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Romance मां का "दूध छुड़वाने से चुसवाने" तक का सफर

Mosi ka Number lagaya jaaye ya nahi?


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Ha bhai..incest hi h..vo starting m galti se romance dal gya ...uske baad change nahi ho rha....tumhe pata ho to batana mujhe ..kese hoga
Bhai... Mom and son love sex romance and adventure he rakho.... Mausi ko add kar ke khidi mat banao please 🙏🙏🙏🙏
 

sahilgarg6065

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मां का दूध छुड़वाने से चुस्वाने तक का सफर : पार्ट 11

मां करीब एक मिनट तक यूंही घोड़ी बनकर सोफे के फटने का निशान ढूंढती रही और मैं उनकी सफेद पजामी से चमकती काली झांटों और उस भूरे रंग के मस्त छेद को देखकर हैरान सा खड़ा रहा के एक दम मां ने कहा : गोलू बेटा, मिला क्या तुझे वो फटने का निशान सोफे पर कहीं?
मैं पहले तो चुपचाप खड़ा रहा फिर हल्का सा मुस्कुराया और बोला : हां मां, मिल गया।
मां : कहा हैं?
मैं: रुको एक मिनट , अभी आया मैं, आप ऐसे नीचे ही रहना।
मां : कहां जा रहा है?
मैं: रुको तो आप
मैं अपने रूम में गया और एक बड़ा सा शीशा उठा कर लाया और मां से बोला : मां, वो निशान सिर्फ इसमें दिख सकता है आपको।
मां : मतलब?
मैं मां के घोड़ी बने बने ही उनकी गांड़ के पीछे शीशा रख कर बोला : मां, अब सिर्फ थोड़ा सा घूमकर शीशे में देखना।
मां थोड़ा ज्यादा ही घूमी और उनके घूमने से उनकी गांड़ शीशे में उन्हे नहीं दिखाई दी और बोली: क्या देखू, क्या कह रहा है तू, शीशे में केसे दिखेगा सोफे के फटने का निशान।
मैं हस्ते हुए : ओहो मां, आप भी ना, आप पहले की तरह झुको दूसरी तरफ।
मां फट से फिर से घोड़ी की पोजीशन में हो गई और बोली : क्या कर रहा है तु , तुझे दिखा भी है कुछ या नहीं?
मैंने फिर शीशा अच्छे से रखा एकदम सेट करके और बोला : अब हल्का सा अपना चेहरा घुमाओ, कमर मत घुमाना।
मां ने जैसे ही अपना चेहरा घुमाकर थोड़ी सी आंखे नीचे करके शीशे में देखा के एकदम हैरान होते हुए उठी और बोली : हे भगवान ये क्या?
मैं हसने लगा और बोला : मां, आपको वो कपड़ा फटने की आवाज सोफे से नहीं पजामी में से आई थी शायद, देखो तो कितनी ज्यादा फट गई है और उसमे से बाल.......
ये कहते ही मैं चुप हो गया और मां एकदम बोल पड़ी : क्या बाल ,क्या लुच्चे कहीं के।
तु पिछले 2 मिनट से इसे देखता रहा और मुझे सीधा सीधा बता नहीं सकता था के मां आपकी पजामी फट गई है पीछे से।
में फिर हसने लगा और बोला : बताने से अच्छा मैनें सोचा आपको दिखा ही दूं, कहां से और कितनी फटी है।
मां : चुप कर, तेरे चक्कर में मेरी पजामी फट गई, ना तु सोफे पर से कूदता, ना ही मैं तेरे पीछे कूदती।
मैं: हां, पर मैनें तो नहीं कहा था आपसे मेरे पीछे कूदने को।
मां ने एकदम मुझे पकड़ लिया और सोफे वाला पिल्लो उठाकर मारते हुए बोली : लुच्चे कहीं के, क्या कहकर भागा था उस वक्त।
मैं मां से खुदको फिर बचाने लगा और हंसते हंसते बोला : क्या, मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था।
मां : क्या कुछ भी नहीं कहा था, वो कोन बोला था के मूझसे बच्चे करवालो और वो भी अपने, कुत्ते कहीं के, ज्यादा बिगड़ गया है तु मेरे लाड प्यार से।
मैं हस्ते हस्ते उनके पिल्लो की मार खाते खाते बोला : हां, तो ,मत करवाना आप, सिर्फ दूध ही पिला दो।
मां इस बात पर हल्की सी हंसी और अब प्यार से हल्का हल्का मारते हुए बोली : बिलकुल बचपन की तरह जिद्द कर रहा है दूध पीने के लिए , क्या करूं तेरा अब।
इतने में मैं कुछ बोलता के घर की डोर बैल बजी और पड़ोस वाली दीदी की आवाज आई : आंटी, आप आ गए क्या, खोलना गेट मैं हूं।
मां भी एकदम से उठी और गेट खोलने चली गई ये भूलकर के उनकी पजामी पीछे से कितनी ज्यादा फट चुकी है। मां ने गेट खोला और बोली : अरे आओ बेटा।
दीदी : आंटी आपसे एक काम था।
मां: हां, मैं तुम्हे फोन करने ही वाली थी वो सुबह भी तुम आई थी, तुम बैठो मैं पानी लेकर आती हूं।
मां जैसे ही मुड़ने लगी के मैं मां के पास गया और धीमे से बोला : मां...
मां: हां, क्या?
मैं: मां मुड़ना मत आप एक दम।
मां : क्यूं?
मैं: आप भूल भी गई क्या?...आपकी पजामी पीछे से फटी है और एकदम वो काला काला उसमे से चमक रहा है, दीदी ने देखा तो?
मां : ओ हां, तेरी पिटाई के चक्कर में मैं ये तो भूल ही गई थी।
मैं: हां, तो आप धीरे धीरे मूड के चलो, मैं आपके पीछे खड़ा होकर दीदी को आपको देखने से रोकता हूं।
मां : हां, ठीक है।
मां फिर धीरे से मुड़कर किचन की और जाने लगी और मैं दीदी की आखों के सामने खड़ा होकर उनसे बात करने लगा और जैसे ही मां किचन में पहुंची मैं भी किचन में घुस गया और बोला : दीदी ने नहीं देखा मां।
मां : हां, थैंक्यू गोलू। वैसे ज्यादा फट गया है क्या?
मैं: हां मां, फटा तो इतना भी नहीं है पर वो सफेद पजामी में काला रंग साफ चमक रहा है ना तो आप हल्का सा भी अगर झुके तो कोई भी देख लेगा।
मां : काला सा रंग , क्या ?
मैं: मां , वो आपकी झा......मेरा मतलब आपके पीछे बाल साफ साफ उसमे से चमक रहे हैं।
मां हल्का सा शर्म से : ओ, अब क्या करूं, अब अगर पजामी बदलू तो वो सोचेगी के अभी आंटी ने सफेद डाली थी अब अचानक से बदल के क्यूं आ गई।
मैं: हां मां, वो तो कोई भी सोचेगा ही।
मां : अब क्या करू, तु कुछ बता गोलू।
मैं सोचने लगा और मन में ख्याल आया के इस मौके का फायदा उठाया जाए और उनकी गांड़ पर एक उंगली लगाकर क्यूं ना थोड़ा सा अभी स्वाद चखा जाए।
मैनें सोच कर मां से कहा : मां, एक तरीका है, मेरे पास ये सफेद रुमाल है और इसे वहा लगा देता हूं , जब दीदी चली जाएगी, तब आप इसे निकाल लेना और कपड़े चेंज कर लेना।
मां सोच के : हां, ये ठीक है।
इतने में दीदी की आवाज आई : आंटी..
मां : आई बेटा एक मिनट।
मां : जल्दी कर गोलू।
मैनें जेब से रुमाल निकाला और बोला : मां, घूमो मैं लगा देता हूं।
मां ने भी कोई रोक टोक नहीं की ओर फट से घूम गई और बोली : लगा दे जल्दी से।
मैं वो गांड़ देख कर हल्का सा सहम गया और बोला : थोड़ा सा झुको ना मां, ऐसे लगेगा नहीं।
मां फिर किचन की स्लैब पर हाथ रखकर हल्का सा झुकी और मैनें उस मौके का फायदा उठा कर रुमाल को खोल कर अपनी एक उंगली पे चढ़ाकर मस्त होते हुए मां की गांड़ के छेद में उतार दिया जिस से मां एक दम सिसक सी उठी और उनके मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई और मां की आह को सुनके मैं बोला : क्या हुआ मां।
मां : कुछ ..कुछ... कुछ नहीं, जल्दी कर तु।
मैं: हां बस हो गया।
मैनें एक थोड़ा सा हिस्सा उनकी छेद में और बाकी के रुमाल से उनकी झांटों को ढकते हुए पजामी के फटे हुए हिस्से में छुपा दिया। अब दूर से देखने पर नहीं पता चल रहा था के पजामी फटी है या नहीं, पर अगर पास से कोई भी देखता तो पता चल ही जाता के वो दोनो अलग अलग कपड़े हैं। मां फट से कपड़ा डालते ही सीधी हुई और पानी का गिलास लेकर किचन से बाहर चली गई और बोली : वो बेटा, बरतन गंदे पड़े थे सारे तो बस वक्त लग गया।
दीदी : कोई बात नहीं आंटी।
मां : हां, बोलो क्या काम था तुम्हे?
 

sahilgarg6065

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मां का दूध छुड़वाने से चुस्वाने तक का सफर : पार्ट 12
मैं मां के किचन से बाहर जाते ही उनकी गांड़ में डाली हुई उंगली को चाटने लगा। और मुझे उस उंगली को चाटकर ऐसा एहसास हुआ जैसे उनकी गांड़ चाटने को मिल गई हो। उंगली को चाटते चाटते में उस सीन को याद करने लगा जो अभी एक पल पहले ही मेरे साथ हुआ। मां की वो मस्त गांड़ में उंगली डालने का मोका तो मानों मेरे रोंगटे से खड़े कर गया। फिर मैं किचन से बाहर निकलकर सोफे पर जा बैठा और मां और दीदी की बाते सुनने लगा।
दीदी : वो आंटी, आपने जो मिर्ची वाला तरीका बताया था ना।
मां : हां, वो ट्राई किया तूने।
दीदी : नहीं आंटी अभी नहीं, बस वही पूछना था के मिर्ची कितनी और कैसे लगानी है। मैनें मां से भी पूछा पर उन्हे इसका पता नहीं था तो उन्होंने कहा के मैं एक बार आपसे ही पूछ लूं। कहीं ज्यादा लग गई तो बच्चे को नुक्सान ना हो , बस इसलिए ही आपके पास चली आई।
मां : हां तो ठीक किया, मैं बता देती हूं , उसमे क्या है।
दीदी : आंटी मैं मिर्ची भी लाई हूं साथ में तो आप बता दोगे कितनी लगानी है एक बार फिर मैं वैसे ही लगा लिया करूंगी।
मां : हां ठीक है, चल आजा कमरे में चलते हैं , मैं बता देती हूं।
मां उसे लेकर अपने कमरे में जाने लगी और दरवाजे तक पहुंची ही थी के मैनें उन्हे आवाज लगाई : मां, सुनो तो एक बार।
मां ने उसे अपने कमरे में बिठाया और मेरे पास आकर : क्या हुआ?
मैं: मां , ध्यान रखना कहीं कपड़ा निकल ना जाए वो।
मां : हां ध्यान रखूंगी, देख तो एक बार सही तरह तो लगा है ना, पता तो नहीं चल रहा ना।
मां ये कहते ही कमरे की ओर देखते हुए मेरी तरफ गांड़ करके मूड गई और हल्का सा हिली। मैं भी देखने के बहाने से मां की गांड़ पर हल्का हाथ रखते हुए बोला : नहीं मां, बिलकुल सही है।
मां : ठीक है , तु टीवी देख मैं आती हूं।
मैं: ओके मां।
मां फिर कमरे में चली गई और मैं लन्ड खुजाते खुजाते टीवी देखने लगा। करीब 15-20 मिनट बाद गेट खुला और दीदी बाहर आई और बोली : ठीक है आंटी चलती हूं।
मां : रुक एक मिनट, मैं आती हूं।
मां बाथरूम करने चली गई और फिर आकर बोली : अरे बैठ ना , मैं चाय बनाती हूं, पीकर जाना।
दीदी : नहीं आंटी फिर कभी आऊंगी, चलती हूं।
मां : ठीक है, कुछ ना समझ आए तो दोबारा पूछ लेना।
दीदी : ठीक है आंटी, थैंक्यू।
फिर दीदी वहां से चली गई और मां मेरे पास आई और बोली : गोलू बेटा, सुन तो।
मैं: हां मां, बोलो।
मां हल्का सा मुस्कान देते हुए : तु कल से जिद्द कर रहा है ना कुछ पीने की, तो सोच रहीं हूं तुझे पिला ही दूं।
मैं मां के मुंह से ये सुनकर खुश और हैरान दोनो हो गया और एकदम बोला : सच्ची मां?
मां : हां सच मुच।
मैं सोचने लगा के ये मां को क्या हो गया एक दम से, क्या उनकी गांड़ में उंगली डाली उस से हुआ ये या फिर दीदी ने अंदर कमरे में कुछ खेल खेल लिया मां के साथ जो मां अपने आप मुझे दूध पिलाने के लिए बुला रही है।
मैं बोला : पिलाओ मां।
मां मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने कमरे में ले गई और मुझे बेड पर बिठा कर खिड़की के सभी परदे लगा दिए। परदे लगाने के बाद उन्होंने कमरे की लाइट भी भुजा दी जिसे देख मेरे मन में आया के शायद मां मुझे अंधेरे में दूध पिलाना चाहती है। और शर्मा रही है।
मैं सोचने लगा के " मां कोई बात नहीं, पहली बार शर्माओगी तभी तो बाद में मजे से दूध पिलाओगी"।
फिर मां बैड पर आई और बैठ कर मेरे सर को अपनी गोद में रख कर बोली : मेरे बच्चे को भूख लगी है, दूदू पीना है मम्मा का।
मैं भी मजे में मां की टोन में ही बोला : हां मम्मा, मुझे भूख लगी है , दूदू पीना है।
मां ने इतना सुनते ही धीरे से अपनी कमीज ऊपर की ओर उठाई और मेरे मुंह को खुलते देख रुक कर हस्ते हुए बोली : देखो तो कितना उतावला है मेरा बेटा, मेरे दूध पीने के लिए।
मैं भी हस्त हुआ: हां मां, बहुत ज्यादा।
फिर मां ने धीरे धीरे अपनी कमीज ऊपर करके , ब्रा को थोड़ा सा साइड किया और उस हल्की सी रोशनी में अपना एक बूब निकाल कर मेरे मुंह में खप से करके दे दिया। मां के सॉफ्ट बूब्स को अपने मुंह में पाकर मैं मन ही मन तो बहुत खुश हुआ पर अचानक से उसी पल मेरी गांड़ फट गई।
मां ने अपने उस चूचे पर इतनी ज्यादा मिर्ची लगा रखी थी के किसी की भी मिर्च लगने से गांड़ फट जाए। मैनें तुरंत ही अपने मुंह से उस चूचे को बाहर निकाला और मां उठ कर वहा से हस्ते हुए भाग खड़ी हुई
 

sahilgarg6065

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मां का दूध छुड़वाने से चुस्वाने तक का सफर : पार्ट 13

मैं किचन की और दौड़ा और पानी की बॉटल उठाकर एक ही सांस में खत्म कर गया और मिर्ची से हाफने लगा के मां किचन के गेट पर खड़ी होकर हस्ती हुई बोली : अब मजा आया बच्चू, मुझे पता था तु, ऐसे कहने से तो मानेगा नही, तो बचपन वाला तरीका ही अपनाना पड़ा।
मुझे पानी पीकर थोड़ी सी राहत पहोची और मैं मां से : मां , आपने गलत किया ये, कोई अपने बेटे को इतनी मिर्ची खिलाता है क्या?...मेरा मुंह जला दिया आपने।
मां: और जो मेरा इस जिद्द से खून जला रहा है तु, उसका क्या।
मैं: रुको अभी बताता हूं आपको।
मां फट से बाहर की ओर भाग कर गैलरी में चली गई और यहां वहा भागने के बाद मां थक कर बोली : बस कर गोलू अब,शांत बैठ जा। सुबह तूने मुझे दौड़ाया और अब मैनें तुझे। हिसाब बराबर।
मैं: ऐसे कैसे मां।
फिर हम दोनो अंदर की ओर गए और सोफे पर बैठकर मां हसने लगी और बोली : कैसी रही गोलू बेटा।
मैं: क्यूं किया आपने ऐसा?
मां : तेरी जिद्द छुड़ाने के लिए।
मैं: ये भी कोई तरीका है मां। आपने तो दीदी को बताने वाला नुस्खा मुझपर ही आजमा दिया।
मां : हां सॉरी सॉरी, वो बस मजाक में हो गया, शायद ज्यादा मिर्ची लगा दी थी मैनें।
मैं: और नहीं तो क्या मां, मेरा मुंह जल गया।
मां ने मुझे पानी दिया और फिर से सॉरी बोलके बोली : वो बस तेरी दीदी को बताने के चक्कर में मेरे मन में आया के तुझपर भी आजमा ही लूं, इतने सालो बाद।
मैं: हां , तो दीदी को आपने क्या अपने पर लगाकर बता दिया क्या?
मां : ओर नहीं तो क्या, करना पड़ा।
मैं हस्ते हुए : क्यूं?
मां: उसे जानना था के मिर्ची कैसे और कितनी लगानी है और मैं जब उसे रूम में ले गई और उस से बोला के कमीज ऊपर करो , मैं बता देती हूं तो...
मैं एक्साइटेड होकर : तो क्या मां?
मां : तो शर्मा गई और मुझसे बोलने लगी के आप अपने पर लगा के बता दो।
मैं: ओर आपने लगा कर मेरे मुंह में दे दिया, वाह मां।
मां : चुप बदमाश, ये तो बस मैनें सोचा के इसी बहाने तेरी भी मुराद पूरी हो जाएगी।
मैं: पर हुई कहां मां?
मां : बस हो गई,अब कभी दुबारा जिद्द की ना तो ऐसे ही मिर्ची लगा कर तेरे मुंह में दे दूंगी।
मां के मुंह से ये सुनकर ऐसा लगा के मानों वो अपनी चूत देने की बाते कर रही हो और मैं भी मजे में बोल गया : दे दो मां, आपकी मुझे।
मां : क्या?
मैं: मेरा मतलब मुंह में दे देना मेरे, अपना वो।(मां के बूब्स की ओर इशारा करते हुए)।
मां : चुप कर, और सुन
मैं: हां बोलो।
मां : वो अपना रुमाल निकाल ले, मैं कपड़े बदल कर आती हूं।
मैं: हां, आओ इधर।
मां भी मस्ती से उठी और मेरी तरफ अपनी गांड़ करके खड़ी हो गई।
मैंने हल्के से उनकी गांड़ पर हाथ रखा और बोला : मां हल्का सा झुको ना।
मां हल्का सा नीचे झुकी और मैनें जैसे ही वो रुमाल बाहर निकालने के लिए खींचा के वो मानो अटक सा गया हो उनके छेद में।
मैं: मां ये शायद अटक गया है।
मां : क्या?, पागल है क्या तु?
मैं: मां सच में, आप खुद निकाल के देख लो।
मां ने अपना हाथ आगे से घुमाते हुए नीचे डाला और रुमाल निकालने लगी के उनकी छेद में जैसे वो फसा बेटा था और बोली : हे भगवान ये क्या है अब?
मैं: मां शायद ये आपकी.....
मां : क्या ...बोल जल्दी से तेरे पापा के आने का भी वक्त हो रहा है।
मैं: शायद ये आपकी छेद में फस गया है।
मां : क्या....
मैं: हां मां, जैसे वो वैक्यूम टाइप बन जाता है ना, तो शायद उसकी वजह से।
मां : तो अब कैसे निकलेगा ये?
मैं: अपने आप ही निकल जाएगा शायद या फिर आपको.........
मां : मुझको क्या.....
मैं: आपको थोड़ा सा जोर लगाना पड़ेगा।
मां : ये क्या क्या हो रहा है, पहले सुबह हाल में कुछ हो गया ...फिर ये सब।
मैं: देखो ट्राई करके मां।
मां ने हल्का सा अपनी गांड़ का जोर लगाया पर शायद कपड़ा उनकी छेद में चिपक सा गया किसी तरह और फिर एकदम मां ने तेजी से आह के साथ जोर लगाया और हल्की से पट की आवाज के साथ उनका कपड़ा बाहर आ गया।
मुझे ये सब देख कर ऐसा लगा जैसे कोई कुटिया जब कुत्ते का लन्ड फसा लेती है और फिर वो लन्ड निकलने का नाम नहीं लेता, ठीक उसी तरह मां ने मेरा रुमाल लन्ड समझ कर अपनी गांड़ में तो नहीं फसा लिया। मैनें जैसे ही रुमाल निकाला के मां का छेद एक दम चिपचिपाहट से भरा हुआ था जिसे देखकर मैंने मां से कहा : मां, ये गिला और चिपचिपा हुआ पड़ा है शायद इसलिए ही फस गया था इसमें रुमाल।
मां : हां वो मैं पेशाब करने गई थी जब तेरी दीदी आई थी तो इस कपड़े पर वो रिस कर आ गया होगा।
मैं: हां शायद।
वो रुमाल अब मेरे हाथ में था और मां ने घूम कर मेरे हाथ से रुमाल पकड़ा और बोली : तुम लड़कों का एक फायदा तो है पैंट डालने का रुमाल रख सकते हो साथ में, तेरा ये रुमाल ने आज दो बार मुझे बचा लिया।
मां रुमाल को अपने हाथ में ऊपर चेहरे की ओर उठाकर उसकी ओर देखते हुए बोली : थैंक्यू मेरे गोलू के रुमाल।
मां फिर मुझसे बोली :, मैं इसे बाहर रख देती हूं बाद में धो दूंगी , गंदा हो गया है।
मैं: ठीक है मां।
मां वो रुमाल लेकर गई और एक साफ रुमाल लाकर मुझे देते बोली : ले ये रख ले।
मैंने जैसे ही मां के हाथ से रुमाल लिया के गेट की बैल बजी और मां : हे भगवान, अब कोन आ गया।
मैं: मां, पापा होंगे शायद।
मां : हां, जा तु गेट खोल।
 
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