• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,789
32,485
259
Update - 60


जब पुष्पा और कमला गई उस वक्त कुछ खास नहीं हुआ। एक घंटा, दो घंटा करके घंटा पर घंटा बीतता गया और दोनों की कोई खबर नहीं, यहीं एक बात सुरभि को विचलित किए जा रहा था। दोपहर के भोजन का समय हों गया मगर पुष्पा और कमला लौट कर नहीं आई। भोजन के दौरान सहसा सुरभि बोल पड़ी... कितना वक्त हों गया दोपहर के भोजन का वक्त भी हों चुका है लेकिन दोनों अभी तक लौट कर नहीं आए।

सुकन्या...दीदी आप न खामखा विचलित हों रहीं हों। बिना बताए दोनों गए नहीं, आपने खुद जाने की आज्ञा दिया हैं फिर भी….।

"हां हां (सुकन्या की बातों को बीच में कटकर सुरभि लगभग झिड़कते हुए बोलीं) जानती हूं मुझसे ही पूछकर गए थे लेकिन उन्हें भी तो ख्याल होना चाहिए कि देर हों रहीं हैं तो किसी के हाथों खबर भिजवा दे।

सुरभि की बाते सुनके सुकन्या खी खी कर हंस दिया। मुंह में निवाला था जो लगभग छिटक ही जाता अगर हाथ से न रोका होता। यह दृष्ट देखकर सुरभि को भी हंसी आ गईं। मुंह में निवाला था और उसकी भी दशा सुकन्या जैसा न हों इसलिए आ रही हंसी को दावा गई फिर डपटते हुए सुरभि बोलीं... छोटी तुझे हंसना ही था तो पहले निवाला, निगल लेती फिर हंस लेती। ऐसे अगर निवाले का कुछ अंश स्वास नली में चढ़ जाता यह फिर पूरा निवाला ही गले में अटक जाता तब किया होता?

"होना किया था मुझे कुछ पल की तकलीफ होता खो खो खांसी आती। मिर्ची की धसके से स्वास नली और नाक में कुछ पल के लिए जलन होता। बस इतना ही होता" सुरभि की बातों को अपने ढंग से आगे बढ़ते हुए सुकन्या बोलीं

सुरभि... कितनी सहजता से कह दिया बस इतना ही लेकिन तुझे ख्याल भी नही आया होगा कि उससे तुझे कितनी पीढ़ा होती उसकी आंच मुझ तक पहुंचकर मुझे भी पीढ़ा से ग्रस्त कर देता।

खुद की पीढ़ा से बहन समान जेठानी के पीड़ित होने की बात सुनकर सुकन्या भावुक हों गईं और आंखों में नमी आ गई। जिसे देखकर सुरभि बोलीं... छोटी एक भी बूंद आंसू का बहा तब तुझे, मेरे आसपास भी नहीं आने दूंगी और न ही तुझसे कभी बात करूंगी, अलग थलग महल के एक कोने में कैद कर दूंगी फिर शिकायत न करना कि मेरी जेठानी मुझ पर जुल्म करते हैं।

"जुल्म (आंखों में आई नमी को पोछकर सुकन्या बोलीं) जुल्म तो आप पर मैंने किया था फिर भी आप मेरी कितनी फिक्र करती हों। ऐसा कैसे कर लेती हों?"

सुरभि... छोटी तू फिर से बीती बातों कि जड़े खोद रहीं हैं। पहले भी तुझे चेताया था आज भी कह रहीं हूं जो बीत गया उन यादों को खंगालने से अच्छा हैं अभी जो मिल रहा है उसे समेट ले और कैसे कर लेती हूं तो सुन में तुझे देवरानी नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन मानता हूं। दो बहनों में खीटपीट, नोकझोंक होता ही रहता हैं। अब तू मेरी बाते सुनके फिर से भाभुक हो जायेगी और आंखों से नीर बहाने लग जायेगी अगर तूने ऐसा किया तो कह देती हूं तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।

सुरभि की बातों से एक बार फिर से सुकन्या के अंतर मन में भावनाओ का बढ़ आ चुका था। जो अश्रु धारा बनकर बहना चाह रहीं थी लेकिन अंत में चेतावनी स्वरूप कहीं गई बातों के कारण सुकन्या अपनी भावनाओ को नियंत्रण में कर लिया और अनिश्छा से मुस्कुराकर "ठीक है" बस इतना ही बोला

सुरभि...सुन छोटी मुस्कुराना है तो सही से खुलकर मुस्कुरा वरना रहने दे।

कुछ पल की जतन और सुरभि की मन लुभावन बातों से आखिर सुकन्या के लवों पर खिला सा मुस्कान ला ही दिया। इस बीच दोनों भोजन कर लिया था। दोपहर बीता भानु (सूर्य) धीरे धीरे अपने गंतव्य की और अग्रसर था। घंटा दर घंटा बीतता गया और भानु खुद के ऊर्जा जिससे समस्त जग जगमगा रहा था। खुद में समेट कर रात्रि को आने का आहवान देने लग गया मगर पुष्पा और कमला अभी भी प्रवासी पक्षियों की भांति विचरण करने में लगी हुई थी। ऐसा सुरभि का मानना था अपितु सच्चाई कुछ ओर थी जिसका भान महल में मौजूद किसी को नही था। भानु लगभग अस्त हों चुका था उसी वक्त पुष्पा और कमला का आगमन हुआ। दोनों को महल के भीतर प्रवेश करते हुए देखकर "दोनों वहीं रुक जाओ और जहां से आए हों वहीं लौट जाओ" सुरभी बोलीं।

इतना सुनते ही कमला और पुष्पा जहां थी वहीं रुक गई और कमला का मन धुक पुक धुक पुक एक अनजान डर से धड़कने लग गया। चहरे की रंगत बदल गई खिला मुस्कुराता हुआ मुखड़े पे मायूसी छा गईं। जबकि मां कि बातों ने पुष्पा पर कोई असर ही नहीं डाला भाभी का हाथ शक्ति से थामे आगे को बढ़ती चली गई।

कमला का आंतरिक भाव उसके ललाट से झलक रहीं थी। जिसे देख सुकन्या हल्का सा मुस्कुराया फिर सुरभि को भी आगाह कर दिया सुरभि उठकर अंचल को कमर में खोचते हुए आगे को बढ़ चली, चलते हुई बोलीं... सुबह के गए सांझ को लौट रहें हों तुम दोनों को बूढ़ी मां इतना अच्छा लगा तो वहीं रुक जाती। महल वापस क्यों आई?

पुष्पा... ठीक हैं हम बूढ़ी मां के पास वापस जा रहे हैं।

इतना बोलकर पुष्पा पीछे को मूढ़ गई और कमला जहां थी वहीं जम गईं। निगाहें जो पहले से झुकी हुई थी। एक पल लिए उठा फिर से झुक गई।

कमला का हाथ थामे पुष्पा पलटी और एक कदम बढ़ाते ही खिंचाव से कमला का हाथ छूट गया "भाभी क्या हुआ आप जम क्यों गई चलो चलते हैं।" इतना बोलकर पुष्पा फिर से कमला का हाथ थाम लिया और अपने साथ चलने के लिए हाथ खींचने लगी मगर कमला अपने जगह से एक कदम भी नहीं हिली बस एक बार सुरभि की ओर देखा फिर पलट कर पुष्पा की और देखा, जाए कि रूके कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं। यह देख सुकन्या और सुरभि की हंसी फूट पड़ी और सुरभि हंसते हुई बोलीं...क्या हुआ बहु ऐसे क्यों जम गई। जाओ जहां पुष्पा ले जा रहीं हैं।

पुष्पा...भाभी चलो मेरे साथ पहले तो नाटक कर रहीं थीं लेकिन अब सच में लेकर चलूंगी सोचकर आई थी कि मां से कहूंगी कि बूढ़ी मां आप की कितनी तारीफ कर रहीं थीं कितने सारे ऐसे किस्से सुनाए जिससे मैं अनजान थीं। लेकिन इन्हें तो मजाक सूज रहा था दांते निपोरकर कितने मजे से कह दिया जाओ बहु पुष्पा जहा ले जा रहीं हैं।

इतना कहकर पुष्पा लगभग खींचते हुई कमला को ले जाने लग गई और कमला "रूको तो ननद रानी" बस इतना हो बोलती रह गईं और पीछे पलट कर बार बार सुरभि को देख रहीं थीं और विनती कर रहीं थी मम्मी जी ननद रानी को रोको न यह देख सुरभि बोलीं…महारानी जी तुम्हें जहां जाना है जाओ लेकिन मेरी बहु रानी को यहीं छोड़ जाओ जरा उससे पुछु तो बूढ़ी मां ने उसकी सास की तारीफ में कौन कौन सी बातें कहीं।

पुष्पा…अरे मैं कैसे भुल गई थीं कि मै इस महल की महारानी हूं। चलो भाभी महारानी के होते हुई आपको डरने की जरूरत नहीं हैं।

इतना बोलकर पुष्पा शान से कमला का हाथ थामे खींचते हुई भीतर की ओर बढ़ने लग गई। पल भर में वातावरण मे हंसी और ठहाके गुजने लग गया। जैसे ही पुष्पा सुरभि के नजदीक पहुंचा कान उमेठते हुई सुरभि बोलीं... बड़ी आई महारानी। ऐसी महारानी किस काम की जिसे याद ही न रहें कि महल मे उसकी पदवी क्या हैं?





पुष्पा…कभी कभी भूल हों जाती हैं अब छोड़ भी दो दुख रहीं हैं। अपश्यु भईया कहा हों देखो मां आपकी प्यारी बहन के कान उमेठ रहीं हैं। जल्दी से आकर बचा लो।

सुरभि...आज तुझे कोई नहीं बचाने वाली और अपश्यू वो तो बिलकुल भी नहीं आने वाली अभी थोड़ी देर पहले वो कहीं गया हैं।

पुष्पा...अब क्या करूं याद आया मां कान छोड़ों नहीं तो ये नहीं बताऊंगा कि मैंने और भाभी ने दुर्घटना मे घायल हुऐ एक इंसान की मदद की हैं। जिसके कारण हमे आने में देर हों गईं।

सुरभि... किसी की मदद की वो तो अच्छी बात हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है वह तो तूने बता दिया कुछ ओर हों तो बता शायद कान उमेठना छोड़ दूं।

कमला...मम्मी जी छोड़ दीजिए ना, ननद रानी को लग रहीं हैं।

पुष्पा…मां कम से कम भाभी की बात ही मन लो छोड़ दो न बहुत लग रहीं हैं।

"नौटंकी कहीं की" बस इतना बोलकर सुरभि कान छोड़ दिया और पुष्पा कान मलते हुई आगे को बढ़ गई साथ में सुरभि और कमला भी उसके पीछे पीछे चल दिया फिर पहले पुष्पा बैठी उसके बगल मे सुरभि फिर कमला बैठ गईं। "दोपहर मे खाना नहीं खाया होगा" इतना बोलकर सुरभि ने धीरा को आवाज देखकर कुछ हल्का नाश्ता लाने को कहा तब कमला रोकते हुई बोलीं... मम्मी जी हमने बूढ़ी मां के साथ दोपहर का भोजन कर लिया था।

इसके बाद बातों का एक लंबा शिलशीला शुरू हुआ। कमला और पुष्पा को देर क्यों हुआ दुर्घटना मे घायल किस इंसान की सहायता की और हॉस्पिटल मे क्या क्या हुआ। बातों का आगाज उसी घटना से हुआ। पूरी घटना सुनने के बाद सुरभि दोनों के सिर पर हाथ फिरते हुई बोलीं...जरूरत मंदो की सहयता करना अच्छी बात हैं और दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल हुए लोगों की सहायता करना ओर अच्छी बात हैं ऐसे लोगों की समय से उपचार न मिलने पर प्राण भी जा सकता हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखना कुछ षड्यंतकारी लोग इस तरह का भ्रम जाल फैला कर सहायता करने वालो को लूट लेते हैं ऐसी घटनाएं यहां पिछले कुछ दिनों से ज्यादा बड़ गईं हैं इसलिए आगे से ध्यान रखना।


दोनों ने सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया फिर बातों का शिलशिला आगे बड़ा और बूढ़ी मां के यहां क्या क्या हुआ किस तरह की बाते हुआ एक एक किस्सा पुष्पा और कमला सुनने लग गई। उन्हीं किस्सों को सुनने के दौरान कमला बोलीं... मम्मी जी बूढ़ी मां कहा रहीं थी जब आप वीहाके महल आई थी तब आप को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था उन्हीं लगो में से एक शख्स टीले पे से गिरके गंभीर रूप से घायल हों गईं थी अपने खुद गाड़ी रुकवा कर उसे उपचार के लिए भेजा फिर जाके महल मे प्रवेश किया था। क्या ऐसा सच में हुआ था?

सुरभि मुस्कुराकर हां में जवाब दिया उसके बाद एक बार फ़िर से पुष्पा और कमला मिलकर बूढ़ी मां से सुनी एक एक किस्सा बारी बारी बताने लग गए। शायद उनके बातों का शिलशिला खत्म न होता अगर रघु लौटकर कर न आया होता। रघु पे थकान हावी था जो उसके चहरे से झलक रह था। सामने मां पत्नी और बहन साथ में बैठे हुए थे तो उनके पास बैठने की जगह नहीं बचा था दूसरी और सुकन्या अकेले बैठी थी रघु उनके पास बैठ गया फिर धीरे से सुकन्या के गोद में ढुलक पड़ा , तुरंत ही सुकन्या का हाथ रघु के सिर पे पहुंच गया और सिर सहलाते हुए सुकन्या बोलीं…लगता हैं मेरा बेटा आज बहुत थक गया हैं।

रघु…हां छोटी मां आज मुंशी काका ने मेरा दम निकल दिया।

आगे कोई कुछ बोलता उसे पहले ही सुकन्या ने मुंह पे उंगली रखकर सभी को चुप रहने का इशारा कर दिया और सुकन्या रघु का सिर सहलाता रहा। कुछ ही वक्त में रघु चुप चाप एक बच्चे की तरह सिकुड़कर सो गया। यहां देख कमला की हसी छूट गई और सुकन्या आंखे बड़ी बड़ी करके डांटा फिर चुप रहने का इशारा कर दिया। एक बार फिर से सन्नाटा छा गया कुछ देर बाद कमला की खुशपुशाहट ने लगभग सन्नाटे को भंग कर दिया

कमला…मम्मी जी कैसे बच्चें की तरह सो रहें हैं।

सुरभि…मां के गोद में सभी ऐसे ही सोते है तुमने अगर गौर नहीं किया तो कभी गौर करके देखना तब तुम जान जाओगी।

एक बार फ़िर से सुकन्या ने सभी को इशारे में डांट दिया और सभी चुप चाप बैठ गए। रघु भोजन के वक्त तक सोता रह जब भोजन लग गए तब सुकन्या ने रघु को जगाया और भोजन करवाने ले गई। भोजन के दौरान ही रघु की उनिंदी भाग गई फिर भोजन से निपटकर कमरे में चला गया।

एक छोटी नींद रघु ले चुका था। जिसका नतीजा रघु को अब नींद नही आ रहा था और कमला को आज दिन का एक एक किस्सा रघु को बताना था। इसलिए बातों का शिलशिला रघु को आज इतनी थकान आने के कारण से हुआ। दिन भर में रघु कहा कहा गया कितनी माथापच्ची की एक एक विवरण सुना डाला जिसे सुनकर कमला बोलीं…पापा जी की जिम्मेदारी आपने अपने कंधे लिया हैं और उन जिम्मेदारियों का वाहन करते हुऐ आज आपको आभास भी हुए होगा कि पापा जी वर्षो से इन्हीं सब कामों को कर रहें थे और उन्हें कितनी थकान होता होगा फिर भी बिना थके लगन से निरंतर काम करते आए हैं।

रघु…सही कह रहीं हो कमला आज मै जान गया हूं पापा कितना परिश्रम करते थे मुझे तो लगता है बहुत पहले ही उनके जिमेदारियो को अपने कांधे लेकर उन्हें विश्राम दे देना चाहिए था।

कमला…आपको क्या लगता है आप के कहने भर से पापा जी आपको अपना काम सौप देते कभी नहीं उन्हें जब लगा कि आप उनकी जिम्मेदारी उठाने लायक बन गए हैं तभी उन्होंने आपको सभी जिम्मेदारी सौंप दिया हैं।

रघु…कह तो तुम ठीक रहीं हों मेरी बाते बहुत हुआ अब तुम बताओ आज दिन भर तुमने क्या क्या किया?

कमला…मेरा आज का लगभग आधा दिन मम्मी जी की किस्से सुनते हुऐ बीता और बाकी बचा समय हॉस्पिटल में बीता।

रघु…हॉस्पिटल गई थी लेकिन क्यों तुम्हे या किसी को कुछ हुआ था तो मुझे सूचना क्यों नहीं भेजा।

कमला…अरे बाबा मुझे कुछ नहीं हुआ था वो तो कल रात मिले संभू हमे रास्ते में मिला जो दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हों गया था उसे ही हॉस्पिटल छोड़ने गईं थीं।

रघु…संभू इसका भी क्या ही कहना कल बचा और आज दुर्घटना का शिकार हों गया। कैसा हाल है उसका चलो उसे देखकर आते हैं।

कमला…. जब मै आई थी तब वैसे ही गंभीर हाल में थीं अभी का कहा नहीं सकती साजन जी वह है वो जब आयेंगे तब पता चल जाएगा।

रघु…कमला तुम्हे बोला न तुम सिर्फ मुझे ही साजन जी बोलोगे मेरे अलावा किसी और को नहीं!

कमला…उनका नाम ही ऐसा है मैं क्या करूं आप ही बता दीजिए उनको किस नाम से बुलाऊं।

रघु…उसका नामकरण कल सुबह करूंगा अभी तुम मुझे उस हॉस्पिटल का नाम बता दो।

कमला से हॉस्पिटल की जानकारी लेकर टेलीफोन डायरेक्टरी से उसी हॉस्पिटल का फोन नंबर ढूंढ निकाला फिर फोन लगाकर संभू का पूरा विवरण ले लिए उसके बाद रघु बोला…संभू इस वक्त ठीक हैं बस होश नही आया हैं।

कमला…चलो अच्छी खबर है अब क्या करना हैं चलना है की सोना हैं।

रात्रि ज्यादा हों गया था इसलिए कल सुबह दफ्तर जाने से पहले संभू को देखने जाने की सहमति बना उसके बाद रघु दिन भर की थकान कमला के साथ जोर आजमाइश करके थोड़ा ओर बढ़ाया फिर एक दूसरे से लिपटे ही निंद्रा की वादियों में खो गया।


आगे जारी रहेगा….
lovely update ..
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,789
32,485
259
Update - 61


अगले दिन की शुरूवात सामान्य रहा महल में एक ओर दिन के बाद जलसा होना था जिसकी तैयारी हों चुका था। उसी विषय पर नाश्ता के दौरान रावण और राजेन्द्र के बीच में कुछ विशेष चर्चा हों रहा था। किन किन अतिथियों को निमंत्रण देना था उसका भार रावण के कांधे पर था और उसका जायजा लेते हुए राजेन्द्र एक एक विशिष्ट अतिथि का नाम गिना रहा था और पूछ रहा था कि उन्हें निमंत्रण गया की नहीं गया। रावण सिर्फ हां न में जवाब दे रहा था। शायद नाश्ते के दौरान इतनी बाते करना सुरभि को पसंद नहीं आया इसलिए टोकते हुए सुरभि बोलीं…आप दोनों भाइयों को भोजन के दौरान ही बाते करना होता हैं मुझे तो लग रहा हैं जैसे ही निवाला अंदर जाता हैं वैसे ही दबी कुचली बाते उछल कूद करते हुए बाहर आने लग जाती हैं। अभी चुप चाप नाश्ता कीजिए उसके बाद दोनों भाई एक सभा लगा लेना फिर जितनी भी चर्चाएं करनी हो कर लेना कम से कम इसी बहाने भोजन के अलावा भी बैठकर दोनो भाई कुछ बातें कर लेंगे।

रावण…भाभी हम तो बस महल में होने वाले जलसा पर चर्चा कर रहें हैं अन्य कोई बाते तो कर नहीं रहें हैं।

सुरभि…अच्छा? धीरा बेटा इन दोनों भाईयों के सामने से थाली तो ले जा और दोनों को एक रूम में बंद कर दे वहीं पर ही चर्चाएं कर लेंगे। दोनों भाइयों ने डायनिंग मेज को मछली बाजार बना दिया हैं। खां कम रहें है बाते ज्यादा कर रहें हैं।

रावण…भाभी जरा गौर से देखिए जितनी बाते बाहर निकल रहा हैं उतना ही निवाला अंदर जा रहा हैं।

सुरभि…ऐसा हैं तो जरा आपने आस पास नजर दौड़ाकर देखिए सभी का लगभग नाश्ता सप्तम होने पे है और आप दोनों भाई तब से बकर बकर बाके ही जा रहे हों। नाश्ते के नाम पर सिर्फ दो चार निवाला ही अंदर गया हैं।

राजेन्द्र… ये भाई अब चुप चाप नाश्ता कर ले नहीं तो रानी साहिबा जितना निवाला अंदर गया हैं उसी पे फूल स्टॉप लगा देंगी।

सुरभि…अब कहीं हैं बिल्कुल पाते की बात अब बिना एक शब्द बोले नाश्ता कीजिए अगर एक भी शब्द बोल तो मै बिल्कुल वैसा ही करूंगी जैसा आपने कहा है।

दोनों भाई बस एक दूसरे पे निगाह फेरा इशारों में ही जो कहना था कह दिया फ़िर नाश्ता करने लग गए। बगल में बैठे सुरभि सहित बाकी सभी बस मुंह नीचे करके मुस्कुरा रहें थे। खैर कुछ देर में सभी का नाश्ता हों गया। एक एक कर वह से चलते बने और दोनों भाई वहीं पर ही आगे की चर्चा करने लग गए।

बीच वार्ता में विघ्न पड़ जाने से दोनों भाई एक बार फिर शीरे से चर्चा शुरू किया। राजेन्द्र एक एक कर जानें माने हस्ती की नाम लेकर, उन्हें निमंत्रण पहुंचा की नहीं पहुंचा, पूछने पर रावण सिर्फ हां या न में जब दे रहा था। सभी जानें माने हस्ती को निमंत्रण भेजा जा चुका था जिसकी स्वीकृति रावण ने दे दिया। अंत में एक नाम राजेन्द्र ने लिए। जिस पे रावण ने न में जवाब दिया तब राजेन्द्र बोला…रावण इतने जानें माने हस्ती को तू कैसे भुल सकता हैं। आज ही उन तक निमंत्रण पहुंच जाना चाहिए।

रावण…पर दादा भाई…।

"समझ रहा हूं तेरे मन में क्या चल रहा हैं। तू मत जाना मै खुद चला जाऊंगा।" रावण के बातों को कटकर राजेन्द्र अपनी बाते कह दिया।

न जानें वो कौन सी बातें हैं जिस कारण रावण ने एक जानें माने शख्स को निमंत्रण नहीं भेजा लेकिन अभी अभी राजेन्द्र के कहीं बातों ने रावण को लगभग भाव शून्य कर दिया। न वो विचलित था न ही डरा सहमा था, न ही किसी प्रकार का विकृत सोच उसके मन में था। जो भी हों कुछ तो राज था वरना रावण का यूं शून्य विहीन भाव न होता। बरहाल जो भी हों आगे देखा जायेगा।

दोनों भाईयों में चर्चा आगे और आगे बढ़ता जा रहा था। चर्चाओं के दौरान बीच बीच में हंसी ठिठौली भी हों रहा था। किसी किसी बात पर दोनों भाई ठहाके लगकर हंस देते जिसकी गूंज इतना अधिक होता कि महल की चार दिवारी गुंजायमान हों उठता। एक बार फ़िर से दोनों भाइयों के ठहाके गूंजा इस बार की ठहाके ने सुरभि को कमरे से बाहर आने पर मजबूर कर दिया। कुछ देर दोनों भाइयों को बातों में माझे देखता रहा फिर उनके नजदीक जाकर बोला…क्या बात आज दोनों भाई कुछ ज्यादा ही ठहाके लगा रहें हों।

रावण…हां भाभी बातों बातों में हम दोनों भाइयों के साथ में बिताए कुछ ऐसे किस्से याद आ गए जो हमारे लिए बहुत मजेदार था बस उसे याद करते हुए ठहाके लगा रहें थे।

"काका इसके लिए आप को न मां को ittaaaa बड़ा थैंक यू बोलना चाहिए।" इत्ता बड़ा को पुष्पा ने इतना लंबा खींचा की एक बार फ़िर से ठहके गूंज उठा और पुष्पा जाकर रावण के बगल में बैठ गईं। दुलार करते हुए रावण बोला…बिल्कुल सही कह महारानी जी.. बहुत बहुत धन्यवाद भाभी सिर्फ आप ही के कारण आज हम दोनों भाई न जानें कितने दिनों बाद इतने लंबे समय के लिए बात किया और भूली बिसरी यादों को ताज़ा करके हंसे मुस्कुराए और ठहाके भी लगा लिया।

राजेन्द्र…एक वक्त हुआ करता था जब हम दोनों छोटे बड़े भाईयों की एक जोड़ी हुआ करती थीं। खूब उधम कटते थे रोज महफिल जमाते थे लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली की हम एक दूसरे के साथ वक्त बिताना भूल ही गए कभी रावण के पास वक्त होता तो कभी मेरे पास नहीं और आज सिर्फ तुम्हारे कारण एक अहम चर्चा करते करते हम दोनों भाई उन यादों को खंगाल बैठे जिसे लगभग भूल ही गए थे। थैंक यू सुरभि

"दादा भाई आप तो कभी कभी वक्त निकालकर मेरे साथ वक्त बिताना चाहते थे लेकिन मैं सिर्फ आपसे बैर रखने के कारण आपसे दूर भागता था।" इतनी बाते मन ही मन रावण ने बोला फिर नजर घुमा कर सुकन्या को ढूंढने लगा जो उससे कुछ ही दूर खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं।

रावण का मन कर रहा था कि दोनों हाथ जोड़े सुकन्या को धन्यवाद दे लेकिन ऐसा कर नहीं पाया बस पलकों को झपकाकर आंखों की भाषा में धन्यवाद कह दिया प्रतिउत्तर में सुकन्या ने ऐसा अभिनय किया जैसे कह रहीं हो हटो जी आप बेवजह मुझे धन्यवाद कह रहे हों मैने तो बस मेरा काम किया हैं।

रावण शायद सुकन्या का अभिनय समझ गया था इसलिए इशारों में ही बोल दिया बाद में मिलना अच्छे से धन्यवाद कहूंगा और मुस्कुरा दिया।

"पापा जी अब तो आपके पास वक्त ही वक्त हैं छोटे बड़े की जोड़ी जितना मन करें उतना उधम काट लेना महफिल जमा लेना बस ध्यान रखना दो पैरों पे चलके घर लौटना चार पैरों पे नहीं" इतनी बाते कमला ने बोलीं थीं। जो बन ठान के रघु के साथ वह पहुंची थीं।

राजेन्द्र…छोटे के दो बड़े के दो हों गए न चार पैर दोनों एक दूसरे का सहारा बने महल लौट आयेंगे लेकिन वो जब होगा तब होगा अभी बहू रानी जी इतना बता दीजिए इतना सज सवारके कह चली। कहीं रघु के साथ दफ्तर तो नहीं जा रही हों अगर ऐसा कुछ करने का सोचा है तो त्याग दो क्योंकि अभी मेरा मन तुम्हें दफ्तर भेजने का नहीं हैं जब मेरा मन होगा तभी तुम्हे दफ्तर भेजूंगा।

रघु…नहीं पापा कमला दफ्तर नहीं बल्कि मेरे साथ हॉस्पिटल जा रहीं हैं। कल पुष्पा और कमला ने संभू को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था। उसी को देखने जा रहें हैं।

दोनों भाई को पता नहीं था इसलिए दोनों भाई अलग अलग प्रतिक्रिया दी एक "कौन संभू" तो दूसरा "क्या संभू" बोला। "कौन संभू" पर किसी की कोई खास प्रतिक्रिया नही आया लेकिन "क्या संभू" पर प्रतिक्रिया देते हुए रघु बोला…काका आप भी संभू को जानते हों।






रावण…एक संभू को मैं जानता हूं जो दलाल के यह काम करता हैं। लेकिन मुझे लगता है शायद ये वाला संभू वो वाला संभू न हों बस संभू नाम सुनते ही उसका ख्याल आया और मेरी मुंह से ऐसी प्रतिक्रिया निकला।

रघु…काका आप हमारे साथ चलो आप देखकर ही बता देना कि ये संभू वही है जो दलाल के यहां काम करता हैं तब आप उनके पास संदेशा भिजवा देना।

राजेन्द्र…अरे भाई रावण के "क्या संभू" का जवाब मिल गया लेकिन मेरी "कौन संभू" का जबाव मिलेगा।

रघु ने राजेंद्र के "कौन संभू" का जवाब दे दिया बस परसों रात को जिस ढंग से संभू के साथ भेंट हुआ था उसमें थोड़ी हेर फेर कर दिया। रघु की बातों ने रावण के मन में एक भय का बीज वो दिया और उसे लग रहा था कहीं ये वाला संभू वहीं हुआ जो दलाल के घर में काम करता हैं। जिसे रघु पहले से जानता हैं। अगर ऐसा हुआ तो उसका भेद अभी तक खुल चुका होगा नहीं खुला तो कभी न कभी संभू बता ही देगा पर यह भाव भी कुछ पल का मेहमान था न जानें क्या सोचकर रावण हल्का सा मुस्कुरा दिया और उसकी मन से पल भर में भय दूर हों गया।

रावण दोनों के साथ हॉस्टिपल चल दिया इसके कुछ देर बाद ही राजेंद्र भी कही जानें के लिए निकला जैसे ही राजेंद्र की कार महल के मुख्य द्वार से बाहर निकला एक अनजान शख्स ने कार को रूकवाया कुछ औपचारिक बातों के बाद वह शख्स राजेंद्र को एक पैकेट दिया। जिसे लेते हुए राजेंद्र बोला…भाई इसमें क्या हैं कुछ भरी भरी सा लग रहा हैं।

"राजा जी मुझे नही पाता क्या हैं बस मुझसे कह गया था कि ये आप की अमानत है सिर्फ आप को ही दूं किसी ओर को नहीं!"

"मेरी अमानत (उस पैकेट को उलट पलट कर देखने के बाद राजेंद्र आगे बोला) माना की ये मेरी अमानत है लेकिन इस पे भेजने वाले का नाम नहीं लिखा हैं तुम कुछ जानते हों तो बता दो।"

"क्या नाम हैं मैं नहीं जानता लेकिन भेजने वाली एक वृद्ध महिला हैं वो मेरे पास आई कुछ पैसे देकर बहुत विनती किया और आप का नाम बताया। पूरे पश्चिम बंगाल में ऐसा कौन हैं जो आपको नहीं जानता बस आपसे मिलने की तमन्ना थीं इसलिए आ गया आपसे मिल भी लिए और आप तक आपकी अमानत पहुंचा भी दिया।"

राजेंद्र…उस वृद्ध महिला के बारे में थोड़ी और जानकारी मिल जाता तो अच्छा होता चलो कोई बात नहीं आपने बारे में ही कुछ बता दो क्या नाम हैं कह से आए हों?

"मेरा नाम अमानत खान हैं मैं नादिया जिले के शांतिपुर से आया हूं। बाकी वृद्ध महिला के बारे में बस इतना ही जनता हूं उनके परिवार में एक बेटा वो और एक बहु हैं।"

राजेंद्र को जितना जरूरी लगा एक अनजान शख्स से उतनी जानकारी लिया फ़िर द्वारपाल को बुलाकर आए हुए अनजान शख्स की जलपान और विश्राम की व्यवस्था करने को कहकर चल दिया।

एक अनजान शख्स का दिया एक पैकेट साथ ही ये कह देना जिसकी अमानत है उसी के हाथ में देना इन बातों से राजेंद्र के मन में द्वंद छिड़ गया। द्वंद से पार पाने का एक ही जरिया राजेंद्र को सूजा कि पैकेट खोलकर देखा जाएं।

पैकेट खोला गया जिसमे ढेर सारे ब्लाक एंड वाइट तस्वीरें थीं। पहली तस्वीर में मौजूद शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव कुछ कुछ बदल गया। जो दर्शा रहा था कि राजेंद्र तस्वीर में मौजूद शख्स को भली भांति जानता हैं। दूसरे तस्वीर में भी वहीं शख्स था और साथ में कुछ और लोग भी थे जो हाथों में बंदूक लिए हुए थे। उसमे से एक शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव बदल गया और क्रोध की अभाव ने अपना जगह ले लिया। एक और तस्वीर उसमे भी वहीं लगभग दो तीन तस्वीर के बाद एक तस्वीर ऐसा आया जिसे देखते ही राजेंद्र के चहरे का भाव अचंभे में बदल गया क्योंकि उस तस्वीर में वह शख्स तो था ही साथ ही एक और शख्स था जिसका चेहरा ढाका हुआ था। जल्दी जल्दी दूसरी तस्वीर देखा उसमे भी वैसा ही था जो राजेंद्र के अचंभे को और बढ़ा दिया। एक और तस्वीर उसमे में वहीं लेकिन इस तस्वीर के साथ एक चिठ्ठी पिन किया हुआ था।

चिठ्ठी की लिखावट भी राजेंद्र को जाना पहचाना लगा। अति शीघ्र चिठ्ठी को पढ़ना शुरू किया जैसे जैसे आगे पढ़ता जा रहा था। वैसे वैसे राजेंद्र का भाव बदलता जा रहा था। एक पल आगे क्या लिखा हैं जानने की बेचैनी दूसरे ही पल अनियंत्रित क्रोध का भाव और चिठ्ठी के अंत को पढ़ते हुए चहरे का भाव ऐसा जैसे कहना चाह रहा हों "जैसे के साथ तैसा किया गया।"

एक ओर तस्वीर एक नया चेहरा जो जाना पहचाना था। आगे की कुछ तस्वीरों में पहले वाले तस्वीर के जैसा दृश्य और दो जानें पहचाने चहरे के आलावा जितने भी चहरे थे सभी अनजान थे अंत के तस्वीरों में वहीं कवर किया हुआ चहरे वाला शख्स बस तस्वीरें अलग अलग जगह से लिया गया था और अंत में एक चिट्ठी जिसकी लिखावट जानी पहचानी और लगभग वैसा ही कुछ लिखा था जैसा पहले चिट्ठी में लिखा था।

एक एक कर पांच अलग अलग चेहरे वाले तस्वीरें उस पैकेट से निकला सभी में लगभग एक जैसा ही विवरण था बस दो जाना पहचाना चेहरा बाकी सभी अनजान और अंत में कवर किया हुआ चेहरे वाला शख्स बस जगह अलग अलग था और अंत में एक तस्वीर में एक चिट्ठी पिन किया हुआ उसमें भी लगभग एक ही बात लिखा हुआ था। सभी तस्वीरे देखने के बाद अटाहस करते हुए ऐसे हंसा जैसे किसी की खिल्ली उड़ा रहा हों। इस तरह हसने का कारण ड्राइवर जानना चाहा तब राजेंद्र बोला…कुछ विश्वासघातीयो को मिले अंजाम देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हों उठा इसी कारण ऐसे हसी निकल आया।

एक और सवाल ड्राइवर द्वारा पूछा गया लेकिन राजेंद्र ने उसका कोई जवाब न देकर पैकेट से निकले दो लिफाफे में से एक लिफाफा खोल लिया। उसमे से निकले चिठ्ठी को पढ़ने जा ही रहा था की ड्राइवर ने घोषणा कर दिया…राजी हम पूछ गए हैं।

घोषणा सुनते ही राजेंद्र ने आस पास का जायज़ा लिया फिर चिठ्ठी को वापिस लिफाफे में डालकर सभी तस्वीरों सहित पैकट में डाला और कार में ही एक सुरक्षित जगह देखकर वहा रख दिया फिर कार से निकलकर चल दिया।

आगे जारी रहेगा….
nice update ..dono bhai hansi majak karne me lage hai ,ravan ke mann me burai thi isliye wo dur bhagta tha rajendra se ,par ab waqt badal gaya hai isliye pyar se baate kar raha hai .
ab ye chitthi ka kya matter hai jisme kuch jaane pehchane chehre hai aur shayad raja sahab ke saath vishwasghat karnewale bhi hai jinko kisi ne saja di ya kuch aur kiya pata nahi .
sambhu ka naam sunkar dil me darr paida ho gaya ravan ke kyunki usko laga ki ye sambhu dalal ke yaha ka naukar na nikle .
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,789
32,485
259
Update - 62


रघु कमला और रावण हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। रिसेप्शन से जानकारी लिया तब उन्हें पता चला संभू को आईसीयू में रखा गया हैं। आईसीयू किस ओर है जानकारी लेकर तीनों उस और चल दिए। आईसीयू के सामने जब पहुंचे तब कमला मुस्कुरा दिया क्योंकि इंस्पेक्टर साहब आईसीयू के बाहर कुर्सी लगाए बैठे थे और नींद की झपकी ले रहें थे।

कमला जल्दी से उसके पास गईं और इंस्पेक्टर के छीने पर लगे बैज में नाम देखकर बोलीं…संभाल जी आप ड्यूटी कर रहें है कि सो रहें हैं।

शायद इंस्पेक्टर साहब अभी अभी मौका देखकर नींद की झपकी ले रहें थे इसलिए आवाज सुनते ही तुंरत जग गए फिर बोला…मैडम जी रात भर से जागे हैं इसलिए अभी अभी नींद की झपकी आ गया था।

कमला…ठीक हैं अब आप जा सकते है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप को छुट्टी मिल गई आपने जगह किसी दूसरे को भेज देना ऐसा नहीं किया तो आप को याद ही होगा मेरी ननद रानी ने क्या कहा था।

"जी बिल्कुल याद हैं।" इतना बोलकर धन्यवाद देता हुए इंस्पेक्टर साहब वहा से चला गया और रघु बोला…कमला तुम दोनों राज परिवार से होने का पूरा पूरा फायदा उठा लिया इंस्पेक्टर को ही धमकी दे दी।

कमला…इंस्पेक्टर साहब को मैंने नहीं ननद रानी ने धमकी दिया था। मैंने तो सिर्फ़ डॉक्टर साहब को हड़का दिया था।

रावण…वाह बहू दोनों ननद भाभी ने मिलकर सफेद और खाकी वर्दी धारियों को ही लपेट लिया।

इस पे कमला सिर्फ मुस्कुरा दिया। अब तीनों को आईसीयू के अन्दर जाना था लेकिन बिना पूछे जा नहीं सकते थे। आईसीयू के बाहर कोई दूसरा खड़ा भी नहीं था जिससे पूछकर अन्दर जाएं। अब करें तो करें किया। उसी वक्त एक डॉक्टर उधर से गुजर रहा था। तभी रघु ने उससे कुछ कहा तब डॉक्टर खुद तीनों को आईसीयू के अन्दर ले गए लेकिन जानें से पहले सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया।

जैसी ही तीनों अन्दर कदम रखा तभी कल वाला डॉक्टर जिसे कमला ने हड़काया था वो दौड़ते हुए आया और बोला…मैडम आपका मरीज अभी खतरे से बाहर हैं क्या मैं घर जा सकता हूं।

कमला…ठीक है चले जाना लेकिन जानें से पहले हमे मरीज से मिलवा दीजिए और उसका कंडीशन कैसा है बता दीजिए।

डॉक्टर…मरीज को कुछ गंभीर चोटे आई हैं एक हाथ और पैर की हड्डी टूट गया हैं। सिर में भी चोटे आई है। सिर की चोट अंदरूनी और खुली चोट है इसलिए कुछ जांचे किया हैं रिपोर्ट आने के बाद पूर्ण जानकारी दे सकता हूं।

कमला…कोई खतरे वाली बात तो नहीं हैं।

डॉक्टर…होश हा चुका है इसका मतलब साफ है कि खतरे वाली कोई बात नहीं हैं बाकी मस्तिष्क में कितना अंदरूनी चोट आया हैं उसकी जानकारी रिपोर्ट आने के बाद बतलाया जा सकता हैं।

बातों के दौरान सभी संभू के पास तक पहुंच चुके थे। पहली नजर में संभू का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था। कारण सिर्फ इतना था चहरे और सिर पे लगे चोट के कारण चेहरा सूजा हुआ था। लेकिन गौर से देखने पर संभू को पहचाना जा सकता था।

पहचान होते ही रावण विचलित सा हों गया। भेद खुलने का भय उसके अंतर मन को झकझोर कर रख दिया और रावण मन ही मन बोला…हे प्रभु रक्षा करना ये तो वहीं संभू हैं जो रावण के घर में काम करता हैं। इसे रघु पहले से ही जानता हैं। अब क्या होगा कहीं रघु को पहले से पाता न चल गया हों कि मैं और दलाल मिलकर कौन कौन से षडयंत्र रच रहे थे। एक मिनट शायद रघु को पता नहीं चला अगर पता चल गया होता तो अब तक महल में उथल पुथल मच चुका होता और रघु मुझे यह लेकर नहीं आता लेकिन कब तक पता नहीं चला तो आज नहीं तो कल पाता चल ही जाएगा फ़िर मेरा क्या होगा। क्या करूं इसको भी ब्रजेश, दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा की तरह रास्ते से हटा दूं। नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता नहीं तो सुकन्या को पाता चलते ही फिर से मुझसे रूठ जायेगी। क्या करूं उफ्फ ये बेबसी क्यों मैं गलत रास्ते पर चला था। क्यों मैं दलाल की बाते मानकर लोगों का खून बहाया था। मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए था।

किए गए अपराध का भेद खुलने का भय और बेबसी ने रावण को खुद में उलझकर रख दिया। खुद से ही मन ही मन सवाल जबाव का द्वंद छेद रखा था। रघु और कमला इससे अनजान संभू के पास बैठे हुए उसे आवाज दे रहा था मगर संभू उनके आवाज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। तब डॉक्टर बोला…सर हमने इन्हें नींद का इंजेक्शन दे रखा हैं । जिस इस कारण संभू सो रहा हैं।अभी आपके किसी भी बात का जवाब नहीं देखेंगे।

कुछ देर और बैठने के बाद डॉक्टर को एक और निर्देश दिया गया कि संभू के इलाज में लापरवाई न बरती जाए साथ ही देख भाल की पूर्ण व्यवस्था किया जाएं। डॉक्टर एक बार आदेश न माने का भुल कर चुका था दुबारा उसी भुल को दौरान नहीं चाहता था इसलिए जवाब में बोला "संभू का केस मेरे निगरानी में हैं और आपकी बातों को नजरंदाज बिल्कुल नहीं किया जायेगा।

"काका क्या ये ही वो संभू हैं जो दलाल के पास काम करता हैं?" रघु ने रावण से यहां सवाल पूछा लेकिन रावण तो कहीं और खोया हुआ था। उसका ध्यान वहा क्या हों रहा हैं उस पे नहीं था। शीघ्र ही जवाब की उम्मीद किया जा रहा था लेकीन रावण तो किसी दूसरे ख्यालों में गुम था। इसलिए न सुना न ही जवाब दिया। तब रघु पलटा और रावण को ख्यालों में खोया देखकर रावण को लगभग झकझोरते हुए रघु बोला…काका आप कहां खोए है मैने कुछ पूछा था।

"क्या हुआ" रावण ख्यालों से बहार आते हुए बोला

रघु- हुआ कुछ नहीं आपसे संभू के बारे में पूछा था लेकिन आपने कोई जवाब ही नहीं दिया। वैसे आप किन ख्यालों में खोए थे जो अपने सुना ही नहीं!

"मैं ( कुछ पल रूका फिर रावण आगे बोला) मैं बस संभू के बारे में सोच रहा था। (फिर मन में बोला) तुम्हें कैसे बताऊं की मैं संभू के बारे में क्या सोच रहा था?

रघु…सोच लिया तो बता दो कि ये दलाल के पास काम करने वाला संभू ही हैं।

इस सवाल ने रावण को एक बार फिर से उलझन में डाल दिया कि संभू को जानता है और ये ही दलाल के पास काम करता हैं। लेकिन उलझन इस बात की थी कि सच बताए कि नहीं, बताया तब भी मुसीबत नही बताया तब भी मुसीबत, क्षणिक समय में रावण ने खुद में ही मंत्रणा कर लिया फिर जवाब में सिर्फ हां बोल दिया।

रघु…ठीक है फिर आप ही उन्हे संदेशा भिजवा दीजिए की संभू हॉस्पिटल में हैं।

एक बार फिर रावण ने हां में जवाब दिया फिर तीनों आईसीयू से बहार को चल दिए। जैसे ही बहर निकले सामने से साजन आता हुआ दिख गया। उससे कुछ बातें करने के बाद रघु कमला को लेकर महल लौट गया और रावण दलाल से मिलने चल दिया।

दलाल से मिलने रावण जा तो रहा था। लेकिन उसके मन में इस वक्त भी कई तरह के विचार चल रहा था। एक पल उसे सुकन्या की कहीं बात याद आ रहा था कि वो दलाल से फिर कभी न मिले अगले ही पल पोल खुलने का भय उसके मन को घेर ले रहा था। रावण अजीब सी कशमकश से जूझ रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हों रहा था। वह एक ऐसे टीले पे खड़ा है जिसके चारों ओर गहरी खाई हैं और टीला भी धीरे धीरे टूट कर खाई में गिरता जा रहा हैं।







खीयांयांयां तेज ब्रेक दबने की आवाज और रावण ने कार को एक ऐसे दो रहें पे रोक दिया जहां से उसे एक रास्ता चुनना था। एक रास्ता महल की ओर जाता हैं तो दुसरा रास्ता दलाल के घर की ओर, एक रास्ते में वो थी जिसकी रावण ने कसम खाई थी और उसी ने लगभग टूट चुके भरोसे की एक बार फ़िर से नीव रखी थीं। वहीं दूसरे रास्ते पर वो था जिसके पास रावण को घिर रहे अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता हों।

एक चुनाव करना था मगर रावण वह भी नहीं कर पा रहा था। उसका अंतरमन दो हिस्सों में बांट चुका था। एक उसे महल की ओर खीच रहा था तो दुसरा दलाल के घर ले जाना चाहता था। खीच तन का यह जंग कुछ लंबा चला और रावण को एक पैसला लेना था।

रावण फैसला ले चुका था बस अमल करना रह गया था। अपने फैसले पर अमल करते हुए रावण उस रास्ते पर चल पड़ा जिस और उसके अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता था। रावण तो गया लेकिन उसी तिराहे पे एक स्वेत छाया खड़ा रह गया। शायद रावण के अंतर मन का स्वेत हिस्सा रावण के साथ न जाकर वहीं खड़ा रहा गया और रावण को जाता हुआ देखता रहा। दूर और दूर रावण जाता गया और एक वक्त ऐसा भी आया जब स्वेत छाया के निगाहों से रावण ओझल हों गया।

मायूस सा स्वेत छाया वहा खड़ा रहा सहसा उसके चहरे से मायूसी का बादल छटा और एक विजयी मुस्कान लवों पे तैर गया क्योंकि रावण वापस लौट रहा था और तिराहे पे वापस आकर महल की रास्ते पे चल दिया।

कमला को छोड़कर रघु दफ्तर जा चुका था और महिला मंडली अपनी सभा में मस्त थे। सभा में मुख्य मुद्दा एक दिन बाद होने वाले जलसा ही बना हुआ था। कौन किस तरह का वस्त्र पहनेगा कितने प्रकार के आभूषण उनके देह की शोभा बढ़ाएगा ताकि देखने वाले दूर से ही देखकर कह दे कि ये राज परिवार से है। लेकिन पुष्पा का कुछ ओर ही कहना था कि महल में होने वाला जलसा एक नई सदस्य का परिवार से जुड़ने की खुशी में दिया जा रहा है इसलिए उन सभी से ज्यादा कमला आकर्षण का मुख्य बिंदु होना चाहिए।

पुष्पा का कहना भी सही था जिससे सभी सहमत हुए और तय ये हुआ कि तीनों महिलाए कमला को साथ लेकर दोपहर के भोजन के बाद शॉपिंग पर निकलेगी उसके बाद सभा के समापन की घोषणा किया गया। उसी वक्त रावण का पदार्पण हुआ। आते ही सुकन्या को रूम में आने को कहकर सीधा अपने कमरे में चला गया।

"क्या हुआ जी आते ही कमरे में बुला लिया" कमरे में प्रवेश करते ही सुकन्या ने सवाल दाग दिया। रावण चुपचाप जाकर दरवाजा बंद कर दिया। यह देख सुकन्या बोलीं…इस वक्त द्वार क्यों बंद कर रहें हों?

रावण बोल कुछ नही बस सुकन्या का हाथ थामे ले जाकर विस्तार पर बैठा दिया फ़िर बोला…कुछ बात करना था इसलिए तुम्हें कमरे में बुला लिया।

सुकन्या…हां तो बात करना था तो कारो न उसके लिए द्वार क्यों बंद किया।

रावण…संभू को लेकर कुछ जरूरी बाते करनी थीं इसलिए द्वार बंद कर दिया। कल बहू और पुष्पा ने जिसे हॉस्पिटल पहुंचाया। ये वहीं संभू हैं जो दलाल के यहां काम करता हैं और रघु उसे पहले से जानता हैं अब मुझे भय लग रहा हैं की कहीं संभू ठीक होने के बाद रघु को सब बता न दे।

संभू…हां बताएगा तो बताने दो उसमे क्या बड़ी बात हैं?

रावण…बड़ी बात ही हैं। संभू लगभग सभी बाते जानता हैं जो मैंने और दलाल ने उसके घर पर किया था। जितनी भी षडयंत्र रचा था लगभग सभी षडयंत्र के बारे में जानता हैं। दादा भाई के सभी छः विश्वास पात्र जासूसों को कब कैसे और कहा मारा यह भी जानता हैं अगर यह बात संभू ने रघु को बता दी तब दादा भाई के कान तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा। उसके बाद मेरे साथ किया होगा तुम्हें उसका अंदाजा नहीं हैं।

सुकन्या…क्या होगा इसका संभावित अंदाज मैं लगा चुकी हूं लेकिन आप खुद ही सोचकर देखिए कब तक आप छुपाकर रखेंगे कब तक खुद को बचा पाएंगे आज नहीं तो कल जेठ जी जान ही जायेंगे। संभू नहीं तो किसी दूसरे से जान लेंगे। मैं तो कहती हूं किसी दूसरे से जाने उससे पहले आप खुद ही अपना भांडा फोड़ दीजिए।

रावण…सुकन्या मैने अगर खुद से भांडा फोड़ दिया तब समझ रहीं हों दादा भाई क्या करेंगे मैने रघु की शादी रूकवाने में अंगितन षडयंत्र किया उनके विश्वासपात्र लोगों का खून किया मैं एक कातिल हूं इसका भान होते ही दादा भाई आप खो देंगे और अगर खुद पे नियंत्रण रख भी लिया तो कानून मुझे नहीं छोड़ेगा। कत्ल एक करो चाहें छः सजा तो मौत की मिलेगी।

रावण का इतना बोलना हुआ कि घुप सन्नाटा छा गया। दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोल रहें थे अगर कुछ हों रहा था तो सिर्फ़ विचारों में मंथन किया जा रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए सुकन्या बोलीं…होने को तो कुछ भी हों सकता हैं आप खुद से अपना जुर्म स्वीकार कर लेंगे तो हों सकता हैं कानून आपको बक्श दे मौत न देकर उम्र कैद की सजा दे।

कहने को तो सुकन्या कह दिया लेकिन अन्दर ही अन्दर वो भी जानती थी शायद ऐसा न हों और जो होगा उसके ख्याल मात्र से सुकन्या का अंतर मन रो रहा था पर विडंबना यह थी वो उसे दर्शा नहीं पा रहा था पर कब तक खुद को मजबूत रख पाती अंतः उसके अंशु छलक आए और पति से लिपट कर रो दिया। मन मीत से दूर होने की पीढ़ा रावण भी भाप रहा था। लेकिन वह अब कुछ कर नहीं सकता था इसलिए बोला…सब मेरी गलती हैं अपराध मैंने किया और उसकी सजा अब तुम्हें भी मिलेगा क्यों किया था अगर नहीं करता तो शायद आज मुझे और तुम्हें यह दिन न देखना पढ़ता।

सुकन्या ने कितना सुना कितना नहीं ये तो वहीं जाने मगर उसका रोना बदस्तूर जारी था। खैर कुछ देर रोने के बाद सुकन्या खुद को शांत किया फ़िर बोलीं…आप अभी किसी को कुछ मत कहना जब पाता चलेगा तभी खुद से ही बता देना इसी बहाने शायद कुछ दिन ओर आप के साथ बिताने को मिल जायेगा।

"ठीक हैं तुम जैसा कहो मैं वैसा ही करूंगा अब इन अश्रु मोतियों को समेट लो इसे तब बहाना जब मैं तुमसे दूर चला जाऊं।" सुकन्या के आसूं पोछते हुए रावण ने बोला तब सुकन्या हल्के हाथों से रावण के कन्धे पर दो तीन चपत लगा दिया। इसके बाद दोनों में छेड़खानी शुरू हों गया। जिससे माहौल में बदलाव आ गया।


रावण…सुकन्या रघु ने मुझे दलाल के घर संदेश भेजने को कहा हैं मुझे क्या करना चाहिए।

सुकन्या…करना क्या हैं जाईए और सुना दीजिए कि संभू को रघु जानता हैं। शायद जल्दी ही आप दोनों का भेद भी खुल जाएं।

इतना बोलकर सुकन्या ने मुस्कुरा दिया लेकिन उसकी मुस्कान सामान्य नहीं थी उसमें रहस्य झलक रहीं थीं। शायद रावण उस रहस्य को समझ गया होगा इसलिए बोला…जाऊंगा तो जरूर लेकिन सुनने के बाद जैसा दलाल करने को कहेगा मैं वैसा बिल्कुल नहीं करूंगा। मैं वहीं करूंगा जो तुम कहोगी।


पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।


आगे जारी रहेगा…
nice update ..to sambhu wahi hai jo sab bhed jaanta hai ravan ke .
ab ravan ko darr sata raha hai ki uski poll na khul jaaye .
sahi raste par chalne me pareshani to aayegi hi par shayad rajendr maafi de ravan ko .
sukanya bhi pati se dur hone ke darr se tadap rahi hai .
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,789
32,485
259
Update - 63


पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।

दलाल अभी अभी एक आलीशान महल के सामने पहुंचा था। हां आलीशान महल जिसकी भव्यता में कोई कमी नहीं अगर राज महल से इसकी तुलना कि जाएं तब राज महल की भव्यता के आगे बौना ही सिद्ध होगा अगर राज महल को परे रख दिया जाएं तो इस महल के आगे अन्य सभी आवास लगभग बौना ही लगेगा।

दलाल को देखते ही द्वारपाल ने इतनी तीव्र गति से अपना काम किया जैसे दलाल ही इस महल का स्वामी हों और महल स्वामी को द्वार पर ज्यादा देर प्रतीक्षा करवाना उचित नहीं होगा। मुख्य द्वार खुलते ही दलाल ने भी बिल्कुल वैसा ही प्रतिक्रिया दी।

"द्वार खोलने में इतना वक्त लगता हैं। हरमखोर तू कर क्या रहा था।?" दलाल के इन शब्दों का द्वारपाल ने कोई उत्तर नहीं दिया बस शीश झुकाकर खड़ा हों गया।

आगे का कुछ फैसला तय करके दलाल कार से उतर गया फ़िर शान से चलते हुए महल के भीतर चल दिया। कितना भी छीना ताने शान से चल ले लेकिन दलाल की डगमगाती चाल और बैसाकी के सहारे ने कुछ अंतर ला दिया था।

"आ मेरे भाई मेरे छीने से लगकर थोड़ी टंडक दे दे।" भीतर प्रवेश करते ही इन शब्दों ने दलाल का स्वागत किया और वह शख्स हाथ फैलाए खडा हों गया।

दलाल के चहरे की खुशी देखने लायक थी। ऐसा लग रहा था जैसे वर्षों के बिछड़े आज मिल रहें हों और दौड़कर अपने भाई से लिपट जाना चाहता हों लेकिन बैसाकी ने उसके इच्छाओं पे विराम लगा दिया इसलिए धीमे रफ्तार से चलते हुए आगे बढ़ने लगा।

"क्या हुआ मेरे भाई मुझसे मिलकर तू खुश नहीं हुआ और तेरे हाथ में यह बैसाकी क्यों?"

दलाल…खुश तो दादा भाई इतना हूं की दौड़कर आपसे लिपट जाने का मन कर रहा हैं लेकिन इस बैसाकी और टूटी हड्डियों ने मेरे इच्छाओं पर विराम लगा दिया।

"ओहो मैं तो भुल ही गया था दामिनी बहू ने उपहार में तुझे जीवन भर का जख्म दे दिया हैं। तू नहीं आ सकता तो क्या हुआ मैं तो आ सकता हूं।"

इतना बोलकर वह शख्स जाकर दलाल से लिपट गया। एक नौजवान लड़का, एक उम्रदराज महिला और कुछ नौकर चाकर इस भरत मिलाप के साक्षी बने कुछ पल देखने के बाद वह महिला बोलीं…चलो रे सब अपने अपने काम में लग जाओ इनका भरत मिलाप चलने दो आखिर दोनों भाई पांच साल बाद एक दूसरे से मिल रहें हैं।

"मैं तो इनसे लगभग प्रत्येक दिन मिलता हूं। लेकिन मुझसे तो कभी ऐसे नहीं मिले।" नौजवान लड़का शिकायत करते हुए बोला

दलाल…जो सामने रहते है उनसे मिलने की उत्साह थोड़ी कम होती हैं। इसलिए शिकायत करने से कोई फायदा नहीं हैं। क्यों दादा भाई मैंने सही कहा न?।

"बिल्कुल मेरे भाई चलो रे सभी कोना पकड़ो हम दोनों भाईयों को बहुत सारी बातें करनी हैं।"

सभी को कोना पकड़ने को कहा लेकिन हुआ उसका उल्टा वह शख्स दलाल को साथ लिए एक कमरे में चला गया और जाते जाते चेतावनी भी दे गया कि कोई उन्हें परेशान करने कमरे के आस पास भी न भटके।

"हमारी बहना प्यारी कैसी हैं? हमारा काम ठीक से कर रहीं हैं कि नहीं।" कमरे में आते ही वह शख्स ने सवाल दाग दिया।

दलाल…दादा भाई हमारी बहना अब प्यारी नही रहीं वो बदल गईं हैं। हमारे काम करने से सुकन्या ने साफ साफ इंकार कर दिया हैं।

"सुकन्या ने इंकार कर दिया तो क्या हुआ रावण तो अपने हाथ में है न उसी से ही राजमहल में लक्षा गृह का अग्नि कांड करवाएंगे।"

"अग्नि कांड" सिर्फ़ इतना दलाल ने दोहराया फिर हा हा हा की तीव्र दानवीय हंसी हंसने लग गया साथ में उसका भाई भी बिल्कुल दलाल की ताल से ताल मिलाकर हंसने लग गया। चारों दिशाओं से बंद कमरा जिसकी दीवारों से टकराकर हसीं की गूंज प्रतिध्वनि प्रभाव (echo effect) छोड़ रहा था।

"साला बुड़बक, बड़बोला, मंद बुद्धि कितनी शान से कहता हैं मैं रावण हूं रावण कलियुग का रावण।" दलाल ने लगभग खिल्ली उड़ने के तर्ज से कहा और एक बार फ़िर से दनवीय हसीं से हंसने लग गया।

"रावण हा हा हा रावण महा ज्ञानी था। उनके पांव के धूल बराबर भी नहीं हैं। मंद बुद्धि को इतना भी नहीं पाता कौन दुश्मन कौन दोस्त हैं।"

दलाल…हा हा हा सही कह मंदबुद्धि, नहीं नहीं महा मंदबुद्धि हैं। हमें जिस मौके की तलाश थीं। थाली में सजाकर हमारे हाथ में सौंप दिया मंदबुद्धि को अपना वर्चस्व स्थापित करना था। दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना था। कहता था दलाल मेरे दोस्त मेरे ह्रदय में चिंगारी जल रहा है। मुझे अपना वर्चस्व स्थापित करना हैं दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना हैं बता मैं क्या करूं जिससे मेरा यह सपना पुरा हों।

"हा हा हा उस चिंगारी को तूने इतनी हवा दी कि अब चिंगारी, चिंगारी नहीं रहा दहकती ज्वाला बन गया और उसी ज्वाला में उसी का महल स्वाहा होने वाला हैं।"

"स्वाहा" अग्नि कुंड में आहुति डालने का अभिनय करते हुए दलाल बोला और वैसा ही अभिनय उसके भाई ने किया फ़िर पहले से चल रहीं दानवीय हसीं और तीव्र हों गईं। सहसा दोनों भाईयों में हंसने की प्रतिस्पर्धा छिड़ गया। जितनी तीव्र दलाल हंस रहा था। उसका भाई उससे तीव्र हंस रहा था। कंठ की सहन शक्ति की एक सीमा होती हैं। दोनों भाइयों की दानविय हसीं ने उनके कंठ की मांसपेशियों को थका दिया जिस कारण दोनों भाईयों ने हंसने की तीव्रता में कमी ला दिया। इसका मतलब ये नहीं की हसीं रूक गईं थीं। हंसने का पाला चल रहा था। बस स्वर दानवीय से घटकर सामान्य हों गया था।

दलाल…एक अरसे से हमारे हृदय में जल रहें बदले की ज्वाला को अब शांत कर लेना चाहिए। मौका भी है ओर रावण और राजेन्द्र की ग्रह दशा भी उस ओर इशारा कर रहा हैं।

"दोनों भाईयों की ग्रह दशा ने अभी अभी चाल बदलना शुरू किया हैं। उसे पूरी तरह बदलकर तीतर बितर होने दे फ़िर उपयुक्त समय देखकर अपना बदला ले लेंगे।"

दलाल…उपयुक्त समय क्या देखना? अभी सबसे उपयुक्त समय हैं। हमें बस राजेंद्र के कान में रावण के किए कर्मों की जानकारी पहुंचना हैं और बैठे बैठे दोनों भाईयों के ग्रह दशा के साथ साथ उनके परिवार को तीतर बितर होते हुए देखना है।

"अहा दलाल तू इतना अधीर क्यों हों रहा हैं। वकालत की पेशे में इतना अधीर होना ठीक नहीं हैं।"

दलाल…दादा भाई अधीर नहीं हों रहा हूं मै तो बस संभावना बता रहा हूं। दोनों भाईयों के बीच बारूद लगा दिया हैं। बस एक चिंगारी लगाना हैं फिर एक भीषण धमाका होगा और दोनों भाईयों के बीच दूरियां बनना तय हैं। इसी के लिए हम वर्षों से साजिशें रच रहें हैं।

"अभी अगर कुछ भी किया तो उसकी लपेट में सिर्फ़ रावण आयेगा और रावण के कुकर्मों को जानने के बाद हों सकता हैं राजेंद्र खुद अपने भाई की हत्या कर दे या फ़िर कानून को सौंपकर कानूनन सजा दिलवाए अगर ऐसा हुआ तब मैं जो सोच रखा हैं वैसा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं चाहता हूं दोनों भाईयों के बीच ऐसी दुश्मनी की नीव पढ़े जो पीढ़ीदर पीढ़ी चलती रहें।"

दलाल…न जानें आपने क्या क्या सोच रखा हैं लेकिन मैं बस इतना ही कहूंगा कि इस वक्त भी वैसा ही हों सकता हैं जैसा आप चाह रहें हैं।

"होने को तो कुछ भी हों सकता हैं इसलिए अति शीघ्रता करने की आवश्यकता नहीं हैं नहीं तो सभी किए कराए पे पानी फिर जायेगा इसलिए जैसा चल रहा हैं चलने दो क्योंकि मुझे सिर्फ़ बदला ही नहीं चहिए बल्कि कुछ ओर भी चहिए।"

"कुछ ओर (कुछ देर सोचने के बाद दलाल आगे बोला) कुछ ओर से आप का इशारा गुप्त संपत्ति की ओर तो नहीं हैं। लेकिन हमे तो राज परिवार की संपति कभी चाहिए ही नहीं थी। पहले पापा फिर आपने विद्रोही का चोला ओढ़कर इतनी संपति अर्जित कर रखा हैं कि उसके सामने गुप्त संपत्ति भी कुछ नहीं हैं।"

"नहीं रे राज परिवार के गुप्त संपत्ति के आगे हमारी संपति निम्न है। न जानें कितने पुश्तों से राज परिवार गुप्त संपत्ति एकत्र कर रहें हैं फिर भी मैं बस इतना ही कहूंगा मुझे गुप्त संपत्ति नहीं बल्कि कुछ ओर चाहिए।"

दलाल…कुछ ओर कुछ ओर ये कुछ ओर है क्या? मुझे भी बता दीजिए

"ये एक राज है जब मैं उस राज के नजदीक पहुंच जाऊंगा तब सबसे पहले तुझे ही बताऊंगा अभी तू बस इतना जान ले उसके बारे में मुझे पहले जानकारी नहीं था। बस कुछ वर्षों पहले मुझे पता चला फ़िर अधिक जानकारी जुटाने के लिए में देश विदेश भ्रमण पे निकला कुछ विचित्र लोगों से मिला लेकिन उनसे भी भ्रमित करने वाली जानकारी ही मिला कोई कुछ तो कोई कुछ जानकारी दे रहा था मैं तो बस एक शंका के करण राज महल को आधार मानकर चल रहा हूं क्योंकि राज महल का इतिहास बहुत पुराना हैं कितना पुराना इसका भी पुख्ता सबूत मेरे पास नहीं हैं।"

दलाल…जब पुख्ता सबूत नहीं हैं तब उसके पीछे भागने से क्या फायदा बाद में जान पाए की न हम अपना बदला ले पाए और न ही वो राज हाथ लगा जिसको पाने के पीछे आप भाग रहें हों।

"पुख्ता प्रमाण नहीं हैं तो क्या हुआ। कुछ ऐसे तथ्य मिले है जो इशारा करता हैं उस राज की जड़े राजमहल या उसके सदस्य से जुड़ा हुआ हैं और जब तक उस राज की जड़े न खोद लूं मैं चुप नहीं बैठने वाला।"

दलाल…तथ्य क्या हैं? मुझे कुछ बता सकते हों।

"कहा न जब उस राज की पुख्ता सुराग मिल जायेगा तब तुझे भी बता दूंगा अभी अधूरी जानकारी लेकर तू भी मेरी तरह भ्रमित रहेगा।"

दलाल…हम सभी को भ्रमित करते रहते हैं हमे भला कौन सा राज भ्रमित कर सकता हैं।

"गलत अंकलन ही विषय वस्तु की दशा और दिशा दोनों बादल देता हैं। इसलिए अहंकार बस किसी को कमजोर नहीं आंकना चहिए। चाहें वो राजेंद्र,रावण या राजमहल का राज हों।"

दलाल…सत्य वचन भ्राताश्री अब चलो थोड़ा महफिल सजाया जाएं जाम से जाम टकराकर वर्षों बाद दोनों भाई मिले हैं इसकी खुशी मनाई जाएं।

"हां क्यों नहीं दोनों भाई दुनियां के सामने भले ही महफिल न सजा पाए लेकिन विलास महल में हम कुछ भी कर सकते है।"

दोनों भाई एक दूसरे के गले में हाथ डाले गहरे मित्रवत भाव का परिचय देते हुए विलास महल के दूसरे छोर की ओर चल दिया। जाते जाते कुछ चखने की व्यवस्था करने का आदेश भी दे दिया।

महल के दुसरे छोर में अच्छे खासे जगह को एक वार का रूप दिया हुआ था। जहां एक से एक नामी कम्पनियों के महंगी से महंगी नशीली पेय को सुसज्जित तरीके से रखा हुआ था।

"दलाल अपने पसंद का बोतल उठा और पैग बना आज मैं तेरे पसंद का पियूंगा"

दलाल…दादा भाई दो तीन ब्रांड का मिक्स कॉकटेल पीने का मेरा मन हों रहा हैं आप कहो तो आपके लिए भी बना दूं।

"हां बिल्कुल बना, देखे तो सही हमपे जो नशा चढ़ा हुआ हैं उसपे ये कॉकटेल कितना हावी होता हैं।"


"आप दोनों भाइयों ने दिन दोपहरी में ही पीने का मन बना लिया।"

दलाल…बड़े दिनों बाद दोनों भाई मिले हैं तो बस जाम से जाम टकराकर जश्न मना रहें हैं। अब भला जश्न मनाने में किया दिन किया रात देखना।

"बड़े दिनों बाद मिले हों इसलिए दिन में पीने से नहीं रोक रहीं हूं लेकिन ध्यान रखना नशीले पेय का नशा ज्यादा न चढ़े वरना मैं हावी हों जाऊंगी।"

दलाल की भाभी चखना देने आई थीं। चखने के साथ हड़काके चली गई। इसके बाद दलाल कॉकटेल बनता रहा और दोनों भाई पीने लगे। तीन तीन पैग अन्दर जानें के बाद नशा अपना असर दिखने लगा और मन में छुपी बाते बाहर आने लगा।

दलाल… दादा भाई मेरे हृदय में हमेशा एक टीस सी उठती रहती हैं। इतना बडा महल होते हुए मुझे एक छोटे से घर में रहना पड़ता हैं। बडा भाई होते हुए दुनिया के सामने अपना रिश्ता उजागर नहीं कर सकतें ऐसा कितने दिनों तक ओर करना पड़ेगा।

"इस बात की टीस तो मेरे ह्रदय में भी उठता रहता हैं लेकिन क्या करें राज परिवार से बदला जो लेना हैं अगर ऐसा न करना होता तो पिता जी हम दोनों भाईयों को एक दूसरे से दूर रखकर दुनिया से पहचान छुपाकर न पाला होता और हमारी एक मात्र बहन को दूसरे के हाथों सौंप न दिया होता।"

दलाल…सुकन्या हमारी बहन नहीं हैं। भले ही उसके रगों में हमारा ही खून दौड़ रहा हों लेकिन उसकी सोच हमारी जैसी नहीं हैं। जिसने उसे पाला है उसने अपनी सोच उसके मन में डाली हैं।

"इसमें उसकी गलती नहीं है। सुकन्या की तरह तुझे भी कोई दुसरा पालता तब तेरी सोच भी शायद बदला हुआ होता बस पिता जी से इतनी गलती हों गई कि उन्होंने सुकन्या से सानिध्य बनाए नहीं रखा। अब तू ही बता उम्र के एक पड़ाव पे आकर सहसा पाता चले कि जिसने तुझे पाला वास्तव में वे तेरे जन्मदाता मां बाप नहीं हैं फिर तू क्या करता।"

दलाल…अलग तो मैं भी रहा बस फर्क इतना हैं कि मुझे किसी दूसरे ने नहीं पाला ऐसे में मेरी सोच भी बादल सकता था ? इस पे आप क्या कहेंगे?

"हां बदल सकता था लेकिन पिता जी ने तेरी सोच बदलने नहीं दिया। समय रहते तुझे बता दिया कि राज परिवार से हमारी दुश्मनी हैं और कारण भी बता दिया। अगर सुकन्या को भी बता दिया जाता तब वो भी हमारी तरह ही होती। उसे तो आज भी पाता नहीं हैं बस हमने उसे अंधेरे में रखकर अपना काम निकलवाना चाहा।"

दलाल…जो भी हो मैं बस इतना जानता हूं सुकन्या हमारे दुश्मन परिवार से है इसलिए वो भी हमारा दुश्मन हुआ। जब तक सुकन्या हमारा काम करती रहीं तब तक हमारा उससे रिश्ता था अब वो हमारा कोई भी काम नहीं कर रहीं हैं तो हमें उससे कोई रिश्ता रखने की आवश्कता नहीं हैं।

"हां बिल्कुल ऐसा ही होगा दुश्मन परिवार में विहायी हैं तो वो भी हमारा दुश्मन ही हुआ। उसके साथ भी वैसा ही होगा जैसा बाकियों के साथ होगा। अब हमें उससे कोई वास्ता नहीं रखना अगर किसी से वास्ता रखना ही हैं तो वह रावण होगा क्योंकि हम उसकी सहायता से अपना बदला भी लेंगे और राजमहल के छुपे राज का भी पाता लगाएंगे।"

दलाल…राजमहल का राज न जानें कौन सा वो राज हैं? जिसके पीछे आप समय खफा रहें हों। जानना चाहा तब भी नहीं बताया ज्यादा कहा तब आप कहेंगे जिद्द न कर फ़िर भी इतना कहूंगा कि जीतना आप जानते हैं उसका कुछ हिस्सा मुझे बता दीजिए अगर वह राज राजमहल से जुड़ा हैं। तो हों सकता हैं रावण उस बारे में कुछ जानता हों और मैं उससे कुछ अहम जानकारियां निकाल पाऊं।

"मुझे लगता हैं राजेंद्र और रावण में से कोई शायद ही उस राज के बारे में जानता हों क्योंकि दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा इन सभी को मैंने उसी राज की जानकारी निकलने के लिए राजेंद्र के पास भेजा था। चारों ने बहुत सावधानी से बहुत प्रयास किया लेकिन कोई जानकारी नहीं निकाल पाया। अंतः रावण के हाथों उन चारों को मरवाना पड़ा वरना वे सभी कभी न कभी उगल ही देते कि मैं राजमहल के किसी छुपे राज को जानना चाहता हूं।"

दलाल…हा हा हा दादा भाई अपने मुझे भी अंधेरे में रखा और रावण तो शुरू से अंधेरे में हैं। हमने उससे अपना काम निकलवाया खुद का बचाव किया और रावण सोचता हैं उन चारों को मारकर खुद का बचाव किया। क्यों न राजमहल के छुपे राज का पर्दा रावण के हाथों उठवाया जाएं क्योंकि जो राज वर्षों से छुपा कर रखा गया उस पे चर्चा भी खुलेआम नहीं किया जायेगा इसलिए मुझे लगता हैं रावण भी उस राज के बारे में जानता होगा बस खुलेआम कोई चर्चा नहीं करता होगा।

"कह तो तू सही रहा हैं लेकिन इसमें खतरा भी बहुत हैं अगर रावण जानता होगा तब कहीं हमारी ही जान पे न बन आए।,

दलाल…हमारी जान को कोई खतरा नहीं होगा इसका उत्तरदायत्व मैं लेता हूं। आप मुझे बस वो राज क्या हैं और अब तक आपको कितनी जानकारी मिला हैं फिर मैं सोचूंगा की रावण को कौन सा चूरन दिया जाएं जिससे हमारा काम हों जाएं।

"हा हा हा चूरन! तूने महामूर्ख रावण को इतना चूरन दिया ओर अधिक चूरन दिया तो उसका हाजमा ठीक होने के जगह कहीं खराब न हों जाएं।"

दलाल…हा हा हा होता हैं तो होने दो वो महामूर्ख सिर्फ ओर सिर्फ़ मेरा दिया चूरन खाने के लिए पैदा हुआ हैं। चूरन खायेगा ओर कहेगा मैं रावण हूं रावण कलियुग का रावण।

हा हा हा एक बार फिर से दोनों भाई तीव्र स्वर में दानवीय हसीं हंसने लग गए। बीतते पल के साथ हंसी तीव्र ओर तीव्र होता जा रहा था। जो सम्पूर्ण महल में प्रतिध्वनि प्रभाव छोड़ रहा था। जी भर हंसने के बाद अंतः दोनों भाईयों की दानविय हंसी को विराम लगा और दलाल का भाई बोलना शुरू किया।

"दलाल तुझे याद तो होगा आज से लगभग छः, साढ़े छः साल पूर्व रावण और राजेन्द्र के पिताश्री अगेंद्रा राना पे आत्मघाती हमला करवाया था।"

दलाल…हां याद हैं ओर यह भी याद है अगेंद्रा राना उस आत्मघाती हमले में बच गया था लेकिन उसके लगभग दो ढाई साल बाद एक दुर्घटना में मारा गया।

अगेंद्रा राना के एक दुर्घटना में मृत्यु की बात सुनते ही दलाल के भाई के लवों पे रहस्यमई मुस्कान आ गया जो आगाह कर रहा था कि उस दुर्घटना से जुड़ा कोई तो राज है जो दलाल का भाई जानता हैं।

"हां बच तो गया था लेकिन कभी तूने विचार किया कि उस आत्मघाती हमले में अगेंद्रा राना कैसे बचा, क्यों बचा, किसने बचाया था?"

दलाल…अगेंद्रा राना कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। जहां भी आता जाता था अंगरक्षकों का एक पूर्ण जत्था साथ लिए जाता था ऐसे में हमारे भेजे हमलावरों से कोई चूक हुआ होगा।

"चूक नहीं हुआ था बल्कि हमारे भेजे हमलावरो ने अगेंद्रा राना के सभी अंगरक्षकों को मार दिया था बस अगेंद्रा राना ही बचा था उस पे हमला कर पाते तभी कहीं से कुछ स्वेत वस्त्र धारी लोग आए और चुटकियों में सभी हमलावरों का सफाया करके अगेंद्रा राना को बचाकर ले गए। ये बातें हमारे ही एक आदमी ने बताया जो किसी तरह छिपकर अपनी जान बचाने में सफल रहा सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि एक यन्त्र भी मुझे दिया जिस पे प्रशांति निलयम् लिखा था।"

दलाल…स्वेत वस्त्र धारी लोग और प्रशांति निलयम् अब किया बदला लेने के लिए इनसे भी निपटना पड़ेगा।

"शायद हां लेकिन उसके बारे में जानकारी भी तो होना चहिए पर विडंबना ये है कि हमें न स्वेत वस्त्र धारियों के बारे में कुछ पाता हैं न ही उस यन्त्र के बारे में, पिछले पांच साल में न जानें कहा कहा घुमा कितने जानें माने उपकरण विशेषज्ञों से मिला पर फायदा कुछ नहीं हुआ। सभी बस एक ही बात कह रहें थे कि ये कोई यन्त्र नहीं बल्कि किसी संस्था का प्रतीक हैं और उस पे लिखा नाम उस संस्था का नाम हैं।"

दलाल…हां तो वे लोग सही कह रहें होंगे। वो विशेषज्ञ हैं और उनकी सोध गलत कैसे हों सकता हैं।

"मैं भी उनकी सोध को गलत कहा कह रहा हूं लेकिन मैं हार नहीं मानने वाला इसलिए मैंने उस प्रशांति निलयम् नमक यंत्र या फ़िर किसी संस्था की प्रतीक पर सोध के लिए अपना एक गुट लगा रखा हैं। सोध जब तक चलता है चलने दो लेकिन हमें उन स्वेत वस्त्र धारियों के बारे में पाता लगाना हैं। अगर किसी तरह छल बल या कौशल से उन स्वेत वस्त्र धारियों के संस्था को हथिया लिया जाएं तब हमसे शक्तिशाली कोई नहीं होगा।"

दलाल…ठीक हैं फिर रावण के लिए कोई चूरन तैयार करता हूं और उसके पेट में छुपी इस प्रशांति निलयम् नामक राज उगलवा लेता हूं।

एक बार फिर दोनों भाईयों की दानविय हंसी ने सम्पूर्ण महल को दहला दिया पर इस बार उनकी हंसी ज्यादा देर नहीं चली क्योंकि दलाल की भाभी ने आकर दोनों को हड़का दिया। सिर्फ हड़काया ही नहीं अपितु घरेलू वार को ही बंद कर दिया।


आगे जारी रहेगा….
romanchak update ..bahut se raaz khul gaye is update me .
dalal ka ek bhai bhi hai aur dono milkar rajendr ke pariwar se badla lena chahte hai .
ravan ko apne bas me kar rakha hai dalal ne powerful banane ka kehkar .
shwet vastra wala aadmi ya jo koi bhi hai wo najar banaye huye hai ravan par jaisa ki pichhale update me padha jaha ravan haweli chala gaya dalal ke ghar jaana chhodkar .

ab ye dalal ka bhai us yantra aur shwet vastrdhari sanstha ke baare me jaankari jutane me lag gaya hai .
par abhi tak ye pata nahi chala ki in logo ki kya dushmani hai rajendr ke pariwar se .
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
15,789
32,485
259
Update - 64


दलाल…ठीक हैं फिर रावण के लिए कोई चूरन तैयार करता हूं और उसके पेट में छुपी इस प्रशांति निलयम् नामक राज उगलवा लेता हूं।

एक बार फिर दोनों भाईयों की दानविय हंसी ने सम्पूर्ण महल को दहला दिया पर इस बार उनकी हंसी ज्यादा देर नहीं चली क्योंकि दलाल की भाभी ने आकर दोनों को हड़का दिया। सिर्फ हड़काया ही नहीं अपितु घरेलू वार को ही बंद कर दिया।

अगले दिन दोपहर का समय हों रहा था। राजमहल की सभी महिला सदस्यों में किसी विषय पर गहन मंत्रणा हों रहीं थीं। लेकिन मंत्रणा के बीच बीच में पुष्पा महारानी कुछ ऐसा कह देती जिसे सुनकर बाकी महिलाएं हंस हंसकर लोटपोट हों जाती। जिस कारण मंत्रणा में कुछ क्षण का विराम लग जाता एक बार फिर शुरू होता फिर वहीं अंजाम होंता। इतना हंसे इतना हंसे कि सभी के पेट में दर्द हों गया लेकिन हसीं हैं की रूकने का नाम नहीं ले रहें थे। मंत्रणा और हंसी का खेल चल ही रहा था कि उसी वक्त राजमहल के बाहर से किसी कार के हॉर्न की आवाज आई जिसे सुनते ही सुरभि बोलीं…बहू जरा जाकर देखो तो कौन आया है?

पुष्पा…मां बाहर जाकर देखने की जरूरत ही क्या हैं? जो भी आए हैं उन्हें भीतर तो आना ही हैं। भीतर आने दो फ़िर देख लेंगे।

सुरभि…फ़िर भी बहू को जाकर देखना चहिए। जाओ बहू जाकर देखो शायद तुम्हारे लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला कुछ हों।

कमला…मुझे जीतना आश्चर्यचकित करना था आपने कल खरीदारी करते समय ही कर दिया था। अब ओर क्या बच गया जो मुझे आश्चर्यचकित कर दे।

सुरभि…कुछ ऐसा जिसकी तुमने उम्मीद न कि हों।

"उम्मीद न की हों।" इतना दौहराकर कमला अपने मस्तिष्क में जोर देने लग गईं। तब सुरभि बोलीं…बहू मानसिक खींचतान करने से अच्छा जाकर देख लो।

"ठीक हैं मम्मी जी" बोलकर कमला बाहर की ओर चल दिया लेकिन कमला का मस्तिष्क अब भी उसी बात में उलझा हुआ था। उन्हीं उलझनों को सुलझाते हुए कमला दो चार कदम चली ही थी कि द्वार से भीतर आ रहें शख्स को देखकर कमला की कदम जहां थीं वहीं ठहर गईं। ललाट पे आश्चर्य का भाव तो था ही साथ ही अन्तर मन में भावनाओ का ज्वार भी आ चुका था। एक बार पलटकर सुरभि को देखा जिसके मुखड़े पर तैर रहीं मुस्कान बता रहीं थीं कि मैंने बिल्कुल सही कहा था तुम्हारी उम्मीद से पारे कुछ हैं और इशारे से कह दिया जाओ आगे बढ़ो।

एक बार फ़िर से द्वार की ओर कमला पलटी अबकी बार एक और चेहरा दिखा दोनों साथ में खड़े मुस्कुरा रहें थे। यह देख कमला की आंखों के पोर भींग गईं। बस "मां पापा" ये दो शब्द मुंह से निकला और कमला जितनी तेज भाग सकती थी उतनी तेजी से दौड़कर दोनों के पास पहुंचकर रूक गईं। इसलिए रूकी क्योंकि कमला तह नहीं कर पा रही थीं कि पहले किससे लिपटे मन तो उसका दोनों से लिपटने का कर रहा था। मगर एक ही वक्त में दोनों से लिपटे तो लिपटे कैसे? शायद महेश और मनोरमा बेटी की उलझन समझ गए होंगे। इसलिए दोनों ने एक हाथ से एक दूसरे का हाथ थामे रहें और खाली हाथों को सामने की ओर फैला दिया। बस कमला को ओर किया चहिए अपनी दोनों बाहें फैलाकर मां बाप से एक साथ लिपट गई। प्रतिक्रिया स्वरूप महेश और मनोरमा के हाथ बेटी के सिर पे पहुंच गए। सिर को सहलाते हुए अपना प्यार लूटने लग गए।

मां बाप के प्यार का अहसास पाते ही कमला की रूलाई फूट पड़ी। नही रोते, नहीं रोते कहकर बेटी को सांत्वना दे रहे थे। मगर कई दिनों बाद बेटी से मिलने की तड़प या कहूं ललक दोनों मां बाप के ह्रदय में भी ज्वार ला दिया था। उनकी आंखों ने बगावत का बिगुल फुक दिया और हृदय में उठ रहीं भावनाओ का ज्वार नीर बनकर बह निकला।

रोती हुई कमला ने अल्प विराम लिया खुद को मां बाप से थोड़ा सा अलग किया "आप दोनों आ रहें थे तो मुझसे झूठ क्यों बोला" बोलते हुए मां बाप के आंसू को पोंछा और फिर से लिपट गईं। बेटी की इस व्यवहार ने दोनों के लवों पे मुस्कान ला दिया। आंखों में नीर लवों पे मुस्कान वाला यह दृश्य हृदय को गुदगुदा देने वाला बन गया।

मां बाप बेटी के मिलन की यह दृश्य देखकर सुरभि और सुकन्या को अपने वैवाहिक जीवन के शुरुवाती दिन याद आ गए शायद यहीं एक वजह रहा हों जिस कारण सुकन्या के आंखों में सिर्फ़ आंसू था वहीं सुरभि की आंखों में हल्की नमी और लवों पे खिला सा मुस्कान और महारानी पुष्पा की भाव तो निराली थीं। लवों पे मुस्कान आंखों में नमी और ठोढ़ी पे उंगली टिकाएं विचार की मुद्रा बनाई हुई थीं।

"हमारी प्यारी सखी रोना धोना हों गया हों, मां बाप से मिल लिए हों तो हमसे भी मिल ले हम भी साथ आए हैं।" ये कहने वाली चंचल और शालू थीं जो अभी तक पीछे खड़ी देख रहीं थीं। इन आवाजों को सुनते ही कमला थोड़ा सा उचकी और मां बाप के कन्धे से पीछे देखने लगीं।

चंचल…अंकल आंटी बेटी से मिल लिए हों तो थोड़ा रस्ता दीजिए हमे भी अपनी सखी से मिलने दीजिए

महेश और मनोरमा तुरंत किनारे हट गए फ़िर कमला दोनों सखियों से बड़े उत्साह से मिली फिर सभी के साथ आगे को बढ़ गईं। औपचारिक परिचय होने के बाद सुरभि बोलीं…समधी जी समधन जी मुझे आपसे बहुत शिकायत है। हमने आपको इसलिए नहीं बुलाया की आते ही हमारी बहू को रुला दो (फ़िर कुछ कदम चलके कमला के पास गईं और उसके सिर सहलाते हुए बोलीं) बहू हमें तुम्हारी खुशी से चहकता मुखड़ा देखना था इसलिए तो समधी जी और समधन जी की आने की बाते तुमसे छुपाए रखा लेकिन तुमने तो हमें अपना रोना धोना दिखा दिया। अब रोए सो रोए आगे बिल्कुल नहीं रोना।

कमला सिर्फ हां में सिर हिला दिया और मनोरमा बोलीं…समधन जी भला कौन मां बाप अपने बेटी को रूलाना चाहेगा मगर यह भी सच है की बेटी अब कभी कभी अपने मां बाप से मिल पाएगी और जब मिलेगी शुरू शूरू में रोना आ ही जायेगी।

सुरभि…समझ सकती हूं मैं भी किसी की बेटी हूं और उस दौर से गुजर भी चुकी हूं। अच्छा बाकी बाते बाद में होगी अभी आप लोग थोड़ी विश्राम ले लो। बहू जाओ इनको अतिथि कक्ष में ले जाओ तब तक मैं इनके जल पान की व्यवस्था करवाती हूं। (फिर धीरा को आवाज देकर बोलीं) धीरा अतिथियों के लिए जल पान की व्यवस्था करो और किसी को भेज कर इनके सामानों को अतिथि कक्ष में रखवा दो।




"रानी मां किसी को भेजने की जरूरत नहीं हैं हम लेकर आ गए।" एक नौजवान दो बैग हाथ में लिए भीतर आते हुए बोला उसके पिछे पिछे तीन नौजवान ओर दोनों हाथों में एक एक बैग उठाए भीतर हा रहें थे। अतिथि चार और साथ लाए बैग आठ यह देख सुरभि के लवों पे मुस्कान तैर गई। मुस्कुराने की वजह क्या थी यह तो सुरभि ही जानें।

महल बहुत बड़ी जगह में बना हुआ था जिसके एक हिस्से में परिवार के सदस्य रहते थे तो दूसरे हिस्से में अतिथि कक्ष बना हुआ था। एक कमरे के सामने आते ही पुष्पा बोलीं…भाभी आप अंकल आंटी को उनका कमरा दिखाइए और आपके सहेलियों को उनके कमरे तक मैं छोड़ आती हूं।

कमरे का द्वार खोलकर कमला मां बाप के साथ भीतर चली गईं। शालू और चंचल को साथ लिए पुष्पा आगे बड़ गईं। एक ओर कमरे के पास पहुंच कर द्वार खोलते हुए पुष्पा बोलीं…आप दोनों को अलग अलग कमरा चहिए की एक ही कमरे में रह लेंगे।

चंचल…एक ही कमरा चलेगा क्यों शालू?

शालू…बिल्कुल चलेगा हम दोनों लड़कियां हैं और सोने पे सुहागा हम दोनों सखियां भी हैं तो अलग अलग कमरा क्यों लेना।

एक ही कमरे में रहने की सहमति होते ही तीनों कमरे में प्रवेश कर गए। कमरे में कहा किया हैं इसकी जानकारी देने के बाद पुष्पा बोलीं…किसी भी चीज की जरूरत हों तो बेझिझक कह दीजिएगा।

चंचल…कुछ भी

पुष्पा…हां कुछ भी मांग लेना

"खंभा मिल सकता है।" हाथों के सहारे दिखते हुए चंचल बोलीं

पुष्पा…हाआ आप दोनों पीते हों।

चंचल…कभी कभी लिटल लिटल डकार लेते हैं।

पुष्पा…लिटल लिटल क्यों ज्यादा ज्यादा पियो किसने रोका हैं।

शालू…ज्यादा ज्यादा करके कहीं ओवर फ्लो न हों जाएं।

पुष्पा…ओवर फ्लो हुआ तो कोई बात नहीं उसे भी रोकने की व्यवस्था कर दूंगी।

चंचल…वाहा पुष्पा जी आप तो पहुंची हुई चीज मालूम पड़ती हों कहीं आप भी छुप छुपकर लिटल लिटल डकार तो नहीं लेती।

पुष्पा…न न आप गलत रूट पे गाड़ी चला दिया मैं तो बस इसलिए हां बोला क्योंकि आप राजामहल के अतिथि हों। अतिथियों के इच्छाओं का ख्याल रखना हमारे लिए सर्वोपरि हैं।

शालू…अरे महारानी जी ज्यादा लोड न लो नहीं तो वजन तले दब जाओगी। चंचल तो सिर्फ़ मसखरी कर रहीं थीं हम तो उस बला को छूते भी नहीं पीना तो दूर की बात हैं।

पुष्पा…थैंक गॉड बचा लिया नहीं तो आप दोनों की खाम्बे का जुगाड करते करते मेरी महारानी की पदवी छीन जाती।

पुष्पा ने अभिनय का ऐसा नमूना दिखाया की शालू और चंचल हंस हंस के लोट पोट हों गईं। हस्ते हुए चंचल बोलीं…महारानी जी आपके बारे में कमला से सिर्फ सुना था आज देख भी लिया कमाल हों आप।

पुष्पा…सुना तो आप दोनों के बारे में भी हैं भाभी कह रहीं थीं उनकी दो खास सखियां है जो नंबर एक चांट हैं।

दोनों एक साथ "क्या चांट बोला" इतना कहकर कमरे से बाहर कि ओर दो चार कदम बढ़ाया ही था कि पुष्पा बोलीं…अरे आप दोनों कहा चले

"कमला से निपटने जा रहें हैं। ससुराल हैं तो क्या हुआ हमारी गलत प्रचार करेंगी। कुछ भी हां…" दोनों ने साथ में बोला

पुष्पा…अरे बाबा रूको तो भाभी मां बाप से बतियाने में मस्त हैं। जब तक भाभी बतियाती है तब तक आप दोनों विश्राम करके तरोताजा हों लीजिए फ़िर अच्छे से भाभी से निपट लेना।

"ये भी ठीक हैं" इतना बोलकर दोनों वापस मुड़ी फिर शालू बोलीं…महारानी जी हम तीनों हम उम्र हैं इसलिए संबोधन में औपचारिकता ठीक नहीं लग रहीं।

पुष्पा…मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं बल्कि मुझे तो अच्छा लगेगा बस इतना ध्यान रखिएगा मेरा नाम पुष्पा हैं महारानी नहीं।

महारानी कहने को लेकर तीनों में छोटा सा वादविवाद हुआ। शालू और चंचल ने अपनी अपनी दलीलें पेश की और पुष्पा उन दलीलों को सिरे से नकार दिया। अंतः शालू और चंचल झुक गए पुष्पा की बातों पे सहमति जाता दी फिर तय ये हुआ कि तीनों एक दूसरे का नाम लेकर संबोधन करेंगे फ़िर पुष्पा उनके कमरे से बाहर निकल गईं। मन बनाया कमला के पास जानें का, कमला मां बाप के साथ थी तो उस ओर मुड़ गईं लेकिन जाते जाते कुछ सोचकर वापस पलट गई और अपने कमरे में चली गईं। कमरे में विराजित टेलीफोन के साथ थोड़ी दुष्टता की और किसी को फोन लगा दी। एक रिंग दो रिंग तीन रिंग पर मजाल जो कोई फोन रिसीव कर ले "ये अंतिम बार हैं अगर फोन रिसीव नहीं की तो खुशखबरी सुनने से वंचित रह जाओगे।" इतना बोलीं और फिर से फोन लगा दी, फोन की रिंग अंतिम पड़ाव पे थीं। कभी भी कट सकता था लेकिन भला हों उस मानव का जिसने फोन कटने से पहले ही रिसीव कर लिया।

पुष्पा…रमन भईया कहा थे कब से फोन लगा रहीं थीं। खामाखा अपने महारानी को परेशान कर दिया आप जानते है न आपको इस गलती की सजा मिल सकता हैं।

रमन…माफ करना बहन जी, नहीं नहीं महारानी जी मैं बाहर लॉन में था इसलिए पाता नहीं चला कि फोन बज रहा हैं। वो तो भला हों छोटू का जो उसने बता दिया वरना आज अच्छा खासा नाप जाता।

पुष्पा…लॉन में कर किया रहें थे। कहीं पहाड़ी वादी का लुप्त लेते हुए अपनी मासुका शालू को याद तो नहीं कर रहें थे?

पुष्पा द्वारा पुछा गया यह सवाल रमन के मुंह पे ताला लगा दिया। फोन के दूसरी ओर से आवाजे आनी बंद हों गईं। मतलब साफ था पुष्पा का अनजाने में चलाई गई तीर ठीक निशाने को भेद गई। बस फिर क्या पुष्पा चढ़ बैठी एक ही सवाल बार बार दौहराकर रमन के मस्तिष्क के सारे पुर्जे ढीला कर दी। अंतः हार मानकर रमन बोला…मेरी बहना कितनी प्यारी हैं। एक क्षण में अंदाज लगा लिया उसका भाई किसे याद कर रहा था। हां रे तूने सही कहा मैं शालू को ही याद कर रहा था।





पुष्पा…शालू को इतना ही याद कर रहे थे तो मिलने चले जाओ किसी ने रोका थोड़ी न है।

रमन…रोका तो नहीं पर जाऊ कैसे उसे बता ही नहीं पाया कि मुझे उससे प्यार हों गया हैं।

पुष्पा…हां ये भी सही कह रहे हों। मैं कुछ कर सकती हूं लेकिन मुझे…।

"हां हां तू जो मांगेगी दिलवा दूंगा बस बता दे।" पुष्पा की बात कटकर रमन बोला

पुष्पा…ठीक हैं फिर आप अभी के अभी राजमहल आ जाओ।

रमन…बस तू फोन रख मैं उड़ते हुए पहुंच जाऊंगा।

पुष्पा…न न उड़के आने की जरूरत नहीं हैं। धीरे धीरे और सावधानी से कार चलाते हुए आना।

रमन…जैसी आपकी आज्ञा महारानी जी।

उतावला रमन शालू से मिलने के लिए इतना व्याकुल था कि तुरंत ही फोन रख दिया मगर उस व्याकुल प्राणी को ये नहीं पाता की उसे शालू से मिलने कहीं जानें की जरूरत ही नहीं हैं वो तो राजमहल में अतिथि बनकर आ चुकी हैं। बस उसे आने की देर हैं भेंट होने में वक्त नहीं लगेगा। खैर रमन के फ़ोन रखते हैं पुष्पा बोलीं…बावले भईया स्वांग ऐसे कर रहें हैं जैसे जाने की व्यवस्था कर दिया तब मिलते ही बोल देंगे। बोला तो कुछ जायेगा नहीं फट्टू जो ठहरे लगता हैं मुझे ही कुछ करना पड़ेगा चल रे पुष्पा दूसरी भाभी घर लाने की कोई तिगड़म भिड़ा।

बस इतना ही बोलकर पुष्पा मंद मंद मुस्कुराने लगीं और मस्तिष्क में जोर देकर शालू और रमन की टांका भिड़ने का रस्ता निकलने लगीं।

उधर जब कमला मां बाप को लिए कमरे के भीतर गई। भीतर जाते ही कमला का तेवर बदल गईं। दोनों को खींचते हुए लेजाकर विस्तार पे बैठा दिया फिर तेज कदमों से वापस आकर द्वार बंद कर दिया। महेश और मनोरमा बेटी के तेवर देखकर एक दूसरे को इशारे में पूछने लगे कि कमरे में आते ही इसके तेवर क्यों बदल गईं। लेकिन उत्तर दोनों में से किसी को ज्ञात न था। इसलिए आगे किया होगा ये देखने के आलावा कोई चारा न था।

कमरे में ही सजावट के लिए रखी हुई फूलदान को उठा लिया और मां बाप के सामने पहुंचकर फूलदान को हाथ पे मरते हुए बोलीं…उम्हू तो बोलो आप दोनों ने न आने की झूठी सूचना मुझे क्यों दी जबकि आप दोनों आ रहें थे।

"कमला" शब्दों में चासनी घोलकर मनोरमा बोलीं।

कमला…मस्का नहीं मुझे सिर्फ़ सच सुनना हैं। (फूलदान मां की ओर करके बोलीं) आप बोलेंगे (फिर बाप की और फूलदान करके बोलीं) कि आप बोलेंगे।

"कमला (महेश ने खुद और मनोरमा के बीच की खाली जगह पे थपथपाते हुए आगे बोलीं) यह आ हमारे पास बैठ।

कमला…पापा बोला न मस्का नहीं, मुझे सिर्फ़ सच सुनना हैं। आप सच बताने में देर करेंगी तब मुझे गुस्सा आ जाएगा। गुस्से को शांत करने के लिए मुझे तोड़ फोड़ करना पड़ेगा। क्या आप चाहते हैं मैं गुस्से में तोड़ फोड़ करू।

मनोरमा…ये क्या बचपना है तेरी शादी हों गई फिर भी तेरी बचपना नहीं गईं।

कमला…क्या आई क्या गईं ये नहीं पुछा मैंने जो पुछा सच सच बता रहे हो की तोड़ फोड़ शुरू करूं।

बातों को खत्म करते ही कमला ने फूलदान के सिर वाले हिस्से को पकड़ा फिर मां बाप को इशारे में बोलीं छोड़ दूं। कहीं सच में कमला फूलदान न तोड़ दे। इसलिए मनोरमा फूलदान को कमला के हाथ से झपट लिया और महेश खींचकर कमला को पास बैठा दिया फिर बोला…हम तो तुम्हें बताना चाहते थे लेकिन राजेंद्र बाबू का कहना था वो तुम्हारे चेहरे पे खुशी देखना चाहते हैं। इसलिए हम तुम्हें बताए बिना अचानक आ पहुंचे।

कमला…मम्मी जी और पापा जी मुझसे बहुत स्नेह करते हैं। हमेशा ध्यान रखते हैं कि मैं कैसे खुश रहूं। सिर्फ़ इतना ही नहीं कल हम सभी शॉपिंग करने गए थे। वस्त्र हों गहने हों या जिस भी समान को देखकर मैंने बस इतना कहा कि देखो ये कितना अच्छा लग रहा हैं। बस मम्मी जी ने उसे मेरे लिए खरीद लिया ये नहीं देखा की उसकी कीमत कितनी है। आप लोगों ने क्या किया अपने आने की खबर मुझसे छुपा ली जबकि जितनी बार मैंने बात की प्रत्येक बार पुछा मिन्नते भी किया लेकिन आप दोनों ने एक बार भी मुझे नहीं बताए की आप लोग आ रहें हों। उस घर से विदा होते ही क्या मैं आप दोनों के लिए इतनी पराई हों गईं कि इतनी मिन्नते करने के बाद भी आप दोनों का ह्रदय नहीं पिघला अरे आप दोनों बस इतना ही कह देते की हम आ रहें हैं बस तेरा ससुर नहीं चाहते हैं कि हमारे आने की भनक तुझे लगे। तब मैं ऐसा अभिनय करती कि उन्हें भी भनक नहीं लगने देती। आप दोनों के आने की खबर मुझे पहले से पता हैं।

बेटी की बातों ने मनोरमा ओर महेश को आभास करा दिया कि जिसे खुश देखने के लिए उन सभी ने मिलकर इतना तम झाम किया वो धारा का धारा रह गया। बेटी खुश होने के जगह व्यथित हों गई। इसलिए मनोरमा और महेश ने एक साथ कमला को खुद से लिपटा लिया और एक साथ एक ही स्वर में बोलीं…हम मानते है हमसे गलती हों गई लेकिन अब आगे से हम ऐसी गलती नहीं करेंगे। हमेशा ध्यान रखना तू हमारे ले न कल पराई थी न आज।

कमला…ध्यान रखना ऐसी गलती दुबारा नहीं होनी चाहिए।

मनोरमा…हा हम ध्यान रखेंगे लेकिन तू भी ध्यान रखना यह भी गुस्से में तोड़ फोड़ न कर देना।

कमला… वो तो बस आप दोनों को डराना के लिया किया था वरना मैं क्यों अपना घर तोड़ने लगी जिसे मैंने अभी अभी सजना शुरू किया।

मनोरमा…ओ जी हमारी बेटी तो बहुत समझदार हों गईं हैं।

कमला…ये कोई नई बात नहीं हैं। मैं समझदार पहले से ही थी। क्या आप जानते नहीं थे?

गीले सिकबे जो थी वो दूर हो गई और माहौल में बदलाव आ गया। मां बाप बेटी तीनों बातों में इतना माझ गए की उन्हें ध्यान ही नहीं रहा। वो कमरे में विश्राम करने आए थे। जल पान का बुलावा आया तब कहीं जाकर उन्हें ध्यान आया कि उन्हें कमरे में क्यों भेजा गया था। बरहाल बारी बारी मनोरमा और महेश हाथ मुंह धोकर आए फिर तीनों साथ में जलपान के लिए चले गए।

आगे जारी रहेगा….
majedar update .kamla ko surprise dene ke chakar me rula diya sabne .
apne maa baap se milke rona to aayega hi ,shadi ke baad jo mil rahe hai .
shalu aur chanchal ke saath achchi jodi ban gayi pushpa ki .aur ab pushpa raman ka shalu ke saath taaka bhidane ke jugaad me hai 😁.
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,674
144
lovely update ..to dalal naam aur kaam se bhi dalal hi hai jo ravan ko sukanya se alag hone ki salaah de raha hai .
sukanya ne sahi rasta to dikha diya ravan ko aur dalal se dosti todne ko kaha aur ravan bhi maan gaya .
Thank you so much

Patni bhakt rawan aor kab tak patni ki bato ko darkinar kar sakta tha isliye maan liya.😁
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,674
144
lovely update ..munim hera pheri kar raha hai ye aaj pata chal gaya raghu ko jab usne budhi amma ko sadi huyi sabjiyo ko chunte huye dekha .ab munim ka kya faisla karta hai raghu dekhte hai .
Thank you so much

Hona kya munim ki charvi chhilke utar di jayegi.
 
  • Like
Reactions: SANJU ( V. R. )

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,674
144
nice update ..sajan ne to raghu ke order ka sahi se palan kiya aur lungi me hi utha laya munim ko 🤣..
garibo ke hak ka khakar charbi badh gayi hai isliye jaldi apni galti nahi maan raha tha par kamla ka raudra roop dekhkar raja sahab ke kadmo me gir hi gaya .

Thank you so much

Lungi nahi tauliya me utha laya tha. Munim ne charbi badhai hai to utar bhi jayega.
 
  • Like
Reactions: SANJU ( V. R. )
Top