Bahut hi shandar update aur is update ki sabse khoobsurat bat Neha ki samjhadari aur stuti ki shaitaniya.इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (4)
अब तक अपने पढ़ा:
माँ ने एक-एक कर तीनों माँ-बेटा-बेटी को प्यार से समझा दिया था, जिसका तीनों ने बुरा नहीं माना| हाँ इतना जर्रूर था की तीनों प्यारभरे गुस्से से स्तुति को देख रहे थे| जब माँ ने तीनों को स्तुति को इस तरह देखते हुए पाया तो उन्होंने किसी आर्मी के जर्नल की तरह तीनों को काम पर लगा दिया;
माँ: बस! अब कोई मेरी शूगी को नहीं घूरेगा! चलो तीनों अपने-अपने काम करो, वरना तीनों को बाथरूम में बंद कर दूँगी!
माँ की इस प्यारभरी धमकी को सुन तीनों बहुत हँसे और कमाल की बात ये की अपनी मम्मी, बड़े भैया तथा दीदी को हँसता हुआ देख स्तुति भी खिलखिलाकर हँसने लगी!
अब आगे:
स्तुति के साथ दिन प्यार से बीत रहे थे और आखिर वो दिन आ ही गया जब मेरे द्वारा संगीता के लिए आर्डर किये हुए कपड़े साइट पर डिलीवर हुए| अपने उत्साह के कारण मैंने वो पार्सल एक कोने में जा कर खोल लिया और अंदर जो कड़पे आये थे उनका मुआयना किया, कपड़े बिलकुल वही थे जो मैंने आर्डर किये थे| चिंता थी तो बस एक बात की, क्या संगीता ये कपड़े पहनेगी? या फिर अपनी लाज-शर्म के कारण वो इन्हें पहनने से मना कर देगी?! "मेरा काम था कपड़े खरीदना, पहनना न पहनना संगीता के ऊपर है| कम से कम अब वो मुझसे ये शिकायत तो नहीं करेगी की मैं हमारे रिश्ते में कुछ नयापन नहीं ला रहा?!" मैं अपना पल्ला झाड़ते हुए बुदबुदाया| मेरी ये बात काफी हद्द तक सही थी, मैंने अपना कर्म कर दिया था अब इस कर्म को सफल करना या विफल करना संगीता के हाथ में था|
खैर, मैं कपड़ों का पैकेट ले कर घर पहुँचा तो मुझे दोनों बच्चों ने घेर लिया| आयुष और नेहा को लगा की इस पैकेट में मैं जर्रूर उनके लिए कुछ लाया हूँ इसलिए वो मुझसे पैकेट में क्या है उन्हें दिखाने की जिद्द करने लगे| अब बच्चों के सामने ये कपड़े दिखाना बड़ा शर्मनाक होता इसलिए मैं बच्चों को मना करते हुए बोला; "बेटा, ये आपके लिए नहीं है| ये किसी और के लिए है!" मैं बच्चों को समझा रहा था की इतने में संगीता आ गई और मेरे हाथ में ये पैकेट देख वो समझ गई की जर्रूर उसके लिए मँगाया हुआ गिफ्ट आ गया है इसलिए वो बीच में बोल पड़ी; "आयुष...नेहा...बेटा अपने पापा जी को तंग मत करो! ये लो 20/- रुपये और जा कर अपने लिए चिप्स-चॉकलेट ले आओ!" संगीता ने बड़ी चालाकी से बच्चों को चॉकलेट और चिप्स का लालच दे कर घर से बाहर भेज दिया|
बच्चों के जाने के बाद संगीता अपनी आँखें नचाते हुए मुझसे बोली; "आ गया न मेरा सरप्राइज?" संगीता की आँखों में एकदम से लाल डोरे तैरने लगे थे! वहीं संगीता को इन कपड़ों में कल्पना कर मेरी भी आँखों में एक शैतानी मुस्कान झलक रही थी!
अब चूँकि रात में हम मियाँ-बीवी ने रंगरलियाँ मनानी थी तो सबसे पहले हमें तीनों बच्चों को सुलाना था और ये काम आसान नहीं था! संगीता ने फौरन आयुष और नेहा को आवाज़ मारी और मेरी ड्यूटी लगते हुए बोली; "तीनों शैतानों को पार्क में खिला लाओ और आते हुए सब्जी ले कर आना|" संगीता की बात में छुपी हुई साजिश बस मैं जानता था और अपनी पत्नी की इस चतुराई पर मुझे आज गर्व हो रहा था!
बहार घूमने जाने की बात से दोनों बच्चे बहुत खुश थे और स्तुति वो तो बस मेरी गोदी में आ कर ही किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| हम चारों घर से सीधा पार्क जाने के लिए निकले, रास्ते भर स्तुति अपनी गर्दन घुमा-घुमा कर अपने आस-पास मौजूद लोगों, दुकानो, गाड़ियों को देखने लगी| हम पार्क पहुँचे तो नेहा खेलने के लिए चिड़ी-छक्का (badminton) ले कर आई थी तो दोनों भाई-बहन ने मिल कर वो खेलना शुरू कर दिया| वहीं हम बाप बेटी (मैं और स्तुति) पार्क की हरी-हरी घास पर बैठ कर आयुष और नेहा को खेलते हुए देखने लगे|
अपने आस-पास अन्य बच्चों को खेलते हुए देख और आँखों के सामने हरी-हरी घास को देख स्तुति का मन डोलने लग, उसने मेरी गोदी में से उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने स्तुति को गोदी से उतार कर घास पर बिठाया तो स्तुति का बाल मन हरी- हरी घास को चखने का हुआ, अतः उसने अपनी मुठ्ठी में घास भर कर खींच निकाली और वो ये घास खाने ही वाली थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया; "नहीं-नहीं बेटा! इंसान घास नहीं खाते!" मुझे अपना हाथ पकड़े देख स्तुति खिलखिला कर हँसने लगी, मानो कह रही हो की पापा जी मैं बुद्धू थोड़े ही हूँ जो घास खाऊँगी?!
मैं अपनी बिटिया रानी की हँसी में खोया था, उधर स्तुति ने अपना एक मन-पसंद जीव 'गिलहरी' देख लिया था| हमारे घर के पीछे एक पीपल का पेड़ है और उसकी डालें घर की छत तक आती हैं| उस पेड़ पर रहने वाली गिलहरी डाल से होती हुई हमारी छत पर आ जाती थी| जब स्तुति छत पर खेलने आने लगी तो गिलहरी को देख कर वो बहुत खुश हुई| गिलहरी जब अपने दोनों हाथों से पकड़ कर कोई चीज़ खाती तो ये दिर्श्य देख स्तुति खिलखिलाने लगती| गिलहरी देख स्तुति हमेशा उसे पकड़ने के इरादे से दौड़ पड़ती, लेकिन गिलहरी इतनी फुर्तीली होती है की वो स्तुति के नज़दीक आने से पहले ही भाग निकलती|
आज भी जब स्तुति ने पार्क में गिलहरी देखि तो वो मेरा ध्यान उस ओर खींचने लगी, स्तुति ने अपने ऊँगली से गिलहरी की तरफ इशारा किया और अपनी प्यारी सी, मुझे समझ न आने वाली जुबान में बोलने लगी| "हाँ बेटा जी, वो गिलहरी है!" मैंने स्तुति को समझाया मगर स्तुति को पकड़ने थी गिलहरी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पैरों पर रेंगती हुई गिलहरी के पास चल दी| मैं भी उठा और धीरे-धीरे स्तुति के पीछे चल पड़ा| परन्तु जैसे ही स्तुति गिलहरी के थोड़ा नज़दीक पहुँची, गिलहरी फट से पेड़ पर चढ़ गई!
मुझे लगा की स्तुति गिलहरी के भाग जाने से उदास होगी मगर स्तुति ने अपना दूसरा सबसे पसंदीदा जीव यानी 'कबूतर' देख लिया था! कबूतर स्तुति को इसलिए पसंद था क्योंकि कबूतर जब अपनी गर्दन आगे-पीछे करते हुए चलता था तो स्तुति को बड़ा मज़ा आता था| छत पर माँ पक्षियों के लिए पानी और दाना रखती थीं इसलिए शाम के समय स्तुति को उसका पसंदीदा जीव दिख ही जाता था|
खैर, पार्क में कबूतर देख स्तुति उसकी ओर इशारा करते हुए अपनी बोली में कुछ बोलने लगी, वो बात अलग है की मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा! "हाँ जी बेटा जी, वो कबूतर है!" मैंने स्तुति की कही बात का अंदाज़ा लगाते हुए कहा मगर इतना सुनते ही स्तुति रेंगते हुए कबूतर पकड़ने चल पड़ी! कबूतर अपने दूसरे साथी कबूतरों के साथ दाना खा रहा था, परन्तु जब सभी कबूतरों ने एक छोटी सी बच्ची को अपने नज़दीक आते देखा तो डर के मारे सारे कबूतर एक साथ उड़ गए! सारे कबूतरों को उड़ता हुआ देख स्तुति जहाँ थी वहीँ बैठ गई ओर ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| मैं अपनी प्यारी सी बिटिया के इस चंचल मन को देख बहुत खुश हो रहा था, मेरी बिटिया तो थोड़ी सी ख़ुशी पा कर ही ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी|
बच्चों का खेलना हुआ तो मन कुछ खाने को करने लगा| पार्क के बाहर टिक्की वाला था तो हम चारों वहाँ पहुँच गए| मैं, आयुष और नेहा तो मसालेदार टिक्की खा सकते थे मगर स्तुति को क्या खिलायें? स्तुति को खिलाने के लिए मैंने एक पापड़ी ली और उसे फोड़ कर चूरा कर स्तुति को थोड़ा सा खिलाने लगा| टिक्की खा कर लगी थी मिर्च इसलिए हम सब कुछ मीठा खाने के लिए मंदिर जा पहुँचे| मंदिर में दर्शन कर हमें प्रसाद में मिठाई और स्तुति को खिलाने के लिए केला मिला| मैंने केले के छोटे-छोटे निवाले स्तुति को खिलाने शुरू किये और स्तुति ने बड़े चाव से वो फल रूपी केला खाया|
मंदिर से निकल कर हम सब्जी लेने लगे और ये ऐसा काम था जो की मुझे और आयुष को बिलकुल नहीं आता था| शुक्र है की नेहा को सब्जी लेना आता था इसलिए हम बाप-बेटे ने नेहा की बात माननी शुरू कर दी| नेहा हमें बता रही थी की उसकी मम्मी ने हमें कौन-कौन सी सब्जी लाने को कहा है| आलू-प्याज लेते समय नीचे झुकना था और चूँकि स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैंने इस काम में आयुष को नेहा की मदद करने में लगा दिया| आयुष जब टेढ़े-मेढ़े आलू-प्याज उठता तो नेहा उसे डाँटते हुए समझाती और सही आलू-प्याज कैसे लेना है ये सिखाती| फिर बारी आई टमाटर लेने की, टमाटर एक रेडी पर रखे थे जो की मैं बिना झुकाये उठा सकता था| वहीं आयुष की ऊँचाई रेडी से थोड़ी कम थी इसलिए आयुष बस किनारे रखे टमाटरों को ही उठा सकता था; "बेटा, आपका हाथ टमाटर तक नहीं पहुँचेगा इसलिए टमाटर मैं चुनता हूँ| तबतक आप वो बगल वाली दूकान से 10/- रुपये का धनिया ले आओ|" मैंने आयुष को समझाते हुए काम सौंपा|
स्तुति को गोदी में लिए हुए मैंने थोड़े सख्त वाले टमाटर चुनने शुरू किये ही थे की नजाने क्यों लाल रंग के टमाटरों को देख स्तुति एकदम से उतावली हो गई और मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी| स्तुति बार-बार टमाटर की तरफ इशारा कर के मुझे कुछ समझना चाहा मगर मुझे कुछ समझ आये तब न?! अपनी नासमझी में मैंने एक छोटा सा टमाटर उठा कर स्तुति के हाथ में दे दिया ताकि स्तुति खुश हो जाए| वो छोटा सा टमाटर अपनी मुठ्ठी में ले कर स्तुति बहुत खुश हुई और टमाटर का स्वाद चखने के लिए अपने मुँह में भरने लगी| "नहीं बेटा!" ये कहते हुए मैंने स्तुति के मुँह में टमाटर जाने से रोक लिया और स्तुति को समझाते हुए बोला; "बेटा, ऐसे बिना धोये फल-सब्जी नहीं खाते, वरना आप बीमार हो जाओगे?!" अब इसे मेरा पागलपन ही कहिये की मैं एक छोटी सी बच्ची को बिना धोये फल-सब्जी खाने का ज्ञान देने में लगा था!
खैर, स्तुति के हाथ से लाल-लाल टमाटर 'छीने' जाने से स्तुति नाराज़ हो गई और आयुष की तरह अपना निचला होंठ फुला कर मेरे कंधे पर सर रख एकदम से खामोश हो गई| "औ ले ले, मेला छोटा सा बच्चा अपने पापा जी से नालाज़ (नाराज़) हो गया?" मैंने तुतलाते हुए स्तुति को लाड करना शुरू किया, परन्तु स्तुति कुछ नहीं बोली| तभी मेरी नज़र बाजार में एक गुब्बारे वाले पर पड़ी जो की हीलियम वाले गुब्बारे बेच रहा था| मैंने नेहा को चुप-चाप पैसे दिए और एक गुब्बारा लाने का इशारा किया| नेहा फौरन वो गुब्बारा ले आई और मैंने उस गुब्बारे की डोरी स्तुति के हाथ में बाँध दी| "देखो स्तुति बेटा, ये क्या है?" मैंने स्तुति का ध्यान उसके हाथ में बंधे गुब्बारे की तरफ खींचा तो स्तुति वो गुब्बारा देख कर बहुत खुश हुई| हरबार की तरह, स्तुति को गुब्बारा पकड़ना था मगर गुब्बारे में हीलियम गैस भरी होने के कारन गुब्बारा ऊपर हवा में में तैर रहा था| स्तुति गुब्बारे को पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ उठाती मगर गुब्बारा स्तुति के हाथ में बँधा होने के कारण और ऊपर चला जाता| स्तुति को ये खेल लगा और उसका सारा ध्यान अब इस गुब्बारे पर केंद्रित हो गया| इस मौके का फायदा उठाते हुए हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ने जल्दी-जल्दी सब्जी लेनी शुरू कर दिया वरना क्या पता स्तुति फिर से किसी सब्जी को कच्चा खाने की जिद्द करने लगती!
जब तक हम घर नहीं पहुँचे, स्तुति अपने गुब्बारे को पकड़ने के लिए मेरी गोदी में फुदकती रही! घर पहुँच माँ ने जब मुझे तीनों बच्चों के साथ देखा तो वो संगीता से बोलीं; "ये तो आ गया?!" माँ की बात सुन संगीता मुझे दोषी बनाते हुए मुस्कुरा कर बोली; "इनके पॉंव घर पर टिकते कहाँ हैं! साइट से आये नहीं की दोनों बच्चों को घुमाने निकल पड़े, वो तो मैंने इनको सब्जी लाने की याद दिलाई वरना आज तो खिचड़ी खा कर सोना पड़ता!" संगीता की नजरों में शैतानी थी और मुझे ये शैतानी देख कर मीठी सी गुदगुदी हो रही थी इसलिए मैं खामोश रहा|
रात को खाना खाने के बाद आयुष और नेहा को शाम को की गई मस्ती के कारण जल्दी नींद आ गई| रह गई मेरी लाड़ली बिटिया रानी, तो वो अब भी अपने गुब्बारे को पकड़ने के लिए जूझ रही थी! स्तुति को जल्दी सुलाने के लिए संगीता ने गुब्बारा पकड़ कर स्तुति के हाथ में दिया मगर स्तुति के हाथ में गुब्बारा आते ही स्तुति ने अपनी नन्ही-नन्ही उँगलियाँ गुब्बारे में धँसा दी और गुब्बारा एकदम से फट गया!
गुब्बारा अचानक फटने से मेरी बिटिया दहल गई और डर के मारे रोने लगी! मैंने फौरन स्तुति को गोदी में लिया और उसे टहलाते हुए छत पर आ गया| छत पर आ कर मैंने धीरे-धीरे 'राम-राम' का जाप किया और ये जाप सुन स्तुति के छोटे से दिल को चैन मिला तथा वो धीरे-धीरे निंदिया रानी की गोदी में चली गई|
स्तुति को गोदी में लिए हुए जब मैं कमरे में लौटा तो मैंने देखा की संगीता बड़ी बेसब्री से दरवाजे पर नज़रें बिछाये मेरा इंतज़ार कर रही है| मैंने गौर किया तो पाया की संगीता ने हल्का सा मेक-अप कर रखा था, बाकी का मेक-अप का समान उसने बाथरूम में मुझे सरप्राइज देने के लिए रखा था| इधर मुझे देखते ही संगीता के चेहरे पर शर्म से भरपूर मुस्कान आ गई और उसकी नजरें खुद-ब-खुद झुक गईं|
मैं: तोहफा खोल कर देखा लिया?
मेरे पूछे सवाल के जवाब में संगीता शर्म से नजरें झुकाये हुए न में गर्दन हिलाने लगी|
मैं: क्यों?
मैंने भोयें सिकोड़ कर सवाल पुछा तो संगीता शर्माते हुए दबी आवाज़ में बोली;
संगीता: तोहफा आप लाये हो तो देखना क्या, सीधा पहन कर आपको दिखाऊँगी!
संगीता की आवाज़ में आत्मविश्वास नज़र आ रहा था और मैं ये आत्मविश्वास देख कर बहुत खुश था|
स्तुति के सोने के लिए संगीता ने कमरे में मौजूद दीवान पर बिस्तर लगा दिया था इसलिए मैंने स्तुति को दीवान पर लिटा दिया और संगीता को कपड़े पहनकर आने को कहा| जबतक संगीता बाथरूम में कपड़े पहन रही थी तब तक मैंने भी अपने बाल ठीक से बनाये और परफ्यूम लगा लिया| कमरे की लाइट मैंने मध्धम सी कर दी थी ताकि बिलकुल रोमांटिक माहौल बनाया जा सके|
उधर बाथरूम के अंदर संगीता ने सबसे पहले मेरे द्वारा मँगाई हुई लाल रंग की बिकिनी पहनी| ये बिकिनी स्ट्रिंग वाली थी, यानी के संगीता के जिस्म के प्रमुख अंगों को छोड़ कर उसका पूरा जिस्म दिख रहा था| मैं बस कल्पना कर सकता हूँ की संगीता को इसे पहनने के बाद कितनी शर्म आई होगी मगर उसके भीतर मुझे खुश करने की इच्छा ने उसकी शर्म को किनारे कर दिया|
बिकिनी पहनने के बाद संगीता ने मेरे द्वारा मँगाई हुई अंग्रेजी फिल्मों में दिखाई जाने वाली मेड (maid) वाली फ्रॉक पहनी! ये फ्रॉक संगीता के ऊपर के बदन को तो ढक रही थी, परन्तु संगीता का कमर से नीचे का बदन लगभग नग्न ही था| ये फ्रॉक बड़ी मुस्किल से संगीता के आधे नितम्बों को ढक रही थी, यदि थोड़ी सी हवा चलती तो फ्रॉक ऊपर की ओर उड़ने लगती जिससे संगीता का निचला बदन साफ़ दिखने लगता| पता नहीं कैसे पर संगीता अपनी शर्म ओर लाज को किनारे कर ये कपड़े पहन रही थी?!
बहरहाल, मेरे द्वारा लाये ये कामुक कपड़े पहन कर संगीता ने होठों पर मेरी पसंदीदा रंग यानी के चमकदार लाल रंगी की लिपस्टिक लगाई| बालों का गोल जुड़ा बना कर संगीता शर्म से लालम लाल हुई बाथरूम से निकली|
इधर मैं पलंग पर आलथी-पालथी मारे बाथरूम के दरवाजे पर नजरें जमाये बैठा था| जैसे ही संगीता ने दरवाजा खोला मेरी नजरें संगीता को देखने के लिए प्यासी हो गईं| प्यास जब जोर से लगी हो और आपको पीने के लिए शर्बत मिल जाए तो जो तृष्णा मिलती है उसकी ख़ुशी ब्यान कर पाना मुमकिन नहीं! मेरा मन इसी सुख को महसूस करने का था इसलिए मैंने संगीता के बाथरूम के बाहर निकलने से पहले ही अपनी आँखें मूँद ली|
संगीता ने जब मुझे यूँ आँखें मूँदे देखा तो वो मंद-मंद मुस्कुराने लगी| मेरे मन की इस इच्छा को समझते हुए संगीता धीरे-धीरे चल कर मेरे पास आई और लजाते हुए बोली; "जानू" इतना कह संगीता खामोश हो गई| संगीता की आवाज़ सुन मैंने ये अंदाजा लगा लिया की संगीता मेरे पास खड़ी है|
मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और मेरी आँखों के आगे मेरे द्वारा तोहफे में लाये हुए कपड़े पहने मेरी परिणीता का कामुक जिस्म दिखा! सबसे पहले मैंने एक नज़र भर कर संगीता को सर से पॉंव तक देखा, इस वक़्त संगीता मुझे अत्यंत ही कामुक अप्सरा लग रही थी! संगीता को इस कामुक लिबास में लिपटे हुए देख मेरा दिल तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगा था| चेहरे से तो संगीता खूबसूरत थी ही इसलिए मेरा ध्यान इस वक़्त संगीता के चेहरे पर कम और उसके बदन पर ज्यादा था|
इन छोटे-छोटे कपड़ों में संगीता को देख मेरे अंदर वासना का शैतान जाग चूका था| मैंने आव देखा न ताव और सीधा ही संगीता का दाहिना हाथ पकड़ कर पलंग पर खींच लिया| संगीता इस अचानक हुए आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी इसलिए वो सीधा मेरे ऊपर आ गिरी| उसके बाद जो मैंने अपनी उत्तेजना में बहते हुए उस बेचारी पर क्रूरता दिखाई की अगले दो घंटे तक मैंने संगीता को जिस्मानी रूप से झकझोड़ कर रख दिया!
कमाल की बात तो ये थी की संगीता को मेरी ये उत्तेजना बहुत पसंद थी! हमारे समागम के समाप्त होने पर उसके चेहरे पर आई संतुष्टि की मुस्कान देख मुझे अपनी दिखाई गई उत्तेजना पर ग्लानि हो रही थी| "जानू..." संगीता ने मुझे पुकारते हुए मेरी ठुड्डी पकड़ कर अपनी तरफ घुमाई| "क्या हुआ?" संगीता चिंतित स्वर में पूछने लगी, परन्तु मेरे भीतर इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं उससे अपने द्वारा की गई बर्बरता के लिए माफ़ी माँग सकूँ|
अब जैसा की होता आया है, संगीता मेरी आँखों में देख मेरे दिल की बात पढ़ लेती है| मेरी ख़ामोशी देख संगीता सब समझ गई और मेरे होठों को चूमते हुए बड़े ही प्यारभरी आवाज़ में बोली; "जानू, आप क्यों इतना सोचते हो?! आप जानते नहीं क्या की मुझे आपकी ये उत्तेजना देखना कितना पसंद है?! जब भी आप उत्तेजित होते हो कर मेरे जिस्म की कमान अपने हाथों में लेते हो तो मुझे बहुत मज़ा आता है| मैं तो हर बार यही उम्मीद करती हूँ की आप इसी तरह मुझे रोंद कर रख दिया करो लेकिन आप हो की मेरे जिस्म को फूलों की तरह प्यार करते हो! आज मुझे पता चल गया की आपको उत्तेजित करने के लिए मुझे इस तरह के कपड़े पहनने हैं इसलिए अब से मैं इसी तरह के कपड़े पहनूँगी और खबरदार जो आगे से आपने खुद को यूँ रोका तो!" संगीता ने प्यार से मुझे चेता दिया था|
संगीता कह तो ठीक रही थी मगर मैं कई बार छोटी-छोटी बातों पर जर्रूरत से ज्यादा सोचता था, यही कारण था की मैं अपनी उत्तेजना को हमेशा दबाये रखने की कोशिश करता था| उस दिन से संगीता ने मुझे खुली छूट दे दी थी, परन्तु मेरी उत्तेजना खुल कर बहुत कम ही बाहर आती थी|
दिन बीते और नेहा का जन्मदिन आ गया था| नेहा के जन्मदिन से एक दिन पहले हम सभी मिश्रा अंकल जी के यहाँ पूजा में गए थे, पूजा खत्म होने के बाद खाने-पीने का कार्यक्रम शरू हुआ जो की रात 10 बजे तक चला जिस कारण सभी थक कर चूर घर लौटे और कपड़े बदल कर सीधे अपने-अपने बिस्तर में घुस गए| आयुष अपनी दादी जी के साथ सोया था और नेहा जानबूझ कर अकेली अपने कमरे में सोई थी| रात ठीक बारह बजे जब मैं नेहा को जन्मदिन की मुबारकबाद सबसे पहले देने पहुँचा तो मैंने पाया की मेरी लाड़ली बेटी पहले से जागते हुए मेरा इंतज़ार कर रही है| मुझे देखते ही नेहा मुस्कुराते हुए बिस्तर पर खड़ी हो गई और अपनी दोनों बाहें खोल कर मुझे गले लगने को बुलाने लगी| मैंने तुरंत नेहा को अपने सीने से लगा लिया और उसके दोनों गालों को चूमते हुए उसे जन्मदिन की बधाई दी; "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चे को, जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें! आप खूब पढ़ो और बड़े हो कर हमारा नाम ऊँचा करो! जुग-जुग जियो मेरी बिटिया रानी!" मुझसे बधाइयाँ पा कर और मेरे नेहा को 'बिटिया' कहने से नेहा का नाज़ुक सा दिल बहुत खुश था, इतना खुश की उसने अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए ख़ुशी के आँसूँ बहा दिए| "आई लव यू पापा जी!" नेहा भरे गले से मेरे सीने से लिपटते हुए बोली|
"आई लव यू टू मेरा बच्चा!" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तथा नेहा को अपनी बाहों में कस लिया| मेरे इस तरह नेहा को अपनी बाहों में कस लेने से नेहा का मन एकदम से शांत हो गया और उसका रोना रुक गया|
रात बहुत हो गई थी इसलिए मैं नेहा को अपने सीने से लिपटाये हुए लेट गया पर नेहा का मन सोने का नहीं बल्कि मुझसे कुछ पूछने का था;
नेहा: पापा जी...वो...मेरे दोस्त कह रहे थे की उन्हें मेरे जन्मदिन की ट्रीट (ट्रीट) स्कूल में चाहिए!
नेहा ने संकुचाते हुए अपनी बात कही| मैं नेहा की झिझक को जानता था, दरअसल नेहा को अपनी पढ़ाई के अलावा मेरे द्वारा कोई भी खर्चा करवाना अच्छा नहीं लगता था इसीलिए वो इस वक़्त इतना सँकुचा रही थी|
मैं: तो इसमें घबराने की क्या बात है बेटा?
मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को प्यार से समझाते हुए बोला;
मैं: बेटा, जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें अपने दोस्तों को यूँ मम्मी-पापा के साथ घर की पार्टी में शामिल करवाना अजीब लगता है| हमारे सामने आप बच्चे खुल कर बात नहीं कर पाते, हमसे शर्माते हुए आप सभी न तो जी भर कर नाच पाते हो और न ही खा पाते हो|
जब मैं बड़ा हो रहा था तो मैं भी अपने जन्मदिन पर आपके दिषु भैया के साथ मैक डोनाल्ड (Mc Donald) में जा कर बर्गर खा कर पार्टी करता था| कभी-कभी मैं आपके दादा जी से पैसे ले कर स्कूल की कैंटीन में अपने कुछ ख़ास दोस्तों को कुछ खिला-पिला कर पार्टी दिया करता था| आप भी अब बड़े हो गए हो तो आपके दोस्तों का यूँ आपसे पार्टी या ट्रीट माँगना बिलकुल जायज है| कल सुबह स्कूल जाते समय मुझसे पैसे ले कर जाना और जब आपका लंच टाइम हो तब आप आयुष तथा अपने दोस्तों को उनकी पसंद का खाना खिला देना|
मेरे इस तरह प्यार से समझाने का असर नेहा पर हुआ तथा नेहा के चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान लौट आई|
नेहा: तो पापा जी, स्कूल से वापस आ कर मेरे लिए क्या सरप्राइज है?
नेहा ने अपनी उत्सुकता व्यक्त करते हुए पुछा|
मैं: शाम को घर पर एक छोटी सी पार्टी होगी, फिर रात को हम सब बाहर जा कर खाना खाएंगे|
मेरा प्लान अपने परिवार को बाहर घूमने ले जाने का था, फिर शाम को केक काटना और रात को बाहर खाना खाने का था, परन्तु नेहा ने जब अपनी छोटी सी माँग मेरे सामने रखी तो मैंने अपना आधा प्लान कैंसिल कर दिया|
मेरी बिटिया नेहा अब धीरे-धीरे बड़ी होने लगी थी और मैं उसे जिम्मेदारी के साथ-साथ उसे धीरे-धीरे थोड़ी बहुत छूट देने लगा था|
अगली सुबह माँ स्तुति को गोदी में ले कर मुझे और नेहा को जगाने आईं| सुबह-सुबह नींद से उठते ही स्तुति मुझे अपने पास न पा कर व्यकुल थी इसलिए वो रो नहीं रही थी बस मुझे न पा कर परेशान थी| जैसे ही स्तुति ने मुझे अपनी दीदी को अपने सीने से लिपटाये सोता हुआ देखा, वैसे ही स्तुति ने माँ की गोदी से उतर मेरे पास आने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| स्तुति को मेरे सिरहाने बिठा कर माँ चल गईं, मेरे सिरहाने बैठते ही स्तुति ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ा और अपने होंठ मेरे मस्तक से चिपका दिए तथा मेरी पप्पी लेते हुए मेरा मस्तक गीला करने लगी|
अपनी बिटिया रानी की इस गीली-गीली पप्पी से मैं जाग गया और बड़ी ही सावधानी से स्तुति को पकड़ कर अपने सीने तक लाया| मेरे सीने के पास पहुँच स्तुति ने अपनी दीदी को देखा और स्तुति ने मुझ पर अपना हक़ जताते हुए नेहा के बाल खींचने शुरू कर दिए| "नो (No) बेटा!" मैंने स्तुति को बस एक बार मना किया तो स्तुति ने अपनी दीदी के बाल छोड़ दिए| नेहा की नींद टूट चुकी थी और वो स्तुति द्वारा इस तरह बाल खींच कर जगाये जाने से गुस्सा थी!
“स्तुति बेटा, ऐसे अपनी दीदी और बड़े भैया के बाल खींचना अच्छी बात नहीं| आपको पता है, आज आपकी दीदी का जन्मदिन है?!" मैंने स्तुति को समझाया तथा उसे नेहा के जन्मदिन के बारे में पुछा तो स्तुति हैरान हो कर मुझे देखने लगी| एक पल के लिए तो लगा जैसे स्तुति मेरी सारी बात समझ गई हो, लेकिन ये बस मेरा वहम था, स्तुति के हैरान होने का कारण कोई नहीं जानता था|
" चलो अपनी नेहा दीदी को जन्मदिन की शुभकामनायें दो!" मैंने प्यार से स्तुति को आदेश दिया तथा स्तुति को नेहा की पप्पी लेने का इशारा किया| मेरा इशारा समझ स्तुति ने अपने दोनों हाथ अपनी दीदी नेहा की तरफ देखते हुए फैलाये| नेहा वैसे तो गुस्सा थी मगर उसे मेरी बता का मान रखना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी ले लिया| अपनी दीदी की गोदी में जाते ही स्तुति ने नेहा के दाएँ गाल पर अपने होंठ टिका दिए और अपनी दीदी की पप्पी ले कर मेरे पास लौटने को छटपटाने लगी| नेहा ने स्तुति को मेरी गोदी में दिए तथा बाथरूम जाने को उठ खड़ी हुई| जैसे ही नेहा उठी की पीछे से माँ आ गईं और नेहा के सर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं; "हैप्पी बर्डी (बर्थडे) बेटा! खुश रहो और खूब पढ़ो-लिखो!" माँ से बर्थडे शब्द ठीक से नहीं बोला गया था इसलिए मुझे इस बात पर हँसी आ गई, वहीं नेहा ने अपनी दादी जी के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया और ख़ुशी से माँ की कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेटते हुए बोली; "थैंक यू दादी जी!"
दोनों दादी-पोती इसी प्रकार आलिंगन बद्ध खड़े थे की तभी दोनों माँ-बेटे यानी आयुष और संगीता आ धमके| सबसे पहले अतिउत्साही आयुष ने अपनी दीदी के पॉंव छुए और जन्मदिन की मुबारकबाद दी और उसके बाद संगीता ने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए जन्मदिन की शुभकामनायें दी|
"तो पापा जी, आज स्कूल की छुट्टी करनी है न?!" आयुष ख़ुशी से कूदता हुआ बोला क्योंकि उसके अनुसार जन्मदिन मतलब स्कूल से छुट्टी लेना होता था मगर तभी नेहा ने आयुष की पीठ पर एक थपकी मारी और बोली; "कोई छुट्टी-वुत्ती नहीं करनी! आज हम दोनों स्कूल जायेंगे और लंच टाइम में तू अपने दोस्तों को ले कर मेरे पास आ जाइओ!" नेहा ने आयुष को गोल-मोल बात कही| स्कूल जाने के नाम से आयुष का चेहरा फीका पड़ने लगा इसलिए मैंने आयुष को बाकी के दिन के बारे में बताते हुए कहा; "बेटा, आज शाम को घर पर छोटी सी पार्टी होगी और फिर हम सब खाना खाने बाहर जायेंगे|" मेरी कही बात ने आयुष के फीके चेहरे पर रौनक ला दी और वो ख़ुशी के मारे कूदने लगा|
दोनों बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हुए, मैंने नेहा को 1,000/- रुपये सँभाल कर रखने को दिए, नेहा इतने सरे पैसे देख अपना सर न में हिलाने लगी| "बेटा, मैं आपको ज्यादा पैसे इसलिए दे रहा हूँ ताकि कहीं पैसे कम न पड़ जाएँ| ये पैसे सँभाल कर रखना और सोच-समझ कर खर्चना, जितने पैसे बचेंगे वो मुझे घर आ कर वापस कर देना|" मैंने नेहा को प्यार से समझाते हुए पैसे सँभालने और खर्चने की जिम्मेदारी दी तब जा कर नेहा मानी|
स्कूल पहुँच नेहा ने अपने दोस्तों के साथ लंच में क्या खाना है इसकी प्लानिंग कर ली थी इसलिए जैसे ही लंच टाइम हुआ नेहा अपनी क्लास के सभी बच्चों को ले कर कैंटीन पहुँची| तभी वहाँ आयुष अपनी गर्लफ्रेंड और अपने दो दोस्तों को ले कर कैंटीन पहुँच गया| नेहा और उसके 4-5 दोस्त बाकी सभी बच्चों के लिए कैंटीन से समोसे, छोले-कुलचे और कोल्डड्रिंक लेने लाइन में लगे| पैसे दे कर सभी एक-एक प्लेट व कोल्ड्रिंक उठाते और पीछे खड़े अपने दोस्तों को ला कर देते जाते| चौथी क्लास के बच्चों के इतने बड़े झुण्ड को देख स्कूल के बाकी बच्चे बड़े हैरान थे| जिस तरह से नेहा और उसके दोस्त चल-पहल कर रहे थे उसे देख दूसरी क्लास के बच्चों ने आपस में खुसर-फुसर शुरू कर दी थी| किसी बड़ी क्लास के बच्चे ने जब एक ही क्लास के सारे बच्चों को यूँ झुण्ड बना कर खड़ा देखा तो उसने जिज्ञासा वश एक बच्चे से कारण पुछा, जिसके जवाब में उस बच्चे ने बड़े गर्व से कहा की उसकी दोस्त नेहा सबको अपने जन्मदिन की ट्रीट दे रही है| जब ये बात बाकी सब बच्चों को पता चली तो नेहा को एक रहीस बाप की बेटी की तरह इज्जत मिलने लगी|
परन्तु मेरी बेटी ने इस बात का कोई घमंड नहीं किया, बल्कि नेहा ने बहुत सोच-समझ कर और हिसाब से पैसे खर्चे थे| मेरी बिटिया ने अपनी चतुराई से अपने दोस्तों को इतनी भव्य पार्टी दे कर खुश कर दिया था और साथ-साथ पैसे भी बचाये थे|
दोपहर को घर आते ही नेहा ने एक कागज में लिखा हुआ सारा हिसाब मुझे दिया| पूरा हिसाब देख कर मुझे हैरानी हुई की मेरी बिटिया ने 750/- रुपये खर्च कर लगभग 35 बच्चों को पेटभर नाश्ता करा दिया था| सभी बच्चे नेहा की दरियादिली से इतना खुश थे की सभी नेहा की तारीफ करते नहीं थक रहे थे| मेरी बिटिया रानी ने अपने दोस्तों पर बहुत अच्छी धाक जमा ली थी जिस कारण नेहा अब क्लास की सबसे चहेती लड़की बन गई थी जिसका हर कोई दोस्त बनना चाहता था|
मेरी डरी-सहमी रहने वाली बिटिया अब निडर और जुझारू हो गई थी| स्कूल शुरू करते समय जहाँ नेहा का कोई दोस्त नहीं था, वहीं आज मेरी बिटिया के इतने दोस्त थे की दूसरे सेक्शन के बच्चे भी नेहा से दोस्ती करने को मरे जा रहे थे! ये मेरे लिए वाक़ई में बहुत बड़ी उपलब्धि थी!
शाम को घर में मैंने एक छोटी सी पार्टी रखी थी, जिसमें केवल दिषु का परिवार और मिश्रा अंकल जी का परिवार आमंत्रित था| केक काट कर सभी ने थोड़ा-बहुत जलपान किया और सभी अपने-अपने घर चले गए| रात 8 बजे मैंने सभी को तैयार होने को कहा और हम सभी पहुँचे फिल्म देखने| स्तुति आज पहलीबार फिल्म देखने आई थी और पर्दे पर फिल्म देख कर स्तुति सबसे ज्यादा खुश थी| समस्या थी तो बस ये की स्तुति अपने उत्साह को काबू नहीं कर पा रही थी और किलकारियाँ मार कर बाकी के लोगों को तंग कर रही थी! "श..श..श!!" नेहा ने स्तुति को चुप रहने को कहा मगर स्तुति कहाँ अपनी दीदी की सुनती वो तो पर्दे को छूने के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ा कर किलकारियाँ मारने लगी|
"बेटू...शोल (शोर) नहीं करते!" मैंने स्तुति के कान में खुसफुसा कर कहा| मेरे इस तरह खुसफुसाने से स्तुति के कान में गुदगुदी हुई और वो मेरे सीने से लिपट कर कुछ पल के लिए शांत हो गई| फिर तो जब भी स्तुति शोर करती, मैं उसके कान में खुसफुसाता और मेरी बिटिया मेरे सीने से लिपट कर कुछ पल के लिए खामोश हो जाती|
फिल्म देखने का सुख मुझे छोड़ कर सभी ने लिया था, पर देखा जाए तो मेरे लिए असली सुख अपनी छोटी बिटिया रानी के साथ खेलना था| फिल्म खत्म हुई रात साढ़े 10 बजे और अब लगी थी भूख इसलिए हम मॉल में बने हुए रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गए| जिस रेस्टोरेंट में हम आये थे ये बहुत महँगा था जिस कारण यहाँ की साज-सज्जा बहुत बढ़िया थी| हम सभी एक फॅमिली टेबल पर बैठे और खाना आर्डर करने का काम दादी-पोता-पोती ने किया| मैं स्तुति को गोदी में ले कर बैठा था की तभी एक वेटर स्तुति के बैठने के लिए छोटे बच्चों की कुर्सी ले आया| कुर्सी अपने सामने लगवा कर मैंने स्तुति को उस आरामदायक कुर्सी पर बिठाया, तो मेरी बिटिया रानी ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| "बड़े ठाठ हैं इस शैतान के!" संगीता आँखें तार्रेर कर बोली जिसके जवाब में स्तुति अपनी मम्मी को जीभ दिखा कर चिढ़ाने लगी| माँ-बेटी की ये जुगलबंदी देख मैं, माँ और दोनों बच्चे हँसने लगे| खैर, हम सभी ने खाना खाया और स्तुति को भी आज पहलीबार 2 (छोटी) चम्मच गुलाब जामुन खाने को मिला| अपने पापा जी की ही तरह स्तुति को भी ये मीठा-मीठा स्वाद बहुत पसंद आया था|
जारी रहेगा भाग - 20 (5) में...