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Update 44
कॉलम, बलबीर, दाई माँ और डॉ रुस्तम एक ही वान मे थे. वो सारे वापस जा रहे थे. कोमल बहोत ज्यादा खुश थी. क्यों की दाई माँ उसके साथ आ रही थी. पर एक उसे टेंशन भी थी की उनका रिजर्वेशन नहीं था. दाई माँ ने सारा रिस्क अपने ऊपर ले लिया था. कोमल की टेंशन को डॉ रुस्तम भाप गए.
डॉ : (स्माइल) दाई माँ जब साथ है तो तुम फिकर क्यों करते हो.
डॉ रुस्तम की बात सुनकर दाई माँ हलका सा हस पड़ी. कोमल ने डॉ रुस्तम की तरफ टेंशन वाली नजरों से देखा. पर पहेली बार कोमल ने डॉ रुस्तम को डांट भी दिया.
कोमल : दाई माँ है... दाई माँ है. बस यही बता रहे हो. कुछ आगे बता भी तो नहीं रहे. कम से कम कुछ सुना ही दो. दो ढाई घंटे का सफर है.
डॉ रुस्तम भी हस पड़े. उन्होंने दाई माँ की तरफ देखा. दाई माँ ने भी हा मे हिशारा दिया. और डॉ रुस्तम ने एक बढ़िया किस्सा सुना ना सुरु किया.
डॉ : कभी तुमने कर्ण पिशाजनी का नाम सुना है??
कोमल : पिशाज सुना है. कर्ण पिशाजनी तो पहेली बार सुन रही हु.
डॉ : तो फिर तुम पिशाज से क्या समझती हो???
कोमल एक बार तो सोचने लग गई. पर उसके ज़वाब मे लॉजिक था.
कोमल : वो सब बोलते है ना. भुत पिशाज शब्द. वैसे ही सुना है. पर टीवी पर बचपन मे एक सीरियल देखा था. विक्रम और बेताल. तो उसमे राजा विक्रमदित्य एक बेताल को पकड़ने जाता है ना. उसमे बेताल को पिशाज बताया है.
डॉ : वह बिलकुल सही कहानी है. बेताल ही कलयुग का पहला पिशाज माना गया है. जिसे किसी ने नरी आँखों से देखा था. वैसे तो बेताल भी कई प्रकार के है. और उन्हें शास्त्रों मे भी पिशाज के रूप मे ही माना गया है. पर पिशाज भी कई प्रकार के होते है. जैसे की बेताल, रक्त पिशाज, कर्ण पिशाजनी, काम पिशाजनी, वैसे तो कई देवी देवता ने भी अपना राजसिक पिशाजिक रूप लिया हुआ है.
कोमल : यह राजसिक क्या होता है???
डॉ : जैसे हम इन्शान भगवान को सात्विक तरीके से पूजते है. तंत्रा के जरिये तामशिक एक भक्ति का मार्ग है. पर हम जीवो के आलावा मरे हुए लोग, और दूसरी एनर्जी जिनमे भुत, पिशाज, जिन्न, डाकण, डायन, वगेरा वगेरा बहोत है. अब भगवान तो उनके भी है. और वो भी यही है. तो यह एनर्जी भगवान को राजसिक तरीके से पूजती है. इसी लिए एक पंथ और है. सात्विक, तामशिक, और राजसिक.
कोमल : ओके. तो फिर आप कर्ण पिशाजनी के बारे मे आप बता रहे थे.
डॉ : हम्म्म्म. कर्ण मतलब की कान मे बताने वाली. यह पिशाज सिर्फ फीमेल फोरम मे ही होती है. इसमें कोई मेल पिशाज नहीं होता. कर्ण पिशाजनी वैसे तो कोई साधक ज्ञान को बढ़ाने के लिए ही करते है. क्यों की यह भुत काल और वर्तमान काल बताती है. वैसे तो यह भविस्य भी बता सकती है. पर भविस्य कुछ पलों तक का ही. क्यों की हर किसी का भविस्य बदलता रहता है.
इसी लिए साधक सिर्फ भूतकाल और वर्तमान काल का पता ही कर्ण पिशाजनी के जरिये सटीक लगा सकते है. कुछ मुर्ख साधक इसे अपनी वासना पूरी करने के लिए भी करते है. मगर यह खतरनाक भी साबित होता है.
कोमल से रहा नहीं गया. और वो बिच मे बोल पड़ी.
कोमल : पर आपने पिशाजो के जीकर मे काम पिशाज भी जीकर किया था. तो....?????
डॉ : मै पहले कर्ण पिशजनी के बारे मे बता ता हु. एक साधक कर्ण पिशाजनी को बुलाने के लिए साधना करता है. यह साधना वाम मार्ग के जरिये की जाए तो सिर्फ 3 दिन की होती है. या फिर सम्पूर्ण करें तो 21 से 23 दिन की होती है. जो तीन दिन वाली साधना करते है. उसमे साधक को तीन दिन तक एक बंद घर मे करनी पडती है.
साधक तीन दिन तक नहाता नहीं है. उसे गन्दा होना पड़ता है. उसे अपना मल( लेटरिंग, टट्टी ) अपने शरीर पर लगाना होता है. और भूख लगने पर अपना ही मल खाना होता है. वही अपने ही मूत्र से अपनी प्यास भुजानी होती है. साथ एक मंत्र का जाप करते रहना होता है.
पहले तो वह साधक की परीक्षा लेती है. उसे डरती है. और फिर वह साधक कामयाब हुआ तो उसकी गोदी मे आकर बैठ जाती है. इसमें कर्ण पिशाजनी साधक के सामने अपनी शर्त रखती है. इस क्रिया मे कर्ण पिशाजनी सिर्फ प्रेमिका के रूप मे ही सिद्ध होती है.
वह शर्त रखती है की वो जब चाहे तब साधक के साथ सम्भोग करेंगी. साधक उसे रोक नहीं सकता. अगर साधक ने किसी लड़की से कोई प्रेम या सम्भोग का रिस्ता बनाया तो कर्ण पिशाजनी उस लड़की और उस साधक को मार डालेगी. कई लोग जिनहे ज्ञान नहीं होता. कर्ण पिशाजनी के चपेट मे आ चुके है.
अमूमन नवजावन लड़के अपनी वासना पूरी करने के चक्कर मे कर्ण पिशाजनी के हत्थे चढ़ गए.कर्ण पिशाजनी ना जीने के लायक छोड़ती है. ना ही मरने के लायक. वह उस साधक के साथ तब तक सम्भोग करती ही रहती है. जब तक वो मर ना जाए.
कोमल : और दूसरा तरीका कोनसा है??
डॉ : दूसरा तरीका पिशाजी साधना के जरिये. जो 21 से 23 दिन का होता है. इसमें साधक पिशाजी यन्त्र बनाकर उसमे अपने वीर्य का अर्पण करता है. और सारे रिचुअल्स पुरे करते हुए कर्ण पिशाजनी का आवाहन करता है. जब कर्ण पिशाजनी आती है तो उसे कुछ नियम के तहत ही अपनाया जाता है. साधक उसे किस रूप मे स्वीकार करेगा. यह साधक के ऊपर है.
या माँ के रूप मे. अगर साधक ने माँ के रूप मे कर्ण पिशाजनी को स्वीकार किया तो वह साधक की अशली माँ को मार देगी. क्यों की माँ एक ही होती है. साधक उसे बहन के रूप मे भी स्वीकार कर सकता है. मगर उसके बाद किसी और बहन से ज्यादा लाड़ लड़ाया तो उस बहन को मार देगी. और फिर तीसरा है पत्नी के रूप मे.
अगर पत्नी के रूप मे अगर साधक स्वीकार करें तो वो किसी और नारी के साथ प्रेम सम्बन्ध या काम सम्बन्ध नहीं बना सकता. नहीं तो वो साधक और उसकी प्रेमिका मतलब की उस लड़की को भी मार देगी. मगर साधक अगर चतुराई दिखाए. और अपनी भी शर्त मानवा ले तो कर्ण पिशाजनी को सही तरीके से मैनिपुलेट कर सकता है.
कोमल : वो कैसे???
डॉ : साधक पत्नी के रूप मे स्वीकार करें तब कर्ण पिशाजनी से भी वचन ले सकता है की जब साधक चाहेगा तब ही सम्भोग होगा. तब वो कर्ण पिशाजनी को मैनिपुलेट कर सकेगा. पर साधक कर्ण पिशाजनी की मोहक सुंदरता मे इतना खो जाता है की वो खुद अपनी बात मनवाने के बजाय उसी की बात मान कर वचन बंद हो जाता है. नतीजा कर्ण पिशाजनी अपनी मर्जी से साधक के साथ जबरदस्ती सम्भोग करती रहती है. फिर साधक का क्या होगा. वो तो तुम भी समझ सकती हो.
कोमल : फिर तो चतुराई माँ या बहन के रूप मे ही सिद्ध करना बेटर होगा.
डॉ रुस्तम हस दिए.
डॉ : (स्माइल) अपनी माँ बहेनो की इच्छा पूरी करना एक बेटे और एक भाई का फ़र्ज होता है. वो कभी किसी जिन्दा बच्चे की बली मांगेगी. कभी कवारी लड़की का खून. साधक कहा से लाएगा???
कोमल भी सोच मे पड़ गई.
कोमल : हम्म्म्म यह बात तो है. पर यह यन्त्र पर वीर्य क्यों???
डॉ : क्यों की कर्ण पिशाजनी अपने पिशाजिक लोक मे बच्चे पैदा करती है. और कर्ण पिशाजनी मे कोई मेल नहीं होता. सिर्फ सारी फीमेल ही होती है. इसी लिए उसे बच्चे पैदा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा वीर्य चाहिये. जो उसे ज्यादा सम्भोग के जरिये ही मिलता है.
जब की काम पिशाजनी मे उल्टा होता है. वो चाहे उस लड़की को तुम पर मोहित कर देगी. पर तुम्हे प्रेम करने नहीं देगी. सिर्फ तुम्हे सम्भोग ही करवाएगी. वो शादी करने नहीं देती. खुद भी सम्भोग करती है. और दुसरो से भी करवाती है. मगर साधक अगर कमिटेड हुआ तो उसे मार डालती है.
कोमल के अंदर शारारत कभी ख़तम नहीं हो सकती.
कोमल : (स्माइल) अगर मेरे पास कर्ण पिशाजनी होती तो मै बहोतो की वाट लगा देती.
डॉ : नहीं है वही अच्छा है. हा एक बात और अगर साधक वृद्ध होने लगे. या उसे पता हो की वो मरने वाला है. तो उसे अपनी सिद्धिया किसी और साधक को वारिस के तोर पर देनी होती है. जो ना दे तो भी प्रॉब्लम हो सकती है.
कोमल : हा मगर यह तो कर्ण पिशाजनी पाने का तीसरा रस्ता भी है.
डॉ : (स्माइल) वैसे अब मै किस्सा सुना दू. नहीं तो तुम कोई और रस्ता निकल लोगी.
सिर्फ कोमल ही नहीं दाई माँ बलवीर वान मे बैठे सभी हसने लगे. उसके बाद कुछ पलों के लिए शांत हो गए. और डॉ रुस्तम के आगे कुछ बोलने का इंतजार करने लगे. खास कर कोमल. क्यों की किस्सा सुन ने की तलब सबसे ज्यादा कोमल को ही थी.