- 1,387
- 2,642
- 159
मेरी रूपाली दीदी और मेरे जीजू (विनोद) की शादीशुदा जिंदगी बेहद खुशनुमा थी.. मेरे जीजू विनोद एक छोटी सी आईटी कंपनी में काम करते थे और मेरी दीदी एक हाउसवाइफ... यह उस समय की बात है जब मैं उन दोनों के साथ ही रहता था.. मेरी उम्र उस वक्त करीबन 19 साल की थी.. और मैं 12वीं कक्षा का छात्र था... अपनी बहन के घर पर रहते हुए ही मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था... उस वक्त रुपाली दीदी की उम्र तकरीबन 28 साल थी और मेरे जीजा जी की उम्र तकरीबन 32 साल के आसपास रही होगी... हमारी बेहद साधारण मध्यवर्गीय जिंदगी चल रही थी.. उन दोनों की अरेंज मैरिज हुई थी.. उनके दो बच्चे थे.. दोनों बेटी..
दोस्तों अब यहां से हमारी कहानी शुरू होती है...
मेरे जीजू 1 दिन ऑफिस से अपनी बाइक पर घर आ रहे थे तभी उनका एक बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया... कुछ लोगों ने उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाया.. मैं और मेरी रुपाली दीदी इस दुनिया में अकेले थे क्योंकि हमारे माता-पिता का देहांत हो चुका था.. इसीलिए मेरी बहन मेरी देखभाल के लिए मुझे अपने साथ रख रही थी और मेरा खर्चा उठा रही थी हर प्रकार से.. जब मैं अपनी रुपाली दीदी के साथ हॉस्पिटल पहुंचा मैंने देखा मेरे जीजाजी की हालत बेहद नाजुक थी. उनकी हालत देखकर मेरी बहन तो बेहोश हो गई, मैंने उनको सहारा दिया... मेरे चीजों की हालत देखकर मेरी रूपाली दीदी के अच्छे भविष्य की पूरी संभावना उनकी आंखों के सामने ही खत्म हुई जा रही थी, खासकर जब उनके दोनों बच्चे अभी बेहद छोटे थे... हमारे लिए यह बहुत ही बुरा वक्त चल रहा था.. तकरीबन 10 दिनों के बाद मेरे जीजू को होश आया...
मेरे जीजाजी की जान तो बच गई थी पर वह अपनी कमर के नीचे पूरी तरह अपंग हो चुके थे.. वह पैरालिसिस के शिकार हो चुके थे... अपनी कमर के नीचे का हिस्सा हिला पाना मेरे जीजू के लिए असंभव था.. मेरी रूपाली दीदी ने बेहद कड़ी मेहनत की.. उनको बड़े-बड़े हॉस्पिटल बड़े-बड़े डॉक्टरों से दिखाया... पर सभी ने मेरी दीदी को बस यही सलाह दी कि अब और ज्यादा पैसा खर्च करने से कोई फायदा नहीं है.. यह इंसान शायद अपनी जिंदगी में अब फिर से कभी उठकर खड़ा नहीं हो पाएगा चाहे जितना भी इलाज कर लो इसका... मेरी बहन निराश हो चुकी थी... डॉक्टरों ने घोषित कर दिया था कि मेरे जीजू पूरी तरह से अपंग हो चुके हैं कमर के हिस्से के नीचे..कुछ चमत्कारी शायद कुछ मदद कर सकता है.. पर दवाई और इलाज से तो यह बिल्कुल संभव नहीं रह गया है..
एक पतिव्रता और आदर्श नारी होने के नाते मेरी रूपाली दीदी ने मेरे जीजू की हालत के साथ समझौता कर लिया और उन्होंने मेरे साथ मिलकर फैसला किया कि अब हम लोग जीजा जी की देखभाल हमारे घर में करेंगे.... हम जिस घर में रह रहे थे वह ... एक बेडरूम और एक हॉल था.. मैं हॉल में सोता था.. मेरी दीदी और मेरे जीजू अपने दोनों बच्चों के साथ एक छोटे से कमरे में.. एक किचन था और एक बाथरूम... कुल मिलाकर जगह बहुत कम थी हमारे घर के अंदर.. मेरे जीजाजी कि जो भी सेविंग थी उसके बारे में मेरी बहन को पूरा अंदाजा था... उनको अच्छी तरह पता था कि जो भी सेविंग है उसके साथ बहुत दिनों तक गुजारा नहीं किया जा सकता है.. मेरी बहन को अपने दोनों बच्चों के भविष्य की ...और अपने निकम्मे भाई की भी... मुझे मेरी दीदी की हालत देखकर बुरा लगता था पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था... जहां तक हो सके मैं अपनी बहन की मदद करने की कोशिश करता था...
मेरी रुपाली दीदी भी सिर्फ 12वीं पास थी.. 1 साल तक उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई तो की थी परंतु फिर घर के जंजाल होने के कारण पढ़ाई छोड़ दी... फिर शादी हो गई और बच्चे.. उनके पास ऐसी कोई भी क्वालीफिकेशंस नहीं थी कि उन्हें कोई अच्छी नौकरी मिल सके... किसी तरह तकरीबन 1 महीने गुजर चुके थे उस दुर्घटना के हुए .. मेरी रूपाली दीदी बेहद परेशान रहती थी, पर अपनी परेशानी को कभी भी मेरे अपंग जीजाजी पर जाहिर नहीं होने देती थी.. मेरी भांजी सोनिया का दाखिला एक बगल वाले स्कूल में ही हो गया था.. मेरी दीदी को उनके ससुराल वालों की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी... जीजा जी के भी माता-पिता का देहांत बहुत पहले हो चुका था... मेरी दीदी के ससुराल में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उनकी मदद करना चाहे.. उन्हें कोई परवाह नहीं थी...
मेरी रूपाली दीदी एक बेहद कसे हुए बदन की महिला है.. उनका रंग गोरा है... उनकी लंबाई तकरीबन 5 फुट 1 इंच है.. मेरी दीदी दिखने में बेहद आकर्षक है... उनके बदन पर उस समय थोड़ी बहुत चर्बी चढ़ी हुई थी जो प्रत्येक भारतीय नारी के साथ आप लोग देख सकते हैं.. मेरी बहन साधारण सूती की साड़ियां पहनती है जो दिन भर की कड़ी मेहनत के कारण अस्त व्यस्त हो जाती है... मेरी रूपाली दीदी कभी भी अपनी साड़ी को अपनी नाभि के नीचे नहीं पहनती थी... प्रत्येक भारतीय महिला की तरह मेरी दीदी अपने अंगों को छुपाने का प्रयास करती थी..

दोस्तों अब यहां से हमारी कहानी शुरू होती है...
मेरे जीजू 1 दिन ऑफिस से अपनी बाइक पर घर आ रहे थे तभी उनका एक बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया... कुछ लोगों ने उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाया.. मैं और मेरी रुपाली दीदी इस दुनिया में अकेले थे क्योंकि हमारे माता-पिता का देहांत हो चुका था.. इसीलिए मेरी बहन मेरी देखभाल के लिए मुझे अपने साथ रख रही थी और मेरा खर्चा उठा रही थी हर प्रकार से.. जब मैं अपनी रुपाली दीदी के साथ हॉस्पिटल पहुंचा मैंने देखा मेरे जीजाजी की हालत बेहद नाजुक थी. उनकी हालत देखकर मेरी बहन तो बेहोश हो गई, मैंने उनको सहारा दिया... मेरे चीजों की हालत देखकर मेरी रूपाली दीदी के अच्छे भविष्य की पूरी संभावना उनकी आंखों के सामने ही खत्म हुई जा रही थी, खासकर जब उनके दोनों बच्चे अभी बेहद छोटे थे... हमारे लिए यह बहुत ही बुरा वक्त चल रहा था.. तकरीबन 10 दिनों के बाद मेरे जीजू को होश आया...
मेरे जीजाजी की जान तो बच गई थी पर वह अपनी कमर के नीचे पूरी तरह अपंग हो चुके थे.. वह पैरालिसिस के शिकार हो चुके थे... अपनी कमर के नीचे का हिस्सा हिला पाना मेरे जीजू के लिए असंभव था.. मेरी रूपाली दीदी ने बेहद कड़ी मेहनत की.. उनको बड़े-बड़े हॉस्पिटल बड़े-बड़े डॉक्टरों से दिखाया... पर सभी ने मेरी दीदी को बस यही सलाह दी कि अब और ज्यादा पैसा खर्च करने से कोई फायदा नहीं है.. यह इंसान शायद अपनी जिंदगी में अब फिर से कभी उठकर खड़ा नहीं हो पाएगा चाहे जितना भी इलाज कर लो इसका... मेरी बहन निराश हो चुकी थी... डॉक्टरों ने घोषित कर दिया था कि मेरे जीजू पूरी तरह से अपंग हो चुके हैं कमर के हिस्से के नीचे..कुछ चमत्कारी शायद कुछ मदद कर सकता है.. पर दवाई और इलाज से तो यह बिल्कुल संभव नहीं रह गया है..
एक पतिव्रता और आदर्श नारी होने के नाते मेरी रूपाली दीदी ने मेरे जीजू की हालत के साथ समझौता कर लिया और उन्होंने मेरे साथ मिलकर फैसला किया कि अब हम लोग जीजा जी की देखभाल हमारे घर में करेंगे.... हम जिस घर में रह रहे थे वह ... एक बेडरूम और एक हॉल था.. मैं हॉल में सोता था.. मेरी दीदी और मेरे जीजू अपने दोनों बच्चों के साथ एक छोटे से कमरे में.. एक किचन था और एक बाथरूम... कुल मिलाकर जगह बहुत कम थी हमारे घर के अंदर.. मेरे जीजाजी कि जो भी सेविंग थी उसके बारे में मेरी बहन को पूरा अंदाजा था... उनको अच्छी तरह पता था कि जो भी सेविंग है उसके साथ बहुत दिनों तक गुजारा नहीं किया जा सकता है.. मेरी बहन को अपने दोनों बच्चों के भविष्य की ...और अपने निकम्मे भाई की भी... मुझे मेरी दीदी की हालत देखकर बुरा लगता था पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था... जहां तक हो सके मैं अपनी बहन की मदद करने की कोशिश करता था...
मेरी रुपाली दीदी भी सिर्फ 12वीं पास थी.. 1 साल तक उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई तो की थी परंतु फिर घर के जंजाल होने के कारण पढ़ाई छोड़ दी... फिर शादी हो गई और बच्चे.. उनके पास ऐसी कोई भी क्वालीफिकेशंस नहीं थी कि उन्हें कोई अच्छी नौकरी मिल सके... किसी तरह तकरीबन 1 महीने गुजर चुके थे उस दुर्घटना के हुए .. मेरी रूपाली दीदी बेहद परेशान रहती थी, पर अपनी परेशानी को कभी भी मेरे अपंग जीजाजी पर जाहिर नहीं होने देती थी.. मेरी भांजी सोनिया का दाखिला एक बगल वाले स्कूल में ही हो गया था.. मेरी दीदी को उनके ससुराल वालों की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी... जीजा जी के भी माता-पिता का देहांत बहुत पहले हो चुका था... मेरी दीदी के ससुराल में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उनकी मदद करना चाहे.. उन्हें कोई परवाह नहीं थी...
मेरी रूपाली दीदी एक बेहद कसे हुए बदन की महिला है.. उनका रंग गोरा है... उनकी लंबाई तकरीबन 5 फुट 1 इंच है.. मेरी दीदी दिखने में बेहद आकर्षक है... उनके बदन पर उस समय थोड़ी बहुत चर्बी चढ़ी हुई थी जो प्रत्येक भारतीय नारी के साथ आप लोग देख सकते हैं.. मेरी बहन साधारण सूती की साड़ियां पहनती है जो दिन भर की कड़ी मेहनत के कारण अस्त व्यस्त हो जाती है... मेरी रूपाली दीदी कभी भी अपनी साड़ी को अपनी नाभि के नीचे नहीं पहनती थी... प्रत्येक भारतीय महिला की तरह मेरी दीदी अपने अंगों को छुपाने का प्रयास करती थी..

Last edited: