R_Raj
Engineering the Dream Life
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Are bc, Kabir ne mami ki bhi le rakhi hai !#२२
चबूतरे पर बैठे ठंडी हवा में चाय की चुसकिया लेते हुए हम दोनों तमाम सम्भावनाये तलाश रहे थे की कैसे क्या हो सकता था , क्या हुआ होगा चाचा के साथ .
“मुझे लगता है की चाची को अपनी गृहस्थी बचानी थी इसलिए वो पलट गयी ” मैंने कहा
मंजू- मैं मानती हूँ की औरत भरोसा तोडती है . चाची का मामला पेचीदा है पर मालूम तो करना ही होगा की उसके मन में कैसे इतना जहर भरा.
मैं- मौका मिलेगा तो अकेले में पूछुंगा उस से . पर मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हु
मंजू- हाँ
मैं- तू कब तक ऐसे धक्के खाएगी , घर बसा ले यार
मंजू- अब तो आदत हो गयी है . साली जिन्दगी में इतना तिरस्कार सहा है न की सम्मान का मोह ख़त्म ही हो गया है . तेरी बात कभी कभी सही लगती है मुझे , परिवार में अपन को कोई चाहता नहीं है बस दिखावा है . वैसे मैं खुश हु कबीर, अकेलापन तंग करता नहीं मुझे.
मैं- समझता हु मंजू , पर फिर भी जिदंगी बहुत लम्बी है साथी रहे तो बेहतर तरीके से कट जाती है.
मंजू- ठीक है मानती हु तेरी बात पर तू बता कौन करेगा मुझसे अब शादी
मैं- कोई क्यों नहीं करेगा. क्या नहीं है तेरे पास, गदराया जोबन, सरकारी नौकरी अरे तू पाल लेगी उसे.
मंजू- गाँव-बस्ती में ये सब नहीं चलता, लोगो को लगता है की छोड़ी हुई औरत ही गलत होती है .
मैं- माँ चुदाने के गाँव को तू , तू अपनी मस्ती में जी न
मंजू- बचपन ही ठीक था यार, ये जवानी बहन की लौड़ी तंग ही कर रही है .
मैंने चाय का कप साइड में रखा और बोला- सुन तू एक काम करियो दिनों में तो तू जाएगी ही वहां पर , पूरी जासूसी करनी है तुझे. देखना कुछ न कुछ तो मिलेगा ही मैं बाहर से कोशिश करूँगा तू घर के अन्दर से करना . वैसे देगी क्या आज
मंजू- शर्म कर ले रे घर में लाश पड़ी है तुझे लेने देने की पड़ी है .
मैं- अब जो है वो है मैं क्या करू ,सुन बकरा बनाते है बहुत दिन हुए
मंजू- अभी तूने सोच ही लिया तो फिर करनी ही है मनमानी
“मनमानी नहीं है , बस अब फर्क नहीं पड़ता है जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की मिल तो सब रहा है पर अब चाहत नहीं है ” मैंने कहा
मंजू- उदास मत हो , करते है मनमानी फिर
मैं मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम वहां बैठे रहे .बचपन की बहुत सी यादे ताजा हो गयी थी . शाम से थोडा पहले हम वापिस गाँव आये , जीप को धोने का सोचा मैंने , सफाई करते समय मुझे कुछ गड्डी पैसो की मिली नोटों पर कालिख जमी थी , सीलन थी . मैंने उन्हें अन्दर रखा और जीप को धोने लगा की तभी मैंने सामने से मामी को आते हुए देखा. एक अरसे के बाद मैं उन्हें देख रहा था. लगा की वक्त जैसे मेरे लिए ठहर सा गया था .सब कुछ मेरे सामने वैसे ही आ रहा था जैसे की मेरी कहानी शूरू होने पर था .
“आप यहाँ कैसे ” मैंने कहा
“किसी ने बताया की तुम इधर मिलोगे तो चली आई ” एक पल को लगा की मामी आगे बढ़ कर गले से लगा लेंगी पर वो रुक गयी.
मैं-कैसी हो
मामी- ठीक हूँ , बरस बीते तुमने तो सब भुला दिया . मामा का घर इन्सान का दूसरा घर होता है ,वो घर भी तुम्हारा ही है पर तुमने ना जाने किस राह पर चलने का फैसला किया की पीछे सब छोड़ गए.
मैं-पहले जैसा कुछ रहा ही नहीं , सब बिखर गया
मामी- कुछ भी नहीं बदला है थोड़ी कोशिश करोगे तो सब तुम्हारा ही है
मैं- चाची सोचती है की मैंने मारा चाचा को
मामी- मैं जानती हु की तुम ऐसा नहीं कर सकते, मैं बात करुँगी उस से पर फिलहाल वक्त ठीक नहीं है
मैं-छोड़ो ये बताओ मामा आये है क्या .
मामी- कल शाम तक पहुँच जायेंगे
मामी की आँखों में मुझे बहुत कुछ दिख रहा था . मामी की जुल्फों में सफेदी झलकने लगी थी बदन थोडा भारी हो गया था , थोड़ी और निखर आई थी वो .
मैंने मामी का हाथ पकड़ा और बोला- समय का पहिया घूम रहा है उम्मीद है की सब सही होगा.
मामी- ऐसा ही होगा . अभी मैं चलती हूँ , ननद को संभालना होगा मिलूंगी तुमसे फिर
मैं- हवेली इंतजार करेगी
मामी के जाने के बाद मैंने मंजू के साथ खाना खाया , वैसे मैं मंजू की लेना चाहता था पर वो चाचा के घर जाना चाहती थी , वहां बैठना ज्यादा जरुरी था. वो चाचा के घर गयी मैं हवेली आ गया. हालाँकि मंजू चाहती थी की मैं उसके घर ही सो जाऊ. एक बार फिर से मैं पिताजी के सामान में अनजाने सच को तलाश रहा था . हर एक किताब को मैं फिर से बार बार देख रहा था की कहीं तो कुछ मिल जाये पर इस बार भी प्रयास व्यर्थ , जो इशारा था वो मुझे शायद उन कागजो में मिल चूका था . न जाने कैसी धुन थी वो , न जाने क्या तलाश रहा था मैं . संदूक में मुझे पिताजी की वर्दी मिली . आँखे छलक पड़ी मेरी, पिताजी को अपनी वर्दी हमेशा प्रेस की हुई चाहिए होती थी , संदूक में निचे उनके काले जूते थे , लगा की अभी पालिश की हो . भावनाओ का ज्वार थामे मैंने वर्दी को सीने से लगाया तो मुझे कुछ महसूस हुआ. वर्दी के अन्दर में एक जेब थी जिसमे एक किताब थी. गुंडा शीर्षक था उसका. मैंने पन्ने पलटने शुरू किये. और मुझे वो मिला जो एक नयी राह दिखा सकती थी.
“कबीर, मैं जानता हु तुम् यहाँ तक जरुर पहुंचोगे , पर सफ़र इधर का नहीं वहां का है जहाँ तुम अँधेरे में उजाला देखोगे. सब कुछ मिटटी है , पर मिटटी जादू है वो जादू जो मुझ पर चला . उजाले से प्यार मत करना अँधेरे में खो मत जाना. वहां पहुंचोगे तो सब जान जाओगे. सबको पहचान जाओगे. रास्ता तुम्हारे दिल से होकर जायेगा.” पिताजी के लिखे ये शब्द मुझे पागल ही कर गए थे. क्या बताना चाहता था बाप सोचते सोचते मैं भन्ना ही गया था .
“कबीर ” हौले से वो फुसफुसाई और मेरे सीने पर हाथ रख दिया. झट से मेरी आँख खुली और मैंने लालटेन की रौशनी में उसे देखा..
“मैं हु कबीर ” बोली वो और मेरी चादर में घुस गयी...........
andhere me ujala dekhoge, sab kuch mitti hai, mitti jadu hai !
Jo bhi hai wo mitti me dafan hai !
Sona-chandi ho sakta hai YA kisi dusre type ka khajana Ya mitti me kisi ki lash aur uski story
Kuch Bhi Ho Sakta Hai !
Again Fantastic Update Bhai