अपडेट-- 12
ठाकुर चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ा था......
ठाकुर के घर में सीर्फ उसकी पत्नी रेनुका थी......रेनुका 48 साल की गोरी चीट्टी औरत थी....भरा हुआ बदन पर शांत रहने वाली औरत थी......
जैसे ही सब चुनाव प्रचार के लीये नीकले..... रेनुका फीर से अपने कमरे में चली गयी......।
रेनुका कमरे में अकेले बैठी थी.....की तभी वहां चंपा आ गयी.....चंपा के हाथ में चाय का कप था.....
चंपा चाय का कप रेनुका के तरफ करते हुए-
चंपा- ये लीजीये मालकीन चाय पीलीजीए!
रेनुका ने अपना हाथ बढ़ाकर चाय का कप ले लीया.....
चंपा चाय दे कर जैसे ही जा रही थी , रेनुका ने चंपा को रोक लीया.....
चंपा- जी कहीए मालकीन क्या हुआ?
रेनुका- चंपा जीस रात सेठ जी का कत्ल हुआ....उस रात तू यहां क्या कर रही थी?
रेनुका के इस जवाब ने चंपा के पसीने छुड़ा दीये.....वो कशमकश में पड़ गयी और रेनुका के बातो का क्या जवाब दे उसे कुछ समझ में नही आ रहा था....
चंपा-- वो......वो मै....मै.....उस रात...।
रेनुका-- डरने की जरुरत नही है चंपा तू खुल कर बोल.....
चंपा ने सोचा की छुपा कर कुछ फायदा नही है......और वैसे भी सेठ जी का कत्ल मैने थोड़ी ही कीया है.....जो डरु......और ये बात तो मैने उस दरोगा को भी बता दीया है।
फीर चंपा ने उस रात की घटना रेनुका को पुरा साफ साफ बता दीया.....
ये सुनकर रेनुका ने कहा....
रेनुका- तो तू उस रात सेठ जी के साथ कुछ नही कर पायी!
चंपा-- कहां मालकीन.....सेठ जी का पानी छुटते ही, दुबारा उठे ही नही....
रेनुका- कीतना बुरा लगता है ना....जब कोई औरत अधुरी प्यासी रह जाती है, तो।
रेनुका की बात सुनकर चंपा फीर असमंजस में पड़ जाती है....उसने सोचा की मालकीन ये कैसी बात कर रही है.....घर में कतल हो गया है.....और ये कैसी बात....तभी
रेनुका-- मुझे पता है तू क्या सोच रही है....लेकीन अब तू ही बता की इस घर में कोई औरत तो है नही जीससे मैं अपने दील की बात कर सकूं , मेरी बेटी है तो उससे मै अपनी हालत बंया नही कर सकती....
चंपा-- कैसी हालत मालकीन?
रेनुका-- एक प्यासी अकेली औरत की कैसी हालत होती है?
चंपा-- लेकीन मालकीन........ठाकुर साहब के होते हुए आप!
रेनुका- तेरे मालीक बड़े रंगीन कीस्म के मर्द है........उन्हे तो दुसरी औरतो में सुख मीलता है.......मेरे पास तो उनको आये ज़माना हो गया.......और सुना है की अब तेरे मालीक कीसी कज़री नाम के औरत के पीछे पड़े है.........लेकीन वो औरत इनके हाथ नही आ रही....क्या तू जानती है उस औरत को?
चंपा- लो कर लो बात , भला कजरी को कौन नही जानता..........सच कहूं तो कजरी के पीछे मालीक ही नही, बल्की पूरा का पूरा गांव लगा है।
रेनुका-- क्या सच में वो इतनी सुंदर है।
चंपा-- सुंदर नही मालकीन सुदंरता की मुरत कहो.......
रेनुका- काश भगवान ने मुझे भी उतना सुदंर बनाया होता तो मेरा पती दीन रात मेरे पीछे ही घुमता...
चंपा- बुरा ना मानो तो एक बात कहूं मालकीन!
रेनुका-- अरे बोल तू......मै भला बुरा क्यूं मानूगीं?
चंपा-- प्यास बुझाने के लीये जरुरी थोड़ी है की पती का ही होना जरुरी हो......कभी कभी दो औरते मीलकर भी अपनी अपनी प्यास बुझा लेती है.....हां वो बात अलग है की मर्द से मीला हुआ सुख अलग ही एहसास देता है लेकीन जंहा मर्दो की उम्मीद कम लगे वंहा अगर एक औरत दुसरे औरत के काम आ जाये तो बुरा क्या ?
ये बात सुनकर रेनुका की आंखो में चमक सी आ गयी.....
चंपा-- अगर आप कहे तो, इस काम में मै माहीर हूं।
रेनुका कुछ बोलने ही वाली थी की....तभी उसका छोटा बेटा राजीव वंहा पहुचं गया...
राजीव को देखकर रेनुका और चंपा दोनो की आंखे फटी पड़ जाती है,
क्यूकीं राजीव अपने फोन में उन दोनो की बाते रीकार्ड करके अपने फोन में चालू करके उनके सामने ही खड़ा हो गया।
राजीव-- इस काम मे सीर्फ तू नही मैं भी माहीर हू चंपा.....और मेरी मां की हालत तुझसे बेहतर मैं समझ सकता हूं.....है की नही मां।
रेनुका हंसते हुए बीस्तरे पर से उठी और अपने बेटे के करीब जा कर उसके गले में अपनी बांहे डाल देती है.
रेनुका-- पिछले एक सालो से तू ही तो अपनी मां की हालत समझ रहा है बेटा!
चंपा अब तक जीसे भोली भाली नादान समझ रही थी....उसका ये रुप देखकर तो वो हैरान रह गयी , और सबसे बड़ी हैरानी की बात तो मां बेटे के रीश्तो में संबध की थी....चंपा कुछ बोलती इससे पहले ही
रेनुका- मुझे पता है तू इस समय क्या सोच रही है....और तू जो सोच रही है बिलकुल सही सोच रही है.....ये मेरा बेटा पिछले एक सालो से तेरी मालकीन की बुर को शांत कर रहा है.......
चंपा की हालत को लकवा मार गया....उसे कुछ समझ में नही आ रहा था।
चंपा- तो....तो मालकीन अ...आप मेरे साथ ये कब से क्या?
रेनुका-- तेरे साथ ये थोड़ा बहुत खेल खेलना पड़ा....वो हमारी आदत है क्यूं बेटा! असली काम तो हमारा मोहरा ढ़ुढ़ने का था।
चंपा(चौकते हुए) - मोहरा! कैसा मोहरा?
रेनुका- मोहरा...मतलब तू!
ये बात पर चंपा को पसीने आने लगे.....वो एकदम घबरा गयी....वो अपने चेहरे पर से पसीने पोछते हुए बोली-
चंपा- म.....मै कुछ समझी नही!
रेनुका- ठीक है मै समझाती हूं.....यहां से करीब 500 कीलो मीटर दुर एक घनी पहाड़ी है....और वो पहाड़ी करीब हजार कीलोमीटर के दायरे में स्थीत है....
उस पहाड़ी का नक्शा वो तो ठाकुर के पास है, यानी की मेरे पती के पास।
और वो नक्सा मेरे पती ने अपने बाप को मारकर हांसील की थी.....लेकीन उस पहाड़ी के नक्से का एक छोटा सा टुकड़ा वो जीसके पास है वो मेरे पती के अलावा मैं भी जानती हूं की वो कीसके पास है।
अब मेरा सबसे बड़ा खतरा मेरा पती है....क्यूकीं उसने उस नक्से के चक्कर में सीर्फ अपने बाप की ही जान नही ली थी....बल्की मेरे बाप की भी जान ली थी....लेकीन उस नक्से का जो छोटा टुकड़ा था उसे एक आदमी ले कर नीकल गया था.....ऐसे बहुत सारे राज़ है उस पहाड़ी के जो सीर्फ एक शख्स जानता है....और उस इसांन के पास मेरा पती पहुचें इससे पहले मैं उसको उपर पहुचाँ दूगीं॥
एक बार मैने कोशीश भी की थी....लेकीन उस कोशीश में बेचार सेठ मर गया.....
चंपा की हालत को अब लकवा मार गया....
रेनुका- - तू डर मत मैं तुझे ठाकुर को मारने के लीये नही कह रही.....तूझे सीर्फ एक काम करना है.....जीसके बदले तूझे मुहमागीं कीमत मीलेगी......
चंपा के चेहरे पर घने बादल मड़रा रहे थे....वो सोचने लगी की कहीं ये लोग पैसे के लालच में मेरी जान का सौदा ना कर दे....
रेनुका- - क्या सोचने लग गयी...?
चंपा (चौकते हुए) - हां.....हां....करूगीं॥
चंपा के मुह से अनायास ही ये शब्द नीकल पड़े।
रेनुका-- तो तुझे जो काम मै दे रही हूं वो तुझे सोच समझ कर करना होगा.....तुझे मै एक पहेली बता रही हूं उस पहेली का मतलब ही तूझे ठाकुर साहब से पता करना है...।
चंपा-- पर मालकीन ये तो आप सीधा ठाकुर साहब से पुछ सकते हो....इसमे मेरी क्या जरुरत!
रेनुका- इस पहेली का जवाब , अगर ठाकुर साहब से आसानी से मील जाता तो मैं कब का पुछं चुकी होती।
चंपा- अगर पहेली का जवाब इतना ही जरुरी है तो.....आप ने पहेली के जवाब मीलने से पहले ठकुर साहब को क्यूं मारने का प्रयास कीया।
रेनुका-- क्यूकीं इस पहेली का जवाब ठाकुर को भी नही पता....लेकीन कीसको पता है ये ठाकुर जानता है।
ठाकुर साहब ने मुझे उसका नाम बताया था....लेकीन उसने मुझसे झूठ कहा था ये बात मुझे कल पता चली...
चंपा - ले....लेकीन पहेली क्या है?
रेनुका - तो सुन
"सावन के गीत बने तो, बने नाम वो प्राण प्रीये का॥ प्राण प्रीये का प्राण अश्व समुखा, जो तन भोगे प्राण प्रीये का प्राण नाथ समुखा॥ वो संकीला होय॥
ये पहेली सुनकर चंपा चौकते हुए बोली-
चंपा- ये......ये पहेली मैने कही सुनी है।
चंपा के मुह से ये सुनकर राजीव और रेनुका एक दुसरे का मुह देखने लगे.....और चौकंते हुए बोले-