मां का दूध छुड़वाने से चुस्वाने तक का सफर : पार्ट 11
मां करीब एक मिनट तक यूंही घोड़ी बनकर सोफे के फटने का निशान ढूंढती रही और मैं उनकी सफेद पजामी से चमकती काली झांटों और उस भूरे रंग के मस्त छेद को देखकर हैरान सा खड़ा रहा के एक दम मां ने कहा : गोलू बेटा, मिला क्या तुझे वो फटने का निशान सोफे पर कहीं?
मैं पहले तो चुपचाप खड़ा रहा फिर हल्का सा मुस्कुराया और बोला : हां मां, मिल गया।
मां : कहा हैं?
मैं: रुको एक मिनट , अभी आया मैं, आप ऐसे नीचे ही रहना।
मां : कहां जा रहा है?
मैं: रुको तो आप
मैं अपने रूम में गया और एक बड़ा सा शीशा उठा कर लाया और मां से बोला : मां, वो निशान सिर्फ इसमें दिख सकता है आपको।
मां : मतलब?
मैं मां के घोड़ी बने बने ही उनकी गांड़ के पीछे शीशा रख कर बोला : मां, अब सिर्फ थोड़ा सा घूमकर शीशे में देखना।
मां थोड़ा ज्यादा ही घूमी और उनके घूमने से उनकी गांड़ शीशे में उन्हे नहीं दिखाई दी और बोली: क्या देखू, क्या कह रहा है तू, शीशे में केसे दिखेगा सोफे के फटने का निशान।
मैं हस्ते हुए : ओहो मां, आप भी ना, आप पहले की तरह झुको दूसरी तरफ।
मां फट से फिर से घोड़ी की पोजीशन में हो गई और बोली : क्या कर रहा है तु , तुझे दिखा भी है कुछ या नहीं?
मैंने फिर शीशा अच्छे से रखा एकदम सेट करके और बोला : अब हल्का सा अपना चेहरा घुमाओ, कमर मत घुमाना।
मां ने जैसे ही अपना चेहरा घुमाकर थोड़ी सी आंखे नीचे करके शीशे में देखा के एकदम हैरान होते हुए उठी और बोली : हे भगवान ये क्या?
मैं हसने लगा और बोला : मां, आपको वो कपड़ा फटने की आवाज सोफे से नहीं पजामी में से आई थी शायद, देखो तो कितनी ज्यादा फट गई है और उसमे से बाल.......
ये कहते ही मैं चुप हो गया और मां एकदम बोल पड़ी : क्या बाल ,क्या लुच्चे कहीं के।
तु पिछले 2 मिनट से इसे देखता रहा और मुझे सीधा सीधा बता नहीं सकता था के मां आपकी पजामी फट गई है पीछे से।
में फिर हसने लगा और बोला : बताने से अच्छा मैनें सोचा आपको दिखा ही दूं, कहां से और कितनी फटी है।
मां : चुप कर, तेरे चक्कर में मेरी पजामी फट गई, ना तु सोफे पर से कूदता, ना ही मैं तेरे पीछे कूदती।
मैं: हां, पर मैनें तो नहीं कहा था आपसे मेरे पीछे कूदने को।
मां ने एकदम मुझे पकड़ लिया और सोफे वाला पिल्लो उठाकर मारते हुए बोली : लुच्चे कहीं के, क्या कहकर भागा था उस वक्त।
मैं मां से खुदको फिर बचाने लगा और हंसते हंसते बोला : क्या, मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था।
मां : क्या कुछ भी नहीं कहा था, वो कोन बोला था के मूझसे बच्चे करवालो और वो भी अपने, कुत्ते कहीं के, ज्यादा बिगड़ गया है तु मेरे लाड प्यार से।
मैं हस्ते हस्ते उनके पिल्लो की मार खाते खाते बोला : हां, तो ,मत करवाना आप, सिर्फ दूध ही पिला दो।
मां इस बात पर हल्की सी हंसी और अब प्यार से हल्का हल्का मारते हुए बोली : बिलकुल बचपन की तरह जिद्द कर रहा है दूध पीने के लिए , क्या करूं तेरा अब।
इतने में मैं कुछ बोलता के घर की डोर बैल बजी और पड़ोस वाली दीदी की आवाज आई : आंटी, आप आ गए क्या, खोलना गेट मैं हूं।
मां भी एकदम से उठी और गेट खोलने चली गई ये भूलकर के उनकी पजामी पीछे से कितनी ज्यादा फट चुकी है। मां ने गेट खोला और बोली : अरे आओ बेटा।
दीदी : आंटी आपसे एक काम था।
मां: हां, मैं तुम्हे फोन करने ही वाली थी वो सुबह भी तुम आई थी, तुम बैठो मैं पानी लेकर आती हूं।
मां जैसे ही मुड़ने लगी के मैं मां के पास गया और धीमे से बोला : मां...
मां: हां, क्या?
मैं: मां मुड़ना मत आप एक दम।
मां : क्यूं?
मैं: आप भूल भी गई क्या?...आपकी पजामी पीछे से फटी है और एकदम वो काला काला उसमे से चमक रहा है, दीदी ने देखा तो?
मां : ओ हां, तेरी पिटाई के चक्कर में मैं ये तो भूल ही गई थी।
मैं: हां, तो आप धीरे धीरे मूड के चलो, मैं आपके पीछे खड़ा होकर दीदी को आपको देखने से रोकता हूं।
मां : हां, ठीक है।
मां फिर धीरे से मुड़कर किचन की और जाने लगी और मैं दीदी की आखों के सामने खड़ा होकर उनसे बात करने लगा और जैसे ही मां किचन में पहुंची मैं भी किचन में घुस गया और बोला : दीदी ने नहीं देखा मां।
मां : हां, थैंक्यू गोलू। वैसे ज्यादा फट गया है क्या?
मैं: हां मां, फटा तो इतना भी नहीं है पर वो सफेद पजामी में काला रंग साफ चमक रहा है ना तो आप हल्का सा भी अगर झुके तो कोई भी देख लेगा।
मां : काला सा रंग , क्या ?
मैं: मां , वो आपकी झा......मेरा मतलब आपके पीछे बाल साफ साफ उसमे से चमक रहे हैं।
मां हल्का सा शर्म से : ओ, अब क्या करूं, अब अगर पजामी बदलू तो वो सोचेगी के अभी आंटी ने सफेद डाली थी अब अचानक से बदल के क्यूं आ गई।
मैं: हां मां, वो तो कोई भी सोचेगा ही।
मां : अब क्या करू, तु कुछ बता गोलू।
मैं सोचने लगा और मन में ख्याल आया के इस मौके का फायदा उठाया जाए और उनकी गांड़ पर एक उंगली लगाकर क्यूं ना थोड़ा सा अभी स्वाद चखा जाए।
मैनें सोच कर मां से कहा : मां, एक तरीका है, मेरे पास ये सफेद रुमाल है और इसे वहा लगा देता हूं , जब दीदी चली जाएगी, तब आप इसे निकाल लेना और कपड़े चेंज कर लेना।
मां सोच के : हां, ये ठीक है।
इतने में दीदी की आवाज आई : आंटी..
मां : आई बेटा एक मिनट।
मां : जल्दी कर गोलू।
मैनें जेब से रुमाल निकाला और बोला : मां, घूमो मैं लगा देता हूं।
मां ने भी कोई रोक टोक नहीं की ओर फट से घूम गई और बोली : लगा दे जल्दी से।
मैं वो गांड़ देख कर हल्का सा सहम गया और बोला : थोड़ा सा झुको ना मां, ऐसे लगेगा नहीं।
मां फिर किचन की स्लैब पर हाथ रखकर हल्का सा झुकी और मैनें उस मौके का फायदा उठा कर रुमाल को खोल कर अपनी एक उंगली पे चढ़ाकर मस्त होते हुए मां की गांड़ के छेद में उतार दिया जिस से मां एक दम सिसक सी उठी और उनके मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई और मां की आह को सुनके मैं बोला : क्या हुआ मां।
मां : कुछ ..कुछ... कुछ नहीं, जल्दी कर तु।
मैं: हां बस हो गया।
मैनें एक थोड़ा सा हिस्सा उनकी छेद में और बाकी के रुमाल से उनकी झांटों को ढकते हुए पजामी के फटे हुए हिस्से में छुपा दिया। अब दूर से देखने पर नहीं पता चल रहा था के पजामी फटी है या नहीं, पर अगर पास से कोई भी देखता तो पता चल ही जाता के वो दोनो अलग अलग कपड़े हैं। मां फट से कपड़ा डालते ही सीधी हुई और पानी का गिलास लेकर किचन से बाहर चली गई और बोली : वो बेटा, बरतन गंदे पड़े थे सारे तो बस वक्त लग गया।
दीदी : कोई बात नहीं आंटी।
मां : हां, बोलो क्या काम था तुम्हे?