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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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छब्बीसवाँ अध्याय: दुखों का ग्रहण
भाग -7


अब तक पढ़ा:


नेहा अब भी रोये जा रही थी और मुझसे नेहा के ये आँसूँ बर्दाश्त नहीं हो रहे थे, मैं उठी और नेहा के पास जा कर उसके कँधे पर हाथ रख उसे ढाँढस बँधाया| इस समय हम माँ-बेटी, दोनों ही कुछ बोलने की हालत में नहीं थी| नेहा का रो-रो कर बुरा हाल था तो मुझे अपनी ही बेटी से कुछ कहने में डर लग रहा था की कहीं वो प्लीट कर मुझे ही न झाड़ दे! मैंने नेहा के कँधे पर हाथ रखे हुए ही उसे सोने का मूक इशारा किया और उसे ले कर ज़मीन पर बिछे बिस्तर तक ले आई| नेहा चुपचाप बिना कुछ कहे आयुष की बगल में लेट गई, मैं भी सोफे पर लेट गई और उसका सर थपथपा कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी| लेकिन नेहा ने गुस्से में एकदम से मेरा हाथ झटक दिया और अपने भाई आयुष की ओर करवट ले कर सो गई| नेहा के गुस्से से मेरा हाथ झटकने से मुझे दुःख तो बहुत हुआ मगर इसमें नेहा की कोई गलती नहीं थी| वो बेचारी तो पहले ही अपने पापा को इस तरह देख कर टूट रही थी ओर मुझे देख उसे बार-बार गुस्सा आता था| मैं भी मन मसोस कर सोफे पर पड़ी रही मगर एक पल को भी मेरी आँख नहीं लगी, सारी रात नेहा की कही बातें मेरे दिमाग में गूँजती रहीं तथा मेरे दिल को घाव करती रहीं!

अगली सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई तो मैंने अपने सामने बड़की अम्मा को पाया…


अब आगे:


बड़की अम्मा के पीछे ही अजय भैया खड़े थे, अम्मा और अजय भैया को अचानक देख मैं हैरान रह गई! मैंने तुरंत बड़की अम्मा के पाँव छुए और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया तथा इनका हाल-चाल पूछने लगीं| तभी आयुष बाथरूम से निकला और अपनी बड़ी दादी जी को देख वो दौड़ता हुआ आया, अम्मा ने आयुष को गोद में उठा कर गले लगा लिया| नेहा भी अपनी बड़ी दादी जी की आवाज सुन उठ गई मगर वो अपनी बड़ी दादी जी के पास जाने से झिझक रही थी| बहुत छोटे-छोटे कदमों से नेहा आगे आई और अपनी बड़ी दादी जी के पाँव छुए, उस समय बड़की अम्मा का ध्यान आयुष पर था इसलिए वो नेहा को देख नहीं पाईं! नेहा को अपनी बड़की अम्मा द्वारा नजर अंदाज किया जाना बहुत बुरा लगा और वो सर झुकाये सोफे पर चुप-चाप बैठ गई| इधर मैंने माँ (मेरी सासु माँ) को फ़ोन मिला दिया था और उन्होंने फ़ोन उठा लिया था इसलिए मैं बड़की अम्मा से नेहा को आशीर्वाद देने को न कह पाई| अम्मा ने आयुष को अपनी गोदी से उतारा और जा कर इनके पास बैठ गईं| इनके सर पर हाथ फेरते हुए बड़की अम्मा की आँखें भर आईं; "बहु, तुहु हमका मानु की ई हालत का बारे म कछु नाहीं बतायो?" बड़की अम्मा आँखों में आँसूँ लिए हुए बोलीं| बड़की अम्मा का सवाल सुन मेरा सर शर्म से झुक गया, मैं उन्हें क्या कहती की इस हफडादफ्डी में मुझे कुछ याद ही नहीं रहा था| जब मुझे मेरे माँ-पिताजी को कुछ बताना याद नहीं रहा तो मैं बड़की अम्मा को क्या फ़ोन करके बताती| मेरी झुकी हुई गर्दन देख बड़की अम्मा को शायद मेरी मनोदशा समझ आई इसलिए उन्होंने कोई सवाल नहीं पुछा| "भौजी, मानु भैया का भवा?" अजय भैया चिंतित हो कर मुझसे पूछने लगे, तब मैंने रोते हुए बड़की अम्मा और अजय भैया को सारा सच बताया| मेरी बात सुन बड़की अम्मा और अजय भैया स्तब्ध थे, उनके पास बोलने के लिए कोई शब्द नहीं थे! हाँ इतना ज़रूर था की माँ को अपने बेटे चन्दर के किये पर ग्लानि हो रही थी!



आधा घंटा बीत गया था, बड़की अम्मा इनके सर पर प्यार से हाथ फेर रहीं थीं और अजय भैया दरवाजे के पास चुप खड़े थे| तभी दरवाजा खोल कर एक-एक कर मेरे सास-ससुर, मेरे माँ-पिताजी और अनिल दाखिल हुए| ससुर जी ने सीधा अपनी भौजी के पाँव छुए और आशीर्वाद लेना चाहा मगर बड़की अम्मा उनसे कुछ नहीं बोलीं| फिर सासु माँ ने बड़की अम्मा के पैर छुए लेकिन बड़की अम्मा ने अब भी कुछ नहीं कहा| बड़की अम्मा की ये चुप्पी सभी को डरा रही थी, आखिर कर ससुर जी ने ही हिम्मत कर के बड़की अम्मा से उनकी चुप्पी का कारण पुछा; "भौजी, कछु तो कहो?" पिताजी के सवाल को सुन कर मुझे लगा था की मेरे बड़की अम्मा को फ़ोन कर के इनकी इस हालत की खबर न देने के लिए बड़की अम्मा को जो गुस्सा आया होगा वो गुस्सा आज ससुर जी पर निकलेगा मगर शुक्र है की बड़की अम्मा को मेरे कारण गुस्सा नहीं आया था!

'हमार मुन्ना, हियाँ ई हाल म पड़ा रहा और तू हमका कछु नाहीं बतायो? हमका ई बात समधी जी (मेरे पिताजी) बताइन, इतना जल्दी हमका पराया कर दिहो तू?" बड़की अम्मा नम आँखों से ससुर जी से शिकायत करते हुए बोलीं| "नाहीं-नाहीं भौजी, ऐसा न कहो! हम फ़ोन किहिन रहा और भाईसाहब फ़ोन उठाएँ रहे| हम उनका सब बात बतायन मगर भाईसाहब बिना कछु कहे फ़ोन काट दिहिन! फिर हम अजय का फ़ोन किहिन मगर वऊ फ़ोन नाहीं उठाईस, तब हारकर हम समधी जी से कहिन की ऊ आपका लगे खबर पहुँचा आएं!" ससुर जी अपनी भौजी के आगे हाथ जोड़ कर विनती करते हुए बोले| ससुर जी की बात सुन अम्मा को तसल्ली हुई की उनके बेटे समान देवर ने उन्हें पराया नहीं किया है, वो अब भी उन्हें अपनी भौजी समान माँ को अब भी बहुत प्यार करता है| लेकिन अम्मा को बड़के दादा पर गुस्सा भी बहुत आया, क्योंकि उन्होंने सब जानते-बूझते हुए भी अपनी दुश्मनी निकालने के लिए अम्मा को इनकी हालतके बारे में कुछ नहीं बताया|



बातें सुलझ गई थीं तो ससुर जी ने अम्मा से पुछा की वो बड़के दादा को बता कर आईं हैं तो बड़की अम्मा ने बताया की अजय भैया ने बहाना बनाया है की वो अम्मा को ले कर अम्बाला किसी रिश्तेदार को मिलने जा रहे हैं| ऐसा नहीं है की बड़के दादा को शक न हुआ हो मगर फिर भी उन्होंने अम्मा को नहीं रोका|

आज मौका था तो अजय भैया ने ससुर जी से उस दिन इनके ऊपर पुलिस कंप्लेंट करने के लिए माफ़ी माँगी और ससुर जी ने भी अजय भैया को माफ़ कर दिया| आज का पूरा दिन सिर्फ चिंता में बीता, बड़की अम्मा रात होने तक इनके सिरहाने बैठी रहीं और इनके मस्तक पर हाथ फेरती रहीं| आज दिषु भैया शाम को नहीं आ पाए क्योंकि उन्हें मजबूरी में दिल्ली से बाहर ऑडिट के लिए जाना पड़ा क्योंकि उनकी नौकरी का सवाल था! ससुर जी ने उन्हें आश्वस्त किया की वो इनको ले कर चिंता न करें| इधर नेहा बहुत अकेला महसूस कर रही थी, सुबह जब से बड़की अम्मा ने अनजाने में उसे नजर अंदाज किया था तभी से नेहा खामोश बैठी थी| मैंने अनिल से दोनों बच्चों को बाहर घुमा लाने को कहा मगर नेहा ने कहीं भी जाने से मना कर दिया| कल नेहा का स्कूल था और मुझे उसे यूँ गुम-सुम देख कर बहुत दुःख हो रहा था, चूँकि कमरे में सभी लोग मौजूद थे इसलिए मैंने इशारे से नेहा को बाहर टहलने के लिए अपने पास बुलाया| बाहर जाते हुए मैं अपनी सासु माँ से बोली की मैं और नेहा थोड़ा सैर कर के आ रहे हैं|



सैर क्या करनी थी, हम दोनों माँ-बेटी अस्पताल के गलियारे में ही टहल रहे थे| टहलते-टहलते मैंने ही बात शुरू की; " बेटा, मैं आपसे कुछ कहूँ?" मेरे इस सवाल पर नेहा कुछ नहीं बोली मगर मुझे फिर भी अपनी बात तो कहनी थी इसलिए मैं बड़की अम्मा का पक्ष लेते हुए नेहा को समझाने लगी; "बेटा, अम्मा जब सुबह आईं तो उनका ध्यान आयुष में लगा हुआ था इसलिए उन्होंने आपको देखा नहीं|" मेरी बात सुन नेहा सर झुकाये कुछ बुदबुदाने लगी! जब मैंने उससे पुछा की वो क्या बोल रही है तो नेहा उखड़ते हुए बोली; "अगर देखा भी होता तो बड़ी दादी जी मुझे उतना लाड तो नहीं करतीं जितना वो आयुष को करती हैं!" नेहा की बात किसी हद्द तक ठीक थी, बड़की अम्मा आयुष को ज्यादा लाड करती थीं| आयुष के पैदा होने के बाद एक-आध बार ही कोई मौका आया था जब अम्मा, आयुष और नेहा ने एक साथ, एक ही थाली में खाना खाया था| इधर मैं इन बातों को सोच रही थी और उधर नेहा अपनी बात पूरी करने लगी; "ऐसा नहीं है की मुझे आयुष से जलन होती है, मुझे बस बुरा लगता है जब कोई सिर्फ आयुष को प्यार करे और मुझे नजर अंदाज करे! एक बस पापा..." इतना कहते हुए नेहा एकदम से रुक गई क्योंकि उसका दिल आगे कहने वाले शब्दों को सोच कर ही सहम गया था! नेहा की ये हालत देख मेरा दिल काँप गया क्योंकि मैं जानती थी की नेहा क्या सोच कर डरी हुई है! मेरा गला भर आया था मगर मैं अपनी बेटी के सामने रो कर उसे कमजोर नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने खुद को सँभाला और नेहा को हिम्मत बँधाते हुए बोली; "बेटा, आपके पापा को कुछ नहीं होगा! भगवान जी कभी हमारे साथ ऐसा नहीं कर्नेगे, कम से कम आपके साथ तो कतई ऐसा अन्याय नहीं करेंगे|" नेहा की तरह मुझसे भी वो घिनोने शब्द नहीं बोले जा रहे थे|

खैर नेहा ने मेरी बात सुनी मगर वो कुछ नहीं बोली, तो मैंने ही उसे बहलाने के लिए पुछा; "बेटा, आप चिप्स खाओगे?" मेरे पूछे सवाल पर नेहा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि चुपचाप खड़ी हो कर ढलते हुए सूरज को देखने लगी| इस वक़्त नेहा को अकेला छोड़ना ठीक नहीं था इसलिए मैं भी उसी के साथ खड़ी हो कर ढलते हुए सूरज को देखने लगी| कुछ पल खामोश रहने के बाद मुझे नेहा की ये ख़ामोशी चुभने लगी, मुझे डर लगने की कहीं नेहा के दिल में कोई सदमा न बैठ जाए इसलिए उसे बुलवाने के लिए मैंने एक पुरानी याद छेड़ दी; "बेटा आपको याद है वो दिन जब गाँव में आप, मैं और आपके पापा पहली बार फिल्म देखने गए थे?" मेरे पूछे इस सवाल पर नेहा ने सर हाँ में हिला कर अपना जवाब दिया| उसके दिमाग में उस दिन की याद ताज़ा होने लगी थी; "उस दिन हमने कितना मज़ा किया था न? पहलीबार हमने फिल्म देखि, उसके बाद साथ बैठ कर बाहर पहलीबार खाना खाया! आपको याद है, उस दिन आपने पहलीबार अपने पापा को 'पापा' कहा था!" ये सुन नेहा के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान छलक आई| "आपके पापा ने आपको कभी नहीं बताया पर उस दिन उन्हें सबसे ज्यादा ख़ुशी मिली थी, उस दिन आपके पापा इतना खुश थे की वो ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे!" ये सुन नेहा का चेहरा आज ख़ुशी से दमकने लगा था, उसकी नजरों के आगे उसके पापा जी का खुश चेहरा आ गया था! "उसी दिन आपके पापा ने मुझे और मैंने उन्हें अपना जीवन साथी स्वीकारा था!" जीवन साथी स्वीकरने से मेरा मतलब था उसी दिन इन्होने पहलीबार मेरे गले में वो चांदी का मंगलसूत्र पहनाया था, जीवन साथी तो हम एक दूसरे को पहले से मानते थे! इधर नेहा को इस बात से उतनी ख़ुशी नहीं हुई जितना उसे खुद के द्वारा इन्हें पापा कहने से हुई थी! नेहा के चेहरे पर आई मुस्कान को और बढ़ाने के लिए मैंने उसे गाँव में उसका स्कूल का पहला दिन याद दिलाया; "और आपको याद है आपका गाँव में स्कूल का पहला दिन?" ये सुन नेहा खुद को आयुष की उम्र में याद करने लगी और उसे अपने पापा से मिला वो प्यार याद आने लगा! "कितना रोये थे आप आपने स्कूल के पहले दिन और कैसे आपके पापा ने आपको समझा-बुझा कर स्कूल छोड़ा था!" मैंने बस इतना ही कहा था की नेहा को उसका स्कूल का पहला दिन याद आ गया| "एक और बात जो आपको नहीं पता वो ये की उस दिन आपके अध्यापक जी ने जब आपसे आपका नाम पुछा तो आपने 'नेहा मौर्या' कहा था, आपके मुँह से नेहा मौर्या सुन आपके पापा का दिल बहुत खुश हुआ था क्योंकि उसी दिन आपके पापा के दिल में पहलीबार आपको अपनी बेटी मानने की तमन्ना ने जन्म लिया था!" ये सुन नेहा का सीना गर्व से फूल गया था| "दिल्ली आने के बाद आपके पापा मुझसे बहुत नाराज़ थे और भूलना चाहते थे मगर आपको वो कभी भुला नहीं सकते थे! सच में, आपके पापा आपको मुझसे भी ज्यादा प्यार करते हैं!" मेरे मुँह से ये शब्द सुन नेहा के दिल को सुकून मिला था और उसकी उम्मीद का चिराग फिर से तेजी से जलने लगा था|



नेहा का मन अब हल्का हो चूका था, इतने में ससुर जी ने हमें कमरे के भीतर बुलाया| अगले दिन दोनों बच्चों का स्कूल था इसलिए सब लोग घर जा रहे थे, चूँकि मैं पिताजी से 24 घंटे अस्पताल में इनके पास रुकने का पहले ही वचन ले चुकी थी इसलिए पिताजी ने मुझे घर चलने को नहीं कहा| हालाँकि बड़की अम्मा ने मुझे घर चलने को बहुत कहा, क्योंकि मैं माँ बनने वाली थी मगर मेरी सासु माँ ने उन्हें मेरे न जाने का कारण समझा दिया|

अगले दो दिन तक मैं इनके जल्दी होश में आने की दुआ माँगती रही और बेसब्री से इनके पलकें हिलाने का इंतज़ार करती रही| दिनभर घर से सभी आ कर इनके पास बैठते थे और रात में बस हम दोनों मियाँ-बीवी ही रह जाते थे! तीसरे दिन की बात है, रात हो चुकी थी और मैं इनका हाथ थामे हुए स्टूल पर बैठी उन पुराने दिनों को याद कर रही थी की तभी अनिल मेरा खाना ले कर आ गया| "दी...खाना!" इतना कह कर अनिल ने खाने का टिफ़िन टेबल पर रख दिया और जा कर सोफे पर बैठ गया तथा अपने मोबाइल में कुछ पढ़ने लगा| जब से मेरे माँ-पिताजी आये थे और मैंने अपना इकबालिया जुर्म किया था तब से अचानक अनिल ने मुझे दीदी की जगह 'दी' कहना शुरू कर दिया था, जबकि वो अच्छे से जानता था की मुझे उसके मुँह से अपने लिए दीदी सुनना कितना अच्छा लगता है| अभी तक तो मैंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था मगर आज मैंने कौतूहलवश उससे पूछ ही लिया; "क्यों रे, 'दीदी' शब्द की बजाए तूने मुझे 'दी' बोलना शुरू क्यों कर दिया?" मेरे पूछे सवाल पर अनिल मुझसे नजरें चुराए मौन रहा| मैंने अनिल को गौर से दो मिनट देखा मगर उसने मुझे पूरी तरह नजर अंदाज कर अपना ध्यान मोबाइल में लगाये रखा| एक तो मेरे माँ-पिताजी मुझसे पहले ही कन्नी काटे बैठे थे तथा मुझसे कोई बात नहीं करते थे और ऊपर से अनिल ने भी मुझसे बात करनी बंद कर रखी थी| वो मुझसे बस उतनी ही बात करता था जितनी मेरे सास-ससुर जी उसे कहने को कहते थे|



बहरहाल, जब अनिल कुछ नहीं बोला तो मैं ही बेशर्म होते हुए बात बनाते हुए बोली; "अच्छा ये बता तेरे हाथ का दर्द कैसा है?" दरअसल दिल्ली आने से एक दिन पहले ही अनिल के हाथ का प्लास्टर कटा था, सभी ने उसका हाल-चाल पुछा था सिवाए मेरे! आज जब मैंने अनिल से उसके हाथ के बारे में पुछा तो वो अचरज भरी आँखों से मुझे देखने लगा और मुझे ताना मारते हुए बोला; "मेरे हाथ का दर्द पूछने के लिए आप कुछ लेट नहीं हो गए?" मैंने अनिल से इस तरह ताना मारने की कोई उम्मीद नहीं की थी मगर उसके ताने में मेरे अपने परिवार की तरफ लापरवाह होने की बात छुपी थी| मुझे एहसास हुआ की मेरा बेटा (भाई) सही कह रहा है, सच में मुझे अपने परिवार की कुछ पड़ी ही नहीं थी! "हम्म्म...जानती हूँ बहुत लेट हो गई!" मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए सर झुका कर कहा|



मैं उम्मीद कर रही थी की मेरा बेटा (भाई) मुझ पर दया करेगा और मुझसे अच्छे से बात करेगा मगर वो मुझ पर आज जीवन में पहलीबार बरस पड़ा; "आपको किसी की भी ज़रा सी भी परवाह नहीं! न अपने भाई की, न हमारे माँ-पिताजी की और न ही जीजू की!" अनिल की झाड़ सुन मुझे ग्लानि होने लगी थी तथा शर्म से मेरा सर और भी झुक चूका था| लेकिन अनिल की भड़ास अभी पूरी नहीं हुई थी; "ये देखो" कहते हुए अनिल ने अपनी कमीज कमर पर से उठाई और मुझे उसकी कमर पर सर्जरी करने के बाद की गई पट्टी नजर आई! "ये...ये क्या? तुझे...कब?" अनिल के सर्जरी की वो पट्टी देख मैं हक्की-बक्की रह गई और मेरे मुँह से शब्द निकलने बंद हो गए!



"मेरा हर्निया का ऑपरेशन हुआ है और मुझे ये बताने की जर्रूरत तो नहीं की ये ऑपरेशन जीजू ने ही करवाया है! और इसे तो अभी ज्यादा दिन भी नहीं हुए, मेरा ऑपरेशन उसी दिन हुआ जिस दिन जीजू मुंबई आये थे! कुछ दिन पहले ही मुझे अचानक कमर में दर्द हुआ, जब चेकअप कराया तो पता चला की मुझे हर्निया का ऑपरेशन करवाना होगा| ऑपरेशन के नाम से ही मैं घबरा गया, किसी से भी बताने से डरता था| दोस्तों के समझाने पर मैंने गाँव में माँ से बात की, पिताजी से इसलिए नहीं की क्योंकि मैं उन्हें और दुखी नहीं करना चाहता था| एक तो मेरी पढ़ाई के लिए जो पिताजी ने बैंक से क़र्ज़ लिया है उसके तले पहले ही पिताजी दबे हुए थे, उस पर उन्हें पहले ही दिल की बिमारी है अब ऐसे में मैं उन्हें अपने हर्निया के बारे में बता कर और परेशान नहीं करना चाहता था| इस बात को गोपनीय बनाने के लिए मैंने माँ से भी कह दिया की वो पिताजी से कुछ न कहें| मैं अपनी इस बिमारी के बारे में किसी को नहीं बताना चाहता था, न पिताजी को और न ही आपको और जीजू को! ऑपरेशन के दिन मेरे साथ किसी बड़े का साथ रहना जरूरी था इसीलिए मैंने माँ-पिताजी का मुंबई घूमने का प्लान अचानक बनाया| मैं जानता था की पिताजी खेतीबाड़ी के काम के कारण नहीं आएंगे इसीलिए मैंने जोर दे कर माँ को अपने पास घूमने के बहाने से मुंबई बुलाया था ताकि ऑपरेशन के समय वो मेरे पास हों|

पर पता नहीं कैसे जीजू को हमारे दुःख-दर्द का पता लग जाता है, वो मुंबई आये तो थे अपने काम से मगर जाते-जाते वो मुझे मिलने को फ़ोन करने लगे| मेरा फ़ोन नहीं मिला तो उन्होंने सुमन को फ़ोन किया और उसने जीजू को मेरे अस्पताल में भर्ती होने की बात बताई| मुझे ज़मीन पर लेटा देख जीजू को बहुत धक्का लगा और उन्होंने फ़ौरन डॉक्टर सुरेंदर को फ़ोन मिलाया और उसी वक़्त सीधा लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया| अगले दिन ऑपरेशन के लिए उन्होंने सारे पैसे जमा कराये और सुमन से जो पैसे मैंने अपने ऑपरेशन के लिए उधार लिए थे वो सभी पैसे जीजू ने चुकता किया| वो तो अगले दिन ऑपरेशन तक रुकना चाहते थे मगर मैंने और माँ ने उन्हें जबरदस्ती दिल्ली भेजा क्योंकि यहाँ आपको उनकी ज्यादा जरूरत थी! तब हमें क्या पता की आप जीजू का इतना तिरस्कार किये जा रहे हो?!" अनिल की बात सुन मैं बस मुँह बाए उसे देखे जा रही थी!



"इतना ही नहीं, मेरा ऑपरेशन होने से कुछ दिन पहले मैं और सुमन रूम में बैठे ड्रिंक कर रहे थे, जब नशे की हालत में सुमन के मुँह से आपके खिलाफ कुछ उल्टा-सीधा निकल गया| वो आपकी शादी में आने के बाद से ही जीजू पर लट्टू हो गई थी और नशे की हालत में उसके मुँह से सच निकल आया; 'यार, तेरे जीजू इतने हैंडसम हैं! उन्हें तेरी दस साल बड़ी, दो बच्चों और तीसरा बच्चा पेट में लिए हुए दीदी से शादी करने की क्यों सूझी जबकि मैं तो अभी भी तैयार खड़ी थी!" ये सुनते ही मेरे तन-बदन में आग लग गई और मैंने उसे खींच कर एक तमाचा जड़ दिया और रात के दो बजे अपना सामान ले कर सुमन का फ्लैट छोड़ कर अपने दोस्त के यहाँ पहुँचा| रात उसी के पास काटी और अगले दिन जीजू को सारी बात बताई, उन्होंने फ़ौरन मेरे अकाउंट में 20,000/- ट्रांसफर किये और मुझे दूसरी जगह कमरा किराए पर ले कर रहने को कहा तथा नई किराए का एग्रीमेंट मेल करने को कहा| उस दिन से मैंने सुमन से अपने सारे रिश्ते खत्म कर दिए, जीजू ने भी उससे बात करनी बंद कर दी थी वो तो मैं फ़ोन नहीं उठा रहा था इसलिए उन्होंने मजबूरी में सुमन को फ़ोन किया था वरना वो कभी उसे फ़ोन नहीं करते!” ये सब बातें जानकर मुझे बहुत धक्का लगा था, मेरे देवता समान पति जिनका मैंने इतना तिरस्कार किया वो मेरे परिवार के लिए इतना कुछ किये जा रहे थे और वो भी बिना मुझे कुछ बताये?! इधर मैं ग्लानि से भरी अफ़सोस किये जा रही थी और उधर अनिल अपनी बात खत्म करते हुए मुझे ताना मारते हुए बोला; "बोलो, पता था आपको ये सब? ओह्ह! पता कैसे होगा, आपने तो आमरण मौन व्रत जो धारण कर रखा था!" अनिल का ये ताना मुझे बहुत दुःखा, इतना दुःखा की मैं रो पड़ी! मेरे पास उसके सवाल का कोई जवाब नहीं था, थे तो बस आँसूँ जिनकी मेरे भाई के लिए कोई एहमियत नहीं थी! इस समय सिवाए पछताने के मैं और कुछ कर नहीं सकती थी|

"खाना ठंडा हो रहा है, खा लो!" अनिल बड़े रूखे ढंग से मुझे खाना खाने की याद दिलाते हुए बोला और घर चला गया| अनिल घर चला गया और मैं रोते हुए इन्हें सॉरी कहती रही; "सॉरी जी...मुझे माफ़ कर दो...प्लीज...रहम करो मुझ पर!" मैं रोते हुए इनसे विनती करती रही मगर इन्होने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी|



अगले दिन सुबह 8 बजे जब सब आये तो मैंने सबको बताया की डॉक्टर सरिता आईं थीं और वो 2 दिन के लिए दिल्ली से बाहर जा रही हैं| ये बात सुन कर किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, इधर मैं इंतज़ार कर-कर के थक चुकी थी और इनके लिए कुछ करना चाहती थी| इस तरह हाथ पर हाथ रखे बैठ कर कुछ होने वाला नहीं था इसलिए मैं ताव में आते हुए अपनी सासु माँ से बोली; "माँ, आखिर हम कब तक इस तरह बैठे रहेंगे?" मेरी ये हालत देख मेरी सासु माँ बोलीं; "बेटा, हम सब सिवाए दुआ करने के और कर ही क्या सकते हैं?! सरिता ने कहा था न की मानु को होश अपने आप आएगा, सिवाए इंतज़ार के हम क्या कर सकते हैं?" माँ मुझे समझाते हुए बोलीं| माँ की बात से मैं आश्वस्त नहीं थी, मेरा दिल इस वक़्त इनके लिए कुछ करना चाहता था; "माँ, मुझसे इन्हें इस कदर नहीं देखा जाता! मैं.......मैं" मैं बेसब्र हो चुकी थी मगर मैं आगे कुछ कहती उससे पहले ही सासु माँ मेरी दशा समझते हुए बोलीं; "बेटी, मैं समझ सकती हूँ की तुझ पर क्या बीत रही है मगर हम डॉक्टर नहीं हैं! तू बस सब्र रख और भगवान पर भरोसा रख!" सासु माँ ने फिर मुझे समझाया, लेकिन एक बेसब्र इंसान कहाँ किसी की सुनता है?! "माँ, मैं बस इतना कहना चाहती हूँ की जैसे आँखों का इलाज करने के लिए eye specialist होता है, दिल की बिमारी का इलाज करने के लिए heart specialist होता है तो क्या इनके इलाज के लिए कोई specialist, कोई ख़ास डॉक्टर नहीं है? कोई क्लिनिक, कोई अस्पताल, कोई वैध, कोई हक़ीम कोई...कोई तो होगा जो इनका इलाज कर सके?!" ये कहते हुए मेरी हिम्मत जवाब देने लगी और मेरी आँखें भीग गईं| मेरी सासु माँ एकदम से उठीं और दौड़-दौड़ी मेरे पास आ कर मुझे अपने सीने से लगा कर चुप कराने लगीं| "माँ (मेरी सासु माँ)...एक second opinion...मतलब किसी दूसरे डॉक्टर से परामर्श लेने में क्या हर्ज़ है?" मैंने रो-रो कर बिलखते हुए कहा| सासु माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए मेरे ससुर जी को देखने लगीं और उनसे मूक विनती करने लगीं की मेरी ख़ुशी के लिए ससुर जी किसी दूसरे डॉक्टर से परामर्श लें| मेरे ससुर जी ने माँ की मूक विनती सुनी और हाँ में सर हिलाते हुए मुझसे बोले; "बेटी, सरिता को आने दे फिर हम उससे बात कर के किसी दूसरे डॉक्टर से बात करेंगे|" ससुर जी मुझे आश्वासन देते हुए बोले|



इतने में अनिल एकदम से मेरे ससुर जी से बोला; "पिताजी, क्यों न हम डॉक्टर सुरेंदर से पूछ कर देखें?" कोई कुछ कहता उससे पहल ही अनिल ने सुरेंदर जी को फ़ोन मिला दिया और उन्हें अपने जीजू का सारा हाल सुनाया| सारी बात सुन सुरेंदर जी ने कहा की अनिल उन्हें इनके इलाज़ के सारे कागज whats app कर दे और वो अपने डॉक्टर दोस्तों से बात कर के बताएंगे| फ़ोन कटते ही अनिल ने अपने जीजू के सारे कागज सुरेंदर जी को भेज दिए, करीबन दो घंटे बाद सुरेंदर जी का फ़ोन आया और उन्होंने हमें एक उम्मीद की किरण दिखाई| उन्होंने बताया की बैंगलोर में एक specialized अस्पातल है, जिनका दवा है की coma patients का इलाज़ करने में उनका success rate 75% तक है| हमारे लिए ये बात ऐसी थी जैसे किसी ने अँधेरे कमरे में माचिस की तिल्ली जला दी हो, इस छोटी सी उम्मीद की रौशनी के सहारे हम सभी इस अँधेरे कमरे से बाहर निकल सकते थे!

सुरेंदर जी द्वारा मिली जानकारी से मैं इतना उत्साह में आ गई थी की मैं एकदम से अपने ससुर जी से बोल पड़ी; "पिताजी, हमें इनको तुरंत वहाँ उस अस्पताल ले जाना चाहिए!" मेरा उत्साह बड़ा बचकाना था और मेरा ये बचपना देख मेरे पिताजी मुझ पर भड़क उठे; "मानु कउनो नानमून (छोटा बच्चा) है जो कनिया (गोदी) ले के ऊ का दूसर अस्पताल ले जावा जाइ?" पिताजी की बात सुन मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई| इस चिंता की घडी में जब मुझे समझदारी से काम लेना चाहिए था मैं अपना बचपना दिखा रही थी| सच में इनकी इस हालत में इनको बैंगलोर ले जाना बहुत मुश्किल काम था! लेकिन इस मुश्किल का इलाज अनिल के पास था; "पिताजी (मेरे ससुर जी), डॉक्टर सुरेंदर जी का कहना है की हम air ambulance के जरिये जीजू को बैंगलोर ले जा सकते हैं मगर ये बहुत महँगा खर्चा है! तक़रीबन 1.5 से 2 लाख तक का खर्चा आ सकता है!" मरीजों को हेलिकोप्टर द्वारा एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए ये सेवा उन दिनों नई-नई शुरू हुई थी इसीलिए उस समय उसके दाम अभी के मुक़ाबले कम थे|



इधर इतने बड़े खर्चे का नाम सुन मैं सोच में पड़ गई, घर के हालात पैसों को ले कर पहले ही थोड़े नाज़ुक थे मगर मेरा मन कहता था की मेरे ससुर जी ये खर्चा करने से नहीं चूकेंगे और हुआ भी यही| ससुर जी ने बिना देर किये कहा; "अनिल बेटा, चूँकि वो प्राइवेट अस्पताल है तो वहाँ खर्चा बहुत होगा, तू ऐसा कर की एक बार बैंगलोर जा कर इस अस्पताल के बारे में पता लगा और तब तक मैं यहाँ पैसों का इंतज़ाम करता हूँ| जब तक तू अस्पताल का पता करेगा और मैं यहाँ पैसों का इंतेज़ाम करूँगा तब तक सरिता भी आ जाएगी तो एक बार उससे भी बात कर लेंगे|" ससुर जी की बात सुन अनिल तो तुरंत निकलना चाहता था मगर ससुर जी ने जैसे तैसे उसे कल सुबह निकलने के लिए मना लिया|

अगले दिन सुबह सभी लोग अस्पताल पहुँच चुके थे तथा बैंगलोर वाले अस्पताल पर ही चर्चा करने में व्यस्त थे| ससुर जी इस वक़्त खासी चिंता में थे क्योंकि पैसों का इंतज़ाम नहीं हो पाया था| उधर अनिल ने सुरेंदर जी से फ़ोन पर बात कर ली थी तथा ये तय हुआ था की वो (सुरेंदर जी) अनिल को सीधा बैंगलोर मिलेंगे तथा दोनों साथ मिलकर वहाँ सब पता करेंगे| डॉक्टर सुरेंदर ने अनिल को अस्पताल के बारे में एक लिंक ईमेल किया था जो अनिल ने मुझे भेज दिया था| मैंने मेल देखा और अस्पताल के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने लगी, मैंने सोचा की क्यों न एक बार मैं भी सुरेंदर जी से बात कर लूँ तथा उन से दिल्ली के किसी अस्पताल के बारे में पूछूँ, दिल्ली में ही अगर हमें कोई अच्छा अस्पताल मिल जाता जहाँ इनका अच्छे से इलाज हो जाता तो ससुर जी पर पैसे का बोझ कम हो जाता| अनिल से नंबर ले कर मैं सुरेंदर जी से बात करने कमरे से बाहर अकेली आ गई; "हेल्लो, सुरेंदर जी बोल रहे हैं?" मैंने पुछा|



"हाँ जी, बोल रहा हूँ| आप कौन?" सुरेंदर जी एक अनजान औरत की आवाज सुन बोले|



"जी मैं संगीता, अनिल की बड़ी बहन बोल रही हूँ|" मैंने कहा|



"ओह्ह, जी नमस्ते|" जब उन्हें पता चला की मैं अनिल की बहन हूँ तो वो सहज होते हुए बोले|



"सुरेंदर जी, आ…आ...मुझे आपसे कुछ पूछना था? Actually, आपने जिस अस्पताल के बारे में बताया वो बैंगलोर में है, क्या यहाँ दिल्ली में कोई ऐसा अस्पताल नहीं है?" मुझे ये सवाल पूछने बड़ा संकोच हो रहा था क्योंकि मेरी बातें सुन कर कोई भी ये सोचता की मैं कितनी कंजूस हूँ! जबकि मुझे अपने घर की चिंता थी, पैसों का इंतज़ाम खाली ससुर जी को करना था और अभी तक उन्हें नकामी ही हासिल हुई थी!



"संगीता जी, दरअसल हमारे doctor's journal में इस अस्पताल के बारे में article छपा था| मैंने अपने एक दोस्त से बात की जो बैंगलोर में ही रहता है और उसने बताया की ये अस्पताल बहुत अच्छा है, दिल्ली में मैंने ऐसे किसी अस्पताल के बारे में नहीं पढ़ा न ही वहाँ मेरा कोई दोस्त रहता है| फिर भी मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूँ की दिल्ली या आपके आस-पास के किसी शहर में कोई अस्पताल हो| तबतक मेरा सुझाव यही है की हम बैंगलोर के अस्पताल के बारे में एक बार अपनी तफ्तीश कर लेते हैं|" सुरेंदर जी बोले| उनकी बात सही थी, बजाए यहाँ समय बर्बाद करने के जो सुराग हाथ लगा है उसी की तफ्तीश ज़ारी रखनी चाहिए|



"जी| And thank you so much की आप हमारे लिए इतना कर रहे हैं!" मैं सुरेंदर जी को धन्यवाद देते हुए बोली| एक अनजान होते हुए भी वो हमारे लिए इतना कर रहे थे, इसके लिए मैं उन्हें दिल से दुआएँ दे रही थी|



"अरे संगीता जी, थैंक यू कैसा आप अनिल की दीदी हैं तो मेरी भी दीदी जैसी हुई ना| You don't worry." सुरेंदर जी ने मुझसे बहन का रिश्ता बना लिया और मुझे भी एक और भाई मिल गया था! सुरेंदर जी से बात कर के मेरे दिल को तसल्ली हुई थी की ये अब जल्दी स्वस्थ हो जाएँगे| इसी उम्मीद के सहारे मेरे इस जीवन की नैय्या पार होने वाली थी|



फ़ोन रख कर जैसे ही मैं कमरे में जाने को मुड़ी की मैंने देखा की पीछे मेरी 'माँ' यानी नेहा खड़ी थी और उसने मेरी सारी बात सुन ली थी| चेहरे पर नफरत भरा गुस्सा लिए नेहा मुझ पर बरस पड़ी; "हुँह! आप....." नेहा दाँत पीसते हुए इतना बोली और अपने गुस्से को काबू में करने लगी, उसे डर था की कहीं वो अपने गुस्से में मुझसे गलत लहजे में न बात करे जिस कारण उसे बाद में मुझसे माफ़ी माँगनी पड़े| "पापा अगर आपकी जगह होते तो आपको स्वस्थ करने के लिए लाखों क्या करोड़ों रुपये फूँक देते मगर आप, आपको तो पैसे बचाने हैं न की पापा को स्वस्थ करना है! क्या करोगे आप इतने पैसे बचा कर? कौन सा महल बनवाना है आपने?" नेहा मुझे ताना मारते हुए गुस्से से बोली| मैंने नेहा को अपनी बात समझानी चाही; "बेटा ऐसा नहीं है, मैं तो..." मगर मेरी बात पूरी सुने बिना ही नेहा ने अपना 'फरमान' सुना दिया; "मुझे सब पता है! आप..." इतना कहते हुए नेहा फिर दाँत पीसते हुए मुझे गुस्से से घूर कर देखने लगी| एक पल के लिए तो लगा जैसे वो अभी मुझे गाली दे देगी मगर मेरी बेटी मैं इतने गंदे ससंकार नहीं थे, वो बस अपना गुस्सा काबू में कर रही थी; "आप बस पापा को प्यार करने का ढोंग करते हो! आपका ये प्यार-मोहब्बत बस दिखावा है और कुछ नहीं! जो लोग सच्चा प्यार करते हैं उनका हाल पापा जैसा होता है! आपका ये ढकोसला वाला प्यार देख कर मैंने फैसला किया है की मैं कभी शादी नहीं करूँगी!" नेहा ने मेरे प्यार को गाली दी थी मगर मैं उस पर कोई प्रतिक्रिया देती उससे पहले ही नेहा ने अपनी अंतिम बात कह कर मुझे दहला दिया था! "बेटा...ये...ये तू क्या कह रही है?!" मैंने नेहा को समझना चाहा मगर नेहा मेरी बात काटते हुए अपनी बात पूरी करने लगी; "ये प्यार-व्यार कुछ नहीं होता, इसीलिए मैंने फैसला कर लिया है की मैं कभी शादी नहीं करूँगी और सारी उम्र पापा की सेवा करूँगी! आपके कारण जो इतने साल मुझे पापा का प्यार नहीं मिला उसे मैं अपनी बची हुई ज़िन्दगी पापा के साथ गुज़ार कर पाऊँगी!" नेहा की आवाज में मुझे दृढ संकल्प दिख रहा था, इतनी छोटी सी उम्र में उसका ये प्रण करना मुझे डरा रहा था! वो अपने पापा से बहुत प्यार करती है ये तो मैं जानती थी मगर वो अपने पापा को ले कर इतनी possessive है की वो अपनी जिंदगी का एक अहम फैसला इतनी छोटी सी उम्र में ले लेगी इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी! दरअसल नेहा इस वक़्त सिर्फ अपने दिल से सोच रही थी और उसका दिल उसे बस उसके पापा के पास खींचे रखना चाहता था! नेहा की अपने पापा को ले कर possessiveness आज खुल कर बाहर आई थी! मैं उसकी मनोदशा समझ रही थी और उसे प्यार से समझाना चाहती थी की उसका लिया ये फैसला बहुत गलत है मगर नेहा कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थी|



मैं नेहा को समझाऊँ उससे पहले ही मेरी सासु माँ आ गईं, एक पल के लिए मुझे लगा की शायद नेहा अपना ये फैसला अपनी दादी जी को भी सुनाएगी मगर नेहा में अभी इतनी हिम्मत नहीं थी की वो अपनी दादी से ये सब कह सके| अपनी दादी जी के आते ही उसने एकदम से बात बदल दी और उनसे पूछने लगी; "दादी जी, मामा जी आ गए?" सासु माँ ने उसे नीचे जाने को कहा क्योंकि अनिल नीचे नेहा का इंतज़ार कर रहा था| नेहा बिना कुछ कहे नीचे चली गई और इधर मैं और सासु माँ गलियारे में अकेले रह गए|

अपनी बेटी के मुँह से मेरे प्यार पर लगाई तोहमद के कारण मैं बहुत दुखी थी, मेरे भीतर जो भी हिम्मत बची थी वो टूटकर चकनाचूर हो चुकी थी| आज तक तो नेहा ने मुझे अपने पापा की इस हालत के लिए दोषी बनाया था मगर आज उसने मेरे प्यार पर ऊँगली उठा कर और कभी शादी न करने की बात कह कर मुझे ताउम्र की सजा भी सुना दी थी! मेरा मन अंदर से मुझे धिक्कारे जा रहा था और ग्लानि के भावों ने मुझे तोड़-मरोड़कर रख दिया था! जब ये पीर मैं अपने अंदर न समा पाई तो आखिर मैं फूट-फूट कर रोने लगी! माँ ने जब मुझे यूँ रोते हुए देखा तो वो मुझे ढाँढस बँधा कर मुझे चुप कराने लगीं| "माँ...अब...अब मुझ में...जान नहीं...बची! मैं आज बुरी...तरह टूट चुकी हूँ! मे...मेरी क़िस्मत ऐसी है...न तो मैं अच्छी बेटी साबित हो पाई...न अच्छी पत्नी...और अब तो मैं एक अच्छी माँ भी साबित नहीं पाई! मैं बहुत अभागी हूँ माँ...ऐसा...ऐसा देवता समान पति मिला...और मैंने उसकी भी बेकद्री की! जहाँ एक तरह इन्होने हर कदम पर मेरे साथ चलना चाहा वहीं मैं इनके साथ चलने से कतराती रही! सही कहती है नेहा, मेरे ही कारण इनकी ये हालत हुई है! माँ...आप क्यों मेरी इतनी तरफदारी करते हो? मैं...मैं इस लायक ही नहीं की आपको और पिताजी को छू भी सकूँ...आपको माँ-पिताजी कह सकूँ! मेरे पिताजी सही कहते थे, मुझे ही मर जाना चाहिए! आपके इस हँसते-खेलते परिवार को मेरी ही नज़र लग गई! मेरी ये बुरी क़िस्मत कहीं इस घर को ही न निगल जाए?! मु...मुझे मर जाने दो माँ...मुझे थोड़ा सा ज़हर दे दो...मुझे मर जाने दो...मैं..." मैं रोते हुए बोली| मैं आगे और कहती उससे पहले ही माँ ने मेरे आँसूँ पोछते हुए मेरी बात काट दी; "बस बेटी! मानु तुझसे बहुत प्यार करता है और हम सब मानु से बहुत प्यार करते हैं तो इस हिसाब से सब तुझसे भी बहुत प्यार करते हैं! शादी के बाद जैसे तू मेरी और मानु के पिताजी की बेटी बन गई, तो तेरे पक्ष लेना हमारा हक़ बन गया! उसी तरह शादी के बाद मानु भी तेरे माँ-पिताजी का बेटा बन गया, भगवान न करे उसकी वजह से तुझे कोई तकलीफ हो जाती तो मैं और तेरे ससुर जी मानु का जीना बेहाल कर देते! फिर तेरी तो कोई गलती ही नहीं थी, सारी गलती मानु की थी जो उसने जानते-बूझते दवाइयाँ लेनी बंद कर दी! मैं मानती हूँ की इस वक़्त तेरे माँ-पिताजी और नेहा तुझसे नाराज़ हैं मगर एक बार मानु ठीक हो गया तो उन सबकी नाराज़गी खत्म हो जायेगी और सब तुझसे अच्छे से बात करेंगे| नेहा को भी मैं प्यार से समझाऊँगी की वो तुझसे प्यार से बात करे|

बेटा, तुझे इस वक़्त कोई चिंता नहीं लेनी, अपनी हिम्मत बाँधे रखनी है, बहुत सब्र से काम लेना है और हमेशा ये याद रखना है की तू ही वो 'खूँटा' है जिससे ये सारा परिवार बँधा हुआ है| अगर तूने ही हिम्मत छोड़ दी और कहीं ये 'खूँटा' उखड़ गया तो यहाँ हमारे परिवार को सँभालने वाला कौन है? कौन है जो बच्चों को सँभालेगा? आयुष तो सबसे छोटा है, फिर नेहा से तर्क-वितर्क करने की ताक़त बस तुझमें है! इन बूढी हड्डियों में अब हिम्मत नहीं की वो बेटे के साथ तुझे भी तकलीफ में देखें!” माँ ने मुझे बहुत प्यार से सँभाला था मगर मेरा दिल फिर भी बहुत बेचैन था| मैं अपनी हिम्मत बटोरने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन मेरी सभी कोशिशें विफल साबित हो रहीं थीं| आज मुझे एहसास हुआ की इन्हें कैसा लगा हुआ जब ये मुझे हँसाने-बुलाने की जी तोड़ कोशिश करते थे और मैं इनकी सभी कोशिशें नकाम कर दिया करती थी! माँ के सामने मैंने जैसे-तैसे खुद को रोने से रोक लिया और ऐसे दिखाया जैसे मैं उनकी सारी बात समझ चुकी हूँ मगर सबके जाते ही रात को मैं फिर रोने लगी| अनिल मेरा खाना रख गया था मगर मैंने खाने को हाथ नहीं लगाया और इनका हाथ पकड़ कर बिलख-बिलख कर रोते हुए बोली; "आप क्यों मुझ पर इतना गुस्सा निकाल रहे हो? इतना ही गुस्सा हो मुझसे तो मेरी जान ले लो मगर इस तरह मुझ पर न बोलकर जुल्म तो न करो! मैं जानती हूँ आप मुझसे बहुत प्यार करते हो फिर इतनी नाराज़गी क्यों? एक बार...बस एक बार...अपनी आँखें खोल दो! Please...I beg of you! Please...I promise...I promise मैं आज के बाद आपसे कभी नाराज़ नहीं हूँगी, कभी आपसे बात करना बंद नहीं करूँगी! Please मान जाओ!" मैंने अपने प्यार का वास्ता दे कर इनसे बतेहरी मिन्नतें कीं मगर इन्होने कोई प्रतक्रिया नहीं दी तो मैंने इन्हें नेहा और आयुष का वास्ता दिया; अच्छा मेरे लिए न सही तो कम से कम अपनी बेटी नेहा के लिए...अपने बेटे आयुष के लिए...उठ जाओ! आप जानते हो की आपकी बेटी नेहा ने प्रण किया है की वो कभी शादी नहीं करेगी, मेरे कारण उसे 5 साल जो आपका प्यार नहीं मिला पाया उसी प्यार को पाने के लिए वो कभी शादी नहीं करना चाहती! प्लीज...कम से कम नेहा के लिए तो उठ जाओ!" मैं फूट-फूट कर रोते हुए बोली मगर मेरी कही किसी बात का इन पर कोई असर नहीं हुआ, ये अब भी वैसे ही मौन लेटे थे|



मैं आज हार चुकी थी, लाचार थी और बस रोने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी! आज मुझे एहसास हुआ था की मेरे आँसूँ कितने अनमोल हुआ करते थे, मेरी आँख से गिरे एक कतरे को देख ये इतना परेशान हो जाया करते थे की सारा घर-भर अपने सर पर उठा लिया करते थे और आज मैं यहाँ इतना बदहवास हो कर रो रही हूँ, इनसे इतनी मिन्नतें कर रही हूँ मगर आज इनपर कोई असर नहीं हो रहा!

उस रात भगवान को हमारे परिवार पर दया आ गई, भगवान ने मुझ पर तरस खाया या फिर ये कहूँ की भगवान जी ने नेहा की दुआ कबूल कर ली और एक चमत्कार कर हमारे परिवार को खुशियाँ दे दी!



इनका हाथ पकडे, रोते-रोते मेरी आँख लग गई और मैंने एक बड़ा ही दुखद सपना देखा! मेरे सपने में ये मुझसे दूर जा रहे थे और मैं इन्हें रोकने के लिए दौड़ना चाह रही थी मगर मेरा जिस्म मेरा साथ नहीं दे रहा था! मैं बस रोये जा रही थी और इनको रोकने के लिए कह रही थी; "प्लीज...मत जाओ...मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ!" ये सपना इतना डरावना था की मेरी रूह काँप गई थी और मेरी आँख खुलने ही वाली थी की अचानक मुझे लगा किसी ने मेरे हाथों की उँगलियाँ धीरे से दबाई हों! ये एहसास होते ही मैं चौंक कर जाग गई और इनके चेहरे की ओर देखने लगी, इनके चेहरे पर चिंता की शिकन पड़ चुकी थी तथा इनके होंठ काँप रहे थे! मुझे लगा जैसे ये कुछ बोलना चाह रहे हैं, पर आवाज इतनी धीमी थी की मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था इसलिए मैंने तुरंत अपना दाहिना कान इनके होठों के आगे किया| "I.........m........s...o...rry...!" ये बस यही शब्द बुदबुदा रहे थे| मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैंने फ़ौरन नर्स को बुलाने के लिए घंटी जोर से बजानी शुरू कर दी! नर्स के आने तक मैं रो-रो कर इन्हें कुछ भी बोलने में अपनी ताक़त व्यर्थ करने से रोकने में लगी हुई थी; "बस...जानू...प्लीज...कुछ मत बोलो! मैं यहीं हूँ आपके पास, आप बिलकुल चिंता मत करो...मैं यहीं हूँ!" इनका हाथ मेरे हाथों में था और उसी कारण इन्हें मेरी मौजूदगी का एहसास हो रहा था| इतने में नर्स करुणा आ गई और इनकी हालत देख उसने तुरंत डॉक्टर रूचि को इण्टरकॉम किया| तब तक मैं इनके माथे पर हाथ फेरते हुए इन्हें शांत करने में लगी थी जबकि मेरा खुद का दिल इनकी हालत देख कर बहुत घबराया हुआ था! 'अगर मेरी वजह से आपको कुछ हो गया न तो मैं भी मर जाऊँगी!' मैं मन ही मन बोली|

इस वक़्त मैं नेहा से किया अपना वादा की, उसके पापा के होश में आते ही मैं उनकी नजरों से दूर चली जाऊँगी, भूल चुकी थी! तभी एक-एक कर दो डॉक्टर कमरे में आये और मुझे बाहर जाने को कहा| कमरे से बाहर आते ही मैंने पिताजी को फ़ोन कर के सारी बात बताई, पिताजी और सभी लोग अस्पताल आने के लिए चल पड़े| इधर करुणा कमरे से बाहर आई और मुझे कमरे के भीतर बुलाया| डरते-डरते मैं कमरे के भीतर घुसी, मेरा दिमाग इस वक़्त कुछ भी बुरा सुनने की हालत में नहीं था! अगर इन्हें कुछ हो जाता तो मैं भी उसी वक़्त अपने प्राण त्याग देती, पर शुक्र है भगवान का की कोई दुखद बात नहीं थी! डॉक्टर ने मुझे बताया की; "मानु आपका नाम लिए जा रहा है, मानु का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है आप उसके पास रहो!" डॉक्टर की बात सुन मैंने इन्हें देखा तो पाया की ये अब भी मेरा नाम बुदबुदाए जा रहे हैं| मैं फ़ौरन इनका हाथ अपने हाथों में ले कर बैठ गई, जब तक इन्हें मेरे हाथ के स्पर्श का एहसास नहीं हुआ ये मेरा नाम बुदबुदाए जा रहे थे| मेरे हाथ का स्पर्श महसूस होते ही ये शांत हो गए और धीरे से मेरा हाथ दबाने लगे| मन में प्रार्थना करते हुए मुझे वो दिन याद आ रहा था जब मैं पहलीबार नेहा को ले कर दिल्ली आई थी और गाँव वापस जाते समय ऑटो में ये मेरा हाथ इसी तरह दबा रहे थे क्योंकि ये मुझे खुद से दूर नहीं जाने देना चाहते थे| उस दिन की तरह आज भी मैं बहुत डरी हुई थी, मुझे बार-बार लग रहा था की कहीं मैं इन्हें खो न दूँ! मैंने भी धीरे-धीरे उसी दिन की तरह इनका हाथ दबाना शुरू कर दिया और मन ही मन इनसे कहने लगी; 'मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी!" इन्होने मेरे हाथ के स्पर्श से ही मेरे मन की बात पढ़ ली और इनका मन शांत होने लगा| डॉक्टर ने देखा की इनका ब्लड प्रेशर अब नार्मल होने लगा है तो उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए कहा; "He's alright! I’ve given him an injection so he can sleep for now. I’ll call Doctor Sarita right now and Doctor Ruchi is on her way here.” इतना कह डॉक्टर साहब चले गए, हालाँकि मैं उनसे और भी बहुत कुछ पूछना चाहती थी मगर इन्होने मेरा हाथ नहीं छोड़ा था जिस कारण मैं उठ न पाई| मैं पाँव ऊपर कर के इनके सिरहाने बैठ गई और इनके बालों में प्यार से हाथ फेरती रही|



घडी में इस वक़्त दो बजे थे और इनके बालों में हाथ फेरते हुए मेरी आँख लग गई| करीबन पोन घंटे बाद सभी लोग अस्पताल पहुँचे, दरवाजा खुलने से मेरी आँख खुली और मैंने सभी को हाथों के इशारे से चुप रहने को कहा| बच्चों समेत सभी लोगों ने इनको घेर लिया था| मैंने दबी हुई आवाज में खुसफुसा कर सभी को डॉक्टर द्वारा बताई सारी बात बताई, ये सुन कर सभी के चेहरे पर जो ख़ुशी आई वो देखने लायक थी! आयुष चहकने लगा था, माँ, पिताजी, मेरे सास-ससुर, बड़की अम्मा और अजय भैया हाथ जोड़े भगवान को शुक्रिया कर रहे थे| नेहा ने फ़ौरन इनके गाल पर अपनी पप्पी दी और कुर्सी लगा कर इनका हाथ अपने हाथ में ले कर बैठ गई| आज कितने दिनों बाद अपने पापा का हाथ अपने हाथों में ले कर नेहा के चेहरे पर उमीदों भरी मुस्कान आई थी| नेहा के चेहरे पर ये मुस्कान देख मेरा दिल भाव-विभोर हो उठा तथा मेरी आँखों से फिर आँसूँ छलक आये|

इधर मेरी सासु माँ ने मुझे मुस्कुराते हुए अपने गले लगाया और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए मुझे आशीर्वाद देने लगीं; "सदा सुहागन रहो बहु!" कमरे में सभी लोग मौजूद थे सिवाए अनिल के, मैंने जब सासु माँ से अनिल के बारे में पुछा तो माँ ने बताया की अनिल रात की ट्रैन पकड़ कर बैंगलोर निकल गया है| मैं हैरान थी की उसने बताया नहीं की उसे कौन सी ट्रैन मिल गई है पर माँ ने बताया की कर्नाटका एक्सप्रेस साढ़े नौ बजे छूटने वाली थी| अनिल अपने जीजू को बैंगलोर ले जाने के लिए इतना उतावला था की जल्दी-जल्दी में वो बिना टिकट लिए ही ट्रैन में चढ़ गया| मैंने अपनी सासु माँ से कहा की वो अनिल को फ़ोन कर के वापस बुला लें, इतना सुनना था की मेरे पिताजी मुझ पर बिगड़ गए; "नाहीं! जब तक मानु का होस नाहीं आई जात केउ अनिल का फ़ोन न करि! अनिल बिना सब कुछ पता किये वापस आये वाला नहीं!" पिताजी जानते थे की अनिल को इनकी कितनी चिंता है इसलिए उन्हें अनिल पर बहुत गर्व हो रहा था| पिताजी भी इनको ले कर बहुत चिंतित थे इसलिए वो कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहते थे, हाँ अगर इनकी जगह अगर मैं अस्पताल में पड़ी होती तो वो फिर भी अनिल को बुला लेते| मेरे ससुर जी ने पिताजी को बहुत समझाया की वो अनिल को वापस बुला लें मगर पिताजी अपनी बात पर अड़े रहे| उनकी ये जिद्द सही भी थी, एक बार अगर थोड़ी जानकारी मिल जाए तो इसमें कोई हर्ज़ भी नहीं था!



थोड़ी देर बाद डॉक्टर रूचि आईं और उनके साथ दूसरे डॉक्टर्स आये और सभी ने मिलकर इनका फिर से पूरी तरह चेकअप किया| उन्होंने हम सभी को पुनः आश्वस्त किया की; "अब चिंता की कोई बात नहीं है, मानु अब रिकवर कर रहा है!" हम सभी ये सुन कर बहुत प्रसन्न हुए और सभी भगवान को धन्यवाद देने लगे| एक जिंदगी के लिए कितने लोग दुआयें माँग रहे थे, ऐसे देवता जैसे पति है मेरे!

वो पूरी रात कोई नहीं सोया, सभी जागते हुए भगवान से प्रार्थना करने में लगे थे| सिर्फ एक आयुष था जो अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सो चूका था, अब था तो वो छोटा बच्चा ही कब तक जागता?! वहीं नेहा अपना होंसला बुलंद किये हुए अपने पापा का हाथ पकड़े बैठी थी और धीरे-धीरे हाथ सहलाते हुए टकटकी बांधें अपने पापा जी को देखे जा रही थी| मैंने गौर किया तो पाया की उसके होंठ हिल रहे हैं और वो मन ही मन कुछ बुदबुदा रही है| मैंने नेहा के होठों की थिरकन पर गौर किया तो पाया की वो महामृत्युंजय मंत्र बोल रही है| मेरी बेटी अपने पापा के जल्दी में होश आने के लिए भगवान से प्रार्थना करने में लगी थी|

कुछ देर बाद नर्स करुणा इन्हें दुबारा चेक करने आई और इनका ब्लड प्रेशर चेक कर वो मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखते हुए हाँ में गर्दन हिलाने लगी, उसका मतलब था की अब इनकी तबियत में सुधार है| जाते-जाते वो माँ-पिताजी को नमस्ते बोल गई और उन्हें बोल गई की; "मानु अब टीक (ठीक) है!" ये सुन सभी को इत्मीनान आया और सभी ने राहत की साँस ली| पाँच बजे मेरे पिताजी सभी के लिए चाय लाये मगर मैंने और नेहा ने चाय नहीं ली क्योंकि हम दोनों इनके होश में आने के बाद ही कुछ खाने वाले थे| हम दोनों माँ-बेटी ने इनका हाथ थाम रखा था, हम में जैसे होड़ लगी थी की कौन इनसे ज्यादा प्यार करता है, जबकि देखा जाए तो इनसे सबसे ज्यादा नेहा ही प्यार करती थी|



सुबह के नौ बजे डॉक्टर सरिता आईं और उन्हीं के साथ डॉक्टर रूचि भी आईं, अभी तक सभी लोग एक कमरे में बैठे हुए थे तथा इनके होश में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे| सरिता जी ने इनकी सारी रिपोर्ट्स पढ़ ली थीं और वो काफी खुश भी थीं| उनके अनुसार अब कोई घबराने वाली बात नहीं थी, उन्होंने हमें इनके प्रति बरतने वाली सभी एहतियात बतानी शुरू कर दी| हमने सरिता जी द्वारा दी हुई सभी हिदायतें ध्यान से सुनी और सारी ली जाने वाली एहतियातें मैंने अपने पल्ले बाँध ली! अब हमें इंतज़ार था तो बस इनके होश में आने का, लेकिन हमे इसके लिए और ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा|

कुछ ही देर में इन्हें होश आ गया और इन्होने बहुत धीरे-धीरे अपनी आँख खोली| नेहा इनके सामने बैठी थी और मैं सिरहाने इसलिए इनकी सबसे पहले नजर नेहा पर ही पड़ी| मैंने सभी को इनके होश में आने की बात बताई तो सभी लोग इन्हें घेर कर खड़े हो गए| सब को अपने सामने खड़ा देख इनके चेहरे पर मीठी सी मुस्कान आ गई और क्या मुस्कान थी वो! एक दम क़ातिलाना मुस्कान, हाय! ऐसा लगता था मानो एक अरसे बाद वो मुस्कान देख रही हूँ! वहीं सबने जब इन्हें यूँ मुस्कुराते हुए देखा तो सभी के दिलों को इत्मीनान मिला! मेरी माँ और सासु माँ ने इनकी नजर उतारी और भगवान को शुक्रिया अदा करने लगीं| उधर नेहा सीधा इनके सीने से लग गई और खुद को सँभाल न पाई इसलिए वो रोने लगी तथा रोते-रोते बोली; "I...love...you...पापा जी, I missed you so much!" इन्होने धीरे से अपना दायाँ हाथ नेहा की पीठ पर रखा और धीमी आवाज में बोले; "awwww मेरा बच्चा!" ये नेहा के पसंदीदा शब्द थे और ये शब्द सुन कर नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई|



अस्पताल का पलंग थोड़ा ऊँचा था इसलिए बेचारा आयुष ऊपर चढ़ नहीं पा रहा था, वो पलंग के हर कोने की तरफ से चढ़ने की भरसक कोशिश करता रहा मगर फिर भी चढ़ नहीं पाया तो अंत में उसने अपने दादा जी का हाथ पकड़ उनका ध्यान अपनी ओर खींचा और अपने दोनों हाथ पंखों के समान खोल कर उन्हें (आयुष के दादाजी को) गोदी उठा कर पलंग पर चढाने को कहा; "दादा जी, मुझे पापा के पास जाना है!" पिताजी, आयुष के बालपन पर मुस्कुराये और आयुष को पलंग पर इनके पाँव के पास उठा कर बिठा दिया| आयुष अपने हाथों और पाँव पर रेंगते हुए इनके पास आया और इनके सीने से चिपक गया! आयुष बहुत बहादुर था इसलिए वो रोया नहीं बल्कि इनके सीने से लग कर ख़ुशी से चहकने लगा| दोनों बच्चे इनके सीने से लगे हुए थे इसलिए अब जा कर इन्होने मेरा हाथ छोड़ा और दोनों बच्चों को अपनी बाहों में जकड़, आँख बंद कर उस अनमोल सुख के सागर में डूब गए!

इन्होने मेरा हाथ छोड़ा था तो मैं उठ कर सरिता जी के पास पहुँची जो सबसे पीछे खड़ी ये मनमोहक दृश्य देख कर भावुक हो चुकी थीं| चूँकि सभी का ध्यान इस वक़्त इन पर था तो इसलिए किसी ने सरिता जी के आँसूँ नहीं देखे| मैंने उनके आगे हाथ जोड़ कर उन्हें दिल से धन्यवाद कहा और जवाब में सरिता जी मेरे दोनों हाथ पकड़ कर ख़ुशी से मुस्कुराने लगीं|



उधर मेरे माँ-पिताजी, सासु माँ-ससुर जी, बड़की अम्मा और अजय भैया सभी इन्हें आशीर्वाद देते हुए इनसे प्यार से बात करने में लगे थे| वहीं आयुष के मन में बहुत जरूरी सवाल था, वो पलंग के ऊपर खड़ा हुआ और सरिता जी की तरफ देखते हुए बोला; "आंटी जी, हम पापा को घर कब ले जा सकते हैं?" आयुष ने बड़े बचकाने ढंग से अपना सवाल पुछा था जिसे सुन सभी एक साथ हँस पड़े| आज इतने दिनों बाद पूरा परिवार एक साथ हँसा था और ये देख मेरे दिल को बहुत सुकून मिल रहा था|

खैर, सरिता जी ने आयुष के सवाल का मुस्कुराते हुए दिया; "बेटा, दो-तीन दिन अभी आपके पापा को हम यहाँ ऑब्जरवेशन के लिए रखेंगे| उसके बाद आप अपने पापा को घर ले जा सकते हो|" ये सुन कर आयुष इतना खुश हुआ की वो पलंग से नीचे कूदा और कमरे में इधर-उधर दौड़ते हुए नाचने लगा| आयुष को यूँ ख़ुशी से नाचते देख इनके साथ-साथ सभी फिर हँस पड़े!



हँसी-ख़ुशी का माहौल बन चूका था, सरिता जी जा चुकी थीं और हमारा पूरा परिवार अब भी कमरे में बैठा हुआ था| ये फिलहाल ज्यादा बात नहीं कर रहे थे क्योंकि इनका शरीर बहुत कमजोर हो चूका था| जब ये बोलते तो बहुत धीरे-धीरे बोलते और आयुष इनकी कही बातों को जोर से बोल कर दुहराता था, ये उसके लिए एक नया खेल था! मैं फिर से इनके सिरहाने बैठी थी और नेहा इनकी कमर के पास बैठी इन्हें देख कर मुस्कुराये जा रही थी| तभी मेरी सासु माँ उठ कर मेरे पास आईं और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; "बेटी, तेरी सेवा से मानु अब ठीक हो गया है, अब तो घर चल कर थोड़ा आराम कर ले, जब से मानु अस्पताल में एडमिट हुआ है तब से तू घर नहीं गई|" सासु माँ की बात सुन इनके चेहरे पर परेशानी की शिकन पड़ने लगी, मैं इन्हें कतई परेशान नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने सासु माँ की बात बड़े प्यार से टालते हुए कहा; "माँ (मेरी सासु माँ), अब तो मैं इन्हीं के साथ गृह-प्रवेश करूँगी|" गृह-प्रवेश की बात सुन इनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और इनके चेहरे पर आई परेशानी की शिकन धुल गई! उधर आयुष ने जब मेरी बात सुनी तो उसके भोलेपन ने मेरी बात को मज़ाकिया बना दिया; "दादी जी, तो क्या इस बार पापा जी घर में घुसने से पहले चावल वाले लोटे को लात मारेंगे?" शादी के बाद जब मेरा गृह-प्रवेश हुआ था तो मैंने ये रस्म अदा की थी और आयुष को लगता था इनको भी यही रस्म अदा करनी होगी| आयुष की बात सुन सभी लोग जोर से हँस पड़े और पूरे कमरे में हँसी गूँजने लगी!

एक परिवार जो लगभग 20 दिन से मेरे कारण दुःख भोग रहा था वो आज फिर से हँसने-खेलने लगा था और मुझे इससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए था!

बस कर पगले, रुलाएगा क्या?

आशु
 
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Ashurocket

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Sangeeta Maurya क्या यार, सच में आंख में आंसू हैं जब ये टाइप कर रहा हूं।

आशा करता हूं, अगला अपडेट सुखकारी होगा।

आशु
 

Sangeeta Maurya

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akhir ye ho kya raha hai story pe :dwarf: nahi aaj bata hi dijiye ki karna kya chahte hai aap :dwarf:

Khair..............

1) maanu ki galti..... isse zyada dhith kirdaar shayad hi koi ho :slap: bachpan se hi chhoti chhoti baaton ko dil se lagake na thik se sota hai na hi khane pine ke prati dhyan rakhta hai... ziddi, had se zyada ziddi aur dhith.... ab dekho is zidd ke chalte kya se kya ho gaya :mad:
medicines lene bhi parhej.... are neha ne kitni baar yaad dilane ki koshish ki... par nahi janab ko to bas... ab kya bolu :sigh2:

2) bhouji ki galti..... inki galtiyo ki hisab karu to uff hay tauba nikal jaaye shayad...
sabse badi galti yehi hai ki ye kabhi khul ke baaton ko batati nahi.... understanding to hargiz bhi nahi ye kirdaar :mad:
aare manu ko khul ke baaton batayegi tabhi to wo samajh payega.... kya jivan bhar telepathy ki jariye mahsoos karta rahe mann ki baaton ko... :sigh:

3) neha... my all time favorite kirdaar
samajhdari 101%
bado ke prati samman 101%
nidar 101 %
sahan shakti 101%
tevar 101%
Gussa 101%
Masoomiyat 200%
:adore: :adore:
ahaha kitni sukun bhari thi wo baatein jo usne sunayi bhouji ko... actually sach ka aaina dikha mein koi kasar nahi chhodi usne :adore:
aur sabse badi baat apne papa ko sabse zyada samajhne wali... even bhouji se bhi 101% zyada.... sahi waqt par sahi faisla lene wali :adore:

4) aayush... iske baare mein bhi kya kehna...
sabse chhota par paristithiyo ko samajhne wala....
koi aur hota to us situation mein tut ke bikhad hi jata lekin aayush aisa hargiz nahi hai... wo haalato ke sath samjhota karna janta hai... ki tutna nahi hai aur hi haarna... never back down, never give up... :adore:

5) maanu ke mata pita....dono hi jaante hai ki jo hua, isme kis kis ki galti hai par phir usko nazar andaz karte huye apni samajhdaari dikhate huye aage ki paristithiyo ko kaise sudharna hai uske liye na kewal khud balki baaki ghar ke members ko bhi uske liye taiyaar kar rahe hai bina haar maane... ghar ke mukhiya ya nivetha hone chahiye bilkul aise... bilkul maanu ke mata pita ki tarah... jo haalat jaise bhi ho uske aage sir nahi jhukate balki samna karte hai aur baakio ko bhi samna karne ke liye prerna dete hai....
aur jis tarah apni bahu ko support kar rahe the sach mein kabile tarif hai... Yahan ki bhouji ke mata pita jab bhouji ko daant rahe the tab bhouji ke sath dono khade rah ke bhouji ki taraf se wakalat bhi kiya...
sidhi si baat hai jo hone wala tha wo ho chuka hai, ab aage ki paristithi kaise sudhari jaaye uske liye sochna chahiye...

6) anil..... ye to chupa Rustam nikla matlab kya baat hai.. maanu aur uske pita ji ke karobaar ko ek hi baar mein samajh bhi liya aur faida bhi kara diya ek hi din mein...
sabse badi baat bas keh dene se koi apna, apna nahi ban jata, balki jo bure waqt mein sath de wo hi sahi mayno mein apna hota hai... is baat ko anil ne har baar Sabit karta aa raha hai aur aaj bhi sabit kiya hai... :adore:

7) bhojhi ke mata pita......
well bahot achhe hai... par ek galti unhone bhi ki hai..khas kar bhojhi ke pita .. aisi chubhti huyi baatein kahne pehle ek baari soch lete ki unki beti pet se hai...
aise mamle mein agar zyada mentally torture kiya gaya to maa aur unborn bady dono ke liye hanikarak hai... :sigh:
Pehle situation ko to samajh lete maanu ke mata pita ki tarah...

Khair...........
kaafi emotional update dono hi... aisi situation bhi create hogi kahani mein aage chalke ye to kabhi soch bhi nahi sakti thi... par kya kare jo hona hai wo hoke hi rahta hai... shayad isiko hum kismat ya phir niyati ya phir vidhi ka vidhan kehte hai.... par ye jo hua bilkul thik nahi hua... dil ko aaghat kar de, ek huq si uthe dil mein,aisi situation ghatana ghat gayi meri is favorite kahani pe :sigh:
.............

Kuch mann ki baatein (warning) - agar next update tak maanu hosh mein nahi aaya to writer sahab... aapko to khud rachika bhabhi bhi bacha nahi payegi Naina ke khatarnak revos se ..... :D
isliye next update tak mere favorite kirdaar maanu hosh mein aa jane chahiye aur akhiri baat bhi yahin hai..... :D
Chaliye chhodiye.....
Let's see what happens next....
Kabhi sapne mein bhi nahi soch sakti thi ki maanu coma mein chala jayega :sad:
Btw brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:

( ek revo Sangeeta Maurya ke liye bhi....
. jindagi mein bhouji ne bahot dukh jheli hai har pal har lamha..... phir maanu unki jindagi mein andhere mein dipak leke ujala karne aaya... kar bhi diya.... Lekin ab bhouji apni hi galtiyo ke chalte aisi situation ka samna kar rahi hai jo uski soch se bhi pare hai... wo to upor wale ka lakh lakh sukar hai ki ab paristithi thodi bahot kabu mein hai ... yehi advice hai unke liye.... jo hua, so hua, ab aage jo hona hai uske liye khud ko taiyar kar leni chahiye aur jo galtiya huyi hai usse sikh leni chahiye taaki aage wo galti na ho....
baaki ghar wale sabhi unke sath to hai hi... bas ab khud ko majbut karna hai apno ke liye apne bachho ke liye apne pariwar ke liye.... Baaki jis tarah apbiti ko shadbon ke jariye kahani ke roop mein hum readers ke samaks pesh ki wo sach mein kabile tarif hai..... har mod har pehlu ko Dhyan mein rakhke prastut ki hi hai update ko aur sath hi in baaton pe dhyaan di hai ki kirdaaro apni bhumika sathik roop nibhaye har ek panktion ke darmiyan.... :applause: :applause: :applause: :applause:

Khair chhodiye.... btw ek easy upay ya raah bhi hai... bhouji rachika bhabhi kyun nahi bula leti Delhi.... are logic hai.... bilkul hai... coz pehle to help mil jaati, dusri sath dene ke liye ek bahan jaisi saheli, teesri Salah mashwara karne ke liye as guru mata roop mein sabit hoti the great great great rachika bhabhi :adore:...
anyway revo samapt :D)

भले ही कितनी लुच्ची सही........लेकिन रिव्यु बहुत अच्छा देती है...........बस मेरे हिस्से के रिव्यु में जबरदस्ती उसका नाम घुसेड़ देती है...... :sigh: ........ तू सच में अगर मुझे मिलती न तो मैं तेरे खूब गाल खींचती............मेरी कल्पना में तू खूब गोल मटोल दिखती है........ तूने इतना अच्छा रिव्यु दिया मुझे उसके लिए शुक्रिया :dost:
 

Sangeeta Maurya

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दया वापस आ जाओ।

😆😁😆

मान गए Sangeeta Maurya आपकी पारखी नजर और लेखनी को।

ऐसा करो, अब लेखक महोदय को बोल दो कि दोस्त के घर जाके परिवार की तीमारदारी करें।

हम सभी पाठक गागर में सागर (22000 की जगह 10_12000 शब्द) से ही खुश हो जायेंगे।

😆😆😆

आशु

न बाबा न ........मेरे से नहीं लिखा जाता इतना सारा........इतनी बड़ी अपडेट के लिए मुझे तो १ महीना लगेगा...........इतना इंतज़ार कौन करेगा.......... जब तक ये कहानी लिख रहे हैं मैं अपनी कहानी धीरे धीरे लिख रही हूँ..............ये कहानी खत्म होगी और मेरी कहानी शुरू हो जाएगी :good:
 

Sangeeta Maurya

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Kya Sangeeta Maurya madam .... jab apbiti mein itna kuch bol hi rahi to thodi bahot hi sahi, jhuth hi bol deti ki ajay bhaiya aur badki amma ke sath Great Rachika bhabhi bhi aayi thi varun ko sath liye maanu ki haal chaal puchne .. hum readers bhi isi bahane khush ho lete :sigh: (khas kar main) :D

मैडम जी..........मैंने ये सब बहुत पहले लिखा था..........अब नहीं लिख रही.........और अगर लिखती भी न.......तो भी उस चुड़ैल का नाम न लिखती........ :girlmad:
 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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न बाबा न ........मेरे से नहीं लिखा जाता इतना सारा........इतनी बड़ी अपडेट के लिए मुझे तो १ महीना लगेगा...........इतना इंतज़ार कौन करेगा.......... जब तक ये कहानी लिख रहे हैं मैं अपनी कहानी धीरे धीरे लिख रही हूँ..............ये कहानी खत्म होगी और मेरी कहानी शुरू हो जाएगी :good:

अरे बाबा, मेरा पिछला कॉमेंट दुबारा पढ़िए। 22000 की जगह हम तो 10000 वाले अपडेट से भी खुश हैं। गागर में सागर।

आशु
 

Ashurocket

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वो तो होगा ही......... :approve:

प्रतीक्षा है। जब पूर्ण हो तो जलसा होगा।

यूंकी मुद्दे की बात है, प्रतीक्षा और जलसा हमारा तो बच्चन परिवार तो सड़क पे आ जायेगा। अमिताभ बच्चन.

😆😁😆
 

Sangeeta Maurya

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अरे बाबा, मेरा पिछला कॉमेंट दुबारा पढ़िए। 22000 की जगह हम तो 10000 वाले अपडेट से भी खुश हैं। गागर में सागर।

आशु
प्रतीक्षा है। जब पूर्ण हो तो जलसा होगा।

यूंकी मुद्दे की बात है, प्रतीक्षा और जलसा हमारा तो बच्चन परिवार तो सड़क पे आ जायेगा। अमिताभ बच्चन.

😆😁😆

आशु जी.........मैं भी यही कह रही थी की मुझसे नहीं लिखे जाते १० हज़ार शब्द............पिछलीबार की बात और थी..तब मेरे पास इनका लैपटॉप था.....यहाँ तो कुछ नहीं.........सिर्फ ये बेकार सा फ़ोन है..........नई अपडेट के लिए अपने गुरु जी को कहें...मेरा उसमें कोई योगदान नहीं.............और कहाँ ये बच्चन परिवार की बात ले कर बैठ गए.............फ़र्ज़ी हैं सभी.............
 

Ashurocket

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आशु जी.........मैं भी यही कह रही थी की मुझसे नहीं लिखे जाते १० हज़ार शब्द............पिछलीबार की बात और थी..तब मेरे पास इनका लैपटॉप था.....यहाँ तो कुछ नहीं.........सिर्फ ये बेकार सा फ़ोन है..........नई अपडेट के लिए अपने गुरु जी को कहें...मेरा उसमें कोई योगदान नहीं.............और कहाँ ये बच्चन परिवार की बात ले कर बैठ गए.............फ़र्ज़ी हैं सभी.............

गुरुजी? ????

प्रतीक्षा और जलसा की बात तो बस मजाक मस्ती थी।

हां सच है कि आपकी जीवनी पढ़ना चाहता हूं।

यदि संभव हो तो VOICE to TEXT अपने मोबाइल में उपयोग करके देखें।

आशु
 
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