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Adultery राजमाता गामिनीदेवी

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उस बूढ़ी दासी से यह कहानी सुनकर राजमाता अपनी युवानी में अक्सर यह कल्पना करती थी की शायद उसे भी उस तरह का दिव्य संभोग करने का अवसर प्रदान हो। पर उनके पति ने शुरुआती दिनों में ही उनकी कुंवारी चुत को फलित कर दिया। जब वह गर्भवती हुई तब पूरे राज्य में १० दिन के उत्सव की घोषणा कर दी गई थी। और अब इतने वर्षों बाद उनके बेटे को वही समस्या का सामना करना पड़ रहा था। अपनी बहु के लिए, किसी योगी के बजाए अपने ही सैन्य के सैनिक का संभोग के लिए चयन किया था।

सैनिक के चयन ने राजमाता को जितना चकित किया था उससे किया गुना ज्यादा आश्चर्य महारानी पद्मिनी को तब हुआ जब उन्होंने शक्तिसिंह का मजबूत मोटा लंबा लिंग देखा जिसके मुकाबले राजा कमलसिंह का लंड तो केवल नून्नी समान था। वह लंड देखते ही महारानी की मुंह से सिसकारी निकल गई। सिसकी की आवाज सुनते ही राजमाता सतर्क हो गई। उन्होंने दोनों को स्पष्ट तरीके से सूचित किया था की ना कोई सिसकी होगी और ना ही किसी तरह की पूर्वक्रीडा। सिर्फ और सिर्फ लिंग-योनि का मिलन और उसके पश्चात वीर्य स्खलन होगा, बस्स!!!
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एक अजीब सी कशिश थी हिमालय के तलहटी की हवाओ में!! सुखी ठंडी हवा और उसकी सरसराहट महारानी की उत्तेजना को और उकसा रही थी।

महारानी को सूचित किया गया था की गर्भधारण के महत्वपूर्ण कार्य के लिए शक्तिसिंह को चुना गया था। आशय स्पष्ट था.. महारानी को इस लंबे, तगड़े सैनिक से चुदवाकर गर्भधारण करना है ताकि आने वाले दिनों में राज्य को युवराज रूपी भेट मिले और राजा कमलसिंह की नपुंसकता एक राज ही रहे।

एक दिन पूर्व, जब अपनी सास ने महारानी को अपने निर्णय के बारे में जानकारी दी, तब वह अचंभित जरूर हुई पर चौंकी नहीं। वह इसलिए नहीं चौंकी क्योंकी किसी गैर मर्द से चुदना तो तबसे तय था जब से उसे राजा की नपुंसकता के बारे में पता चला था। पुराने रीति-रिवाज और उसके ज्ञान के मुताबिक उसे किसी योगी या आध्यात्मिक पुरुष से बड़ी ही गुप्ततापूर्वक संभोग कर गर्भाधान करना था। अब राजमाता ने शक्तिसिंह को इस कार्य के लिए चुना था... और इसकी जानकारी इन तीनों के अलावा और किसीको भी नहीं थी।

हालांकि महारानी को इस बात में शुरुआत में अचंभा हुआ था पर वह किसी योगी के मुकाबले शक्तिसिंह से संभोग करने की संभावना ज्यादा उत्तेजक लगी। वह अब शक्तिसिंह को भूखी नज़रों से देखने लगी। उसका कसा हुआ शरीर, मजबूत कंधे, और गठीले बाँहों को देखकर महारानी का हाथ अनायास ही अपनी जांघों के बीच चला जाता था। शक्तिसिंह की धोती के उभार को देख वह सोच रही थी की क्या वह वस्त्र ही वैसा होगा या फिर जो वो सोच रही थी वह इतना लंबा तगड़ा था!!! उसे कहाँ पता था की शक्तिसिंह के तगड़े मूसल का मुआयना राजमाता पहले ही कर चुकी थी। मुआयने के साथ साथ राजमाता ने इस कार्य को किस तरह से अंजाम देना था उसकी पूरी जानकारी भी दी थी। महारानी तो यह भी नहीं जानती थी की इस अभ्यास के दौरान, शक्तिसिंह ने उत्तेजित होकर राजमाता का स्तन उनकी चोली से बाहर निकालकर रगड़ा भी था और चूसा भी। हालांकि उस वाकये के बाद शक्तिसिंह का लंड पूरा समय महारानी को चोदने के सपने देखते हुए हरदम सख्त ही रहता था। उस रात तो राजमाता ने उसका लंड हिलाकर संतुष्ट कर दिया था पर अब शक्तिसिंह की भूख खुल गई थी। अब वह एक जबरदस्त विस्फोटक चुदाई करना चाहता था।

हाँ, धोती के आगे का उभार जो था वह उसका वस्त्र नहीं पर उसका सख्त खड़ा लंड का आकार ही थी। महारानी के मन ने तो उसे लंड समझ ही लिया था। उत्तेजित तो वह बेहद थी पर राजमाता ने चुदाई के जो अंकुशात्मक नियम बताए थी वह महारानी को खटक रहे थे।

तो अब तक की कहानी का निष्कर्ष यह है की राजमाता के आदेश पर शक्तिसिंह और महारानी पद्मिनी को संभोग करना है। संभोग दौरान किसी भी प्रकार की पूर्वक्रिडा या किसी आनंददायक प्रक्रिया के लिए कोई अवकाश नहीं था। केवल संभोग कर महारानी को गर्भवती बनाने का निर्देश दिया गया था। महारानी का दिमाग यह सोचकर ही चकरा जाता था की अगर शक्तिसिंह जैसे बलिष्ठ सैनिक के साथ निरंकुश चुदाई करने का मौका मिले तो कैसा होगा!! हालांकि राजमाता के कहर के डर से लगता नहीं था की शक्तिसिंह उनके साथ यह छूट लेने की जुर्रत भी करेगा। ऊपर से संभोग दौरान, परदे के पीछे, राजमाता की उपस्थिति भी होगी। इसलिए तय योजना के अलावा कुछ भी ज्यादा होने या करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

महारानी अपने तंबू में बिस्तर पर शक्तिसिंह के इंतज़ार में बैठी हुई थी। परदे के उस तरफ राजमाता टकटकी लगाए उसे देख रही थी। थोड़े से दूर बहती नदी की कलकल आवाज महारानी के बढ़े हुए रक्तचाप से काफी मेल खाती थी। तंबू एक अंदर दो दिये की रोशनी थी। बाहर गहरे अंधकार ने समग्र जंगल को अपने आगोश में भर रखा था।

अब इस दिव्य वातावरण में, महारानी उस मर्द से चुदने वाली थी जो ना तो उसका पति था ना ही उसका प्रेमी। ना ही वह एक दूसरे के अंगों को छु पाएंगे और ना ही किसी भी प्रकार का आनंद ले पाएंगे। फिलहाल सम्पूर्ण वस्त्रों में सज्ज वह पुरुष उसके ऊपर आ गया था।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया है
 

Premkumar65

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संभोग के बाद थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में लाश की तरह सो रहा था। उसे सपने भी महारानी की गद्देदार गुलाबी चुत, गहरी नाभि और बड़े मोटे स्तन ही नजर आ रहे थे। एक बार की चुदाई से उसका मन नहीं भरा था। उल्टा उसकी भूख चौगुनी बढ़ गई थी। लंड अभी भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था। क्या मतलब था महारानी का जब उन्होंने यह कहा था की "में दोबारा आऊँगी"??

खर्राटे मारकर सोते हुए शक्तिसिंह की नींद में तब विक्षेप पड़ा जब उसे अपनी धोती में कुछ अजीब हलचल महसूस हुई। आँखें खोलकर देखा तो महारानी पद्मिनी उसकी बगल में लेटे हुए धोती से लंड बाहर निकालकर सहला सहला कर उसे मोटा कर रही थी!! एक पल के लिए शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ की वह सपना ही था। कुछ पल के बाद यह स्पष्ट हुआ की वह सपना नहीं था... वाकई महारानी उसके बिस्तर पर लंड से खेल रही थी!!

महारानी अपना चेहरा, अचंभित शक्तिसिंह के कान के पास ले गई और बोली

"यदि हमे यह खेल को आगे बढ़ाना हो तो यहाँ नहीं, मेरे तंबू में जाना पड़ेगा" सुपाड़े को अपनी मुठ्ठी में दबाकर वह मुसकुराते हुए बोली "में नहीं चाहती की राजमाता या किसी पहरेदार सैनकी को मेरी गैरमौजूदगी के बारे में पता चले!!"

विरोध करने में असमर्थ और अनिच्छुक शक्तिसिंह ने महारानी के हाथ को अपने लंड से हटाना चाहा ताकि वह उठकर खड़ा हो सके। पर महारानी उसके ऊपर से नहीं हटी। उन्होंने अपने हाथ में खेल रहे लंड को अपने मुंह में ले लिया।

"महारानी जी.." शक्तिसिंह महारानी की इस हरकत से चोंक उठा "आप यह क्या कर रही है?"

"पद्मिनी... " लंड को पल भर के लिए मुंह से बाहर निकालकर महारानी ने कहा "मुझे पद्मिनी कहकर पुकारो... जिस तरह की हरकतें हम साथ साथ करने वाले है, वह पद्मिनी ही कर सकती है... महारानी नहीं!!"

इतना कहकर उन्होंने वापिस शक्तिसिंह के मूसल को अपने मुंह में भर लिया। अपनी लार से गीला करते हुए, होंठों के बीच गोलाकार रचकर वह लंड को मुख-मैथुन का अनोखा सुख देने लगी। उनके लंबे घने बालों की ज़ुल्फ़ें लहराकर शक्तिसिंह के लंड के इर्दगिर्द फैलकर बड़ी मदहोश प्रतीत हो रही थी। उन झुलफ़ों से शक्तिसिंह को यह शिकायत थी की उन्हे पीछे महारानी के सुंदर गाल नजर नहीं आ रहे थे।

कुछ देर रसभरी चुसाई करने के बाद जब पद्मिनी ने लंड एक मस्त चटकारा लेकर मुक्त किया तब उनके होंठों के किनारों से वीर्य की धार बह रही थी जिसे अपनी उंगली के ऊपर लेकर, एक कुटिल मुस्कान देकर, वह चाट गई। शक्तिसिंह यह देख हक्का-बक्का रह गया।

पद्मिनी अब उठ खड़ी हुई और तंबू के दरवाजे तक पहुंचकर पलटी। मुड़कर उसने शक्तिसिंह की ओर देखा और मुसकुराते हुए उंगलियों से इशारा कर अपने पीछे आने का निर्देश दिया। ऐसे लटके-झटके किसी गणिका की तरह प्रतीत हो रहे थे।

जब वह दोनों उनके तंबू में पहुंचे तब पर्दा डालकर पद्मिनी ने शक्तिसिंह को बाहों में भरकर चूमते हुए उसका हाथ अपनी चोली के अंदर डाल दिया। पद्मिनी के कोमल लाल अधरों का रसपान करते हुए उसने चोली में से उसके स्तनों को दबाया और फिर हाथ नीचे ले जाकर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया। घाघरा ऐसे नीचे गिर जैसे युद्ध की घोषणा होने पर बाजार गिर जाता है। घाघरे को लात मारकर खुद से दूर धकेलते वक्त पद्मिनी ने शक्तिसिंह की धोती खोल दी।

अपनी जीभ को पद्मिनी के मुख के कोने कोने मे फेरते हुए शक्तिसिंह ने रानी की चोली की गांठ खोल दी... दोनों चूचियाँ मुक्त हो गई। शक्तिसिंह ने कोमलता से दोनों हथेलियों में भरकर उन्हे सहलाया। अब उसने अपने हाथ ऊपर कर लिए और रानी के मदद से अपना कुर्ता उतार दिया। अब दोनों एक दूसरे के सामने सम्पूर्ण नग्नावस्था में खड़े थे।

पद्मिनी की दोनों जांघों से उठाकर शक्तिसिंह ने उठाया। इशारा समझते ही रानी ने अपनी टाँगे फैलाई और शक्तिसिंह की कमर पर पैरों को लपेट लिया। थोड़ी सी कमर उठाई और शक्तिसिंह के कड़े लंड को अपनी चुत के होंठों को फैलाकर उसके ऊपर अपने जिस्म का वज़न डाल दिया।

"जानवर जैसा तगड़ा लंड है तुम्हारा... " हँसते हुए पद्मिनी ने कहा

महारानी पद्मिनी के अंदर की हवसखोर औरत अब पूर्णतः जाग चुकी थी। जैसे ही उनकी चुत में पर्याप्त मात्र में रस का रिसाव हो गया, उसने लंड पर ऊपर-नीचे उछलना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह के अंदर का योद्धा, महारानी को ऐसे ही नियंत्रण देना नहीं चाहता था। पर फिलहाल रानी के सर पर ऐसा भूत सवार था की उनको वश में करना कठिन था। फिर भी उसने रानी की जांघों को इस कदर मजबूती से पकड़ लिया की वह अब लंड पर ऊपर नीचे कर नहीं पा रही थी।

"छोड़ो भी... क्या कर रहे हो?" महारानी गुर्राई

"अब आप कुछ नहीं करेगी... अब जो भी करना है मुझे ही करना है, महारानी जी" शक्तिसिंह ने अधिकारपूर्वक कहा

शक्तिसिंह ने महारानी को थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपने लंड पर पटक दिया।

"आईईईईईईई..... " महारानी की धीमी सी चीख निकल गई।

महारानी के उस संकेत से प्रोत्साहित होकर, उसने संयुक्ता के स्तनों के साथ छेड़छाड़ शुरू की और उसे ऊपर नीचे करता रहा। कुछ मिनटों तक, वह उसके लंड को अपनी चुत में भरकर चोदती रही।

"हाँ.. हां.. बिल्कुल ऐसे ही... करते रहो.. मज़ा आ रहा है.. चोदते रहो " वह मस्ती में बड़बड़ाई

महारानी की नुकीली निप्पल शक्तिसिंह की छाती पर घिसती जा रही थी। चर्बीयुक्त मांसल चूचियाँ दोनों के शरीरों के बीच दब चुकी थी। शक्तिसिंह खुद को इन मदमस्त स्तनों को चूसने से रोक नहीं पाया। उसने अपनी गर्दन झुकाई और एक स्तन को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर किया ताकि उसकी निप्पल मुंह तक पहुंचे। रसभरी लंबी निप्पल को उसने एक क्षण के लिए मन भरकर निहारा और फिर एक ही झटके में उसे मुंह में ले कर चटकारे लेटे हुए चूसने लगा।

पद्मिनी ने पास के खंभे पर अपने एक हाथ को रखकर सहारा लिया और दूसरा हाथ शक्तिसिंह के कंधे पर रखकर हुमच हुमचकर लंड पर कूदती रही। अब संतुलन ठीक से स्थापित हो जाने पर अब वह चुदाई के झटकों का संचालन करने की बेहतर मुद्रा में आ गई। उसने उछलने की गति को और तीव्र कर दिया।

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Wow Shakti singh ki shakti majedaar hai.
 

Premkumar65

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मध्यरात्री के समय अचानक राजमाता की आँख खुल गई। उन्होंने आँखें खोलकर देखा तो उनका घाघरा ऊपर उठा हुआ था और उनकी एक उंगली चुत की अंदर धँसी हुई थी। अपनी चिपचिपी उंगली को बाहर निकालकर उन्होंने घाघरा ठीक किया और बिस्तर से उठ गई। किसी अनजान सी घबराहट के चलते वह बेचैन हो गई थी।
उन्होंने अपने तंबू के बिल्कुल बगल में बने महारानी के विशाल तंबू में प्रवेश किया। महारानी का बिस्तर खाली पड़ा था। वह वापिस लौटने ही वाली थी की तब किसी की खिलखिलाकर हंसने के आवाज ने उनके पैरों को रोक दिया। उस बड़े से तंबू में दो हिस्से बने हुए थे। बीच में अपारदर्शी पर्दा था जिसके पीछे महारानी तैयार होती थी। राजमाता को पक्का यकीन था की आवाज उस परदे के पीछे से ही आई थी। वह दबे पाँव चुपके से परदे के कोने तक गई और हल्का सा खिसकाकर अंदर देखने लगी। उनकी आँखें अंधेरे से आदि होते ही उन्हे दीपक की रोशनी में दो परछाई नजर आई। ध्यान से देखने पर उन्हे वही दिखा जिसका की उन्हे डर था।

शक्तिसिंह ने महारानी पद्मिनी को चूतड़ों से उठाया हुआ था। रानी के दोनों पैर शक्तिसिंह की कमर पर लपेटे हुए थे। वह रानी को उछाल उछालकर चोद रहा था और रानी खिलखिलाते हुए हंस रही थी। पद्मिनी ने अपनी दोनों बाहें शक्तिसिंह के गले में अजगर की तरह डाल रखी थी। और दोनों प्रगाढ़ चुंबन करते हुए चुदाई कर रहे थे। कई मिनटों तक ऐसे ही झटके लगाने के बाद शक्तिसिंह ने महारानी को संभालकर नीचे उतार और उनको पलटा दिया। महारानी को झुकाकर उसने दो चूतड़ों के बीच उनकी गीली चुत के सुराख में लंड दे मारा। महारानी ने अपने दोनों हाथ घुटनों पर टेककर अपने शरीर का संतुलन बनाए रखा था। बड़े ही मजे से वह शक्तिसिंह के धक्कों को अपनी चुत में समेटकर मजे बटोर रही थी। चोदते हुए शक्तिसिंह अपने दोनों हाथों को आगे की ओर लेकर गया और उनकी चूचियों को रंगेहाथ पकड़ लिया। उन्हे दबोच दबोचकर ऐसा मसला की महारानी की मुंह से आह-ऊँह के उदगार निकल गए। एक दूसरे के नंगे जिस्म को अब वह बिना किसी रुकावट के पूरा महसूस कर पा रहे थे।

राजमाता आश्चर्यसह उन दोनों के इस चुदाई खेल को चुपके से देख रही थी।

शक्तिसिंह किसी घोड़े की तरह महारानी के चूतड़ फैलाकर धमाधम धक्के लगा रहा था। उसके हर धक्के पर महारानी थोड़ी सी आगे चली जाती थी। अपने घुटनों पर हाथ टेके हुए महारानी बदहवासी से चुदवा रही थी।

"चोदो मुझे.. और दम लगाकर चोदो..." महारानी चिल्लाई, यह सूचित करने के लिए की झटके थोड़े धीमे पड़ गए थे। रानी के मुख से ऐसे शब्दों का प्रयोग सुनकर शक्तिसिंह और राजमाता दोनों चोंक गए।

इन दोनों की चुदाई देख बेहद उत्तेजित राजमाता घाघरे के भीतर उंगली डाले ईर्षा से जल रही थी। उनकी खुद की चूचियाँ गरम और सख्त हो चली थी। अपनी पुत्रवधू को बेशर्म की तरह किसी सैनिक से चुदता देख वह अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। रानी के बड़े बड़े खरबूजे, शक्तिसिंह के हर धक्के पर, आगे पीछे झूल रहे थे।

और अब जब उसने रानी को खुले शब्दों में चोदने की भीख मांगते हुए सुना तो उसे बहुत जलन महसूस हुई। उसकी चूत, जो अपने पति के निधन के बाद, वर्षों से निष्क्रिय पड़ी थी, अब बेहद गीली और चिपचिपी बन गई थी।

शक्तिसिंह रानी के दोनों स्तनों को आगे से पकड़कर, पीछे धक्के लगाए जा रहा था। हालांकि उसके धक्कों में अब थोड़ी सी थकावट महसूस हो रही थी। रानी ने तुरंत ही पास पड़े एक पत्थर पर अपनी एक टांग जमाई और आसान में तबदीली की। अब शक्तिसिंह आसानी से चुत की गहराइयों तक लंड घुसेड़ सकता था। झटकों की गति और जोर पूर्ववत हो गए।

"लगा दम... जोर से चोद... और जोर से... " रानी सातवे आसमान पर पहुँच गई थी। हर झटके के साथ उसकी भूख बढ़ती जा रही थी।

रानी की उत्तेजना को पहचान कर शक्तिसिंह ने अपने एक हाथ को उसकी दोनों जांघों के बीच से ले जाकर उसके भगनासा (क्लिटोरिस) के दाने को ढूंढ निकाला। अब चुदाई के साथ वह उस दाने को भी रगड़कर महारानी के आनंद में अभिवृद्धि कर रहा था। तभी शक्तिसिंह की आँखें परदे के पीछे खड़ी राजमाता से टकराई। एक पल के लीये वह धक्के लगाते रुक गया पर फिर कुछ सोचकर उसने धक्के लगाना शुरू कर दिया। उसने एक पल के लिए भी अपनी नजर राजमाता से नहीं हटाई। झुकी हुई होने के कारण महारानी को इन सब बातों का जरा सा भी अंदाज ना लग पाया।

राजमाता स्तब्ध होकर यह सब देख रही थी। उनकी योजना पर पानी फेर दिया था इन दोनों ने!! क्रोधित होने के बावजूद इस स्थिति में उसे वह व्यक्त नहीं कर पा रही थी। वह चाहती तो अभी हस्तक्षेप कर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़कर रोक सकती थी, पर फिलहाल उनके क्रोध के ऊपर उनकी वासना हावी हो चली थी। गीली चुत ने उनकी टांगों को कमजोर कर दिया। उन्हे यह डर था की इस अवस्था में शक्तिसिंह के करीब जाने के बाद वह अपने आप को उससे लिपटने से कैसे रोक पाएगी!!

राजमाता की तरफ देखते हुए वह महारानी के गोरे गुंबज जैसे चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। महारानी सिसकियाँ भरते हुए और कराहते हुए दोनों टांगों को चौड़ा कर मस्ती से चुदवा रही थी। शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को अपने हाथों से और फैलाया ताकि लंड और गहराई से अंदर घुस सके। साथ ही साथ उसने एक बार और महारानी के दाने को पकड़कर मसल दिया।

"ऊई माँ... आहहहहहह....!!! इस दोहरे हमले से महारानी उत्तेजना से कांप उठी

अपनी पुत्रवधू की आवाज ने राजमाता को झकझोर दिया... अनायास ही उनके मुख से निकल गया

"बेटा, जरा ध्यान से..!!" आवाज निकल जाने के बाद राजमाता खुद को कोसने लगी।

पद्मिनी अचानक रुक गई। झुकी हुई मुद्रा से वह तुरंत ऊपर उठ गई। शक्तिसिंह का लंड एक झटके में बाहर निकल गया... महारानी की चुत के रस की कुछ बूंदें नीचे टपक गई। महारानी ने डरते हुए सामने देखा और राजमाता को वहाँ खड़ा देखकर वह स्तब्ध बन गई।

इन सारी बातों से अनजान महारानी की चुत, इस रुकावट से परेशान हो गई। इतने मस्त मोटे लंड से चल रही दमदार चुदाई अचानक रुक जाना उसे राज न आया।

महारानी की दुविधा यह थी की इस परिस्थिति में वह कीसे महत्व दे!! अपनी चुत की अभिलाषा को या अपनी सास को??

महारानी के तंबू के भीतर अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

पूरे तंबू में केवल एक ही दिया जगमगा रहा था। परदे के उस तरफ खड़ी राजमाता का चेहरा उसमें साफ दिखाई दे रहा था। गनीमत थी की अंधेरे के कारण उन्हे चेहरे के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था वरना... जांघों तक घाघरा उठाकर अपने दाने को रगड़ती हुई राजमाता नजर आती!!

तीनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे। पर शक्तिसिंह और पद्मिनी यह नहीं समझ पाए की राजमाता का गुस्सा अभी तक फटा क्यों नहीं!! अब तक तो वह उनपर बरस चुकी होती... पता नहीं क्यों फिलहाल वह गरीब सा चेहरा बनाकर आँखें मुँदती उनके सामने मूर्ति की तरह खड़ी थी... दोनों बड़े ही आश्चर्य से राजमाता को देखते रहे। कुछ क्षणों तक जब उनके तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली तब उसे मुक सहमति समझकर शक्तिसिंह ने फिर से महारानी को झुकाकर घोड़ी बना दिया।

हवस का असर इस कदर सर पर सवार था की महारानी ने भी ज्यादा कुछ ना सोचते हुए जांघें चौड़ी कर दी, झुक गई और अपनी वासना को अधिक महत्व देने का फैसला कर चुदवाने में व्यस्त हो गई। शक्तिसिंह ने अपनी सारी ऊर्जा इस संभोग में झोंक दी थी। अब उसे किसी बात का कोई डर न था। वह भी अब महारानी की पीठ के ऊपर झुककर उनके दोनों स्तनों को हाथ में पकड़कर मसलने लगा।

एक बार फिर शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ नजर की। उनकी आँखों में गुस्से के बजाए महारानी के प्रति जलन स्पष्ट दिख रही थी।

महारानी भी अब ताव में आ गई थी। शक्तिसिंह ने दोनों चूचियाँ पकड़ रखी थी तो उन्होंने खुद ही अपनी क्लिटोरिस को मलना शुरू कर दिया। फैली हुई चुत में मूसल सा लँड किसी यंत्र की तरह अंदर बाहर हो रहा था। चुत से काम-रस की नदी सी बह रही थी। चूचियों को मसल मसलकर शक्तिसिंह ने उसे लाल कर दिया था।

महारानी को इतनी मस्ती से चुदते देख राजमाता को अपराध भावना परेशान करने लगी, यह सोचकर की उसका पुत्र, राजा कमलसिंह, अपनी पत्नी को ऐसा सुख प्रदान करने में विफल रहा। पराकाष्ठा और चरमसुख देने वाली दमदार चुदाई, हर स्त्री का हक है और उसे मिलनी ही चाहिए, ऐसा उनका मानना था। शक्तिसिंह का मूसल चुत के अंदर कितना आनंद दे रहा होगा उसकी कल्पना करते ही राजमाता की चुत ने गुनगुना पानी छोड़ दिया। उन्हे लग रहा था की जो कुछ भी महारानी कर रही थी उसमे उसकी कोई गलती नहीं था। सालों से जो स्त्री ठीक से चुदी ना हो वह ऐसा लंड देखकर खुद को कैसे रोके!! और शुरुआत तो राजमाता ने ही करवाई थी... अब उस चुदाई के बाद अगर महारानी शक्तिसिंह के लंड की ग़ुलाम बन गई तो भला उसमे उस बेचारी का क्या दोष!!

राजमाता ने उस संभोग-रत जोड़े के करीब जाने का फैसला किया। उसने सोचा की जिस तरह से उन्होंने दोनों को अंकुश में रखने का प्रयत्न किया था उसी कारण इन दोनों की कामवासना और भड़क उठी। उन्हे लगा की इन दोनों के करीब जाकर उन्हे मौन स्वीकृति देनी चाहिए।

राजमाता उन दोनों के करीब जाकर खड़ी हो गई। महारानी ने उनको देखते हुए अनदेखा कर दिया और अपनी आनंद यात्रा में लगी रही। वह अभी भी पागलों की तरह अपनी चुत को रगड़ रही थी। शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ एक नजर डाली और फिर महारानी के कूल्हों को पकड़कर वही रफ्तार से चुदाई करने में व्यस्त हो गया।

राजमाता ने पहले शक्तिसिंह की पीठ को सहलाया। उसकी पीठ की मांसपेशियाँ इस परिश्रम से बेहद सख्त और पसीने से लथबथ हो गई थी।

"करो... करते रहो... और खतम करो इसे.. " उन्होंने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा और फिर पद्मिनी के सर पर हाथ पसारने लगी।

पद्मिनी ने इशारे से शक्तिसिंह को चुदाई रोकने के लिए कहा। काफी देर से झुककर चुदवाते हुए वह थक गई थी। शक्तिसिंह ने संभालकर अपना लंड उसकी चुत से निकाला.. काले, चिपचिपे लंड जैसे ही बाहर निकला, राजमाता की नजर चुंबक की तरफ उस पर चिपक गई। महारानी अब खड़ी होकर शक्तिसिंह की तरफ मुड़ी। उनका इशारा मिलते ही शक्तिसिंह ने वापिस उन्हे उठाया लिया, रानी ने कमर पर पैर लपेटे और शक्तिसिंह के लंड पर बैठ गई। इस आसान में महारानी को थकान भी नहीं हो रही थी और लंड भी काफी गहराई तक अंदर जाता था।

शक्तिसिंह ने महारानी के होंठों को चूम लिया। महारानी ने भी सामने एक और दीर्घ चुंबन कर उसे प्रतिसाद दिया। नागिन की जीभ की तरह वह शक्तिसिंह के मुंह के हर कोने को नापने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था की जिस तरह शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत को चोद रहा था बिल्कुल वैसे ही वह अपनी जीभ से उसके मुँह को चोदना चाहती थी।

राजमाता भी अब अस्वस्थ सी होने लगी। परदे के पीछे तो वह अपनी उंगली से चुत कुरेदकर अपने आप को संभाल रही थी... पर अब उन दोनों को सामने ऐसा करना संभव नहीं था। वह सोच रही थी की वापिस अपने तंबू में जाकर लकड़ी का डंडा अंदर घुसेड़कर प्यास बुझानी पड़ेगी। पद्मिनी के मस्त मोटे गरम उरोजों को शक्तिसिंह द्वारा मसलवाते देख राजमाता बेहद गरम हो गई। हालांकि अब उनकी चूचियों में अब पद्मिनी जैसा कसाव तो नहीं था पर फिर भी उतनी कटिली तो जरूर थी की किसी मर्द की नजरे चिपक जाए।

और बर्दाश्त ना होने पर वह मुड़कर वापिस अपने तंबू के तरफ जाने लगी तभी, शक्तिसिंह ने उनकी कलाई पकड़कर रोक दिया। राजमाता चकित रह गई। उसने पलटकर देखा तो शक्तिसिंह एक हाथ से महारानी को चूतड़ से पकड़े हुए था और दूसरे हाथ में उनकी कलाई थी। आँख बंद कर लंड पर उछल रही पद्मिनी को जब अपने चूतड़ों के नीचे एक ही हाथ का अनुभव हुआ तब दूसरे हाथ की तलाश में उन्होंने आँखें खोली।

शक्तिसिंह को राजमाता का हाथ पकड़े देख वह क्रोधित हो उठी

"शक्तिसिंह.... " कहते हुए उसने शक्तिसिंह का हाथ झटक कर अपने तरफ कर लिया...

ऐसा करने पर शक्तिसिंह का संतुलन थोड़ा सा बिगड़ गया। अपने आपको गिरने से बचाने के लिए उसने अपनी टाँगे फैलाई। ऐसा करने से उसका लंड महारानी की बच्चेदानी को जा टकराया और उनकी आह निकल गई।

"मुझे चोदते रहो शक्तिसिंह... में अब अपनी मंजिल पर पहुचने वाली हूँ... अपना ध्यान भटकने मत दो.. आह आह.. भर दो मुझे... चोदो मुझे... " पागलों की तरह महारानी बड़बड़ाने लगी।

दोनों ने एक दूसरे को सख्त आगोश में जकड़ रखा था। झांट से झांट उलझ गए थे... लंड और चुत एक दूसरे के रस का आदान-प्रदान कर रहे थे, महारानी की निप्पल शक्तिसिंह की छाती से रगड़ खा रही थी और साथ ही दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते जा रहे थे। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ महारानी का गांड का छिद्र सिकुड़ जाता।
Wow Jabardast Thukai hui hai Maharani ki.
 
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