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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136
 
Last edited:

raniaayush

Member
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उपवास तो ढकोसला बाजी है, अंधविश्वास है, स्वतंत्रता के मामले में और विकसित होने के मामले में हमारा देश जर्मनी की पैर की धूल के बराबर भी नहीं है अभी। उसकी बराबरी करना तो भूल ही जाओ। जहां लोगो की अपासी इच्छा और रजामंदी को कानून बनाया गया है उसमे कुछ गलत नही है। बाकी हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है इसमें कोई संदेह नहीं है। रही बात भारत में भाई बहन के संबंधों की तो जितने केस कोर्ट में भाई बहन के साथ जबरदस्ती संबंध और बाप और बेटी के बीच शारीरिक संबंध से भरे पड़े हैं दुनिया के किसी देश में इतने केस नही है। इतना नीच और गंदी सोच है भारत के लोगों में, जब रजामंदी से सम्बन्ध नही तो जबरदस्ती बनाने को आतुर हैं। इसका मतलब है की देश के बहुत लोग खुद की ही बेटी बहन से सेक्स इच्छा रखते हैं और पूरी नही होती तो जबरदस्ती बलात्कार करते हैं। हां बाप बेटी या बहन भाई के बीच अगर दोनो की रजामंदी से सम्बन्ध बनते हैं तो इसमें किसी को कोई दिक्कत नही होनी चाहिए। वैसे भी देश के 13 राज्यों में और जहां जहां भी पंजाबी, मुस्लिम, सिख, ईसाई, और साउथ इंडियन राज्यों की जातियों में और नॉर्थ ईस्ट लोगों में खुद की बुआ, चाचा, बहन की बेटी, मोसी की बेटी, मां की बहन, आदि बहनों से शादी ब्याह आम बात है और अब तो बाकी जातियों में भी ये प्रचलन फैलने लगा है। धर्मांधता और अंधविश्वास, देवी देवता आदि के चक्कर में तो देश विकसित देशों से बहुत साल पीछे है जबकि विकसित देशों से ज्यादा पैसा संसाधन हमारे देश में हैं लेकिन संस्कृति का हवाला डेकर मर रहे हैं और वैसे बहु बेटी बहन के साथ इंसेस्ट कहानी पढ़ते हो। और बात संस्कृति की कर रहे हो। ऐसी कहानी को पढ़कर तुम भी अपनी बहन के साथ वही सोच रहे होंगे जो सोनू सोचता है या मैं तो मानता हू की मेरा मेरी छोटी बहन से संबंध हैं और इसका कोई दुख भी नहीं क्योंकि रजामंदी है हम दोनों में। आप सबकी तरह चोरी छुपे उसको गंदी नजरों से देखना या खुद को सोनू की जगह रखकर खुद की बहन की कल्पना करना। ये तो नही करते।
सबसे पहली बात
1 मैं ने जो कहा वो केवल भारत के संदर्भ में नही है किसी भी देश की सभ्यता संस्कृति भौगोलिक कारकों द्वारा निर्देशित हुई होती है।
2 मैंने स्पष्ट कहा कि शारीरिक सम्बन्ध का एक ही सिद्धान्त है- सहमति और कुछ नहीं।
सहमति से जिससे मन उससे सम्बन्ध बनाइये कौन मन करता है।
3 मेरे कमेंट में कहीं भी भारत और जर्मनी की तुलना नहीं है इसलिए अतार्किक और सन्दर्भरहित बातें न लिखें।
3 आप अपने जीवन में क्या करते हैं ये भी मेरे कॉमेंट का हिस्सा नहीं है इसलिए मेरे बारे में भी अनर्गल सोच का व्यक्तिगत कॉमेंट न करें।
4 रही बात कहानी पढ़ने कि तो मनुष्य का मन जो सोचता है वो सब जाहिर नहीं करता। यूं समझ लो कि शादी क्यों होती है सब जानते हैं लेकिन सभी अपने माता पिता के सामने या ग्रुप में सम्बन्ध नहीं बनाने लगते और कुछ लोग बनाते भी होंगे समाज ऐसा ही है मिश्रण है।
धन्यवाद
 
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shameless26

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YOU HAVE MASTERED DILEMAS. AS THINGS APPEAR TO BE SETTLING AND CHARACTERS ARE COMING TO TERMS WITH LIFE, AN IDEA FROM NO WHERE APPEARS ON THE SCENE TO ONCE AGAIN THROW ALL OUT OF GEAR. GREAT GOING.
 
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Tarahb

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सबसे पहली बात
1 मैं ने जो कहा वो केवल भारत के संदर्भ में नही है किसी भी देश की सभ्यता संस्कृति भौगोलिक कारकों द्वारा निर्देशित हुई होती है।
2 मैंने स्पष्ट कहा कि शारीरिक सम्बन्ध का एक ही सिद्धान्त है- सहमति और कुछ नहीं।
सहमति से जिससे मन उससे सम्बन्ध बनाइये कौन मन करता है।
3 मेरे कमेंट में कहीं भी भारत और जर्मनी की तुलना नहीं है इसलिए अतार्किक और सन्दर्भरहित बातें न लिखें।
3 आप अपने जीवन में क्या करते हैं ये भी मेरे कॉमेंट का हिस्सा नहीं है इसलिए मेरे बारे में भी अनर्गल सोच का व्यक्तिगत कॉमेंट न करें।
4 रही बात कहानी पढ़ने कि तो मनुष्य का मन जो सोचता है वो सब जाहिर नहीं करता। यूं समझ लो कि शादी क्यों होती है सब जानते हैं लेकिन सभी अपने माता पिता के सामने या ग्रुप में सम्बन्ध नहीं बनाने लगते और कुछ लोग बनाते भी होंगे समाज ऐसा ही है मिश्रण है।
धन्यवाद बकवास
 
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Dkd

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इंसान कितनी भी तकनीकी तरक्की करले लेकिन आप बिल्कुल गलत हैं की सब पर काबू कर लिया है। आपकी बात से असहमत हूं। आपका मानना हो सकता है लेकिन अभी भी इंसान को पप्रकृति के आगे झुकना पड़ता था। इंसान प्रगति तो कर गया लेकिन मूर्ख भाई बना है। तकनीकी तरक्की के साथ साथ लेकर आया है अप्रत्याशित भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और लाइलाज बीमारियां। तो आपकी बात गलत है की सब पर काबू कर लिया
बाकी जानवरों को काबू किया है ना कि प्रकृति को
 
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Dkd

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एक और मजेदार और आम बात कोई भी इसे व्यक्तिगत ना ले हर मूर्ख अपनेआप को भयंकर समझदार और बाकी दुनिया को बिजली का खम्भा समझता है पर बॉस बाकी दुनिया बिजली का खम्भा नही है
 
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