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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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अध्याय - 79
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सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।


अब आगे....


क़रीब डेढ़ घंटा लगातार बारिश हुई। हर जगह पानी ही पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुक तो गई थी लेकिन मौसम का मिज़ाज ये आभास करा रहा था कि उसका अभी मन भरा नहीं है। बिजली अभी भी चमक रही थी और बादल अभी भी गरज उठते थे। कुछ ही देर में भुवन मोटर साईकिल से आता नज़र आया।

"अरे! छोटे कुंवर आप यहां?" मुझे बरामदे में बैठा देख भुवन हैरानी से बोल पड़ा____"कोई काम था तो मुझे बुलवा लिया होता।"

"नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं थी।" मैंने कहा____"बस यूं ही मन बहलाने के लिए इस तरफ आ गया था। हवेली में अजीब सी घुटन होती है। तुम्हें तो पता ही है कि हम सब किस दौर से गुज़रे हैं।"

"हां जानता हूं।" भुवन ने संजीदगी से कहा____"जो भी हुआ है बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ है छोटे कुंवर।"

"सब कुछ हमारे बस में कहां होता है भुवन।" मैंने गंभीरता से कहा____"अगर होता तो आज मेरे चाचा और मेरे भइया दोनों ही ज़िंदा होते और ज़ाहिर है उनके साथ साथ साहूकार लोग भी। पर शायद ऊपर वाला भी यही चाहता था और आगे न जाने अभी और क्या चाहता होगा वो?"

"फिर से कुछ हुआ है क्या?" भुवन ने फिक्रमंद हो कर पूछा____"इस बार मैं हर पल आपके साथ ही रहूंगा। मेरे रहते आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।"

"तुम्हारी इस वफ़ादारी पर मुझे नाज़ है भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा___"मैं अक्सर सोचता हूं कि मैंने तुम्हारे ऐसा तो कुछ किया ही नहीं है इसके बावजूद तुम मेरे लिए अपनी जान तक का जोख़िम उठाने से नहीं चूक रहे। एक बात कहूं, अपनों के खोने का दर्द बहुत असहनीय होता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए और तुम्हारे परिवार के लोग अनाथ हो जाएं।"

"मैं ये सब नहीं जानता छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मुझे हर हाल में आपकी सुरक्षा करनी है। मुझे अपने परिवार के लोगों की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि उनके सिर पर दादा ठाकुर का हाथ है।"

"बेशक है भुवन।" मैंने कहा____"मगर फिर भी यही कहूंगा कि कभी किसी भ्रम में मत रहो। इतना कुछ होने के बाद मुझे ये समझ आया है कि जब ऊपर वाला अपनी करने पर आता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता। उसके सामने हर कोई बेबस और लाचार हो जाता है।"

"हां मैं समझता हूं छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर मैं भी यही सोच लूंगा कि जो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ होगा वो सब ऊपर वाले की मर्ज़ी से ही होगा। मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा चाहे कुछ भी हो जाए।"

अजीब आदमी था भुवन। मेरे इतना समझाने पर भी मेरी सुरक्षा के लिए अड़ा हुआ था। अंदर से फक्र तो हो रहा था मुझे मगर मैं ऐसे नेक इंसान को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। एक अंजाना भय सा मेरे अंदर समा गया था।

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" फिर मैंने विषय को बदलते हुए कहा____"मैं यहां इस लिए भी आया था कि ताकि तुमसे ये कह सकूं कि तुम यहां पर काम कर रहे सभी लोगों का हिसाब किताब एक कागज़ में बना कर मुझे दे देना। काफी दिन हो गए ये सब बेचारे जी तोड़ मेहनत कर के इस मकान को बनाने में लगे हुए हैं। मैं चाहता हूं कि सबका उचित हिसाब किताब बना कर तुम मुझे दो ताकि मैं इन सबको इनकी मेहनत का फल दे सकूं।"

"फ़िक्र मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"कल दोपहर तक मैं इन सभी का हिसाब किताब बना कर हवेली में आपको देने आ जाऊंगा।"

"मैंने किसी और ही मकसद से इस जगह पर ये मकान बनवाया था।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर ये सब होने के बाद अब हर चीज़ से मोह भंग सा हो गया है। ख़ैर जगताप चाचा के न रहने पर अब मुझे ही उनके सारे काम सम्हालने हैं इस लिए मैं चाहता हूं कि इसके बाद उन कामों में भी तुम मेरे साथ रहो।"

"मैं तो वैसे भी आपके साथ ही रहूंगा छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"आपको ये कहने की ज़रूरत ही नहीं है। आप बस हुकुम कीजिए कि मुझे क्या क्या करना है?"

"मुझे खेती बाड़ी का ज़्यादा ज्ञान नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"इसके पहले मैंने कभी इन सब चीज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया था। इस लिए मैं चाहता हूं कि इस काम में तुम मेरी मदद करो या फिर ऐसे लोगों को खोजो जो इन सब कामों में माहिर भी हों और ईमानदार भी।"

"वैसे तो ज़्यादातर गांव के लोग आपकी ही ज़मीनों पर काम करते हैं।" भुवन ने कहा____"मझले ठाकुर सब कुछ उन्हीं से करवाते थे। मेरा ख़याल है कि एक बार उन सभी लोगों से आपको मिल लेना चाहिए और अपने तरीके से सारे कामों के बारे में जांच पड़ताल भी कर लेनी चाहिए।"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"यहां इन लोगों का हिसाब किताब करने के बाद किसी दिन मिलते हैं उन सबसे।"

"बिल्कुल।" भुवन ने कहा____"आज बारिश भी अच्छी खासी हो गई है। मौसम का मिज़ाज देख कर लगता है कि अभी और भी बारिश होगी। इस बारिश के चलते ज़मीन में नमी भी आ जाएगी जिससे ज़मीनों की जुताई का काम जल्द ही शुरू करवाना होगा।"

"ठीक है फिर।" मैंने स्टूल से उठते हुए कहा____"अब मैं चलता हूं।"
"बारिश की वजह से रास्ते काफी ख़राब हो गए हैं।" भुवन ने कहा____"इस लिए सम्हल कर जाइएगा।"

मैं बरामदे से निकल कर बाहर आया तो भुवन भी मेरे पीछे आ गया। सहसा मुझे अनुराधा का ख़याल आया तो मैंने पलट कर उससे कहा____"मुरारी काका के घर किसी वैद्य को ले कर चले जाना।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?" भुवन एकदम से हैरान हो कर बोल पड़ा____"काका के यहां वैद्य को ले कर जाना है? सब ठीक तो है न वहां? आप गए थे क्या काका के घर?"

"नहीं मैं वहां गया नहीं था।" मैंने अपनी मोटर साइकिल में बैठते हुए कहा____"असल में मुरारी काका की बेटी आई थी बारिश में भीगते हुए। शायद तुमसे कोई काम था उसे।"

मेरी बात सुन कर भुवन एकाएक फिक्रमंद नज़र आने लगा। फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।

"पूरी तरह पागल है वो।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए उसी फीकी मुस्कान से कहा____"पिछले कुछ समय से लगभग वो रोज़ ही यहां आती है। कुछ देर तो वो मुझसे इधर उधर की बातें करेगी और फिर झिझकते हुए आपके बारे में पूछ बैठेगी। हालाकि वो ये समझती है कि मुझे उसके अंदर का कुछ पता ही नहीं है मगर उस नादान और नासमझ को कौन समझाए कि उसकी हर नादानियां उसकी अलग ही कहानी बयां करती हैं।"

मैंने भुवन की बातों पर कुछ कहा नहीं। ये अलग बात है कि मेरे अंदर एकदम से ही हलचल मच गई थी। तभी भुवन ने कहा____"उसे मुझसे कोई काम नहीं होता है छोटे कुंवर। वो तो सिर्फ आपको देखने की आस में यहां आती है। उसे लगता है कि आप यहां किसी रोज़ तो आएंगे ही इस लिए वो पिछले कुछ दिनों से लगभग रोज़ ही यहां आती है और जब उसकी आंखें आपको नहीं देख पातीं तो वो निराश हो जाती है।"

"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने मोटर साइकिल को स्टार्ट करते हुए कहा____"तुम एक बार हो आना मुरारी काका के घर।"

"मुझे पूछना तो नहीं चाहिए छोटे कुंवर।" भुवन ने झिझकते हुए कहा____"मगर फिर भी पूछने की हिमाकत कर रहा हूं। क्या मैं जान सकता हूं कि आप दोनों के बीच में क्या चल रहा है? क्या आप उसे किसी भ्रम में रखे हुए हैं? कहीं आप उस मासूम की भावनाओं से खेल तो नहीं रहे छोटे कुंवर?"

"इतना सब मत सोचो भुवन।" मैंने उसकी व्याकुलता को शांत करने की गरज से कहा____"बस इतना समझ लो कि अगर मेरे द्वारा उसको कोई तकलीफ़ होगी तो उससे कहीं ज़्यादा मुझे भी होगी।"

कहने के साथ ही मैंने उसकी कोई बात सुने बिना ही मोटर साईकिल को आगे बढ़ा दिया। मेरा ख़याल था कि भुवन इतना तो समझदार था ही कि मेरी इतनी सी बात की गहराई को समझ जाए। ख़ैर बारिश के चलते सच में कच्चा रास्ता बहुत ख़राब हो गया था इस लिए मैं बहुत ही सम्हल कर चलते हुए काफी देर में हवेली पहुंचा। मोटर साइकिल के पहियों पर ढेर सारा कीचड़ और मिट्टी लग गई थी इस लिए मैंने एक मुलाजिम को बुला कर मोटर साईकिल को अच्छी तरह धो कर खड़ी कर देने के लिए कह दिया।

✮✮✮✮

दादा ठाकुर की बग्घी जैसे ही साहूकारों के घर के बाहर खुले मैदान में रुकी तो घोड़ों की हिनहिनाहट को सुन कर जल्दी ही घर का दरवाज़ा खुला और रूपचंद्र नज़र आया। उसकी नज़र जब दादा ठाकुर पर पड़ी तो वो बड़ा हैरान हुआ। इधर दादा ठाकुर बग्घी से उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़े। दादा ठाकुर के साथ में शेरा भी था।

"कैसे हो रूप बेटा?" दादा ठाकुर ने बहुत ही आत्मीयता से रूपचंद्र की तरफ देखते हुए कहा____"हम गौरी शंकर से मिलने आए हैं। अगर वो अंदर हों तो उनसे कहो कि हम आए हैं।"

रूपचंद्र भौचक्का सा खड़ा देखता रह गया था। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने हड़बड़ा कर दादा ठाकुर की तरफ देखा। पंचायत का फ़ैसला होने के बाद ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर को उसने देखा था और साथ ही ये भी कि काफी सालों बाद दादा ठाकुर के क़दम साहूकारों के घर की ज़मीन पर पड़े थे। रूपचंद्र फ़ौरन ही अंदर गया और फिर कुछ ही पलों में आ भी गया। उसके पीछे उसका चाचा गौरी शंकर भी आ गया। एक पैर से लंगड़ा रहा था वो।

"ठाकुर साहब आप यहां?" गौरी शंकर ने चकित भाव से पूछा____"आख़िर अब किस लिए आए हैं यहां? क्या हमारा समूल विनाश कर के अभी आपका मन नहीं भरा?"

"हम मानते हैं कि हमने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अपराध किया है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और यकीन मानो इतना भयंकर अपराध करने के बाद हम जीवन में कभी भी चैन से जी नहीं पाएंगे। हम ये भी जानते हैं कि हमारा अपराध माफ़ी के काबिल नहीं है फिर भी हो सके तो हमें माफ कर देना।"

"ऐसी ही मीठी मीठी बातों के द्वारा आपने लोगों के अंदर अपने बारे में एक अच्छे इंसान के रूप में प्रतिष्ठित किया हुआ है न?" गौरी शंकर ने तीखे भाव से कहा____"वाकई कमाल की बात है ये। हम लोग तो बेकार में ही बदनाम थे जबकि इस बदनामी के असली हक़दार तो आप हैं। ख़ैर छोड़िए, ये बताइए यहां किस लिए आए हैं आप?"

"क्या अंदर आने के लिए नहीं कहोगे हमें?" दादा ठाकुर ने संजीदगी से उसकी तरफ देखा तो गौरी शंकर कुछ पलों तक जाने क्या सोचता रहा फिर एक तरफ हट गया।

कुछ ही पलों में दादा ठाकुर और गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ बैठक में रखी कुर्सियों पर बैठे नज़र आए। गौरी शंकर को समझ नहीं आ रहा था कि दादा ठाकुर उसके घर किस लिए आए हैं? वो इस बात पर भी हैरान था कि उसने दादा ठाकुर को इतने कटु शब्द कहे फिर भी दादा ठाकुर ने उस पर गुस्सा नहीं किया।

गौरी शंकर ने अंदर आवाज़ दे कर लोटा ग्लास में पानी लाने को कहा तो दादा ठाकुर ने इसके लिए मना कर दिया।

"तुम्हें हमारे लिए कोई तकल्लुफ करने की ज़रूरत नहीं है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"असल में हम यहां पर एक विशेष प्रयोजन से आए हैं। हालाकि यहां आने की हम में हिम्मत तो नहीं थी फिर भी ये सोच कर आए हैं कि न आने से वो कैसे होगा जो हम करना चाहते हैं?"

"क...क्या मतलब?" गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों ही चौंके। किसी अनिष्ट की आशंका से दोनों की ही धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं।

"हम चाहते हैं कि तुम हमारी भाभी श्री के साथ साथ बाकी लोगों को भी यहीं बुला लो।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सबके सामने कुछ ज़रूरी बातें कहना चाहते हैं।"

गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों किसी दुविधा में फंसे नज़र आए। ये देख दादा ठाकुर ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन लोगों को उनसे किसी बात के लिए घबराने अथवा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आश्वस्त होने के बाद गौरी शंकर ने रूपचंद्र को ये कह कर अंदर भेजा कि वो सबको बुला कर लाए। आख़िर थोड़ी ही देर में अंदर से सभी औरतें और बहू बेटियां बाहर आ गईं। गौरी शंकर के पिता चल फिर नहीं सकते थे इस लिए वो अंदर ही थे।

बाहर बैठक में दादा ठाकुर को बैठे देख सभी औरतें और बहू बेटियां हैरान थीं। उनमें से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि इतना कुछ होने के बाद दादा ठाकुर इस तरह उनके घर आ सकते हैं। बहरहाल, उन सबको आ गया देख दादा ठाकुर कुर्सी से उठे और मणि शंकर की पत्नी फूलवती के पास पहुंचे। ये देख सबकी सांसें थम सी गईं।

"प्रणाम भाभी श्री।" अपने दोनों हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर ने फूलवती से कहा____"इस घर में आप हमसे बड़ी हैं। हमें उम्मीद है कि आपका हृदय इतना विशाल है कि आप हमें आशीर्वाद ज़रूर देंगी।"

दादा ठाकुर के मुख से ऐसी बातें सुन जहां बाकी सब आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखने लगे थे वहीं फूलवती के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव उभर आए। कुछ पलों तक वो गुस्से से ही दादा ठाकुर को देखती रहीं फिर जाने उन्हें क्या हुआ कि उनके चेहरे पर नज़र आ रहा गुस्सा गायब होने लगा।

"किसी औरत की कमज़ोरी से आप शायद भली भांति परिचित हैं ठाकुर साहब।" फूलवती ने भाव हीन लहजे से कहा____"खुद को हमसे छोटा बना कर हमारा स्नेह पा लेना चाहते हैं आप।"

"छोटों को अपने से बड़ों से इसके अलावा और भला क्या चाहिए भाभी श्री?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे द्वारा इतना कुछ सह लेने के बाद भी अगर आप हमें आशीर्वाद और स्नेह प्रदान करेंगी तो ये हमारे लिए किसी ईश्वर के वरदान से कम नहीं होगा।"

"क्या आपको लगता है कि ऐसे किसी वरदान के योग्य हैं आप?" फूलवती ने कहा।
"बिल्कुल भी नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु फिर भी हमें यकीन है कि सब कुछ भुला कर आप हमें ये वरदान ज़रूर देंगी।"

"इस जन्म में तो ये संभव नहीं है ठाकुर साहब।" फूलवती ने तीखे भाव से कहा____"आप सिर्फ ये बताइए कि यहां किस लिए आए हैं?"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर कुछ पलों तक उसे देखते रहे फिर बाकी सबकी तरफ देखने के बाद वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई ये जानने के लिए उत्सुक था कि आख़िर दादा ठाकुर किस लिए आए हैं यहां?

"हमने तो उस दिन भी पंचायत में कहा था कि अगर हमें मौत की सज़ा भी दे दी जाए तो हमें कोई अफ़सोस अथवा तकलीफ़ नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"क्योंकि हमने जो किया है उसकी सिर्फ और सिर्फ वही एक सज़ा होनी चाहिए थी मगर पंच परमेश्वर ने हमें ऐसी सज़ा ही नहीं दी। हमें आप सबकी तकलीफ़ों का भली भांति एहसास है। अगर आप सबका दुख हमारी मौत हो जाने से ही दूर हो सकता है तो इसी वक्त आप लोग हमारी जान ले लीजिए। हमने बाहर खड़े अपने मुलाजिम को पहले ही बोल दिया है कि अगर यहां पर हमारी मौत हो जाए तो वो हमारी मौत के लिए किसी को भी ज़िम्मेदार न माने और ना ही इसके लिए किसी को कोई सज़ा दिलाने का सोचे। तो अब देर मत कीजिए, हमें इसी वक्त जान से मार कर आप सब अपना दुख दूर कर लीजिए।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सब के सब भौचक्के से देखते रह गए उन्हें। रूपचंद्र और गौरी शंकर हैरत से आंखें फाड़े दादा ठाकुर को देखे जा रहे थे। काफी देर तक जब किसी ने कुछ नहीं किया और ना ही कुछ कहा तो दादा ठाकुर ने सबको निराशा की दृष्टि से देखा।

"क्या हुआ आप सब चुप क्यों हैं?" दादा ठाकुर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर हमें जान से मार देने पर ही आप सबका दुख दूर हो सकता है तो मार दीजिए हमें। इतने बड़े अपराध बोझ के साथ तो हम खुद भी जीना नहीं चाहते।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर एकाएक गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"गौरी शंकर, क्या हुआ? आख़िर अब क्या सोच रहे हो तुम? हमें जान से मार क्यों नहीं देते तुम?"

"ठ...ठाकुर साहब, ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर बुरी तरह चकरा गया था। हैरत से आंखें फाड़े बोला____"आपका दिमाग़ तो सही है ना?"

"हम पूरी तरह होश में हैं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि हम तुम सबसे क्या कह रहे हैं। हमारा यकीन करो, हम यहां इसी लिए तो आए हैं ताकि तुम सब हमारी जान ले कर अपने दुख संताप को दूर कर लो। हमें भी अपने भाई और अपने बेटे की हत्या हो जाने के दुख से मुक्ति मिल जाएगी।"

"ये...ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?" गौरी शंकर मानो अभी भी चकराया हुआ था____"नहीं नहीं, हम में से कोई भी आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता। कृपया सम्हालिए खुद को।"

"तुम्हें पता है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"जब हम दोनों परिवारों के रिश्ते सुधर गए थे तो हमें बेहद खुशी हुई थी। हमें लगा था कि वर्षों पहले दादा ठाकुर बनने के बाद जो हमने तुम्हारे पिता जी से माफ़ी मांगी थी उसको कबूल कर लिया है उन्होंने। मुद्दत बाद ही सही किंतु दो संपन्न परिवारों के बीच के रिश्ते फिर से बेहतर हो गए। हमने जाने क्या क्या सोच लिया था हमारे बेहतर भविष्य के लिए मगर हमें क्या पता था कि हमारी ये खुशियां महज चंद दिनों की ही मेहमान थीं। हम जानते हैं कि हमारे पिता यानि बड़े दादा ठाकुर ने अपने ज़माने में जाने कितनों के साथ बुरा किया था इस लिए उनके बाद जब हम उनकी जगह पर आए तो हमने सबसे पहली क़सम इसी बात की खाई थी कि न तो हम कभी किसी के साथ बुरा करेंगे और ना ही हमारे बच्चे। हां हम ये मानते हैं कि वैभव पर हम कभी पाबंदी नहीं लगा सके, जबकि उसको सुधारने के लिए हमने हमेशा ही उसको सख़्त से सख़्त सज़ा दी है। ख़ैर हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि इस सबके बाद अगर हमें जीने का मौका मिला है तो क्यों इस मौके को बर्बाद करें? हमारा मतलब है कि आपस का बैर भाव त्याग कर क्यों ना हम सब साथ मिल कर बचे हुए को संवारने की कोशिश करें।"

"क्या आपको लगता है कि हमारे बीच इतना कुछ होने के बाद अब ये सब होना संभव हो सकेगा?" गौरी शंकर ने कहा____"नहीं ठाकुर साहब। ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता।"

"हां ऐसा तभी संभव नहीं हो सकता जब हम खुद ऐसा न करना चाहें।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हम ये सोच कर चलेंगे कि थाली में रखा हुआ भोजन हमारे हाथ और मुंह का उपयोग किए बिना ही हमारे पेट में पहुंच जाए तो यकीनन वो नहीं पहुंचेगा। वो तो तभी पहुंचेगा जब हम उसे पेट में पहुंचाने के लिए अपने हाथ और मुंह दोनों चलाएंगे।"

"हमारे बीच का मामला थाली में रखे हुए भोजन जैसा नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"और फिर एक पल के लिए हम मान भी लें तो ऐसा क्या करेंगे जिससे हमारे बीच के रिश्ते पहले जैसे हो जाएं? क्या आप हमारे अंदर का दुख दूर कर पाएंगे? क्या आप उन लोगों को वापस ला पाएंगे जिन्हें आपने मार डाला? नहीं ठाकुर साहब, ये काम न आप कर सकते हैं और ना ही हम।"

"हम मानते हैं कि हम दोनों न तो गुज़र गए लोगों को वापस ला सकते हैं और ना ही एक दूसरे का दुख दूर कर सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु क्या ये सोचने का विषय नहीं है कि क्या हम दोनों इसी सब को लिए बैठे रहेंगे जीवन भर? आख़िर इस दुख तकलीफ़ को तो हम दोनों को ही भुलाने की कोशिश करनी होगी और उन लोगों के बारे में सोचने होगा जो हमारे ही सहारे पर बैठे हैं।"

"क्या मतलब है आपका?" गौर शंकर ने संदेहपूर्ण भाव से पूछा।

"तुम इस बारे में क्या सोचते हो और क्या फ़ैसला करते हो ये तुम्हारी सोच और समझ पर निर्भर करता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने सोच लिया है कि हम वो सब करेंगे जिससे कि सब कुछ बेहतर हो सके।"

"क...क्या करना चाहते हैं आप?" रूपचंद्र ने पहली बार हस्तक्षेप करते हुए पूछा।

"इसे हमारा कर्तव्य समझो या फिर हमारा प्रायश्चित।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"लेकिन सच ये है कि हमने इस परिवार के लिए बहुत कुछ सोच लिया है। इस परिवार की सभी लड़कियों को हम अपनी ही बेटियां समझते हैं इस लिए हमने सोचा है कि उन सबका ब्याह हम करवाएंगे लेकिन वहीं जहां आप लोग चाहेंगे।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" सहसा फूलवती बोल पड़ी____"हमारी बेटियां हमारे लिए कोई बोझ नहीं हैं और हम इतने असमर्थ भी नहीं हैं कि हम उनका ब्याह नहीं कर सकते।"

"हमारा ये मतलब भी नहीं है भाभी श्री कि आपकी बेटियां आपके लिए बोझ हैं या फिर आप उनका ब्याह करने में असमर्थ हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें बखूबी इस बात का इल्म है कि आप पूरी तरह सभी कामों के लिए समर्थ हैं किंतु....।"

"किंतु क्या ठाकुर साहब?" फूलवती ने दादा ठाकुर की तरफ देखा।

"यही कि अगर ऐसा पुण्य काम करने का सौभाग्य आप हमें देंगी तो हमें बेहद अच्छा लगेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारी अपनी तो कोई बेटी है नहीं। हमारे छोटे भाई की बेटी है जिसका कन्यादान उसे खुद ही करना था। हम पहले भी इस बारे में बहुत सोचते थे और हमेशा हमारे ज़हन में इस घर की बेटियों का ही ख़याल आता था। जब हमारे रिश्ते बेहतर हो गए थे तो हमें यकीन हो गया था कि जल्द ही हमारी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी। हमने तो ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सब हो जाएगा। ख़ैर जो हुआ उसे लौटाया तो नहीं जा सकता लेकिन फिर से एक नई और बेहतर शुरुआत के लिए अगर हम सब मिल कर ये सब करें तो कदाचित हम दोनों ही परिवार वालों को एक अलग ही सुखद एहसास हो।"

"ठीक है फिर।" फूलवती ने कहा____"अगर आप वाकई में सब कुछ बेहतर करने का सोचते हैं तो हमें भी ये सब मंजूर है लेकिन....।"

"ल...लेकिन क्या भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने उत्सुकता से पूछा। उन्हें फूलवती द्वारा सब कुछ मंज़ूर कर लेने से बेहद खुशी का आभास हुआ था।

"यही कि अगर आप सच में चाहते हैं कि हमारे दोनों ही परिवारों के बीच बेहतर रिश्ते के साथ एक नई शुरुआत हो।" फूलवती ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"तो हमारा भी आपके लिए एक सुझाव है और हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा सुझाव पसंद ही नहीं आएगा बल्कि मंज़ूर भी होगा।"

"बिल्कुल भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"आप बताइए क्या सुझाव है आपका?"

"अगर आप अपनी बेटी कुसुम का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से कर दें।" फूलवती ने कहा___"तो हमें पूरा यकीन है कि दोनों ही परिवारों के बीच के रिश्ते हमेशा के लिए बेहतर हो जाएंगे और इसके साथ ही एक नई शुरुआत भी हो जाएगी।"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर एकदम से ख़ामोश रह गए। उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि फूलवती उनसे ऐसा भी बोल सकती है। सहसा उन्हें पंचायत में मुंशी चंद्रकांत द्वारा बताई गई बातों का ध्यान आया जब उसने बताया था कि साहूकार लोग उनकी बेटी कुसुम से रूपचंद्र का ब्याह करना चाहते थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" फूलवती के होठों पर एकाएक गहरी मुस्कान उभर आई____"आप एकदम से ख़ामोश क्यों हो गए? ऐसा लगता है कि आपको हमारा सुझाव अच्छा नहीं लगा। अगर यही बात है तो फिर यही समझा जाएगा कि आप यहां बेहतर संबंध बनाने और एक नई शुरुआत करने की जो बातें हम सबसे कर रहे हैं वो सब महज दिखावा हैं। यानि आप हम सबके सामने अच्छा बनने का दिखावा कर रहे हैं।"

"नहीं भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप ग़लत समझ रही हैं। ऐसी कोई बात नहीं है।"

"तो फिर बताइए ठाकुर साहब।" फूलवती ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा____"क्या आपको हमारा सुझाव पसंद आया? क्या आप दोनों परिवारों के बीच गहरे संबंधों के साथ एक नई शुरुआत के लिए अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से करने को तैयार हैं?"

"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
वैभव,भुवन की वफादारी का कायल हो गया
ये दादा ठाकूर सावकारों के घर पहुंच कर रिस्ते सुधारने की बात करते हैं तो फुलवती रुपचंद और कुसुम के शादी की बात करते हैं जो दादा ठाकूर मान भी लेते हैं सब हैराण होते है
क्या वैभव और बाकी सब इस शादी के लिये तयार होगे देखते हैं आगे
 

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अध्याय - 79
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सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।


अब आगे....


क़रीब डेढ़ घंटा लगातार बारिश हुई। हर जगह पानी ही पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुक तो गई थी लेकिन मौसम का मिज़ाज ये आभास करा रहा था कि उसका अभी मन भरा नहीं है। बिजली अभी भी चमक रही थी और बादल अभी भी गरज उठते थे। कुछ ही देर में भुवन मोटर साईकिल से आता नज़र आया।

"अरे! छोटे कुंवर आप यहां?" मुझे बरामदे में बैठा देख भुवन हैरानी से बोल पड़ा____"कोई काम था तो मुझे बुलवा लिया होता।"

"नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं थी।" मैंने कहा____"बस यूं ही मन बहलाने के लिए इस तरफ आ गया था। हवेली में अजीब सी घुटन होती है। तुम्हें तो पता ही है कि हम सब किस दौर से गुज़रे हैं।"

"हां जानता हूं।" भुवन ने संजीदगी से कहा____"जो भी हुआ है बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ है छोटे कुंवर।"

"सब कुछ हमारे बस में कहां होता है भुवन।" मैंने गंभीरता से कहा____"अगर होता तो आज मेरे चाचा और मेरे भइया दोनों ही ज़िंदा होते और ज़ाहिर है उनके साथ साथ साहूकार लोग भी। पर शायद ऊपर वाला भी यही चाहता था और आगे न जाने अभी और क्या चाहता होगा वो?"

"फिर से कुछ हुआ है क्या?" भुवन ने फिक्रमंद हो कर पूछा____"इस बार मैं हर पल आपके साथ ही रहूंगा। मेरे रहते आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।"

"तुम्हारी इस वफ़ादारी पर मुझे नाज़ है भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा___"मैं अक्सर सोचता हूं कि मैंने तुम्हारे ऐसा तो कुछ किया ही नहीं है इसके बावजूद तुम मेरे लिए अपनी जान तक का जोख़िम उठाने से नहीं चूक रहे। एक बात कहूं, अपनों के खोने का दर्द बहुत असहनीय होता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए और तुम्हारे परिवार के लोग अनाथ हो जाएं।"

"मैं ये सब नहीं जानता छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मुझे हर हाल में आपकी सुरक्षा करनी है। मुझे अपने परिवार के लोगों की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि उनके सिर पर दादा ठाकुर का हाथ है।"

"बेशक है भुवन।" मैंने कहा____"मगर फिर भी यही कहूंगा कि कभी किसी भ्रम में मत रहो। इतना कुछ होने के बाद मुझे ये समझ आया है कि जब ऊपर वाला अपनी करने पर आता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता। उसके सामने हर कोई बेबस और लाचार हो जाता है।"

"हां मैं समझता हूं छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर मैं भी यही सोच लूंगा कि जो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ होगा वो सब ऊपर वाले की मर्ज़ी से ही होगा। मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा चाहे कुछ भी हो जाए।"

अजीब आदमी था भुवन। मेरे इतना समझाने पर भी मेरी सुरक्षा के लिए अड़ा हुआ था। अंदर से फक्र तो हो रहा था मुझे मगर मैं ऐसे नेक इंसान को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। एक अंजाना भय सा मेरे अंदर समा गया था।

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" फिर मैंने विषय को बदलते हुए कहा____"मैं यहां इस लिए भी आया था कि ताकि तुमसे ये कह सकूं कि तुम यहां पर काम कर रहे सभी लोगों का हिसाब किताब एक कागज़ में बना कर मुझे दे देना। काफी दिन हो गए ये सब बेचारे जी तोड़ मेहनत कर के इस मकान को बनाने में लगे हुए हैं। मैं चाहता हूं कि सबका उचित हिसाब किताब बना कर तुम मुझे दो ताकि मैं इन सबको इनकी मेहनत का फल दे सकूं।"

"फ़िक्र मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"कल दोपहर तक मैं इन सभी का हिसाब किताब बना कर हवेली में आपको देने आ जाऊंगा।"

"मैंने किसी और ही मकसद से इस जगह पर ये मकान बनवाया था।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर ये सब होने के बाद अब हर चीज़ से मोह भंग सा हो गया है। ख़ैर जगताप चाचा के न रहने पर अब मुझे ही उनके सारे काम सम्हालने हैं इस लिए मैं चाहता हूं कि इसके बाद उन कामों में भी तुम मेरे साथ रहो।"

"मैं तो वैसे भी आपके साथ ही रहूंगा छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"आपको ये कहने की ज़रूरत ही नहीं है। आप बस हुकुम कीजिए कि मुझे क्या क्या करना है?"

"मुझे खेती बाड़ी का ज़्यादा ज्ञान नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"इसके पहले मैंने कभी इन सब चीज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया था। इस लिए मैं चाहता हूं कि इस काम में तुम मेरी मदद करो या फिर ऐसे लोगों को खोजो जो इन सब कामों में माहिर भी हों और ईमानदार भी।"

"वैसे तो ज़्यादातर गांव के लोग आपकी ही ज़मीनों पर काम करते हैं।" भुवन ने कहा____"मझले ठाकुर सब कुछ उन्हीं से करवाते थे। मेरा ख़याल है कि एक बार उन सभी लोगों से आपको मिल लेना चाहिए और अपने तरीके से सारे कामों के बारे में जांच पड़ताल भी कर लेनी चाहिए।"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"यहां इन लोगों का हिसाब किताब करने के बाद किसी दिन मिलते हैं उन सबसे।"

"बिल्कुल।" भुवन ने कहा____"आज बारिश भी अच्छी खासी हो गई है। मौसम का मिज़ाज देख कर लगता है कि अभी और भी बारिश होगी। इस बारिश के चलते ज़मीन में नमी भी आ जाएगी जिससे ज़मीनों की जुताई का काम जल्द ही शुरू करवाना होगा।"

"ठीक है फिर।" मैंने स्टूल से उठते हुए कहा____"अब मैं चलता हूं।"
"बारिश की वजह से रास्ते काफी ख़राब हो गए हैं।" भुवन ने कहा____"इस लिए सम्हल कर जाइएगा।"

मैं बरामदे से निकल कर बाहर आया तो भुवन भी मेरे पीछे आ गया। सहसा मुझे अनुराधा का ख़याल आया तो मैंने पलट कर उससे कहा____"मुरारी काका के घर किसी वैद्य को ले कर चले जाना।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?" भुवन एकदम से हैरान हो कर बोल पड़ा____"काका के यहां वैद्य को ले कर जाना है? सब ठीक तो है न वहां? आप गए थे क्या काका के घर?"

"नहीं मैं वहां गया नहीं था।" मैंने अपनी मोटर साइकिल में बैठते हुए कहा____"असल में मुरारी काका की बेटी आई थी बारिश में भीगते हुए। शायद तुमसे कोई काम था उसे।"

मेरी बात सुन कर भुवन एकाएक फिक्रमंद नज़र आने लगा। फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।

"पूरी तरह पागल है वो।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए उसी फीकी मुस्कान से कहा____"पिछले कुछ समय से लगभग वो रोज़ ही यहां आती है। कुछ देर तो वो मुझसे इधर उधर की बातें करेगी और फिर झिझकते हुए आपके बारे में पूछ बैठेगी। हालाकि वो ये समझती है कि मुझे उसके अंदर का कुछ पता ही नहीं है मगर उस नादान और नासमझ को कौन समझाए कि उसकी हर नादानियां उसकी अलग ही कहानी बयां करती हैं।"

मैंने भुवन की बातों पर कुछ कहा नहीं। ये अलग बात है कि मेरे अंदर एकदम से ही हलचल मच गई थी। तभी भुवन ने कहा____"उसे मुझसे कोई काम नहीं होता है छोटे कुंवर। वो तो सिर्फ आपको देखने की आस में यहां आती है। उसे लगता है कि आप यहां किसी रोज़ तो आएंगे ही इस लिए वो पिछले कुछ दिनों से लगभग रोज़ ही यहां आती है और जब उसकी आंखें आपको नहीं देख पातीं तो वो निराश हो जाती है।"

"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने मोटर साइकिल को स्टार्ट करते हुए कहा____"तुम एक बार हो आना मुरारी काका के घर।"

"मुझे पूछना तो नहीं चाहिए छोटे कुंवर।" भुवन ने झिझकते हुए कहा____"मगर फिर भी पूछने की हिमाकत कर रहा हूं। क्या मैं जान सकता हूं कि आप दोनों के बीच में क्या चल रहा है? क्या आप उसे किसी भ्रम में रखे हुए हैं? कहीं आप उस मासूम की भावनाओं से खेल तो नहीं रहे छोटे कुंवर?"

"इतना सब मत सोचो भुवन।" मैंने उसकी व्याकुलता को शांत करने की गरज से कहा____"बस इतना समझ लो कि अगर मेरे द्वारा उसको कोई तकलीफ़ होगी तो उससे कहीं ज़्यादा मुझे भी होगी।"

कहने के साथ ही मैंने उसकी कोई बात सुने बिना ही मोटर साईकिल को आगे बढ़ा दिया। मेरा ख़याल था कि भुवन इतना तो समझदार था ही कि मेरी इतनी सी बात की गहराई को समझ जाए। ख़ैर बारिश के चलते सच में कच्चा रास्ता बहुत ख़राब हो गया था इस लिए मैं बहुत ही सम्हल कर चलते हुए काफी देर में हवेली पहुंचा। मोटर साइकिल के पहियों पर ढेर सारा कीचड़ और मिट्टी लग गई थी इस लिए मैंने एक मुलाजिम को बुला कर मोटर साईकिल को अच्छी तरह धो कर खड़ी कर देने के लिए कह दिया।

✮✮✮✮

दादा ठाकुर की बग्घी जैसे ही साहूकारों के घर के बाहर खुले मैदान में रुकी तो घोड़ों की हिनहिनाहट को सुन कर जल्दी ही घर का दरवाज़ा खुला और रूपचंद्र नज़र आया। उसकी नज़र जब दादा ठाकुर पर पड़ी तो वो बड़ा हैरान हुआ। इधर दादा ठाकुर बग्घी से उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़े। दादा ठाकुर के साथ में शेरा भी था।

"कैसे हो रूप बेटा?" दादा ठाकुर ने बहुत ही आत्मीयता से रूपचंद्र की तरफ देखते हुए कहा____"हम गौरी शंकर से मिलने आए हैं। अगर वो अंदर हों तो उनसे कहो कि हम आए हैं।"

रूपचंद्र भौचक्का सा खड़ा देखता रह गया था। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने हड़बड़ा कर दादा ठाकुर की तरफ देखा। पंचायत का फ़ैसला होने के बाद ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर को उसने देखा था और साथ ही ये भी कि काफी सालों बाद दादा ठाकुर के क़दम साहूकारों के घर की ज़मीन पर पड़े थे। रूपचंद्र फ़ौरन ही अंदर गया और फिर कुछ ही पलों में आ भी गया। उसके पीछे उसका चाचा गौरी शंकर भी आ गया। एक पैर से लंगड़ा रहा था वो।

"ठाकुर साहब आप यहां?" गौरी शंकर ने चकित भाव से पूछा____"आख़िर अब किस लिए आए हैं यहां? क्या हमारा समूल विनाश कर के अभी आपका मन नहीं भरा?"

"हम मानते हैं कि हमने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अपराध किया है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और यकीन मानो इतना भयंकर अपराध करने के बाद हम जीवन में कभी भी चैन से जी नहीं पाएंगे। हम ये भी जानते हैं कि हमारा अपराध माफ़ी के काबिल नहीं है फिर भी हो सके तो हमें माफ कर देना।"

"ऐसी ही मीठी मीठी बातों के द्वारा आपने लोगों के अंदर अपने बारे में एक अच्छे इंसान के रूप में प्रतिष्ठित किया हुआ है न?" गौरी शंकर ने तीखे भाव से कहा____"वाकई कमाल की बात है ये। हम लोग तो बेकार में ही बदनाम थे जबकि इस बदनामी के असली हक़दार तो आप हैं। ख़ैर छोड़िए, ये बताइए यहां किस लिए आए हैं आप?"

"क्या अंदर आने के लिए नहीं कहोगे हमें?" दादा ठाकुर ने संजीदगी से उसकी तरफ देखा तो गौरी शंकर कुछ पलों तक जाने क्या सोचता रहा फिर एक तरफ हट गया।

कुछ ही पलों में दादा ठाकुर और गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ बैठक में रखी कुर्सियों पर बैठे नज़र आए। गौरी शंकर को समझ नहीं आ रहा था कि दादा ठाकुर उसके घर किस लिए आए हैं? वो इस बात पर भी हैरान था कि उसने दादा ठाकुर को इतने कटु शब्द कहे फिर भी दादा ठाकुर ने उस पर गुस्सा नहीं किया।

गौरी शंकर ने अंदर आवाज़ दे कर लोटा ग्लास में पानी लाने को कहा तो दादा ठाकुर ने इसके लिए मना कर दिया।

"तुम्हें हमारे लिए कोई तकल्लुफ करने की ज़रूरत नहीं है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"असल में हम यहां पर एक विशेष प्रयोजन से आए हैं। हालाकि यहां आने की हम में हिम्मत तो नहीं थी फिर भी ये सोच कर आए हैं कि न आने से वो कैसे होगा जो हम करना चाहते हैं?"

"क...क्या मतलब?" गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों ही चौंके। किसी अनिष्ट की आशंका से दोनों की ही धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं।

"हम चाहते हैं कि तुम हमारी भाभी श्री के साथ साथ बाकी लोगों को भी यहीं बुला लो।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सबके सामने कुछ ज़रूरी बातें कहना चाहते हैं।"

गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों किसी दुविधा में फंसे नज़र आए। ये देख दादा ठाकुर ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन लोगों को उनसे किसी बात के लिए घबराने अथवा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आश्वस्त होने के बाद गौरी शंकर ने रूपचंद्र को ये कह कर अंदर भेजा कि वो सबको बुला कर लाए। आख़िर थोड़ी ही देर में अंदर से सभी औरतें और बहू बेटियां बाहर आ गईं। गौरी शंकर के पिता चल फिर नहीं सकते थे इस लिए वो अंदर ही थे।

बाहर बैठक में दादा ठाकुर को बैठे देख सभी औरतें और बहू बेटियां हैरान थीं। उनमें से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि इतना कुछ होने के बाद दादा ठाकुर इस तरह उनके घर आ सकते हैं। बहरहाल, उन सबको आ गया देख दादा ठाकुर कुर्सी से उठे और मणि शंकर की पत्नी फूलवती के पास पहुंचे। ये देख सबकी सांसें थम सी गईं।

"प्रणाम भाभी श्री।" अपने दोनों हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर ने फूलवती से कहा____"इस घर में आप हमसे बड़ी हैं। हमें उम्मीद है कि आपका हृदय इतना विशाल है कि आप हमें आशीर्वाद ज़रूर देंगी।"

दादा ठाकुर के मुख से ऐसी बातें सुन जहां बाकी सब आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखने लगे थे वहीं फूलवती के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव उभर आए। कुछ पलों तक वो गुस्से से ही दादा ठाकुर को देखती रहीं फिर जाने उन्हें क्या हुआ कि उनके चेहरे पर नज़र आ रहा गुस्सा गायब होने लगा।

"किसी औरत की कमज़ोरी से आप शायद भली भांति परिचित हैं ठाकुर साहब।" फूलवती ने भाव हीन लहजे से कहा____"खुद को हमसे छोटा बना कर हमारा स्नेह पा लेना चाहते हैं आप।"

"छोटों को अपने से बड़ों से इसके अलावा और भला क्या चाहिए भाभी श्री?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे द्वारा इतना कुछ सह लेने के बाद भी अगर आप हमें आशीर्वाद और स्नेह प्रदान करेंगी तो ये हमारे लिए किसी ईश्वर के वरदान से कम नहीं होगा।"

"क्या आपको लगता है कि ऐसे किसी वरदान के योग्य हैं आप?" फूलवती ने कहा।
"बिल्कुल भी नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु फिर भी हमें यकीन है कि सब कुछ भुला कर आप हमें ये वरदान ज़रूर देंगी।"

"इस जन्म में तो ये संभव नहीं है ठाकुर साहब।" फूलवती ने तीखे भाव से कहा____"आप सिर्फ ये बताइए कि यहां किस लिए आए हैं?"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर कुछ पलों तक उसे देखते रहे फिर बाकी सबकी तरफ देखने के बाद वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई ये जानने के लिए उत्सुक था कि आख़िर दादा ठाकुर किस लिए आए हैं यहां?

"हमने तो उस दिन भी पंचायत में कहा था कि अगर हमें मौत की सज़ा भी दे दी जाए तो हमें कोई अफ़सोस अथवा तकलीफ़ नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"क्योंकि हमने जो किया है उसकी सिर्फ और सिर्फ वही एक सज़ा होनी चाहिए थी मगर पंच परमेश्वर ने हमें ऐसी सज़ा ही नहीं दी। हमें आप सबकी तकलीफ़ों का भली भांति एहसास है। अगर आप सबका दुख हमारी मौत हो जाने से ही दूर हो सकता है तो इसी वक्त आप लोग हमारी जान ले लीजिए। हमने बाहर खड़े अपने मुलाजिम को पहले ही बोल दिया है कि अगर यहां पर हमारी मौत हो जाए तो वो हमारी मौत के लिए किसी को भी ज़िम्मेदार न माने और ना ही इसके लिए किसी को कोई सज़ा दिलाने का सोचे। तो अब देर मत कीजिए, हमें इसी वक्त जान से मार कर आप सब अपना दुख दूर कर लीजिए।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सब के सब भौचक्के से देखते रह गए उन्हें। रूपचंद्र और गौरी शंकर हैरत से आंखें फाड़े दादा ठाकुर को देखे जा रहे थे। काफी देर तक जब किसी ने कुछ नहीं किया और ना ही कुछ कहा तो दादा ठाकुर ने सबको निराशा की दृष्टि से देखा।

"क्या हुआ आप सब चुप क्यों हैं?" दादा ठाकुर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर हमें जान से मार देने पर ही आप सबका दुख दूर हो सकता है तो मार दीजिए हमें। इतने बड़े अपराध बोझ के साथ तो हम खुद भी जीना नहीं चाहते।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर एकाएक गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"गौरी शंकर, क्या हुआ? आख़िर अब क्या सोच रहे हो तुम? हमें जान से मार क्यों नहीं देते तुम?"

"ठ...ठाकुर साहब, ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर बुरी तरह चकरा गया था। हैरत से आंखें फाड़े बोला____"आपका दिमाग़ तो सही है ना?"

"हम पूरी तरह होश में हैं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि हम तुम सबसे क्या कह रहे हैं। हमारा यकीन करो, हम यहां इसी लिए तो आए हैं ताकि तुम सब हमारी जान ले कर अपने दुख संताप को दूर कर लो। हमें भी अपने भाई और अपने बेटे की हत्या हो जाने के दुख से मुक्ति मिल जाएगी।"

"ये...ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?" गौरी शंकर मानो अभी भी चकराया हुआ था____"नहीं नहीं, हम में से कोई भी आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता। कृपया सम्हालिए खुद को।"

"तुम्हें पता है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"जब हम दोनों परिवारों के रिश्ते सुधर गए थे तो हमें बेहद खुशी हुई थी। हमें लगा था कि वर्षों पहले दादा ठाकुर बनने के बाद जो हमने तुम्हारे पिता जी से माफ़ी मांगी थी उसको कबूल कर लिया है उन्होंने। मुद्दत बाद ही सही किंतु दो संपन्न परिवारों के बीच के रिश्ते फिर से बेहतर हो गए। हमने जाने क्या क्या सोच लिया था हमारे बेहतर भविष्य के लिए मगर हमें क्या पता था कि हमारी ये खुशियां महज चंद दिनों की ही मेहमान थीं। हम जानते हैं कि हमारे पिता यानि बड़े दादा ठाकुर ने अपने ज़माने में जाने कितनों के साथ बुरा किया था इस लिए उनके बाद जब हम उनकी जगह पर आए तो हमने सबसे पहली क़सम इसी बात की खाई थी कि न तो हम कभी किसी के साथ बुरा करेंगे और ना ही हमारे बच्चे। हां हम ये मानते हैं कि वैभव पर हम कभी पाबंदी नहीं लगा सके, जबकि उसको सुधारने के लिए हमने हमेशा ही उसको सख़्त से सख़्त सज़ा दी है। ख़ैर हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि इस सबके बाद अगर हमें जीने का मौका मिला है तो क्यों इस मौके को बर्बाद करें? हमारा मतलब है कि आपस का बैर भाव त्याग कर क्यों ना हम सब साथ मिल कर बचे हुए को संवारने की कोशिश करें।"

"क्या आपको लगता है कि हमारे बीच इतना कुछ होने के बाद अब ये सब होना संभव हो सकेगा?" गौरी शंकर ने कहा____"नहीं ठाकुर साहब। ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता।"

"हां ऐसा तभी संभव नहीं हो सकता जब हम खुद ऐसा न करना चाहें।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हम ये सोच कर चलेंगे कि थाली में रखा हुआ भोजन हमारे हाथ और मुंह का उपयोग किए बिना ही हमारे पेट में पहुंच जाए तो यकीनन वो नहीं पहुंचेगा। वो तो तभी पहुंचेगा जब हम उसे पेट में पहुंचाने के लिए अपने हाथ और मुंह दोनों चलाएंगे।"

"हमारे बीच का मामला थाली में रखे हुए भोजन जैसा नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"और फिर एक पल के लिए हम मान भी लें तो ऐसा क्या करेंगे जिससे हमारे बीच के रिश्ते पहले जैसे हो जाएं? क्या आप हमारे अंदर का दुख दूर कर पाएंगे? क्या आप उन लोगों को वापस ला पाएंगे जिन्हें आपने मार डाला? नहीं ठाकुर साहब, ये काम न आप कर सकते हैं और ना ही हम।"

"हम मानते हैं कि हम दोनों न तो गुज़र गए लोगों को वापस ला सकते हैं और ना ही एक दूसरे का दुख दूर कर सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु क्या ये सोचने का विषय नहीं है कि क्या हम दोनों इसी सब को लिए बैठे रहेंगे जीवन भर? आख़िर इस दुख तकलीफ़ को तो हम दोनों को ही भुलाने की कोशिश करनी होगी और उन लोगों के बारे में सोचने होगा जो हमारे ही सहारे पर बैठे हैं।"

"क्या मतलब है आपका?" गौर शंकर ने संदेहपूर्ण भाव से पूछा।

"तुम इस बारे में क्या सोचते हो और क्या फ़ैसला करते हो ये तुम्हारी सोच और समझ पर निर्भर करता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने सोच लिया है कि हम वो सब करेंगे जिससे कि सब कुछ बेहतर हो सके।"

"क...क्या करना चाहते हैं आप?" रूपचंद्र ने पहली बार हस्तक्षेप करते हुए पूछा।

"इसे हमारा कर्तव्य समझो या फिर हमारा प्रायश्चित।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"लेकिन सच ये है कि हमने इस परिवार के लिए बहुत कुछ सोच लिया है। इस परिवार की सभी लड़कियों को हम अपनी ही बेटियां समझते हैं इस लिए हमने सोचा है कि उन सबका ब्याह हम करवाएंगे लेकिन वहीं जहां आप लोग चाहेंगे।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" सहसा फूलवती बोल पड़ी____"हमारी बेटियां हमारे लिए कोई बोझ नहीं हैं और हम इतने असमर्थ भी नहीं हैं कि हम उनका ब्याह नहीं कर सकते।"

"हमारा ये मतलब भी नहीं है भाभी श्री कि आपकी बेटियां आपके लिए बोझ हैं या फिर आप उनका ब्याह करने में असमर्थ हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें बखूबी इस बात का इल्म है कि आप पूरी तरह सभी कामों के लिए समर्थ हैं किंतु....।"

"किंतु क्या ठाकुर साहब?" फूलवती ने दादा ठाकुर की तरफ देखा।

"यही कि अगर ऐसा पुण्य काम करने का सौभाग्य आप हमें देंगी तो हमें बेहद अच्छा लगेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारी अपनी तो कोई बेटी है नहीं। हमारे छोटे भाई की बेटी है जिसका कन्यादान उसे खुद ही करना था। हम पहले भी इस बारे में बहुत सोचते थे और हमेशा हमारे ज़हन में इस घर की बेटियों का ही ख़याल आता था। जब हमारे रिश्ते बेहतर हो गए थे तो हमें यकीन हो गया था कि जल्द ही हमारी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी। हमने तो ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सब हो जाएगा। ख़ैर जो हुआ उसे लौटाया तो नहीं जा सकता लेकिन फिर से एक नई और बेहतर शुरुआत के लिए अगर हम सब मिल कर ये सब करें तो कदाचित हम दोनों ही परिवार वालों को एक अलग ही सुखद एहसास हो।"

"ठीक है फिर।" फूलवती ने कहा____"अगर आप वाकई में सब कुछ बेहतर करने का सोचते हैं तो हमें भी ये सब मंजूर है लेकिन....।"

"ल...लेकिन क्या भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने उत्सुकता से पूछा। उन्हें फूलवती द्वारा सब कुछ मंज़ूर कर लेने से बेहद खुशी का आभास हुआ था।

"यही कि अगर आप सच में चाहते हैं कि हमारे दोनों ही परिवारों के बीच बेहतर रिश्ते के साथ एक नई शुरुआत हो।" फूलवती ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"तो हमारा भी आपके लिए एक सुझाव है और हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा सुझाव पसंद ही नहीं आएगा बल्कि मंज़ूर भी होगा।"

"बिल्कुल भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"आप बताइए क्या सुझाव है आपका?"

"अगर आप अपनी बेटी कुसुम का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से कर दें।" फूलवती ने कहा___"तो हमें पूरा यकीन है कि दोनों ही परिवारों के बीच के रिश्ते हमेशा के लिए बेहतर हो जाएंगे और इसके साथ ही एक नई शुरुआत भी हो जाएगी।"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर एकदम से ख़ामोश रह गए। उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि फूलवती उनसे ऐसा भी बोल सकती है। सहसा उन्हें पंचायत में मुंशी चंद्रकांत द्वारा बताई गई बातों का ध्यान आया जब उसने बताया था कि साहूकार लोग उनकी बेटी कुसुम से रूपचंद्र का ब्याह करना चाहते थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" फूलवती के होठों पर एकाएक गहरी मुस्कान उभर आई____"आप एकदम से ख़ामोश क्यों हो गए? ऐसा लगता है कि आपको हमारा सुझाव अच्छा नहीं लगा। अगर यही बात है तो फिर यही समझा जाएगा कि आप यहां बेहतर संबंध बनाने और एक नई शुरुआत करने की जो बातें हम सबसे कर रहे हैं वो सब महज दिखावा हैं। यानि आप हम सबके सामने अच्छा बनने का दिखावा कर रहे हैं।"

"नहीं भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप ग़लत समझ रही हैं। ऐसी कोई बात नहीं है।"

"तो फिर बताइए ठाकुर साहब।" फूलवती ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा____"क्या आपको हमारा सुझाव पसंद आया? क्या आप दोनों परिवारों के बीच गहरे संबंधों के साथ एक नई शुरुआत के लिए अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से करने को तैयार हैं?"

"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
वैभव,भुवन की वफादारी का कायल हो गया
ये दादा ठाकूर सावकारों के घर पहुंच कर रिस्ते सुधारने की बात करते हैं तो फुलवती रुपचंद और कुसुम के शादी की बात करते हैं जो दादा ठाकूर मान भी लेते हैं सब हैराण होते है
क्या वैभव और बाकी सब इस शादी के लिये तयार होगे देखते हैं आगे
 

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अध्याय - 80
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"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।



अब आगे....


मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भागता हुआ अपने घर के अंदर आया और बरामदे में बैठे अपने पिता से बोला____"बापू, मैंने अभी अभी साहूकारों के घर में दादा ठाकुर को जाते देखा है।"

"क...क्या???" चंद्रकांत बुरी तरह चौंका____"ये क्या कह रहे हो तुम?"

"मैं सच कह रहा हूं बापू।" रघुवीर ने कहा____"दादा ठाकुर अपनी बग्घी से आया है। मैंने देखा कि रूपचंद्र ने दरवाज़ा खोला और फिर कुछ देर बाद गौरी शंकर भी आया। दादा ठाकुर ने उससे कुछ कहा और फिर वो लोग अंदर चले गए।"

"बड़े हैरत की बात है ये।" चंद्रकांत चकित भाव से सोचते हुए बोला____"इतना कुछ हो जाने के बाद दादा ठाकुर आख़िर किस लिए आया होगा साहूकारों के यहां?"

"कोई तो बात ज़रूर होगी बापू।" रघुवीर ने कहा____"मैंने देखा था कि गौरी शंकर ने उसे अंदर बुलाया तो वो चला गया। अभी भी वो लोग अंदर ही हैं।"

"हो सकता है दादा ठाकुर अपने किए की माफ़ी मांगने आया होगा उन लोगों से।" चंद्रकांत ने कहा____"पर मुझे पूरा यकीन है कि गौरी शंकर उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"क्यों नहीं करेगा भला?" रघुवीर ने मानों तर्क़ देते हुए कहा____"इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है। मर्द के नाम पर सिर्फ दो लोग ही बचे हैं उनके घर में। ऐसे में अगर वो दादा ठाकुर से अब भी किसी तरह का बैर भाव रखेंगे तो नुकसान उन्हीं का होगा। मुझे तो पूरा भरोसा है बापू कि अगर दादा ठाकुर खुद चल कर माफ़ी मांगने ही आया है तो वो लोग ज़रूर माफ़ कर देंगे उसे। आख़िर उन्हें इसी गांव में रहना है तो भला कैसे वो दादा ठाकुर जैसे ताकतवर आदमी के खिलाफ़ जा सकेंगे?"

"शायद तुम सही कह रहे हो।" चंद्रकांत को एकदम से ही मानों वास्तविकता का एहसास हुआ____"अब वो किसी भी हाल में दादा ठाकुर के खिलाफ़ जाने का नहीं सोच सकते। उन्हें भी पता है कि मर्द के नाम पर अब सिर्फ वो ही दो लोग हैं। ऐसे में अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनके घर की औरतों और बहू बेटियों का क्या होगा?"

"ये सब छोड़ो बापू।" रघुवीर ने कुछ सोचते हुए कहा____"अब ये सोचो कि हमारा क्या होगा? मेरा मतलब है कि अगर दादा ठाकुर ने किसी तरह साहूकारों को मना कर अपने से जोड़ लिया तो हमारे लिए समस्या हो जाएगी। हमने तो उस दिन पंचायत में भी ये कह दिया था कि हमें अपने किए का कोई अफ़सोस नहीं है इस लिए मुमकिन है कि इस बात के चलते दादा ठाकुर किसी दिन हमारे साथ कुछ बुरा कर दे।"

"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतना ख़ौफ खा रहे हो बेटा।" चंद्रकांत ने कहा____"मैं दादा ठाकुर को उसके बचपन से जानता हूं। वो कभी पंचायत के निर्णय के ख़िलाफ़ जा कर कोई क़दम नहीं उठाएगा। इस लिए तुम इस सबके लिए भयभीत मत हो।"

"और उसके उस बेटे का क्या जिसका नाम वैभव सिंह है?" रघुवीर ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"क्या उसके बारे में भी तुम यही कह सकते हो कि वो भी अपने पिता की तरह पंचायत के फ़ैसले के खिलाफ़ जा कर कोई ग़लत क़दम नहीं उठाएगा?"

रघुवीर की बात सुन कर चंद्रकांत फ़ौरन कुछ बोल ना सका। कदाचित उसे भी एहसास था कि वैभव के बारे में उसके बेटे का ऐसा कहना ग़लत नहीं है। वो वैभव की नस नस से परिचित था इस लिए उसे वैभव पर भरोसा नहीं था। वैभव में हमेशा ही उसे बड़े दादा ठाकुर का अक्श नज़र आता था। कहने को तो वो अभी बीस साल का था लेकिन उसके तेवर और उसके काम करने का हर तरीका बड़े दादा ठाकुर जैसा ही था।

"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है बापू कि वैभव पर तुम्हें भी भरोसा नहीं है।" चंद्रकांत को चुप देख रघुवीर ने कहा____"यानि तुम भी समझते हो कि वैभव के लिए पंचायत का कोई भी फ़ैसला मायने नहीं रखता, है ना?"

"लगता तो मुझे भी यही है बेटा।" चंद्रकांत ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर मुझे इस बात का भी यकीन है कि वो अपने पिता के खिलाफ़ भी नहीं जा सकता। ये सब होने के बाद यकीनन उसके पिता ने उसे अच्छे से समझाया होगा कि अब उसे अपना हर तरीका या तो बदलना होगा या फिर छोड़ना होगा। वैभव भी अब पहले जैसा नहीं रहा जो किसी बात की परवाह किए बिना पल में वही कर जाए जो सिर्फ वो चाहता था। मुझे यकीन है कि वो भी अब कुछ भी उल्टा सीधा करने का नहीं सोचेगा।"

"मान लेता हूं कि नहीं सोचेगा।" रघुवीर ने कहा____"मगर कब तक बापू? वैभव जैसा लड़का भला कब तक अपनी फितरत के ख़िलाफ रहेगा? किसी दिन तो वो अपने पहले वाले रंग में आएगा ही, तब क्या होगा?"

"तो क्या चाहते हो तुम?" चंद्रकांत ने जैसे एकाएक परेशान हो कर कहा।

"इससे पहले कि पंचायत के खिलाफ़ जा कर वो हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा करे।" रघुवीर ने एकदम से मुट्ठियां कसते हुए कहा___"हम खुद ही कुछ ऐसा कर डालें जिससे वैभव नाम का ख़तरा हमेशा हमेशा के लिए हमारे सिर से हट जाए।"

"नहीं।" चंद्रकांत अपने बेटे के मंसूबे को सुन कर अंदर ही अंदर कांप गया, बोला____"तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे। ऐसा सोचना भी मत बेटे वरना अनर्थ हो जाएगा। मत भूलो कि अब हमारे साथ साहूकारों की फ़ौज नहीं है बल्कि इस समय हम अकेले ही हैं। इसके पहले तो किसी को हमसे ये उम्मीद ही नहीं थी कि हम ऐसा कर सकते हैं किंतु अब सबको हमारे बारे में पता चल चुका है। पंचायत के फ़ैसले के बाद अगर हमने कुछ भी उल्टा सीधा करने का सोचा तो यकीन मानो हमारे साथ ठीक नहीं होगा।"

"तुम तो बेवजह ही इतना घबरा रहे हो बापू।" रघुवीर ने कहा____"जबकि तुम्हें तो ये सोचना चाहिए कि जिस लड़के ने हमारे घर की औरतों के साथ हवस का खेल खेला है उसे कुछ भी कर के ख़त्म कर देना चाहिए। वैसे भी हम कौन सा ढिंढोरा पीट कर उसके साथ कुछ करेंगे?"

"मेरे अंदर की आग ठंडी नहीं हुई है बेटे।" चंद्रकांत ने सख़्त भाव से कहा____"उस हरामजादे के लिए मेरे अंदर अभी भी वैसी ही नफ़रत और गुस्सा मौजूद है। मैं भी उसे ख़त्म करना चाहता हूं लेकिन अभी ऐसा नहीं कर सकता। मामले को थोड़ा ठंडा पड़ने दो। लोगों के मन में इस बात का यकीन हो जाने दो कि अब हम कुछ नहीं कर सकते। उसके बाद ही हम उसे ख़त्म करने का सोचेंगे।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" रघुवीर ने कहा____"मैं मामले के ठंडा होने का इंतज़ार करूंगा।"

"यही अच्छा होगा बेटा।" चंद्रकांत ने कहा____"वैसे भी दादा ठाकुर ने हमारी निगरानी में अपने आदमी भी लगा रखे होंगे। ज़ाहिर है हम कुछ भी करेंगे तो उसका पता दादा ठाकुर को फ़ौरन चल जाएगा। इस लिए हमें तब तक शांत ही रहना होगा जब तक कि ये मामला ठंडा नहीं हो जाता अथवा हमें ये न लगने लगे कि अब हम पर निगरानी नहीं रखी जा रही है।"

रघुवीर को सारी बात समझ में आ गई इस लिए उसने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर उठ कर अंदर चला गया। उसके जाने के बाद चंद्रकांत गहरी सोच में डूब गया। दादा ठाकुर की साहूकारों के घर में मौजूदगी उसके लिए मानों चिंता का सबब बन गई थी।

✮✮✮✮

"अगर आप वाकई में अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे के साथ करने को तैयार हैं।" फूलवती ने कहा____"तो हमें भी ये मंजूर है कि आप हमारे घर की बेटियों का ब्याह अपने हिसाब से करें। ख़ैर अभी तो साल भर हमारे घरों में ब्याह जैसे शुभ काम नहीं हो सकते इस लिए अगले साल आपकी बेटी के ब्याह के साथ ही हमारे नए संबंधों का तथा नई शुरुआत का शुभारंभ हो जाएगा।"

"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हमें इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन एक बार हमें इस रिश्ते के बारे में अपने छोटे भाई जगताप की धर्म पत्नी से भी पूछना पड़ेगा।"

"उनसे पूछने की भला क्या ज़रूरत है ठाकुर साहब?" फूलवती ने कहा____"हवेली के मुखिया आप हैं। भला कोई आपके फ़ैसले के खिलाफ़ कैसे जा सकता है? हमें यकीन है कि मझली ठकुराईन को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं होगी।"

"अगर हमारा भाई जीवित होता तो बात अलग थी भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने सहसा संजीदा हो कर कहा____"क्योंकि तब हमारा अपने भाई पर ज़्यादा हक़ और ज़्यादा ज़ोर होता किंतु अब वो नहीं रहा। इस लिए उसके बीवी बच्चों के ऊपर हम कोई भी फ़ैसला ज़बरदस्ती नहीं थोप सकते। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि उन्हें अपने लिए हमारे द्वारा किए गए किसी फ़ैसले से तनिक भी ठेस पहुंचे अथवा वो उनके मन के मुताबिक न हो। इसी लिए कह रहे हैं कि हमें एक बार उससे इस बारे में पूछना पड़ेगा।"

"चलिए ठीक है।" फूलवती ने कहा____"लेकिन मान लीजिए कि यदि मझली ठकुराईन ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया तब आप क्या करेंगे?"

"ज़ाहिर है तब ये रिश्ता हो पाना संभव ही नहीं हो सकेगा।" दादा ठाकुर ने जैसे स्पष्ट भाव से कहा____"जैसा कि हम बता ही चुके हैं कि पहले में और अब में बहुत फ़र्क हो गया है। हम अपने और अपने बच्चों के लिए हज़ारों दुख सह सकते हैं या उनके लिए कोई भी निर्णय ले सकते हैं मगर अपने दिवंगत भाई के बीवी बच्चों के लिए किसी भी तरह का निर्णय नहीं ले सकते और ना ही उन पर किसी तरह की आंच आने दे सकते हैं।"

"अगर मझली ठकुराईन ने इस रिश्ते को करने से इंकार कर दिया।" फूलवती ने दो टूक लहजे में कहा____"तो फिर बहुत मुश्किल होगा ठाकुर साहब हमारे और आपके बीच नई शुरुआत होना।"

"रिश्तों में किसी शर्त का होना अच्छी बात नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे भी शादी ब्याह जैसे पवित्र रिश्ते तो ऊपर वाले की कृपा और आशीर्वाद से ही बनते हैं। ख़ैर हम इस बारे में बात करेंगे किंतु अगर कुसुम की मां ने इस रिश्ते के लिए इंकार किया तो हम उस पर ज़ोर भी नहीं डालेंगे। रिश्ते तो वही बेहतर होते हैं जिनमें दोनों पक्षों की सहमति और खुशी शामिल हो। ज़बरदस्ती बनाए गए रिश्ते कभी खुशियां नहीं देते।"

रूपचंद्र जो अब तक खुशी से फूला नहीं समा रहा था दादा ठाकुर की ऐसी बातें सुनने से उसकी वो खुशी पलक झपकते ही छू मंतर हो गई। फूलवती ने कुछ कहना तो चाहा लेकिन फिर जाने क्या सोच कर वो कुछ न बोली। दादा ठाकुर उठे और फिर बाहर की तरफ चल दिए। उनके पीछे गौरी शंकर और रूपचंद्र भी चल पड़े। बाहर आ कर दादा ठाकुर ने गौरी शंकर से इतना ही कहा कि उन सबके लिए हवेली के दरवाज़े खुले हैं। वो लोग जब चाहे आ सकते हैं। उसके बाद दादा ठाकुर बग्घी में आ कर बैठे ग‌ए। शेरा ने घोड़ों की लगाम को झटका दिया तो वो बग्घी को लिए चल पड़े।

"आपने तो कमाल ही कर दिया भौजी।" दादा ठाकुर के जाने के बाद गौरी शंकर अंदर आते ही फूलवती से बोल पड़ा____"दादा ठाकुर से शादी जैसे रिश्ते की बात कहने की तो मुझमें भी हिम्मत नहीं थी लेकिन आपने तो बड़ी सहजता से उनसे ये बात कह दी।"

"आप सही कह रहे हैं काका।" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"बड़ी मां को दादा ठाकुर से ऐसी बात कहते हुए ज़रा भी डर नहीं लगा।"

"दादा ठाकुर भी इंसान ही है बेटा।" फूलवती ने सपाट लहजे में कहा____"और इंसान से भला क्या डरना? वैसे भी उसने जो किया है उसकी वजह से वो हमारे सामने सिर उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। फिर जब उसने रिश्ते सुधार कर फिर से नई शुरुआत करने की बात कही तो मैंने भी यही देखने के लिए उससे ऐसा कह दिया ताकि देख सकूं कि वो इस बारे में क्या कहता है?"

"उसने आपकी बात मान तो ली ना भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"उसने तो इस रिश्ते से इंकार ही नहीं किया जबकि मैं तो यही सोच के डर रहा था जाने वो आपकी इन बातों पर क्या कहने लगे?"

"ये उसकी मजबूरी थी जो उसने इस रिश्ते के लिए हां कहा।" फूलवती ने कहा____"क्योंकि वो अपराध बोझ से दबा हुआ है और हर हाल में चाहता है कि हमारे साथ उसके रिश्ते बेहतर हो जाएं। ख़ैर उसने इस रिश्ते के लिए मजबूरी में हां तो कहा लेकिन फिर एक तरह से इंकार भी कर दिया।"

"वो कैसे बड़ी मां?" रूपचंद्र को जैसे समझ न आया।

"अपने छोटे भाई की पत्नी से इस रिश्ते के बारे में पूछने की बात कह कर।" फूलवती ने कहा____"हालाकि एक तरह से उसका ये सोचना जायज़ भी है किन्तु उसे भी पता है कि उसके भाई की पत्नी अपनी बेटी का ब्याह हमारे घर में कभी नहीं करेगी। ज़ाहिर है ये एक तरह से इंकार ही हुआ।"

"हां हो सकता है।" गौरी शंकर ने कहा____"फिर भी देखते हैं क्या होता है? अगर वो सच में हमारे रूपचंद्र से अपने छोटे भाई की बेटी का ब्याह कर के नया रिश्ता बनाना चाहता है तो यकीनन वो हवेली में बात करेगा।"

"अब यही तो देखना है कि आने वाले समय में उसकी तरफ से हमें क्या जवाब मिलता है?" फूलवती ने कहा।

"और अगर सच में ये रिश्ता न हुआ तो?" गौरी शंकर ने कहा____"तब क्या आप उसे यही कहेंगी कि हम उससे अपने रिश्ते नहीं सुधारेंगे?"

"जिस व्यक्ति ने हमारे घर के लोगों की हत्या कर के हमारा सब कुछ बर्बाद कर दिया हो।" फूलवती ने सहसा तीखे भाव से कहा____"ऐसे व्यक्ति से हम कैसे भला कोई ताल्लुक रख सकते हैं? कहीं तुम उससे रिश्ते सुधार लेने का तो नहीं सोच रहे?"

"बड़े भैया के बाद आप ही हमारे परिवार की मालकिन अथवा मुखिया हैं भौजी।" गौरी शंकर ने गंभीरता से कहा____"हम भला कैसे आपके खिलाफ़ कुछ करने का सोच सकते हैं?"

"वाह! बहुत खूब।" फूलवती के पीछे खड़ी उसकी बीवी सुनैना एकदम से बोल पड़ी____"क्या कहने हैं आपके। इसके पहले भी आप सबने इनसे पूछ कर ही हर काम किया था और अब आगे भी करेंगे, है ना?"

गौरी शंकर अपनी बीवी की ताने के रूप में कही गई ये बात सुन कर चुप रह गया। उससे कुछ कहते ना बना था। कहता भी क्या? सच ही तो कहा था उसकी बीवी ने। फूलवती ने सुनैना और बाकी सबको अंदर जाने को कहा तो वो सब चली गईं।

✮✮✮✮

कपड़े बदल कर मैं अपने कमरे में आराम ही कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने जा कर दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर भाभी अपने हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ीं थी। विधवा के लिबास में उन्हें देखते ही मेरे अंदर एक टीस सी उभरी।

"मां जी ने बताया कि तुम भींग गए थे।" भाभी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा____"इस लिए तुम्हारे लिए अदरक वाली गरमा गरम चाय बना कर लाई हूं।"

"आपको ये तकल्लुफ करने की क्या ज़रूरत थी भाभी?" मैंने उनके पीछे आते हुए कहा____"हवेली में इतनी सारी नौकरानियां हैं। किसी को भी बोल देतीं आप।"

"शायद तुम भूल गए हो कि हवेली की किसी भी नौकरानी को तुम्हारे कमरे में आने की इजाज़त नहीं है।" मैं जैसे ही पलंग पर बैठा तो भाभी ने मेरी तरफ चाय का प्याला बढ़ाते हुए कहा____"ऐसे में भला कोई नौकरानी तुम्हें चाय देने कैसे आ सकती थी? मां जी को सीढियां चढ़ने में परेशानी होती है इस लिए मुझे ही आना पड़ा।"

"और आपकी चाय कहां है?" मैंने विषय बदलते हुए कहा____"क्या आप नहीं पियेंगी?"
"अब जाऊंगी तो मां जी के साथ बैठ कर पियूंगी।" भाभी ने कहा____"वैसे कहां गए थे जो बारिश में भीग कर आए थे?"

"मन बहलाने के लिए बाहर गया था।" मैंने चाय का एक घूंट लेने के बाद कहा____"और कुछ ज़रूरी काम भी था। पिता जी ने कहा है कि अब से मुझे वो सारे काम करने होंगे जो इसके पहले जगताप चाचा करते थे। मतलब कि खेती बाड़ी के सारे काम।"

"अच्छा ऐसी बात है क्या?" भाभी ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"मतलब कि अब ठाकुर वैभव सिंह खेती बाड़ी के काम करेंगे?"

"क्या आप मेरी टांग खींच रही हैं?" मैंने भाभी की तरफ ध्यान से देखा____"क्या आपको यकीन नहीं है कि मैं ये काम भी कर सकता हूं?"

"अरे! मैं कहां तुम्हारी टांग खींच रही हूं?" भाभी ने कहा____"मुझे तो बस हैरानी हुई है तुम्हारे मुख से ये सुन कर। रही बात तुम्हारे द्वारा ये काम कर लेने की तो मुझे पूरा यकीन है कि मेरे देवर के लिए कोई भी काम कर लेना मुश्किल नहीं है।"

जाने क्यों मुझे अभी भी लग रहा था जैसे वो मेरी टांग ही खींच रही हैं किंतु उनके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे इस लिए मैं थोड़ा दुविधा में पड़ गया था। मुझे समझ ही न आया कि मैं उनसे क्या कहूं।

"चाची और कुसुम लोगों के जाने के बाद आपको अकेलापन तो नहीं महसूस हो रहा भाभी?" मैंने फिर से विषय बदलते हुए पूछा।

"मेरा अकेलापन तो अब कभी भी दूर नहीं हो सकता वैभव।" भाभी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"इस दुनिया में एक औरत के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है। जब तक वो उसके पास होता है तब तक वो हर हाल में खुशी से रह लेती है किंतु जब वही पति उसे छोड़ कर चला जाता है तो फिर उस औरत का अकेलापन कोई भी दूर नहीं कर सकता।"

"हां मैं समझता हूं भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"सच कहूं तो आपको इस लिबास में देख कर मुझे बहुत तकलीफ़ होती है। काश! मेरे बस में होता तो मैं भैया को वापस ला कर फिर से आपको पहले की तरह सुहागन बना देता और आप फिर से हमेशा की तरह खुश हो जातीं।"

"छोड़ो इस बात को।" भाभी ने मुझसे चाय का खाली कप लेते हुए कहा____"अब तुम आराम करो। मैं भी जाती हूं, मां जी अकेली होंगी।"

"अच्छा एक बात कहूं आपसे?" मैंने कुछ सोचते हुए उनसे पूछा।
"हां कहो।" उन्होंने मेरी तरफ देखा।

"मेनका चाची की तरह क्या आपका भी मन है अपनी मां के पास जाने का?" मैंने उनके चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मन है तो आप बेझिझक मुझे बता दीजिए। मैं आपको चंदनपुर ले चलूंगा।"

"मैं मां जी को यहां अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती।" भाभी ने कहा____"वैसे भी वो भी तो मेरी मां ही हैं। उन्होंने सगी मां की ही तरह प्यार और स्नेह दिया है मुझे।"

"फिर भी मन तो करता ही होगा आपका।" मैंने कहा____"अच्छा एक काम करता हूं। जब मेनका चाची यहां वापस आ जाएंगी तब मैं आपको ले चलूंगा। तब तो आप जाना चाहेंगी न?"

"हां तब तो जा सकती हूं।" भाभी ने कुछ सोचते हुए कहा____"मगर सोचती हूं कि अगर इस हाल में जाऊंगी तो मां मुझे देख कर कैसे खुद को सम्हाल पाएगी?"

"हां ये भी है।" मैंने गंभीरता से सिर हिलाया____"आपके भैया को भी इतने सालों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। इस खुशी में वो बेचारे बड़ा भारी उत्सव भी मनाने जा रहे थे किंतु विधाता ने सब कुछ तबाह कर दिया।"

भाभी मेरी बात सुन कर एकदम से सिसक उठीं। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ये देख एकदम से मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ। कहां मैं उन्हें खुश करने के लिए कोई न कोई कोशिश कर रहा था और कहां मेरी इस बात से उन्हें तकलीफ़ हो गई।

मैं जल्दी से उठ कर उनके पास गया और उनके दोनों कन्धों को पकड़ कर बोला____"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मेरा इरादा आपको इस तरह रुला देने का हर्गिज़ नहीं था। कृपया मत रोइए। आपके आंसू देख कर मुझे भी बहुत तकलीफ़ होने लगती है।"

मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।




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बहुत ही लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
ये सावकारों का परिवार अभी भी ठाकूर परिवार से वैर भाव रखे हैं वो तो दादा ठाकूर ने बडी चतुराईसे रुपचंद और कुसुम के रिस्ते को लगाम लगाई
ये साला मुंशी और उसका बेटा अपने मन में ठाकूर परिवार के लिये खुन्नस पालें हैं लगता है आगे वैभव ही उनका क्रियाकर्म करने वाला हैं
भाभी और वैभव में जो संवाद हुआ वो बहुत ही गममिन है खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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अध्याय - 81
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मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।


अब आगे....


"ये क्या कह रहे हैं आप?" पिता जी की बातें सुनते ही मां ने चकित हो कर उनकी तरफ देखा____"मणि शंकर भाई साहब की पत्नी ऐसा बोल सकती हैं? हमें यकीन नहीं हो रहा लेकिन आप कह रहे हैं तो सच ही होगा। वैसे आपको उनके घर जाना ही नहीं चाहिए था।"

"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" पिता जी ने कहा____"क्या आप नहीं चाहतीं कि सब कुछ भुला कर हम उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना लें?"

"हम ये मानते हैं कि जीवन में कभी भी किसी से बैर भाव नहीं रखना चाहिए।" मां ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि ऐसे व्यक्ति से रिश्ता बनाना भी बेकार है जो किसी शर्त के आधार पर रिश्ता बनाने की बात करे। हमारे साथ तो अपराध करना उन्होंने ही शुरू किया था जिसका बदला अगर हमने इस तरह से ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया हमने? फिर भी मान लेते हैं कि आपने उनके साथ अपराध किया है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो आपको नीचा दिखाने के लिए आपसे कुछ भी कहने लगें।"

"क्या आपको सच में ऐसा लगता है कि वो हमसे ऐसा कह कर हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहीं थी?" पिता जी ने कहा।

"और नहीं तो क्या।" मां ने दृढ़ता से कहा____"उनके ऐसा कहने का यही मतलब है। वो आपकी नर्मी को आपकी दुर्बलता समझ रही हैं और इसी लिए उन्होंने आपसे बेहतर रिश्ते बनाने के लिए ऐसी शर्त रखी। हमें तो हैरानी हो रही है कि उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारी फूल जैसी बेटी के साथ अपने बेटे के रिश्ते की बात कहने की?"

"वैसे अगर ये रिश्ता हो भी जाता है तो इसमें कोई बुराई तो नहीं है।" पिता जी ने मां की तरफ देखते हुए कहा____"हमें लगता है कि इस तरह से दोनों परिवारों के बीच काफी गहरा और मजबूत रिश्ता बन जाएगा।"

"इसका मतलब आप भी चाहते हैं कि हमारी फूल जैसी बेटी का ब्याह उनके बेटे से हो जाए?" मां ने आश्चर्य से पिता जी को देखा____"हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आप ऐसा चाहते हैं।"

"क्या आप नहीं चाहतीं?" पिता जी ने पूछा।

"नहीं, बिल्कुल भी नहीं।" मां ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम अपनी बेटी का ब्याह उस घर में कदापि नहीं करेंगी जिस घर के लोगों की मानसिकता इतनी गिरी हुई हो। आप एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि हमारे संबंध उनसे बेहतर हों या ना हों लेकिन हमारी बेटी का ब्याह उस घर में किसी भी कीमत पर नहीं होगा।"

मां का एकदम से ही तमतमा गया चेहरा देख पिता जी ख़ामोश रह गए। उन्हें बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उनकी धर्म पत्नी ऐसे रिश्ते की बात सुन कर इस तरह से गुस्सा हो जाएंगी।

"एक बार आप इस बारे में मेनका से भी पूछ लीजिएगा।" पिता जी ने धड़कते हुए दिल से मां से कहा____"हो सकता है कि उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति न हो।"

"आपको क्या हो गया है आज?" मां ने हैरानी से पिता जी को देखा____"आप क्यों उनसे हमारी बेटी का रिश्ता करवाना चाहते हैं? क्या आपको अपनी बेटी से प्यार नहीं है? क्या आपको उसके सुखों का ख़याल नहीं है?"

"बिल्कुल है सुगंधा।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं कि हमे हमारी बेटी से प्यार नहीं है अथवा हमें उसके सुखों का ख़याल नहीं है? वो इस हवेली की इकलौती बेटी है। हम सबकी जान बसती है उसमें। फिर भला हम कैसे उसके लिए कोई ग़लत फ़ैसला कर सकते हैं अथवा उसके भविष्य को बिगाड़ सकते हैं?"

"साहूकारों के घर में अपनी बेटी का ब्याह करना मतलब उसके भविष्य को बिगाड़ देना ही है ठाकुर साहब।" मां ने कहा____"क्या आपको इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी एहसास नहीं हुआ है कि वो किस तरह की सोच और मानसिकता वाले लोग हैं? इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्हें अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है, बल्कि वो तो यही समझते हैं कि सिर्फ हमने ही उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। ख़ैर अगर वो सच में दोनों परिवारों के बीच बेहतर संबंध बना लेने का सोचते तो इसके लिए वो ऐसी शर्त नहीं रखते और ना ही आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते।"

"हां हम समझते हैं सुगंधा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"किंतु किसी को तो झुकना ही पड़ेगा ना। वो भले ही खुद को दोषी अथवा अपराधी न समझते हों किंतु हम तो समझते हैं न कि हम उनके अपराधी हैं इस लिए उनके सामने हमें ही झुकना होगा।"

"बेशक आप झुकिए ठाकुर साहब।" मां ने स्पष्ट रूप से कहा____"लेकिन अपने साथ किसी और को इस तरह से मत झुकाइए। अगर आप समझते हैं कि आप उनके अपराधी हैं और उनके साथ किए गए अपराध के लिए आप प्रायश्चित के रूप में उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो सिर्फ वो कीजिए जिसमें सिर्फ आपका ही हक़ हो। कुसुम आपके छोटे भाई की बेटी है। भले ही हम उसे उसके मां बाप से भी ज़्यादा प्यार करते हैं मगर उसके लिए कोई फ़ैसला करने का हक़ हमें नहीं है। एक और बात, अपने बेटे को भी मत भूलिए। अगर उसे पता चला कि आपने उसकी लाडली बहन का ब्याह साहूकारों के यहां करने का मन बनाया है तो जाने वो क्या कर डालेगा?"

पिता जी कुछ न बोले। बस गहरी सोच में डूबे नज़र आने लगे। इतना तो वो भी समझते थे कि कुसुम का रिश्ता साहूकारों के यहां करना उचित नहीं है किंतु वो ये भी चाहते थे कि सब कुछ बेहतर हो जाए। एकाएक ही उनके चेहरे पर गहन चिंता के भाव उभरते नज़र आने लगे।

✮✮✮✮

सरोज ने जब दरवाज़ा खोला तो बाहर भुवन पर उसकी नज़र पड़ी और साथ ही उसके पीछे खड़े वैद्य जी पर। भुवन तो ख़ैर रोज़ ही आता था उसके घर लेकिन इस वक्त उसके साथ वैद्य को देख कर उसे बड़ी हैरानी हुई।

"भुवन बेटा तुम्हारे साथ वैद्य जी क्यों आए हैं? सब ठीक तो है न?" फिर उसने उत्सुकतावश पूछा।

"फ़िक्र मत करो काकी।" भुवन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"अंदर चलो सब बताता हूं तुम्हें।"

सरोज एक तरफ हुई तो भुवन दरवाज़े के अंदर आ गया और उसके पीछे वैद्य जी भी अपना थैला लटकाए आ गए। सरोज दरवाज़े को यूं ही आपस में भिड़ा कर उनके पीछे आंगन में आ गई। इस बीच भुवन ने खुद ही बरामदे से चारपाई निकाल कर आंगन में बिछा दिया था। बारिश होने की वजह से आंगन में कीचड़ हो गया था।

भुवन ने वैद्य जी को चारपाई पर बैठाया और सरोज से उनके लिए पानी लाने को कहा। सरोज अपने मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए जल्दी ही लोटा ग्लास में पानी ले आई और वैद्य जी को पकड़ा दिया। आंगन में लोगों की आवाज़ें सुन कर अनुराधा भी अपने कमरे से निकल कर बाहर बरामदे में आ गई। भुवन के साथ वैद्य जी को देख उसे कुछ समझ न आया।

"काकी बात असल में ये है कि अनुराधा जब मेरे पास गई थी तो वो बारिश में बहुत ज़्यादा भीग गई थी।" भुवन ने एक नज़र अनुराधा पर डालने के बाद सरोज से कहा____"और फिर मेरे मना करने के बाद भी बारिश में भींगते हुए ये घर चली आई। कह रही थी कि तुम गुस्सा करोगी इस पर। उस समय मेरे पास छोटे कुंवर भी थे, जब ये मेरे मना करने पर भी चली आई तो वो बोले कि कहीं ये भींगने की वजह से बीमार न पड़ जाए इस लिए मैं वैद्य जी को ले कर यहां आ जाऊं।"

"हाय राम! ये लड़की भी न।" सारी बातें सुन कर सरोज एकदम से बोल पड़ी____"किसी की भी नहीं सुनती है आज कल। अभी कुछ देर पहले जब ये भीगते हुए यहां आई थी तो मैं भी इसे डांट रही थी कि बारिश में भीगने से बीमार पड़ जाएगी तो कैसे इलाज़ करवाऊंगी? वो तो शुक्र है छोटे कुंवर का जो उन्होंने वैद्य जी को तुम्हारे साथ भेज दिया। जब से अनू के बापू गुज़रे हैं तब से हमारा हर तरह से ख़याल रख रहे हैं वो।"

सरोज एकदम से भावुक हो गई। उधर अनुराधा ये सोचे जा रही थी कि भुवन ने कितनी सफाई से बातों को बदल कर सच को छुपा लिया था। उसे इस बात से काफी शर्मिंदगी हुई किंतु ये सोच कर उसे रोना भी आने लगा कि वैभव ने उसकी सेहत का ख़याल कर के भुवन के साथ वैद्य जी को यहां भेज दिया है। एक बार फिर से उसकी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो गया जब वैभव छाता लिए उसके पास खड़ा था और उससे बातें कर रहा था। अनुराधा के कानों में एकाएक ही उसकी बातें गूंजने लगीं जिससे उसके दिल में एकदम से दर्द सा होने लगा।

"मेरी बहन बारिश में भींगने से बीमार तो नहीं हुई है ना?" भुवन ने अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"इधर आओ ज़रा और वैद्य जी को दिखाओ खुद को।"

मजबूरन अनुराधा को बरामदे से निकल कर आंगन में वैद्य जी के पास आना ही पड़ा। वैद्य जी ने पहले उसके माथे को छुआ और फिर उसकी नाड़ी देखने लगे।

"घबराने की कोई बात नहीं है।" कुछ पलों बाद वैद्य जी ने अनुराधा की नाड़ी को छोड़ कर कहा____"बस हल्का सा ताप है इसे जोकि भींगने की वजह से ही है। हम दवा दे देते हैं जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

वैद्य जी ने अपने थैले से दवा निकाल कर उसे एक पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया।

"वैद्य जी बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो सर्दी जुखाम और बुखार की दवा थोड़ी ज़्यादा मात्रा में दे दीजिए।" भुवन ने कहा____"आपको भी बार बार यहां आने की तकलीफ़ नहीं उठानी पड़ेगी।"

वैद्य जी ने अपने थैले से एक एक कर के दवा निकाल कर तथा उनकी पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया। ये भी बता दिया कि कौन सी पुड़िया में किस मर्ज़ की दवा है। भुवन ने सरोज से सभी का हाल चाल पूछा और फिर वो वैद्य को ले कर चला गया।

"अब तुझे क्या हुआ?" अनुराधा को अजीब भाव से कहीं खोए हुए देख सरोज ने पूछा____"और तेरे पांव में तो मोच आई थी ना तो तू यहां क्यों खड़ी है? जा जा के आराम कर।"

अनुराधा तो मोच के बारे में भूल ही गई थी। मां के मुख से मोच का सुन कर वो एकदम से घबरा गई। उसने जल्दी से हां में सिर हिलाया और फिर लंगड़ाने का नाटक करते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।

"अच्छा ये तो बता कि आज कल तू किसी की बात क्यों नहीं मानती है?" अनुराधा को जाता देख सरोज ने पीछे से कहा____"भुवन तुझे अपनी छोटी बहन मानता है और तेरे लिए इतनी फ़िक्र करता है फिर भी तूने उसकी बात नहीं मानी और बारिश में भींगते हुए यहां चली आई। वहां उसके पास वैभव भी था, तेरी ये हरकत देख कर क्या सोचा होगा उसने कि कैसी बेसहूर लड़की है तू।"

अनुराधा अपनी मां की बात सुन कर ठिठक गई किंतु उसने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो कोई जवाब देने की हालत में ही नहीं थी। उसे तो अब जी भर के रोना आ रहा था। वैभव की बातें अभी भी उसके कानों में गूंज रहीं थी।

"वैसे काफी समय से वैभव हमारे घर नहीं आया।" सरोज ने जैसे खुद से ही कहा____"पहले तो दो तीन दिन में आ जाता था हमारा हाल चाल पूछने के लिए। माना कि उसके परिवार में बहुत दुखद घटना घट गई थी लेकिन फिर भी वो यहां ज़रूर आता। भुवन ने बताया कि वो उसके पास ही उसके नए बन रहे मकान में था। फिर वो यहां क्यों नहीं आया?"

सरोज की ये बातें अनुराधा के कानों में भी पहुंच रहीं थी। जो सवाल उसकी मां के मुख से निकले थे उनके जवाब भले ही सरोज के पास न थे किंतु अनुराधा के पास तो यकीनन थे। उसे तो पता ही था कि वैभव उसके घर क्यों नहीं आता है। एकाएक ही ये सब सोच कर उसके अंदर हूक सी उठी। इससे पहले कि उसे खुद को सम्हाल पाना मुश्किल हो जाता वो जल्दी से अपने कमरे में दाखिल हो गई। दरवाज़ा बंद कर के वो तेज़ी से चारपाई पर आ कर औंधे मुंह गिर पड़ी और तकिए में मुंह छुपा कर फूट फूट कर रोने लगी।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" अचानक ही उसके कानों में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंज उठी____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए। यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं....रुक जाइए। भगवान के लिए रुक जाइए।"
"किस लिए?"
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं और...और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब?? मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"
"ठ...ठकुराइन।" उसने नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा था____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?"
"ब...बस सुनना है मुझे।"

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" उसके कानों में वैभव की आवाज़ गूंज उठी____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

अनुराधा बुरी तरह तड़प कर पलटी और सीधा लेट गई। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सीधा लेट जाने की वजह से उसके आंसू उसकी आंखों के किनारे से बह कर जल्दी ही उसके कानों तक पहुंच गए।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" फिर वो दुखी भाव से रोते हुए धीमी आवाज़ में बोल पड़ी____"मेरी ग़लती की और कितनी सज़ा देंगे मुझे? क्यों मुझे आपकी इतनी याद आती है? क्यों आपकी बातें मेरे कानों में गूंज उठती हैं और फिर मुझे बहुत ज़्यादा दुख होता है? भगवान के लिए एक बार माफ़ कर दीजिए मुझे। पहले की तरह फिर से मुझे ठकुराईन कहिए न।"

अनुराधा इतना सब कहने के बाद फिर से पलट गई और तकिए में चेहरा छुपा कर सिसकने लगी। उसे ये तो एहसास हो चुका था कि उसकी उस दिन की बातों का वैभव को बुरा लग गया था किंतु उसे इस बात का ज्ञान नहीं हो रहा था कि उसको वैभव की इतनी याद क्यों आ रही थी और इतना ही नहीं वो उसको देखने के लिए क्यों इतना तड़पती थी? आखिर इसका क्या मतलब था? भोली भाली, मासूम और नादान अनुराधा को पता ही नहीं था कि इसी को प्रेम कहते हैं।

✮✮✮✮

शाम का धुंधलका छा गया था। चंद्रकांत की बहू रजनी दिशा मैदान करने के लिए अकेली ही घर से निकल कर खेतों की तरफ जा रही थी। उसकी सास की तबीयत ख़राब थी इस लिए उसे अकेले ही जाना पड़ गया था। उसकी ननद कोमल रात के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। रघुवीर कहीं गया हुआ था इस लिए उसे अकेले घर से निकलने में समस्या नहीं हुई थी। हालाकि उसका ससुर चंद्रकांत बाहर बैठक में ज़रूर बैठा था मगर उसने उसे अकेले जाने से रोका नहीं था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि अब उसे ये यकीन हो गया था कि उसकी बहू कोई ग़लत काम नहीं करेगी।

रजनी हल्के अंधेरे में धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए जा रही थी। बारिश की वजह से हर जगह कीचड़ और पानी भर गया था इस लिए उसे बड़े ही एहतियात से चलना पड़ रहा था। जब उसने देखा कि इस तरफ कोई नहीं आएगा और ये ठीक जगह है तो उसने ज़मीन पर लोटा रखने के बाद अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा लिया और फिर हगने के लिए बैठ गई।

कुछ समय बाद जब वो वापस आने लगी तो सहसा रास्ते में उसे एक जगह अंधेरे में एक साया नज़र आया। साए को देख उसके अंदर भय व्याप्त हो गया और उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। अब क्योंकि रास्ता सिर्फ वही था इस लिए उसे उसी रास्ते से जाना था। इस लिए वो ये सोच कर डरते डरते आगे बढ़ी कि शायद कोई आदमी होगा जो उसकी ही तरह दिशा मैदान के लिए आया होगा। जल्दी ही वो उस साए के पास पहुंच गई और तब उसे उस साए की आकृति स्पष्ट रूप से नज़र आई। उसे पहचानते ही रजनी पहले तो चौंकी फिर एकदम से उसके अंदर थोड़ी घबराहट पैदा हो गई।

"बड़ी देर लगा दी तूने आने में।" साए के रूप में नज़र आने वाला व्यक्ति जोकि रूपचंद्र था वो उसे देख बोल पड़ा____"मैं काफी देर से तेरे लौटने का इंतज़ार कर रहा था।"

"क...क्यों इंतज़ार कर रहे थे भला?" रजनी ने खुद की घबराहट पर काबू पाते हुए कहा____"देखो अगर तुम किसी ग़लत इरादे से मेरा इंतज़ार कर रहे थे तो समझ लो अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता।"

"क्यों भला?" रूपचंद्र धीमें से बोला____"देख ज़्यादा नाटक मत कर। तेरे साथ मज़ा किए हुए काफी समय हो गया है। इस लिए आज मुझे मना मत करना वरना तेरे लिए ठीक नहीं होगा।"

"रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।" रजनी ने थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए कहा____"तुम लोगों का दादा ठाकुर ने समूल नाश कर दिया फिर भी इतना अकड़ रहे हो? और हां, अगर इतनी ही तुम्हारे अंदर आग लगी हुई है ना तो जा कर अपनी बहन के साथ बुझा लो।"

"मादरचोद तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की?" रूपचंद्र बुरी तरह तिलमिला कर गुस्से से बोल पड़ा____"रुक अभी बताता हूं तुझे।"

"ख़बरदार।" रजनी ने एकदम से गुर्राते हुए कहा____"अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। अभी तक तो मैंने किसी को तुम्हारे बारे में बताया नहीं था लेकिन अगर तुमने मुझे हाथ लगाया तो चीख चीख कर सारे गांव को बताऊंगी कि तुमने ज़बरदस्ती मेरी इज्ज़त लूटने की कोशिश की है। मुझे अपनी इज्ज़त की कोई परवाह नहीं है लेकिन तुम अपने बारे में सोचो। पंचायत के फ़ैसले के बाद जब लोग तुम्हारे इस कांड के बारे में जानेंगे तो क्या होगा तुम्हारे साथ?"

रजनी की बातें सुन कर रूपचंद्र का गुस्सा पलक झपकते ही ठंडा पड़ गया। उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि रजनी उसे इस तरह की धमकी दे सकती है। आंखें फाड़े वो देखता रह गया था उसे।

"जिसने तुम्हारी बहन के साथ मज़ा किया उसका तो तुम कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए।" रजनी ने जैसे उसके ज़ख़्मों को कुरेदा____"और बेशर्मों की तरह यहां मुझे अपनी मर्दानगी दिखाने आए हो? मैंने पहले भी कहा था कि तुम उसके सामने कुछ भी नहीं हो और अब भी कहती हूं कि तुम आगे भी कभी उसके सामने कुछ नहीं रहोगे। असली मर्द तो वही है। एक बात कहूं, भले ही इतना सब कुछ हो गया है मगर सीना ठोक के कहती हूं कि अगर वो तुम्हारी जगह होता तो इसी वक्त उसके सामने अपनी टांगें फैला कर लेट जाती।"

"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।

उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
जैसे की लग रहा था की ठाकूर परिवार से कुसुम और रुपचंद के विवाह को विरोध होगा
बडी ठकुराईन सुगंधा ने साफ साफ शब्दों में दादा ठाकूर को मना कर दिया और सावकार परिवार की चालबाजी भी समझा दिया
वैभव के कहने पर भुवन वैद्य को लेकर अनुराधा के घर गया और वैभव ने भेजा ये बताया तो अनुराधा फिर से उसकी यादों में खो गयी उस बेचारी को क्या मालुम की ये यादें ही प्रेम हैं
इधर रजनी ने रुपचंद को फटकारके उसने वैभव के खिलाफ रुपचंद के मन में फिर जहर भर दिया खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 
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अगर वैभव यह सोच रहा है कि वो रागिनी भाभी के जीवन को सुखियों से भर देगा तो सवाल खड़ा होता है कैसे ! वो ऐसा क्या करने वाला है जिससे उसकी विधवा भाभी अपने दुख भुल जाएगी ?
क्या वो उनसे शादी करना चाहता है ? या वो किसी अन्य लड़के के साथ उनकी शादी कराना चाहता है ?

कुछ कुछ यही सोच दादा ठाकुर और सुगंधा देवी के भी दिमाग मे रागिनी के लिए चल रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि रागिनी दूसरी शादी के लिए तैयार होगी या नही ! और अगर वो दूसरी शादी के लिए तैयार भी हो गई तो फिर सवाल यह उठेगा कि उनका दुल्हा कौन होगा ?

वैभव और उसके माता पिता को सबसे पहले आपस मे इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए । उसके बाद रागिनी से सीधे इस विषय पर बात करनी चाहिए। फिर देखते है क्या रिजल्ट निकल कर आता है !

वैसे मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि वैभव खुद को इस शादी के लिए प्रस्तुत कर देगा । और अगर ऐसा हुआ तो अनुराधा का क्या ? रूपा का क्या ? क्या वो रागिनी के लिए अपनी चाहत , अपने प्रेम का त्याग कर देगा ?

वैभव के लिए बहुत ही बड़ी इम्तिहान है यह । देखते है , वैभव का डिसिजन क्या होता है !

बहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Pyar ka sabut :roll3:
Par kiske pyar ka sabut ? Aur kisko dena hoga ?
Vaibhav ko ? Rupa ko ? Anuradha ko ? Ya fir......
Kahani ko kaat chhant to diya par ye title wali gutthi kabhi sulzi he nahi !
Asal me sabse bada challange yahi hai ab... :D
Ek simple si story likhna chahta tha main jisme gaav ka pariwesh ho. Title bhi usi ke hisab se rakha tha. Fir jab Death Kiñg aalu kamdev99008 & SANJU ( V. R. ) Bhaiya ke response dekhe to suddenly zahan me khayaal aaya ki kya sach me mujhe ek simple si story hi likhni chahiye??? Mera ab tak koi simple si story nahi likhi thi. Thriller suspense aur mystery likhna padhna mujhe shuru se hi pasand raha hai fir itne mahaan readers ke saamne ek simple si story kyo pesh ki jaye?? Ye sawaal mere saamne khada ho chuka tha....maine sochne laga ki ab kya kiya jaye? Kyoki story ka title already daal diya tha maine aur story ke update bhi kai de chuka tha main. Fir maine socha chalo koi baat nahi....ab jo ho gaya hai use cut nahi karunga balki isi me thrill aur mystery ko add karunga. Lauda jab apan ko hi bina thrill suspense aur mystery ke likhne ka mood nahi karega to kaise kuch likh paaunga main?? Anyways challenge to ab bahut bada ho chuka tha is liye is challenge ko accept kiya aur shuru ho gaya....

Shuru to ho gaya tha but story ka title zahan se kabhi nahi hata kyoki wo tha hi aisa. Uske hisaab se to is kahani ko love story hona chahiye tha but apan ne thrill suspense aur mystery wali khuji mitane ke liye love ke angel ko kopche me hi rakh diyela tha. Khair ab jab ki story yahan par aa pahuchi hai to kisi na kisi tarah title ko bhi justify karna hi hai, fir bhale hi chaahe wo betuka ya fir thoda sa hi ho....

Thrill suspense aur mystery wali khujli zyada maayne rakhti hai apan ke liye baaki love shav maa chu***ye... :cool:
Apan ne to reply me hi 5% story ka update likh diya....iska review ju alag se dena :D
Kahani ko low response ke chalte bhai ne short bhale he kiya ho par suspense abhi bhi barkarar he.
Bataya na suspense wali khujli :D
Na Vaibhav ko Rupa ke liye pyar me tadapata dekha he na Anuradha ke liye, iss kand ke bad uska man anutapt he Rajni ki muskan dekh ke laga, par kabtak ?
Rupa ki diwangi hum dekh chuke he, aur ab Anu ka pyar bhi
Bhai pyar me tadapna aur rona dhona zyadatar female ko shobha deta hai....vaibhav ko jo shobha deta tha uski to usne khud hi lanka la di hai. Kaha bechara :sex: ghapaghap ke kaam se khush tha aur kaha ab wo achha insaan banne ke chakkar me apne laude par lock hi laga baitha hai. Isse badi saza kya hogi uske liye...Aakhir chaahte kya ho...wo jaan de de?? :buttkick:
par jo sawal abtak nahi uthe he wo ab uthaunga !
Kya ye dono Safedposh se surakshit he ?
Aur kya chaahta hai apan??? :huh:
Yaha log writer ko khush karne ke liye tareefon se bhare comments athwa reviews chemp dete hain. Sawaal to koi kar hi nahi raha... These anpadh aur bailbuddhi logis :beee:

Nahi bataaunga :beee:
 
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