Update 3
नेहा स्टोररूम के दरवाज़े तक गई, खिड़की के पर्दे नीचे गिराए और दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया। फिर पास वाले कैबिनेट से गार्डन कुर्सियों के कुछ कुशन निकाले और उन्हें फर्श पर बिछा दिया — जैसे उसने पहले से ये सारा सेटअप सोच रखा हो।
कमर पे दोनों हाथ जमा के वो वर्मा जी को घूरने लगी, “अबे घूरना बंद कर, कपड़े उतार और नीचे लेट जा… अब ड्रामा नहीं चाहिए।”
वर्मा जी ने सिर हिलाय फिर अपनी पुरानी सी शर्ट खींचकर उतारी और एक तरफ फेंक दी। शॉर्ट्स और चड्डी को पैरों से नीचे खिसकाया, फिर अपने चमड़े के जूते और लंबी सफेद जुराबें भी उतार फेंकी। अब वो पूरी तरह नंगा था — एक बूढ़ा पतला मगर फड़कते लंड वाला मर्द, जो जैसे किसी अश्लील सपने से निकलकर सामने आ गया हो।
नेहा ने भी बिना वक्त खराब किए अपनी टीशर्ट उतारी, ब्रा की हुक खोली और उसे वहीं ज़मीन पर गिरा दिया। फिर गार्डन वाले बूट्स उतारे, मोज़े पैरों से खींचकर अलग किए और अपनी शॉर्ट्स के साथ-साथ पैंटी भी टखनों तक नीचे सरका दी।
जब वो उन कपड़ों से पूरी तरह बाहर निकली, तो वर्मा जी की आँखें चौड़ी हो गईं — उसके सामने नेहा की चिकनी, क्लीनशेव, भीगी हुई चूत थी — ताज़ा और तैयार।
वो कुशनों की ओर बढ़ी, और फिर बिल्ली जैसी चाल में हाथ-पैरों के बल उसके ऊपर रेंगती चली गई। उसकी लहराती कमर, झूलते बूब्स और खुले बाल वर्मा जी के मुँह के ऊपर लटक रहे थे।
“भोसड़ी के… मैं अपने बुड्ढे पड़ोसी से चुदने जा रही हूँ… अगर तेरा लंड इतना बड़ा ना होता ना…” नेहा बड़बड़ाई, जैसे खुद पे शर्मिंदा भी थी, और तलब में डूबी भी।
वर्मा जी ने ठंडी हँसी के साथ कहा, “तू तो बड़ी naughty निकली, नेहा जी… पर चिंता मत कर, ये बात हमारे बीच ही रहेगी।”
“रहेगी तो बेटा... वरना तेरा लंड काट के गमले में गाड़ दूँगी,” नेहा ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा, “और अब ‘नेहा जी’ नहीं, सिर्फ़ नेहा…”
“ओह, ठीक है नेहा,” वर्मा जी ने झुर्रीदार मुस्कान फेंकी।
फिर उसने नेहा के चेहरे को पकड़कर उसे नीचे खींचा और उनके होंठ चिपक गए। ज़ुबानों की लड़ाई शुरू हो गई — लारें मिक्स होने लगीं, और अब दोनों ऐसे लिपटे जैसे सालों से भूखे हों।
एक-दूसरे को चूमते, चाटते, चिपकते हुए वो कुशनों पर लोटपोट होने लगे। फिर वर्मा जी ने उसे नीचे लिटाया, उसके लंबे पैर फैलाए और खुद उसके बीच आकर बैठ गया।
उसने अपने बड़े, मोटे लंड को नीचे झुकाकर नेहा की गीली चूत की दरार पर टिका दिया — जैसे पूछ रहा हो, "अब घुसाऊँ?"
नेहा की छाती उठ-गिर रही थी, साँसें तेज़ — उसका दिल धक-धक कर रहा था। सामने एक बुड्ढा, पतला मगर लौड़े से भारी मर्द था — जो अब उसे चोदने ही वाला था।
वो जानती थी — ये सब बहुत ग़लत है… लेकिन ये ग़लती ही तो सबसे ज़्यादा मज़ेदार लग रही थी।
नेहा जैसे ही उसके ऊपर चढ़ने को हुई, वर्मा जी ने अचानक रोका —
"रुको… कुछ पहनना पड़ेगा क्या? कोई प्रोटेक्शन?"
नेहा ने ठोड़ी पर उँगली रखी — पिल तो वो ले नहीं रही थी, और कॉन्डम घर के अंदर थे।
"भाड़ में गया सब… आज शायद सेफ डे है। बस अंदर डाल और ध्यान रखना, बाहर निकाल लेना टाइम पे," उसने आँखों में प्यास के साथ कहा।
वर्मा जी ने एक झटके में अपना मोटा लंड नेहा की गरम, भीगी चूत में धँसा दिया।
"ओह्ह्ह… चो—त… कितनी टाइट है!" वो कराह उठा, और धीरे-धीरे उसकी गहराई में उतरने लगा।
नेहा की साँसें हाँफने लगीं, "हम्म्म… तो अब तक समझ नहीं आया था कि मुझे क्या चाहिए, है ना वर्मा जी?"
"अब बस चढ़ के बैठे रहोगी या चुदवाना भी है?" नेहा ने आँखें चमकाते हुए कहा।
बुड्ढा हँसा, "चलो फिर, याद दिला देता हूँ चोदना कैसे होता है।"
उसने नेहा की चौड़ी कमर को कसकर पकड़ा और अपनी बुढ़ी लेकिन भूखी कमर से जोर-जोर से ठोकना शुरू किया।
"हाँ… हाँ… ऐसे ही मारो… और कसके!" नेहा चीखने लगी, उसका लंड उसकी भीगी हुई चूत को पूरी तरह भर रहा था — हर झटके पर वो काँप उठती।
वो लंड ऐसा अंदर घुस रहा था जैसे सालों की प्यास बुझाने आया हो — हर झटके में गहराई तक।
फिर उसकी सूखी हड्डियों जैसे हाथ धीरे-धीरे नेहा की छातियों तक पहुँचने लगे।
"हाँ! कस के निचोड़ो मेरे बूब्स, वर्मा जी… जैसे मेरी चूत बजा रहे हो, वैसे ही मेरी छातियाँ भी बजाओ!" नेहा की आवाज़ अब पूरे शेड में गूंज रही थी।
"ले तेरी माँ की… ये ले मेरा लंड!" वर्मा जी गुर्राया — अब उसके झटके और भी लय में, और भी गहरे हो चुके थे।
उनकी त्वचा की टकराहट की आवाज़, पसीने की महक और चुदाई की गर्मी से स्टोररूम भाप बन चुका था।
"तेरे उस मियां से बेहतर चोद रहा हूँ ना?" उसने पूछा।
"हाँ! हाँ! लाख गुना बेहतर! साला वो तो सिर्फ़ दिखाने को मर्द है, तू तो सच्चा लंड वाला है!" नेहा बिना रुके बकती जा रही थी — उसकी जुबान अब उसकी चूत कंट्रोल कर रही थी।
"इसे कहते हैं तजुर्बा, रानी…" बुड्ढा मुस्कराया।
फिर जैसे ही वो नेहा के ऊपर और चढ़ा, उसकी टाँगें नेहा की छाती तक पहुँचने लगीं।
"ओ माय गॉड…" नेहा हँसी, "बुड्ढा होते हुए भी तू तो पूरा लठ लेकर आया है…"
वो अब पूरी तरह मेटिंग प्रेस में थी — उसके पैर ऊपर मुड़े हुए, और वर्मा जी उसकी चूत को जड़ तक पीट रहे थे।
"मम्म… म्म्म… आह्ह…" दोनों की ज़ुबानें फिर एक बार आपस में उलझ चुकी थीं।
नेहा को महसूस हुआ कि वो बुड्ढे का लंड उसके गर्भाशय तक मार रहा था — हर बार जब उसकी टिप टकराती, वो झटके से कांप उठती।
"मैं झड़ने वाला हूँ!" वर्मा जी ने घिस-घिस कर कहा।
"हाँ… हाँ… झड़ो मेरे अंदर… चोद डालो मुझे… अपना बना लो… मेरे पति को दिखा दो कि असली मर्द कौन है!" नेहा बेकाबू हो चुकी थी।
उसने अपनी टाँगें उसके पतले कमर में लपेट दीं — अब वर्मा जी चाह कर भी नहीं निकल सकते थे।
"ओह … मैं अंदर ही डालने वाला हूँ!" वर्मा जी गरजा।
और फिर, एक जोरदार झटका लेकर उसने अपने बुड्ढे लंड से सारा गरम वीर्य नेहा की चूत में उगल दिया।
"हाँ!!! येस्स!!! यही चाहिए था मुझे!" नेहा चिल्लाई।
बुड्ढे के बॉल्स सिकुड़ गए — एक के बाद एक थक्के अंदर टपकते रहे।
नेहा की चूत उस रस को अपनी अंदरूनी दीवारों से चूस रही थी — जैसे किसी बच्चे की भूख लगी हो।
उसका पूरा शरीर काँप रहा था — उसने वर्मा जी को कस के पकड़ लिया, उसके नाखून उसकी झुर्रीदार पीठ में धँस गए।
वो लम्हा… वो भराव… वो गर्मी… सब कुछ ऐसा था जो नेहा ने बरसों से नहीं महसूस किया था।
और इस बार… उसकी चूत सच में बच्चे माँग रही थी…
“आह… साला क्या बजाया है तूने, वर्मा जी…” नेहा ने कराहते हुए कहा, माथे से पसीना पोंछते हुए, उसकी चूत में लंड की आख़िरी दो-तीन थरथराती ठुकाइयाँ झेलती हुई।
“हम्म… उम्र तो है तेरी, पर लौड़ा तो आज भी जिंदा है,” नेहा ने मुस्कुराते हुए अपने बुड्ढे लेकिन ठरकी पड़ोसी की तारीफ़ की। “काश पहले पता होता तू इतना बढ़िया चोदता है, तो बहुत पहले ही चोदवा लेती तुझसे।” वर्मा जी ने हरामी मुस्कान के साथ झुककर उसके होंठों पर एक गीली सी चुम्मी चिपका दी।
“हूंफ, मैं तो कब से ट्राय कर रहा था तुझे पटाने का। अब जब चोदी हो गई है, तो बोल, कैसा लगा एक असली मर्द से चोदवाना?” वर्मा जी ने ज़रा साँस समेटते हुए पूछा। सालों बाद किसी की चूत में ऐसा भरकर उतरना हुआ था। नेहा ने धीरे से अपनी टाँगें उसकी कमर से खोलीं, और वर्मा जी ने उसकी गीली, ठुकी हुई चूत से धीरे-धीरे अपना लंड बाहर निकाला — उनके दूध की पूरी नदी उस फटी चूत से बह रही थी।
नेहा ने थककर एक करवट ली और उसकी तरफ देखा — सामने बुड्ढा था, झुर्रियों से भरा, कमज़ोर सा शरीर, लेकिन बीच में खड़ा हुआ वो राक्षसी लंड… वही था जिसने उसकी सोच से परे भूख को छेड़ा था। अब नेहा ‘सुशील बहू’ से सीधी ‘हरामी चूत की प्यास बुझाती हुई बीवी’ में बदल चुकी थी। और जितना ये सब गलत था, उतना ही नशे में चढ़ने वाला भी। उसे अब इस गंदगी की आदत सी लगने लगी थी।
“असली मर्द? वर्मा जी, आप तो पूरे बुज़ुर्ग लगते हो ऊपर से,” नेहा ने तंज कसा। वर्मा जी ने आँखें मटकाते हुए कहा, “उम्र भले हो गई हो, लेकिन काम का माल आज भी हूबहू मर्दों वाला है।”
“हूं… शायद सही कह रहे हो,” नेहा ने ऊँगली से अपनी ठुड्डी छूते हुए कहा, सोच में डूबी।
नीचे नज़र डाली, तो उसकी आँखें चौड़ी हो गईं — “ओह भोसड़ी के… तूने तो अंदर ही छोड़ दिया…” नेहा ने थोड़ा झुंझलाते हुए कहा। वर्मा जी ने जीत की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “अबे तेरी ही तो टाँगें मेरे कमर के चारों ओर लिपटी थीं, तू ही तो बोल रही थी — 'छोड़ दे अंदर ही, प्लीज़ छोड़ दे!' अब मर्द क्या करे?”
नेहा ने उसकी ओर संकुचित नज़रों से देखा, लेकिन वो सही कह रहा था। वो तो खुद ही इतनी ज़्यादा मदहोश हो गई थी, कि होश नहीं रहा कि क्या कर रही है। और सच्ची बात तो ये थी — उसके मन में एक अजीब सी ख्वाहिश पल रही थी कि कहीं वो बुड्ढा उसे प्रेग्नेंट ही न कर दे…
“साला कमीना, तूने मुझे ऐसे चोदा कि सब कंट्रोल ही चला गया…” नेहा ने मुस्कुराते हुए बोला, जैसे सारी गलती वर्मा जी की हो। मन ही मन सोच रही थी कि एक Plan B खा लेगी, सब ठीक हो जाएगा। और वर्मा जी तो ऐसे मुस्कुरा रहे थे जैसे अभी-अभी कोई बिजनेस डील जीतकर आए हों।
दो-तीन मिनट की ख़ामोशी और अधलेटे मुँह से कुछ हलकी-फुलकी बातों के बाद नेहा ने नोटिस किया — वर्मा जी का लंड फिर से तन रहा था, धीरे-धीरे, पर साफ़-साफ़ हवा में तनता हुआ। पेट में हलचल हुई उसकी — जैसे किसी ने अंदर से फिर से आग सुलगा दी हो। दिमाग कह रहा था — ‘बस, बहुत हो गया’, पर शरीर चिल्ला रहा था — ‘और दे! और चाहिए!’
“ए वर्मा जी…” नेहा ने करवट लेकर उसका ध्यान खींचा। बुड्ढे की आँखें फैल गईं — सामने उसकी जवान हसीन पड़ोसन, अधनंगी, नर्मी से भरी छातियाँ उभार पर, आंखों में चिंगारी…
“फिर से करोगे?” नेहा ने धीरे से पूछा।
वर्मा जी ने गालों को चाटते हुए शैतानी मुस्कान में सिर हिला दिया… और झुककर फिर उसके होंठों पर अपने भूखे होंठ रख दिए…
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नेहा धीरे-धीरे उसपे चढ़ती गई, और देखते ही देखते वर्मा जी फिर से पीठ के बल लेटे थे — और नेहा उनकी चोटी पे बैठकर ऐसे उछल रही थी जैसे कोई जंगली घोड़ी। उसने दोनों हाथों से उनकी नर्म, भरपूर गांड पकड़ रखी थी, और हर उछाल पर उसका पूरा लंड नेहा की चूत की तहों में धँस जाता।
इतनी देर से चोदाई चल रही थी, फिर भी वर्मा जी का जोश ढीला होने का नाम ही नहीं ले रहा था। साला बुड्ढा होकर भी लोहा साबित हो रहा था।
नेहा ने उसकी आँखों में गहरी नज़र डाली, होंठों को धीरे से चाटा और फिर बोली, “हूँ... कैसा लग रहा है, मजनूं? मेरी चूत पर झूले झूल रहा है, पसंद आ रहा है?”
वर्मा जी ने एक गहरी सिसकारी भरी और उसके नितंबों को और कस के दबा लिया।
“हम्म, तेरे इस पकड़ से तो यही लग रहा है,” नेहा ने हरामी अंदाज़ में मुस्कराते हुए कहा।
दोनों जिस जानवरों जैसी भूख से एक-दूसरे में घुसे पड़े थे, लग ही नहीं रहा था कि ये कोई आम चोदाई है। पूरा माहौल जैसे वर्जित कामुकता से भरा हुआ था — वो भी बग़ीचे के कोने में बने छोटे से स्टोररूम में, जहाँ कोई देखने वाला नहीं, कोई टोकने वाला नहीं। पूरा नज़ारा ही गुनाह जैसा, पर उसी गुनाह में मज़ा भी।
“ओह चूत की माँ की, नेहा! अब नहीं रोक पाऊँगा… अभी झड़ जाऊँगा!” वर्मा जी ने हांफते हुए कहा।
नेहा ने पैरों को गद्दों पे जमाया और और भी तेज़ी से उछलने लगी। उसकी गांड और जांघें हर बार ऐसे थरथरातीं जैसे किसी ड्रम की थाप पर नाच रही हों। उसकी चूत पूरे जोश से वर्मा जी के लंड को निगल रही थी। उसे अब इस बूढ़े के लंड की लत लग चुकी थी। उसके दिमाग में अब बस गंदगी और वासना ही घूम रही थी।
वर्मा जी की एड़ियाँ सिकुड़ गईं, और एक गहरी आह भरकर उन्होंने अपनी कमर ऊपर उठाई — पूरा शरीर हिलने लगा — और फिर नेहा की चूत में गरम-गरम वीर्य की धारें भर दीं।
नेहा ने अपनी गांड कस कर नीचे दबा दी, और पूरी तरह से उस गाढ़े लवंड रस को अंदर खींच लिया। कोई रोकटोक नहीं, कोई डर नहीं — बस वासना की आग और उस पर घी डालता हुआ वो वीर्य।
थोड़ी देर बाद, नेहा एक तरफ लुढ़क गई और उसके सीने पे सिर रख दिया। होंठों पे एक गीली चुम्मी रखी और बोली, “हूँ… बवाल था ये, मज़ा आया ना?”
“आह... ज़बरदस्त था। लगता है तू सच में अपने पेट में मेरा बच्चा ठोकवाना चाहती है…” वर्मा जी ने आँख दबाते हुए बोला।
नेहा का माथा सिकुड़ गया — इस वाक्य ने उसकी सोच को झिंझोड़ दिया। हाँ, दो बार तो अंदर ही छोड़ चुका था वो। और वो खुद ही तो उसके चारों ओर टाँगें कस के बाँध चुकी थी — जैसे कोई मादा अपने नर को पकड़ती है — एकदम जकड़बंदी वाला नज़ारा।
“भोसड़ी में जाए ये दिमाग… मैं इतनी बेवकूफ़ कैसे हो गई?” नेहा ने खुद से बड़बड़ाया। “मैं प्रेग्नेंट होना ही नहीं चाहती, और तू तो साला पूरा वीर्य घुसेड़े जा रहा है।”
“अरे यार, मज़ाक कर रहा था,” वर्मा जी ने हँसते हुए बात को हल्का किया — लेकिन अंदर से साला बाप बनने के ख्वाब देख रहा था।
“अब मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है,” नेहा ने धीरे से कहा। “लगता है अब तुझे condom पहनना पड़ेगा।” वर्मा जी का मुँह बन गया।
“अबे छोड ना यार… इतना बढ़िया चला रहा था, और तू condom की बात ले आई? और तू खुद बोल — बिना रुकावट के, बिना झंझट के — कितना सही मर्दाना ज़ोर लगा ना मैंने?”
नेहा ने होठों को काटा, और मन ही मन मान गई — हाँ, बिना लपेटे की चुदाई में कुछ और ही बात थी।
“हूँ… हाँ, सच में ज़्यादा मज़ा आता है,” उसने धीरे से कहा। “तेरी किस्मत है साले कि emergency pills इस दुनिया में हैं।”
“हाहा, सही पकड़ा,” वर्मा जी हँसे। “पर क्या करूँ, तू इतनी हॉट लगती है कि हर हरामी ख्वाहिश जाग उठती है — तेरे जैसी लड़की को अपना बच्चा देने की।”
“ओ भोसड़ी के, अब ज्यादा बोल मत। जितना गड़बड़ हो चुका है, वही बहुत है। खुद को बहुत लकी मान कि मैं तुझे अंदर तक लेने दे रही हूँ,” नेहा ने चुटकी ली।
पर अंदर से वो जानती थी — वो खुद भी उतनी ही जिम्मेदार है इस सब में। सारा माहौल, ये वर्जित रिश्ता, ये छुप-छुप के जिस्मों की टकराहट — उसे खींच रही थी। जितना सोचना चाहिए था, उससे ज़्यादा वो उस गुनाह की आग में झुलसती जा रही थी…
नेहा अपने मन के गुनाह भरे ख्यालों से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पा रही थी, लेकिन उसने उन्हें ज़बरदस्ती दिमाग के कोने में धकेल दिया और फोकस कर लिया उस मस्ती पे जो वर्मा जी के साथ चल रही थी। प्रेगनेंसी का रिस्क हो, या अपने पति मानव से धोखा — उस वक़्त नेहा को कुछ भी फर्क नहीं पड़ रहा था। उसे तो बस उस हरामी लज़्ज़त की चढ़ी हुई तलब चाहिए थी।
उसका चूत में चढ़ा हुआ दिमाग अब बहाने गढ़ रहा था — ‘मानव ही है जो मुझे संभाल नहीं पा रहा, तो फिर मैं क्यों न किसी और से अपना हक़ ले लूँ? अगर पति बीवी की प्यास न बुझाए, तो किसी और का लंड आना तो तय है।’
वो चुदाई भले ही एक बार की रही हो, लेकिन नेहा अब पूरी तरह वर्मा जी के लंड की आदी बन चुकी थी। उसने जो मज़ा दिया, वो तो मानव ने कभी नहीं चखाया था। और अब तो वो और चाहती थी।
इन सारे ख्यालों को धकेलते हुए, नेहा जैसे ही वर्मा जी की तरफ दोबारा झुकी कि अगला राउंड शुरू करे — तभी उसका फोन भोंक उठा। “भोसड़ी के… मैं तो भूल ही गई कि क्लाइंट से मिलना है ऑफिस में। अब जाना ही पड़ेगा वरना देर हो जाएगी,” नेहा ने गालियाँ बकते हुए स्क्रीन देखी।
वर्मा जी ने लंबी साँस ली, थोड़ा उदास होकर बोले, “हां… जाना तो चाहिए, तेरी नौकरी हमारी मस्ती से बड़ी है।”
“ओह, कितने शरीफ बन रहे हो आज,” नेहा ने हँसते हुए उसके होंठों पे एक गीली चुम्मी रख दी।
जैसे ही दोनों कपड़े पहनने लगे, वर्मा जी ने नेहा की काली पैंटी उठा ली। “ये तो मैं रख लेता हूँ, याद में,” उसने शरारत से कहा।
नेहा ने आँखें घुमाईं, “रख ले, लेकिन दिखाया किसी को तो तेरी झूलती झांझ फाड़ दूँगी, समझा?”
“हाहाहा, मैं तो सीक्रेट रखने में चैम्पियन हूँ,” वर्मा जी ने आँख मारी।
नेहा जैसे ही अपनी शॉर्ट्स चढ़ा रही थी, अंदर वर्मा जी का छोड़ा हुआ सारा लवंड रस जम रहा था — गरम और चिपचिपा — उस एहसास ने फिर से उसे सिहरा दिया। फिर दोनों ने shed की हालत थोड़ी सँवारी और बाहर निकल आए। ठंडी हवा ने थोड़ी राहत दी दोनों को।
“क्या बात थी यार, तू तो आग है,” वर्मा जी ने बुज़ुर्ग बाजू फैलाकर कहा।
“सच में, और मैंने तो समझा था कि तुम सिर्फ बकबक करने वाले हो। पर निकले तो पूरा घोड़ा,” नेहा ने हँसते हुए जवाब दिया।
“देखने में धोखा हो जाता है… पर थैंक्यू, नेहा। आज तूने इस बूढ़े का दिन नहीं, पूरी जवानी लौटा दी,” वर्मा जी बोले।
नेहा हँसी, लेकिन तभी वर्मा जी ने सीधा पूछ लिया, “ये सब एक बार के लिए था या तू भी चाहती है कि ये ख़ास रिश्ता चलता रहे?”
नेहा ने ठोड़ी पे उँगली रख सोचना शुरू किया। रिस्क तो था — लेकिन जो मज़ा बीच में टूटा था, उसकी चूत फिर से तड़प रही थी। और अब तो जैसे हरामी भूख और भी ज़्यादा जगा रही थी।
“चलेगा… लेकिन बहुत संभल के,” नेहा ने आँखें गड़ा कर कहा। “अगर किसी को पता चला तो मेरी शादी की भसड़ लग जाएगी। मतलब कोई फोटो-वीडियो नहीं, किसी से बकवास नहीं, सब कुछ एकदम छुपा हुआ। मानव को भनक भी नहीं लगनी चाहिए, वरना सब गया काम से।”
वर्मा जी ने सिर हिलाया, “पक्का… मैं क्यों कुछ बिगाड़ूँगा? तू अच्छी लड़की है, और मैं तुझे परेशानी में नहीं डालना चाहता।”
नेहा ने एक नरम सी चुम्मी उसके होंठों पर रखी, और मुस्करा दी।
“वैसे… एक काम कर… नंबर दे अपना, बात में आसानी होगी,” वर्मा जी बोले।
नेहा को उसकी बात सही लगी — अब तक कभी ज़रूरत नहीं पड़ी थी, लेकिन अब शायद पड़ने वाली थी।
“ठीक है, पर बहुत संभल के बात करना,” उसने चेतावनी दी।
नंबर एक्सचेंज हुआ, और दोनों अपने-अपने घर लौट गए। लेकिन अब उनके बीच कुछ ऐसा जुड़ चुका था… जो फिर से मिलने का बहाना खुद ही बनाता रहेगा।