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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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भाग 3
वो पूरी रात अम्मा अपने बेटे को याद कर कर रोती रहीं................वहीं मैं ये सोच रही थी की आखिर एक माँ अपने उस बेटे के जाने का दुःख क्यों मना रही हैं जिसने उनके ही सुहाग पर....................यानी अपने ही पिता पर हाथ उठाया हो!!!!!!!! अम्मा का अपने बेटे के प्रति ये मोह मुझे तब समझ में आया जब मैं माँ बनी.....................जब चन्दर मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आया था और आयुष को अपने साथ जबरदस्ती ले जाना चाहता था उस समय मुझे अम्मा का मोह समझ में आया था|



अगली सुबह हुई तो माँ ने पड़ोस के लड़कों को भाईसाहब को खोज लाने के लिए लगा दिया....................मगर पूरा गॉंव छानने के बाद भी भाईसाहब का पता नहीं लगा!!!! भाईसाहब के गॉंव छोड़ कर जाने की खबर से मेरी अम्मा टूट गई थीं.....................जबकि बप्पा को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था| आस-पडोसी आकर भाईसाहब के बारे में पूछ रहे थे और बप्पा घर की इज्जत बचाने के लिए सभी से ये झूठ कह रहे थे की भाईसाहब की गुंडा गर्दी उन्हें बर्दश्त नहीं थी इसलिए उन्होंने भाईसाहब को घर से निकाल दिया!!!



सबने बप्पा को बहुत समझाया की वो अपना गुस्सा थूक दें..............पर बप्पा नहीं माने| बप्पा तो कठोर थे.................मगर अम्मा बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही थीं इसलिए सभी माँ को सांत्वना देने लगे| जब भाईसाहब का गुस्सा ठंडा होगा तो वो घर लौट आएंगे.................ये कहते हुए सभी अम्मा को ढांढस बंधा रहे थे| अम्मा पहले ही कमज़ोर थीं............जब सबने उन्हें झूठ दिलासा दिया तो वो सबकी बातों में आ गईं और उम्मीद करने लगीं की उनका बेटा एक न एक दिन वापस आएगा!


दिन बीतने लगे............. हम सबके जख्म भरने लगे..........और मेरे जीवन में आया नया मोड़!!!!!



मेरी गिनी चुनी सहेलियां थीं.................उनके साथ भी मैं बस अपने घर के आंगन में खेलती थी.................मैं सबसे बड़ी थी तो मेरे ऊपर जानकी और सोनी की जिम्मेदारी थी| मैं अगर खेल कूद में लग जाती तो ये दोनों भी मेरी तरह करतीं.................इसलिए अम्मा ने मुझे घर के कामों में लगा दिया| द्वार पछोना.................लिपाई..............गोबर से कंडे बनाना.............. सिलाई...........बुनाई.............बेना बनाना आदि के कामों में अम्मा ने मुझे लगाना शुरू कर दिया| जानकी थोड़ी बड़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने उसे भी मेरे साथ काम में लगा दिया..................बस एक सोनी थी जो कुछ नहीं नकारती थी और हम दोनों का काम करता देख हंसती रहती थी| धीरे धीरे अम्मा ने अपनी पाकशाला में मेरी भर्ती की और मुझे खाना पकाना सिखाने लगीं|



हमारे घर के ठीक सामने चरण काका का घर था..............चरण काका बप्पा के भाई समान दोस्त थे.................और माँ उनके लिए मुँहबोली बहन थीं| उन दिनों चरण काका की भतीजी................जिसे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करते थे...............वो अपने स्कूल की छुट्टियों में गॉंव आती थी……उसका नाम था मालती.............जब मालती आती तो वो अपने साथ अपनी स्कूल की किताबें ले कर आती| उन किताबों को देख मेरा दिल मचलने लगता.............मैं किसी भँवरे की तरह उन किताबों तक खींची जाती| किताबों में बनी वो तसवीरें देख कर मेरी आँखें ख़ुशी से टिमटिमाने लगती थीं! मेरे इस दीवानेपन को समझ मालती ने मुझे पढ़ाना शुरू किया.................. पढ़ाई के प्रति मेरा ये खिंचाव............मेरी लगन...........मेरे बहुत काम आया|



उस समय हमारे गॉंव में बस एक स्कूल था जो की मेरे घर से करीब ३ किलोमीटर दूर था..................ये वही स्कूल है जहाँ नेहा ने दूसरी क्लास तक पढ़ाई की थी| उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने के बारे में कोई नहीं सोचता था.............न ही कोई सरकारी योजना लड़कियों के पढ़ाने के लिए बनाई गई थी...............और अगर बनाई भी गई होगी तो हमारे गॉंव तक नहीं पहुंची थी| तब लड़कियों के पैदा होते ही माँ बाप उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ने लगते थे...............लड़की को पढ़ाने पर कौन खर्चा करता???



मैं जानती थी की मुझे कभी भी स्कूल में पढ़ने नहीं दिया जाएगा...........और अगर कहीं बप्पा को पता चला की मैं पढ़ना चाहती हूँ तो वो मुझे कूटेंगे अलग से इसलिए मैं और मालती चोरी छुपे पढ़ाई करते थे| हमार घर के पीछे एक खेत था जहाँ पर गूलर का पेड़ लगा था.............दोपहर को खाना खाने के बाद खेत सूनसान होता था इसलिए मैं और मालती पेड़ की छॉंव तले खटिया डाल कर बैठ जाते| मालती मुझे हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर बोलना सिखाती और मेरा हाथ पकड़ कर लिखना सिखाती| उन अक्षरों को बोलने और लिखने का सुख जादुई था............वो ख़ुशी ऐसी होती थी की लगता था की मानो मुझ में कोई शक्ति आ गई हो...........ऐसी शक्ति जिससे मैं किसी को भी हरा सकती हूँ| चंद अक्षरों को सीख कर ही मैं खुद को विद्वान समझने लगी थी...............ऐसा लगता था मानो मैं जनपदों की क्ष्रेणी से ऊपर उठ चुकी हूँ!!!





जैसा की हमारे लेखक साहब कहते हैं की हर अच्छी चीज कभी न कभी खत्म हो ही जाती है.............. वही मेरे साथ हुआ जब चरण काका ने हम दोनों को पढ़ते हुए देख लिया!!!!!





"हम नाहीं जानत रहन हमार मुन्नी पढ़े म इतना होसियार है!!!!" चरण काका मेरे सर पर हाथ रखते हुए बोले| चरण काका ने जब मेरी पढ़ाई की तारीफ की तो मालती फौरन बोली की कैसे मैं पढ़ने में बहुत तेज़ हूँ....................आज पहलीबार अपनी इस तारीफ को सुन कर मैं गदगद हो गई थी और ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी!!!!!!! मेरी पढ़ाई की तरफ लग्न देखते हुए चरण काका बोले की वो बप्पा से बात करेंगे................ये सुन कर मुझे लगा की मुझे भी स्कूल जाने को मिलेगा.................नतीजन मैंने स्कूल जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी|



मैंने ये नहीं सोचा की बप्पा मुझे पढ़ने देने के लिए कभी हाँ नहीं कहेंगे!





शाम के समय हम सब आंगन में बैठे थे..............बप्पा खेत से लौटे थे इसलिए वो सौथा रहे थे.............की तभी चरण काका आ पहुंचे| उन्होंने बप्पा को बताया की मैं मालती के साथ छुप कर पढ़ाई कर रही थी..................और मैं पढ़ाई में कितनी तेज़ हूँ की बिना स्कूल जाए ही मैंने आधी अंग्रजी वर्णमाला सीख ली है| बप्पा को मेरी ये उपलब्धि सुन कर ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई...............उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो दी ही नहीं और चरण काका से दूसरी बात करने लगे| जब आप लायक हो और आपके मा बाप इसकी कोई ख़ुशी न मनाएं तो जो चिढ़ मन में पैदा होती है.................वही चिढ़ मुझे हो रही थी| लग रहा था मानो मैं गलत घर में पैदा हो गई............मुझे तो मालती के घर में पैदा होना चाहिए था...............जहाँ उसके मा बाप कम से कम उसे पढ़ा तो रहे थे!!!



दोपहर को जो मैंने स्कूल जाने के सपने सजाये थे वो सारे टूट कर चकना चूर हो गए थे.............तब लग रहा था की अगर मेरे भाईसाहब होते तो वो बप्पा से लड़ कर मुझे स्कूल भेजते.............या फिर कम से कम वो मुझे अपने साथ ले जाते तो मैं स्कूल में पढ़ तो लेती!!!!! मुझे अपने भाईसाहब के यूँ स्वार्थी होने और मुझे अकेला छोड़ कर जाने पर गुस्सा आने लगा था................और मैं मन ही मन अपने भाईसाहब को कोस रही थी की क्यों वो मुझे अपने साथ नहीं ले कर गए| मैंने तब ये नहीं सोचा की भाईसाहब घर से अकेले निकले हैं.............पता नहीं वो कहाँ रह रहे होंगे........क्या खाते होंगें............कहाँ सोते होंगें............कैसे अपना अकेला गुज़ारा करते होंगें??????





खैर.............मैंने स्कूल जाने की उम्मीद छोड़ दी थी और अपने घर के कामों में लग गई थी| अगले दिन दोपहर को खाने के बाद मालती मुझे बुलाने आई................मैं जानती थी की वो मुझे पढ़ने के लिए बुलाने आई है मगर मेरा मन अब पढ़ने का नहीं था इसलिए मैंने जाने से मना कर दिया| मालती ने हार न मानते हुए मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर खेत में ले आई...................मुझे हिम्मत देने के लिए मालती बोली की मुझे पढ़ाई करना नहीं छोड़ना चाहिए| वो मुझे हिम्मत दे रही थी ताकि मैं अपने बप्पा से खुद पढ़ने देने की बात करूँ...............वो नहीं जानती थी की मेरे बप्पा कितने सख्त स्वभाव के हैं.............वो मुझे स्कूल में पढ़ने तो नहीं देते.............अलबत्ता मेरे कान पर एक धर जर्रूर देते!!!!! बप्पा के डर के मारे मैं बस न में सर हिलाये जा रही थी.................मुझ में ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी की मैं अपने बप्पा का सामना करूँ!!!!



उसी दिन शाम के समय चरण काका ने मुझे अपने पास बुलाया..............बप्पा थक कर पहुडे थे की तभी चरण काका ने मेरे पढ़ने की बात छेड़ी| मुझे लगा था की बप्पा इस बार भी इस बात पर गौर नहीं करेंगे..................पर इस बार बप्पा उठ कर बैठे और चरण काका से बोले "का करी ई का पढ़ाये के? आखिर करे का तो एकरा ब्याह है!............. और पइसवा कहाँ है हमरे लगे जो ई का पढ़ाई?...............फिर हमार दुइ ठो बच्चा और हैं..........कल को ऊ दुनो कईहैं की बप्पा हमहुँ स्कूल जाब तो हम कइसन तीनो बच्चा का पढ़ाब?" बप्पा की आवाज़ में एक गरीब पिता होने का दर्द था............अगर मेरे बप्पा के पास खूब सारा पैसा होता तो वो एक बार को मुझे पढ़ने भी देते............लेकिन तीन बच्चों...........और वो भी लड़कियों को पढ़ाना............उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ना आसान बात नहीं थी!!!!!



"कउनो जर्रूरत नाहीं............का करी ई पढ़ी लिखी के??? चुपए घरे रही के काम धाम सीखो!!!" अम्मा अचानक से परकट होते हुए बोली| बप्पा की बातें सुन कर मुझे सच्चाई का पता चला था और मैं अब खुद भी नहीं चाहती थी की मैं पढूं इसलिए मैं सर झुका कर खामोश खड़ी थी……………..पर चरण काका मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख बोले................."हमार मुन्नी बहुत प्रतिभसाली है...........ओकरा का पढ़ाये खतिर हम दुनो जन मेहनत करब................अगर कल को जानकी और सोनी पढ़ा चाहियें तो उनका पढ़ाये खतिर हम दुनो जन और मेहनत करब...........आखिर माँ बाप केह का लिए जीयत हैं????? केह का लिए इतना मेहनत करत हैं???" मेरी पढ़ाई को ले कर घर में खिंचा तानी शुरू हो गई थी......................और आखिर में जीत पढ़ाई की हुई!!! गाँव में कोई लड़की स्कूल नहीं जाती थी..............ऐसे में सब लड़कों के बीच मैं अकेली कैसे पढ़ती???? तो ये तय हुआ की मैं अम्बाला में अपनी मौसी के घर रह कर पढूंगी..............वहां मेरी मौसेरी बहन भी रहती थी तो उसी के साथ मैं स्कूल जा सकती थी|
 

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अगली सुबह हुई तो माँ ने पड़ोस के लड़कों को भाईसाहब को खोज लाने के लिए लगा दिया....................मगर पूरा गॉंव छानने के बाद भी भाईसाहब का पता नहीं लगा!!!! भाईसाहब के गॉंव छोड़ कर जाने की खबर से मेरी अम्मा टूट गई थीं.....................जबकि बप्पा को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था| आस-पडोसी आकर भाईसाहब के बारे में पूछ रहे थे और बप्पा घर की इज्जत बचाने के लिए सभी से ये झूठ कह रहे थे की भाईसाहब की गुंडा गर्दी उन्हें बर्दश्त नहीं थी इसलिए उन्होंने भाईसाहब को घर से निकाल दिया!!!



सबने बप्पा को बहुत समझाया की वो अपना गुस्सा थूक दें..............पर बप्पा नहीं माने| बप्पा तो कठोर थे.................मगर अम्मा बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही थीं इसलिए सभी माँ को सांत्वना देने लगे| जब भाईसाहब का गुस्सा ठंडा होगा तो वो घर लौट आएंगे.................ये कहते हुए सभी अम्मा को ढांढस बंधा रहे थे| अम्मा पहले ही कमज़ोर थीं............जब सबने उन्हें झूठ दिलासा दिया तो वो सबकी बातों में आ गईं और उम्मीद करने लगीं की उनका बेटा एक न एक दिन वापस आएगा!


दिन बीतने लगे............. हम सबके जख्म भरने लगे..........और मेरे जीवन में आया नया मोड़!!!!!



मेरी गिनी चुनी सहेलियां थीं.................उनके साथ भी मैं बस अपने घर के आंगन में खेलती थी.................मैं सबसे बड़ी थी तो मेरे ऊपर जानकी और सोनी की जिम्मेदारी थी| मैं अगर खेल कूद में लग जाती तो ये दोनों भी मेरी तरह करतीं.................इसलिए अम्मा ने मुझे घर के कामों में लगा दिया| द्वार पछोना.................लिपाई..............गोबर से कंडे बनाना.............. सिलाई...........बुनाई.............बेना बनाना आदि के कामों में अम्मा ने मुझे लगाना शुरू कर दिया| जानकी थोड़ी बड़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने उसे भी मेरे साथ काम में लगा दिया..................बस एक सोनी थी जो कुछ नहीं नकारती थी और हम दोनों का काम करता देख हंसती रहती थी| धीरे धीरे अम्मा ने अपनी पाकशाला में मेरी भर्ती की और मुझे खाना पकाना सिखाने लगीं|



हमारे घर के ठीक सामने चरण काका का घर था..............चरण काका बप्पा के भाई समान दोस्त थे.................और माँ उनके लिए मुँहबोली बहन थीं| उन दिनों चरण काका की भतीजी................जिसे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करते थे...............वो अपने स्कूल की छुट्टियों में गॉंव आती थी……उसका नाम था मालती.............जब मालती आती तो वो अपने साथ अपनी स्कूल की किताबें ले कर आती| उन किताबों को देख मेरा दिल मचलने लगता.............मैं किसी भँवरे की तरह उन किताबों तक खींची जाती| किताबों में बनी वो तसवीरें देख कर मेरी आँखें ख़ुशी से टिमटिमाने लगती थीं! मेरे इस दीवानेपन को समझ मालती ने मुझे पढ़ाना शुरू किया.................. पढ़ाई के प्रति मेरा ये खिंचाव............मेरी लगन...........मेरे बहुत काम आया|



उस समय हमारे गॉंव में बस एक स्कूल था जो की मेरे घर से करीब ३ किलोमीटर दूर था..................ये वही स्कूल है जहाँ नेहा ने दूसरी क्लास तक पढ़ाई की थी| उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने के बारे में कोई नहीं सोचता था.............न ही कोई सरकारी योजना लड़कियों के पढ़ाने के लिए बनाई गई थी...............और अगर बनाई भी गई होगी तो हमारे गॉंव तक नहीं पहुंची थी| तब लड़कियों के पैदा होते ही माँ बाप उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ने लगते थे...............लड़की को पढ़ाने पर कौन खर्चा करता???



मैं जानती थी की मुझे कभी भी स्कूल में पढ़ने नहीं दिया जाएगा...........और अगर कहीं बप्पा को पता चला की मैं पढ़ना चाहती हूँ तो वो मुझे कूटेंगे अलग से इसलिए मैं और मालती चोरी छुपे पढ़ाई करते थे| हमार घर के पीछे एक खेत था जहाँ पर गूलर का पेड़ लगा था.............दोपहर को खाना खाने के बाद खेत सूनसान होता था इसलिए मैं और मालती पेड़ की छॉंव तले खटिया डाल कर बैठ जाते| मालती मुझे हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर बोलना सिखाती और मेरा हाथ पकड़ कर लिखना सिखाती| उन अक्षरों को बोलने और लिखने का सुख जादुई था............वो ख़ुशी ऐसी होती थी की लगता था की मानो मुझ में कोई शक्ति आ गई हो...........ऐसी शक्ति जिससे मैं किसी को भी हरा सकती हूँ| चंद अक्षरों को सीख कर ही मैं खुद को विद्वान समझने लगी थी...............ऐसा लगता था मानो मैं जनपदों की क्ष्रेणी से ऊपर उठ चुकी हूँ!!!





जैसा की हमारे लेखक साहब कहते हैं की हर अच्छी चीज कभी न कभी खत्म हो ही जाती है.............. वही मेरे साथ हुआ जब चरण काका ने हम दोनों को पढ़ते हुए देख लिया!!!!!





"हम नाहीं जानत रहन हमार मुन्नी पढ़े म इतना होसियार है!!!!" चरण काका मेरे सर पर हाथ रखते हुए बोले| चरण काका ने जब मेरी पढ़ाई की तारीफ की तो मालती फौरन बोली की कैसे मैं पढ़ने में बहुत तेज़ हूँ....................आज पहलीबार अपनी इस तारीफ को सुन कर मैं गदगद हो गई थी और ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी!!!!!!! मेरी पढ़ाई की तरफ लग्न देखते हुए चरण काका बोले की वो बप्पा से बात करेंगे................ये सुन कर मुझे लगा की मुझे भी स्कूल जाने को मिलेगा.................नतीजन मैंने स्कूल जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी|



मैंने ये नहीं सोचा की बप्पा मुझे पढ़ने देने के लिए कभी हाँ नहीं कहेंगे!





शाम के समय हम सब आंगन में बैठे थे..............बप्पा खेत से लौटे थे इसलिए वो सौथा रहे थे.............की तभी चरण काका आ पहुंचे| उन्होंने बप्पा को बताया की मैं मालती के साथ छुप कर पढ़ाई कर रही थी..................और मैं पढ़ाई में कितनी तेज़ हूँ की बिना स्कूल जाए ही मैंने आधी अंग्रजी वर्णमाला सीख ली है| बप्पा को मेरी ये उपलब्धि सुन कर ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई...............उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो दी ही नहीं और चरण काका से दूसरी बात करने लगे| जब आप लायक हो और आपके मा बाप इसकी कोई ख़ुशी न मनाएं तो जो चिढ़ मन में पैदा होती है.................वही चिढ़ मुझे हो रही थी| लग रहा था मानो मैं गलत घर में पैदा हो गई............मुझे तो मालती के घर में पैदा होना चाहिए था...............जहाँ उसके मा बाप कम से कम उसे पढ़ा तो रहे थे!!!



दोपहर को जो मैंने स्कूल जाने के सपने सजाये थे वो सारे टूट कर चकना चूर हो गए थे.............तब लग रहा था की अगर मेरे भाईसाहब होते तो वो बप्पा से लड़ कर मुझे स्कूल भेजते.............या फिर कम से कम वो मुझे अपने साथ ले जाते तो मैं स्कूल में पढ़ तो लेती!!!!! मुझे अपने भाईसाहब के यूँ स्वार्थी होने और मुझे अकेला छोड़ कर जाने पर गुस्सा आने लगा था................और मैं मन ही मन अपने भाईसाहब को कोस रही थी की क्यों वो मुझे अपने साथ नहीं ले कर गए| मैंने तब ये नहीं सोचा की भाईसाहब घर से अकेले निकले हैं.............पता नहीं वो कहाँ रह रहे होंगे........क्या खाते होंगें............कहाँ सोते होंगें............कैसे अपना अकेला गुज़ारा करते होंगें??????





खैर.............मैंने स्कूल जाने की उम्मीद छोड़ दी थी और अपने घर के कामों में लग गई थी| अगले दिन दोपहर को खाने के बाद मालती मुझे बुलाने आई................मैं जानती थी की वो मुझे पढ़ने के लिए बुलाने आई है मगर मेरा मन अब पढ़ने का नहीं था इसलिए मैंने जाने से मना कर दिया| मालती ने हार न मानते हुए मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर खेत में ले आई...................मुझे हिम्मत देने के लिए मालती बोली की मुझे पढ़ाई करना नहीं छोड़ना चाहिए| वो मुझे हिम्मत दे रही थी ताकि मैं अपने बप्पा से खुद पढ़ने देने की बात करूँ...............वो नहीं जानती थी की मेरे बप्पा कितने सख्त स्वभाव के हैं.............वो मुझे स्कूल में पढ़ने तो नहीं देते.............अलबत्ता मेरे कान पर एक धर जर्रूर देते!!!!! बप्पा के डर के मारे मैं बस न में सर हिलाये जा रही थी.................मुझ में ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी की मैं अपने बप्पा का सामना करूँ!!!!



उसी दिन शाम के समय चरण काका ने मुझे अपने पास बुलाया..............बप्पा थक कर पहुडे थे की तभी चरण काका ने मेरे पढ़ने की बात छेड़ी| मुझे लगा था की बप्पा इस बार भी इस बात पर गौर नहीं करेंगे..................पर इस बार बप्पा उठ कर बैठे और चरण काका से बोले "का करी ई का पढ़ाये के? आखिर करे का तो एकरा ब्याह है!............. और पइसवा कहाँ है हमरे लगे जो ई का पढ़ाई?...............फिर हमार दुइ ठो बच्चा और हैं..........कल को ऊ दुनो कईहैं की बप्पा हमहुँ स्कूल जाब तो हम कइसन तीनो बच्चा का पढ़ाब?" बप्पा की आवाज़ में एक गरीब पिता होने का दर्द था............अगर मेरे बप्पा के पास खूब सारा पैसा होता तो वो एक बार को मुझे पढ़ने भी देते............लेकिन तीन बच्चों...........और वो भी लड़कियों को पढ़ाना............उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ना आसान बात नहीं थी!!!!!



"कउनो जर्रूरत नाहीं............का करी ई पढ़ी लिखी के??? चुपए घरे रही के काम धाम सीखो!!!" अम्मा अचानक से परकट होते हुए बोली| बप्पा की बातें सुन कर मुझे सच्चाई का पता चला था और मैं अब खुद भी नहीं चाहती थी की मैं पढूं इसलिए मैं सर झुका कर खामोश खड़ी थी……………..पर चरण काका मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख बोले................."हमार मुन्नी बहुत प्रतिभसाली है...........ओकरा का पढ़ाये खतिर हम दुनो जन मेहनत करब................अगर कल को जानकी और सोनी पढ़ा चाहियें तो उनका पढ़ाये खतिर हम दुनो जन और मेहनत करब...........आखिर माँ बाप केह का लिए जीयत हैं????? केह का लिए इतना मेहनत करत हैं???" मेरी पढ़ाई को ले कर घर में खिंचा तानी शुरू हो गई थी......................और आखिर में जीत पढ़ाई की हुई!!! गाँव में कोई लड़की स्कूल नहीं जाती थी..............ऐसे में सब लड़कों के बीच मैं अकेली कैसे पढ़ती???? तो ये तय हुआ की मैं अम्बाला में अपनी मौसी के घर रह कर पढूंगी..............वहां मेरी मौसेरी बहन भी रहती थी तो उसी के साथ मैं स्कूल जा सकती थी|
दिल छू लेने वाली सच्चाई... ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को पढ़ाने में माता पिता गरीबी और दहेज ही नहीं, अकेली स्कूल जाने के लिए असुरक्षित माहौल और शादी के लिए पढ़े लिखे लड़कों की कमी जैसी भीषण समस्याओं के कारण भी मजबूर थे....
पूरी तरह तो नहीं लेकिन कमोवेश यही स्थिति लड़कों की पढ़ाई को लेकर भी थी, पैसे खर्च करके पढ़ने की बजाय काम करके पैसे कमाने और काम सीखने पर जोर था गुजर बसर करने वाले परिवारों में.......
मेरा बचपन इस दौर से गुजरा है... लेकिन मेरे परिवार का सामाजिक और आर्थिक स्तर ऐसे मजबूर परिवारों से बेहतर था... लेकिन ज्यादा नहीं... मैंने भी दसवीं के बाद खुद कमाकर ही पढ़ाई की
 

king cobra

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वो पूरी रात अम्मा अपने बेटे को याद कर कर रोती रहीं................वहीं मैं ये सोच रही थी की आखिर एक माँ अपने उस बेटे के जाने का दुःख क्यों मना रही हैं जिसने उनके ही सुहाग पर....................यानी अपने ही पिता पर हाथ उठाया हो!!!!!!!! अम्मा का अपने बेटे के प्रति ये मोह मुझे तब समझ में आया जब मैं माँ बनी.....................जब चन्दर मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आया था और आयुष को अपने साथ जबरदस्ती ले जाना चाहता था उस समय मुझे अम्मा का मोह समझ में आया था|



अगली सुबह हुई तो माँ ने पड़ोस के लड़कों को भाईसाहब को खोज लाने के लिए लगा दिया....................मगर पूरा गॉंव छानने के बाद भी भाईसाहब का पता नहीं लगा!!!! भाईसाहब के गॉंव छोड़ कर जाने की खबर से मेरी अम्मा टूट गई थीं.....................जबकि बप्पा को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था| आस-पडोसी आकर भाईसाहब के बारे में पूछ रहे थे और बप्पा घर की इज्जत बचाने के लिए सभी से ये झूठ कह रहे थे की भाईसाहब की गुंडा गर्दी उन्हें बर्दश्त नहीं थी इसलिए उन्होंने भाईसाहब को घर से निकाल दिया!!!



सबने बप्पा को बहुत समझाया की वो अपना गुस्सा थूक दें..............पर बप्पा नहीं माने| बप्पा तो कठोर थे.................मगर अम्मा बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही थीं इसलिए सभी माँ को सांत्वना देने लगे| जब भाईसाहब का गुस्सा ठंडा होगा तो वो घर लौट आएंगे.................ये कहते हुए सभी अम्मा को ढांढस बंधा रहे थे| अम्मा पहले ही कमज़ोर थीं............जब सबने उन्हें झूठ दिलासा दिया तो वो सबकी बातों में आ गईं और उम्मीद करने लगीं की उनका बेटा एक न एक दिन वापस आएगा!


दिन बीतने लगे............. हम सबके जख्म भरने लगे..........और मेरे जीवन में आया नया मोड़!!!!!



मेरी गिनी चुनी सहेलियां थीं.................उनके साथ भी मैं बस अपने घर के आंगन में खेलती थी.................मैं सबसे बड़ी थी तो मेरे ऊपर जानकी और सोनी की जिम्मेदारी थी| मैं अगर खेल कूद में लग जाती तो ये दोनों भी मेरी तरह करतीं.................इसलिए अम्मा ने मुझे घर के कामों में लगा दिया| द्वार पछोना.................लिपाई..............गोबर से कंडे बनाना.............. सिलाई...........बुनाई.............बेना बनाना आदि के कामों में अम्मा ने मुझे लगाना शुरू कर दिया| जानकी थोड़ी बड़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने उसे भी मेरे साथ काम में लगा दिया..................बस एक सोनी थी जो कुछ नहीं नकारती थी और हम दोनों का काम करता देख हंसती रहती थी| धीरे धीरे अम्मा ने अपनी पाकशाला में मेरी भर्ती की और मुझे खाना पकाना सिखाने लगीं|



हमारे घर के ठीक सामने चरण काका का घर था..............चरण काका बप्पा के भाई समान दोस्त थे.................और माँ उनके लिए मुँहबोली बहन थीं| उन दिनों चरण काका की भतीजी................जिसे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करते थे...............वो अपने स्कूल की छुट्टियों में गॉंव आती थी……उसका नाम था मालती.............जब मालती आती तो वो अपने साथ अपनी स्कूल की किताबें ले कर आती| उन किताबों को देख मेरा दिल मचलने लगता.............मैं किसी भँवरे की तरह उन किताबों तक खींची जाती| किताबों में बनी वो तसवीरें देख कर मेरी आँखें ख़ुशी से टिमटिमाने लगती थीं! मेरे इस दीवानेपन को समझ मालती ने मुझे पढ़ाना शुरू किया.................. पढ़ाई के प्रति मेरा ये खिंचाव............मेरी लगन...........मेरे बहुत काम आया|



उस समय हमारे गॉंव में बस एक स्कूल था जो की मेरे घर से करीब ३ किलोमीटर दूर था..................ये वही स्कूल है जहाँ नेहा ने दूसरी क्लास तक पढ़ाई की थी| उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने के बारे में कोई नहीं सोचता था.............न ही कोई सरकारी योजना लड़कियों के पढ़ाने के लिए बनाई गई थी...............और अगर बनाई भी गई होगी तो हमारे गॉंव तक नहीं पहुंची थी| तब लड़कियों के पैदा होते ही माँ बाप उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ने लगते थे...............लड़की को पढ़ाने पर कौन खर्चा करता???



मैं जानती थी की मुझे कभी भी स्कूल में पढ़ने नहीं दिया जाएगा...........और अगर कहीं बप्पा को पता चला की मैं पढ़ना चाहती हूँ तो वो मुझे कूटेंगे अलग से इसलिए मैं और मालती चोरी छुपे पढ़ाई करते थे| हमार घर के पीछे एक खेत था जहाँ पर गूलर का पेड़ लगा था.............दोपहर को खाना खाने के बाद खेत सूनसान होता था इसलिए मैं और मालती पेड़ की छॉंव तले खटिया डाल कर बैठ जाते| मालती मुझे हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर बोलना सिखाती और मेरा हाथ पकड़ कर लिखना सिखाती| उन अक्षरों को बोलने और लिखने का सुख जादुई था............वो ख़ुशी ऐसी होती थी की लगता था की मानो मुझ में कोई शक्ति आ गई हो...........ऐसी शक्ति जिससे मैं किसी को भी हरा सकती हूँ| चंद अक्षरों को सीख कर ही मैं खुद को विद्वान समझने लगी थी...............ऐसा लगता था मानो मैं जनपदों की क्ष्रेणी से ऊपर उठ चुकी हूँ!!!





जैसा की हमारे लेखक साहब कहते हैं की हर अच्छी चीज कभी न कभी खत्म हो ही जाती है.............. वही मेरे साथ हुआ जब चरण काका ने हम दोनों को पढ़ते हुए देख लिया!!!!!





"हम नाहीं जानत रहन हमार मुन्नी पढ़े म इतना होसियार है!!!!" चरण काका मेरे सर पर हाथ रखते हुए बोले| चरण काका ने जब मेरी पढ़ाई की तारीफ की तो मालती फौरन बोली की कैसे मैं पढ़ने में बहुत तेज़ हूँ....................आज पहलीबार अपनी इस तारीफ को सुन कर मैं गदगद हो गई थी और ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी!!!!!!! मेरी पढ़ाई की तरफ लग्न देखते हुए चरण काका बोले की वो बप्पा से बात करेंगे................ये सुन कर मुझे लगा की मुझे भी स्कूल जाने को मिलेगा.................नतीजन मैंने स्कूल जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी|



मैंने ये नहीं सोचा की बप्पा मुझे पढ़ने देने के लिए कभी हाँ नहीं कहेंगे!





शाम के समय हम सब आंगन में बैठे थे..............बप्पा खेत से लौटे थे इसलिए वो सौथा रहे थे.............की तभी चरण काका आ पहुंचे| उन्होंने बप्पा को बताया की मैं मालती के साथ छुप कर पढ़ाई कर रही थी..................और मैं पढ़ाई में कितनी तेज़ हूँ की बिना स्कूल जाए ही मैंने आधी अंग्रजी वर्णमाला सीख ली है| बप्पा को मेरी ये उपलब्धि सुन कर ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई...............उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो दी ही नहीं और चरण काका से दूसरी बात करने लगे| जब आप लायक हो और आपके मा बाप इसकी कोई ख़ुशी न मनाएं तो जो चिढ़ मन में पैदा होती है.................वही चिढ़ मुझे हो रही थी| लग रहा था मानो मैं गलत घर में पैदा हो गई............मुझे तो मालती के घर में पैदा होना चाहिए था...............जहाँ उसके मा बाप कम से कम उसे पढ़ा तो रहे थे!!!



दोपहर को जो मैंने स्कूल जाने के सपने सजाये थे वो सारे टूट कर चकना चूर हो गए थे.............तब लग रहा था की अगर मेरे भाईसाहब होते तो वो बप्पा से लड़ कर मुझे स्कूल भेजते.............या फिर कम से कम वो मुझे अपने साथ ले जाते तो मैं स्कूल में पढ़ तो लेती!!!!! मुझे अपने भाईसाहब के यूँ स्वार्थी होने और मुझे अकेला छोड़ कर जाने पर गुस्सा आने लगा था................और मैं मन ही मन अपने भाईसाहब को कोस रही थी की क्यों वो मुझे अपने साथ नहीं ले कर गए| मैंने तब ये नहीं सोचा की भाईसाहब घर से अकेले निकले हैं.............पता नहीं वो कहाँ रह रहे होंगे........क्या खाते होंगें............कहाँ सोते होंगें............कैसे अपना अकेला गुज़ारा करते होंगें??????





खैर.............मैंने स्कूल जाने की उम्मीद छोड़ दी थी और अपने घर के कामों में लग गई थी| अगले दिन दोपहर को खाने के बाद मालती मुझे बुलाने आई................मैं जानती थी की वो मुझे पढ़ने के लिए बुलाने आई है मगर मेरा मन अब पढ़ने का नहीं था इसलिए मैंने जाने से मना कर दिया| मालती ने हार न मानते हुए मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर खेत में ले आई...................मुझे हिम्मत देने के लिए मालती बोली की मुझे पढ़ाई करना नहीं छोड़ना चाहिए| वो मुझे हिम्मत दे रही थी ताकि मैं अपने बप्पा से खुद पढ़ने देने की बात करूँ...............वो नहीं जानती थी की मेरे बप्पा कितने सख्त स्वभाव के हैं.............वो मुझे स्कूल में पढ़ने तो नहीं देते.............अलबत्ता मेरे कान पर एक धर जर्रूर देते!!!!! बप्पा के डर के मारे मैं बस न में सर हिलाये जा रही थी.................मुझ में ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी की मैं अपने बप्पा का सामना करूँ!!!!



उसी दिन शाम के समय चरण काका ने मुझे अपने पास बुलाया..............बप्पा थक कर पहुडे थे की तभी चरण काका ने मेरे पढ़ने की बात छेड़ी| मुझे लगा था की बप्पा इस बार भी इस बात पर गौर नहीं करेंगे..................पर इस बार बप्पा उठ कर बैठे और चरण काका से बोले "का करी ई का पढ़ाये के? आखिर करे का तो एकरा ब्याह है!............. और पइसवा कहाँ है हमरे लगे जो ई का पढ़ाई?...............फिर हमार दुइ ठो बच्चा और हैं..........कल को ऊ दुनो कईहैं की बप्पा हमहुँ स्कूल जाब तो हम कइसन तीनो बच्चा का पढ़ाब?" बप्पा की आवाज़ में एक गरीब पिता होने का दर्द था............अगर मेरे बप्पा के पास खूब सारा पैसा होता तो वो एक बार को मुझे पढ़ने भी देते............लेकिन तीन बच्चों...........और वो भी लड़कियों को पढ़ाना............उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ना आसान बात नहीं थी!!!!!



"कउनो जर्रूरत नाहीं............का करी ई पढ़ी लिखी के??? चुपए घरे रही के काम धाम सीखो!!!" अम्मा अचानक से परकट होते हुए बोली| बप्पा की बातें सुन कर मुझे सच्चाई का पता चला था और मैं अब खुद भी नहीं चाहती थी की मैं पढूं इसलिए मैं सर झुका कर खामोश खड़ी थी……………..पर चरण काका मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख बोले................."हमार मुन्नी बहुत प्रतिभसाली है...........ओकरा का पढ़ाये खतिर हम दुनो जन मेहनत करब................अगर कल को जानकी और सोनी पढ़ा चाहियें तो उनका पढ़ाये खतिर हम दुनो जन और मेहनत करब...........आखिर माँ बाप केह का लिए जीयत हैं????? केह का लिए इतना मेहनत करत हैं???" मेरी पढ़ाई को ले कर घर में खिंचा तानी शुरू हो गई थी......................और आखिर में जीत पढ़ाई की हुई!!! गाँव में कोई लड़की स्कूल नहीं जाती थी..............ऐसे में सब लड़कों के बीच मैं अकेली कैसे पढ़ती???? तो ये तय हुआ की मैं अम्बाला में अपनी मौसी के घर रह कर पढूंगी..............वहां मेरी मौसेरी बहन भी रहती थी तो उसी के साथ मैं स्कूल जा सकती थी|
Good update school Jane ko milega khusi hui jaankar kuch padhai likhai ho jayegi magar afsoos is chandar ki entry me hoga sasur ye bekaar aadmi zindgi ma ghus gawa aakar
 
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Good update school Jane ko milega khusi hui jaankar kuch padhai likhai ho jayegi magar afsoos is chandar ki entry me hoga sasur ye bekaar aadmi zindgi ma ghus gawa aakar
.....................अभी उसकी एंट्री होने में बहुत देर है...............अभी तो मुझे आपको अपने स्कूल के दिनों के बारे में बताना है...............मेरी एकलौती सखी...............जो की हमारी नैना जैसी थी................उसके बारे में बताना है...............वैसे किसी को पता है की नैना कहाँ है??????
 
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दिल छू लेने वाली सच्चाई... ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को पढ़ाने में माता पिता गरीबी और दहेज ही नहीं, अकेली स्कूल जाने के लिए असुरक्षित माहौल और शादी के लिए पढ़े लिखे लड़कों की कमी जैसी भीषण समस्याओं के कारण भी मजबूर थे....
पूरी तरह तो नहीं लेकिन कमोवेश यही स्थिति लड़कों की पढ़ाई को लेकर भी थी, पैसे खर्च करके पढ़ने की बजाय काम करके पैसे कमाने और काम सीखने पर जोर था गुजर बसर करने वाले परिवारों में.......
मेरा बचपन इस दौर से गुजरा है... लेकिन मेरे परिवार का सामाजिक और आर्थिक स्तर ऐसे मजबूर परिवारों से बेहतर था... लेकिन ज्यादा नहीं... मैंने भी दसवीं के बाद खुद कमाकर ही पढ़ाई की
सही कहा.................उन दिनों हालत ऐसे थे..............आज भी कई लोग अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाते क्योंकि उनके हालत ठीक नहीं होते..............पैसे के तौर पर.............वैसे भाईसाहब................इस अपडेट पर तो आपने फट से रिव्यु दे दिया.................पिछली अपडेट का क्या?????? :girlmad:
 

Rekha rani

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Awesome update,
आपने अपने बालमन में अपने भाई साहब के प्रति एक छवि बना ली। जिसके कारण आपको अपनी माताजी के परेशनी का कारण समझ नही आया , एक माँ के लिए अपनी संतान चाहे जैसी भी हो उसके लिए मोह खत्म नही होता, एक माँ की मजबूरी रहती है कि संतान मोह हमेशा पतिव्रता नारी के आगे हार जाती है,
शिक्षा के प्रति मोह आपके मन मे बचपन से रहा और मालती से आपने बिना स्कूल जाए शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की।
एक गरीब परिवार में लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान बहुत कम दिया जाता है, और गावो में तो वैसे भी शिक्षा पर ध्यान नही दिया जाता था पहले , आपके पिताजी अपनी माली हालत के कारण अपने बच्चों को नही पढा पा रहे थे, एक गरीब परिवारिक माहौल का आपने बहुत सटीक वर्णन किया है,
चरण काका के प्रयास से अब आपके जीवन का नया अध्याय शुरू हो रहा है स्कूल में पढ़ाई के रूप में।
 

king cobra

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.....................अभी उसकी एंट्री होने में बहुत देर है...............अभी तो मुझे आपको अपने स्कूल के दिनों के बारे में बताना है...............मेरी एकलौती सखी...............जो की हमारी नैना जैसी थी................उसके बारे में बताना है...............वैसे किसी को पता है की नैना कहाँ है??????
ban thi wo unban ho gayi tag karte raho online aayi to darshan ho jayegen meri pyari golu molu dost hai wo bahut saitani karti hai
 

rajvtt

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आप जिस समय की बात कह रहीं हैं, वह समय लड़कियों के शिक्षा के लिए कठिन था पर आप सफल रहीं, ये सबसे बड़ी बात है
मानु जी, आपकी कमी खल रही है, अगर आप इसे पढ़ रहें हैं तो मोस्ट वेलकम मित्र, फोरम अधूरा लगता है
 

kamdev99008

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सही कहा.................उन दिनों हालत ऐसे थे..............आज भी कई लोग अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाते क्योंकि उनके हालत ठीक नहीं होते..............पैसे के तौर पर.............वैसे भाईसाहब................इस अपडेट पर तो आपने फट से रिव्यु दे दिया.................पिछली अपडेट का क्या?????? :girlmad:
पहले और आज के समय में बहुत बदलाव आ चुका है.... आज सरकार खुलकर सुविधा और पैसा बांट रही है... मैं भी सरकारी स्कूल व कॉलेज में पढ़ा हूँ जो आज फ्री हैं लेकिन तब आम आदमी की हैसियत से ज्यादा महंगे थे.... 1980-85 में 2 रू 55 पैसे... 1985-90 में 3 रू 50 पैसे... 1990-96 में 15-20 रूपये और 1997-2000 में 100 रू. महीना फीस दी है मैंने सरकारी स्कूल-कॉलेज में... जो बहुत से लोगों खासकर गाँव देहात में सबके बस की बात नहीं थी... 20 पैसे से 2 रूपये किलो के भाव का गेहूँ बेचकर बच्चों को पालने वाले किसान के लिए
अब की महंगाई और कमाई/आमदनी के हिसाब से तो 100 गुना होती... लेकिन अब सब फ्री /नाममात्र को है और फीस से ज्यादा सरकारी योजनाओं में मिल जाता है वापस.... 30 रू किलो का गेहूँ और 60 रू किलो की सरसों बेचने वाले को
फिर भी ना पढ़ सकने वाले कहीं ना कहीं... स्वयं भी जिम्मेदार हैं
 
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king cobra

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Abhi meri samjh ma ye noi aa raha ki jab manu bhai likh raha tha tab to wo kya bolte unko ab to bhabhi bolna hi hoga badi hain mese to wo sath rahi puri story me bhale hi unhone sabki baten suni last me aur usko svikaar bhi kar liya lekin abhi jab wo story suna rahi to ye Manu bhai gayab hui gawa iska matlab kya hai :confused:
 
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