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Romance पर्वतपुर का पंडित

Ajju Landwalia

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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपना सम्पूर्ण सत्य बताया।


सोलह वर्ष पूर्व सेनापति अचलसेन के पिता, तत्कालीन सेनापति ने छोटे पवन दास के सामने उसके पिता को मारा। अपनी जीवनरक्षा हेतु छोटा पवन तब तक दौड़ता रहा जब तक वह किसी से टकराकर अचेत होकर गिर ना गया। वह व्यक्ति निष्कासित गुरु, राज ऋषि धीरानंद थे। राज ऋषि धीरानंद ने पवन को न केवल अपनी छत्रछाया में लिया पर उसे 21 कला एवं शास्त्रों में निपुण कर उसे ब्राह्मण बनाया। ज्ञान अर्जन करने पर राज ऋषि धीरानंद ने गुरुदक्षिणा स्वरूप पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से पर्वतपुर लौट कर राजकुमारी शुभदा की रक्षा का वचन लिया।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने पूर्व सेनापति से बचने के लिए अपनी पहचान नर्तक बताई और राजकुमारी शुभदा के निकट पहुंचने में कामयाब हुआ।


परंतु 4 वर्षों में वह राजकुमारी शुभदा से मोहित होकर उससे प्रेम करने लगा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने आप को समझाया कि राजकुमारी शुभदा से विवाह कर वह सदैव के लिए उसका रक्षक बनकर रह सकता है। लेकिन स्वयंवर में हुए अपमान और निष्कासन के बाद उसने अपना पूर्ण लक्ष राजा उग्रवीर पर लाया।
राजकुमारी शुभदा के प्रति अपने आकर्षण को त्यागने उसने अपना घर राजकुमारी शुभदा को विवाह भेट स्वरूप दे दिया और स्वयं कुटीर में रहने को तैयार हो गया।



राजकुमारी शुभदा, “विवाहरात्रि का पेय एक समान नहीं था ना?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को बताया कि तीनों प्यालों में मिश्रण समान था पर प्रमाण अलग थे।

•राजकुमारी शुभदा के पेय में कामोद्दीपक और नींद की औषधि समान थी ताकि उन्हें इस रात्रि में आनंद आए और दर्द की याद ना रहे।

•सेनापति अचलसेन के बारे में गुप्त वार्ता व्यापारीयों से सुनी थी कि वह अनेक नगरों की वेश्याओं के संग संबंध रख चुके थे। उनका पौरुष अस्थिर था और स्खलन शीघ्र इस लिए उनके पेय में कामोद्दीपक औषधि दुगुनी थी और नींद की औषधि नाममात्र।

•पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को उस रात्रि राजकुमारी शुभदा को भुलाना था तो नींद की दवा दुगुनी थी और कामोद्दीपक औषधि नाममात्र।


राजकुमारी शुभदा, “लेकिन सेनापति अचलसेन ने आप से अपना प्याला बदल लिया और आप के प्याला रिक्त करने के बाद ही अपना प्याला होठों से लगाकर पिया।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि उसने अंगद और बाकी सुरक्षा पथक को लज्जा रक्षा हेतु दूर रखा और अपनी कुटीर पर भी पहरा लगवाया। यह सब राजकुमारी शुभदा की रक्षा हेतु था।


राजकुमारी शुभदा, “आप किसी को भी दिखे बगैर अंदर कैसे आए और वापस कैसे गए?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजवंश के व्यक्ति का वास जिस घर में हो उस में गुप्त मार्ग होना अनिवार्य है। यह घर आपके लिए ही बनाया गया था इस लिए यहां भी एक भूमिगत मार्ग है जो स्नानगृह से मेरी कुटीर के अंदर आता है।”


राजकुमारी शुभदा ने चौंक कर देखा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराए।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि वह मार्ग केवल राजकुमारी शुभदा को बताया जा सकता था और उस रात्रि सेनापति अचलसेन से राजकुमारी शुभदा को एकांत मिलना संभव नहीं था। परंतु सेनापति अचलसेन की क्रूरता के बारे में जान कर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चुप नहीं रह पाए। उन्होंने गुप्त मार्ग से अंदर की स्थिति को जांचने के लिए प्रवेश किया तो सेनापति अचलसेन को स्नानगृह में अचेत पड़ा पाया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेनापति अचलसेन के लिंग पर थोड़ा अश्व का रक्त लगाया और चूषक को लिंग से जोड़ दिया। वह शयनगृह में राजकुमारी शुभदा को सब बताने आए पर कामोत्तेजना से जलती मोहिनी से मोहित होकर प्रातः तक वहीं रुक गए। प्रातः जब कामोद्दीपक औषधि का ज्वर टूटा तब उसने स्नानगृह से सेनापति अचलसेन को शय्या तक लाया। पर लाख प्रयास करके भी उनका मन उन्हें सेनापति अचलसेन को राजकुमारी शुभदा के बगल में रखने से रोकता रहा। अंत में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेनापति अचलसेन को राजकुमारी शुभदा की शय्या की दूसरी ओर नीचे ऐसे रखा जैसे पूर्ण रात्रि को रतिक्रिडा कर थका व्यक्ति शय्या से नीचे गिर गया हो।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने कौमार्यमर्दन से घायल राजकुमारी शुभदा को सेनापति अचलसेन की आंखों से छुपाने के लिए वस्त्र से ढक दिया। घर से अपने चिन्ह मिटाकर गुप्त मार्ग से लौट कर प्रातः स्नान संध्या करने गए।


राजकुमारी शुभदा ने अपने रुदन को दबाया पर उनकी सुडौल काया पत्ते की तरह हिल रही थी।


राजकुमारी शुभदा, “किंतु हम से ऐसा पाप हो गया है कि हम सिंहासन ही नहीं पर समाज के पात्र नहीं रहीं।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी, जो हुआ वह नियति थी। सेनापति अचलसेन ने अपने मन से प्याला बदला था। सेनापति अचलसेन ने आपको इस घर में रहने के लिए मनाया था। यह नियति के अलावा और कुछ नहीं। इस में किसी भी व्यक्ति का कोई दोष नहीं।”


राजकुमारी शुभदा तीव्रता से, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपको क्यों लगता है कि हम आप को दोषी नहीं मानते? घर आपका था, प्याले आपके, पेय आपका और… क्रीड़ा… भी आपकी!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “क्षमा करें राजकुमारी शुभदा पर क्रीड़ा में आपका समान सहभाग था और मेरे पास प्रमाण है आपकी क्षमा का!”


राजकुमारी शुभदा झल्लाकर, “कैसा प्रमाण? हमने आपको कोई क्षमा नहीं दी!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी जी के दो चाबुक हैं। काला चमड़े का और लाल रेशम का। चमड़ा आवाज और क्षति दोनों देता है पर रेशम? केवल ध्वनि! हमें नगर से भागने का आभास करना था तो आपने हमें निष्कासित कर सरल मार्ग बनाया।”


राजकुमारी शुभदा एक जामुन के पेड़ के नीचे बैठ गई तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री उसके पैरों में बैठ गया।


राजकुमारी शुभदा, “राजा खड़गराज ने न केवल गलत व्यक्ति को सेनापति बनाया पर योग्य योजना होते हुए भी गलत मार्ग अपनाया। नागरिकों का दुःख समाप्त होते ही वह राजवंश से विद्रोह करने लगेंगे। विद्रोह से राजवंश को मिटाने से बेहतर हम सती हो कर स्वयं राजवंश समाप्त कर दें।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चुपके से, “सही और गलत राजकुमारी शुभदा। राजा खड़गराज की आलोचना सही है पर उपाय गलत। अचानक राजवंश समाप्त हो गया तो वर्णव्यवस्था में बंटा हुआ नगर गृहयुद्ध में जलेगा। किंतु यदि आप राजवंश की अगली पीढ़ी को लाती हो तो इस आनंद में आपको समय मिलता है कुछ क्रांतिकारी करने का।”


राजकुमारी शुभदा, “कैसा क्रांतिकारी?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपने विचार बताए और दोनों ने संध्या तक बातें की। नगर द्वार सूर्य की अंतिम किरण के साथ बंद हुआ और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा से राज महल लौटने की विनंती की।


राजकुमारी शुभदा मन ही मन मुस्कुराकर, “नहीं, हमें वही घर पसंद है जिस में हम राजकुमारी शुभदा नहीं है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को हाथ जोड़कर नम्रता से प्रणाम किया और आज्ञा ले कर अपनी कुटीर में लौटे। कुटीर में अत्यंत सादगी थी। संध्या स्नान के बाद पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपनी कुटीर के एकमात्र बर्तन में खाना बनाने की शुरुवात की जब एक राज सेविका ने उन्हें पुकारा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को देख उस सेविका ने उन्हें रात्रि भोजन बनाकर देने का प्रस्ताव दिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री विनम्रता से उसे मना करते पर उस से पहले नगर के एक समृद्ध व्यापारी की पत्नी अपनी बेटी के साथ उनके लिए रात्रि भोजन लेकर आई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को चौंकने तक का समय नहीं मिला क्योंकि पीछे पीछे और कई परिवार अपनी बेटियों के हाथों बने रात्रि भोजन को लेकर आते दिखे।


सौभाग्यवश अंगद ने राजकुमारी शुभदा की रक्षा हेतु रखा पथक इस्तमाल किया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को कुछ दिन राजकुमारी शुभदा के स्वास्थ्य हेतु रात्रि भोजन राजकुमारी शुभदा के साथ करने की विनंती की।


नगर के नागरिक अपनी एक रात्रि में विधवा हुई राजकुमारी शुभदा से सहानुभूति रखते थे परंतु अनेक धूर्त लोगों को यह जानने के जल्दी थी कि राजकुमारी शुभदा गर्भ से है या नहीं।
राजकुमारी शुभदा अगर गर्भ से ना हो तो राजा खड़गराज ने क्षत्रियों को दी हुई सत्ता हटाकर या हथियाकर स्वयं राजा बनने का स्वप्न अनेक देख रहे थे। पर कुछ अति धूर्त थे जो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से अपनी पुत्री का विवाह करा कर नगर के नायक को कठपुतली राजा बनाकर सिंहासन के पीछे से राज करना चाहते थे फिर वह सेवक हो या पुरोहित, दास हो या सामंत।



राजकुमारी शुभदा ने अपनी सेविका को भोजन परोसने को कहा जब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने हाथ धोए। सेविका के जाने के बाद राजकुमारी शुभदा ने मुख्य मुद्दा उठाया।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपके लिए भोजन लाने वालों की संख्या लगभग उतनी ही है जितनी मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछने वालों की है। सेनापति अचलसेन की माता ने मुझे सांत्वना देते हुए गरुड़वीर से विवाह कर उनके वंश को पिता का साथ देने को कहा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने सर को हिलाकर हां कहा जैसे उन्हें यह अपेक्षित था।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, क्या मैं… कैसे अनुमान लगाएं कि… मेरे गर्भ में…”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा की दुविधा समझकर, “राजकुमारी, क्या है यह फल?”


राजकुमारी शुभदा चकराकर, “संतरा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “क्या मुझे यह गर्मी की दिनों में मिलेगा? नहीं। क्योंकि हर पीढ़ी को पोषक ऋतु की आवश्यकता होती है। अश्व और श्वान भी वर्ष के तय ऋतु में जन्म लेते हैं।”


राजकुमारी शुभदा की गुस्सैल आंखों को देख मुस्कुराकर, “स्त्री का भी ऋतु होता है। एक रक्तस्राव की शुरुवात से दूसरे तक २८ दिवस का काल होता है। विज्ञान अनुसार गर्भधारणा की सर्वोच्च संभावना बीच में होती है। दसवें दिन से उन्नीसवे दिन तक। क्या आप बता सकती हो कि विवाहरात्रि की रात्रि का क्रम क्या था?”


राजकुमारी शुभदा लज्जा और भय में पीसकर, “रक्तस्राव से छटा दिन। आज दसवां दिन है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गंभीरता से, “छठे दिन गर्भधारणा की संभावना बेहद कम है।”


राजकुमारी शुभदा, “क्या सारे क्रांतिकारी विचार पंधरा दिन में नहीं हो सकते?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “नहीं, जल्दबाजी सब बिगाड़ देगी।”


राजकुमारी शुभदा, “हम झूठ बोल सकते हैं कि मैं गर्भवती हूं। एक या दो महीनों बाद…”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर हिलाकर मना करते हुए, “साधारण स्त्री के लिए यह संभव है पर राजनंदिनी के लिए नहीं। खास कर इन परिस्थितियों में कोई न कोई सेवक या सेविका कुछ पहचान जाएगी।”


राजकुमारी शुभदा गहरी सांस लेकर, “तो हमारे पास एक ही मार्ग शेष है। (पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की ओर सख्ती से देखते हुए) आप आज से अगले पूर्ण सप्ताह मेरी शय्या में आकर वो… करेंगे। यह हमारी राज आज्ञा है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़कर उठते हुए, “जो आज्ञा राजकुमारी शुभदा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री जाने लगे तो राजकुमारी शुभदा घबराए ऊंचे स्वर में, “आप हमें त्याग रहे हैं?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा से एक सांस के दूरी पर रुक कर चुपके से, “कदापि नहीं, किंतु मेरा यहां से जाते हुए देखा जाना आवश्यक है। मैं एक घटिका बाद गुप्त मार्ग से लौट आऊंगा।”


राजकुमारी शुभदा ने अपने सर को हिलाकर हां कहा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने दरवाजा खोला और अंगद के समक्ष राजकुमारी शुभदा को शुभ रात्रि कह कर अपनी कुटीर में जा कर अपना दरवाजा बंद कर लिया।

Behad shandar update he Lefty69 Bro

Keep rocking dear
 
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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपना सम्पूर्ण सत्य बताया।


सोलह वर्ष पूर्व सेनापति अचलसेन के पिता, तत्कालीन सेनापति ने छोटे पवन दास के सामने उसके पिता को मारा। अपनी जीवनरक्षा हेतु छोटा पवन तब तक दौड़ता रहा जब तक वह किसी से टकराकर अचेत होकर गिर ना गया। वह व्यक्ति निष्कासित गुरु, राज ऋषि धीरानंद थे। राज ऋषि धीरानंद ने पवन को न केवल अपनी छत्रछाया में लिया पर उसे 21 कला एवं शास्त्रों में निपुण कर उसे ब्राह्मण बनाया। ज्ञान अर्जन करने पर राज ऋषि धीरानंद ने गुरुदक्षिणा स्वरूप पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से पर्वतपुर लौट कर राजकुमारी शुभदा की रक्षा का वचन लिया।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने पूर्व सेनापति से बचने के लिए अपनी पहचान नर्तक बताई और राजकुमारी शुभदा के निकट पहुंचने में कामयाब हुआ।


परंतु 4 वर्षों में वह राजकुमारी शुभदा से मोहित होकर उससे प्रेम करने लगा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने आप को समझाया कि राजकुमारी शुभदा से विवाह कर वह सदैव के लिए उसका रक्षक बनकर रह सकता है। लेकिन स्वयंवर में हुए अपमान और निष्कासन के बाद उसने अपना पूर्ण लक्ष राजा उग्रवीर पर लाया।
राजकुमारी शुभदा के प्रति अपने आकर्षण को त्यागने उसने अपना घर राजकुमारी शुभदा को विवाह भेट स्वरूप दे दिया और स्वयं कुटीर में रहने को तैयार हो गया।


राजकुमारी शुभदा, “विवाहरात्रि का पेय एक समान नहीं था ना?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को बताया कि तीनों प्यालों में मिश्रण समान था पर प्रमाण अलग थे।

•राजकुमारी शुभदा के पेय में कामोद्दीपक और नींद की औषधि समान थी ताकि उन्हें इस रात्रि में आनंद आए और दर्द की याद ना रहे।

•सेनापति अचलसेन के बारे में गुप्त वार्ता व्यापारीयों से सुनी थी कि वह अनेक नगरों की वेश्याओं के संग संबंध रख चुके थे। उनका पौरुष अस्थिर था और स्खलन शीघ्र इस लिए उनके पेय में कामोद्दीपक औषधि दुगुनी थी और नींद की औषधि नाममात्र।

•पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को उस रात्रि राजकुमारी शुभदा को भुलाना था तो नींद की दवा दुगुनी थी और कामोद्दीपक औषधि नाममात्र।


राजकुमारी शुभदा, “लेकिन सेनापति अचलसेन ने आप से अपना प्याला बदल लिया और आप के प्याला रिक्त करने के बाद ही अपना प्याला होठों से लगाकर पिया।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि उसने अंगद और बाकी सुरक्षा पथक को लज्जा रक्षा हेतु दूर रखा और अपनी कुटीर पर भी पहरा लगवाया। यह सब राजकुमारी शुभदा की रक्षा हेतु था।


राजकुमारी शुभदा, “आप किसी को भी दिखे बगैर अंदर कैसे आए और वापस कैसे गए?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजवंश के व्यक्ति का वास जिस घर में हो उस में गुप्त मार्ग होना अनिवार्य है। यह घर आपके लिए ही बनाया गया था इस लिए यहां भी एक भूमिगत मार्ग है जो स्नानगृह से मेरी कुटीर के अंदर आता है।”


राजकुमारी शुभदा ने चौंक कर देखा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराए।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि वह मार्ग केवल राजकुमारी शुभदा को बताया जा सकता था और उस रात्रि सेनापति अचलसेन से राजकुमारी शुभदा को एकांत मिलना संभव नहीं था। परंतु सेनापति अचलसेन की क्रूरता के बारे में जान कर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चुप नहीं रह पाए। उन्होंने गुप्त मार्ग से अंदर की स्थिति को जांचने के लिए प्रवेश किया तो सेनापति अचलसेन को स्नानगृह में अचेत पड़ा पाया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेनापति अचलसेन के लिंग पर थोड़ा अश्व का रक्त लगाया और चूषक को लिंग से जोड़ दिया। वह शयनगृह में राजकुमारी शुभदा को सब बताने आए पर कामोत्तेजना से जलती मोहिनी से मोहित होकर प्रातः तक वहीं रुक गए। प्रातः जब कामोद्दीपक औषधि का ज्वर टूटा तब उसने स्नानगृह से सेनापति अचलसेन को शय्या तक लाया। पर लाख प्रयास करके भी उनका मन उन्हें सेनापति अचलसेन को राजकुमारी शुभदा के बगल में रखने से रोकता रहा। अंत में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेनापति अचलसेन को राजकुमारी शुभदा की शय्या की दूसरी ओर नीचे ऐसे रखा जैसे पूर्ण रात्रि को रतिक्रिडा कर थका व्यक्ति शय्या से नीचे गिर गया हो।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने कौमार्यमर्दन से घायल राजकुमारी शुभदा को सेनापति अचलसेन की आंखों से छुपाने के लिए वस्त्र से ढक दिया। घर से अपने चिन्ह मिटाकर गुप्त मार्ग से लौट कर प्रातः स्नान संध्या करने गए।


राजकुमारी शुभदा ने अपने रुदन को दबाया पर उनकी सुडौल काया पत्ते की तरह हिल रही थी।


राजकुमारी शुभदा, “किंतु हम से ऐसा पाप हो गया है कि हम सिंहासन ही नहीं पर समाज के पात्र नहीं रहीं।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी, जो हुआ वह नियति थी। सेनापति अचलसेन ने अपने मन से प्याला बदला था। सेनापति अचलसेन ने आपको इस घर में रहने के लिए मनाया था। यह नियति के अलावा और कुछ नहीं। इस में किसी भी व्यक्ति का कोई दोष नहीं।”


राजकुमारी शुभदा तीव्रता से, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपको क्यों लगता है कि हम आप को दोषी नहीं मानते? घर आपका था, प्याले आपके, पेय आपका और… क्रीड़ा… भी आपकी!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “क्षमा करें राजकुमारी शुभदा पर क्रीड़ा में आपका समान सहभाग था और मेरे पास प्रमाण है आपकी क्षमा का!”


राजकुमारी शुभदा झल्लाकर, “कैसा प्रमाण? हमने आपको कोई क्षमा नहीं दी!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी जी के दो चाबुक हैं। काला चमड़े का और लाल रेशम का। चमड़ा आवाज और क्षति दोनों देता है पर रेशम? केवल ध्वनि! हमें नगर से भागने का आभास करना था तो आपने हमें निष्कासित कर सरल मार्ग बनाया।”


राजकुमारी शुभदा एक जामुन के पेड़ के नीचे बैठ गई तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री उसके पैरों में बैठ गया।


राजकुमारी शुभदा, “राजा खड़गराज ने न केवल गलत व्यक्ति को सेनापति बनाया पर योग्य योजना होते हुए भी गलत मार्ग अपनाया। नागरिकों का दुःख समाप्त होते ही वह राजवंश से विद्रोह करने लगेंगे। विद्रोह से राजवंश को मिटाने से बेहतर हम सती हो कर स्वयं राजवंश समाप्त कर दें।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चुपके से, “सही और गलत राजकुमारी शुभदा। राजा खड़गराज की आलोचना सही है पर उपाय गलत। अचानक राजवंश समाप्त हो गया तो वर्णव्यवस्था में बंटा हुआ नगर गृहयुद्ध में जलेगा। किंतु यदि आप राजवंश की अगली पीढ़ी को लाती हो तो इस आनंद में आपको समय मिलता है कुछ क्रांतिकारी करने का।”


राजकुमारी शुभदा, “कैसा क्रांतिकारी?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपने विचार बताए और दोनों ने संध्या तक बातें की। नगर द्वार सूर्य की अंतिम किरण के साथ बंद हुआ और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा से राज महल लौटने की विनंती की।


राजकुमारी शुभदा मन ही मन मुस्कुराकर, “नहीं, हमें वही घर पसंद है जिस में हम राजकुमारी शुभदा नहीं है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को हाथ जोड़कर नम्रता से प्रणाम किया और आज्ञा ले कर अपनी कुटीर में लौटे। कुटीर में अत्यंत सादगी थी। संध्या स्नान के बाद पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपनी कुटीर के एकमात्र बर्तन में खाना बनाने की शुरुवात की जब एक राज सेविका ने उन्हें पुकारा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को देख उस सेविका ने उन्हें रात्रि भोजन बनाकर देने का प्रस्ताव दिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री विनम्रता से उसे मना करते पर उस से पहले नगर के एक समृद्ध व्यापारी की पत्नी अपनी बेटी के साथ उनके लिए रात्रि भोजन लेकर आई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को चौंकने तक का समय नहीं मिला क्योंकि पीछे पीछे और कई परिवार अपनी बेटियों के हाथों बने रात्रि भोजन को लेकर आते दिखे।


सौभाग्यवश अंगद ने राजकुमारी शुभदा की रक्षा हेतु रखा पथक इस्तमाल किया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को कुछ दिन राजकुमारी शुभदा के स्वास्थ्य हेतु रात्रि भोजन राजकुमारी शुभदा के साथ करने की विनंती की।


नगर के नागरिक अपनी एक रात्रि में विधवा हुई राजकुमारी शुभदा से सहानुभूति रखते थे परंतु अनेक धूर्त लोगों को यह जानने के जल्दी थी कि राजकुमारी शुभदा गर्भ से है या नहीं।
राजकुमारी शुभदा अगर गर्भ से ना हो तो राजा खड़गराज ने क्षत्रियों को दी हुई सत्ता हटाकर या हथियाकर स्वयं राजा बनने का स्वप्न अनेक देख रहे थे। पर कुछ अति धूर्त थे जो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से अपनी पुत्री का विवाह करा कर नगर के नायक को कठपुतली राजा बनाकर सिंहासन के पीछे से राज करना चाहते थे फिर वह सेवक हो या पुरोहित, दास हो या सामंत।


राजकुमारी शुभदा ने अपनी सेविका को भोजन परोसने को कहा जब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने हाथ धोए। सेविका के जाने के बाद राजकुमारी शुभदा ने मुख्य मुद्दा उठाया।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपके लिए भोजन लाने वालों की संख्या लगभग उतनी ही है जितनी मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछने वालों की है। सेनापति अचलसेन की माता ने मुझे सांत्वना देते हुए गरुड़वीर से विवाह कर उनके वंश को पिता का साथ देने को कहा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने सर को हिलाकर हां कहा जैसे उन्हें यह अपेक्षित था।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, क्या मैं… कैसे अनुमान लगाएं कि… मेरे गर्भ में…”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा की दुविधा समझकर, “राजकुमारी, क्या है यह फल?”


राजकुमारी शुभदा चकराकर, “संतरा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “क्या मुझे यह गर्मी की दिनों में मिलेगा? नहीं। क्योंकि हर पीढ़ी को पोषक ऋतु की आवश्यकता होती है। अश्व और श्वान भी वर्ष के तय ऋतु में जन्म लेते हैं।”


राजकुमारी शुभदा की गुस्सैल आंखों को देख मुस्कुराकर, “स्त्री का भी ऋतु होता है। एक रक्तस्राव की शुरुवात से दूसरे तक २८ दिवस का काल होता है। विज्ञान अनुसार गर्भधारणा की सर्वोच्च संभावना बीच में होती है। दसवें दिन से उन्नीसवे दिन तक। क्या आप बता सकती हो कि विवाहरात्रि की रात्रि का क्रम क्या था?”


राजकुमारी शुभदा लज्जा और भय में पीसकर, “रक्तस्राव से छटा दिन। आज दसवां दिन है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गंभीरता से, “छठे दिन गर्भधारणा की संभावना बेहद कम है।”


राजकुमारी शुभदा, “क्या सारे क्रांतिकारी विचार पंधरा दिन में नहीं हो सकते?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “नहीं, जल्दबाजी सब बिगाड़ देगी।”


राजकुमारी शुभदा, “हम झूठ बोल सकते हैं कि मैं गर्भवती हूं। एक या दो महीनों बाद…”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर हिलाकर मना करते हुए, “साधारण स्त्री के लिए यह संभव है पर राजनंदिनी के लिए नहीं। खास कर इन परिस्थितियों में कोई न कोई सेवक या सेविका कुछ पहचान जाएगी।”


राजकुमारी शुभदा गहरी सांस लेकर, “तो हमारे पास एक ही मार्ग शेष है। (पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की ओर सख्ती से देखते हुए) आप आज से अगले पूर्ण सप्ताह मेरी शय्या में आकर वो… करेंगे। यह हमारी राज आज्ञा है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़कर उठते हुए, “जो आज्ञा राजकुमारी शुभदा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री जाने लगे तो राजकुमारी शुभदा घबराए ऊंचे स्वर में, “आप हमें त्याग रहे हैं?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा से एक सांस के दूरी पर रुक कर चुपके से, “कदापि नहीं, किंतु मेरा यहां से जाते हुए देखा जाना आवश्यक है। मैं एक घटिका बाद गुप्त मार्ग से लौट आऊंगा।”


राजकुमारी शुभदा ने अपने सर को हिलाकर हां कहा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने दरवाजा खोला और अंगद के समक्ष राजकुमारी शुभदा को शुभ रात्रि कह कर अपनी कुटीर में जा कर अपना दरवाजा बंद कर लिया।
पंडित जी ने तो लगभग अपने सभी पत्ते दिखाने का नाटक करते हुए राजकुमारी को उनके हित के अनुकूल बनते हुए 1 सप्ताह के लिए क्रीड़ा की आज्ञा ले ली.....



बहुत ही सुंदर update
 
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Lefty69

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पंडित जी ने तो लगभग अपने सभी पत्ते दिखाने का नाटक करते हुए राजकुमारी को उनके हित के अनुकूल बनते हुए 1 सप्ताह के लिए क्रीड़ा की आज्ञा ले ली.....



बहुत ही सुंदर update
पर क्या राजकुमारी के साथ क्रीड़ा करना इतना आसान होगा?

और आगे क्या होगा? यदि राजकुमारी शुभदा गर्भवती हो गई तो भी पिता सेनापति अचलसेन को माना जाएगा। फिर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का क्या होगा?
 

Luckyloda

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पर क्या राजकुमारी के साथ क्रीड़ा करना इतना आसान होगा?

और आगे क्या होगा? यदि राजकुमारी शुभदा गर्भवती हो गई तो भी पिता सेनापति अचलसेन को माना जाएगा। फिर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का क्या होगा?
पण्डित बहुत ज्ञानी है वो अपने भविष्य का कुछ सोच कर ही आगे का रास्ता तय कर रहे है मेरे हिसाब से तो.....


बाकी जो उनकी नियति.....
 
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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Sorry,
But due to some technical problem I lost all drafts

Had to restart. This was just to keep my readers interested, second part coming soon

प्रिय भाई - आपको सॉरी आदि कहने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आप लिख रहे हैं - यह बड़ा काम है। आप लिखते रहें बस!
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपना सम्पूर्ण सत्य बताया।


सोलह वर्ष पूर्व सेनापति अचलसेन के पिता, तत्कालीन सेनापति ने छोटे पवन दास के सामने उसके पिता को मारा। अपनी जीवनरक्षा हेतु छोटा पवन तब तक दौड़ता रहा जब तक वह किसी से टकराकर अचेत होकर गिर ना गया। वह व्यक्ति निष्कासित गुरु, राज ऋषि धीरानंद थे। राज ऋषि धीरानंद ने पवन को न केवल अपनी छत्रछाया में लिया पर उसे 21 कला एवं शास्त्रों में निपुण कर उसे ब्राह्मण बनाया। ज्ञान अर्जन करने पर राज ऋषि धीरानंद ने गुरुदक्षिणा स्वरूप पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से पर्वतपुर लौट कर राजकुमारी शुभदा की रक्षा का वचन लिया।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने पूर्व सेनापति से बचने के लिए अपनी पहचान नर्तक बताई और राजकुमारी शुभदा के निकट पहुंचने में कामयाब हुआ।


परंतु 4 वर्षों में वह राजकुमारी शुभदा से मोहित होकर उससे प्रेम करने लगा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने आप को समझाया कि राजकुमारी शुभदा से विवाह कर वह सदैव के लिए उसका रक्षक बनकर रह सकता है। लेकिन स्वयंवर में हुए अपमान और निष्कासन के बाद उसने अपना पूर्ण लक्ष राजा उग्रवीर पर लाया।
राजकुमारी शुभदा के प्रति अपने आकर्षण को त्यागने उसने अपना घर राजकुमारी शुभदा को विवाह भेट स्वरूप दे दिया और स्वयं कुटीर में रहने को तैयार हो गया।



राजकुमारी शुभदा, “विवाहरात्रि का पेय एक समान नहीं था ना?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को बताया कि तीनों प्यालों में मिश्रण समान था पर प्रमाण अलग थे।

•राजकुमारी शुभदा के पेय में कामोद्दीपक और नींद की औषधि समान थी ताकि उन्हें इस रात्रि में आनंद आए और दर्द की याद ना रहे।

•सेनापति अचलसेन के बारे में गुप्त वार्ता व्यापारीयों से सुनी थी कि वह अनेक नगरों की वेश्याओं के संग संबंध रख चुके थे। उनका पौरुष अस्थिर था और स्खलन शीघ्र इस लिए उनके पेय में कामोद्दीपक औषधि दुगुनी थी और नींद की औषधि नाममात्र।

•पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को उस रात्रि राजकुमारी शुभदा को भुलाना था तो नींद की दवा दुगुनी थी और कामोद्दीपक औषधि नाममात्र।


राजकुमारी शुभदा, “लेकिन सेनापति अचलसेन ने आप से अपना प्याला बदल लिया और आप के प्याला रिक्त करने के बाद ही अपना प्याला होठों से लगाकर पिया।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि उसने अंगद और बाकी सुरक्षा पथक को लज्जा रक्षा हेतु दूर रखा और अपनी कुटीर पर भी पहरा लगवाया। यह सब राजकुमारी शुभदा की रक्षा हेतु था।


राजकुमारी शुभदा, “आप किसी को भी दिखे बगैर अंदर कैसे आए और वापस कैसे गए?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजवंश के व्यक्ति का वास जिस घर में हो उस में गुप्त मार्ग होना अनिवार्य है। यह घर आपके लिए ही बनाया गया था इस लिए यहां भी एक भूमिगत मार्ग है जो स्नानगृह से मेरी कुटीर के अंदर आता है।”


राजकुमारी शुभदा ने चौंक कर देखा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराए।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने बताया कि वह मार्ग केवल राजकुमारी शुभदा को बताया जा सकता था और उस रात्रि सेनापति अचलसेन से राजकुमारी शुभदा को एकांत मिलना संभव नहीं था। परंतु सेनापति अचलसेन की क्रूरता के बारे में जान कर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चुप नहीं रह पाए। उन्होंने गुप्त मार्ग से अंदर की स्थिति को जांचने के लिए प्रवेश किया तो सेनापति अचलसेन को स्नानगृह में अचेत पड़ा पाया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेनापति अचलसेन के लिंग पर थोड़ा अश्व का रक्त लगाया और चूषक को लिंग से जोड़ दिया। वह शयनगृह में राजकुमारी शुभदा को सब बताने आए पर कामोत्तेजना से जलती मोहिनी से मोहित होकर प्रातः तक वहीं रुक गए। प्रातः जब कामोद्दीपक औषधि का ज्वर टूटा तब उसने स्नानगृह से सेनापति अचलसेन को शय्या तक लाया। पर लाख प्रयास करके भी उनका मन उन्हें सेनापति अचलसेन को राजकुमारी शुभदा के बगल में रखने से रोकता रहा। अंत में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने सेनापति अचलसेन को राजकुमारी शुभदा की शय्या की दूसरी ओर नीचे ऐसे रखा जैसे पूर्ण रात्रि को रतिक्रिडा कर थका व्यक्ति शय्या से नीचे गिर गया हो।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने कौमार्यमर्दन से घायल राजकुमारी शुभदा को सेनापति अचलसेन की आंखों से छुपाने के लिए वस्त्र से ढक दिया। घर से अपने चिन्ह मिटाकर गुप्त मार्ग से लौट कर प्रातः स्नान संध्या करने गए।


राजकुमारी शुभदा ने अपने रुदन को दबाया पर उनकी सुडौल काया पत्ते की तरह हिल रही थी।


राजकुमारी शुभदा, “किंतु हम से ऐसा पाप हो गया है कि हम सिंहासन ही नहीं पर समाज के पात्र नहीं रहीं।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी, जो हुआ वह नियति थी। सेनापति अचलसेन ने अपने मन से प्याला बदला था। सेनापति अचलसेन ने आपको इस घर में रहने के लिए मनाया था। यह नियति के अलावा और कुछ नहीं। इस में किसी भी व्यक्ति का कोई दोष नहीं।”


राजकुमारी शुभदा तीव्रता से, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपको क्यों लगता है कि हम आप को दोषी नहीं मानते? घर आपका था, प्याले आपके, पेय आपका और… क्रीड़ा… भी आपकी!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री मुस्कुराकर, “क्षमा करें राजकुमारी शुभदा पर क्रीड़ा में आपका समान सहभाग था और मेरे पास प्रमाण है आपकी क्षमा का!”


राजकुमारी शुभदा झल्लाकर, “कैसा प्रमाण? हमने आपको कोई क्षमा नहीं दी!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी जी के दो चाबुक हैं। काला चमड़े का और लाल रेशम का। चमड़ा आवाज और क्षति दोनों देता है पर रेशम? केवल ध्वनि! हमें नगर से भागने का आभास करना था तो आपने हमें निष्कासित कर सरल मार्ग बनाया।”


राजकुमारी शुभदा एक जामुन के पेड़ के नीचे बैठ गई तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री उसके पैरों में बैठ गया।


राजकुमारी शुभदा, “राजा खड़गराज ने न केवल गलत व्यक्ति को सेनापति बनाया पर योग्य योजना होते हुए भी गलत मार्ग अपनाया। नागरिकों का दुःख समाप्त होते ही वह राजवंश से विद्रोह करने लगेंगे। विद्रोह से राजवंश को मिटाने से बेहतर हम सती हो कर स्वयं राजवंश समाप्त कर दें।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री चुपके से, “सही और गलत राजकुमारी शुभदा। राजा खड़गराज की आलोचना सही है पर उपाय गलत। अचानक राजवंश समाप्त हो गया तो वर्णव्यवस्था में बंटा हुआ नगर गृहयुद्ध में जलेगा। किंतु यदि आप राजवंश की अगली पीढ़ी को लाती हो तो इस आनंद में आपको समय मिलता है कुछ क्रांतिकारी करने का।”


राजकुमारी शुभदा, “कैसा क्रांतिकारी?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपने विचार बताए और दोनों ने संध्या तक बातें की। नगर द्वार सूर्य की अंतिम किरण के साथ बंद हुआ और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा से राज महल लौटने की विनंती की।


राजकुमारी शुभदा मन ही मन मुस्कुराकर, “नहीं, हमें वही घर पसंद है जिस में हम राजकुमारी शुभदा नहीं है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को हाथ जोड़कर नम्रता से प्रणाम किया और आज्ञा ले कर अपनी कुटीर में लौटे। कुटीर में अत्यंत सादगी थी। संध्या स्नान के बाद पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपनी कुटीर के एकमात्र बर्तन में खाना बनाने की शुरुवात की जब एक राज सेविका ने उन्हें पुकारा। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को देख उस सेविका ने उन्हें रात्रि भोजन बनाकर देने का प्रस्ताव दिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री विनम्रता से उसे मना करते पर उस से पहले नगर के एक समृद्ध व्यापारी की पत्नी अपनी बेटी के साथ उनके लिए रात्रि भोजन लेकर आई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को चौंकने तक का समय नहीं मिला क्योंकि पीछे पीछे और कई परिवार अपनी बेटियों के हाथों बने रात्रि भोजन को लेकर आते दिखे।


सौभाग्यवश अंगद ने राजकुमारी शुभदा की रक्षा हेतु रखा पथक इस्तमाल किया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को कुछ दिन राजकुमारी शुभदा के स्वास्थ्य हेतु रात्रि भोजन राजकुमारी शुभदा के साथ करने की विनंती की।


नगर के नागरिक अपनी एक रात्रि में विधवा हुई राजकुमारी शुभदा से सहानुभूति रखते थे परंतु अनेक धूर्त लोगों को यह जानने के जल्दी थी कि राजकुमारी शुभदा गर्भ से है या नहीं।
राजकुमारी शुभदा अगर गर्भ से ना हो तो राजा खड़गराज ने क्षत्रियों को दी हुई सत्ता हटाकर या हथियाकर स्वयं राजा बनने का स्वप्न अनेक देख रहे थे। पर कुछ अति धूर्त थे जो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री से अपनी पुत्री का विवाह करा कर नगर के नायक को कठपुतली राजा बनाकर सिंहासन के पीछे से राज करना चाहते थे फिर वह सेवक हो या पुरोहित, दास हो या सामंत।



राजकुमारी शुभदा ने अपनी सेविका को भोजन परोसने को कहा जब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने हाथ धोए। सेविका के जाने के बाद राजकुमारी शुभदा ने मुख्य मुद्दा उठाया।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आपके लिए भोजन लाने वालों की संख्या लगभग उतनी ही है जितनी मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछने वालों की है। सेनापति अचलसेन की माता ने मुझे सांत्वना देते हुए गरुड़वीर से विवाह कर उनके वंश को पिता का साथ देने को कहा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपने सर को हिलाकर हां कहा जैसे उन्हें यह अपेक्षित था।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, क्या मैं… कैसे अनुमान लगाएं कि… मेरे गर्भ में…”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा की दुविधा समझकर, “राजकुमारी, क्या है यह फल?”


राजकुमारी शुभदा चकराकर, “संतरा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “क्या मुझे यह गर्मी की दिनों में मिलेगा? नहीं। क्योंकि हर पीढ़ी को पोषक ऋतु की आवश्यकता होती है। अश्व और श्वान भी वर्ष के तय ऋतु में जन्म लेते हैं।”


राजकुमारी शुभदा की गुस्सैल आंखों को देख मुस्कुराकर, “स्त्री का भी ऋतु होता है। एक रक्तस्राव की शुरुवात से दूसरे तक २८ दिवस का काल होता है। विज्ञान अनुसार गर्भधारणा की सर्वोच्च संभावना बीच में होती है। दसवें दिन से उन्नीसवे दिन तक। क्या आप बता सकती हो कि विवाहरात्रि की रात्रि का क्रम क्या था?”


राजकुमारी शुभदा लज्जा और भय में पीसकर, “रक्तस्राव से छटा दिन। आज दसवां दिन है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गंभीरता से, “छठे दिन गर्भधारणा की संभावना बेहद कम है।”


राजकुमारी शुभदा, “क्या सारे क्रांतिकारी विचार पंधरा दिन में नहीं हो सकते?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “नहीं, जल्दबाजी सब बिगाड़ देगी।”


राजकुमारी शुभदा, “हम झूठ बोल सकते हैं कि मैं गर्भवती हूं। एक या दो महीनों बाद…”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री सर हिलाकर मना करते हुए, “साधारण स्त्री के लिए यह संभव है पर राजनंदिनी के लिए नहीं। खास कर इन परिस्थितियों में कोई न कोई सेवक या सेविका कुछ पहचान जाएगी।”


राजकुमारी शुभदा गहरी सांस लेकर, “तो हमारे पास एक ही मार्ग शेष है। (पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की ओर सख्ती से देखते हुए) आप आज से अगले पूर्ण सप्ताह मेरी शय्या में आकर वो… करेंगे। यह हमारी राज आज्ञा है।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़कर उठते हुए, “जो आज्ञा राजकुमारी शुभदा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री जाने लगे तो राजकुमारी शुभदा घबराए ऊंचे स्वर में, “आप हमें त्याग रहे हैं?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा से एक सांस के दूरी पर रुक कर चुपके से, “कदापि नहीं, किंतु मेरा यहां से जाते हुए देखा जाना आवश्यक है। मैं एक घटिका बाद गुप्त मार्ग से लौट आऊंगा।”


राजकुमारी शुभदा ने अपने सर को हिलाकर हां कहा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने दरवाजा खोला और अंगद के समक्ष राजकुमारी शुभदा को शुभ रात्रि कह कर अपनी कुटीर में जा कर अपना दरवाजा बंद कर लिया।

कुछ बातें अनुत्तरित रह गईं - धीरानन्द निष्काषित क्यों किए गए? तत्कालीन सेनापति ने ज्ञानदीप के पिता को क्यों मारा? संभव है कि कहानी में इन बातों का कोई स्थान न हो।
शुभदा का यह कहना कि वो सिंहासन और समाज के योग्य नहीं रह गईं - यह मिथ्या प्रलाप है। राज परिवार का पहला कर्तव्य यह है कि वो राज्य का उत्तराधिकारी दे। इसलिए शुभदा को सिंहासन आरूढ़ होना आवश्यक है। और जैस हमें अपेक्षा है, दोनों का मिलन होना अपरिहार्य है। देखते हैं कि दोनों का प्रेम राजनीतिक कुचक्र के बीच कैसे पुष्पित और पल्लवित होता है।
अति उत्तम लेखन मित्र! अति उत्तम!
 
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कुछ बातें अनुत्तरित रह गईं - धीरानन्द निष्काषित क्यों किए गए? तत्कालीन सेनापति ने ज्ञानदीप के पिता को क्यों मारा? संभव है कि कहानी में इन बातों का कोई स्थान न हो।
शुभदा का यह कहना कि वो सिंहासन और समाज के योग्य नहीं रह गईं - यह मिथ्या प्रलाप है। राज परिवार का पहला कर्तव्य यह है कि वो राज्य का उत्तराधिकारी दे। इसलिए शुभदा को सिंहासन आरूढ़ होना आवश्यक है। और जैस हमें अपेक्षा है, दोनों का मिलन होना अपरिहार्य है। देखते हैं कि दोनों का प्रेम राजनीतिक कुचक्र के बीच कैसे पुष्पित और पल्लवित होता है।
अति उत्तम लेखन मित्र! अति उत्तम!
Bhai aap kab apni story per update doge
 
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कुछ बातें अनुत्तरित रह गईं - धीरानन्द निष्काषित क्यों किए गए? तत्कालीन सेनापति ने ज्ञानदीप के पिता को क्यों मारा? संभव है कि कहानी में इन बातों का कोई स्थान न हो।
शुभदा का यह कहना कि वो सिंहासन और समाज के योग्य नहीं रह गईं - यह मिथ्या प्रलाप है। राज परिवार का पहला कर्तव्य यह है कि वो राज्य का उत्तराधिकारी दे। इसलिए शुभदा को सिंहासन आरूढ़ होना आवश्यक है। और जैस हमें अपेक्षा है, दोनों का मिलन होना अपरिहार्य है। देखते हैं कि दोनों का प्रेम राजनीतिक कुचक्र के बीच कैसे पुष्पित और पल्लवित होता है।
अति उत्तम लेखन मित्र! अति उत्तम!
मित्र आपकी भाषा ने तो मुझे निशब्द कर दिया!!

यदि आप ने मेरी बाकी कथाएं पढ़ी तो आप को पता चलेगा कि हर सुराग की वजह होती है। आखिर एक निष्कासित गुरु उसी राज्य की राजकुमारी के लिए रक्षक क्यों बनाकर भेजेगा?
 
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