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जोरू का गुलाम भाग २४५ , गीता और गाजर वाला, पृष्ठ १५२४
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Yah lo Anand babu. Gai bhens pani me. Tumhe to fir bahanchod bana diya. Ab tak nahi pata tha. Rista to bad me juda. Matlab bataya. Jabardast update.गीता की मस्ती
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हम लोग घर पहुँच गए थे। गीता ने बड़े ठसके से कूल्हे से घर की चाभी का गुच्छा निकाला और जिस तरह से उसने मुझे मुस्करा के देखा, मैं समझ गया उसका इरादा नेक नहीं है ,
अबतक उसकी सहेली और शिष्य थी गुड्डी पर अब दस पंद्रह के दिन के लिए वो नहीं है तो गुड्डी की सहेली और गुरु ही सही,
मैं दरवाजे पर खड़ा था की वो अदा से बोली
" खुद घुसोगे की मैं घुसाऊँ। "
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मैं खुद घुस गया, लेकिन पीछे से उसके मटकते हुए नितम्ब देख कर, ... सब परेशानी भूल गया.
गीता से भी पहली मुलाक़ात ऐसे ही थी, मंजू बाई ने बुलाया था अपने घर , ये और मेरी सास मेरी सास की किसी सहेली के यहाँ चली गयीं थी लेडीज संगीत में और कल देर सुबह आने वाली थीं, सिग्नल चौबीस घंटे से डाउन नहीं हुआ था. मंजू ने छत्ते का शहद चखा तो दिया था लेकिन मेरी बारी आने पे बोल के चली गयी, " शाम को आना मैं और गीता मिलेंगे हाँ सब कुछ खाना पीना होगा जो गीता खिलाएगी,... पहलौठी का दूध भी पिलाएगी। "
रिश्ता भी गीता से मेरी सास ने तय करवा दिया दिया था, उनका कहा पत्थर की लकीर, और कहती भी बात वो एकदम साफ और सही,
मंजू इनको बहू या बहू जी कहती थी बस वहीँ से मेरी सास ने पकड़ लिया, मंजू से बोलीं, " तू मेरी बेटी को बहू बोलती है तो उसका मरद तेरा क्या लगेगा,... "
और मंजू कुछ बोलतीं तो मेरी सास ने बात पूरी कर दी, " अरे माँ का काम है बेटे को सिखाये पढ़ाये, उसे हर चीज में होशियार बनाये तो अब वो सब काम तुम्हारे जिम्मे और फिर तुम्हारी बेटी गीता क्या लगेगी इसकी "
अबकी मंजू मौका नहीं छोड़ने वाली थी, तपाक से बोली, " बहन लगेगी, बल्कि लगेगी क्या, है ही गीता इसकी छोटी बहन।"
मेरा सर दर्द से एकदम टनक रहा था, लेकिन गीता ने
और उस दिन गीता का जो रूप था आज तक मैं भुला नहीं पाया ( जोरू का गुलाम भाग ४४ गीता पृष्ठ 48 )
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
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माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
साडी भी खूब नीचे कस के बाँधी ,न सिर्फ गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया खुल के दिख रही थी ,ललचा रही थी , बल्कि भरे भरे कूल्हे की हड्डियां भी जहन पर साडी बस अटकी थी।
और खूब भरे भरे नितम्ब। पैरों में चांदी की घुँघुरु वाली पायल ,घुंघरू वाले बिछुए , कामदेव की रण दुंदुभि और उन का साथ देती ,खनखनाती ,चुरमुर चुरमुर करती लाल लाल चूड़ियां ,कलाई में , पूरे हाथ में , कुहनी तक।
गले में एक मंगल सूत्र ,गले से एकदम चिपका और ठुड्डी पर एक बड़ा सा काला तिल ,
एक दम फ़िल्मी गोरियों की तरह , लेकिन मेकअप वाला नहीं एकदम असली।
हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते।
और नए नए आये जोबन के जादू से निकलना आसान है क्या ,और ऊपर से जब वो दूध से छलछला रहा हो ,नयी बियाई का थन वैसे ही खूब गदरा जाता है और गीता के तो पहले से ही गद्दर जोबन ,...
कहते हैं न जादू वो जो सर पर चढ़ कर बोले, और गीता के जोबन का जादू वही था, और वो जादूगरनी जानती भी थी जादू से कैसे शेर को भी खरगोश बना सकते हैं, बस वही, मैं फ्लैशबैक से बाहर आ गया था, लेकिन सर अभी भी टनटना रहा था, एक तो चारो ओर लगे कैमरों के चक्कर में बोलना मुश्किल, दूसरे हर नया सवाल और बात को उलझा रहा था, लेकिन एक बड़ी बात ये हो गयी थी की गीता के फोन का इस्तेमाल कर के मैंने कम्युनिकेशन एस्टब्लिश कर लिया था, गीता किचेन में थी और मैं लिविंग रूम में अपना सर खुद सहला रहा था और डर रहा था की कहीं ये माइग्रेन की शुरआत न हो रही हो, अगर एक बार वो शुरू हो गया तो पूरी रात,
Bap re. Gitva to josh me aa gai. Kya kariyati hai. Sale filar mat kar. Teri gand nahi marungi. Aur jab man karega to marungi. Aur guddi ke name ki galiya na pade. Yah to ho hi nahi sakta. Vese aap to dono taraf ke bahanchod ho. Gita me kya jabardast seva di.गीता और चम्पी तेल मालिश,
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वो किचेन में,... मैं लिविंग रूम में सोफे पे, सर अभी भी,...
चाय उसने चढाने के लिए रख दी थी और उस की गालियां और हुक्मनामा दोनों किचेन से जारी था,
" भैया कुछ करो मत….. चुपचाप लेट जाओ, अभी आती हूँ न कपडे उतार दूंगी। मैं समझ रही हूँ तोहार छिनार रंडी गुड्डी चली गयी है न गाँड़ मरवाने दिल्ली नए नए लौंडो से ओहि क याद आ रही है न। अरे एक बहन गयी तो दूसरी है न, बस चाय लेकर आती हूँ अभी, चुपचाप लेटे रहो, अरे जूता वूता पहने रहो, दो मिनट भी स्साला इन्तजार नहीं कर सकता, स्साले मादरचोद, अरे तेरी बहिनिया दिल्ली गयी अपनी बिलिया में किल्ली गड़वाने तो तोहार महतारी तो आ रही हैं, अगले हफ्ते, हमरे सामने भौजी से बात हुयी थी, बस घुसना जिस भोंसडे में से निकले हो, की वही सोच के फनफना रहा यही, आती हूँ अभी चाय लेके, कुछ मत करना बस लेते रहो चुप्पे, भौजी के आवे में डेढ़ दो घंटा कम से कम है अभी, "
गीता की आवाज और मैं सब परेशानी भूल गया। किसके पास हैं इत्ते रिसोर्स की मेरे घर पहुँचने के पहले ही घर में आफिस में और वो भी इंटरेनशनल सीक्रेट एजेंसी लेवल वाले बग्स, सब बात मैंने एक झटके में हटाने की कोशिश की,
गीता चाय ले आयी लेकिन मेरी हालत देख के वो समझ गयी आज मामला कुछ और है. बस झट से उसने साडी उतारी और गोल गोल करके मेरे सर के नीचे।
' इसलिए सर दर्द होता है,…. ठीक से लेटो तो सही अभी तेल लगा देती हूँ चम्पी तेल मालिश सब दर्द गायब " मुस्कराते हुए वो बोली।
सिर्फ चोली कट एकदम टाइट गहरे क्लीवेज वाला ब्लाउज जो जोबन को उभार ज्यादा रहा था आधे से ज्यादा बाहर झलका रहा था, ... चाय का प्याला लिए मुझे वो ललचा रही थी, वो जान रही थी क्या असर हो रहा है उसके जोबन का मेरे ऊपर,
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" ऊप्स भैया, चाय में चीनी कम लग रही है, डाल देती हूँ,... " और चाय की प्याली से एक कस के चुस्की उसने ली, और प्याला मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैं समझ रहा था शैतानी जहाँ उसके होंठों का रस लगा था मैंने भी चुस्की वही से ली, और वो काम में लग गयी, पहले मेरे जूते मोज़े फिर पैंट और शर्ट
चाय ख़तम होने तक, मैं सिर्फ ब्रीफ और बनयाइन में था। प्याला लेकर वो गयी और एक छोटी सी कटोरी में तेल लेकर हल्का गुनगुना और उसमे पता नहीं क्या क्या मिला था,
चाय से ही बहुत मैं रिलैक्स महसूस कर रहा था. बस ये सोच रहा था किसी तरह घंटे भर की नींद आ जाए, तो टेंशन ख़त्म हो। मैं जिन चीजों को सोचने की नहीं सोचता वही बातें दिमाग में, लेकिन अब कुछ आराम मिल रहा था.
गीता ने नीचे एक टॉवेल बिछा दी थी और मैं पेट के बल लेटा, सर के नीचे उसकी साड़ी का तकिया,
घबड़ा मत साले तेरी गाँड़ नहीं मारूंगी और जिस दिन मारने का मन होगा न बता के मारूंगी, बस चुप चाप आँख बंद के लेटा रह। टिपिकल गीता और अब उसकी साड़ी के साथ उसका ब्लाउज भी मेरे सर के नीचे, कुछ देर उसने मेरे कंधो पर, गले के पीछे मालिश की और फिर मुझे पीठ के बल,
चम्पी तेल मालिश,
आँखे अब अपने आप मूँद रही थी, कुछ तो था उस तेल में उन उँगलियों में जिस तरह से वो कनपटी पे दबा रही थी माथे पर सहला रही थी और बदमाशी एकदम नहीं, अभी भी मैं ब्रीफ में था और ब्रीफ टनटनाया,...
मैं ९० फीसदी सो गया था, एकदम रिलैक्स। आँखे अगर चाहूँ तो भी खोल नहीं सकता था। पूरी देह रिलैक्स हो गयी थी, लेकिन सोया अभी भी नहीं था, गीता ने बालों को हटा के भी तेल लगाया, दोनों अंगूठे से एक साथ गले के पीछे मसाज किया, और तब तक उसकी निगाह मेरे खड़े खूंटे पर गयी और दस गालियां सुनाई उसने,
" स्साले तेरी महतारी को बुला के इस खूंटे पर चढ़ाउंगी इस पे तब तेरी गरमी शांत होगी, .... पहले इसका इलाज होगा तब तुझे आराम मिलेगा। "
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सररर मेरी चड्ढी दूर पड़ी थी और खूंटा हवा में लेकिन उसकी आजादी बहुत देर तक नहीं रही. गीता की मुट्ठी में, नहीं वो मुठिया नहीं रही थी, जैसे छोटे बच्चो की नूनी में तेल लगाते हैं जिससे बाद में काम दे, बस एकदम उसी तरह, दोनों हाथ में लगे तेल से, जैसे कोई जवान ग्वालन दोनों सपुष्ट जाँघों के बीच पकड़ के दही की कतहरी को दोनों हाथों में मथानी पकड़ के दही बिलोये, बिलकुल एकदम वैसे कभी हलके कभी तेजी से पूरी ताकत से, एकदम उसी तरह से।
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और फिर एक झटके से उसने सुपाड़े की चमड़ी को पकड़ के खींच दिया।
तेल का असर अब धीरे धीरे और हो रहा था, मेरे सर का दर्द, कंधे का टेंसन, सब धीरे धीरे छू हो रहा था। आँखे भारी हो गयीं। कभी लगता यह सब सपने में हो रहा है तो कभी गीता की उँगलियों का अहसास होता।
नहीं सुपाड़ा खुलते ही उसने चूसना चाटना नहीं शुरू किया। एक हाथ से मांसल सुपाड़े को कस के दबाया और उसकी एकलौती आँख खुल गयी, बस टप टप टप टप तेल की बूंदे उसने चुआनी शुरू की एक बूँद भी बाहर नहीं जा रही थी।
हल्का हल्का छरछरा रहा था जो सरसों के तेल का असर होता है और जड़ तक एक सुरसुराहट हो रही थी , लेकिन निंदास में कोई फरक नहीं आयी। और अब गीता के रसीले किशोर जोबन, पहलौठी बियाई के दूध से थलथलाते जोबन, हाथ की जगह वो , उस मोटी मथानी को दबोचे मथ रहे थे पर माखन निकलने में अभी टाइम था।
और अब गीता के होंठ मैदान में आ गए,
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पर होंठों से पहले जीभ, जिस एकलौती आँख में उसने अभी तेल डाला था बस जीभ की टिप से उसी छेद के चारो ओर , और जीभ की टिप छेद में भी पल भर, फिर सपड़ सपड़ उसकी जीभ मोटे सुपाड़े को चाटती, और कब चाटना चूसने में बदल गया पता नहीं चला। और उस चुसाई चटाई के साथ अब मुठियाना भी चालू हो गया, कम से कम आठ दस मिनट का,... लेकिन ये गीता के पहलौठी के दूध का ही कमाल का था की अब कुछ भी हो १८-२० मिनिट से पहले झड़ने का सवाल ही नहीं था,...
गीता ने एक मिनट के लिए मेरे खूंटे को मुंह से निकाला और मुझे गरियाती बोली,
" स्साले अपनी महतारी के दामाद, माँ के भंडुए, पैदायशी गांडू, गंडवे की बिना गांड मारे, अरे अपनी महतारी को बुलाओ मारना उसकी गांड,... अभी मारती हूँ तेरी गांड,... "
एक बार फिर से पूरा सुपाड़ा गीता की मुंह में था, पूरी ताकत से वो चूस रही थी और तेल में डूबी चुपड़ी दो उँगलियाँ सीधे उसने मेरे पिछवाड़े जड़ तक,... क्या किसी डाक्टर को पिछवाड़े की एनाटामी की इतनी समझ नहीं थी जितनी गीता को। दोनों उँगलियाँ कस के प्रोस्ट्रेट मसाज कर रही थीं
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लेकिन गीता जितना मजे देना जानती थी उससे ज्यादा तड़पाना, अभी तक वो वैक्यूम क्लीनर की तरह चूस भी रही थी और साथ में उसी दो उँगलियाँ मेरे पिछवाड़े धंसी, प्रोस्ट्रेट मसाज, लेकिन जब उसे लगा की मेरी मंजिल दूर नहीं है उसने ऊँगली भी बाहर निकाल ली और अपने मुंहबोले भैया के खूंटे को भी मुंह की कैद से आजाद कर दिया,
इसलिए की बिना गरियाये उस मजा नहीं आता और बिना माँ बहिन की गाली सुने, उसके भैया को
पर आजादी दो पल की भी नहीं थी, खूंटा अब जोबन की कैद में था और जबरदस्त टीटफक चालू हो गया था, कभी अपने खड़े निपल को सुपाड़ी के छेद में डालती तो कभी दोनों हाथों से अपनी चूँचियों को पकड़ के लंड के चारो ओर रगड़ती और अगर में जरा भी धक्का देने की कोशिश करता तो मार गाली के,
" स्साले ये ताकत अपनी महतारी के लिए बचा के रख, हफ्ते भर बस, आएगी न छिनार तो चोदना उसको हम सब के सामने " और उस जोश में अपना और अपनी माँ मंजू का प्लान भी बता दिया,
" माई बोली रही थीं की तोर महतारी का पिछवाड़ा अभी कोरा है " वो चिढ़ाते हुए चूँचियों से खूंटा दबाते बोली,
और सब कस सब चारो ओर लगे कैमरों में कैद हो रहा था, जस का तस रिकार्ड होकर आगे जा रहा था, एक एक शब्द, एक एक सीन
और ये बदमाशी भी मेरी सास की थी, समधन में तो खुल्ला मजाक चलता है, और मेरी सास ने अपनी समाधन से मेरे सामने ये बात उगलवा ली थी, स्पीकर फोन आना था, उनकी बेटी दामाद दोनों थे। और उसके बाद तो वो चिढ़ाया मेरी सास ने
गीता चालू थी, " अरे भैया तोहें कुछ नहीं करना है, हम महतारी बेटी काहें को है, भौजी से बात हो गयी है, रहेंगी तो वो भी, बास हमारा माई , तुम तो जानते हो कितना जांगर हैं उनमे, बस उहे, भौजी की सास को निहुरा देंगी, माई की ताकत हिल भी नहीं सकती, और हम अपने भैया का खूंटा पकड़ के उनके पिछवाड़े सटाय दूंगी, हाँ तेल वेल कुछ नहीं बहुत हुआ तो दो चार बूँद तोहरी बहिनिया क थूक, और फिर तो "
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मेरी हालत खराब हो रही थी मैंने गीता से बार बार कहा, झाड़ दो झाड़ दो, लेकिन वो दुष्ट ऐन मौके पे फिर दस गाली उसने मुझसे कहा अपनी महतारी को दो, कबुलो सब
और उसके बाद एक बार फिर से सुपाड़ा उसके मुंह में, दो उँगलियाँ अंदर, जबरदस्त प्रोस्ट्रेट मसाज, कैंची की तरह ऊँगली वो फैला देती तो एक मुट्ठी के बराबर
पहले तो खाली चुभला रही थी, फिर पूरी ताकत से चूसना और जो हाथ खाली था उससे साथ साथ मुठियाना
भरभरा के सफ़ेद फवारा गीता के मुंह में छूटा, पर गीता ने मुंह नहीं हटाया। वो जानती थी मेरी राइफल डबल शॉट वाली है , थोड़ी देर में दुबारा
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मुझे बस इतना याद है की मैंने मुश्किल से आँख खोली, गीता ने पूरी ताकत से अपना मुंह खोल रखा था और उसमे मेरी रबड़ी मलाई भरी थी, कुछ छलक कर गीता के गाल पर भी, एक दो बूंदे लुढ़क कर गीता की ठुड्डी पर भी,....
और उस के साथ मेरा सारा तनाव, टेंसन भी जैसे निकल गया। ऐसी गाढ़ी नींद आयी.
Jabardast update the is bar ke. Par erotica ko har jagah adhura rakh ke becheni bada di. Aage intjar rahega.और
मेरी नींद खुली तो सामने मिसेज टिक टिक बता रही थीं मैं पूरे डेढ़ घंटे तक बेहोशी की नीद में सोया था, बेखबर। और अब देह हल्की लग रही थी।
देह पर अभी भी कोई कपडे नहीं थे, गीता भी आसपास नहीं थी,
किचेन में से ननद भौजाई के हंसने खिलखिलाने की आवाज आ रही थी तीन चार दिन बाद , तीज वाले फंक्शन के अगले दिन तीज प्रिंसेज का फंक्शन था जिसमे कालोनी की लड़कियां , टीनेजर्स भाग लेने वाली थीं उसी के बारे में कुछ सलाह मशविरा हो रहा था।
मेरी आँख फिर लग गयी और अबकी नींद खुली तो घंटे भर मैं और सो लिया था और देह एकदम हल्की लग रही, उठा तो बगल में मेरा शार्ट और टी शर्ट रखा था वो मैंने पहन लिया।
ननद भौजाई खाना लगा रही थीं।
कहानी पर पहला कमेंट वो भी आपका, जिनका आदर मैं जिनके एक लब्धप्रतिष्ठित लेखक होने के साथ एक कुशल समीक्षक होने के कारण करती हूँ और हर कमेंट का आपके एक सहृदय पाठक होने के कारण भी इंतज़ार करती हूँ, जो सिर्फ अच्छी बातों को न सिर्फ देखते हैं बल्कि उसका विश्लेषण भी खूब अच्छी तरह और ईमानदारी से कहूं तो बढ़ा चढ़ा कर करते हैं।इस साहसिक, मसालेदार और बुद्धिजीवी अपडेट्स की शृंखला के लिए धन्यवाद!
इस अध्याय में आपने जिस तरह से गीता के चरित्र को एक ही समय में मस्तीखोर, चतुर और अत्यधिक आकर्षक बनाया है, वह सराहनीय है.. गीता की भाषा, उसकी बदमाशी और उसके डबल मीनिंग डायलॉग्स पाठकों को बांधे रखने के लिए काफी हैं.. वह एक मनोरंजक पात्र होने के साथ साथ इस कहानी की धुरी भी बन चुकी है..
आपने जासूसी थ्रिलर और इरोटिका का जो मिश्रण इस अध्याय में पेश किया है, वह अद्भुत है.. नायक की परेशानियाँ (सर्विलांस, हैकिंग, कॉर्पोरेट षड्यंत्र) और उसके बीच गीता की मस्ती.. यह कॉन्ट्रास्ट कहानी को और भी रोचक बना देता है.. गाजर वाले से लेकर फूड ट्रक तक की घटनाएँ मजेदार तो है ही साथ ही प्लॉट को आगे बढ़ाने में भी मदद करती हैं..
जब गीता ने घर की चाभियों का गुच्छा अपनी कमर पर लटकाया हुआ दिखाया, तो यह दृश्य कामुकता और कॉमेडी का बेहतरीन मिश्रण था.. उसकी लाइन "भैया, भाभी घर पे नहीं है.. काहें जल्दी मचाये हो?"ने पूरे माहौल को और भी मजेदार बना दिया..
गीता का गाजर वाले से "सबसे मोटी, सबसे लंबी गाजर" माँगना और फिर उसकी शक्ल देखकर उसे गाली देना, यह सीन पूरी तरह से गीता के करैक्टर को डिफाइन करता है.. उसकी बेबाकी और बदमाशी पाठकों को हंसाती है, लेकिन साथ ही यह भी दिखाती है कि वह सिर्फ मजाकिया नहीं, बल्कि चालाक भी है..
गुड्डी की सहेली निधि के साथ नायक का इंटरैक्शन भी बेहद मनोरंजक था.. उसका "भैया या जीजू?" वाला डायलॉग और फिर उसके साथ सेल्फी लेने का सीन, जहाँ नायक गीता के फोन का इस्तेमाल करके अपना मैसेज भेजता है, यह प्लॉट का स्मार्ट ट्विस्ट था..
इस अध्याय का सबसे उत्तेजक और आरामदायक हिस्सा था गीता द्वारा नायक की तेल मालिश करना.. उसकी गालियाँ ("स्साले तेरी महतारी को बुला के इस खूंटे पर चढ़ाउंगी...") और फिर उसके बाद की इंटिमेट एक्टिविटी ने इस सीन को यादगार बना दिया.. गीता का कॉन्फिडेंस और उसकी शैतानी हरकतें पढ़ने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं..
इन अपडेट्स में रोमांच और कामुकता का बेहतरीन संतुलन है.. गीता जैसा करैक्टर हिंदी इरोटिक लेखन में दुर्लभ है.. वह सिर्फ एक सेक्स सिंबल नहीं, बल्कि एक स्ट्रॉन्ग, फनी और इंटेलिजेंट किरदार है.. इसके अलावा, जासूसी और कॉर्पोरेट षड्यंत्र का ताना-बाना कहानी को और भी दिलचस्प बना देता है..
खासतौर पर गीता की माँ मंजू और नायक की सास के आने के बाद क्या होगा, यह जानने की उत्सुकता बढ़ गई है.. क्या वाकई नायक की सास का "पिछवाड़ा कोरा" रह जाएगा? या फिर गीता अपनी योजना में कामयाब होगी? इंतज़ार रहेगा!
एकदम सही कहा आपनेगीता to उनके लिए आउट ऑफ syllabus आ गयी.....