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Adultery दिल्ली मेट्रो की एक मुलाक़ात...

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UPDATE 1

इस कहानी की शुरुआत दिल्ली मेट्रो में हुई थी। मैं अकेला राजीव चौक से मेट्रों में बैठा। इस समय मेट्रो में अधिक भीड़ नही थी, मेरे साथ एक महिला बैठी थी सो मैं उन से थोड़ा हट कर बैठ गया। पुस्तक मेले से लौट रहा था सो किताबें भी साथ थी। समय काटने के लिए मैंने एक किताब निकाल कर उस के पन्नें पलटनें शुरु कर दियें। मेरे साथ बैठी महिला भी शायद पढ़ने की शौकिन थी, इस लिए वह भी मेरी किताब पर नजरें गढ़ाये हुऐ थी।

मैंने हाथ में पकड़ी किताब को बैग में रखा और दूसरी पुस्तक निकाल कर उसे पढ़ने लगा। तब तक शायद पड़ोस वाली महिला को पता चल गया था कि मैं पुस्तक प्रेमी हूँ, उन्होंने बात शुरु करने के लिए पुछा की इस बार पुस्तक मेला कैसा लगा है? मैंने कहा कि काफी अच्छा लगा है काफी बड़े क्षेत्र में लगा है तथा पुस्तकों की विषय वस्तु भी अच्छी है तो उन्होनें पुछा ही लिया कि क्या आप पढ़ाते है?

मैंने उन्हें बताया कि, नही मैं तो एक कंप्यूटर इंजिनियर हूँ। इस पर उन्होंने आश्चर्य जताते हुऐ कहा कि आप लोग कब से साहित्य के प्रेमी हो गये? तकनीक और साहित्य का तो दूर-दूर तक साथ नही बनता है। मैंने हँस कर कहा कि नहीं ऐसा नही है मैं तो बचपन से किताबें पढ़ने का शौकिन रहा हूँ लेकिन उस समय किताबें खरीदनें के लिए पैसें नही होते थे।

आज पैसे है लेकिन समय नही है। लेकिन शौक पुरा करने के लिए जब भी पुस्तक मेला लगता है तो पुस्तकें खरीदने पहुँच जाता हूँ यही सोच कर कि कभी तो इन को पढ़ने के लिए समय मिलेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप पहले व्यक्ति मिले है जो टेकनिकल व्यक्ति हो कर भी साहित्य में रुचि रखते है। मैंने कहा कि एक समय तो मैं हिन्दी में रिसर्च करने जा रहा था। अगर ऐसा हुआ होता तो आज किसी कॉलेज में पढ़ा रहा होता। पढ़ाया तो मैंने है लेकिन कंप्यूटर इंश्टियूट में।

इस तरह से हम दोनों की बातचीत शुरु हुई। उन्होंने मेरा फोन नम्बर माँगा और कहा कि कंप्यूटर में अगर किसी सहायता की आवश्यकता पड़ी तो आप को कष्ट दूँगी। मैंने उनको अपना नम्बर दे दिया। फिर मैंने पुछा कि मेरा परिचय तो हो गया अब आप भी अपना परिचय दे तो वह बोली कि मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढाती हूँ। वह हिन्दी की प्रोफेसर थी।

उन्होनें अपने फोन से मेरा नंबर डायल किया तो उन का नंबर भी मेरे पास आ गया। मेरा स्टेशन आ रहा था सो मैं उन्हें नमस्कार करके सीट से उठ गया। ट्रेन से उतरने के बाद याद आया कि उन का नाम पुछना तो भुल ही गया, वह भी मेरा नाम नही जानती थी। लेकिन मैंने अपने फोन में उनका नंबर डीयू लिख कर सेव कर लिया। घर आ कर मैं इस घटना को भूल गया। काफी दिनों बाद एक रविवार को मेरे फोन की घन्टी बजी, जब फोन उठाया तो देखा कि डीयू लिखा आ रहा था, तब जा कर उस घटना का स्मरण हुआ।

दूसरी तरफ से आ रही आवाज पहचान में आ गयी। वह बोली कि उस दिन आप का नाम पुछना भुल गयी थी, इस लिए इतने दिनों तक आप को फोन करना चाहते हुऐ भी फोन नही किया कि क्या नाम लेकर संबोधित करुँगी? लेकिन आज उस संकोच को छोड़ कर फोन कर ही लिया। मुझे पहचान तो रहे है आप? मैंने कहा कि हाँ पहचान रहा हूँ आप मुझे मेट्रो में मिली थी। मेरी बात सुन कर उन्होने एक गहरी साँस ली और कहा कि थैक्स गॉड आप को सब याद है, मुझे तो लगा था कि आप ने भी फोन नही किया तो हो सकता है कि शायद आप मुझे भुल गये होगे?

मैंने कहा कि मैं आसानी से किसी को याद नही रखता लेकिन जिसे याद रखता हूँ उसे भुलता नही हूँ। मेरी खराबी है। मेरी इस बात पर दूसरी तरफ से हँसी सुनाई दी। वह बोली कि दिलचस्प आदमी है आप, आप के साथ दोस्ती बढ़िया रहेगी। मैंने पुछा कि बताऐं कैसे याद किया? इस पर वह बोली कि अगर आज खाली है तो सीपी के कॉफी हाऊस में मिल सकते है? मैंने कहा कि हाँ मिल सकते है बताऐं कब मिलना है? तो वह बोली की दो बजे मिलते है। मैंने कहा दो बजे सीपी, और फोन रख दिया।

मुझे आज कोई काम नही था सो पत्नी को बता कर एक बजे सीपी के लिए निकल गया। मेट्रो पकड़ी और 35 मिनट में सीपी पहुँच गया। स्टेशन से पैदल ही कॉफी हाऊस की तरफ चल दिया। दो बजने से दस मिनट पहले मैं कॉफी हॉऊस में था। एक खाली सीट देख कर उस की तरफ लपका तो मेरी नजर दूसरी सीट पर बैठी उन महिला पर पड़ी वह पहले से ही सीट घेर कर बैठी थी। मैं उन के पास पहुँचा तो वह उठ कर खड़ी हो गयी और बोली कि मेरा नाम माधुरी है तथा आपका? मैंने कहा कि मुझे महेश कहते है, हम दोनों हँसते हुए सीटों पर बैठ गयें।

वह बोली कि कमाल का परिचय करने का तरीका है। मैंने कहा कि हाँ यह भी एक अन्दाज है। हम दोनों आराम से बैठ गये तो मैंने पुछा कि आप को मेरा इन्तजार तो नही करना पड़ा? इस पर वह बोली कि लगता है कि आप समय के बड़े पाबन्द है। मैंने कहा कि सैनिक परिवार से हूँ तथा अमेरिकन लोगों से साथ लम्बे समय से काम कर रहा हूँ इस लिए समय की पाबन्दी आदत बन गयी है। वह बोली की हम भारतीय तो समय की परवाह ही नही करते। मैंने हाँ में सर हिलाया।

मैंने उन से पुछा कि वह क्या लेगी? तो वह बोली कि आज मैं मेजबान हूँ इस लिए आप बताऐं क्या लेगे? मैंने कहा कि मैं तो यहाँ तब से आता हूँ जब से यह कॉफी हॉऊस खुला है। कॉफी और वड़ा चलेगा। यह सुन कर वह सामान लेने चली गयी। मैं पीछे से उन्हें देख कर सोचने लगा कि फिगर देख कर तो इन की उम्र का अन्दाजा लगाना मुश्किल काम है।

थोड़ी देर में वह कॉफी और साम्बर वड़ा ले कर आ गयी। दोनों कॉफी का मजा लेने लगे और बातचीत शुरु हो गयी।

मैंने पुछा कि पढ़ाई के साथ-साथ आप को और किस बात का शौक है? तो पता चला कि उन्हें भी फोटोग्राफी का शौक है लेकिन उसे पुरा करने का समय नही मिल पाता है तो मैंने हँस का कहा कि मेरा भी ऐसा ही हाल है मुझे बचपन से फोटोग्राफी का शौक है लेकिन अच्छा केमरा होने के बावजूद समय नही होने के कारण उस का इस्तेमाल नही हो पा रहा है। इस पर वह बोली कि हम दोनों छुट्टी के दिन कही चलने का कार्यक्रम बनाते है । मैंने कहा कि विचार तो अच्छा है किसी दिन समय निकाल कर चलते है शायद कुछ अच्छा हो जाये।

बात आगे बढ़ी तो पता चला कि वह अकेली ही रहती है माता-पिता दूसरें शहर में रहते है। मैंने बताया कि मैं तो इसी शहर में पैदा हुआ हूँ और पढ़ाई भी दिल्ली विश्वविद्यालय में ही हुई है। कंप्यूटर कोर्स करने के बाद पढ़ाने लगा, पढ़ाने से बोर होने के बाद कंप्यूटर हार्डवेयर का काम किया काफी साल तक। अब कई सालों से एक कंपनी में काम करता हूँ।

मैंने उन्हें बताया कि मैं तो अपने कॉलेज के दिनों से जगजीत सिंह की गज़लों का दिवाना हूँ। पता चला कि वह भी गजलों की शौकिन है। बातों से पता चला कि हम दोनों के काफी शौक एक-दूसरे से मिलते है। वह बोली कि लगता है हम दोनों की दोस्ती रंग लायेगी क्योकि शौक काफी हद तक एक जैसे है। मैंने हाँ में सर मिलाया। काफी समय बीत गया था मैंने पुछा की एक कप कॉफी और चलेगी तो उन्होने हाँ कर दी।

मैं कॉफी लेने चला गया। जब कॉफी ले कर आया तो वह कुछ सोच रही थी मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि कुछ खास नही। मैंने पुछा कि कुछ और खाने के लिए लाऊँ? तो वह बोली कि जो आप को अच्छा लगे। यह सुन कर मैं उपमा लेने चला गया, यहाँ का उपमा बढ़िया होता है यह मुझे पता था।

जब दो प्लेट उपमा ले कर लौटा तो वह बोली कि लगता है आप को यहाँ के मीनू के बारे में काफी जानकारी है। मैंने कहा कि जब यह खुला था तब मैं अपने मित्रों के साथ रोज आता था तब से अब तक इस के मीनू में कोई बदलाव नही हुआ है। उपमा खा कर देखिये और बताईये कि मेरी बात कहाँ तक सच है? मेरी बात सुन कर वह बोली कि किसी ने आप को बताया नही कि आप बातों के मास्टर है, सामने वाले के दिन में उतर जाते है। मैंने कहा कि उन के मुँह से पहली बार सुन रहा हूँ आज तक तो किसी ने कहा नही था। इस पर वह बोली कि आप बात को ऐसे कहते है कि सामने वाला मना ही नही कर पाता होगा।

मैंने कहा कि चलिये इसी बात पर उपमा को चैक करिये? मेरी बात सुन कर वह हँस पड़ी और उपमा खाने लगी। मैंने भी उपमा खाना शुरु किया तो मुझे लगा कि स्वाद आज भी अच्छा है। मेरी बात का अनुमोदन उन्होने भी किया और कहा कि मैंने कभी यहाँ को उपमा टैस्ट नहीं किया था आज आपने टैस्ट करा दिया, अच्छा किया काफी दिनों से इसके स्वाद से वंचित थी।

मैंने कहा कि मद्रास होटल का उपमा भी अच्छा होता था लेकिन वह होटल तो बन्द हो गया है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि लगता है सारे सीपी के खाने की जगहों के बारे में आप को पता है, मैंने बताया कि दो साल तक यहाँ पढ़ने के दौरान हम दोस्त सस्ती और बढ़िया खाने की जगह ढुढ़तें रहते थे। तब जेब में कम पैसे होते थे इस लिए यह सब करते थे। घर से खाना ले कर आते थे लेकिन फिर भी रोज यहाँ जरुर आते थे।

मेरी बात सुन कर वह बोली कि लगता है कि

अच्छी यादें है उस वक्त की?

हाँ सब अच्छी यादें ही है।

मैंने उन से पुछा कि आप की यादों का क्या हाल है? तो वह बोली कि यादें कुछ अच्छी है कुछ कड़वी है। मैंने कहा कि जीवन का यही तो स्वाद है। इसी दौरान मेरे ऑफिस से फोन आया कि कुछ समस्या है मैंने उन्हें फोन पर क्या करना है यह समझाया। फिर बाद में उन से माफी मांगी और कहा कि आई टी वालों कि नौकरी 24 घन्टों की होती है तो वह बोली कि मुझे पता नही था कि आज छुट्टी के दिन भी आप काम करते है, मैंने कहा कि इंचार्ज होने के कारण मैं कही भी हूँ चिन्ता करनी पड़ती है।

इस के बाद मैंने कहा कि आज तो मैं ही अपनी सुनाता रहा आप की बारी ही नही आयी तो वह बोली कि मेरी बारी जब आयेगी तो आप के कान पक जायेगें। मैंने कहा कि किस्तों में सुन लेगे। मेरी बात सुन कर उन की हँसी निकल गयी। मैंने घड़ी देखी तो पांच बज रहे थे मैंने उन से कहा कि अब मुझे चलना होगा। शाम को किसी को आना है।

मेरी बात सुन कर वह भी उठ खड़ी हूई और बोली कि समय कैसे बीत गया पता ही नही चला। अगर मैं आप को फोन करुँ तो बुरा तो नही मानेगे? मैंने कहा कि बुरा नही मानुँगा, अगर तीन-चार घन्टियों में फोन नही उठायूँ तो समझ लिजियेगा कि किसी मिटिंग में हूँ मेरा ज्यादातर समय इन्ही में कटता है। वह बोली कि इस का मतलब है कि आप के फोन की आशा ना रखुँ।

मैंने कहा कि मैं तो इस मामले में बहुत खराब हूँ पहले तो रात को अपना फोन बन्द करके सोता था लेकिन एक बार बहुत गड़बड़ हो गयी थी इस लिए फोन तो ऑफ नही करता लेकिन किसी को फोन करने का समय कम ही मिलता है अधिकतर जब रात को कार से घर जा रहा होता हूँ तभी फोन करता हूँ। आप को भी तभी फोन कर पाऊँगा। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि बड़ी साफगोई से आप ने फोन न करने का बता दिया। मैं हँस कर बोला कि दोस्ती में यही तो खासियत होती है कि साफ-साफ कह सकते है।

हम दोनों बाहर आ गये और मैं सामने हनुमान मंदिर की तरफ मुँह करके हाथ जोड़ रहा था तो वह मुझे देखती रही फिर बोली कि आप क्या है? यह पता करना बड़ा कठिन है मैंने पुछा कि एक ही मुलाकात में कैसे पता करेगी? कुछ तो अगली के लिए छोड़ देते है, नही तो मिलने का बहाना कैसे बनेगा। इस पर वह हँसती हूई अपने रास्ते चली गयी।

मैं भी मेट्रो के स्टेशन की तरफ चल दिया। आज का दिन काफी अच्छा बीता था पहली बार में किसी के बारे में कोई धारणा बना लेना कठिन है। देखते है आगे क्या होता है?

मैं फिर से अपने दैनिक रुटिन में डुब गया। फोन करना ध्यान ही नही रहा। काम के ज्यादा बौझ के कारण किसी और बात का ध्यान नही रहता था, सुबह कब होती थी और कब शाम आती थी पता ही नही चलता था।

एक शुक्रवार को माधुरी का फोन आया और मुझ से पुछा कि अगर कल यानि शनिवार को छुट्टी है तो कही घुमने चल सकते है, मैंने कहा कि कल तो छुट्टी है लेकिन घर पर पत्नी से पता करना पड़ेगा कि उसे कही जाना तो नही है। मैं आप को रात को फोन करके बताता हूँ मेरी बात पर वह बोली कि यह भी बताईयेगाँ की कहाँ चलने का विचार है? मैंने कहा कि आप का आईडिया है आप ही कोई जगह खोजिए। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।

घर आ कर पत्नी से पुछा कि कल का कोई कार्यक्रम तो नही है तो पता चला कि कोई काम नही है। मैंने माधुरी को फोन किया तो दूसरी तरफ से पुछा कि अच्छी खबर है या बुरी मैंने कहा कि अच्छी ही है, मुझे घर पर कोई काम नही है। आप बताये कोई जगह मिली या नहीं? तो जबाव मिला की आप ही बताँऐ कहाँ चल सकते है,?

मैंने कहा कि कल कुतुब मीनार चलते है उस के आस-पास भी काफी इमारतें है फोटोग्राफी के लिए सही जगह है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि चलिए तय रहा कि कल कुतुब मीनार चल रहे है। बताए कैसे चले अपनी गाड़ी से या मेट्रो से? मैंने कहा कि अपनी गाड़ी से सही रहेगा अगर समय हुआ तो किसी और जगह भी जा पायेगे।

मेरी राय माधुरी को पसन्द आई और वह बोली कि कल में गाड़ी ले कर आती हूँ बताएँ आप को कहाँ से पिक करना है, मैंने कहा कि मुझे आप तिलक नगर से पिक कर लेना समय बता दे? मैं रोड़ पर ही आप का इन्तजार करुँगा। मेरी बात सुन कर दूसरी तरफ से आवाज आई कि जब में घर से निकलुगी तो आप को फोन कर दूँगी।

मैंने कहा कि हो सके तो नौ बजे तक आप घर से निकल ले, तभी मुझे लेकर आप दस बजे तक कुतुब मीनार पहुँच पायेगी। मैंने कहा कि ध्यान रखियेगा कि कैमरे के सारे लेंस वगैरहा साथ लाये और अगर स्टेन्ड़ हो तो उसे भी अवश्य रख लिजियेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि जरुर ध्यान से ले आऊँगी। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।

इसके बाद मैंने अपने कैमरे के सैल को चार्ज करने लगा दिया तथा अन्य उपकरणों को भी सहेज कर कैमरे के बैग में रख दिया। स्टेन्ड को अलग से ले कर जाना पड़ता है वह किसी बैग में नही आता। पत्नी बोली कि दिन के खाने के लिए कुछ बना कर साथ रख दूँ तो मैंने कहा कि चार परांठे अचार के साथ रख देना, इतने से ही काम चल जायेगा। यह कह कर मैं सोने चला गया।

सुबह उठ कर नहा धो कर तैयार हुआ ही था कि माधुरी का फोन आया कि वह घर से निकल रही है तथा आधे घन्टे में मेरे पास पहुँच जायेगी। मैंने भी इस के बाद नाश्ता किया और सारा सामान कन्धे पर लाद कर घर से निकल गया। सड़क पर थोड़ी देर ही इन्तजार किया था कि एक कार पास आ कर रुकी देखा तो माधुरी थी उस ने दरवाजा खोला और मुझे बैठने को कहा तो मैंने पीछे की सीट पर अपना सारा सामान रख दिया और खुद आगे की सीट पर बैठ गया।

गाड़ी माधुरी ही ड्राईव कर रही थी, वह गाड़ी सही चला रही थी। उस ने मजाक में पुछा कि मेरे साथ बैठ कर डर तो नही लग रहा है? मैंने पुछा कि डर क्यों लगेगा? इस पर उस ने मजाक में पुछा कि पुरुषों को लगता है कि महिलाऐं अच्छी गाड़ी नही चला सकती। मैंने कहा कि मेरे ऐसे विचार नही हैं। रास्ते भर हम दोनों के मध्य और कोई बात नही हूई।

कुतुब मीनार पहुँचने पर गाड़ी पार्किग में पार्क की और टिकट ले कर मुख्य परिसर में प्रवेश कर गये। सुबह होने के कारण ज्यादा लोग नही थे। हम दोनों पहले घुमते रहे फिर एक जगह पर अपना सामान रख कर कैमरे सैट करने लगे। फोटोग्राफी करनी शुरु कर दी, अलग-अलग कोण से फोटोग्राफी की।

मुझे लगा कि माधुरी की भी कुछ फोटो लेनी चाहिए तो मैंने उस से पुछा कि आप की फोटो लेनी है? इस पर वह बोली कि नेकी और पुछ-पुछ मैं तो कब से सोच रही थी कि मेरी और आप की भी फोटो खिचँनी चाहिए। मैंने कहा कि मैं आप के कैमरे से आप की फोटो खींच देता हूँ आप मेरे कैमरे से मेरी खींच देना।

पहले मैंने उन की विभिन्न मुद्राऔं में फोटों खींची तथा इस के बाद उन्होंने मेरी भी कई फोटों ली। इस के बाद हम मुख्य परिसर के बाहर की तरफ चले गये वहाँ पर भी कई इमारतों के खंड्डर है वहाँ भी काफी फोटों ली। पता चला कि बगल में ही भुली-भटियारी भी है वहाँ भी जा सकते है तो उस तरफ निकल गये। वहाँ भी काफी दृश्य कैमरे में कैद कर लिये थे।

दोपहर हो गयी थी सूरज सिर पर चढ़ आया था, काफी थक भी गये थे, इस लिये मैंने पुछा कि कुछ खाने का इरादा है तो जबाव मिला की पेट में चुहें कुद रहे है। वह बोली कि मैं पुलाव बना कर लाई हूँ, मैंने कहा कि मैं भी पराठें अचार के साथ लाया हूँ इस से काम चल जायेगा। हम दोनों वही छाया में घास पर बैठ गये और अपने लाये हूए खाने को खाने लगे।

पुलाव खाने पर पता चला कि माधुरी खाना भी स्वादिष्ट बनाती है। वह भी पराठे खा कर बोली कि आपकी पत्नी बढ़िया खाना बनाती हैं। मैंने कहा कि पुरानी कहावत है कि आदमी के दिल में जाने का रास्ता मुँह से होकर जाता है। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि मैं तो अभी तक किसी के दिल तक नही पहुँच सकी। मैंने कहा कि आप ने कोशिश ही नही की होगी या शायद सामने वाला अच्छे खाने का कद्रदान नही होगा।

मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर कुछ भाव आये और चले गये। मैंने उन से कहा कि अगर आप को बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूँ, मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप ने कुछ गलत नही कहा, मुझे ही कोई बीती बात याद आ गयी। मैंने उन्हें बताया कि मेरी पत्नी को शादी के समय खाना बनाना नही आता था वह मायके में पढ़ाई ही में व्यस्त रही इस कारण रसोई में जाने का अवसर नही मिला।

शादी के बाद ही उस ने मेरी माँ से सारा खाना बनाना सीखा और अब वह इस में पारगंत हो गयी है। मुझे तो चाय के सिवा कुछ बनाना नही आता। मेरी बात सुन कर वह हँसी और बोली कि तब तो आप किसी के खाने में खराबी निकाल नही सकते होगे? मैंने कहा कि नही, यही काम तो मैं हद से ज्यादा करता हूँ। मेरी पत्नी भी मेरी राय से परेशान रहती है मेरा रसोई घर में घुसना मना है।

पेट भर खाना खाने के बाद हम दोनों कुछ देर तक आराम करते रहे। इस के बाद मैंने माधुरी से पुछा कि आप ने इतनी पढ़ाई की है इस के बावजुद इतना बढ़िया खाना बनाना कहाँ से और कब सीखा? मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं बचपन से मां और दादी के साथ किचन में खड़ी रहती थी फिर बड़ी होने पर दादी ने खाना बनाना सिखाया। बाद में माँ ने उसे तराशा। लेकिन आज पहली बार किसी ने मेरे खाने की तारीफ करी है। मैंने कहा कि मैं खाना बनाना तो नही जानता लेकिन अच्छे खाने की तारीफ करना मुझे आता है। मुझे लगा कि कोई दर्द माधुरी के अन्दर है जो बाहर नही आ पाता हैं।

सूरज अब पश्चिम की तरफ चला गया था। प्रकाश के दिशा परिवर्तन के कारण नये फोटो खींचने का मन करा तो हम दोनों फिर से फोटोग्राफी में लग गये। चार बजे लगा कि अब चलना चाहिए तो हम ने अपना सामान समेट लिया और परिसर से बाहर आ गये। गाड़ी में बैठ कर जब निकले तो माधुरी बोली कि क्या यह संभव है कि वह रोज मुझ से बात कर सके। मैंने कहा कि आप को मना कब करा है? आप कभी भी फोन कर सकती है बंदा खाली होगा तो गप्प मार लेगा।

मेरी यह बात सुन कर वह हँसी और बोली कि आप से बात करके मन का दुख कम हो जाता है। मैंने कहा कि मुझे लगा तो था कि कोई गम है जो बार बार आप के होंठों पर आता तो है लेकिन आप बोल नही पाती। दूसरी मुलाकात में ज्यादा निकटता सही नही है यही जान कर पुछना उचित नही समझा। वह चुप रही फिर बोली कि जब कभी लगेगा तो आप को सब बताऊँगी। मैंने कहा कि मैं पुछ कर आप को कष्ट नही दूगाँ। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप की यही बात तो सबसे बढ़िया लगती है। इस के बाद काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा।

मैंने उसे तोड़ते हूए पुछा कि हम ने काफी फोटोग्राफ्स खींचीं है इन को देखने में काफी समय लगेगा। देखते है अब कब समय मिलता है? इस पर माधुरी ने जबाव दिया कि मैं तो कल बैठ कर कुछ काम करुँगी। मैंने कहा कि मैं तो कल आराम करना चाहूँगा, पुरा हफ्ता बहुत थकान भरा था। वह मुझे मेरे रास्ते पर उतार कर अपने घर चली गयी। देर शाम को मैंने फोन कर के पुछा कि आराम से पहुँच गयी थी तो वह बोली कि मैं तो आ कर लेट गयी थी, थकान के कारण आँख लग गयी थी आप के फोन से नींद खुली है।

मैंने कहा कि यह तो मैंने बहुत बुरा किया कि आप को नींद से जगा दिया। वह बोली कि नींद से जगा देना तो बढ़िया काम है। आप बताये क्या कर रहे है? मैंने कहा कि बैठ कर टीवी देख रहा हूँ। इस के बाद खाना खा कर सोने चला जाऊँगा। मेरी बात पर वह बोली कि मैं भी उठ कर कुछ करती हूँ शायद कोई फिल्म ही देख लुँ या कुछ लिख लेती हूँ। मैंने गुड नाईट कहा और फोन काट दिया।

मैं तो रविवार को व्यस्त रहा, ना तो माधुरी को फोन किया ना ही उस का फोन आया। सोमवार से जो काम शुरु हुआ तो सारा हफ्ता इसी में बीत गया हम दोनों ने एक-दूसरे को फोन नही किया। अगले हफ्ते भी वही मारा-मारी थी लेकिन शुक्रवार को जब शाम को घर जा रहा था तो माधुरी को फोन किया, उन्होंने दूसरी घन्टी पर ही फोन उठा लिया। मैंने हेलो कहा तो दूसरी तरफ से दबी सी आवाज आई कि कैसे है आप? मैंने कहा कि यह तो आप की आवाज सुनने के बाद मुझे पुछना चाहिये? इस पर दूसरी ओर से हँसी के साथ जबाव मिला कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे।

मैंने कहा कि मुझ में कोई ऐसी खासियत नही है जो कोई कुछ सीखे तो वह बोली कि मैं यह नही मानती, मैंने पुछा कि बताईये आप की तबीयत कैसी है? तो जबाव मिला कि आप को कैसी लग रही है? मैंने कहा कि प्रश्न के उत्तर के बदले प्रश्न करने का मतलब है कि आप जबाव नही देना चाहती तो वह बोली कि यह तो हम दोनों में लड़ाई होने लगी है। मैंने कहा कि लड़ाई थोड़ी ना कर रहा हूँ केवल कुछ पुछ रहा था लेकिन आप जबाव नही देना चाहती तो मैं नही पुछुँगा। इस पर माधुरी ने कहा कि लगता है आप नाराज हो गये हैं।

मैंने कहा कि हम कुछ होने का दावा नही करते, इस लिए कुछ पुछने के हकदार भी नही है। कुछ देर तक कोई जबाव नही मिला। इस दौरान नेटवर्क खराब होने के कारण फोन कट गया।

मैं जिस रास्ते में था वहाँ नेटवर्क नही मिलता था। थोड़ी देर बाद जब नेटवर्क आया तो फोन की घन्टी बजी देखा तो माधुरी का फोन था, उठाया तो उन्होंने कहा कि कहाँ गायब हो गये थे कि फोन ही नही मिल रहा था मुझे बड़ी चिन्ता होने लगी। मैंने कहा कि जिस जगह था वहाँ नेटवर्क मिलता नही है। इस के बाद वह बोली कि नाराज तो नही है? मैंने कहा कि नाराज होने जैसी अमीरी हमारे पास नही है। पुरे हफ्ते घर से ऑफिस, ऑफिस से घर बस यही रुटिन था, इस लिए फोन नही कर सका, हम आईटी वालों का जीवन बड़ा बेकार है जब दुनिया छुट्टी मनाती है तब हम काम करते है यही वजह थी कि पिछले पन्दह दिनों से बिजी था।

आज ही साँस लेने की फुरसत मिली तो आप को फोन कर लिया।

माधुरी बोली कि अगर कल मेरे घर आ जाये तो मिल कर खिंचीं हुई फोटोग्राफ्स को देख कर कुछ करते है। मैंने कहा कि इस बारे में तो घर जा कर ही बता सकुँगा, मेरे जबाव पर वह बोली कि हाई कमान से अनुमति लेनी होगी, मैंने भी हँस कर कहा कि ऑफिस में बॉस की चलती है और घर में बीवी की, हम तो हुक्म के ताबेदार है। मेरी यह बात सुन कर वह हँसने लगी और बोली कि आप मर्दो ने औरतों को बेवकुफ बनाने के लिए बड़ा मजेदार तरीका खोज रखा है। मैंने कहा कि मेरे फोन पर कोई फोन आ रहा है आप को घर जा कर फोन करता हूँ। यह कह कर मैंने फोन काट दिया।

घर से बीवी का फोन था कि अभी तक घर क्यों नही आये? मैंने कहा कि रास्ते में हूँ इस पर वह बोली कि रास्ते से कुछ खाने के लिए लेते आना। मैंने रास्ते में छोले भटूरे की दूकान पर कार रोकी और उस से तीन प्लेट छोले भटूरे पैक करने को कहा और उन्हें ले कर घर चल दिया। घर पहुँच कर देखा तो कोई खास बात नही थी बीवी का मन कुछ बाहर का खाने को कर रहा था। इस लिए ऐसा कहा था। मैंने उस से पुछा कि कल कोई काम तो नही है तो ना में उत्तर मिला तो मैंने बताया कि मैं कल कही जा रहा हूँ शाम को लेट आयूँगा।

बीवी ने कुछ पुछा नही। मैंने खाना खा कर माधुरी को फोन किया तो पुछा कि कल किस समय आना है तो वह बोली कि नाश्ता मेरे साथ ही कर लेना। मैंने कहा कि जल्दी नही है? तो वह बोली कि जब आप आयेगे तब ही नाश्ता साथ में करेगें। मैंने कहा कि मैं दस बजे तक पहुँच जाऊँगा लेकिन पता तो भेज दो। इस पर वह बोली कि मेट्रो से ही आना आसान रहेगा। मैंने कहा कि ऐसा ही करुँगा।
 
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शनिवार के मैं सुबह उठ कर तैयार हुआ और अपना लेपटॉप वगैरहा बैग में रख कर चलने लगा तो बीवी बोली की नाश्ता तो कर के जाओ तो मैंने कहा कि वही जा कर करुँगा यह कह कर मैं घर से निकल गया। सुबह मेट्रो खाली थी, एक घन्टे में मैं माधुरी के घर पर था। वह मुझे देख कर बहुत खुश थी उस की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी।

घर में आ कर बैठा ही था तो वह बोली कि नाश्ते में पुरी छोले कैसे रहेगे? मैंने कहा कि दौड़ेगे। मेरे जबाव पर वह हँसी और बोली कि कभी सीधा बोलते है या नहीं? मैंने कहा कि सीधा सा जबाव दिया है बताये और इस से सीधा कैसे बोला जा सकता है? आप तो भाषा विज्ञान की प्रोफेसर है।

मेरी बात पर माधुरी हँसती हूई किचन में चली गयी। मैं सोफे पर बैठ कर वही पड़े अखबार को पढ़ने लगा। थोड़ी देर में आवाज आयी कि अन्दर आ जाये नाश्ता लग गया है, मैं दूसरे कमरे में चला आया जहाँ पर डाईनिग टेबल रखा हुआ था। टेबल पर नाश्ता सजा हुआ था। मेरे बैठने के बाद वह चाय ले कर आयी और दूसरी तरफ बैठ गयी। मैंने अपनी प्लेट में दो पूरियाँ तथा कटोरी में छोले ले कर खाना शुरु किया वह भी नाश्ता करने लगी। थोड़ी देर शान्ति रही फिर उन्होनें ही उसे तोड़ा और पुछा कि छोले सही बने है? मैंने कहा कि छोले बढ़िया है तथा पुरी भी स्वादिस्ट है।

माधुरी बोली कि आप को इन का स्वाद लगता है पहले से पता है? मैंने कहा कि आप को यह पता होना चाहिए कि मैं भी उत्तर प्रदेश से हूँ, मेरी शुरु की पढ़ाई भी उत्तर प्रदेश में हुई है। यह सुन कर वह बोली तभी तो आप इन के स्वाद से परीचित लग रहे है। मैंने पुछा कि आप कहाँ से है? तो वह बोली कि मेरा घर तो हापुड़ में है। मैं यह सुन कर चुप रहा। हम दोनों चुपचाप नाश्ता करतें रहें।

मैंने पुछा कि खींची फोटो देखी है या नही तो ना में जबाव मिला। वह बोली कि मुझे भी समय नही मिला, फिर मेरी तबीयत भी सही नही थी। मैंने कहा कि इस बारे में कुछ बताया क्यों नही तो जबाव मिला कि क्या बताना यह तो चलता रहता है। मैंने दुबारा सवाल नही किया। किसी के व्यक्तिगत जीवन में झाँकने की मेरी कोई इच्छा नही थी। चाय पीने के बाद हम दोनो फिर से ड्राईग रुम में आ गये।

मैंने पुछा कि फोटोग्राफ्स किस में डाउनलोड करी है तो वह बोली कि अभी तो कुछ नही करा है? मैंने पुछा कि कंप्यूटर में करनी है या लेपटॉप में? इस पर जबाव मिला कि कंप्यूटर में करना सही रहेगा। आप ने कहाँ करी है? तो मैंने कहा कि मैं भी आप जैसा ही हूँ कुछ नही करा है अभी लेपटॉप में कापी करता हूँ। मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर हँसी आ गयी। मैंने केमरा निकाल कर उस से कॉर्ड निकाला और लेपटॉप में फोटो कॉपी करना शुरु कर दिया।

फिर माधुरी से पुछा कि आप का कंप्युटर कहाँ है, तो वह बोली कि वह तो बेडरुम में है। मैंने कहा कि कॉपी तो करनी पड़ेगी तभी तो उन के साथ कुछ कर सकेगे। मेरी बात सुन कर वह उठ कर चली गयी और फिर थोड़ी देर में उन की आवाज आयी कि यहाँ आ जाये। मैं आवाज की दिशा में चल दिया। बेडरुम बड़ी कलात्मकता से सजा हुआ था, एक डबल बेड था तथा एक मेज पर डेस्कटॉप रखा था, दिवार पर कलात्मक तस्वीर लगी थी।

कंप्युटर चला कर उस में फोटोग्राफ्स को कॉपी करना शुरु किया। जब कॉपी हो गये तो उन को एक-एक कर के देखना शुरु किया। फोटोग्राफ्स बढ़िया आई थी। रंग वगैरहा सही थे। मैं उन्हे देखने लगा तो वह उठ कर मेरे पीछे खड़ी हो कर देखने लगी। पहले तो मैंने ध्यान नही दिया फिर जब ध्यान गया तो उन से कहा कि वह बैठ कर आराम से देखे यह सुन कर वह बोली की मैं सही हूँ आप मेरी चिन्ता ना करे। फिर वह एक स्टूल ले कर मेरे साथ बैठ गयी। हम दोनों कॉफी देर तक इसी काम में लगे रहे। कोई 300 से ज्यादा फोटोग्राफ्स थे। सब को देखने में काफी समय लग गया।

उन की फोटोग्राफ्स के बाद मेरे खीचें फोटोग्राफ्स का नंबर था उन को हम दोनों ने मेरे लेपटॉप पर देखा वह भी कॉफी सारे थे। इस काम में कब दो बज गये पता ही नही चला। वह बोली कि बाकी का काम खाना खाने के बाद करेगे। फिर मेरी तरफ घुम कर बोली कि क्या खायेगे? मैंने कहा कि जो आप बना कर खिलायेगी वही खा लेगे।

खाने के मामले में कोई खास पसन्द नही है जो मिल जाता है खुशी से खा लेते है। मेरी इस बात पर फिर से माधुरी हँसने लगी और बोली कि कोई बात सीधी नही कहनी, उस की जलेबी जरुर बनानी है। आप की पत्नी तो बहुत परेशान होती होगी? मैंने कहा कि जब आप मिले तो जरुर पुछियेगाँ? फिर बोली कि हमारी तरफ तो अरहर की दाल और चावल बनते है कहें तो वही बनाऊँ? मैंने कहा कि आप ने तो मेरे मन की बात कह दी, अरहर की दाल और चावल तो मनपसन्द चीज है। मजा आ जायेगा। यह सुन कर वह किचन की तरफ चल दी।

मैं भी ड्राइगरुम में आ गया। टीवी चलाया और उस पर समाचार देखने लगा, पता नही कब आँख लग गयी और सोफे पर ही सो गया। जब उठा तो देखा कि पैर उठा कर ऊपर कर दिये गये थे तथा सिर के नीचे तकिया लगा दिया गया था। इस लिए काफी देर तक सोता रहा। मैंने उठ कर सॉरी बोला तो वह बोली कि मैं समझ सकती हूँ कि आप की हालत क्या होती होगी? मैं भी पुरे हफ्ते भर काम कर के थक जाती हूँ और फिर छुट्टी के दिन सारे दिन सोती रहती हूँ।

मैंने कहा कि मेरा ऐसा नसीब कहाँ है। मुझे तो दिन में सोना नसीब नही होता कोई ना कोई काम निकल ही आता है। वह बोली कि चलिए ऊठ कर खाना खा लिजिये। मैं उठा और पुछा कि हाथ धोने है तो वह मेरे साथ चली और बाथरुम दिखा दिया। मैंने हाथ साबुन से धोये और जब बाहर निकला तो वह तोलिया लेकर खड़ी थी मैंने उन के हाथ से तोलिया लिया और हाथ पोंछ कर पुछा कि कहाँ रखु तो वह उसे मेरे हाथ से तोलिया ले कर सुखाने चली गयी।

वापस आयी तो बोली कि चलिये खाना लगा दिया है खाते है। मैं भी उन के साथ चल पड़ा। टेबल पर बैठ कर मैंने पहले प्लेट में चावल डाले और फिर उन्ही में दाल ऊपर से डाल ली और चम्मच से खाने लगा तो वह बोली की आप तो चावल भी हमारी तरह से खाते है। मैंने हँस कर कहा कि भई यही का हूँ कही विदेश से नही आया हूँ। ठेठ देसी आदमी हूँ।

मेरी बात पर वह मुस्करा दी और चावल खाती रही। खाने के बाद हम दोनों ड्राइग रुम में बैठे तो बातें होनें लगी, मैंने पुछा कि आप फोटोग्राफी तो अच्छी करती है, जब भी समय मिले फोटो खींचती रहे। वह बोली कि कई सालों के बाद मैंने केमरा निकाला है। आप के सहारे ही ये सब हो पाया, नही तो मैं तो यह भुल सा गयी थी कि मेरे पास केमरा भी है।

मैंने कहा कि कोई ना कोई शौक जरुर होना चाहिए जिन्दगी में नही तो जिन्दगी काटना मुश्किल हो जाता है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि कभी-कभी दार्शनिकों जैसी बातें क्यों करतें है। मैंने पुछा कि क्या गलत कह दिया है? आप बताये जीवन में कुछ ना कुछ ऐसा होना चाहिए जिसे हम किसी लालच या मजबुरी की बजाए अपनी खुशी के लिए करे? वह बोली की यह बात तो आप की सही है। मैंने कहा कि मुझे तो लगता है कि आप अपने मन में कुछ छुपाये रहती है अगर किसी से कह देगी तो शायद आराम मिलेगा।

इस पर वह बोली कि आज कल ऐसे लोग कहाँ मिलते है जो आप का दर्द सुने। लोग तो किसी का दर्द जान कर उसे इस्तेमाल करते है आप को नुकसान पहुँचाने के लिए। मैंने सर हिलाया। माहौल कुछ भारी सा हो रहा था तो मैंने पुछा कि आज कल कोई किताब लिख रही है तो जबाव मिला कि शुरु तो की थी लेकिन कुछ सालों से उस पर काम नही कर पा रही।

मैंने कहा कि समय निकाल कर उसे पुरा करे। मेरी कोई सहायता चाहिए तो मैं हाजिर हूँ इस पर वह हँस कर बोली कि क्या सहायता कर सकते है? मैंने कहा कि आप समस्या बताऐ मैं हल सुझा दुँगा। मेरा यही काम है। वह हँसी और बोली कि मैं तो भुल ही गयी कि इंजिनियर साहब साहित्य में भी रुचि रखते है। आप की सहायता तो जरुर लेनी पड़ेगी, लेकिन आप के पास समय कहाँ है?

मैंने कहा कि समय भी निकाल लेगे। माधुरी ने बताया कि वह कंप्यूटर में हिन्दी टाईप नही कर पाती है इस कारण से उसे पहले पेपर पर लिखना पड़ता है फिर उसे कंप्यूटर में टाईप कराना पड़ता है। मैंने यह सुन कर कहा कि आप एक महीने मुझे 15 मिनट रोज दे, मैं आप को हिन्दी की टाईपिग सीखा दुँगा। वह मेरी तरफ आश्चर्य से देखने लगी मैंने कहा कि मजाक नही कर रहा हूँ मैंने भी ऐसे ही हिन्दी की टाईपिग सीखी है। कंप्युटर पर टाईप करना आसान है एक बार आप सीख जायेगी तो सीधे कंप्यूटर पर ही टाईप कर सकेगी और पेपर पर लिखने के समय की बचत होगी।

मेरी बात सुन कर वह बोली की यह कुछ ज्यादा तो नही हो रहा है। मैंने कहा कि चल कर आप को हिन्दी में टाईप करके दिखाते है। यह कह कर मैं उन को साथ लेकर उन के कंप्यूटर पर गया और उस में हिन्दी का किबोर्ड इन्सटाल कर दिया इस के बाद एमएस वर्ड खोल कर उन को हिन्दी में टाईप कर के दिखा दिया। यह देख कर वह आश्चर्य चकित हो गयी और बोली कि यह तो आसान है, मैं तो आज तक समझती थी कि टाईप करना कठिन काम है। मैंने कहा कि जब तक सीख नही जाती तब तक कठिन लगेगा, बाद में आसान हो जायेगा।

मैंने उन का नेट शुरु करवा कर नेट से हिन्दी टाईपिग के लिए प्रोग्राम डाउनलोड कर के इन्सटाल कर दिया तथा फिर उस को चला कर उन को दिखाया कि वह किस तरह से रोज किबोर्ड पर अभ्यास करके महीने भर में हिन्दी में टाईप करना सीख जायेगी। इस से वह बहुत खुश नजर आ रही थी। मेरे से बोली की आप ने तो अपनी बात सिद्द करके दिखा दी कि आप सहायता कर सकते है और जो कहते है उसे पुरा भी करते है। मैं यह सुन कर मुस्करा दिया।

शाम हो चली थी तथा सूरज डुबने वाला था। वह बोली कि मेरी छत से सूर्यास्त बढ़िया दिखता है तो मैंने कहा कि चलिये आज इस की ही फोटो लेते है। हम दोनों अपने केमरें ले कर छत पर चले आये। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी, पेड़ों के पीछे से डूबता सूर्य मोहक लग रहा था। हम दोनों उस को कैद करने में लगे रहे जब अंधेरा हो गया तब नीचे आये। मैंने उन से कहा कि अब मैं विदा चाहता हूँ, आज का दिन बहुत बढ़िया बीता तो वह बोली कि रात का खाना खा कर जाये। घर पर मना कर दे। मुझे अच्छा लगेगा। मैंने घर पर फोन करके खाना बनाने के लिए मना कर दिया।

माधुरी चाय बनाने चली गयी और मैं खींची हूई फोटोग्राफ्स को देखने लगा। जब वह चाय बना कर लायी तो मुझ से बोली कि आप ने आज रुक कर मुझ पर बड़ा अहसान किया है। मैंने प्रस्नवाचक नजरों से उन्हें देखा तो वह बोली कि मेरी शामें एकदम अकेली होती है, दिन तो गुजर जाता है लेकिन शाम गुजारना मुश्किल होता है, अकेलापन काटने को दौड़ता है। मैंने कहा कि अकेलापन क्यों है इसे दूर करने का साधन क्यों नही किया?

इस पर वह बोली कि बहुत पहले किया था लेकिन बदले में धोखा मिला इस के बाद किसी पर विश्वास करने का मन ही नही किया लेकिन अब अकेलापन काटता है। मैंने कहा कि कुछ तो दोस्त होगे जो आप को साथ देते होगे, वह बोली कि दोस्तों ने ही तो दगा किया है। मैंने पुछा कि फिर भी मुझ पर विश्वास कैसे किया? दोस्ती कैसे की? वह बोली कि आप को देख कर लगा कि आप से बात करनी चाहिए बस सो बात करनी शुरु कर दी। आप के व्यवहार में कोई छलावा नही देखा तो आगे बढ़ गयी। यही किस्सा है।

मैंने कहा कि मेरे बारे में इतना विश्वास क्यों? कुछ भी तो नही पता है मेरे बारे में तो वह बोली कि जो देखा है वह काफी है, और कुछ नही जानना। कुछ ज्यादा पाने की चाहत नही है। मैंने कहा कि ज्यादा तो मैं भी आप को दे नही सकता हूँ। कुछ है ही नही देने के लिये। वह बोली कि आप मुझ से बात करते रहे दोस्ती बनाये रखे मेरे लिये यही काफी है।

मैं चुप रहा। कोई काफी देर तक कुछ नही बोला। फिर मैं ने कहा कि दोस्ती तो मैं ज्यादा लोगों से नही करता लेकिन जिस से करता हूँ तो उसे छोड़ता नही हूँ यही मेरी खासियत है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि यही बात तो मुझे पसन्द आयी है कि अभी तक आप ने मुझे घुर कर भी नही देखा। मैंने कहा कि जो चीज अपनी है उसे घुर कर क्या देखना? जो कुछ पुछना होगा तो पुछ लेगे।

और किसी चीज की कामना ही नही है। वह बोली कि यही तो वह चीज है जो हर औरत आदमी में ढुढ़ती है लेकिन मिलती नही है। मैंने कहा कि आदमी औरत के रिश्ते समाज के बनाये खाके में हर बार फिट नही होते इस लिये संबंधों पर उंगलियाँ उठती है। समाज की चिन्ता एक हद से ज्यादा करना गलत है।

हमारी बातचीत में चाय ठंड़ी हो गयी, जब चाय होंठों से लगाई तो पता चला, माधुरी बोली कि दूसरी बना कर लाती हूँ मैंने कहा कि हाँ यह तो अब काम की नही रही। वह जब चाय बनाने के लिए चली तो मैं भी उस के साथ किचन में चला गया। किचन भी सुरुचिपूर्ण तरीके से सजी थी। मेरे को चारों तरफ देखता देख कर माधुरी ने पुछा कि क्या देख रहे है?

मैंने जबाव दिया कि औरतों के अन्दर सुघड़ता जन्मजात होती है और वह उन के चारों तरफ के माहौल में परिलक्क्षित होती है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि अब तो आप की जुबान पर साहित्यकार बैठ गया है। भाषा बदल गयी है, मैंने हँस कर कहा कि आप के सानिध्य का असर है। वह बोली कि हो सकता है कल मेरे मुँह से कंप्यूटर की शब्दावली निकलने लगे। मैंने कहा कि सौहबत का असर तो होना ही चाहिए। इतनी देर में चाय बन गयी और हम दोनों वही खड़े-खड़े चाय पीनें लगे।

किचन की खिड़की से पेड़ों के बीच से आती रोशनी अच्छी लगी रही थी मैंने अपने फोन के कैमरे से उसे कैद किया और उसे माधुरी को दिखाया तो वह बोली कि मैं वर्षो से यहाँ काम करती हूँ लेकिन मेरी नजर इस दृश्य पर नही गयी लेकिन आज आप ने पहली बार में ही इसे पकड़ लिया फिर हम दोनों अपने केमरें लेने दौड़ पड़ें और एक नया फोटोसेशन शुरु हो गया। 8 बजे माधुरी ने खाना बना लिया। फिर खाने को टेबल पर लगा कर बोली कि अगर कुछ मीठा खाना चाहे तो नीचे से ले आती हूँ मैंने कहा कि खाना खा कर नीचे आईसक्रीम खानें चलेगें। वही से मैं भी निकल जाऊँगा।

मेरी राय उस को पसन्द आयी। हम दोनों ने खाना खत्म किया और मैंने अपने सामान को सहेजा और चलने की तैयारी करने लगा तो माधुरी बोली कि मैं आप का किन शब्दों में धन्यवाद करुँ? मैंने कहा कि दोस्ती में धन्यवाद नही करते है। मेरा दिन भी अच्छा गुजरा है। आशा है कि आप मुझें दोस्त समझेगी और अपनी परेशानियाँ भी मेरे से साझा करेगी। मैं कोई सहायता तो नही कर पाऊँगा लेकिन शायद इस से आप को कुछ चैन पड़ेगा।

हम दोनों नीचे के लिये निकलें तो उन्होंने घर के दरवाजे पर ताला लगाया और मेरे साथ चल पड़ी। थोड़ी दूर पर ही एक आईसक्रीम वाला खड़ा था उस से दोनों ने आईसक्रीम ली और चलते-चलते खाने लगे। थोडी दूर चलने के बाद मैंने कहा कि अब आप घर लौट जाये मैं आगे से रिक्शा कर लुँगा तो वह बोली कि मैं तो रोज यहाँ पर घुमने आती हूँ। फिर वह नमस्ते कह कर वापस मुड़ गयी और मैंने एक ऑटो को रोका और उस पर सवार हो गया।

जब घर पहुँचा तो रात काफी हो चुकी थी, बीवी भी चिन्ता कर रही थी। मैंने कहा कि थोड़ी देर हो गयी है। कुछ देर बाद माधुरी का फोन आया यह पुछने कि आराम से घर पहुँच गये? मैंने कहा कि अभी-अभी ही पहुँचा हूँ। खबर जान कर फोन कट गया। पत्नी ने पुछा कि खाना तो नही खाना? मैंने मना किया और अपने सामान को सहेजने लगा।

जब रात को सोने लगा तो पत्नी बोली कि आज कल इतना बिजी क्यों हो? मैंने कहा कि खाली रहों तो मुश्किल है व्यस्त रहों तो मुश्किल क्या करुँ? वह बोली कि तुम से तो बात करना भी गुनाह है। मैंने कहा कि जबाव भी दूँ तो तुम्हें बुरा लगता है। क्या करुँ? मेरी बात सुन कर वह बोली कि सो जाओ कल बात करते है। मैं गहरी नींद में खो गया।

सुबह नाश्ता करते समय पत्नी ने पुछा कि कल किस दोस्त के यहाँ गये थे? तब मैंने उसे बताया कि उसी दोस्त के यहाँ गया था जिस से मेट्रो में मिला था तथा जिस के साथ कुतुब मीनार के फोटो खींचे थे। उस का नाम पत्नी को पता नही था, मैंने बताया कि उस का नाम माधुरी है तो वह बोली कि किसी दिन उसे घर पर बुलाओ। तुम तो उस के घर पर हो आये हो अब हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उसे अपने घर पर बुलाऐं।

मैंने कहा कि अगले हफ्ते उस से कहता हूँ। मेरी बात सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि लगता है खाली दोस्त है तभी तो इतनी जल्दी घर बुलाने के लिए तैयार हो गये। मैंने कहा कि तुम्हें तो पता है मैं कैसा हूँ? अब इतने सालों बाद क्या बताऊँ तो वह बोली कि तुम पर विश्वास है तभी तो कुछ कहती नहीं हूँ ।

मैंने सर हिलाया तो वह बोली कि कभी हाँ या ना में जबाव तो दे दिया करो, इस पर मैंने कहा कि क्या फर्क पड़ता है तुम्हें जो सोचना है जो करना है वह मेरे बोलने से बदल तो नही जायेगा। मेरी बात का कोई जबाव नही मिला। इस तरह सुबह हुई मेरी पुछताछ खत्म हूई। घर के कई छोटे-मोटे काम पड़े थे, मैं उन्हें निबटाने में लग गया दिन इसी में गुजर गया। शाम को माधुरी का फोन आया तो मैंने कहा कि अगली बार आप को मेरे घर पर आना है, मेरी पत्नी का हूक्म हुआ है।

मेरी बात पर वह हँसती हूई बोली कि आप की पत्नी का हूक्म तो मानना पड़ेगा। फिर वह बोली कि मैं आप को अगले हफ्तें बताती हूँ। फिर पुछा कि आज क्या कर रहे है तो मैंने कहा कि सारा दिन घर के छोटे-मोटे काम करें हैं शाम को ही फुरसत मिली है तो वह बोली कि आप इतना व्यस्त हो कर कैसे जी पाते है? मैंने कहा कि कोई और चारा नही है। जब तक चल रहा है चला रहे है। आगे की आगे देखेगे। इस के बाद फोन कट गया।

इस हफ्ते कोई छुट्टी नही थी केवल संडे ही था सो किसी तरह का कोई प्रोग्राम नही बन सकता था। अगलें हफ्तें बुधवार को माधुरी से फोन करके पुछा कि क्या शनिवार को आप के घर आ सकती हूँ मैंने कहा कि जरुर आ सकती है। मैंने रात को यह बात पत्नी को बताई तो वह बोली कि क्या कोई खास तैयारी करनी पड़ेगी, मैंने कहा कि कुछ खास करने की तो जरुरत नही है। सिर्फ खाना क्या बनाना है यह तय कर लो। वह बोली कि वह तो मैं कर लुँगी।

दो दिन ऐसे ही बीत गयें। शुक्रवार को शाम को मैंने माधुरी को फोन किया तो वह बोली कि कल किस समय तक आऊँ, मैंने कहा कि आप का घर है कभी भी आ सकती है। दस-ग्यारह बजे तक आराम से आ जाये, मैं मैप भेज देता हूँ ताकि आने में परेशानी ना हो, मेट्रो का स्टेशन पास में ही है। यह कह कर मैंने गुगल मैप के द्वारा अपने घर की लोकेशन उन को भेज दी। पत्नी को पता दिया कि माधुरी सुबह दस-ग्यारह के बीच में आयेगी।

दूसरे दिन सुबह मैं तो नहा कर पूजा करके नाश्ता करने बैठा ही था कि माधुरी का फोन आया कि वह रिक्शा पकड़ कर आ रही है कहाँ उतरे? तो मैंने उसे लोकेशन समझा दी इस पर पत्नी बोली कि बाहर जा कर उन्हें ले क्यों नही आते? मुझे उस की बात सही लगी और मैं उन्हें लेने सड़क पर चला गया। सड़क पर पहुँचा ही था कि माधुरी रिक्शे से उतरती दिखी, मैं लपक कर उन के पास पहुँचा तो उन्होंने मुझे देख कर नमस्ते करा और उतर कर मेरे साथ चल दी।

थोड़ी देर में ही हम दोनों मेरे घर पहुँच गये। घर पहुँच कर मैंने घन्टी बजाई तो पत्नी ने दरवाजा खोला। मैंने माधुरी का परिचय पत्नी से कराया और हम सब घर में अन्दर आ गये। पत्नी माधुरी के लिऐ पानी लेने चली गयी और मैं उन्हें सोफे पर बिठा कर सामने बैठ गया। मैंने पुछा कि कोई परेशानी तो नही हूई तो वह बोली कि नही सीधा रास्ता था। तब तक पत्नी पानी का गिलास ले कर आ गयी और माधुरी को पानी दे कर बोली कि आप भी नाश्ता कर लिजिये। माधुरी ने कहा कि वह तो नाश्ता कर के आयी है तो पत्नी बोली कि वह तो अब तक पच गया होगा। यह कह कर वह नाश्ता लेने चली गयी। माधुरी ने मेरी तरफ देख कर पुछा कि आपने नहीं किया तो मैंने कहा कि संडे के दिन सब कुछ देर से ही होता है।

उन की नजरें कमरे में इधर-उधर घुम रही थी। सामने के शौकेस में परिवार की बहुत सी तस्वीरें लगी हूई थी वह उन को देख कर बोली कि लगता है फोटोग्राफी का पुराना शौक है? मैंने कहा कि मेरे पिता जी को था उन ही से मुझे लगा है। उस जमाने में तो फोटोग्राफी काफी महँगा शौक था। अब तो पुरा तरीका ही बदल गया है। वह उठ कर खड़ी हूई और शौकेस के पास जा कर सारे फोटोग्राफ देखने लगी।

मेरी तथा मेरी पत्नी की फोटो देख कर बोली कि आप दोनों कभी इतने पतले होगे लगता तो नही है। मैंने कहा कि जवानी का समय था उस समय सभी लोग दुबले-पतले होतें थें। उम्र बढ़ने के बााद शरीर भी बढ़ गये है। मेरी बात सुन कर वह मुस्करा दी। तब तक पत्नी नाश्ता मेज पर लगा चुकी थी। उस ने आवाज दी तो हम दोनों भी मेज पर आ कर बैठ गये।

हम तीनों नाश्ता करने लगे तो मैंने पत्नी को बताया कि माधुरी भी हापुड़ की है तो वह आश्चर्य से बोली कि कहाँ से हैं? माधुरी के चेहरे के भाव देख कर मैंने कहा कि मेरी ससुराल हापुड़ में है। मेरी पत्नी वही पर पढ़ी है, यह सुन कर माधुरी के चेहरे पर कई भाव आये और चले गये। पत्नी की बात का जबाव देते हुऐ वह बोली कि सदर में मेरा घर है। पिता जी की दूकान बाजार में है। अब दोनों औरतों के बीच में मेरा कोई स्थान नही था। सारे हापुड़ के इलाके की बातें होने लगी। मैं चुपचाप नाश्ता करता रहा। मेरे को चुप देख कर पत्नी ने कहा कि चुप क्यों हो? मैंने कहा कि जब दो लोग एक ही इलाके के निकल आये, तो हम तो बाहर के हो गये है ना इस लिये चुप है।

मेरी बात पर माधुरी हँसती हूई बोली कि यह इसी तरह की बात करते है? पत्नी बोली कि हाँ ये ही तरीका है इन का बात करने का। पता ही नही चलता कि तंज कर रहे है या जबाव दे रहे है। इस पर मैंने कहा कि हापुड़ के बारे में तो मेरी जानकारी अपनी ससुराल जाने के रास्तें तक ही है इस लिये तुम दोनों के बीच मैं बोलू भी तो क्या बोलू। मेरी बात को दोनों के पास कोई जबाव नही था।

नाश्तें के बाद दोनों औरतें बरतन रखने के बहाने किचन में चली गयी। वही पर दोनों की बातचीत होती रही। मैं अकेला ड्राइगरुम में बैठा रहा। थोड़ी देर बाद दोनों कमरे में आई तो पत्नी बोली कि यह तो मेरी जूनियर थी कॉलेज में। मैंने कहा कि इस नाते तो साली हो गयी। माधुरी हँस कर बोली कि साली तो हो ही गयी हूँ। पत्नी को याद आया कि हम ने चाय तो पी नही है तो वह चाय बनाने के लिये चली गयी।

माधुरी सोफे पर बैठ गयी और मुझ से बोली कि आप ने पहले क्यों नही बताया कि आप का हापुड़ से संबंध है तो मैंने कहा कि ध्यान ही नही रहा होगा नही तो घर आ कर तो मैंने यह बात पत्नी को बताई थी। मैंने कहा कि शहर के बारे में मैं तो कुछ ज्यादा जानता नही हूँ इस लिए अधिक बातचीत नही करी। मेरी बात पर लगता था कि माधुरी को विश्वास नही हुआ ऐसा उसके चेहरे से लगा। उस ने कहा कि कुछ अपनी फोटोग्राफ्स तो दिखाईये तो मैंने कहा कि चलो टी.वी पर चला कर दिखाता हूँ यह कह कर मैं युएसबी ड्राइव लेने अन्दर चला गया। वापस आया तो ड्राइव को टी.वी में लगा कर फोटोग्राफ्स को चला दिया।

हम दोनों उन्हें देखने लगे मैं साथ-साथ उन के बारे में बताता भी जा रहा था। तभी पत्नी चाय ले कर आ गयी। चाय पीते समय हापुड़ की मिठाईयों की बात चली तो पता चला कि पैड़ों के अलावा भी वहाँ कई मिठाईयाँ बढ़ियां बनती है। मैं दोनों की बातें सुनने लगा तो माधुरी बोली कि लगता है आप को हापुड़ के बारे में ज्यादा पता नही है तो मैंने कहा कि ससुराल के रास्ते और एक मेन बाजार को छोड़ कर मैंने वहाँ कुछ नही देखा है।

दिल्ली वालों के लिए वैसे भी छोटे शहरों में कुछ देखने लायक होता नही है। लेकिन छोटे शहर अपना एक अलग चरित्र रखते है जो मुझे आकर्षित करता है। मैं भी बचपन में छोटे शहर में रहा हूँ इस लिए मुझें उन से प्यार है लेकिन घुमने का ज्यादा शौक ना होने के कारण शहरों को ज्यादा ठीक से जानता नहीं हूँ। यह मेरी कमी कही जा सकती है। मेरी बात पर दोनों बोली कि हर बात की व्याख्या तो कर ही सकते हो। मैंने कहा कि यह तो मेरी रोजी-रोटी है इस में तो मैं माहिर हूँ। चाय पीने के बाद तो पत्नी किचन में खाने की तैयारी करने चली गयी और मैं माधुरी को फोटोग्राफ्स दिखाता रहा।

उन को देख कर वह बोली कि आप तो जब से फोटोग्राफी कर रहे है, जब ज्यादातर लोगों को केमरे के बारे में पता भी नही था। मैंने कहा कि उन दिनों यह बहुत महँगा शौक था, इस लिए ज्यादा फैला नही था लेकिन डिजीटल केमरे और मोबाईल में केमरे आने के बाद तो हर किसी को इस क्षेत्र में आना हो गया है। अपनी पुरानी फोटो दिखाने के बाद मैंने अपनी उन के साथ खिंचीं फोटों देखनी शुरु की। टी.वी की बड़ी स्क्रीन पर उन को देखना एक अलग अनुभव था हम दोनों उन को बड़े ध्यान से देखते रहे और उन की मिमांसा करते रहे। मेरी फोटोग्राफ्स के बाद मैंने माधुरी की खिंचीं फोटोस को लगा दिया तथा उन को देखने लगें।
 
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UPDATE 3

मैंने जो उन की फोटो खींची थी वह बहुत सुन्दर आयी थी। उन में माधुरी बहुत सुन्दर लग रही थी। मैं बोला कि आप की फोटोग्राफ्स भी काफी बढ़िया आई है तो उन्होंने कहा कि खींचनें वाले का कमाल है। मैंने कहा कि खींचनें वाले का तो कमाल है ही लेकिन जिसकी खींची है वह भी कम कमाल की नहीं है। मेरी बात सुन कर वह हँस पड़ी और बोली कि अपने घर में बैठ कर के भी फ्लर्ट कर लेते है। मैंने कहा कि इस में फ्लर्ट की क्या बात है अच्छे को अच्छा बोलना फ्लर्ट करना तो नही है। सुन्दर को सुन्दर ही कहना चाहिए।

हमारी बातचीत में मेरी पत्नी भी कमरे में आई और फोटोस को देख कर बोली कि आप बड़ी सुन्दर लग रही है। मैंने कहा कि यही बात मैंने कही तो माधुरी कह रही है कि फ्लर्ट कर रहे है तो मेरी पत्नी बोली कि फ्लर्ट और यह बड़ी दूर की बात है। यह कह कर वह फिर वापस चली गयी। मैं फिर से टी.वी को देखने लगा। माधुरी मेरी तरफ देख कर बोली कि आपकी पत्नी को आप पर बड़ा विश्वास है। मैंने कहा कि उस का अनुभव आप से ज्यादा है मेरे बारे में।

मेरी अकेले की कुछ फोटोग्राफ्स माधुरी ने भी खींची थी वह जब टी.वी पर आई तो मैंने कहा कि शायद पहली बार मेरी कोई सही फोटो खींची है। मेरी बात सुन कर माधुरी बोली कि झुठ-मुठ की प्रशंसा तो नही कर रहे है। मैंने कहा कि इतने सालों से मैं अपनी सही फोटो देखने के लिए तरस गया था, आज जब देखी है तो प्रशंसा तो बनती है। हम दोनों ही प्रकाश के साथ खेलना जानते थे और जब आप के पास सही प्रकाश होता है तो तस्वीर अपने आप बढ़िया आती है। काफी देर तक इसी तरह की बातें होती रही। इस बीच पत्नी पीने के लिये शरबत रख गयी। हम दोनों बातें करते हुऐ उसे पीने लगे।

अब बातचीत कर रुख शरबत पर मुड़ गया वह बोली कि बढ़िया शरबत है कहाँ से लिया है तो मैंने बताया कि चाँदनी चौक खारी बावली से लेकर आता हूँ । हमारे पुराने पंरपरागत शरबतों का स्वाद कोई कोल्ड ड्रिक नही कर सकती है। मेरी इस बात पर माधुरी ने सहमति से सर हिलाया। फिर बात होने लगी कि पहले तो आम का पन्ना खुब पीते थे अब तो वह मिलता ही नही है। मैंने कहा कि आप ने तो खुब पिया होगा तो वह बोली कि घर में गरमियों में रोज ही बनता था। फिर बचपन की बातें होती रही। हम दोनों का बचपन युपी में ही बीता था इस लिये यादें भी एक जैसी ही थी।

इन सब बातों में कॉफी समय बीत गया पता ही नही चला। पत्नी ने आ कर कहा कि खाना तैयार है वह लगा रही है। यह सुन कर माधुरी उस की सहायता करने के लिए किचन में चली गयी। थोड़ी देर में ही खाना टेबल पर लग गया। खाने में राजमा-चावल बने थे जो मेरे मन-पसन्द थे। मैंने माधुरी से पुछा कि उसे राजमा चावल पसन्द है तो वह बोली कि हाँ यह उस का मनपसन्द आहार है।

मैंने पुछा कि युपी में तो लोग राजमा ज्यादा नही पसन्द करते तो वह बोली कि उस ने इन का स्वाद दिल्ली आ कर ही लिया है। घर में तो अरहर की दाल और चावल बनते थे। फिर मनपसन्द की सब्जियों की बात होने लगी तो मेरी पत्नी बोली कि यह तो हर चीज खा लेते है लेकिन युपी में अधिकतर लोग किसी ना किसी सब्जी को नापसंद करते है। माधुरी ने कहा कि यह तो सही है। मैंने कहा कि एक फौजी परिवार का होने के कारण बचपन से घर में हर सब्जी बनती थी तथा हम में से कोई पिता जी के सामने अपनी पसंद जाहिर नही कर सकता था इस लिये हर सब्जी का मजा लेते है।

खाना खत्म होने के बाद फिर से पत्नी और माधुरी अपनी बातें ले कर बैठ गयी और मैं एक दर्शक की भांति उन का रसास्वादन करता रहा। शाम होने पर चाय पीने के बाद माधुरी बोली कि मुझे अब चलना चाहिए तो पत्नी ने कहा कि रात का खाना खा कर जाना तो वह बोली कि नहीं बड़ी देर हो जायेगी । यह कह कर वह आपना सामान समेट कर चलने लगी तो पत्नी मेरे से बोली कि इन्हें बाहर रिक्शा तो करा आयो।

मैं उस की बात मान कर माधुरी के साथ चल दिया रास्ते मैं वह बोली कि आप तो पत्नी की हर बात मानते है मैंने कहा कि सफल वैवाहिक जीवन का यह राज है कि पत्नी की बात को मत काटो। सड़क पर आ कर मैंने उसे रिक्शे में बिठा कर कहा कि आप जब घर पहुँच जाये तो फोन अवश्य करना। मेरी बात पर वह मेरी तरफ देख कर मुस्कराई और कुछ नही बोली।

मैं भी वापस घर के लिए मुड़ गया। घर आ कर बैठा तो पत्नी बोली कि तुम्हारी दोस्त तो मेरे शहर की ही निकली। मैंने कहा कि यह तो बढ़िया बात है तुम्हारी भी उस से मित्रता हो जायेगी। वह बोली की हमारी तो दोस्ती हो गयी है।

ऐसे ही समय बीतता रहा। एक बार हम पति-पत्नी माधुरी के घर पर हो कर आ गये। दोस्ती जैसी होती है वैसी ही चल रही थी ना ज्यादा की तलब थी ना चाहत। कभी कभी बात हो जाती थी हाल-चाल पता चल जाता था, मैं ही कही ज्यादा जा नहीं पाता था। काम से फुरसत ही नही मिलती थी। एक बाद माधुरी का फोन आया कि वह अपने घर जा रही है कुछ मँगाना तो नही है, मैंने कहा कि मगन वाले की कोई मिठाई लेते आना। इस पर वह बोली कि आप को अपने यहाँ की सबसे बढ़िया मिठाई खिलाऊँगी। फिर वह बोली कि दीदी को अगर हापुड़ जाना हो तो वह मेरे साथ चल सकती है मैंने कहा कि आईडिया तो अच्छा है उस से पुछ कर देख लो तुम्हारे पास उस का फोन नंबर तो है ना, वह बोली कि है तो।

मैंने कहा कि मैं भी उसे बता दूँगा लेकिन उस की तरफ से कोई वायदा नही कर सकता हूँ। उसे अपने मायके जाने के लिये कोई ज्यादा उत्साह नहीं है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि यह तो मैं पहली बार सुन रही हूँ। मैंने कहा कि मुझे भी अजीब लगता है, लेकिन सच्चाई यही है। हमारी बात यही पर खत्म हो गयी। उस ने बाद में पत्नी को फोन किया तो पत्नी ने कहा कि अभी तो वह नहीं जा पायेगी।

बाद में पत्नी ने मुझ से कहा कि तुम कुछ समझते नहीं हो, छोटा शहर है जल्दी बातें बन जाती है, इस लिए इस संबंध को यही तक सीमित रखो। मैं उस की बात का मर्म समझ गया।

मैंने माधुरी को बता दिया कि हो सकता है कि सास-ससुर बेटे के पास गये हो। फिर कभी मौका पड़ेगा तो हापुड़ साथ चलेगें। उस ने कुछ नही कहा।

एक छुट्टी के दिन हम दोनों पति-पत्नी में किसी बात पर बहस हो गयी और बहस इतनी बढ़ गयी कि मेरे सर में दर्द होने लगा और मैं गुस्से में घर से निकल गया। बाहर आ कर सोचा कि कहाँ जाऊँ तो लगा कि माधुरी के पास चलता हूँ इस लिए उस के घर के लिए चल दिया। रास्ते में पत्नी का फोन आया तो उसे नही उठाया। बाद में पता चला कि जब मैंने फोन नही उठाया तो उस ने माधुरी को फोन किया और पुछा कि ये तुम्हारें पास तो नही आये है? माधुरी के मना करने पर पत्नी ने उसे बताया कि गुस्सा हो कर कही चले गये है तथा फोन भी नही उठा रहे है। अगर तुम्हारें पास आये तो अपने पास ही रोक लेना कही और नही जाने देना।

मैं जब माधुरी के घर पहुँचा तो वो मेरा इन्तजार ही कर रही थी। उस ने कुछ पुछा नहीं मैंने उस से कहा कि मुझें सर में माईग्रेन का दर्द हो रहा है तथा मैं कुछ देर के लिये सोना चाहता हूँ, वह बोली कि कोई गोली खा लो तो मैंने कहा कि अगर उस के पास ऐनासिन है तो पानी में घोल कर दे दे। वह बोली कि देखती हूँ शायद हो। यह कह कर वह कमरे में चली गयी। कुछ देर में वापस लौटी तो उस के हाथ में एक गिलास था जिस में गोली घुल रही थी।

मैंने उसे एक बार में ही पुरा पी लिया, कुछ देर बाद सर के दर्द में आराम पड़ा तो माधुरी बोली कि अन्दर बेड पर आराम से लेट जाओ। नींद आ जायेगी। मैं उस की बात मान कर उस के बेडरुम में चला गया और जुते उतार कर बेड पर लेट गया, दवाई के असर से मुझें नींद आ गयी। मुझे नहीं पता मैं कब तक सोता रहा।

शाम को माधुरी ने मुझे जगा कर पुछा कि कुछ खाना खा लो तो मैंने मना कर दिया। फिर वह बोली कि चाय का समय हो रहा है चाय तो ले लो। मैंने हाँ में सर हिलाया। वह चाय बनाने चली गयी। मैं फिर से नींद के आगोश में खो गया। माधुरी ने मुझे चाय पीने के लिए झकझोर कर उठाया तो मैंने उस से पुछा कि टाईम क्या हुआ है तो वह बोली कि रात के आठ बजे है, मैंने कहा कि बड़ी देर तक सोता रहा।

उस ने कहा कि मैंने तुम्हारें घर पर दीदी को बता दिया है कि तुम यहाँ पर हो, तुम्हारें आने से पहले ही उन का फोन आया था। रात को यही पर आराम करो, अब उठ कर चाय पिलों फिर कुछ खाते है मैंने भी अभी तक कुछ खाया नही है। उस की बात सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ कि उस ने खाना क्यों नही खाया तो वह बोली कि तुम इस तरह से पड़े रहोगे तो मैं खाना कैसे खा सकती हूँ?

मैं उस को देखने लगा तो मुझें लगा कि उस की आखों में नमी सी है। यह देख कर मैंने कहा कि मैंने तुम्हें भी परेशान कर दिया। यह तो सही बात नही हुई।

मैं क्या करुँ, मुझ से मेरी परेशानी ही दूर नही होती?

मेरी बात सुन कर वह बोली कि आज क्या हुआ जो तुम घर से निकल गये। ऐसा तो तुम करते नहीं हो? मैंने कहा कि मेरी बर्दाश्त की हद खत्म हो गयी है, अब मैं किसी से बहस नहीं कर सकता, एक तरफ तो नौकरी की परेशानी, उस के बाद घर में कलह बर्दाश्त से बाहर हो गयी थी, माईग्रेन का दर्द पागल कर देता है मन करता है कि कहीं भाग जाऊँ, दूर चला जाऊँ, समझ नही आता क्या करुँ? इसी वजह से आज घर से चला आया नही तो कभी भी ऐसा नही करता हूँ। मेरी बात सुन कर वह बोली कि पहले तो चाय पियों, उसके बाद बात करेगें। मैं भी यही चाहता था सो चुपचाप चाय पीने लगा।

चाय पीने के बाद माधुरी ने कहा कि खाने का समय हो रहा है खाना खाते है मैंने हाँ में सर हिलाया। वह उठ कर खाना बनाने चली गयी। मैं पीछे से सोचने लगा कि यह मैंने क्या कर लिया? माधुरी को भी अपनी परेशानी में घसीट लिया, यह बेचारी तो पहले से ही परेशान थी। अब क्या किया जा सकता था? तीर तो कमान से निकल चुका था। रात में तो घर जाने की मेरी भी हालत नही थी। इस लिये रात तो यही पर गुजारनी पड़ेगी उस के जो परिणाम होगे वह तो बाद में भुगतने पड़ेगें। इसी उधेड़बुन में लगा था कि माधुरी फिर आई और बोली कि कुछ पसन्द का तो नही खाना? मैंने ना में सर हिलाया तो वह मुस्करा कर बोली कि कभी तो सीधा उत्तर दे दिया करो।

यह कह कर वह चली गयी। थोड़ी देर बाद उस ने आवाज लगायी कि खाना लग गया है आ जायो। मैं उठ कर ड्राईगरुम में चला गया। वह मेज पर खाना लगा कर बैठी थी। मैंने कहा कि मैं हाथ धो कर आता हूँ तो वह बोली कि तुम्हारें हाथ गन्दें नही हैं, दोपहर से तो सो रहे हो। खाना खाओ। मैं खाना खाने बैठ गया। हम दोनों चुपचाप खाना खाते रहे। खाने के बाद मैं हाथ धो कर फिर से बेडरुम में सोने के लिये चला आया।

माधुरी भी थोड़ी देर बाद कमरे में आयी और मेरे पास बैठ गयी। फिर कुछ सोच कर बोली कि अगर तुम बताना चाहो तो मुझे बता सकते हो कि आज क्या हुआ था? मैंने उसे देखा और कहा कि कुछ खास नही हुआ था, कोई बात नही थी लेकिन जब किसी का लड़ाई करने का मूड़ हो तो क्या किया जा सकता है? आज ऐसा ही दिन था जितना लड़ाई से बचने की कोशिश की उतनी ही वह बढ़ गयी। बेकार ही बात पर बहस और उस के बाद लड़ाई। बिना मतलब के, लेकिन कभी-कभी लगता है कि लड़ाई भी एक औजार की तरह इस्तेमाल होती है सामने वाले को दबाने के लिए।

सर इतनी बुरी तरह से दर्द कर रहा था कि लग रहा था कि यहाँ से नही हटा तो कुछ बहुत बुरा हो सकता था। शायद ब्रेन हैमरेज हो जाता। कल चैक कराता हूँ कि बीपी तो नही बढ़ गया है। मेरी बात सुन कर माधुरी बोली कि मैं क्या सलाह दूँ? मैं तो तुम से ही सलाह माँगती हूँ। मैंने कहा कि कोई सलाह नही दे सकता। मेरे जीवन के मेरे अपने लिये कुछ नही रहा है, पहले परिवार के लिए जिया, अब इन के लिए जी रहा हूँ, जब भी कुछ अपने बारे में करने की सोचता हूँ तो क्लेश हो जाता है। किसी से कह भी नही सकता, मेरी आदत ही नहीं है किसी से अपने बारे में बात करने की। मेरी बात सुन कर माधुरी ने कहा कि अब इस पर बात नही करते, तुम सो जाऔ।

मैं सोने की कोशिश करने लगा तो लेकिन नींद नही आ रही थी। मैंने माधुरी से कहा कि तुम्हें भी मैंने अपनी परेशानी में घसीट लिया है। मैं इस के लिए माफी माँगता हूँ, मेरी इस बात को सुन कर उस ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और कहा कि तुम मुझे इस लायक समझते हो, मैं इस से खुश हूँ। मैं तुम्हारें किसी काम आ सकी यही क्या कम है। मैं उस को देखता रहा, वह मेरी नजरों से बचने के लिए उठ कर बाहर चली गयी। मैं बेड़ पर लेट गया कि शायद नींद आ जाये और यही हुआ कुछ देर बाद मैं सो गया।

सोते में मुझे लगा कि मेरे चेहरे पर पानी सा गिरा है और मेरी आँख खुल गयी, देखा कि मेरा सर माधुरी की गोद में है और वह मेरे सर में तेल की मालिश कर रही है उस के चेहरें से आँसु गिर रहे थें जो मुझे पानी की बुंद लग रहे थे। मेरे को जगा देख माधुरी बोली कि मुझे लगा कि तेल की मालिश से दर्द में लाभ मिलेगा इस लिये तेल लगा रही थी।

मैंने पुछा कि रो क्यों रही हो तो वह बोली कि अपने दुर्भाग्य पर रो रही थी, जिस किसी को चाहती हूँ वह दुखी हो जाता है। मैंने कहा कि अपने को दोष देना बंद कर दो, यह मेरा बहुत पुराना दर्द है तुम्हारा इस में कोई योगदान नही है। ना वह अपनी जगह से हटी ना ही मैंने अपने आप को उसकी गोद से हटाने का प्रयास किया। दोनों ऐसे ही पड़े रहे।

फिर मैंने उस के हाथ पकड़ कर कहा कि मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे पास किसी को देने के लिये कुछ नही है। यह सुन कर वह बोली कि मैंने कभी कुछ माँगा है? मैंने कहा कि नहीं माँगा है लेकिन मैं तुम्हें झगड़ें के बारे में ज्यादा बता भी नही सकता, मेरा सारा जीवन बेकार सा हो गया है। मुझें चुप ना होते देख कर उस ने अपने हाथ को मेरे होंठों पर रख कर उन्हें बंद कर दिया और बोली की अब इस बारे में बात मत करो। कुछ और बात करतें है।

मैंने पुछा कि बताओं क्या करुँ? इस पर उस का चेहरा मेरे चेहरे पर झुका और उस के होंठो ने मेरे होंठो को छु लिया। यह छुअन कुछ पल की ही थी लेकिन इस ने मेरे तन में एक ऊर्जा सी भर दी। दोनों के मन में जो शर्म थी वह दूर नही हो रही थी। मैं उस की गोद से उठ कर उस के सामने बैठ गया। दोनों कुछ बोल नही रहे थे। मैंने हाथ बढ़ा कर उस के गालों से बहतें आँसु पोंछ दिये।

बिखरें बालों में घिरा उस का चेहरा बड़ा सुन्दर लग रहा था। मैं समझ नही पा रहा था कि मैं जो करना चाह रहा हूँ वह सही होगा या नही। इसी उलझन में उस के सामने बैठा रहा। शायद वह मेरी उलझन समझ गयी थी। उस ने हाथ बढ़ा कर मेरा चेहरा हाथों में ले कर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये। मेरी सारी उलझन उसी पल दूर हो गयी।

उस के होंठ मेरे होंठो से ऐसे चिपकें की अलग ही नहीं हुए जब तक दोनों की साँस फुल नहीं गयी। उस ने कहा कि बस चुप रहो। मैंने बढ़ कर उसे अपने आगोश में ले लिया। उस के हाथ भी मेरी पीठ पर कस गये। हुआ ये कि इस चक्कर में वह मेरे ऊपर गिर गयी और मैं पीछे की तरफ गिर गया। अब माधुरी मेरे ऊपर थी। हमारे शरीरों के बीच में कोई जगह नही बची थी। ना जाने कितनी देर तक हम ऐसे ही आंलिगन बद्ध रहे। दोनों आगे बढ़ने से डर रहे थे। हम दोनों ने एक साथ ही एक-दूसरे को आंलिगन से मुक्त किया। फिर एक दूसरे की बगल में लेट गये। दोनों की सांसें बड़ी तेज चल रही थी, काफी समय लगा उन्हें सामान्य होने में।

मैंने उसे देखा तो लगा कि अभी भी उस की आँखें नम है तो मुझ से रहा नही गया और मैंने उठ कर उस की आँखें चुम ली और बह रहे आँसु पी लिये। फिर उस का माथा चुमा और उस के चेहरे पर चुम्बनों की बारिश सी कर दी। उस के सब्र का बांध भी टूट गया और हम दोनों एक दूसरे को बुरी तरह से चुम रहे थे।

मेरे होंठ अब उस की गरदन से होते हुऐ वक्ष स्थल के मध्य पर थे। मैंने अपने हाथों से उस के ब्लाउज को खोल कर उतार दिया। नीचे उस ने सफेद रंग की ब्रा पहन रखी थी अगली बारी उसकी थी मैंने उसके हुक खोल कर उसे भी उतार दिया। इसके बाद मुझे पता चला कि उस के वक्ष जो सपाट से लगते थे वह तो भरे हूये थे, उस ने कसी ब्रा पहन कर उन को छुपा रखा था।

इस का कारण मुझे बाद में पता चला लेकिन उस समय तो उन्हें देख कर मैं उन पर टुट पड़ा और होंठो से भुरे निप्पलों को चुसना शुरु कर दिया। मेरी इस हरकत से माधुरी के मुँह से आहहहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई उहहहहह निकले लगी। दूसरें हाथ से मैं उसके उरोज को मसल रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी बच्चे को बहुत दिनों बाद खेलने के लिए खिलोना मिला हो।

एक हाथ उस की कमर को सहलाने लगा। फिर नीचे जा कर पेटीकोट के अन्दर से पेंटी पर पहुँच गया। मैंने उठ कर के उस के पेटीकोट को उतार दिया और उस की पेंटी पर चुम्बन दे कर उस की जाँघों को चुमता हूआ पंजों तक जा पहुँचा। उस की पतली उँगलियों को होंठो में ले कर चुसा। मेरी इन हरकतों से माधुरी आहें भर रही थी। हम दोनों एक दूसरे में समा जाने के लिए तड़फ रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे थे।

माधुरी ने उठ कर मेरे कपड़ें भी उतार डाले अब वह और मैं सिर्फ पेंटी और ब्रीफ में थे। मेरी ब्रीफ भी तनी हूँई थी क्योकि लिंग पुरे तनाव में था। मैंने माधुरी को कस कर अपने से चुपका लिया। वह भी मुझ से ऐसे लिपट गयी कि जैसे किसी पेड़ से लता लिपटी होती है। उस के होंठ भी मेरे शरीर का स्वाद ले रहे थे। मैं शारीरिक संबंधों का आदी था वह नयी खिलाड़ी थी।

दोनों के हाथ एक-दूसरे के शरीर को सहला कर उत्तेजित कर रहे थे। मैंने उसे लिटा कर उस की पेंटी उतार दी और अपनी उँगली उस की योनि में डाल दी, वहाँ नमी की कमी नही थी लेकिन बहुत कसावट थी कुछ देर उँगली अन्दर बाहर करने के बाद उस के मुँह से आह निकली और उस ने उत्तेजना वश मेरे होंठ काट लिये। मैंने अपनी उँगली योनि से निकाल ली।

अब मुझे लगा कि ज्यादा देर करना सही नही है, तो अपनी ब्रीफ उतार कर उस की टांगों के बीच बैठ गया और लिंग को उस की योनि के मुँह पर रख कर हल्का सा धक्का लगाया। लिंग का सुपारा अन्दर घुस गया। दूसरी बार धक्का दिया तो आधा लिंग योनि में चला गया।

माधुरी के चेहरे पर दर्द का प्रभाव दिख रहा था वह नीचे का होंठ ऊपरी होंठ से दबा कर आवाज को निकले से रोक रही थी। अब के धक्के में लिंग बच्चेदानी के मुँह तक पहुँच गया था दर्द के कारण माधुरी के नाखुन मेरी पीठ में चुभ रहे थे। मैं कुछ देर रुका रहा फिर धीरे-धीरे कुल्हों को ऊपर-नीचे करने लगा, थोड़ी देर में नीचे से वह भी कुल्हें उठा कर साथ देने लगी। फच-फच की आवाज आ रही थी।

दोनों के शरीर एक-दूसरे से मिलन को आतुर हो रहे थे। पसीने से नहायें हुए हम दोनों संभोग में रत हो गये। समय का पता नही चल पा रहा था। मैंने कुछ देर के लिए लिंग को योनि के बाहर निकाल लिया। जब दूबारा से डाला तो वह आसानी से पुरा चला गया। मेरे शरीर में ऐसी पाश्विक उत्तेजना आ गयी कि मैं अपने शरीर को एक सीध में कर के धक्कें लगाने लगा।

नीचे से माधुरी की कराहें मुझे सुनाई दे रही थी लेकिन यह आनंद की कराह थी। जाने कितनी देर तक मैं ऐसा करता रहा। मैं स्खलित नही हो रहा था, चाहता था कि स्खलित हो जाऊँ लेकिन हो नही पा रहा था, शरीर ताप से जल सा रहा था। फिर अचानक आँखों के आगे तारें से छा गये और मेरे लिंग के मुँह पर आग सी लग गयी। मैं निढ़ाल को कर माधुरी के ऊपर ही लेट गया। उस की टांगें भी मेरी कमर पर कसी हूई थी।

कुछ देर बाद होश में आने पर मैं उस के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया। गरदन घुमा कर उसे देखा तो उस की साँस धौंकनी की तरह चल रही थी। स्तन बड़े जोर से ऊपर नीचे हो रहे थे। दिमाग कुछ सोच नही पा रहा था। काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़ें रहें। मैंने करवट बदल कर उस की तरफ मुँह किया तो वह भी मेरी तरफ मुड़ी। उस की नजरें मेरी नजरों से मिली तो उन में अलग सी चाहत नजर आ रही थी।

उस ने पुछा कि हम दोनों को क्या हो गया था?

मैंने कहा कि पता नही क्या हुआ था? लेकिन जो भी हुआ था वह अप्रत्याशित था। मुझे इतनी देर कभी नही लगती है। स्खलित होने में इतनी देर तो कभी नही होती है।

मेरी बात को सुन कर वह बोली कि आज तुम ने मुझे संपूर्ण कर दिया है। मुझे अब माधुरी की नजरों में दोस्ती की जगह प्यार नजर आ रहा था। माधुरी बोली कि तुम तो बहुत बदमाश हो सारा शरीर तोड़ दिया है।

मैंने उसे चुम कर कहा कि तुम्हें पता है कि कल हमारा झगड़ा किस बात पर हुआ था? तो वह बोली कि नही तुम ने बताया नही था। मैंने कहा कि कल बताना सही नही लगा था, लेकिन अब बताने के कोई बुराई नही है। मैंने उसे बताया कि मेरी पत्नी की सेक्स में रुचि नही है तथा मैं जब भी उस के करीब जाता हूँ वह दूत्कार देती है। यह समस्या शादी में शुरु से है, जीवन के वह दिन तो बहुत बुरे बीते है। अब लगता था कि वह कुछ सीख गयी है लेकिन नही, उस के व्यवहार ने मेरा जीवन बर्बाद सा कर दिया है। इस का असर यह हुआ है कि जब वह और मैं मिलते है तब एक-दो मिनट में ही सब कुछ निबट जाता है।

मुझे लगता था कि मेरे में ही दोष है लेकिन आज पता लगा कि अगर पार्टनर सही ना हो या वह उत्सुक ना हो तो ऐसा होता है। आज तो लगा जैसे कि मेरा दम ही निकल जायेगा। शायद बीस मिनट लगे है स्खलित होने में। वह बोली कि पच्चीस मिनट से ज्यादा समय लगा था। वह बोली कि मेरी नजर घड़ी पर गयी थी। मैंने कहा कि माधुरी आज तुम ने मुझे जीवन में पहली बार सन्तुष्टि दी है। इस के लिए तो मैं ना जाने कब से तरस रहा था। अपने आप को कोस रहा था। मेरी बात सुन कर वह कुछ नही बोली और मुझ से लिपट गयी। कभी-कभी मौन भी बहुत कुछ कहता है।

ना जाने हम दोनों कब सो गये। सुबह जब मेरी आँख खुली तो दिन निकलने को था, बगल में देखा तो माधुरी गहरी नींद में सो रही थी, उस का चेहरा बड़ा मासुम लग रहा था। लिंग पुरे तनाव में था, मैंने माधुरी को पीठ की तरफ से अपने से चिपका लिया और उस में पीछे से प्रवेश कर गया। उस के गोल उठे हुऐ कुल्हों के बीच से मेरे लिंग ने उसकी योनि में प्रवेश किया। अन्दर खुब तरलता थी इस लिये लिंग को अन्दर जाने में परेशानी नही हुई। माधुरी थोड़ी कसमसाई लेकिन मैंने उस के स्तनों को सहलाया तो वह स्थिर हो गयी। मैं अपने काम में लगा रहा, कुछ देर बाद माधुरी भी उठ गयी लेकिन वह हिली नही उसे पता था कि क्या हो रहा है तथा वह उसका आनंद ले रही थी।

उस ने मुँह मेरी तरफ घुमाया तो मैंने उस के होंठ चुम लिये। यह आसन मुझे पसंद है क्योकि इस में आप साथ-साथ लेट कर संभोग कर सकते है। काफी देर बाद स्खलित हुआ। माधुरी कसमसा रही थी मैंने उसे अपनी तरफ करा तो वह मुझे सीधा लिटा कर मेरे ऊपर आ गयी और लिंग को जो अभी भी तना हुआ था अपनी योनि में ले लिया। अब उस का चाहा हो रहा था, वह मजे से धीरे-धीरे ऊपर-नीचे हो रही थी। कुछ देर बाद वह भी थम गयी। काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़ें रहे। फिर मैंने उसे अपने ऊपर से हटा कर बगल में लिटा लिया।

मुझे चाय की तलब लग रही थी, माधुरी से तो कहना सही नही समझा और ऐसे ही उठ कर किचन में चला गया। जब चाय बना कर लाया तो माधुरी उठ कर बैठ गयी थी। चाय देख कर बोली कि मेरी तो उठने की हिम्मत ही नही हो रही थी, अच्छा हुआ कि तुम चाय बना लाये। हम दोनों चाय पीने लगे। चाय पी कर बदन में कुछ जान सी आयी। मैंने उस से पुछा कि नहाने चल रही हो तो वह बोली की नहाना तो है लेकिन तुम ने तो बदन सारा तोड़ दिया है उठा ही नही जा रहा है। मैंने कहा कि मैं उठा कर ले चलता हूँ। यह कह कर मैंने उसे बाँहों में उठाया और बाथरुम में घुस गया।

उस का बाथरुम काफी बड़ा था। शावर भी लगा था, मैंने पुछा कि शावर चलता है तो उस ने सर हिलाया। मैंने उसे चलाया और माधुरी को उस के नीचे खड़ा कर दिया, वह पानी में भीग रही थी। उस ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे भी शावर के नीचे खींच लिया। हम दोनों कुछ देर ठन्डे पानी का मजा लेते रहे, फिर मैंने साबुन उठा कर उस के बदन पर लगाना शुरु किया और उस के सारे बदन पर साबुन लगा दिया, अब मेरा नंबर था माधुरी ने भी मेरे सारे शरीर पर साबुन लगा दिया।

इसके बाद हम दोनों ने एक-दूसरे के बदन को कस कर के पानी से धो दिया। नहाने से शरीर में जो थकान थी वह चली गयी। हम दोनों बच्चों की तरह पानी का मजा लेते हुये नहाते रहे फिर जब नहा कर निकलने लगे तो पता चला कि तोलिया तो लिया ही नही था। अब बदन कैसे पोछे? मैंने माधुरी का बदन अपने हाथों से अच्छी तरह से पोंछा, जिस से उस का बदन काफी हद तक सुख गया। इसके बाद मैंने अपना शरीर भी इसी तरह से पोंछ लिया। अब दोनों के बदन से पानी टपक नही रहा था। हम दोनों उस के बेडरुम में आ गये जो साथ में ही था।
 
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UPDATE 4

माधुरी ने अलमारी खोल के तोलिया निकाला और मेरी तरफ उछाल दिया, मैंने उसे लपका और अपना बदन पोछने लगा। बदन पोछने के बाद तोलिया माधुरी को देने लगा तो वह बोली कि जो काम शुरु किया है उसे खत्म तो करो। मैंने मतलब समझ कर उसे अपने पास किया और उस के बदन को भी अच्छी तरह से सुखा दिया। माधुरी अपने कपड़ें निकाल कर पहनने लगी तो मुझे ध्यान आया कि कही मेरी ब्रीफ गन्दी तो नही हो गयी रात को, मैंने उसे उठा कर देखा तो वह साफ सुथरी थी मैंने उसे पहन लिया। इस के बाद बनियान पहन कर पेन्ट और कमीज पहन ली।

माधुरी ने जब कपड़ें पहन कर घुम कर देखा तो वह बोली कि बड़ी जल्दी तैयार हो गये? हर काम में तेजी दिखाते हो। मैंने कहा हम तो ऐसे ही है। मेरी बात सुन कर वह बोली की एक बार शुरु होते हो तो रुकते ही नही हो। कल से मेरी जान निकाल दी है। मैंने कहा कि वह तो मेरी जान है उसे कैसे निकाल सकता हूँ? मेरी यह बात सुन कर वह हँसी और बोली की जनाब का यह रुप तो अभी तक देखा ही नही था। मैंने उसे बाँहों में भर कर कहा कि दोस्त से प्रेयसी अभी तो बनी हो तो पहले यह रुप कैसे देखती? वह शरमा गयी। उसने नकली गुस्से में मेरी छाती में मुक्कें मारे। मैंने उसे और कस के अपने से लिपटा लिया। वह कसमसाती रही।

उसके माथे पर चुम्बन ले कर मैंने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त कर दिया लेकिन वह हटी नही। उस ने मेरे गाल पकड़ कर कहा कि और कितनें रुप है तुम्हारें? छुपे रुस्तम हो। मैंने कहा कि जैसे भी है अब तुम्हारे है। मेरी बात पर वह बोली कि बातों से पेट भरना है या कुछ खाना है। मैंने कहा कि जैसा तुम कहो, अभी तो तुम्हारे हवाले हूँ मेरी बात पर वह हँसती हुई बोली कि चाय बना कर लाती हूँ फिर नाश्ता बनाती हूँ।

कुछ देर बाद वह चाय के दो कप ले कर आयी और बोली कि सुबह तो मुझे लग रहा था कि मैं तो बिस्तर से उठ ही नही पाऊँगी लेकिन अब सही हूँ। मैंने कहा कि ऐसा पहली बार होता है कल तो हुआ भी कुछ ज्यादा ही था। वह बोली कि कुछ नही बहुत ज्यादा हुआ था। मैंने कहा कि हाँ सही कह रही हो लेकिन कल की बात ने मेरी एक बहुत बड़ी शंका का निवारण कर दिया है। मेरे मन से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है।

माधुरी कुछ नही बोली, कुछ देर बात उसे कुछ याद आया तो वह बोली कि तुम अकेले चले जायोगे या मैं साथ चलुँ। मैंने कहा कि अकेला चला जाऊँगा तो वह बोली कि नहीं तुम्हें छोड़ कर आना पड़ेगा, तो मैंने कहा कि कोई बच्चा नही हूँ चला जाऊँगा।

मेरी बात पर वह बोली कि कल तुम ने बहुत बड़ी गलती कर दी थी घर से निकल कर, आज दीदी से इस बात की माफी मागँना और मुझ से वादा करो कि कितना भी गुस्सा आये लेकिन घर से नही निकलना। अगर मेरे पास नही आते तो कहाँ जाते? दीदी और मैं कितनी परेशान होती इस का तुम्हें कोई अन्दाजा है? मैंने माना कि कल का मेरा व्यवहार बहुत गलत था मुझे ऐसा नही करना था, पत्नी और परिवार को परेशानी में डाला था। मेरी बात पर वह कुछ नहीं बोली और चुपचाप चाय पीती रही।
 
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UPDATE 5

इस के बाद वह नाश्ता बनाने चली गयी। मैं बैठ कर अखबार पढ़ने लगा। दोनों जब नाश्ता कर रहे थे तो वह मेरे से बोली कि मैं किस तरह से दीदी का सामना करुँगी? मैंने कहा कि सामना तो करना पड़ेगा जिस रास्ते पर चल पड़े है तो मार्ग में आने वाली बाधाऔं का सामना तो करना पड़ेगा और कोई चारा नही है। तुम कुछ कहना नहीं, यही बताना कि मैं कल सारे दिन-रात सोता रहा हूँ। रात को खाना भी नही खाया है। उस के सामने डाँट भी देना जैसे अभी डाँटा है इसी तरह से।

मेरी बात वह सुनती रही। फिर बोली कि हम औरतें बिना कही हुई बात भी समझ जाती है। मैंने पुछा कि हम आदमी ऐसा क्यों नही कर पाते, उस ने कहा कि तुम्हारा ध्यान और बातों पर रहता है। यह कह कर वह मुस्कराई। मैंने बात समझ कर कहा कि मेरे पर तो ऐसे आरोप मत लगाओ तो वह बोली की इतने शरीफ नही हो जितने दिखते हो?

मैंने पुछा, अब मैंने क्या कर दिया?

उस ने कहा कि पुछते है क्या कर दिया है। जैसे कुछ पता ही नही है।

मैंने कहा कि भई कुछ ज्ञानवर्धन तो करो।

इस पर उस ने मेरे को अखबार उठा कर मारा।

मैंने कहा कि शराफत का जमाना ही नही रहा।

वह बोली कि तुम और शराफत? मैं हँस पड़ा, उस की भी हँसी निकल पड़ी।

हम दोनों कैब करके मेरे घर के लिये निकल पड़ें, ना जाने क्यों माधुरी ने अपनी कार नही ली थी। मैंने पुछा भी नही। घर पहुँचें तो माहौल सामान्य था, माधुरी ने ही पत्नी को कल का सारा किस्सा बताया कि वह तो डर गयी थी मुझ को देख कर, दवाई लेने के बाद सो गये थे फिर रात को उठे चाय पी कर फिर सो गये। खाना भी नही खाया, मुझे लगा कि कुछ और ना हो रहा हो, नाड़ी चैक करी तो सही थी। सारी रात डर लगता रहा। सुबह इन्हें बहुत डाँटा की ऐसी हालत में घर से नही निकलना चाहिए था।

पत्नी भी बोली कि ऐसा कभी करते तो नही है लेकिन कल पता नही क्या हो गया था, ये तो अच्छा हुआ कि तुम्हारे घर चले गये और कही होते तो मैं तो सो भी नही पाती। मैंने दोनों के सामने अपनी गल्ती मानी और वादा किया कि आगे से ऐसी गल्ती नही करुँगा।

माधुरी बोली कि आप को किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए तो पत्नी बोली कि आधे से ज्यादा दोस्त तो डॉक्टर है लेकिन किसी को दिखाते नही है। माधुरी बोली कि कल कह रहे थे कि उल्टी सी आ रही है, मैं तो सुन कर ही डर गयी थी कोई डॉक्टर पास में नही था नही तो तभी दिखा लाती। आप इन को दिखाये ताकि माईग्रेन का ईलाज हो सके।

मैंने उसे बताया कि डॉक्टर को दिखाया था उस ने दवाई दी थी वह खाई भी थी लेकिन ज्यादा दिन तक नही खा सकते है। इस का पता भी नही है कब हो। एक ही हल है कि उन परिस्थितियों से बचना चाहिऐ जिन से माईग्रेन हो सकता है। कोशिश तो करता हूँ कि इन से बचुँ लेकिन कभी-कभी ऐसा करना संभव नही हो पाता।

इस के बाद माधुरी ने कहा कि वह अब चलती है तो पत्नी ने कहा कि खाना खा कर शाम को चली जाना तुम्हें कुछ खरीदारी भी तो करनी थी हम दोनों खाना खा कर बाजार चलते है तुम वही से निकल जाना। पत्नी ने मेरी तरफ देखा तो मैंने माधुरी से कहा कि कल तो तुम्हारा दिन मेरी वजह से खराब हो गया था आज बाजार जा कर आज का सदुपयोग कर लो। माधुरी बोली कि सदुपयोग यह शब्द कहाँ से सीखा? तो मैं बोला कि भई मेरी मातृभाषा का शब्द है।

वह हँस कर बोली कि चलिये आज का सदुपयोग कर लेती हूँ। पत्नी उस का हाथ पकड़ कर अन्दर ले गयी। दोपहर में खाना खाने के बाद दोनों बाजार चली गयी और मैं अकेला घर पर आराम करता रहा। माधुरी वही से वापस अपने घर चली गयी। घर आ कर पत्नी ने बताया कि उसे कुछ कपड़ें खरीदने थे सो उन्हें ले कर वह चली गयी लेकिन जाते जाते मेरी सेहत को लेकर पत्नी को खबरदार कर गयी।

रात को उसका फोन आया यह पुछने के लिये कि अब मेरी तबीयत कैसी है? मैंने उसे बताया कि अभी तो सही है आगे कैसी रहती है ये देखने की बात है, इस पर उस ने कहा कि तुम्हें मेरी कसम है जो अब किसी बात पर गुस्सा किया, तुम्हारी बीमारी से मैं बहुत परेशान हूँ पता नही आज मुझे नींद कैसे आयेगी?

इस पर मैंने उसे कहा कि मैं गुस्सा नही करने तो कह सकता हूँ लेकिन परिस्थिति कैसा रुप लेगी इस पर तो मेरा कोई बस नही है। मैंने उस से कहा कि मेरी ज्यादा चिन्ता ना करें, इस पर जबाव मिला कि यह उस के बस से बाहर है। मैंने कहा कि मैं सुबह उस से पता करुँगा कि उसे नींद आयी कि नही। वह हँस कर बोली की चलो देखते है कि तुम पुछतें हो या नही?

दूसरे दिन सोमवार था मैं ऑफिस जाने के चक्कर में माधुरी को फोन करना भुल गया। शाम को याद आया तो उसे फोन किया, काफी देर बाद फोन उठाया तो उस की आवाज दबी हुँई थी, वजह पुछी तो वह बोली कि जैसे तुम्हें पता नही है? मैंने फोन ना कर पाने के लिये माफी माँगी तो वह बोली कि मुझे तो पता था कि तुम नही पुछोंगे? मैंने समझाना चाहा लेकिन उस का मुड खराब था मैंने फोन काट दिया।

घर पर जा कर बैठा तो सर दूबारा दर्द से फटा जा रहा था। अपने एक डॉक्टर मित्र को फोन किया तो उस ने एक दवाई बताई तो मैं वह दवाई लेने चला गया। वापस घर आ कर मैंने दवाई खायी और उस के असर से मैं बिना खाना खाये ही सो गया। पत्नी ने जगाया भी लेकिन मैं नहीं उठा। सुबह उठा तो दर्द तो नही था लेकिन तबीयत खराब थी लेकिन छुट्टी नही ले सकता था सो कैब करके ऑफिस चला गया।

वहाँ दिन में माधुरी को फोन किया तो उस ने उठाया और कहा कि आज क्या बात है सूरज शायद पश्चिम से निकला है, मैंने उस के तंज को नजर अंदाज करके कहा कि मेरी तबीयत कल भी खराब थी आज मजबुरी में ऑफिस आया हूँ लगा कि तुम को बता दूँ इस लिये फोन किया था। उस ने पुछा कि ऐसे में गाड़ी क्यों ड्राईव करी? इस पर मैंने उसे बताया कि कैब से आया था। यह सुन कर उस ने चैन की साँस ली, वह शायद बिजी थी बोली कि मैं तुम्हें बाद में फोन करती हूँ। मैंने फोन काट दिया।

इस के बाद में मैं एक मिटिंग में चला गया। इस लिए फोन साईलेंस पर था। शाम को जब मिटिंग के बाद देखा तो माधुरी की कई मिस काल थी। मैंने उसे फोन लगाया तो उस ने पहली बार में ही उठा लिया। मैंने सॉरी कहा और बताया कि मीटिंग में था इस लिए कॉल का पता नही चला। वह चुप रही। मैंने कहा कि रास्ते में बात करते है। इस के बाद मैंने कैब बुलाई और घर के लिये निकल गया।

रास्ते में माधुरी का फोन आया। उस ने मुझ से कहा कि सही बताऔ कैसी तबीयत है मैंने कहा कि सही है घर जा रहा हूँ वह बोली कि मन कर रहा है कि उड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊँ, मैंने उसे कहा कि चिन्ता की कोई बात नही है सब सही है। मैंने डॉक्टर से दवा ले ली है तथा यह उस का ही साईड इफेक्ट है। उस ने कहा कि मुझे अपनी फोटो खींच कर भेज दो मैंने एक सेल्फी ले कर उसे भेज दी। अब मैंने कहा कि मुझे भी उस की फोटो चाहिए ताकि मुझे भी विश्वास हो सके की वह सही है।

इस पर वह बोली कि तुम्हें कैसे पता कि मेरी तबीयत खराब है मैंने कहा कि पता है। इस पर थोड़ी देर में उस की भी फोटो आ गयी। फोटो में वह थकी सी लग रही थी, मैंने उसे कहा कि मेरा शक सही है तुम्हारी तबीयत ठीक नही है। वह बोली कि रात भर मुझे नींद नही आयी है। मैंने कहा कि हम दोनों छोटे बच्चें तो नही है ऐसा व्यवहार मत करो कि मैं फिर से चिन्ता करुँ और दर्द शुरु हो जाये। खुश रहो मस्त रहो। तभी मैं भी सही रह सकता हूँ।

कैब में ज्यादा कुछ नही कह सकता था सो यह कह कर फोन काट दिया। घर जा कर बैठा था तो पत्नी ने कहा कि मुझे तो तुम्हें फोन करना ध्यान ही नही रखा। मैंने कहा कि औरों को फोन करना ध्यान रहता है लेकिन बीमार पति से उसका हाल पुछना ध्यान नही रहता।

उस ने कुछ नही कहा। मेरे और उस के बीच इस तरह का प्यार था। खाना खा कर मैंने दवा खायी और माधुरी को मैसेज किया कि दवा खा कर सोने जा रहा हूँ। फिर मैसेज को डिलीट कर दिया। आशा थी कि उस ने मैसेज देख लिया होगा। पत्नी को भी कहा कि अगर मैं सो जाऊँ तो उठाना नही। यह कह कर मैं सोने चला गया।

सुबह सो कर उठा तो हालत कुछ सही थी। फोन देखा तो उस पर कोई मैसेज नही था। लेकिन तभी माधुरी का मैसेज आया कि क्या हाल है? मैंने जबाव दिया कि बेहतर है तुम्हारा? उस ने जबाव में अपनी फोटो भेज दी। सुबह की रोशनी में उसका चेहरा चमक रहा था। मैंने गुड मार्निग लिखा और सारे मैसेज डिलीट कर दिये।

इस के बाद मैं ऑफिस के लिये तैयार होने लगा। सारा दिन व्यस्त रहा शाम को रास्ते में ही थोड़ी देर के लिए माधुरी से बात हुई। पुरा हफ्ता ऐसे ही बीता। रविवार को मुझे लगा कि मुझे माधुरी के पास जाना चाहिये पता तो चले कि उस का क्या हाल है पत्नी से तो संबंध ठन्डे से ही थे।

मैं नाश्ते के बाद घर से निकल गया। माधुरी को फोन किया तो पता चला कि वह घर पर ही थी मैंने कहा कि मैं आ रहा हूँ तो वह बोली कि कहीं घुमने चलते है तुम आ जाओ। घर पहुँच कर अन्दर घुसा तो वह दूर ही खड़ी रही। मैं जा कर कमरे में बैठ गया वह पानी लाने चली गयी। पानी पीने के बाद मैंने उसे पास बिठाया तो वह तमक कर दूर बैठ गयी।

मेरी समझ में उस का यह व्यवहार नहीं आ रहा था। कुछ देर तक मौन छाया रहा। मैंने कहा कि अब चलता हूँ यह ही देखने आया था कि तुम कैसी हो? मेरी इस बात पर उस के आँसु बहने लगे। मेरी समझ नही आ रहा था कि क्या करुँ? मैंने उस से पुछा कि क्या बात है तो वह कुछ नही बोली जब मैं उठ कर चलने लगा तो वह पीछे से आ कर लिपट गयी। मेरे कदम रुक गये।

मैंने उसे पकड़ कर आगे किया और पुछा कि यह क्या है? फोन पर तो कह रही थी कि कही घुमने चलते है और अब यह क्या कर रही हो। मेरी समझ में नही आ रहा है। मैंने उसे गोद में उठाया और उस के बेडरुम में आ गया। उसे बेड पर डाल कर उस के पास बैठ गया तथा उस के दोनों हाथों को पकड़ कर पुछा कि मैंने क्या गलत किया है? उस ने घीरे से कहा कि वह कई दिनों से सोई नही है।

मैं यह जान कर आश्चर्यचकित रह गया। तुमने तो कहा था कि नींद आ रही है। वह कुछ नही बोली, मैंने कहा माधुरी मेरी परेशानी मत बढ़ाओ बताओ क्या बात है? उस ने कहा कि तुम्हारी चिन्ता लगी रहती है। मैंने कहा कि हम रोज तो बात कर रहे है। रोज मिल तो नही सकते। तुम्हें सब पता है। वह बोली कि मन नही मानता। मैंने कहा कि अगर यही हालात रहे तो चिन्ता के कारण मेरी तबीयत फिर से खराब हो जायेगी।

मैंने उस के होंठ चुमें और कहा कि रानी जी बताओ क्या करुँ कि तुम को नींद आ जाये। इस पर वह हँस पड़ी, मैंने कहा मुझे यही माधुरी चाहिये। बहुत गम है मेरी जिन्दगी में, तुम ही तो एक खुशी का कारण हो। तुम तो उदास मत रहो। वह बोली कि मन पर काबु नही हो रहा है। मैंने कहा कि काबु करना पड़ेगा। सब कुछ तो मन के मुताबिक नही हो सकता। मैं आज तुम से मिलने, कितना खतरा उठा कर आया हूँ तुम समझ सकती हो सिर्फ इस लिये की मैंने तुम्हें हफ्ते से नही देखा था मेरा मन भी नही मान रहा था।

उस ने कहा कि क्या करुँ मैंने कहा कि जैसा चल रहा है चलने दो, इस में से ही कुछ ना कुछ हल निकलेगा। उस ने कहा कि उस के पीरियड हो रहे है। मुझे लगा कि उस की हालत शायद इस वजह से हो रही है लेकिन उस की लाल आँखे तथा मुरझाये चेहरे को देख कर मुझ से रहा नही गया और मैंने उस से कहा कि वह दो-तीन दिन के कपड़ें रख ले और मेरे साथ मेरे घर चले, वहाँ उसकी देखभाल सही तरीके से हो सकेगी। अपनी छुट्टियों के लिये भी अप्लाई कर दे।

मेरी बात उस की समझ में आयी नहीं लेकिन वह अपने कपड़ें सुटकेस में रखने लगी। मैंने उस के घर को सुरक्षा की दृष्टि से देखा और सारे खिड़कियाँ दरवाजें अच्छी तरह से बन्द कर दिये। इसके बाद में उसे लेकर घर को ताला लगा कर चलने लगा तो उस से पुछा कि कार की चिन्ता तो नही है तो वह बोली कि नहीं वह यहीं खड़ी रहती हैँ।

मैंने कैब करी और उस के साथ घर के लिये निकल गया। घर पहुँच कर पत्नी को बताया कि इस की तबीयत कुछ दिनों से बहुत खराब है मुझे लगा कि किसी से साथ रहेगी तो शायद कुछ सुधार जायेगी इस लिये अपने साथ लिवा लाया। पत्नी से माधुरी को देख कर कहा कि बीमार लग रही है आप ने सही किया।

मैं उस के सुटकेस को लेकर अन्दर चला गया। पत्नी से कहा कि एक कमरा माधुरी को दे दे ताकि वह आराम कर सके। पत्नी ने गेस्ट रुम खोल कर माधुरी का सामान उस में रख दिया। माधुरी चुपचाप ड्राईग रुम में बैठी थी। मैंने उस से कहा कि चाहे तो नहा ले और सो जाये या टी.वी देखना हो तो उसे चला ले।

मेरी बात पर वह बोली कि मैं दीदी की खाना बनाने में मदद करोगी। तभी पत्नी आ कर बोली कि वह तो बन जायेगा तुम कुछ देर मेरे साथ बैठो हम दोनों बाते करते है। मैं उन दोनों को हमारे कमरे में जाते देखता रहा।

अकेला बैठ कर सोचने लगा कि आज जो मैंने किया है वह सही है या नहीं? मेरे पास कोई उत्तर नही था। थोड़ी देर बाद पत्नी अकेली आयी और बोली कि उस के पीरियड हो रहे है इस लिये बीमार है लेकिन नींद क्यों नही आ रही है यह उसे भी पता नही है। शायद अकेलेपन की वजह से ऐसा हो उसे यहाँ ला कर तुम ने अच्छा किया है शायद जल्दी ठीक हो जायेगी। मैंने कोई जबाव नही दिया।

खाना खाने के समय माधुरी कुछ सही सी लग रही थी। खाना खाने के बाद वह सोने चली गयी, शायद पत्नी ने उसे दर्द कम करने की कोई दवा दी थी। हम दोनों अकेले हुऐं तो पत्नी ने कहा कि अगर एक दो दिन में यह सही नही होती तो डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा मैंने सर हिलाया और कहा कि वह अपनी डॉक्टर को इसे दिखा लाये। पत्नी बोली कि तुम इस के अतीत के बारे में कुछ जानते हो? मैंने ना में सर हिलाया और कहा कि किसी के व्यक्तिगत मामलों में वैसे ही दिलचस्पी नही लेता हूँ फिर किसी औरत से यह पुछना भी गलत है।

मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की तरफ देखा तो वह बोली कि मुझे माधुरी अवसाद से ग्रसित लगती है। मैंने कहा कि इतने दिनों में तो मुझें कभी नही लगा कि वह अवसाद की शिकार है। इस पर वह बोली कि मैं तो केवल अन्दाजा लगा रही हूँ हो सकता है कोई और ही बात हो। हम दोनों की बात यही पर खत्म हो गयी।

शाम को चाय के समय माधुरी का चेहरा कुछ खिला सा था शायद नींद आने के कारण ऐसा था। वह बात भी कर रही थी तथा सब लोगों के साथ टी.वी पर आ रहे प्रोग्राम का मजा भी उठा रही थी। रात के खाने पर ऐसे ही बातें होती रही फिर मैं सोने चला गया। थोड़ी देर बाद पत्नी आयी तो उस ने बताया कि अब वह सही है। मैंने उसे गोली दे दी है ताकि वह आराम से सो सके। इस के बाद हम दोनों पति-पत्नी अपने खेल में लग गये, काफी दिनों के बाद खेल रहे थे इस लिये दोनों उत्सुक थे दोनों मजा ले रहे थे। जब खत्म हुआ तो दोनों सन्तुष्ट हो कर सो गये।

सुबह तो मैं उठ कर ऑफिस जाने की तैयारी में लग गया, तभी देखा कि माधुरी भी जग कर कमरे में आ रही थी। मैंने उस से पुछा कि रात को नींद आयी थी तो वह बोली कि हाँ कई दिनों बाद कल नींद आयी थी अब अच्छा महसुस हो रहा है। मैंने उसे कहा कि मैं तो ऑफिस जा रहा हूँ पीछे से उसे जो भी चाहिए पत्नी से बोल दे। उस ने सर हिलाया।

मैंने उस का चेहरा ध्यान से देखा तो उस पर उदासी की झलक नही दिखी। नाश्ता कर के मैं तो ऑफिस निकल गया, पुरे दिन मेरी घर पर कोई बात नहीं हुई। शाम को जब रास्ते से घर पर फोन करा तो पत्नी ने कहा कि अपनी दोस्त की भी चिन्ता नही है। मैंने कहा कि जब तुम हो तो मैं क्यूँ चिन्ता करुँ?

मेरी बात पर वह बोली कि तुम पर तो मेरा असर हो गया है। मैंने कहा कि यह अच्छी बात है या बुरी? उस ने कहा कि माधुरी अब सही है सारा दिन उस ने उस के साथ काम करते हुऐ बिताया है। हाँ पीरियड का दर्द तो हो रहा है। मैंने चैन की साँस ली। घर पहुँचने पर पता चला कि आज माधुरी जी रसोई की इन्चार्ज है और वही चाय बना कर ला रही है। जब वह चाय बना कर लायी तो मैंने हँस कर कहा कि यह आराम करने का तरीका है?

इस पर उस ने कहा कि आप बहुत जल्दी परेशान हो जाते है। मैंने कहा कि कल तुम अपनी शक्ल देखती तो यह बात नही कहती। आज और कल में जमीन-आसमान का फर्क दिखायी दे रहा है। पत्नी ने कहा कि यह सही कह रहे है कल तो मैं भी घबरा गयी थी और आज तुम्हें डॉक्टर को दिखाने की बात भी कर ली थी इन से। चाय के साथ पकोड़े भी थे वह भी उसी ने बनाये थे। तीनों चाय पकोड़ों का मजा उठाते रहें।

माधुरी ने पत्नी से कहा कि इन्होंने कहा था कि यह बीच में फोन नही करते है आज पता चला कि सही कह रहे थे। मैंने कहा कि मेरे साथ एक दिन बीता कर देखो तो पता चलेगा कि कई बार तो खाने को भी समय नही मिलता है। खाना वापिस आ जाता है। पत्नी ने मेरी बात को आगे बढ़ाते हुऐ कहा कि रात को यह ही उसे दुबारा गरम करके खाते है।

कभी कभी तो इनके नौकर ही खाना खा लेते है इन्होंने उन्हें बता रखा है कि अगर पाँच बजे तक खाना ना खाऊँ तो तुम लोग खा लेना। इस बात पर माधुरी की हँसी निकल गयी। फिर बोली कि बड़ी बेकार जिन्दगी है इन की। सब लोग इसी तरह की बातचीत में लगे रहे।

माघुरी बोली कि मुझे नेट इस्तेमाल करना है अपने वाईफाई का पासवर्ड दे दो। मैंने उसे एक कागज पर लिख कर दे दिया। वह उसे देख कर बोली कि इतना बड़ा पासवर्ड क्यों है? मैंने कहा कि जरुरी है तो वह बोली कि मेरा पासवर्ड तो बहुत आसान है मैंने कहा कि अब जा कर उसे बदल कर कठिन कर देना नही तो तुम्हारे नेट को कोई और इस्तेमाल कर रहा होगा। उस ने कहा कि मुझें तो कई बार ऐसा लगा है कि कोई और मेरे नेट को इस्तेमाल करता है लेकिन कोई पकड़ में नही आया है।

मैंने कहा कि जब अगली बार तुम्हारे यहाँ आऊँ तो मुझे बताना, सही कर दुँगा। उस ने कहा कि उसे ईमेल भेजनी है। उस ने लेपटॉप में पासवर्ड डाला और काम करना शुरु कर दिया। मुझे कुछ याद आया तो मैंने उस से पुछा कि उसे हिन्दी में टाईप करना आया या नही? तो उस ने कहा कि हाँ काफी हद तक वह टाईपिंग सीख गयी है। मेरे दिये सॉफ्टवैयर की सहायता से उसे हिन्दी कीबोर्ड आ गया है। अब से वह अपनी किताब सीधे कंप्यूटर पर ही टाईप करेगी।

मैं थका हुआ था सो बेडरुम में आराम करने चला गया। लेटा ही था कि पत्नी आई और बोली कि मैं जरा सामान लेने जा रही हूँ तुम दरवाजा बन्द कर लो। मैं उठ कर उस के साथ चला गया। दरवाजा बन्द करके लौटा तो माधुरी के पास जा कर बैठ गया वह मुझे देख कर बोली कि आप तो आराम करने गये थे। मैंने कहा कि आराम और मेरा छत्तीस का आँकड़ा है। यह सुन कर वह मुस्कुरा दी।

मैंने उस से कहा कि यह मुस्कराहट तुम पर अच्छी लगती है। ऐसी ही रहा करो। वह मेरे से बोली कि आप ने मेरे लिये इतना खतरा उठाया। मैंने उस से कहा कि मैंने तो तुम से पहले ही कहा था कि पहले तो मैं दोस्ती करता नहीं हूँ और अगर कर लेता हूँ तो पुरी जान से निभाता हूँ मेरी आदत है। अब तुम को पता चल गया होगा। उस ने कहा कि हाँ ये तो पता चल गया कि आप मेरी कितनी फिक्र करते हैं। मैंने कहा कि दिल में जो लोग रहते है उन के लिये जान हाजिर है।

मैंने उस से पुछा कि अब तबीयत कैसी है तो वह बोली कि दिखायी तो दे रही है। सही हूँ मैंने कहा कि फिर क्या बात थी जो सो नही रही थी। वह बोली कि आप को बताया तो था कि आप की चिन्ता की वजह से ऐसा हो रहा था मैंने कहा कि मैं तो आराम से था और तुम चिन्ता में मरी जा रही थी, इस लिये तुम्हें यहाँ लाया था कि तुम देख सको कि सब कुछ सही है। तुम भी सही रहो यही मेरे लिये सही रहेगा।

वह बोली कि हाँ अब आप की बात मेरी समझ में आ गयी है मैं आगे से परेशान नही होऊँगी। वह बोली कि पहली बार किसी ने मुझे चाहा है और अगर वह बीमार हो गया है तो मैं उस की चिन्ता में मरी जा रही थी। मैंने कहा कि हम सब पर जिम्मेदारियाँ है हमें अपने-अपने काम करने है, रोल निभाने है तथा इसी के साथ अपने लिये भी कुछ करना है यह सन्तुलन बनाना सीखना पड़ेगा।

मेरी बात उस की समझ में आ गयी। मैंने उस के कान के पास मुँह लेजा कर कहा कि शारीरिक नजदिकियों से मन की नजदीकी जरुरी है। इस उम्र में कुछ तो बंधंन मानने पड़ेगें। वह सर हिलाती रही। जब समय मिलेगा तब तन की भी सुन लेगे। मेरा स्वास्थ्य ऐसा ही रहता है इस लिये मेरी ज्यादा फिर्क करने की जरुर नही है अगर कुछ होगा तो मैं खुद ही बता दुँगा। उस ने समझने के अंदाज में सर हिलाया। मैंने उसके दोनों गालों को खींच कर कहा कि रानी जी कुछ समझ आया कि नही तो वह बोली कि सब समझ आ गया है।

मैंने कहा कि कुछ दिन और यहाँ रहो फिर चली जाना उस ने कहा कि एक-दो दिन ही रह सकती हूँ मैंने कहा कि इतना काफी रहेगा। तब तक तुम भी पुरी तरह से सही हो जायोगी। वह बोली कि आप को अब तक समझ नहीं आया है कि हम औरतें पीरियड के समय कितना परेशान होती है। मैंने कहा कि मैं घर पर रहूँ तो पता चलेगा ना। मैं तो सारा समय बाहर ही रहता हूँ।

तभी दरवाजे की घन्टी बजी। जा कर देखा तो पत्नी थी वह सामान ले कर आ गयी थी। उस के हाथ से सामान ले कर मैं उन्हें अन्दर रखने चला गया। हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शुक्रवार को सुबह माधुरी बोली कि मैं आप के साथ ऑफिस जाना चाहती हूँ ताकि यह देख सकूँ कि आप किस तरह ऑफिस जाते है। मैंने कहा कि मुझे कोई समस्या नही है तुम दोनों चल लो वहाँ से कैब से वापस आ जाना, इस पर पत्नी बोली कि मैं तो घर के काम में बिजी हूँ माधुरी को ले जाऔ।

मैंने माधुरी से कहा कि तुम शाम को चार बजे तक कैब से ऑफिस आ जाना शाम को मेरे साथ वापस आना तब सही पता चलेगा कि मैं रोज क्या भोगता हूँ मेरी पत्नी ने भी सहमति जाहिर की और कहा कि अभी तो इस ने नाश्ता भी नही किया है खाली पेट तो मैं इसे नही जाने दूँगी। मैंने कहा कि शाम को आ जाना और यह कह कर मैं घर से निकल गया। दोपरहर दो बजे माधुरी का फोन आया कि मैं आ सकती हूँ। मैंने कहा कि कोई खास काम नही बचा है तुम आ जाऔ।

चार बजे माधुरी मेरे ऑफिस आ गयी, मैंने उसे कॉन्फरैन्स रुम में बिठा कर कॉफी पीला ने को कहा और अपने स्टाफ से बात करने चला गया। काम तो सब निबट चुका था इस लिये उसे ऑफिस की सैर करा कर हम दोनों ऑफिस से घर के लिये कार से चल दिये। ऑफिस से निकल कर मैंने कहा कि तुम्हें मॉल ले चलता हूँ आज तो वैसे भी रोड़ पर भीड़ नही है।

हम दोनों मॉल पहुँचे,गाड़ी पार्किग में खड़ी करके दोनों मॉल में घुमने लगे। माधुरी भी अच्छा फिल कर रही थी। कपड़ों के शॉरुम में घुमते हुँऐ मैंने अन्डर गारमेन्ट का सैक्शन देख कर कहा कि तुम अपने लिये कुछ अच्छी सी ब्रा खरीद लो यह सुन कर वह चौकी और बोली कि तुम्हें कैसे पता चला कि मुझें जरुरत है। मैंने कहा कि बस पता है। यह कर कर मैंने सैल्सगर्ल को बुला कर कहा कि मैडम का सही साईज ले कर कुछ बढ़िया ब्रा सजेस्ट कर दे। माधुरी को लगा कि मैं कही जा रहा हूँ तो मैंने कहा कि यही तुम्हारे साथ हूँ।

यह कह कर मैं किनारे हो गया सैल्सगर्ल अपने काम में लग गयी उस ने माधुरी का नाप ले कर कुछ ब्रा निकाल कर उसे ट्राई करने को कहा तो मैंने उस से कहा कि कुछ पैडेड और वायरड ब्रा भी दे दे। मेरी बात सुन कर माधुरी ने मुझे घुर कर कहा कि कोई ऐरिया है जो तुमने छोड़ा हो? मैं मुस्करा दिया मैंने उस से कहा कि कॅप साईज भी दो तीन दे।

सैल्स गर्ल अपने काम में लग गयी जब वह वापस आयी तो उस के हाथ ब्रा से भरे हूये थे। माधुरी ने मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा कि जा कर ट्राई कर लो और जिस की फिटिग सबसे सही लगे उसे अलग कर लेना, ना ज्यादा कसी ना ज्यादा ढीली लेना।

मेरी बात सुन कर माधुरी उन को ले कर ट्राईल रुम में चली गयी और मैं बाहर घुमता रहा। कुछ कपड़ें देख रहा था एक टॉप पसन्द आया तो उसे ले लिया फिर एक जींस पसन्द आयी तो वह भी उठा ली। माधुरी जब कुछ देर बाद ट्राईलरुम से बाहर आयी तो उस ने दो ब्रा को अलग कर रखा था, मैंने उसे टॉप और जींस दे कर कहा कि इस का भी ट्राई कर ले, वह उन को ले कर चली गई थोड़ी देर में उन को पहन कर बाहर आयी तो जींस और टॉप में जँच रही थी।

मेरे से पुछा कि कैसी लग रही हूँ तो मैंने कहा जँच रही हो। वह बोली कि जींस तो पहनती नही हूँ मैंने कहा कि ले लो। उस ने सर हिलाया तो मैंने पुछा कि ब्रा बिल्कुल सही फिट है उस ने कहा कि ऐसी तो कभी पहनी ही नही है पता ही नही चल रहा कि पहनी है।
 
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UPDATE 6

हम दोनों चारों कपड़ों को ले कर काउन्टर पर पैमैन्ट करने गये तो माघुरी बोली कि पैमेन्ट मैं करोगी। मैं पीछे हट गया। उस ने पर्स निकाल का कॉर्ड से पैमेन्ट कर दिया। सामान ले कर हम बाहर आये तो मैंने उस से कहा कि इन्हें कार की डिग्गी में ही पड़ें रहने देना। घर के अन्दर नही ले जाना।

उस से सर हिलाया कुछ देर तक मॉल के ऐसे ही घुमते रहे फिर गाड़ी निकाल कर घर के लिये चल पडे़। रास्ते में भीड़ कुछ कम थी मैंने उसे बताया कि वीक डेज में तो कार से कार टकरा कर चलती है उस समय पता चलता है कि यहाँ ड्राईव करना कैसा होता है आज तो उस के बारे में पता नही चल सकता है।

माधुरी ने मेरे हाथ में चुकुटी काट कर कहा कि औरतों के अन्डर गारमेन्ट के बारे में इतनी जानकारी कैसे है? मैंने हँस कर कहा कि भई शादी शुदा हूँ जानकारी तो रखनी पड़ती है इस पर वह बोली कि इतनी तो मुझें भी नही है और ना शायद उस सैल्स गर्ल को होगी वह भी अचरज से सुन रही थी।

मैंने कहा कि हमारी तो कोई कीमत ही नही है। उस ने हँस कर कहा कि और क्या-क्या खासियतें है जनाब मे? मैंने कहा कि साथ रहो धीरेःधीरे सब पता चल जायेगी। वह बोली कि जो कुछ कहा था वह सही था ब्रा बिल्कुल फिट मिली है पहन कर मजा आ गया था।

तुम्हें कैसे पता चला कि मैं गलत साईज की पहनती हूँ? मैंने कहा कि मारोगी तो नही तो वह हँस कर बोली कि अपनी जान को कौन मारता है? मैंने कहा कि जब मैंने तुम्हारा ब्लाउज उतारा था तब पता चला कि साईज कुछ और है और मैडम कुछ लग रही थी। तुम्हारे स्तन भरें हुयें है और उस में दबे से लग रहे थे कारण एक ही था कि तुम गलत साईज और गलत कप की ब्रा पहन रही थी। तुम ही नही अधिकांश औरतें ऐसा ही करती हैं उन्हें अपने शरीर के सही साईज का पता नही है जैसा सैल्समैन दे देता है वह ले लेती है।

अब कुछ बदलाव आया है लेकिन हालत खराब ही है। पीठ में दर्द और कई परेशानियां इस कारण से होती है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि मेरी जगह तो तुम्हें प्रोफेसर होना चाहिये। मैंने कहा कि हम तो तुम्हारे प्रोफेसर बन कर ही खुश है। मेरी बात पर वह जोर से हँसी और बोली कि इतने गम्भीर चेहरे के पीछे ये चेहरा क्यों छुपा रखा है? मैंने कहा कि इस चेहरे को कोई देखने वाला नही है इसलिए ऐसा है। वह बोली कि चलो मुझे तो दिखाऔ तो मैंने कहा कि दिखा तो रहा हूँ।

उस ने पुछा कि मेरा जींस का साईज तुम्हें कैसे पता चला? मैंने मजाक में कहा कि जब तुम सो रही थी तो तुम्हारी कमर नापी थी। वह बोली कि अब सच में मार दूँगी। मैंने कहा कि अन्दाजा लगाया था सही निकल आया नही तो मैं एक दो साईज की जींस हाथ में ले कर खड़ा था टॉप का साईज तुम्हारी ब्रा के साईज की वजह से लगाया था।

सही नही निकलता तो और साईज भी वहाँ पर थे। वह बोली कि इन्हें मैं कब पहन पाऊँगी तो मैं बोला कि जब मेरे साथ चलना तो पहन लेना। उस ने सहमति में सर हिलाया तो मैंने कहा कि तुम्हें भी मेरी आदत पड़ गयी है इस पर उस ने कहा कि तुम्हारा असर हो रहा है।

रास्ते में मैंने एक होटल के आगे कार रोकी और उस से पुछा कि क्या खाना है? उस ने कहा कि रोटी, दाल मख्खनी और पनीर ले चलते है। मैंने नॉन, दाल और पनीर की सब्जी पैक कराई। फिर पत्नी को फोन करके कहा कि खाना मत बनाना, इस पर वह बोली कि आईसक्रीम लेते आना।

रास्ते में उस की माधुरी की और अपनी पसन्द की आईसक्रीम ले कर घर आ गये। कपड़ें तो गाड़ी से निकाले नही। खाना ले कर अन्दर आ गये। उस को पत्नी को दे कर कहा कि देखो कैसा है। वह बोली कि इस का कैसे ख्याल आ गया तो मैंने कहा कि जब दिमाग खाली हो तो ऐसे ख्याल आते है।

मैंने उसे बताया कि आज तो माधुरी सही भीड़ नही देख पायी क्योंकि शुक्रवार होने बावजूद रोड़ पर भीड़ कम थी। रात को जब खाना खाने बैठे तो पत्नी ने कहा कि खाना तो लाजबाव है यहाँ से लाया जा सकता है मैंने कहा कि हर समय दक्षिण भारतीय खाना मुझे पसन्द नही है अपनी तरफ का भी कभी-कभी होना चाहिए। माधुरी भी मुझ से सहमत थी।

खाने के बाद माधुरी बोली कि कल मैं वापस जाना चाहती हूँ अब मैं सही हूँ पत्नी बोली कि कल इन की छुट्टी है यह तुम्हें छोड़ आयेगे। मैंने उस से कहा कि वह भी चले तो वह बोली कि मुझे घर में बहुत काम होते है। मैं फिर कभी चलुगी।

सुबह नाश्ता करके मैं माधुरी को ले कर गाड़ी से निकला। रास्ते में वह बोली कि मुझें इतना चाहते है कि अपनी शादी ही दाँव पर लगा दी है? मैंने कहा कि तुम्हें सब पता है अब मैं क्या समझाऊँ दिल पर किसी का जोर नही है। इस से ज्यादा तो मैं कुछ कह नही सकता। उस ने कहा कि दीदी को धोखा देना सही है। मैंने कहा कि नही उस को धोखा नही दे रहे है। बस अपने जीवन को जीने के लिये कुछ पल चुरा रहे है। वह बोली कि हाँ तुम्हारी बात सही है।

शायद दीदी को अन्दाजा है कि हम दोनों के बीच में क्या है? मैंने पुछा कि तुम्हें कैसे पता चला तो उस ने कहा कि हम औरतों को भगवान से छटी इन्द्रीय दी है। उसने कुछ कहा या उस के व्यवहार से कुछ लगा? तो वह बोली कि नही कहा तो कुछ नही बस यही कहा कि ये सब की बहुत चिन्ता करते है। मैंने उसे बताया कि मेरी कई लड़कियाँ कॉलेज में दोस्त थी वह सब पत्नी को जानती है तथा आज भी आना-जाना है सो उसे पता है कि मेरा व्यवहार कैसा है। इस के बाद हम दोनों के बीच मौन पसर गया।

माधुरी के घर पहुँच कर कार से उसका सुटकेस तथा कपड़ों के पैकेट निकाल कर मैं उन्हें लेकर चला और माधुरी घर को खोलने लगी। घर में अन्दर जाने के बाद वह पुरे घर को घुम कर आयी और बोली कि मेरी आदत है कि मैं जब भी बाहर से आती हूँ तो सारे घर को घुम कर देखती हूँ। मैंने कहा कि अच्छी आदत है। उस का सुटकेस तथा कपड़ें बेडरुम में रखने चला तो वह बोली कि आप वही बैठना मैं नहा कर आती हूँ।

मैं बेडरुम में बैठ गया। माधुरी कुछ देर में नहा कर आ गयी, गीले बालों में वह बड़ी सुन्दर लग रही थी मैं उसे देख रहा था तो वह बोली कि इस तरह घुर कर क्या नजर लगाओगे? मैंने जबाव दिया कि अपनों की नजर नही लगती है इस पर वह बोली कि क्या पहले नही देखा है? मैंने कहा गीले बालों में तो नही देखा है। वह शरमा गयी।

मैंने कहा कि ब्रा और कपड़ें पहन कर दिखा दो तो वह बोली कि जल्दी क्या है। आप अभी नही जा रहे हो। मैंने कहा कि हमारे पास समय कम है जो कह रहा हूँ करो फिर कुछ और काम भी करना है। मेरी बात उस की समझ में आ गयी। वह कपड़ें ले कर जाने लगी तो मैंने कहा कि अब मुझ से क्या शरम है। वह बोली कि हाँ सही बात है यह कह कर उस ने चारों तरफ देखा कि कोई परदा तो नही खुला है फिर ब्लाउज उतारने लगी तो बोली कि आप ही उतार दो, मैंने उसे उतारने में उस की मदद की और उस की ब्रा की हुक भी खोल दी उस ने उसे उतार कर नयी ब्रा पहनी तो मैंने उस के पीछे से हुक लगा दिये।

अब वह मुड़ कर मैंने सामने आ गयी और बोली कि बताओ कैसी लग रही हूँ मैंने कहा कि अब तुम्हारा साईज सही लग रहा है तथा उभार दिख रहा है। उस ने टॉप भी पहन लिया और शीशे के सामने खड़ी हो गयी मैंने उस के पीछे से आ कर कहा कि मैडम अब बताऔ कि कुछ गलत राय दी थी क्या? वह बोली कि गलत कहाँ कहा था, यह कहा था कि कोई ऐसा विषय है जो तुम से छुटा है। मैंने कहा कि अब जींस भी पहन कर दिखा दो तो उस ने पेटीकोट उतार कर जींस पहन ली। जींस और टॉप में वह अलग ही लग रही थी। मेरी नजरों को उस से पढ़ लिया और बोली की कुछ मत कहो।

मैं थोड़ी देर वहाँ रुका और फिर घर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में माधुरी का फोन आया कि आज इतनी जल्दी क्या थी जो चले गये। मैंने कहा कि कुछ बात है बाद में बताऊँगा। मेरी बात सुन कर उस ने कुछ और नही पुछा। मैं जब घर पहुँचा तो मुझे देख कर पत्नी ने पुछा कि बड़ी जल्दी आ गये, इस पर मैंने कहा कि उस को घर छोड़ कर आ गया और क्या करता?

मेरी बात सुन कर पत्नी कुछ नही बोली। मुझे ध्यान आया कि घर के कुछ जरुरी काम पड़े थे जिन्हें मुझे करना था सो उन को करने की तैयारी करने लगा। पत्नी ने पुछा कि आज क्या खाओंगे तो मैंने कहा कि जो तुम खिलाऔगी। मेरी बात सुन कर पत्नी हँसती हुँई चली गयी।

मुझे कुछ समझ नही आया कि वह मेरा जबाव सुन कर हँसी क्यों? मैं फिर से अपने काम में लग गया, काम को खत्म करके बैठा ही था तो पत्नी बोली कि खाना खा लो तुम्हारें मनपसन्द राजमा चावल बनायें है। मेरी तो बाझें खील गयी। जल्दी से हाथ धो कर खाने के लिये मेज पर पहुँच गया। खाना खत्म किया तो पत्नी बोली कि आज छुट्टी है तो कुछ आराम कर लो यह काम तो फिर भी होते रहेगें। उस के मुड को देखकर मैं बड़ा अचरज में था कि अचानक आज मेरी पत्नी को मेरी इतनी चिन्ता क्यों होने लगी है।

कोई कारण समझ नहीं आ रहा था लेकिन जब उस ने रोंमाटिक हो कर मुझे पुकारा तो मेरी कुछ-कुछ समझ में आया कि मैडम आज इस लिये मेहरबान है क्योंकि माधुरी चली गयी है तथा मैं उसे जल्दी छोड़ कर आ गया हूँ। मैं जो सोच कर अचानक जल्दी आया था वह बात सही सिद्द हो रही थी। मैंने मन ही मन चैन की साँस ली कि आज तो बाल-बाल बचे है। नही तो मैडम हम दोनों को पकड़ ही लेती, उस ने तो चारा डाला था लेकिन मैंने ही उसे चुगा नही।

रात बहुत रोंमाटिक थी, हफ्ते भर की सारी कसर निकल गयी। मुझे लगा कि मैं जो कर रहा हूँ वह सही है या नही, लेकिन फिर मैंने इस बारे में सोचना बन्द कर दिया। दूसरा दिन भी बढ़िया बीता। मुझ पर पुरी मेहरबानी बनी रही। हम और कर भी क्या सकते थे, मेहरबानियों का भरपुर आनंद उठाते रहे।

अगला हफ्ता सामान्य था, मैं अपने काम में मशगुल था तो वह अपने काम में मशगुल थी। औपचारिकताओं की तरह दो-तीन बार बात हुई। सप्ताहंत पर जब फोन आया तो पता चला कि वह अपने घर जा रही है शायद किसी की तबीयत खराब है, खुल कर कुछ बताया नही और जोर दे कर मैंने कुछ पुछा नही।

संडे को मैं अपनी खींची हुई फोटो को देख रहा था तो मुझें कुछ खास लगी तो मैंने उन्हे इंस्टाग्राम पर डालने की सोचा, फिर लगा कि जैसे लोग फोटोस् पर अपने हस्ताक्षर करते है मुझें भी कुछ ऐसा ही करना चहिए। फिर शुरु हुई हस्ताक्षर करने की विधि सीखने की प्रकिया, नेट पर सर्च करके फोन्ट डाऊनलोड करा, साईन डिजाइन किये और उन्हें फोटो पर सही स्थान पर लगा कर फोटो को दुबारा सेव किया। कुछ फोटो पर हस्ताक्षर कर के उन्हे इंस्टाग्राम पर पब्लिश कर दिया। डालने के थोड़ी देर बाद ही काफी लोगों ने लाईक किया तथा कुछ ने अपनी टिप्पणियां भी की।

यह देख कर मुझे अच्छा लगा पहली बार मेरी खींची फोटो की प्रशंसा हुई थी। कुछ टिप्पणियों का जबाव भी दिया। इस सब के बाद लगा कि इंस्टाग्राम को गंभ्भीरता से लेने की जरुरत है, कुछ नाम तो हो रहा है। रात को इंस्टाग्राम पर माधुरी की टिप्पणी देखी, लिखा था कि अब तक यह प्रतिभा कहाँ छुपा कर रखी थी। मैंने जबाव दिया की वक्त की घुल से ढ़क गयी थी आज झाड़ कर साफ करी है। माधुरी ने घर जा कर कोई फोन नही करा था, इसलिये मैंने भी फोन नही किया मुझे पता नही था कि वहाँ कैसे हालात है? आज की टिप्पणी देख कर लगा कि सब कुछ सामान्य है।

दिल को कुछ सकुन मिला। इस से ज्यादा कुछ किया नही जा सकता था। इस राह में बड़ा सभंल कर चलने की जरुरत थी जरा सी जल्दबाजी सारा खेल बिगाड़ सकती थी और ऐसे हालात बन जाते की उस का समाधान नही हो सकता था। इस लिये मैं इस समय कुछ नही करना चाहता था। माधुरी अगर चाहेगी तो ही आगे बढेगें। मैं तो जो कर सकता था वह कर चुका था। एक अर्थ में तो अपनी सीमा पार कर चुका था।
 
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UPDATE 7

बड़ी मुश्किल परिस्थिति थी कोई मार्ग नही सुझ रहा था। कोई हल नही था माधुरी का व्यवहार भी बड़ा रहस्यमय होता जा रहा था उसका और मेरा मिलना नही हो पा रहा था। एक दिन शाम को जब मैं ऑफिस से घर पहुँचा तो पत्नी ने बताया कि आज माधुरी का फोन आया था वह मुझ से पुछ रही थी कि आप को ब्लाउज बनवाना था तो मुझे अपना साईज भेज दे वह आते में एक ब्लाउज सिलावा कर ले आयेगी। अगर वह सही सिला होगा तो फिर उसी नाप से और ब्लाउज सिल जायेगे।

मैंने यह सुन कर कहा कि तुम्हें तो यहाँ के बने ब्लाउज सही नही लगते तो अपना साईज भेज दो। वह वही से कपड़ा ले कर ब्लाउज सिलावा कर ले आयेगी इस बहाने तुम्हें पता भी चल जायेगा कि ब्लाउज सही सिला है या नही? मेरी राय उसे सही लगी और उस ने अपना नाप मेरे द्वारा ले कर माधुरी को भेज दिया और उसे कपड़े के रंग के बारे में भी बता दिया। अगला हफ्ता दोनों के बीच फोन होते रहे और जब संडे को माधुरी घर से वापस आयी तो वह पत्नी का ब्लाउज सिलवा कर साथ ले आयी।

एक दिन शाम को जब घर पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि माधुरी घर पर आयी हुँई है। मुझें देख कर उस ने नमस्ते की तो पत्नी ने बताया कि आज माधुरी का हॉफ डे था सो वह मेरा ब्लाउज देने आ गयी। मैंने पुछा कि ब्लाउज कैसा सिला है तो माधुरी हँस कर बोली कि आप भी इस में शामिल है तो मैंने उसे बताया कि मेरा ही आईडिया था कि इस को ब्लाउज युपी से सिलवाना चाहिये क्यों कि यहाँ पर तो कोई भी सही नही सिल रहा था। साईज भी बन्दे ने ही लिया था, इतना बड़ा योगदान तो मेरा भी है। दोनों मेरी बात सुन कर हँसने लगी और बोली कि कोई चीज आप से बच नही सकती इस में भी अपनी चला ही दी।

मैंने कहा कि जो चीज हमारे काम की हो तो उस में तो हम दखल देगे ही। मेरी इस बात पर दोनों झेप गयी। मैंने बात संभालते हूये कहा कि किसी भी विषय में सहायता करने की योग्यता तो मैं रखता ही हूँ। मैंने यह भी पुछा कि पहन कर देख लिया है तो पत्नी बोली कि नही तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी, मुझे पता था कि तुम उसे पहना हुआ देखना चाहोगे। पत्नी की बात सुन कर माधुरी ने मेरी तरफ तिरछी नजरों से देखा मैंने अपने नजरें दूसरी तरफ घुमा ली।

पत्नी अन्दर ब्लाउज पहनने चली गयी, पीछे से माधुरी बोली कि आप ने मुझे फोन क्यों नही किया? मैंने कहा कि इस लिये नही किया था कि पता नही तुम उसे पसन्द करो या ना पसन्द करो, मुझे वहाँ की परिस्थिति का कुछ पता नही था। इस पर वह बोली कि यह मेरी गल्ती है कि मैंने आप को कुछ बताया नही था। माँ ने जबरदस्ती बुलाया था उसे आशंका थी कि मैं बीमार हूँ और बता नही रही हूँ इस लिये मैं भी चली गयी। मैंने कहा कि माँओं को ना जाने कैसे पता चल जाता है? माधुरी जब तक जबाव देती तभी पत्नी ब्लाउज पहन कर आ गयी, ब्जाउज उस के सही आ रहा था, फिटिंग बिल्कुल सही थी।

मैंने पत्नी से पुछा कि फिटिंग कैसी है तो वह बोली की काफी समय के बाद सही फिटिंग का ब्लाउज पहना है। मैंने कहा कि माधुरी को धन्यवाद देना तो बनता है तो जबाव मिला की वह तो हम दोनों के बीच की बात है तुम्हारा इस में क्या काम है? मैंने कहा कि हाँ भई हमारा क्या काम है? यह कह कर मैं कपड़ें बदलने अन्दर चला गया। दोनों वही बैठ कर बातें करती रही। जब कपड़ें बदल कर आया तो बातें बादस्तुर जारी थी।

मुझे देख कर माधुरी बोली कि आप चाय तो पीयेगे, इस से पहले मैं कुछ बोलुँ पत्नी बोली कि हम दोनों ने भी चाय नही पी थी तुम्हारा इंतजार कर रहे थे मैंने हँस कर कहा कि अब इंतजार खत्म हो गया है। मेरा जबाव सुन कर माधुरी बोली कि दीदी आपके पतिदेव बदल तो नही गये है, पत्नी बोली कि लगता तो है कि पहले वाले तो नही है। इस पर हम तीनों जोर से खिलखिला पड़ें। पत्नी चाय बनाने चली गयी। मैंने माधुरी से कहा कि तुम से एक बड़ी समस्या हल कर दी है पत्नी की, वह साड़ी इस लिये नहीं पहन पाती कि किसी का ब्लाउज सही नही सिल पाता है। मुझें वह साड़ी में बहुत अच्छी लगती है।

मेरी इस बात पर माधुरी मुझे घुरने लगी। मैंने उसे देख कर कहा कि भारतीय महिलायें भारतीये परिधानों में ही सुन्दर लगती है। उस के चेहरे के भावों को भांप कर मैंने कहा कि मैं किसी भी तरह के परिधानों के खिलाफ नहीं हूँ, पत्नी को भी जींस टॉप पहनना मैंने ही सिखाया है। लेकिन मेरी मनपसन्द पोशाक तो साड़ी ही है। इस के बाद उस के चेहरे के भाव बदले। मैंने उस की आँखों के भाव पढ़ लिये थे। वह समझ गयी कि मैं भी उसे समझने लगा हूँ। चाहत का यह भी एक पड़ाव है।

पत्नी चाय ले कर आयी तो मुझ से बोली कि तुम ही इस को बोलो कि सुबह तो छुट्टी है आज रात यही रुक जाये, रात में इस का जाना मुझें सही नही लग रहा है, मैंने भी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाते हूए कहा कि माधुरी कल चली जाना, रात काफी हो रही है। मेरी बात पर पत्नी बोली कि कल यह तुम्हें खुद छोड़ कर आयेगे। मैंने माधुरी को देखा तो उस की आँख झुकी हुई थी मैंने कहा कि हाँ कल में तुम्हें छोड़ दुँगा। इस बात पर माधुरी राजी हो गयी। पत्नी खाना बनाने चली गयी। पीछे से मैंने कहा कि सब्र का फल मीठा होता है। माधुरी ने मेरी तरफ देखा तो मैंने आँख मार दी। वह मुझे देख कर उठ कर पत्नी के पास किचन में चली गयी।

थोड़ी देर में लोटी तो मुझ से बोली कि आप ने तो बताया नही थी कि आप को फोटोशाप भी आती है? मैंने कहा कि मैडम मैं कंप्यूटर का काम करता हूँ तो हर सोफ्टवेयर में थोड़ा बहुत हाथ आजमा लेता हूँ। मेरी रोजी रोटी है। वह बोली कि अब आप मेरे लिये भी सिग्नेचर बनायेगें और मुझें भी उन को फोटो पर लगाना भी बतायेगें। मैंने कहा कि सिग्नेचर तो खाने के बाद बना लेगे फिर उसे लगाना भी सिखा देगे। मैंने पुछा कि सिग्नेचर के बाद फोटो में अलग से निखार आ जाता है तो वह बोली कि हाँ ऐसे लगता है कि हमने अपनी किसी कृति पर अपने हस्ताक्षर करे हो। मैं उस की बात से शत प्रतिशत सहमत था।

खाना खाने के बाद कंप्यूटर खोल कर उस के लिए सही फोन्ट की तलाश हूई जब सही फोन्ट मिल गया तो मैंने उस से माधुरी का सिग्नेचर बना दिया, फिर उसे एक फोटो पर लगा कर बताया, यह सब माधुरी को बहुत रोचक लगा। मैंने कहा कि तुम्हारे कंप्यूटर में फोटोशॉप डाल देगे फिर तुम भी कर लिया करना, मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं कुछ नही करुँगी, अपनी सारी फोटों आप को दे दुँगी आप ही उन पर सिग्नेचर लगा कर मुझे दे देना। मैंने हाँ में सर हिला दिया। इस के बाद हम तीनों हमारे बेड पर बैठे बातें करते रहे।

काफी देर के बाद माधुरी उठ कर सोने गयी। उस के जाने के बाद पत्नी बोली कि इस तरह समय बिताना अच्छा लगता है। मैंने कुछ नही कहा और सोने की कोशिश करने लगा। पत्नी लेट कर मुझ से पुछने लगी कि ब्लाउज कैसा लग रहा था मैंने कहा कि वर्षों बाद उस ने ढंग का ब्लाउज पहना है अब तो वह साड़ी ना पहनने का बहाना नही कर सकती। मेरी बात सुन कर उस ने अपने हाथों से मुक्कों की बरसात मेरी पीठ पर कर दी। फिर मुझे आगोंश में लेकर सो गयी।

सुबह नाश्ते के बाद मैं माधुरी को उस के घर छोड़ने के लिये निकला तो उस ने रास्ते में शिकायती स्वर में कहा कि आप को तो मेरी बिल्कुल भी चिन्ता नही है। मैं इतने दिन आप से बात नही कर पायी लेकिन आप ने एक बार भी फोन नही किया। मैंने उसे समझाने की कोशिश कि, की क्यों मैंने उसे फोन नही किया था। आगे अगर ऐसी परिस्थिति फिर होगी तो मैं उस को फोन अवश्य करुँगा।

लेकिन उस की नाराजगी दूर नही हो रही थी। मैंने उसे मनाने के लिए कहा कि रानी जी गल्ती हो गयी है अब जो सजा देनी हो दे देना मैं तो यही कह सकता हूँ मेरी इस बात पर उस ने कहा कि सजा तो जरुर मिलेगी। इस के बाद पुरे सफर में हम दोनों नही बोले। मुझे लगा कि हमारे संबंध में यह क्या मोड़ आ गया है?

मैं तो इसकी इज्जत की वजह से इस को फोन नही कर रहा था लेकिन यह उस बात को समझना ही नही चाहती है। कभी-कभी औरतों को समझना मुश्किल हो जाता है। घर पहुँच कर मैंने उसे उतारा तो उस ने अन्दर आने को कहा मैं उस के साथ अन्दर चला गया। घर में आ कर वह फिर मुझ से झगड़ने लगी। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उस की सुई एक ही जगह अटकी हुई थी। मैंने बात बदलने के लिये उस से कहा कि वह भी अपने नये ब्लाउज पहन कर दिखा दे तो उस ने ना नुकर की।

मैंने जोर नही दिया। फिर मैंने पुछा कि अचानक घर जाने की क्या वजह थी तो जबाव मिला कि थी कोई वजह। यह सुन कर मेरा धैर्य जबाव दे गया और मैं उठ कर चलने लगा। उस ने रोकने की कोशिश नही की। मैं चुपचाप दरवाजा बन्द कर के उस के घर में बाहर आ गया। रास्ते में लगा कि शायद फोन आयेगा लेकिन नही आया। जल्दी घर पहुँचा तो पत्नी प्रसन्न दिखी। अपने दूख को दूर करने के लिये अब मुझे उस के आंचल का ही सहारा था।

शाम को पत्नी ने बताया कि माधुरी का फोन आया था तुम उस के घर से ऐसे ही निकल गये थे। उस के फोन को भी नही उठा रहे हो। मैंने कुछ नही कहा। हम दोनों पति-पत्नी एंकात का सदूपयोग करने लग गये। काफी जोरदार समागम हुआ। मुझे लगा कि माधुरी से मिले व्यवहार के कारण मैं बीवी के साथ ज्यादा आक्रामक था। शायद मेरा यह व्यवहार उस को पसन्द था। शाम को हम दोनों मॉल घुमने निकल गये। पहली बार पत्नी ने साड़ी खरीदने में दिलचस्पी दिखाई। उस ने एक साड़ी पसन्द की और मैंने खुशी से उसे खरीद लिया।

शाम अच्छी बीती। रात भी जोरदार बीती, मुझें लगा कि हो क्या रहा है, प्रेमिका नाराज है और बीवी मेहरबान है, लगा कि इस के पीछे कही श्रीमति जी का तो हाथ नही है कि उन्होनें अपने पति को बचाने के लिए कुछ तरकीब भिड़ाई हो। लेकिन मन ने कहा कि पत्नी ऐसा कुछ नही कर सकती है वह तो सामान्य व्यवहार ही तो कर रही है, अजीब व्यवहार तो माधुरी कर रही है। उस के इस व्यवहार के पीछे मुझे कोई तर्क, कारण समझ नही आ रहा था। मैं अपना ज्यादा समय भी इस पर लगाना नही चाहता था। मेरे हाथ में करने के लिये शायद कुछ था भी नही।

दो-तीन दिन ऐसे ही बीत गये ना माधुरी ने फोन किया और ना ही मैंने फोन किया। फिर एक दिन सुबह ऑफिस जाते समय माधुरी का फोन आया, मैंने पुछा कि क्या हाल है तो जबाव मिला कि क्या तुम्हें पता नही है? मैंने पुछा कि मैडम यह तो बताओ की किस बात से नाराज हो तभी तो उसे दूर करुँगा? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मेरी समझ में तुम्हारे व्यवहार की कोई वजह समझ में नही आ रही है या तो तुम्हारें घर जाने से कुछ हुआ है या कुछ ऐसा है जो मुझें पता नही है। ऐसा हो सकता है क्योकि मैं तुम्हारे बारे में कुछ नही जानता? जानना भी नही चाहता और ना ही तुम ने बताया।

मेरी बात सुन कर वह फोन पर रोने लगी। मैंने कहा कि बच्चों की तरह रोओं मत, प्लीज कुछ तो बताओ कि हुआ क्या है या मैं यह समझुँ कि हम दोनों के बीच जो था वह खत्म हो गया है। मेरी बात सुन कर उस ने जोर से रोना शुरु कर दिया। मुझे लगा कि शायद मैं कुछ ज्यादा तो नही बोल गया सो मैंने सॉरी कहा और चुप हो गया। काफी देर तक दूसरी तरफ ने कोई आवाज नही आयी। मैंने उसे नाम लेकर पुकारा तो वह बोली कि कुछ नही हुआ है। मैं अपने को बड़ा गिल्टी फील कर रही थी इस लिये यह सब किया। मैंने पुछा कि गिल्टी फील कर रही हो फिर भी मेरे घर आ रही हो लेकिन मैं जब तुम्हारें घर जा रहा हूँ तो मुझ से झगड़ा कर रही हो मैं इस सब से क्या समझुँ?

माधुरी बोली कि पिछली बार आप ने आते ही कुछ कहा और फिर आप बिना कुछ करे चले गये, मुझे लगा कि आप भी गिल्टी फील कर रहे होगे। तभी ऐसा किया होगा। मैंने कहा कि उस दिन की बात सुनों। मेरा मन तो कुछ करने का था इस लिये तुम से जल्दी करने को कहा था लेकिन तभी मेरे दिमाग में आया कि शायद पत्नी ने हम दोनों को चैक करने के लिये ही तुम्हें भेजने के लिये मुझें भेज दिया हो, यह विचार दिमाग में आते ही और सब कुछ मैं भुल गया और घर के लिये निकल गया। मेरी शंका सही थी वह हम दोनों को चैक कर रही थी मेरे जल्दी पहुँचने से वह बहुत खुश थी। मैं यह सब तुम्हें बताना चाहता था लेकिन बता नही पाया?

मेरी बात सुन कर माधुरी बोली कि मैंने तो कुछ चाहा ही नही है तुम से? सिर्फ अपनत्व ही तो माँगा है। मैंने कहा कि मैंने कब मना किया है लेकिन हम दोनों तो किशोर प्रेमियों की तरह से झगड़ रहे है लगता है कि जवानी को दूबारा जीने की कोशिश हो रही है जो हम नही है। मेरी बात सुन कर उस ने हँस कर कहा कि अभी इतने भी बुढ़े नही हो गये कि लड़ भी ना सके। मैंने कहा कि जब भी लड़ने का मूड़ हो तो बता देना। मेरी बात पर उस की हँसी छुट गयी और वह बोली कि कही कह कर लड़ा जाता है। जब मन करता है तो लड़ लेते है।

मैंने कहा कि अच्छा हुआ कि फोन कर लिया नही तो हो सकता था कि मैं इस बारे में ज्यादा सोचता तो शायद फिर से माईग्रेन हो जाता, इस पर वह बोली कि क्या धमकी दे रहे हो? मैंने कहा कि धमकी नही वास्तुस्थिति बयान कर रहा हूँ मेरी बात सुन कर वह बोली कि अब तो तुम्हारें अन्दर का साहित्यकार जग गया है। खुब जमेगी, मैंने कहा कि मैडम मैं अभी ऑफिस जा रहा हूँ और शायद तुम भी कॉलेज में होगी, इस पर वह बोली कि हाँ सो तो है। मैंने कहा कि अभी लड़ने का समय नही है लेकिन यह समझ लो कि मुझें तुम से लगाव है और उसे मैं शब्दों में व्यक्त नही कर सकता हूँ। चाहें हम शारीरिक तौर पर मिले ना मिले लेकिन तुम मानसिक तौर पर हमेशा मेरे पास रहती हो।

मेरी बात पर वह बोली कि आप तो कभी-कभी सामने वाले को निशब्द कर देते है। मैंने कहा कि पहले तो यह आप कहना छोड़ दो, तुम ही कहा करों। सही लगता है। वह बोली कि मैं पुछने ही वाली थी कि आप ने मेरे मन की बात कह दी। मैंने कहा कि जैसे मैं तुम्हारे मन की बात समझ लेता हूँ वैसे तुम भी मेरे मन की बात जान लेती हो लेकिन कहना नही चाहती। दूसरी तरफ से कोई उत्तर नही आया मैंने कहा कि की अब मैं फोन काट रहा हूँ ऑफिस आ गया है। दुसरी तरफ से फोन कट गया। दिमाग कुछ सोचना चाहता था लेकिन उस के सामने कर्तव्य की बेड़ी पड़ी थी सो वह उस में ही उलझ गया।

शाम को घर जाते में माधुरी को फोन किया तो उसका फोन बिजी जा रहा था। सोचा कि वह बाद में फोन कर लेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, उस का फोन नही आया ना मैंने ही दूबारा फोन किया। मन में चिन्ता तो थी लेकिन उस के व्यवहार से बहुत आहत महसुस कर रहा था इस लिये और आगे कदम नही बढ़ाया। कई दिन ऐसे ही निकल गये। मैं अपने काम में व्यस्त रहा और किसी बात का ध्यान ही नही रहा।

ऑफिस में भी एक सहकर्मी की नजदीक आने की चेष्टा को नजरअंदाज कर रहा था लगता था कि इन सब से दूर ही रहना सही है। सहकर्मी से तो दूर नही रह सकते। वह कभी भी बहाने बना कर मेरे कमरे में आ जाती थी। पहले तो इस बात को मैंने नोटिस नही किया, जब कई बार ऐसा हुआ तो लगा कि कुछ ज्यादा ही हो रहा है। उस को इशारा भी किया कि मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ इस लिये बातचीत के लिए समय नही निकाल सकता। लेकिन वह तो पीछे ही पड़ी हूँई थी।

ऐसे पद पर थी कि उस से झगड़ा भी मोल नही ले सकता था। एक शनिवार को लंच के बाद खाली बैठा था तो वह कमरे में आई और बोली कि आप कुछ ज्यादा काम में व्यस्त नही रहते। मैंने हँस कर कहा कि आप के सामने तो खाली नजर आना, मुसीबत को दावत देना है वह मेरा इशारा समझ गयी लेकिन गयी नही। मेरे से बोली कि शाम को आप को मुझें मेरे घर तक छोड़ना पड़ेगा आज पति मुझे लेने नहीं आ पायेगे।

मैंने कहा कि वह कहाँ रहती है तो उस ने जो पता बताया वह मैंने घर के रास्ते के बिल्कुल विपरीत था, सहकर्मी को मना भी नही किया जा सकता था मैंने कहा कि जरुर छोड़ दुँगा अगर समय से निकल सका तो, इस पर वह बोली कि यह तो मैं तय करती हूँ। मैंने कहा की आप के अधिकार क्षेत्र में है कि सब लोग शाम को कब जायेगे। फिर कुछ हल्की फुल्की बातें कर के वह चली गयी। मुझे तब माधुरी की याद आई। मैंने फोन करने के बजाए उस मैसेज किया। मैसेज का जबाव फौरन आ गया

आज फिर से सूरज पश्चिम से निकला है?

अब तो सूरज पश्चिम में डुबने वाला है, और कुछ कहों,

लगता है खाली हो तभी मेरी याद आई है?

तुम्हारी याद तो जब आयेगी जब तुम दूर होगी? तुम तो मेरे पास ही हो।

बातें बनाना तो कोई तुम से सीखे?

क्या अभी तक नाराज हो?

और क्या

कोई तरीका है तुम्हारी नाराजगी दूर करने का?

तुम सोचों कि क्या कर सकते हो?

सोचता हूँ कही मेरे साथ खाना खाने चलोगी?

चल सकती हूँ लेकिन तुम तो अभी दूर हो

कहाँ चले?

मैं क्युँ बताऊँ?

घर के बाहर मिलों

कब?

7 बजे

आ पाओगे?

ये कैसा सवाल है?

जैसे तुम को पता ही नहीं?

भई मैं कह रहा हूँ तो तैयार रहना

देखते है

फोन कट गया।

चार बजे छुट्टी हुई तो उन मोहतरमा को साथ लेकर उन के घर के लिये चल दिया। बीवी को फोन कर दिया कि रात को देर से आऊँगा और खाना ना बनाये। सहकर्मी का घर काफी दूर था। उन को छोड़ा तो वह कॉफी पी कर जाने की जिद करने लगी। उन के साथ कॉफी पीने घर चला गया। शानदार घर था, पति शायद किसी दूसरे शहर चले गये थे। वह कॉफी बना कर लायी तो कपड़ें भी बदल आयी थी। ऑफिस से अलग लग रही थी मैंने प्रशंसा करी तो बोली कि ऑफिस में तो आप ध्यान ही नही देते। मैंने मन ही मन में सोचा कि यहाँ भी ज्यादा देर रुकना ठीक नही है।

मैडम का इरादा नेक नही लग रहा था। मैंने घर की तारीफ करी तो वह और वहक सी गयी। मैंने पुछा कि आप की बेटी नही दिख रही तो पता चला कि वह तो अपनी नानी के पास है। मैंने पुछा कि उस के बिना तो बड़ी बोर होती होगी तो वह बोली कि हाँ यह बात तो है लेकिन नौकरी की वजह से ही उसे अपने से दूर करा है, जब थोड़ी बड़ी हो जायेगी तो पास बुला लुँगी।

मैं और वह कॉफी पीते रहे, वह बोली कि आप इतने रिजर्व क्यों रहते है? मैंने कहा कि रिजर्व कहाँ रहता हूँ, किसी बात के लिये समय ही नही मिलता है आप को तो सब पता है। वह बोली कि ऑफिस में सब आप को घमंड़ी कहते है। मैंने कहा की आप इस बारे के क्या सोचती है तो वह बोली कि मुझें तो आप कही से घमंड़ी नही लगते जब भी आप से बात होती है तो लगता है कि आप बड़े केयर करने वाले है। मैंने कहा कि बॉस के पद पर रह कर किसी को प्रशंसा मिली है जो मुझें मिलेगी? उस ने हाँ में सर हिलाया।

मैंने कहा कि आप भी सब के हितों का इतना ध्यान रखती है लेकिन फिर भी यही कहा जाता है कि मैनेजमैन्ट की चमची है। यह तो कॉरपरेट में चलता है पहले बुरा लगता था लेकिन अब आदत हो गयी है, मेरी बात पर वह बोली कि आप मेरे से सीनियर है इस लिये मैं आप से बात करती रहती हूँ क्योंकि ऑफिस में सब कहते है कि आप किसी के साथ गलत नही कर सकते। खास कर के लड़कियाँ तो आप की फैन है। इस पर मैंने आश्चर्य से कहा कि मेरे विभाग में तो लड़कियाँ नही है। इस पर जबाव मिला कि आप फ्लोर पर सब की सहायता करते है और कभी किसी के साथ खराब नहीं बोलते।

मैंने कहा कि यह सब मैं आज आप के मुँख से पहली बार सुन रहा हूँ नही तो अधिकतर मैंने अपने कानों से अपनी बुराई ही सुनी है। वह बोली की शायद मालिक के बाद आप ही की बात पर सब को विश्वास होता है। मैंने कहा कि यह सुन कर अच्छा लग रहा है। मैंने घड़ी देखी साढे पाँच बज रहे थे, उन से विदा मांगी और वहाँ से निकल पड़ा। रास्ते में सोचा कि माधुरी को कहाँ खाने पर ले जाऊँ,मुझें तो कुछ पता नही है। उसे फोन किया तो वह बोली कि कहाँ पर हो?

रास्ते में हूँ अभी निकला हूँ

कितनी देर में आ रहे हो?

तुम बताओ, कब आऊँ

यह भी कोई पुछने कि बात है घर आ जाओ

खाना खाने चलेगे, कहाँ चलना है?

मुझे तो कुछ सुझ नही रहा है

तुम आयो तो, फिर बैठ कर सोचते है

यही सही रहेगा

पैतालीस मिनट बाद मैं माधुरी के घर पर था। उस ने दरवाजा खोला तो मैंने देखा कि वह जींस टॉप में थी। मैं उसे देखता रहा। यह देख कर वह हँस पड़ी और बोली कि अन्दर आ कर देख लेना। मैं भी झेप कर रह गया। सोफे पर जा कर बैठ गया। माधुरी बोली कि जुते उतार कर आराम में बैठ जाओं। मैंने ऐसा ही किया, उस ने टीवी ऑन कर दिया। वह पास नही आ रही थी।

मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था। वह बोली कि चाय या कॉफी तो मैंने कहा कि चाय चलेगी। वह चाय बनाने चली गयी। मैं बैठा सोचता रहा कि बाहर जाने की बजाए यही बैठ कर बात करना सही रहेगा, बाहर तो निजी बातचीत नही हो सकती है। माधुरी जब चाय ले कर आयी और मुझे चाय दे कर मैंने सामने बैठ गयी। चाय पीते-पीते उस ने पुछा कि कुछ समझ आया कि कहाँ चलना है?

मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि आज मैं तुम्हें घर में ही कैन्डल नाईट डिनर करवाती हूँ तुम भी क्या याद रखोगे। मैं उस की बात सुन कर हैरान रह गया उस ने मेरा मन पढ़ कर मेरी परेशानी दूर कर दी थी। मैंने कहा की यही सही रहेगा। हमें काफी सारी बातें करनी है। वह मुस्करा दी। चाय पीने के बाद वह मेरे साथ आ कर बैठ गयी और मेरी बाँह पकड़ कर बोली कि तुम इतना क्यों परेशान हो रहे हो? मैं तुम्हारा मन पढ़ लेती हूँ मैंने कहा कि फिर भी मुझ से लड़ना चाहती हो। उस ने कहा कि यह तो उस का अधिकार है वह इसे नहीं छोड़ सकती। मैं यह सुन कर हँसने लगा। वह भी इस में मेरा साथ दे रही थी। हम दोनों के बीच की बर्फ पिघल रही थी। यही तो हम दोनों चाहते थे।

मैं टीवी देखने लगा फिर जब मन नहीं लगा तो किचन में माधुरी के पास चला गया, वहाँ मुझे देख वह बोली कि चैन से टीवी क्यों नही देखते तो मैंने कहा कि तुम्हें देखने आया था, वह मेरे सामने खड़ी हो गयी और बोली कि लो ठीक तरह से देख लो, मुझें गुस्सा आया और मैं उस की बाँह पकड़ कर बेडरुम में ले गया।

वहाँ उस से बोला कि खाना बाद में बनाना पहले मेरे से मन भर कर लड़ाई कर लो। इस पर वह हँस कर बोली कि तुम आदमी औरत की बात क्यों नही समझ पातें? मैंने कहा कि कुछ चुल्हें पर चढ़ा कर तो नही आयी हो? वह बोली कि चिन्ता मत करो। मैंने उस के साथ बैठ कर कहा कि बताओ किस बात की वजह से नाराज हो क्या इस लिए कि उस दिन तुम से कहा हुआ नही किया? वह बोली कि हाँ बात तो वही है, मैंने कहा कि तुम्हें समझाया तो था कि उस दिन क्या हुआ था। वह बोली कि उस बात को भुल भी जाऊँ तो फोन न करने की बात को कैसे भूलुँ? मैंने कहा कि इस बात की भी तो मॉफी माँगी थी तो वह बोली कि मॉफी मिली कहाँ है?

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करुँ मैंने उसे खड़ा किया और अपने बाहुपाश में जकड़ लिया वह नकली कसमसाई लेकिन मैंने अपनी पकड़ ढिली नही की। उस के होंठ मेरे होंठों से ढके हुँये थे। हम दोनों जाने कब के प्यासे थे, सो चुम्बन रत हो गये, चुम्बन की गरमाहट ने सारे गिले शिकवे दूर कर दिये थे। जाने कितनी देर तक चुम्बन चलता रहा। मैंने उसके कान में कहा कि अब रुका नही जा रहा है। उस ने कहा कि रोका किस ने है, उस की इस बात से संयम का बाँध टुट गया और कमरे में तुफान सा आ गया जब वह उतरा तो सारी नाराजगी उस में बह गयी थी पीछे जो कुछ बचा था वह केवल प्यार था।

वह बिस्तर से उठ कर खड़ी हुई और कपड़ें पहनने लगी। मैं ऐसे ही पड़ा रहा तो उस ने कहा कि अब उठ कर मेरी सहायता करो। मैं भी उठ खड़ा हुआ और कपड़ें पहनने लगा। हम दोनों के गलें प्यास से सुख रहे थे सो किचन में जा कर पहला काम ये करा कि गिलास भर का पानी पीया। जब गला तर हो गया तो मैंने पुछा कि खाना बाहर से ना मँगा ले तो वह बोली कि नही मैं बना रही हूँ तुम्हें क्या जल्दी है? मैंने कहा कि नही कोई जल्दी नही है। वह फिर से खाने की तैयारी में लग गयी मैं वहाँ एक कुर्सी ले आया और उस पर बैठ कर उस को देखने लगा।

वह यह देख कर मेरे पास आयी और मुझे चुम कर बोली कि यह बच्चा अब कितना प्यारा लग रहा है, कुछ देर पहले तो काट रहा था। मैंने कहा कि मत भड़कायो नही तो फिर से काट लुगाँ। मैं ने कहा कि मैं तुम्हारे पास ही रहना चाहता हूँ इस लिये यहाँ बैठा हूँ। फिर उस ने कुछ नही कहा, वह बोली कि कुछ मदद ही कर दो। मैंने कहा कि बताओं क्या करुँ तो वह बोली कि इधर कुछ बरतन रखे है उन्हें पोछ कर मेज पर लगा दो।
 
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UPDATE 8

मैंने उस के कहे अनुसार बरतन मेज पर लगा दिये फिर हुक्म हुआ कि सामने दराज में दो मोमबत्ती रखी है उन्हे भी मेज पर लगा लो। यह काम भी मैंने कर दिया। शायद पुलाव बन रहा था। मैंने प्लेट में सलाद काट दिया। माधुरी बोली कि फ्रिज में बीयर के कैन पड़े है कुछ करना है उनका? मैंने कहा कि पी लेगे लेकिन मुझे ड्राईव करना है, इस बात का ध्यान रखना। माधुरी ने सुप भी बनाया था सब चीजों को लेकर वह मेज पर लगाने में लग गयी और मैं मेज पर बैठ कर उसका इंतजार कर रहा था। इस के बाद उस ने मोमबत्तीयों को जला दिया काफी रोशनी थी वह मुँह धोने चली गयी जब आयी तो सुन्दर लग रही थी।

हम दोनों ने कमरे की लाईट बन्द कर दी और कैन्डल लाईट डिनर का मजा लेने लगे। धीमी रोशनी माहौल को रोमान्टिक कर रही थी। पहले सुप पीया फिर पुलाव का दौर चला। पेट भर गया था। वह बोली कि सिर्फ मीठे की कमी है तो मैंने कहा कि अभी पुरी कर देते है यह कह कर मैंने उस के लब चुम लिये उस की बाँहे भी मेरी गरदन के गिर्द कस गयी। वह मेरी गोद में ही बैठ गयी। बोली कि नशे की जरुरत है मैंने कहा कि भरी बोतल मेरी गोद में है तो किस नशे की जरुरत है। यह कह कर मेरे होंठ फिर उस की गरदन पर चुपक गये। थोड़ी देर बाद माधुरी फ्रिज में से बीयर के कैन निकाल लाई मैंने उन्हें गिलास में कर लिया। दोनों बीयर का मजा लेते रहें।

मुझे लगा कि नशा सा होने लगा है तो मैंने कहा कि मैं अब और नही पीयुगाँ, इस पर वह बोली कि बस करते है। दस बज रहे थे मैं उस का हाथ पकड़ कर बेडरुम में ले गया और हम दोनों फिर से आलिंगन रत हो गये। मैंने उस के कान में कहा कि रानी जी जब मिलन की इच्छा हो तो उसे जाहिर कर देना चाहिए। उस ने मेरे गाल पर काट लिया। मैंने कहा कि इस बात के लिये आईन्दा से नाराज नही होना। वह हँसी और बोली कि चलो हमारे सनम कुछ तो समझने लगे है। मैंने कहा कि सनम की मजबुरी भी तो समझा करों।

इस पर वह खिलखिला दी और बोली कि मैं तुमसे नाराज नही होऊँगी तो किस से होऊँगी? मैंने कहा कि बन्दा आइन्दा से इस बात का ख्याल रखेगा। यह कह कर मैंने उसे बाहुपाश से मुक्त कर दिया वह हटी नही। बोली कि और लड़ने की इच्छा है मैंने कहा कि भई हमने तो हारना ही है तो पहले से ही हथियार डाल देते है। समर्पण करते है। कैदी बना कर रख लिजिये। मेरी बात सुन कर उसे हँसी का दौरा पड़ गया और बोली कि बातें और बातें, क्या बात है?

मैं जब माधुरी के घर से चला तो मुझे लग रहा था कि हल्का सा नशा हो रहा है इस लिये कार बड़े ध्यान से चला रहा था। साढे़ ग्यारह बजे घर पहुँचा। कपड़ें बदल कर हाथ-मुँह धोकर सोने चला गया। आज खुब मेहनत की थी इस लिये नींद भी बिस्तर पर पड़ते ही आ गयी। सुबह उठा तो सारा बदन टुट रहा था। शायद रात की मेहनत और नशे के कारण ऐसा था। नहाने के दौरान जब कपड़ें उतारे तो देखा कि ब्रीफ बुरी तरह से गन्दी हुई थी उस पर वीर्य और आंतरिक अंगों के स्राव के निशान थे, फौरन उसे साबुन से धो दिया अब समस्या यह थी कि मैं तो अपने अंतःवस्त्र धोता नही था आज धोने का क्या कारण है? इस का जबाव देना मुश्किल होगा। उस को इतना निचोड़ा की वह लगभग सुख सी गयी फिर उसे अन्य कपड़ों के साथ ही गन्दें कपड़ों की बाल्टी में डाल दिया।

नाश्ता करने लगा तो पत्नी ने पुछा कि आज क्या प्रोग्राम है? मैंने कहा कि कुछ खास नही है तो पता चला कि उसे किसी पड़ोसन के साथ कहीं जाना है, मैंने कहा कि आराम से जायो मैं सारे दिन घर पर ही हूँ। मेरी बात सुन कर उस ने कहा कि अब वह आराम से जा सकती है। पत्नी दोपहर का खाना बना कर रख गई। मैं सारे दिन सोता रहता अगर बीच में माधुरी का फोन नही आता। उस ने पुछा कि कल आराम से पहुँच गये थे? मैंने कहा कि हाँ कोई शक? उसने कहा कि शक तो नही था तुम ही घबरा रहे थे।

मैंने कहा कि अधिकतर जब भी शराब पीता हूँ तो किसी ना किसी के साथ होता हूँ इस लिये नशे की फ्रिक्र नही होती है कल मुझे खुद गाड़ी ड्राईव करनी थी इस लिये थोड़ा चिन्तित था। मेरी बात सुन कर वह बोली कि सुबह कैसी थी? मैंने कहा कि सारा बदन टुट रहा था और नशे का असर भी था, वह बोली कि मेरा भी इसी तरह का हाल था अब जा कर उँठी हूँ। मैंने कहा कि मस्ती करेगें तो कुछ ना कुछ परेशानी तो होगी ही। उस ने कहा कि सारा बदन दुख रहा है। ना जाने क्या करते हो तुम मेरे साथ? मैंने कहा की प्यार ही तो किया था। दोनों साथ थे। शायद बुढ़ा गये है इस लिये मिलन के बाद भी रोते है। वह बोली कि रो कौन रहा है। मैं तो हालत बयान कर रही थी।

मैंने कहा कि हो सकता है कि काफी दिनों बाद करते है इस लिये शरीर ज्यादा थकान महसुस करता है।

अब क्या करोगी?

नहा कर खाना बनाऊँगी और कुछ लिखने का मन कर रहा है तो कंप्यूटर पर बैठ कर टाईपिग करने की सोच रही हूँ।

मैंने कहा जो मन कर रहा है सो करो मैं तो अकेला हूँ श्रीमति जी तो पड़ोसिन के साथ कही गई है, सो रहा था तुम ने जगा दिया है तो उठ कर खाना खाऊँगा फिर सोचुँगा क्या करुँ? इस पर उस ने कहा कि विडियो कॉल करके देखते है कैसा लगता है? मैंने भी किसी के साथ कॉल नही की थी सो एक उत्सुकता थी। उसने मुझे विडियो कॉल की, मैंने देखा कि वह बिस्तर में जींस और टॉप में थी। पुछा कि रात को कपड़े क्यों नही बदले तो उस ने कहा कि कुछ करने का दम ही नही था, ना इच्छा कर रही थी। जो कुछ हुआ था उस के आनंद से बाहर नही निकलना चाहती थी। सो बची हुई बीयर भी पी ली थी। फिर बिस्तर पर जाते ही कब नींद आ गयी पता ही नही चला।

मैंने माधुरी को बताया कि मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। फिर मैंने उसे नहाने के समय की घटना बताई तो वह बोली कि इस का कुछ करना पड़ेगा यह तो किसी दिन मरवा देगी। मैंने कहा कि उस समय उत्तेजना के कारण कुछ ध्यान ही नही रहता है बाद में आफत होती है। वह बोली कि मैं इस का कोई हल खोजती हूँ, उस ने पुछा कि कैसी लग रही हूँ मैंने कहा कि लग रहा है कि कोई परी सो कर उठी है, बिखरें हुये बाल चेहरे पर ऐसे लग रहे है जैसे बादलों के बीच चाँद छुपा हो। मेरी बात सुन कर बोली कि आज तुम्हारी जबान पर कालिदास कैसे बैठ गये है? मैंने कहा कि मेघदुतम् कई बार पढ़ा है। कालिदास के सौन्दर्य वर्णन का कोई सानी नही है।

मुझे तो उस से प्यार है

तुम गलत काम में लगे हो अगर साहित्य में होते तो बहुत नाम करते

मैंने कहा कि हम तो रसिक ही सही है, रस का आनंद ले ले यही हमारे लिये काफी है। वह बोली कि रसिक नहीं भौरे हो कलियों का रस पीते रहते हो। मैंने कहा कि इस में क्या बुराई है? कलियाँ होती ही है रस पीने के लिये। वह बोली कि आज दीदी के पीछे ज्यादा रसिक मत बनो नही तो आफत हो जायेगी। मैंने कहा कि यार तुम बड़ी जालिम हो, किसी भी तरह से जीने नहीं देती। वह हँस कर बोली कि अब आशिक मिजाजी छोड़ो और उठ कर कुछ लिखा हूँआ भेज रही हूँ पढ़ कर बताऔ कैसा लिखा है? मैंने कहा तो हुक्म सरकार, इस पर उस ने कहा कि अब सुधर जाओ। जा कर खाना खा लो। यह कह कर उस ने कॉल खत्म कर दी।

अब तो नींद तो आनी नही थी सो उठ कर खाना लगाया और खाना खाने बैठ गया, फिर से माधुरी ने विडियो कॉल की और कहा कि जरा दिखाओं क्या खा रहे हो? मैंने प्लेट दिखा दी। वह बोली कि लगता है कि चावल बहुत पसन्द है। मैंने कहा कि माँ के जमाने में तो सप्ताह में चार दिन चावल बनते थे। अब बीवी के काल में एक भी दिन मिल जाये तो गनीमत है।

ऐसा क्यो?

मैडम को चावल पसन्द नही है, मेरे लिये ही बनाती है

ये तो सही नहीं है, कुछ सिफारिश करुँ?

कुछ मत करना वरना यह भी बन्द हो जायेगे

उस को अगर किसी ने कुछ कहा तो वो चाहे कितना भी अच्छा हो उस को नहीं करेगी। उस की आदत है

ये तो अन्नाय है

क्या कहे?

कैसे चलता है?

इस सब के साथ जीना सीख लिया है। सब इच्छाऔं को मन के किसी कोने में दफन कर दिया है

मेरी पुरी सहानुभूति है

सोचता ही नही हूँ जैसा चल रहा है जब तक चलता है चलने दो

वैसे ज्यादा चावल सेहत के लिये अच्छे नही है

चावल तो एक उदाहरण है ऐसी सैकड़ों चीजें है कहाँ तक गिनाऊँ

फिर भी मस्त रहते हो?

और क्या करुँ, जीना छोड़ दूँ

मैंने कब ऐसा कहा?

छोड़ो यार कुछ और बात करो

मैंने जो ब्लाउज सिलाये थे वह देखने है?

हाँ

ये देखा यह कह कर उस ने फोन अपने सामने की तरफ कर दिया, फिटिंग नजर आ रही थी

बढ़िया सिला है, बिल्कुल शरीर के नाप का है

नई ब्रा के साईज का सिलाया है। पहन कर अच्छा लग रहा है। तुम्हारी मेहरबानी है

हमें तो इस के बदले सजा मिली थी

पहले मजा भी तो मिला था

बाद में तो लम्बा विरह किस ने भोगा था?

विरह अकेला तुम ने ही तो नही भोगा मैंने भी तो भोगा है कितना रोई हूँ मैं उस दौरान

आगे से ऐसा कुछ नही करेगें

हाँ बहुत मुश्किल दिन थे

हाँ दोनों के लिये।

मैं एक साड़ी दीदी के लिये लाई थी, उन को कब दूँ

जब तुम्हें सही लगे

दीदी का जन्म दिन कब है?

अभी तो दूर है

जब कभी आयों तो दे देना

फिर फोन कट गया

मैं भी टीवी देखने बैठ गया

थोड़ी देर बाद फिर से माधुरी का फोन था, मैंने पुछा क्या बात है? तो जबाव मिला कि फोन भी नही कर सकती? मैंने कहा कि ज्यादा बात करने से अपच हो जाती है तो वह बोली कि मैं सब पचा लेती हूँ। उस ने कहा कि तुम्हें कुछ दिखाना था? मैंने कहा कि दिखाओं तो वह बोली कि पहले आँखें बन्द करो। मैंने कहा कि यह तो ज्यादती है वह बोली कि बन्द तो करों मैंने आँखें बन्द कर ली जब खोली तो उस के हाथ में एक शर्ट थी मैंने कहा कलर तो बढ़िया है वह बोली कि तुम्हारे लिए पेंट और शर्ट पसन्द किये थे सो खरीद लिये थे सोचा आज मौका है तुम से पुछ लुँ की पसन्द है या नहीं, नही तो बदल लेती। मैंने कहा कि जो तुम पसन्द करोगी उसे मैं कैसे नापसन्द कर सकता हूँ।

इस पर उस ने कहा कि आज जनाब का मुड बढ़िया है मेरे को ही मक्खन लगा रहे हो। मैंने कहा कि तुम्हें नही लगाँऊगा तो किस को लगाँऊगा। मेरी बात पर वह हँस पड़ी और बोली कि तुम्हारे लिए कुछ और अन्डर गारमेंन्ट भी खरीदे है ताकि तुम परेशान ना हो। मैंने कहा कि अच्छी सोच है। माधुरी बोली कि उन्हें भी दिखाऊँ मैंने कहा कि नहीं जब आऊँगा तभी देख लुँगा, साईज सही होना चाहिये तो जबाव मिला कि तुम्हें ही साईज बुझना नहीं आता है मुझे भी आता है।

मैंने कहा कि हम ने कहाँ कहा कि आप की नजर में कोई कमी है, तभी तो आप ने हमें पसन्द किया है। मेरी बात पर वह बोली कि दीदी के बिना तुम तो बड़े रंगीन मुड में नजर आ रहे हो? मैंने कहा कि अब और किस के साथ रंगीन हो सकता हूँ तुम्हारे सिवा। वह बोली कि बातों के तुम माहिर हो मैं कैसे तुम्हारी बराबरी कर सकती हूँ। फिर मेरी तरफ एक हवाई किस दे कर फोन कट गया।

बीवी को आने में देर हो रही थी सो उसे फोन किया तो वह बोली कि रास्ते में बहुत भीड़ है इस लिये देर हो गयी है। पत्नी जी जब घर आयी तो मेरे से बोली कि पड़ोसन बोल रही थी कि मेरे मिया जी तो कभी फोन करके नहीं पुछते की कहाँ हो। मैंने कहा कि तुम कम ही बाहर जाती हो तो चिन्ता हो रही थी। मेरे फोन के कारण पत्नी की आँखों में मेरे लिये अलग तरह का लगाव दिख रहा था। रात को वह परिलक्षित भी हुआ बिस्तर पर। अपनी तो मौज थी शिकायत करने का कोई मौका नही था। सामने वाला भी जब खेल में रुचि लेता है तो मजा दूगना बढ़ जाता है।
 
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UPDATE 9

समय ऐसे ही गुजर रहा था कभी अपने मन की होती थी कभी नहीं। इस लिये ज्यादा अफसोस करने के लिए कुछ खास नही था। दो-दो जगह से प्यार मिल रहा था। इस के फायदे है तो इस में खतरें भी बहुत है। बदनामी होने का डर है सो अलग, लेकिन मन पर किसी का जोर नही चलता है। गरमी अब अपने पुरे जोर पर आ रही थी। मई का महीना शुरु होने को था। एक दिन अचानक पत्नी सुबह उठी तो बोली कि आज मेरी तबीयत सही नहीं है उठा ही नही जा रहा है। तुम अपने आप कुछ बना लो और खा कर चले जाओ। मैं दिन में उठ कर कुछ बना लूँगी। मैं उस के कहे अनुसार कर के ऑफिस चला गया।

दोपहर में घर पर फोन किया तो पता चला कि उस का बदन बुखार से जल रहा है मैंने पुछा कि कोई दवाई खायी तो वह बोली कि उस की हिम्मत नही हो रही है उठने की। यह सुन कर मैं फौरन छुट्टी लेकर घर भागा। घर पहुँच कर देखा तो उस को बहुत तेज बुखार था, मित्र को फोन कर के दवा पुछी तथा दवा घर में ही मिल गयी। उस को दवाई खिलायी। दवा से कुछ असर पड़ा और बुखार उतर गया लेकिन रात को फिर बुखार चढ़ गया। दवा से उतर तो रहा था लेकिन सही नही हो रहा था। अगले दिन छुट्टी लेकर डॉक्टर को दिखाया तो वह बोला कि वायरल है सात दिन तो लेगा ही सही होने में। आराम करना बहुत जरुरी है इस में।

मैंने हफ्ते की छुट्टी के लिए ऑफिस को ईमेल कर दी। इस के सिवा कोई और चारा नही था। इस बीच माधुरी का फोन आया तो उसे सब कुछ बताया तो वह बोली कि वह मेरे घर आ रही है। पत्नी की देखभाल करने के लिये। मैंने मना किया तो वह बोली कि उस की गर्मी की छुट्टियाँ होने ही वाली है तो वह घर पर रह कर बौर होने की बजाए मेरे घर पर आ कर पत्नी की सेवा करना चाहती है। इस के बाद मैं उसे मना नही कर सका। शाम को वह अपने सुटकेस के साथ आ गयी। पत्नी को जब पता चला तो वह बोली कि इस को क्यों परेशान किया? उस ने बीवी को बताया कि उस की छुट्टियाँ चल रही है सो कोई खास बात नही है।

माधुरी बोली कि दीदी जब मैं बीमार थी तो आप ने मेरी देखभाल की थी तो अगर आप को देखभाल की जरुरत है तो मैं वह कर दुँगी तो आप को क्या आपत्ति है? पत्नी के पास इस का कोई जबाव नहीं था। माधुरी बोली कि पहले मैं कपड़ें बदल लेती हूँ फिर रात का खाना बनाती हूँ, यह कह कर वह चल दी मैं जल्दी से उस के साथ लपका और गैस्ट रुम खोल दिया। उसने अपना सुटकेस बेड़ पर रखा और कपड़ें निकालने लगी।

मेरे को वहाँ खड़ा देख कर बोली कि मुझें कपड़ें बदलने है यह सुन कर मैं कमरे से निकल कर पत्नी के पास आ गया। वह बोली कि यह बेमतलब में परेशान होगी, मैंने कहा कि तुम इस बात की चिन्ता मत करो। तुम केवल अपनी तबीयत का ख्याल रखो, तभी माधुरी कपड़ें बदल कर आ गयी, वह ट्रेक सुट पहन कर आयी थी मैंने उसे पहली बार उसे ट्रेक सुट में देखा था। वह बोली कि काम करने में मुझें इस में आराम रहता है।

फिर उस ने पुछा कि दीदी आप के लिये क्या बनाना है? मैंने बताया कि मुंग की दाल और रोटी बनानी है इन के लिये और अपने और मेरे लिये जो भी सही लगे बना लेना। पत्नी बोली कि आलु, गोभी, प्याज लोकी भी फ्रिज में रखी है। और कुछ चहिये तो इन से कह देना यह ला देगे। माधुरी किचन में चली गई तो बीवी बोली कि उस की सहायता कर दो उसे पता नही होगा कि कहाँ पर क्या रखा है?

मैं यह सुन कर माधुरी के पीछे-पीछे किचन पहुँचा तो मुझे देख कर मुस्कराई और धीरे से बोली कि तुम्हें जरा भी चैन नही है। मैंने कहा की बीवी का आदेश है कि मैं तुम्हारी सहायता करुँ सामान ढुढ़ने में। इस पर उस ने कहा कि जैसे आप को सब पता है? मैंने कहा कि सब नही तो कुछ तो पता है। यह कह कह मैंने उस के कुल्हे पर हल्की सी चपत लगाई और उसे बताया कि कहाँ पर मुंग की दाल रखी है और कहाँ पर आटा है?

चाय और चीनी के बारे में भी बताने लगा तो वह बोली कि मैं पहली बार तो इस किचन में नही आयी हूँ? उस की बात सुन कर मैं चुप हो गया और एक तरफ हट गया। फिर किचन से बाहर निकल गया। बीवी के पास पहुँच कर उस से पुछा कि दूध है या लाना है तो उस ने कहा कि सुबह तो दूध लिया नही है फ्रिज में देखो कि दूध है या नही, नही तो जा कर ले आयो।

मैं दूध देखने किचन में गया तो तो वह बोली कि अब क्यों आये है? मैंने कहा कि यार चुप रहो यहाँ तुम टोक रही हो वहाँ बीवी मैं क्या करुँ? उस ने हँस कर कहा कि बड़ी जल्दी नाराज हो जाते है। मैंने कहा कि तुम्हारी सहायता करने की कोशिश कर रहा हूँ और तुम मजाक उड़ा रही हो। उस ने मेरी नाक पकड़ कर हिलायी और धीरे से बोली कि मैं तो इस लिये बोल रही थी की दीदी बुरा ना मान जाये?

मैंने कहा कि मेरे में भी अक्ल है बीवी जैसा कह रही है वैसा ही करने की कोशिश कर रहा हूँ अब यह देखने आया हूँ कि दूध है या नही, क्योंकि मैं सुबह नही ले पाया हूँ। मैंने फ्रिज खोल कर देखा तो दूध खत्म था। यह देख कर मैं कपड़े बदल कर दूध लेने जाने लगा तो किचन में जा कर माधुरी से पुछा कि कुछ बाजार से तो नही मगाँना है, मैं जा रहा हूँ ।

उस ने पुछा कि दलिया है? मैंने कहा कि दलिया तो जरुर होगा कि हम दोनों काफी खाते है। पुछ कर आता हूँ और कुछ? वह बोली कि नहीं और कुछ नही चाहिये सब है। मैं फिर से बीवी के पास गया और उस ने पुछा कि दलिया है? तो वह बोली की है और उस ने जहाँ दलिया रखा था वह स्थान बता दिया। मैं दूध लेने निकल गया।

जब दूध ले कर आया तो किचन में जा कर दूध फ्रिज में रखने लगा तो माधुरी बोली कि इसे मुझे दो मैं उबालने रख देती हूँ। मैंने उसे दलिया निकाल कर दे दिया। वह बोली की कल सुबह इसे बनाऊँगी। मैंने कुछ नही कहा। मेरे को चुप देख कर वह बोली कि नाराज हो? मैंने कहा नही तो, फिर चुप क्यों हो। मैंने हँस कर कहा कि बोलों तो आफत ना बोलों तो आफत। उस ने मेरे कान के पास आ कर कहा कि दो-दो आफतें। मैं उसे मारने लगा तो वह छिटक कर दूर हो गयी। मैं भी चुपचाप किचन से निकल गया।

लेपटॉप खोल कर कंपनी की मेल देखने लगा। सारे दिन क्या हुआ था ऑफिस में यह जानना भी जरुरी था। सारी रिपोर्टस् पढ़ने के बाद में लेपटॉप बन्द कर ही रहा था कि माधुरी पास आ कर बैठ गयी और बोली कि तुम्हें तो चाय के सिवा कुछ बनाना नही आता तो कैसे काम चला रहे थे? मैंने कहा कि कल तो ब्रेड खा कर काम चल गया था। आज नुडल्स से काम चलाने का इरादा था। हो सकता था इस के बाद बाहर से खाना मगाँना पड़ता। मेरी बात सुन कर वह बोली कि हर चीज की प्लानिग कर रही है।

मैंने कहा कि हफ्ते की छुट्टी ली है तो यह सब तो सोचना पड़ता है। वह बोली कि मेरी याद क्यों नही आयी, मैंने कहा कि अपनी परेशानी में तुम्हें नहीं डालना चाहता था। वह बोली कि यही तो गल्ती है कि तुम मुझे अपना नहीं समझते हो। मैंने कहा कि ऐसी बात नही है तुम भी तो कॉलेज जाती हो वहाँ से कैसे छुट्टी ले सकती थी। एक ने छुट्टी ले ही ली थी मुझे लगा कि इस से काम चल जायेगा और कोई बात नही थी। मेरी बात सुन कर उसे चैन मिला।

मेरे को ध्यान से देख कर बोली कि रात को सोये नही हो? मैंने कहा नही नींद नही आयी। वह बोली कि तुम्हारी शक्ल देख कर ही पता चल रहा है। मैंने उस का हाथ अपने हाथ से दबा दिया। वह मेरे कान में फुसफुसायी कि कुछ ऐसा वैसा मत करना अपने आप को कंट्रोल में रखना। दीदी को पता नही चलना चाहिये। मैंने सर हिला दीया। वह उठ कर चली गयी। मैं पीछे से उस की छरछरी काया को बल खाते हुये जाता हुआ देखता रहा। प्रेमिका के साथ एक छत के नीचे साथ रहते हुँए भी दूर रहना कठिन परीक्षा थी जिस में मेरा पास होना जरुरी था। अपने मन पर नियंत्रण रखना पड़ेगा।

तभी कानों में माधुरी की आवाज पड़ी की खाने के लिये तैयार हो जाये। यह सुन कर मैं हाथ धोने के लिये उठ गया। बीवी के पास गया तो वह बेड़ पर बैठ कर खाना खा रही थी और माधुरी वही उस के पास बैठी थी। मेरे को देख कर वह उठने लगी तो मैंने कहा कि तुम भी अपना खाना साथ ही लगा लेना। दो दिन के बुखार ने पत्नी के चेहरे का तेज कम कर दिया था। वह थकी सी दिख रही थी।

मैं वहाँ से निकल कर ड्राईग रुम में आ गया। थोड़ी देर में माधुरी खाना ले कर आ गयी। हम दोनों खाना खाने लगें। वह बोली कि दवा कब देनी है मैंने कहा कि उस के पास ही रखी है रात को सोते समय दूध के साथ ले लेगी। उस ने पुछा कि आप कहाँ सोयेगे? मैंने कहा कि उसी के पास और कहाँ? वह बोली की मेरी राय थी की आप उन से अलग सोये तो सही रहेगा।

आप को भी वायरल ना हो जाये। उस की बात तो सही थी। मैंने कहा कि मैं यही सोफे पर सो जाऊँगा तो वह बोली कि ऐसे तो नींद नही आयेगी। मैंने कहा कि चिन्ता मत करो मैं सो जाऊँगा। वह चुप हो गयी। रात को सोते समय मैंने बीवी को कहा कि रात को जरुरत हो तो मुझे आवाज दे कर उठा देना तो वह बोली कि आप मेरी चिन्ता ना करो।

मैं चद्दर और तकिया ले कर ड्राईग रुम में आ गया। माधुरी पत्नी के साथ उस से बात कर रही थी मैं तो थका हूँआ था सो सोफे पर लेटते ही नींद आ गयी। रात को पेशाब करने के लिये उठा तो बीवी के कमरे में झाँका तो वह आराम से सो रही थी।

दरवाजा धीरे से बंद करके मुड़ा ही था कि किसी से टकराया, देखा तो माधुरी थी उस ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया। इस के बाद मुझे कोने में खींच लिया फिर मेरे कान में फुसफुसायी कि अभी थोड़ी देर पहले ही सोयी है। तुम जगा देते? यह कह कर वह मेरे से चिपक गयी। उस का वक्ष मेरे वक्ष पर दबाव डाल रहा था मुझें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुँ?

इस का जबाव उस के होंठों ने दिया जो मेरे होंठों पर चुपक गये थे। उस की गरम साँसे मेरे चेहरे से टकरा रही थी। फिर वह अलग हो गयी और मुड़ कर अपने कमरे में चली गयी। मैं भी ड्राईग रुम में आ गया। नींद तो अब आनी नही थी। उस के गरम होंठों का स्पर्श उन की गरमराहट मुझें अभी तक महसुस हो रही थी। लेकिन मैं सोफे से हिला नहीं उस की इज्जत का सवाल था इस लिये मैंने अपनी कामना को दबा दिया।

सुबह जल्दी उठ गया। मोबाइल देख रहा था तो बीवी की आवाज आयी तो उस के पास गया वह बोली कि सुबह की दवाई लेनी है, मैंने कहा कि कुछ खाने के बाद खाना। अभी सो जाओ यह कह कर मैं उस के पास बैठ गया और उस के सर को सहलाने लगा।

तभी माधुरी भी कमरे में आई हम दोनों को देख कर वह वापस जाने लगी तो मैंने कहा कि तुम चाय बना लो और इस को चाय के साथ दों बिस्कुट दे देना। उस के बाद यह अपनी दवाई खा लेगी। मेरी बात सुन कर माधुरी चाय बनाने चली गयी। थोड़ी देर में वह चाय और बिस्कुट एक प्लेट में ले कर आ गयी। हम तीनों जने चाय पीने लगे तथा पत्नी ने चाय के साथ बिस्कुट खा लिये। इस के बाद उस ने अपनी दवाई ले ली।

उस को नींद आ रही थी सो हम दोनों उसे अकेला छोड़ कर कमरे का दरवाजा बंद करके बाहर आ गये। मैं ड्राईग रुम की खिड़की खोल के सुबह की ताजी हवा का सेवन कर रहा था कि माधुरी भी मेरी बगल में आ कर खड़ी हो गयी।

दोनों कुछ देर तक ऐसे ही खड़े रहे। मौन को माधुरी ने ही तोड़ा, बोली कि कल रात की बात से परेशान तो नही हो? मैंने कहा नहीं। यह सब स्वभाविक है लेकिन अपने पर नियंत्रण रखना बड़ा कठिन हो रहा था। वह मेरे से और सट गयी और बोली कि आगे से ध्यान रखुँगी कि ऐसी कोई हरकत ना करुँ। मैंने कहा कि ऐसा मत कहो, उस ने मेरा हाथ अपने हाथ से कस कर पकड़ लिया।

रात को नींद आयी थी?

थोड़ी देर आयी थी, फिर उड़ गयी

तुम्हें

नही आयी, तभी तो दीदी को देखने जा रही थी

चिन्ता में नींद कहाँ आती है

हाँ

यार तुम को भी इस में फँसा दिया

फिर ऐसा कहा तो बुरी तरह से मारुँगी, ऐसा कह कर तुम मेरा अपमान कर रहे हो

मार लेना, लेकिन मेरे को बड़ी शर्म आ रही है कि तुम मेरे घर का काम कर रही हो

तुम्हारा मेरा क्या है। क्या यह मेरा नही है?

बिल्कुल है

तो फिर दूबारा से ऐसी बात नही करना नही तो जो हाथ में होगा वही मार दूँगी।

ना बाबा ऐसा मत करना।

उस ने मेरे हाथ को कस के मरोड़ दिया, मैं बचने के लिये मुड़ गया और जोर से उस से टकरा गया। उस का चेहरा मेरे चेहरे से जोर से टकराया और हम दोनों के शरीर एक दूसरे से भिड़ गये। वह एक दम दूर हो गयी। मैं भी घबरा कर अलग हो गया। इस के बाद हम दोनों हँस पड़े। मैंने कहा कि मैं तो योग करने जा रहा हूँ वह बोली कि मैं भी योग करने जा रही हूँ, यह कह कर माधुरी तो अपने कमरे में चली गयी। मैं वहीं मैट बिछा कर योग करने लगा।

आधा घन्टे के बाद माधुरी आती दिखी, पास आ कर बोली कि चाय पीनी है। मैंने कहा कि मुझे पाँच मिनट और दो मैं अपने योगासन खत्म कर लूँ वह वही सोफे पर बैठ कर मुझे देखने लगी। मैंने योग करने के बाद मैट को लपेट कर रख दिया तो वह बोली कि साहब तो गम्भीरता से योग भी करते है। मैंने कहा कि पुरानी आदत है लेकिन कभी कभी छुट जाती है, समय ना होने के कारण। माधुरी चाय बनाने चली गयी। मैं वही बैठ कर अखबार पढ़ने लगा। फिर हम दोनों चाय पीते हुये बातें करते रहे।

मैंने उसे कहा कि दलिया नमकीन बनाना है तथा उस में सब्जियाँ भी डालनी है हम लोग ऐसे ही दलिया खाते है वह बोली कि ऐसा तो मुझें नहीं आता तो मैंने कहा कि कुछ खास नही है दलिये को भीगों दे। मैं दो-तीन सब्जियाँ काट देता हूँ फिर पत्नी से पुछ कर छोंक लेना। दलिया बन जायेगा। उस ने कहा कि ऐसा दलिया पहली बार सुन रही है मैंने कहा कि जब खायेगी तो पुराने तरीके से बना दलिया भुल जायेगी।

हम दोनों से ऐसा ही किया जब तक पत्नी भी जाग गयी थी, उस से पुछ कर माधुरी ने दलिया कुकर में बनने के लिये चढ़ा दिया। मैं नहाने चला गया। नहाने के बाद पूजा करने लगा माधुरी ध्यान से यह सब देखती रही। मेरी पूजा के बाद वह नहाने गयी और आ कर उस ने भी भगवान के आगे नमन किया, मैं वहाँ से हट गया।

हम दोनों पत्नी के साथ ही नाश्ता करने बैठे। दलिया खा कर माधुरी बोली कि इस को खा कर तो दलिये के बारे में मेरी धारणा ही बदल गयी है।

पत्नी ने बताया कि हम लोग को हफ्ते में दो-तीन बार दलिया ही खाते है और वह भी ऑरगेनिक। इस का स्वाद साधारण दलिये से अलग होता है। मैंने बताया कि किसी परिचित ने दलिये को इस तरह से बनाने की विधि बताई थी तब से ही मैंने दलिया खाना शुरु किया है नही तो पहले तो मैं दलिये के नाम से ही नाक-मुँह सिकोड़ लेता था।

यह सुन का माधुरी हँस कर बोली कि आप तो कहते थे कि आप कुछ भी खा लेते है। मैंने कहा कि कुछ भी का मतलब सब्जियों से था दलिये से नही था। मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी, पत्नी ने कहा कि मुझें तो दलिया बहुत पसन्द है मीठा वाला लेकिन इन को तो उस के नाम से ही चिड़ होती है। मैंने कहा कि दलिये का वह रुप मुझें बचपन से ही नापसन्द है।

दोनों औरतें मेरी बातों का मजा ले रही थी। मैंने पत्नी से कहा कि दवा खा लो और बताऔ कि कुछ तबीयत में सुधार है या नही? नहीं तो डॉक्टर के पास चलते है। पत्नी बोली कि बुखार तो कभी-कभी आ रहा है लेकिन बदन में दर्द कम है। पाँच दिन की दवा खाने के बाद ही डॉक्टर के पास चलेगे। मैंने कहा कि अब दवा खा कर आराम करों और कुछ बाजार से मँगाना हो तो बता दो, मैं जा कर ले आऊँगा तो उस ने कहा कि अगर बाजार जाओ तो माधुरी को ले जाना मैं इस को बता देती हूँ। तुम को एक चीज बताऊँगी और तुम दस चीज लेकर आयोंगे। यह सुन कर माधुरी हँसने लगी। मैंने कहा कि हाँ भई जो सही लगे सो करो।

मैं कमरे से निकल गया और अपने मेज पर बैठ कर ऑफिस से बात करने लगा। ऑफिस बिना जाये भी घर से काम करा जा सकता था। इस लिये मेरे लिये कोई चिन्ता की बात नही थी। काफी देर तक काम करता रहा। फिर माधुरी ने आ कर कहा कि अगर काम ही करना था तो छुट्टी क्यों ली है। मैंने कहा कि तुम्हारे आने से मुझें कुछ वक्त मिला तो काम कर लिया अगर तुम नही होती तो ऐसा नही कर पाता। वह बोली कि बाजार चलना है, मैंने कहा कि शाम को चलेगे इस समय तो बाहर बहुत गर्मी है।

उस ने सर हिलाया। मैंने कहा कि अभी भी चल सकते है हमें कौन सा पैदल बाजार में जाना है सारा सामान तो मॉल से आना है। मैंने उस से कहा कि वह तैयार हो ले तो उस ने मेरे पास आ कर कहा कि जरा गरदन उठा कर तो देखो, मैंने जब उसे देखा तो वह तैयार हो कर ही आयी थी। मैंने शर्मिदा होकर सॉरी कहा और कपड़ें बदलने चला गया। वहाँ पत्नी बोली कि इसे कुछ खिला देना अगर खाना चाहे तो। मैंने हाँ में सर हिलाया।

घर को बन्द करके हम दोनों ने नीचे आ कर गाड़ी निकाली और मॉल में चले गये। मॉल में तो ठन्डक थी इस लिये लोग काफी सख्या में घुम रहे थे। हम दोनों भी घुमने लगे। मैंने माधुरी से पुछा कि कुछ खाना है तो वह बोली कि नहीं अभी तो तुम्हारे साथ का आनंद उठाने दो। मैंने उसे देखा तो वह बोली कि तुम्हारें साथ के लिये मरी जा रही हूँ। मैंने उस से कहा कि अब तो मेरे साथ ही हो, वह बोली की यह साथ भी एक सजा जैसा है कुछ भी मन का नही कर सकते है।

मैंने उस से कहा कि मन की तो कर ही लेती हो तो वह बोली कि मेरी चीज है जो मन करेगा वही करुँगी। मैंने कहा कि कही चले मन की करने तो उस ने कहा कि नही इतनी भी आग नही लगी है। मैंने कहा कि आग में धीरे-धीरे जलने का अपना अलग ही मजा है। वह बोली कि ज्यादा मत भड़काओं नही तो कुछ कर दूँगी। मैंने नकली डर से कहा कि कुछ मत करो। वह मुस्करा दी और बोली कि तुम मेरी परेशानी का मजा ले रहे हो? मैंने कहा कि मैं भी तो उसी आग में जल रहा हूँ तो मजा कैसे लुगाँ?

हम लोग स्टोर में जा कर सामान खरीदने लगें। सामान की लिस्ट जब खत्म हो गयी तो स्टोर के अन्दर शराब की दूकान देख कर माधुरी बोली कि बीयर ले लेते है। घर में तो बैठ कर आराम से पी पायेगें मैंने कहा कि विचार तो बुरा नही है। दो बीयर की बोतलें खरीद ली। वहाँ से निकल रहे थे तो मेडीकल स्टोर पड़ा, माधुरी ने मुझे इशारा किया तो मैं कॅडोम लेने चला गया। वैसे तो घर पर भी पड़ें थे लेकिन उन्हें हाथ नही लगाया जा सकता था। दो प्रेमी साथ हो और उन का मिलन ना हो यह तो असंभव था सो उस के लिये तैयार रहना ही सही था।

मॉल के एक कोने में पड़ी सीटें दिखी तो हम दोनों वहाँ जा कर बैठ गये। माधुरी बोली कि क्या लिया है तो मैंने कहा कि जिस की जरुरत थी वही लिया है। वह बोली कि मैं हर मिलन पर सोचती हूँ कि

इस का कोई पक्का उपाय करुँ लेकिन बाद में भुल जाती हूँ

मेरे से कहना था मैं बता देता कि क्या खाना है?

उस ने मेरी तरफ अजीब सी नजरों से देखा तो मैंने सकपका कर कहा कि नाराज ना हो देवी, विवाहित व्यक्ति को यह सब पता रखना पड़ता है। तब जा कर उस की तनी भुकुटी सामान्य हूई। वह बोली कि तुम मुझे किसी दिन बताना कि ऐसा क्या है जो तुम्हें नही पता है। मैं हँस दिया। मैंने उस का हाथ दबाया और कहा कि औरतें कब नाराज होती है यह मुझे पता नही है। मेरी यह बात सुन कर वह भी हँस पड़ी।

उस ने कहा कि मिलन के चक्कर में कुछ उल्टा-सीधा मत कर लेना। मैंने कहा कि ऐसा उतावला लगता हूँ तो वह बोली कि तुम क्या हो यह तो मैं अभी तक नही जान पायी हूँ। मैं चुप रहा। हम दोनों घर के लिये वापस चल दिये। घर आ कर माधुरी ने पत्नी को सारे सामान की लिस्ट दिखा दी और बताया कि वही सामान लिया है जो उस ने बताया था। इस के बाद वह खाना बनाने चली गयी।

मैं ने दोनों बोतलें तथा कंडोम छुपा कर माधुरी के पास रख दिये। दोपहर को दाल बनी थी, माधुरी खाना बढ़िया बनाती है यह तो मुझें पता था सो हम सब ने खाना खा कर थोड़ा आराम करने की सोची। पत्नी तो सो गयी। मैं और माधुरी ड्राईगरुम में टीवी चला कर बैठ गये। माधुरी बोली कि कुछ और दिखाओं मैंने कहा कि कहो तो अपनी शादी की एलबम दिखाऊँ? इस बात पर वह बोली की हाँ जरुर दिखाओ। मैंने उसे एलबम ला कर दे दी। वह उन्हें देख कर बोली कि आप दोनों तो बड़े छोटे लग रहे हैं मैंने कहा कि हाँ तु्म्हारी दीदी तो काफी छोटी थी।

वह बोली कि इन फोटोस् की कीमत समय के साथ बढ़ती जाती है। मैंने कहा यह बात सत्य है फोटो जितनी पुरानी होती है उतनी ही कीमती होती जाती है। मैंने माधुरी से कहा कि वह भी जा कर आराम कर ले। इस पर वह बोली कि आप आराम नही करेगें मैंने कहा कि मुझे आराम की आदत नही है। वह मेरी बात सुन कर अपने कमरे में चली गयी। मैं भी टीवी पर अपने पसन्द का चैनल लगा कर बैठ गया। मन में विचार आ रहा था कि कैसे मिलन का मौका तलाशा जाये। लेकिन कोई हल दिखाई नहीं दे रहा था। यह देख कर इस विचार को दिमाग से झटक दिया।

रात का खाना खा कर मैं कुछ देर पत्नी के पास बैठा रहा फिर जब उस को नींद आने लगी तो उस के पास से चला आया। ड्राईगरुम में सोफे पर लेटा ही था कि माधुरी आ कर बैठ गयी, मैं उठ कर बैठने लगा तो उस ने रोक दिया। वह कुछ देर तक मुझे यो ही देखती रही फिर मेरे पास खड़ी हो कर बोली कि सो क्यो नही रहे हो? मैंने कहा की नींद नही आ रही है जब आयेगी तभी तो सोऊँगा।

मैंने उसे बैठने का इशारा किया वह फिर से मेरे सामने बैठ गयी। हम दोनों एक दूसरे को सिर्फ देखते रहें। भावनाऐं दिल में उमड़ रही थी लेकिन हम मजबुर कुछ कर नही सकते थे। कुछ देर बाद माधुरी चली गयी। मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, आँख लग भी गयी, लेकिन फिर थोड़ी देर में ही खुल भी गयी। मन में विचारों का झंझावात चल रहा था कोई सहारा नही मिल रहा था। कोई हल नही था।

मैं उठ कर बैठ गया। काफी देर तक युँ ही बैठा रहा। फिर लेट कर सोने की कोशिश की। नींद ने नही आना था सो नही आयी लेकिन मैं उसी तरह पड़ा रहा। कुछ देर बाद मुझे पेशाब लगा तो मैं बाथरुम की तरफ गया। बाथरुम का दरवाजा खोल कर जब अन्दर घुसा तो मेरी आँखें आश्चर्य से फटी रह गयी। बाथरुम में माधुरी थी उस ने दरवाजा बंद नही किया था उसे वहाँ देख कर मेरा धैर्य जबाव दे गया और मैंने उसे बाँहों में भर लिया, उस के हाथ भी मेरी गरदन के गिर्द कस गये।

हमारे होंठ एक दूसरें के लबों का स्वाद लेने लगे। मुझ से रुका नही जा रहा था मैंने माधुरी को उठाया और अपनी कमर से चिपका लिया। उस ने मेरे कान में कहा कि जरा रुको कंडोम तो पहन लो। मैंने देखा कि उस के हाथ में था वह। उस के हाथ से उसे लेकर अपने तने हुऐ लिंग पर चढ़ा लिया। इस के बाद उस की मैक्सी को ऊपर कर के उस की योनि में लिंग को डालने की कोशिश की, माधुरी के पाँव मेरी कमर पर कस गये दूसरी बार कोशिश की तो लिंग योनि में चला गया।

मैंने उसे दिवार के सहारे टिका कर धक्कें लगाने शुरु कर दिये मेरे अन्दर ना जाने कैसी पाश्विक ताकत आ गयी थी। मेरी गरदन पर उस के हाथ कसे हुऐ थे। मैं पुरे जोर से धक्के लगाने में लगा हुआ था। नीचे से माधुरी कुछ कर नही सकती थी। उस के होंठ मेरे होंठों पर कस गये थे। मेरे जोर से लिंग को धक्के देने की वजह से वह दर्द के कारण कराह रही थी लेकिन अपनी आवाज को दबाने के लिये उस ने अब अपने ऊपर के होंठ को दातों से भीचँ लिया था।

यह खेल कुछ मिनट चला, फिर मेरा तनाव चला गया। लेकिन मैंने लिंग निकाला नही। कुछ देर में माधुरी भी स्खलित हूई और उस के योनि स्राव के दबाव से मेरा लिंग बाहर निकल गया। पानी नीचे गिरने लगा। मैंने एक हाथ से उसे फर्श पर गिरने से रोका कि कहीं आवाज ना हो।

माधुरी को नीचे उतार कर खड़ा किया उस ने मैक्सी से मेरे लिंग को पौछा और अपनी योनि के बहते द्रव को भी रोका। मैं थोड़ा होश में आ गया था। चुपचाप सिकुड़े पड़े लिंग से कंडोम उतारा, उसे माधुरी ने मेरे हाथ से खींच लिया। मेरे होंठों पर चुम्बन दे कर बोली कि चुपचाप धीरे से बाहर चले जायो, अगर कोई ना हो तो एक बार नॉक कर देना मैं भी निकल जाऊँगी।

मैंने धीरे से दरवाजा खोल कर देखा कि कोई है तो नहीं। बाहर कोई नही था, मैं दरवाजा बंद करके निकल गया। थोड़ी देर बाद मैंने दरवाजे पर नॉक कर दिया। माधुरी भी चुपचाप दरवाजा बंद करके अपने कमरे में चली गयी। मैं भी सोफे पर लेट गया। अब की बार नींद आ गयी।

सुबह माधुरी ने चाय देने के मुझे झकझौर कर जगाया तब जा कर नींद खुली। उठ कर मुँह धो कर मैं पत्नी को देखने गया तो वह सो रही थी माधुरी बोली कि दीदी अभी सो रही है इस लिये उन्हें नही उठाया, मैंने कहा कि कुछ देर बाद उठा देना ताकि कुछ खा कर दवा खा ले। हम दोनों चाय पीने लगे। माधुरी ने कहा कि इतनी ताकत कहाँ से लाते हो? मैंने कहा कि पता नहीं उस समय क्या हो गया था। सॉरी, उस ने कहा सॉरी करने को नही कह रही हूँ मैं तो केवल जानना चाहती हूँ कि इस का स्त्रोत क्या है। मैंने कहा कि मुझे नही पता।
 
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UPDATE 10

चाय पीने के बाद पत्नी को जा कर जगाया तो वह बोली कि आज नींद आराम से आयी थी। मैंने कहा कि बुखार नहीं आयेगा तो नींद आयेगी। उस ने चाय पीकर बिस्कुट खाये और दवा खा ली। मैंने उस का बुखार चैक करा तो बुखार नही था। वह बोली कि बिस्तर में पड़े-पड़े शरीर में दर्द हो गया है। मैंने कहा कि अगर आराम नही करोंगी तो जल्दी सही नहीं हो पायोगी। कई बार दस पन्द्रह दिन भी लग जाते है इस लिये मैं किसी तरह का खतरा नही उठाना चाहता।

माधुरी और मैं घर पर है ही तो तुम्हें चिन्ता करने की जरुरत नही है। मेरी बात सुन कर वह चुप रही। मैं योग करने चला गया तथा उस के बाद नहाने गया तो देखा कि मेरी ब्रीफ पुरी तरह से गिली थी। संभोग के बाद भी काफी वीर्य निकला था। मैंने उसे धो कर निचोड़ कर सुखा कर कपडो़ं की बाल्टी में डाल दिया उसी समय ध्यान आया कि इन गन्दें कपड़ों को भी तो धोना है। सोचा कि नाश्ते के बाद धो दुँगा। नाश्ते में आज ब्रैड थी।

नाश्ते के बाद मैंने कपड़ें वाशिग मशीन में डाल दिये और पत्नी से पुछा कि कोई कपड़ा तो नही है धोने के लिये तो उस ने मना किया फिर माधुरी से पुछा तो वह बोली कि आप हटो मैं धो देती हूँ मैंने कहा कि नही मैं धो रहा हूँ उस ने हँस कर कहा कि धोने आते है? मैंने कहा कि शादी से पहले भी अपनी माँ के साथ यह सब काम करा है मैंने। मेरी बात सुन कर पत्नी बोली कि बस मेरे साथ ही नहीं करा है कुछ काम इन्होंने। माधुरी ने अपनी मैक्सी तथा और कपड़ें भी मशीन में डाल दिये। मैं कपड़ों को धो कर डालने लगा।

माधुरी मदद करने के बहाने मेरे पास आयी और बोली कि रात को तो पानी रुक ही नही रहा था। मैंने कहा कि उत्तेजना के कारण तुम्हारा भी ऑरगाज्म हुआ होगा। वह बोली की लेटने के बाद भी रह रह कर शरीर अकड़ता सा रहा और पानी निकलता रहा।

मेरी हालत तो बेहोशी की सी हो गयी थी। मैंने कहा कि तुम्हारा शायद पहला अनुभव है उस ने मेरी चिकुटी काट कर कहा कि काम शास्त्र में भी डॉक्टरेट कर रखी है। मैंने कहा कि अब क्या कहूँ। वह बोली कि कमर में और नीचे बहुत दर्द हो रहा है, क्या करुँ मैंने कहा कि मैं तुम्हें कोई पैनकिलर देता हूँ। बोली कि छुपा के देना। मैंने कहा कि सब दवाईयाँ उसी के पास पड़ी है।

वह बोली कि क्या कभी सामान्य तरीके से कर पायेगें? मैंने कहा जब संबंध ही सामान्य नही है तो यह कैसे संभव है? मेरी बात पर वह मुझे जीभ दिखाती हूँई चली गयी। नीचे आ कर मैंने चुपचाप पैनकिलर ढुढ़ कर माधुरी को दी। उसने उसे खाने के बाद कहा कि शायद अब दर्द कम हो जाये ऐसा ही हुआ थोड़ी देर में उस ने आ कर बताया कि अब दर्द कम हो गया है। यह सुन कर मैंने चैन की साँस ली।

दोपहर के खाने में मुंग की दाल थी। खाना खाने के बाद मैं सोने की कोशिश करने लगा तो वह बोली कि खाली हो तो मेरी पुस्तक की प्रतिलिपी पर एक नजर मार लो। मैंने उस के लेपटॉप पर उसकी पुस्तक पढ़नी शुरु कर दी वह भी इस बहाने मेरे पास बैठ गयी। मैंने पुछा कि रात को वहाँ का आईडिया कैसे आया? उस ने कहा कि पहली रात को भी उसे नींद नही आयी तो वह बाहर खड़ी थी उस ने देखा कि मैं बाथरुम जा रहा हूँ तो उसे लगा कि यही वो जगह है जहाँ एकान्त मिल सकता है।

दीदी के रुम में तो बाथरुम अटैच है। वह तो बाहर नही आयेगी और अगर तुम सोफे पर नही होगे तो सोचेगी कि बाथरुम में हो। मेरा कमरा तो बंद है ही। यही एकमात्र स्थान है हमारे मिलन के लिये। कल मैं जाग रही थी फिर मैंने देखा कि तुम उठ कर बैठ गये हो। मुझे लगा कि यही मौका है मिलन का सो मैं अपना कमरा लॉक करके बाथरुम में चली गयी तुम भी अपनी आदत के अनुसार बाथरुम आये। बाकि तो तुम्हें पता ही है।

लेकिन यह नही लग रहा था कि मिलन हो पायेगा सिर्फ इतना था कि तुम से लिपट पाऊँगी। लेकिन तुम ने तो प्यास बुझा दी। कहाँ से सीखा यह आसन? मैंने कहा कि एक विदेशी फिल्म में देखा था सो कल कर लिया।, तुम भी तो तैयार थी मैक्सी पहन कर, वह बोली कि कुछ तो मेरी भी अक्ल चलती है तभी तो कंडोम भी साथ ले कर गयी थी। मैंने कहा कि बढ़िया करा।

मैं उस ने बीच में उस की किताब के बारे में भी पुछता जा रहा था ताकि हमारी नजदिकियों पर पत्नी को शक ना हो। माधुरी भी मेरी बात को समझ रही थी। रात को पत्नी को दवा दी तो वह बोली कि इतनी नींद क्यों आ रही है? मैंने कहा कि डॉक्टर ने बताया तो था कि एक दवा के खाने से उन्नीदापन सा रहता है तभी तो इस को खा कर गाड़ी चलाने को मना करते है। पत्नी चुप हो गयी।

आज मैंने नींद की गोली खा ली क्यों कि दो दिनों से नींद कम ही आयी थी। माधुरी को बता दिया कि मैं नींद की गोली खा कर सो रहा हूँ अगर पत्नी आवाज लगाये तो तुम्हें ही जागना पडे़गा उस ने मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो मैंने कहा कि नींद ना आने के कारण मुझे माईग्रेन ना हो जाये इस लिये नींद की गोली खायी है।

उस की समझ में बात आ गयी। दवा के कारण में जल्दी ही सो गया। नींद में ऐसा लगा कि कोई मुझें चुम रहा है तथा किसी के हाथ मेरे सारे बदन को सहला रहे थे। सुबह उठ कर बाथरुम में जा कर देखा तो ब्रीफ पुरी तरह से गिली थी चिपचिपी थी लगा कि रात को स्वपन दोष के कारण स्खलित हो गया था। इस विषय में ज्यादा सोचने के लिये था भी नही सो मैं ने किसी से इस की चर्चा नही की।

दिन सामान्य तरीके से शुरु हुआ। उठने के बाद मैंने महसुस किया की फर्श पर धुल कुछ ज्यादा ही थी, फिर ध्यान आया कि पत्नी जब से बीमार है तब से झाडूँ लगी ही नही है। माधुरी से कहने की मेरी हिम्मत नही थी सो मैं ही झाडूँ ले कर सारे घर में झाडूँ लगाने लगा, कुछ देर में ही फर्श चमक गया। यह करने में मैं थक गया था।

आज योग छोड़ कर नहाने चला गया। नहाने के बाद पूजा कर रहा था तभी माधुरी उठ कर आयी और मुझे देख कर बोली कि मेरी तो आँख नही खुली तुम ही मुझे जगा देते, मैंने कहा कि कोई जरुरत नही लगी इसी लिये तुम्हें नही जगाया। सोचा था कि पूजा करने के बाद चाय बना कर तुम्हें जगाऊँगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि आज कुछ जल्दी नही नहा लिये तुम? मैंने कहा कि जल्दी आँख खुल गयी तो नहा लिया।

मेरी बात पर उसे कुछ विश्वास सा नही हुआ फिर उसे कुछ महसुस हुआ और उस ने चारों ओर घुम कर देखा और बोली कि जनाब ने आज सारे घर की सफाई की है इस लिये मुझे नही जगाया। मैंने कहा कि बाद में बातें करते है। यह कह कर मैं पूजा में लग गया, वह भी वही मेरे सामने बैठ गयी। पूजा खत्म होने के बाद उस ने कहा कि इतना ही मेरे पर विश्वास है? कि तुम मुझ से झाड़ूँ मारने के लिये नही कह सकते?

मैंने उसे बताया कि मुझे कहने में शर्म आ रही थी और मैं जल्दी जग भी गया था सो लगा दी शायद अगर दिन की बात होती तो तुम से कहता, लेकिन एक बात समझ लो कि मेरी परवरिश ऐसे परिवार में हुई है कि हम सब लोग घर के किसी भी काम को करने में हिचकते नही है। मां-बाप ने बचपन से ऐसे संस्कार दिये है।

मेरी बात सुन कर उस की उत्तेजना कुछ कम हुई, मैंने उसे याद दिलाया कि चाय देनी है पत्नी को तो वह चाय बनाने चली गयी। चाय पत्नी को दे कर वह फिर मेरे पास आ गयी और बोली कि इस बात पर मेरी तुम्हारी लड़ाई हो सकती है। मैंने कहा कि लड़लों मैंने कब मना किया है, जो कारण था वह तुम्हें बता दिया, अगर विश्वास ना हो तो अपनी दीदी से पुछ लो। वह चुप रही। मैंने कहा कि तुम को लगता है कि मैं तुम से कुछ छुपाऊँगा? मेरी नजर फर्श पर सुबह ही पड़ी सो मैंने साफ कर दिया। अब गुस्सा थुक दो, नही तो नाक लाल हो जायेगी। मेरी बात पर उस की हँसी निकल गयी।

मैंने कहा कि भई आज तो नाश्ते में पराठें खिला दो। वह बोली कि दीदी को क्या दे? मैंने कहा कि उसे मीठा दलिया पसन्द है सो उस के लिये वही बढ़िया रहेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं भी नहा लेती हूँ मैंने हाँ में सर हिलाया। वह नहा कर आयी और पूजा करने लगी मैं उसे देख रहा था, उस ने बाद में पुछा कि मुझें घुर क्यों रहे थे? मैंने कहा कि देखना घुरना कब से हो गया? मैं तो श्रद्धा में नत एक स्त्री के दर्शन कर रहा था। मेरी बात पर उस ने मेरे सर पर चपत लगाई और चली गयी।

दिन सामान्य रुप से गुजर गया, पत्नी की तबीयत सही हो रही थी। वह अब उठ कर कुछ घुम-फिर रही थी। इस कारण से मुझे लग रहा था कि जल्दी ही वह पूर्ण रुप से सही हो जायेगी। रात को सब लोग जैसे सोते थे वैसे ही सो गये। सुबह चार बजे मेरी नींद खुल गयी, पत्नी के कमरे में जा कर देखा तो वह सो रही थी। जाने क्या मन करा मैं उस के साथ जा कर सो गया। फिर उस से पीछे से चिपक गया और धीरे से उस के कपड़ें हटा कर उस के साथ पीछे से संभोग करने लगा। वह भी इस में भाग ले रही थी। ज्वार खत्म हो जाने के बाद भी वह आराम से सोती रही।

मुझे पता था कि वह समागम के बाद गहरी नींद में सो जाती है सो मैं उस के पास से उठ गया। कमरे के बाहर जा कर कुछ देर सोचता रहा कि क्या करुँ फिर माधुरी के दरवाजे पर जा कर उसे खोलना चाहा तो पता चला कि वह बंद नही है सो उसे खोल कर अन्दर चला गया। अन्दर आ कर दरवाजा बंद कर के चिटकनी लगा दी। माधुरी भी सोई पड़ी थी। लेकिन मेरे उस के पास खड़े होते ही ना जाने उस की नींद कैसे खुल गयी और वह उठ कर खड़ी हो गयी।

मैंने उसे बाँहों में भर लिया, उस ने भी मेरा आलिंगन कर लिया। दोनों एक दूसरे के आगोश का आनंद लेते रहे। फिर मैंने उस की मँक्सी सर के ऊपर से उठा कर उतार दी और अपने कपड़ें भी उतार दिये, अब हम दोनों बिना वस्त्रों के एक दूसरे से आंलिगन बंद्ध थे। भावनाऐं चरम पर थी, चुम्बन के बाद मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया मेरा सिर उस के जाँघों के मध्य था तथा लिंग उस के मुँह के ऊपर उस ने मेरा इशारा समझ कर उसे अपने मुँह में ले लिया। मैं अपनी जीभ से उस की योनि का अन्वेषण करने लगा।

जीभ उसकी योनि की गरहाई में उतर चुकी थी। वहाँ की नमी का स्वाद का रसास्वादन कर रही थी। मैं कभी होंठों द्वारा उसके भंग को चुम लेता था। उस के कराहने की आवाज आ रही थी लेकिन वह उसे रोकने की भरपुर कोशिश कर रही थी। इस कोशिश में उस ने पुरे लिंग को निगल लिया था।

उस के मुँह से गर्र-गर्र की आवाज आ रही थी। उस के मुँह और हाथों ने मुझे उस के मुँह में स्खलित होने को मजबुर कर दिया। उत्तेजना के कारण माधुरी के दोनों पाँव मेरे सर के पीछे कसे हुए थे। योनि में नमी की मात्रा बढ़ गयी थी। मैंने कुछ देर उस के योनि से जीभ हटा कर अपनी उँगुली से उस के भंगनास को मसलना शुरु कर दिया। इस से उस की उत्तेजना बढ़ गयी।

मुझे लगा कि अब समागम के लिये सही समय है, मैंने अपनी पोजिशन बदली और उसके पैरों के बीच बैठ गया, मेरे महाराज अपनी पुरी मौज में थे मैंने उसे योनि के मुँह पर लगा कर धक्का दिया तो वह पहली बार में ही पुरा समा गया। माधुरी के मुँह से आह निकली। फिर तो नीचे से उस ने और ऊपर से मैंने धक्के लगाने शुरु कर दिया। दोनों की गति बहुत तेज थी, कुछ देर बाद मैंने थक कर उसे अपने ऊपर कर लिया। अब वह आराम से कुल्हें उछाल कर धक्के लगा रही थी मैं उस के तने उरोजों को हाथों से सहला रहा था।

फिर वह मेरे ऊपर लेट गयी उस के कुल्हों की गति बढ़ गयी थी, मैंने भी अपने कुल्हों को उछालना शुरु कर दिया कुछ समय बाद मेरी आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया सारा शरीर अकड़ गया। मेरे अपने हाथों को माधुरी के उपर लपेट कर उसे जकड़ लिया फिर मेरे लिंग पर जैसे गरम पानी की बौछार ही होने लगी। माधुरी भी स्खलित हो गयी थी, दोनों के शरीर गर्मी के कारण जल रहे थे।

तुफान गुजर जाने के बाद शांति छा गयी थी। लिंग अभी भी तनाव में था इस लिये निकला नही था। माधुरी को जब मैंने अपने से अलग किया तो उस ने तनाव को देख कर कहा कि क्या बात है साहब अभी भी मुड में है। मैंने कहा कि लगता है कि संतुष्टि नही मिली है। उस ने कहा कि अति मत करो? मैंने कहा कि मैं क्या कर रहा हूँ।

मैंने उसे चुमा और उठ कर कपड़ें पहनने लगा। कपड़ें पहन कर मैंने फिर उसे चुमा और कहा की कपड़ें पहन लो, यह कह कर मैं चुपचाप उस के कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया। ड्राईग रुम में जा कर सोफे पर सो गया। मोबाइल में अलार्म लगा लिया की समय पर उठ जाऊँ, लेकिन ऐसी नौबत आयी नहीं, माधुरी ने जगा कर मुझे उठा दिया। मैं अगड़ाई ले कर उठ गया। वह कुछ देर तक मुझे देखती रही फिर चाय बनाने चली गयी।

मैंने उठ कर देखा कि पत्नी सो रही है या नही? वह अभी सो सही थी। मैंने यह कन्फर्म कर लिया था कि मेरे उस के पास से जाने के बाद उस ने कमरे का दरवाजा खोला नही था। माधुरी चाय ले कर आयी और मेरे पास बैठ गयी, उस ने कहा कि आज कल क्या खा रहे हो?

मैंने कहा कि वियाग्रा की गोली खा रहा हूँ उस ने मुक्का मार कर कहा कि इस की क्या जरुरत पड़ गयी? मैंने कहा कि दो-दो को प्यार करना पड़ रहा है। मेरी बात पर वह और कुछ कहती तो मैंने कहा कि मजाक कर रहा हूँ, कुछ नही खा रहा हूँ मेरे साथ ऐसा ही है तुम ने इस बात को नोटिस नही किया है। आगे ध्यान रखना तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हो जायेगा।

वह मुझें घुरती रही। मैंने उस से कहा कि चाय पीयों ठन्डी हो जायेगी। यह अभी सो रही है मैंने देख लिया है। उस ने मेरी बाँह पकड़ ली और मेरे साथ सट गयी। मेरे कान में बोली कि कल कुछ ध्यान नही रहा था। मुझें भी ध्यान आया कि कल हम ने कंडोम इस्तेमाल नही किया था। मैंने उस के हाथ पकड़ कर कहा कि चिन्ता मत करों, कुछ नही होगा, उस ने कहा कि चिन्ता तो होगी।

मैंने कहा कि कॉनट्रास्पेटिव टेबलेट ला दुँगा तो वह बोली कि मेरे पास है। मैंने कहा कि फिर क्यों चिन्ता कर रही हो? वह बोली कि यह गोलियां ज्यादा नही खानी चाहिये, मैंने पुछा कि कितनी खाई है? तो जबाव मिला कि छः महीने पहले खाई थी। मैंने कहा की फिर क्यों चिन्ता कर रही हो? मस्त रहो। तब जा कर उस के चेहरे पर मुस्कराहट आई।

उस ने धीरे से कहा कि तुम्हारें जाने के बाद भी डिस्चार्ज होता रहा था, मैंने कहा कि मैंने तो अभी देखा नही है लेकिन तुम्हारा जैसा ही मेरा भी हाल होगा। फिर उस के कान में फुसफुसाया कि तुम्हारी दीदी का भी हमारे जैसा हाल होगा? उस ने मेरी तरफ हैरत से देखा। मैंने कहा कि पहले उसे प्यार किया था फिर तुम्हारे पास आया था। उस के चेहरे से हैरत के भाव नहीं गये। मैंने कहा कि इस के सिवा कोई चारा नहीं था। मेरे कान के पास मुँह करके बोली कि तुम ने कुछ खाया नही है इस के बारे में झुठ तो नही बोल रहे हो?

मैंने कहा कि चलो एक और दौर कर लेते है तब तो तुम्हें यकीन होगा यह सुन कर उस ने मेरी पीठ में जोर से मुक्का मारा। मैंने उस का हाथ पकड़ कर अपनी जाँधों के मध्य में रखा तो उसे झटका लगा। बोली की यह तो अभी भी तैयार है मैंने कहा कि यह मानसिक वजह से है पहले तो यह प्रयास करने पर भी तैयार नही होता था। अब तुम ही देख रही हो। मुझें कुछ खाने की जरुरत होती तो मैं पहले तुम से इस पर चर्चा करता। तुम्हारे लिये ही तो यह सब करता। यह सुन कर उस को चैन पड़ा। वह चाय पी कर खाली कप ले कर किचन में चली गयी।

मैं बाथरुम चला गया वहाँ जा कर देखा तो ब्रीफ पुरी तरह से गीली थी। बाहर आ कर फिर से पत्नी के पास गया वह अभी भी सो रही थी मैंने उसे जगाया तो वह जग कर बैठ गयी मैंने उस से कहा कि उठ कर कपड़ें बदल ले, उस ने मेरी तरफ देखा तो उसे समझ आया उस ने फौरन उठ कर कपड़ें देखे तो वह गीले थे उसे सब समझ में आ गया, वह बोली कि तुम्हें चैन नही है? मैंने कहा कि हाँ ऐसा ही है। वह मुस्करा कर कपड़ें बदलने लगी।

कुछ देर बाद माधुरी ने दरवाजा खट खटाया, मैंने कहा कि आ जाओ तो वह दरवाजा खोल कर अन्दर आ गयी उस के हाथ में पत्नी के लिये चाय और बिस्कुट की प्लेट थी। मैंने पत्नी से कहा कि तुम चाय पी कर दवा खा लो। मैं कमरे से निकल गया। माधुरी भी थोड़ी देर बाद बाहर आ गयी। मुझें चिकुटी काट कर अपने कमरे में चली गयी। मैं बाथरुम में नहाने के लिये घुस गया। कपड़ें धो कर निचोड़ कर कपड़ों की बास्केट में डाल दिये। पूजा वगैरहा करके पत्नी के पास बैठ गया, माधुरी भी नहा कर हमारे पास आ गयी।

बातें होने लगी। माधुरी ने पत्नी से पुछा कि दीदी आज नाश्ते में क्या खायेगी? उस ने कहा कि जो सब के लिये बनाओ वही मैं भी खा लुँगी। मैंने कहा कि अब तुम भी पराठें खा सकती हो। माधुरी बोली कि अगर पोहा है तो मैं पोहा बनाती हूँ हल्का भी रहेगा और स्वादिष्ट भी रहेगा। पत्नी ने उसे बताया कि कहाँ पर पोहा रखा है।

मैंने पत्नी से पुछा कि अगर नहाना हो तो पानी गरम करुँ तो वह बोली कि हाँ आज मन कर रहा है। मैंने गीजर चालु कर दिया। पत्नी नहाने के लिये चली गयी मैं उस का इंतजार करता रहा, जब वह नहा कर बाहर आयी तो मैंने पुछा कि चक्कर तो नही आ रहे है? उस ने कहा कि हाँ चक्कर आ रहे है। यह कर कर वह बेड पर बैठ गयी।

मैंने कहा कि थोड़ी देर बाद सही हो जायेगा। वह बेड पर लेट गयी। माधुरी फिर उस के लिये चाय ले कर आ गयी और बोली कि इसे पी लिजिये, अच्छा लगेगा। मैंने कहा कि माधुरी चाय रख दो जब इसे थोड़ा हिम्मत होगी तो उठ कर पी लेगी। माधुरी बोली कि क्या हुआ? मैंने कहा कि कुछ खास नही, नहाने की वजह से इसे चक्कर से आ रहे है। वह भी पास में ही बैठ गयी। यह देख कर पत्नी उठ कर बैठ गयी और बोली कि मैं बिल्कुल सही हूँ यह कह कर उस ने चाय का कप उठा लिया। वह चाय पीती रही और हम दोनों उसे देखते रहे।

मैं कमरे से बाहर आ गया और ड्राईगरुम में बैठ कर अखबार पढ़ने लगा। तभी ऑफिस से फोन आया, वही महिला सहयोगी थी जो पीछे पड़ी हूई थी। वह जानना चाहती थी कि अब मेरी पत्नी की तबीयत कैसी है? मैंने कहा कि अब कुछ सुधार है। वह बोली कि अगर मैं उन को देखने आऊँ तो आप को कोई परेशानी तो नही होगी। मैंने कहा कि मुझे कोई परेशानी नही है लेकिन वह क्यों परेशान हो रही है तो वह बोली कि मैं आज आपकी तरफ आ रही थी तो इस बहाने आप की पत्नी से भी मिलना हो जायेगा। मैंने कहा कि आप का स्वागत है। उस ने कहा कि वह शायद 1 बजे तक आयेगी।

मैंने अन्दर पत्नी के पास जा कर उस से कहा कि ऑफिस से एक सहयोगी तुम्हें देखने आ रही है। उस ने कहा कि इस की क्या जरुरत है। मैंने कहा कि मना नही कर सकता हूँ हो सकता है वह यह जानने आ रही हो कि सच में मैं घर में हुँ या कही और तो जॉयन तो नही कर लिया है। माधुरी मेरी बात सुन कर बोली की ऐसा भी हो सकता है तो मैंने कहा की हो सकता है? कंपनियाँ हर बात से डरती है। छुट्टियाँ नही लेने वाला आदमी अगर हफ्ते ही छुट्टी ले ले तो चिन्ता होना स्वाभाविक है।

तीनों ने एक साथ बैठ कर नाश्ता किया। मैंने माधुरी से कहा कि तुम उस के सामने नही आना नही तो वह कहेगी कि मैंने तो कहा था कि पत्नी की देखभाल के लिये कोई नही है। वह बोली की मैं उन के सामने नही आऊँगी। फिर उस ने पुछा कि चाय वगैरहा कौन बना कर देगा मैंने कहा कि मैं दे दूँगा या ऐसे ही विदा कर दूँगा। मेरी बात पर वह हँसती हूँई चली गयी।
 
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