तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 14
अब तक आपने पढ़ा:
भौजी: जानू ....प्लीज....एक बार...बस मेरे लिए!!!
भौजी ने आस भरी नजरों से गिड़गिड़ाते हुए कहा| अब आपका प्रियतम आपसे खुल कर कहे की वो आपके प्रेम के लिए कितना प्यासा है, तो ऐसे में आप क्या कहोगे? तब न तो आपकी बुद्धि काम करती है न ही आपकी अंतरात्मा आपको रोक पाती है! मैं भी भौजी की प्रणय विनती सुन कर खुद को रोक नहीं पाया, मेरा मन नहीं किया की मैं उनका दिल तोड़ दूँ!
मैंने भौजी को कस कर अपने सीने से लगा लिया, उनके मेरे सीने से लगते ही उनके जिस्म की मिलन की आग मेरे जिस्म में फ़ैल गई! मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और बेतहाशा चूमने लगा!
अब आगे:
हम दोनों पर अब कोई बंदिश नहीं थी और न ही (फिलहाल) किसी का डर था! मैंने भौजी के होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और उनका रसपान करने लगा| दोनों की आँखें बंद थीं और हमें दीन दुनिया की कोई खबर नहीं थी! भौजी के गुलाबी होंठ तो आज इतने मीठे लग रहे थे मानो कोई मिश्री हो जो धीरे-धीरे अपना मादक मीठा स्वाद मेरे मुँह में छोड़ घुल रही हो! वहीं भौजी आँखें बंद किये हुए मुझे अपने होठों का रस पीने दे रहीं थीं और हमारे इस चुंबन में वो मेरा भरपूर साथ दे रहीं थीं! उनकी दोनों बाहें मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लिपटी हुई मेरी पीठ को सहला रहीं थी, उनके यूँ मेरी पीठ सहलाने से मुझे और प्रोत्साहन मिल रहा था|
लगभग दो मिनट के रसपान के बाद ही मेरा काबू मेरे ऊपर से पूरी तरह छूट चूका था, मैंने हमारा चुंबन तोडा और भौजी को एकदम से अपनी गोद में उठा कर सीधा पलंग पर लिटा दिया! अब मैं भौजी के ऊपर छ गया और उनके साथ थोड़ी छेड़खानी करते हुए उनके होठों को चूम कर पीछे हटने का खेल करने लगा! भौजी के गुलाबी top में से उनका बायाँ कन्धा काफी बाहर निकला हुआ था| (पिक्चर में देखें!) मैंने भौजी के उसी कँधे पर अपने गीले होंठ रख दिए, आज सालों बाद जब मैंने भौजी के जिस्म को अपने होंठों से स्पर्श किया तो भौजी के मुख से मादक सिसकारी फूट गई; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स.....जानू!"
भौजी के जिस्म में प्रेम की चिंगारी सुलग चुकी थी, भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मेरे होठों को अपने होठों से मिला कर मेरे होठों का रसपान करने लगीं! अब भौजी मेरे होठों से रस निचोड़ रहीं थीं तो मैंने अपने जिस्म का पूरा वजन भौजी पर डाल दिया! मेरे दोनों हाथों को भौजी के जिस्म को आज महसूस करना था इसलिए वो स्वतः ही भौजी के उरोजों को ढूँढने के लिए उनके top की ओर चल दिए! भौजी के top के भीतर घुस कर उँगलियों ने भौजी के उरोजों की टोह लेनी शुरू की! अब उनके उरोज छोटे तो थे नहीं जो मुझे ढूँढने पढ़े?! अगले ही पल मेरी उँगलियों ने भौजी के उरोजों को छू लिया! नरम और ठंडे माँस का एहसास होते ही मुझे पता चला की भौजी ने अंतःवस्त्र अर्थात bra तो पहनी ही नहीं! शायद हमारे मिलान के समय मैं उनके अंतःवस्त्र को खोलने में समय न गवाऊँ इसीलिए उन्होंने अपने अंतःवस्त्र नहीं पहने थे!
खैर भौजी के उरोजों को छू कर तो मेरे जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए, बिना देखे ही मेरे दिमाग में पाँच साल पहले वाले भौजी के उरोजों की तस्वीर उभर आई| उँगलियों को अपनी मनपसंद चीज इतने सालों बाद मिली थी तो उन्होंने अपनी पकड़ भौजी के उरोजों पर सख्त कर ली, फिर देखते ही देखते मैंने अपनी दोनों हथेलियों और उँगलियों की सहायता से भौजी के उरोजों को धीमे-धीमे मींजना शुरू कर दिया! इधर मैं भौजी के स्तनों को मींजने में लगा था और उधर भौजी मेरे होठों को कस कर चूस रहीं थीं|
शायद भौजी चुंबन करना भूल गईं थीं तभी तो वो अपनी जीभ का प्रयोग नहीं कर रहीं थीं! मैंने पहल करते हुए धीरे से अपनी जीभ भौजी के मुख में प्रवेश कराई, जैसे ही मेरी जीभ का एहसास भौजी को हुआ उन्होंने 'कच' से मेरी जीभ अपने दाँतों से 'दाब' ली! दर्द की लहर मेरी जीभ में पैदा हुई जो भौजी ने महसूस कर ली थी इसलिए उन्होंने मेरी जीभ को अपने होठों से दबाकर धीमे-धीमे चूसना शुरू कर दिया! भौजी के इस तरह मेरी जीभ को प्यार देने से मेरी जीभ में उतपन्न हुआ दर्द जल्द ही खत्म हो गया| भौजी के जोश में कोई कमी नहीं आई थी, वो अब भी धीमे-धीमे मेरी जीभ को अपने दाँतों से दबा रहीं थीं!
कुछ मिनट बाद भौजी ने मुझे अपनी जीभ का रस पीने के लिए परोस दी, मैं उनकी तरह जंगली नहीं था, मैंने बड़े प्रेम से भौजी की जीभ का स्वागत किया और जितना हो सकता था उतना उनकी जीभ को चूसने का प्रयत्न कर ने लगा| मेरे जिस्म का जोर भौजी के जिस्म में दो जगह निकल रहा था, एक तो मैं भौजी के मुख से रस पी रहा था और दूसरा मेरे हाथ बेदर्दी से भौजी के स्तनों का मर्दन करने में लगे थे! अगले दस मिनट तक हम दोनों प्रेमी बारी-बारी से एक दूसरे के रसों का पान करते रहे! ऐसा लग रहा था जैसे सालों की दबी हुई प्यास अब जा कर उभर के बहार आई हो|
हमारे चुंबन ने भौजी के भीतर प्रेम की चिंगारी को भड़का दिया था, वहीं मेरा कामदण्ड अपने विकराल रूम में आ चूका था तथा कपड़ों से आजादी माँग रहा था! हम दोनों की धड़कनें तेज हो चलीं थीं और हमें अपने प्रेम को अगले पड़ाव पर ले जाना था! हमने मिलकर सर्वप्रथम हमारा चुंबन तोडा, चुंबन तोड़ कर हम दोनों ही एक पल के लिए एक दूसरे को देखने लगे! भौजी के बाल खुले होने के कारन उनके चेहरे पर उनके बालों की एक लट आ गई थी, मैंने अपने दाहिने हाथ की उँगलियों से उनकी लट हटाई और उनके होठों को एक बार फिर चूम लिया|
भौजी की आँखों नशीली हो चलीं थीं और उनकी आँखों का जादू मेरे सर पर सवार हो रहा था! मुझे अपनी आँखों में डूबा हुआ देख भौजी बड़े मादक ढँग से मुस्कुराते हुए बोलीं;
भौजी: जानू....क्या सोच रहे हो?
मैं: कुछ नहीं जान! आपको इस तरह अपनी बाहों में लेटा देख तो....
मैंने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी बात अधूरी छोड़ दी!
भौजी: तो क्या?
भौजी ने जिज्ञासु होते हुए पुछा| उनकी ये जिज्ञासा देख मुझे हँसी आ गई;
मैं: तो ये की मुझे आप पर बहुत प्यार आ रहा है!
मैंने भौजी के दाएँ गाल को खींचते हुए कहा|
भौजी: तो इन्तेजार किस का है?!
भौजी ने मुझे आँख मारते हुए कहा|
मैं भौजी के ऊपर से उठा और उनका top निकाल कर उनके स्तनों को मुस्कुराते हुए निहारने लगा| गोरे- गोरे बर्फ के ठन्डे गोले देख कर मन बेईमान होने लगा था, मन कर रहा था की झुक कर उन्हें कस कर अपने मुँह में भर कर काट लूँ! मैंने अपनी इस जंगली इच्छा को शांत किया, फिर अपने बाएँ हाथ की पाँचों उँगलियाँ को धीरे-धीरे भौजी की छाती पर फिराना शुरू कर दिया| जब मेरी उँगलियाँ घूमती हुई भौजी के स्तनों की घुण्डियों के पास पहुँची तो पहले मैंने अपनी उँगलियाँ उन घुण्डियों के इर्द-गिर्द घुमाई| फिर मौका पा कर मैंने अपने अँगूठे और तर्जनी ऊँगली से भौजी के चुचुक दबा दिए! मेरे उनके चुचुक दबाने से भौजी कसमसाने लगीं और अपनी कमर को नागिन की तरह बलखाने लगीं! मुझसे भौजी के उरोजों को चूसने की इच्छा नहीं दबाई जा रही थी इसलिए मैंने झुक कर भौजी के बाएँ चुचुक को अपने मुख में भर लिया और किसी शिशु की भाँती मैं उनके चुचुक को चूसने लगा| मेरे चुचुक चूसने से भौजी के जिस्म में बिजली का तेज प्रवाह हुआ और उन्होंने अपने दाएँ हाथ को मेरे सर पर रख कर अपने बाएँ स्तन पर दबाना शुरू कर दिया! भौजी की ओर से प्रोत्साहन पा कर मैंने चुचुक के साथ उनके स्तनों के माँस का कुछ हिस्सा अपने मुँह में भर लिया, मेरी इस क्रिया से मेरे दाँत भौजी के स्तन पर गड गए जिससे भौजी ने अपने छाती मेरे मुँह की ओर दबानी शुरू कर दिया!
मैंने महसूस किया की मेरे अंदर एक आग सी भड़क उठी है और ये आग हर पल भड़कती जा रही है! मुझे भौजी को और तकलीफ देने का मन कर रहा था, इसलिए मैंने अपने मुँह में मौजूद उनके चुचुक को धीमे से काट लिया! जैसे ही मैंने उनके चुचुक को काटा भौजी दर्द के मरे चिहुँक उठीं; "आह!" भौजी की ये कराह सुन कर मुझे बहुत मजा आया, जाने क्यों मुझे भौजी को यूँ दर्द देने में मजा आने लगा था?! पहले तो मैं ऐसा कतई नहीं था!!!
मैंने भौजी के बाएँ चुचुक के साथ खेलना जारी रखा, कभी मैं उसे अपनी जीभ से चुभलाता तो कभी उसे चूसने लगता और जब मेरे अंदर की वासना अंदर हिलोरे मारती तो मैं उसे काट लेता! भौजी को इस सब में मजा आने लगा था और मुझे प्रोत्साहन देते हुए उन्होंने अपने दाएँ हाथ की उँगलियाँ मेरे बालों में चलानी शुरू कर दी थीं! वहीं दूसरी ओर मेरा बायाँ हाथ भौजी की नाभि से होता हुआ सीधा भौजी की jeans के अंदर सरक गया था| हाथ jeans के भीतर पहुँचा तो मेरी उँगलियों ने भौजी की पैंटी के अंदर घुसने का रास्ता खुद बा खुद ढूँढ लिया!
ऊपर मेरा भौजी के बाएँ स्तन को चूसने का कार्यक्रम बदस्तूर जारी था और नीचे मेरे बाएँ हाथ की उँगलियाँ भौजी की योनि की ओर चहलकदमी कर रहीं थीं| कुछ पल बाद मेरी उँगलियों ने भौजी की योनि को छू लिया, उस स्पर्श से मानो मेरे हाथ में करंट लगा हो! मैंने फ़ौरन अपना हाथ भौजी की jeans से निकाला, भौजी के बाएँ स्तन का पान करना छोड़ा और नीचे की ओर खिसक कर भौजी की jeans के जीनस का बटन खोलने लगा| मुझे अपनी jeans का बटन खोलता हुआ देख भौजी ने अपने दाएँ स्तन की ओर इशारा करते हुए बड़ी मासूमियत से कहा;
भौजी: ये वाला रह गया!
मैं: Patience my dear! उसकी बारी भी आएगी!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा|
भौजी की jeans का बटन खुलते ही मुझे सबसे पहले उनकी पैंटी का दीदार हुआ! काले रंग की पैंटी को देख मेरे जिस्म के अंदर की आग प्रगाढ़ रूप लेने लगी| कुछ सेकंड के लिए मैं भौजी की पैंटी को बिना पलकें झपकाए देखने लगा| उधर भौजी से मेरा यूँ अचानक विराम ले कर उनके जिस्म से छेड़छाड़ न करना बर्दाश्त नहीं हो रहा था, उन्होंने उतावलापन दिखाते हुए अपनी कमर उठाई और मुझे उनकी jeans उतारने की मूक विनती की! मैंने भौजी की jeans पाँव की तरफ से पकड़ी और अपनी तरफ खींची| भौजी की jeans टाइट थी इसलिए वो धीरे-धीरे खिसकते हुए भौजी के घुटनों तक आ गई, इस वक़्त सब्र हम दोनों में नहीं था इसलिए मैंने कस कर jeans खींची, वहीं भौजी ने भी अपनी टांगें मोड़ कर अपने पेट पर कस ली ताकि मैं जल्दी से जीन्स निकाल सकूँ!
थोड़ी ताक़त लगा कर मैंने भौजी की जीन्स निकाल फेंकी, अब भौजी बस पैंटी में थीं, कपडे का केवल एक छोटा सा कपड़ा हम दोनों के बीच दिवार बना हुआ था! मैंने अपने दोनों हाथों की दो उँगलियाँ भौजी की पैंटी की elastic में फँसाई और खींच कर निकाल फेंकी! अब जो मेरी आँखों के सामने नजारा था उसे देख मैं अवाक था! भौजी पूरी तरह नग्न मेरे सामने पड़ी हुईं थीं, बिना कपड़ों के उन्हें देख मेरी दिल की धड़कन तेज हो चली थी! मुझे खुद को इस तरह देखता हुआ देख भौजी शर्म से पानी-पानी हो रहीं थीं इसलिए उन्होंने एकदम से अपना चहेरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया! उधर दूसरी तरफ मेरी नजरें भौजी की योनि पर टिक गईं थीं! भौजी की योनि की मादक महक कमरे में पहले से मौजूद गुलाब जल की महक में घुलने लगी थी! दोनों खुशबुओं की महक के मिश्रण से जो मनमोहक खुशबु उतपन्न हुई उसने तो समा बाँध दिया था!
भौजी का योनिद्वार बंद था, ऐसा लगता था मानो कोई छोटी सी प्यारी सी कली खुद को समेटे हुए हो! उस बंद योनिद्वार को देख कर मेरा मन उसे चूमने को कर रहा था इसलिए मैंने आव देखा ताव सीधा अपनी जीभ से भौजी की योनि को छू लिया! मेरी जीभ के आधे भाग ने भौजी की योनिद्वार के आधे से ज्यादा भाग को स्पर्श किया था तथा इस स्पर्श मात्र से भौजी सिंहर उठी थीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!" भौजी सीसियाने लगीं! पाँच साल बाद मेरी जीभ और भौजी की योनि का मिलन हुआ था, ये मिलन कुछ-कुछ ऐसा था जैसे किसी ने नंगे जिस्म पर बर्फ का टुकड़ा रख दिया हो! एक तरफ गर्म जिस्म की तपिश उस बर्फ के टुकड़े को पिघलाना चाहती थी तो दूसरी तरफ वो बर्फ का टुकड़ा जिस्म को ठंडा कर देना चाहता था! आज बरसों बाद भौजी की योनि को स्पर्श कर भौजी के जिस्म की मादक महक मेरे नथुनों में भरने लगी थी, वो उनकी योनि का चित-परिचित स्वाद मुँह में फिर घुलने लगा था!
इस स्वाद ने मुझे सब कुछ भूला कर भौजी के योनिरस को चखने के लिए आतुर कर दिया था! मैं जितनी जुबान बाहर निकाल सकता था उतनी बाहर निकाल कर भौजी की योनि को ऊपर से नीचे तक चाटने लगा! मेरे मुँह में मौजूद लार ने भौजी की पूरी योनि को बाहर से पूरा गीला कर दिया था, उधर भौजी ने अपनी आँखें कस कर मींच ली थीं, भौजी के जिस्म में हिलोरें उठने लगीं थीं और इन हिलोरों के साथ भौजी के मुँह से अनगिनत सीत्कारें फूटना चाहतीं थीं मगर भौजी थीं की अपने होठों को कस कर बंद कर वो अपनी सीत्कारें अपने गले में दफन किये जा रहीं थीं! मैंने अपनी जीभ से भौजी के योनि द्वार को खोला और जितना जीभ अंदर प्रवेश करा सकता था उतनी जीभ भौजी की योनि के भीतर प्रवेश करा दी! भौजी की योनि में मुझे कुछ संकुचन महसूस हुई, लेकिन फिर जब जीभ ने योनि में लपलपाना शुरू किया तो वो संकुचन कुछ कम हो गई! जीभ अंदर प्रवेश कराने से मुझे भौजी की योनि में गर्माहट महसूस हुई और वही पुराना नमकीन स्वाद चखने को मिला! इस स्वाद ने मुझे पागल कर दिया और मैंने अपनी जीभ से भौजी की योनि की खुदाई शुरू कर दी!
मेरे जीभ से योनि में खुदाई करने के कारन भौजी की हालत खराब होने लगीं, उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपनी योनि पर दबाना शरू कर दिया तथा अपने सर को तकिये पर इधर-उधर मरना शुरू कर दिया! भौजी इतने सालों से जिस स्खलन के लिए तरस रहीं थीं उसे पाने के लिए वो इतनी आतुर थीं की कुछ ही पलों में उनके जिस्म ने भारी विस्फोट करने की तैयारी कर ली थी! मात्र दो मिनट में भौजी अपने चरम पर पहुँच गई और मेरे मुख में कलकल करती हुईं स्खलित हो गईं! अपने स्खलन के अंतिम पड़ाव में उन्होंने दो झटके खाये और फिर पस्त हो कर पड़ गईं! वहीं भौजी का स्वादिष्ट रज बहता हुआ मेरे मुँह में भर रहा था जिसे मैं बड़ी शिद्दत से गटक रहा था!
भौजी का कामज्वर अब धीरे-धीरे शांत होता जा रहा था मगर मेरा जिस्म कमोतेजित हो चूका था! कुछ दिन पहले जब दिषु ने मुझे drink में वो drug मिला कर दिया था, कुछ-कुछ वही एहसास मुझे फिर से महसूस होने लगा था! मेरे पूरे शरीर में चींटीयाँ सी काटने लगीं थीं, मेरा कामदण्ड इतना अकड़ चूका था की वो मेरा पजामा फाड़ के बहार आने को बावला हो चूका था, बरसों से मेरे भीतर सोया हुआ जानवर जागने को तैयार हो चूका था! ये जानवर हर पल खूँखार होता जा रहा था, उसे तो बस सामने पड़ी भौजी को आज जी भर कर भोगना था! {यहाँ जानवर का तातपर्य वासना से है, जिसने मेरे शरीर पर काबू पा लिया था!}
उधर भौजी अपने स्खलन से अभी तक नहीं उबरी थीं, वो आँखें बंद किये हुए लम्बी-लम्बी साँसें ले रहीं थीं और खुद को जल्द से जल्द सामान्य करने में लगीं थीं| इस समय मुझे अपने भीतर मौजूद उस जानवर को शांत करना था, इसलिए मैं अपने घुटने मोड़ कर बैठ गया और अपने दिमाग तथा दिल पर काबू करने लगा ताकि मैं अतिउत्साह में कहीं भौजी के साथ कुछ ज्यादा मेहनत न कर दूँ!
भौजी को इस तरह पूर्णतः नग्न देख कर दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था, मन था जिसमें वासना की लहरें मचल रहीं थीं! दिल कर रहा था की जबरदस्ती भौजी पर चढ़ जाऊँ और सम्भोग कर लूँ लेकिन साला कुछ तो था जो मेरे भीतर के इन जज्बातों को बाँधे हुआ था?!
उधर भौजी अपनी साँसें दुरुस्त करने में व्यस्त थी और इधर मुझे अचानक से एहसास हुआ की; 'ये मैं क्या करने जा रहा हूँ?! अगर वो (भौजी) pregnant हो गईं तो? बवाल...बवाल...और सिर्फ बवाल! अच्छी खासी जिंदगी तबाह हो जाएगी...मेरी…उनकी (भौजी की)...और बच्चों की!' मेरी अंतरात्मा ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा| अंतरात्मा की बात से मेरे ऊपर मेरा डर हावी होने लगा, मगर मेरे भीतर मौजूद जानवर तो सम्भोग चाहता था और वो मुझे अंतरात्मा की बात सुनने नहीं दे रहा था| अंतरात्मा ने दिमाग को करंट मार के झटका दिया तो दिमाग ने तर्क लड़ाने शुरू कर दिए| कुछ देर पहले मेरी और भौजी की बात मन में गूँजने लगी! 'अभी थोड़ी देर पहले तो तू बड़ी ज्ञान भरी बातें चोद रहा था, अब क्या हुआ?' दिमाग ने मन को लताड़ते हुए कहा| मन ने मेरे भीतर मौजूद जानवर के मुँह में लगाम डाल दी और उसे (जानवर को) खींच कर काबू में करने लगा| उस समय खुद को सम्भोग करने से रोक पाना ऐसा था जैसे की आत्महत्या करना! (मेरे अकड़ कर तैयार कामदण्ड का गला दबा कर मारना!)
मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था क्योंकि उसके सामने नग्न अवस्था में भौजी मौजूद थीं, हाथ आया शिकार कैसे जाने दिया जाता?! मेरे दिमाग और जिस्म के बीच जंग छिड़ गई थी, शरीर लोभी हो गया था मगर दिमाग हितैषी बन गया था तथा हमारे रिश्ते के हित सोच रहा था| 'Please....मत कर....सब तबाह हो जायेगा!' मेरी अंतरात्मा रोते हुए बोली| ये उसकी (मेरी अंतरात्मा की) अंतिम कोशिश थी जो भौजी और मेरे रिश्ते को खत्म होने से बचाना चाहती थी! इस दर्द भरी पुकार को सुन कर मेरा मन फट गया, मन में अपनी वासना के आगे मजबूर हो जाने और मेरे तथा भौजी के रिश्ते को दाव पर लगाने की ग्लानि भरने लगी! मैं छिटक कर भौजी से अलग हो गया और तेजी से साँस लेते हुए अपनी वासना को दबाने लगा! मैं फटाफट पलंग से उतरा और अपने कपडे ठीक करने लगा, मेरे उठने से पलंग पर हलचल हुई जिसे महसूस कर भौजी ने अपनी आँखें खोलीं| मुझे यूँ अपने कपडे ठीक करते हुए देख भौजी हैरान रह गईं, वो मुझसे कुछ पूछतीं उससे पहले ही माँ का फ़ोन आ गया|
जारी रहेगा भाग - 15 में...
yeh kahani mein emotion ka mel itna badhiya hain kee shab kuchh najdeek se mehsoos hota hain oopar se yeh ek sachhi ghatna hain aisa aapne bataya toh aur jyada jurav mehsoos hota hain.
matlab ek aisa moh mein phas chuka hain hero usse na toh chhorne banta hain, na hi pakarte.
na toh wo apne bachho ka sahi se baap ban shakta hain na ho bhaujee ka pati, matlab sahi mein is rishte ka bhavishye hi nahin hain, aaj na kal uski shaadi hogi uske apne bachhe honge.
kya wo sahi kar raha hain , achanak se wo khud kee santan mein ram jayega kyunki shaadi ke baad bahut kuchh badal jata hain uspe nayee jimmedari aa jayegi, aur phir na to wo un bachho pe dhyan de payega na hi wo apni bhaujee pe.
usse ek bar kara faisla kar ke isss rishte ko khatm kar dena chahiye, kyun wo un bachho ka baap ban ke aaya, jab wo bachhe bare ho ke puchhenge kee aapne hamare saaath aisa kyun kiya toh wo kya jawab dega.
aur wo doobara se phir saari galtiya dohra raha hain, agar himmat hain toh shab ko bol de kee wo usse pyar karta hain aur samna kare shabko, lekin mujhe nahin lagta wo aisa kar payega.
toh wo dard toh milna hee hain aur bas unke dard kee baat hoti toh koi nahin un bachho ka kya unhe kya jawab dega achanak se unhe baap wala pyar na dene ka.
jis kamre mein wo neha ko apne saath ek baap kee tarah rakhhe hue hain jab uski wife aayegi toh wo jagah le legi tab kya beetegi un masoomo pe.
yeh sahi nahin kar raha hain, kitni jindagiya tabah ho jayengi.
nahi toh usse bole kee wo talak le le us chandar se aur phir yeh apnayega usse.
bas yahee ek solution hain nahin toh phir se wo shab karna, usse sochan chahiye jab bhaujee ne kaha kee usne uske alawa in panch saalo mein chandar ko khud ko chhune nahin diya, toh wo ek aas lagaye baithi hain, aur baad ka kya, kya wo phir shaadi ke baad unhe wo pyar dega.
tab kya wo bas tarpengi uske pyar ke liye ya phir wo chandar ke pass wapas jayengi.
its a fucking mess, yaar iss kahani kee heroine humne bhaujee ko mante aaye hain, aur achanak se koi aur unki jagah le lega aur wo unka kya hoga, yaar yeh bas ek failed love story kee ghataha lagti hain.
jisme dard ke shiva aur kuchh nahin hain.
isse once and for all shab khatm kar dena chahiye, bas yeh itna kar shakta hain kee un bachho kee jimmedari le shakta hain padhane ke liye.