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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Update posted :check:
बहुत उम्दा शुभम भाई, ठकुराइन बहुत सुलझी हुई है। और उधर फूलमती धूर्त। देखते हैं ये कॉम्बिनेशन क्या रंग लाता है।

उधर ठाकुर भले बनने के चक्कर में मूर्ख जैसे दिख रहे है अब।
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Dada Thakur apradh bhod se itna gharsit Ho Gaya ki use kya Bura kya achcha samajh hi nahin a Raha, sahukaron ke asaliyat ko jante hue bhi aapni phool Jaisi bhai ki beti ko sahukaron se bihane per razi ho gaya.
कभी-कभी Insan apni achhai duniya ke samne sabit karne ke liye apnon ki Bali Chadha deta hai, yahi Satya hai
 
Last edited:

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
Prime
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अध्याय - 81
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।


अब आगे....


"ये क्या कह रहे हैं आप?" पिता जी की बातें सुनते ही मां ने चकित हो कर उनकी तरफ देखा____"मणि शंकर भाई साहब की पत्नी ऐसा बोल सकती हैं? हमें यकीन नहीं हो रहा लेकिन आप कह रहे हैं तो सच ही होगा। वैसे आपको उनके घर जाना ही नहीं चाहिए था।"

"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" पिता जी ने कहा____"क्या आप नहीं चाहतीं कि सब कुछ भुला कर हम उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना लें?"

"हम ये मानते हैं कि जीवन में कभी भी किसी से बैर भाव नहीं रखना चाहिए।" मां ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि ऐसे व्यक्ति से रिश्ता बनाना भी बेकार है जो किसी शर्त के आधार पर रिश्ता बनाने की बात करे। हमारे साथ तो अपराध करना उन्होंने ही शुरू किया था जिसका बदला अगर हमने इस तरह से ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया हमने? फिर भी मान लेते हैं कि आपने उनके साथ अपराध किया है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो आपको नीचा दिखाने के लिए आपसे कुछ भी कहने लगें।"

"क्या आपको सच में ऐसा लगता है कि वो हमसे ऐसा कह कर हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहीं थी?" पिता जी ने कहा।

"और नहीं तो क्या।" मां ने दृढ़ता से कहा____"उनके ऐसा कहने का यही मतलब है। वो आपकी नर्मी को आपकी दुर्बलता समझ रही हैं और इसी लिए उन्होंने आपसे बेहतर रिश्ते बनाने के लिए ऐसी शर्त रखी। हमें तो हैरानी हो रही है कि उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारी फूल जैसी बेटी के साथ अपने बेटे के रिश्ते की बात कहने की?"

"वैसे अगर ये रिश्ता हो भी जाता है तो इसमें कोई बुराई तो नहीं है।" पिता जी ने मां की तरफ देखते हुए कहा____"हमें लगता है कि इस तरह से दोनों परिवारों के बीच काफी गहरा और मजबूत रिश्ता बन जाएगा।"

"इसका मतलब आप भी चाहते हैं कि हमारी फूल जैसी बेटी का ब्याह उनके बेटे से हो जाए?" मां ने आश्चर्य से पिता जी को देखा____"हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आप ऐसा चाहते हैं।"

"क्या आप नहीं चाहतीं?" पिता जी ने पूछा।

"नहीं, बिल्कुल भी नहीं।" मां ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम अपनी बेटी का ब्याह उस घर में कदापि नहीं करेंगी जिस घर के लोगों की मानसिकता इतनी गिरी हुई हो। आप एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि हमारे संबंध उनसे बेहतर हों या ना हों लेकिन हमारी बेटी का ब्याह उस घर में किसी भी कीमत पर नहीं होगा।"

मां का एकदम से ही तमतमा गया चेहरा देख पिता जी ख़ामोश रह गए। उन्हें बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उनकी धर्म पत्नी ऐसे रिश्ते की बात सुन कर इस तरह से गुस्सा हो जाएंगी।

"एक बार आप इस बारे में मेनका से भी पूछ लीजिएगा।" पिता जी ने धड़कते हुए दिल से मां से कहा____"हो सकता है कि उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति न हो।"

"आपको क्या हो गया है आज?" मां ने हैरानी से पिता जी को देखा____"आप क्यों उनसे हमारी बेटी का रिश्ता करवाना चाहते हैं? क्या आपको अपनी बेटी से प्यार नहीं है? क्या आपको उसके सुखों का ख़याल नहीं है?"

"बिल्कुल है सुगंधा।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं कि हमे हमारी बेटी से प्यार नहीं है अथवा हमें उसके सुखों का ख़याल नहीं है? वो इस हवेली की इकलौती बेटी है। हम सबकी जान बसती है उसमें। फिर भला हम कैसे उसके लिए कोई ग़लत फ़ैसला कर सकते हैं अथवा उसके भविष्य को बिगाड़ सकते हैं?"

"साहूकारों के घर में अपनी बेटी का ब्याह करना मतलब उसके भविष्य को बिगाड़ देना ही है ठाकुर साहब।" मां ने कहा____"क्या आपको इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी एहसास नहीं हुआ है कि वो किस तरह की सोच और मानसिकता वाले लोग हैं? इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्हें अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है, बल्कि वो तो यही समझते हैं कि सिर्फ हमने ही उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। ख़ैर अगर वो सच में दोनों परिवारों के बीच बेहतर संबंध बना लेने का सोचते तो इसके लिए वो ऐसी शर्त नहीं रखते और ना ही आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते।"

"हां हम समझते हैं सुगंधा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"किंतु किसी को तो झुकना ही पड़ेगा ना। वो भले ही खुद को दोषी अथवा अपराधी न समझते हों किंतु हम तो समझते हैं न कि हम उनके अपराधी हैं इस लिए उनके सामने हमें ही झुकना होगा।"

"बेशक आप झुकिए ठाकुर साहब।" मां ने स्पष्ट रूप से कहा____"लेकिन अपने साथ किसी और को इस तरह से मत झुकाइए। अगर आप समझते हैं कि आप उनके अपराधी हैं और उनके साथ किए गए अपराध के लिए आप प्रायश्चित के रूप में उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो सिर्फ वो कीजिए जिसमें सिर्फ आपका ही हक़ हो। कुसुम आपके छोटे भाई की बेटी है। भले ही हम उसे उसके मां बाप से भी ज़्यादा प्यार करते हैं मगर उसके लिए कोई फ़ैसला करने का हक़ हमें नहीं है। एक और बात, अपने बेटे को भी मत भूलिए। अगर उसे पता चला कि आपने उसकी लाडली बहन का ब्याह साहूकारों के यहां करने का मन बनाया है तो जाने वो क्या कर डालेगा?"

पिता जी कुछ न बोले। बस गहरी सोच में डूबे नज़र आने लगे। इतना तो वो भी समझते थे कि कुसुम का रिश्ता साहूकारों के यहां करना उचित नहीं है किंतु वो ये भी चाहते थे कि सब कुछ बेहतर हो जाए। एकाएक ही उनके चेहरे पर गहन चिंता के भाव उभरते नज़र आने लगे।

✮✮✮✮

सरोज ने जब दरवाज़ा खोला तो बाहर भुवन पर उसकी नज़र पड़ी और साथ ही उसके पीछे खड़े वैद्य जी पर। भुवन तो ख़ैर रोज़ ही आता था उसके घर लेकिन इस वक्त उसके साथ वैद्य को देख कर उसे बड़ी हैरानी हुई।

"भुवन बेटा तुम्हारे साथ वैद्य जी क्यों आए हैं? सब ठीक तो है न?" फिर उसने उत्सुकतावश पूछा।

"फ़िक्र मत करो काकी।" भुवन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"अंदर चलो सब बताता हूं तुम्हें।"

सरोज एक तरफ हुई तो भुवन दरवाज़े के अंदर आ गया और उसके पीछे वैद्य जी भी अपना थैला लटकाए आ गए। सरोज दरवाज़े को यूं ही आपस में भिड़ा कर उनके पीछे आंगन में आ गई। इस बीच भुवन ने खुद ही बरामदे से चारपाई निकाल कर आंगन में बिछा दिया था। बारिश होने की वजह से आंगन में कीचड़ हो गया था।

भुवन ने वैद्य जी को चारपाई पर बैठाया और सरोज से उनके लिए पानी लाने को कहा। सरोज अपने मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए जल्दी ही लोटा ग्लास में पानी ले आई और वैद्य जी को पकड़ा दिया। आंगन में लोगों की आवाज़ें सुन कर अनुराधा भी अपने कमरे से निकल कर बाहर बरामदे में आ गई। भुवन के साथ वैद्य जी को देख उसे कुछ समझ न आया।

"काकी बात असल में ये है कि अनुराधा जब मेरे पास गई थी तो वो बारिश में बहुत ज़्यादा भीग गई थी।" भुवन ने एक नज़र अनुराधा पर डालने के बाद सरोज से कहा____"और फिर मेरे मना करने के बाद भी बारिश में भींगते हुए ये घर चली आई। कह रही थी कि तुम गुस्सा करोगी इस पर। उस समय मेरे पास छोटे कुंवर भी थे, जब ये मेरे मना करने पर भी चली आई तो वो बोले कि कहीं ये भींगने की वजह से बीमार न पड़ जाए इस लिए मैं वैद्य जी को ले कर यहां आ जाऊं।"

"हाय राम! ये लड़की भी न।" सारी बातें सुन कर सरोज एकदम से बोल पड़ी____"किसी की भी नहीं सुनती है आज कल। अभी कुछ देर पहले जब ये भीगते हुए यहां आई थी तो मैं भी इसे डांट रही थी कि बारिश में भीगने से बीमार पड़ जाएगी तो कैसे इलाज़ करवाऊंगी? वो तो शुक्र है छोटे कुंवर का जो उन्होंने वैद्य जी को तुम्हारे साथ भेज दिया। जब से अनू के बापू गुज़रे हैं तब से हमारा हर तरह से ख़याल रख रहे हैं वो।"

सरोज एकदम से भावुक हो गई। उधर अनुराधा ये सोचे जा रही थी कि भुवन ने कितनी सफाई से बातों को बदल कर सच को छुपा लिया था। उसे इस बात से काफी शर्मिंदगी हुई किंतु ये सोच कर उसे रोना भी आने लगा कि वैभव ने उसकी सेहत का ख़याल कर के भुवन के साथ वैद्य जी को यहां भेज दिया है। एक बार फिर से उसकी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो गया जब वैभव छाता लिए उसके पास खड़ा था और उससे बातें कर रहा था। अनुराधा के कानों में एकाएक ही उसकी बातें गूंजने लगीं जिससे उसके दिल में एकदम से दर्द सा होने लगा।

"मेरी बहन बारिश में भींगने से बीमार तो नहीं हुई है ना?" भुवन ने अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"इधर आओ ज़रा और वैद्य जी को दिखाओ खुद को।"

मजबूरन अनुराधा को बरामदे से निकल कर आंगन में वैद्य जी के पास आना ही पड़ा। वैद्य जी ने पहले उसके माथे को छुआ और फिर उसकी नाड़ी देखने लगे।

"घबराने की कोई बात नहीं है।" कुछ पलों बाद वैद्य जी ने अनुराधा की नाड़ी को छोड़ कर कहा____"बस हल्का सा ताप है इसे जोकि भींगने की वजह से ही है। हम दवा दे देते हैं जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

वैद्य जी ने अपने थैले से दवा निकाल कर उसे एक पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया।

"वैद्य जी बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो सर्दी जुखाम और बुखार की दवा थोड़ी ज़्यादा मात्रा में दे दीजिए।" भुवन ने कहा____"आपको भी बार बार यहां आने की तकलीफ़ नहीं उठानी पड़ेगी।"

वैद्य जी ने अपने थैले से एक एक कर के दवा निकाल कर तथा उनकी पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया। ये भी बता दिया कि कौन सी पुड़िया में किस मर्ज़ की दवा है। भुवन ने सरोज से सभी का हाल चाल पूछा और फिर वो वैद्य को ले कर चला गया।

"अब तुझे क्या हुआ?" अनुराधा को अजीब भाव से कहीं खोए हुए देख सरोज ने पूछा____"और तेरे पांव में तो मोच आई थी ना तो तू यहां क्यों खड़ी है? जा जा के आराम कर।"

अनुराधा तो मोच के बारे में भूल ही गई थी। मां के मुख से मोच का सुन कर वो एकदम से घबरा गई। उसने जल्दी से हां में सिर हिलाया और फिर लंगड़ाने का नाटक करते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।

"अच्छा ये तो बता कि आज कल तू किसी की बात क्यों नहीं मानती है?" अनुराधा को जाता देख सरोज ने पीछे से कहा____"भुवन तुझे अपनी छोटी बहन मानता है और तेरे लिए इतनी फ़िक्र करता है फिर भी तूने उसकी बात नहीं मानी और बारिश में भींगते हुए यहां चली आई। वहां उसके पास वैभव भी था, तेरी ये हरकत देख कर क्या सोचा होगा उसने कि कैसी बेसहूर लड़की है तू।"

अनुराधा अपनी मां की बात सुन कर ठिठक गई किंतु उसने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो कोई जवाब देने की हालत में ही नहीं थी। उसे तो अब जी भर के रोना आ रहा था। वैभव की बातें अभी भी उसके कानों में गूंज रहीं थी।

"वैसे काफी समय से वैभव हमारे घर नहीं आया।" सरोज ने जैसे खुद से ही कहा____"पहले तो दो तीन दिन में आ जाता था हमारा हाल चाल पूछने के लिए। माना कि उसके परिवार में बहुत दुखद घटना घट गई थी लेकिन फिर भी वो यहां ज़रूर आता। भुवन ने बताया कि वो उसके पास ही उसके नए बन रहे मकान में था। फिर वो यहां क्यों नहीं आया?"

सरोज की ये बातें अनुराधा के कानों में भी पहुंच रहीं थी। जो सवाल उसकी मां के मुख से निकले थे उनके जवाब भले ही सरोज के पास न थे किंतु अनुराधा के पास तो यकीनन थे। उसे तो पता ही था कि वैभव उसके घर क्यों नहीं आता है। एकाएक ही ये सब सोच कर उसके अंदर हूक सी उठी। इससे पहले कि उसे खुद को सम्हाल पाना मुश्किल हो जाता वो जल्दी से अपने कमरे में दाखिल हो गई। दरवाज़ा बंद कर के वो तेज़ी से चारपाई पर आ कर औंधे मुंह गिर पड़ी और तकिए में मुंह छुपा कर फूट फूट कर रोने लगी।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" अचानक ही उसके कानों में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंज उठी____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए। यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं....रुक जाइए। भगवान के लिए रुक जाइए।"
"किस लिए?"
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं और...और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब?? मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"
"ठ...ठकुराइन।" उसने नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा था____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?"
"ब...बस सुनना है मुझे।"

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" उसके कानों में वैभव की आवाज़ गूंज उठी____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

अनुराधा बुरी तरह तड़प कर पलटी और सीधा लेट गई। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सीधा लेट जाने की वजह से उसके आंसू उसकी आंखों के किनारे से बह कर जल्दी ही उसके कानों तक पहुंच गए।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" फिर वो दुखी भाव से रोते हुए धीमी आवाज़ में बोल पड़ी____"मेरी ग़लती की और कितनी सज़ा देंगे मुझे? क्यों मुझे आपकी इतनी याद आती है? क्यों आपकी बातें मेरे कानों में गूंज उठती हैं और फिर मुझे बहुत ज़्यादा दुख होता है? भगवान के लिए एक बार माफ़ कर दीजिए मुझे। पहले की तरह फिर से मुझे ठकुराईन कहिए न।"

अनुराधा इतना सब कहने के बाद फिर से पलट गई और तकिए में चेहरा छुपा कर सिसकने लगी। उसे ये तो एहसास हो चुका था कि उसकी उस दिन की बातों का वैभव को बुरा लग गया था किंतु उसे इस बात का ज्ञान नहीं हो रहा था कि उसको वैभव की इतनी याद क्यों आ रही थी और इतना ही नहीं वो उसको देखने के लिए क्यों इतना तड़पती थी? आखिर इसका क्या मतलब था? भोली भाली, मासूम और नादान अनुराधा को पता ही नहीं था कि इसी को प्रेम कहते हैं।

✮✮✮✮

शाम का धुंधलका छा गया था। चंद्रकांत की बहू रजनी दिशा मैदान करने के लिए अकेली ही घर से निकल कर खेतों की तरफ जा रही थी। उसकी सास की तबीयत ख़राब थी इस लिए उसे अकेले ही जाना पड़ गया था। उसकी ननद कोमल रात के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। रघुवीर कहीं गया हुआ था इस लिए उसे अकेले घर से निकलने में समस्या नहीं हुई थी। हालाकि उसका ससुर चंद्रकांत बाहर बैठक में ज़रूर बैठा था मगर उसने उसे अकेले जाने से रोका नहीं था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि अब उसे ये यकीन हो गया था कि उसकी बहू कोई ग़लत काम नहीं करेगी।

रजनी हल्के अंधेरे में धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए जा रही थी। बारिश की वजह से हर जगह कीचड़ और पानी भर गया था इस लिए उसे बड़े ही एहतियात से चलना पड़ रहा था। जब उसने देखा कि इस तरफ कोई नहीं आएगा और ये ठीक जगह है तो उसने ज़मीन पर लोटा रखने के बाद अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा लिया और फिर हगने के लिए बैठ गई।

कुछ समय बाद जब वो वापस आने लगी तो सहसा रास्ते में उसे एक जगह अंधेरे में एक साया नज़र आया। साए को देख उसके अंदर भय व्याप्त हो गया और उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। अब क्योंकि रास्ता सिर्फ वही था इस लिए उसे उसी रास्ते से जाना था। इस लिए वो ये सोच कर डरते डरते आगे बढ़ी कि शायद कोई आदमी होगा जो उसकी ही तरह दिशा मैदान के लिए आया होगा। जल्दी ही वो उस साए के पास पहुंच गई और तब उसे उस साए की आकृति स्पष्ट रूप से नज़र आई। उसे पहचानते ही रजनी पहले तो चौंकी फिर एकदम से उसके अंदर थोड़ी घबराहट पैदा हो गई।

"बड़ी देर लगा दी तूने आने में।" साए के रूप में नज़र आने वाला व्यक्ति जोकि रूपचंद्र था वो उसे देख बोल पड़ा____"मैं काफी देर से तेरे लौटने का इंतज़ार कर रहा था।"

"क...क्यों इंतज़ार कर रहे थे भला?" रजनी ने खुद की घबराहट पर काबू पाते हुए कहा____"देखो अगर तुम किसी ग़लत इरादे से मेरा इंतज़ार कर रहे थे तो समझ लो अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता।"

"क्यों भला?" रूपचंद्र धीमें से बोला____"देख ज़्यादा नाटक मत कर। तेरे साथ मज़ा किए हुए काफी समय हो गया है। इस लिए आज मुझे मना मत करना वरना तेरे लिए ठीक नहीं होगा।"

"रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।" रजनी ने थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए कहा____"तुम लोगों का दादा ठाकुर ने समूल नाश कर दिया फिर भी इतना अकड़ रहे हो? और हां, अगर इतनी ही तुम्हारे अंदर आग लगी हुई है ना तो जा कर अपनी बहन के साथ बुझा लो।"

"मादरचोद तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की?" रूपचंद्र बुरी तरह तिलमिला कर गुस्से से बोल पड़ा____"रुक अभी बताता हूं तुझे।"

"ख़बरदार।" रजनी ने एकदम से गुर्राते हुए कहा____"अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। अभी तक तो मैंने किसी को तुम्हारे बारे में बताया नहीं था लेकिन अगर तुमने मुझे हाथ लगाया तो चीख चीख कर सारे गांव को बताऊंगी कि तुमने ज़बरदस्ती मेरी इज्ज़त लूटने की कोशिश की है। मुझे अपनी इज्ज़त की कोई परवाह नहीं है लेकिन तुम अपने बारे में सोचो। पंचायत के फ़ैसले के बाद जब लोग तुम्हारे इस कांड के बारे में जानेंगे तो क्या होगा तुम्हारे साथ?"

रजनी की बातें सुन कर रूपचंद्र का गुस्सा पलक झपकते ही ठंडा पड़ गया। उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि रजनी उसे इस तरह की धमकी दे सकती है। आंखें फाड़े वो देखता रह गया था उसे।

"जिसने तुम्हारी बहन के साथ मज़ा किया उसका तो तुम कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए।" रजनी ने जैसे उसके ज़ख़्मों को कुरेदा____"और बेशर्मों की तरह यहां मुझे अपनी मर्दानगी दिखाने आए हो? मैंने पहले भी कहा था कि तुम उसके सामने कुछ भी नहीं हो और अब भी कहती हूं कि तुम आगे भी कभी उसके सामने कुछ नहीं रहोगे। असली मर्द तो वही है। एक बात कहूं, भले ही इतना सब कुछ हो गया है मगर सीना ठोक के कहती हूं कि अगर वो तुम्हारी जगह होता तो इसी वक्त उसके सामने अपनी टांगें फैला कर लेट जाती।"

"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।

उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।




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Subah ka bhula agar sham ko ghar aa jaye to use bhula nahi kehte :D
Use Oggy kehte he :cmouth:
Par yaha pe Dada Thakur jo he wo ekdam soft approach apna rahe he (ya fir wo aisa dikha rahe he ? )
Wo shayad logo ka bhala shanti me he yahi sochkar har ek se samjhauta karne pe aamada he par ve bhul gaye he ke Jyada jhuk ke milo to duniya pith ko paydaan bana deti he !
Ab Gaurishankar ka ahem bhale he maatimol huaa ho par dada thakur ne aurat ko khaas kar dushman ke ghar ki aurat ko kamjor samza !
Fir ye bhi ek baat he ke shantipriy vyakti ka nyaypurn hona jaruri nahi hota kyonki wo shanti prasthapit karne ashant logo se bhi samjhauta karega , aur yahi uske patan ka karan hoga !
Kaante ke ped ki jagah gulab ke bagiche me kabhi nahi ho sakti, bhale he khud gulab me kaante kyo na ho ! Anyay ko rokne ke liye shastr uthana aur khud ke swarth ke liye uthane me fark hota he aur ye fark Dada Thakur bhul gaye he !
Kher he , time to sleep :goodnight:
 

Sanju@

Well-Known Member
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188
अध्याय - 80
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"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।



अब आगे....


मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भागता हुआ अपने घर के अंदर आया और बरामदे में बैठे अपने पिता से बोला____"बापू, मैंने अभी अभी साहूकारों के घर में दादा ठाकुर को जाते देखा है।"

"क...क्या???" चंद्रकांत बुरी तरह चौंका____"ये क्या कह रहे हो तुम?"

"मैं सच कह रहा हूं बापू।" रघुवीर ने कहा____"दादा ठाकुर अपनी बग्घी से आया है। मैंने देखा कि रूपचंद्र ने दरवाज़ा खोला और फिर कुछ देर बाद गौरी शंकर भी आया। दादा ठाकुर ने उससे कुछ कहा और फिर वो लोग अंदर चले गए।"

"बड़े हैरत की बात है ये।" चंद्रकांत चकित भाव से सोचते हुए बोला____"इतना कुछ हो जाने के बाद दादा ठाकुर आख़िर किस लिए आया होगा साहूकारों के यहां?"

"कोई तो बात ज़रूर होगी बापू।" रघुवीर ने कहा____"मैंने देखा था कि गौरी शंकर ने उसे अंदर बुलाया तो वो चला गया। अभी भी वो लोग अंदर ही हैं।"

"हो सकता है दादा ठाकुर अपने किए की माफ़ी मांगने आया होगा उन लोगों से।" चंद्रकांत ने कहा____"पर मुझे पूरा यकीन है कि गौरी शंकर उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"क्यों नहीं करेगा भला?" रघुवीर ने मानों तर्क़ देते हुए कहा____"इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है। मर्द के नाम पर सिर्फ दो लोग ही बचे हैं उनके घर में। ऐसे में अगर वो दादा ठाकुर से अब भी किसी तरह का बैर भाव रखेंगे तो नुकसान उन्हीं का होगा। मुझे तो पूरा भरोसा है बापू कि अगर दादा ठाकुर खुद चल कर माफ़ी मांगने ही आया है तो वो लोग ज़रूर माफ़ कर देंगे उसे। आख़िर उन्हें इसी गांव में रहना है तो भला कैसे वो दादा ठाकुर जैसे ताकतवर आदमी के खिलाफ़ जा सकेंगे?"

"शायद तुम सही कह रहे हो।" चंद्रकांत को एकदम से ही मानों वास्तविकता का एहसास हुआ____"अब वो किसी भी हाल में दादा ठाकुर के खिलाफ़ जाने का नहीं सोच सकते। उन्हें भी पता है कि मर्द के नाम पर अब सिर्फ वो ही दो लोग हैं। ऐसे में अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनके घर की औरतों और बहू बेटियों का क्या होगा?"

"ये सब छोड़ो बापू।" रघुवीर ने कुछ सोचते हुए कहा____"अब ये सोचो कि हमारा क्या होगा? मेरा मतलब है कि अगर दादा ठाकुर ने किसी तरह साहूकारों को मना कर अपने से जोड़ लिया तो हमारे लिए समस्या हो जाएगी। हमने तो उस दिन पंचायत में भी ये कह दिया था कि हमें अपने किए का कोई अफ़सोस नहीं है इस लिए मुमकिन है कि इस बात के चलते दादा ठाकुर किसी दिन हमारे साथ कुछ बुरा कर दे।"

"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतना ख़ौफ खा रहे हो बेटा।" चंद्रकांत ने कहा____"मैं दादा ठाकुर को उसके बचपन से जानता हूं। वो कभी पंचायत के निर्णय के ख़िलाफ़ जा कर कोई क़दम नहीं उठाएगा। इस लिए तुम इस सबके लिए भयभीत मत हो।"

"और उसके उस बेटे का क्या जिसका नाम वैभव सिंह है?" रघुवीर ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"क्या उसके बारे में भी तुम यही कह सकते हो कि वो भी अपने पिता की तरह पंचायत के फ़ैसले के खिलाफ़ जा कर कोई ग़लत क़दम नहीं उठाएगा?"

रघुवीर की बात सुन कर चंद्रकांत फ़ौरन कुछ बोल ना सका। कदाचित उसे भी एहसास था कि वैभव के बारे में उसके बेटे का ऐसा कहना ग़लत नहीं है। वो वैभव की नस नस से परिचित था इस लिए उसे वैभव पर भरोसा नहीं था। वैभव में हमेशा ही उसे बड़े दादा ठाकुर का अक्श नज़र आता था। कहने को तो वो अभी बीस साल का था लेकिन उसके तेवर और उसके काम करने का हर तरीका बड़े दादा ठाकुर जैसा ही था।

"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है बापू कि वैभव पर तुम्हें भी भरोसा नहीं है।" चंद्रकांत को चुप देख रघुवीर ने कहा____"यानि तुम भी समझते हो कि वैभव के लिए पंचायत का कोई भी फ़ैसला मायने नहीं रखता, है ना?"

"लगता तो मुझे भी यही है बेटा।" चंद्रकांत ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर मुझे इस बात का भी यकीन है कि वो अपने पिता के खिलाफ़ भी नहीं जा सकता। ये सब होने के बाद यकीनन उसके पिता ने उसे अच्छे से समझाया होगा कि अब उसे अपना हर तरीका या तो बदलना होगा या फिर छोड़ना होगा। वैभव भी अब पहले जैसा नहीं रहा जो किसी बात की परवाह किए बिना पल में वही कर जाए जो सिर्फ वो चाहता था। मुझे यकीन है कि वो भी अब कुछ भी उल्टा सीधा करने का नहीं सोचेगा।"

"मान लेता हूं कि नहीं सोचेगा।" रघुवीर ने कहा____"मगर कब तक बापू? वैभव जैसा लड़का भला कब तक अपनी फितरत के ख़िलाफ रहेगा? किसी दिन तो वो अपने पहले वाले रंग में आएगा ही, तब क्या होगा?"

"तो क्या चाहते हो तुम?" चंद्रकांत ने जैसे एकाएक परेशान हो कर कहा।

"इससे पहले कि पंचायत के खिलाफ़ जा कर वो हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा करे।" रघुवीर ने एकदम से मुट्ठियां कसते हुए कहा___"हम खुद ही कुछ ऐसा कर डालें जिससे वैभव नाम का ख़तरा हमेशा हमेशा के लिए हमारे सिर से हट जाए।"

"नहीं।" चंद्रकांत अपने बेटे के मंसूबे को सुन कर अंदर ही अंदर कांप गया, बोला____"तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे। ऐसा सोचना भी मत बेटे वरना अनर्थ हो जाएगा। मत भूलो कि अब हमारे साथ साहूकारों की फ़ौज नहीं है बल्कि इस समय हम अकेले ही हैं। इसके पहले तो किसी को हमसे ये उम्मीद ही नहीं थी कि हम ऐसा कर सकते हैं किंतु अब सबको हमारे बारे में पता चल चुका है। पंचायत के फ़ैसले के बाद अगर हमने कुछ भी उल्टा सीधा करने का सोचा तो यकीन मानो हमारे साथ ठीक नहीं होगा।"

"तुम तो बेवजह ही इतना घबरा रहे हो बापू।" रघुवीर ने कहा____"जबकि तुम्हें तो ये सोचना चाहिए कि जिस लड़के ने हमारे घर की औरतों के साथ हवस का खेल खेला है उसे कुछ भी कर के ख़त्म कर देना चाहिए। वैसे भी हम कौन सा ढिंढोरा पीट कर उसके साथ कुछ करेंगे?"

"मेरे अंदर की आग ठंडी नहीं हुई है बेटे।" चंद्रकांत ने सख़्त भाव से कहा____"उस हरामजादे के लिए मेरे अंदर अभी भी वैसी ही नफ़रत और गुस्सा मौजूद है। मैं भी उसे ख़त्म करना चाहता हूं लेकिन अभी ऐसा नहीं कर सकता। मामले को थोड़ा ठंडा पड़ने दो। लोगों के मन में इस बात का यकीन हो जाने दो कि अब हम कुछ नहीं कर सकते। उसके बाद ही हम उसे ख़त्म करने का सोचेंगे।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" रघुवीर ने कहा____"मैं मामले के ठंडा होने का इंतज़ार करूंगा।"

"यही अच्छा होगा बेटा।" चंद्रकांत ने कहा____"वैसे भी दादा ठाकुर ने हमारी निगरानी में अपने आदमी भी लगा रखे होंगे। ज़ाहिर है हम कुछ भी करेंगे तो उसका पता दादा ठाकुर को फ़ौरन चल जाएगा। इस लिए हमें तब तक शांत ही रहना होगा जब तक कि ये मामला ठंडा नहीं हो जाता अथवा हमें ये न लगने लगे कि अब हम पर निगरानी नहीं रखी जा रही है।"

रघुवीर को सारी बात समझ में आ गई इस लिए उसने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर उठ कर अंदर चला गया। उसके जाने के बाद चंद्रकांत गहरी सोच में डूब गया। दादा ठाकुर की साहूकारों के घर में मौजूदगी उसके लिए मानों चिंता का सबब बन गई थी।

✮✮✮✮

"अगर आप वाकई में अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे के साथ करने को तैयार हैं।" फूलवती ने कहा____"तो हमें भी ये मंजूर है कि आप हमारे घर की बेटियों का ब्याह अपने हिसाब से करें। ख़ैर अभी तो साल भर हमारे घरों में ब्याह जैसे शुभ काम नहीं हो सकते इस लिए अगले साल आपकी बेटी के ब्याह के साथ ही हमारे नए संबंधों का तथा नई शुरुआत का शुभारंभ हो जाएगा।"

"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हमें इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन एक बार हमें इस रिश्ते के बारे में अपने छोटे भाई जगताप की धर्म पत्नी से भी पूछना पड़ेगा।"

"उनसे पूछने की भला क्या ज़रूरत है ठाकुर साहब?" फूलवती ने कहा____"हवेली के मुखिया आप हैं। भला कोई आपके फ़ैसले के खिलाफ़ कैसे जा सकता है? हमें यकीन है कि मझली ठकुराईन को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं होगी।"

"अगर हमारा भाई जीवित होता तो बात अलग थी भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने सहसा संजीदा हो कर कहा____"क्योंकि तब हमारा अपने भाई पर ज़्यादा हक़ और ज़्यादा ज़ोर होता किंतु अब वो नहीं रहा। इस लिए उसके बीवी बच्चों के ऊपर हम कोई भी फ़ैसला ज़बरदस्ती नहीं थोप सकते। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि उन्हें अपने लिए हमारे द्वारा किए गए किसी फ़ैसले से तनिक भी ठेस पहुंचे अथवा वो उनके मन के मुताबिक न हो। इसी लिए कह रहे हैं कि हमें एक बार उससे इस बारे में पूछना पड़ेगा।"

"चलिए ठीक है।" फूलवती ने कहा____"लेकिन मान लीजिए कि यदि मझली ठकुराईन ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया तब आप क्या करेंगे?"

"ज़ाहिर है तब ये रिश्ता हो पाना संभव ही नहीं हो सकेगा।" दादा ठाकुर ने जैसे स्पष्ट भाव से कहा____"जैसा कि हम बता ही चुके हैं कि पहले में और अब में बहुत फ़र्क हो गया है। हम अपने और अपने बच्चों के लिए हज़ारों दुख सह सकते हैं या उनके लिए कोई भी निर्णय ले सकते हैं मगर अपने दिवंगत भाई के बीवी बच्चों के लिए किसी भी तरह का निर्णय नहीं ले सकते और ना ही उन पर किसी तरह की आंच आने दे सकते हैं।"

"अगर मझली ठकुराईन ने इस रिश्ते को करने से इंकार कर दिया।" फूलवती ने दो टूक लहजे में कहा____"तो फिर बहुत मुश्किल होगा ठाकुर साहब हमारे और आपके बीच नई शुरुआत होना।"

"रिश्तों में किसी शर्त का होना अच्छी बात नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे भी शादी ब्याह जैसे पवित्र रिश्ते तो ऊपर वाले की कृपा और आशीर्वाद से ही बनते हैं। ख़ैर हम इस बारे में बात करेंगे किंतु अगर कुसुम की मां ने इस रिश्ते के लिए इंकार किया तो हम उस पर ज़ोर भी नहीं डालेंगे। रिश्ते तो वही बेहतर होते हैं जिनमें दोनों पक्षों की सहमति और खुशी शामिल हो। ज़बरदस्ती बनाए गए रिश्ते कभी खुशियां नहीं देते।"

रूपचंद्र जो अब तक खुशी से फूला नहीं समा रहा था दादा ठाकुर की ऐसी बातें सुनने से उसकी वो खुशी पलक झपकते ही छू मंतर हो गई। फूलवती ने कुछ कहना तो चाहा लेकिन फिर जाने क्या सोच कर वो कुछ न बोली। दादा ठाकुर उठे और फिर बाहर की तरफ चल दिए। उनके पीछे गौरी शंकर और रूपचंद्र भी चल पड़े। बाहर आ कर दादा ठाकुर ने गौरी शंकर से इतना ही कहा कि उन सबके लिए हवेली के दरवाज़े खुले हैं। वो लोग जब चाहे आ सकते हैं। उसके बाद दादा ठाकुर बग्घी में आ कर बैठे ग‌ए। शेरा ने घोड़ों की लगाम को झटका दिया तो वो बग्घी को लिए चल पड़े।

"आपने तो कमाल ही कर दिया भौजी।" दादा ठाकुर के जाने के बाद गौरी शंकर अंदर आते ही फूलवती से बोल पड़ा____"दादा ठाकुर से शादी जैसे रिश्ते की बात कहने की तो मुझमें भी हिम्मत नहीं थी लेकिन आपने तो बड़ी सहजता से उनसे ये बात कह दी।"

"आप सही कह रहे हैं काका।" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"बड़ी मां को दादा ठाकुर से ऐसी बात कहते हुए ज़रा भी डर नहीं लगा।"

"दादा ठाकुर भी इंसान ही है बेटा।" फूलवती ने सपाट लहजे में कहा____"और इंसान से भला क्या डरना? वैसे भी उसने जो किया है उसकी वजह से वो हमारे सामने सिर उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। फिर जब उसने रिश्ते सुधार कर फिर से नई शुरुआत करने की बात कही तो मैंने भी यही देखने के लिए उससे ऐसा कह दिया ताकि देख सकूं कि वो इस बारे में क्या कहता है?"

"उसने आपकी बात मान तो ली ना भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"उसने तो इस रिश्ते से इंकार ही नहीं किया जबकि मैं तो यही सोच के डर रहा था जाने वो आपकी इन बातों पर क्या कहने लगे?"

"ये उसकी मजबूरी थी जो उसने इस रिश्ते के लिए हां कहा।" फूलवती ने कहा____"क्योंकि वो अपराध बोझ से दबा हुआ है और हर हाल में चाहता है कि हमारे साथ उसके रिश्ते बेहतर हो जाएं। ख़ैर उसने इस रिश्ते के लिए मजबूरी में हां तो कहा लेकिन फिर एक तरह से इंकार भी कर दिया।"

"वो कैसे बड़ी मां?" रूपचंद्र को जैसे समझ न आया।

"अपने छोटे भाई की पत्नी से इस रिश्ते के बारे में पूछने की बात कह कर।" फूलवती ने कहा____"हालाकि एक तरह से उसका ये सोचना जायज़ भी है किन्तु उसे भी पता है कि उसके भाई की पत्नी अपनी बेटी का ब्याह हमारे घर में कभी नहीं करेगी। ज़ाहिर है ये एक तरह से इंकार ही हुआ।"

"हां हो सकता है।" गौरी शंकर ने कहा____"फिर भी देखते हैं क्या होता है? अगर वो सच में हमारे रूपचंद्र से अपने छोटे भाई की बेटी का ब्याह कर के नया रिश्ता बनाना चाहता है तो यकीनन वो हवेली में बात करेगा।"

"अब यही तो देखना है कि आने वाले समय में उसकी तरफ से हमें क्या जवाब मिलता है?" फूलवती ने कहा।

"और अगर सच में ये रिश्ता न हुआ तो?" गौरी शंकर ने कहा____"तब क्या आप उसे यही कहेंगी कि हम उससे अपने रिश्ते नहीं सुधारेंगे?"

"जिस व्यक्ति ने हमारे घर के लोगों की हत्या कर के हमारा सब कुछ बर्बाद कर दिया हो।" फूलवती ने सहसा तीखे भाव से कहा____"ऐसे व्यक्ति से हम कैसे भला कोई ताल्लुक रख सकते हैं? कहीं तुम उससे रिश्ते सुधार लेने का तो नहीं सोच रहे?"

"बड़े भैया के बाद आप ही हमारे परिवार की मालकिन अथवा मुखिया हैं भौजी।" गौरी शंकर ने गंभीरता से कहा____"हम भला कैसे आपके खिलाफ़ कुछ करने का सोच सकते हैं?"

"वाह! बहुत खूब।" फूलवती के पीछे खड़ी उसकी बीवी सुनैना एकदम से बोल पड़ी____"क्या कहने हैं आपके। इसके पहले भी आप सबने इनसे पूछ कर ही हर काम किया था और अब आगे भी करेंगे, है ना?"

गौरी शंकर अपनी बीवी की ताने के रूप में कही गई ये बात सुन कर चुप रह गया। उससे कुछ कहते ना बना था। कहता भी क्या? सच ही तो कहा था उसकी बीवी ने। फूलवती ने सुनैना और बाकी सबको अंदर जाने को कहा तो वो सब चली गईं।

✮✮✮✮

कपड़े बदल कर मैं अपने कमरे में आराम ही कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने जा कर दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर भाभी अपने हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ीं थी। विधवा के लिबास में उन्हें देखते ही मेरे अंदर एक टीस सी उभरी।

"मां जी ने बताया कि तुम भींग गए थे।" भाभी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा____"इस लिए तुम्हारे लिए अदरक वाली गरमा गरम चाय बना कर लाई हूं।"

"आपको ये तकल्लुफ करने की क्या ज़रूरत थी भाभी?" मैंने उनके पीछे आते हुए कहा____"हवेली में इतनी सारी नौकरानियां हैं। किसी को भी बोल देतीं आप।"

"शायद तुम भूल गए हो कि हवेली की किसी भी नौकरानी को तुम्हारे कमरे में आने की इजाज़त नहीं है।" मैं जैसे ही पलंग पर बैठा तो भाभी ने मेरी तरफ चाय का प्याला बढ़ाते हुए कहा____"ऐसे में भला कोई नौकरानी तुम्हें चाय देने कैसे आ सकती थी? मां जी को सीढियां चढ़ने में परेशानी होती है इस लिए मुझे ही आना पड़ा।"

"और आपकी चाय कहां है?" मैंने विषय बदलते हुए कहा____"क्या आप नहीं पियेंगी?"
"अब जाऊंगी तो मां जी के साथ बैठ कर पियूंगी।" भाभी ने कहा____"वैसे कहां गए थे जो बारिश में भीग कर आए थे?"

"मन बहलाने के लिए बाहर गया था।" मैंने चाय का एक घूंट लेने के बाद कहा____"और कुछ ज़रूरी काम भी था। पिता जी ने कहा है कि अब से मुझे वो सारे काम करने होंगे जो इसके पहले जगताप चाचा करते थे। मतलब कि खेती बाड़ी के सारे काम।"

"अच्छा ऐसी बात है क्या?" भाभी ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"मतलब कि अब ठाकुर वैभव सिंह खेती बाड़ी के काम करेंगे?"

"क्या आप मेरी टांग खींच रही हैं?" मैंने भाभी की तरफ ध्यान से देखा____"क्या आपको यकीन नहीं है कि मैं ये काम भी कर सकता हूं?"

"अरे! मैं कहां तुम्हारी टांग खींच रही हूं?" भाभी ने कहा____"मुझे तो बस हैरानी हुई है तुम्हारे मुख से ये सुन कर। रही बात तुम्हारे द्वारा ये काम कर लेने की तो मुझे पूरा यकीन है कि मेरे देवर के लिए कोई भी काम कर लेना मुश्किल नहीं है।"

जाने क्यों मुझे अभी भी लग रहा था जैसे वो मेरी टांग ही खींच रही हैं किंतु उनके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे इस लिए मैं थोड़ा दुविधा में पड़ गया था। मुझे समझ ही न आया कि मैं उनसे क्या कहूं।

"चाची और कुसुम लोगों के जाने के बाद आपको अकेलापन तो नहीं महसूस हो रहा भाभी?" मैंने फिर से विषय बदलते हुए पूछा।

"मेरा अकेलापन तो अब कभी भी दूर नहीं हो सकता वैभव।" भाभी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"इस दुनिया में एक औरत के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है। जब तक वो उसके पास होता है तब तक वो हर हाल में खुशी से रह लेती है किंतु जब वही पति उसे छोड़ कर चला जाता है तो फिर उस औरत का अकेलापन कोई भी दूर नहीं कर सकता।"

"हां मैं समझता हूं भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"सच कहूं तो आपको इस लिबास में देख कर मुझे बहुत तकलीफ़ होती है। काश! मेरे बस में होता तो मैं भैया को वापस ला कर फिर से आपको पहले की तरह सुहागन बना देता और आप फिर से हमेशा की तरह खुश हो जातीं।"

"छोड़ो इस बात को।" भाभी ने मुझसे चाय का खाली कप लेते हुए कहा____"अब तुम आराम करो। मैं भी जाती हूं, मां जी अकेली होंगी।"

"अच्छा एक बात कहूं आपसे?" मैंने कुछ सोचते हुए उनसे पूछा।
"हां कहो।" उन्होंने मेरी तरफ देखा।

"मेनका चाची की तरह क्या आपका भी मन है अपनी मां के पास जाने का?" मैंने उनके चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मन है तो आप बेझिझक मुझे बता दीजिए। मैं आपको चंदनपुर ले चलूंगा।"

"मैं मां जी को यहां अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती।" भाभी ने कहा____"वैसे भी वो भी तो मेरी मां ही हैं। उन्होंने सगी मां की ही तरह प्यार और स्नेह दिया है मुझे।"

"फिर भी मन तो करता ही होगा आपका।" मैंने कहा____"अच्छा एक काम करता हूं। जब मेनका चाची यहां वापस आ जाएंगी तब मैं आपको ले चलूंगा। तब तो आप जाना चाहेंगी न?"

"हां तब तो जा सकती हूं।" भाभी ने कुछ सोचते हुए कहा____"मगर सोचती हूं कि अगर इस हाल में जाऊंगी तो मां मुझे देख कर कैसे खुद को सम्हाल पाएगी?"

"हां ये भी है।" मैंने गंभीरता से सिर हिलाया____"आपके भैया को भी इतने सालों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। इस खुशी में वो बेचारे बड़ा भारी उत्सव भी मनाने जा रहे थे किंतु विधाता ने सब कुछ तबाह कर दिया।"

भाभी मेरी बात सुन कर एकदम से सिसक उठीं। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ये देख एकदम से मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ। कहां मैं उन्हें खुश करने के लिए कोई न कोई कोशिश कर रहा था और कहां मेरी इस बात से उन्हें तकलीफ़ हो गई।

मैं जल्दी से उठ कर उनके पास गया और उनके दोनों कन्धों को पकड़ कर बोला____"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मेरा इरादा आपको इस तरह रुला देने का हर्गिज़ नहीं था। कृपया मत रोइए। आपके आंसू देख कर मुझे भी बहुत तकलीफ़ होने लगती है।"

मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।




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Awesome update
इतना सब कुछ होने जाने के बाद भी कुछ भी नही बदला है साहूकारो ,मुंशी और उसके बेटे का वही हाल है साहूकारो के यहां अब मुखिया फूलवती है वह यह मानती हैं कि साहूकारो ने जो किया है वह सही है और ठाकुर ने जो किया गलत ठाकुर अब निर्बल है इसलिए कुसुम का हाथ मांग रही है अगर अपनी गलती पर पछतावा होता तो वह ठाकुर के सामने ये प्रस्ताव नही रखती। ये वो कुत्ते की पूंछ है जिसको कितना ही सीधा करलो साली रहेगी टेडी की टेडी ही। इनके लिए तो वैभव एकदम सही है क्योंकि लातो के भूत बातों से नही मानते हैं इंसान को इतना भी नही झुकना चाहिए कि लोग उसकी सराफत का नाजायज फायदा उठा ले ।ठाकुर साहब साहूकारो के घर आकर माफी मांगते हैं लेकिन इनको अभी तक पछतावा नहीं है बल्कि फूलमती मैडम तो ठाकुर की विनम्रता का गलत फायदा उठा रही है अभी तक कुछ नहीं बदला है वही ढाक के तीन पात है सब से ज्यादा दुख भाभी को हुआ है देखते हैं वैभव भाभी की खुशी के लिए क्या करता है
 
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KEKIUS MAXIMUS

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nice update ..dada thakur lagta hai sathiya gaya hai budhape me 🤣..shadi ki baat biwi se karne chala aaya par sahukaro ko naa nahi keh saka aur upar se keh raha hai ki komal ghar ki sabki laadli hai .
agar itni hi fikr hoti to wahi par inkar karke chale aata ,

pashchatap ka matlab ye nahi ki ghar ke baaki sadasyo ki jindagi nark bana do .

sugandha ji ne apna faisla suna diya bina dare ye achchi baat hai 😍.unka kehna bhi sahi hai sahukaro ke baare me ..agar sahukaro ko rishte sudharne hai to thakur ko nicha dikhane ki kya jarurat thi .aur upar se komal ka haath maangna rupchandr ke liye .

jiske pati ke hatyare hai sahukar usse salaah lene ki baat karna komal ke shadi ki ,wakai dada thakur ek kamjor insan lag rahe hai .
kya menka apne beti ko byaah degi sahukaro ke yaha .

anuradha ke baare me sochna aur bhuvan ko vaidya lekar jaane ko bolkar achcha kiya vaibhav ne 😍..
bechari anuradha ko pata hi nahi ki wo vaibhav se pyar karne lagi hai ,tabhi to har baar uski yaado me khoyi rehti hai .
aur ab ro rokar apna bura haal bana rahi hai .

rajni ko paane ki laalsa ab bhi hai kamine rupchandr me 😡..sahi kaha ki rassi jal gayi par bal nahi gaya ,ek jhatke me aukat dikha di rajni ne ,aur ye kehkar sulga diya ki vaibhav ke saamne abhi taange khol deti 🤣🤣..
 

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अध्याय - 76
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गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'


अब आगे....


"मालिक, बाहर पुलिस वाले आए हैं।" एक दरबान ने बैठक में आ कर पिता जी से कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो उन्हें अंदर भेज दूं"

"हां भेज दो।" पिता जी ने कहा तो दरबान अदब से सिर नवा कर चला गया।

"शायद कानून के नुमाइंदों को पता चल गया है कि यहां क्या हुआ है।" पास ही एक कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"ज़रूर इस मामले के बारे में किसी ने पुलिस तक ये ख़बर भेजवाई होगी। इसी लिए वो यहां आए हैं। ख़ैर सोचने वाली बात है कि अगर इस मामले में पुलिस ने कोई हस्ताक्षेप किया तो भारी समस्या हो सकती है ठाकुर साहब।"

"वर्षों से इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास के गावों के मामले भी हम ही देखते आए हैं महेंद्र सिंह जी।" पिता जी ने कहा____"ना तो इसके पहले कभी पुलिस या कानून का हमारे किसी मामले में कोई दखल हुआ था और ना ही कभी हो सकता है।"

पिता जी की बात सुन कर महेंद्र सिंह अभी कुछ कहने ही वाले थे कि तभी बैठक के बाहर किसी के आने की आहट हुई जिसके चलते वो चुप ही रहे। अगले ही पल पुलिस के दो अफ़सर खाकी वर्दी पहने बैठक में नमूदार हुए। दोनों ने बड़े अदब से पहले पिता जी को सिर नवाया और फिर बैठक में बैठे बाकी लोगों को। पिता जी ने इशारे से उन्हें खाली कुर्सियों में बैठ जाने को कहा तो वो दोनों धन्यवाद ठाकुर साहब कहते हुए बैठ गए।

"कहो एस पी।" पिता जी ने दोनों में से एक की तरफ देखते हुए कहा____"यहां आने का कैसे कष्ट किया और हां हमारे छोटे भाई तथा बेटे की लाशों का क्या हुआ? वो अभी तक हमें क्यों नहीं सौंपी गईं?"

"माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" एस पी ने खुद को संतुलित रखने का प्रयास करते हुए कहा____"ऐसे कामों में समय तो लगता ही है। हालाकि मैंने पूरी कोशिश की थी कि आपको इन्तज़ार न करना पड़े। ये मेरी कोशिश का ही नतीजा है कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडी का जल्दी ही पोस्ट मॉर्टम हो गया। शाम होने से पहले ही वो आपको सुपुर्द कर दी जाएंगी।"

"तो आपको हमारे जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज के साथ ही यहां आना चाहिए था।" पिता जी ने कहा____"इस तरह खाली हाथ यहां चले आने का सोचा भी कैसे आपने?"

"ज...जी वो बात दरअसल ये है कि हमें पता चला है कि यहां आपके द्वारा बहुत बड़ा नर संघार किया गया है।" एस पी ने भारी झिझक के साथ कहा____"बस उसी सिलसिले में हम यहां आए हैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो हम इस मामले की छानबीन कर लें?"

"ख़ामोश।" पिता जी गुस्से से दहाड़ ही उठे____"तुम्हारे ज़हन में ये ख़याल भी कैसे आया कि तुम हमारे किसी मामले में दखल दोगे अथवा अपनी टांग अड़ाओगे? हमने अपने जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज़ भी तुम्हें इस लिए ले जाने दिया था क्योंकि उस समय हमारी मानसिक अवस्था ठीक नहीं थी। किंतु इसका मतलब ये नहीं है कि हमने पुलिस को अपने किसी मामले में हस्ताक्षेप करने का अधिकार दे दिया है। ये मत भूलो कि वर्षों से हम खुद ही आस पास के सभी गांवों के मामलों का फ़ैसला करते आए हैं। न इसके पहले कभी पुलिस का कोई दखल हुआ था और ना ही कभी होगा।"

"म....माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" दूसरे पुलिस वाले ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन ऐसा हमेशा तो नहीं हो सकता ना। इस देश के कानून को तो एक न एक दिन सबको मानना ही पड़ेगा।"

"लगता है तुम नए नए आए हो बर्खुरदार।" महेंद्र सिंह ने कहा____"इसी लिए ऐसा बोलने की हिमाकत कर रहे हो ठाकुर साहब से। ख़ैर तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम यहां पर कानून का पाठ मत पढ़ाओ किसी को।"

"अ...आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" वो थोड़ा तैश में आ गया____"मैं इस देश के कानून का नुमाइंदा हूं और मेरा ये फर्ज़ है कि मैं ऐसे हर मामले की छानबीन करूं जिसे कानून को हाथ में ले कर अंजाम दिया गया हो।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" अर्जुन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा____"ज़रा हम भी तो देखें कि कानून के इस नुमाइंदे में कितना दम है? हमें दिखाओ कि हमारे मामले में कानून का नुमाइंदा बन कर तुम किस तरह से हस्ताक्षेप करते हो?"

"इन्हें माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" एस पी दूसरे पुलिस वाले के कुछ बोलने से पहले ही झट से बोल उठा____"इन्हें अभी आप सबके बारे में ठीक से पता नहीं है। यही वजह है कि ये आपसे ऐसे लहजे में बात कर रहे हैं।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं साहब?" दूसरा पुलिस वाला आश्चर्य से एस पी को देखते हुए बोला____"कानून के रक्षक हो कर आप ऐसी बात कैसे कह सकते हैं?"

"लाल सिंह।" एस पी ने थोड़े गुस्से में उसकी तरफ देखा और फिर कहा____"ये शहर नहीं है बल्कि वो जगह है जहां पर इस देश का कानून नहीं बल्कि यहां के ठाकुरों का कानून चलता है। अपने लहजे और तेवर को ठंडा ही रखो वरना जिस वर्दी के दम पर तुम ये सब बोलने की जुर्रत कर रहे हो उसे तुम्हारे जिस्म से उतरने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"

अपने आला अफ़सर की ये डांट सुन कर लाल सिंह भौचक्का सा रह गया। हालाकि यहां आते समय रास्ते में एस पी ने उसे थोड़ा बहुत यहां के बारे में बताया भी था किंतु ये नहीं बताया था कि ऐसा बोलने पर उसके साथ ऐसा भी हो सकता है। बहरहाल एस पी के कहने पर उसने सभी से अपने बर्ताव के लिए हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी। ये अलग बात है कि अंदर ही अंदर वो अपमानित सा महसूस करने लगा था।

"ठीक है ठाकुर साहब।" एस पी ने पिता जी की तरफ देखते हुए नम्रता से कहा____"अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो यही सही। वैसे भी मुझे ऊपर से ही ये हुकुम मिल गया था कि मैं आपके किसी मामले में कोई हस्ताक्षेप न करूं। मैं तो बस यहां यही बताने के लिए आया था कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडीज को आज शाम होने से पहले ही आपके सुपुर्द कर दिया जाएगा। आपको हमारी वजह से जो तक़लीफ हुई है उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं।"

कहने के साथ ही एस पी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। उसके साथ ही उसका सहयोगी पुलिस वाला लाल सिंह भी जल्दी से उठ गया। उसके बाद वो दोनों सभी को नमस्कार कर के बैठक से बाहर निकल गए।

"एक वो वक्त था जब हमारे पिता जी के दौर में कोई पुलिस वाला गांव में घुसने की भी हिम्मत नहीं करता था।" पिता जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा____"और एक ये वक्त है जब कोई पुलिस का नुमाइंदा इस गांव में ही नहीं बल्कि हमारी हवेली की दहलीज़ को भी पार करने की जुर्रत कर गया। हमारी नर्मी का बेहद ही नाजायज़ फ़ायदा उठाया है सबने।"

"सब वक्त की बातें हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। आज कम से कम अभी इतना तो है कि इतने बड़े संगीन मामले के बाद भी पुलिस अपना दखल देने से ख़ौफ खा गई है। ज़ाहिर है ये आपके पुरखों का बनाया हुआ कानून और ख़ौफ ही रहा है। सबसे ज़्यादा तो बड़े दादा ठाकुर का ख़ौफ रहा जिसके चलते कानून का कोई भी नुमाइंदा गांव की सरहद के इस पार क़दम भी नहीं रख सकता था। ख़ैर इसे आपकी नर्मी कहें अथवा समय का चक्र कि अब ऐसा नहीं रहा और यकीन मानिए आगे ऐसा भी समय आने वाला है जब यहां भी कानून का वैसा ही दखल होने लगेगा जैसा शहरों में होता है।"

"सही कहा आपने।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन आने वाले समय में ऐसा ही होगा। ख़ैर ये तो बाद की बातें हैं किंतु ये जो कुछ हुआ है उसने हमें काफी ज़्यादा आहत और विचलित सा कर दिया है। हमें अब जा कर एहसास हो रहा है कि हमने साहूकारों का इस तरह से नर संघार कर के बिल्कुल भी ठीक नहीं किया है। माना कि वो सब अपराधी थे लेकिन उनके बच्चों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। अपराधी तो मणि शंकर और उसके तीनों भाई थे जबकि उनके बच्चे तो निर्दोष ही थे। ऊपर वाला हमें इस जघन्य पाप के लिए नर्क में भी जगह नहीं देगा। काश! पंचायत में आपने हमें मौत की सज़ा सुना दी होती तो बेहतर होता। कम से कम हमें इस अजाब से तो मुक्ति मिल जाती। जीवन भर ऐसे भयानक पाप का बोझ ले कर हम कैसे जी सकेंगे?"

"अब तो आपको इस बोझ के साथ ही जीना होगा ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अच्छा होगा कि अपने किए गए कृत्य के लिए आप कुछ इस तरह से प्रायश्चित करें जिससे आपकी आत्मा को शांति मिल सके।"

"ऐसा क्या करें हम?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हमें तो अब कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। मन करता है कि कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां इंसान तो क्या कोई परिंदा भी न रहता हो।"

"ऐसा सोचिए भी मत ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्योंकि ऐसी जगह पर जा कर भी आपको सुकून नहीं मिलेगा। शांति और सुकून प्रायश्चित करने से ही मिलेगा। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसा क्या करें जिससे आपको ये प्रतीत हो कि उस कार्य से आपके अंदर का बोझ कम हो रहा है अथवा आपको सुकून मिल रहा है।"

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"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी।" कमरे में भाभी के सामने पहुंचते ही मैंने सिर झुका कर कहा____"मैं आपसे किया हुआ वादा नहीं निभा सका। आपके सुहाग को छीनने वालों को मिट्टी में नहीं मिला सका।"

"कोई बात नहीं वैभव।" भाभी ने अधीरता से कहा____"शायद ऊपर वाला यही चाहता है कि मेरी आत्मा को कभी शांति ही न मिले। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि तुमने उन हत्यारों का पता तो लगा ही लिया है जिन्होंने मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया है। पिछली रात जब तुम बिना किसी को कुछ बताए चले गए थे तो मैं बहुत घबरा गई थी। अपने आप पर ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि मैंने तुमसे अपने सुहाग के हत्यारे को मिट्टी में मिलाने की बात ही क्यों कही? अगर इसके चलते तुम्हें कुछ हो जाता तो कैसे मैं अपने आपको माफ़ कर पाती? सारी रात यही सोच सोच कर कुढ़ती रही। जान में जान तब आई जब मुझे पता चला कि तुम सही सलामत वापस आ गए हो। अब मैं तुमसे कहती हूं कि तुम्हें ऐसा कोई काम नहीं करना है जिसकी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ हो जाए। तुम इस हवेली का भविष्य हो वैभव। तुम्हें हम सबके लिए सही सलामत रहना है।"

"और आपका क्या?" मैंने भाभी की नम हो चुकी आंखों में देखते हुए कहा____"क्या आपको कभी उन हत्यारों के जीवित रहते आत्मिक शांति मिलेगी जिन्होंने आपके सुहाग को छीन कर आपकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है?"

"सच तो ये है वैभव कि उन ज़ालिमों के मर जाने पर भी मुझे आत्मिक शांति नहीं मिल सकती।" भाभी ने दुखी भाव से कहा____"क्योंकि उनके मर जाने से मेरा सुहाग मुझे वापस तो नहीं मिल जाएगा न। मेरे दिल को खुशी तो तभी मिलेगी ना जब मेरा सुहाग मुझे वापस मिल जाए किंतु इस जीवन में तो अब ऐसा संभव ही नहीं है। तुमने अपनी क़सम दे कर मुझे जीने के लिए मजबूर कर दिया है तो अब मुझे जीना ही पड़ेगा।"

"मैं आपसे वादा करता हूं भाभी कि चाहे मुझे जो भी करना पड़े।" मैंने भाभी की दोनों बाजुओं को थाम कर कहा____"लेकिन आपको खुशियां ज़रूर ला कर दूंगा। आपसे बस यही विनती है कि आप खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देंगी और ना ही चेहरे पर उदासी के बादलों को मंडराने देंगी।"

"तुम्हारी खुशी के लिए ये मुश्किल काम ज़रूर करूंगी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर ये बताओ कि वो लड़की कौन थी जिसने पंचायत में आते ही तुम्हारा नाम ले कर सुनहरा इतिहास बनाने की बातें कह रही थी?"

भाभी के इस सवाल पर मैं एकदम से गड़बड़ा गया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्होंने पंचायत में किसी ऐसी लड़की को देखा ही नहीं था बल्कि उसकी बातें भी सुनी थीं।

"इतना तो मैं जान चुकी हूं कि वो साहूकारों की बेटी है।" भाभी ने कहा____"किंतु अब ये जानना चाहती हूं कि वो तुम्हें कैसे जानती है? वो भी इस तरह कि इतने सारे लोगों के रहते हुए भी उसने तुम्हारी बात का समर्थन किया और तुम्हारा नाम ले कर वो सब कहा। तुम्हारी बात का समर्थन करते हुए वो अपने ही परिवार के खिलाफ़ बोले जा रही थी। क्या मैं ये समझूं कि साहूकारों की उस लड़की के साथ तुम्हारा पहले से ही कोई चक्कर रहा है?"

"आप ये सब मत पूछिए भाभी।" मैंने असहज भाव से कहा____"बस इतना समझ लीजिए कि मेरा नाम दूर दूर तक फैला हुआ है।"
"हे भगवान!" भाभी ने हैरत से आंखें फैला कर मुझे देखा____"तो मतलब ऐसी बात है, हां?"

"क...क्या मतलब??" मैं उनकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका।
"जाओ यहां से।" भाभी ने एकदम से नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"मुझे अब तुमसे कोई बात नहीं करना।"

"म...मेरी बात तो सुनिए भाभी।" मैं उनकी नाराज़गी देख अंदर ही अंदर घबरा उठा।

"क्या सुनूं मैं?" भाभी ने इस बार गुस्से से देखा मुझे____"क्या ये कि तुमने अपने नाम का झंडा कहां कहां गाड़ रखा है? कुछ तो शर्म करो वैभव। किसी को तो बक्स दो। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि ये सब जो कुछ भी हुआ है उसमें तुम्हारी इन्हीं करतूतों का सबसे बड़ा हाथ है।"

"मानता हूं भाभी।" मैंने शर्मिंदा हो कर कहा____"मगर यकीन मानिए अब मैं वैसा नहीं रहा। चार महीने के वनवास ने मुझे मुकम्मल रूप से बदल दिया है। पहले ज़रूर मैं ऐसा था लेकिन अब नहीं हूं, यकीन कीजिए।"

"कैसे यकीन करूं वैभव?" भाभी ने उसी नाराज़गी से कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम पर कोई इन बातों के लिए यकीन कर सकता है?"

"जानता हूं कि कोई यकीन नहीं कर सकता।" मैंने सिर झुका कर कहा____"मगर फिर भी आप यकीन कीजिए। अब मैं वैसा नहीं रहा।"

"अच्छा।" भाभी ने मेरी आंखों में देखा____"क्या यही बात तुम मेरे सिर पर हाथ रख कर कह सकते हो?"

भाभी की ये बात सुन कर मैं कुछ न बोल सका। बस बेबसी से देखता रहा उन्हें। मुझे कुछ न बोलता देख उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।

"देखा।" फिर उन्होंने कहा____"मेरे सिर पर हाथ रखने की बात सुनते ही तुम्हारी बोलती बंद हो गई। मतलब साफ है कि तुम अभी भी वैसे ही हो जैसे हमेशा से थे। भगवान के लिए ये सब बंद कर दो वैभव। एक अच्छा इंसान बनो। ऐसे काम मत करो जिससे लोगों की बद्दुआ लगे तुम्हें। यकीन मानो, तुम में सिर्फ़ यही एक ख़राबी है वरना तुमसे अच्छा कोई नहीं है।"

"अब से आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"अब से आपको कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।"

"अगर ऐसा सच में हो गया।" भाभी ने कहा____"तो यकीन मानो, भले ही ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा दुख दे दिया है लेकिन इसके बावजूद मुझे तुम्हारे इस काम से खुशी होगी।"

उसके बाद मैं अपने कमरे में चला आया। जाने क्यों अब मुझे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि ऐसा क्यों हूं मैं? आज से पहले क्यों मैंने ऐसे घिनौने कर्म किए थे जिसके चलते मेरी छवि हर किसी के मन में ख़राब बनी हुई है? मेरी इसी ख़राब छवि के चलते अनुराधा ने उस दिन मुझे वो सब कह दिया था। हालाकि ये सच है कि उसके बारे में मैं सपने में भी ग़लत नहीं सोच सकता था इसके बावजूद उसने मुझ पर भरोसा नहीं किया और मुझे वो सब कह दिया था। अचानक ही मुझे भुवन की बातें याद आ गईं। उसने कहा था कि अनुराधा मुझसे प्रेम करती है। मैं सोचने लगा कि क्या ये सच है या उसने अनुराधा के बारे में ग़लत अनुमान लगा लिया है? मुझे याद आया कि आज पंचायत में अनुराधा मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने हर बार उससे अपनी नज़रें हटा ली थीं इस लिए मुझे उसके हाल का ज़्यादा अंदाज़ा नहीं हो पाया था किंतु इतना ज़रूर समझ सकता हूं कि उसमें कुछ तो बदलाव यकीनन आया है। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर वो मुझसे नफ़रत कर रही होती तो यूं मुझे ही न देखती रहती। कोई इंसान जब किसी को पसंद नहीं करता अथवा उससे घृणा करता है तो वो उस इंसान की शकल तक नहीं देखना चाहता किंतु यहां तो अनुराधा को मैंने जब भी देखा था तो उसे मैंने अपनी तरफ ही देखते पाया था। मतलब साफ है कि या तो भुवन की बात सच थी या फिर उसमें थोड़ा बहुत बदलाव ज़रूर आया है। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि इस बारे में मैं सच जानने के लिए काफी उत्सुक और बेचैन हो उठा हूं।

रूपा, इस नाम को कैसे भूल सकता था मैं?
आज पंचायत में जिस तरह से उसने मेरी बात का समर्थन करते हुए मेरा नाम ले कर वो सब कहा था उसे देख सुन कर मैं हैरत में ही पड़ गया था। उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि उसे हमारे इस मामले के बारे में पहले से कुछ न कुछ पता था और इस बात का ज़िक्र भी उसने किया था।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंक पड़ा। किसी बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि कहीं ये रूपा ही तो नहीं थी जिसका ज़िक्र पिता जी ने इस बात पर किया था कि चंदनपुर में मुझे जान से मारने की जब साहूकारों ने मुंशी के साथ मिल कर योजना बनाई थी तो उसी समय हवेली में दो औरतें इस बात की सूचना देने आईं थी?

ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैं आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। एकदम से मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि कैसे?? मतलब कि अगर उन दो औरतों में से एक रूपा ही थी तो उसे ये कैसे पता चला था कि कुछ लोग मुझे जान से मारने के लिए अगली सुबह चंदनपुर जाने वाले हैं? ये एक ऐसा सवाल था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।



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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
 
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