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Incest अम्मी vs मेरी फैंटेसी दुनिया

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DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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कहानी का नया अपडेट 33
पेज नं 138 पर पोस्ट कर दिया गया है
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Rajizexy

❣️and let ❣️
Supreme
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UPDATE 001

सफर

इंदौर जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर मैं एक टी स्टाल के पास खड़ा होकर , सफर के लिए स्नैक्स पानी बोतल वगैरह ले रहा था , इंदौर - पटना एक्सप्रेस अभी कुछ मिंट लेट थी ।
अक्सर मेरे साथ ये अनुभव रहा है कि जब भी कही जाने की जल्दी हो तो सवारी कही न कही खुद लेट हो ही जाती है और वो महज कुछ मिंट की देरी से लगता है कि अब समय से सारा सोचा हुआ काम होगा ही नही ।

तभी सामने से इंदौर - पटना एक्सप्रेस तेजी से हॉर्न बजाती हुई अपनी जगह पर रुकती है और मैं अपना एक पिट्ठू बैग लेकर 3Ac के एक कोच के चढ़ जाता हूं।

चढ़ते उतरते यात्रियों की भीड़ से गुजर कर अपनी सीट खोजता हुआ मैं आगे बढ़ रहा था , दोपहर के 2 बज रहे थे और ट्रेन निकल पड़ी थी ।
हल्के झटके से मैं संभलता हुआ अपना बैग वही किनारे रख कर एक महिला जो मेरे सीट पर लेटी हुई उनको खड़े खड़े आवाज देने लगा ।
आस पास के लोग भी उन्हें आवाज देने लगे , उस केबिन शायद उस वक्त तक कोई और महिला नही थी ।
स्वस्थ तदुरुस्त बदन की मालकिन दिख रही थी , पटियाला सलवार और सूट में अपने ऊपर लंबा चौड़ा काटन का दुपट्टा चढ़ाए गहरी नींद में थी वो ।
कूल्हे पर हुई सलवार में उसके मोटे विशालकाय मटके जैसे चूतड बहुत ही कामुक नजर आ रहे थे , और उन उन्नत फैले हुए नितंब को देख कर पल भर के लिए मुझे किसी की याद आई , मगर सोती हुई निर्दोष महिला के अंग निहारने से मेरे भीतर का पौरुष मुझे धिक्कारने लगा ।

मैंने नजरें फेर ली और बड़े असहज भाव से कुछ पल उनके उठने की राह निहारी , आस पास बड़ी बेबसी से जबरन होठों पर मुस्कुराहट लाकर बाकी बैठे हुए लोगो की देखा मगर शायद उन्हें भी इस चीज के लिए फर्क नहीं पड़ रहा था , शायद वो पहले भी काफी बार से उस महिला को उठाना चाह रहे थे ।

तभी उन भले लोगो में से एक ने घिसक कर मुझे खिड़की से लगी हुई किनारे की ओर सीट में जगह देदी ।
बड़ी मुश्किल से अपने कूल्हे पिचकाकर मैं वहा बैठ पा रहा था , कुछ ही मिनट बीते होंगे कि मेरी ही बेल्ट अब बगल से कुछ कमर में तो कुछ पेट में चुभने लगी थी ।
मुझे ये सफर एक झंझट सा महसूस हो रहा था , मगही टिकट और सीट भी कन्फर्म थी मगर ऐसे सफर करना पड़ रहा था ।
थोड़ा खुद को सही करता बेल्ट ढीला का बोगी की लोहे की दीवाल में सर टिका दिया , तिरछी नजर कर शीशे से बाहर निहार रहा था जल्द ही मेरी पुतलियां भी तंग होने लगी और मैंने नजरें सामने की अह्ह्ह्ह्ह गजब की ठंडक आ रही थी ,
उस महिला के दुपट्टे के नीचे से हल्की सी उसके नूरानी घाटियों की झलक सी मिली और थोड़ा सा गर्दन सेट किया तो एक लंबी गहरी दरार
आस पास नजर घुमा कर देखा तो सब बातो में लगे थे तो कोई झपकियां ले रहा था ,
मेरी नजर रह रह कर उस महिला के सूट में लोटी हुई छातियों के दरखतों के जा रही थी, कभी खुद को धिक्कारता तो कभी लालच हावी होने लगता और जैसे पल भर को आंखे मूंदता तो एक कामकल्पना से परिपूर्ण दृश्य मेरी आंखो में भर सा जाता , जहा कई कहानीयां उभर आती थी मन में ।
बार बार चीजे मन में घूमने से मेरे पेंट में कसावट सी होने लगी , जिसे छिपाने के लिए मुझे अपनी बैग का सहारा लेना पड़ा ।

कुछ देर बाद एक आदमी अगले स्टेशन पर उतर गया और मुझे भी आराम से बैठने का मौका मिला । मगर जैसे ही तन को सुख हुआ मन अपनी मनमानीयों पर उतर आया ।

अब मेरी नजर उस महिला को भरपूर नजर से निहारने लगी थी , बैग अभी भी मेरे जांघो पर थी । नीचे पेंट में तम्बू का साइज बढ़ने लगा था ।
ऐसा ही सूट सलवार कोई पहनता है जिसे मैं बचपन से देखता आ रहा हूं और वो मुझे बहुत अजीज थी ।

मेरी अम्मी ,
अभी कल ही बात लगती है कि मैं जब उनसे लिपट जाया करता था , उनके मखमली पेट पर जब वो लेटी होती थी मैं चढ़ कर अटखेलियां कर लिया करता था , उनके मोटे मोटे खरबूजे जैसे दूध की थैलियों में सर छिपा कर उनका दुलार प्यार जबरन ले लिया करता था ।

गर्मी की दोपहर अक्सर सोते हुए मेरे पैर उनके विशालकाय चूतड पर ही होते थे , अक्सर मोबाइल चलाते हुए मेरे पैर के पंजे उनके मुलायम चूतड को सलवार के ऊपर से आंटे की तरह घंटो गुदते रहते ।

अम्मी - शानू बेटा क्या कर रहा है
मैं - अम्मी मूवी देख रहा हु बस लास्ट सीन है
अम्मी - ओहो पैर हटा ना अपना , क्या कबसे गीज रहा है मुझे
मै अपनी धुन में मस्त था - अम्मी बस 5 मिंट
अम्मी - मैं क्या बोल रही हू और ये क्या सुन रहा है , कुछ नही हो सकता इसका आह्ह् रब्बा पुरा कमर लोहे का कर दिया

अम्मी लड़खड़ाती हुई उठी और गुसलखाने की ओर बढ़ गई , मैने मुस्कुरा कर मोबाइल से नजर हटा कर कमरे से बाहर जाती हुई अम्मी की मोटी थिरकती गाड़ देख कर अपना खड़ा लंड मिस दिया ।

"कितने बजे भैया ,अरे हस क्यूं रहे हो बताओ ना कितने बजे "
मै चौक कर नजर उठा कर देखा तो आस पास की सीट सब खाली थी और वो महिला जो सो रही थी वो सामने खड़ी होकर मुझे ही आवाज दे रही थी - जी ? जी 03.45 हो रहे है ।

वो महिला सुस्त होकर एक बार फिर उस सीट पर बैठ गई ।
दुपट्टे की चादर अभी भी उसके खरबूजे से चूची को अच्छे से ढके हुए थी मगर उनके उभार छिपाने में नाकाम थी ।
महिला - भैया पानी साफ है क्या ?
मै - जी , लीजिए
मैंने ढक्कन खोलकर उसकी और बढ़ाया और एक सास में जितना पी सकी वो पी गई , कुछ छलक कर उसके होठों से होकर ठूढी से टपक कर उसके सीने पर गिरने लगी और दाई ओर से चूचे के ऊपरी भाग पर दुपट्टा और सूट पर थोड़ा सा हिस्सा गिला होकर उसके सीने से चिपक गया , देखने ऐसा लग रहा था मानो दुपट्टे के नीचे उसकी रसदार चूचियां पूरी नंगी ही है ।

उसने मुझे पानी का बोतल दिया - थैंक यू
मैंने मुस्कुरा कर - आप अकेली सफर कर रही है क्या ?
उस महिला ने मुझे अजीब नजरो से देखा और फिर कुछ देर चुप्पी किए रही मुझे लगा शायद उसे मेरा सवाल समझ नही आया या फिर मेरी शक्ल ही ऐसी है ।

कुछ देर बाद वो बोली - मेरी बहन का इंतकाल हो गया था उसी सिलसिले में आई थी अब वापिस जा रही हू , और मेरे शौहर बाहर रहते है ।
उसकी बातें सुन कर मुझे तो बहुत गहरा दुख हुआ , फिर मैंने उसे खाने के लिए पूछा पहले तो उसने मना किया फिर मैंने जब दुबारा से कहा तो वो उसने मेरी टिफिन से एक रोटी ले ली

मै - कैसी है सब्जी , मैने बनाई है ?
वो मुस्कुराई और स्वाद लेती हुई - बनानी आती है क्या ?
मै - हा अम्मी से सीखी है ,
वो - अच्छी है
मै टिफिन आगे कर - और दू
वो ना में सर हिलाती हुई खाना खाने लगी और उसकी निगाहें शीशे से बाहर थी । गुमसुम सी आंखे उसकी बहुत हल्की फुल्की मुस्कान लिए सब देख रही थी ।
[मैंने भी नज़रे बाहर की ओर कर सपाट खेतो की ओर निहारने लगा , मेरी बनाई हुई सब्जी अभी भी मेरे दांतो मे पिस रही थी और मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी

"ओहो , ऐसे नही जला देगा तू हट, हट जा " अम्मी मुझे अपने देह से मुझे धकेलती हुई मेरे हाथो से कलछी और कपड़ा ले लेती है जिससे मैंने कराही पकड़ी थी ।
अम्मी के मुलायम स्पर्श से मैं भीतर से सिहर उठा और वही उनसे लग कर खड़ा होकर उनके देह से आ रही भीनी सी खुश्बु को अपनी सासो में बसा लेना चाह रहा था ।

" अब अगला उबाल आए तो उतार देना "

" अब अगला स्टाफ आए तो बता देना " , उस महिला ने कहा ।
" जी ? जी , ठीक है "

महिला मुझे घूरती हुई - तुम फिर मुस्कुरा रहे हो ?

मै हंसता हुआ - जी ? वो काफी समय बाद घर जा रहा हु तो बस अम्मी की बातें याद आ रही है ।

वो महिला मुस्कुरा कर - बहुत प्यार करते हो न अपनी अम्मी को ?
मै अचरज से - आपको कैसे पता ?

महिला इतराहट भरी मुस्कुराहट से - तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी ही बसी होती है इसीलिए

मै उसकी बात सुनकर ऐसे मुस्कुराता जैसे वो मेरी प्रेमिका के बारे में बोल रही थी ।

महिला - कहा से आ रहे हो ?
मै - जी इंदौर में ही नौकरी है मेरी और लखनऊ जाना है ।

महिला - खास लखनऊ ही ?
मै - जी नहीं , वहा मुख्य शहर से बाहर एक गांव है वही घर है मेरा और आप ?

महिला - मुझे अगले ही स्टेशन पर उतरना है और फिर यह तो तुम अकेले पड़ जाओगे

मै हस कर - आप भी चलिए फिर मेरे साथ
महिला खिलखिलाई - अम्मी से मिलवाने हिहिहिही
मै भी उसकी खिलखिलाई सूरत देख कर हस पड़ा - हा और है ही कौन मेरा ?

वो महिला का चेहरा फीका सा पड़ने लगा - क्यू , अब्बू नही है ?
मै मुस्कुरा कर - है , वो मेरी उनसे खास बनती नही इसीलिए

महिला - और बहन ?
मैंने ना में सर हिला दिया ।

कुछ देर यूं ही हमारी बातें चलती रही और फिर आधे घंटे बाद वो उतर गई , जल्द ही कुछ नए यात्री आ गए मैंने भी इत्मीनान से अपनी सीट लेली और पैर फैला कर कोने से टेक लेकर आंख मूंद लिया ।

मेरे जहन में अब भी उस महिला की बातें चल रही थी और वो लाइन मेरे दिल में बस सी गई थी " तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी बसी होती है "

गाड़ी स्टेशन दर स्टेशन गुजरती रही और भीड़ आती जाती रही , चेहरे बदलते रहे

" अरे अरे भाई साहब देख कर बैग है मेरा " मैने एक आदमी को डांट लगाई हो अपने परिवार के साथ अभी अभी बोगी में चढ़ा था और उसके जूते मेरे बैग पर आ गए थे ।
मैंने झल्लाते हुए बैग ऊपर किया और उसको झाड़ते हुए चैन खोल कर बैग में रखा हुआ वो गिफ्ट का वो बॉक्स देखा जिसकी लाल चमकीली पन्नी देख कर मेरे होठ मुस्कुराने लगे ।
मैंने वापस बैग की चैन बंद कर बैग को अपने गोद में रख कर सीने से लगाए हुए आंख बंद लिया ।

" नही नही नही , इससे बड़ी नही मिलेगी भैया ये ही सबसे बड़ी size मेरे पास "
" भैया आपको जितने पैसे चाहिए लेलो कही से मेरे लिए शेम यही सूट की 4XL साइज देदो" , मैं मिन्नते करते हुए उस दुकानदार से बोला ।

दुकानदार ने अपने किसी स्टाफ कर बाजार की दूसरी गली से वही ड्रेस मेरे पसंद की साइज में मंगवाई और मैंने फाइनल करवा लिया
दुकानदार - देख समझ लो भैया इस साइज की कोई वापसी नहीं लूंगा मैं , आपको यकीन है ना कि जिसको आप देंगे उनकी साइज यही है ?
मै मुस्कुराता हुआ - हा भईया पता है , मेरी ही अम्म..... , अब पैक भी करवा दो ।


" टिकट टिकट , ओह भाईसाहब टिकट दिखाइए"
मैंने टीटी को अपनी टिकट दी और वो आगे बढ़ गया
मेरे मन में एक कड़वाहट सी होने लगी थी अब , ढलती रात में भी कोई न कोई मुझे डिस्टर्ब कर देता था । जिस वजह से मैने एसी की टिकट निकलवाई थी वो सफल नहीं दिख रही थी
मेरी नजर ऊपर के बर्थ पर गई सोचा किसी से बदली कर लू
मगर ऊपर वही आदमी लेटा हुआ मोबाइल चला रहा था जिसको आते ही मैंने फटकार लगा दी थी ।

रात के 10 बजने को हो रहे थे कि मेरी फोन की घंटी बजनी शुरू हुई और स्क्रीन पर अब्बू का नंबर देख कर मेरा मूड और भी उखड़ सा गया - हा हैलो नमस्ते अब्बू
: हम्म्म लो तुम्हारी अम्मी बात करेगी
मै एक पल के चहक उठा मगर अगले ही पल जब अहसास हुआ कि अब्बू भी घर पर है तो मेरा मन मायूस सा हो गया ।
मै - जी नमस्ते अम्मी
: क्या हुआ बेटा , तबियत ठीक है ना तेरी ? ट्रेन मिली ? कुछ खाना पीना किया ?
सवालों पर सवाल, फिकरमंद अम्मी ने मुझपर दागे और उसके लाड में मैं भी मुस्कुरा कर - इतनी फिकर है तो खुद क्यूं नही आती जाती हो अपने बेटे के साथ , हूह

मोबाइल में छाई चुप्पी की वजह मै समझ सकता था अब्बू के कारण अम्मी खुलकर कभी मुझसे अपने दिल की बात नही कहती और न ही ज्यादा लाड प्यार जताती ।
मै उनकी चुप्पी पर उखड़े मन से बोल पड़ा - आप फिकर ना करे , अब्बू से कह दें , मैं ठीक हूं और खाना पीना भी हो गया है सुबह 6 बजे लखनऊ पहुंच जाऊंगा ।

: ठीक है बेटा , रखती हु
मै - जी बाय
अभी फोन कटा नही था और अब्बू को शायद लगा कि कट गया । फोन पर उनकी बड़बड़ाहट और अम्मी पर गुस्सा साफ साफ सुनाई दे रहा था ।

ये सब पहली बार मैं नही सुन रहा था और मैने फोन काट दिया । आंखे भर आई मेरी ।
मेरी डबडबाई आंखे मिडल बर्थ पर लेटी एक चाची ने देख ली और करवट लेकर बोली - क्या हुआ बच्चा , सब ठीक है ना

मै आंख पोछ कर - जी ? जी सब ठीक है ?
चाची - अकेले सफर कर रहे हो क्या बच्चा
मै - जी चाची , घर जा रहा हु
चाची - कुछ खाना पीना किया ?
मै मुस्कुरा कर - आप फिकर ना करें , मैं खाना खा चुका हु । वो बस अम्मी की याद आ गई थी

चाची सीधी होकर लेट गई - सो जा बच्चा , रो कर अपनी अम्मी को तकलीफ मत दे

मै अचरज से - मतलब ?
चाची - अरे वो तेरी अम्मी है , तू उसका ही अंश है तू रोएगा तो उसका भी कलेजा रोएगा बेटा । सो जा

मै उसकी बात सुनकर अपने आशु साफ किए और लेट गया
मेरे दिमाग में उस चाची की बात घूमने लगी कि क्या सच में ऐसा होता होगा कि मैं जैसा महसूस करूंगा वो अम्मी भी करेंगी । अगले ही पल मेरी घटिया सोच मेरे साफ पाक भावनाओं पर हावी हो गई ।

मै मुस्कुरा कर खुद को गाली देते हुए - बीसी तू नहीं सुधरेगा कभी हिहीही

कुछ देर तक लेटे रहने के बाद भी मुझे नीद नही आ रही थी रात गहराती चली गई और ख्याल अम्मी के बातें उनकी यादों से भरता चला गया ।

मै उठा और बैग सही से रख कर बाथरूम की जाने लगा रास्ते में बोगी के हर कपार्टमेंट में कोई न कोई महिला के कपड़े अस्त व्यस्त दिखे ।
मन में तरंगे भी उठनी शुरू हुई और बाथरूम में जाते ही मैंने अपना अकड़ा हुआ लंड निकाल कर पेशाब करने लगा

मोबाइल हाथ में था तो उसको चलाने लगा कि मेरी नजर गैलरी ऐप पर गई
मै पूरी शिद्दत से अपने मन को रोक रहा था मगर मेरे दिमाग पर हवस हावी होने लगा था और मैने गहरी सास लेते हुए hide image से एक तस्वीर बाहर निकाली


वो एक वीडियो कॉल के दौरान ली गई स्क्रीन शॉट थी जिसमे अम्मी पहली बार बिना दुपट्टे के मेरे सामने थी और मैंने झट से वो कैप्चर कर ली थी ।

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तस्वीर में उनके उन्नत और सूट में कसे हुए थन जैसे चूचे देखकर मेरा लंड बौरा उठा और मैं तेजी से अपना लंड सहलाते हुए आंखे बंद कर कभी अम्मी का चेहरा याद करता तो कभी तस्वीर में अम्मी की मोटी मोटी चूचियां निहारता , उनके गुलाबी गाल और लाल लाल कश्मीरी सेब रंग के होठ देख कर मेरे होठ बड़बड़ाने लगे ,मगर ट्रेन के टॉयलेट में एक डर था कि कही कोई मेरी आवाज न सुन ले ।

अम्मी उह्ह्ह्ह मेरी अम्मी आप क्यू नही आ जाती मेरे पास अअह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मैं आपको हमेशा के अपना बना लेना चाहता हुं उह्ह्ह्ह पकड़ो ना मेरा लंड , कब मेरे तपते लंड को अपने इन होठों की मिठास से ठंडा करोगी , कब मेरे होठ तुम्हारे रसीले निप्पल को दुबारा से जूठा करेंगे अअह्ह्ह्ह अम्मी अहह्ह्ह्
मै अब और नही रूकूंगा अअह्ह्ह्ह इस बार तो आपको छू लूंगा , आपके बड़े मुबारक चूतड पर हाथ लगाऊंगा अह्ह्ह्ह्ह अम्मी कितने साल हो गए आपकी नरम नरम गाड़ को छुए , आपके बड़े रसीले खरबूजे जैसे चूची में अपना सर रख कर सोए उह्ह्ह्ह अम्मी मुझे बड़ा नही होना अअह्ह्ह्ह मैं आपका होकर रहना चाहता हु अह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मत दूर करो मुझे उह्ह्ह्ह ओह येस्स उम्मम्म गॉड फक्क्क्क उह्ह्ह्ह अम्मीई अअह्ह्ह्हह

Great-dick-07
और देखते ही देखते मेरी तेज गाढ़ी मलाईदार पिचकारी बाथरूम की दिवालों पर एक के बाद एक छूटती रही और मैं मोबाइल जेब में रख कर अंत तक उसे निचोड़ता रहा ।

फिर आकर अपनी सीट पर सो गया
अगली सुबह तड़के मेरी नीद खुली , कंपार्टमेंट में अजीब गुपचुप तरीके भिनभिनाहट मची हुई थी और कुछ देर में मुझे भनक लगी कि वहा अनजाने में लोग मेरी ही बात कर रहे थे , क्योंकि हिलाने के बाद मैने पानी से कुछ भी साफ नही किया था वैसे ही निकल आया था ।
मुझे हसी भी और खुद को गालियां भी थी मैने की एक जग पानी मार देता तो क्या हो जाता

खैर मैं लखनऊ उतर चुका था मुझे सीतापुर रोड के लिए बस लेनी थी और आगे 15-17km बाद ही हाईवे से लगा मेरा छोटा सा कस्बानूमा गांव था - काजीपुर ।

जारी रहेगी
Acha dream matlab update hai dream boyji
👌👌👌👌👌💯💯💯💯💦💦💦
 

sunoanuj

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बहुत ही अच्छा अपडेट ! कहानी की शुरुआत बहुत ही ग़ज़ब की है ।👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

rajeev13

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इतनी बेहतरीन तरीके से पूर्व में हुई और वर्त्तमान में घट रही घटनाओं का ताल-मेल बिठाया है, जिससे कहानी पहले ही अपडेट में बहुत उत्तम हो गई मगर बदकिस्मती ये है की यह एक लघु कहानी है, जो शीघ्र समाप्त हो जाएगी ! 😭

आशा करता हूँ की आपके जीवन में जो भी निजी कष्ट है, बहुत जल्द दूर हो ताकि हमें आपके लेखन के और पास रहने का मौका मिले।
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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Awesome update
धन्यवाद आपका रेखा जी
आपकी अनमोल कृति अपने आप मे ही एक मिसाल है और ये दो शब्द मेरे लिए ठिक वैसे है जैसे
गुरु ने शबासी दी हो

शुक्रिया आपका :thanx:
 

DREAMBOY40

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पहला अध्याय पेज 03 पोस्ट कर दिया है मित्र
अगला भी जल्द मिलेगा
 

DREAMBOY40

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Acha dream matlab update hai dream boyji
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तहे दिल से शुक्रिया आपका
आपकी रोचक और मस्त कर देने वाली कहानियो के तार सब ओर जुडे है
उनसे बढ कर आपके रेवो देने के अनोखे तरीके भी पढे है
उम्मीद है वो कलम यहा भी अपने सुरीले बोल जरुर लिखेंंगे
 
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