randibaaz chora
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बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गयाअपनी मां को कपड़े बदलते हुए तृप्ति ने देख ली थी एक औरत होने के नाते वह अपनी मां की खूबसूरती को अच्छी तरह से जानती थी तृप्ति को इस बात का एहसास था कि उसके मोहल्ले में उसकी मां से ज्यादा खूबसूरत और कोई औरत नहीं थी और इस बात से भी उसे इनकार नहीं था कि सड़क पर आते जाते लोग उसकी मां को ही प्यासी नजरों से देखते रहते थे लेकिन सब कुछ जानने के बावजूद भी तिरुपति या तो उसकी मां कुछ कर नहीं सकते थे क्योंकि औरतों का हर जगह यही हाल होता है मर्द प्यासी नजरों से हमेशा ताडते ही रहते हैं,,,,,,,,,, एक औरत होने के बावजूद भी तृप्ति को खुद अपनी मां के गोल-गोल नितंब कुछ ज्यादा ही आकर्षक लगते थे,,,, कई बार तो वह खुद अपनी मां के नितंबों को ही देखते रह जाती थी और अपने मन में सोचती रहती थी कि का स उसकी गांड भी उसकी मां की तरह एकदम भारी-भारी हो जाए ऐसा नहीं था कि तृप्ति के पास रूप लावण्य नहीं था सुगंधा की लड़की होने के नाते उसमें भी सुगंधा जैसी ही खूबसूरती भरी हुई थी लेकिन अभी-अभी वह जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी इसलिए उसके बदन पर एक औरत के बदन वाला भराव नहीं था,,, लेकिन फिर भी किसी भी पुरुष को आकर्षित करने लायक उसके बदन का उभार भराव और कटाव सब कुछ उत्तमता से भरा हुआ था,,,,
तृप्ति भी अपनी मां की तरह लंबी कद काठी की थी,,,, छतिया की शोभा बढ़ा रहे दोनों संतरे इतना तो भरे हुए थे कि उन्हें छुपाने के लिए दुपट्टे का सहारा लेना पड़ता था,,,, और पिछवाड़े में अभी उतना भराव नहीं आया था लेकिन फिर भी किसी भी मर्द का लंड खड़ा कर सके इस तरह का आकर्षण उसकी गांड की गोलाई लिए हुए थी,,,,,।
सुगंधा रसोई घर में जाकर चाय बनाने लगी थी,,,, और तृप्ति कुर्सी पर बैठकर टेबल पंखे को चालू करके उसका हवा ले रही थी,,,,, और अपनी मां के बारे में सोच रही थी,,,,, वह जानती थी कि उसकी मां ने उसके और उसके भाई की परवरिश के लिए दिन-रात एक कर दी है,,,, तृप्ति इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि जब उसके पिताजी का देहांत हुआ था तब उसकी मां की जवानी पूरे सभा में थी अगर चाहती तो वह किसी से भी शादी करके अपना जीवन बसर कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया था इसलिए तृप्ति के मन में अपनी मां के लिए और भी ज्यादा इज्जत बढ़ जाती थी,,,, ऐसा नहीं था कि ढलती उम्र के साथ सुगंधा की जवानी भी ढल चुकी थी ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कुदरत की कृपा सुगंधा पर पूरी तरह से छाई हुई थी इसलिए तो पति के देहांत के 5 साल गुजारने के बावजूद भी अभी भी उसकी जवानी पूरी तरह से निखर रही थी,,,,,। तृप्ति कुर्सी पर बैठे-बैठे कुछ और ज्यादा सोच पाती से पहले ही दरवाजे पर दस्तक होने लगी और वह ना चाहते हुए भी कुर्सी पर से उठकर खड़ी हो गई क्योंकि वह जानती थी कि इस समय उसका भाई अंकित आ गया होगा,,,, वह बेमन से चलते हुए दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दी अंकित दरवाजे पर ही खड़ा था,,,,, अपने दोस्तों की बातों को सुनकर उसके मन में अभी भी क्रोध भरा हुआ था लेकिन फिर भी अपने घर पर पहुंचकर वह अपने क्रोध को एक तरफ रख कर वह मुस्कुरा कर अपनी बहन की तरफ देखा तृप्ति भी अपने भाई को देखकर मुस्कुरा दी और बोली,,,,)
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आ गए राजा साहब,,,,,
क्यों तुम्हें क्या लग रहा था कि मैं वहीं रुक जाता,,,,
रुक जाना चाहिए था ना दोस्तों में कुछ ज्यादा ही उठना बैठना हो गया है तुम्हारा,,,,
अब क्या करूं दीदी घर में बैठे-बैठे बोर हो जाता हूं इसलिए दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला जाता हूं,,,,,
देखना दोस्तों के साथ ज्यादा मत घुमना वैसे भी तेरी दोस्त कुछ अच्छे नहीं है उनके संगत ठीक नहीं,,,।
(इतना सुनते ही अंकित चौक गया वह अपने मन में सोचने लगा कि उसकी बहन को कैसे मालूम कि उसके दोस्त अच्छे नहीं है गंदे हैं कहीं ऐसा तो नहीं उसकी बहन के बारे में भी उसके दोस्त उल्टी सीधी बात की है और किसी के जरिए उसकी बहन को पता चल गया पल भर के लिए अंकित को लगा कि वह भी बता दे कि सच में उसके दोस्त अच्छे नहीं है वह लोग मां के बारे में गंदी गंदी बातें करते हैं लेकिन ऐसा कहने की और पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई,,,,, क्योंकि वह अपनी बहन या अपनी मां के सामने इस तरह की बातों का जिक्र करना भी गलत समझता था इसलिए अपनी बहन की बात सुनकर हां में सिर हिला दिया और बोला,,,)
चाय बन गई क्या दीदी,,,?
अभी तो नहीं मम्मी बना रही है,,,,
ठीक है तब तक में नहा धोकर फ्रेश हो जाता हूं,,,,,
अरे हाथ पैर धोकर फ्रेश हो जा नहाने की क्या जरूरत है,,,
नहीं नहीं दीदी पूजा पाठ भी करना रहता है ना,,,,,
ठीक है अच्छा जल्दी कर वरना चाय ठंडी हो जाएगी तो फिर वापस गरम करने वाली नहीं हूं ठंडी चाय ही पीनी पड़ेगी,,,,
बस 2 मिनट दीदी,,,,(और इतना कहने के साथ ही अंकित घर के पिछले हिस्से में चला गया जहां पर बाथरूम बना हुआ था और वह जगह,,,, दीवार से घिरी हुई थी लेकिन नहाने वाली जगह खुली थी,,,,, बस ताड़पत्री से घेरा बनाकर छोटे से बाथरूम की शक्ल दे दी गई थी और वहीं पर अंकित ठंडे पानी से नहाने लगा यह उसकी रोज की दिनचर्या थी शाम को वह जरूर नहाता था क्योंकि उसे पूजा पाठ करना होता था,,,,, थोड़ी ही देर में वहां नहा कर आ गया और जल्दी-जल्दी पूजा पाठ करके चाय पीने के लिए बैठ गया तब तक सुगंधा सब्जी काटकर खाना बनाने की तैयारी करने लगी जिसमें तृप्ति भी अपनी मां का हाथ बराबर बटा रही थी,,,,,,, सब्जी काटकर डब्बे से आटा निकालते हुए सुगंधा बोली,,,,)
अंकित बेटा घर का राशन खत्म होने वाला है कल मेरे साथ चलना बाजार से थोड़ा राशन खरीद लेंगे,,,,
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ठीक है मम्मी,,,,, लेकिन इस बार,,,,,,,, थोड़े आलू के चिप्स भी खरीद लेना नाश्ता करते समय अच्छा लगता है,,,,
बाजार से चिप्स बहुत महंगे पड़ते हैं अंकीत घर पर ही चिप्स बना लेंगे,,,,
कोई बात नहीं मम्मी लेकिन जब भी बनाना थोड़ा ज्यादा बनाना क्योंकि बहुत जल्दी खत्म हो जाता है,,,,।
(अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि घर में कमाई का जरिया सिर्फ उसकी मां ही थी जो की स्कूल में टीचर थी और उन्हीं के पैसों से घर चला था इसलिए बहुत संभाल कर खर्च करना पड़ता था इसलिए अंकित भी ज्यादा जिद नहीं किया क्योंकि वह भी अपनी स्थिति को अच्छी तरह से जानता था,,,,,)
ठीक है बेटा इस पर ज्यादा बना दूंगी,,,,,(और इतना कहने के साथ ही आंटा गुंथने लगी,,,, और इसके बाद अंकित भी कुछ नहीं बोला,,,,, रोटी तवे पर रखकर उसे पकाते हुए सुगंधा स्कूल में अपने सीनियर शिक्षक दुबे जी के बारे में सोचने लगी एक तरह से वह दुबे से परेशान हो चुकी थी क्योंकि दुबे हमेशा उसे प्यासी नजरों से वासना की नजरों से देखा करता था,,,, खास करके जब हुआ स्कूल में सीढ़ियां चढ़कर ऊपर की तरफ जाती थी तब वह सीढीओ के नीचे खड़ा होकर सुगंधा को ही देखा करता था,,,, सुगंधा को नहीं बल्कि उसकी जवानी से लदी हुई भारी भरकम गांड को देखा करता था क्योंकि जब वह सीढ़ियां चढ़ने के लिए एक-एक करके ऊपर पर बढ़ती थी तब उसके नितंबों का उभार इस कदर बड़े-बड़े तरबूज की तरह बढ़ जाता था कि जिसे देखकर ही दुबेजी का लंड खड़ा हो जाता था,,,,, जानबूझकर किसी ने किसी बहाने मदद करने के बहाने उसके हाथ को उसके बदन को स्पर्श करने की कोशिश में लगा रहता था इसलिए सुगंधा हमेशा दुबे से दूरी बनाकर ही रहती थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि किसी भी तरह से उसकी बदनामी हो,,,,, इतने वर्षों में सुगंधा समझ गई थी कि अगर बाहर निकाल कर काम करना है तो इस तरह की नजरों का सामना करना ही होगा और हमेशा इस तरह की गंदी नजरों से अपने आप को बचाकर भी रखना होगा क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि एक औरत होने के नाते एक मर्द को जरा सा भी बढ़ावा देने पर इज्जत दांव पर लग जाने का चांस कुछ ज्यादा ही रहता है और वह किसी भी तरह से अपनी बदनामी नहीं चाहती थी,,,,, कई बार वह इस बारे में स्कूल के प्रिंसिपल को भी कहने की कोशिश की थी लेकिन का नहीं पाई थी क्योंकि वह जानती थी कि,,, प्रिंसिपल और दुबे जी में काफी अच्छी बनती थी और ऐसे हालात में दुबे जी के बारे में शिकायत करने का मतलब था कि अपनी नौकरी पर खतरा उठाने और ऐसे हालात में वह अपनी नौकरी पर बिल्कुल भी खतरा उठाने नहीं चाहती थी क्योंकि गुजर बसर करने का बस एक ही जरिया रह गया था,,,,।
थोड़ी ही देर में खाना बनकर तैयार हो गया था,,, और सुगंधा गरमा गरम खाना परोसने लगी वह तीनों साथ में ही भोजन करते थे,,,, तृप्ति और अंकित दोनों हाथ धोकर खाना खाने बैठे ही थे कि दरवाजे पर दस्तक होने लगी ,,,,,,,, और तृप्ति ने अंकित से कहा,,,,।
जा जा कर देख तो कौन है,,,,।
(इतना सुनते ही अंकित अपनी जगह से खड़ा हुआ और दरवाजा खोलने के लिए दरवाजे की तरफ आगे बढ़ गया,,,, और जेसे ही दरवाजा खोला तो सामने बगल वाली चाची हाथ में कटोरी लिए मुस्कुराते हुए बोली,,,)
बेटा अंकित जरा अपनी मम्मी से थोड़ा अचार मांग कर ले आना ना मेरा अचार खत्म हो गया है,,,,
जी चाची,,,,,
कौन है अंकित,,,,
बगल वाली चाची है मम्मी,,,,
Sugandha
अरे सुषमा दीदी है अंदर बुला ले,,,,
नहीं नहीं सुगंधा सुमन के पापा खाना खाने बैठे हैं और आचार खत्म हो गया थोड़ा अचार मिल जाता तो,,,,
अरे क्यों नहीं दीदी,,,(दूर से ही आवाज लगाते हुए सुगंधा बोली) अंकित कटोरी ले आना तो,,,,
जी मम्मी अभी लाया,,,,(और इतना कहने के साथ ही जैसे ही अंकित कटोरी लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो उसकी नजर सुषमा चाचा के ब्लाउज पर चला गया जो कि ऊपर के दो बटन खुले हुए थे जिसमें से उसकी आधे से ज्यादा चूचियां एकदम साफ नजर आ रही थी और गदराया बदन होने के नाते उसकी चूचियां भी काफी बड़ी-बड़ी थी जिसे देखते ही संजू मन में बुदबुदाया,,,) चाचा को जरा सा भी दिमाग नहीं है कैसी अवस्था में किसी के भी घर पर पहुंच गई है देखो तो सही आधे से ज्यादा तो नजर आ रहा है,,,, एक पल के लिए तो उसका मन कहा कि उसे बोल दे की ब्लाउज का बटन तो बंद कर लो लेकिन ऐसा कहने की उसकी हिम्मत नहीं हुई और वह कटोरी लेकर अपनी मां के पास चला गया और थोड़ी ही देर में उसमें अचार लेकर वापस दरवाजे पर आया और सुषमा चाचा को थमा दिया,,,, सुषमा अंकित के हाथ से कटोरी लेकर मुस्कुराते हुए बोली,,,)
बहुत अच्छे बेटा तुम्हारी मां बहुत अच्छी है,,,
थैंक यू चाची,,,,,(अंकित के इतना कहते ही सुषमा मुस्कुराते हुए चली गई और अंकित उसे जाता हुआ देखता रहा हालांकि सुषमा चाची की गांड भी बहुत बड़ी-बड़ी थी जिस पर अंकित की नजर तो पड़ी थी लेकिन उसके मन में एक औरत के अंगों को देखकर उसे तरह के भाव उत्पन्न नहीं हुए,,,, जैसा कि किसी दूसरे लड़के को इस तरह का नजारा देखकर उत्तेजना का अनुभव होता वह तो इस तरह के नजारे को देखकर सुषमा चाची को ही मन में भला बुरा कह रहा था,,,,,, दरवाजा बंद करके वापस अंकित खाना खाने बैठ गया था और थोड़ी देर में तीनों खाना खाकर साफ सफाई कर के जब तक टीवी वाले रूम में आए तब तक 10 बच चुका था और थोड़ी ही देर में भी व्योमकेश बक्शी शुरू होने वाला था,,,,,,,, यह 90 के दशक की बातें इसलिए मनोरंजन के साधन के रूप में केवल रेडियो टेप और टेलीविजन ही था,,,,,,, यह उसे समय का दौर था जब घर के सभी लोग एक साथ बैठकर टीवी देखा करते थे और टीवी का आनंद लिया करते थे,,,,,
सुगंधा तृप्ति और अंकित तीनों को दूरदर्शन की ब्योमकेश बक्शी वाली सीरियल बहुत अच्छी लगती थी जिसमें नायक अपना दिमाग लगाकर गुत्थियों को सुलझाता था,,,,, थोड़ी ही देर में धारावाहिक खत्म है हो गया और तीनों सोने की तैयारी करने लगे,,,,,।
अंकित टीवी बंद कर दे,,,,,, और सो जा,,,,(इतना कहने के साथ ही तृप्ति इस कमरे में बने बाथरूम में घुस गई और थोड़ी ही देर में अंकित के कानों में पेशाब करने की सीटी की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुनकर काफी हद तक अंकित के मन में अजीब सी तरंगे उठने लगती थी वह अनजाने में ही उत्तेजना का अनुभव करने लगता था क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान था कि इस समय उसकी बड़ी बहन बाथरूम में घुसकर पेशाब कर रही थी और उसकी बुर से निकलने वाली सिटी की आवाज को सुनकर वह ना चाहते हुए भी उत्तेजना का अनुभव करने लगता था और अपने आप पर क्रोधित भी होता था क्योंकि उसे सिटी की आवाज को सुनकर ना जाने क्यों उसका लंड खड़ा होने लगता है जबकि वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता था जैसे तैसे करके वह अपने हाथ से अपने लंड को दबाकर उसे बैठने की नाकाम कोशिश करता था लेकिन ऐसा हो नहीं पता था और थोड़ी ही देर में तृप्ति बाथरूम से बाहर निकाल कर हल्की नींद में होने के नाते सलवार की डोरी को बांधते हुए अपने कमरे की तरफ चली जाती थी,,,,, यह वाक्या लगभग रोज ही होता था,,,,. कुछ देर के लिए अंकित की सांसे तेज हो जाती थी और थोड़ी देर वह टीवी के सामने बैठा रहता था जब तक की उसका ध्यान दूसरी तरफ ना हो जाए और जैसे ही वह अपने आपको साथ महसूस करता था वह तुरंत अपने कमरे में चला जाता था और सो जाता था,,,,,।
बाथरूम में अपनी बहन के द्वारा पेशाब करने के कारण कुछ देर के लिए अंकित अपने तन बदन में उत्तेजना का अनुभव करता था जिसके चलते वह अपने आप को कोसता भी था अपने आप से क्रोधित भी होता था क्योंकि अपनी बहन के पेशाब करने की सीट की आवाज अपने कानों में पढ़ते ही जिस तरह का अनुभव जिस तरह के हालात का वह सामना करता था और जिस तरह से उसका लंड खड़ा हो जाता था वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता था इसलिए उसे ग्लानी महसूस होती थी,,,,, जिसमें उसका बिल्कुल भी दोस्त नहीं होता था क्योंकि वह जवानी के दौर में पहुंच चुका था और ऐसे हालात में किसी भी स्त्री के उभार दार अंगों को देखकर उनके बारे में सोच कर ही किसी का भी लंड खड़ा हो जाता था लेकिन अंकित के मामले में ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता था लेकिन जब भी वह रात के समय अपनी बहन की पेशाब की आवाज को सुनकर अपने आप को रोक नहीं पता था और ना चाहते हुए भी उसके बदन में उत्तेजना का अनुभव होने लगता था,,,, इन सबके बावजूद भी बहुत कभी अपनी बहन के बारे में अपने मन में गंदे विचार नहीं लाया था और ना ही ऐसे विचार लाने के बारे में सोच भी सकता था,,,,,।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गयादूसरे दिन सुबह नाश्ता करके तृप्ति और अंकित दोनों अपने-अपने रास्ते निकल चुके थे,,,,, सुगंधा का भी समय हो रहा था इसलिए वह जल्दी-जल्दी अपना काम खत्म करके कमरे में प्रवेश कर गई और हमेशा की तरह आजम का आने के सामने अपने गाउन को उतारकर एक बार फिर से नंगी हो गई,,,, सुबह-सुबह वह नहाने के बाद गाउन पहन लेती थी क्योंकि उसे खाना बनाना पड़ता था नाश्ता तैयार करना पड़ता था,,,, क्योंकि अगर वह नहाने के तुरंत बाद तैयार हो जाए तो स्कूल जाते-जाते उसे अजीब सा लगने लगता था इसलिए वह सारा काम खत्म करके तैयार होने के बाद स्कूल जाती थी,,,,।
आईने के सामने वह एक बार फिर से नंगी हो चुकी थी उसके बदन पर कपड़े का रेशा तक नहीं था,,,, वैसे तो पति के देहांत के बाद उसके लिए सजना समझना सब कुछ बेकार ही था लेकिन वह स्कूल में पढ़ने का काम करती थी वह टीचर थी स्कूल में और भी टीचर थी जो सज धज कर ही आया करती थी और इसीलिए उसे भी एकदम अप टू डेट होकर ही जाना पड़ता था ऐसा कोई नियम तो नहीं था लेकिन फिर भी सुगंधा अपने मन को मनाने के लिए अपने पति के देहांत के बाद बस थोड़ा सा सज संवर लेती थी,,, जल्दी से उसने अलमारी में से अपने लाल रंग की ब्रा निकाल जो कि उसकी चूचियों की साइज से कम माप की थी,,, वह जानबूझकर अपनी चूचियों के साइज से कम माफ वाली ब्रा पहनती थी ताकि उसकी चूचियां और भी ज्यादा कसी हुई रहे,,,, जल्दी-जल्दी उसे अपनी बाहों में डालकर वहां पीछे से बरा का हक लगने लगी और दोनों कप को अपनी दोनों खरबूजे जैसी चुचियों में समाकर उसे कस ली गोरे बदन पर लाल रंग की ब्रा और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी इसी तरह से वह लाल रंग की पहनती भी अलमारी से निकाली,,, और उसे उलट-पुलट कर देखने लगी पेंटिं में हल्का सा छेद था,,,, और उसे छेद को देखते हुए वह अपने मन में सोचने लगी कि इस बार तनख्वाह मिलेगी तो वह अपने लिए जरूर नई पेटी खरीदेगी,,, और ऐसा सोचते हुए वहां अपनी लंबी-लंबी टांगों को उसे पेटी के दोनों छेद में भारी-बड़ी से डालकर उसे ऊपर की तरफ उठाई और कमर टकला कर अपनी खूबसूरत खजाने को उसे लाल रंग की पेंटिं के परदे में छुपा ली,,,, पेटी को पहनते समय उसकी नजर अपनी बर पर गई थी जिस पर हल्के-हल्के बोल फिर से उग आए थे,,,, पति के न होने के बावजूद भी सुगंध अपने बदन की साफ सफाई की बहुत डरकर रखती थी इसलिए समय-समय पर वीट क्रीम लगाकर अपनी बर को साफ करती थी क्योंकि उसे अपनी बुर पर बाल बिल्कुल भी पसंद नहीं थे क्योंकि घने बाल हो जाने की वजह से उन्होंने खुजली होने लगती थी और स्कूल में पढ़ते समय वह खुजाने में शर्म महसूस करती थी,,, वैसे भी अक्सर मर्दों की नजर औरतों की इस तरह की हरकत पर जरूर रहती है कि वह कब अपना हाथ कौन से अंग पर लगती हैं खास करके जब उनकी हथेली उनकी दोनों टांगों के बीच आती है तो मर्द औरत की हरकत को देखकर तुरंत औरतों की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार के बारे में कल्पना करने लगते हैं कि इसकी कैसी होगी इसकी बर पर बाल होंगे कि नहीं होंगे चिकनी होगी कैसी होगी गुलाबी होगी फूली हुई होगी इस तरह की कल्पना करके मन ही मन में आनंद लेते हैं,,,,।
और ऐसा वह खुद अपनी आंखों से देख चुकी थी क्योंकि स्कूल में पढ़ते समय जब एक बार इसी तरह से उसे खुजली हो रही थी तो वह एक हाथ में किताब लेकर दूसरे हाथ से अनजाने में ही अपनी दोनों टांगों के बीच खुजलाने लगी थी और जब उसे इस बात का एहसास हुआ तो उसकी नजर तुरंत सामने की बेंच पर बैठे लड़के पर गई और वह लड़का उसकी यही क्रिया को देखकर अंदर ही अंदर प्रसन्न हो रहा था और सुगंध को तो तब ज्यादा हैरानी हुई जब उसने उसे लड़के के हाथ को अपने पेंट के आगे वाले भाग पर रखा हुआ देखी,,, तब से वह नियमित रूप से अपनी बुर के बाल,,, को बराबर साफ करती थी,,,।,,, अपनी बुर के बारे में सोच कर सुगंधा अपनी हथेली को पेटी के ऊपर से ही अपनी बर पर रखकर उसे हल्के से थपथपा दी मानो कि जैसे उसे शाबाशी दे रही हो,,, और वैसे भी सुगंधा जैसी खूबसूरत हसीन और गदराई जवानी की मालकिन की बुर शाबाशी देने लायक ही थी क्योंकि आज तक पति के देहांत के बाद उसकी बुर ने उसे कभी भी इस कदर मजबूर नहीं की थी कि उसके कदम बहक जाएं या अपने मन में किसी गैर मर्द के बारे में कल्पना करें,,,, वरना जिस तरह के हालात सुगंधा के थे जिस तरह से वह जवानी से भरी हुई थी अगर ऐसी कोई और औरत होती तो अब तक उसके कदम जरूर डगमगा गए होते और वह अपनी जवानी की प्यास बुझाने के लिए किसी गैर मर्द का सहारा ले ली होती लेकिन सुगंधा के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं था,,,। पति के देहांत के बाद ही जैसे कि वह अपने दोनों बच्चों की परवरिश करने हेतु अपनी ख्वाहिश अपनी जवानी को अपने अरमानों को बंदिश का ताला लगा दी थी जिसकी चाबी तो उसके हाथों में थी लेकिन कभी भी उसने उसे चाबी का गलत उपयोग नहीं की थी इसीलिए आज इस उम्र में भी उसकी जवानी बरकरार थी उसके बदन का कसाव भर करार था उसका बदन और भी ज्यादा निखर गया था,,,,।
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सुगंधा अलमारी में से पीले रंग की साड़ी निकली जो कि उसके ऊपर और भी ज्यादा खूबसूरत लगती थी,,,, जिसे वह अपनी बिस्तर पर रख दी थी और पीले रंग के ब्लाउज को पहनना शुरू कर दी थी ब्रा की तरह वह ब्लाउज भी अपनी चूचियों से कम माप वाला कप का ही पहनती थी,,, देखते ही देखते सुगंधा अपने आप को आईने में निहारते हुए,,, अपने ब्लाउज का बटन बंद करने लगी और जैसे ही ब्लाउज के सारे बटन बंद हुए उसके दोनों खूबसूरत खरबूजे ब्लाउज में कैद हो गए लेकिन अपनी आभा ब्लाउज के ऊपर बिखेर रहे थे और देखने वालों की हालत खराब करने के लिए तैयार हो चुके थे इसी तरह से वह जल्दी से पेटीकोट भी पहन कर उसे अपनी कमर पर कली और फिर साड़ी पहनने लगी,,,,,।
साड़ी पहनने के बाद वह अपने आप को आईने में देख रही थी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी बदन भरा हुआ था लेकिन बेहद खूबसूरत चर्बी का कहीं भी ज्यादा जमावड़ा नहीं था जहां भी चर्बी थी अपने हिसाब से थी जिसे देखने पर कोई भी मर्द मदहोश हो जाता था,,,, वह जल्दी से कंघी लेकर अपने बालों को संवारने लगी और तुरंत ही उसका जुड़ा बनाकर पीछे एक बड़ा सा बकल लगा ली जिससे उसके खूबसूरत बाल और भी ज्यादा खूबसूरत नजर आने लगे वह तैयार हो चुकी थी मन में कोई गाना गुनगुनाते हुए वह अपना पर्स उठाई और घर से बाहर आ गई घर में ताला लगा कर वह स्कूल के लिए निकल गई स्कूल आने जाने के लिए उसे बस का सहारा लेना पड़ता था और कभी कभार तो वह पैदल ही आया जाया करती थी जब कभी ज्यादा देर होती थी तो वह बस का उपयोग करती थी,,, लेकिन आज कोई जल्दबाजी नहीं थी इसलिए वह पैदल ही स्कूल के लिए निकल गई थी इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि सड़क पर चलते समय आने जाने वालों की नजर उसे पर ही टिकी रहती थी क्योंकि एक तो उसका खूबसूरत बदन खूबसूरत चेहरा किसी फिल्म की हीरोइन से कम नहीं लगता था ऊपर से पीले रंग की साड़ी उसे पर तो और भी ज्यादा कयामत लगती थी आने जाने वालों की नजर भेज जब उसके ऊपर ही पड़ जाती थी आगे से आने वाला इंसान उसकी गोलाकार चूचियों को देखकर मस्त होता था और पीछे से आने वाला इंसान उसकी गदराई आई हुई मदमस्त कर देने वाली गांड को देखकर पागल हुआ जाता था,,,,, और अपने मन में यही सोचता था कि इसको छोड़ने वाला मर्द कितना खुश नसीब होगा जो रोज इसकी लेता होगा,,,,,,,,,।
Sugandha
शाम को अंकित घर पर पहुंचा तो उसकी मां पहले सही तैयार बैठी थी उसे मार्केट जो जाना था खरीदी करने के लिए क्योंकि घर में राशन खत्म हो रहा था,,,। अंकित जैसे ही घर में प्रवेश किया उसे देखकर उसकी मां बोली,,।
चल जल्दी से तैयार हो जा मार्केट जाना है खरीदी करने,,,
मेरे लिए नए जूते भी लोगी ना,,,
अरे बेवकूफ राशन की खरीदी करने जाना है नए जूते तुझे तनख्वाह मिलेगी तब खरीदूंगी बस,,,, आप जल्दी से तैयार हो जाओ वैसे भी बहुत देर हो चुकी है आते-आते शाम ढल जाएगी,,,,
अच्छा रुको बस 2 मिनट में आता हूं,,,,,
(इतना कहकर संजू बाथरूम में चला गया और उसकी मां वही कुर्सी पर बैठकर उसका इंतजार करने लगी और मन में सोचने लगी कि क्या-क्या खरीदना है क्या बाकी रह गया है वैसे तो वह राशन की लिस्ट तैयार कर ली थी लेकिन फिर भी सोच रही थी कि कुछ और लेना हो तो वैसे तो पति के देहांत की बात थोड़ी बहुत दिक्कत घर चलाने में हो रही थी लेकिन फिर भी टीचर होने के नाते उसे इतनी तनख्वा तो मिल ही जाती थी कि वह आराम से अपना घर चला सके,,,, सुगंधा ने बड़े सलीके से अपना घर संभाल ली थी,,,, थोड़ी ही देर में अंकित तैयार होकर आ गया था और उसकी मां कुर्सी पर से उठकर कमरे से बाहर आ गई संजू भी अपनी मां के पीछे-पीछे चल दिया वैसे तो जब कभी भी सुगंधा आगे आगे चलती थी तो हर मर्द की नजर उसकी गोल-गोल गांड पर ही टिकी रहती थी क्योंकि चलते समय उसकी गांड मटती बहुत थी और मटकनी हुई गांड देखकर हर मर्द का लैंड खड़ा हो जाता था लेकिन ऐसा कुछ भी अंकित के साथ नहीं होता था हालांकि उसके नजर अपनी मां की गांड पर जाकर जरूर थी लेकिन वह कभी भी अपनी मां के बारे में गलत भावना पैदा नहीं करता था और नहीं कभी अपने मन में गलत सोचता था,,,, बस उसकी सहज रूप से नजरे उसकी मां की गांड पर चली जाती थी और वह सहज रूप से अपनी नजरों को घुमा भी लेता था उसने कभी सोचा नहीं था कि उसकी मां की गांड दूसरी औरतों की तुलना में छोटी है या बड़ी है ढीली है या कसी हुई है,,,, चलते समय मटकती है कि सामान्य रहती है चुचियों का आकार कैसा है बड़ा है कि छोटा है ब्लाउज का बटन बंद करने पर उसकी दरार दिखती है कि नहीं दिखती है इन सब पर तो उसकी नजर जाती जरूरी थी लेकिन इन सबको देखकर उसके मन में गलत भावना नहीं आती थी इसीलिए वह आज तक दूसरे लड़कों से बिल्कुल अलग था,,,,।
Sugandha apna blouse utarte huye
दोनों बाजार के लिए निकल गए थे बाजार ज्यादा दूर नहीं था केवल 10 मिनट के रास्ते पर ही था इसलिए जल्द ही दोनों बाजार में पहुंच गए और राशन की दुकान पर जाकर खड़े हो गए राशन की दुकान पर थोड़ी बहुत भीड़ थी ज्यादातर औरतें ही खड़ी थी,,,, जो कि अपना राशन खरीद रही थी,,,, अंकित दुकान के एक तरफ खड़ा हो गया था जहां उसके आगे दो-तीन औरतें खड़ी थी और ठीक बगल में उसकी मां भी खड़ी हो गई थी हाथ मे राशन का लिस्ट लिए,,,,
दुकान वाला बारी-बारी से सब की लिस्ट लेकर राशन का सामान निकाल रहा था,,, अभी सुगंधा का नंबर है या नहीं था वह वहीं खड़ी होकर अपने नंबर का इंतजार कर रही थी और दुकान में इधर-उधर देखकर और भी चीजों को देख रही थी दुकान पूरी तरह से राशन से भरी हुई थी दोनों तरफ कांच के कपाट लगे हुए थे जिसमें महंगी महंगी चीज रखी हुई थी,,,, अंकित की नजर बार-बार कंप्लेन के डिब्बे पर चली जा रही थी,,, बहुत दिनों से उसकी मां कंप्लेन पीने का कर रहा था और इस बारे में उसने अपनी मां को भी कई बार कह चुका था लेकिन उसकी मां जानती थी कि वह महंगा आता है इसलिए बार-बार जानकारी देती थी लेकिन इस बार वह भी अपने मन में यही सोच रही थी की तनख्वाह पर अंकित के लिए जरुर कंप्लेन खरीदेगी,,,,।
अंकित के आगे जो औरत खड़ी थी उसका ब्लाउज पीछे से काफी खुला हुआ था और उसकी नंगी चिकनी पीठ दिख रही थी और वह काफी गोरी भी थी अंकित की जगह अगर कोई और लड़का होता तो अब तक वह उसे औरत को स्पर्श करने की बहुत कोशिश कर चुका होता क्योंकि अक्सर दुकानों पर यही स्थिति होती है या तो वह उसे औरत को स्पर्श करने की कोशिश करता है या तो अपने आगे वाले भागों को उसके नितंबों पर स्पर्श करने की कोशिश करता लेकिन इन सब में अंकित नहीं था वह दूसरों से अलग था उसकी आंखों के सामने भले यह खूबसूरत औरत खड़ी थी खुला ब्लाउज पहनकर लेकिन फिर भी उसकी खूबसूरती पर अंकित की नजर नहीं पड़ रही थी उसका ध्यान जा रहा था तो उसे खूबसूरत औरत के बदन से उठती हुई मादक खुशबू पर उसे औरत ने बहुत ही सुगंधित परफ्यूम लगाई हुई थी जिसकी खुशबू अंकित को बहुत ही अच्छी लग रही थी और वह अपने मन में सोच रहा था कि काश उसके पास भी इस तरह का परफ्यूम होता तो मजा आ जाता वह भी इतना सोच ही रहा था कि वह औरत जो सामान ले रही थी उसके हाथ से हाथ में लिया हुआ साबुन छूट कर नीचे गिर गया और उसे उठाने के चक्कर में वजह से झुकी उसकी गांड एकदम से पीछे हुई और सीधे जाकर अंकित के लंड से टकरा गई,,, उसे औरत की गांड अंकित के लंड के आगे वाले भाग के एकदम बीचो-बीच स्पर्श हुई थी कि ना चाहते हुए भी अंकित के लंड में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, जैसे ही उसे औरत की गांड अंकित के आगे वाले भाग पर स्पर्श हुई अंकित तुरंत अपने आप को संभालने की कोशिश करता हुआ पीछे होने लगा लेकिन तब तक उसे औरत की गांड अपना कमाल दिखा चुकी थी उसे औरत की गर्म जवानी और उसकी मदहोश कर देने वाली गांड का स्पर्श अंकित के तन बदन में अजीब सा हलचल पैदा कर गया था और वह औरत साबुन उठाने के बाद तुरंत खड़ी हुई और पीछे देखकर अंकित की तरफ मुस्कुराई और सॉरी बोल दी अंकित उसे औरत को देखा ही रह गया उसके चेहरे पर मुस्कान देखकर और उसके द्वारा सॉरी कहने पर एक अजीब सी हलचल अंकित ने अपनी तंबदन में महसूस किया और जवाब में अंकित ने भी मुस्कुराते हुए कोई बात नहीं कह कर बात को टाल दिया,,,, बगल में खड़ी सुगंधा उसे औरत की गांड और अपने बेटे के लंड का स्पर्श उसे औरत की गांड पर तो देख नहीं पाई थी लेकिन उसे औरत को सॉरी कहते हुए देख ली थी और जवाब में अपने बेटे का जवाब सुनकर वह सहज रूप से मुस्कुरा दी थी और वापस अपने नंबर का इंतजार करने लगी थी,,,,।
थोड़ी ही देर में वह औरत थैली में अपना सामान लेकर जाने लगी थी संजू ना चाहते हुए भी पीछे मुड़कर उसे औरत की तरफ देखने लगा और पहली बार उसने किसी औरत के नितंबों को बड़े ध्यान से देख रहा था उसका मटकना हो उसे बेहद लुभाने लग रहा था पल भर में उसके मन में अजीब सी हलचल होने लगी थी उसका मन बदल गया था,,, वह तब तक उसे औरत को देखता रहा जब तक कि वह औरत बाजार की भीड़ में गुम नहीं हो गई,,,, थोड़ी ही देर में उसकी मां वजन किया हुआ सामान अपने ठेले में रखना शुरू कर दी सूजी बेसन डाल गरम मसाले मिर्ची हल्दी थोड़ा-थोड़ा करके वह सब सामान थेले में भर चुकी थी,,, तभी उसकी मां नहाने का एक सामान्य साबुन लेने लगी तो अंकित बोला,,,,)
यह वाला नहीं मम्मी लीरील साबुन खरीद लो उसकी खुशबू बहुत अच्छी है,,,,
नहीं संजु यही ठीक है बार-बार साबुन बदल के नहीं लगना चाहिए वरना नुकसान करता है,,,
क्या मम्मी तुम भी,,,,
(साबुन खरीदने की बात टाल दी गई थी दुकान वाला बिल बना रहा था और भी ग्राहक खड़े थे,,, दुकान में काम करने वाला कारीगर बार-बार सुगंधा की तरफ देख रहा था खास करके उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की तरफ उसकी निगाह जा रही थी पहले तो संजु इस तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था लेकिन आज पहली बार उसे कम करने वाले की निगाह को देख रहा था जो कि उसकी मां की खूबसूरती और उसकी चूचियों पर घूम रही थी यह देखकर अंकित को गुस्सा आने लगा लेकिन वह कुछ कह नहीं सकता था क्योंकि दुकान पर बहुत से लोग थे अगर इस बारे में वह जरा सा भी कुछ कहता तो जिसकी नजर उसकी मां पर नहीं जा रही है उन लोगों की भी नजर उसकी मां पर पहुंच जाती थी और ऐसा अंकित बिल्कुल भी नहीं चाहता था,,, फिर भी वह अपनी मां से बोला,,)
जल्दी करो ना मम्मी बहुत देर हो रही है,,,
बस बेटा हो गया,,,,।
(अंकित बार-बार दुकान में काम करने वाले आदमी को ही देख रहा था उसकी नज़रें उसकी मां के बदन पर घूम रही थी और अंकित को तुरंत उसके दोस्तों की बात याद आ गई,,, जॉकी चाय की दुकान पर बैठकर सड़क पर जाती हुई औरत के बारे में गंदी-गंदी बात कर रहे थे और उसका वह दोस्त जिसके साथ लड़ाई हुई थी उसकी मां के बारे में गंदी बात कर रहा था उसे समझते देर नहीं लगी की सब मर्दों की नजर औरत की खूबसूरती पर ही उसके अंगों पर ही रहती है ,,, थोड़ी ही देर में सुगंधा पैसे देकर हाथ में थैला लेकर चलने लगी तो अंकित खुद अपनी मां के हाथ में से वजनदार थैला को ले लिया और चलने लगा,,,
बाजार के नुक्कड़ पर पानी पुरी का ठेला लगा हुआ था दूसरी औरतों की तरह सुगंधा को भी पानी पुरी बहुत पसंद था इसलिए वह तुरंत उसे ठेले के पास खड़ी हो गई और अपने बेटे के साथ मिलकर पानी पुरी खाने लगी पानी पुरी का चटकारा मसाला उसे बहुत पसंद था,,,,,,, अंकित को भी पानी पुरी अच्छी लगती थी इसलिए वह भी खाने लगा दोनों पानी पुरी खाने के बाद तृप्ति के लिए भी पानी पुरी पैक करवा दिए थे और घर पर पहुंचने के बाद तृप्ति को उसके हिस्से की पानी पुरी दे दिए थे जिसे देखकर वह बहुत खुश हुई थी,,,,।
रास्ते भर और घर पर पहुंचने के बात भी अंकित के मन में उसे औरत की छवि बस गई थी और वह उसे औरत के बारे में सोच रहा था उसके बदन से उठने वाली मादक को खुशबू को महसूस कर रहा था और फिर उसके नितंबों से अपने लंड का टकराना और फिर हाथ में थैला लिए बाजार के भीड़ में गुम हो जाना सब कुछ सोचते हुए उसे अजीब सा महसूस हो रहा था उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी लेकिन जैसे-जैसे वह पढ़ने में मन लगने लगा वैसे-वैसे उसके दिमाग से औरत एकदम से खो गई और वह एकदम से सामान्य हो गया,,,।
Bahot hot he iski gaand mujhe bahot khubsurat lagi wese kya nam he tumhari bahan ka taaki me is kahani me uska nam add kar saku