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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
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Lovely Anand

Love is life
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शाम होते होते सुगना अस्पताल से बाहर आ गई। बच्चा जनने के बाद वह घर तक पैदल जा पाने की स्थिति में नहीं थी। सरयू सिंह सुगना का पूरा ख्याल रखते थे उन्होंने चार कहार बुला लिए थे। सुगना चारपाई पर लेट गई और कहार उसे लेकर घर की तरफ चल पड़े।

सरयू सिंह की भौजी कजरी बच्चे को गोद में ली हुई थी. कजरी 42 वर्ष की भरे पूरे शरीर वाली औरत थी। सरयू सिंह और कजरी ने अपनी जवानी में खूब मजे लूटे थे। सुगना के आने के बाद सरयू सिंह का ध्यान कजरी से थोड़ा हट गया था। पर बीच-बीच में वह अपनी कजरी भौजी की बुर चोद कर कजरी के पुराने एहसान चुका देते और अपना आकस्मिक कोटा बनाए रखते। जब सुगना रजस्वला होती कजरी अपनी बुर को धो पोछ कर तैयार रखती।

कजरी अपनी गोद में अपने नाती को लिए हुए आगे आगे चल रही थी उसके गोल गोल कूल्हे हिल रहे थे सरयू सिंह कजरी के पीछे पीछे चल रहे थे। उनकी निगाहें कूल्हों को चीरती हुई कजरी की बूर को खोज रही थीं। मन ही मन वह कजरी को चोदने की तैयारी करने लगे।

"भैया, तनी तेज चला कहार आगे निकल गइले"

हरिया की आवाज सुनकर सरयू सिंह का ध्यान कजरी के कूल्हों पर से हटा। ध्यान से देखा तो सुगना को लेकर वो काफी दूर निकल गये थे। जाने इन कहारों के पैरों में इतनी ताकत कहां से आती थी। देखने में तो वह पतले दुबले लगते पर चाल जैसे हिरण की। एक पल के लिए सरयू सिंह को लगा जैसे उनकी सुगना उनकी नजरों से दूर जा रही है। सरयू सिंह ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और तेजी से सुगना के पास पहुंचने की कोशिश करने लगे।

थोड़ी ही देर की मेहनत के बाद सरयू सिंह सुगना के पास पहुंच गए और कहारों के साथ चलते चलते घर आ गये। सुगना चारपाई से उतर कर खड़ी हो चुकी थी सरयू सिंह सुगना को लेकर घर के अंदर आ गए।

सरयू सिंह और सुगना अकेले थे कजरी को आने में वक्त था। सुगना सरयू सिंह के सीने से सटती चली गई। सरयू सिंह ने उसके कोमल होठों को चूसना शुरू कर दिया। सुगना की चुचियों में दूध भर रहा था। जब उन्होंने सुगना की चुचियों को मीसना चाहा सुगना कराह उठी

"बाबू जी.. तनी धीरे से….. दुखाता"

सुगना की यह मासूम कराह सरयू सिंह के लंड में जबरदस्त ताकत भर देती थी सुगना इस बात को जानती थी। सुगना की निगाहें सरयू सिंह की धोती पर पड़ी सरयू सिंह का खड़ा लंड अपना आकार दिखा रहा था। सुगना ने सरयू सिंह का लंगोट खिसका कर लंड को बाहर निकाल लिया और अपनी कोमल हथेलियों से उसे सहलाने लगी सरयू सिंह आनंद में डूबने लगे।

सुगना ने सरयू सिंह के लंड को एक चपत लगाई और मीठी आवाज में बोली

"इहे हमार पेट फुलेईले रहे"

"एतना सुंदर लइका भी तो देले बा"

सुगना खुश हो गई सच उस लंड ने सुगना का जीवन खुशियों से भर दिया था। सुगना ने पास बड़ी चौकी पर बैठते हुए झुक कर उस लंड को चूम लिया और अपने होठों के बीच लेकर चूसने लगी। उसके होठों पर वीर्य का स्वाद महसूस होने लग। सुगना तेजी से अपने हाथ भी चलाने लगी …

"सुगना मेरी बिटिया….. मेरी रानी…. हां ऐसे ही और जोर से …...आह…..उँ….."

सरयू सिंह भी अपना पानी निकालना चाहते थे पर यह संभव नहीं था कजरी और गांव के कई लोग दरवाजे पर आ चुके थे। खटपट सुनकर सरयू सिंह ने अपना लंड लंगोट में लपेट लिया और मन मसोसकर कर बाहर की तरफ जाने लगे। सुगना ने जाते समय कहा "बाबूजी बाकी रात में…." सरयू सिंह ने सुगना के गाल पर चिकोटि काटी और बाहर आ गए सुगना की बात सुनकर वह खुश हो गए थे।

सरयू सिंह दो भाई थे बड़ा भाई मानसिक रूप से थोड़ा विक्षिप्त था। वह सनकी प्रवृत्ति का था। कजरी लखनपुर गांव की रहने वाली थी सरयू सिंह और कजरी ने कई बार अपनी किशोरावस्था में एक दूसरे को देखा था गांव में ज्यादा प्यार व्यार का चक्कर नहीं था पर शारीरिक आकर्षण जरूर था।

कजरी के पिता जब रिश्ता लेकर सरयू सिंह के पिता के पास आए तो उन्होंने कजरी का विवाह बड़े बेटे से करा दिया। कजरी जब मतदान के योग्य हुई वह सरयू सिंह के घर आ गई। कजरी की चूत का पहला भोग सरयू सिंह के भाई ने ही लगाया पर ज्यादा दिनों तक वह कजरी की मदमस्त जवानी का आनंद नहीं ले पाया । गांव में साधुओं का एक झुंड आया हुआ था। वह उनके साथ गायब हो गया। सभी लोगों का यही मानना था कि वह साधुओं से प्रभावित होकर उनके साथ साथ चला गया। लाख प्रयास करने के बावजूद उसे ढूंढा न जा सका पर जाते-जाते उसने कजरी को गर्भवती कर दिया था।

कजरी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम रतन रखा गया कालांतर में रतन का विवाह सुगना से संपन्न हुआ था।

बाहर दालान में गहमागहमी थी आज खुशी का दिन था मिठाइयां बांट रही थी किसी ने पूछा रतन को सूचना भेज दी गई है

हरिया ने लपक कर कहा "अरे उ कल सवेरे आ जइहें गाड़ी ध लेले बाड़े उनकर चिट्ठी आईल रहे।

रात में खाना खाने के पश्चात कजरी और सुगना अपनी अपनी चारपाई पर लेटे हुए बातें कर रहे थे। सुगना दूध पिला रही थी तभी सरयू सिंह कमरे के अंदर आ गए। सुगना ने तुरंत घुंघट ले लिया पर उसकी गोरी चूचियां वैसे ही रहीं। सरयू सिंह की निगाह उन चूचियों पर थी।

सुगना की चुचियों का आकार अचानक ही बढ़ गया था सरयू सिंह मन ही मन खुश हो रहे थे सुगना की सूचियों को बड़ा करने में उन्होंने पिछले दो-तीन सालों में खूब मेहनत की थी पर आज उस मासूम के आगमन ने उनकी मेहनत को और उभार दिया था।

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कजरी ने चादर ठीक की और सरयू सिंह को बैठने के लिए कहा और स्वयं सरयू सिंह के लिए दूध गर्म करने चली गई।

कजरी के जाते ही सुगना ने घूंघट हटा लिया सरयू सिंह उसके गालों को चूमने लगे और उसे प्यार करने लगे। उनके साथ सुगना की पीठ पर से होते हुए नितंबो तक जा पहुंचे वह उसकी जांघों और पैरों को दबा रहे थे। वह यह बात भली-भांति जानते थे की सुगना की चूत अभी छूने योग्य नहीं है।

अचानक उन्होंने सुगना की दूसरी चूची को भी बाहर निकाल लिया उसके निप्पओं को होठों के बीच लेने पर दूध की एक घर उनके जीभ पर पड़ी उसका स्वाद अजीब था पर था तो वह उनकी जान सुगना का। उन्होंने उसे पी लिया जब उन्होंने निप्पल पर होठों का दबाव दोबारा बढ़ाया तो सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा...

"बाबूजी, सासूजी दूध लेवे गईल बाड़ी तनि इंतजार कर लीं"

सरयू सिंह शर्मा गए पर वह उत्तेजना के अधीन थे उन्होंने सुगना की पूरी चूची को मुंह में भरने की कोशिश की। सुगना ने उनके सर के बाल पकड़ लिए पर यह फैसला न कर पाई कि वह उन्हें अपनी चूची चूसने दे या सर को धक्का देकर बाहर हटा दें। वह उनके बाल सहलाने लगी वह खुद भी आनंद लेने लगी।


अचानक बेटा रोने लगा सरयू सिंह ने तुरंत ही सुगना की चूची छोड़ दी उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उस दूध का हक मार रहे हों। सुगना हँसने लगी।

सुगना ने बेटे की पीठ थपथपा कर एक बार फिर उसे सुला दिया।

सरयू सिंह अपने कमरे में चले गए। कजरी दूध लेकर उनके कमरे में आ गए कमरे का छोटा दिया जल रहा था। जब तक सरयू सिंह दूध पीते कजरी ने उनके मुसल जैसे लंड को बाहर निकाल लिया। सुगना को सहलाने से वह पहले ही तन कर खड़ा हो गया था। जब तक सरयू सिंह गर्म दूध को पीते रहे तब तक कजरी उनके लंड को चूस कर अपनी बुर के लिए तैयार करती रही।


शेष अगले भाग में...
 
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Napster

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बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट है
अगले अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Thunderstorm

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ट्यूबवेल के खंडहरनुमा कमरे में एक खुरदरी चटाई पर बाइस वर्षीय सुंदर सुगना अपनी जांघें फैलाएं चुदवाने के लिए आतुर थी।

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वह अभी-अभी ट्यूबवेल के पानी से नहा कर आई थी। पानी की बूंदे उसके गोरे शरीर पर अभी भी चमक रही थीं सरयू सिंह अपनी धोती खोल रहे थे उनका मदमस्त लंड अपनी प्यारी बहू को चोदने के लिए उछल रहा था। कुछ देर पहले ही वह सुगना को ट्यूबवेल के पानी से नहाते हुए देख रहे थे और तब से ही अपने लंड की मसाज कर रहे थे। लंड का सुपाड़ा उत्तेजना के कारण रिस रहे वीर्य से भीग गया था।

सरयू सिंह अपनी लार को अपनी हथेलियों में लेकर अपने लंड पर मल रहे थे उनका काला और मजबूत लंड चमकने लगा था। सुगना की निगाह जब उस लंड पर पड़ती उसके शरीर में एक सिहरन पैदा होती और उसके रोएं खड़े हो जाते। सुगना की चूत सुगना के डर को नजरअंदाज करते हुए पनिया गयी थी। दोनों होठों के बीच से गुलाबी रंग का जादुई छेद उभरकर दिखाई पड़ रहा था. सुगना ने अपनी आंखें बंद किए हुए दोनों हाथों को ऊपर उठा दिया सरयू सिंह के लिए यह खुला आमंत्रण था।

कुछ ही देर में वह फनफनता हुआ लंड सुगना की गोरी चूत में अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना सिहर उठी। उसकी सांसे तेज हो गयीं उसने अपनी दोनों जांघों को अपने हाथों से पूरी ताकत से अलग कर रखा था।

लंड का सुपाड़ा अंदर जाते ही सुगना कराहते हुए बोली

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

सरयू सिंह यह सुनकर बेचैन हो उठे। वह सुगना को बेतहाशा चूमने लगे जैसे जैसे वह चूमते गए उनका लंड भी सुगना की चूत की गहराइयों में उतरता गया। जब तक वह सुगना के गर्भाशय के मुख को चूमता सुगना हाफने लगी थी।

उसकी कोमल चूत उसके बाबूजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती। सरयू सिंह अब अपने मुसल को आगे पीछे करना शुरू कर दिए। सुगना की चूत इस मुसल के आने जाने से फुलने पिचकने लगी। जब मुसल अंदर जाता सुगना की सांस बाहर आती और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड बाहर निकालते सुगना सांस ले लेती। सरयू सिंह ने सुगना की दोनों जाघें अब अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से पकड़ लीं और उसे उसके कंधे से सट्टा दिया। पास पड़ा हुआ पुराना तकिया सुगना के कोमल चूतड़ों के नीचे रखा और अपने काले और मजबूत लंड से सुगना की गोरी और कोमल चूत को चोदना शुरू कर दिया। सुगना आनंद से अभिभूत हो चली थी। वाह आंखें बंद किए इस अद्भुत चुदाई का आनंद ले रही थी। जब उसकी नजरें सरयू सिंह से मिलती दोनों ही शर्म से पानी पानी हो जाते पर सरयू सिंह का लंड उछलने लगता।

उसकी गोरी चूचियां हर धक्के के साथ उछलतीं तथा सरयू सिंह को चूसने के लिए आमंत्रित करतीं। सरयू सिंह ने जैसे ही सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भरा सुगना ने "बाबूजी………"की मादक और धीमी आवाज निकाली और पानी छोड़ना शुरू कर दिया। सरयू सिंह का लंड भी सुगना की उत्तेजक आवाज को और बढ़ाने के लिए उछलने लगा और अपना वीर्य उगलना शुरू कर दिया।

वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर खींचने की कोशिश की पर सुगना ने अपने दोनों पैरों को उनकी कमर पर लपेट लिया और अपनी तरफ खींचें रखी। सरयू सिंह सुगना की गोरी कोमल जांघों की मजबूत पकड़ की वजह से अपने लिंग को बाहर ना निकाल पाए तभी सुगना ने कहा

"बाबूजी --- बाबूजी… आ…..ईई…..हां ऐसे ही….।" सुगना स्खलित हो चूकी थी पर वह आज उसके मन मे कुछ और ही था।

सरयू सिंह अपनी प्यारी बहू का यह कामुक आग्रह न ठुकरा पाए और अपना वीर्य निकालते निकालते भी लंड को तीन चार बार आगे पीछे किया और अपने वीर्य की अंतिम बूंद को भी गर्भाशय के मुख पर छोड़ दिया. वीर्य सुगना की चूत में भर चुका था। दोनो कुछ देर उसी अवस्था मे रहे।

सरयू सिंह सुगना को मन ही मन उसे घंटों चोदना चाहते थे पर सुगना जैसी सुकुमारी की गोरी चूत का कसाव उनके लंड से तुरंत वीर्य खींच लेता था।

लंड निकल जाने के बाद सुगना ने एक बार फिर अपने हांथों से दोनों जाँघें पकड़कर अपनी चूत को ऊपर उठा लिया। सरयू सिंह का वीर्य उसकी चूत से निकलकर बाहर बहने को तैयार था पर सुगना अपनी दोनों जाँघे उठाए हुए बैलेंस बनाए हुए थी। वह वीर्य की एक भी बूंद को भी बाहर नहीं जाने देना चाहती थी। उसकी दिये रूपी चूत में तेल रूपी वीर्य लभालभ भरा हुआ था। थोड़ा भी हिलने पर छलक आता जो सुगना को कतई गवारा नहीं था। वह मन ही मन गर्भवती होने का फैसला कर चुकी थी।

उस दिन सुगना ने जो किया था उस का जश्न मनाने वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आई हुई थी। लेबर रूम में तड़पते हुए वह उस दिन की चुदाई का अफसोस भी कर रही थी पर आने वाली खुशी को याद कर वह लेबर पेन को सह भी रही थी।

सरयू सिंह सलेमपुर गांव के पटवारी थे । वह बेहद ही शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे। वह दोहरे व्यक्तित्व के धनी थे समाज और बाहरी दुनिया के लिए वह एक आदर्श पुरुष थे पर सुगना और कुछ महिलाओं के लिए कामदेव के अवतार।

उनके पास दो और गांवों का प्रभार था लखनपुर और सीतापुर ।

सरयू सिंह की बहू सुगना सीतापुर की रहने वाली थी उसकी मां एक फौजी की विधवा थी।

बाहर प्राथमिक समुदायिक केंद्र में कई सारे लोग इकट्ठा थे एक नर्स लेबर रूम से बाहर आई और पुराने कपड़े में लिपटे हुए एक नवजात शिशु को सरयू सिंह को सौंप दिया और कहा...

चाचा जी इसका चेहरा आप से हूबहू मिलता है...

सरयू सिंह ने उस बच्चे को बड़ी आत्मीयता से चूम लिया। उनके कलेजे में जो ठंडक पड़ रही थी उसका अंदाजा उन्हें ही था। कहते हैं होठों की मुस्कान और आंखों की चमक आदमी की खुशी को स्पष्ट कर देती हैं वह उन्हें चाह कर भी नहीं छुपा सकता। वही हाल सरयू सिंह का था। कहने को तो आज दादा बने थे पर हकीकत वह और सुगना ही जानती थी। तभी हरिया (उनका पड़ोसी) बोल पड़ा

"भैया, मैं कहता था ना सुगना बिटिया जरूर मां बनेगी आपका वंश आगे चलेगा"

सरयू सिंह खुशी से चहक रहे थे उन्होंने अपनी जेब से दो 500 के नोट निकालें एक उस नर्स को दिया तथा दूसरा हरिया के हाथ में दे कर बोले जा मिठाई ले आ और सबको मिठाई खिला।

सरयू सिंह ने नर्स से सुगना का हाल जानना चाहा उसने बताया बहुरानी ठीक है कुछ घंटों बाद आप उसे घर ले जा सकते हैं।

सरयू सिंह पास पड़ी बेंच पर बैठकर आंखें मूंदे हुए अपनी यादों में खो गए।

मकर संक्रांति का दिन था। सुगना खेतों से सब्जियां तोड़ रही थी उसने हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी जब वह सब्जियां तोड़ने के लिए नीचे झुकती उसकी गोल- गोल चूचियां पीले रंग के ब्लाउज से बाहर झांकने लगती। सरयू सिंह कुछ ही दूर पर क्यारी बना रहे थे। हाथों में फावड़ा लिए वह खेतों में मेहनत कर रहे थे शायद इसी वजह से आज 50 वर्ष की उम्र में भी वह अद्भुत कद काठी के मालिक थे।

(मैं सरयू सिंह)

उस दिन सुगना सब्जियां तोड़ने अकेले ही आई थी। घूंघट से उसका चेहरा ढका हुआ पर उसकी चूचियों की झलक पाकर मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। खिली हुई धूप में सुगना का गोरा बदन चमक रहा था मेरा मन सुगना को चोदने के लिए मचल गया।

चोद तो उसे मैं पहले भी कई बार चुका था पर आज खुले आसमान के नीचे… मजा आ जाएगा मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा। कुछ देर तक मुझे उसकी चूचियां दिखाई देती रही पर थोड़ी ही देर बाद उसकी मदहोश कर देने वाली गांड भी साड़ी के पीछे से झलकने लगी। मेरा मन अब क्यारी बनाने में मन नहीं लग रहा था मुझे तो सुगना की क्यारी जोतने का मन कर रहा था। मैं फावड़ा रखकर अपने मुसल जैसे ल** को सहलाने लगा सुगना की निगाह मुझ पर पढ़ चुकी थी वह शरमा गई। और उठकर पास चल रहे ट्यूबवेल पर नहाने चली गई।

ट्यूबवेल ठीक बगल में ही था। ट्यूबवेल की धार में नहाना मुझे भी आनंदित करता था और सुगना को भी। सुगना ही क्या उस तीन इंच मोटे पाइप से निकलती हुई पानी की मोटी धार जब शरीर पर पड़ती वह हर स्त्री पुरुष को आनंद से भर देती। सुगना उस मोटी धार के नीचे नहा रही थी। सुगना को आज पहली बार मैं खुले में पानी की मोटी धार के नीचे नहाते हुए देख रहा था।

पानी की धार उसकी चुचियों पर पड़ रही थी वह अपनी चुचियों को उस मोटी धार के नीचे लाती और फिर हटा देती। पानी की धार का प्रहार उसकी कोमल चुचियां ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पातीं। वह अपने छोटे छोटे हाथों से पानी की धार को नियंत्रण में लाने का प्रयास करती। हाथों से टकराकर पानी उसके चेहरे को भिगो देता वाह पानी से खेल रही थी और मैं उसे देख कर उत्तेजित हो रहा था।

अचानक मैंने देखा पानी की वह मोटी धार उसकी दोनों जांघों के बीच गिरने लगी सुगना खड़ी हो गई थी वह अपने चेहरे को पानी से धो रही थी पर मोटी धार उसकी मखमली चूत को भिगो रही थी। कभी वह अपने कूल्हों को पीछे ले जाती कभी आगे ऐसा लग रहा था जैसे वह पानी की धार को अपनी चूत पर नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

उस दिन ट्यूबवेल के कमरे में, मैं और सुगना बहुत जल्दी स्खलित हो गए थे। सुगना के मेरे वीर्य के एक अंश को एक बालक बना दिया था।

मैं उसके साथ एकांत में मिलना चाहता था हमें कई सारी बातें करनी थीं।

"ल भैया मिठाई आ गइल"

हरिया की बातें सुनकर सरयू सिंह अपनी मीठी यादों से वापस बाहर आ गए…


शेष आगे।
Bahut badhiya bhaiya ji
 
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