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UPDATE 1
इस कहानी की शुरुआत दिल्ली मेट्रो में हुई थी। मैं अकेला राजीव चौक से मेट्रों में बैठा। इस समय मेट्रो में अधिक भीड़ नही थी, मेरे साथ एक महिला बैठी थी सो मैं उन से थोड़ा हट कर बैठ गया। पुस्तक मेले से लौट रहा था सो किताबें भी साथ थी। समय काटने के लिए मैंने एक किताब निकाल कर उस के पन्नें पलटनें शुरु कर दियें। मेरे साथ बैठी महिला भी शायद पढ़ने की शौकिन थी, इस लिए वह भी मेरी किताब पर नजरें गढ़ाये हुऐ थी।
मैंने हाथ में पकड़ी किताब को बैग में रखा और दूसरी पुस्तक निकाल कर उसे पढ़ने लगा। तब तक शायद पड़ोस वाली महिला को पता चल गया था कि मैं पुस्तक प्रेमी हूँ, उन्होंने बात शुरु करने के लिए पुछा की इस बार पुस्तक मेला कैसा लगा है? मैंने कहा कि काफी अच्छा लगा है काफी बड़े क्षेत्र में लगा है तथा पुस्तकों की विषय वस्तु भी अच्छी है तो उन्होनें पुछा ही लिया कि क्या आप पढ़ाते है?
मैंने उन्हें बताया कि, नही मैं तो एक कंप्यूटर इंजिनियर हूँ। इस पर उन्होंने आश्चर्य जताते हुऐ कहा कि आप लोग कब से साहित्य के प्रेमी हो गये? तकनीक और साहित्य का तो दूर-दूर तक साथ नही बनता है। मैंने हँस कर कहा कि नहीं ऐसा नही है मैं तो बचपन से किताबें पढ़ने का शौकिन रहा हूँ लेकिन उस समय किताबें खरीदनें के लिए पैसें नही होते थे।
आज पैसे है लेकिन समय नही है। लेकिन शौक पुरा करने के लिए जब भी पुस्तक मेला लगता है तो पुस्तकें खरीदने पहुँच जाता हूँ यही सोच कर कि कभी तो इन को पढ़ने के लिए समय मिलेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप पहले व्यक्ति मिले है जो टेकनिकल व्यक्ति हो कर भी साहित्य में रुचि रखते है। मैंने कहा कि एक समय तो मैं हिन्दी में रिसर्च करने जा रहा था। अगर ऐसा हुआ होता तो आज किसी कॉलेज में पढ़ा रहा होता। पढ़ाया तो मैंने है लेकिन कंप्यूटर इंश्टियूट में।
इस तरह से हम दोनों की बातचीत शुरु हुई। उन्होंने मेरा फोन नम्बर माँगा और कहा कि कंप्यूटर में अगर किसी सहायता की आवश्यकता पड़ी तो आप को कष्ट दूँगी। मैंने उनको अपना नम्बर दे दिया। फिर मैंने पुछा कि मेरा परिचय तो हो गया अब आप भी अपना परिचय दे तो वह बोली कि मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढाती हूँ। वह हिन्दी की प्रोफेसर थी।
उन्होनें अपने फोन से मेरा नंबर डायल किया तो उन का नंबर भी मेरे पास आ गया। मेरा स्टेशन आ रहा था सो मैं उन्हें नमस्कार करके सीट से उठ गया। ट्रेन से उतरने के बाद याद आया कि उन का नाम पुछना तो भुल ही गया, वह भी मेरा नाम नही जानती थी। लेकिन मैंने अपने फोन में उनका नंबर डीयू लिख कर सेव कर लिया। घर आ कर मैं इस घटना को भूल गया। काफी दिनों बाद एक रविवार को मेरे फोन की घन्टी बजी, जब फोन उठाया तो देखा कि डीयू लिखा आ रहा था, तब जा कर उस घटना का स्मरण हुआ।
दूसरी तरफ से आ रही आवाज पहचान में आ गयी। वह बोली कि उस दिन आप का नाम पुछना भुल गयी थी, इस लिए इतने दिनों तक आप को फोन करना चाहते हुऐ भी फोन नही किया कि क्या नाम लेकर संबोधित करुँगी? लेकिन आज उस संकोच को छोड़ कर फोन कर ही लिया। मुझे पहचान तो रहे है आप? मैंने कहा कि हाँ पहचान रहा हूँ आप मुझे मेट्रो में मिली थी। मेरी बात सुन कर उन्होने एक गहरी साँस ली और कहा कि थैक्स गॉड आप को सब याद है, मुझे तो लगा था कि आप ने भी फोन नही किया तो हो सकता है कि शायद आप मुझे भुल गये होगे?
मैंने कहा कि मैं आसानी से किसी को याद नही रखता लेकिन जिसे याद रखता हूँ उसे भुलता नही हूँ। मेरी खराबी है। मेरी इस बात पर दूसरी तरफ से हँसी सुनाई दी। वह बोली कि दिलचस्प आदमी है आप, आप के साथ दोस्ती बढ़िया रहेगी। मैंने पुछा कि बताऐं कैसे याद किया? इस पर वह बोली कि अगर आज खाली है तो सीपी के कॉफी हाऊस में मिल सकते है? मैंने कहा कि हाँ मिल सकते है बताऐं कब मिलना है? तो वह बोली की दो बजे मिलते है। मैंने कहा दो बजे सीपी, और फोन रख दिया।
मुझे आज कोई काम नही था सो पत्नी को बता कर एक बजे सीपी के लिए निकल गया। मेट्रो पकड़ी और 35 मिनट में सीपी पहुँच गया। स्टेशन से पैदल ही कॉफी हाऊस की तरफ चल दिया। दो बजने से दस मिनट पहले मैं कॉफी हॉऊस में था। एक खाली सीट देख कर उस की तरफ लपका तो मेरी नजर दूसरी सीट पर बैठी उन महिला पर पड़ी वह पहले से ही सीट घेर कर बैठी थी। मैं उन के पास पहुँचा तो वह उठ कर खड़ी हो गयी और बोली कि मेरा नाम माधुरी है तथा आपका? मैंने कहा कि मुझे महेश कहते है, हम दोनों हँसते हुए सीटों पर बैठ गयें।
वह बोली कि कमाल का परिचय करने का तरीका है। मैंने कहा कि हाँ यह भी एक अन्दाज है। हम दोनों आराम से बैठ गये तो मैंने पुछा कि आप को मेरा इन्तजार तो नही करना पड़ा? इस पर वह बोली कि लगता है कि आप समय के बड़े पाबन्द है। मैंने कहा कि सैनिक परिवार से हूँ तथा अमेरिकन लोगों से साथ लम्बे समय से काम कर रहा हूँ इस लिए समय की पाबन्दी आदत बन गयी है। वह बोली की हम भारतीय तो समय की परवाह ही नही करते। मैंने हाँ में सर हिलाया।
मैंने उन से पुछा कि वह क्या लेगी? तो वह बोली कि आज मैं मेजबान हूँ इस लिए आप बताऐं क्या लेगे? मैंने कहा कि मैं तो यहाँ तब से आता हूँ जब से यह कॉफी हॉऊस खुला है। कॉफी और वड़ा चलेगा। यह सुन कर वह सामान लेने चली गयी। मैं पीछे से उन्हें देख कर सोचने लगा कि फिगर देख कर तो इन की उम्र का अन्दाजा लगाना मुश्किल काम है।
थोड़ी देर में वह कॉफी और साम्बर वड़ा ले कर आ गयी। दोनों कॉफी का मजा लेने लगे और बातचीत शुरु हो गयी।
मैंने पुछा कि पढ़ाई के साथ-साथ आप को और किस बात का शौक है? तो पता चला कि उन्हें भी फोटोग्राफी का शौक है लेकिन उसे पुरा करने का समय नही मिल पाता है तो मैंने हँस का कहा कि मेरा भी ऐसा ही हाल है मुझे बचपन से फोटोग्राफी का शौक है लेकिन अच्छा केमरा होने के बावजूद समय नही होने के कारण उस का इस्तेमाल नही हो पा रहा है। इस पर वह बोली कि हम दोनों छुट्टी के दिन कही चलने का कार्यक्रम बनाते है । मैंने कहा कि विचार तो अच्छा है किसी दिन समय निकाल कर चलते है शायद कुछ अच्छा हो जाये।
बात आगे बढ़ी तो पता चला कि वह अकेली ही रहती है माता-पिता दूसरें शहर में रहते है। मैंने बताया कि मैं तो इसी शहर में पैदा हुआ हूँ और पढ़ाई भी दिल्ली विश्वविद्यालय में ही हुई है। कंप्यूटर कोर्स करने के बाद पढ़ाने लगा, पढ़ाने से बोर होने के बाद कंप्यूटर हार्डवेयर का काम किया काफी साल तक। अब कई सालों से एक कंपनी में काम करता हूँ।
मैंने उन्हें बताया कि मैं तो अपने कॉलेज के दिनों से जगजीत सिंह की गज़लों का दिवाना हूँ। पता चला कि वह भी गजलों की शौकिन है। बातों से पता चला कि हम दोनों के काफी शौक एक-दूसरे से मिलते है। वह बोली कि लगता है हम दोनों की दोस्ती रंग लायेगी क्योकि शौक काफी हद तक एक जैसे है। मैंने हाँ में सर मिलाया। काफी समय बीत गया था मैंने पुछा की एक कप कॉफी और चलेगी तो उन्होने हाँ कर दी।
मैं कॉफी लेने चला गया। जब कॉफी ले कर आया तो वह कुछ सोच रही थी मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि कुछ खास नही। मैंने पुछा कि कुछ और खाने के लिए लाऊँ? तो वह बोली कि जो आप को अच्छा लगे। यह सुन कर मैं उपमा लेने चला गया, यहाँ का उपमा बढ़िया होता है यह मुझे पता था।
जब दो प्लेट उपमा ले कर लौटा तो वह बोली कि लगता है आप को यहाँ के मीनू के बारे में काफी जानकारी है। मैंने कहा कि जब यह खुला था तब मैं अपने मित्रों के साथ रोज आता था तब से अब तक इस के मीनू में कोई बदलाव नही हुआ है। उपमा खा कर देखिये और बताईये कि मेरी बात कहाँ तक सच है? मेरी बात सुन कर वह बोली कि किसी ने आप को बताया नही कि आप बातों के मास्टर है, सामने वाले के दिन में उतर जाते है। मैंने कहा कि उन के मुँह से पहली बार सुन रहा हूँ आज तक तो किसी ने कहा नही था। इस पर वह बोली कि आप बात को ऐसे कहते है कि सामने वाला मना ही नही कर पाता होगा।
मैंने कहा कि चलिये इसी बात पर उपमा को चैक करिये? मेरी बात सुन कर वह हँस पड़ी और उपमा खाने लगी। मैंने भी उपमा खाना शुरु किया तो मुझे लगा कि स्वाद आज भी अच्छा है। मेरी बात का अनुमोदन उन्होने भी किया और कहा कि मैंने कभी यहाँ को उपमा टैस्ट नहीं किया था आज आपने टैस्ट करा दिया, अच्छा किया काफी दिनों से इसके स्वाद से वंचित थी।
मैंने कहा कि मद्रास होटल का उपमा भी अच्छा होता था लेकिन वह होटल तो बन्द हो गया है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि लगता है सारे सीपी के खाने की जगहों के बारे में आप को पता है, मैंने बताया कि दो साल तक यहाँ पढ़ने के दौरान हम दोस्त सस्ती और बढ़िया खाने की जगह ढुढ़तें रहते थे। तब जेब में कम पैसे होते थे इस लिए यह सब करते थे। घर से खाना ले कर आते थे लेकिन फिर भी रोज यहाँ जरुर आते थे।
मेरी बात सुन कर वह बोली कि लगता है कि
अच्छी यादें है उस वक्त की?
हाँ सब अच्छी यादें ही है।
मैंने उन से पुछा कि आप की यादों का क्या हाल है? तो वह बोली कि यादें कुछ अच्छी है कुछ कड़वी है। मैंने कहा कि जीवन का यही तो स्वाद है। इसी दौरान मेरे ऑफिस से फोन आया कि कुछ समस्या है मैंने उन्हें फोन पर क्या करना है यह समझाया। फिर बाद में उन से माफी मांगी और कहा कि आई टी वालों कि नौकरी 24 घन्टों की होती है तो वह बोली कि मुझे पता नही था कि आज छुट्टी के दिन भी आप काम करते है, मैंने कहा कि इंचार्ज होने के कारण मैं कही भी हूँ चिन्ता करनी पड़ती है।
इस के बाद मैंने कहा कि आज तो मैं ही अपनी सुनाता रहा आप की बारी ही नही आयी तो वह बोली कि मेरी बारी जब आयेगी तो आप के कान पक जायेगें। मैंने कहा कि किस्तों में सुन लेगे। मेरी बात सुन कर उन की हँसी निकल गयी। मैंने घड़ी देखी तो पांच बज रहे थे मैंने उन से कहा कि अब मुझे चलना होगा। शाम को किसी को आना है।
मेरी बात सुन कर वह भी उठ खड़ी हूई और बोली कि समय कैसे बीत गया पता ही नही चला। अगर मैं आप को फोन करुँ तो बुरा तो नही मानेगे? मैंने कहा कि बुरा नही मानुँगा, अगर तीन-चार घन्टियों में फोन नही उठायूँ तो समझ लिजियेगा कि किसी मिटिंग में हूँ मेरा ज्यादातर समय इन्ही में कटता है। वह बोली कि इस का मतलब है कि आप के फोन की आशा ना रखुँ।
मैंने कहा कि मैं तो इस मामले में बहुत खराब हूँ पहले तो रात को अपना फोन बन्द करके सोता था लेकिन एक बार बहुत गड़बड़ हो गयी थी इस लिए फोन तो ऑफ नही करता लेकिन किसी को फोन करने का समय कम ही मिलता है अधिकतर जब रात को कार से घर जा रहा होता हूँ तभी फोन करता हूँ। आप को भी तभी फोन कर पाऊँगा। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि बड़ी साफगोई से आप ने फोन न करने का बता दिया। मैं हँस कर बोला कि दोस्ती में यही तो खासियत होती है कि साफ-साफ कह सकते है।
हम दोनों बाहर आ गये और मैं सामने हनुमान मंदिर की तरफ मुँह करके हाथ जोड़ रहा था तो वह मुझे देखती रही फिर बोली कि आप क्या है? यह पता करना बड़ा कठिन है मैंने पुछा कि एक ही मुलाकात में कैसे पता करेगी? कुछ तो अगली के लिए छोड़ देते है, नही तो मिलने का बहाना कैसे बनेगा। इस पर वह हँसती हूई अपने रास्ते चली गयी।
मैं भी मेट्रो के स्टेशन की तरफ चल दिया। आज का दिन काफी अच्छा बीता था पहली बार में किसी के बारे में कोई धारणा बना लेना कठिन है। देखते है आगे क्या होता है?
मैं फिर से अपने दैनिक रुटिन में डुब गया। फोन करना ध्यान ही नही रहा। काम के ज्यादा बौझ के कारण किसी और बात का ध्यान नही रहता था, सुबह कब होती थी और कब शाम आती थी पता ही नही चलता था।
एक शुक्रवार को माधुरी का फोन आया और मुझ से पुछा कि अगर कल यानि शनिवार को छुट्टी है तो कही घुमने चल सकते है, मैंने कहा कि कल तो छुट्टी है लेकिन घर पर पत्नी से पता करना पड़ेगा कि उसे कही जाना तो नही है। मैं आप को रात को फोन करके बताता हूँ मेरी बात पर वह बोली कि यह भी बताईयेगाँ की कहाँ चलने का विचार है? मैंने कहा कि आप का आईडिया है आप ही कोई जगह खोजिए। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
घर आ कर पत्नी से पुछा कि कल का कोई कार्यक्रम तो नही है तो पता चला कि कोई काम नही है। मैंने माधुरी को फोन किया तो दूसरी तरफ से पुछा कि अच्छी खबर है या बुरी मैंने कहा कि अच्छी ही है, मुझे घर पर कोई काम नही है। आप बताये कोई जगह मिली या नहीं? तो जबाव मिला की आप ही बताँऐ कहाँ चल सकते है,?
मैंने कहा कि कल कुतुब मीनार चलते है उस के आस-पास भी काफी इमारतें है फोटोग्राफी के लिए सही जगह है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि चलिए तय रहा कि कल कुतुब मीनार चल रहे है। बताए कैसे चले अपनी गाड़ी से या मेट्रो से? मैंने कहा कि अपनी गाड़ी से सही रहेगा अगर समय हुआ तो किसी और जगह भी जा पायेगे।
मेरी राय माधुरी को पसन्द आई और वह बोली कि कल में गाड़ी ले कर आती हूँ बताएँ आप को कहाँ से पिक करना है, मैंने कहा कि मुझे आप तिलक नगर से पिक कर लेना समय बता दे? मैं रोड़ पर ही आप का इन्तजार करुँगा। मेरी बात सुन कर दूसरी तरफ से आवाज आई कि जब में घर से निकलुगी तो आप को फोन कर दूँगी।
मैंने कहा कि हो सके तो नौ बजे तक आप घर से निकल ले, तभी मुझे लेकर आप दस बजे तक कुतुब मीनार पहुँच पायेगी। मैंने कहा कि ध्यान रखियेगा कि कैमरे के सारे लेंस वगैरहा साथ लाये और अगर स्टेन्ड़ हो तो उसे भी अवश्य रख लिजियेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि जरुर ध्यान से ले आऊँगी। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
इसके बाद मैंने अपने कैमरे के सैल को चार्ज करने लगा दिया तथा अन्य उपकरणों को भी सहेज कर कैमरे के बैग में रख दिया। स्टेन्ड को अलग से ले कर जाना पड़ता है वह किसी बैग में नही आता। पत्नी बोली कि दिन के खाने के लिए कुछ बना कर साथ रख दूँ तो मैंने कहा कि चार परांठे अचार के साथ रख देना, इतने से ही काम चल जायेगा। यह कह कर मैं सोने चला गया।
सुबह उठ कर नहा धो कर तैयार हुआ ही था कि माधुरी का फोन आया कि वह घर से निकल रही है तथा आधे घन्टे में मेरे पास पहुँच जायेगी। मैंने भी इस के बाद नाश्ता किया और सारा सामान कन्धे पर लाद कर घर से निकल गया। सड़क पर थोड़ी देर ही इन्तजार किया था कि एक कार पास आ कर रुकी देखा तो माधुरी थी उस ने दरवाजा खोला और मुझे बैठने को कहा तो मैंने पीछे की सीट पर अपना सारा सामान रख दिया और खुद आगे की सीट पर बैठ गया।
गाड़ी माधुरी ही ड्राईव कर रही थी, वह गाड़ी सही चला रही थी। उस ने मजाक में पुछा कि मेरे साथ बैठ कर डर तो नही लग रहा है? मैंने पुछा कि डर क्यों लगेगा? इस पर उस ने मजाक में पुछा कि पुरुषों को लगता है कि महिलाऐं अच्छी गाड़ी नही चला सकती। मैंने कहा कि मेरे ऐसे विचार नही हैं। रास्ते भर हम दोनों के मध्य और कोई बात नही हूई।
कुतुब मीनार पहुँचने पर गाड़ी पार्किग में पार्क की और टिकट ले कर मुख्य परिसर में प्रवेश कर गये। सुबह होने के कारण ज्यादा लोग नही थे। हम दोनों पहले घुमते रहे फिर एक जगह पर अपना सामान रख कर कैमरे सैट करने लगे। फोटोग्राफी करनी शुरु कर दी, अलग-अलग कोण से फोटोग्राफी की।
मुझे लगा कि माधुरी की भी कुछ फोटो लेनी चाहिए तो मैंने उस से पुछा कि आप की फोटो लेनी है? इस पर वह बोली कि नेकी और पुछ-पुछ मैं तो कब से सोच रही थी कि मेरी और आप की भी फोटो खिचँनी चाहिए। मैंने कहा कि मैं आप के कैमरे से आप की फोटो खींच देता हूँ आप मेरे कैमरे से मेरी खींच देना।
पहले मैंने उन की विभिन्न मुद्राऔं में फोटों खींची तथा इस के बाद उन्होंने मेरी भी कई फोटों ली। इस के बाद हम मुख्य परिसर के बाहर की तरफ चले गये वहाँ पर भी कई इमारतों के खंड्डर है वहाँ भी काफी फोटों ली। पता चला कि बगल में ही भुली-भटियारी भी है वहाँ भी जा सकते है तो उस तरफ निकल गये। वहाँ भी काफी दृश्य कैमरे में कैद कर लिये थे।
दोपहर हो गयी थी सूरज सिर पर चढ़ आया था, काफी थक भी गये थे, इस लिये मैंने पुछा कि कुछ खाने का इरादा है तो जबाव मिला की पेट में चुहें कुद रहे है। वह बोली कि मैं पुलाव बना कर लाई हूँ, मैंने कहा कि मैं भी पराठें अचार के साथ लाया हूँ इस से काम चल जायेगा। हम दोनों वही छाया में घास पर बैठ गये और अपने लाये हूए खाने को खाने लगे।
पुलाव खाने पर पता चला कि माधुरी खाना भी स्वादिष्ट बनाती है। वह भी पराठे खा कर बोली कि आपकी पत्नी बढ़िया खाना बनाती हैं। मैंने कहा कि पुरानी कहावत है कि आदमी के दिल में जाने का रास्ता मुँह से होकर जाता है। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि मैं तो अभी तक किसी के दिल तक नही पहुँच सकी। मैंने कहा कि आप ने कोशिश ही नही की होगी या शायद सामने वाला अच्छे खाने का कद्रदान नही होगा।
मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर कुछ भाव आये और चले गये। मैंने उन से कहा कि अगर आप को बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूँ, मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप ने कुछ गलत नही कहा, मुझे ही कोई बीती बात याद आ गयी। मैंने उन्हें बताया कि मेरी पत्नी को शादी के समय खाना बनाना नही आता था वह मायके में पढ़ाई ही में व्यस्त रही इस कारण रसोई में जाने का अवसर नही मिला।
शादी के बाद ही उस ने मेरी माँ से सारा खाना बनाना सीखा और अब वह इस में पारगंत हो गयी है। मुझे तो चाय के सिवा कुछ बनाना नही आता। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि तब तो आप किसी के खाने में खराबी निकाल नही सकते होगे? मैंने कहा कि नही, यही काम तो मैं हद से ज्यादा करता हूँ। मेरी पत्नी भी मेरी राय से परेशान रहती है मेरा रसोई घर में घुसना मना है।
पेट भर खाना खाने के बाद हम दोनों कुछ देर तक आराम करते रहे। इस के बाद मैंने माधुरी से पुछा कि आप ने इतनी पढ़ाई की है इस के बावजुद इतना बढ़िया खाना बनाना कहाँ से और कब सीखा? मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं बचपन से मां और दादी के साथ किचन में खड़ी रहती थी फिर बड़ी होने पर दादी ने खाना बनाना सिखाया। बाद में माँ ने उसे तराशा। लेकिन आज पहली बार किसी ने मेरे खाने की तारीफ करी है। मैंने कहा कि मैं खाना बनाना तो नही जानता लेकिन अच्छे खाने की तारीफ करना मुझे आता है। मुझे लगा कि कोई दर्द माधुरी के अन्दर है जो बाहर नही आ पाता हैं।
सूरज अब पश्चिम की तरफ चला गया था। प्रकाश के दिशा परिवर्तन के कारण नये फोटो खींचने का मन करा तो हम दोनों फिर से फोटोग्राफी में लग गये। चार बजे लगा कि अब चलना चाहिए तो हम ने अपना सामान समेट लिया और परिसर से बाहर आ गये। गाड़ी में बैठ कर जब निकले तो माधुरी बोली कि क्या यह संभव है कि वह रोज मुझ से बात कर सके। मैंने कहा कि आप को मना कब करा है? आप कभी भी फोन कर सकती है बंदा खाली होगा तो गप्प मार लेगा।
मेरी यह बात सुन कर वह हँसी और बोली कि आप से बात करके मन का दुख कम हो जाता है। मैंने कहा कि मुझे लगा तो था कि कोई गम है जो बार बार आप के होंठों पर आता तो है लेकिन आप बोल नही पाती। दूसरी मुलाकात में ज्यादा निकटता सही नही है यही जान कर पुछना उचित नही समझा। वह चुप रही फिर बोली कि जब कभी लगेगा तो आप को सब बताऊँगी। मैंने कहा कि मैं पुछ कर आप को कष्ट नही दूगाँ। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप की यही बात तो सबसे बढ़िया लगती है। इस के बाद काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा।
मैंने उसे तोड़ते हूए पुछा कि हम ने काफी फोटोग्राफ्स खींचीं है इन को देखने में काफी समय लगेगा। देखते है अब कब समय मिलता है? इस पर माधुरी ने जबाव दिया कि मैं तो कल बैठ कर कुछ काम करुँगी। मैंने कहा कि मैं तो कल आराम करना चाहूँगा, पुरा हफ्ता बहुत थकान भरा था। वह मुझे मेरे रास्ते पर उतार कर अपने घर चली गयी। देर शाम को मैंने फोन कर के पुछा कि आराम से पहुँच गयी थी तो वह बोली कि मैं तो आ कर लेट गयी थी, थकान के कारण आँख लग गयी थी आप के फोन से नींद खुली है।
मैंने कहा कि यह तो मैंने बहुत बुरा किया कि आप को नींद से जगा दिया। वह बोली कि नींद से जगा देना तो बढ़िया काम है। आप बताये क्या कर रहे है? मैंने कहा कि बैठ कर टीवी देख रहा हूँ। इस के बाद खाना खा कर सोने चला जाऊँगा। मेरी बात पर वह बोली कि मैं भी उठ कर कुछ करती हूँ शायद कोई फिल्म ही देख लुँ या कुछ लिख लेती हूँ। मैंने गुड नाईट कहा और फोन काट दिया।
मैं तो रविवार को व्यस्त रहा, ना तो माधुरी को फोन किया ना ही उस का फोन आया। सोमवार से जो काम शुरु हुआ तो सारा हफ्ता इसी में बीत गया हम दोनों ने एक-दूसरे को फोन नही किया। अगले हफ्ते भी वही मारा-मारी थी लेकिन शुक्रवार को जब शाम को घर जा रहा था तो माधुरी को फोन किया, उन्होंने दूसरी घन्टी पर ही फोन उठा लिया। मैंने हेलो कहा तो दूसरी तरफ से दबी सी आवाज आई कि कैसे है आप? मैंने कहा कि यह तो आप की आवाज सुनने के बाद मुझे पुछना चाहिये? इस पर दूसरी ओर से हँसी के साथ जबाव मिला कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे।
मैंने कहा कि मुझ में कोई ऐसी खासियत नही है जो कोई कुछ सीखे तो वह बोली कि मैं यह नही मानती, मैंने पुछा कि बताईये आप की तबीयत कैसी है? तो जबाव मिला कि आप को कैसी लग रही है? मैंने कहा कि प्रश्न के उत्तर के बदले प्रश्न करने का मतलब है कि आप जबाव नही देना चाहती तो वह बोली कि यह तो हम दोनों में लड़ाई होने लगी है। मैंने कहा कि लड़ाई थोड़ी ना कर रहा हूँ केवल कुछ पुछ रहा था लेकिन आप जबाव नही देना चाहती तो मैं नही पुछुँगा। इस पर माधुरी ने कहा कि लगता है आप नाराज हो गये हैं।
मैंने कहा कि हम कुछ होने का दावा नही करते, इस लिए कुछ पुछने के हकदार भी नही है। कुछ देर तक कोई जबाव नही मिला। इस दौरान नेटवर्क खराब होने के कारण फोन कट गया।
मैं जिस रास्ते में था वहाँ नेटवर्क नही मिलता था। थोड़ी देर बाद जब नेटवर्क आया तो फोन की घन्टी बजी देखा तो माधुरी का फोन था, उठाया तो उन्होंने कहा कि कहाँ गायब हो गये थे कि फोन ही नही मिल रहा था मुझे बड़ी चिन्ता होने लगी। मैंने कहा कि जिस जगह था वहाँ नेटवर्क मिलता नही है। इस के बाद वह बोली कि नाराज तो नही है? मैंने कहा कि नाराज होने जैसी अमीरी हमारे पास नही है। पुरे हफ्ते घर से ऑफिस, ऑफिस से घर बस यही रुटिन था, इस लिए फोन नही कर सका, हम आईटी वालों का जीवन बड़ा बेकार है जब दुनिया छुट्टी मनाती है तब हम काम करते है यही वजह थी कि पिछले पन्दह दिनों से बिजी था।
आज ही साँस लेने की फुरसत मिली तो आप को फोन कर लिया।
माधुरी बोली कि अगर कल मेरे घर आ जाये तो मिल कर खिंचीं हुई फोटोग्राफ्स को देख कर कुछ करते है। मैंने कहा कि इस बारे में तो घर जा कर ही बता सकुँगा, मेरे जबाव पर वह बोली कि हाई कमान से अनुमति लेनी होगी, मैंने भी हँस कर कहा कि ऑफिस में बॉस की चलती है और घर में बीवी की, हम तो हुक्म के ताबेदार है। मेरी यह बात सुन कर वह हँसने लगी और बोली कि आप मर्दो ने औरतों को बेवकुफ बनाने के लिए बड़ा मजेदार तरीका खोज रखा है। मैंने कहा कि मेरे फोन पर कोई फोन आ रहा है आप को घर जा कर फोन करता हूँ। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
घर से बीवी का फोन था कि अभी तक घर क्यों नही आये? मैंने कहा कि रास्ते में हूँ इस पर वह बोली कि रास्ते से कुछ खाने के लिए लेते आना। मैंने रास्ते में छोले भटूरे की दूकान पर कार रोकी और उस से तीन प्लेट छोले भटूरे पैक करने को कहा और उन्हें ले कर घर चल दिया। घर पहुँच कर देखा तो कोई खास बात नही थी बीवी का मन कुछ बाहर का खाने को कर रहा था। इस लिए ऐसा कहा था। मैंने उस से पुछा कि कल कोई काम तो नही है तो ना में उत्तर मिला तो मैंने बताया कि मैं कल कही जा रहा हूँ शाम को लेट आयूँगा।
बीवी ने कुछ पुछा नही। मैंने खाना खा कर माधुरी को फोन किया तो पुछा कि कल किस समय आना है तो वह बोली कि नाश्ता मेरे साथ ही कर लेना। मैंने कहा कि जल्दी नही है? तो वह बोली कि जब आप आयेगे तब ही नाश्ता साथ में करेगें। मैंने कहा कि मैं दस बजे तक पहुँच जाऊँगा लेकिन पता तो भेज दो। इस पर वह बोली कि मेट्रो से ही आना आसान रहेगा। मैंने कहा कि ऐसा ही करुँगा।
इस कहानी की शुरुआत दिल्ली मेट्रो में हुई थी। मैं अकेला राजीव चौक से मेट्रों में बैठा। इस समय मेट्रो में अधिक भीड़ नही थी, मेरे साथ एक महिला बैठी थी सो मैं उन से थोड़ा हट कर बैठ गया। पुस्तक मेले से लौट रहा था सो किताबें भी साथ थी। समय काटने के लिए मैंने एक किताब निकाल कर उस के पन्नें पलटनें शुरु कर दियें। मेरे साथ बैठी महिला भी शायद पढ़ने की शौकिन थी, इस लिए वह भी मेरी किताब पर नजरें गढ़ाये हुऐ थी।
मैंने हाथ में पकड़ी किताब को बैग में रखा और दूसरी पुस्तक निकाल कर उसे पढ़ने लगा। तब तक शायद पड़ोस वाली महिला को पता चल गया था कि मैं पुस्तक प्रेमी हूँ, उन्होंने बात शुरु करने के लिए पुछा की इस बार पुस्तक मेला कैसा लगा है? मैंने कहा कि काफी अच्छा लगा है काफी बड़े क्षेत्र में लगा है तथा पुस्तकों की विषय वस्तु भी अच्छी है तो उन्होनें पुछा ही लिया कि क्या आप पढ़ाते है?
मैंने उन्हें बताया कि, नही मैं तो एक कंप्यूटर इंजिनियर हूँ। इस पर उन्होंने आश्चर्य जताते हुऐ कहा कि आप लोग कब से साहित्य के प्रेमी हो गये? तकनीक और साहित्य का तो दूर-दूर तक साथ नही बनता है। मैंने हँस कर कहा कि नहीं ऐसा नही है मैं तो बचपन से किताबें पढ़ने का शौकिन रहा हूँ लेकिन उस समय किताबें खरीदनें के लिए पैसें नही होते थे।
आज पैसे है लेकिन समय नही है। लेकिन शौक पुरा करने के लिए जब भी पुस्तक मेला लगता है तो पुस्तकें खरीदने पहुँच जाता हूँ यही सोच कर कि कभी तो इन को पढ़ने के लिए समय मिलेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप पहले व्यक्ति मिले है जो टेकनिकल व्यक्ति हो कर भी साहित्य में रुचि रखते है। मैंने कहा कि एक समय तो मैं हिन्दी में रिसर्च करने जा रहा था। अगर ऐसा हुआ होता तो आज किसी कॉलेज में पढ़ा रहा होता। पढ़ाया तो मैंने है लेकिन कंप्यूटर इंश्टियूट में।
इस तरह से हम दोनों की बातचीत शुरु हुई। उन्होंने मेरा फोन नम्बर माँगा और कहा कि कंप्यूटर में अगर किसी सहायता की आवश्यकता पड़ी तो आप को कष्ट दूँगी। मैंने उनको अपना नम्बर दे दिया। फिर मैंने पुछा कि मेरा परिचय तो हो गया अब आप भी अपना परिचय दे तो वह बोली कि मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढाती हूँ। वह हिन्दी की प्रोफेसर थी।
उन्होनें अपने फोन से मेरा नंबर डायल किया तो उन का नंबर भी मेरे पास आ गया। मेरा स्टेशन आ रहा था सो मैं उन्हें नमस्कार करके सीट से उठ गया। ट्रेन से उतरने के बाद याद आया कि उन का नाम पुछना तो भुल ही गया, वह भी मेरा नाम नही जानती थी। लेकिन मैंने अपने फोन में उनका नंबर डीयू लिख कर सेव कर लिया। घर आ कर मैं इस घटना को भूल गया। काफी दिनों बाद एक रविवार को मेरे फोन की घन्टी बजी, जब फोन उठाया तो देखा कि डीयू लिखा आ रहा था, तब जा कर उस घटना का स्मरण हुआ।
दूसरी तरफ से आ रही आवाज पहचान में आ गयी। वह बोली कि उस दिन आप का नाम पुछना भुल गयी थी, इस लिए इतने दिनों तक आप को फोन करना चाहते हुऐ भी फोन नही किया कि क्या नाम लेकर संबोधित करुँगी? लेकिन आज उस संकोच को छोड़ कर फोन कर ही लिया। मुझे पहचान तो रहे है आप? मैंने कहा कि हाँ पहचान रहा हूँ आप मुझे मेट्रो में मिली थी। मेरी बात सुन कर उन्होने एक गहरी साँस ली और कहा कि थैक्स गॉड आप को सब याद है, मुझे तो लगा था कि आप ने भी फोन नही किया तो हो सकता है कि शायद आप मुझे भुल गये होगे?
मैंने कहा कि मैं आसानी से किसी को याद नही रखता लेकिन जिसे याद रखता हूँ उसे भुलता नही हूँ। मेरी खराबी है। मेरी इस बात पर दूसरी तरफ से हँसी सुनाई दी। वह बोली कि दिलचस्प आदमी है आप, आप के साथ दोस्ती बढ़िया रहेगी। मैंने पुछा कि बताऐं कैसे याद किया? इस पर वह बोली कि अगर आज खाली है तो सीपी के कॉफी हाऊस में मिल सकते है? मैंने कहा कि हाँ मिल सकते है बताऐं कब मिलना है? तो वह बोली की दो बजे मिलते है। मैंने कहा दो बजे सीपी, और फोन रख दिया।
मुझे आज कोई काम नही था सो पत्नी को बता कर एक बजे सीपी के लिए निकल गया। मेट्रो पकड़ी और 35 मिनट में सीपी पहुँच गया। स्टेशन से पैदल ही कॉफी हाऊस की तरफ चल दिया। दो बजने से दस मिनट पहले मैं कॉफी हॉऊस में था। एक खाली सीट देख कर उस की तरफ लपका तो मेरी नजर दूसरी सीट पर बैठी उन महिला पर पड़ी वह पहले से ही सीट घेर कर बैठी थी। मैं उन के पास पहुँचा तो वह उठ कर खड़ी हो गयी और बोली कि मेरा नाम माधुरी है तथा आपका? मैंने कहा कि मुझे महेश कहते है, हम दोनों हँसते हुए सीटों पर बैठ गयें।
वह बोली कि कमाल का परिचय करने का तरीका है। मैंने कहा कि हाँ यह भी एक अन्दाज है। हम दोनों आराम से बैठ गये तो मैंने पुछा कि आप को मेरा इन्तजार तो नही करना पड़ा? इस पर वह बोली कि लगता है कि आप समय के बड़े पाबन्द है। मैंने कहा कि सैनिक परिवार से हूँ तथा अमेरिकन लोगों से साथ लम्बे समय से काम कर रहा हूँ इस लिए समय की पाबन्दी आदत बन गयी है। वह बोली की हम भारतीय तो समय की परवाह ही नही करते। मैंने हाँ में सर हिलाया।
मैंने उन से पुछा कि वह क्या लेगी? तो वह बोली कि आज मैं मेजबान हूँ इस लिए आप बताऐं क्या लेगे? मैंने कहा कि मैं तो यहाँ तब से आता हूँ जब से यह कॉफी हॉऊस खुला है। कॉफी और वड़ा चलेगा। यह सुन कर वह सामान लेने चली गयी। मैं पीछे से उन्हें देख कर सोचने लगा कि फिगर देख कर तो इन की उम्र का अन्दाजा लगाना मुश्किल काम है।
थोड़ी देर में वह कॉफी और साम्बर वड़ा ले कर आ गयी। दोनों कॉफी का मजा लेने लगे और बातचीत शुरु हो गयी।
मैंने पुछा कि पढ़ाई के साथ-साथ आप को और किस बात का शौक है? तो पता चला कि उन्हें भी फोटोग्राफी का शौक है लेकिन उसे पुरा करने का समय नही मिल पाता है तो मैंने हँस का कहा कि मेरा भी ऐसा ही हाल है मुझे बचपन से फोटोग्राफी का शौक है लेकिन अच्छा केमरा होने के बावजूद समय नही होने के कारण उस का इस्तेमाल नही हो पा रहा है। इस पर वह बोली कि हम दोनों छुट्टी के दिन कही चलने का कार्यक्रम बनाते है । मैंने कहा कि विचार तो अच्छा है किसी दिन समय निकाल कर चलते है शायद कुछ अच्छा हो जाये।
बात आगे बढ़ी तो पता चला कि वह अकेली ही रहती है माता-पिता दूसरें शहर में रहते है। मैंने बताया कि मैं तो इसी शहर में पैदा हुआ हूँ और पढ़ाई भी दिल्ली विश्वविद्यालय में ही हुई है। कंप्यूटर कोर्स करने के बाद पढ़ाने लगा, पढ़ाने से बोर होने के बाद कंप्यूटर हार्डवेयर का काम किया काफी साल तक। अब कई सालों से एक कंपनी में काम करता हूँ।
मैंने उन्हें बताया कि मैं तो अपने कॉलेज के दिनों से जगजीत सिंह की गज़लों का दिवाना हूँ। पता चला कि वह भी गजलों की शौकिन है। बातों से पता चला कि हम दोनों के काफी शौक एक-दूसरे से मिलते है। वह बोली कि लगता है हम दोनों की दोस्ती रंग लायेगी क्योकि शौक काफी हद तक एक जैसे है। मैंने हाँ में सर मिलाया। काफी समय बीत गया था मैंने पुछा की एक कप कॉफी और चलेगी तो उन्होने हाँ कर दी।
मैं कॉफी लेने चला गया। जब कॉफी ले कर आया तो वह कुछ सोच रही थी मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि कुछ खास नही। मैंने पुछा कि कुछ और खाने के लिए लाऊँ? तो वह बोली कि जो आप को अच्छा लगे। यह सुन कर मैं उपमा लेने चला गया, यहाँ का उपमा बढ़िया होता है यह मुझे पता था।
जब दो प्लेट उपमा ले कर लौटा तो वह बोली कि लगता है आप को यहाँ के मीनू के बारे में काफी जानकारी है। मैंने कहा कि जब यह खुला था तब मैं अपने मित्रों के साथ रोज आता था तब से अब तक इस के मीनू में कोई बदलाव नही हुआ है। उपमा खा कर देखिये और बताईये कि मेरी बात कहाँ तक सच है? मेरी बात सुन कर वह बोली कि किसी ने आप को बताया नही कि आप बातों के मास्टर है, सामने वाले के दिन में उतर जाते है। मैंने कहा कि उन के मुँह से पहली बार सुन रहा हूँ आज तक तो किसी ने कहा नही था। इस पर वह बोली कि आप बात को ऐसे कहते है कि सामने वाला मना ही नही कर पाता होगा।
मैंने कहा कि चलिये इसी बात पर उपमा को चैक करिये? मेरी बात सुन कर वह हँस पड़ी और उपमा खाने लगी। मैंने भी उपमा खाना शुरु किया तो मुझे लगा कि स्वाद आज भी अच्छा है। मेरी बात का अनुमोदन उन्होने भी किया और कहा कि मैंने कभी यहाँ को उपमा टैस्ट नहीं किया था आज आपने टैस्ट करा दिया, अच्छा किया काफी दिनों से इसके स्वाद से वंचित थी।
मैंने कहा कि मद्रास होटल का उपमा भी अच्छा होता था लेकिन वह होटल तो बन्द हो गया है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि लगता है सारे सीपी के खाने की जगहों के बारे में आप को पता है, मैंने बताया कि दो साल तक यहाँ पढ़ने के दौरान हम दोस्त सस्ती और बढ़िया खाने की जगह ढुढ़तें रहते थे। तब जेब में कम पैसे होते थे इस लिए यह सब करते थे। घर से खाना ले कर आते थे लेकिन फिर भी रोज यहाँ जरुर आते थे।
मेरी बात सुन कर वह बोली कि लगता है कि
अच्छी यादें है उस वक्त की?
हाँ सब अच्छी यादें ही है।
मैंने उन से पुछा कि आप की यादों का क्या हाल है? तो वह बोली कि यादें कुछ अच्छी है कुछ कड़वी है। मैंने कहा कि जीवन का यही तो स्वाद है। इसी दौरान मेरे ऑफिस से फोन आया कि कुछ समस्या है मैंने उन्हें फोन पर क्या करना है यह समझाया। फिर बाद में उन से माफी मांगी और कहा कि आई टी वालों कि नौकरी 24 घन्टों की होती है तो वह बोली कि मुझे पता नही था कि आज छुट्टी के दिन भी आप काम करते है, मैंने कहा कि इंचार्ज होने के कारण मैं कही भी हूँ चिन्ता करनी पड़ती है।
इस के बाद मैंने कहा कि आज तो मैं ही अपनी सुनाता रहा आप की बारी ही नही आयी तो वह बोली कि मेरी बारी जब आयेगी तो आप के कान पक जायेगें। मैंने कहा कि किस्तों में सुन लेगे। मेरी बात सुन कर उन की हँसी निकल गयी। मैंने घड़ी देखी तो पांच बज रहे थे मैंने उन से कहा कि अब मुझे चलना होगा। शाम को किसी को आना है।
मेरी बात सुन कर वह भी उठ खड़ी हूई और बोली कि समय कैसे बीत गया पता ही नही चला। अगर मैं आप को फोन करुँ तो बुरा तो नही मानेगे? मैंने कहा कि बुरा नही मानुँगा, अगर तीन-चार घन्टियों में फोन नही उठायूँ तो समझ लिजियेगा कि किसी मिटिंग में हूँ मेरा ज्यादातर समय इन्ही में कटता है। वह बोली कि इस का मतलब है कि आप के फोन की आशा ना रखुँ।
मैंने कहा कि मैं तो इस मामले में बहुत खराब हूँ पहले तो रात को अपना फोन बन्द करके सोता था लेकिन एक बार बहुत गड़बड़ हो गयी थी इस लिए फोन तो ऑफ नही करता लेकिन किसी को फोन करने का समय कम ही मिलता है अधिकतर जब रात को कार से घर जा रहा होता हूँ तभी फोन करता हूँ। आप को भी तभी फोन कर पाऊँगा। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि बड़ी साफगोई से आप ने फोन न करने का बता दिया। मैं हँस कर बोला कि दोस्ती में यही तो खासियत होती है कि साफ-साफ कह सकते है।
हम दोनों बाहर आ गये और मैं सामने हनुमान मंदिर की तरफ मुँह करके हाथ जोड़ रहा था तो वह मुझे देखती रही फिर बोली कि आप क्या है? यह पता करना बड़ा कठिन है मैंने पुछा कि एक ही मुलाकात में कैसे पता करेगी? कुछ तो अगली के लिए छोड़ देते है, नही तो मिलने का बहाना कैसे बनेगा। इस पर वह हँसती हूई अपने रास्ते चली गयी।
मैं भी मेट्रो के स्टेशन की तरफ चल दिया। आज का दिन काफी अच्छा बीता था पहली बार में किसी के बारे में कोई धारणा बना लेना कठिन है। देखते है आगे क्या होता है?
मैं फिर से अपने दैनिक रुटिन में डुब गया। फोन करना ध्यान ही नही रहा। काम के ज्यादा बौझ के कारण किसी और बात का ध्यान नही रहता था, सुबह कब होती थी और कब शाम आती थी पता ही नही चलता था।
एक शुक्रवार को माधुरी का फोन आया और मुझ से पुछा कि अगर कल यानि शनिवार को छुट्टी है तो कही घुमने चल सकते है, मैंने कहा कि कल तो छुट्टी है लेकिन घर पर पत्नी से पता करना पड़ेगा कि उसे कही जाना तो नही है। मैं आप को रात को फोन करके बताता हूँ मेरी बात पर वह बोली कि यह भी बताईयेगाँ की कहाँ चलने का विचार है? मैंने कहा कि आप का आईडिया है आप ही कोई जगह खोजिए। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
घर आ कर पत्नी से पुछा कि कल का कोई कार्यक्रम तो नही है तो पता चला कि कोई काम नही है। मैंने माधुरी को फोन किया तो दूसरी तरफ से पुछा कि अच्छी खबर है या बुरी मैंने कहा कि अच्छी ही है, मुझे घर पर कोई काम नही है। आप बताये कोई जगह मिली या नहीं? तो जबाव मिला की आप ही बताँऐ कहाँ चल सकते है,?
मैंने कहा कि कल कुतुब मीनार चलते है उस के आस-पास भी काफी इमारतें है फोटोग्राफी के लिए सही जगह है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि चलिए तय रहा कि कल कुतुब मीनार चल रहे है। बताए कैसे चले अपनी गाड़ी से या मेट्रो से? मैंने कहा कि अपनी गाड़ी से सही रहेगा अगर समय हुआ तो किसी और जगह भी जा पायेगे।
मेरी राय माधुरी को पसन्द आई और वह बोली कि कल में गाड़ी ले कर आती हूँ बताएँ आप को कहाँ से पिक करना है, मैंने कहा कि मुझे आप तिलक नगर से पिक कर लेना समय बता दे? मैं रोड़ पर ही आप का इन्तजार करुँगा। मेरी बात सुन कर दूसरी तरफ से आवाज आई कि जब में घर से निकलुगी तो आप को फोन कर दूँगी।
मैंने कहा कि हो सके तो नौ बजे तक आप घर से निकल ले, तभी मुझे लेकर आप दस बजे तक कुतुब मीनार पहुँच पायेगी। मैंने कहा कि ध्यान रखियेगा कि कैमरे के सारे लेंस वगैरहा साथ लाये और अगर स्टेन्ड़ हो तो उसे भी अवश्य रख लिजियेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि जरुर ध्यान से ले आऊँगी। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
इसके बाद मैंने अपने कैमरे के सैल को चार्ज करने लगा दिया तथा अन्य उपकरणों को भी सहेज कर कैमरे के बैग में रख दिया। स्टेन्ड को अलग से ले कर जाना पड़ता है वह किसी बैग में नही आता। पत्नी बोली कि दिन के खाने के लिए कुछ बना कर साथ रख दूँ तो मैंने कहा कि चार परांठे अचार के साथ रख देना, इतने से ही काम चल जायेगा। यह कह कर मैं सोने चला गया।
सुबह उठ कर नहा धो कर तैयार हुआ ही था कि माधुरी का फोन आया कि वह घर से निकल रही है तथा आधे घन्टे में मेरे पास पहुँच जायेगी। मैंने भी इस के बाद नाश्ता किया और सारा सामान कन्धे पर लाद कर घर से निकल गया। सड़क पर थोड़ी देर ही इन्तजार किया था कि एक कार पास आ कर रुकी देखा तो माधुरी थी उस ने दरवाजा खोला और मुझे बैठने को कहा तो मैंने पीछे की सीट पर अपना सारा सामान रख दिया और खुद आगे की सीट पर बैठ गया।
गाड़ी माधुरी ही ड्राईव कर रही थी, वह गाड़ी सही चला रही थी। उस ने मजाक में पुछा कि मेरे साथ बैठ कर डर तो नही लग रहा है? मैंने पुछा कि डर क्यों लगेगा? इस पर उस ने मजाक में पुछा कि पुरुषों को लगता है कि महिलाऐं अच्छी गाड़ी नही चला सकती। मैंने कहा कि मेरे ऐसे विचार नही हैं। रास्ते भर हम दोनों के मध्य और कोई बात नही हूई।
कुतुब मीनार पहुँचने पर गाड़ी पार्किग में पार्क की और टिकट ले कर मुख्य परिसर में प्रवेश कर गये। सुबह होने के कारण ज्यादा लोग नही थे। हम दोनों पहले घुमते रहे फिर एक जगह पर अपना सामान रख कर कैमरे सैट करने लगे। फोटोग्राफी करनी शुरु कर दी, अलग-अलग कोण से फोटोग्राफी की।
मुझे लगा कि माधुरी की भी कुछ फोटो लेनी चाहिए तो मैंने उस से पुछा कि आप की फोटो लेनी है? इस पर वह बोली कि नेकी और पुछ-पुछ मैं तो कब से सोच रही थी कि मेरी और आप की भी फोटो खिचँनी चाहिए। मैंने कहा कि मैं आप के कैमरे से आप की फोटो खींच देता हूँ आप मेरे कैमरे से मेरी खींच देना।
पहले मैंने उन की विभिन्न मुद्राऔं में फोटों खींची तथा इस के बाद उन्होंने मेरी भी कई फोटों ली। इस के बाद हम मुख्य परिसर के बाहर की तरफ चले गये वहाँ पर भी कई इमारतों के खंड्डर है वहाँ भी काफी फोटों ली। पता चला कि बगल में ही भुली-भटियारी भी है वहाँ भी जा सकते है तो उस तरफ निकल गये। वहाँ भी काफी दृश्य कैमरे में कैद कर लिये थे।
दोपहर हो गयी थी सूरज सिर पर चढ़ आया था, काफी थक भी गये थे, इस लिये मैंने पुछा कि कुछ खाने का इरादा है तो जबाव मिला की पेट में चुहें कुद रहे है। वह बोली कि मैं पुलाव बना कर लाई हूँ, मैंने कहा कि मैं भी पराठें अचार के साथ लाया हूँ इस से काम चल जायेगा। हम दोनों वही छाया में घास पर बैठ गये और अपने लाये हूए खाने को खाने लगे।
पुलाव खाने पर पता चला कि माधुरी खाना भी स्वादिष्ट बनाती है। वह भी पराठे खा कर बोली कि आपकी पत्नी बढ़िया खाना बनाती हैं। मैंने कहा कि पुरानी कहावत है कि आदमी के दिल में जाने का रास्ता मुँह से होकर जाता है। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि मैं तो अभी तक किसी के दिल तक नही पहुँच सकी। मैंने कहा कि आप ने कोशिश ही नही की होगी या शायद सामने वाला अच्छे खाने का कद्रदान नही होगा।
मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर कुछ भाव आये और चले गये। मैंने उन से कहा कि अगर आप को बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूँ, मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप ने कुछ गलत नही कहा, मुझे ही कोई बीती बात याद आ गयी। मैंने उन्हें बताया कि मेरी पत्नी को शादी के समय खाना बनाना नही आता था वह मायके में पढ़ाई ही में व्यस्त रही इस कारण रसोई में जाने का अवसर नही मिला।
शादी के बाद ही उस ने मेरी माँ से सारा खाना बनाना सीखा और अब वह इस में पारगंत हो गयी है। मुझे तो चाय के सिवा कुछ बनाना नही आता। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि तब तो आप किसी के खाने में खराबी निकाल नही सकते होगे? मैंने कहा कि नही, यही काम तो मैं हद से ज्यादा करता हूँ। मेरी पत्नी भी मेरी राय से परेशान रहती है मेरा रसोई घर में घुसना मना है।
पेट भर खाना खाने के बाद हम दोनों कुछ देर तक आराम करते रहे। इस के बाद मैंने माधुरी से पुछा कि आप ने इतनी पढ़ाई की है इस के बावजुद इतना बढ़िया खाना बनाना कहाँ से और कब सीखा? मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं बचपन से मां और दादी के साथ किचन में खड़ी रहती थी फिर बड़ी होने पर दादी ने खाना बनाना सिखाया। बाद में माँ ने उसे तराशा। लेकिन आज पहली बार किसी ने मेरे खाने की तारीफ करी है। मैंने कहा कि मैं खाना बनाना तो नही जानता लेकिन अच्छे खाने की तारीफ करना मुझे आता है। मुझे लगा कि कोई दर्द माधुरी के अन्दर है जो बाहर नही आ पाता हैं।
सूरज अब पश्चिम की तरफ चला गया था। प्रकाश के दिशा परिवर्तन के कारण नये फोटो खींचने का मन करा तो हम दोनों फिर से फोटोग्राफी में लग गये। चार बजे लगा कि अब चलना चाहिए तो हम ने अपना सामान समेट लिया और परिसर से बाहर आ गये। गाड़ी में बैठ कर जब निकले तो माधुरी बोली कि क्या यह संभव है कि वह रोज मुझ से बात कर सके। मैंने कहा कि आप को मना कब करा है? आप कभी भी फोन कर सकती है बंदा खाली होगा तो गप्प मार लेगा।
मेरी यह बात सुन कर वह हँसी और बोली कि आप से बात करके मन का दुख कम हो जाता है। मैंने कहा कि मुझे लगा तो था कि कोई गम है जो बार बार आप के होंठों पर आता तो है लेकिन आप बोल नही पाती। दूसरी मुलाकात में ज्यादा निकटता सही नही है यही जान कर पुछना उचित नही समझा। वह चुप रही फिर बोली कि जब कभी लगेगा तो आप को सब बताऊँगी। मैंने कहा कि मैं पुछ कर आप को कष्ट नही दूगाँ। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप की यही बात तो सबसे बढ़िया लगती है। इस के बाद काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा।
मैंने उसे तोड़ते हूए पुछा कि हम ने काफी फोटोग्राफ्स खींचीं है इन को देखने में काफी समय लगेगा। देखते है अब कब समय मिलता है? इस पर माधुरी ने जबाव दिया कि मैं तो कल बैठ कर कुछ काम करुँगी। मैंने कहा कि मैं तो कल आराम करना चाहूँगा, पुरा हफ्ता बहुत थकान भरा था। वह मुझे मेरे रास्ते पर उतार कर अपने घर चली गयी। देर शाम को मैंने फोन कर के पुछा कि आराम से पहुँच गयी थी तो वह बोली कि मैं तो आ कर लेट गयी थी, थकान के कारण आँख लग गयी थी आप के फोन से नींद खुली है।
मैंने कहा कि यह तो मैंने बहुत बुरा किया कि आप को नींद से जगा दिया। वह बोली कि नींद से जगा देना तो बढ़िया काम है। आप बताये क्या कर रहे है? मैंने कहा कि बैठ कर टीवी देख रहा हूँ। इस के बाद खाना खा कर सोने चला जाऊँगा। मेरी बात पर वह बोली कि मैं भी उठ कर कुछ करती हूँ शायद कोई फिल्म ही देख लुँ या कुछ लिख लेती हूँ। मैंने गुड नाईट कहा और फोन काट दिया।
मैं तो रविवार को व्यस्त रहा, ना तो माधुरी को फोन किया ना ही उस का फोन आया। सोमवार से जो काम शुरु हुआ तो सारा हफ्ता इसी में बीत गया हम दोनों ने एक-दूसरे को फोन नही किया। अगले हफ्ते भी वही मारा-मारी थी लेकिन शुक्रवार को जब शाम को घर जा रहा था तो माधुरी को फोन किया, उन्होंने दूसरी घन्टी पर ही फोन उठा लिया। मैंने हेलो कहा तो दूसरी तरफ से दबी सी आवाज आई कि कैसे है आप? मैंने कहा कि यह तो आप की आवाज सुनने के बाद मुझे पुछना चाहिये? इस पर दूसरी ओर से हँसी के साथ जबाव मिला कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे।
मैंने कहा कि मुझ में कोई ऐसी खासियत नही है जो कोई कुछ सीखे तो वह बोली कि मैं यह नही मानती, मैंने पुछा कि बताईये आप की तबीयत कैसी है? तो जबाव मिला कि आप को कैसी लग रही है? मैंने कहा कि प्रश्न के उत्तर के बदले प्रश्न करने का मतलब है कि आप जबाव नही देना चाहती तो वह बोली कि यह तो हम दोनों में लड़ाई होने लगी है। मैंने कहा कि लड़ाई थोड़ी ना कर रहा हूँ केवल कुछ पुछ रहा था लेकिन आप जबाव नही देना चाहती तो मैं नही पुछुँगा। इस पर माधुरी ने कहा कि लगता है आप नाराज हो गये हैं।
मैंने कहा कि हम कुछ होने का दावा नही करते, इस लिए कुछ पुछने के हकदार भी नही है। कुछ देर तक कोई जबाव नही मिला। इस दौरान नेटवर्क खराब होने के कारण फोन कट गया।
मैं जिस रास्ते में था वहाँ नेटवर्क नही मिलता था। थोड़ी देर बाद जब नेटवर्क आया तो फोन की घन्टी बजी देखा तो माधुरी का फोन था, उठाया तो उन्होंने कहा कि कहाँ गायब हो गये थे कि फोन ही नही मिल रहा था मुझे बड़ी चिन्ता होने लगी। मैंने कहा कि जिस जगह था वहाँ नेटवर्क मिलता नही है। इस के बाद वह बोली कि नाराज तो नही है? मैंने कहा कि नाराज होने जैसी अमीरी हमारे पास नही है। पुरे हफ्ते घर से ऑफिस, ऑफिस से घर बस यही रुटिन था, इस लिए फोन नही कर सका, हम आईटी वालों का जीवन बड़ा बेकार है जब दुनिया छुट्टी मनाती है तब हम काम करते है यही वजह थी कि पिछले पन्दह दिनों से बिजी था।
आज ही साँस लेने की फुरसत मिली तो आप को फोन कर लिया।
माधुरी बोली कि अगर कल मेरे घर आ जाये तो मिल कर खिंचीं हुई फोटोग्राफ्स को देख कर कुछ करते है। मैंने कहा कि इस बारे में तो घर जा कर ही बता सकुँगा, मेरे जबाव पर वह बोली कि हाई कमान से अनुमति लेनी होगी, मैंने भी हँस कर कहा कि ऑफिस में बॉस की चलती है और घर में बीवी की, हम तो हुक्म के ताबेदार है। मेरी यह बात सुन कर वह हँसने लगी और बोली कि आप मर्दो ने औरतों को बेवकुफ बनाने के लिए बड़ा मजेदार तरीका खोज रखा है। मैंने कहा कि मेरे फोन पर कोई फोन आ रहा है आप को घर जा कर फोन करता हूँ। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
घर से बीवी का फोन था कि अभी तक घर क्यों नही आये? मैंने कहा कि रास्ते में हूँ इस पर वह बोली कि रास्ते से कुछ खाने के लिए लेते आना। मैंने रास्ते में छोले भटूरे की दूकान पर कार रोकी और उस से तीन प्लेट छोले भटूरे पैक करने को कहा और उन्हें ले कर घर चल दिया। घर पहुँच कर देखा तो कोई खास बात नही थी बीवी का मन कुछ बाहर का खाने को कर रहा था। इस लिए ऐसा कहा था। मैंने उस से पुछा कि कल कोई काम तो नही है तो ना में उत्तर मिला तो मैंने बताया कि मैं कल कही जा रहा हूँ शाम को लेट आयूँगा।
बीवी ने कुछ पुछा नही। मैंने खाना खा कर माधुरी को फोन किया तो पुछा कि कल किस समय आना है तो वह बोली कि नाश्ता मेरे साथ ही कर लेना। मैंने कहा कि जल्दी नही है? तो वह बोली कि जब आप आयेगे तब ही नाश्ता साथ में करेगें। मैंने कहा कि मैं दस बजे तक पहुँच जाऊँगा लेकिन पता तो भेज दो। इस पर वह बोली कि मेट्रो से ही आना आसान रहेगा। मैंने कहा कि ऐसा ही करुँगा।