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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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5,522
144
TheBlackBlood bhai Best updates ...

Now I can say what is the next move of Dada Thakur... He will ask Roopa's hand for Vaibhav.

So there will be no threats for Kusum's life... Also it's a reward of bravery Roopa showed in the night before attack.

But Vaibhav is thinking to marry Ragini Bhabhi (Due to Vaibhav promise her a best life... And as you wrote she looks pretty in her married attire) 😍

*****

And for the condition of Vaibhav I remember a old song of movie "Dil hai ki Manta nahi"

Now situation is like... Vaibhav is in centre and Roopa (Vaibhav liked her and also had relationship) & Ragini Bhabhi on one side and AnuRadha on other side...

कौन अपना है क्या बेगाना है
क्या हक़ीक़त है क्या फ़साना है
ये ज़माने में किसने जाना है
तू नज़र में है किसी और की तुझे देखता कोई और है

तू पसन्द है किसी और की तुझे मांगता कोई और है
तू प्यार है किसी और का तुझे चाहता कोई और है

प्यार में अक्सर ऐसा होता है
कोई हँसता है कोई रोता है
कोई पाता है कोई खोता है
तू जान है किसी और की तुझे जानता कोई और है

तू पसन्द है किसी और की तुझे मांगता कोई और है
तू प्यार है किसी और का तुझे चाहता कोई और है

And for Anuradha:

सोचती हूँ मैं चुप रहूँ कैसे
दर्द दिल का ये मैं सहूँ कैसे
कशमकश में हूँ ये कहूँ कैसे
मेरा हमसफ़र बस एक तू नहीं दूसरा कोई और है
 
Last edited:

randibaaz chora

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Bhai bhut hi mast updates hai...
Aapki story bhut mast jaa rhi hai mera manana hai aap logo ke omment to pad lo lekin likho apne tarike se hi..... .
Baki aaapka writing skills alag hi level ki hai maja aa jata hai story padhne me. Thankyou so much to write like these stories keep it up............
 

randibaaz chora

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Bhai bhut hi mast updates hai...
Aapki story bhut mast jaa rhi hai mera manana hai aap logo ke omment to pad lo lekin likho apne tarike se hi..... .
Baki aaapka writing skills alag hi level ki hai maja aa jata hai story padhne me. Thankyou so much to write like these stories keep it up............
 
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दादा ठाकुर का साहूकारों के घर जाना , उनका माफी मांगना और फिर फुलवती का रूपचंद के लिए कुसुम का हाथ मांगना कहानी मे गजब का ट्विस्ट ला खड़ा किया।

आखिर दादा ठाकुर को साहूकारों से बार बार माफी मांगने की जरूरत ही क्यों है ? इस खून खराबे की शुरुआत आखिर साहूकारों ने की थी। दादा ठाकुर का जवान बेटा मारा गया । उनके छोटे भाई को भी उन्होने मार दिया । और अगर उनकी किस्मत थोड़ी मेहरबान होती तो वैभव भी मारा गया होता । सारे मर्दों की हत्या हो गई होती । इसके बाद जो कुछ हुआ वो जुनूनी हालात मे लिया गया फैसला था ठाकुर साहब का । खून के बदले खून का इंसाफ किया उन्होने और साहूकारों की हत्या करवा दी। ( वैसे मै इसे भी सही नही मानता )
यह क्रिया का त्वरित प्रतिक्रिया था। फिर भी ठाकुर साहब ने अपनी गलती को स्वीकार की लेकिन साहूकारों को अबतक अपने बुरे कर्मों का एहसास तक नही हो रहा है । वो अपनी गलती मानने को तैयार नही है।
ऐसे मे एकतरफा समझौता कैसे हो सकता है ?
फुलवती की मांग गलत मौके और गलत तरीके से आई है। शादी-ब्याह की बातें इस तरह से नही की जाती। यह एक तरफ से ब्लैकमेल ही है। ठाकुर साहब को बिल्कुल भी इस पर ध्यान नही देना चाहिए।
और अगर संयोग वश वो महात्मा ही बनना चाहते है तो कम से कम कुसुम से उसकी इच्छा जरूर पूछ लें।

वैसे नुक्स किस मे नही होते ! हर आदमी गुनाहगार है। गुण और अवगुणों के बीच तालमेल बना रहे तो जिन्दगी जिन्दगी है वरना नरक।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
Last edited:

Ahsan khan786

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अध्याय - 79
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।


अब आगे....


क़रीब डेढ़ घंटा लगातार बारिश हुई। हर जगह पानी ही पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुक तो गई थी लेकिन मौसम का मिज़ाज ये आभास करा रहा था कि उसका अभी मन भरा नहीं है। बिजली अभी भी चमक रही थी और बादल अभी भी गरज उठते थे। कुछ ही देर में भुवन मोटर साईकिल से आता नज़र आया।

"अरे! छोटे कुंवर आप यहां?" मुझे बरामदे में बैठा देख भुवन हैरानी से बोल पड़ा____"कोई काम था तो मुझे बुलवा लिया होता।"

"नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं थी।" मैंने कहा____"बस यूं ही मन बहलाने के लिए इस तरफ आ गया था। हवेली में अजीब सी घुटन होती है। तुम्हें तो पता ही है कि हम सब किस दौर से गुज़रे हैं।"

"हां जानता हूं।" भुवन ने संजीदगी से कहा____"जो भी हुआ है बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ है छोटे कुंवर।"

"सब कुछ हमारे बस में कहां होता है भुवन।" मैंने गंभीरता से कहा____"अगर होता तो आज मेरे चाचा और मेरे भइया दोनों ही ज़िंदा होते और ज़ाहिर है उनके साथ साथ साहूकार लोग भी। पर शायद ऊपर वाला भी यही चाहता था और आगे न जाने अभी और क्या चाहता होगा वो?"

"फिर से कुछ हुआ है क्या?" भुवन ने फिक्रमंद हो कर पूछा____"इस बार मैं हर पल आपके साथ ही रहूंगा। मेरे रहते आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।"

"तुम्हारी इस वफ़ादारी पर मुझे नाज़ है भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा___"मैं अक्सर सोचता हूं कि मैंने तुम्हारे ऐसा तो कुछ किया ही नहीं है इसके बावजूद तुम मेरे लिए अपनी जान तक का जोख़िम उठाने से नहीं चूक रहे। एक बात कहूं, अपनों के खोने का दर्द बहुत असहनीय होता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए और तुम्हारे परिवार के लोग अनाथ हो जाएं।"

"मैं ये सब नहीं जानता छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मुझे हर हाल में आपकी सुरक्षा करनी है। मुझे अपने परिवार के लोगों की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि उनके सिर पर दादा ठाकुर का हाथ है।"

"बेशक है भुवन।" मैंने कहा____"मगर फिर भी यही कहूंगा कि कभी किसी भ्रम में मत रहो। इतना कुछ होने के बाद मुझे ये समझ आया है कि जब ऊपर वाला अपनी करने पर आता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता। उसके सामने हर कोई बेबस और लाचार हो जाता है।"

"हां मैं समझता हूं छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर मैं भी यही सोच लूंगा कि जो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ होगा वो सब ऊपर वाले की मर्ज़ी से ही होगा। मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा चाहे कुछ भी हो जाए।"

अजीब आदमी था भुवन। मेरे इतना समझाने पर भी मेरी सुरक्षा के लिए अड़ा हुआ था। अंदर से फक्र तो हो रहा था मुझे मगर मैं ऐसे नेक इंसान को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। एक अंजाना भय सा मेरे अंदर समा गया था।

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" फिर मैंने विषय को बदलते हुए कहा____"मैं यहां इस लिए भी आया था कि ताकि तुमसे ये कह सकूं कि तुम यहां पर काम कर रहे सभी लोगों का हिसाब किताब एक कागज़ में बना कर मुझे दे देना। काफी दिन हो गए ये सब बेचारे जी तोड़ मेहनत कर के इस मकान को बनाने में लगे हुए हैं। मैं चाहता हूं कि सबका उचित हिसाब किताब बना कर तुम मुझे दो ताकि मैं इन सबको इनकी मेहनत का फल दे सकूं।"

"फ़िक्र मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"कल दोपहर तक मैं इन सभी का हिसाब किताब बना कर हवेली में आपको देने आ जाऊंगा।"

"मैंने किसी और ही मकसद से इस जगह पर ये मकान बनवाया था।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर ये सब होने के बाद अब हर चीज़ से मोह भंग सा हो गया है। ख़ैर जगताप चाचा के न रहने पर अब मुझे ही उनके सारे काम सम्हालने हैं इस लिए मैं चाहता हूं कि इसके बाद उन कामों में भी तुम मेरे साथ रहो।"

"मैं तो वैसे भी आपके साथ ही रहूंगा छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"आपको ये कहने की ज़रूरत ही नहीं है। आप बस हुकुम कीजिए कि मुझे क्या क्या करना है?"

"मुझे खेती बाड़ी का ज़्यादा ज्ञान नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"इसके पहले मैंने कभी इन सब चीज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया था। इस लिए मैं चाहता हूं कि इस काम में तुम मेरी मदद करो या फिर ऐसे लोगों को खोजो जो इन सब कामों में माहिर भी हों और ईमानदार भी।"

"वैसे तो ज़्यादातर गांव के लोग आपकी ही ज़मीनों पर काम करते हैं।" भुवन ने कहा____"मझले ठाकुर सब कुछ उन्हीं से करवाते थे। मेरा ख़याल है कि एक बार उन सभी लोगों से आपको मिल लेना चाहिए और अपने तरीके से सारे कामों के बारे में जांच पड़ताल भी कर लेनी चाहिए।"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"यहां इन लोगों का हिसाब किताब करने के बाद किसी दिन मिलते हैं उन सबसे।"

"बिल्कुल।" भुवन ने कहा____"आज बारिश भी अच्छी खासी हो गई है। मौसम का मिज़ाज देख कर लगता है कि अभी और भी बारिश होगी। इस बारिश के चलते ज़मीन में नमी भी आ जाएगी जिससे ज़मीनों की जुताई का काम जल्द ही शुरू करवाना होगा।"

"ठीक है फिर।" मैंने स्टूल से उठते हुए कहा____"अब मैं चलता हूं।"
"बारिश की वजह से रास्ते काफी ख़राब हो गए हैं।" भुवन ने कहा____"इस लिए सम्हल कर जाइएगा।"

मैं बरामदे से निकल कर बाहर आया तो भुवन भी मेरे पीछे आ गया। सहसा मुझे अनुराधा का ख़याल आया तो मैंने पलट कर उससे कहा____"मुरारी काका के घर किसी वैद्य को ले कर चले जाना।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?" भुवन एकदम से हैरान हो कर बोल पड़ा____"काका के यहां वैद्य को ले कर जाना है? सब ठीक तो है न वहां? आप गए थे क्या काका के घर?"

"नहीं मैं वहां गया नहीं था।" मैंने अपनी मोटर साइकिल में बैठते हुए कहा____"असल में मुरारी काका की बेटी आई थी बारिश में भीगते हुए। शायद तुमसे कोई काम था उसे।"

मेरी बात सुन कर भुवन एकाएक फिक्रमंद नज़र आने लगा। फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।

"पूरी तरह पागल है वो।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए उसी फीकी मुस्कान से कहा____"पिछले कुछ समय से लगभग वो रोज़ ही यहां आती है। कुछ देर तो वो मुझसे इधर उधर की बातें करेगी और फिर झिझकते हुए आपके बारे में पूछ बैठेगी। हालाकि वो ये समझती है कि मुझे उसके अंदर का कुछ पता ही नहीं है मगर उस नादान और नासमझ को कौन समझाए कि उसकी हर नादानियां उसकी अलग ही कहानी बयां करती हैं।"

मैंने भुवन की बातों पर कुछ कहा नहीं। ये अलग बात है कि मेरे अंदर एकदम से ही हलचल मच गई थी। तभी भुवन ने कहा____"उसे मुझसे कोई काम नहीं होता है छोटे कुंवर। वो तो सिर्फ आपको देखने की आस में यहां आती है। उसे लगता है कि आप यहां किसी रोज़ तो आएंगे ही इस लिए वो पिछले कुछ दिनों से लगभग रोज़ ही यहां आती है और जब उसकी आंखें आपको नहीं देख पातीं तो वो निराश हो जाती है।"

"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने मोटर साइकिल को स्टार्ट करते हुए कहा____"तुम एक बार हो आना मुरारी काका के घर।"

"मुझे पूछना तो नहीं चाहिए छोटे कुंवर।" भुवन ने झिझकते हुए कहा____"मगर फिर भी पूछने की हिमाकत कर रहा हूं। क्या मैं जान सकता हूं कि आप दोनों के बीच में क्या चल रहा है? क्या आप उसे किसी भ्रम में रखे हुए हैं? कहीं आप उस मासूम की भावनाओं से खेल तो नहीं रहे छोटे कुंवर?"

"इतना सब मत सोचो भुवन।" मैंने उसकी व्याकुलता को शांत करने की गरज से कहा____"बस इतना समझ लो कि अगर मेरे द्वारा उसको कोई तकलीफ़ होगी तो उससे कहीं ज़्यादा मुझे भी होगी।"

कहने के साथ ही मैंने उसकी कोई बात सुने बिना ही मोटर साईकिल को आगे बढ़ा दिया। मेरा ख़याल था कि भुवन इतना तो समझदार था ही कि मेरी इतनी सी बात की गहराई को समझ जाए। ख़ैर बारिश के चलते सच में कच्चा रास्ता बहुत ख़राब हो गया था इस लिए मैं बहुत ही सम्हल कर चलते हुए काफी देर में हवेली पहुंचा। मोटर साइकिल के पहियों पर ढेर सारा कीचड़ और मिट्टी लग गई थी इस लिए मैंने एक मुलाजिम को बुला कर मोटर साईकिल को अच्छी तरह धो कर खड़ी कर देने के लिए कह दिया।

✮✮✮✮

दादा ठाकुर की बग्घी जैसे ही साहूकारों के घर के बाहर खुले मैदान में रुकी तो घोड़ों की हिनहिनाहट को सुन कर जल्दी ही घर का दरवाज़ा खुला और रूपचंद्र नज़र आया। उसकी नज़र जब दादा ठाकुर पर पड़ी तो वो बड़ा हैरान हुआ। इधर दादा ठाकुर बग्घी से उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़े। दादा ठाकुर के साथ में शेरा भी था।

"कैसे हो रूप बेटा?" दादा ठाकुर ने बहुत ही आत्मीयता से रूपचंद्र की तरफ देखते हुए कहा____"हम गौरी शंकर से मिलने आए हैं। अगर वो अंदर हों तो उनसे कहो कि हम आए हैं।"

रूपचंद्र भौचक्का सा खड़ा देखता रह गया था। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने हड़बड़ा कर दादा ठाकुर की तरफ देखा। पंचायत का फ़ैसला होने के बाद ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर को उसने देखा था और साथ ही ये भी कि काफी सालों बाद दादा ठाकुर के क़दम साहूकारों के घर की ज़मीन पर पड़े थे। रूपचंद्र फ़ौरन ही अंदर गया और फिर कुछ ही पलों में आ भी गया। उसके पीछे उसका चाचा गौरी शंकर भी आ गया। एक पैर से लंगड़ा रहा था वो।

"ठाकुर साहब आप यहां?" गौरी शंकर ने चकित भाव से पूछा____"आख़िर अब किस लिए आए हैं यहां? क्या हमारा समूल विनाश कर के अभी आपका मन नहीं भरा?"

"हम मानते हैं कि हमने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अपराध किया है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और यकीन मानो इतना भयंकर अपराध करने के बाद हम जीवन में कभी भी चैन से जी नहीं पाएंगे। हम ये भी जानते हैं कि हमारा अपराध माफ़ी के काबिल नहीं है फिर भी हो सके तो हमें माफ कर देना।"

"ऐसी ही मीठी मीठी बातों के द्वारा आपने लोगों के अंदर अपने बारे में एक अच्छे इंसान के रूप में प्रतिष्ठित किया हुआ है न?" गौरी शंकर ने तीखे भाव से कहा____"वाकई कमाल की बात है ये। हम लोग तो बेकार में ही बदनाम थे जबकि इस बदनामी के असली हक़दार तो आप हैं। ख़ैर छोड़िए, ये बताइए यहां किस लिए आए हैं आप?"

"क्या अंदर आने के लिए नहीं कहोगे हमें?" दादा ठाकुर ने संजीदगी से उसकी तरफ देखा तो गौरी शंकर कुछ पलों तक जाने क्या सोचता रहा फिर एक तरफ हट गया।

कुछ ही पलों में दादा ठाकुर और गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ बैठक में रखी कुर्सियों पर बैठे नज़र आए। गौरी शंकर को समझ नहीं आ रहा था कि दादा ठाकुर उसके घर किस लिए आए हैं? वो इस बात पर भी हैरान था कि उसने दादा ठाकुर को इतने कटु शब्द कहे फिर भी दादा ठाकुर ने उस पर गुस्सा नहीं किया।

गौरी शंकर ने अंदर आवाज़ दे कर लोटा ग्लास में पानी लाने को कहा तो दादा ठाकुर ने इसके लिए मना कर दिया।

"तुम्हें हमारे लिए कोई तकल्लुफ करने की ज़रूरत नहीं है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"असल में हम यहां पर एक विशेष प्रयोजन से आए हैं। हालाकि यहां आने की हम में हिम्मत तो नहीं थी फिर भी ये सोच कर आए हैं कि न आने से वो कैसे होगा जो हम करना चाहते हैं?"

"क...क्या मतलब?" गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों ही चौंके। किसी अनिष्ट की आशंका से दोनों की ही धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं।

"हम चाहते हैं कि तुम हमारी भाभी श्री के साथ साथ बाकी लोगों को भी यहीं बुला लो।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सबके सामने कुछ ज़रूरी बातें कहना चाहते हैं।"

गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों किसी दुविधा में फंसे नज़र आए। ये देख दादा ठाकुर ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन लोगों को उनसे किसी बात के लिए घबराने अथवा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आश्वस्त होने के बाद गौरी शंकर ने रूपचंद्र को ये कह कर अंदर भेजा कि वो सबको बुला कर लाए। आख़िर थोड़ी ही देर में अंदर से सभी औरतें और बहू बेटियां बाहर आ गईं। गौरी शंकर के पिता चल फिर नहीं सकते थे इस लिए वो अंदर ही थे।

बाहर बैठक में दादा ठाकुर को बैठे देख सभी औरतें और बहू बेटियां हैरान थीं। उनमें से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि इतना कुछ होने के बाद दादा ठाकुर इस तरह उनके घर आ सकते हैं। बहरहाल, उन सबको आ गया देख दादा ठाकुर कुर्सी से उठे और मणि शंकर की पत्नी फूलवती के पास पहुंचे। ये देख सबकी सांसें थम सी गईं।

"प्रणाम भाभी श्री।" अपने दोनों हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर ने फूलवती से कहा____"इस घर में आप हमसे बड़ी हैं। हमें उम्मीद है कि आपका हृदय इतना विशाल है कि आप हमें आशीर्वाद ज़रूर देंगी।"

दादा ठाकुर के मुख से ऐसी बातें सुन जहां बाकी सब आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखने लगे थे वहीं फूलवती के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव उभर आए। कुछ पलों तक वो गुस्से से ही दादा ठाकुर को देखती रहीं फिर जाने उन्हें क्या हुआ कि उनके चेहरे पर नज़र आ रहा गुस्सा गायब होने लगा।

"किसी औरत की कमज़ोरी से आप शायद भली भांति परिचित हैं ठाकुर साहब।" फूलवती ने भाव हीन लहजे से कहा____"खुद को हमसे छोटा बना कर हमारा स्नेह पा लेना चाहते हैं आप।"

"छोटों को अपने से बड़ों से इसके अलावा और भला क्या चाहिए भाभी श्री?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे द्वारा इतना कुछ सह लेने के बाद भी अगर आप हमें आशीर्वाद और स्नेह प्रदान करेंगी तो ये हमारे लिए किसी ईश्वर के वरदान से कम नहीं होगा।"

"क्या आपको लगता है कि ऐसे किसी वरदान के योग्य हैं आप?" फूलवती ने कहा।
"बिल्कुल भी नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु फिर भी हमें यकीन है कि सब कुछ भुला कर आप हमें ये वरदान ज़रूर देंगी।"

"इस जन्म में तो ये संभव नहीं है ठाकुर साहब।" फूलवती ने तीखे भाव से कहा____"आप सिर्फ ये बताइए कि यहां किस लिए आए हैं?"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर कुछ पलों तक उसे देखते रहे फिर बाकी सबकी तरफ देखने के बाद वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई ये जानने के लिए उत्सुक था कि आख़िर दादा ठाकुर किस लिए आए हैं यहां?

"हमने तो उस दिन भी पंचायत में कहा था कि अगर हमें मौत की सज़ा भी दे दी जाए तो हमें कोई अफ़सोस अथवा तकलीफ़ नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"क्योंकि हमने जो किया है उसकी सिर्फ और सिर्फ वही एक सज़ा होनी चाहिए थी मगर पंच परमेश्वर ने हमें ऐसी सज़ा ही नहीं दी। हमें आप सबकी तकलीफ़ों का भली भांति एहसास है। अगर आप सबका दुख हमारी मौत हो जाने से ही दूर हो सकता है तो इसी वक्त आप लोग हमारी जान ले लीजिए। हमने बाहर खड़े अपने मुलाजिम को पहले ही बोल दिया है कि अगर यहां पर हमारी मौत हो जाए तो वो हमारी मौत के लिए किसी को भी ज़िम्मेदार न माने और ना ही इसके लिए किसी को कोई सज़ा दिलाने का सोचे। तो अब देर मत कीजिए, हमें इसी वक्त जान से मार कर आप सब अपना दुख दूर कर लीजिए।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सब के सब भौचक्के से देखते रह गए उन्हें। रूपचंद्र और गौरी शंकर हैरत से आंखें फाड़े दादा ठाकुर को देखे जा रहे थे। काफी देर तक जब किसी ने कुछ नहीं किया और ना ही कुछ कहा तो दादा ठाकुर ने सबको निराशा की दृष्टि से देखा।

"क्या हुआ आप सब चुप क्यों हैं?" दादा ठाकुर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर हमें जान से मार देने पर ही आप सबका दुख दूर हो सकता है तो मार दीजिए हमें। इतने बड़े अपराध बोझ के साथ तो हम खुद भी जीना नहीं चाहते।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर एकाएक गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"गौरी शंकर, क्या हुआ? आख़िर अब क्या सोच रहे हो तुम? हमें जान से मार क्यों नहीं देते तुम?"

"ठ...ठाकुर साहब, ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर बुरी तरह चकरा गया था। हैरत से आंखें फाड़े बोला____"आपका दिमाग़ तो सही है ना?"

"हम पूरी तरह होश में हैं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि हम तुम सबसे क्या कह रहे हैं। हमारा यकीन करो, हम यहां इसी लिए तो आए हैं ताकि तुम सब हमारी जान ले कर अपने दुख संताप को दूर कर लो। हमें भी अपने भाई और अपने बेटे की हत्या हो जाने के दुख से मुक्ति मिल जाएगी।"

"ये...ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?" गौरी शंकर मानो अभी भी चकराया हुआ था____"नहीं नहीं, हम में से कोई भी आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता। कृपया सम्हालिए खुद को।"

"तुम्हें पता है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"जब हम दोनों परिवारों के रिश्ते सुधर गए थे तो हमें बेहद खुशी हुई थी। हमें लगा था कि वर्षों पहले दादा ठाकुर बनने के बाद जो हमने तुम्हारे पिता जी से माफ़ी मांगी थी उसको कबूल कर लिया है उन्होंने। मुद्दत बाद ही सही किंतु दो संपन्न परिवारों के बीच के रिश्ते फिर से बेहतर हो गए। हमने जाने क्या क्या सोच लिया था हमारे बेहतर भविष्य के लिए मगर हमें क्या पता था कि हमारी ये खुशियां महज चंद दिनों की ही मेहमान थीं। हम जानते हैं कि हमारे पिता यानि बड़े दादा ठाकुर ने अपने ज़माने में जाने कितनों के साथ बुरा किया था इस लिए उनके बाद जब हम उनकी जगह पर आए तो हमने सबसे पहली क़सम इसी बात की खाई थी कि न तो हम कभी किसी के साथ बुरा करेंगे और ना ही हमारे बच्चे। हां हम ये मानते हैं कि वैभव पर हम कभी पाबंदी नहीं लगा सके, जबकि उसको सुधारने के लिए हमने हमेशा ही उसको सख़्त से सख़्त सज़ा दी है। ख़ैर हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि इस सबके बाद अगर हमें जीने का मौका मिला है तो क्यों इस मौके को बर्बाद करें? हमारा मतलब है कि आपस का बैर भाव त्याग कर क्यों ना हम सब साथ मिल कर बचे हुए को संवारने की कोशिश करें।"

"क्या आपको लगता है कि हमारे बीच इतना कुछ होने के बाद अब ये सब होना संभव हो सकेगा?" गौरी शंकर ने कहा____"नहीं ठाकुर साहब। ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता।"

"हां ऐसा तभी संभव नहीं हो सकता जब हम खुद ऐसा न करना चाहें।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हम ये सोच कर चलेंगे कि थाली में रखा हुआ भोजन हमारे हाथ और मुंह का उपयोग किए बिना ही हमारे पेट में पहुंच जाए तो यकीनन वो नहीं पहुंचेगा। वो तो तभी पहुंचेगा जब हम उसे पेट में पहुंचाने के लिए अपने हाथ और मुंह दोनों चलाएंगे।"

"हमारे बीच का मामला थाली में रखे हुए भोजन जैसा नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"और फिर एक पल के लिए हम मान भी लें तो ऐसा क्या करेंगे जिससे हमारे बीच के रिश्ते पहले जैसे हो जाएं? क्या आप हमारे अंदर का दुख दूर कर पाएंगे? क्या आप उन लोगों को वापस ला पाएंगे जिन्हें आपने मार डाला? नहीं ठाकुर साहब, ये काम न आप कर सकते हैं और ना ही हम।"

"हम मानते हैं कि हम दोनों न तो गुज़र गए लोगों को वापस ला सकते हैं और ना ही एक दूसरे का दुख दूर कर सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु क्या ये सोचने का विषय नहीं है कि क्या हम दोनों इसी सब को लिए बैठे रहेंगे जीवन भर? आख़िर इस दुख तकलीफ़ को तो हम दोनों को ही भुलाने की कोशिश करनी होगी और उन लोगों के बारे में सोचने होगा जो हमारे ही सहारे पर बैठे हैं।"

"क्या मतलब है आपका?" गौर शंकर ने संदेहपूर्ण भाव से पूछा।

"तुम इस बारे में क्या सोचते हो और क्या फ़ैसला करते हो ये तुम्हारी सोच और समझ पर निर्भर करता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने सोच लिया है कि हम वो सब करेंगे जिससे कि सब कुछ बेहतर हो सके।"

"क...क्या करना चाहते हैं आप?" रूपचंद्र ने पहली बार हस्तक्षेप करते हुए पूछा।

"इसे हमारा कर्तव्य समझो या फिर हमारा प्रायश्चित।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"लेकिन सच ये है कि हमने इस परिवार के लिए बहुत कुछ सोच लिया है। इस परिवार की सभी लड़कियों को हम अपनी ही बेटियां समझते हैं इस लिए हमने सोचा है कि उन सबका ब्याह हम करवाएंगे लेकिन वहीं जहां आप लोग चाहेंगे।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" सहसा फूलवती बोल पड़ी____"हमारी बेटियां हमारे लिए कोई बोझ नहीं हैं और हम इतने असमर्थ भी नहीं हैं कि हम उनका ब्याह नहीं कर सकते।"

"हमारा ये मतलब भी नहीं है भाभी श्री कि आपकी बेटियां आपके लिए बोझ हैं या फिर आप उनका ब्याह करने में असमर्थ हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें बखूबी इस बात का इल्म है कि आप पूरी तरह सभी कामों के लिए समर्थ हैं किंतु....।"

"किंतु क्या ठाकुर साहब?" फूलवती ने दादा ठाकुर की तरफ देखा।

"यही कि अगर ऐसा पुण्य काम करने का सौभाग्य आप हमें देंगी तो हमें बेहद अच्छा लगेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारी अपनी तो कोई बेटी है नहीं। हमारे छोटे भाई की बेटी है जिसका कन्यादान उसे खुद ही करना था। हम पहले भी इस बारे में बहुत सोचते थे और हमेशा हमारे ज़हन में इस घर की बेटियों का ही ख़याल आता था। जब हमारे रिश्ते बेहतर हो गए थे तो हमें यकीन हो गया था कि जल्द ही हमारी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी। हमने तो ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सब हो जाएगा। ख़ैर जो हुआ उसे लौटाया तो नहीं जा सकता लेकिन फिर से एक नई और बेहतर शुरुआत के लिए अगर हम सब मिल कर ये सब करें तो कदाचित हम दोनों ही परिवार वालों को एक अलग ही सुखद एहसास हो।"

"ठीक है फिर।" फूलवती ने कहा____"अगर आप वाकई में सब कुछ बेहतर करने का सोचते हैं तो हमें भी ये सब मंजूर है लेकिन....।"

"ल...लेकिन क्या भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने उत्सुकता से पूछा। उन्हें फूलवती द्वारा सब कुछ मंज़ूर कर लेने से बेहद खुशी का आभास हुआ था।

"यही कि अगर आप सच में चाहते हैं कि हमारे दोनों ही परिवारों के बीच बेहतर रिश्ते के साथ एक नई शुरुआत हो।" फूलवती ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"तो हमारा भी आपके लिए एक सुझाव है और हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा सुझाव पसंद ही नहीं आएगा बल्कि मंज़ूर भी होगा।"

"बिल्कुल भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"आप बताइए क्या सुझाव है आपका?"

"अगर आप अपनी बेटी कुसुम का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से कर दें।" फूलवती ने कहा___"तो हमें पूरा यकीन है कि दोनों ही परिवारों के बीच के रिश्ते हमेशा के लिए बेहतर हो जाएंगे और इसके साथ ही एक नई शुरुआत भी हो जाएगी।"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर एकदम से ख़ामोश रह गए। उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि फूलवती उनसे ऐसा भी बोल सकती है। सहसा उन्हें पंचायत में मुंशी चंद्रकांत द्वारा बताई गई बातों का ध्यान आया जब उसने बताया था कि साहूकार लोग उनकी बेटी कुसुम से रूपचंद्र का ब्याह करना चाहते थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" फूलवती के होठों पर एकाएक गहरी मुस्कान उभर आई____"आप एकदम से ख़ामोश क्यों हो गए? ऐसा लगता है कि आपको हमारा सुझाव अच्छा नहीं लगा। अगर यही बात है तो फिर यही समझा जाएगा कि आप यहां बेहतर संबंध बनाने और एक नई शुरुआत करने की जो बातें हम सबसे कर रहे हैं वो सब महज दिखावा हैं। यानि आप हम सबके सामने अच्छा बनने का दिखावा कर रहे हैं।"

"नहीं भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप ग़लत समझ रही हैं। ऐसी कोई बात नहीं है।"

"तो फिर बताइए ठाकुर साहब।" फूलवती ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा____"क्या आपको हमारा सुझाव पसंद आया? क्या आप दोनों परिवारों के बीच गहरे संबंधों के साथ एक नई शुरुआत के लिए अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से करने को तैयार हैं?"

"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।




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Dada thakur ka dimag kharab ho gaya hai aisa lagta hai...

Sahukar Ke Samne Hath Jod ke mafi mang raha hai..
Lagta hai bhul gaya hai sahukar Ne Hi Uske bete aur bhai Ko maar ke is Dukh Ka shuruaat kiya tha...
 

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
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Waiting for next fantastic update :cigar:
 
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