- 79,634
- 117,553
- 354
Next update kal tak post ho jayega

Rupa ne kaha ke safedposh wo uske bade Gaurishankar he par yaha baat he aur ho rakhi he.अध्याय - 76गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
अब आगे....
"मालिक, बाहर पुलिस वाले आए हैं।" एक दरबान ने बैठक में आ कर पिता जी से कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो उन्हें अंदर भेज दूं"
"हां भेज दो।" पिता जी ने कहा तो दरबान अदब से सिर नवा कर चला गया।
"शायद कानून के नुमाइंदों को पता चल गया है कि यहां क्या हुआ है।" पास ही एक कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"ज़रूर इस मामले के बारे में किसी ने पुलिस तक ये ख़बर भेजवाई होगी। इसी लिए वो यहां आए हैं। ख़ैर सोचने वाली बात है कि अगर इस मामले में पुलिस ने कोई हस्ताक्षेप किया तो भारी समस्या हो सकती है ठाकुर साहब।"
"वर्षों से इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास के गावों के मामले भी हम ही देखते आए हैं महेंद्र सिंह जी।" पिता जी ने कहा____"ना तो इसके पहले कभी पुलिस या कानून का हमारे किसी मामले में कोई दखल हुआ था और ना ही कभी हो सकता है।"
पिता जी की बात सुन कर महेंद्र सिंह अभी कुछ कहने ही वाले थे कि तभी बैठक के बाहर किसी के आने की आहट हुई जिसके चलते वो चुप ही रहे। अगले ही पल पुलिस के दो अफ़सर खाकी वर्दी पहने बैठक में नमूदार हुए। दोनों ने बड़े अदब से पहले पिता जी को सिर नवाया और फिर बैठक में बैठे बाकी लोगों को। पिता जी ने इशारे से उन्हें खाली कुर्सियों में बैठ जाने को कहा तो वो दोनों धन्यवाद ठाकुर साहब कहते हुए बैठ गए।
"कहो एस पी।" पिता जी ने दोनों में से एक की तरफ देखते हुए कहा____"यहां आने का कैसे कष्ट किया और हां हमारे छोटे भाई तथा बेटे की लाशों का क्या हुआ? वो अभी तक हमें क्यों नहीं सौंपी गईं?"
"माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" एस पी ने खुद को संतुलित रखने का प्रयास करते हुए कहा____"ऐसे कामों में समय तो लगता ही है। हालाकि मैंने पूरी कोशिश की थी कि आपको इन्तज़ार न करना पड़े। ये मेरी कोशिश का ही नतीजा है कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडी का जल्दी ही पोस्ट मॉर्टम हो गया। शाम होने से पहले ही वो आपको सुपुर्द कर दी जाएंगी।"
"तो आपको हमारे जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज के साथ ही यहां आना चाहिए था।" पिता जी ने कहा____"इस तरह खाली हाथ यहां चले आने का सोचा भी कैसे आपने?"
"ज...जी वो बात दरअसल ये है कि हमें पता चला है कि यहां आपके द्वारा बहुत बड़ा नर संघार किया गया है।" एस पी ने भारी झिझक के साथ कहा____"बस उसी सिलसिले में हम यहां आए हैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो हम इस मामले की छानबीन कर लें?"
"ख़ामोश।" पिता जी गुस्से से दहाड़ ही उठे____"तुम्हारे ज़हन में ये ख़याल भी कैसे आया कि तुम हमारे किसी मामले में दखल दोगे अथवा अपनी टांग अड़ाओगे? हमने अपने जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज़ भी तुम्हें इस लिए ले जाने दिया था क्योंकि उस समय हमारी मानसिक अवस्था ठीक नहीं थी। किंतु इसका मतलब ये नहीं है कि हमने पुलिस को अपने किसी मामले में हस्ताक्षेप करने का अधिकार दे दिया है। ये मत भूलो कि वर्षों से हम खुद ही आस पास के सभी गांवों के मामलों का फ़ैसला करते आए हैं। न इसके पहले कभी पुलिस का कोई दखल हुआ था और ना ही कभी होगा।"
"म....माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" दूसरे पुलिस वाले ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन ऐसा हमेशा तो नहीं हो सकता ना। इस देश के कानून को तो एक न एक दिन सबको मानना ही पड़ेगा।"
"लगता है तुम नए नए आए हो बर्खुरदार।" महेंद्र सिंह ने कहा____"इसी लिए ऐसा बोलने की हिमाकत कर रहे हो ठाकुर साहब से। ख़ैर तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम यहां पर कानून का पाठ मत पढ़ाओ किसी को।"
"अ...आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" वो थोड़ा तैश में आ गया____"मैं इस देश के कानून का नुमाइंदा हूं और मेरा ये फर्ज़ है कि मैं ऐसे हर मामले की छानबीन करूं जिसे कानून को हाथ में ले कर अंजाम दिया गया हो।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" अर्जुन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा____"ज़रा हम भी तो देखें कि कानून के इस नुमाइंदे में कितना दम है? हमें दिखाओ कि हमारे मामले में कानून का नुमाइंदा बन कर तुम किस तरह से हस्ताक्षेप करते हो?"
"इन्हें माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" एस पी दूसरे पुलिस वाले के कुछ बोलने से पहले ही झट से बोल उठा____"इन्हें अभी आप सबके बारे में ठीक से पता नहीं है। यही वजह है कि ये आपसे ऐसे लहजे में बात कर रहे हैं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं साहब?" दूसरा पुलिस वाला आश्चर्य से एस पी को देखते हुए बोला____"कानून के रक्षक हो कर आप ऐसी बात कैसे कह सकते हैं?"
"लाल सिंह।" एस पी ने थोड़े गुस्से में उसकी तरफ देखा और फिर कहा____"ये शहर नहीं है बल्कि वो जगह है जहां पर इस देश का कानून नहीं बल्कि यहां के ठाकुरों का कानून चलता है। अपने लहजे और तेवर को ठंडा ही रखो वरना जिस वर्दी के दम पर तुम ये सब बोलने की जुर्रत कर रहे हो उसे तुम्हारे जिस्म से उतरने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"
अपने आला अफ़सर की ये डांट सुन कर लाल सिंह भौचक्का सा रह गया। हालाकि यहां आते समय रास्ते में एस पी ने उसे थोड़ा बहुत यहां के बारे में बताया भी था किंतु ये नहीं बताया था कि ऐसा बोलने पर उसके साथ ऐसा भी हो सकता है। बहरहाल एस पी के कहने पर उसने सभी से अपने बर्ताव के लिए हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी। ये अलग बात है कि अंदर ही अंदर वो अपमानित सा महसूस करने लगा था।
"ठीक है ठाकुर साहब।" एस पी ने पिता जी की तरफ देखते हुए नम्रता से कहा____"अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो यही सही। वैसे भी मुझे ऊपर से ही ये हुकुम मिल गया था कि मैं आपके किसी मामले में कोई हस्ताक्षेप न करूं। मैं तो बस यहां यही बताने के लिए आया था कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडीज को आज शाम होने से पहले ही आपके सुपुर्द कर दिया जाएगा। आपको हमारी वजह से जो तक़लीफ हुई है उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं।"
कहने के साथ ही एस पी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। उसके साथ ही उसका सहयोगी पुलिस वाला लाल सिंह भी जल्दी से उठ गया। उसके बाद वो दोनों सभी को नमस्कार कर के बैठक से बाहर निकल गए।
"एक वो वक्त था जब हमारे पिता जी के दौर में कोई पुलिस वाला गांव में घुसने की भी हिम्मत नहीं करता था।" पिता जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा____"और एक ये वक्त है जब कोई पुलिस का नुमाइंदा इस गांव में ही नहीं बल्कि हमारी हवेली की दहलीज़ को भी पार करने की जुर्रत कर गया। हमारी नर्मी का बेहद ही नाजायज़ फ़ायदा उठाया है सबने।"
"सब वक्त की बातें हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। आज कम से कम अभी इतना तो है कि इतने बड़े संगीन मामले के बाद भी पुलिस अपना दखल देने से ख़ौफ खा गई है। ज़ाहिर है ये आपके पुरखों का बनाया हुआ कानून और ख़ौफ ही रहा है। सबसे ज़्यादा तो बड़े दादा ठाकुर का ख़ौफ रहा जिसके चलते कानून का कोई भी नुमाइंदा गांव की सरहद के इस पार क़दम भी नहीं रख सकता था। ख़ैर इसे आपकी नर्मी कहें अथवा समय का चक्र कि अब ऐसा नहीं रहा और यकीन मानिए आगे ऐसा भी समय आने वाला है जब यहां भी कानून का वैसा ही दखल होने लगेगा जैसा शहरों में होता है।"
"सही कहा आपने।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन आने वाले समय में ऐसा ही होगा। ख़ैर ये तो बाद की बातें हैं किंतु ये जो कुछ हुआ है उसने हमें काफी ज़्यादा आहत और विचलित सा कर दिया है। हमें अब जा कर एहसास हो रहा है कि हमने साहूकारों का इस तरह से नर संघार कर के बिल्कुल भी ठीक नहीं किया है। माना कि वो सब अपराधी थे लेकिन उनके बच्चों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। अपराधी तो मणि शंकर और उसके तीनों भाई थे जबकि उनके बच्चे तो निर्दोष ही थे। ऊपर वाला हमें इस जघन्य पाप के लिए नर्क में भी जगह नहीं देगा। काश! पंचायत में आपने हमें मौत की सज़ा सुना दी होती तो बेहतर होता। कम से कम हमें इस अजाब से तो मुक्ति मिल जाती। जीवन भर ऐसे भयानक पाप का बोझ ले कर हम कैसे जी सकेंगे?"
"अब तो आपको इस बोझ के साथ ही जीना होगा ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अच्छा होगा कि अपने किए गए कृत्य के लिए आप कुछ इस तरह से प्रायश्चित करें जिससे आपकी आत्मा को शांति मिल सके।"
"ऐसा क्या करें हम?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हमें तो अब कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। मन करता है कि कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां इंसान तो क्या कोई परिंदा भी न रहता हो।"
"ऐसा सोचिए भी मत ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्योंकि ऐसी जगह पर जा कर भी आपको सुकून नहीं मिलेगा। शांति और सुकून प्रायश्चित करने से ही मिलेगा। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसा क्या करें जिससे आपको ये प्रतीत हो कि उस कार्य से आपके अंदर का बोझ कम हो रहा है अथवा आपको सुकून मिल रहा है।"
✮✮✮✮
"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी।" कमरे में भाभी के सामने पहुंचते ही मैंने सिर झुका कर कहा____"मैं आपसे किया हुआ वादा नहीं निभा सका। आपके सुहाग को छीनने वालों को मिट्टी में नहीं मिला सका।"
"कोई बात नहीं वैभव।" भाभी ने अधीरता से कहा____"शायद ऊपर वाला यही चाहता है कि मेरी आत्मा को कभी शांति ही न मिले। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि तुमने उन हत्यारों का पता तो लगा ही लिया है जिन्होंने मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया है। पिछली रात जब तुम बिना किसी को कुछ बताए चले गए थे तो मैं बहुत घबरा गई थी। अपने आप पर ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि मैंने तुमसे अपने सुहाग के हत्यारे को मिट्टी में मिलाने की बात ही क्यों कही? अगर इसके चलते तुम्हें कुछ हो जाता तो कैसे मैं अपने आपको माफ़ कर पाती? सारी रात यही सोच सोच कर कुढ़ती रही। जान में जान तब आई जब मुझे पता चला कि तुम सही सलामत वापस आ गए हो। अब मैं तुमसे कहती हूं कि तुम्हें ऐसा कोई काम नहीं करना है जिसकी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ हो जाए। तुम इस हवेली का भविष्य हो वैभव। तुम्हें हम सबके लिए सही सलामत रहना है।"
"और आपका क्या?" मैंने भाभी की नम हो चुकी आंखों में देखते हुए कहा____"क्या आपको कभी उन हत्यारों के जीवित रहते आत्मिक शांति मिलेगी जिन्होंने आपके सुहाग को छीन कर आपकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है?"
"सच तो ये है वैभव कि उन ज़ालिमों के मर जाने पर भी मुझे आत्मिक शांति नहीं मिल सकती।" भाभी ने दुखी भाव से कहा____"क्योंकि उनके मर जाने से मेरा सुहाग मुझे वापस तो नहीं मिल जाएगा न। मेरे दिल को खुशी तो तभी मिलेगी ना जब मेरा सुहाग मुझे वापस मिल जाए किंतु इस जीवन में तो अब ऐसा संभव ही नहीं है। तुमने अपनी क़सम दे कर मुझे जीने के लिए मजबूर कर दिया है तो अब मुझे जीना ही पड़ेगा।"
"मैं आपसे वादा करता हूं भाभी कि चाहे मुझे जो भी करना पड़े।" मैंने भाभी की दोनों बाजुओं को थाम कर कहा____"लेकिन आपको खुशियां ज़रूर ला कर दूंगा। आपसे बस यही विनती है कि आप खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देंगी और ना ही चेहरे पर उदासी के बादलों को मंडराने देंगी।"
"तुम्हारी खुशी के लिए ये मुश्किल काम ज़रूर करूंगी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर ये बताओ कि वो लड़की कौन थी जिसने पंचायत में आते ही तुम्हारा नाम ले कर सुनहरा इतिहास बनाने की बातें कह रही थी?"
भाभी के इस सवाल पर मैं एकदम से गड़बड़ा गया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्होंने पंचायत में किसी ऐसी लड़की को देखा ही नहीं था बल्कि उसकी बातें भी सुनी थीं।
"इतना तो मैं जान चुकी हूं कि वो साहूकारों की बेटी है।" भाभी ने कहा____"किंतु अब ये जानना चाहती हूं कि वो तुम्हें कैसे जानती है? वो भी इस तरह कि इतने सारे लोगों के रहते हुए भी उसने तुम्हारी बात का समर्थन किया और तुम्हारा नाम ले कर वो सब कहा। तुम्हारी बात का समर्थन करते हुए वो अपने ही परिवार के खिलाफ़ बोले जा रही थी। क्या मैं ये समझूं कि साहूकारों की उस लड़की के साथ तुम्हारा पहले से ही कोई चक्कर रहा है?"
"आप ये सब मत पूछिए भाभी।" मैंने असहज भाव से कहा____"बस इतना समझ लीजिए कि मेरा नाम दूर दूर तक फैला हुआ है।"
"हे भगवान!" भाभी ने हैरत से आंखें फैला कर मुझे देखा____"तो मतलब ऐसी बात है, हां?"
"क...क्या मतलब??" मैं उनकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका।
"जाओ यहां से।" भाभी ने एकदम से नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"मुझे अब तुमसे कोई बात नहीं करना।"
"म...मेरी बात तो सुनिए भाभी।" मैं उनकी नाराज़गी देख अंदर ही अंदर घबरा उठा।
"क्या सुनूं मैं?" भाभी ने इस बार गुस्से से देखा मुझे____"क्या ये कि तुमने अपने नाम का झंडा कहां कहां गाड़ रखा है? कुछ तो शर्म करो वैभव। किसी को तो बक्स दो। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि ये सब जो कुछ भी हुआ है उसमें तुम्हारी इन्हीं करतूतों का सबसे बड़ा हाथ है।"
"मानता हूं भाभी।" मैंने शर्मिंदा हो कर कहा____"मगर यकीन मानिए अब मैं वैसा नहीं रहा। चार महीने के वनवास ने मुझे मुकम्मल रूप से बदल दिया है। पहले ज़रूर मैं ऐसा था लेकिन अब नहीं हूं, यकीन कीजिए।"
"कैसे यकीन करूं वैभव?" भाभी ने उसी नाराज़गी से कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम पर कोई इन बातों के लिए यकीन कर सकता है?"
"जानता हूं कि कोई यकीन नहीं कर सकता।" मैंने सिर झुका कर कहा____"मगर फिर भी आप यकीन कीजिए। अब मैं वैसा नहीं रहा।"
"अच्छा।" भाभी ने मेरी आंखों में देखा____"क्या यही बात तुम मेरे सिर पर हाथ रख कर कह सकते हो?"
भाभी की ये बात सुन कर मैं कुछ न बोल सका। बस बेबसी से देखता रहा उन्हें। मुझे कुछ न बोलता देख उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।
"देखा।" फिर उन्होंने कहा____"मेरे सिर पर हाथ रखने की बात सुनते ही तुम्हारी बोलती बंद हो गई। मतलब साफ है कि तुम अभी भी वैसे ही हो जैसे हमेशा से थे। भगवान के लिए ये सब बंद कर दो वैभव। एक अच्छा इंसान बनो। ऐसे काम मत करो जिससे लोगों की बद्दुआ लगे तुम्हें। यकीन मानो, तुम में सिर्फ़ यही एक ख़राबी है वरना तुमसे अच्छा कोई नहीं है।"
"अब से आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"अब से आपको कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।"
"अगर ऐसा सच में हो गया।" भाभी ने कहा____"तो यकीन मानो, भले ही ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा दुख दे दिया है लेकिन इसके बावजूद मुझे तुम्हारे इस काम से खुशी होगी।"
उसके बाद मैं अपने कमरे में चला आया। जाने क्यों अब मुझे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि ऐसा क्यों हूं मैं? आज से पहले क्यों मैंने ऐसे घिनौने कर्म किए थे जिसके चलते मेरी छवि हर किसी के मन में ख़राब बनी हुई है? मेरी इसी ख़राब छवि के चलते अनुराधा ने उस दिन मुझे वो सब कह दिया था। हालाकि ये सच है कि उसके बारे में मैं सपने में भी ग़लत नहीं सोच सकता था इसके बावजूद उसने मुझ पर भरोसा नहीं किया और मुझे वो सब कह दिया था। अचानक ही मुझे भुवन की बातें याद आ गईं। उसने कहा था कि अनुराधा मुझसे प्रेम करती है। मैं सोचने लगा कि क्या ये सच है या उसने अनुराधा के बारे में ग़लत अनुमान लगा लिया है? मुझे याद आया कि आज पंचायत में अनुराधा मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने हर बार उससे अपनी नज़रें हटा ली थीं इस लिए मुझे उसके हाल का ज़्यादा अंदाज़ा नहीं हो पाया था किंतु इतना ज़रूर समझ सकता हूं कि उसमें कुछ तो बदलाव यकीनन आया है। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर वो मुझसे नफ़रत कर रही होती तो यूं मुझे ही न देखती रहती। कोई इंसान जब किसी को पसंद नहीं करता अथवा उससे घृणा करता है तो वो उस इंसान की शकल तक नहीं देखना चाहता किंतु यहां तो अनुराधा को मैंने जब भी देखा था तो उसे मैंने अपनी तरफ ही देखते पाया था। मतलब साफ है कि या तो भुवन की बात सच थी या फिर उसमें थोड़ा बहुत बदलाव ज़रूर आया है। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि इस बारे में मैं सच जानने के लिए काफी उत्सुक और बेचैन हो उठा हूं।
रूपा, इस नाम को कैसे भूल सकता था मैं?
आज पंचायत में जिस तरह से उसने मेरी बात का समर्थन करते हुए मेरा नाम ले कर वो सब कहा था उसे देख सुन कर मैं हैरत में ही पड़ गया था। उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि उसे हमारे इस मामले के बारे में पहले से कुछ न कुछ पता था और इस बात का ज़िक्र भी उसने किया था।
अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंक पड़ा। किसी बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि कहीं ये रूपा ही तो नहीं थी जिसका ज़िक्र पिता जी ने इस बात पर किया था कि चंदनपुर में मुझे जान से मारने की जब साहूकारों ने मुंशी के साथ मिल कर योजना बनाई थी तो उसी समय हवेली में दो औरतें इस बात की सूचना देने आईं थी?
ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैं आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। एकदम से मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि कैसे?? मतलब कि अगर उन दो औरतों में से एक रूपा ही थी तो उसे ये कैसे पता चला था कि कुछ लोग मुझे जान से मारने के लिए अगली सुबह चंदनपुर जाने वाले हैं? ये एक ऐसा सवाल था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Nice updateअध्याय - 76गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
अब आगे....
"मालिक, बाहर पुलिस वाले आए हैं।" एक दरबान ने बैठक में आ कर पिता जी से कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो उन्हें अंदर भेज दूं"
"हां भेज दो।" पिता जी ने कहा तो दरबान अदब से सिर नवा कर चला गया।
"शायद कानून के नुमाइंदों को पता चल गया है कि यहां क्या हुआ है।" पास ही एक कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"ज़रूर इस मामले के बारे में किसी ने पुलिस तक ये ख़बर भेजवाई होगी। इसी लिए वो यहां आए हैं। ख़ैर सोचने वाली बात है कि अगर इस मामले में पुलिस ने कोई हस्ताक्षेप किया तो भारी समस्या हो सकती है ठाकुर साहब।"
"वर्षों से इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास के गावों के मामले भी हम ही देखते आए हैं महेंद्र सिंह जी।" पिता जी ने कहा____"ना तो इसके पहले कभी पुलिस या कानून का हमारे किसी मामले में कोई दखल हुआ था और ना ही कभी हो सकता है।"
पिता जी की बात सुन कर महेंद्र सिंह अभी कुछ कहने ही वाले थे कि तभी बैठक के बाहर किसी के आने की आहट हुई जिसके चलते वो चुप ही रहे। अगले ही पल पुलिस के दो अफ़सर खाकी वर्दी पहने बैठक में नमूदार हुए। दोनों ने बड़े अदब से पहले पिता जी को सिर नवाया और फिर बैठक में बैठे बाकी लोगों को। पिता जी ने इशारे से उन्हें खाली कुर्सियों में बैठ जाने को कहा तो वो दोनों धन्यवाद ठाकुर साहब कहते हुए बैठ गए।
"कहो एस पी।" पिता जी ने दोनों में से एक की तरफ देखते हुए कहा____"यहां आने का कैसे कष्ट किया और हां हमारे छोटे भाई तथा बेटे की लाशों का क्या हुआ? वो अभी तक हमें क्यों नहीं सौंपी गईं?"
"माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" एस पी ने खुद को संतुलित रखने का प्रयास करते हुए कहा____"ऐसे कामों में समय तो लगता ही है। हालाकि मैंने पूरी कोशिश की थी कि आपको इन्तज़ार न करना पड़े। ये मेरी कोशिश का ही नतीजा है कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडी का जल्दी ही पोस्ट मॉर्टम हो गया। शाम होने से पहले ही वो आपको सुपुर्द कर दी जाएंगी।"
"तो आपको हमारे जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज के साथ ही यहां आना चाहिए था।" पिता जी ने कहा____"इस तरह खाली हाथ यहां चले आने का सोचा भी कैसे आपने?"
"ज...जी वो बात दरअसल ये है कि हमें पता चला है कि यहां आपके द्वारा बहुत बड़ा नर संघार किया गया है।" एस पी ने भारी झिझक के साथ कहा____"बस उसी सिलसिले में हम यहां आए हैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो हम इस मामले की छानबीन कर लें?"
"ख़ामोश।" पिता जी गुस्से से दहाड़ ही उठे____"तुम्हारे ज़हन में ये ख़याल भी कैसे आया कि तुम हमारे किसी मामले में दखल दोगे अथवा अपनी टांग अड़ाओगे? हमने अपने जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज़ भी तुम्हें इस लिए ले जाने दिया था क्योंकि उस समय हमारी मानसिक अवस्था ठीक नहीं थी। किंतु इसका मतलब ये नहीं है कि हमने पुलिस को अपने किसी मामले में हस्ताक्षेप करने का अधिकार दे दिया है। ये मत भूलो कि वर्षों से हम खुद ही आस पास के सभी गांवों के मामलों का फ़ैसला करते आए हैं। न इसके पहले कभी पुलिस का कोई दखल हुआ था और ना ही कभी होगा।"
"म....माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" दूसरे पुलिस वाले ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन ऐसा हमेशा तो नहीं हो सकता ना। इस देश के कानून को तो एक न एक दिन सबको मानना ही पड़ेगा।"
"लगता है तुम नए नए आए हो बर्खुरदार।" महेंद्र सिंह ने कहा____"इसी लिए ऐसा बोलने की हिमाकत कर रहे हो ठाकुर साहब से। ख़ैर तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम यहां पर कानून का पाठ मत पढ़ाओ किसी को।"
"अ...आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" वो थोड़ा तैश में आ गया____"मैं इस देश के कानून का नुमाइंदा हूं और मेरा ये फर्ज़ है कि मैं ऐसे हर मामले की छानबीन करूं जिसे कानून को हाथ में ले कर अंजाम दिया गया हो।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" अर्जुन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा____"ज़रा हम भी तो देखें कि कानून के इस नुमाइंदे में कितना दम है? हमें दिखाओ कि हमारे मामले में कानून का नुमाइंदा बन कर तुम किस तरह से हस्ताक्षेप करते हो?"
"इन्हें माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" एस पी दूसरे पुलिस वाले के कुछ बोलने से पहले ही झट से बोल उठा____"इन्हें अभी आप सबके बारे में ठीक से पता नहीं है। यही वजह है कि ये आपसे ऐसे लहजे में बात कर रहे हैं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं साहब?" दूसरा पुलिस वाला आश्चर्य से एस पी को देखते हुए बोला____"कानून के रक्षक हो कर आप ऐसी बात कैसे कह सकते हैं?"
"लाल सिंह।" एस पी ने थोड़े गुस्से में उसकी तरफ देखा और फिर कहा____"ये शहर नहीं है बल्कि वो जगह है जहां पर इस देश का कानून नहीं बल्कि यहां के ठाकुरों का कानून चलता है। अपने लहजे और तेवर को ठंडा ही रखो वरना जिस वर्दी के दम पर तुम ये सब बोलने की जुर्रत कर रहे हो उसे तुम्हारे जिस्म से उतरने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"
अपने आला अफ़सर की ये डांट सुन कर लाल सिंह भौचक्का सा रह गया। हालाकि यहां आते समय रास्ते में एस पी ने उसे थोड़ा बहुत यहां के बारे में बताया भी था किंतु ये नहीं बताया था कि ऐसा बोलने पर उसके साथ ऐसा भी हो सकता है। बहरहाल एस पी के कहने पर उसने सभी से अपने बर्ताव के लिए हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी। ये अलग बात है कि अंदर ही अंदर वो अपमानित सा महसूस करने लगा था।
"ठीक है ठाकुर साहब।" एस पी ने पिता जी की तरफ देखते हुए नम्रता से कहा____"अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो यही सही। वैसे भी मुझे ऊपर से ही ये हुकुम मिल गया था कि मैं आपके किसी मामले में कोई हस्ताक्षेप न करूं। मैं तो बस यहां यही बताने के लिए आया था कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडीज को आज शाम होने से पहले ही आपके सुपुर्द कर दिया जाएगा। आपको हमारी वजह से जो तक़लीफ हुई है उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं।"
कहने के साथ ही एस पी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। उसके साथ ही उसका सहयोगी पुलिस वाला लाल सिंह भी जल्दी से उठ गया। उसके बाद वो दोनों सभी को नमस्कार कर के बैठक से बाहर निकल गए।
"एक वो वक्त था जब हमारे पिता जी के दौर में कोई पुलिस वाला गांव में घुसने की भी हिम्मत नहीं करता था।" पिता जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा____"और एक ये वक्त है जब कोई पुलिस का नुमाइंदा इस गांव में ही नहीं बल्कि हमारी हवेली की दहलीज़ को भी पार करने की जुर्रत कर गया। हमारी नर्मी का बेहद ही नाजायज़ फ़ायदा उठाया है सबने।"
"सब वक्त की बातें हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। आज कम से कम अभी इतना तो है कि इतने बड़े संगीन मामले के बाद भी पुलिस अपना दखल देने से ख़ौफ खा गई है। ज़ाहिर है ये आपके पुरखों का बनाया हुआ कानून और ख़ौफ ही रहा है। सबसे ज़्यादा तो बड़े दादा ठाकुर का ख़ौफ रहा जिसके चलते कानून का कोई भी नुमाइंदा गांव की सरहद के इस पार क़दम भी नहीं रख सकता था। ख़ैर इसे आपकी नर्मी कहें अथवा समय का चक्र कि अब ऐसा नहीं रहा और यकीन मानिए आगे ऐसा भी समय आने वाला है जब यहां भी कानून का वैसा ही दखल होने लगेगा जैसा शहरों में होता है।"
"सही कहा आपने।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन आने वाले समय में ऐसा ही होगा। ख़ैर ये तो बाद की बातें हैं किंतु ये जो कुछ हुआ है उसने हमें काफी ज़्यादा आहत और विचलित सा कर दिया है। हमें अब जा कर एहसास हो रहा है कि हमने साहूकारों का इस तरह से नर संघार कर के बिल्कुल भी ठीक नहीं किया है। माना कि वो सब अपराधी थे लेकिन उनके बच्चों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। अपराधी तो मणि शंकर और उसके तीनों भाई थे जबकि उनके बच्चे तो निर्दोष ही थे। ऊपर वाला हमें इस जघन्य पाप के लिए नर्क में भी जगह नहीं देगा। काश! पंचायत में आपने हमें मौत की सज़ा सुना दी होती तो बेहतर होता। कम से कम हमें इस अजाब से तो मुक्ति मिल जाती। जीवन भर ऐसे भयानक पाप का बोझ ले कर हम कैसे जी सकेंगे?"
"अब तो आपको इस बोझ के साथ ही जीना होगा ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अच्छा होगा कि अपने किए गए कृत्य के लिए आप कुछ इस तरह से प्रायश्चित करें जिससे आपकी आत्मा को शांति मिल सके।"
"ऐसा क्या करें हम?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हमें तो अब कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। मन करता है कि कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां इंसान तो क्या कोई परिंदा भी न रहता हो।"
"ऐसा सोचिए भी मत ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्योंकि ऐसी जगह पर जा कर भी आपको सुकून नहीं मिलेगा। शांति और सुकून प्रायश्चित करने से ही मिलेगा। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसा क्या करें जिससे आपको ये प्रतीत हो कि उस कार्य से आपके अंदर का बोझ कम हो रहा है अथवा आपको सुकून मिल रहा है।"
✮✮✮✮
"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी।" कमरे में भाभी के सामने पहुंचते ही मैंने सिर झुका कर कहा____"मैं आपसे किया हुआ वादा नहीं निभा सका। आपके सुहाग को छीनने वालों को मिट्टी में नहीं मिला सका।"
"कोई बात नहीं वैभव।" भाभी ने अधीरता से कहा____"शायद ऊपर वाला यही चाहता है कि मेरी आत्मा को कभी शांति ही न मिले। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि तुमने उन हत्यारों का पता तो लगा ही लिया है जिन्होंने मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया है। पिछली रात जब तुम बिना किसी को कुछ बताए चले गए थे तो मैं बहुत घबरा गई थी। अपने आप पर ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि मैंने तुमसे अपने सुहाग के हत्यारे को मिट्टी में मिलाने की बात ही क्यों कही? अगर इसके चलते तुम्हें कुछ हो जाता तो कैसे मैं अपने आपको माफ़ कर पाती? सारी रात यही सोच सोच कर कुढ़ती रही। जान में जान तब आई जब मुझे पता चला कि तुम सही सलामत वापस आ गए हो। अब मैं तुमसे कहती हूं कि तुम्हें ऐसा कोई काम नहीं करना है जिसकी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ हो जाए। तुम इस हवेली का भविष्य हो वैभव। तुम्हें हम सबके लिए सही सलामत रहना है।"
"और आपका क्या?" मैंने भाभी की नम हो चुकी आंखों में देखते हुए कहा____"क्या आपको कभी उन हत्यारों के जीवित रहते आत्मिक शांति मिलेगी जिन्होंने आपके सुहाग को छीन कर आपकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है?"
"सच तो ये है वैभव कि उन ज़ालिमों के मर जाने पर भी मुझे आत्मिक शांति नहीं मिल सकती।" भाभी ने दुखी भाव से कहा____"क्योंकि उनके मर जाने से मेरा सुहाग मुझे वापस तो नहीं मिल जाएगा न। मेरे दिल को खुशी तो तभी मिलेगी ना जब मेरा सुहाग मुझे वापस मिल जाए किंतु इस जीवन में तो अब ऐसा संभव ही नहीं है। तुमने अपनी क़सम दे कर मुझे जीने के लिए मजबूर कर दिया है तो अब मुझे जीना ही पड़ेगा।"
"मैं आपसे वादा करता हूं भाभी कि चाहे मुझे जो भी करना पड़े।" मैंने भाभी की दोनों बाजुओं को थाम कर कहा____"लेकिन आपको खुशियां ज़रूर ला कर दूंगा। आपसे बस यही विनती है कि आप खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देंगी और ना ही चेहरे पर उदासी के बादलों को मंडराने देंगी।"
"तुम्हारी खुशी के लिए ये मुश्किल काम ज़रूर करूंगी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर ये बताओ कि वो लड़की कौन थी जिसने पंचायत में आते ही तुम्हारा नाम ले कर सुनहरा इतिहास बनाने की बातें कह रही थी?"
भाभी के इस सवाल पर मैं एकदम से गड़बड़ा गया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्होंने पंचायत में किसी ऐसी लड़की को देखा ही नहीं था बल्कि उसकी बातें भी सुनी थीं।
"इतना तो मैं जान चुकी हूं कि वो साहूकारों की बेटी है।" भाभी ने कहा____"किंतु अब ये जानना चाहती हूं कि वो तुम्हें कैसे जानती है? वो भी इस तरह कि इतने सारे लोगों के रहते हुए भी उसने तुम्हारी बात का समर्थन किया और तुम्हारा नाम ले कर वो सब कहा। तुम्हारी बात का समर्थन करते हुए वो अपने ही परिवार के खिलाफ़ बोले जा रही थी। क्या मैं ये समझूं कि साहूकारों की उस लड़की के साथ तुम्हारा पहले से ही कोई चक्कर रहा है?"
"आप ये सब मत पूछिए भाभी।" मैंने असहज भाव से कहा____"बस इतना समझ लीजिए कि मेरा नाम दूर दूर तक फैला हुआ है।"
"हे भगवान!" भाभी ने हैरत से आंखें फैला कर मुझे देखा____"तो मतलब ऐसी बात है, हां?"
"क...क्या मतलब??" मैं उनकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका।
"जाओ यहां से।" भाभी ने एकदम से नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"मुझे अब तुमसे कोई बात नहीं करना।"
"म...मेरी बात तो सुनिए भाभी।" मैं उनकी नाराज़गी देख अंदर ही अंदर घबरा उठा।
"क्या सुनूं मैं?" भाभी ने इस बार गुस्से से देखा मुझे____"क्या ये कि तुमने अपने नाम का झंडा कहां कहां गाड़ रखा है? कुछ तो शर्म करो वैभव। किसी को तो बक्स दो। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि ये सब जो कुछ भी हुआ है उसमें तुम्हारी इन्हीं करतूतों का सबसे बड़ा हाथ है।"
"मानता हूं भाभी।" मैंने शर्मिंदा हो कर कहा____"मगर यकीन मानिए अब मैं वैसा नहीं रहा। चार महीने के वनवास ने मुझे मुकम्मल रूप से बदल दिया है। पहले ज़रूर मैं ऐसा था लेकिन अब नहीं हूं, यकीन कीजिए।"
"कैसे यकीन करूं वैभव?" भाभी ने उसी नाराज़गी से कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम पर कोई इन बातों के लिए यकीन कर सकता है?"
"जानता हूं कि कोई यकीन नहीं कर सकता।" मैंने सिर झुका कर कहा____"मगर फिर भी आप यकीन कीजिए। अब मैं वैसा नहीं रहा।"
"अच्छा।" भाभी ने मेरी आंखों में देखा____"क्या यही बात तुम मेरे सिर पर हाथ रख कर कह सकते हो?"
भाभी की ये बात सुन कर मैं कुछ न बोल सका। बस बेबसी से देखता रहा उन्हें। मुझे कुछ न बोलता देख उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।
"देखा।" फिर उन्होंने कहा____"मेरे सिर पर हाथ रखने की बात सुनते ही तुम्हारी बोलती बंद हो गई। मतलब साफ है कि तुम अभी भी वैसे ही हो जैसे हमेशा से थे। भगवान के लिए ये सब बंद कर दो वैभव। एक अच्छा इंसान बनो। ऐसे काम मत करो जिससे लोगों की बद्दुआ लगे तुम्हें। यकीन मानो, तुम में सिर्फ़ यही एक ख़राबी है वरना तुमसे अच्छा कोई नहीं है।"
"अब से आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"अब से आपको कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।"
"अगर ऐसा सच में हो गया।" भाभी ने कहा____"तो यकीन मानो, भले ही ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा दुख दे दिया है लेकिन इसके बावजूद मुझे तुम्हारे इस काम से खुशी होगी।"
उसके बाद मैं अपने कमरे में चला आया। जाने क्यों अब मुझे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि ऐसा क्यों हूं मैं? आज से पहले क्यों मैंने ऐसे घिनौने कर्म किए थे जिसके चलते मेरी छवि हर किसी के मन में ख़राब बनी हुई है? मेरी इसी ख़राब छवि के चलते अनुराधा ने उस दिन मुझे वो सब कह दिया था। हालाकि ये सच है कि उसके बारे में मैं सपने में भी ग़लत नहीं सोच सकता था इसके बावजूद उसने मुझ पर भरोसा नहीं किया और मुझे वो सब कह दिया था। अचानक ही मुझे भुवन की बातें याद आ गईं। उसने कहा था कि अनुराधा मुझसे प्रेम करती है। मैं सोचने लगा कि क्या ये सच है या उसने अनुराधा के बारे में ग़लत अनुमान लगा लिया है? मुझे याद आया कि आज पंचायत में अनुराधा मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने हर बार उससे अपनी नज़रें हटा ली थीं इस लिए मुझे उसके हाल का ज़्यादा अंदाज़ा नहीं हो पाया था किंतु इतना ज़रूर समझ सकता हूं कि उसमें कुछ तो बदलाव यकीनन आया है। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर वो मुझसे नफ़रत कर रही होती तो यूं मुझे ही न देखती रहती। कोई इंसान जब किसी को पसंद नहीं करता अथवा उससे घृणा करता है तो वो उस इंसान की शकल तक नहीं देखना चाहता किंतु यहां तो अनुराधा को मैंने जब भी देखा था तो उसे मैंने अपनी तरफ ही देखते पाया था। मतलब साफ है कि या तो भुवन की बात सच थी या फिर उसमें थोड़ा बहुत बदलाव ज़रूर आया है। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि इस बारे में मैं सच जानने के लिए काफी उत्सुक और बेचैन हो उठा हूं।
रूपा, इस नाम को कैसे भूल सकता था मैं?
आज पंचायत में जिस तरह से उसने मेरी बात का समर्थन करते हुए मेरा नाम ले कर वो सब कहा था उसे देख सुन कर मैं हैरत में ही पड़ गया था। उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि उसे हमारे इस मामले के बारे में पहले से कुछ न कुछ पता था और इस बात का ज़िक्र भी उसने किया था।
अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंक पड़ा। किसी बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि कहीं ये रूपा ही तो नहीं थी जिसका ज़िक्र पिता जी ने इस बात पर किया था कि चंदनपुर में मुझे जान से मारने की जब साहूकारों ने मुंशी के साथ मिल कर योजना बनाई थी तो उसी समय हवेली में दो औरतें इस बात की सूचना देने आईं थी?
ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैं आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। एकदम से मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि कैसे?? मतलब कि अगर उन दो औरतों में से एक रूपा ही थी तो उसे ये कैसे पता चला था कि कुछ लोग मुझे जान से मारने के लिए अगली सुबह चंदनपुर जाने वाले हैं? ये एक ऐसा सवाल था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Nice update...अध्याय - 76गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
अब आगे....
"मालिक, बाहर पुलिस वाले आए हैं।" एक दरबान ने बैठक में आ कर पिता जी से कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो उन्हें अंदर भेज दूं"
"हां भेज दो।" पिता जी ने कहा तो दरबान अदब से सिर नवा कर चला गया।
"शायद कानून के नुमाइंदों को पता चल गया है कि यहां क्या हुआ है।" पास ही एक कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"ज़रूर इस मामले के बारे में किसी ने पुलिस तक ये ख़बर भेजवाई होगी। इसी लिए वो यहां आए हैं। ख़ैर सोचने वाली बात है कि अगर इस मामले में पुलिस ने कोई हस्ताक्षेप किया तो भारी समस्या हो सकती है ठाकुर साहब।"
"वर्षों से इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास के गावों के मामले भी हम ही देखते आए हैं महेंद्र सिंह जी।" पिता जी ने कहा____"ना तो इसके पहले कभी पुलिस या कानून का हमारे किसी मामले में कोई दखल हुआ था और ना ही कभी हो सकता है।"
पिता जी की बात सुन कर महेंद्र सिंह अभी कुछ कहने ही वाले थे कि तभी बैठक के बाहर किसी के आने की आहट हुई जिसके चलते वो चुप ही रहे। अगले ही पल पुलिस के दो अफ़सर खाकी वर्दी पहने बैठक में नमूदार हुए। दोनों ने बड़े अदब से पहले पिता जी को सिर नवाया और फिर बैठक में बैठे बाकी लोगों को। पिता जी ने इशारे से उन्हें खाली कुर्सियों में बैठ जाने को कहा तो वो दोनों धन्यवाद ठाकुर साहब कहते हुए बैठ गए।
"कहो एस पी।" पिता जी ने दोनों में से एक की तरफ देखते हुए कहा____"यहां आने का कैसे कष्ट किया और हां हमारे छोटे भाई तथा बेटे की लाशों का क्या हुआ? वो अभी तक हमें क्यों नहीं सौंपी गईं?"
"माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" एस पी ने खुद को संतुलित रखने का प्रयास करते हुए कहा____"ऐसे कामों में समय तो लगता ही है। हालाकि मैंने पूरी कोशिश की थी कि आपको इन्तज़ार न करना पड़े। ये मेरी कोशिश का ही नतीजा है कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडी का जल्दी ही पोस्ट मॉर्टम हो गया। शाम होने से पहले ही वो आपको सुपुर्द कर दी जाएंगी।"
"तो आपको हमारे जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज के साथ ही यहां आना चाहिए था।" पिता जी ने कहा____"इस तरह खाली हाथ यहां चले आने का सोचा भी कैसे आपने?"
"ज...जी वो बात दरअसल ये है कि हमें पता चला है कि यहां आपके द्वारा बहुत बड़ा नर संघार किया गया है।" एस पी ने भारी झिझक के साथ कहा____"बस उसी सिलसिले में हम यहां आए हैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो हम इस मामले की छानबीन कर लें?"
"ख़ामोश।" पिता जी गुस्से से दहाड़ ही उठे____"तुम्हारे ज़हन में ये ख़याल भी कैसे आया कि तुम हमारे किसी मामले में दखल दोगे अथवा अपनी टांग अड़ाओगे? हमने अपने जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज़ भी तुम्हें इस लिए ले जाने दिया था क्योंकि उस समय हमारी मानसिक अवस्था ठीक नहीं थी। किंतु इसका मतलब ये नहीं है कि हमने पुलिस को अपने किसी मामले में हस्ताक्षेप करने का अधिकार दे दिया है। ये मत भूलो कि वर्षों से हम खुद ही आस पास के सभी गांवों के मामलों का फ़ैसला करते आए हैं। न इसके पहले कभी पुलिस का कोई दखल हुआ था और ना ही कभी होगा।"
"म....माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" दूसरे पुलिस वाले ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन ऐसा हमेशा तो नहीं हो सकता ना। इस देश के कानून को तो एक न एक दिन सबको मानना ही पड़ेगा।"
"लगता है तुम नए नए आए हो बर्खुरदार।" महेंद्र सिंह ने कहा____"इसी लिए ऐसा बोलने की हिमाकत कर रहे हो ठाकुर साहब से। ख़ैर तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम यहां पर कानून का पाठ मत पढ़ाओ किसी को।"
"अ...आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" वो थोड़ा तैश में आ गया____"मैं इस देश के कानून का नुमाइंदा हूं और मेरा ये फर्ज़ है कि मैं ऐसे हर मामले की छानबीन करूं जिसे कानून को हाथ में ले कर अंजाम दिया गया हो।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" अर्जुन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा____"ज़रा हम भी तो देखें कि कानून के इस नुमाइंदे में कितना दम है? हमें दिखाओ कि हमारे मामले में कानून का नुमाइंदा बन कर तुम किस तरह से हस्ताक्षेप करते हो?"
"इन्हें माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" एस पी दूसरे पुलिस वाले के कुछ बोलने से पहले ही झट से बोल उठा____"इन्हें अभी आप सबके बारे में ठीक से पता नहीं है। यही वजह है कि ये आपसे ऐसे लहजे में बात कर रहे हैं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं साहब?" दूसरा पुलिस वाला आश्चर्य से एस पी को देखते हुए बोला____"कानून के रक्षक हो कर आप ऐसी बात कैसे कह सकते हैं?"
"लाल सिंह।" एस पी ने थोड़े गुस्से में उसकी तरफ देखा और फिर कहा____"ये शहर नहीं है बल्कि वो जगह है जहां पर इस देश का कानून नहीं बल्कि यहां के ठाकुरों का कानून चलता है। अपने लहजे और तेवर को ठंडा ही रखो वरना जिस वर्दी के दम पर तुम ये सब बोलने की जुर्रत कर रहे हो उसे तुम्हारे जिस्म से उतरने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"
अपने आला अफ़सर की ये डांट सुन कर लाल सिंह भौचक्का सा रह गया। हालाकि यहां आते समय रास्ते में एस पी ने उसे थोड़ा बहुत यहां के बारे में बताया भी था किंतु ये नहीं बताया था कि ऐसा बोलने पर उसके साथ ऐसा भी हो सकता है। बहरहाल एस पी के कहने पर उसने सभी से अपने बर्ताव के लिए हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी। ये अलग बात है कि अंदर ही अंदर वो अपमानित सा महसूस करने लगा था।
"ठीक है ठाकुर साहब।" एस पी ने पिता जी की तरफ देखते हुए नम्रता से कहा____"अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो यही सही। वैसे भी मुझे ऊपर से ही ये हुकुम मिल गया था कि मैं आपके किसी मामले में कोई हस्ताक्षेप न करूं। मैं तो बस यहां यही बताने के लिए आया था कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडीज को आज शाम होने से पहले ही आपके सुपुर्द कर दिया जाएगा। आपको हमारी वजह से जो तक़लीफ हुई है उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं।"
कहने के साथ ही एस पी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। उसके साथ ही उसका सहयोगी पुलिस वाला लाल सिंह भी जल्दी से उठ गया। उसके बाद वो दोनों सभी को नमस्कार कर के बैठक से बाहर निकल गए।
"एक वो वक्त था जब हमारे पिता जी के दौर में कोई पुलिस वाला गांव में घुसने की भी हिम्मत नहीं करता था।" पिता जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा____"और एक ये वक्त है जब कोई पुलिस का नुमाइंदा इस गांव में ही नहीं बल्कि हमारी हवेली की दहलीज़ को भी पार करने की जुर्रत कर गया। हमारी नर्मी का बेहद ही नाजायज़ फ़ायदा उठाया है सबने।"
"सब वक्त की बातें हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। आज कम से कम अभी इतना तो है कि इतने बड़े संगीन मामले के बाद भी पुलिस अपना दखल देने से ख़ौफ खा गई है। ज़ाहिर है ये आपके पुरखों का बनाया हुआ कानून और ख़ौफ ही रहा है। सबसे ज़्यादा तो बड़े दादा ठाकुर का ख़ौफ रहा जिसके चलते कानून का कोई भी नुमाइंदा गांव की सरहद के इस पार क़दम भी नहीं रख सकता था। ख़ैर इसे आपकी नर्मी कहें अथवा समय का चक्र कि अब ऐसा नहीं रहा और यकीन मानिए आगे ऐसा भी समय आने वाला है जब यहां भी कानून का वैसा ही दखल होने लगेगा जैसा शहरों में होता है।"
"सही कहा आपने।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन आने वाले समय में ऐसा ही होगा। ख़ैर ये तो बाद की बातें हैं किंतु ये जो कुछ हुआ है उसने हमें काफी ज़्यादा आहत और विचलित सा कर दिया है। हमें अब जा कर एहसास हो रहा है कि हमने साहूकारों का इस तरह से नर संघार कर के बिल्कुल भी ठीक नहीं किया है। माना कि वो सब अपराधी थे लेकिन उनके बच्चों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। अपराधी तो मणि शंकर और उसके तीनों भाई थे जबकि उनके बच्चे तो निर्दोष ही थे। ऊपर वाला हमें इस जघन्य पाप के लिए नर्क में भी जगह नहीं देगा। काश! पंचायत में आपने हमें मौत की सज़ा सुना दी होती तो बेहतर होता। कम से कम हमें इस अजाब से तो मुक्ति मिल जाती। जीवन भर ऐसे भयानक पाप का बोझ ले कर हम कैसे जी सकेंगे?"
"अब तो आपको इस बोझ के साथ ही जीना होगा ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अच्छा होगा कि अपने किए गए कृत्य के लिए आप कुछ इस तरह से प्रायश्चित करें जिससे आपकी आत्मा को शांति मिल सके।"
"ऐसा क्या करें हम?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हमें तो अब कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। मन करता है कि कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां इंसान तो क्या कोई परिंदा भी न रहता हो।"
"ऐसा सोचिए भी मत ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्योंकि ऐसी जगह पर जा कर भी आपको सुकून नहीं मिलेगा। शांति और सुकून प्रायश्चित करने से ही मिलेगा। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसा क्या करें जिससे आपको ये प्रतीत हो कि उस कार्य से आपके अंदर का बोझ कम हो रहा है अथवा आपको सुकून मिल रहा है।"
✮✮✮✮
"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी।" कमरे में भाभी के सामने पहुंचते ही मैंने सिर झुका कर कहा____"मैं आपसे किया हुआ वादा नहीं निभा सका। आपके सुहाग को छीनने वालों को मिट्टी में नहीं मिला सका।"
"कोई बात नहीं वैभव।" भाभी ने अधीरता से कहा____"शायद ऊपर वाला यही चाहता है कि मेरी आत्मा को कभी शांति ही न मिले। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि तुमने उन हत्यारों का पता तो लगा ही लिया है जिन्होंने मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया है। पिछली रात जब तुम बिना किसी को कुछ बताए चले गए थे तो मैं बहुत घबरा गई थी। अपने आप पर ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि मैंने तुमसे अपने सुहाग के हत्यारे को मिट्टी में मिलाने की बात ही क्यों कही? अगर इसके चलते तुम्हें कुछ हो जाता तो कैसे मैं अपने आपको माफ़ कर पाती? सारी रात यही सोच सोच कर कुढ़ती रही। जान में जान तब आई जब मुझे पता चला कि तुम सही सलामत वापस आ गए हो। अब मैं तुमसे कहती हूं कि तुम्हें ऐसा कोई काम नहीं करना है जिसकी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ हो जाए। तुम इस हवेली का भविष्य हो वैभव। तुम्हें हम सबके लिए सही सलामत रहना है।"
"और आपका क्या?" मैंने भाभी की नम हो चुकी आंखों में देखते हुए कहा____"क्या आपको कभी उन हत्यारों के जीवित रहते आत्मिक शांति मिलेगी जिन्होंने आपके सुहाग को छीन कर आपकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है?"
"सच तो ये है वैभव कि उन ज़ालिमों के मर जाने पर भी मुझे आत्मिक शांति नहीं मिल सकती।" भाभी ने दुखी भाव से कहा____"क्योंकि उनके मर जाने से मेरा सुहाग मुझे वापस तो नहीं मिल जाएगा न। मेरे दिल को खुशी तो तभी मिलेगी ना जब मेरा सुहाग मुझे वापस मिल जाए किंतु इस जीवन में तो अब ऐसा संभव ही नहीं है। तुमने अपनी क़सम दे कर मुझे जीने के लिए मजबूर कर दिया है तो अब मुझे जीना ही पड़ेगा।"
"मैं आपसे वादा करता हूं भाभी कि चाहे मुझे जो भी करना पड़े।" मैंने भाभी की दोनों बाजुओं को थाम कर कहा____"लेकिन आपको खुशियां ज़रूर ला कर दूंगा। आपसे बस यही विनती है कि आप खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देंगी और ना ही चेहरे पर उदासी के बादलों को मंडराने देंगी।"
"तुम्हारी खुशी के लिए ये मुश्किल काम ज़रूर करूंगी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर ये बताओ कि वो लड़की कौन थी जिसने पंचायत में आते ही तुम्हारा नाम ले कर सुनहरा इतिहास बनाने की बातें कह रही थी?"
भाभी के इस सवाल पर मैं एकदम से गड़बड़ा गया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्होंने पंचायत में किसी ऐसी लड़की को देखा ही नहीं था बल्कि उसकी बातें भी सुनी थीं।
"इतना तो मैं जान चुकी हूं कि वो साहूकारों की बेटी है।" भाभी ने कहा____"किंतु अब ये जानना चाहती हूं कि वो तुम्हें कैसे जानती है? वो भी इस तरह कि इतने सारे लोगों के रहते हुए भी उसने तुम्हारी बात का समर्थन किया और तुम्हारा नाम ले कर वो सब कहा। तुम्हारी बात का समर्थन करते हुए वो अपने ही परिवार के खिलाफ़ बोले जा रही थी। क्या मैं ये समझूं कि साहूकारों की उस लड़की के साथ तुम्हारा पहले से ही कोई चक्कर रहा है?"
"आप ये सब मत पूछिए भाभी।" मैंने असहज भाव से कहा____"बस इतना समझ लीजिए कि मेरा नाम दूर दूर तक फैला हुआ है।"
"हे भगवान!" भाभी ने हैरत से आंखें फैला कर मुझे देखा____"तो मतलब ऐसी बात है, हां?"
"क...क्या मतलब??" मैं उनकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका।
"जाओ यहां से।" भाभी ने एकदम से नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"मुझे अब तुमसे कोई बात नहीं करना।"
"म...मेरी बात तो सुनिए भाभी।" मैं उनकी नाराज़गी देख अंदर ही अंदर घबरा उठा।
"क्या सुनूं मैं?" भाभी ने इस बार गुस्से से देखा मुझे____"क्या ये कि तुमने अपने नाम का झंडा कहां कहां गाड़ रखा है? कुछ तो शर्म करो वैभव। किसी को तो बक्स दो। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि ये सब जो कुछ भी हुआ है उसमें तुम्हारी इन्हीं करतूतों का सबसे बड़ा हाथ है।"
"मानता हूं भाभी।" मैंने शर्मिंदा हो कर कहा____"मगर यकीन मानिए अब मैं वैसा नहीं रहा। चार महीने के वनवास ने मुझे मुकम्मल रूप से बदल दिया है। पहले ज़रूर मैं ऐसा था लेकिन अब नहीं हूं, यकीन कीजिए।"
"कैसे यकीन करूं वैभव?" भाभी ने उसी नाराज़गी से कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम पर कोई इन बातों के लिए यकीन कर सकता है?"
"जानता हूं कि कोई यकीन नहीं कर सकता।" मैंने सिर झुका कर कहा____"मगर फिर भी आप यकीन कीजिए। अब मैं वैसा नहीं रहा।"
"अच्छा।" भाभी ने मेरी आंखों में देखा____"क्या यही बात तुम मेरे सिर पर हाथ रख कर कह सकते हो?"
भाभी की ये बात सुन कर मैं कुछ न बोल सका। बस बेबसी से देखता रहा उन्हें। मुझे कुछ न बोलता देख उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।
"देखा।" फिर उन्होंने कहा____"मेरे सिर पर हाथ रखने की बात सुनते ही तुम्हारी बोलती बंद हो गई। मतलब साफ है कि तुम अभी भी वैसे ही हो जैसे हमेशा से थे। भगवान के लिए ये सब बंद कर दो वैभव। एक अच्छा इंसान बनो। ऐसे काम मत करो जिससे लोगों की बद्दुआ लगे तुम्हें। यकीन मानो, तुम में सिर्फ़ यही एक ख़राबी है वरना तुमसे अच्छा कोई नहीं है।"
"अब से आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"अब से आपको कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।"
"अगर ऐसा सच में हो गया।" भाभी ने कहा____"तो यकीन मानो, भले ही ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा दुख दे दिया है लेकिन इसके बावजूद मुझे तुम्हारे इस काम से खुशी होगी।"
उसके बाद मैं अपने कमरे में चला आया। जाने क्यों अब मुझे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि ऐसा क्यों हूं मैं? आज से पहले क्यों मैंने ऐसे घिनौने कर्म किए थे जिसके चलते मेरी छवि हर किसी के मन में ख़राब बनी हुई है? मेरी इसी ख़राब छवि के चलते अनुराधा ने उस दिन मुझे वो सब कह दिया था। हालाकि ये सच है कि उसके बारे में मैं सपने में भी ग़लत नहीं सोच सकता था इसके बावजूद उसने मुझ पर भरोसा नहीं किया और मुझे वो सब कह दिया था। अचानक ही मुझे भुवन की बातें याद आ गईं। उसने कहा था कि अनुराधा मुझसे प्रेम करती है। मैं सोचने लगा कि क्या ये सच है या उसने अनुराधा के बारे में ग़लत अनुमान लगा लिया है? मुझे याद आया कि आज पंचायत में अनुराधा मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने हर बार उससे अपनी नज़रें हटा ली थीं इस लिए मुझे उसके हाल का ज़्यादा अंदाज़ा नहीं हो पाया था किंतु इतना ज़रूर समझ सकता हूं कि उसमें कुछ तो बदलाव यकीनन आया है। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर वो मुझसे नफ़रत कर रही होती तो यूं मुझे ही न देखती रहती। कोई इंसान जब किसी को पसंद नहीं करता अथवा उससे घृणा करता है तो वो उस इंसान की शकल तक नहीं देखना चाहता किंतु यहां तो अनुराधा को मैंने जब भी देखा था तो उसे मैंने अपनी तरफ ही देखते पाया था। मतलब साफ है कि या तो भुवन की बात सच थी या फिर उसमें थोड़ा बहुत बदलाव ज़रूर आया है। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि इस बारे में मैं सच जानने के लिए काफी उत्सुक और बेचैन हो उठा हूं।
रूपा, इस नाम को कैसे भूल सकता था मैं?
आज पंचायत में जिस तरह से उसने मेरी बात का समर्थन करते हुए मेरा नाम ले कर वो सब कहा था उसे देख सुन कर मैं हैरत में ही पड़ गया था। उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि उसे हमारे इस मामले के बारे में पहले से कुछ न कुछ पता था और इस बात का ज़िक्र भी उसने किया था।
अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंक पड़ा। किसी बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि कहीं ये रूपा ही तो नहीं थी जिसका ज़िक्र पिता जी ने इस बात पर किया था कि चंदनपुर में मुझे जान से मारने की जब साहूकारों ने मुंशी के साथ मिल कर योजना बनाई थी तो उसी समय हवेली में दो औरतें इस बात की सूचना देने आईं थी?
ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैं आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। एकदम से मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि कैसे?? मतलब कि अगर उन दो औरतों में से एक रूपा ही थी तो उसे ये कैसे पता चला था कि कुछ लोग मुझे जान से मारने के लिए अगली सुबह चंदनपुर जाने वाले हैं? ये एक ऐसा सवाल था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
रूपा का व्यक्तित्व अब सब पर भरी पड़ रहा है, जैसा की उसने पंचायत में प्रभाव जमायाअध्याय - 76गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
अब आगे....
"मालिक, बाहर पुलिस वाले आए हैं।" एक दरबान ने बैठक में आ कर पिता जी से कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो उन्हें अंदर भेज दूं"
"हां भेज दो।" पिता जी ने कहा तो दरबान अदब से सिर नवा कर चला गया।
"शायद कानून के नुमाइंदों को पता चल गया है कि यहां क्या हुआ है।" पास ही एक कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"ज़रूर इस मामले के बारे में किसी ने पुलिस तक ये ख़बर भेजवाई होगी। इसी लिए वो यहां आए हैं। ख़ैर सोचने वाली बात है कि अगर इस मामले में पुलिस ने कोई हस्ताक्षेप किया तो भारी समस्या हो सकती है ठाकुर साहब।"
"वर्षों से इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास के गावों के मामले भी हम ही देखते आए हैं महेंद्र सिंह जी।" पिता जी ने कहा____"ना तो इसके पहले कभी पुलिस या कानून का हमारे किसी मामले में कोई दखल हुआ था और ना ही कभी हो सकता है।"
पिता जी की बात सुन कर महेंद्र सिंह अभी कुछ कहने ही वाले थे कि तभी बैठक के बाहर किसी के आने की आहट हुई जिसके चलते वो चुप ही रहे। अगले ही पल पुलिस के दो अफ़सर खाकी वर्दी पहने बैठक में नमूदार हुए। दोनों ने बड़े अदब से पहले पिता जी को सिर नवाया और फिर बैठक में बैठे बाकी लोगों को। पिता जी ने इशारे से उन्हें खाली कुर्सियों में बैठ जाने को कहा तो वो दोनों धन्यवाद ठाकुर साहब कहते हुए बैठ गए।
"कहो एस पी।" पिता जी ने दोनों में से एक की तरफ देखते हुए कहा____"यहां आने का कैसे कष्ट किया और हां हमारे छोटे भाई तथा बेटे की लाशों का क्या हुआ? वो अभी तक हमें क्यों नहीं सौंपी गईं?"
"माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" एस पी ने खुद को संतुलित रखने का प्रयास करते हुए कहा____"ऐसे कामों में समय तो लगता ही है। हालाकि मैंने पूरी कोशिश की थी कि आपको इन्तज़ार न करना पड़े। ये मेरी कोशिश का ही नतीजा है कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडी का जल्दी ही पोस्ट मॉर्टम हो गया। शाम होने से पहले ही वो आपको सुपुर्द कर दी जाएंगी।"
"तो आपको हमारे जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज के साथ ही यहां आना चाहिए था।" पिता जी ने कहा____"इस तरह खाली हाथ यहां चले आने का सोचा भी कैसे आपने?"
"ज...जी वो बात दरअसल ये है कि हमें पता चला है कि यहां आपके द्वारा बहुत बड़ा नर संघार किया गया है।" एस पी ने भारी झिझक के साथ कहा____"बस उसी सिलसिले में हम यहां आए हैं। अगर आपकी इजाज़त हो तो हम इस मामले की छानबीन कर लें?"
"ख़ामोश।" पिता जी गुस्से से दहाड़ ही उठे____"तुम्हारे ज़हन में ये ख़याल भी कैसे आया कि तुम हमारे किसी मामले में दखल दोगे अथवा अपनी टांग अड़ाओगे? हमने अपने जिगर के टुकड़ों की डेड बॉडीज़ भी तुम्हें इस लिए ले जाने दिया था क्योंकि उस समय हमारी मानसिक अवस्था ठीक नहीं थी। किंतु इसका मतलब ये नहीं है कि हमने पुलिस को अपने किसी मामले में हस्ताक्षेप करने का अधिकार दे दिया है। ये मत भूलो कि वर्षों से हम खुद ही आस पास के सभी गांवों के मामलों का फ़ैसला करते आए हैं। न इसके पहले कभी पुलिस का कोई दखल हुआ था और ना ही कभी होगा।"
"म....माफ़ कीजिए ठाकुर साहब।" दूसरे पुलिस वाले ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन ऐसा हमेशा तो नहीं हो सकता ना। इस देश के कानून को तो एक न एक दिन सबको मानना ही पड़ेगा।"
"लगता है तुम नए नए आए हो बर्खुरदार।" महेंद्र सिंह ने कहा____"इसी लिए ऐसा बोलने की हिमाकत कर रहे हो ठाकुर साहब से। ख़ैर तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम यहां पर कानून का पाठ मत पढ़ाओ किसी को।"
"अ...आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" वो थोड़ा तैश में आ गया____"मैं इस देश के कानून का नुमाइंदा हूं और मेरा ये फर्ज़ है कि मैं ऐसे हर मामले की छानबीन करूं जिसे कानून को हाथ में ले कर अंजाम दिया गया हो।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" अर्जुन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा____"ज़रा हम भी तो देखें कि कानून के इस नुमाइंदे में कितना दम है? हमें दिखाओ कि हमारे मामले में कानून का नुमाइंदा बन कर तुम किस तरह से हस्ताक्षेप करते हो?"
"इन्हें माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" एस पी दूसरे पुलिस वाले के कुछ बोलने से पहले ही झट से बोल उठा____"इन्हें अभी आप सबके बारे में ठीक से पता नहीं है। यही वजह है कि ये आपसे ऐसे लहजे में बात कर रहे हैं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं साहब?" दूसरा पुलिस वाला आश्चर्य से एस पी को देखते हुए बोला____"कानून के रक्षक हो कर आप ऐसी बात कैसे कह सकते हैं?"
"लाल सिंह।" एस पी ने थोड़े गुस्से में उसकी तरफ देखा और फिर कहा____"ये शहर नहीं है बल्कि वो जगह है जहां पर इस देश का कानून नहीं बल्कि यहां के ठाकुरों का कानून चलता है। अपने लहजे और तेवर को ठंडा ही रखो वरना जिस वर्दी के दम पर तुम ये सब बोलने की जुर्रत कर रहे हो उसे तुम्हारे जिस्म से उतरने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा।"
अपने आला अफ़सर की ये डांट सुन कर लाल सिंह भौचक्का सा रह गया। हालाकि यहां आते समय रास्ते में एस पी ने उसे थोड़ा बहुत यहां के बारे में बताया भी था किंतु ये नहीं बताया था कि ऐसा बोलने पर उसके साथ ऐसा भी हो सकता है। बहरहाल एस पी के कहने पर उसने सभी से अपने बर्ताव के लिए हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी। ये अलग बात है कि अंदर ही अंदर वो अपमानित सा महसूस करने लगा था।
"ठीक है ठाकुर साहब।" एस पी ने पिता जी की तरफ देखते हुए नम्रता से कहा____"अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो यही सही। वैसे भी मुझे ऊपर से ही ये हुकुम मिल गया था कि मैं आपके किसी मामले में कोई हस्ताक्षेप न करूं। मैं तो बस यहां यही बताने के लिए आया था कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की डेड बॉडीज को आज शाम होने से पहले ही आपके सुपुर्द कर दिया जाएगा। आपको हमारी वजह से जो तक़लीफ हुई है उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं।"
कहने के साथ ही एस पी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। उसके साथ ही उसका सहयोगी पुलिस वाला लाल सिंह भी जल्दी से उठ गया। उसके बाद वो दोनों सभी को नमस्कार कर के बैठक से बाहर निकल गए।
"एक वो वक्त था जब हमारे पिता जी के दौर में कोई पुलिस वाला गांव में घुसने की भी हिम्मत नहीं करता था।" पिता जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा____"और एक ये वक्त है जब कोई पुलिस का नुमाइंदा इस गांव में ही नहीं बल्कि हमारी हवेली की दहलीज़ को भी पार करने की जुर्रत कर गया। हमारी नर्मी का बेहद ही नाजायज़ फ़ायदा उठाया है सबने।"
"सब वक्त की बातें हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। आज कम से कम अभी इतना तो है कि इतने बड़े संगीन मामले के बाद भी पुलिस अपना दखल देने से ख़ौफ खा गई है। ज़ाहिर है ये आपके पुरखों का बनाया हुआ कानून और ख़ौफ ही रहा है। सबसे ज़्यादा तो बड़े दादा ठाकुर का ख़ौफ रहा जिसके चलते कानून का कोई भी नुमाइंदा गांव की सरहद के इस पार क़दम भी नहीं रख सकता था। ख़ैर इसे आपकी नर्मी कहें अथवा समय का चक्र कि अब ऐसा नहीं रहा और यकीन मानिए आगे ऐसा भी समय आने वाला है जब यहां भी कानून का वैसा ही दखल होने लगेगा जैसा शहरों में होता है।"
"सही कहा आपने।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन आने वाले समय में ऐसा ही होगा। ख़ैर ये तो बाद की बातें हैं किंतु ये जो कुछ हुआ है उसने हमें काफी ज़्यादा आहत और विचलित सा कर दिया है। हमें अब जा कर एहसास हो रहा है कि हमने साहूकारों का इस तरह से नर संघार कर के बिल्कुल भी ठीक नहीं किया है। माना कि वो सब अपराधी थे लेकिन उनके बच्चों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। अपराधी तो मणि शंकर और उसके तीनों भाई थे जबकि उनके बच्चे तो निर्दोष ही थे। ऊपर वाला हमें इस जघन्य पाप के लिए नर्क में भी जगह नहीं देगा। काश! पंचायत में आपने हमें मौत की सज़ा सुना दी होती तो बेहतर होता। कम से कम हमें इस अजाब से तो मुक्ति मिल जाती। जीवन भर ऐसे भयानक पाप का बोझ ले कर हम कैसे जी सकेंगे?"
"अब तो आपको इस बोझ के साथ ही जीना होगा ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अच्छा होगा कि अपने किए गए कृत्य के लिए आप कुछ इस तरह से प्रायश्चित करें जिससे आपकी आत्मा को शांति मिल सके।"
"ऐसा क्या करें हम?" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"हमें तो अब कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। मन करता है कि कहीं ऐसी जगह चले जाएं जहां इंसान तो क्या कोई परिंदा भी न रहता हो।"
"ऐसा सोचिए भी मत ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्योंकि ऐसी जगह पर जा कर भी आपको सुकून नहीं मिलेगा। शांति और सुकून प्रायश्चित करने से ही मिलेगा। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसा क्या करें जिससे आपको ये प्रतीत हो कि उस कार्य से आपके अंदर का बोझ कम हो रहा है अथवा आपको सुकून मिल रहा है।"
✮✮✮✮
"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी।" कमरे में भाभी के सामने पहुंचते ही मैंने सिर झुका कर कहा____"मैं आपसे किया हुआ वादा नहीं निभा सका। आपके सुहाग को छीनने वालों को मिट्टी में नहीं मिला सका।"
"कोई बात नहीं वैभव।" भाभी ने अधीरता से कहा____"शायद ऊपर वाला यही चाहता है कि मेरी आत्मा को कभी शांति ही न मिले। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि तुमने उन हत्यारों का पता तो लगा ही लिया है जिन्होंने मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया है। पिछली रात जब तुम बिना किसी को कुछ बताए चले गए थे तो मैं बहुत घबरा गई थी। अपने आप पर ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि मैंने तुमसे अपने सुहाग के हत्यारे को मिट्टी में मिलाने की बात ही क्यों कही? अगर इसके चलते तुम्हें कुछ हो जाता तो कैसे मैं अपने आपको माफ़ कर पाती? सारी रात यही सोच सोच कर कुढ़ती रही। जान में जान तब आई जब मुझे पता चला कि तुम सही सलामत वापस आ गए हो। अब मैं तुमसे कहती हूं कि तुम्हें ऐसा कोई काम नहीं करना है जिसकी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहती कि तुम्हें कुछ हो जाए। तुम इस हवेली का भविष्य हो वैभव। तुम्हें हम सबके लिए सही सलामत रहना है।"
"और आपका क्या?" मैंने भाभी की नम हो चुकी आंखों में देखते हुए कहा____"क्या आपको कभी उन हत्यारों के जीवित रहते आत्मिक शांति मिलेगी जिन्होंने आपके सुहाग को छीन कर आपकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है?"
"सच तो ये है वैभव कि उन ज़ालिमों के मर जाने पर भी मुझे आत्मिक शांति नहीं मिल सकती।" भाभी ने दुखी भाव से कहा____"क्योंकि उनके मर जाने से मेरा सुहाग मुझे वापस तो नहीं मिल जाएगा न। मेरे दिल को खुशी तो तभी मिलेगी ना जब मेरा सुहाग मुझे वापस मिल जाए किंतु इस जीवन में तो अब ऐसा संभव ही नहीं है। तुमने अपनी क़सम दे कर मुझे जीने के लिए मजबूर कर दिया है तो अब मुझे जीना ही पड़ेगा।"
"मैं आपसे वादा करता हूं भाभी कि चाहे मुझे जो भी करना पड़े।" मैंने भाभी की दोनों बाजुओं को थाम कर कहा____"लेकिन आपको खुशियां ज़रूर ला कर दूंगा। आपसे बस यही विनती है कि आप खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देंगी और ना ही चेहरे पर उदासी के बादलों को मंडराने देंगी।"
"तुम्हारी खुशी के लिए ये मुश्किल काम ज़रूर करूंगी।" भाभी ने कहा____"ख़ैर ये बताओ कि वो लड़की कौन थी जिसने पंचायत में आते ही तुम्हारा नाम ले कर सुनहरा इतिहास बनाने की बातें कह रही थी?"
भाभी के इस सवाल पर मैं एकदम से गड़बड़ा गया। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्होंने पंचायत में किसी ऐसी लड़की को देखा ही नहीं था बल्कि उसकी बातें भी सुनी थीं।
"इतना तो मैं जान चुकी हूं कि वो साहूकारों की बेटी है।" भाभी ने कहा____"किंतु अब ये जानना चाहती हूं कि वो तुम्हें कैसे जानती है? वो भी इस तरह कि इतने सारे लोगों के रहते हुए भी उसने तुम्हारी बात का समर्थन किया और तुम्हारा नाम ले कर वो सब कहा। तुम्हारी बात का समर्थन करते हुए वो अपने ही परिवार के खिलाफ़ बोले जा रही थी। क्या मैं ये समझूं कि साहूकारों की उस लड़की के साथ तुम्हारा पहले से ही कोई चक्कर रहा है?"
"आप ये सब मत पूछिए भाभी।" मैंने असहज भाव से कहा____"बस इतना समझ लीजिए कि मेरा नाम दूर दूर तक फैला हुआ है।"
"हे भगवान!" भाभी ने हैरत से आंखें फैला कर मुझे देखा____"तो मतलब ऐसी बात है, हां?"
"क...क्या मतलब??" मैं उनकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका।
"जाओ यहां से।" भाभी ने एकदम से नाराज़गी अख़्तियार करते हुए कहा____"मुझे अब तुमसे कोई बात नहीं करना।"
"म...मेरी बात तो सुनिए भाभी।" मैं उनकी नाराज़गी देख अंदर ही अंदर घबरा उठा।
"क्या सुनूं मैं?" भाभी ने इस बार गुस्से से देखा मुझे____"क्या ये कि तुमने अपने नाम का झंडा कहां कहां गाड़ रखा है? कुछ तो शर्म करो वैभव। किसी को तो बक्स दो। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि ये सब जो कुछ भी हुआ है उसमें तुम्हारी इन्हीं करतूतों का सबसे बड़ा हाथ है।"
"मानता हूं भाभी।" मैंने शर्मिंदा हो कर कहा____"मगर यकीन मानिए अब मैं वैसा नहीं रहा। चार महीने के वनवास ने मुझे मुकम्मल रूप से बदल दिया है। पहले ज़रूर मैं ऐसा था लेकिन अब नहीं हूं, यकीन कीजिए।"
"कैसे यकीन करूं वैभव?" भाभी ने उसी नाराज़गी से कहा____"क्या तुम्हें लगता है कि तुम पर कोई इन बातों के लिए यकीन कर सकता है?"
"जानता हूं कि कोई यकीन नहीं कर सकता।" मैंने सिर झुका कर कहा____"मगर फिर भी आप यकीन कीजिए। अब मैं वैसा नहीं रहा।"
"अच्छा।" भाभी ने मेरी आंखों में देखा____"क्या यही बात तुम मेरे सिर पर हाथ रख कर कह सकते हो?"
भाभी की ये बात सुन कर मैं कुछ न बोल सका। बस बेबसी से देखता रहा उन्हें। मुझे कुछ न बोलता देख उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।
"देखा।" फिर उन्होंने कहा____"मेरे सिर पर हाथ रखने की बात सुनते ही तुम्हारी बोलती बंद हो गई। मतलब साफ है कि तुम अभी भी वैसे ही हो जैसे हमेशा से थे। भगवान के लिए ये सब बंद कर दो वैभव। एक अच्छा इंसान बनो। ऐसे काम मत करो जिससे लोगों की बद्दुआ लगे तुम्हें। यकीन मानो, तुम में सिर्फ़ यही एक ख़राबी है वरना तुमसे अच्छा कोई नहीं है।"
"अब से आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"अब से आपको कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।"
"अगर ऐसा सच में हो गया।" भाभी ने कहा____"तो यकीन मानो, भले ही ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा दुख दे दिया है लेकिन इसके बावजूद मुझे तुम्हारे इस काम से खुशी होगी।"
उसके बाद मैं अपने कमरे में चला आया। जाने क्यों अब मुझे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि ऐसा क्यों हूं मैं? आज से पहले क्यों मैंने ऐसे घिनौने कर्म किए थे जिसके चलते मेरी छवि हर किसी के मन में ख़राब बनी हुई है? मेरी इसी ख़राब छवि के चलते अनुराधा ने उस दिन मुझे वो सब कह दिया था। हालाकि ये सच है कि उसके बारे में मैं सपने में भी ग़लत नहीं सोच सकता था इसके बावजूद उसने मुझ पर भरोसा नहीं किया और मुझे वो सब कह दिया था। अचानक ही मुझे भुवन की बातें याद आ गईं। उसने कहा था कि अनुराधा मुझसे प्रेम करती है। मैं सोचने लगा कि क्या ये सच है या उसने अनुराधा के बारे में ग़लत अनुमान लगा लिया है? मुझे याद आया कि आज पंचायत में अनुराधा मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने हर बार उससे अपनी नज़रें हटा ली थीं इस लिए मुझे उसके हाल का ज़्यादा अंदाज़ा नहीं हो पाया था किंतु इतना ज़रूर समझ सकता हूं कि उसमें कुछ तो बदलाव यकीनन आया है। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर वो मुझसे नफ़रत कर रही होती तो यूं मुझे ही न देखती रहती। कोई इंसान जब किसी को पसंद नहीं करता अथवा उससे घृणा करता है तो वो उस इंसान की शकल तक नहीं देखना चाहता किंतु यहां तो अनुराधा को मैंने जब भी देखा था तो उसे मैंने अपनी तरफ ही देखते पाया था। मतलब साफ है कि या तो भुवन की बात सच थी या फिर उसमें थोड़ा बहुत बदलाव ज़रूर आया है। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि इस बारे में मैं सच जानने के लिए काफी उत्सुक और बेचैन हो उठा हूं।
रूपा, इस नाम को कैसे भूल सकता था मैं?
आज पंचायत में जिस तरह से उसने मेरी बात का समर्थन करते हुए मेरा नाम ले कर वो सब कहा था उसे देख सुन कर मैं हैरत में ही पड़ गया था। उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि उसे हमारे इस मामले के बारे में पहले से कुछ न कुछ पता था और इस बात का ज़िक्र भी उसने किया था।
अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंक पड़ा। किसी बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि कहीं ये रूपा ही तो नहीं थी जिसका ज़िक्र पिता जी ने इस बात पर किया था कि चंदनपुर में मुझे जान से मारने की जब साहूकारों ने मुंशी के साथ मिल कर योजना बनाई थी तो उसी समय हवेली में दो औरतें इस बात की सूचना देने आईं थी?
ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैं आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। एकदम से मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि कैसे?? मतलब कि अगर उन दो औरतों में से एक रूपा ही थी तो उसे ये कैसे पता चला था कि कुछ लोग मुझे जान से मारने के लिए अगली सुबह चंदनपुर जाने वाले हैं? ये एक ऐसा सवाल था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━