नींद की गोलियों का असर जानने के लिये करीब पाँच मिनट के बाद मैंने अपने देवर को नाम लेकर आवाज़ दी। जब उसने कोई आवाज़ नहीं दी तो मेरे होंठों पर मुस्कान फैल गयी। इसका मतलब दोनों फिर से गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे और इस बार दो-तीन घंटे से पहले हिलने वाले नहीं थे।
फिर मैं टाँगे से उतरने लगी तो टाँगेवाला दौड़ कर मेरे पास आया और मदद के लिये अपना हाथ मुझे दिया, “मेमसाब! आराम से उतरिये… लो मेरे हाथ को पकड़ लो!” लेकिन उस बदमाश ने एक चालबज़ी कर दी और जैसे ही मैंने उसका हाथ थामा तो उसने चालाकी से दूसरे हाथ से मेरी चुनरी इस तरह खींच दी कि लगे कि गलती से ऐसा हो गया। उसकी इस हरकत से मेरे मम्मे उस दूसरे अजनबी की नज़रों के सामने बिल्कुल नंगे हो गये। मेरे तने हुए निप्पल तो जैसे उस ललकार रहे थे। वैसे तो मैं ऐसे मौके खुद ही तलाशती रहती हूँ पर उस वक्त मैं नहीं चाहती थी कि वो अजनबी शख्स कोई गलत मतलब निकाले। मैं अपने मम्मों पर चूनरी वापस लेते हुए टाँगेवाले को थोड़ा गुस्से से बोली, “ज़रा एहतियात से हाथ लगाना था ना!”कमीनेपन से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख कर टाँगेवाला बोला, “अरे मेमसाब! इससे कैसी शरम… ये तो अपना ही आदमी है!” मेरे खुल्ले बर्ताव और नर्मी की वजह से वो टाँगेवाला धीरे-धीरे दिलेर होता जा रहा था।
अब मैं समझी कि उसने मुझे चोली के हुक लगाने से क्यों रोका था। हम ढाबे के मुत्तसिल बने कमरे की तरफ चल पढ़े। टाँगेवाला मेरे साथ चल रहा था जबकि उसका साथी हमारे पीछे-पीछे चल रहा था। अचानक से टाँगेवाले ने मेरे चूतड़ों पर हाथ रख दिया मेरी गाँड दबाते हुए बोला, “मेमसाब आपकी गाँड तो आपके मम्मों से भी ज्यादा मज़ेदार है… आप शहरी औरतें ये ऊँची ऐड़ी की सैंडल पहन कर अपनी गाँड उभार कर बहुत मटकाती हो… हाय मैं तो आज आपकी गाँड ही मारूँगा!”ये कहते हुए वो खुल्लेआम मेरे चूतड़ सहला रहा था। उसे परवाह नहीं थी कि उसका दोस्त हमारे पीछे ही आ रहा है और ये सब हरकतें उसे नज़र आ रही होंगी।
मैंने एतराज करते हुए कहा, “तुम्हे जो करना है वो कर लेना पर यहाँ अपने दोस्त के सामने तो मेरी इज़्ज़त रखो… नहीं तो वो क्या सोचेगा मेरे बारे में!”
अब तक हम कमरे तक पहुँच चुके थे और टाँगेवाले का दोस्त बाहर ही खड़ा रहा। उसने हमारे साथ कमरे में आने की कोशिश नहीं की। तब टाँगेवाला बोला, “देखो मेमसाब! आगर आपको मुझसे चुदवाने का मन है तो मेरे दोस्त को भी खुश करना होगा… नहीं तो जाओ मैं भी आपको नहीं चोदुँगा!”
उसी वक्त उसने अपनी लुंगी खोल दी और पहली दफा मैंने पूरी रोश्*नी में उसका लंड देखा – ओहह वल्लाह! वाकय में मेरे अंदाज़ से भी बेहद बड़ा और शानदार बिना-खतना लंड था और मेरी चूत चोदने की उम्मीद में फिर से अकड़ कर खड़ा था। मैं उसकी गंदी(?) बातों से इस कदर गरम और चुदासी हो चुकी थी कि किसी भी कीमत पर ये मौका हाथ से निकलने नहीं देना चाहती थी। लेकिन उसके दोस्त से चुदवाने का मेरा कोई इरादा नहीं था, इसलिये उसे मनाने के मकसद से मैं बोली,“प्लीज़ देखो… तुम जो कहोगे मैं करूँगी… मगर प्लीज़… मुझे उस आदमी से… चुदवाने को नहीं कहो प्लीज़!” मेरी नज़रें उसके लंड पर ही टिकी हुई थीं जो और बड़ा होने लगा था।
मुझसे सब्र नहीं हुआ और तभी झुककर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। लंड चूसते हुए मैं रंडी की तरह उससे बोली, “ऊऊऊहहह मेरे खुदाऽऽऽ -हायऽऽऽ… कितना शानदार है तुम्हारा लौड़ा… दिल कर रहा है कि इसे चूसती ही रहूँ – हाय – प्लीज़ऽऽऽ जल्दी से मुझे चोदो अपने इस हलब्बी लंड से – मैं तो कब से तरस रही हूँ!”उसके पूरे लंड और खसकर उसके सुपाड़े पर मैं अपनी जीभ फिराते हुए चुप्पे लगा रही थी।
अपने लंड से मुझे दूर ढकेलते हुए वो बोला, “मेमसाब देखिये – या तो हम दोनों दोस्त मिल लर आपको चोदेंगे… या फिर आपको कोई भी नहीं। अगर आपको मंज़ूर हो तो हाँ बोलो वरना आप अभी भी जाकर टाँगे में बैठ सकती हैं!”
उसके लंड और अपने होंठों की ये दूरी मैं ज़रा भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और मैं उसके लंड के लिये गिड़गिड़ा कर भीख मंगते हुए बोली, “नहीं प्लीज़… ऐसा ज़ुल्म नहीं करो… देखो तुम मुझे इस तरह प्यासी नहीं छोड़ सकते… तुम्हें मुझे चोदना ही पड़ेगा… प्लीज़ इस तरह मत तरसाओ मुझे!”
“तो फिर मेरे दोस्त के लिये भी हाँ कह दो ना… आपको भी तो डबल मज़ा आयेगा जब दो आदमी एक साथ आपको चोदेंगे!”
ये मेरी ज़िंदगी का वो कमज़ोर लम्हा था जब मैं हवस में बिल्कुल बेखुद होकर अपने बारे में, अपने सोशल-स्टेटस, अपने पति और बाकी सब कुछ भूल गयी थी। उस वक्त मेरे लिये सबसे ज्यादा अहमियत तो सिर्फ उस टाँगेवाले से ज़ोरदार चुदाई कि थी।शायद इसलिये कि मेरे पति तीन हफ्तों से दौरे पर गये हुए थे और आज इस टाँगेवाले के साथ मस्ती भरी छेड़छाड़ ने और उसके शानदार लण्ड ने मेरे अंदर बेतहाशा आग भड़का दी थी। मैं सारी हदें पार करके एक अजनबी गरीब टाँगेवाले से चुदवाने के लिये तड़प रही थी। किसी गरम और चुदासी कुत्तिया जैसी हालत थी मेरी। आखिरकार मुझे उस टाँगेवाले की ख्वाहिश के सामने झुकना ही पड़ा और मैंने उसके और उसके दोस्त के साथ ग्रुप-चुदाई के लिये रज़ामंदी दे दी। थ्री-सम चुदाई के ख्याल से मुझे सनसनी सी भी महसुस होने लगी थी। इंटरनेट पर ब्लू-फिल्मों में अक्सर ये सब देख कर मैं गरम हो जाया करती थी लेकिन हकीकत में खुद मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा ये कभी नहीं सोचा था।
मेरे ऊपर झुककर मेरे चेहरे को ठोडी से पकड़ते हुए उसने फिर से एक बार पूछा, “चल बता – क्या तू हम दोनों दोस्तों से एक साथ चुदाने को तैयार है?”
उसकी आँखों में झाँकते हुए मैंने हाँ कहते हुए फिर रज़ामंदी जता दी। वो मेरी ठोडी पकड़े हुए भी मेरी हवस से गुलाबी आँखों में झाँक रहा था। लेकिन हैरानी तो मुझे ये हो रही थी कि अचानक उसका लहज़ा तबदील हो गया था और वो “मेमसाब”और “आप-आप” से सीधे “तू-तू” करने लगा था।
अभी भी मेरी ठोडी को पकड़े हुए उसने फिर मुझसे पूछा, “हम लोग तुझे कुत्तिया बना कर चोदेंगे एक साथ… अगर तुझे नहीं पसंद है तो अभी ना बोल दे… नहीं तो बाद में हम रुकेंगे नहीं!”
मैंने उसकी ये शर्त भी मंज़ूर कर ली लेकिन फिर मैंने अपनी एक शर्त भी उसे बता दी, “लेकिन पहले तू एक बार अपने इस मोटे लौड़े से मेरी चू रही चूत को रगड़-रगड़ के चोदके इसको ठंडा कर दे – फिर तू जो कहेगा वो मैं करने को तैयार हूँ!” मैं भी अब “तुम” से “तू” पर आ गयी थी। वो भी मेरी शर्त मान गया लेकिन एक बार फिर मुझे ताकीद कर दिया कि बाद में मुझे उन दोनों से एक साथ चुदवाना पड़ेगा।
इसके बाद वो फिर मेरे करीब आया और मेरी आँखों में झाँकते हुए बोला, “ले राँड! मेरे इस प्यारे लंड को अपने मुँह में ले कर चूस… और इसे फिर से खड़ा कर… टाँगे में तो तेरी अम्मा (सास) जाग गयी थी तो मज़ा नहीं आया था… पर यहाँ पर कोई नहीं आने वाला है!” मुझे भी और क्या चाहिये था। मैं भी तो बिल्कुल यही आरज़ू कर रही थी कि उसका अज़ीम लंड अपने लबों में ले लूँ। मैंने लपक कर उसे पकड़ लिया और बड़े चाव से उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। उसका लंड चूसते हुए मैं उसके चूतड़ों को दबाते हुए अपने लंबे नाखूनों से खुरच रहीथी। उसका लण्ड फिर से सख्त होने लगा था। मैं दस मिनट तक चुप्पे मार-मार के इतनी ज़ोर-ज़ोर से उसका मोटा लंड चूसती रही की मेरे होंठ दुखने लगे।
वो अब ज़ोर-ज़ोर से कराहते हुए ये अल्फाज़ बोल रहा था, “चूस साली… और जोर से चूस मेरा लंड… तुझे शहर में ऐसा लौड़ा नहीं मिलेगा… ऊऊऊहहऽऽऽऽ येऽऽऽ मेरी गाँड भी सहला साली… आंआंऽऽऽऽ हाय क्या लौड़ा चूसती है तू… तूने तो राँडों को भी पीछे छोड़ दिया लंड चूसने में… हायऽऽऽऽ मेरी कुत्तिया… बस इसी तरह सेऽऽऽऽ!”
थोड़ी देर और अपना लंड चुसवाने के बाद उसने मुझे चूसने से रोक दिया, “बस बहुत हो गया अब… छोड़ मेरे लंड को नहीं तो इसका पानी ऐसे ही निकल जायेगा… फिर तेरी चूत प्यासी ही रह जायेगी!”
मैंने उसका लंड मुँह में से निकाला और उसके अंदाज़ में बोली, “साले! अगर अब मेरी चूत प्यासी रह गयी तो तेरे इस लंड को काट के अपने साथ ही ले जाऊँगी। ले – अब जल्दी से मेरी चूत चोद!” ये कहते हुए मैंने अपना लहंगा उतार फेंका और चटाई पे लेट कर अपनी चूत उसे दिखाते हुए बोली, “अब प्लीज़ जल्दी कर… देख कब से मेरी चूत प्यासी है… जल्दी से आ और अपने लण्ड से इसकी प्यास बुझा!”
मैं अब सिर्फ ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी वहाँ लेटी हुई दो टके की रंडी की तरह उसके लंड की भीख माँग रही थी। वो मेरे करीब आया कुछ पलों के लिये मेरी खुली हुई दिलकश चूत निहारता रहा और फिर बोला, “मैंने गाँव में इतनी चूतें देखी और चोदी भी हैं पर एक भी तेरी चूत के जैसी नहीं थी… हाय क्या मक्खन के जैसी चूत है तेरी… और ये तेरी माँसल जाँघें… ये गोरी लंबी टाँगें और ऊँची ऐड़ी की सैंडल में ये प्यारे पैर… इन्हें देखकर तो नामर्दों का भी लंड खड़े होकर सलामी देने लग जायेंगे… हायऽऽऽ मैं मर जाऊँ तेरी इस अदा पर!”
उसकी महज़ बातों से मैं झल्ला गयी और बोली, “अबे चूतिये… अब चोदेगा भी या ऐसे ही खड़ा-खड़ा निहारता रहेगा और शायरी करता रहेगा… देख साले… मेरी चूत में आग लगी हुई है!” मैंने फैसला कर लिया था कि अगर वो मेरे साथ गंदे अल्फाज़ और गालियाँ इस्तेमाल कर सकाता है तो चुदाई के मज़े में इज़ाफे के लिये मैं भी वैसा ही करुँगी।
फिर वो मेरे ऊपर झुककर अपना लंड मेरी चूत में घुसाते हुए बोला, “अभी तेरी इस चूत की आग तो ठंडा कर देता हूँ मेरी रंडी… तू घबरा मत… तेरे पति ने तेरी चूत को नंगी करके क्या चोदा होगा मेरी जान!”जैसे ही उसने अपने लंड का सुपाड़ा मेरी चूत पे लगाया तो उसका सुपाड़ा इस कदर गरम था कि मुझे लगा जैसे मैं बम की तरह फट पड़ुँगी। फिर उसने अपना लंड मेरी चूत में ढकेला तो मूश्किल से अभी वो अंदर घुसा ही था कि मुझे लगा वो मेरी चूत ही फाड़ डलेगा। मैं ज़ोर से चींखी, “अरे चूतियेऽऽऽ ज़रा धीरे से घुसा… क्या मेरी चूत को ही फाड़ डालेगा आज… प्लीज़ ज़रा धीरे से चोद ना!”
“अभी तो आधा भी नहीं घुसाया है… अभी से ही चिल्लाने लग गय़ी… साली जब पूरा घुस जायेगा तो क्या करेगी… ले और धक्के खा मेरी राँड… तुझे बहुत शौक है ना चुदाने का तो लेऽऽऽ!”
और उसके साथ ही उसने एक झटके में ही तमाम लंड मेरी चूत में घुसा दिया। एक पल के लिये तो मुझे लगा कि दर्द के मारे मेरी जान ही निकल जायेगी। मैं चिल्लाने लगी, “ओहहहऽऽऽ हायऽऽऽ भगवानऽऽऽऽऽ मर गयी… मैं तो आज नहीं बचुँगी…आज तो ये हरामी मुझे मार ही डालेगा… हायऽऽऽ प्लीज़ ज़रा धीरे-धीरे तो चोद ना!”लेकिन फिर कुछ देर में आखिरकार दर्द कम हो गया और मुझे उसके लंड के धक्कों का मज़ा आने लगा। वो अब मोतदिल रफ्तार से अपना लंड मेरी चूत में चोद रहा था।
अचानक वो बोला, “अरे कुत्तिया ऐसे क्यों लेटी हुई है… साली चल तू भी अपनी गाँड हिला नीचे से… फिर देख तुझे कितना मज़ा आता है!”
मैंने भी उसके लंड के धक्कों के साथ-साथ लय में अपने चूतड़ ऊपर-नीचे हिलाने शुरू कर दिये और ऐसे ही कुछ देर चुदाई ज़ारी रही। मुझे लग रहा था कि जैसे मैं ज़न्नत में हूँ। इतनी इशरत मैंने ज़िंदगी में पहले कभी महसूस नहीं की थी। वो मुझे लगातार एक मुस्तकिल रफ्तार से चोद रहा था। मैं जोर से चिल्लाते हुए बोली, “ले साले! तू भी क्या याद रखेगा कि कोई शहर वाली मिली थी तुझे चुदाने के लिये… हायऽऽऽ तेरे गाँव की दस औरतें भी मिल कर तुझे इतना मज़ा नहीं देंगी जितना मैं अकेले दूँगी! ऊऊऊऊहहहऽऽऽऽ मेरे खुदाऽऽऽ! हाय मेरे सनम… बस इसी तरह से मुझते चोदता रह… जन्नत का मज़ा आ रहा है!”
मुझे लग रहा था जैसे लंड की बजाय किसी ने लोहे का रॉड मेरी चूत में घुसेड़ रखा था। दर्दनाक तो था लेकिन फिर भी उसके साथ-साथ बेहद मज़ेदार एहसास था। ऐसा एहसास ज़िंदगी में पहले कभी नहीं हुआ था। मैं ये नहीं कह रही कि मैं अपने पति के लंड से मुतमैन नहीं थी लेकिन इस टाँगेवाले का बिना-खतना मोटा लंड मेरे पति के लंड से काफी बेहतर था। अचानक टाँगेवाले ने मेरी चूत में से अपना लंड बाहर खींच लिया। मुझे लगा कि मेरी चूत का खालीपन मेरी जान ही ले लेगा। उसने मुझे घूम कर घुटनों और हाथों के सहारे कुत्तिया वाले अंदाज़ में झुकने को कहा। चुदाई के अलग-अलग अंदाज़ों के बारे में टाँगेवाले की मालूमात देख कर मैं हैरान थी और मैंने उससे फूछा कि उसे ये सब कैसे मालूम है।
“हम लोग भी घाँव में अंग्रेज़ी नंगी फिल्मे/किताबें (मतलब की चुदाई की तस्वीरों वाली एलबम) देखते हैं! चल उठ और जल्दी से कुत्तिया बन कर दिखा!” मुझे थोड़ी घबराहट सी हुई क्योंकि वैसे ही उसका लंड काफी ज़हमत के साथ मेरी चूत में जा रहा था और अब इस कुत्तिया वाले अंदाज़ में तो मुझे यकीन था कि वो मेरी चूत फाड़ डालेगा क्योंकि वो अब ज्यादा अंदर तक मेरी चूत में घुसने के काबिल होगा। अब मैं उसे रोक भी नहीं सकती थी क्योंकि मैंने उसके हिसाब से चुदने का वादा जो किया था। मैं घूम कर कुत्तिया की तरह झुक गयी और उसने मेरे पीछे आकर मेरे चूतड़ सहलाने शुरू कर दिये।“आज तो मैं तेरी गाँड भी मारूँगा… हाय तेरी इतनी बड़ी गाँड देख कर तो मेरा दिल कर रहा है कि अभी इसी वक्त तेरी गाँड मार लूँ…पर क्या करूँ तुझे वादा किया है कि पहले तेरी चूत मारके तुझे पूरा तृप्त करना है! गाँड को बाद में देखेंगे!” ये कहते हुए उसने एक दफा फिर मेरी चूत में अपना लंड घुसेड़ दिया।
इस दफा भी खूब दर्द हुआ लेकिन पिछली बार की तरह नहीं क्योंकि शायद मेरी चूत कुछ ज्यादा ही रस टपका रही थी। ये देख कर वो बोला, “अरे लगता है तेरा तो पानी छूट रहा है!”और उसने ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये। मेरे चूतड़ों को भी वो सहलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से भींच रहा था और उसने अपनी एक उंगली मेरी गाँड में डाल दी और गाँड को उंगली से चोदने लगा।
मैं मस्ती में ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी, “ओहहहहऽऽऽ चूतियेऽऽऽऽ थोड़ा और ज़ोर से धक्के मार… हाय बहुत मज़ा आ रहा है… लेकिन प्लीज़ मेरी गाँड में से अपनी उंगली निकाल ले… ओहहहऽऽऽऽऽ मममऽऽऽऽऽ आआआआहहहहऽऽऽऽऽ!” टाँगेवाला बोला, “अरे मेरी राँड! तू तो उंगली से ही घबरा रही है… अभी थोड़ी देर बाद मैं इसमें अपना लौड़ा घुसा दूँगा… तब क्या होगा!”अपनी कुँवारी गाँड में उसके मोटे लंबे लौड़े के घुसने के ख्याल से मैं कंपकपा गयी। मेरे पति ने कभी मेरी गाँड नहीं मारी थी। मेरी कमर पे आगे झुकते हुए उसने मेरा लटकता हुआ एक मम्मा अपने हाथ में ले लिया और उसे और निप्पल को मसलने लगा।
मस्ती में मैं भी खुद पे और काबू नहीं रख सकी और अपने जिस्म की तमाम आग और गर्मी अपनी चूत में दागने लगी।“हाय भगवानऽऽऽ… अब मेरा काम तो हो गया है मेरा तो पानी छूट गया… ऊऊऊहहहऽऽऽऽ मेरे खुदाऽऽऽऽ अब जल्दी कर तू भी!”जब उसे एहसास हुआ कि मेरा इखराज़ हो गया है तो उसने भी चोदने की रफ्तार तेज़ कर दी और चिल्लाते हुए बोला, “साली कुत्तिया… ले अब तो तेरा दिल भर गया ना… ले… अब मैं भी अपना पानी छोड़ता हूँ… हाऽऽऽऽ ओहहऽऽऽऽऽ हायऽऽऽ मेरी रानी… आहहहऽऽऽ मज़ा आ गयाऽऽऽऽ!”फिर उसने मेरी चूत में अपना गाढ़ा माल छोड़ दिया। मुझे लगा जैसे कि अचानक मेरी चूत गरम पिघलते हुए लावा से भर गयी है। मुकम्मल तमानियत का एहसास था। ज़िंदगी में पहली दफा चुदाई में इस कदर तसल्ली महसूस की थी मैंने। कुछ वक्त के लिये मैं ऐसे ही पड़ी रही। अपनी भीगी और टपकती चूत को साफ करने के लिये उठने की भी ताकत नहीं थी मुझमें। मैं तो बस चुदाई के बाद के सुरूर के एहसास का मज़ा ले रही थी। ऐसे ही पड़े हुए मुझे पाँच मिनट हुए थे जब किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी।
टाँगेवाला बोला, “लगता है कि मेरा दोस्त… वही ढाबेवाला… बाहर खड़ा अपना लंड हिला रहा था और उससे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा है… आने दो… उस बेचारे को भी बुला लेते हैं और तुझे भी अब अपने वादे के मुताबिक उस ढाबेवाले से चुदाना पड़ेगा… तो फिर साली… तू तैयार है ना हम दोनों का लंड एक साथ खाने के लिये?”
“हाँ बहनचोद! अब जो वादा किया है वो तो निभाना ही पड़ेगा ना… लेकिन एक बार मुझे अपने आपको ज़रा ढक तो लेने दे… नहीं तो पता नहीं तेरा दोस्त मेरे बारे में क्या सोचेगा!” ये कहते हुए मैं अपनी चोली पहनने के लिये उठी तो टाँगे वाला मुझे चोली पहनने से रोकते हुए बोला, “अब कपड़े पहनने से क्या फायदा फिर पाँच मिनट के बाद तो खोलने ही हैं तो क्यों ये तकलीफ दे रही है अपने आप को… अगर ढकना ही है तो अपनी चुनरी से ढक ले!”
मुझे भी उसका मशवारा पसंद आया और तमाम कपड़े पहनने के बजाय मैंने चुनरी से खुद को ढक लिया और बगैर स्लिप (पेटीकोट) के अपना लहंगा पहन कर ढाबेवाले के लिये दरवाज़ा खोला। मैंने जब दरवाज़ा खोला तो टाँगेवाले का दोस्त मेरे जिस्म को मुँह खोले और आँखें फाड़े ऐसे देखता रह गया जैसे कि उसने ज़िंदगी पहले कोई औरत ना देखी हो। टाँगेवाले ने अपने दोस्त को अंदर बुलाया और बोला, “अबे चुतिये! इस तरह से क्या देख रहा है… ये कुत्तिया तो अब पूरी की पूरी हमारी ही है! इसे हम जिस तरह से भी चाहें चोद सकते हैं… गाँड मार सकते हैं… और… और जो कुछ भी करना चाहें कर सकते हैं… ये हमें ना नहीं बोल सकती। ले तेरे को इसके मम्मे दबाने हैं तो जा… बिंदास होकर इसके मम्मों को जी भर के दबा…ये तुझे कुछ भी नहीं बोलेगी… क्यों राँड… करेगी ना सब कुछ?”
मेरे पास दूसरा कोई रास्ता तो था नहीं इसलिये मैंने मुस्कुराते हुए रज़ामंदी में गर्दन हिला दी। ये देख कर ढाबेवाला इस कदर खुश हुआ जैसे उसकी ज़िंदगी भर की ख्वाहिश पूरी हो गयी हो। वो धीरे से मेरे करीब आया और बेहद हिचकिचाते हुए मेरी चुनरी खींची जिसने मेरे नंगे मम्मों को ढका हुआ था। अब मेरे मम्मे उसकी नज़रों के सामने इस तरह नंगे हो गये जैसे बेहद प्यारे सो दो कबूतर अपनी चोंचों से अपने करीब आने वाली किसी भी चीज़ को चूमने को तैयार हों। ढाबेवाला बहुत ही धीरे-धीरे मेरे मम्मे सहलाने लगा जैसे उसे इस बात का खौफ हो कि अगर वो मेरे बड़े-बड़े मम्मों के साथ बेरुखी से पेश आया तो मैं एतराज़ करुँगी और उसे और आगे बढ़ने नहीं दूँगी।
ये देख कर टाँगेवाला बोला, “अरे तुझे बोला था ना – इसके मम्मों को जी भर कर दबा… तो ऐसे औरतों के जैसे क्यों हाथ लगा रहा है… मर्द के जैसे पूरी ताकत के साथ भींच इनको… तो इस साली छिनाल को भी मज़ा आयेगा नहीं तो मादरचोद कहेगी कि मेरे दोस्त ने इसको अच्छे से इस्तेमाल नहीं किया!” ये सुनकर ढाबेवाला मेरे और करीब आ गया और पूरी ताकत से मेरे मम्मों को दबाने और मेरे निप्पलों को चिकोटते और खिंचते हुए मरोड़ने लगा। मैंने नोटिस किया कि उस आदमी ने जो धोती पहनी हुई थी उसके नीचे उसका लंड खड़ा होने लगा था।
वोबेचारा खुद को फुसफुसाने से रोक नहीं सका, “ऊऊऊहह हाय… क्या मम्में हैं इस औरत के… जी करता है कि रात भर यूँ ही दबाता रहूँ… हाय क्या चूचियाँ हैं इसकी! अपने गाँव में ऐसे लाल निप्पल किसी के भी नहीं होंगे! हाय मेरे दोस्त! तू क्या माल लाया है चुन कर… आज तो मज़ा आ जायेगा… सच में इसकी चूत और गाँड को तो मज़े से रौंद-रौंद कर चोद कर ही मज़ा आयेगा!”
इस दौरान शहरी माल के साथ चुदाई के मज़े करने कीउन देहातियों की तड़प का मैं भी लुत्फ लेने लगी थी।एक खास बात मुझे समझ आ रही थी कि इस सर-ज़मीन पर हर इंसान कुछ बदलाव चाहता है। जैसे कि कोई देहाती किसी शहरी माल को चोदने के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार हो जायेगा और कोई शहरी मर्द भी किसी देहातन की चूत लेने के लिये कुछ भी करेगा। खुद मैं भी तो पढ़ी लिखी शहरी औरत होकर इन गैर-मज़हबी और देहाती मर्दों के लंड लेने के लिये अपनी इज़्ज़त और अपना सोशल-स्टेटस भुल गयी थी।जबकि हकीकत में, किसी भी सूरत में सब एक जैसे ही होते हैं… बस लिबास और ज़ुबान का फर्क होता है। वर्ना तो खुदा ने सभी को एक जैसा ही बनाया है।किसी ने ठीक फरमाया है कि अंधेरे में सभी बिल्लियाँ काली होती हैं।
खैर, मैंने टाँगेवाले की तरफ नज़र डाली जो आराम से चटाई पर लेटा हुआ हमारी तरफ देखते हुए अपना लंड सहला रहा था। लुंगी तो उसने मुझे चोदने से पहले ही उतार दी थी और उसी हालत में नंगा लेटा हुआ अपना लंड सहलाते हुए आराम से बीढ़ी पी रहा था। उसने कहीं से ठर्रे का पव्वा निकाल लिया था और बोतल से ही मुँह लगा कर चुस्कियाँ लेते हुए बोला, “बहुत ज़ोर की मूत लगी है ओये राँड… मेरा मूत पीयेगी?”उसने इस तरह से कहा कि मैं घबरा गयी।“अपने भाइयों से चुदी है कभी… वैसे तेरे पड़ोसी तो रोज़ाना चोदते होंगे तुझे?”
मैं शर्मसार होते हुए थोड़े गुस्से से बोली, “छी… ऐसा कुछ नहीं है… ऐसे बोलोगे तो मैं टाँगे पर चली जाऊँगी!” लेकिन ये तो मैं ही जानती थी कि मेरी धमकी कितनी खोखली थी क्योंकि उनके लौड़ों से अपनी प्यास बुझाने के लिये तो उस वक्त मैं कितनी भी ज़िल्लत बर्दाश्त करने को तैयार थी।
ढाबेवाला भी पीछे नहीं रहा और बोला, “अच्छा फिर तेरा ससुर या टाँगे पर बैठा देवर तो चोद ही देता होगा… क्यों है ना!”
“नहीं ऐसा कुछ नहीं है… देवर तो बिल्कुल लल्लू है… कईं बार कोशिश की है लेकिन वो नामुराद लिफ्ट ही नहीं लेता!” मैं भी नरम पड़ कर उनके साथ उस गुफ़्तगू में शामिल हो गयी। उन अजनबियों को ये सब बताते हुए मुझे बेहद अच्छा महसूस हुआ।
टाँगेवाला बोला, “तू तो असली राँड है… अपने सगे देवर से चूत चुदवाना चाहती है… लाऊँ उसे उठा कर…. ससुर से तो मरवाती ही होगी ना?”
“नहीं… ये क्या कह रहे हो… छी! ससुर नहीं हैं और देवर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है… वैसे वो सगा देवर नहीं है!”
“ठीक है पर मूत तो पीयेगी ना? पहले किसी का मूत पीया है कभी?”
“तुम लोग मुझे इतना ज़लील क्यों कर रहे हो…? जो करना है जल्दी करो नहीं तो वो बुड्ढी भी जाग जायेगी!” वैसे वो मुझे क्या ज़लील करते जब मैं खुद ही उन दो अजनबियों के सामने बगैर स्लिप के पतला सा झलकदार लहंगा और उँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने करीब-करीब नंगी खड़ी थी और अपनी रज़ामंदी से उन्हें अपने जिस्म से खेलने की हर तरह की आज़ादी दे रखी थी। मुझे मालूम था कि अब मैं उस मक़ाम तक आ गयी थी जहाँ से वापस मुड़ना मेरे बस में नहिं था। मेरे अंदर दबी हुई हवस और जिस्म की चुदासी आग ने मुझ पे इस हद तक अपना इख्तयार कर लिया था कि अब अपनी चूत की प्यास बुझाने के अलावा मुझे और कुछ होश नहीं था।
“साली मूत नहीं पीना तो दारू तो पी ले… शहरी राँड है तू… दारू तो तू पीती ही होगी… ले दो घूँट लगा ले!” टाँगेवाला बोतल मेरी तरफ पकड़ाते हुए बोला।
“नहीं… मैं ये ठर्रा नहीं पीती… अब तुम…” मैं मना करने लगी तो ढाबेवाला मेरी बात काटते हुए थोड़ा ज़ोर से बोला, “साली नखरा मत कर… अब विलायती दारू नहीं है यहाँ… हमारे साथ दो-चार घूँट देसी दारू पी लेगी तो मर नहीं जायेगी… मूत पीने से तो अच्छा ही है ना… बोल साली ठर्रा पीती है कि जबरदस्ती मूत पिलाऊँ तुझे अपना…!”
अब मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। मैं चुप रही और ढाबेवाले ने अपने दोस्त के हाथ से बोतल ले कर मेरे होंठों से लगा दी। मैंने हिचकिचाते हुए अपने होंठ खोल दिये और उसने तीन-चार बड़े-बड़े घूँट मेरे हलक में डाल दिये। जब वो देसी शराब मेरे हलक में लगी तो जलन और दम सा घुटने की वजह से मैं अपने सीने पे मुक्के मारते हुए लंबी साँसें भरने लगी। कुछ ही पलों में मुझे शराब का सुरूर और अपना सिर हल्का सा घूमता महसुस होने लगा। दर असल मुझे वो सुरूर बेहद खुशनुमा लगा और मैंने वो पव्वा अपने हाथों में ले लिये और धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेने लगी।
ढाबेवाला ने इस दौरान मेरे लहंगे का नाड़ा खोल कर उसे मेरे जिस्म से जुदा कर दिया। अब मैं सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी खड़ी देसी शराब की चुस्कियाँ ले रही थी और उसने मेरे जिस्म से चिपक कर मुझे बेरहमी से मसलना शुरू कर दिया था। उसने अपनी धोती में से अपना लंड निकाल लिया था और उसे मेरी नंगी जाँघों पर रगड़ रहा था। ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ करते हुए मेरे मम्मों को चाटत चूसते हुए टाँगेवाले से बोला, “अरे यार तू क्या बैठा देख रहा है… आजा तू भी मज़ा कर ले… आ दोनों मिल कर इस शहरी मेम की चूत और गाँड को चोदते हैं!”
“अरे यार पहले तू तो पूरा मज़ा ले ले… तब तक मैं भी तुझे मज़े लेते देख कर थोड़ा गरम हो जाता हूँ… फिर दोनों मिलकर इसे साथ-साथ चोदेंगे… वैसे इसकी चूत के साथ इस राँड को भी पानी-पानी कर दिया है… साली दारू पी कर मस्त हो गयी है!” और फिर अपने लतीफे पे खुद ही हंसने लगा।“मैं इसकी गाँड में अपना गरम लौड़ा डाल कर इसकी गाँड मारूँगा और तू इसकी चूत का भोंसड़ा बनाना!”
मैं उस लम्हे के बारे में सोचने लगी जब दो बड़े-बड़े लंड एक ही वक्त में मेरे दोनों छेदों में एक साथ चोदेंगे। ये ख्याल आते ही मेरे जिस्म में सनसनाहट भरी लहरें दौड़ने लगी।ढाबेवाले ने दो उंगलियाँ मेरी चूत में घुसेड़ दीं और मेरी चूत को उंगलियों से चोदने लगा। हर गुज़रते लम्हे के साथ वो बेकाबू सा होता जा रहा था। मैंने उससे कहा, “हाय मादरचोद… थोड़ा धीरे-धीरे उंगली घुसा… इतनी जल्दी क्या है… आज की पूरी रात मैं तुम दोनों की ही हूँ… चाहे जैसे मुझे चोदना… मैं एतराज़ नहीं करुँगी… थोड़ा प्यार से सब करेगा तो तुझे भी मज़ा आयेगा और मुझे भी!” लेकिन उसने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं और पहले जैसे ही मेरी चूत बेरहमी से अपनी उंगलियों से चोदना ज़ारी रखा।
दरवाज़े पर अचानक ज़ोर से दस्तक हुई और किसी ने ढाबेवाले को आवाज़ दी। इस तरह अचानक किसी के आने से मैं हैरान हो गयी और ढाबेवाले से पूछा रात को इस वक्त उसे कौन बुला रहा है। वो बोला कि शायद चाय पीने के लिये कोई गाहक आया होगा। उसने अपनी धोती ठीक की और मुझे ज़रा इंतज़ार करने को बोला। फिर जाकर उसने थोड़ा सा दरवाजा खोला और अपने गाहक से पूछा कि उसे क्या चाहिये। ढाबेवाला का अंदाज़ा सही था। बाहर दो लोग खड़े थे और उन्हें चाय ही चाहिये थी। ढाबेवाले ने साफ मना कर दिया कि ढाबा बंद हो चुका है और इस वक्त उन्हें चाय नहीं मिल सकती। लेकिन वो उससे बार-बार इल्तज़ा करने लगे कि बाहर ठंड-सी हो रही है और चाय के लिये आसपस और कोई दुकान भी नहीं है।
अचानक टाँगेवाला जो ये सब सुन रहा था, उसने अपने दोस्त को अंदर बुलाया और उसे धीरे से कुछ कहा जो मैं सुन नहीं सकी। मैं तो वैसे भी अपने मज़े में इस बे-वक्त खलल पड़ने से बेहद झल्ला गयी थी और पव्वे में बचे हुए ठर्रे की चुस्कियाँ ले रही थी। टाँगेवाले की बात सुनकर वो ढाबेवाला फिर बाहर गया और अपने गाहकों से बोला कि जब तक उसकी बीवी (?) चाय बनाती है वो लोग कुछ देर इंतज़ार करें।
मैं हैरान थी कि ये उसकी बीवी कहाँ से आ गयी लेकिन तभी जब टाँगेवाले ने मुझे उन बेचारे गाहकों के लिये चाय बनाने को कहा तो मैं समझी। मैं ये करने के लिये तैयार तो नहीं थी और मुझे देसी शराब की खुमारी भी अब पहले जयादा हो गयी थी लेकिन मुझे मालूम था कि उसकी बात मानने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था। मैंने शराब के पव्वे को खाली करते हुए आखिरी घूँट पीया और पहनने के लिये अपनी चोली उठायी लेकिन टाँगेवाले ने इशारे से मुझे वो चोली पहनने को रोकते हुए सिर्फ लहंगा और चुनरी पहन कर बाहर जाके चाय बनाने को कहा।पहले मैंने ज़रा सी हिचकिचाहट ज़ाहिर की लेकिन दो-दो लौड़ों से मस्ती भरी चुदाई का मंज़र दिखा कर टाँगेवाले ने मुझे राज़ी कर लिया। वैसे भी मेरे लिये तो अपने जिस्म की नुमाईश का ये बेहतरीन मौका था। मैं तो बस इसलिये नराज़ थी कि वो दो कमीने इस वक्त कहाँ से अचानक टपक पड़े थे और मेरा सारा मज़ा किरकिरा हो गया था। खैर मुस्कुराते हुए मैंने बगैर स्लिप (पेटीकोट) के ही अपना झलकदार लहंगा पहना और उससे भी ज्यादा झलकदार चुनरी से अपने मम्मे ढके। इतने में ढाबेवाला कमरे में वापस आ गया और मैं वैसे ही बाहर बैठे उन दो कमीनों के लिये चाय बनाने बाहर निकली। वैसे मैं नशे में बहुत ज्यादा धुत्त तो नहीं थी लेकिन फिर भी इतनी मदहोश तो थी ही कि हाई हील के सैंडलों में मुझे अपने कदम थोड़े डगमगाते से महसूस हो रहे थे।
जैसे ही मैंने कदम बाहर रखे, उन दोनों की हैरान नज़रें मेरे मम्मों पर जम गयी। उन दोनों ने भी शायद इस दूर-दराज़ गाँव के सुनसान इलाके में दिलकश औरत के इतने शादाब और सैक्सी नंगे जिस्म के नज़ारे की उम्मीद नहीं की होगी। मैं करीब-करीब नंगी ही तो थी। मैंने देखा कि उनमें से एक तो सत्रह-अठारह साल का बच्चा ही था और दूसरा लड़का भी इक्कीस बाइस साल से ज्यादा उम्र का नहीं था। दोनों शायद या तो भाई या फिर दोस्त होंगे। उनकी मोटर-बाइक भी हमारे टाँगे के करीब ही खड़ी थी।
मुझे देखते ही मेरी और मेरे मम्मों की तरफ इशारा करते हुए वो दोनों कुछ खुसर-फुसर करने लगे। जब मैंने अपने मम्मों की तरफ देखा तो मेरी बारीक सी चुनरी में से मेरे मम्मे और निप्पल साफ नज़र आ रहे थे जिन्हे देख कर उनकी पैंटों में तंबू खड़े हो गये। अपनी मस्ती-भरी हालत उनसे छिपायी नहीं जा रही थी और उनकी पैंटों में जवान लौड़े शान से खड़े हुए नज़र आ रहे थे। जब बड़े वाले लड़के ने मुझे उसके लंड के तंबू को घूरते हुए देखा तो पैंट के ऊपर से अपना लंड मसलने लगा और अपने दोस्त के कान में कुछ बोला। शायद यही कह रहा होगा कि “देख इस राँड को… कैसे बेहयाई से अपने मम्मे दिखा रही है और फिर हमारे खड़े हो रहे लौड़ों को देख कर खुश हो रही है…!” मैं वहाँ उनके सामने खड़ी इस तरह चाय बनाने लगी जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
“वैसे साली इस इलाके की गाँव की नहीं लगती… मेक-अप और पहनावे से तो शहरी मेम लग रही है और ऐसे लहंगे और ऊँची ऐड़ी वाली सैंडल तो शहरी औरतें ही पहनती हैं!” उनमें से छोटा वाला लड़का मेरे पैरों की तरफ इशारा करते हुए बोला।
जिस तरह से मैंने उनके लौड़ों के तम्बुओं को घूरते हुए देखा था उससे शायद उनकी हिम्मत बढ़ गयी थी और वो खुल कर बातें करने लगे थे। मेरे जिस्म का खुला जलवा देख कर बड़ा वाला कुछ ज्यादा ही गरम होता नज़र आ रहा था और अपने दोस्त से इस बार ज़रा ऊँची आवाज़ में बोला, “शहर की हो या गाँव की… पर देख तो इस औरत के मम्मे… आहहहह साले कितने मोटे-मोटे हैं… इस ढाबेवाले की तो ऐश होगी… रात भर इन्हें ही दबाता रहता होगा… हाय काश ये एक बार मुझे भी दबाने को मिल जायें तो मज़ा आ जायेगा यार!”
टाँगेवाले के कहने पर इस हद तक अपने जिस्म की नुमाईश करने में पहले मैं जो हिचकिचा रही थी अब इसमें बेहद मज़ा आ रहा था। उस लड़के की बात का जवाब देते हुए मैं फर्ज़ी गुस्से से बोली, “तुम लोग अपने-अपने घर जाकर अपनी माँ-बहनों के मम्मे क्यों नहीं देखते… उनके तो हो सकता है कि मेरे से भी बड़े हों!” मेरा जवाब सुनकर वो दोनों चुप हो गये और उसके आगे कुछ नहीं बोले।
जब चाय तैयार हो गयी तो मैंने दो गिलासों में चाय भरी और उन्हें देने के लिये उनके करीब गयी।छोटा वाला लड़का मेरे मम्मों की तरफ देखते हुए मुझसे बोला, “क्यों भाभीजी! चाय में दूध तो पूरा डाला है ना?”और अपने दोस्त की तरफ देख कर आँख मार दी। उसका दोस्त भी कमीनेपन से मुस्कुरा दिया।
मैंने अदा से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सब कुछ पूरा डाला दिया है मैंने… लेकिन अगर चाय में फिर भी कुछ बाकी हो तो बोल देना, वो और भी डल दूँगी!”
फिर मैं वहाँ से हट कर वापस स्टोव के पास जाकर खड़ी हो गयी। मैंने नोटिस किया कि उन लड़कों की नज़रें मेरा ही पीछा कर रही थीं। ऐसा लग रहा था कि ऊपर वाले ने उनकी खुशकिस्मती से अचानक जो ये हसीन मौका उन्हें बख्शा था उसका ये दोनों लड़के पूरी हद तक फायदा उठाना चाहते थे। अपनी हवस भरी नज़रों से दोनों मेरे खुबसूरत और हसीन जिस्म का मज़ा ले रहे थे। उनकी नज़रें खासतौर पे मेरे मम्मों और मेरी गाँड पे चिपकी हुई थीं। बगैर पेटिकोट के उस जालीदार लहंगे में से यकीनन मेरी टाँगें और मोटी गाँड उन्हें साफ नज़र आ रही थी।
उनमें से छोटा वाला फिर से बोला, “अरे भाभी जी… आपने चाय में चीनी तो बहुत थोड़ी डाली है… क्या चीनी और मिलेगी?”
———–क्रमशः———–