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Search results

  1. vyabhichari

    Incest रिश्तों का कामुक संगम

    परिचय आज साल का आखरी दिन था यानी 31 दिसंबर। हालांकि राघोपुर गांव था, पर पटना से बस 35 कि. मी. दूर था। गांव के बूढ़े तो सो चुके थे, पर कुछ नौ जवान गांव की चौपाल पर पटाखे चलाने के लिए इकट्ठे हुए थे। अभी रात के 12 बजने में समय था, तो सब आपस मे बाते कर रहे थे। सबलोग हंसी मजाक कर रहे थे। उनमें से एक...
  2. vyabhichari

    लेत लेत तोहर लंडवा, बूर हो जाई भोंसरवा ( बेटा माई)

    दम धरअ ए बबुआ, केतना पेलवा आपन माई, धके सुतल बाड़ सांझी से भोरे तक ओढ़ेके रजाई, आवात बड़ि ज़ोर से परेसर, जाई द ना मूते, फेन चलि आइब, हम तोहरा संगे लंगटे सूते, निकल जाई मूत ऐजे, निकल जाई मूत ऐजे देखा ना बाहर बेटवा, हो गइले बड़ इजोरवा, लेते लेत तोर लंडवा, बुर हो जाई भोंसरवा, जोशमें खो जाला होश, देखावे...
  3. vyabhichari

    Incest क्योंकि.......ये गलत नहीं

    ये कहानी है ममता , कविता और जय की। जैसा कि आपलोग प्रीफिक्स से समझ गए होंगे कि ये एक इन्सेस्ट कहानी है। इसमें ये तीन मुख्य पात्र हैं । ममता- उम्र 46 साल । ममता का बदन काफी भर हुआ है। वो जवानी के किनारे को छोड़ चुकी है पर जवानी उसके बदन को नहीं छोड़ सकी थी। ममता के बाल एकदम गहरे काले घने हैं जो कि...
  4. vyabhichari

    हर घर में होता है व्यभिचार!!!

    हर घर में व्यभिचार पनपता है। औरत और मर्द दोनों का रिश्ता ही ऐसा है कि, दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते जाते हैं। विज्ञान इसे अपनी भाषा में हार्मोन्स का रिसाव कहता है। टेस्टोस्टेरोन एवं एस्ट्रोजन का खेल। जब इनका रिसाव होता है तो दोनों मर्द और अविरत एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं,अब...
  5. vyabhichari

    सैयां के भेजके परदेस, पेले हमके ससुरवा

    सारा रात चोदेले हमके,कसके हमार बुरवा, सैयां के भेजके परदेश, पेले हमके ससुरवा, कइसे बताई, लागअता लाज बड़ हमके, कुदअतानी कारी लांड़ पर ओकर जमके, जब बुरवा चुनचुनातिया खद खद, का करि, ससुर बन जावेले हमार मरद, पेन्हे ना देताअ, हमरा कोनो कपड़वा, सैयां के भेजके परदेश, पेले हमके ससुरवा रोज़ राति सुतेले...
  6. vyabhichari

    भैया बने सैंया

    जवानी का तन पर चढे खुमार, खिलने लगे हैं मेरे बड़े उभार, फ्रॉक, टेप औ स्कर्ट की गयी उमर, अब घाघरा चोली संग होगा समर। बढ़ती जा रही है मेरी चुच्ची, बात है ये बिल्कुल सच्ची- मुच्ची, गाँड़ समाती नहीं अब कच्छी में, बुर छुपती, घुंघराये केसों की गुच्छी में। रिसती रहती है जो बुर से लार, ऐसे में करती उंगली...
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