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Adultery पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना

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aamirhydkhan

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कहानी "पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना: गौरव कुमार की है

मेरा नाम गौरव कुमार है। मैं, कपूरथला, पंजाब का रहने वाला हूँ। हमारा आड़त का काम है यानी हम किसान और सरकार मे बीच मे फसल का लेंन देंन का काम करते है। अब मे पंजाब से हूँ तो बता दूं के यहा की दो चीजें बहुत मशहूर है, एक पटियाला पेग ओर दुसरी पंजाबन जट्टीयां। हमारा किसानो के साथ आना जाना लगा रहता है तो किसी ना किसी जट्टी के साथ भी बात बन जाती है। आज एसी ही कहानी लेकर आया हूँ। तो कहानी आरंभ करते है।


SARBI
 
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aamirhydkhan

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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना:-1


पंजाब के गांव सोन्गांव, कपूरथला, मे मलकीत रेह्ता था। उसकी उमर 70साल थी। मलकीत की बीवी का नाम अमरजीत है उमर 65साल। मलकीत और अमरजीत दोनो बुढे होने के कारण ज्यादा काम न्ही कार पाते थे इसलिये घर ओर खेत के काम की जिमेवारी उन्के बेटे और बहू पर है। इनके बेटे का नाम सुखा है जिसकी उमर27 साल है। सुखे की पत्नी का नाम सरब्जीत उमर 24 साल है। सब उसे सरबी कहते है। सरबी का फिगर 34-30-36था। कहानी के बाकी पात्र एक एक करके सामने आएगे। सरबी और सुखे के वियाह को 2साल हो ग्ये थे लेकिन कोई औलाद न्ही थी इसलिये सरबी सुखे से लडती रह्ती थी। सुखा खेती के काम मे जित्ना ताकतवर था हिसाब मे उत्ना कमजोर। इसलिये फसल और घर का सारा हिसाब उसकी पत्नी ही करती थी। सुखा अपनी फसल कपूरथला, सहर के सेठ बनवारी लाल के पस बेच्ता है। बनवारी लाल की उमर 45साल है और गठीला बदन जवाँ लड़को को मात देता है। फसल का हिसाब करने सुखा ओर सरबी दोंनो आते है। पिछ्ले एक साल से बनवारी सरबी को देखता आ रहा है ओर उसके गोरे रन्ग ओर उबरे मुम्मो ओर चुत्डो का दीवाना है। वह बातो बातो मे सरबी को छेड़ता रेह्ता था। बनवारी लाल ने सुखे से पांच लाख रुपए लेंने थे जिन पर हर साल ब्याज लग जाता था। एस बार सुखा गेहूंकी फसल का हिसाब करने लाला जी के पास आया था। “”ले बई सुखे तेरी पूरी फसल का हिसाब काट के मेरे पांच लाख रुपए बढ ग्ये तुमपर”। लाले ने अपना बही खाता देखकर बोला।

सुखा-“लेकिन लाला जी धान की फसल के वक़्त भी तो अपने यही कहा था, क्या अब भी उसमे से कुछ कम न्ही हुआ”। “अरे ब्याज भी तो लगता है सुखे और फिर ड़ेढ़ लाख तू और ले गया था मुज्से धान की फसल के बाद”। लाले ने कहा। “हा सेठ जी मगर कुछ तो कम होता होगा ना 2साल से पांचलाख ही खडा है”। सुल्हे ने जवाब दिया। “देख भाई सुखे मेरा दिमाग मत चाट, हिसाब करना तो तूमे आता न्ही, एसा कर अपनी बीवी को ले आईओ कल उसे सम्जा दुगा मे”। लाले ने दो टुक सुना दी। सुखा निराश होकर घर लौटा।

सुखे को आता देख सरबी मे पानी का गिलास देते हुए पुछा, “कित्ना रह ज्ञा सेठ जी का”। “अरे कित्ना क्या, पांच का पांच ही खडा है अबी भी”। सुखे ने निराश होकर बोला। “लेकिन कुछ तो कम होगा ना आखिर धान की फसल मे से भी कटवाया था कुछ करज”। सरबी बोली। “हमारी तो कुछ समझ मे न्ही आया, सेठ जी ने बोले के तुमे साथ ले के आओ तो वो हिसाब करे”। सुखे ने बोला। “हा तो हम चले जयेगे कल”। सरबी ने जवाब दिया। “अरे न्ही तुमे अकेली ही जाना पड़ेगा कल, हमे चारे को पानी लगाना है और जमीन भी तैयार करना है”। सुखे ने कहा। “कोई बात नही हम चले जायेगे”। सरबी ने जवाब दिया और खाना बनने चली गयी। दुसरे दिन सुखा रोटी खाकर खेत चला गया ओर सरबी तैयार होकर शहर चली गयी।



Z2
बनवारी लाल की दुकान पर जाकर सरबी ने लालाजी को राम राम बुलाई। अवाज सुनकर जेसे ही सेठ ने आंखे उपर उठाई तो साम्ने सरबी खडी थी। जट्टी को देखकर लाला के मुह से लार टपकने लगी। “अरे राम राम सरबी, व्हा क्यो खडी हो य्हा आकर बेठो”। सरबी के जिस्म पर नज़र घुमाते हुए लाला बोला। सरबी अन्दर जाकर चटाई पर बेठगयी। “और बताओ सरबी सब ठीक, केसे आना हुआ आज”। लाला जट्टी के चुचो को देख्ते हुए बोला। “सेठ जी आप्ने कल सुखे को बोला था ना हिसाब के लिये तो आयी हू मे”। सरबी ने जवाब दिया। “अरे हा मे तो भुल ही गया था, “। सेठ ने अपना बही खाता निकल्ते हुए जवाब दिया। “हा तो सरबी पांच लाख रुपए बाकी है अबी इस फसल के बाद भी”।

सरबी-“लेकिन सेठ जी धान की फसल के बाद भी आपने यही बोला था, कुच कम न्ही हुआ क्या”।

“तो ब्याज भी तो लगा ना, अब देखो पांच लाख तो एक के हिसाब से सांठ हज़ार का तो ब्याज बन ग्य और ड़ेढ़लाख फिर लिया तुमने, तो कुल 2लाख10हज़ार हुए, और फसल हुई 2लाख, अब 10हज़ार तो फर भी लिहाज से छोड रहा हू”। लाले ने सरबी को देल्ह्ते हुए कहा। सरबी थोडा निराश हो कर बोली-“एसे तो हम पूरी जिन्दगी कर्जे मे र्हेगे सेठ जी”।


SARBI
“मेने तुमे कहा था सर्बी के सुखे को मेरे पास कम पे लगा दो, कुच कर्जा तो मे उसके वेतन से थोदा थोडा करके काट लेता”। लाले ने जवाब दिया। “लेकिन फिर खेतो का क्या होगा सेठ जी उसके इलावा हमरे पास कुछ है भी तो नही”। सरबी निराश होकर बोली।

“है तो तुमरे पास बहुत कुछ सरबी”। लाला सरबी की जवानी को निहारते हुए बोला। “कुछ कहा सेठ जी आपने”। सरबी बोली। “अह्ह अरे मे तो कह रहा था के अब भी सोच लो ओर सुखे को य्हा कम पे लगा दो और साथ तुमे भी मे कोई कम दिलवा देता हूँ, रही बात खेतो की तो उन्हे आगे ठेके पर देदो”। बनवारी लाला बोला।

‘”बात तो आपकी सही है सेठ जी, मै सोचुगी सेठ जी इस बारे मे”। सरबी ने जवाब दिया।

“हा जरुर सोचो सरबी, अरे बई दोनो मिलकर 20हज़ार तो महिने का कमा ही लोगे उसमे से थोडे थोड़े कटवाते रहना”। सेठ बोला। “हा सेठ जी मे इस बारे मे सुखे से बात करूगी, अच्छा सेठ जी मे चलती हू”। सरबी इत्ना कह कर जाने लगी। सेठ बनवारी लाल सरबी को जाते हुए देख रहा था और जट्टी के चुतड़ देख अपना लण्ड मस्लने लगा।

"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना – पार्ट – 2


दोस्तो मे गौरव कहानी का दुसरा पार्ट लेकर आपके सामने हाज़िर हू, उम्मीद करता हू के पहला पार्ट अपको पसंद आया होगा। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ाता हू, यहा सरबी लाले की दुकान से चली जाती है।

सरबी के जाने के बाद लाला फिर से बही खाते मे फसलो का जोड तोड करने लगा। अभी पांच मिनट ही हुए थे लाले को फिर से राम राम की अवाज सुनाई दी। लाले ने नज़र उठा कर देखा तो सामने रितु खडी थी। रितू लाले के पास काम करने वाले बाबू की बीवी थी। वह जात के बौरिये थे। रितु 34 की थी और फिगर 38-36-40था जो लाले ने ही किया था। बाबू क्योके सराब पीके टुन्न रेह्ता था तो रितु अक्सर लाले के बिस्तर पर आ जाती थी। रितु को देखते लाले की आंखो मे चमक आ गयी।

“अरे आ रितु केसे आना हुआ”। लाले ने लण्ड मसल्ते हुए पुछा जो सरबी के ख्यालो मे खडा था।

“सेठ जी कुच पेसे चाहिये थे घर का राशन लेने के लिये”। रितु ने जवाब दिया।

“अरे तो अन्दर आजा ना बहर क़्यो खडी है”। लाला ने उठते हुए बोला और बहर देखने लगा के कोई है तो न्ही। जेसे ही रितु अन्दर ज्ञी लाले ने दुकान का दरवाजा ल्गा दिया और रियु को पकड लिया

“क्या रितु इत्ने दिन कहा थी दिखायी न्ही दी”। लाले के हाथ रितु के मम्मे मसल ररहे थे।

“अह्ह्ह्ह सेठ जी घर मे थी अपको तो उस सराबी का पता है”। रितु ने जवाब दिया। “लेकिन आप आज इत्ने उतावले क्यो हो रहे है, पहले तो कभी एसा नही किया आपने”। रितु लाले की एस हरकत से चौंक गयी थी क्योके पहले कभी भी लाला रितु पर एकदम एसे न्ही टूटा था।

लाला को रितु को दुकान के निचे बने सुरंग टाइप कमरे मे ले गया और लाईट जला दी। “अरे मत पुछ रितु अभी अभी सरबी ज्ञी है य्हा से”। लाले ने बोला।

रितु सरबी को जानती है और दोनो अच्छी सहेलिया है। “हा तो उसने एसा क्या कर दिया”। रितु ने बैड प्र बेठ्ते हुए पुछा।

लाला भी रितु के पस बैड पर बेठ गया “क्या नही किया, मस्त जिस्म है साली जट्टी का बडे मुम्मे और उबरे हुए चुतड़, दिल तो किया था के उसे वही पकड के पेल दू”। लाले ने सरबी को याद करते हुए कहा।

“बस इत्नी सी बात, और मे पता न्ही क्या क्या सोच रही थी मन मे”। रितु बोली।

“इत्नी सी बात मतलब तू कर सकती मेर काम, लेके आयेगी जट्टी को लाले के इस बिस्तर पे”। लाले की आखोंमे चाम्क आ गयी और उसे सरबी अपने सामने बैड पर लेटी हुई दिखने लगी।

“क्यो न्ही सेठ जी आप तो जानते है के सरबी के साथ मेरि कित्नी बनती है, हा लेकिन उसकी फीस लगेगी”। रितु ने लाले की तरफ देख्ते हुए बोला।

“अरे मुंह मांगी फीस दे दुगा जो कहोगी मिलेगा जान, कहो तो अबी दे सक्ता हू जो मांगोगी। , बस एक बार जट्टी को मेरे बिस्तर पे ले आ, “। लाले ने रितु की बोला।

“अरे ज्यदा कुछ नही चहिये सेठ जी बस मुझे अपना खाता साफ चाहिये”। रितु ने भी गरम लोहे पर हथौड़ा मार दिया।

“जिस दिन जट्टी को लाले के बिस्तर पे ले आयेगी उस दिन तेरा खता साफ कर दूगा, तब तक नही”। लाले ने जवाब दिया।

“तो बस समझो ले सरबी आपकी हो गयी”। रितु ने लाले को विस्वास दिलाते हुए कहा।

“आये हाये मेरि रानी बडे पुणय का काम करेगी तू उसे यहा लाके”। लाले ने रितु की चुन्नी उतारते हुए कहा।

“आपकी गुलाम जो ठहरी”। रितु ने लाले को देखते हुए बोला। लाला अप्ने अपके उतर कर अंडरवेअर मे था। उसने रितु की करती उतर फेन्की और उसके मुम्मे चुस्ने लगा। रितु भी सिस्किया लेते हुए लाले के गठीले बदन को सहलाए जा रही थी। लाले ने रितु को निचे बेठ्ने को कहा। रितु ने निचे बेठ लाले का अंडरवेअरउतर दिया और उसका मूसल जेसे लण्ड को सहलाने लगी। लाले ने लुन्द पकड रीति के होंठो पर टोपा मसल्ने लगा।

रितु ने जेसे ही अपना मुंह खोल लाले के लण्ड को मुंह मे लिया तो लाले की सिसकी निकल गयी “ओह रितु जान चुस जान लाले का लण्ड”।


RITU



रितु भी मजे से लुन्द चूसे जा रही थी तो कभी निचे लाले के टट्टौ पा भी जीभ फेर रही थी। करीब 20 मिंट लण्ड चुसाने के बैड लाले ने रितु को खडी कर बैड पे लेटा उसकी सलवार भी उतार दी।

लाला खुद निचे खडा था, उस्ने रितु की टांगो को फैलाया और बीच मे चुत पे लण्ड रगड़ने लगा। “सांप को उसकी गुफा तो दिखा रानी”। लाले ने रितु को आंख मारते हुए कहा।

रितु भी लाले की बात समझ गयी और उस्ने अपने हाथ से चुत को खोल दिया। जेसे ही रितु ने चुत को खोला लाले ने जोर से एक घस्सा मारा और एक ही बर मे अपना पुरा लण्ड रितु की चुत की गहरायी मे उतर दिया।

“स्स्स्स्स्स्स आअह्ह्ह्ह्ह सेठ जी”रितु ने हल्की सी सिस्कारी निकली। रितु भी अब लाले के 12 इन्च लण्ड लेने की आदी हो चुकी थी। लण्ड को पुर चुत मे उतर लाले ने रितु के मम्मे पकड लिये और जोर जोर से झटके मारने लगा। रितु भी आह्ह्ह्ह स्सिस्स्सी ह्हये लाला जी कहती हुई लाले के लण्ड का मजा लेने लगी।

लाला दनादन रितु को पेले जा रहा था ओर झुक कर उसके मम्मे चुस्स लेता करीब घंटेभर बाद लाला ने अपने गरम माल की पिचकारी रितु की चुत मे ही छोड़ दी। “ओह रितु जान” कहते हुए लाला रितु के बगल मे लेट गया।

थोडे टाईम बैड रितु ने अपने कपडे पहने”लाला जी रुपए दो मुझे जाना है अब बहुत देर गयी है”। रितु ने बोला।

लाला भी अब अपने कपडे पहनने लगा, “बता तो सही कित्ने चाहिये”।

“पांच हज़ार दे दो लाला जी” रितु बोली।

“अरे थोडे ले जा पहले ही बहुत चले ग्ये है तेरी तरफ” लाला रितु को देखते हुए बोला।

“देदो लाला जी वेसे भी अब खाता तो साफ होने ही वाला है” रितु ने मुस्कुराते हुए कहा। “

”बहुत चालाक है साली तू, ठीक है लेजा लेकिन वादा मत भुलियो अपना” लाले ने 5हज़ार रुपए रितु को देते हुए कहा।

“नही भुलुगी लाला जी ” रितु ने रुपे पकडे और चली गयी।

लाला फिर से सरबी की यादो मे खो गया।

""पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना" जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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"पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना"– पार्ट – 3


हेलो दोस्तो मे गौरव कुमार फिर से हाज़िर हूँ कहानी का अगला पार्ट लेकर। दुसरे पार्ट मे आपने पढ़ा के केसे रितु लाला के साथ सरबी को उसके बिस्तर पर लाने का वादा करती है। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ातेहै।

शाम होते सरबी घर पहुंच चुकी थी ओर सुखा भी उस्के इन्तज़ार मे बेठा था। जेसे ही सुखे ने सरबी को आते देखा एक दमसे सवाल पूछनेलगा “क्या हुआ, क्या कहा लाला जी ने, हिसाब सही था क्या”। सरबी चारपाई पर बेठ गयी, “हा हिसाब तो सही है लाला जी का”। सुखा सरबी का जवाब सुनकर निराश हो गया, “तो फिर अब हम क्या करे, जीतोड मेहनत करते है लेकिन कर्ज वेसा का वेसा ही खडा है”।

सरबी सुखे को देखती हुई बोली'”सुनो ना सेठ जी ने आज हमसे काम के बारे मे बात की थी”।

“कोन्सा काम ” सुखे ने सरबी को देख्ते हुए कहा।

“सेठ जी कह रहे थे के तुम उन्के यहा काम पर लग जाओ, 8हज़ार महिना देगे और कहे मुजे भी वहा कोई काम दिलवा देगे, फिर हम वेतन मे से हर महिने थोड़े थोड़े रुपए लौटाते रहेगे”। सरबी ने सुखे को देखते हुए कहा। सुखा सरबी की बात सुनकर बोला, “लेकिन फिर खेतो का क्या होगा वहा फसल कों देखेगा”।

“खेतो को हम आगे किसी को ठेके पर दे देगे, और फिर महिने की जो कमाई होगी उस से घर का खर्चा भी निकल लेगे”। सरबी ने जवाब दिया। “वो तो ठीक है लेकिन शहर आने जाने पर भी खर्च होगा रोज का, उसका क्या”। सुखे ने सरबी को देख बोला।


zarin

“ओहो तुम तो बिल्कुल बुद्धू हो, हम सेठ जी को बोलके कोई सस्ता मकान किरये पे ले लेगे और इस मकान यहा किसी को किराये पर दे देगे, सम्झे के नही कुछ”। सरबी ने कहा। “अब मेरा तो हिसाब तुम जानती हो, तुम कह रही हो तो सही ही होगा”। सुखे ने भी हामी भर दी।

“ठीक है फिर मे सेठ जी को बोल दुगी, तुम मा बाबू जी को शहर जाने के लिये मनाओ”। सरबी ने सुखे से कहा। सुखा भी सरबी की बात मान कर अप्ने मा बाबू जी के साथ बात करने चला गया ओर उनसे बात की। सरबी के सास ससुर ने सरबी से भी बात की तो सरबी ने उन्हे अच्छेसे समझाया तो वो शहर जाने के लिये राजी हो ग्ये।

सरबी ने शहर सेठ जी के पास जाने की बजाये उन्हे फोन लगाया। “ट्रिंग ट्रिंग” “हेल्लो हा जी कोन” सेठ बनवारी लाल ने फोन उठातेहुए पुछा। “हा सेठ जी मे सरबी बोल रही हूं”। सरबी ने आगे से जवाब दिया।

नाम सुन्ते ही सेठ उछल पडा “अरे सरबी, बोलो केसे याद किया”। सेठ ने पुछा। “सेठ जी आप उस दिन बोले थे ना के सुखे को अपने पास काम पे रखोगे और मजे ब कोई काम दिलवा दोगे”। सरबी ने सेठ को जवाब दिया।

“हा बई बोला तो था, तो क्या राय बनायी फिर तुमने”। सेठ ने उत्सुकता से पुछा। “जी हम तैयार है काम करने के लिये, और सेठ जी एक सस्ता मकान भी किराये पर दिलवा दीजियेगा, आने जाने का खर्चा नही होगा फिर”।

सरबी ने सेठ को बोला।

सेठ सरबी का जवाब सुनकर उछल पड़ा, “अरे हा बई क्यो नही, काम मेने ढूंड रखा है और मकान भी एक आध दिन मे देख लगा, तुम बताओ कब आ रहे हो तुम लोग”। सेठ ने पुछा। “बस सेठ जी जमीन ठेके पर दे दी है, और मकान भी हम्ने किराये के लिये बात करली है तो हफ्ते भर मे आ जायेगे हम”। “हा तो कोई बात नही फिर तब तक मे य्हा तुम लोगो के लिये मकान देख लेता हू”। सेठ ने जवाब दिया। “ठीक है सेठ जी”। सरबी ने फोने काट दिया।

सरबी से उसके आने की खबर सुन सेठ खुशी से पागल हो रहा था, उस्ने उसी वक़्त रितु को फोन लगाया,।

“हेलो राम राम सेठ जी” रितु ने फ़ोन उठाते हुए कहा। “राम राम मेरि जान, क्या कर रही थी”। सेठ ने पुछा। “किच नही सेठ जी बस घर का निपटा रही थी”। रितु ने जवाब दिया।

बनवारी लाल -“सुन जान, तेरी सहेली आ रही है शहर ओर उसे मकान चाहिये किराये पर”।



रितु -“कौन सेठ जी, किसकी बात कर रहे हो आप”।

बनवारी लाल -“अरे साली, वो सरबी है ना, वो आ रही है, मेने उसे और उसके घरवाले को यहा काम करने के लिया कहा था”।

रितु -“अच्छा सेठ जी, कब आ रहे है वो यहा”।

बनवारी लाल -“एक हफ्ते मे आने का बोल रही थी, एसा कर तेरे बगल मे वो मकान है हरिया का”।

रितु-“हा सेठ जी लेकिन हरिया तो मकान बेच रहा है”।

बनवारी लाल -“उसे बोल मुझे वो मकान चाहिये 2 लाख दूंगा, मेरे पास भेज देना हरिया को”।

रितु -“ठीक है सेठ जी मे हरिया को आअप्के पास भेज दूंगी”।

बनवारी लाल -“और तू कब आयेगी जान, अकेली मत आना एस बार”।



rit2

रितु -“हा सेठ जी समझ रही हू आप क्या बोल रहे हो”। रितु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और फ़ोन काट दिया। बनवारी लाल ने हरिया से मकान खरीदा और उसकी मरम्मत करवा दी।
सोमवार के दिन सरबी और सुखा सेठ बनवारी लालके पाआ आये, “राम राम सेठ जी”। सुखे ने बनवारी लाल की नमस्कार की।

सेठ ने उपर सुखे और सरबी को देखा, “अरे आओ सुखे आ जाओ अन्दर”। सुखा और सरबी अन्दर जाकर चटाई प्र बेठ ग्ये। “सेठ जी वो आपने सरबी को कामके लिये कहा था ना”। सुखा बोला।

“हा मुझे याद है सुखे, देख तू मेरे यहा काम करले, महिने का 8हज़ार दे दूगा लेकिन काम म्ज्दूरो वाला है”,। बनवारी लाल ने कहा।

“कोई बात नही सेठ जी खेतो मे भी तो काम करते ही है, य्हा आपके पास भी कर लेगे”। सुखे ने जवाब दिया। “और सरबी के लिये कोई काम है क्या सेठ जी”।

“अरे है ना बई, सरबी मेरा एक हस्पताल है, जिसमे मजे सफाई करने और चाय पानी के लिये लेडी चाहिये, 10हज़ार म्हीने का दूंगा अगर तमे मंजूर हो तो”। बनवारी लाल सरबी को देख्ते हुए बोला। “ठीक है सेठ जी मे कर लुंगी, आप अस्पताल का पता बता दीजियेगा मुझे”। सरबी ने जवाब दिया।

“अरे बई पता क्या बताना, वो साम्ने रहा अस्पताल “। सेठ ने इशारा कर्ते हुए कहा। दरअसल सेठ सरबी को अपनी आंखो के सामने ही रख्ना चाह्ता था इसलिये उस्ने सरबी को अपने अस्पताल मे ही काम पर रख लिया। “और सेठ जी वो मेने आपसे किराये के लिये मकानं का भी बोला था तो कोई बन्दोबसत हुआ”। सरबी ने पुछा। “हा मकान भी है रितु को जानती हो ना तुम, उसके घर के बगल मे मेरा मकान खाली पड़ा है, तुम उसमे रह लेना और जो किराया बनेगा देते रहना”। सेठ ने बोला।

“रितु, हा सेठ जी उसे तो मे अच्छे से जानती हू, अप उसे बुला दो, हम आज मकान देख लेते है और कल तक अप्ना समान ले आएगे”। सरबी ने जवाब दिया, वो खुश थी के उसे उसकी सहेली के साथ मे ही मकान मिल गया।

“हा मे बुलाता हू उसे” सेठ ने कहा और रितु को फोन मिलाकर उसे आने के लिये बोला। 5मिंट तक रितु वहा आ गयी “सेठ जी बुलाया अपने”।

“हा रितु ये सरबी को अपने साथ ले जाओ ओर मकान दिखा दो”। सेठ बोला।

सरबी को देख रितु खुश होते हुए थोडा अनजान बन्ते हुए बोली, “अरे सरबी तुम कब आयी फ़ोन करके बताया भी नही, और मकान क्यो चाहिये”।

“वो सेठ जी ने हमे यहा काम दिला दिया है तो अब हम यही रहेगे”। सरबी ने जवाब दिया।

“अरे ये तो और भी अच्छा किया, गांव मे रखा ही क्या है, चलो मे तुमे मकान दिखा देती हू”। रितु बोली।

सरबी और सुखा सेठ बनवारी लाल को रामराम बुला रितु के साथ चल दिये। रितु ने उन्हे आपने साथ वाले मकान दिखाया जो सेठ ने हरिया से खरीदा था।

“ले सरबी ये है तुमरा मकान, केसा लगा तुमे”। समान रख्ते हुए रितु बोली।

सरबी मकान को देखकर बोली, “अच्छा है रितु मकान तो सेठ जी का है ना”।

“हा उन्ही का है सरबी बडे दिलवाले है सेठ जी, अपनापन देखे है हर किसी मे”। रितु बोली। “और ये साथ मे मेरा घर है, कोई जरुरत हो तो बताना”।

“हा जरुर रितु, मे तो तुमे ही जानती हू इस शहर मे तो तुमे ही बुलओगी”। सर्बी बोली।

हा क्यो नही सरबी जब भी जरुरत हो तो अवाज लगा देना, अच्छा अब मे चलती हू”। रितु बोली और घर चली गयी।

सुखा और सरबी मकान देखने ल्गे और अपना समान रखने लगे। दुसरे दिन गांव जाकर वो मा बाबू जी को भी ले आये ओर शहर मे रहने लगे।

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पंजाब के गांव सोन्गांव मे मलकीतसिंह रेह्ता था। उसकी उमर 70साल थी। मलकीत की बीवी का नाम अमरजीत कौर है उमर 65साल। मलकीत और अमरजीत दोनो बुढे होने के कारण ज्यादा काम न्ही कार पाते थे इसलिये घर ओर खेत के काम की जिमेवारी उन्के बेटे और बहू पर है। इनके बेटे का नाम सुखा है जिसकी उमर27 साल है। सुखे की पत्नी का नाम सरब्जीत कौर उमर 24साल है। सब उसे सरबी कहते है। सरबी का फिगर 34-30-36था। कहानी के बाकी पात्र एक एक करके सामने आएगे। सरबी और सुखे के वियाह को 2साल हो ग्ये थे लेकिन कोई औलाद न्ही थी इसलिये सरबी सुखे से लडती रह्ती थी। सुखा खेती के काम मे जित्ना ताकतवर था हिसाब मे उत्ना कमजोर। इसलिये फसल और घर का सारा हिसाब उसकी पत्नी ही करती थी। सुखा अपनी फसल सहर के सेठ बनवारी लाल के पस बेच्ता है। बनवारी लाल की उमर 45साल है और गठीला बदन जवाँ लड़को को मात देता है। फसल का हिसाब करने सुखा ओर सरबी दोंनो आते है। पिछ्ले एक साल से बनवारी सरबी को देखता आ रहा है ओर उसके गोरे रन्ग ओर उबरे मुम्मो ओर चुत्डो का दीवाना है। वह बातो बातो मे सरबी को छेड़ता रेह्ता था। बनवारी लाल ने सुखे से पांच लाख रुपए लेंने थे जिन पर हर साल ब्याज लग जाता था। एस बार सुखा गेहूंकी फसल का हिसाब करने लाला जी के पास आया था। “”ले बई सुखे तेरी पूरी फसल का हिसाब काट के मेरे पांच लाख रुपए बढ ग्ये तुमपर”। लाले ने अपना बही खाता देखकर बोला।

सुखा-“लेकिन लाला जी धान की फसल के वक़्त भी तो अपने यही कहा था, क्या अब भी उसमे से कुछ कम न्ही हुआ”। “अरे ब्याज भी तो लगता है सुखे और फिर ड़ेढ़ लाख तू और ले गया था मुज्से धान की फसल के बाद”। लाले ने कहा। “हा सेठ जी मगर कुछ तो कम होता होगा ना 2साल से पांचलाख ही खडा है”। सुल्हे ने जवाब दिया। “देख भाई सुखे मेरा दिमाग मत चाट, हिसाब करना तो तूमे आता न्ही, एसा कर अपनी बीवी को ले आईओ कल उसे सम्जा दुगा मे”। लाले ने दो टुक सुना दी। सुखा निराश होकर घर लौटा।

सुखे को आता देख सरबी मे पानी का गिलास देते हुए पुछा, “कित्ना रह ज्ञा सेठ जी का”। “अरे कित्ना क्या, पांच का पांच ही खडा है अबी भी”। सुखे ने निराश होकर बोला। “लेकिन कुछ तो कम होगा ना आखिर धान की फसल मे से भी कटवाया था कुछ करज”। सरबी बोली। “हमारी तो कुछ समझ मे न्ही आया, सेठ जी ने बोले के तुमे साथ ले के आओ तो वो हिसाब करे”। सुखे ने बोला। “हा तो हम चले जयेगे कल”। सरबी ने जवाब दिया। “अरे न्ही तुमे अकेली ही जाना पड़ेगा कल, हमे चारे को पानी लगाना है और जमीन भी तैयार करना है”। सुखे ने कहा। “कोई बात नही हम चले जायेगे”। सरबी ने जवाब दिया और खाना बनने चली गयी। दुसरे दिन सुखा रोटी खाकर खेत चला गया ओर सरबी तैयार होकर शहर चली गयी।



Z2
बनवारी लाल की दुकान पर जाकर सरबी ने लालाजी को राम राम बुलाई। अवाज सुनकर जेसे ही सेठ ने आंखे उपर उठाई तो साम्ने सरबी खडी थी। जट्टी को देखकर लाला के मुह से लार टपकने लगी। “अरे राम राम सरबी, व्हा क्यो खडी हो य्हा आकर बेठो”। सरबी के जिस्म पर नज़र घुमाते हुए लाला बोला। सरबी अन्दर जाकर चटाई पर बेठगयी। “और बताओ सरबी सब ठीक, केसे आना हुआ आज”। लाला जट्टी के चुचो को देख्ते हुए बोला। “सेठ जी आप्ने कल सुखे को बोला था ना हिसाब के लिये तो आयी हू मे”। सरबी ने जवाब दिया। “अरे हा मे तो भुल ही गया था, “। सेठ ने अपना बही खाता निकल्ते हुए जवाब दिया। “हा तो सरबी पांच लाख रुपए बाकी है अबी इस फसल के बाद भी”।

सरबी-“लेकिन सेठ जी धान की फसल के बाद भी आपने यही बोला था, कुच कम न्ही हुआ क्या”।

“तो ब्याज भी तो लगा ना, अब देखो पांच लाख तो एक के हिसाब से सांठ हज़ार का तो ब्याज बन ग्य और ड़ेढ़लाख फिर लिया तुमने, तो कुल 2लाख10हज़ार हुए, और फसल हुई 2लाख, अब 10हज़ार तो फर भी लिहाज से छोड रहा हू”। लाले ने सरबी को देल्ह्ते हुए कहा। सरबी थोडा निराश हो कर बोली-“एसे तो हम पूरी जिन्दगी कर्जे मे र्हेगे सेठ जी”।


SARBI
“मेने तुमे कहा था सर्बी के सुखे को मेरे पास कम पे लगा दो, कुच कर्जा तो मे उसके वेतन से थोदा थोडा करके काट लेता”। लाले ने जवाब दिया। “लेकिन फिर खेतो का क्या होगा सेठ जी उसके इलावा हमरे पास कुछ है भी तो नही”। सरबी निराश होकर बोली।

“है तो तुमरे पास बहुत कुछ सरबी”। लाला सरबी की जवानी को निहारते हुए बोला। “कुछ कहा सेठ जी आपने”। सरबी बोली। “अह्ह अरे मे तो कह रहा था के अब भी सोच लो ओर सुखे को य्हा कम पे लगा दो और साथ तुमे भी मे कोई कम दिलवा देता हूँ, रही बात खेतो की तो उन्हे आगे ठेके पर देदो”। बनवारी लाला बोला।

‘”बात तो आपकी सही है सेठ जी, मै सोचुगी सेठ जी इस बारे मे”। सरबी ने जवाब दिया।

“हा जरुर सोचो सरबी, अरे बई दोनो मिलकर 20हज़ार तो महिने का कमा ही लोगे उसमे से थोडे थोड़े कटवाते रहना”। सेठ बोला। “हा सेठ जी मे इस बारे मे सुखे से बात करूगी, अच्छा सेठ जी मे चलती हू”। सरबी इत्ना कह कर जाने लगी। सेठ बनवारी लाल सरबी को जाते हुए देख रहा था और जट्टी के चुतड़ देख अपना लण्ड मस्लने लगा।
पंजाब दियां मस्त रंगीन जट्टीयां जारी रहेगी
कहानी का प्रारंभ बडा ही मस्त और लाजवाब हैं भाई मजा आ गया
 
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पंजाब दियां मस्त रंगीन जट्टीयां – पार्ट – 2


दोस्तो मे गौरव कहानी का दुसरा पार्ट लेकर आपके सामने हाज़िर हू, उम्मीद करता हू के पहला पार्ट अपको पसंद आया होगा। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ाता हू, यहा सरबी लाले की दुकान से चली जाती है।

सरबी के जाने के बाद लाला फिर से बही खाते मे फसलो का जोड तोड करने लगा। अभी पांच मिनट ही हुए थे लाले को फिर से राम राम की अवाज सुनाई दी। लाले ने नज़र उठा कर देखा तो सामने रितु खडी थी। रितू लाले के पास काम करने वाले बाबू की बीवी थी। वह जात के बौरिये थे। रितु 34 की थी और फिगर 38-36-40था जो लाले ने ही किया था। बाबू क्योके सराब पीके टुन्न रेह्ता था तो रितु अक्सर लाले के बिस्तर पर आ जाती थी। रितु को देखते लाले की आंखो मे चमक आ गयी।

“अरे आ रितु केसे आना हुआ”। लाले ने लण्ड मसल्ते हुए पुछा जो सरबी के ख्यालो मे खडा था।

“सेठ जी कुच पेसे चाहिये थे घर का राशन लेने के लिये”। रितु ने जवाब दिया।

“अरे तो अन्दर आजा ना बहर क़्यो खडी है”। लाला ने उठते हुए बोला और बहर देखने लगा के कोई है तो न्ही। जेसे ही रितु अन्दर ज्ञी लाले ने दुकान का दरवाजा ल्गा दिया और रियु को पकड लिया

“क्या रितु इत्ने दिन कहा थी दिखायी न्ही दी”। लाले के हाथ रितु के मम्मे मसल ररहे थे।

“अह्ह्ह्ह सेठ जी घर मे थी अपको तो उस सराबी का पता है”। रितु ने जवाब दिया। “लेकिन आप आज इत्ने उतावले क्यो हो रहे है, पहले तो कभी एसा नही किया आपने”। रितु लाले की एस हरकत से चौंक गयी थी क्योके पहले कभी भी लाला रितु पर एकदम एसे न्ही टूटा था।

लाला को रितु को दुकान के निचे बने सुरंग टाइप कमरे मे ले गया और लाईट जला दी। “अरे मत पुछ रितु अभी अभी सरबी ज्ञी है य्हा से”। लाले ने बोला।

रितु सरबी को जानती है और दोनो अच्छी सहेलिया है। “हा तो उसने एसा क्या कर दिया”। रितु ने बैड प्र बेठ्ते हुए पुछा।

लाला भी रितु के पस बैड पर बेठ गया “क्या नही किया, मस्त जिस्म है साली जट्टी का बडे मुम्मे और उबरे हुए चुतड़, दिल तो किया था के उसे वही पकड के पेल दू”। लाले ने सरबी को याद करते हुए कहा।

“बस इत्नी सी बात, और मे पता न्ही क्या क्या सोच रही थी मन मे”। रितु बोली।

“इत्नी सी बात मतलब तू कर सकती मेर काम, लेके आयेगी जट्टी को लाले के इस बिस्तर पे”। लाले की आखोंमे चाम्क आ गयी और उसे सरबी अपने सामने बैड पर लेटी हुई दिखने लगी।

“क्यो न्ही सेठ जी आप तो जानते है के सरबी के साथ मेरि कित्नी बनती है, हा लेकिन उसकी फीस लगेगी”। रितु ने लाले की तरफ देख्ते हुए बोला।

“अरे मुंह मांगी फीस दे दुगा जो कहोगी मिलेगा जान, कहो तो अबी दे सक्ता हू जो मांगोगी। , बस एक बार जट्टी को मेरे बिस्तर पे ले आ, “। लाले ने रितु की बोला।

“अरे ज्यदा कुछ नही चहिये सेठ जी बस मुझे अपना खाता साफ चाहिये”। रितु ने भी गरम लोहे पर हथौड़ा मार दिया।

“जिस दिन जट्टी को लाले के बिस्तर पे ले आयेगी उस दिन तेरा खता साफ कर दूगा, तब तक नही”। लाले ने जवाब दिया।

“तो बस समझो ले सरबी आपकी हो गयी”। रितु ने लाले को विस्वास दिलाते हुए कहा।

“आये हाये मेरि रानी बडे पुणय का काम करेगी तू उसे यहा लाके”। लाले ने रितु की चुन्नी उतारते हुए कहा।

“आपकी गुलाम जो ठहरी”। रितु ने लाले को देखते हुए बोला। लाला अप्ने अपके उतर कर अंडरवेअर मे था। उसने रितु की करती उतर फेन्की और उसके मुम्मे चुस्ने लगा। रितु भी सिस्किया लेते हुए लाले के गठीले बदन को सहलाए जा रही थी। लाले ने रितु को निचे बेठ्ने को कहा। रितु ने निचे बेठ लाले का अंडरवेअरउतर दिया और उसका मूसल जेसे लण्ड को सहलाने लगी। लाले ने लुन्द पकड रीति के होंठो पर टोपा मसल्ने लगा।

रितु ने जेसे ही अपना मुंह खोल लाले के लण्ड को मुंह मे लिया तो लाले की सिसकी निकल गयी “ओह रितु जान चुस जान लाले का लण्ड”।


RITU



रितु भी मजे से लुन्द चूसे जा रही थी तो कभी निचे लाले के टट्टौ पा भी जीभ फेर रही थी। करीब 20 मिंट लण्ड चुसाने के बैड लाले ने रितु को खडी कर बैड पे लेटा उसकी सलवार भी उतार दी।

लाला खुद निचे खडा था, उस्ने रितु की टांगो को फैलाया और बीच मे चुत पे लण्ड रगड़ने लगा। “सांप को उसकी गुफा तो दिखा रानी”। लाले ने रितु को आंख मारते हुए कहा।

रितु भी लाले की बात समझ गयी और उस्ने अपने हाथ से चुत को खोल दिया। जेसे ही रितु ने चुत को खोला लाले ने जोर से एक घस्सा मारा और एक ही बर मे अपना पुरा लण्ड रितु की चुत की गहरायी मे उतर दिया।

“स्स्स्स्स्स्स आअह्ह्ह्ह्ह सेठ जी”रितु ने हल्की सी सिस्कारी निकली। रितु भी अब लाले के 12 इन्च लण्ड लेने की आदी हो चुकी थी। लण्ड को पुर चुत मे उतर लाले ने रितु के मम्मे पकड लिये और जोर जोर से झटके मारने लगा। रितु भी आह्ह्ह्ह स्सिस्स्सी ह्हये लाला जी कहती हुई लाले के लण्ड का मजा लेने लगी।

लाला दनादन रितु को पेले जा रहा था ओर झुक कर उसके मम्मे चुस्स लेता करीब घंटेभर बाद लाला ने अपने गरम माल की पिचकारी रितु की चुत मे ही छोड़ दी। “ओह रितु जान” कहते हुए लाला रितु के बगल मे लेट गया।

थोडे टाईम बैड रितु ने अपने कपडे पहने”लाला जी रुपए दो मुझे जाना है अब बहुत देर गयी है”। रितु ने बोला।

लाला भी अब अपने कपडे पहनने लगा, “बता तो सही कित्ने चाहिये”।

“पांच हज़ार दे दो लाला जी” रितु बोली।

“अरे थोडे ले जा पहले ही बहुत चले ग्ये है तेरी तरफ” लाला रितु को देखते हुए बोला।

“देदो लाला जी वेसे भी अब खाता तो साफ होने ही वाला है” रितु ने मुस्कुराते हुए कहा। “

”बहुत चालाक है साली तू, ठीक है लेजा लेकिन वादा मत भुलियो अपना” लाले ने 5हज़ार रुपए रितु को देते हुए कहा।

“नही भुलुगी लाला जी ” रितु ने रुपे पकडे और चली गयी।

लाला फिर से सरबी की यादो मे खो गया।

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पंजाब दियां मस्त रंगीन जट्टीयां"– पार्ट – 3


हेलो दोस्तो मे गौरव कुमार फिर से हाज़िर हूँ कहानी का अगला पार्ट लेकर। दुसरे पार्ट मे आपने पढ़ा के केसे रितु लाला के साथ सरबी को उसके बिस्तर पर लाने का वादा करती है। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ातेहै।

शाम होते सरबी घर पहुंच चुकी थी ओर सुखा भी उस्के इन्तज़ार मे बेठा था। जेसे ही सुखे ने सरबी को आते देखा एक दमसे सवाल पूछनेलगा “क्या हुआ, क्या कहा लाला जी ने, हिसाब सही था क्या”। सरबी चारपाई पर बेठ गयी, “हा हिसाब तो सही है लाला जी का”। सुखा सरबी का जवाब सुनकर निराश हो गया, “तो फिर अब हम क्या करे, जीतोड मेहनत करते है लेकिन कर्ज वेसा का वेसा ही खडा है”।

सरबी सुखे को देखती हुई बोली'”सुनो ना सेठ जी ने आज हमसे काम के बारे मे बात की थी”।

“कोन्सा काम ” सुखे ने सरबी को देख्ते हुए कहा।

“सेठ जी कह रहे थे के तुम उन्के यहा काम पर लग जाओ, 8हज़ार महिना देगे और कहे मुजे भी वहा कोई काम दिलवा देगे, फिर हम वेतन मे से हर महिने थोड़े थोड़े रुपए लौटाते रहेगे”। सरबी ने सुखे को देखते हुए कहा। सुखा सरबी की बात सुनकर बोला, “लेकिन फिर खेतो का क्या होगा वहा फसल कों देखेगा”।

“खेतो को हम आगे किसी को ठेके पर दे देगे, और फिर महिने की जो कमाई होगी उस से घर का खर्चा भी निकल लेगे”। सरबी ने जवाब दिया। “वो तो ठीक है लेकिन शहर आने जाने पर भी खर्च होगा रोज का, उसका क्या”। सुखे ने सरबी को देख बोला।


zarin

“ओहो तुम तो बिल्कुल बुद्धू हो, हम सेठ जी को बोलके कोई सस्ता मकान किरये पे ले लेगे और इस मकान यहा किसी को किराये पर दे देगे, सम्झे के नही कुछ”। सरबी ने कहा। “अब मेरा तो हिसाब तुम जानती हो, तुम कह रही हो तो सही ही होगा”। सुखे ने भी हामी भर दी।

“ठीक है फिर मे सेठ जी को बोल दुगी, तुम मा बाबू जी को शहर जाने के लिये मनाओ”। सरबी ने सुखे से कहा। सुखा भी सरबी की बात मान कर अप्ने मा बाबू जी के साथ बात करने चला गया ओर उनसे बात की। सरबी के सास ससुर ने सरबी से भी बात की तो सरबी ने उन्हे अच्छेसे समझाया तो वो शहर जाने के लिये राजी हो ग्ये।

सरबी ने शहर सेठ जी के पास जाने की बजाये उन्हे फोन लगाया। “ट्रिंग ट्रिंग” “हेल्लो हा जी कोन” सेठ बनवारी लाल ने फोन उठातेहुए पुछा। “हा सेठ जी मे सरबी बोल रही हूं”। सरबी ने आगे से जवाब दिया।

नाम सुन्ते ही सेठ उछल पडा “अरे सरबी, बोलो केसे याद किया”। सेठ ने पुछा। “सेठ जी आप उस दिन बोले थे ना के सुखे को अपने पास काम पे रखोगे और मजे ब कोई काम दिलवा दोगे”। सरबी ने सेठ को जवाब दिया।

“हा बई बोला तो था, तो क्या राय बनायी फिर तुमने”। सेठ ने उत्सुकता से पुछा। “जी हम तैयार है काम करने के लिये, और सेठ जी एक सस्ता मकान भी किराये पर दिलवा दीजियेगा, आने जाने का खर्चा नही होगा फिर”।

सरबी ने सेठ को बोला।

सेठ सरबी का जवाब सुनकर उछल पड़ा, “अरे हा बई क्यो नही, काम मेने ढूंड रखा है और मकान भी एक आध दिन मे देख लगा, तुम बताओ कब आ रहे हो तुम लोग”। सेठ ने पुछा। “बस सेठ जी जमीन ठेके पर दे दी है, और मकान भी हम्ने किराये के लिये बात करली है तो हफ्ते भर मे आ जायेगे हम”। “हा तो कोई बात नही फिर तब तक मे य्हा तुम लोगो के लिये मकान देख लेता हू”। सेठ ने जवाब दिया। “ठीक है सेठ जी”। सरबी ने फोने काट दिया।

सरबी से उसके आने की खबर सुन सेठ खुशी से पागल हो रहा था, उस्ने उसी वक़्त रितु को फोन लगाया,।

“हेलो राम राम सेठ जी” रितु ने फ़ोन उठाते हुए कहा। “राम राम मेरि जान, क्या कर रही थी”। सेठ ने पुछा। “किच नही सेठ जी बस घर का निपटा रही थी”। रितु ने जवाब दिया।

बनवारी लाल -“सुन जान, तेरी सहेली आ रही है शहर ओर उसे मकान चाहिये किराये पर”।



रितु -“कौन सेठ जी, किसकी बात कर रहे हो आप”।

बनवारी लाल -“अरे साली, वो सरबी है ना, वो आ रही है, मेने उसे और उसके घरवाले को यहा काम करने के लिया कहा था”।

रितु -“अच्छा सेठ जी, कब आ रहे है वो यहा”।

बनवारी लाल -“एक हफ्ते मे आने का बोल रही थी, एसा कर तेरे बगल मे वो मकान है हरिया का”।

रितु-“हा सेठ जी लेकिन हरिया तो मकान बेच रहा है”।

बनवारी लाल -“उसे बोल मुझे वो मकान चाहिये 2 लाख दूंगा, मेरे पास भेज देना हरिया को”।

रितु -“ठीक है सेठ जी मे हरिया को आअप्के पास भेज दूंगी”।

बनवारी लाल -“और तू कब आयेगी जान, अकेली मत आना एस बार”।



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रितु -“हा सेठ जी समझ रही हू आप क्या बोल रहे हो”। रितु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और फ़ोन काट दिया। बनवारी लाल ने हरिया से मकान खरीदा और उसकी मरम्मत करवा दी।
सोमवार के दिन सरबी और सुखा सेठ बनवारी लालके पाआ आये, “राम राम सेठ जी”। सुखे ने बनवारी लाल की नमस्कार की।

सेठ ने उपर सुखे और सरबी को देखा, “अरे आओ सुखे आ जाओ अन्दर”। सुखा और सरबी अन्दर जाकर चटाई प्र बेठ ग्ये। “सेठ जी वो आपने सरबी को कामके लिये कहा था ना”। सुखा बोला।

“हा मुझे याद है सुखे, देख तू मेरे यहा काम करले, महिने का 8हज़ार दे दूगा लेकिन काम म्ज्दूरो वाला है”,। बनवारी लाल ने कहा।

“कोई बात नही सेठ जी खेतो मे भी तो काम करते ही है, य्हा आपके पास भी कर लेगे”। सुखे ने जवाब दिया। “और सरबी के लिये कोई काम है क्या सेठ जी”।

“अरे है ना बई, सरबी मेरा एक हस्पताल है, जिसमे मजे सफाई करने और चाय पानी के लिये लेडी चाहिये, 10हज़ार म्हीने का दूंगा अगर तमे मंजूर हो तो”। बनवारी लाल सरबी को देख्ते हुए बोला। “ठीक है सेठ जी मे कर लुंगी, आप अस्पताल का पता बता दीजियेगा मुझे”। सरबी ने जवाब दिया।

“अरे बई पता क्या बताना, वो साम्ने रहा अस्पताल “। सेठ ने इशारा कर्ते हुए कहा। दरअसल सेठ सरबी को अपनी आंखो के सामने ही रख्ना चाह्ता था इसलिये उस्ने सरबी को अपने अस्पताल मे ही काम पर रख लिया। “और सेठ जी वो मेने आपसे किराये के लिये मकानं का भी बोला था तो कोई बन्दोबसत हुआ”। सरबी ने पुछा। “हा मकान भी है रितु को जानती हो ना तुम, उसके घर के बगल मे मेरा मकान खाली पड़ा है, तुम उसमे रह लेना और जो किराया बनेगा देते रहना”। सेठ ने बोला।

“रितु, हा सेठ जी उसे तो मे अच्छे से जानती हू, अप उसे बुला दो, हम आज मकान देख लेते है और कल तक अप्ना समान ले आएगे”। सरबी ने जवाब दिया, वो खुश थी के उसे उसकी सहेली के साथ मे ही मकान मिल गया।

“हा मे बुलाता हू उसे” सेठ ने कहा और रितु को फोन मिलाकर उसे आने के लिये बोला। 5मिंट तक रितु वहा आ गयी “सेठ जी बुलाया अपने”।

“हा रितु ये सरबी को अपने साथ ले जाओ ओर मकान दिखा दो”। सेठ बोला।

सरबी को देख रितु खुश होते हुए थोडा अनजान बन्ते हुए बोली, “अरे सरबी तुम कब आयी फ़ोन करके बताया भी नही, और मकान क्यो चाहिये”।

“वो सेठ जी ने हमे यहा काम दिला दिया है तो अब हम यही रहेगे”। सरबी ने जवाब दिया।

“अरे ये तो और भी अच्छा किया, गांव मे रखा ही क्या है, चलो मे तुमे मकान दिखा देती हू”। रितु बोली।

सरबी और सुखा सेठ बनवारी लाल को रामराम बुला रितु के साथ चल दिये। रितु ने उन्हे आपने साथ वाले मकान दिखाया जो सेठ ने हरिया से खरीदा था।

“ले सरबी ये है तुमरा मकान, केसा लगा तुमे”। समान रख्ते हुए रितु बोली।

सरबी मकान को देखकर बोली, “अच्छा है रितु मकान तो सेठ जी का है ना”।

“हा उन्ही का है सरबी बडे दिलवाले है सेठ जी, अपनापन देखे है हर किसी मे”। रितु बोली। “और ये साथ मे मेरा घर है, कोई जरुरत हो तो बताना”।

“हा जरुर रितु, मे तो तुमे ही जानती हू इस शहर मे तो तुमे ही बुलओगी”। सर्बी बोली।

हा क्यो नही सरबी जब भी जरुरत हो तो अवाज लगा देना, अच्छा अब मे चलती हू”। रितु बोली और घर चली गयी।

सुखा और सरबी मकान देखने ल्गे और अपना समान रखने लगे। दुसरे दिन गांव जाकर वो मा बाबू जी को भी ले आये ओर शहर मे रहने लगे।

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अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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