रात होने तक राज सभा में सारी स्त्रियां अपने पतियों के लिए चिंतित बैठी रही। आज पूरा नगर सुना सुना लग रहा था क्योंकि राजकुमारी शुभदा के निजी सुरक्षा पथक और नृत्यशाला के नर्तक छोड़ सारे सैनिक युद्ध के लिए चले गए थे।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने जाते हुए सेनापति को अपने कुछ यंत्र और नृत्यशाला का कुछ सामान देना चाहा परंतु सेनापति अचलसेन ने हंसते हुए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का सबके सामने मजाक बना कर रख दिया।
सेनापति अचलसेन जोरों से ठहाका लगाते हुए सबको दिखाकर, “यह देखो महान पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का आविष्कार! पुष्प वर्षा यंत्र, एक पलड़े में फूल रखो और शत्रु पर तिस ग़ज़ से पुष्प वर्षा करो! और ये, कृत्रिम बिजली! मिट्टी के बंद घड़े को अग्नि दें और बिजली की गर्जना सहित उसका प्रकाश पाएं! पंडित ज्ञानदीप शास्त्री युद्ध में हम मृत्यु से नृत्य करते हैं न कि किसी राजा से फेंके जाने वाले कुछ तांबे के सिक्के उठाने दौड़ते हैं। सही किया राजा खड़गराज ने जो तुझे स्वयंवर के अखाड़े से निकाल दिया वरना वह अखाड़ा पुरुषों के योग्य नहीं बचता। गरुड़वीर! यदि तू अब भी इन किन्नरों की नृत्यशाला के साथ रहा तो आज से तू भावी राजा का भाई नहीं।”
गरुड़वीर ने नम्रता से सेनापति अचलसेन के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और उन्हें युद्ध से सकुशल लौटने को कहा। सेनापति अचलसेन ने क्रोधित होकर अपने छोटे भाई को लात मारकर अश्वारूढ़ हो कर चला गया।
रानी ने राजकुमारी शुभदा से, “पुत्री, तुम्हारे पति को केवल एक रात्रि के बाद तुम्हें छोड़ जाना पड़ा पर एक क्षत्रिय स्त्री का यही भाग्य होता है। हमारे पति लौट आने तक तुम राज महल के अपने कक्ष में रहो। उस घर में तुम्हें उसकी याद सताएगी।”
राजकुमारी शुभदा, “माता, याद तो आप को भी सताएगी, तो क्या आप भी राज महल छोड़ सकती हैं? हमारे एक सहस्त्र योद्धा रणभूमि की ओर बढ़े हैं उन सबकी पत्नियां हमारी ओर देख रही हैं। हम अपने पति का इंतजार उसी घर में करेंगे जहां उनकी यादें हैं!”
राजकुमारी शुभदा उद्यान पार कर अपने घर की ओर चलने लगी तब उनके पीछे दो कदम की दूरी पर दो जोड़ी पैर चल रहे थे। राजकुमारी शुभदा इन पैरों की आहट को पहचानती थी, अंगद और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री। दोनों पिछले चार वर्षों से ऐसे ही उसकी छाया बन कर रहे थे पर आज वह पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से असहज थी।
कठिनाइयों को टालने से बेहतर है उनका सामना करना। इस लिए राजकुमारी शुभदा ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को चर्चा करने उद्यान में रोका।
राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हमने आपके आविष्कार देखे हैं। क्या आप हमें बता सकते हैं उस यंत्र के बारे में जो हमारे स्नानगृह में है?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “मेरा प्रिय आविष्कार, चूषक। स्नानगृह में स्नान के बाद अकसर सर्वत्र पानी गिरा होता है और दास या गृहलक्ष्मी को झुककर किसी वस्त्र से उसे पोंछना पड़ता है। चूषक, जल चक्र से जुड़ा हुआ है और जब जल चक्र चल रहा है तब पानी का बहाव चूषक के अंदर से वायु खींच लेता है। इस से चूषक नीचे गिरता पानी पहले ही चूस लेता है और किसी व्यक्ति को कमर तोड़ मेहनत नहीं करनी पड़ती।”
राजकुमारी शुभदा, “इतना छोटा की मेरे एक हाथ की पकड़ में आए और इतना कारगर!”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर झुकाकर, “क्षमा करें देवी, किंतु आपही को स्मरण कर उसे बनाया एवं इस्तमाल किया गया है।”
राजकुमारी शुभदा कल रात्रि के स्वप्न को याद कर, “कल रात्रि की हमें पूर्ण स्मृति नहीं। क्या उस पेय में कुछ मादक तत्व थे?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सोचते हुए, “थकान मिटाने हेतु कुछ नींद की दवा थी पर कोई मादक पदार्थ नहीं था।”
राजकुमारी शुभदा चंद्रमा की सफेद रोशनी में लाल होकर, “क्या आप को कोई… स्वप्न…?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर झुकाकर, “क्षमा करें राजकुमारी परंतु मेरे स्वप्न मेरे नियंत्रण से बाहर हैं। पर यह सत्य है कि कल आपकी विवाहरात्रि थी और उस पेय में एक कामोद्दीपक औषधि थी। शायद वह कुछ ज्यादा हो गई थी क्योंकि सेनापति अचलसेन ने राज सभा में बताया कि आप काफी… पीड़ित हुई।”
राजकुमारी शुभदा, “आभारी हूं जो आपने ऐसे नाजुक विषय को उतने ही नाजुक तरह से संभाला। क्या आपके पुष्प वर्षा यंत्र और कृत्रिम बिजली मटके भी चूषक जैसे कारगर होते?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सोचते हुए, “अस्त्रकार अस्त्र बना सकता है परंतु सेनापति उसे कैसे उपयोग करते हैं उस से युद्ध का परिणाम बनता है।”
राजकुमारी शुभदा, “आप को लगता है कि सेनापति अचलसेन को आप के यंत्र ले जाने चाहिए थे?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “आपने इन यंत्रों को पुष्प वर्षा करते देखा है, नाट्य में जान डालते देखा है पर यदि सेनापति अचलसेन को उनका कोई सैन्य उपयोग नहीं दिखा तो वह सेना के लिए बस भार बन जाते।”
राजकुमारी शुभदा मुस्कुराकर, “यह हां नहीं था परंतु ना भी नहीं था। आप ने सैनिकोंको आप को कुटीर में से बाहर आने से रोकने के लिए नियुक्त किया। क्या कोई एक स्त्री है जिसके लिए आप को भय था?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को ऐसे देखा कि उसके बदन की लाली और बढ़ गई।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “स्वयं की प्रशंसा मांगना आपको शोभा नहीं देता राजनंदिनी!”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने जाते हुए सेनापति को अपने कुछ यंत्र और नृत्यशाला का कुछ सामान देना चाहा परंतु सेनापति अचलसेन ने हंसते हुए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का सबके सामने मजाक बना कर रख दिया।
सेनापति अचलसेन जोरों से ठहाका लगाते हुए सबको दिखाकर, “यह देखो महान पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का आविष्कार! पुष्प वर्षा यंत्र, एक पलड़े में फूल रखो और शत्रु पर तिस ग़ज़ से पुष्प वर्षा करो! और ये, कृत्रिम बिजली! मिट्टी के बंद घड़े को अग्नि दें और बिजली की गर्जना सहित उसका प्रकाश पाएं! पंडित ज्ञानदीप शास्त्री युद्ध में हम मृत्यु से नृत्य करते हैं न कि किसी राजा से फेंके जाने वाले कुछ तांबे के सिक्के उठाने दौड़ते हैं। सही किया राजा खड़गराज ने जो तुझे स्वयंवर के अखाड़े से निकाल दिया वरना वह अखाड़ा पुरुषों के योग्य नहीं बचता। गरुड़वीर! यदि तू अब भी इन किन्नरों की नृत्यशाला के साथ रहा तो आज से तू भावी राजा का भाई नहीं।”
गरुड़वीर ने नम्रता से सेनापति अचलसेन के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और उन्हें युद्ध से सकुशल लौटने को कहा। सेनापति अचलसेन ने क्रोधित होकर अपने छोटे भाई को लात मारकर अश्वारूढ़ हो कर चला गया।
रानी ने राजकुमारी शुभदा से, “पुत्री, तुम्हारे पति को केवल एक रात्रि के बाद तुम्हें छोड़ जाना पड़ा पर एक क्षत्रिय स्त्री का यही भाग्य होता है। हमारे पति लौट आने तक तुम राज महल के अपने कक्ष में रहो। उस घर में तुम्हें उसकी याद सताएगी।”
राजकुमारी शुभदा, “माता, याद तो आप को भी सताएगी, तो क्या आप भी राज महल छोड़ सकती हैं? हमारे एक सहस्त्र योद्धा रणभूमि की ओर बढ़े हैं उन सबकी पत्नियां हमारी ओर देख रही हैं। हम अपने पति का इंतजार उसी घर में करेंगे जहां उनकी यादें हैं!”
राजकुमारी शुभदा उद्यान पार कर अपने घर की ओर चलने लगी तब उनके पीछे दो कदम की दूरी पर दो जोड़ी पैर चल रहे थे। राजकुमारी शुभदा इन पैरों की आहट को पहचानती थी, अंगद और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री। दोनों पिछले चार वर्षों से ऐसे ही उसकी छाया बन कर रहे थे पर आज वह पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से असहज थी।
कठिनाइयों को टालने से बेहतर है उनका सामना करना। इस लिए राजकुमारी शुभदा ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को चर्चा करने उद्यान में रोका।
राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हमने आपके आविष्कार देखे हैं। क्या आप हमें बता सकते हैं उस यंत्र के बारे में जो हमारे स्नानगृह में है?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “मेरा प्रिय आविष्कार, चूषक। स्नानगृह में स्नान के बाद अकसर सर्वत्र पानी गिरा होता है और दास या गृहलक्ष्मी को झुककर किसी वस्त्र से उसे पोंछना पड़ता है। चूषक, जल चक्र से जुड़ा हुआ है और जब जल चक्र चल रहा है तब पानी का बहाव चूषक के अंदर से वायु खींच लेता है। इस से चूषक नीचे गिरता पानी पहले ही चूस लेता है और किसी व्यक्ति को कमर तोड़ मेहनत नहीं करनी पड़ती।”
राजकुमारी शुभदा, “इतना छोटा की मेरे एक हाथ की पकड़ में आए और इतना कारगर!”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर झुकाकर, “क्षमा करें देवी, किंतु आपही को स्मरण कर उसे बनाया एवं इस्तमाल किया गया है।”
राजकुमारी शुभदा कल रात्रि के स्वप्न को याद कर, “कल रात्रि की हमें पूर्ण स्मृति नहीं। क्या उस पेय में कुछ मादक तत्व थे?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सोचते हुए, “थकान मिटाने हेतु कुछ नींद की दवा थी पर कोई मादक पदार्थ नहीं था।”
राजकुमारी शुभदा चंद्रमा की सफेद रोशनी में लाल होकर, “क्या आप को कोई… स्वप्न…?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर झुकाकर, “क्षमा करें राजकुमारी परंतु मेरे स्वप्न मेरे नियंत्रण से बाहर हैं। पर यह सत्य है कि कल आपकी विवाहरात्रि थी और उस पेय में एक कामोद्दीपक औषधि थी। शायद वह कुछ ज्यादा हो गई थी क्योंकि सेनापति अचलसेन ने राज सभा में बताया कि आप काफी… पीड़ित हुई।”
राजकुमारी शुभदा, “आभारी हूं जो आपने ऐसे नाजुक विषय को उतने ही नाजुक तरह से संभाला। क्या आपके पुष्प वर्षा यंत्र और कृत्रिम बिजली मटके भी चूषक जैसे कारगर होते?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सोचते हुए, “अस्त्रकार अस्त्र बना सकता है परंतु सेनापति उसे कैसे उपयोग करते हैं उस से युद्ध का परिणाम बनता है।”
राजकुमारी शुभदा, “आप को लगता है कि सेनापति अचलसेन को आप के यंत्र ले जाने चाहिए थे?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “आपने इन यंत्रों को पुष्प वर्षा करते देखा है, नाट्य में जान डालते देखा है पर यदि सेनापति अचलसेन को उनका कोई सैन्य उपयोग नहीं दिखा तो वह सेना के लिए बस भार बन जाते।”
राजकुमारी शुभदा मुस्कुराकर, “यह हां नहीं था परंतु ना भी नहीं था। आप ने सैनिकोंको आप को कुटीर में से बाहर आने से रोकने के लिए नियुक्त किया। क्या कोई एक स्त्री है जिसके लिए आप को भय था?”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को ऐसे देखा कि उसके बदन की लाली और बढ़ गई।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “स्वयं की प्रशंसा मांगना आपको शोभा नहीं देता राजनंदिनी!”