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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

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Raj_sharma

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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#142.

चैपटर-14

सुनहरी ढाल:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 11:10, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

शलाका अपने कमरे में बैठी सुयश के बारे में सोच रही थी।उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था, कि इतने दिन बाद वह आर्यन से अच्छे से मिली।

उसकी यह खुशी दो तरफा थी।

एक तो वह अब जान गयी थी कि तिलिस्मा टूटने वाला है। यानि कि जिस तिलिस्मा के टूटने का, उसके पिछले 8 पूर्वज सपना देखते हुए गुजर गये, वह सपना अब उसकी आँखों में सामने पूरा होना था और दूसरी बात सुयश के साथ दोबारा से रहते हुए एक साधारण जिंदगी व्यतीत करना।

2 दिन से काम की अधिकता होने की वजह से वह सुयश की लिखी ‘वेदांत रहस्यम्’ को अभी नहीं पढ़ पायी थी, पर आज वह इस किताब को जरुर पढ़कर खत्म करना चाहती थी।

तभी उसे जेम्स और विल्मर का ख्याल आया। ज्यादा काम के चक्कर में, वह उन दोनेां को तो भूल ही गई थी।

शलाका ने पहले जेम्स और विल्मर से मिलना उचित समझा।

यह सोच उसने अपने त्रिशूल को हवा में लहराकर द्वार बनाया और जा पहुंची, जेम्स और विल्मर के कमरे में।

जेम्स और विल्मर बिस्तर पर बैठे आपस में कोई गेम खेल रहे थे। शलाका को देख वह खुश होकर उठकर खड़े हो गये।

विल्मर को अब अपनी आजादी का अहसास होने लगा था।

“कैसे हो तुम दोनों?” शलाका ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“बाकी सब तो ठीक है, पर बहुत ज्यादा बोरियत हो रही है।” विल्मर ने कहा।

“अब मैं जाकर काफी हद तक फ्री हो गयी हूं, तो मैं अब चाहती हूं कि तुम दोनों बताओ कि तुम्हें अब क्या चाहिये?” शलाका ने गहरी साँस लेते हुए कहा।

विल्मर तो जैसे इसी शब्द का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।

“क्या हम जो भी मागेंगे, आप उसे दोगी?” विल्मर ने लालच भरी निगाहों से पूछा।

“हां-हां दूंगी, पर बताओ तो सही कि तुम्हें क्या चाहिये?” शलाका ने विल्मर को किसी बच्चे की तरह मचलते देख कह दिया।

“मैं जब से यहां आया था मैंने 2 ही कीमती चीजें यहां देखीं थीं। एक आपका वह त्रिशूल और दूसरा वह सुनहरी ढाल, जिससे द्वार खोलकर हम इस दुनिया में आये थे। मुझे पता है कि त्रिशूल आपसे मांगना व्यर्थ है, वह आपकी शक्ति से ही चल सकता है। इसलिये मैं अपने लिये आपसे वह सुनहरी ढाल मांगता हूं।” विल्मर ने कहा।

शलाका यह सुनकर सोच में पड़ गयी।

“वैसे क्या तुम्हें ये पता भी है कि वह ढाल क्या है?” शलाका ने गम्भीरता से कहा।

“मुझे नहीं पता, पर मुझे ये पता है कि वह बहुत कीमती ढाल है।” विल्मर ने कहा।

“क्या तुम कुछ और नहीं मांग सकते?” शलाका ने उदास होते हुए पूछा।

“नहीं...मुझे तो वह ढाल ही चाहिये।” विल्मर ने किसी नन्हें बच्चे की तरह जिद करते हुए कहा।

“ठीक है, मैं तुम्हें वह ढाल दे दूंगी, लेकिन बदले में मुझे भी तुमसे कुछ चाहिये होगा।” शलाका ने छोटी सी शर्त रखते हुए कहा।

“पर मेरे पास ऐसा क्या है, जिसकी आपको जरुरत है?” विल्मर के शब्द आश्चर्य से भर उठे।

“मुझे बदले में तुम्हारी यहां की पूरी स्मृतियां चाहिये।” शलाका ने गम्भीर स्वर में कहा- “देखो विल्मर, मैं तुम्हें यहां से जाने दूंगी तो कोई गारंटी नहीं है कि तुम यहां के बारे में किसी को नहीं बताओगे और अगर गलती से भी तुमने यहां के बारे में किसी को बता दिया तो भविष्य के मेरे सारे प्लान मुश्किल में पड़ जायेंगे।

"इसलिये मैं तुम्हें वह ढाल तो दे दूंगी, मगर उसके बदले तुम्हारी यहां की सारी स्मृतियां छीन लूंगी। यानि कि यहां से जाने के बाद, तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी की हर बात याद होगी, सिवाय यहां की यादों के। यहां के और मेरे बारे में तुम्हें कुछ भी याद नहीं रह जायेगा। अगर तुम्हें यह मंजूर है तो बताओ।”

“मुझे मंजूर है।” विल्मर ने सोचने में एक पल भी नहीं लगाया।

“ठीक है।” यह कहकर अब शलाका जेम्स की ओर मुड़ गयी- “और तुम्हें क्या चाहिये जेम्स?”

“मैने अपनी पूरी जिंदगी में जितना कुछ नहीं देखा था, वह सब यहां आकर देख लिया।” जेम्स ने कहा- “इसलिये मैं आपसे मांगने की जगह कुछ पूछना चाहता हूं?”

जेम्स की बात सुन विल्मर और शलाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे।

“हां पूछो जेम्स! क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने जेम्स को आज्ञा देते हुए कहा।

“क्या मैं आपके साथ हमेशा-हमेशा के लिये यहां रह सकता हूं।” जेम्स के शब्द आशाओं के बिल्कुल विपरीत थे।

“तुम यहां मेरे पास क्यों रहना चाहते हो जेम्स? पहले तुम्हें मुझे इसका कारण बताना होगा।” शलाका ने कहा।

“मेरा बाहर की दुनिया में कोई नहीं है। मेरे माँ-बाप बचपन में ही एक दुर्घटना का शिकार हो गये थे। मैं जब छोटा था, तो सभी मुझे बहुत परेशान करते थे, तब मैं रात भर यही सोचता था कि काश मेरे पास भी कोई ऐसी शक्ति होती, जिसके द्वारा मैं उन लोगों को मार सकता। मैं हमेशा सुपर हीरो के सपने देखता रहता था, जिसमें एक सुपर हीरो पूरी दुनिया को बचाता था। पर जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा, मुझे यह पता चल गया कि इस दुनिया में असल में कोई सुपर हीरो नहीं है, यहां तक कि भगवान के भी अस्तित्व पर मुझे शक होने लगा।

"लेकिन जब मैं यहां से हिमालय पहुंचा और मैने बर्फ के नीचे से शिव मंदिर को प्रकट होते देखा, तो मुझे विश्वास हो गया कि इस धरती पर ईश्वर है, बस वह स्वयं लोगों के सामने नहीं आता, वह अपनी शक्तियों को कुछ अच्छे लोगों को बांटकर उनसे हमारी धरती की रक्षा करवाता रहता है। मैंने वहां महा-शक्तिशाली हनुका को देखा, मैंने वहां अलौकिक शक्तियों वाले रुद्राक्ष और शिवन्या को देखा। तभी से मेरा मन आपके पास ही रहने को कर रहा है।

"आप मुझे जो भी काम देंगी, मैं बिना कुछ भी पूछे, आपका दिया काम पूरा करुंगा। मुझे मनुष्य के अंदर की शक्ति का अहसास हो गया है, अब मैं भला इन छोटे-मोटे हीरे-जवाहरातों को लेकर क्या करुंगा। इसलिये आप विल्मर को यहां से जाने दीजिये, पर मुझे अपनी सेवा में यहां रख लीजिये। वैसे भी आपको इतनी बड़ी पृथ्वी संभालने के लिये किसी इंसान की जरुरत तो होगी ही, फिर वो मैं क्यों नहीं हो सकता?” इतना कहकर जेम्स शांत हो गया।

“क्या तू सच में मेरे साथ अपनी दुनिया में नहीं जाना चाहता?” विल्मर ने कहा।

“मेरे लिये अब यही मेरी दुनिया है। तुम जाओ विल्मर... मुझे यहीं रहना है।” जेम्स ने कहा।

शलाका बहुत ध्यान से जेम्स की बातें सुन रही थी। जेम्स की बातों से शलाका को उसके भाव बहुत शुद्ध और निष्कपट लग रहे थे।

“मुझे तुम्हारे विचार सुनकर बहुत अच्छा लगा जेम्स। मैं तुम्हें अपने पास रखने को तैयार हूं, पर एक शर्त है, आगे से तुम मुझे शलाका कहकर बुलाओगे, देवी या देवी शलाका कहकर नहीं।” शलाका ने मुस्कुराकर कहा।

“जी देवी....उप्स...मेरा मतलब है जी शलाका।” जेम्स ने हड़बड़ा कर अपनी बात सुधारते हुए कहा।

“तो क्या अब तुम यहां से जाने को तैयार हो विल्मर?” शलाका ने पूछा।

“जी देवी।” यह कहकर विल्मर ने जेम्स को गले लगाते हुए कहा- “तुम्हारी बहुत याद आयेगी। तुम बहुत अच्छे इंसान हो।”

शलाका ने अब अपना हाथ ऊपर हवा में लहराया, उसके हाथ में अब वही सुनहरी ढाल दिखने लगी थी, जिसे जेम्स और विल्मर ने सबसे पहले देखा था।

शलाका ने वह ढाल विल्मर के हाथ में पकड़ायी और विल्मर के सिर से अपना त्रिशूल सटा दिया।

त्रिशूल से नीली रोशनी निकलकर विल्मर के दिमाग में समा गई।

कुछ देर बाद विल्मर का शरीर वहां से गायब हो गया। विल्मर को जब होश आया तो उसने स्वयं को अंटार्कटिका की बर्फ पर गिरा पड़ा पाया। सुनहरी ढाल उसके हाथ में थी।

“अरे मैं बर्फ पर क्यों गिरा पड़ा हूं और जेम्स कहां गया। हम तो इस जगह पर किसी सिग्नल का पीछा करते हुए आये थे।....और यह मेरे पास इतनी बहुमूल्य सुनहरी ढाल कहां से आयी?”

विल्मर को कुछ याद नहीं आ रहा था, इसलिये उसने ढाल को वहां पड़े अपने बड़े से बैग में डाला और अपने श्टेशन की ओर लौटने लगा।

दिव्यदृष्टि:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 13:40, सीनोर राज्य, अराका द्वीप)

रोजर को आकृति की कैद में बंद आज पूरे 10 दिन बीत गये थे।

आज तक आकृति उससे काम कराने के बाद सिर्फ एक बार मिलने आयी थी और वह भी सिर्फ 10 मिनट के लिये।

आकृति रोजर को ना तो कमरे से निकलने दे रही थी और ना ही यह बता रही थी कि उसने उसे क्यों बंद करके रखा है।

रोजर कमरे में बंद-बंद बिल्कुल पागलों के समान लगने लगा था, उसकी दाढ़ी और बाल भी काफी बढ़ गये थे।

रोजर को कभी-कभी बाहर वाले कमरे से कुछ आवाजें आती सुनाई देती थीं, लेकिन कमरे का दरवाजा बाहर से बंद होने की वजह से वह यह नहीं जान पाता था कि वह आवाजें किसकी हैं?

पिछले एक दिन से तो, उसे अपने कमरे के बगल वाले कमरे से, किसी के जोर-जोर से कुछ पटकने की अजीब सी आवाजें भी सुनाई दे रहीं थीं।

रोजर ने कई बार काँच के खाली गिलास को उल्टा करके, दीवार से लगा कर के उन आवाजों को सुनने की कोशिश की थी, पर ना जाने यहां कि दीवारें किस चीज से निर्मित थीं, कि रोजर को कभी साफ आवाज सुनाई ही नहीं देती थी।

आज भी रोजर अपने बिस्तर पर लेटा, आकृति को मन ही मन गालियां दे रहा था कि तभी एक खटके की आवाज से वह बिस्तर से उठकर बैठ गया।

वह आवाज दरवाजे की ओर से आयी थी। रोजर की निगाह दरवाजे पर जाकर टिक गयी।

तभी उसी एक धीमी आवाज के साथ अपने कमरे का दरवाजा खुलता हुआ दिखाई दिया।

यह देख रोजर भागकर दरवाजे के पास आ गया। दरवाजे के बाहर रोजर को एक स्त्री खड़ी दिखाई दी।
वह सनूरा थी, सीनोर राज्य की सेनापति और लुफासा की राजदार।

सनूरा ने मुंह पर उंगली रखकर रोजर को चुप रहने का इशारा किया। रोजर दबे पाँव कमरे से बाहर आ गया।

सनूरा ने रोजर को अपने पीछे आने का इशारा किया। रोजर सनूरा के पीछे-पीछे चल पड़ा।

रोजर सनूरा को पहचानता नहीं था, लेकिन इस समय उसे सनूरा किसी देवदूत जैसी प्रतीत हो रही थी, जो उसे इस नर्क रुपी कैद से आजाद करने आयी थी।

सनूरा रोजर के कमरे से निकलकर एक दूसरे कमरे में दाखिल हो गई।

“आकृति इस समय यहां नहीं है, इसलिये उसके आने के पहले चुपचाप मेरे साथ निकल चलो।” सनूरा ने धीमी आवाज में कहा।

“पर तुम हो कौन? कम से कम ये तो बता दो।” रोजर ने सनूरा से पूछा।

“मेरा नाम सनूरा है, मैं इस सीनोर राज्य की सेनापति हूं। मैंने तुम्हें कुछ दिन पहले यहां पर कैद देख लिया था, तबसे मैं आकृति के यहां से कहीं जाने का इंतजार कर रही थी। 2 दिन पहले भी वह कहीं गई थी, पर उस समय मुझे मौका नहीं मिला। अभी फिलहाल यहां से निकलो, बाकी की चीजें मैं तुम्हें किसी दूसरे सुरक्षित स्थान पर समझा दूंगी।”सनूरा ने फुसफुसा कर कहा।

“क्या तुम राजकुमार लुफासा के साथ रहती हो?” रोजर ने पूछा।

“तुम्हें राजकुमार लुफासा के बारे में कैसे पता?” सनूरा ने आश्चर्य से रोजर को देखते हुए कहा।

“मुझे भी इस द्वीप के बहुत से राज पता हैं।” रोजर ने धीमे स्वर में कहा।

“मुझे लुफासा ने ही तुम्हें यहां से निकालने के लिये भेजा है। अभी ज्यादा सवाल-जवाब करके समय मत खराब करो और तुरंत निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को घूरते हुए कहा।

“मैं तुम्हारें साथ चलने को तैयार हूं, पर अगर एक मिनट का समय दो, तो मैं किसी और कैदी को भी यहां से छुड़ा लूं, जो कि मेरी ही तरह मेरे बगल वाले कमरे में बंद है।”

रोजर के शब्द सुन सनूरा आश्चर्य से भर उठी- “क्या यहां कोई और भी बंद है?”

“हां...मैंने अपने बगल वाले कमरे से उसकी आवाज सुनी है।” यह कहकर रोजर दबे पाँव सनूरा को लेकर एक दूसरे कमरे के दरवाजे के पास पहुंच गया।

उस कमरे का द्वार भी बाहर से बंद था। रोजर ने धीरे से उस कमरे का द्वार खोलकर अंदर की ओर झांका।

उसे कमरे में पलंग के पीछे किसी का साया हिलता हुआ दिखाई दिया।

“देखो, तुम जो भी हो...अगर इस कैद से निकलना चाहते हो, तो हमारे साथ यहां से चलो। अभी आकृति यहां नहीं है।” रोजर ने धीमी आवाज में कहा।

रोजर के यह बोलते ही सुनहरी पोशाक पहने एक खूबसूरत सी लड़की बेड के पीछे से निकलकर सामने आ गई।

उस लड़की के बाल भी सुनहरे थे। रोजर उस लड़की की खूबसूरती में ही खो गया। वह लगातार बस उस लड़की को ही देख रहा था।

“मेरा नाम मेलाइट है, आकृति ने मुझे यहां 2 दिन से बंद करके रखा है।” मेलाइट ने कहा।

“चलो अब जल्दी निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को खींचते हुए कहा।

रोजर ने मेलाइट से बिना पूछे उसका हाथ थामा और उसे लेकर सनूरा के पीछे भागा।

रोजर के इस प्रकार देखने और हाथ पकड़ने से मेलाइट को थोड़ा अलग महसूस हुआ। आज तक उसके साथ ऐसा किसी ने भी नहीं किया था।

तीनों तेजी से मुख्य कमरे से निकलकर आकृति के कक्ष की ओर भागे, क्यों कि उधर से ही होकर गुफाओं का रास्ता हर ओर जाता था।

रोजर भी पहली बार इसी रास्ते से होकर आकृति के कक्ष में आया था। तीनों तेजी से आकृति के कक्ष में प्रवेश कर गये।

पर इससे पहले कि वह गुफाओं वाले रास्तें की ओर जा पाते, उन्हें एक और लड़की की आवाज सुनाई दी- “अगर सब लोग भाग ही रहे हो, तो मुझे भी लेते चलो।”

तीनों वह आवाज सुन आश्चर्य से रुक गये, पर उन्हें कोई आसपास दिखाई नहीं दिया।

“कौन हो तुम? और हमें दिखाई क्यों नहीं दे रही?” सनूरा ने कहा।

“मैं यहां हूं, कक्ष में मौजूद उस शीशे के अंदर।” वह रहस्यमयी आवाज फिर सुनाई दी।

सभी की नजर कक्ष में मौजूद एक आदमकद शीशे पर गई। वह आवाज उसी से आती प्रतीत हो रही थी।

“तुम शीशे में कैसे बंद हुई?” रोजर ने पूछा।

“मेरा नाम सुर्वया है, मुझे इस शीशे में आकृति ने ही बंद करके रखा है, अगर तुम लोग इस शीशे को तोड़ दोगे, तो मैं भी आजाद हो जाऊंगी।”

रोजर ने सुर्वया की बात सुन सनूरा की ओर देखा। सनूरा ने रोजर को आँखों से इशारा कर उसे शीशे को तोड़ने का आदेश दे दिया।

रोजर ने वहीं पास में दीवार पर टंगी, एक सुनहरी तलवार को उठाकर शीशे पर मार दिया।
‘छनाक’ की आवाज के साथ शीशा टूटकर बिखर गया।

उस शीशे के टूटते ही उसमें से एक धुंए की लकीर निकली, जो कि कुछ ही देर में एक सुंदर लड़की में परिवर्तित हो गई।

सनूरा के पास, अब किसी से उसके बारे में पूछने का भी समय नहीं बचा था। वह सभी को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए, तेजी से गुफा की ओर बढ़ गयी।



जारी रहेगा______✍️
James ki mauj ho gayi hai.
Roger ke sath jo teen aur naye characters add huye hain unka story mein kya role hone wala hai dekha interesting hoga.
Wonderful update brother.
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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James ki mauj ho gayi hai.
Roger ke sath jo teen aur naye characters add huye hain unka story mein kya role hone wala hai dekha interesting hoga.
Wonderful update brother.
Roger ke sath jo nai londiya hai, wo ek to melait hai, and ek sur shandaar item hai :shy: dono me se ek wahi hai jiski khoj jaari hai:shhhh:,
Us update ka agla kissa kaafi interesting hone wala hai, Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

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#143.

सभी लगभग भागते हुए से चल रहे थे। रोजर ने अभी तक उस तलवार को नहीं फेंका था।

वह उस तलवार को हाथ में ही लेकर मेलाइट को घेरे हुए चल रहा था।ऐसा रोजर ने मेलाइट की सुरक्षा की वजह से किया था, पर मेलाइट भागते हुए भी रोजर को देख रही थी।

3-4 गुफा की सुरंगों को पार करते हुए, वह सभी एक मैदान में निकले। मैदान में आगे, कुछ दूरी पर एक छोटा सा, परंतु खूबसूरत महल बना दिखाई दे रहा था।

सनूरा सबको लेकर उसी महल की ओर बढ़ गयी।

महले में कई गलियारों और कमरों को पार करने के बाद वह एक विशाल शयनकक्ष में पहुंच गई।

उस कक्ष में एक बड़ी सी सेंटर टेबल के इर्द-गिर्द बहुत सी कुर्सियां लगीं थीं। बीच वाली कुर्सी पर एक बलिष्ठ इंसान बैठा था। रोजर उसे देखते ही पहचान गया, वह लुफासा था।

लुफासा ने सभी को कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया। लुफासा का इशारा पाकर सभी वहां रखी कुर्सियों पर बैठ गये।

“तुम तो एक इंसान को लाने गयी थी, फिर ये इतने लोग तुम्हें कहां से मिल गये?” लुफासा ने सनूरा को देखते हुए कहा।

“आकृति ने एक नहीं अनेक लोगों को बंद कर रखा था, इसलिये सभी को छुड़ा लायी और वैसे भी दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ठीक है, तो सबसे पहले, हम सभी एक दूसरे को अपना परिचय दे दें, इससे सभी खुलकर एक दूसरे से बात कर सकेंगे।”

लुफासा ने कहा- “पहले मैं स्वयं से ही शुरु करता हूं। मेरा नाम लुफासा है और मैं इस अराका द्वीप के एक हिस्से सीनोर राज्य का राजकुमार हूं। आकृति ने हमारी देवी शलाका का रुप धरकर हम सभी को बहुत लंबे समय से मूर्ख बना रही है। हमें नहीं पता कि वह कौन है? और उसके पास कितनी शक्तियां हैं? हम इसी बात को जानने के लिये काफी दिनों से उस पर नजर रखें हुए थे।

"इसी बीच हमने रोजर को आकृति के पास देखा, पहले हमें लगा कि यह भी आकृति के साथ मिला है, पर बाद में पता चला कि आकृति ने इसे भी कैद कर रखा है। इसीलिये मैंने सीनोर राज्य की सेनापति सनूरा को रोजर को छुड़ाने के लिये भेजा। अब आप लोग अपने बारे में बतांए।”

“मेरा नाम रोजर है, मैं सुप्रीम नामक जहाज का असिस्टेंट कैप्टेन था, अराका द्वीप के पास जब मेरा
हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया, तो आकृति ने मुझे बंदी बना लिया था।”

“मेरा नाम मेलाइट है, मैं एक ‘फ्रेश वॉटर निम्फ’ हूं, जो कि एक ‘सीरीनियन हिंड’ में परिवर्तित हो जाती हूं। आप लोगों ने मेरी कहानी अवश्य सुन रखी होगी। देवता हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक कार्य मुझे पकड़कर लाना भी था। ग्रीक देवी आर्टेमिस की मैं सबसे प्रिय हूं। जब मैं सुनहरी हिरनी बनकर जंगल में घूम रही थी, तो इस मायावी आकृति ने मेरा अपहरण कर लिया। अब यह मुझे यहां क्यों लायी है? ये मुझे भी नहीं पता। पर अब देवी आर्टेमिस इस आकृति को किसी भी हाल में नहीं छोड़ेंगी।“

(ग्रीक माइथालोजी में साफ पानी में रहने वाली अप्सराओं को फ्रेश वॉटर निम्फ कहा जाता है)
(दक्षिण ग्रीस का एक प्राचीन नगर ‘सिरीनिया’ के एक जंगल में पायी जाने वाली सुनहरी हिरनी को सिरीनियन हिंड के नाम से जाना जाता है)

“तुम वही सुनहरी हिरनी हो, जिसकी 4 बहनें देवी आर्टेमिस के रथ को खींचती हैं?” लुफासा ने आश्चर्य से भरते हुए कहा।

“हां, मैं वहीं हूं।” मेलाइट ने कहा।

“हे मेरे ईश्वर इस आकृति ने क्या-क्या गड़बड़ कर रखी है। अगर मेलाइट ने देवताओं को यहां के बारे में बता दिया, तो देवता इस पूरे द्वीप को समुद्र में डुबो देंगे।” लुफासा की आँखों में भय के निशान साफ-साफ
दिख रहे थे।

अब लुफासा की किसी से और कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं बची थी।

“देखो मेलाइट...तुम जब भी जहां भी जाना चाहो, हम तुम्हें इस द्वीप से वहां भिजवा देंगे, पर एक वादा करो कि देवी आर्टेमिस से तुम आकृति की शिकायत करोगी, हम सभी की नहीं। हम देवता ‘अपोलो’ और देवी 'आर्टेमिस' के कोप का भाजन नहीं बनना चाहते।” लुफासा ने विनम्र शब्दों में मेलाइट से कहा।

लुफासा के ऐसे शब्दों को सुनकर मेलाइट ने धीरे से सिर हिला दिया।

मेलाइट का परिचय जानकर, अब रोजर की मेलाइट की ओर देखने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी।

मेलाइट ने कनखियों से रोजर को देखा और उसे नीचे देखते पाकर धीरे से मुस्कुरा दी।

अब लुफासा की निगाह उस दूसरी लड़की पर पड़ी- “अब आप भी अपना परिचय दे दीजिये।”

“मेरा नाम सुर्वया है, मैं सिंहलोक की राजकुमारी हूं। एक समय मैं आकृति की बहुत अच्छी दोस्त थी, पर जब आकृति को मेरी दिव्यदृष्टि के बारे में पता चला, तो उसने मुझे उस शीशे में कैद करके हमेशा-हमेशा के लिये अपने पास रख लिया।” सुर्वया ने कहा।

“तुम्हारे पास किस प्रकार की दिव्यदृष्टि है?” सनूरा ने सुर्वया से पूछा।

“मैं इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक जीव को अपनी आँखें बंद करके देख सकती हूं।” सुर्वया ने कहा।

“क्या ऽऽऽऽऽऽऽ?” सुर्वया के शब्द सुनकर सभी के मुंह से एकसाथ निकला।

“ये कैसी शक्ति है? यह शक्ति तो जिसके पास होगी, वह कुछ भी कर सकता है।” रोजर ने कहा।

“नहीं मेरी भी कुछ कमियां हैं, मैं सिर्फ उसी व्यक्ति या जीव को देख सकती हूं, जो उस समय जमीन पर हो। मैं पानी, बर्फ या हवा में रह रहे किसी जीव को नहीं ढूंढ सकती। मेरी इसी विद्या की वजह से, आकृति तुम सब लोगों के बारे में जान जाती थी। पर मेरे ना रहने के बाद अब वह कमजोर पड़ जायेगी।” सुर्वया ने कहा।

“तो क्या तुम बता सकती हो कि इस समय आकृति कहां है?” लुफासा ने कहा।

लुफासा की बात सुनकर सुर्वया मुस्कुरा दी- “यह बताने के लिये मुझे दिव्यदृष्टि की जरुरत नहीं है। मैंने ही उसे इस समय न्यूयार्क भेजा था।”

“न्यूयार्क?” लुफासा को सुर्वया की बात समझ में नहीं आयी।

“दरअसल किसी कार्य हेतु आकृति को एक सुनहरी ढाल की जरुरत है और वह ढाल इस समय एक पानी के जहाज के अंदर है, जो अंटार्कटिका से न्यूयार्क की ओर जा रहा है। वह उसे ही लाने गयी है।” सुर्वया ने कहा।

“क्या तुम ये बता सकती हो कि उसने मेरा अपहरण क्यों किया?” मेलाइट ने सुर्वया से पूछा।

“हां....आकृति के चेहरे पर इस समय शलाका का चेहरा है, जिसे वह स्वयं की मर्जी से हटा नहीं सकती, जबकि तुम्हारे पास एक कस्तूरी है, जिसे पीसकर उसका लेप लगाने पर आकृति अपने पुराने रुप में आ सकती है, इसी लिये उसने तुम्हारा अपहरण किया था।” सुर्वया ने कहा।

“पर मेलाइट के पास कस्तूरी कैसे हो सकती है?” लुफासा ने कहा- “कस्तूरी तो सिर्फ नर मृग में पायी जाती है।”

“वह कस्तूरी मेरी नहीं है, वह मेरे पास किसी की निशानी है, जिसे मैं उस आकृति को कभी भी नहीं दूंगी।” मेलाइट ने गुस्से से कहा- “और उसे इस कस्तूरी के बारे में पता कैसे चला? यह बात तो मेरे सिवा कोई भी नहीं जानता।”

“माफ करना मेलाइट, पर यह जानकारी मैंने ही उसे दी थी और मुझसे कुछ भी छिपा पाना असंभव है।” सुर्वया ने कहा।

तभी लुफासा के कमरे में लगी एक लाल रंग की बत्ती जलने लगी, जिसे देखकर लुफासा थोड़ा चिंतित हो गया।

“दोस्तों आप लोग अभी आराम करिये, मुझे अभी कुछ जरुरी काम से कहीं जाना है। मैं लौटकर आप लोगों से बात करता हूं।” यह कह लुफासा ने सनूरा की ओर देखा।

सनूरा जान गयी थी कि लुफासा को मकोटा ने याद किया था, उसने इशारे से लुफासा को निश्चिंत होकर जाने को कहा और फिर उठकर सबको कमरा दिखाने के लिये चल दी।

उड़ने वाली झोपड़ी:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 14:30, पोसाईडन पर्वत, अराका द्वीप)

सभी अब अपने सामने मौजूद सुनहरी झोपड़ी को निहार रहे थे। सबसे पहले उन सभी झोपड़ी को चारो ओर से ध्यान से देखा।

झोपड़ी के सामने की ओर उसका दरवाजा था, झोपड़ी के पीछे कुछ भी नहीं था, पर झोपड़ी के दाहिने और बांयी ओर 2 छोटी खिड़कियां बनीं थीं।

उन खिड़कियों के नीचे, दोनो तरफ एक-एक सुनहरा पंख लगा था। जो हवा के चलने से धीरे-धीरे लहरा रहा था। पंख देख सभी आश्चर्य से भर उठे।

“कैप्टेन, इस झोपड़ी के पंख क्यों है? आपको क्या लगता है? क्या ये उड़ती होगी ?” ऐलेक्स ने सुयश से कहा।

“मुझे नहीं लगता कि ये उड़ती होगी। क्यों कि इतनी बड़ी झोपड़ी को इतने छोटे पंख, हवा में उड़ा ही नहीं सकते।“ सुयश ने अपने विचार को प्रकट करते हुए कहा- “यह अवश्य ही किसी और कार्य के लिये बनी
होगी?”

झोपड़ी के बाहर ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसके बारे में और कुछ बात की जाती, इसलिये सभी ने अब अंदर जाने का फैसला कर लिया।

“दोस्तों, अंदर जाने से पहले मैं कुछ बातें करना चाहता हूं।” सुयश ने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा- “हम शायद मायावन के आखिरी द्वार पर हैं, इसके बाद तिलिस्मा शुरु होगा। हमें नहीं पता कि आगे आने
वाली मुसीबतें किस प्रकार की होंगी, इसलिये मैं चाहता हूं कि सभी लोग आगे पड़ने वाली किसी भी चीज को तब तक हाथ नहीं लगायेंगे, जब तक सभी की अनुमति ना ले लें।”

सभी ने अपना सिर हां में हिलाकर सुयश की बात का समर्थन किया।

अब सुयश के इशारे पर सभी झोपड़ी के अंदर की ओर चल दिये।

झोपड़ी अंदर से ज्यादा बड़ी नहीं थी और ना ही उसमें बहुत ज्यादा सामान ही रखा था।

झोपड़ी की सभी दीवारें और जमीन लकड़ी के ही बने थे, बस उसकी छत साधारण झोपड़ी की तरह घास-फूस से बनी थी।

झोपड़ी के बीचो बीच एक पत्थर के वर्गा कार टुकड़े पर, काँच का बना एक गोल बर्तन रखा था, जो आकार में कार के टायर के बराबर था, परंतु उसकी गहराई थोड़ी ज्यादा थी।

उस काँच के बर्तन में पानी के समान पारदर्शी परंतु गाढ़ा द्रव भरा था। उस द्रव में नीले रंग की बहुत छोटी -छोटी मछलियां घूम रहीं थीं।

अब इतने गाढ़े द्रव में मछली कैसे घूम रहीं थीं, ये समझ से बाहर था।

उस काँच के बर्तन के बीच में एक नीले रंग का कमल का फूल रखा था।

झोपड़ी के एक किनारे पर, एक छोटे से स्टैंड पर, एक पकी मिट्टी की बनी छोटी सी मटकी रखी थी, उस मटकी पर ‘जलपंख’ लिखा था और जलपंख के नीचे एक गोले जैसे आकार में 2 लहर की आकृतियां बनीं थीं।

मटकी से पतली डोरी के माध्यम से, एक पानी निकालने वाला सोने का डोंगा भी बंधा था।

झोपड़ी की दूसरी दीवार पर एक कील गड़ी थी, जिसमें एक मानव खोपड़ी से निर्मित माला टंगी थी।
उस माला का धागा साधारण ही दिख रहा था।

दोनों खिड़कियों में लकड़ी के पल्ले लगे थे, जो कि खुले हुए थे।

“किसी को कुछ समझ में आ रहा है?” सुयश ने झोपड़ी में मौजूद सभी चीजों को देखने के बाद सबसे पूछा।

“कैप्टेन, इस झोपड़ी की दीवारें लकड़ी की हैं, यह समझ में आता है, पर इसकी जमीन क्यों लकड़ी की बनी है? यह समझ में नहीं आ रहा, क्यों कि कोई भी झोपड़ी बनाते समय उसकी जमीन नहीं बनवाता। और ऐसा सिर्फ वही लोग करते हैं जिन्हें अपने घर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना होता है।” तौफीक ने कहा। तौफीक का तर्क अच्छा था।

“और किसी को कुछ महसूस हुआ?” सुयश ने पूछा।

“उस नीलकमल, मानव खोपड़ी और इस मटकी में कुछ तो काम्बिनेशन है।” शैफाली ने कहा- “पर करना क्या है? ये समझ में नहीं आ रहा है।”

“तो फिर पहले किसी एक चीज को उठा कर देखते हैं, अगर कुछ बदलाव हुआ तो अपने आप पता चल जायेगा।“ सुयश ने कहा।

“कैप्टेन पहले इस नीलकमल को छूकर देखते हैं।” जेनिथ ने अपना सुझाव दिया।

सुयश ने जेनिथ को हां में इशारा किया। सुयश का इशारा पाकर जेनिथ ने धीरे से उस नीलकमल को उठा लिया। पर नीलकमल को उठाने के बाद कोई भी घटना नहीं घटी।

यह देख जेनिथ ने नीलकमल को वापस उसके स्थान पर रख दिया।

“अब मटकी को चेक करते हैं क्यों कि इस पर लिखा यह जलपंख और उसके नीचे बना गोला मुझे कुछ अजीब लग रहा है।” इस बार क्रिस्टी ने कहा।

सुयश के इशारा पाते ही क्रिस्टी ने जैसे ही मटकी को छुआ, उसे तेज करंट का झटका लगा।

“कैप्टेन, यह तो करंट मार रहा है।” क्रिस्टी ने घबरा कर अपना हाथ खींचतें हुए कहा।

“यानि की इसमें कुछ रहस्य अवश्य है।” शैफाली ने कहा- “कैप्टेन अंकल इस पर जलपंख क्यों लिखा है? कहीं इसका पानी बाहर बने झोपड़ी के पंख पर डालने के लिये तो नहीं है?”

“हो भी सकता है, पर यह तो छूने पर करंट मार रहा है, फिर इसका पानी पंख पर डाल कर ट्राई कैसे करें?” सुयश ने कहा।

“कैप्टेन...जलपंख तो समझ में आ गया, पर इस गोले वाले निशान का क्या मतलब है?” ऐलेक्स ने कहा- “यह पानी की लहरों के जैसा निशान है।”

“कहीं यह निशान एक जोडियाक चिन्ह तो नहीं है?” शैफाली ने निशान को देखते हुए कहा- “क्यों कि राशियों में कुम्भ राशि का निशान ऐसा ही होता है।”

“कुम्भ राशि!” सुयश ने सोचने वाले अंदाज में कहा।

“जो लोग 20 जनवरी से 19 फरवरी के बीच पैदा होते हैं, उनके राशि कुम्भ राशि होती है, और ऐसा निशान कुम्भ राशि का ही होता है।” शैफाली ने कहा।

“एक मिनट!” सुयश ने कुछ सोचते हुए कहा- “कुम्भ राशि का प्रतीक मटका ही तो होता है और यह निशान भी मटके पर ही है। इसका मतलब तुम सही सोच रही हो शैफाली।...क्या कोई यहां पर ऐसा है जिसकी राशि कुम्भ हो?”

“यस कैप्टेन!” जेनिथ ने अपना हाथ उठाते हुए कहा- “मेरा जन्म 11 फरवरी को हुआ है, उस हिसाब से मेरी राशि कुम्भ ही है।”

“जेनिथ तुम मटके को छूने की कोशिश करो, देखो यह तुम्हें भी करंट मारता है या नहीं?” सुयश ने जेनिथ को मटका छूने का निर्देश दिया।

जेनिथ ने डरते-डरते मटके को छुआ, पर उसे करंट नहीं लगा, यह देख शैफाली के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

“जेनिथ अब तुम इस डोंगे को पानी से पूरा भरकर, बांयी तरफ वाली खिड़की से, बाहर लगे पंख पर डालो, फिर देखते हैं कि क्या होता है?” सुयश ने जेनिथ से कहा।

जेनिथ ने सुयश के बताए अनुसार ही किया। पंख पर पानी पड़ते ही उसका आकार थोड़ा बड़ा हो गया।

“तो ये बात है....हमें पूरी मटकी का पानी बारी-बारी दोनों पंखों पर डालना होगा, तब पंख आकार में इस झोपड़ी के बराबर हो जायेंगे और फिर यह झोपड़ी हमें तिलिस्मा में पहुंचायेगी।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा- “पर जेनिथ इस बात का ध्यान रखना, कि पानी दोनों पंखों पर बराबर पड़े, नहीं तो एक पंख छोटा और एक पंख बड़ा हो जायेगा। जिससे बाद में उड़ते समय यह झोपड़ी अपना नियंत्रण खोकर गिर जायेगी।”

जेनिथ ने हामी भर दी। कुछ ही देर के प्रयास के बाद जेनिथ ने मटकी का पूरा पानी खत्म कर दिया।

झोपड़ी के दोनों ओर के पंख अब काफी विशालकाय हो गये थे।

जैसे ही मटकी का पानी खत्म हुआ, झोपड़ी के दोनों ओर की खिड़की अपने आप गायब हो गई।

अब झोपड़ी में उस स्थान पर भी लकड़ी की दीवार दिखने लगी थी।

“कैप्टेन, खिड़की का गायब होना, यह साफ बताता है कि पंख तैयार हो चुके हैं, अब बस इस झोपड़ी को उड़ाने की जरुरत है।” क्रिस्टी ने कहा।

“अब दीवार पर लगी वह खोपड़ी ही बची है, उसे भी छूकर देख लेते हैं। शायद वही झोपड़ी को उड़ाने वाली चीज हो।” शैफाली ने कहा।



जारी रहेगा______✍️
 
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