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कस्बे के एकमात्र बड़ी कोठी वाले किराना के व्यापारी लाला विजय कुमार हैं, जिन्हें लोग बिज्जू लाला के नाम से जानते हैं.
मोटा थुलथुला शरीर, पर बातें इतनी मीठी कि शक्कर भी शरमा जाए.
एक नम्बर के बेईमान, मिलावटबाज़, मौके का फायदा उठाने वाले लालची और झूठ बोलने में माहिर व्यक्ति.
बिज्जू लाला की मुख्य चौराहे पर बड़ी किराना की दूकान थी, पीछे गोदाम, ऊपर तिमंजला मकान.
किराना दूकान क्या, छोटा मोटा सुपर स्टोर समझिये. रोजाना की जरूरत का हर सामान वहां मिलता, वह भी बिना पैसे के.
मतलब लाला के पास कस्बे के हर आदमी का उधार खाता था.
सबको उधार मिलता था.
पर था वह केवल एक महीने का.
अगर अगले महीने पैसे नहीं दिए, तो आगे उधार नहीं.
लाला लंगोट के कच्चे थे.
पता नहीं, कितनों के पेटीकोट और ब्लाउज के अन्दर घूम आए थे, उन्हें खुद भी कुछ याद नहीं था.
अब वे भी क्या करें … हर इतवार को वसूली पर जाते थे, जहां से जो वसूल हो जाए.
साथ में एक जवान बांका गबरू लड़का रहता था राजू.
राजू बिज्जू लाला की रखैल का लड़का था, बीज उन्हीं का था.
वह रखैल तो मर गयी पर लाला को कसम दे गयी कि राजू को उन्हें ही पालना पोसना पड़ेगा.
लाला ने राजू का दाखिला पास के शहर में करा दिया.
राजू ने इंटर कर लिया और लाला के पास उनके कच्चे-पक्के हिसाब देखने लगा.
राजू गठीले बदन का मजबूत कद-काठी का नौजवान था.
लाला की बीवी भी कोविड में चल बसी.
उनका एक ही लड़का था, जो पढ़ लिख कर मर्चेंट नेवी में लग गया था.
वह साल में 8-9 महीने पानी वाले जहाज़ पर ही रहता था, बाकी समय लाला के पास रहता.
लाला की पत्नी ने कोविड से ठीक पहले उसकी शादी शहर की एक बहुत सुंदर लड़की रिशा से यह झूठ बोल कर करवा दी कि लड़का शादी के बाद अपनी बीवी को जहाज पर ले जाएगा.
पर हुआ उलटा.
लड़की बहुत रोई … पर फिर उसने अपना नसीब मान लिया और इसी बीच लाला की बीवी चल बसी.
अब लाला के घर को तो मानो ग्रहण लग गया.
घर पर अकेली नयी बहू.
लाला का इतना बड़ा कारोबार … लाला की एक रिश्ते की भाभी कुछ दिनों तक तो आकर रहीं, फिर उनका अपना भी घर था.
लाला तो मानो हंसना ही भूल गए थे.
रात को दुकान बढ़ा कर शराब पीने लगे.
सबने यही राय बनायी कि अब तो उनका लड़का अजय जॉब छोड़ कर यहीं आ जाए.
पर अजय ने जॉब छोड़ने को मना कर दिया.
सच तो ये था कि वह शादी के लिए भी राजी नहीं था.
उसे शादी का दैहिक सुख बाहर से लेने की आदत पड़ चुकी थी.
पर मां की जिद के आगे वह झुक गया.
उसका अपनी दुल्हन रिशा से कोई ख़ास लगाव भी नहीं हो पाया था.
हां इतना था कि बेड पर दोनों एक दूसरे की शारीरिक जरूरतों को जी भर कर पूरा कर देते.
रिशा ने अजय को साफ़ बोल दिया कि वह बच्चा तब ही करेगी, जब अजय उसे अपने साथ रखे.
अंततः सभी रिश्तेदारों ने दबाव बनाकर लाला से बहुत छोटी एक गरीब पढ़ी-लिखी लड़की सरिता को ढूंढकर उनकी शादी करवा दी.
सरिता तलाकशुदा थी. उसके पति ने उसको बाँझ करार दे दिया था.
वैसे सरिता सुंदर और भरे शरीर की खुशमिजाज लड़की थी.
अब लाला को बच्चे तो पैदा करने नहीं थे, तो उन्हें ये रिश्ता ठीक ही लगा.
अजय से पूछा तो उसने अनमने ढंग से हां कह दी.
हां, रिशा खुश थी कि चलो मां के रूप में ही सही, कोई तो घर में होगा … जिससे वह मन की बात कह सकेगी.
बिज्जू लाला ब्याह तो कर लाये पर वे सरिता का साथ बिस्तर पर नहीं दे पाए.
मोटा थुलथुला शरीर, मन टूटा हुआ. कुल मिलाकर वे सरिता पर चढ़े तो कई बार, पर न तो धक्के लगा पाए, न पानी निकाल पाए. बस मम्मे चूस कर और चूत में उंगली करके लाला ठंडे पड़ जाते और बाजू होकर खर्राटे लेने लगते.
सरिता को तो एक खूंटा चाहिए था.
वह इसी से खुश थी कि चलो चूत तो गीली होनी शुरू हुई.
घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी.
पर हां … वह अपनी दोनों शादियों में शारीरिक सुख से वंचित रही.
पहली शादी में तो मानसिक और शारीरिक प्रताणना मिली थी तो सेक्स के बारे में सोचने का समय नहीं था.
पर इस घर में सुख सुविधाएँ सभी थीं, तो मोबाइल, टी-वी देख उसकी चूत अब कुलबुलाने लगी थी.
वह अब एकांत में उंगली या सब्जियों का इस्तेमाल करने लगी थी.
इस तरह से घर में दो दो भूखी चूतें थीं, जो रिश्ते की शर्म के चलते आपस में अपने दुःख भी नहीं बाँट सकती थीं.
रिशा ने शुरू में तो सरिता को मां कहना चाहा, पर दोनों की उम्र में दो तीन साल का ही फर्क था तो सरिता ने उससे दीदी ही कहलवाया.
इसी तरह छह महीने बीत गए.
मोटा थुलथुला शरीर, पर बातें इतनी मीठी कि शक्कर भी शरमा जाए.
एक नम्बर के बेईमान, मिलावटबाज़, मौके का फायदा उठाने वाले लालची और झूठ बोलने में माहिर व्यक्ति.
बिज्जू लाला की मुख्य चौराहे पर बड़ी किराना की दूकान थी, पीछे गोदाम, ऊपर तिमंजला मकान.
किराना दूकान क्या, छोटा मोटा सुपर स्टोर समझिये. रोजाना की जरूरत का हर सामान वहां मिलता, वह भी बिना पैसे के.
मतलब लाला के पास कस्बे के हर आदमी का उधार खाता था.
सबको उधार मिलता था.
पर था वह केवल एक महीने का.
अगर अगले महीने पैसे नहीं दिए, तो आगे उधार नहीं.
लाला लंगोट के कच्चे थे.
पता नहीं, कितनों के पेटीकोट और ब्लाउज के अन्दर घूम आए थे, उन्हें खुद भी कुछ याद नहीं था.
अब वे भी क्या करें … हर इतवार को वसूली पर जाते थे, जहां से जो वसूल हो जाए.
साथ में एक जवान बांका गबरू लड़का रहता था राजू.
राजू बिज्जू लाला की रखैल का लड़का था, बीज उन्हीं का था.
वह रखैल तो मर गयी पर लाला को कसम दे गयी कि राजू को उन्हें ही पालना पोसना पड़ेगा.
लाला ने राजू का दाखिला पास के शहर में करा दिया.
राजू ने इंटर कर लिया और लाला के पास उनके कच्चे-पक्के हिसाब देखने लगा.
राजू गठीले बदन का मजबूत कद-काठी का नौजवान था.
लाला की बीवी भी कोविड में चल बसी.
उनका एक ही लड़का था, जो पढ़ लिख कर मर्चेंट नेवी में लग गया था.
वह साल में 8-9 महीने पानी वाले जहाज़ पर ही रहता था, बाकी समय लाला के पास रहता.
लाला की पत्नी ने कोविड से ठीक पहले उसकी शादी शहर की एक बहुत सुंदर लड़की रिशा से यह झूठ बोल कर करवा दी कि लड़का शादी के बाद अपनी बीवी को जहाज पर ले जाएगा.
पर हुआ उलटा.
लड़की बहुत रोई … पर फिर उसने अपना नसीब मान लिया और इसी बीच लाला की बीवी चल बसी.
अब लाला के घर को तो मानो ग्रहण लग गया.
घर पर अकेली नयी बहू.
लाला का इतना बड़ा कारोबार … लाला की एक रिश्ते की भाभी कुछ दिनों तक तो आकर रहीं, फिर उनका अपना भी घर था.
लाला तो मानो हंसना ही भूल गए थे.
रात को दुकान बढ़ा कर शराब पीने लगे.
सबने यही राय बनायी कि अब तो उनका लड़का अजय जॉब छोड़ कर यहीं आ जाए.
पर अजय ने जॉब छोड़ने को मना कर दिया.
सच तो ये था कि वह शादी के लिए भी राजी नहीं था.
उसे शादी का दैहिक सुख बाहर से लेने की आदत पड़ चुकी थी.
पर मां की जिद के आगे वह झुक गया.
उसका अपनी दुल्हन रिशा से कोई ख़ास लगाव भी नहीं हो पाया था.
हां इतना था कि बेड पर दोनों एक दूसरे की शारीरिक जरूरतों को जी भर कर पूरा कर देते.
रिशा ने अजय को साफ़ बोल दिया कि वह बच्चा तब ही करेगी, जब अजय उसे अपने साथ रखे.
अंततः सभी रिश्तेदारों ने दबाव बनाकर लाला से बहुत छोटी एक गरीब पढ़ी-लिखी लड़की सरिता को ढूंढकर उनकी शादी करवा दी.
सरिता तलाकशुदा थी. उसके पति ने उसको बाँझ करार दे दिया था.
वैसे सरिता सुंदर और भरे शरीर की खुशमिजाज लड़की थी.
अब लाला को बच्चे तो पैदा करने नहीं थे, तो उन्हें ये रिश्ता ठीक ही लगा.
अजय से पूछा तो उसने अनमने ढंग से हां कह दी.
हां, रिशा खुश थी कि चलो मां के रूप में ही सही, कोई तो घर में होगा … जिससे वह मन की बात कह सकेगी.
बिज्जू लाला ब्याह तो कर लाये पर वे सरिता का साथ बिस्तर पर नहीं दे पाए.
मोटा थुलथुला शरीर, मन टूटा हुआ. कुल मिलाकर वे सरिता पर चढ़े तो कई बार, पर न तो धक्के लगा पाए, न पानी निकाल पाए. बस मम्मे चूस कर और चूत में उंगली करके लाला ठंडे पड़ जाते और बाजू होकर खर्राटे लेने लगते.
सरिता को तो एक खूंटा चाहिए था.
वह इसी से खुश थी कि चलो चूत तो गीली होनी शुरू हुई.
घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी.
पर हां … वह अपनी दोनों शादियों में शारीरिक सुख से वंचित रही.
पहली शादी में तो मानसिक और शारीरिक प्रताणना मिली थी तो सेक्स के बारे में सोचने का समय नहीं था.
पर इस घर में सुख सुविधाएँ सभी थीं, तो मोबाइल, टी-वी देख उसकी चूत अब कुलबुलाने लगी थी.
वह अब एकांत में उंगली या सब्जियों का इस्तेमाल करने लगी थी.
इस तरह से घर में दो दो भूखी चूतें थीं, जो रिश्ते की शर्म के चलते आपस में अपने दुःख भी नहीं बाँट सकती थीं.
रिशा ने शुरू में तो सरिता को मां कहना चाहा, पर दोनों की उम्र में दो तीन साल का ही फर्क था तो सरिता ने उससे दीदी ही कहलवाया.
इसी तरह छह महीने बीत गए.