If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.
किवाड़ों को ज्यों का त्यों ढंककर नीलम आगे बढ़ गई। अभी जो उसने देखा, वो उसके दिमाग को हिला रहा था। उसकी मां सुधा और ताई पुष्पा—दोनों बिल्कुल नंगी, एक-दूसरे के बदन से खेलते हुए—ये दृश्य उसकी आंखों के सामने से हट नहीं रहा था। उसने उनकी बातें तो नहीं सुनी थीं, लेकिन वो नजारा ही काफी था। रजनी आज घर पर नहीं थी, इसलिए नीलम तुरंत वापस घर आई थी और इस अनपेक्षित दृश्य को देखकर अंदर तक हिल गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे या कहां जाए। चलते-चलते वो गांव के बाहर नदी की ओर पहुंची और किनारे पर बैठ गई।
नदी की लहरों को देखते हुए नीलम अपने विचारों में डूब गई। उसे गुस्सा होना चाहिए था अपनी मां और ताई पर, जो इस पाप में लिप्त थीं, लेकिन गुस्सा नहीं आ रहा था। उसके अंदर एक अजीब सा अहसास था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी। उसके बदन में एक गर्मी का एहसास हो रहा था, और वो किसी से इस बारे में बात करना चाहती थी, लेकिन किससे? उसकी इकलौती सहेली नंदिनी से उसका झगड़ा हो रखा था। वो नंदिनी के बारे में सोचने लगी—उसने उससे झगड़ा क्यों किया? क्या इसी वजह से उसकी मां और ताई ये सब कर रही थीं? तो फिर नंदिनी गलत कैसे हुई? इसी बीच उसे अपने कंधे पर एक हाथ का स्पर्श हुआ। उसने नजर उठाई, और सामने रानी थी—भूरा और राजू की बड़ी बहन।
नीलम ने चौंककर कहा, "अरे रानी जीजी?" रानी ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "अरे तू यहां अकेली बैठकर क्या कर रही है?" नीलम ने झेंपते हुए जवाब दिया, "कुछ नहीं जीजी, खाली थी तो मन हुआ नदी किनारे बैठने का।" रानी उसके बगल में बैठते हुए बोली, "तू हमेशा से ही ऐसी रही है—अकेली, चुपचाप सी।" नीलम ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा, "वो तो बस ऐसे ही जीजी।"
रानी ने बात को आगे बढ़ाया, "और मुझे पता है, तेरा और तेरी सहेली का झगड़ा हो गया है, उससे भी बोलचाल बंद है।" नीलम ने सहमति में सिर हिलाया, "हां जीजी, बस वो तो ऐसे ही।" रानी ने उसे समझाते हुए कहा, "अरे पागल, ये सब झगड़ा-वगैरा छोड़। प्यार से रहो आपस में, क्योंकि ये दिन ही याद आएंगे। अभी कुछ दिन बाद तुम दोनों ब्याह कर चली जाओगी, फिर सोचोगी कि काश झगड़े में समय न बिताना था।" नीलम रानी की बात सुनकर सोच में पड़ गई।
नीलम ने कहा, "ये तो है जीजी, लेकिन क्या करूं, वो मुझसे बिल्कुल उलट है। जो मैं करती हूं, वो उसका बिल्कुल उलटा करती है, इसलिए झगड़ा हो जाता है।" रानी हंसी, "अरे पागल, तुझसे अलग है तो ही तो दोस्ती है। सोच, बिल्कुल तेरे जैसी होती तो मजा आता अपनी छाया से दोस्ती करने में?" नीलम हंसने लगी और बोली, "नहीं जीजी, बिल्कुल भी नहीं।" रानी ने कहा, "वही तो। वैसे भी सच कहूं, ब्याह के बाद ये दिन ही याद आते हैं। ससुराल की जिम्मेदारी और दुनियादारी में फिर अपने लिए सोचने का समय नहीं मिलता।"
नीलम ने मज़ाकिया लहजे में पूछा, "अच्छा, आपको भी समय नहीं मिलता क्या जीजी?" रानी ने हंसते हुए जवाब दिया, "समय, सांस लेने की फुर्सत भी नहीं मिलती।" नीलम ने छेड़ते हुए कहा, "अच्छा, क्यों? जीजाजी छोड़ते नहीं क्या?" रानी हंसी, "धत्त, तू भी नंदिनी जैसी हो गई है उसके साथ रहकर। वैसे अच्छा है, ऐसी मज़ाक करती हुई अच्छी लगती है तू।" नीलम ने उत्सुकता से पूछा, "वैसे जीजी, बताओ ना, क्या-क्या करते हैं जीजाजी पूरी रात?" रानी ने शरारत से कहा, "धत्त, तुझ पर नंदिनी का असर बहुत हो गया है।"
नीलम ने जिद की, "अरे बढ़ा मन है जीजी जानने का, बताओ न।" रानी ने कहा, "अच्छा, सच में मन है? सुन पाएगी तू?" नीलम ने हामी भरी, "क्यों सुनने में क्या है?" रानी ने शर्त रखी, "शर्माएगी तो नहीं?" नीलम बोली, "नहीं शर्माऊंगी, अब बताओ ना।" रानी ने कहा, "अच्छा चल, मैं बताऊंगी, लेकिन मेरी एक शर्त है—जैसा मैं बताऊं, उसी भाषा में मुझसे बात करनी होगी, बिना शर्माए।" नीलम ने सोचा और बोली, "ठीक है जीजी, सुनाओ।"
रानी ने शुरू किया, "तो सुन, रात में क्या-क्या होता है। तेरे जीजा बिस्तर पर मुझे लिटाते हैं, और अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख देते हैं, और अच्छे से चूसते हैं। उसके बाद मेरे ब्लाउज के हुक खोलते हैं और मेरी चूचियों को नंगा करते हैं, उन्हें अपने हाथों में लेकर दबाते हैं, मसलते हैं।" रानी ये कहते हुए खुद अंदर से उत्तेजित होने लगी। अपने संभोग के छुपे पलों को नीलम के साथ बांटने से उसे एक अलग अहसास हो रहा था।
नीलम गरम होती हुई बोली, "अच्छा फिर?" उसकी चूचियां कड़क रही थीं, और वो थूक गटकते हुए आगे बढ़ी, "फिर?" रानी ने कहा, "फिर चूचियों को मसलते हुए वो मेरा पेट और नाभि चाटते हैं, मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसाकर चाटते हैं।" ये कहते हुए रानी की आह निकल गई, और नीलम का गला सूख गया। नीलम ने फिर पूछा, "फिर?" रानी बोली, "फिर वो मेरी चूचियों को मुंह में भरकर जी भर के चूसते हैं, बदल-बदल कर। आह, इतना मज़ा आता है कि बस बताए नहीं बनता।" नीलम ने कहा, "आह अच्छा।"
रानी ने आगे बढ़ाया, "फिर वो मेरे हाथ में अपना वो पकड़ा देते हैं, उसका कड़क अहसास आह..." नीलम ने उत्सुकता से पूछा, "वो? क्या जीजी?" रानी ने सांस लेकर कहा, "उनका कड़क मोटा लंड। उसकी गर्मी आह, लगता है मानो हाथ में कोई गरम सरिया पकड़ लिया हो। उसे छूते ही मेरी टांगों के बीच खुजली बढ़ जाती है, पानी बहने लगता है।" ये सुनते हुए रानी की चूत गीली हो गई, और नीलम अपनी टांगों को घिसकर शांत होने की कोशिश कर रही थी।
रानी ने कहा, "और फिर मैं उस कड़क गर्म लंड को सहलाती हूं, उसे हाथों से पुचकारती हूं, जैसे किसी सफर से पहले घोड़े को या जुताई से पहले बैल को तैयार करते हैं।" नीलम के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, वो बस सुन रही थी। रानी ने जारी रखा, "और फिर वो अपना लंड मेरी चूत के मुहाने पर रखते हैं, जो कब से उनके लंड के लिए तड़पती होती है। उनका लंड महसूस कर तो चूत पानी बहाने लगती है, और फिर एक धक्का लगाकर वो लंड को अंदर घुसा देते हैं।" नीलम ने फुसफुसाते हुए कहा, "आह जीजी।" उसे खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था।
रानी ने नीलम की हालत देखी और समझ गई कि वो भी उत्तेजित है। उसने कहा, "चल, बहुत हो गया, अब और नहीं कह सकती मैं।" नीलम ने सहमति में कहा, "हां जीजी, सच में।" दोनों कुछ पल शांत बैठीं, अपनी उत्तेजना को शांत करने की कोशिश करती रहीं। फिर रानी ने सुझाव दिया, "चल, उधर ईख वाले खेत पर चलें? बहुत दिन हो गए, गन्ने खाएंगे, मस्ती करेंगे।" नीलम ने हामी भरी, "हां चलो जीजी।" दोनों उठकर रानी के पिता के ईख वाले खेत की ओर बढ़ गईं, जो नदी के पास ही था।
दूसरी ओर, नीलम की सहेली नंदिनी भी पीछे नहीं थी। मगन खेत पर निकल गया था, और लता आंगन में बैठकर कपड़े धो रही थी, जबकि घर के अंदर नंदिनी और लल्लू—दोनों भाई-बहन—अपने उत्तेजित पलों में डूबे हुए थे। उनके होंठ आपस में मिले हुए थे, और दोनों एक-दूसरे के होंठों को प्यास और उत्तेजना से चूस रहे थे। नंदिनी ने सूट-सलवार पहना हुआ था, जिसमें उसकी कमर और चूचियों का आकार हल्का उभर रहा था, वहीं लल्लू के बदन पर सिर्फ पजामा था, ऊपर से नंगा था।
दोनों की उत्तेजना हर पल के साथ बढ़ रही थी। लल्लू के हाथ अपनी बड़ी बहन के बदन पर घूमने लगे। उसने धीरे से नंदिनी के सूट को ऊपर उठाया और अपना हाथ अंदर डालकर उसकी नरम, मखमली पेट को सहलाने लगा। इस स्पर्श से नंदिनी की सांसें तेज हो गईं, और वो और उत्तेजित हो उठी। लल्लू का हाथ उसके पेट से लेकर कमर और पीठ तक फिर रहा था, उसकी कोमल त्वचा का एहसास उसे अपार आनंद दे रहा था। नंदिनी के बदन में एक सिहरन दौड़ रही थी, और वो अपने भाई के स्पर्श से खुद को रोक नहीं पा रही थी।
कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए, और हल्की-हल्की सांसों के साथ वे एक-दूसरे की आंखों में देखने लगे। लल्लू ने फुसफुसाते हुए कहा, "आह दीदी, तुम्हारे होंठ कितने स्वादिष्ट हैं।" नंदिनी ने घबराते हुए अपनी सांसें संभालते हुए कहा, "चुप कर, मां सुन लेंगी।" लेकिन उसकी आवाज में उत्तेजना साफ झलक रही थी। लल्लू का हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, और वो धीरे-धीरे उसे सहलाता रहा, मानो उसकी हर हरकत से नंदिनी को और गर्म करता हो।
नंदिनी का मन द्वंद्व में था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—लल्लू का स्पर्श, उसकी नंगी छाती, और उनके बीच की निषिद्ध लालसा—लेकिन दूसरी ओर उसे डर था कि लता उन्हें पकड़ लेगी। फिर भी, वो अपने भाई के करीब आने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और अपने हाथ को और ऊपर ले गया, नंदिनी के सूट के नीचे से उसकी चूचियों के पास पहुंचने की कोशिश की। नंदिनी ने हल्का सा विरोध किया, "लल्लू, रुक जा, अगर मां..." लेकिन उसकी आवाज में दृढ़ता नहीं थी, और लल्लू ने उसका विरोध नजरअंदाज कर दिया।
वह नंदिनी के सूट को और ऊपर खिसकाया और अपनी उंगलियों से उसकी चूचियों को हल्के से छुआ। नंदिनी की सांसें और तेज हो गईं, और उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। लल्लू ने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे नंदिनी की चूचियों पर फिराया, जो ब्रा के अंदर से भी साफ महसूस हो रही थीं। "आह दीदी, तुम्हारा बदन कितना नरम है," लल्लू ने फुसफुसाया, और उसकी आवाज में एक भूख थी। नंदिनी का मन अब पूरी तरह वासना के हवाले हो चुका था। उसने लल्लू के कंधों को पकड़ा और उसे अपने और करीब खींच लिया, मानो वो अब इस पल को पूरी तरह जीना चाहती हो। लल्लू ने इसका फायदा उठाया और नंदिनी के सूट को पकड़ कर उतार दिया,
नंदिनी: धत्त ये क्या किया।
नंदिनी इतना बोल पाई कि लल्लू ने फिर से उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और चूसने लगा, नंदिनी की उत्तेजना भी कम नहीं थी वो भी अपने भाई का तुरंत ही साथ देने लगी उसे बाहों में भरते हुए,
दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के होंठों का रस पीने लगे, लेकिन तभी बाहर से लता की आवाज आई, "लल्ला, नंदिनी, क्या कर रहे हो दोनों और कपड़े हो तो धुलने वाले तो दो जल्दी!" दोनों एक पल के लिए सन्न रह गए। नंदिनी ने तुरंत अपने सूट को उठाया और पहन लिया और चेहरा संभाला, जबकि लल्लू ने जल्दी से अपने पजामे को ठीक किया और अपने कड़क लंड को नीचे की ओर दबाया। नंदिनी ने फुसफुसाया, "जल्दी कर, मां को शक न हो," और दोनों ने हड़बड़ी में कमरे से बाहर निकलकर आंगन में आ गए। लता ने उन्हें देखा और बोली कपड़े नहीं है तो दोनों ने ना में सिर हिला दिया, लता ने कुछ नहीं कहा और कपड़े धोने लगी लेकिन उसकी नजरों में एक हल्की शंका थी, जो शायद उसकी छठी इंद्रिय थी।
इस बीच, नंदिनी और लल्लू की आंखें बार-बार मिल रही थीं, और दोनों के चेहरों पर एक गुप्त मुस्कान थी। लता ने कपड़े धोते हुए कहा, "क्या हो गया तुम दोनों को, चेहरा लाल क्यों है?" नंदिनी ने हंसते हुए कहा, "कुछ नहीं मां, बस थोड़ी गर्मी लग रही है।" लल्लू ने भी हामी भरी, लेकिन उसके मन में नंदिनी के स्पर्श का आनंद और अगले मौके की उम्मीद जिंदा थी। लता ने शक की नजर से दोनों को देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा और काम में लग गई।
दोपहर ढल चुकी थी, और रानी जहां नीलम के साथ नदी किनारे थी, वहीं घर पर सिर्फ रत्ना और भूरा मौजूद थे। राजू खेत पर काम कर रहा था। रत्ना अपने विचारों में डूबी थी, केला बाबा की बातें—आत्मा की अधूरी इच्छाएं—उसके दिमाग में गूंज रही थीं। वो चूल्हे पर दूध चढ़ाकर उसके सामने बैठी थी, आग की लपटें उसके चेहरे पर उजाला डाल रही थीं। उधर, भूरा आंगन में नल के बगल में नहा रहा था, पानी की धार उसके बदन पर बह रही थी। रत्ना को अपनी सुध नहीं थी; उसका ध्यान सपनों और प्यारेलाल की मौत से जुड़े रहस्यों में उलझा हुआ था।
इसी बीच भूरा की नजर रत्ना पर पड़ी, और वो चौंक गया। रत्ना की साड़ी का पल्लू लकड़ियों के साथ चूल्हे में चला गया था, और आग ने उसे जकड़ लिया था।
भूरा चीखा, "मां!" इस आवाज से रत्ना को होश आया। उसने साड़ी को देखा और डर से चिल्लाने लगी। भूरा ने फुर्ती दिखाई और पास में रखी पानी की बाल्टी लेकर उसकी ओर दौड़ा। रत्ना घबराहट में साड़ी खोलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका पैर फंस गया, और वो गिर पड़ी। उसकी साड़ी और जलने लगी, लेकिन भूरा ने तुरंत बाल्टी का पानी उस पर उड़ेल दिया। लपटें शांत हो गईं, लेकिन रत्ना का पूरा बदन भीग गया।
भूरा ने बाल्टी एक ओर रखी और अपनी मां को उठाया। रत्ना की आंखों से आंसू बह रहे थे, उसका पल्लू पूरी तरह जल चुका था। भूरा ने उसे शांत करने की कोशिश की, "मां, चुप हो जाओ, अब सब ठीक है।" रत्ना बुरी तरह घबराई हुई थी और भूरा के गले से चिपक गई। भूरा ने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा, "मां, सब ठीक है, कुछ नहीं हुआ। रोना बंद करो और शांत हो जाओ। चलो, दूसरे कपड़े पहन लो, ये भीग गए हैं और साड़ी भी जल गई है।"
रत्ना थोड़ा शांत हुई और भूरा से अलग हो गई। भूरा ने चूल्हे से दूध उतारा और एक ओर रख दिया। उसने कहा, "मां, ये साड़ी उतार दो, भीग गई है और जल भी गई है। दूसरी पहन लो।" रत्ना ने धीरे-धीरे साड़ी उतारी, और उसके बदन पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज रह गया। भूरा ने उसे कमरे के अंदर ले जाया और बोला, "लो मां, तुम अब कपड़े पहन लो। मैं तब तक नहा लेता हूं, देखो पूरा भीग गया हूं। ज्यादा सोचो मत।"
रत्ना के दिमाग में बाबा की बातें और अभी का हादसा एक साथ जुड़ गए। उसे लग रहा था कि ये सब उसी वजह से हो रहा है—क्या ये उसके सपनों और ससुर की मौत से जुड़ा है? ये सोचकर उसका मन घबराने लगा। रत्ना गीले कपड़ों में खड़े होकर ये सब सोच रही थी।
भूरा जाने को हुआ, लेकिन रत्ना ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली, "लल्ला, मुझे घबराहट हो रही है, अभी मत जा।" भूरा ने समझाया, "वो तो ठीक है मां, पर अभी तुम्हें बुखार हुआ था। अगर गीले कपड़े पहने रहोगी तो फिर से हो जाएगा।" रत्ना ने कहा, "वो मैं बदल लूंगी, तू बस यहीं रह।" भूरा ने हामी भरी, "ठीक है, मैं नहीं जा रहा, यहीं हूं। तुम परेशान मत हो।"
भूरा वहीं खड़ा हो गया। रत्ना ने दरवाजा बंद किया और धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी। भूरा ये देखकर हैरान रह गया। पहले तो उसके मन में सिर्फ चिंता थी, लेकिन अब वासना के भाव लौटने लगे। रत्ना के हाथ धीरे-धीरे हुक खोलते गए, और एक-एक करके सारे हुक खुल गए। भूरा अपनी सांसें रोककर अपनी मां की ओर देख रहा था। रत्ना ने अपने ब्लाउज के पाटों को पकड़ा और बोली, "लल्ला, उधर घूम जा।" भूरा ने वैसे ही किया, लेकिन उसका ध्यान मां से हट नहीं रहा था। वो सोच रहा था कि उसके पीछे मां नंगी हो रही है, और ये ख्याल उसके लंड को कच्छे में तनाव देने लगा।
इसी बीच रत्ना की एक हल्की चीख निकली। भूरा ने तुरंत मुड़कर देखा और सामने का नजारा देखकर वहीं जम गया। रत्ना के हाथ से सूखा पेटीकोट छूटकर नीचे गिर गया था, और वो अपने बेटे के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां, मखमली सपाट पेट, गोल गहरी नाभी, और हल्के बालों से सजी चूत—सब भूरा के सामने था। भूरा का लंड बिल्कुल अकड़ गया, अपनी मां को इस तरह देखकर। वहीं रत्ना भी सुन्न पड़ गई। शर्म के मारे उसे जमीन में धंसने का मन हो रहा था। उसका पेटीकोट नीचे पड़ा था, लेकिन उसका बदन मानो जड़ हो गया। कुछ पल कमरे में सन्नाटा रहा। रत्ना की आंखें शर्म से नीचे थीं, जबकि भूरा की नजरें उसके बदन पर टिकी थीं।
रत्ना ने धीरे से आंखें उठाई, और पहली नजर उसकी भूरा के कच्छे पर पड़ी, जहां तंबू बना हुआ था। भूरा के कच्छे में तनाव देखकर रत्ना का दिमाग तेजी से चलने लगा। उसे अपने सपने याद आए—कैसे उसके बेटे और उनके दोस्त उसे चोद रहे थे। कहीं ये उसी सपने से जुड़ा तो नहीं है? इधर भूरा ने अपनी मां के शर्म और घबराहट भरे चेहरे को देखा, और वासना को भूलकर आगे बढ़ा। उसने झुककर पेटीकोट उठाया और रत्ना के हाथ में थमा दिया, फिर बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया।
हाथ में पेटीकोट पाकर रत्ना को थोड़ा होश आया। उसने फुर्ती दिखाते हुए पेटीकोट पहना और जल्दी से ब्लाउज भी पहन लिया। फिर साड़ी उठाकर कमरे से बाहर निकल गई; वो ज्यादा देर अकेले नहीं रहना चाहती थी। बाहर आकर उसने देखा कि भूरा पटिया पर नहीं था। वो सोचने लगी, "ये गीला होकर कहां चला गया?" वो आगे बढ़ी और भैंसों के बंधने वाली जगह की ओर देखने लगी। उसे हल्की-हल्की आवाजें सुनाई दीं। रत्ना आगे बढ़ी और भूसा की बोरियों के पीछे चारे के ढेर पर भूरा को बैठा देखा।
रत्ना कुछ बोलने से पहले ही उसकी नजर भूरा पर पड़ी, जो कुछ कर रहा था। भूरा का कच्छा घुटनों पर था, और वो एक हाथ से अपने लंड को थामे अपनी मां के नंगे बदन को याद करते हुए हाथ को लंड पर चला रहा था। उसके मुंह से बहुत हल्की-हल्की "मां-मां" की आहें निकल रही थीं। रत्ना का मुंह सूख गया। उसकी नजरें भूरा के लंड पर टिक गईं। इसी बीच भूरा ने एक गहरी सांस ली, और उसके लंड से एक पिचकारी निकली, जो रत्ना के पास गिरी। रत्ना तुरंत चौंककर पीछे हटी और कमरे में भाग गई, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
शाम हो चुकी थी, और शहर से लोग लौट आए थे। राजेश, छोटू और सुभाष के आने से उनके घर में चहल-पहल हो गई थी। दोनों शहर के किस्से बड़े चाव से सुना रहे थे—मंडी की भीड़, शहर की चकाचौंध, और नई चीजें। नीलम बार-बार अपनी मां और ताई को देख रही थी, और सोच रही थी कि देखो, दोनों कितनी संस्कारी लग रही हैं। इन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता कि ये उस तरह के काम में भी लिप्त होंगी।
सत्तू घर आकर थककर सो गया था, लेकिन झुमरी के मन में राजेश नाम की परेशानी घूम रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। राजेश का व्यवहार और उसकी बातें—कल शाम की गोदाम की घटना का उल्लेख—उसके दिमाग में अटका हुआ था। वो सोच रही थी कि आगे क्या होगा, और उसका मन घबराहट से भर गया था।
जारी रहेगी।
शानदार अपडेट दोस्त
मजा आ गया पढ़ कर
आगामी अपडेट्स के लिए जबदस्त और रोमांचक प्लॉट रखा गया इस अपडेट में
मजा आएगा
चूंकि चीजें तेजी से घट रही है और किरदार इतने सारे है तो याद रख पाना आसान नहीं हो रहा है उन्हें फिर भी इसी बहाने पुराने अपडेट भी पढ़ रहा हूं तो अलग मजा है
किवाड़ों को ज्यों का त्यों ढंककर नीलम आगे बढ़ गई। अभी जो उसने देखा, वो उसके दिमाग को हिला रहा था। उसकी मां सुधा और ताई पुष्पा—दोनों बिल्कुल नंगी, एक-दूसरे के बदन से खेलते हुए—ये दृश्य उसकी आंखों के सामने से हट नहीं रहा था। उसने उनकी बातें तो नहीं सुनी थीं, लेकिन वो नजारा ही काफी था। रजनी आज घर पर नहीं थी, इसलिए नीलम तुरंत वापस घर आई थी और इस अनपेक्षित दृश्य को देखकर अंदर तक हिल गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे या कहां जाए। चलते-चलते वो गांव के बाहर नदी की ओर पहुंची और किनारे पर बैठ गई।
नदी की लहरों को देखते हुए नीलम अपने विचारों में डूब गई। उसे गुस्सा होना चाहिए था अपनी मां और ताई पर, जो इस पाप में लिप्त थीं, लेकिन गुस्सा नहीं आ रहा था। उसके अंदर एक अजीब सा अहसास था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी। उसके बदन में एक गर्मी का एहसास हो रहा था, और वो किसी से इस बारे में बात करना चाहती थी, लेकिन किससे? उसकी इकलौती सहेली नंदिनी से उसका झगड़ा हो रखा था। वो नंदिनी के बारे में सोचने लगी—उसने उससे झगड़ा क्यों किया? क्या इसी वजह से उसकी मां और ताई ये सब कर रही थीं? तो फिर नंदिनी गलत कैसे हुई? इसी बीच उसे अपने कंधे पर एक हाथ का स्पर्श हुआ। उसने नजर उठाई, और सामने रानी थी—भूरा और राजू की बड़ी बहन।
नीलम ने चौंककर कहा, "अरे रानी जीजी?" रानी ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "अरे तू यहां अकेली बैठकर क्या कर रही है?" नीलम ने झेंपते हुए जवाब दिया, "कुछ नहीं जीजी, खाली थी तो मन हुआ नदी किनारे बैठने का।" रानी उसके बगल में बैठते हुए बोली, "तू हमेशा से ही ऐसी रही है—अकेली, चुपचाप सी।" नीलम ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा, "वो तो बस ऐसे ही जीजी।"
रानी ने बात को आगे बढ़ाया, "और मुझे पता है, तेरा और तेरी सहेली का झगड़ा हो गया है, उससे भी बोलचाल बंद है।" नीलम ने सहमति में सिर हिलाया, "हां जीजी, बस वो तो ऐसे ही।" रानी ने उसे समझाते हुए कहा, "अरे पागल, ये सब झगड़ा-वगैरा छोड़। प्यार से रहो आपस में, क्योंकि ये दिन ही याद आएंगे। अभी कुछ दिन बाद तुम दोनों ब्याह कर चली जाओगी, फिर सोचोगी कि काश झगड़े में समय न बिताना था।" नीलम रानी की बात सुनकर सोच में पड़ गई।
नीलम ने कहा, "ये तो है जीजी, लेकिन क्या करूं, वो मुझसे बिल्कुल उलट है। जो मैं करती हूं, वो उसका बिल्कुल उलटा करती है, इसलिए झगड़ा हो जाता है।" रानी हंसी, "अरे पागल, तुझसे अलग है तो ही तो दोस्ती है। सोच, बिल्कुल तेरे जैसी होती तो मजा आता अपनी छाया से दोस्ती करने में?" नीलम हंसने लगी और बोली, "नहीं जीजी, बिल्कुल भी नहीं।" रानी ने कहा, "वही तो। वैसे भी सच कहूं, ब्याह के बाद ये दिन ही याद आते हैं। ससुराल की जिम्मेदारी और दुनियादारी में फिर अपने लिए सोचने का समय नहीं मिलता।"
नीलम ने मज़ाकिया लहजे में पूछा, "अच्छा, आपको भी समय नहीं मिलता क्या जीजी?" रानी ने हंसते हुए जवाब दिया, "समय, सांस लेने की फुर्सत भी नहीं मिलती।" नीलम ने छेड़ते हुए कहा, "अच्छा, क्यों? जीजाजी छोड़ते नहीं क्या?" रानी हंसी, "धत्त, तू भी नंदिनी जैसी हो गई है उसके साथ रहकर। वैसे अच्छा है, ऐसी मज़ाक करती हुई अच्छी लगती है तू।" नीलम ने उत्सुकता से पूछा, "वैसे जीजी, बताओ ना, क्या-क्या करते हैं जीजाजी पूरी रात?" रानी ने शरारत से कहा, "धत्त, तुझ पर नंदिनी का असर बहुत हो गया है।"
नीलम ने जिद की, "अरे बढ़ा मन है जीजी जानने का, बताओ न।" रानी ने कहा, "अच्छा, सच में मन है? सुन पाएगी तू?" नीलम ने हामी भरी, "क्यों सुनने में क्या है?" रानी ने शर्त रखी, "शर्माएगी तो नहीं?" नीलम बोली, "नहीं शर्माऊंगी, अब बताओ ना।" रानी ने कहा, "अच्छा चल, मैं बताऊंगी, लेकिन मेरी एक शर्त है—जैसा मैं बताऊं, उसी भाषा में मुझसे बात करनी होगी, बिना शर्माए।" नीलम ने सोचा और बोली, "ठीक है जीजी, सुनाओ।"
रानी ने शुरू किया, "तो सुन, रात में क्या-क्या होता है। तेरे जीजा बिस्तर पर मुझे लिटाते हैं, और अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख देते हैं, और अच्छे से चूसते हैं। उसके बाद मेरे ब्लाउज के हुक खोलते हैं और मेरी चूचियों को नंगा करते हैं, उन्हें अपने हाथों में लेकर दबाते हैं, मसलते हैं।" रानी ये कहते हुए खुद अंदर से उत्तेजित होने लगी। अपने संभोग के छुपे पलों को नीलम के साथ बांटने से उसे एक अलग अहसास हो रहा था।
नीलम गरम होती हुई बोली, "अच्छा फिर?" उसकी चूचियां कड़क रही थीं, और वो थूक गटकते हुए आगे बढ़ी, "फिर?" रानी ने कहा, "फिर चूचियों को मसलते हुए वो मेरा पेट और नाभि चाटते हैं, मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसाकर चाटते हैं।" ये कहते हुए रानी की आह निकल गई, और नीलम का गला सूख गया। नीलम ने फिर पूछा, "फिर?" रानी बोली, "फिर वो मेरी चूचियों को मुंह में भरकर जी भर के चूसते हैं, बदल-बदल कर। आह, इतना मज़ा आता है कि बस बताए नहीं बनता।" नीलम ने कहा, "आह अच्छा।"
रानी ने आगे बढ़ाया, "फिर वो मेरे हाथ में अपना वो पकड़ा देते हैं, उसका कड़क अहसास आह..." नीलम ने उत्सुकता से पूछा, "वो? क्या जीजी?" रानी ने सांस लेकर कहा, "उनका कड़क मोटा लंड। उसकी गर्मी आह, लगता है मानो हाथ में कोई गरम सरिया पकड़ लिया हो। उसे छूते ही मेरी टांगों के बीच खुजली बढ़ जाती है, पानी बहने लगता है।" ये सुनते हुए रानी की चूत गीली हो गई, और नीलम अपनी टांगों को घिसकर शांत होने की कोशिश कर रही थी।
रानी ने कहा, "और फिर मैं उस कड़क गर्म लंड को सहलाती हूं, उसे हाथों से पुचकारती हूं, जैसे किसी सफर से पहले घोड़े को या जुताई से पहले बैल को तैयार करते हैं।" नीलम के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, वो बस सुन रही थी। रानी ने जारी रखा, "और फिर वो अपना लंड मेरी चूत के मुहाने पर रखते हैं, जो कब से उनके लंड के लिए तड़पती होती है। उनका लंड महसूस कर तो चूत पानी बहाने लगती है, और फिर एक धक्का लगाकर वो लंड को अंदर घुसा देते हैं।" नीलम ने फुसफुसाते हुए कहा, "आह जीजी।" उसे खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था।
रानी ने नीलम की हालत देखी और समझ गई कि वो भी उत्तेजित है। उसने कहा, "चल, बहुत हो गया, अब और नहीं कह सकती मैं।" नीलम ने सहमति में कहा, "हां जीजी, सच में।" दोनों कुछ पल शांत बैठीं, अपनी उत्तेजना को शांत करने की कोशिश करती रहीं। फिर रानी ने सुझाव दिया, "चल, उधर ईख वाले खेत पर चलें? बहुत दिन हो गए, गन्ने खाएंगे, मस्ती करेंगे।" नीलम ने हामी भरी, "हां चलो जीजी।" दोनों उठकर रानी के पिता के ईख वाले खेत की ओर बढ़ गईं, जो नदी के पास ही था।
दूसरी ओर, नीलम की सहेली नंदिनी भी पीछे नहीं थी। मगन खेत पर निकल गया था, और लता आंगन में बैठकर कपड़े धो रही थी, जबकि घर के अंदर नंदिनी और लल्लू—दोनों भाई-बहन—अपने उत्तेजित पलों में डूबे हुए थे। उनके होंठ आपस में मिले हुए थे, और दोनों एक-दूसरे के होंठों को प्यास और उत्तेजना से चूस रहे थे। नंदिनी ने सूट-सलवार पहना हुआ था, जिसमें उसकी कमर और चूचियों का आकार हल्का उभर रहा था, वहीं लल्लू के बदन पर सिर्फ पजामा था, ऊपर से नंगा था।
दोनों की उत्तेजना हर पल के साथ बढ़ रही थी। लल्लू के हाथ अपनी बड़ी बहन के बदन पर घूमने लगे। उसने धीरे से नंदिनी के सूट को ऊपर उठाया और अपना हाथ अंदर डालकर उसकी नरम, मखमली पेट को सहलाने लगा। इस स्पर्श से नंदिनी की सांसें तेज हो गईं, और वो और उत्तेजित हो उठी। लल्लू का हाथ उसके पेट से लेकर कमर और पीठ तक फिर रहा था, उसकी कोमल त्वचा का एहसास उसे अपार आनंद दे रहा था। नंदिनी के बदन में एक सिहरन दौड़ रही थी, और वो अपने भाई के स्पर्श से खुद को रोक नहीं पा रही थी।
कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए, और हल्की-हल्की सांसों के साथ वे एक-दूसरे की आंखों में देखने लगे। लल्लू ने फुसफुसाते हुए कहा, "आह दीदी, तुम्हारे होंठ कितने स्वादिष्ट हैं।" नंदिनी ने घबराते हुए अपनी सांसें संभालते हुए कहा, "चुप कर, मां सुन लेंगी।" लेकिन उसकी आवाज में उत्तेजना साफ झलक रही थी। लल्लू का हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, और वो धीरे-धीरे उसे सहलाता रहा, मानो उसकी हर हरकत से नंदिनी को और गर्म करता हो।
नंदिनी का मन द्वंद्व में था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—लल्लू का स्पर्श, उसकी नंगी छाती, और उनके बीच की निषिद्ध लालसा—लेकिन दूसरी ओर उसे डर था कि लता उन्हें पकड़ लेगी। फिर भी, वो अपने भाई के करीब आने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और अपने हाथ को और ऊपर ले गया, नंदिनी के सूट के नीचे से उसकी चूचियों के पास पहुंचने की कोशिश की। नंदिनी ने हल्का सा विरोध किया, "लल्लू, रुक जा, अगर मां..." लेकिन उसकी आवाज में दृढ़ता नहीं थी, और लल्लू ने उसका विरोध नजरअंदाज कर दिया।
वह नंदिनी के सूट को और ऊपर खिसकाया और अपनी उंगलियों से उसकी चूचियों को हल्के से छुआ। नंदिनी की सांसें और तेज हो गईं, और उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। लल्लू ने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे नंदिनी की चूचियों पर फिराया, जो ब्रा के अंदर से भी साफ महसूस हो रही थीं। "आह दीदी, तुम्हारा बदन कितना नरम है," लल्लू ने फुसफुसाया, और उसकी आवाज में एक भूख थी। नंदिनी का मन अब पूरी तरह वासना के हवाले हो चुका था। उसने लल्लू के कंधों को पकड़ा और उसे अपने और करीब खींच लिया, मानो वो अब इस पल को पूरी तरह जीना चाहती हो। लल्लू ने इसका फायदा उठाया और नंदिनी के सूट को पकड़ कर उतार दिया,
नंदिनी: धत्त ये क्या किया।
नंदिनी इतना बोल पाई कि लल्लू ने फिर से उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और चूसने लगा, नंदिनी की उत्तेजना भी कम नहीं थी वो भी अपने भाई का तुरंत ही साथ देने लगी उसे बाहों में भरते हुए,
दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के होंठों का रस पीने लगे, लेकिन तभी बाहर से लता की आवाज आई, "लल्ला, नंदिनी, क्या कर रहे हो दोनों और कपड़े हो तो धुलने वाले तो दो जल्दी!" दोनों एक पल के लिए सन्न रह गए। नंदिनी ने तुरंत अपने सूट को उठाया और पहन लिया और चेहरा संभाला, जबकि लल्लू ने जल्दी से अपने पजामे को ठीक किया और अपने कड़क लंड को नीचे की ओर दबाया। नंदिनी ने फुसफुसाया, "जल्दी कर, मां को शक न हो," और दोनों ने हड़बड़ी में कमरे से बाहर निकलकर आंगन में आ गए। लता ने उन्हें देखा और बोली कपड़े नहीं है तो दोनों ने ना में सिर हिला दिया, लता ने कुछ नहीं कहा और कपड़े धोने लगी लेकिन उसकी नजरों में एक हल्की शंका थी, जो शायद उसकी छठी इंद्रिय थी।
इस बीच, नंदिनी और लल्लू की आंखें बार-बार मिल रही थीं, और दोनों के चेहरों पर एक गुप्त मुस्कान थी। लता ने कपड़े धोते हुए कहा, "क्या हो गया तुम दोनों को, चेहरा लाल क्यों है?" नंदिनी ने हंसते हुए कहा, "कुछ नहीं मां, बस थोड़ी गर्मी लग रही है।" लल्लू ने भी हामी भरी, लेकिन उसके मन में नंदिनी के स्पर्श का आनंद और अगले मौके की उम्मीद जिंदा थी। लता ने शक की नजर से दोनों को देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा और काम में लग गई।
दोपहर ढल चुकी थी, और रानी जहां नीलम के साथ नदी किनारे थी, वहीं घर पर सिर्फ रत्ना और भूरा मौजूद थे। राजू खेत पर काम कर रहा था। रत्ना अपने विचारों में डूबी थी, केला बाबा की बातें—आत्मा की अधूरी इच्छाएं—उसके दिमाग में गूंज रही थीं। वो चूल्हे पर दूध चढ़ाकर उसके सामने बैठी थी, आग की लपटें उसके चेहरे पर उजाला डाल रही थीं। उधर, भूरा आंगन में नल के बगल में नहा रहा था, पानी की धार उसके बदन पर बह रही थी। रत्ना को अपनी सुध नहीं थी; उसका ध्यान सपनों और प्यारेलाल की मौत से जुड़े रहस्यों में उलझा हुआ था।
इसी बीच भूरा की नजर रत्ना पर पड़ी, और वो चौंक गया। रत्ना की साड़ी का पल्लू लकड़ियों के साथ चूल्हे में चला गया था, और आग ने उसे जकड़ लिया था।
भूरा चीखा, "मां!" इस आवाज से रत्ना को होश आया। उसने साड़ी को देखा और डर से चिल्लाने लगी। भूरा ने फुर्ती दिखाई और पास में रखी पानी की बाल्टी लेकर उसकी ओर दौड़ा। रत्ना घबराहट में साड़ी खोलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका पैर फंस गया, और वो गिर पड़ी। उसकी साड़ी और जलने लगी, लेकिन भूरा ने तुरंत बाल्टी का पानी उस पर उड़ेल दिया। लपटें शांत हो गईं, लेकिन रत्ना का पूरा बदन भीग गया।
भूरा ने बाल्टी एक ओर रखी और अपनी मां को उठाया। रत्ना की आंखों से आंसू बह रहे थे, उसका पल्लू पूरी तरह जल चुका था। भूरा ने उसे शांत करने की कोशिश की, "मां, चुप हो जाओ, अब सब ठीक है।" रत्ना बुरी तरह घबराई हुई थी और भूरा के गले से चिपक गई। भूरा ने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा, "मां, सब ठीक है, कुछ नहीं हुआ। रोना बंद करो और शांत हो जाओ। चलो, दूसरे कपड़े पहन लो, ये भीग गए हैं और साड़ी भी जल गई है।"
रत्ना थोड़ा शांत हुई और भूरा से अलग हो गई। भूरा ने चूल्हे से दूध उतारा और एक ओर रख दिया। उसने कहा, "मां, ये साड़ी उतार दो, भीग गई है और जल भी गई है। दूसरी पहन लो।" रत्ना ने धीरे-धीरे साड़ी उतारी, और उसके बदन पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज रह गया। भूरा ने उसे कमरे के अंदर ले जाया और बोला, "लो मां, तुम अब कपड़े पहन लो। मैं तब तक नहा लेता हूं, देखो पूरा भीग गया हूं। ज्यादा सोचो मत।"
रत्ना के दिमाग में बाबा की बातें और अभी का हादसा एक साथ जुड़ गए। उसे लग रहा था कि ये सब उसी वजह से हो रहा है—क्या ये उसके सपनों और ससुर की मौत से जुड़ा है? ये सोचकर उसका मन घबराने लगा। रत्ना गीले कपड़ों में खड़े होकर ये सब सोच रही थी।
भूरा जाने को हुआ, लेकिन रत्ना ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली, "लल्ला, मुझे घबराहट हो रही है, अभी मत जा।" भूरा ने समझाया, "वो तो ठीक है मां, पर अभी तुम्हें बुखार हुआ था। अगर गीले कपड़े पहने रहोगी तो फिर से हो जाएगा।" रत्ना ने कहा, "वो मैं बदल लूंगी, तू बस यहीं रह।" भूरा ने हामी भरी, "ठीक है, मैं नहीं जा रहा, यहीं हूं। तुम परेशान मत हो।"
भूरा वहीं खड़ा हो गया। रत्ना ने दरवाजा बंद किया और धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी। भूरा ये देखकर हैरान रह गया। पहले तो उसके मन में सिर्फ चिंता थी, लेकिन अब वासना के भाव लौटने लगे। रत्ना के हाथ धीरे-धीरे हुक खोलते गए, और एक-एक करके सारे हुक खुल गए। भूरा अपनी सांसें रोककर अपनी मां की ओर देख रहा था। रत्ना ने अपने ब्लाउज के पाटों को पकड़ा और बोली, "लल्ला, उधर घूम जा।" भूरा ने वैसे ही किया, लेकिन उसका ध्यान मां से हट नहीं रहा था। वो सोच रहा था कि उसके पीछे मां नंगी हो रही है, और ये ख्याल उसके लंड को कच्छे में तनाव देने लगा।
इसी बीच रत्ना की एक हल्की चीख निकली। भूरा ने तुरंत मुड़कर देखा और सामने का नजारा देखकर वहीं जम गया। रत्ना के हाथ से सूखा पेटीकोट छूटकर नीचे गिर गया था, और वो अपने बेटे के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां, मखमली सपाट पेट, गोल गहरी नाभी, और हल्के बालों से सजी चूत—सब भूरा के सामने था। भूरा का लंड बिल्कुल अकड़ गया, अपनी मां को इस तरह देखकर। वहीं रत्ना भी सुन्न पड़ गई। शर्म के मारे उसे जमीन में धंसने का मन हो रहा था। उसका पेटीकोट नीचे पड़ा था, लेकिन उसका बदन मानो जड़ हो गया। कुछ पल कमरे में सन्नाटा रहा। रत्ना की आंखें शर्म से नीचे थीं, जबकि भूरा की नजरें उसके बदन पर टिकी थीं।
रत्ना ने धीरे से आंखें उठाई, और पहली नजर उसकी भूरा के कच्छे पर पड़ी, जहां तंबू बना हुआ था। भूरा के कच्छे में तनाव देखकर रत्ना का दिमाग तेजी से चलने लगा। उसे अपने सपने याद आए—कैसे उसके बेटे और उनके दोस्त उसे चोद रहे थे। कहीं ये उसी सपने से जुड़ा तो नहीं है? इधर भूरा ने अपनी मां के शर्म और घबराहट भरे चेहरे को देखा, और वासना को भूलकर आगे बढ़ा। उसने झुककर पेटीकोट उठाया और रत्ना के हाथ में थमा दिया, फिर बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया।
हाथ में पेटीकोट पाकर रत्ना को थोड़ा होश आया। उसने फुर्ती दिखाते हुए पेटीकोट पहना और जल्दी से ब्लाउज भी पहन लिया। फिर साड़ी उठाकर कमरे से बाहर निकल गई; वो ज्यादा देर अकेले नहीं रहना चाहती थी। बाहर आकर उसने देखा कि भूरा पटिया पर नहीं था। वो सोचने लगी, "ये गीला होकर कहां चला गया?" वो आगे बढ़ी और भैंसों के बंधने वाली जगह की ओर देखने लगी। उसे हल्की-हल्की आवाजें सुनाई दीं। रत्ना आगे बढ़ी और भूसा की बोरियों के पीछे चारे के ढेर पर भूरा को बैठा देखा।
रत्ना कुछ बोलने से पहले ही उसकी नजर भूरा पर पड़ी, जो कुछ कर रहा था। भूरा का कच्छा घुटनों पर था, और वो एक हाथ से अपने लंड को थामे अपनी मां के नंगे बदन को याद करते हुए हाथ को लंड पर चला रहा था। उसके मुंह से बहुत हल्की-हल्की "मां-मां" की आहें निकल रही थीं। रत्ना का मुंह सूख गया। उसकी नजरें भूरा के लंड पर टिक गईं। इसी बीच भूरा ने एक गहरी सांस ली, और उसके लंड से एक पिचकारी निकली, जो रत्ना के पास गिरी। रत्ना तुरंत चौंककर पीछे हटी और कमरे में भाग गई, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
शाम हो चुकी थी, और शहर से लोग लौट आए थे। राजेश, छोटू और सुभाष के आने से उनके घर में चहल-पहल हो गई थी। दोनों शहर के किस्से बड़े चाव से सुना रहे थे—मंडी की भीड़, शहर की चकाचौंध, और नई चीजें। नीलम बार-बार अपनी मां और ताई को देख रही थी, और सोच रही थी कि देखो, दोनों कितनी संस्कारी लग रही हैं। इन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता कि ये उस तरह के काम में भी लिप्त होंगी।
सत्तू घर आकर थककर सो गया था, लेकिन झुमरी के मन में राजेश नाम की परेशानी घूम रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। राजेश का व्यवहार और उसकी बातें—कल शाम की गोदाम की घटना का उल्लेख—उसके दिमाग में अटका हुआ था। वो सोच रही थी कि आगे क्या होगा, और उसका मन घबराहट से भर गया था।
जारी रहेगी।
किवाड़ों को ज्यों का त्यों ढंककर नीलम आगे बढ़ गई। अभी जो उसने देखा, वो उसके दिमाग को हिला रहा था। उसकी मां सुधा और ताई पुष्पा—दोनों बिल्कुल नंगी, एक-दूसरे के बदन से खेलते हुए—ये दृश्य उसकी आंखों के सामने से हट नहीं रहा था। उसने उनकी बातें तो नहीं सुनी थीं, लेकिन वो नजारा ही काफी था। रजनी आज घर पर नहीं थी, इसलिए नीलम तुरंत वापस घर आई थी और इस अनपेक्षित दृश्य को देखकर अंदर तक हिल गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे या कहां जाए। चलते-चलते वो गांव के बाहर नदी की ओर पहुंची और किनारे पर बैठ गई।
नदी की लहरों को देखते हुए नीलम अपने विचारों में डूब गई। उसे गुस्सा होना चाहिए था अपनी मां और ताई पर, जो इस पाप में लिप्त थीं, लेकिन गुस्सा नहीं आ रहा था। उसके अंदर एक अजीब सा अहसास था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी। उसके बदन में एक गर्मी का एहसास हो रहा था, और वो किसी से इस बारे में बात करना चाहती थी, लेकिन किससे? उसकी इकलौती सहेली नंदिनी से उसका झगड़ा हो रखा था। वो नंदिनी के बारे में सोचने लगी—उसने उससे झगड़ा क्यों किया? क्या इसी वजह से उसकी मां और ताई ये सब कर रही थीं? तो फिर नंदिनी गलत कैसे हुई? इसी बीच उसे अपने कंधे पर एक हाथ का स्पर्श हुआ। उसने नजर उठाई, और सामने रानी थी—भूरा और राजू की बड़ी बहन।
नीलम ने चौंककर कहा, "अरे रानी जीजी?" रानी ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "अरे तू यहां अकेली बैठकर क्या कर रही है?" नीलम ने झेंपते हुए जवाब दिया, "कुछ नहीं जीजी, खाली थी तो मन हुआ नदी किनारे बैठने का।" रानी उसके बगल में बैठते हुए बोली, "तू हमेशा से ही ऐसी रही है—अकेली, चुपचाप सी।" नीलम ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा, "वो तो बस ऐसे ही जीजी।"
रानी ने बात को आगे बढ़ाया, "और मुझे पता है, तेरा और तेरी सहेली का झगड़ा हो गया है, उससे भी बोलचाल बंद है।" नीलम ने सहमति में सिर हिलाया, "हां जीजी, बस वो तो ऐसे ही।" रानी ने उसे समझाते हुए कहा, "अरे पागल, ये सब झगड़ा-वगैरा छोड़। प्यार से रहो आपस में, क्योंकि ये दिन ही याद आएंगे। अभी कुछ दिन बाद तुम दोनों ब्याह कर चली जाओगी, फिर सोचोगी कि काश झगड़े में समय न बिताना था।" नीलम रानी की बात सुनकर सोच में पड़ गई।
नीलम ने कहा, "ये तो है जीजी, लेकिन क्या करूं, वो मुझसे बिल्कुल उलट है। जो मैं करती हूं, वो उसका बिल्कुल उलटा करती है, इसलिए झगड़ा हो जाता है।" रानी हंसी, "अरे पागल, तुझसे अलग है तो ही तो दोस्ती है। सोच, बिल्कुल तेरे जैसी होती तो मजा आता अपनी छाया से दोस्ती करने में?" नीलम हंसने लगी और बोली, "नहीं जीजी, बिल्कुल भी नहीं।" रानी ने कहा, "वही तो। वैसे भी सच कहूं, ब्याह के बाद ये दिन ही याद आते हैं। ससुराल की जिम्मेदारी और दुनियादारी में फिर अपने लिए सोचने का समय नहीं मिलता।"
नीलम ने मज़ाकिया लहजे में पूछा, "अच्छा, आपको भी समय नहीं मिलता क्या जीजी?" रानी ने हंसते हुए जवाब दिया, "समय, सांस लेने की फुर्सत भी नहीं मिलती।" नीलम ने छेड़ते हुए कहा, "अच्छा, क्यों? जीजाजी छोड़ते नहीं क्या?" रानी हंसी, "धत्त, तू भी नंदिनी जैसी हो गई है उसके साथ रहकर। वैसे अच्छा है, ऐसी मज़ाक करती हुई अच्छी लगती है तू।" नीलम ने उत्सुकता से पूछा, "वैसे जीजी, बताओ ना, क्या-क्या करते हैं जीजाजी पूरी रात?" रानी ने शरारत से कहा, "धत्त, तुझ पर नंदिनी का असर बहुत हो गया है।"
नीलम ने जिद की, "अरे बढ़ा मन है जीजी जानने का, बताओ न।" रानी ने कहा, "अच्छा, सच में मन है? सुन पाएगी तू?" नीलम ने हामी भरी, "क्यों सुनने में क्या है?" रानी ने शर्त रखी, "शर्माएगी तो नहीं?" नीलम बोली, "नहीं शर्माऊंगी, अब बताओ ना।" रानी ने कहा, "अच्छा चल, मैं बताऊंगी, लेकिन मेरी एक शर्त है—जैसा मैं बताऊं, उसी भाषा में मुझसे बात करनी होगी, बिना शर्माए।" नीलम ने सोचा और बोली, "ठीक है जीजी, सुनाओ।"
रानी ने शुरू किया, "तो सुन, रात में क्या-क्या होता है। तेरे जीजा बिस्तर पर मुझे लिटाते हैं, और अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख देते हैं, और अच्छे से चूसते हैं। उसके बाद मेरे ब्लाउज के हुक खोलते हैं और मेरी चूचियों को नंगा करते हैं, उन्हें अपने हाथों में लेकर दबाते हैं, मसलते हैं।" रानी ये कहते हुए खुद अंदर से उत्तेजित होने लगी। अपने संभोग के छुपे पलों को नीलम के साथ बांटने से उसे एक अलग अहसास हो रहा था।
नीलम गरम होती हुई बोली, "अच्छा फिर?" उसकी चूचियां कड़क रही थीं, और वो थूक गटकते हुए आगे बढ़ी, "फिर?" रानी ने कहा, "फिर चूचियों को मसलते हुए वो मेरा पेट और नाभि चाटते हैं, मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसाकर चाटते हैं।" ये कहते हुए रानी की आह निकल गई, और नीलम का गला सूख गया। नीलम ने फिर पूछा, "फिर?" रानी बोली, "फिर वो मेरी चूचियों को मुंह में भरकर जी भर के चूसते हैं, बदल-बदल कर। आह, इतना मज़ा आता है कि बस बताए नहीं बनता।" नीलम ने कहा, "आह अच्छा।"
रानी ने आगे बढ़ाया, "फिर वो मेरे हाथ में अपना वो पकड़ा देते हैं, उसका कड़क अहसास आह..." नीलम ने उत्सुकता से पूछा, "वो? क्या जीजी?" रानी ने सांस लेकर कहा, "उनका कड़क मोटा लंड। उसकी गर्मी आह, लगता है मानो हाथ में कोई गरम सरिया पकड़ लिया हो। उसे छूते ही मेरी टांगों के बीच खुजली बढ़ जाती है, पानी बहने लगता है।" ये सुनते हुए रानी की चूत गीली हो गई, और नीलम अपनी टांगों को घिसकर शांत होने की कोशिश कर रही थी।
रानी ने कहा, "और फिर मैं उस कड़क गर्म लंड को सहलाती हूं, उसे हाथों से पुचकारती हूं, जैसे किसी सफर से पहले घोड़े को या जुताई से पहले बैल को तैयार करते हैं।" नीलम के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, वो बस सुन रही थी। रानी ने जारी रखा, "और फिर वो अपना लंड मेरी चूत के मुहाने पर रखते हैं, जो कब से उनके लंड के लिए तड़पती होती है। उनका लंड महसूस कर तो चूत पानी बहाने लगती है, और फिर एक धक्का लगाकर वो लंड को अंदर घुसा देते हैं।" नीलम ने फुसफुसाते हुए कहा, "आह जीजी।" उसे खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था।
रानी ने नीलम की हालत देखी और समझ गई कि वो भी उत्तेजित है। उसने कहा, "चल, बहुत हो गया, अब और नहीं कह सकती मैं।" नीलम ने सहमति में कहा, "हां जीजी, सच में।" दोनों कुछ पल शांत बैठीं, अपनी उत्तेजना को शांत करने की कोशिश करती रहीं। फिर रानी ने सुझाव दिया, "चल, उधर ईख वाले खेत पर चलें? बहुत दिन हो गए, गन्ने खाएंगे, मस्ती करेंगे।" नीलम ने हामी भरी, "हां चलो जीजी।" दोनों उठकर रानी के पिता के ईख वाले खेत की ओर बढ़ गईं, जो नदी के पास ही था।
दूसरी ओर, नीलम की सहेली नंदिनी भी पीछे नहीं थी। मगन खेत पर निकल गया था, और लता आंगन में बैठकर कपड़े धो रही थी, जबकि घर के अंदर नंदिनी और लल्लू—दोनों भाई-बहन—अपने उत्तेजित पलों में डूबे हुए थे। उनके होंठ आपस में मिले हुए थे, और दोनों एक-दूसरे के होंठों को प्यास और उत्तेजना से चूस रहे थे। नंदिनी ने सूट-सलवार पहना हुआ था, जिसमें उसकी कमर और चूचियों का आकार हल्का उभर रहा था, वहीं लल्लू के बदन पर सिर्फ पजामा था, ऊपर से नंगा था।
दोनों की उत्तेजना हर पल के साथ बढ़ रही थी। लल्लू के हाथ अपनी बड़ी बहन के बदन पर घूमने लगे। उसने धीरे से नंदिनी के सूट को ऊपर उठाया और अपना हाथ अंदर डालकर उसकी नरम, मखमली पेट को सहलाने लगा। इस स्पर्श से नंदिनी की सांसें तेज हो गईं, और वो और उत्तेजित हो उठी। लल्लू का हाथ उसके पेट से लेकर कमर और पीठ तक फिर रहा था, उसकी कोमल त्वचा का एहसास उसे अपार आनंद दे रहा था। नंदिनी के बदन में एक सिहरन दौड़ रही थी, और वो अपने भाई के स्पर्श से खुद को रोक नहीं पा रही थी।
कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए, और हल्की-हल्की सांसों के साथ वे एक-दूसरे की आंखों में देखने लगे। लल्लू ने फुसफुसाते हुए कहा, "आह दीदी, तुम्हारे होंठ कितने स्वादिष्ट हैं।" नंदिनी ने घबराते हुए अपनी सांसें संभालते हुए कहा, "चुप कर, मां सुन लेंगी।" लेकिन उसकी आवाज में उत्तेजना साफ झलक रही थी। लल्लू का हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, और वो धीरे-धीरे उसे सहलाता रहा, मानो उसकी हर हरकत से नंदिनी को और गर्म करता हो।
नंदिनी का मन द्वंद्व में था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—लल्लू का स्पर्श, उसकी नंगी छाती, और उनके बीच की निषिद्ध लालसा—लेकिन दूसरी ओर उसे डर था कि लता उन्हें पकड़ लेगी। फिर भी, वो अपने भाई के करीब आने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और अपने हाथ को और ऊपर ले गया, नंदिनी के सूट के नीचे से उसकी चूचियों के पास पहुंचने की कोशिश की। नंदिनी ने हल्का सा विरोध किया, "लल्लू, रुक जा, अगर मां..." लेकिन उसकी आवाज में दृढ़ता नहीं थी, और लल्लू ने उसका विरोध नजरअंदाज कर दिया।
वह नंदिनी के सूट को और ऊपर खिसकाया और अपनी उंगलियों से उसकी चूचियों को हल्के से छुआ। नंदिनी की सांसें और तेज हो गईं, और उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। लल्लू ने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे नंदिनी की चूचियों पर फिराया, जो ब्रा के अंदर से भी साफ महसूस हो रही थीं। "आह दीदी, तुम्हारा बदन कितना नरम है," लल्लू ने फुसफुसाया, और उसकी आवाज में एक भूख थी। नंदिनी का मन अब पूरी तरह वासना के हवाले हो चुका था। उसने लल्लू के कंधों को पकड़ा और उसे अपने और करीब खींच लिया, मानो वो अब इस पल को पूरी तरह जीना चाहती हो। लल्लू ने इसका फायदा उठाया और नंदिनी के सूट को पकड़ कर उतार दिया,
नंदिनी: धत्त ये क्या किया।
नंदिनी इतना बोल पाई कि लल्लू ने फिर से उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और चूसने लगा, नंदिनी की उत्तेजना भी कम नहीं थी वो भी अपने भाई का तुरंत ही साथ देने लगी उसे बाहों में भरते हुए,
दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के होंठों का रस पीने लगे, लेकिन तभी बाहर से लता की आवाज आई, "लल्ला, नंदिनी, क्या कर रहे हो दोनों और कपड़े हो तो धुलने वाले तो दो जल्दी!" दोनों एक पल के लिए सन्न रह गए। नंदिनी ने तुरंत अपने सूट को उठाया और पहन लिया और चेहरा संभाला, जबकि लल्लू ने जल्दी से अपने पजामे को ठीक किया और अपने कड़क लंड को नीचे की ओर दबाया। नंदिनी ने फुसफुसाया, "जल्दी कर, मां को शक न हो," और दोनों ने हड़बड़ी में कमरे से बाहर निकलकर आंगन में आ गए। लता ने उन्हें देखा और बोली कपड़े नहीं है तो दोनों ने ना में सिर हिला दिया, लता ने कुछ नहीं कहा और कपड़े धोने लगी लेकिन उसकी नजरों में एक हल्की शंका थी, जो शायद उसकी छठी इंद्रिय थी।
इस बीच, नंदिनी और लल्लू की आंखें बार-बार मिल रही थीं, और दोनों के चेहरों पर एक गुप्त मुस्कान थी। लता ने कपड़े धोते हुए कहा, "क्या हो गया तुम दोनों को, चेहरा लाल क्यों है?" नंदिनी ने हंसते हुए कहा, "कुछ नहीं मां, बस थोड़ी गर्मी लग रही है।" लल्लू ने भी हामी भरी, लेकिन उसके मन में नंदिनी के स्पर्श का आनंद और अगले मौके की उम्मीद जिंदा थी। लता ने शक की नजर से दोनों को देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा और काम में लग गई।
दोपहर ढल चुकी थी, और रानी जहां नीलम के साथ नदी किनारे थी, वहीं घर पर सिर्फ रत्ना और भूरा मौजूद थे। राजू खेत पर काम कर रहा था। रत्ना अपने विचारों में डूबी थी, केला बाबा की बातें—आत्मा की अधूरी इच्छाएं—उसके दिमाग में गूंज रही थीं। वो चूल्हे पर दूध चढ़ाकर उसके सामने बैठी थी, आग की लपटें उसके चेहरे पर उजाला डाल रही थीं। उधर, भूरा आंगन में नल के बगल में नहा रहा था, पानी की धार उसके बदन पर बह रही थी। रत्ना को अपनी सुध नहीं थी; उसका ध्यान सपनों और प्यारेलाल की मौत से जुड़े रहस्यों में उलझा हुआ था।
इसी बीच भूरा की नजर रत्ना पर पड़ी, और वो चौंक गया। रत्ना की साड़ी का पल्लू लकड़ियों के साथ चूल्हे में चला गया था, और आग ने उसे जकड़ लिया था।
भूरा चीखा, "मां!" इस आवाज से रत्ना को होश आया। उसने साड़ी को देखा और डर से चिल्लाने लगी। भूरा ने फुर्ती दिखाई और पास में रखी पानी की बाल्टी लेकर उसकी ओर दौड़ा। रत्ना घबराहट में साड़ी खोलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका पैर फंस गया, और वो गिर पड़ी। उसकी साड़ी और जलने लगी, लेकिन भूरा ने तुरंत बाल्टी का पानी उस पर उड़ेल दिया। लपटें शांत हो गईं, लेकिन रत्ना का पूरा बदन भीग गया।
भूरा ने बाल्टी एक ओर रखी और अपनी मां को उठाया। रत्ना की आंखों से आंसू बह रहे थे, उसका पल्लू पूरी तरह जल चुका था। भूरा ने उसे शांत करने की कोशिश की, "मां, चुप हो जाओ, अब सब ठीक है।" रत्ना बुरी तरह घबराई हुई थी और भूरा के गले से चिपक गई। भूरा ने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा, "मां, सब ठीक है, कुछ नहीं हुआ। रोना बंद करो और शांत हो जाओ। चलो, दूसरे कपड़े पहन लो, ये भीग गए हैं और साड़ी भी जल गई है।"
रत्ना थोड़ा शांत हुई और भूरा से अलग हो गई। भूरा ने चूल्हे से दूध उतारा और एक ओर रख दिया। उसने कहा, "मां, ये साड़ी उतार दो, भीग गई है और जल भी गई है। दूसरी पहन लो।" रत्ना ने धीरे-धीरे साड़ी उतारी, और उसके बदन पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज रह गया। भूरा ने उसे कमरे के अंदर ले जाया और बोला, "लो मां, तुम अब कपड़े पहन लो। मैं तब तक नहा लेता हूं, देखो पूरा भीग गया हूं। ज्यादा सोचो मत।"
रत्ना के दिमाग में बाबा की बातें और अभी का हादसा एक साथ जुड़ गए। उसे लग रहा था कि ये सब उसी वजह से हो रहा है—क्या ये उसके सपनों और ससुर की मौत से जुड़ा है? ये सोचकर उसका मन घबराने लगा। रत्ना गीले कपड़ों में खड़े होकर ये सब सोच रही थी।
भूरा जाने को हुआ, लेकिन रत्ना ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली, "लल्ला, मुझे घबराहट हो रही है, अभी मत जा।" भूरा ने समझाया, "वो तो ठीक है मां, पर अभी तुम्हें बुखार हुआ था। अगर गीले कपड़े पहने रहोगी तो फिर से हो जाएगा।" रत्ना ने कहा, "वो मैं बदल लूंगी, तू बस यहीं रह।" भूरा ने हामी भरी, "ठीक है, मैं नहीं जा रहा, यहीं हूं। तुम परेशान मत हो।"
भूरा वहीं खड़ा हो गया। रत्ना ने दरवाजा बंद किया और धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी। भूरा ये देखकर हैरान रह गया। पहले तो उसके मन में सिर्फ चिंता थी, लेकिन अब वासना के भाव लौटने लगे। रत्ना के हाथ धीरे-धीरे हुक खोलते गए, और एक-एक करके सारे हुक खुल गए। भूरा अपनी सांसें रोककर अपनी मां की ओर देख रहा था। रत्ना ने अपने ब्लाउज के पाटों को पकड़ा और बोली, "लल्ला, उधर घूम जा।" भूरा ने वैसे ही किया, लेकिन उसका ध्यान मां से हट नहीं रहा था। वो सोच रहा था कि उसके पीछे मां नंगी हो रही है, और ये ख्याल उसके लंड को कच्छे में तनाव देने लगा।
इसी बीच रत्ना की एक हल्की चीख निकली। भूरा ने तुरंत मुड़कर देखा और सामने का नजारा देखकर वहीं जम गया। रत्ना के हाथ से सूखा पेटीकोट छूटकर नीचे गिर गया था, और वो अपने बेटे के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां, मखमली सपाट पेट, गोल गहरी नाभी, और हल्के बालों से सजी चूत—सब भूरा के सामने था। भूरा का लंड बिल्कुल अकड़ गया, अपनी मां को इस तरह देखकर। वहीं रत्ना भी सुन्न पड़ गई। शर्म के मारे उसे जमीन में धंसने का मन हो रहा था। उसका पेटीकोट नीचे पड़ा था, लेकिन उसका बदन मानो जड़ हो गया। कुछ पल कमरे में सन्नाटा रहा। रत्ना की आंखें शर्म से नीचे थीं, जबकि भूरा की नजरें उसके बदन पर टिकी थीं।
रत्ना ने धीरे से आंखें उठाई, और पहली नजर उसकी भूरा के कच्छे पर पड़ी, जहां तंबू बना हुआ था। भूरा के कच्छे में तनाव देखकर रत्ना का दिमाग तेजी से चलने लगा। उसे अपने सपने याद आए—कैसे उसके बेटे और उनके दोस्त उसे चोद रहे थे। कहीं ये उसी सपने से जुड़ा तो नहीं है? इधर भूरा ने अपनी मां के शर्म और घबराहट भरे चेहरे को देखा, और वासना को भूलकर आगे बढ़ा। उसने झुककर पेटीकोट उठाया और रत्ना के हाथ में थमा दिया, फिर बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया।
हाथ में पेटीकोट पाकर रत्ना को थोड़ा होश आया। उसने फुर्ती दिखाते हुए पेटीकोट पहना और जल्दी से ब्लाउज भी पहन लिया। फिर साड़ी उठाकर कमरे से बाहर निकल गई; वो ज्यादा देर अकेले नहीं रहना चाहती थी। बाहर आकर उसने देखा कि भूरा पटिया पर नहीं था। वो सोचने लगी, "ये गीला होकर कहां चला गया?" वो आगे बढ़ी और भैंसों के बंधने वाली जगह की ओर देखने लगी। उसे हल्की-हल्की आवाजें सुनाई दीं। रत्ना आगे बढ़ी और भूसा की बोरियों के पीछे चारे के ढेर पर भूरा को बैठा देखा।
रत्ना कुछ बोलने से पहले ही उसकी नजर भूरा पर पड़ी, जो कुछ कर रहा था। भूरा का कच्छा घुटनों पर था, और वो एक हाथ से अपने लंड को थामे अपनी मां के नंगे बदन को याद करते हुए हाथ को लंड पर चला रहा था। उसके मुंह से बहुत हल्की-हल्की "मां-मां" की आहें निकल रही थीं। रत्ना का मुंह सूख गया। उसकी नजरें भूरा के लंड पर टिक गईं। इसी बीच भूरा ने एक गहरी सांस ली, और उसके लंड से एक पिचकारी निकली, जो रत्ना के पास गिरी। रत्ना तुरंत चौंककर पीछे हटी और कमरे में भाग गई, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
शाम हो चुकी थी, और शहर से लोग लौट आए थे। राजेश, छोटू और सुभाष के आने से उनके घर में चहल-पहल हो गई थी। दोनों शहर के किस्से बड़े चाव से सुना रहे थे—मंडी की भीड़, शहर की चकाचौंध, और नई चीजें। नीलम बार-बार अपनी मां और ताई को देख रही थी, और सोच रही थी कि देखो, दोनों कितनी संस्कारी लग रही हैं। इन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता कि ये उस तरह के काम में भी लिप्त होंगी।
सत्तू घर आकर थककर सो गया था, लेकिन झुमरी के मन में राजेश नाम की परेशानी घूम रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। राजेश का व्यवहार और उसकी बातें—कल शाम की गोदाम की घटना का उल्लेख—उसके दिमाग में अटका हुआ था। वो सोच रही थी कि आगे क्या होगा, और उसका मन घबराहट से भर गया था।
जारी रहेगी।