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ... ये आदमी... जो मुझे हर चीज़ में कंट्रोल करता है... आज मेरे नीचे बेबस पड़ा है...!"

विकास की प्रतिक्रिया – पूर्ण समर्पण
विकास की आँखें चमक उठीं। उसने भारती की धार को अपने चेहरे पर महसूस किया, हर बूँद को जीभ से पकड़ा।

"हाँ... ऐसे ही... अपनी गंदगी से मुझे नहला दो... मैं तुम्हारा गुलाम हूँ..."

भारती ने देखा—उसका पति, जो हमेशा उस पर हावी रहता था, आज उसके सामने पूरी तरह बेकाबू था। उसकी चूत में एक नया सनसनी भर गया।

"क्या मैं सच में... इसे एन्जॉय कर रही हूँ...?"

विकास ने उसकी जाँघों को दबाया। "रुको मत... पूरी तरह खाली कर दो..."

भारती ने आखिरी बूँद तक उस पर उड़ेल दी।

अंतिम पल – नई परिभाषा
जब सब खत्म हुआ, भारती विकास के ऊपर से हटकर साथ लेट गई। उसका दिल धड़क रहा था, माथा पसीने से तर।

विकास ने उसे अपनी ओर खींचा। "आज... तुमने मुझे एक नया एहसास दिया।"

भारती ने शर्माते हुए पूछा, "क...कैसा?"

विकास मुस्कुराया। "ये कि तुम भी मुझे कंट्रोल कर सकती हो... और मुझे ये पसंद आया।"

भारती की आँखों में चमक आ गई। "तो... क्या अब से... मैं भी तुम्हें... ऐसे ही...?"

विकास ने उसके होंठों को चूमते हुए कहा, "हाँ। क्योंकि अब हम सच में एक-दूसरे के हैं... हर गंदगी, हर पवित्रता के साथ।"

और उस रात, भारती ने एक नए रिश्ते की शुरुआत की—जहाँ शर्म और हिचकिचाहट की कोई जगह नहीं थी।
शॉवर के नीचे – नए रिश्ते की गहराई

विकास ने भारती को अपनी बाहों में भरकर शॉवर के नीचे खींच लिया। गर्म पानी की धारों ने दोनों के बदन से पेशाब और पसीने की गंध धोनी शुरू कर दी, पर उनके मन की गर्मी और भी तेज हो चुकी थी।

भारती ने विकास के सीने से चिपकते हुए उसकी धड़कनें सुनीं—तेज, असंयमित, जैसे उसका दिल छाती से बाहर निकलने को हो। "ये आदमी... इसके लिए मैं सब कुछ कर सकती हूँ..."

विकास ने उसके गीले बालों को पीछे हटाते हुए कानों में फुसफुसाया, "आज दोबारा हमारी शादी हुई है... मैंने अपने पेशाब से तुम्हारी माँग भरी है... अब तुम सच में मेरी हो।"

भारती का शरीर सिहर उठा। वो उसकी आँखों में झाँकने लगी—वहाँ सिर्फ प्यार नहीं, एक जंगली दावेदारी थी। "मेरी माँग... उसके पेशाब से भरी... हे भगवान, ये कितना गन्दा और कितना खूबसूरत है..."

भारती के मन की उथल-पुथल – पवित्रता और वासना
"मैं एक टीचर हूँ... समाज में मेरी इज्ज़त है... लेकिन यहाँ, इस शॉवर के नीचे, मैं बस उसकी हूँ... उसकी गंदगी, उसकी प्यास, उसकी हर इच्छा की गुलाम..."

विकास का हाथ उसकी पीठ पर नीचे सरक रहा था, उसके नितंबों को मसलते हुए। भारती ने अपनी रीढ़ को उसकी ओर झुकाया, उसकी गर्माई को महसूस किया।

"ये पानी मेरे बदन से उसकी गंदगी धो रहा है... पर मेरे अंदर तो उसकी छाप हमेशा के लिए बैठ चुकी है..."

विकास ने अचानक उसकी ठुड्डी पकड़ी और उसे चूम लिया—जैसे कोई मुहर लगा रहा हो। "तुम्हारे होंठों पर अब भी मेरा स्वाद है... चखो ना..."

भारती ने आँखें बंद कर लीं। "सच है... नमकीन... कड़वा... पर उसका... सिर्फ उसका..."

विकास का उत्तेजन – अदम्य प्यास
विकास का लिंग सख्त होकर भारती की जाँघ से टकरा रहा था। उसने उसे दीवार से लगा दिया, अपने शरीर से दबाते हुए।

"इस औरत ने आज मुझ पर पेशाब किया... मेरे चेहरे पर... मेरे मुँह में... और मैंने हर बूँद पी ली...!"

उसके मन में एक जंगली गर्व भर गया। "तुम्हें पता है... तुम जैसी औरत के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ... तुम मेरी देवी हो... मेरी रंडी भी..."

भारती ने उसकी बात सुनी और उसकी आँखों में चमक आ गई। "वो मुझे देवी कह रहा है... और रंडी भी... क्या मैं सच में दोनों हो सकती हूँ...?"

विकास ने उसके कान में काटा, फिर चाटा। "आज रात... मैं तुम्हें फिर से चोदूँगा... तुम्हारी हर चीज़ मेरी है... तुम्हारी चूत, तुम्हारा मुँह, तुम्हारा पेशाब... सब कुछ!"

शॉवर के बाद – नए वादे
पानी बंद हुआ। विकास ने भारती को तौलिए में लपेटा, फिर खुद को भी। अब वो दोनों शांत थे, पर उनकी आँखों में अभी भी वही आग थी।

भारती ने विकास के सीने पर हाथ रखा। "तुम... तुम मुझे फिर से लेने आओगे... ऐसे ही... गन्दा करके... पवित्र करके...?"

विकास ने उसके होंठों को अपनी उंगली से छुआ। "हर रोज़... जब तक तुम मेरी हो... और मैं तुम्हारा।"

भारती मुस्कुराई। "तो फिर... आज रात का वादा याद है ना?"

विकास ने उसे उठाकर बिस्तर की ओर चल दिया। "हाँ... आज रात तुम्हारी चूत में कोई रहम नहीं होगा... क्योंकि अब तुम सच में... मेरी पत्नी हो।"

और जैसे ही दोनों बिस्तर पर गिरे, भारती ने खुद को उसकी बाहों में पूरी तरह समर्पित कर दिया—हर गंदगी, हर पवित्रता, हर एहसास के साथ।
🔥 विकास के मन में उबलते वाइल्ड थॉट्स 🔥

"इसकी चूत पर चॉकलेट सिरप लगाकर... धीरे-धीरे चाटूँ... फिर इसकी गांड के छेद तक जीभ घुसाऊँ... इसका मुँह खोलकर चॉकलेट से सने हुए अपने लंड को जबरदस्ती अंदर ठूसूँ... हाँ... ये रानी मेरी गंदगी और मिठास दोनों निगल जाएगी!"

विकास की नज़रें भारती के बदन पर गड़ी थीं, उसके दिमाग में एक के बाद एक गंदे सपने फूट रहे थे। "अगर मैं इसकी चूत को व्हिप्ड क्रीम से भर दूँ... और फिर खुद चाट-चाटकर साफ करूँ... इसकी आँखों में देखते हुए... हाँ, ये साली मेरे सामने बेबस होकर कराह उठेगी!"

🍦 भारती की मन की गुप्त इच्छाएँ 🍦

"काश... वो मुझे आइसक्रीम चाटने दे... उसके लंड पर स्ट्रॉबेरी फ्लेवर लगा हो... और मैं उसे चाटते-चाटते पिघला दूँ... उसका मीठा रस मेरे गले में उतर जाए..."

भारती की जीभ अनायास ही अपने होंठों पर फिर गई। "पर वो तो चॉकलेट का दीवाना है... क्या वो मेरे लिए आइसक्रीम इस्तेमाल करेगा? शायद... अगर मैं उसे पिघला दूँ तो?"

उसकी कल्पनाएँ और भी बेकाबू हो गईं—"वो मेरे स्तनों पर आइसक्रीम लगाकर... जीभ से साफ करे... फिर मेरी चूत पर ठंडी-ठंडी ड्रिजल डाले... और मैं चीखते हुए उसकी गर्म जीभ महसूस करूँ... हे भगवान!"

👅 दोनों की साझा प्यास 👅

विकास ने अचानक भारती की ओर देखा, उसकी आँखों में एक शैतानी चमक थी। "सुनो... मेरे दिमाग में कुछ चल रहा है..."

भारती ने बेचैनी से अपनी जाँघें रगड़ीं। "क्या... क्या सोच रहे हो?"

विकास ने उसे खींचकर किचन काउंटर पर बैठा दिया। "तुम्हें पता है... चॉकलेट सिरप और व्हिप्ड क्रीम का इस्तेमाल सिर्फ डेजर्ट के लिए नहीं होता..."

भारती की साँसें तेज हो गईं, पर उसने हिम्मत जुटाई। "और... अगर मैं... आइसक्रीम चाहूँ तो?"

विकास की आँखें चौड़ी हुईं। "तो फिर मेरा लंड तुम्हारा आइसक्रीम कोन होगा... और तुम उसे चाटोगी... जब तक सब पिघल न जाए।"

🍫🔥 गर्म-ठंडा खेल शुरू होता है... 🔥🍦

विकास ने फ्रिज खोला—एक हाथ में चॉकलेट सिरप, दूसरे में स्ट्रॉबेरी आइसक्रीम। भारती ने लाल होंठों के बीच जीभ दिखाई।

"आज... मैं इसकी हर इच्छा पूरी करूँगी... चाहे वो कितनी भी गन्दी क्यों न हो!"

विकास ने उसकी चूत पर ठंडी आइसक्रीम का डब्बा रख दिया। "इसे पिघलने दो... फिर मैं साफ करूँगा..."

भारती ने उसके लंड पर चॉकलेट सिरप उड़ेल दिया। "और इसे... मैं चाटकर साफ करूँगी..."

और फिर... दोनों की जीभें एक-दूसरे की गंदगी और मिठास में खो गईं... ❤️‍🔥
भारती का मन: एक अश्लील उथल-पुथल

"हाय राम... ये क्या कर रहा है मेरे साथ? उसकी जीभ मेरे गांड के छेद में अंदर तक घुस रही है... और वो चॉकलेट... गर्म जीभ के साथ मिलकर कैसा गीला-गीला सनसना रहा है..."

भारती के शरीर में एक अजीब सी झुरझुरी दौड़ गई जब विकास ने उसकी गांड के छेद को चौड़ा करते हुए और गहराई से चाटना शुरू किया। उसकी उंगलियाँ चादर को जकड़ने लगीं, नाखूनों के निशान पड़ते देर न लगी।

"इतना गन्दा... पर इतना मीठा भी... चॉकलेट की तरल मिठास और उसकी लार मेरी गांड की गर्मी में मिलकर... हे भगवान, मैं पागल हो जाऊँगी!"

विकास का मुंह उसकी गांड से चिपक गया था, जैसे कोई भूखा शेर शहद से सने फल को नोच रहा हो। भारती ने अपने आपको पीछे की ओर ढकेलते हुए उसके मुंह पर और दबाव डाला—एक साथ शर्म और उत्तेजना से भरकर।

"मेरी गांड का स्वाद... चॉकलेट में डूबा हुआ... वो पागलों की तरह चाट रहा है... क्या मैं सच में ऐसी गन्दी चीज़ों का आनंद ले रही हूँ...?"

शरीर की प्रतिक्रिया: झटके और सिहरन

जैसे ही विकास ने जीभ को और अंदर धकेला, भारती का पूरा शरीर ऐंठ गया। उसकी चूत से एक गर्म स्राव बह निकला, जो उसकी जाँघों पर गिरकर चिपचिपा निशान छोड़ गया।

"नहीं... नहीं... ये नहीं... ऐसा सनसनी... मेरी गांड का छेद कितना संवेदनशील है... उसकी जीभ के हर छोटे से हरकत से मेरी चूत गीली हो रही है!"

विकास ने उसकी प्रतिक्रिया को भाँप लिया। उसने एक हाथ से उसकी गांड के गोलाकार हिस्से को फैलाया और दूसरे हाथ से अपने लंड को मसलने लगा।

"तुम्हारी गांड... चॉकलेट से भरी हुई... मेरे मुंह में पिघल रही है... क्या तुम्हें एहसास हो रहा है कि तुम कितनी गर्म हो?"

भारती ने मुंह खोलकर एक गहरी सांस ली। "हाँ... हाँ... वो मेरी गांड की गंध को चॉकलेट के साथ सूंघ रहा है... उसकी सांसें गर्म हैं... मेरे छेद पर..."

भावनात्मक उलझन: शर्म बनाम वासना

भारती के दिमाग में दो विचार टकरा रहे थे:

"ये गन्दा है... ये सही नहीं... मैं एक सभ्य औरत हूँ..."

"पर इससे ज़्यादा उत्तेजक कुछ नहीं हो सकता... वो मेरी गांड को चॉकलेट की तरह चाट रहा है... मैं पिघल रही हूँ!"

विकास ने उसकी इस उलझन को तोड़ते हुए अचानक उसकी गांड में एक उंगली घुसा दी—चॉकलेट और लार से भीगी हुई।

"आह्ह्ह! नहीं...!" भारती चीख उठी, पर उसके शरीर ने खुद को और खोल दिया।

"उसकी उंगली... मेरी गांड के अंदर... चॉकलेट की चिपचिपाहट के साथ... हे भगवान, ये कैसा एहसास है...?"

विकास ने उसके कान में गुर्राते हुए कहा, "तुम्हारी गांड... मेरी चॉकलेट डिश बन गई है... और मैं इसे चाट-चाटकर साफ करूँगा..."

भारती ने आँखें बंद कर लीं। "मैं सच में उसकी हो चुकी हूँ... हर गन्दी इच्छा के लिए... हर पागलपन के लिए..."

और जैसे ही विकास ने उसकी गांड में जीभ और गहरी डाली, भारती के मुंह से एक लंबी, कर्कश चीख निकल गई—वो चरम सुख की कगार पर पहुँच चुकी थी। ❤️🔥
भारती के मन में उठते विचार:
"अगर मैं उसकी गांड चाटूं... वो भी आइसक्रीम लगाकर... क्या उसे भी वैसा ही मज़ा आएगा जैसा मुझे आया? उसकी गांड का स्वाद... ठंडी आइसक्रीम के साथ... हे भगवान, मैं ही काँप उठी सोचकर!"

भारती ने आइसक्रीम का डब्बा खोला और अपनी उंगलियों पर ठंडी, मलाईदार स्ट्रॉबेरी आइसक्रीम लगाई। विकास को पलंग पर लिटाते हुए, उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी।

"चलो, अब मेरी बारी है..."

विकास के मन की प्रतिक्रिया:
"ये साली... मेरी गांड चाटने वाली है? हमेशा मैं ही... अरे, पर आइसक्रीम के साथ? भगवान... ये कितना गन्दा और कितना मज़ेदार होगा!"

विकास ने खुद को भारती के हवाले कर दिया, उसकी नज़रें उसकी उंगलियों पर टिकी थीं जो आइसक्रीम से सनी हुई थीं।

"तुम... सच में...?"

भारती ने शरमाते हुए कहा, "हाँ... बस लेटे रहो..."

पहला स्पर्श:
भारती ने विकास की गांड पर ठंडी आइसक्रीम लगाई। विकास का शरीर झटका—"साला, कितनी ठंडी है!"—पर फिर उसने आनंद लेना शुरू किया।

भारती ने धीरे से अपनी जीभ उसकी गांड के छेद पर फेरी। "उफ्फ... ये स्वाद... नमकीन, मीठा, और सिर्फ उसका..."

विकास कराह उठा, "ओह्ह... तुम... तुम सच में..."

भारती ने उसकी गांड के गोलाकार हिस्सों को चूमते हुए कहा, "तुम्हें अच्छा लग रहा है ना?"

विकास ने सिर हिलाया, "हाँ... पर... और अंदर..."

गहरा प्रवेश:
भारती ने आइसक्रीम से सनी अपनी उंगली विकास की गांड के छेद पर रखी और धीरे से दबाई।

"इतना टाइट... पर वो मुस्कुरा रहा है... क्या उसे सच में अच्छा लग रहा है?"

विकास ने अपने घुटने और खोल दिए, एक अजीब सी गुदगुदी और उत्तेजना महसूस कर रहा था।

"और... अंदर तक..."

भारती ने उंगली धीरे से अंदर डाली, आइसक्रीम पिघलकर गर्म हो रही थी। विकास की सांसें तेज हो गईं।

"ये कैसा एहसास है... मैं उसकी गांड के अंदर हूँ... और वो मेरी उंगली को अपने अंदर खींच रहा है!"

वार्तालाप और वासना:
भारती ने हँसते हुए पूछा, "कैसा लग रहा है? मेरी आइसक्रीम वाली उंगली?"

विकास ने गुर्राते हुए जवाब दिया, "तुम्हारी उंगली नहीं... तुम्हारी जीभ चाहिए... अभी..."

भारती ने झटके से उंगली निकाली और अपनी जीभ उसकी गांड पर दबा दी। विकास का सिर पीछे झटका, "हाँ! ऐसे ही...!"

भारती ने गहराई तक जीभ घुसाई, आइसक्रीम का मीठा स्वाद और उसकी गांड की गर्मी मिलकर एक नया नशा बन गया।

"मैं इसका दीवाना हो जाऊँगी... ये गन्दा... ये पागल... पर ये सब मेरा है!"

चरमोत्कर्ष:
विकास ने भारती के बाल पकड़े और उसे ऊपर खींचकर चूमा—उसके होंठों पर अपनी ही गांड का स्वाद था।

"तुम... सबसे अलग हो..."

भारती मुस्कुराई, "और तुम्हारी गांड... अब मेरी पसंदीदा डिश है।"

दोनों हँस पड़े, फिर एक-दूसरे से लिपट गए—शरीर पर आइसक्रीम, चॉकलेट, और पसीने की मिली-जुली खुशबू।

"अगली बार... व्हिप्ड क्रीम ट्राई करते हैं," विकास ने कहा।

भारती ने कान में फुसफुसाया, "और मैं तुम्हारी गांड में चेरी डालकर चूसूँगी..."

विकास की आँखें चमक उठीं। "देवी हो तुम... रंडी भी... और सिर्फ मेरी!"
🔥 भारती का "डेजर्ट" खेल: एक सेक्सी सरप्राइज 🔥

विकास जब बेडरूम में पहुँचा, तो उसकी साँसें रुक सी गईं। भारती चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, और गेम्स से सजी हुई बेड पर लेटी थी—एक जीती-जागती मिठाई!

"हे भगवान... ये क्या बना डाला है इसने!"

भारती ने शरमाते हुए अपनी जाँघें खोलीं और मस्त होकर बोली,
"आ जाओ विकास... तुम्हारा डेजर्ट तैयार है... चखो ना..."

विकास के मन में उठा तूफान:
"ये औरत मेरी जान लेकर ही मानेगी! इसकी चूत में अंगूर... गांड में शहद... और नाभि में गेम्स? मैं कहाँ से शुरू करूँ?!"

उसकी नज़रें भारती के शरीर पर घूम रही थीं—हर हिस्से पर कोई न कोई मिठाई चिपकी हुई थी।

"तुम... पागल हो गई हो..." विकास हँसा।

भारती ने अपनी उंगली पर चॉकलेट चाटते हुए कहा,
"पागल तो तुम हो... जो मेरी गांड में चॉकलेट डालकर चाटते हो... आज मैं तुम्हें पूरा का पूरा मेनू खिलाऊँगी!"

पहला निवाला: चॉकलेट के होंठ
विकास ने भारती के होंठों पर जीभ फेरी—मीठी चॉकलेट और उसके स्वाद का मिश्रण उसे पागल कर रहा था।

"इसके होंठ... हमेशा मीठे रहते हैं... पर आज तो ये चॉकलेट की तरह पिघल रहे हैं!"

भारती ने उसके बाल पकड़े और जोर से चूमा, चॉकलेट दोनों के मुँह में फैल गई।

दूसरा कोर्स: स्ट्रॉबेरी वाले बूब्स
विकास ने उसके स्तनों पर रखे स्ट्रॉबेरी के टुकड़ों को जीभ से उठाया। भारती की आँखें बंद हो गईं जब उसने निप्पल्स को चूसते हुए फल का रस चखा।

"म्मम... तुम्हारे स्तन... और भी मीठे लग रहे हैं आज..."

भारती ने कराहते हुए कहा,
"वहाँ नहीं... नीचे देखो... तुम्हारा फेवरेट डेजर्ट तो मेरी चूत में है..."

मेन कोर्स: अंगूरों वाली चूत
विकास ने भारती की जाँघें खोलीं—उसकी चूत के अंदर रसभरे अंगूर चमक रहे थे!

"साली... ये क्या सोचकर लगाया है...!"

उसने एक अंगूर निकाला और मुँह में डाल लिया। "तुम्हारा पानी और अंगूर का रस... बेस्ट कॉम्बो है!"

भारती तड़प उठी जब विकास ने अंगूरों को हटाकर सीधे उसकी चूत चाटनी शुरू की।

"आह्ह! हाँ... वहाँ... और जीभ घुसाओ!"

स्पेशल डिश: शहद भरी गांड
विकास ने भारती को पलटा और उसकी गांड देखी—शहद की धार उसके छेद से बह रही थी।

"ये तो... बिल्कुल मेहँदी लगी हुई दुल्हन जैसी लग रही है!"

भारती ने पीछे मुड़कर कहा,
"तुम्हारी शादी की रस्म पूरी करो... अपनी दुल्हन को चाटो..."

विकास ने जीभ से शहद चाटना शुरू किया, फिर गांड के छेद में घुस गया। भारती चीख उठी—
"ओह्ह हाँ! गांड में जीभ... उफ्फ! और अंदर!"

डेजर्ट का अंत: मिक्स्ड फ्लेवर का सेक्स
विकास ने भारती को पलटकर चूमा—चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, अंगूर और शहद का स्वाद उनके मुँह में मिल गया।

"आज का डिनर... बेस्ट था..."

भारती हँसी, "और अब... डेजर्ट का आखिरी बाइट?"

विकास ने उसे नीचे दबाया और अपना कड़क लंड उसकी चूत में घुसा दिया। भारती की आँखें पलकों से चिपक गईं—

"आह्ह! हाँ... मेरी चॉकलेटी चूत... तुम्हारे लिए ही है!"

और फिर... दोनों ने मिठाई और प्यार का वो स्वाद चखा, जो कभी नहीं भूलने वाला था! 🍫🍓🍯💦
 

redarc121

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"कार में पहली बार"
विकास ने शरारती मुस्कान के साथ भारती की ओर देखा, "भारती... हमने कभी कार में ट्राई नहीं किया। क्या ख्याल है?"
भारती ने आँखें फैलाकर जवाब दिया, "अरे पागल! कार में? इतनी छोटी सी जगह में कोई ऐसा करता है क्या? स्पेस ही कहाँ होती है!"
विकास ने चालाकी से कहा, "सब हो जाता है जान... चलो आज रात मूवी देखने चलते हैं।" उसने एक शैतानी भरी शर्त रखी, "लेकिन मिनीस्कर्ट पहनकर आना और साटन की शर्ट... मान जाओगी?"
भारती ने शरमाते हुए अपने होठ दबाए, "तुम सच में बहुत बदमाश हो! ठीक है... मानती हूँ।"


"मूवी डेट का रोमांच"
रात के 10 बजे थे। भारती ने ब्लैक मिनीस्कर्ट और चमकदार साटन शर्ट पहनी थी, जो उसके कर्व्स को बेहद सेक्सी तरीके से दिखा रही थी। विकास ने अपनी SUV को एक सुनसान पार्किंग एरिया में पार्क किया, जहाँ सिर्फ कुछ दूर पर स्ट्रीट लाइट्स की हल्की रोशनी थी।
"मूवी तो छोड़ो... मैं तो बस तुम्हें देखना चाहता हूँ," विकास ने कहा और भारती की ओर झुककर उसके होंठों को चूम लिया।
भारती ने हल्का विरोध किया, "अरे... यहाँ कोई देख लेगा!"
विकास ने उसकी टाँगों पर हाथ फेरते हुए कहा, "इसीलिए तो मैंने तुम्हें मिनीस्कर्ट पहनने को कहा था..." उसने भारती की सीट को पीछे की ओर लेटा दिया।


"टाइट स्पेस में पैशन"
विकास ने भारती के पैरों को अलग किया और अपनी उंगलियों से उसके अंदरूनी जांघों को सहलाना शुरू किया। "तुम्हारी स्किन इतनी सॉफ्ट है..."
भारती की साँसें तेज हो गईं जब विकास ने उसकी स्कर्ट को ऊपर किया। उसकी लेस की पैंटी दिखाई दी, जिसे देखकर विकास की आँखें चमक उठीं। "वाह! आज तो तुमने स्पेशल पहनी है!"
भारती ने शरमाते हुए कहा, "तुम्हारे लिए ही तो..."
विकास ने अपने दाँतों से उसकी पैंटी खींची और अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया। भारती ने मुँह दबाकर कराहना शुरू किया, "ओह गॉड... विकास... यहाँ मत..."
कार का अंदरूनी स्पेस तंग होने के बावजूद, विकास ने भारती को पूरी तरह से नंगा कर दिया। उसने अपनी पैंट उतारी और भारती के ऊपर चढ़ गया।
"रेडी फॉर योर फर्स्ट कार एक्सपीरियंस?" विकास ने शरारत से पूछा।
भारती ने डरते हुए सिर हिलाया। विकास ने धीरे से अपना कड़ा लंड उसकी गीली चूत में डाला। "ओह माय गॉड! इट्स टाइट!" भारती चीख़ उठी।
कार की सीटें हिलने लगीं जब विकास ने तेजी से चोदना शुरू किया। भारती ने खिड़की को पकड़ लिया ताकि वह बैलेंस बना सके।
"येस... हार्डर..." वह हाँफती हुई बोली।
थोड़ी ही देर में भारती का शरीर ऐंठ गया। विकास ने एक जोरदार झटका दिया और अपना गर्म वीर्य उसकी चूत के अंदर गिरा दिया।


"बाद का मज़ा"
थककर दोनों सीट पर लेट गए। भारती ने विकास को चूमा, "तुम्हारी हर शर्त मानने लगूँगी तो यूँ ही बदनाम हो जाऊँगी!"
विकास हँसा, "पर तुम्हें तो मज़ा आया ना?"
भारती ने शरमाते हुए सिर हिलाया, "हाँ... पर अब मूवी देखने चलो... वरना ये डेट पूरी नहीं होगी!"
और इस तरह उनकी कार में पहली बार की याददाश्त बन गई... जहाँ टाइट स्पेस ने पैशन को और बढ़ा दिया!
"मूवी नाइट का फॉरबिडन प्ले"
थिएटर का लग्ज़री बॉक्स सीट - एकांत में बस दो रिक्लाइनर सोफा, डबल ब्लैंकेट और "Do Not Disturb" का टैग लटकाकर विकास ने परफेक्ट सेटअप तैयार किया था। भारती अपनी बिना पैंटी वाली स्थिति को लेकर असहज महसूस कर रही थी, एसी की ठंडी हवा उसकी गीली चूत को छू रही थी।
"विकास... मैं... मुझे ऐसे बैठने में अजीब लग रहा है," भारती ने फुसफुसाते हुए कहा, अपनी मिनीस्कर्ट को नीचे खींचते हुए।
विकास ने शरारती मुस्कान के साथ ब्लैंकेट उठाया, "इसीलिए तो ये डबल ब्लैंकेट लाया हूँ..." उसने भारती के पैरों को अपनी ओर खींचा।


"बैकरो में छुपा तूफान"
स्क्रीन पर मूवी चल रही थी पर दोनों का ध्यान कहीं और था। विकास ने ब्लैंकेट के नीचे अपना हाथ भारती की जांघों पर सरकाया।
"अरे! कोई देख लेगा!" भारती ने चौंककर कहा।
"पूरा बॉक्स खाली है... और बाहर टैग लगा है," विकास ने कहते हुए अपनी उंगलियों से उसकी चूत को टटोला। "वाह... तो तुम अभी भी गीली हो..."
भारती ने मुँह दबाकर कराहना शुरू किया जब विकास ने दो उंगलियाँ अंदर डाल दीं। "ओह गॉड... पर यहाँ... नहीं..."
विकास ने अपनी सीट रिक्लाइन कर ली और भारती को अपने ऊपर बैठा लिया। "तुम ऊपर... मैं नीचे... कोई देख भी नहीं पाएगा," उसने फुसफुसाया।


"साइलेंट पैशन"
भारती ने अपनी स्कर्ट को थोड़ा उठाया और धीरे से विकास के कड़े लंड पर बैठ गई। "ओह... इट्स सो बिग..." उसने मुँह दबाकर कहा।
विकास ने उसकी कमर पकड़ी और धीरे-धीरे नीचे दबाया। भारती ने अपने होंठ काट लिए जब उसकी चूत ने पूरा लंड निगल लिया।
"येस... ऐसे ही..." विकास ने गहरी साँस ली।
भारती ने धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होना शुरू किया, ब्लैंकेट उनके मूवमेंट्स को छुपा रहा था। मूवी की आवाज़ उनकी हल्की सी कराहटों को डूबा रही थी।
"मैं... मैं कमिंग..." भारती ने हाँफते हुए कहा।
विकास ने उसे जोर से नीचे दबाया और अपना वीर्य उसकी गहराई में छोड़ दिया। भारती का शरीर काँप उठा जब वह भी ऑर्गेज़्म में डूब गई।


और इस तरह उनकी मूवी नाइट एक यादगार रोमांटिक-सेक्सी एडवेंचर में बदल गई... जहाँ स्क्रीन पर जो चल रहा था, उससे कहीं ज्यादा एक्साइटमेंट सीट्स पर चल रहा था!

मूवी खत्म होने के बाद रात के 1 बजे थे। सुनसान सड़क पर विकास की गाड़ी चल रही थी। अचानक उसने अपनी पैंट का जिप खोला और अपना कड़ा हुआ लंड बाहर निकाल लिया।
"भारती... इसे चूसो," विकास ने आदेश देते हुए कहा, एक हाथ से स्टीयरिंग पकड़े हुए।
भारती घबरा गई, "अरे पागल! कोई देख लेगा! रुक जाओ न!"
पर विकास नहीं माना। उसने जोर से भारती का सिर पकड़ा और अपनी टाँगों के बीच झुका दिया। "अब चुपचाप मेरा लंड चूसो वरना गाड़ी रोककर यहीं पर तेरी चूट मारूँगा!"
भारती ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन विकास ने अपना मोटा लंड उसके मुँह में ठूँस दिया। "अब चूसो ठीक से!"
भारती की आँखों में आँसू आ गए जब उसका मुँह पूरी तरह फैल गया। विकास ने उसके बाल पकड़े और जोर-जोर से उसके मुँह में धकेलना शुरू कर दिया।
"हाँ... ऐसे ही... गले तक ले जा," विकास कराह उठा, गाड़ी की स्पीड बढ़ाते हुए।
भारती का गला घुट रहा था, लेकिन विकास का लंड उसके मुँह से बाहर नहीं निकलने दे रहा था। अचानक विकास ने एक जोरदार झटका दिया और अपना गाढ़ा वीर्य भारती के गले में गिरा दिया।
"सारा निगल लो... एक बूँद भी बाहर नहीं गिरनी चाहिए," विकास ने सख्त आवाज में कहा।
भारती ने मजबूरी में सब कुछ निगल लिया। जब विकास ने अपना लंड बाहर निकाला तो भारती खाँसने लगी।
"तुम... तुम बहुत ज्यादा करते हो विकास," भारती ने आँसू पोंछते हुए कहा।
विकास ने शरारती मुस्कान के साथ उसकी ठोड़ी पकड़ी, "पर तुम्हें पसंद आया ना? अब तैयार हो जाओ... घर पहुँचते ही तुम्हारी चूट का टर्न है!"
और इस तरह वह रात का सफर एक और सेक्सी एडवेंचर में बदल गया, जहाँ भारती की इच्छाओं से ज्यादा विकास का पैशन भारी पड़ा!
कार पार्किंग में रुकते ही भारती दरवाज़ा खोलकर बाहर निकलने लगी, पर विकास का आदेश अटल था - "रुको! कार से मत उतरो!"
विकास तेज़ी से उतरा, घर का मेन डोर अनलॉक किया और वापस आकर भारती के दरवाज़े को खोल दिया। "अब बाहर आओ मेरी रानी... पर मेरे तरीके से," उसने कहा और भारती को प्रिंसेस स्टाइल में अपनी बाहों में उठा लिया।
"नहीं विकास! छोड़ दो मुझे! मैं खुद चल सकती हूँ!" भारती ने विरोध किया, उसके चेहरे पर शर्म और डर का मिश्रण था। पर विकास ने एक न सुनी - उसकी मजबूत बाहों ने भारती को हवा में ही ले जाते हुए लिविंग रूम के सोफे तक पहुँचाया।
एसी का रिमोट दबाते हुए विकास धीरे से सोफे पर बैठ गया, भारती अब भी उसकी गोद में बैठी थी। कमर का ठंडा हवा उनके पसीने से तर बदन को छू रही थी।
विकास ने भारती की ठुड्डी पकड़कर उसकी ओर देखा - "अभी तो हमारा सेशन पूरा ही नहीं हुआ..." उसके हाथ ने भारती के शॉर्ट्स के बटन खोल दिए। "कार में जो अधूरा रह गया, अब पूरा करते हैं।"
भारती ने फिर विरोध करने की कोशिश की - "पर विकास... अभी तो... हमने अभी-अभी..."
विकास ने उसके होंठों पर उंगली रखकर चुप कराया - "शhh... बस लेट जाओ और एन्जॉय करो।" उसने भारती को सोफे पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर आ गया।
सोफे की मुलायम सतह पर भारती का शरीर डूबा जब विकास ने एक बार फिर उसकी चूट को अपने कड़े लंड से भर दिया। एसी की ठंडी हवा और गर्म शरीर का मेल... दोनों की साँसें तेज हो गईं...
 
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