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xoxo0781

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Update: Week me mostly sunday ko milega

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Hero - Raj (20 sal)
Raj ki maa - Sakshi (42 sal) - Main Heroine
Raj ki Behen - Neha (18 sal)
Raj ke papa(late) - Rajdeep

Raj ki Mausi - Radha (43 sal)

Radha ki Beti - Preeti (19 sal)


Out off family

Sakshi ki Best Friend from her school = Naina (35 sal)
Raj ka Best Friend from his childhood = Saurabh

Amit Sir(Sports Teacher) - 45 sal = Tharki (Ladkibaazi se badnaam hai)

Vineet(Awara Student) - 18 sal = Neha ki class me padhta hai
 
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xoxo0781

Mom = love of my life ❤️
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Update 3: एहसास की पहली दस्तक = राज का साक्षी के प्रति बदलता एहसास

दिल्ली में जनवरी 2012 की कड़कड़ाती ठंड वाली सुबह थी। अभी सूरज की किरणें ठीक से खिड़की में घुसी भी नहीं थीं कि राज के घर में चहल-पहल शुरू हो गई थी।

रोज की तरह, मम्मी साक्षी की मस्त वाली हँसी पूरे घर में ऐसे गूँज रही थी जैसे कोई नदी बह रही हो, और राज का दिल एक अनजान खुशी से भर रहा था।
राज अपने बिस्तर पर करवट बदल रहा था। उसकी आँखें बंद थीं, पर कानों में माँ की हँसी घुल रही थी। ये सिर्फ़ माँ की हँसी नहीं थी, यह उसके लिए सुबह की पहली किरण, दिन की पहली धड़कन थी। अपनी माँ की हर अदा, हर बात में अपनी दुनिया देखता था।

————————————————————————————————————————————————————

### Scene 1: राज का कमरा - सुबह का धुंधलका
(राज के कमरे में हल्की रोशनी थी। किचन से साक्षी की हँसी की आवाज़ साफ आ रही थी।)

राज (मन में): मम्मी की हँसी... हर सुबह की पहली धुन।
(नेहा आधी-नींद में, आँखें मलते हुए कमरे में आती है।)
नेहा: राज, उठ भी जा यार! कुंभकर्ण कहीं का।
राज (करवट बदलते हुए, धीमी आवाज़ में): कुछ देर और सोने दे मुझे तू छिपकली।
नेहा: उठ जा बंदर। मम्मी नाश्ता बना रही है। मुझे भूख लग रही है। और तुझे याद है ना, आज मेरा केमिस्ट्री का टेस्ट है।
राज (मुस्कुराते हुए, आँखें बंद): फोड़ देगी तू। वैसे भी तेरा केमिस्ट्री फेवरेट सब्जेक्ट है।

(नेहा कमरे से निकल जाती है। राज आँखें बंद करके भी साक्षी की आवाज़ और किचन की हलचल को महसूस करता रहता है। उसे अंदर ही अंदर एक अजीब सा सुकून और एक्साइटमेंट फील हो रही थी।)



साक्षी की दुनिया और उसका अनकहा दर्द

खिड़की से आती सूरज की पहली किरण से पहले ही साक्षी की हँसी पूरे घर में फैल गई थी। राज अपने बिस्तर पर करवट बदलता हुआ मुस्कुराया। "माँ की यह हँसी... मेरे दिन की पहली धड़कन।"
साक्षी, जो 42 की होकर भी किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी, अपने पति राजदीप को खोने का दर्द आज भी दिल में दबाए हुए थी। चेहरे पर थोड़ी थकान दिखती थी, पर उसकी स्माइल इतनी प्यारी थी कि राज उसमें खो जाता था। वो सिर्फ़ उसकी माँ नहीं थी, वो उसकी पूरी दुनिया थी, उसका सुकून थी।

राज: (अपने मन में) काश... यह आवाज़ हमेशा ऐसे ही गूँजती रहे।

राज उठा, और धीरे-धीरे किचन की ओर बढ़ा। दरवाज़े पर खड़ा होकर वह साक्षी को देखता रहा। उसकी ढीली चोटी, मासूम आँखें, चाय बनाते हुए उसकी नाजुक, नंगी कमर, भारी गोल-गोल गांड।

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Green साड़ी में वो बेहद खूबसूरत & कामूक लग रही थी। राज का दिल एक अनजान धुन पर बजने लगा। ये धुन इतनी धीमी थी, इतनी बारीक थी कि उसे खुद भी नहीं पता था कि यह क्या थी। वह बस देखता रहा, और उसकी नज़रें साक्षी के हर हाव-भाव को अपने अंदर समेटती जा रही थीं।

जब साक्षी किचन में चाय बनाने लगी, तो राज उसके पीछे-पीछे चला गया। वो उसकी हर हरकत को गौर से देख रहा था। कैसे उसकी उँगलियाँ कप पकड़ती हैं, कैसे उसकी पलकें झपकती हैं, कैसे वो साँस लेती है... राज के अंदर एक अजीब सी हलचल हो रही थी। उसकी माँ की हर अदा, हर बात उसके दिल के तार छेड़ जाती थी।

आज राज को कुछ ऐसा महसूस हुआ जो उसने पहले कभी फील नहीं किया था।

साक्षी: (मुड़े बिना) राज, इतनी देर से क्या देख रहे हो? आओ, नाश्ता तैयार है।
राज: (हड़बड़ाकर) नहीं मम्मी... बस, आपको देख रहा था। आज आप... (रुक गया)
साक्षी ने पलटकर देखा। राज की आँखों में वह गहराई थी जिसे वह समझ नहीं पाई।
साक्षी (हल्की मुस्कान): देर हो गई है मुझे, इसलिए शायद तुम्हें अजीब लग रही हूँ।
राज: (उसका हाथ थामकर) अजीब नहीं... आप बेहद सुंदर लग रही हैं।

एक अजीब सी चुप्पी छा गई। साक्षी ने हाथ छुड़ाया, पर राज के दिल में जो फीलिंग शुरू हुई थी, वो अब और गहरी हो गई थी। राज के दिल में जो बीज पड़ा, वह अंकुरित हो चुका था।

साक्षी ने चाय का कप राज की तरफ बढ़ाया। राज ने कप लिया, लेकिन उसकी नज़रें अभी भी साक्षी के चेहरे पर टिकी थीं। उसकी गहरी आँखों में एक उदासी थी, जिसे राज हमेशा नोटिस करता था।

साक्षी (बिना मुड़े): "राज, इतनी देर तक क्या देख रहे हो? आओ बेटा, नाश्ता तैयार है।"

लेकिन उसकी नज़रें साक्षी से हट नहीं रही थीं। आज उसे कुछ अलग महसूस हो रहा था। यह सिर्फ़ माँ-बेटे का प्यार नहीं था, कुछ और था, जो उसके दिल के दरवाज़े खटखटा रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय से राज के अंदर कुछ बदल रहा था. साक्षी की हर बात, हर मुस्कान, हर अदा उसे पहले से ज़्यादा छूने लगी थी. राज जैसे किसी सपने से जागा। वह अंदर आया और टेबल पर बैठ गया। साक्षी ने उसके लिए परांठे और चाय परोसी। राज ने चाय का कप उठाया, लेकिन उसकी नज़रें फिर से साक्षी पर टिक गईं।

राज: "मम्मी आप कितनी खूबसूरत हो।"
साक्षी(मुस्कुरा ke): "तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?"

राज अपनी डायरी में अक्सर ऐसे ही शब्द लिखा करता था. ये शब्द सिर्फ एक बेटे के अपनी माँ के प्रति प्रेम नहीं थे, बल्कि ये एक ऐसे प्यार की शुरुआत थी, जिसे राज खुद भी समझ नहीं पा रहा था.

ये वो प्यार था, जो उम्र और रिश्ते की बेड़ियों को तोड़ता हुआ, उसके दिल में पनप रहा था.

राज (साक्षी का हाथ थामकर, आँखों में देखते हुए): "मम्मी, आप अकेले कितना काम करती हो? सुबह से स्कूल, फिर घर के काम... खुद का ख़्याल भी नहीं रखती।"
साक्षी(मुस्कुराकर राज के बालों पर हाथ फेरा): "नहीं बेटा, तुम हो तो मुझे क्या थकान, तुम दोनों ही तो मेरी दुनिया हो।" साक्षी की यह बात राज के दिल में उतर गई।

राज ने चाय की घूँट भरी। उसे लगा जैसे साक्षी की हर बात, हर स्पर्श उसके दिल में एक नई धड़कन जगा रहा था। यह सिर्फ़ मम्मी-बेटे का रिश्ता नहीं था, यह कुछ और था, एक ऐसा अज्ञात खिंचाव जो उसे साक्षी की ओर खींच रहा था।

वो उसकी हर अदा, हर बात में अपनी दुनिया देखता था। उसकी आँखें उस दर्द को पहचानती थीं जो साक्षी के अंदर, उसके पति, राजदीप की यादों में छिपा था। राज को अपने पापा की याद आई।
उसकी मम्मी की स्माइल, उसके चेहरे की मासूमियत, उसकी आँखों की गहराई... सब कुछ उसे अपनी तरफ़ खींच रहा था। ये एक ऐसा एहसास था जिससे वो अब तक अंजान था।

उसे फील होता है कि उसकी माँ ने खुद को उन लोगों के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया था। उसकी आँखों में वो पुरानी उदासी साफ दिखती थी, जो उसके पापा, राजदीप की मौत के बाद से हमेशा रहती थी। वो तो अपने लिए जीना ही भूल गई थी।

राज ने हमेशा चाहा था कि वह अपनी माँ के इस दर्द को मिटा सके, पर आज उसे अपनी भावनाएँ कुछ और ही लगने लगी थीं – यह सिर्फ़ बेटे का प्यार नहीं था, कुछ अधिक था, कुछ गहरा। उसके भीतर एक हलचल पैदा हो गई थी, एक ऐसा एहसास जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था।)

आज राज को लगा कि उसका प्यार सिर्फ़ इमोशनल नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा गहरा है।



### Scene 2: किचन - सुबह का नाश्ता

(साक्षी किचन में पराठे पलट रही है। नेहा एंट्री मारती है।)

साक्षी: राज, नेहा... नाश्ता तैयार है।
नेहा: मम्मी, बस अभी आई। यार, फिर से आलू के पराठे! सीरियसली मम्मी, आप दुनिया की बेस्ट शेफ हो।
साक्षी (मुस्कुराते हुए): आजा मेरी ड्रामा क्वीन। तेरे इस टेस्ट के लिए फुल एनर्जी चाहिए ना?

(राज दरवाज़े पर खड़ा, साक्षी को टकटकी लगाए देख रहा था। उसकी आँखें साक्षी की चाल पर थीं, उसकी Green Color की साड़ी और उसके पूरे स्टाइल को स्कैन कर रही थीं।)
राज (मन में): उनकी चाल... इतनी sexy है। और ये Green Color की साड़ी... उन पर तो कहर ढा रही है।

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साक्षी (बिना मुड़े, महसूस करते हुए): "राज, इतनी सुबह-सुबह कौन सा फैशन शो चल रहा है? आजा, पराठे ठंडे हो रहे हैं।"
राज (टेबल पर बैठते हुए, नज़रें अभी भी साक्षी पर): अरे नहीं मम्मी, बस ऐसे ही खड़ा था। आप इतनी जल्दी उठ गईं! आज तो संडे था ना, थोड़ी और नींद पूरी कर लेतीं।
साक्षी (हल्की सी चुटकी लेते हुए): बेटा, आज मंडे है! और फिर, अगर मैं देर तक सोऊंगी तो तुझे नाश्ता कौन देगा, Mr. Late-Night Guitarist?

राज (शरमाते हुए): "ओह सॉरी मम्मी! मुझे तो यार, दिन का भी होश नहीं रहता। पर सच कहूँ... आप आज सच में बहुत खूबसूरत लग रही हो।" (थाली सरकाते हुए उसकी उँगलियाँ साक्षी के हाथ से छू जाती हैं।)
राज(मन में): "यार, ऐसा क्यों लगा जैसे शॉक लग गया हो?"

साक्षी (प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए): अच्छा, बस-बस। आ, अब ज़्यादा मक्खन मत लगा। नाश्ता ठंडा हो जाएगा। और सुन, तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है? गिटार ठीक है, पर थोड़ा किताबें भी देख लिया कर। कॉलेज में आर्ट्स ली है, इसका मतलब ये नहीं कि फ्री का पास मिल जाएगा।

राज (चाय का कप उठाते हुए, उसकी उँगलियों का स्पर्श महसूस करता हुआ): अरे मम्मी, कॉलेज में क्या ही पढ़ाई होती है आजकल। बस 'लाइफ एक्सपीरियंसेज' मिल रहे हैं।
साक्षी (आँखें सिकोड़कर): अच्छा, तो ये लाइफ एक्सपीरियंस ही तुझे नंबर दिलाएंगे क्या? देखना, फिर नेहा को बताऊंगी कि तू बस रील्स पर टाइम पास करता रहता है।
राज (नकली गुस्सा दिखाते हुए): ओहो मम्मी! आप भी ना, हर बात में नेहा को क्यों घसीट लेती हो? वो तो आपकी प्राइवेट जासूस है, दिन भर मेरे पीछे पड़ी रहती है।

नेहा (राज को चिढ़ाते हुए): हाँ-हाँ, मैं ही जासूस हूँ। और ये बंदर तो बस गिटार बजाने और कविताएँ लिखने में लगा रहता है मम्मी। पता नहीं क्या हो गया है इसे, आजकल तो ख़यालों में खोया रहता है!
साक्षी (राज की ओर देखते हुए): "शौक पूरा करने दो बेटा... बस पढ़ाई से पीछा न छुड़ाए। और तू नेहा, अपने केमिस्ट्री टेस्ट की तैयारी कर ले।"
राज (नेहा को घूरते हुए): तू चुप कर, छिपकली! हर बात में टांग अड़ाना ज़रूरी है क्या? वैसे भी तू तो सिर्फ साइंस की किताबी-कीड़ा है।
नेहा (तुरंत): और तू? तू तो बस अपनी गिटार की धुन में खोया रहता है, और मम्मी को घूरता रहता है। बड़ा आया फोटोग्राफर कहीं का!
राज (भौंहें चढ़ाकर): ओए, मेरी पसंद की बेइज़्ज़ती मत कर! तेरी तो आँखों पर चश्मा चढ़ा रहता है, तुझे क्या पता असली ब्यूटी क्या होती है!
नेहा (नाक सिकोड़ते हुए): मेरी आँखों पर चश्मा है, पर तेरी अक्ल पर तो ताला लगा है। मम्मी, देखो ना इसे, ये रोज़ मुझे छिपकली बोलता है!

साक्षी (हंसते हुए): अरे-अरे, सुबह-सुबह इतनी महाभारत क्यों? नेहा सही कह रही है, अब चुपचाप पराठा खाओ और आज अपने कमरे की सफ़ाई भी कर लेना, नहीं तो स्कूल और कॉलेज के लिए देर हो जाएगी। तुम दोनों हो तो मेरे ही बच्चे, एक कलाकार और एक Scientist।
राज (मुँह बनाते हुए): हे भगवान! ये सजा क्यों मम्मी?
साक्षी (हंसते हुए): क्योंकि मैं तेरी माँ हूँ, और माँ की बात माननी पड़ती है, Mr. Genius! अब जल्दी करो, मुझे भी स्कूल जाना है।
राज (पराठा खाते हुए, फिर साक्षी की ओर देखता है): मम्मी, आप इतनी मेहनत करती हो... स्कूल, घर... कभी थकती नहीं क्या? थोड़ा खुद के लिए भी टाइम निकालो।


राज की अंदर खिचड़ी

(राज का मन अजीब-सी हलचल में था। उसे अपनी मम्मी की हर बात, हर अदा, हर स्पर्श कुछ अलग ही लगने लगा था। वो सिर्फ़ माँ नहीं थी उसके लिए, वो अब एक ऐसी पहेली थी जिसे वो सुलझाना चाहता था।)

राज (मन में): यार, क्या हो रहा है मुझे? मम्मी को देख कर जो फीलिंग आती है ना, वो नॉर्मल नहीं है। ये क्या है? प्यार तो है, पर कैसा वाला प्यार? ये तो कुछ और ही है, कुछ गहरा, कुछ अटपटा। ये तो वही वाली फीलिंग है जो कविताओं में होती है, पर ये तो मेरी अपनी माँ हैं। दिल में एक अजीब सी उठापटक चल रही थी। मुझे पता है ये गलत है, पर मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। उनकी हर बात, उनकी हर मुस्कान... सब कुछ मुझे अपनी तरफ़ खींच रहा है। काश मैं इस उलझन को समझ पाता। क्या मैं पागल हो रहा हूँ?




### Scene 3: घर का दरवाज़ा - साक्षी स्कूल के लिए निकलीं

जब साक्षी स्कूल जाने के लिए तैयार होकर, अपना पर्स लेते हुए दरवाज़े की ओर बढ़ती है, तो राज ने उसे दरवाज़े तक छोड़ा।

साक्षी(अपना पर्स पकड़कर दरवाज़े की तरफ बढ़ती है, प्यार से राज के बालों पर हाथ फेरा): ठीक है बेटा, मैं चलती हूँ। अपना ध्यान रखना और नेहा का भी।
राज (दरवाज़े पर खड़ा, साक्षी का हाथ पकड़ता हुआ): आप भी, माँ।
(राज अपनी उँगलियों पर हल्की सी पकड़ बनाए हुए है। साक्षी थोड़ी देर रुककर, राज का हाथ थामे हुए देखती है।)

साक्षी: क्या हुआ, राज?
राज (नज़रें साक्षी के चेहरे पर, हल्की सी घबराहट): कुछ नहीं माँ। बस... अपना ख्याल रखना।
साक्षी (हल्की सी मुस्कान के साथ): रखूँगी। बाय।

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(राज के टच में एक अजीब सी गर्माहट थी, जो साक्षी को फील हुई, पर उसने उसे बेटे के प्यार से ज़्यादा कुछ नहीं समझा। साक्षी ने हल्की सी मुस्कान दी और निकल गई। राज वहीं दरवाज़े पर खड़ा उसे तब तक देखता रहा जब तक वो गली के मोड़ पर मुड़ नहीं जाती।)

सूरज की रोशनी अब तेज़ हो गई थी, पर राज के भीतर एक अजीब सी उलझन थी, एक अव्यक्त चाहत जो उसे अंदर ही अंदर जला रही थी। यह क्या था? यह कैसा प्यार था? उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी ये फीलिंग्स उसे किस ओर ले जा रही हैं।

वो अपनी माँ से बहुत प्यार करता था, पर ये प्यार अब एक ऐसे मोड़ पर आ गया था जहाँ से वापस जाना मुश्किल लग रहा था। ये सिर्फ़ माँ-बेटे का पवित्र रिश्ता नहीं था, ये कुछ और था, एक अनजाना, अनकहा एहसास... ये पहली दस्तक थी एक ऐसे Pyar की, जो शायद Society me एक्सेप्टेबल न हो।


### Scene 4: किचन - शाम (साक्षी के लौटने के बाद)

(शाम हो चुकी थी। साक्षी स्कूल से लौट चुकी थी, और थकान उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी। वो किचन में जाकर अपने लिए पानी का ग्लास लेती है। राज किचन के दरवाज़े पर खड़ा उसे देख रहा है।)

राज: माँ, थक गई होंगी आप। मैं चाय बना दूँ आपके लिए?
साक्षी (मुस्कुराने की कोशिश करती हुई): हाँ बेटा, अगर बना दे तो अच्छा रहेगा। आज थोड़ी ज़्यादा ही थकान हो गई है।

(राज तुरंत चाय बनाने लगता है। साक्षी किचन में ही एक स्टूल पर बैठ जाती है, उसकी आँखें आधी बंद हैं। राज उसे चुपचाप देखता रहता है। उसके चेहरे पर दिख रही थकान और उदासी राज के दिल को छू जाती है। उसे याद आता है कैसे उसके पापा, राजदीप, भी साक्षी के थकने पर उसकी हेल्प करते थे। एक अजीब सी कसक उठती है राज के भीतर।)

राज (चाय बनाते हुए): मम्मी, आपने दिन में कुछ खाया था ठीक से?
साक्षी (आँखें खोले बिना): हाँ बेटा, स्कूल में बच्चों के साथ थोड़ा-बहुत खा लिया था। आजकल बस भूख ही नहीं लगती।

(साक्षी की आवाज़ में एक अजीब सी बेफ़िक्री थी। राज को ये फील होता है कि उसके पापा के जाने के बाद से साक्षी ने खुद पर ध्यान देना छोड़ दिया है। वो उसकी इस हालत को बदलना चाहता है, उसे फिर से हँसते-खिलखिलाते देखना चाहता है।)

राज (मन में): वो मेरी माँ है... वो मेरी खुशी है। मैं उन्हें ऐसे उदास नहीं देख सकता। मुझे कुछ करना ही होगा।

(राज चाय साक्षी को देता है। साक्षी चाय का कप लेकर हल्की सी मुस्कान देती है।)

साक्षी: थैंक्स बेटा।

(राज साक्षी के पास आकर बैठ जाता है, उसके गिटार उसके हाथ में है। आज उसने एक उदास, पर मधुर धुन छेड़ी। साक्षी आँखें बंद करके धुन सुनती है। राज साक्षी के चेहरे पर आती हल्की मुस्कान को देखता है। उसे लगता है कि उसका संगीत कहीं न कहीं साक्षी के भीतर उस खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा है। यह एक छोटा सा पल था, पर राज के लिए बहुत मायने रखता था।), राज उसे देखता रहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी लालसा थी, एक अव्यक्त चाहत।

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राज (मन में): आपकी मुस्कान ही मेरी दुनिया है, माँ। मुझे नहीं पता ये क्या है, पर मैं आपको फिर से हँसते हुए देखना चाहता हूँ।

वह अपनी डायरी में अक्सर साक्षी के लिए लिखता था, पर आज उसके पास शब्द नहीं थे। उसके अंदर का तूफ़ान इतना बड़ा था कि उसे बयान कर पाना मुश्किल था।

राज (मन में): ये क्या हो रहा है मुझे? माँ की हँसी... उनकी सादगी... उनकी आँखों में वो उदासी... सब कुछ मुझे अपनी ओर खींच रहा है। ये सिर्फ़ एक बेटे का प्यार नहीं है, मैं जानता हूँ। पर फिर ये क्या है?
(राज अपनी आँखें बंद कर लेता है। उसके दिमाग में साक्षी का चेहरा घूम रहा है। उसकी मुस्कान, उसके बाल, उसके हाथों का स्पर्श... उसे याद आता है सुबह जब उसने साक्षी का हाथ पकड़ा था। वह गर्माहट अभी भी उसकी उँगलियों में महसूस हो रही थी।)

राज (मन में): (तेज़ साँस लेते हुए) नहीं... ये ग़लत है। वो मेरी माँ हैं। पर मेरा दिल... ये क्यों नहीं समझता? क्यों हर पल उन्हीं के बारे में सोचता रहता है?
(वह अपनी डायरी खोलता है और कुछ देर खाली पन्ने को देखता रहता है। फिर धीरे-धीरे पेन उठाता है और कुछ पंक्तियाँ लिखता है, पर उन्हें तुरंत काट देता है। उसे समझ नहीं आ रहा कि अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करे। यह एक ऐसा द्वंद्व था जो उसे अंदर ही अंदर खा रहा था।)

(राज साक्षी के पास आकर बैठ जाता है, उसका गिटार उसके हाथ में है। वो धीमी, उदास धुन बजाने लगता है। साक्षी आँखें बंद करके धुन सुनती है। राज साक्षी के चेहरे पर आती हल्की मुस्कान को देखता है। उसे लगता है कि उसका म्यूजिक कहीं न कहीं साक्षी के अंदर के खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा है। ये एक छोटा सा मोमेंट था, पर राज के लिए बहुत मायने रखता था।)

राज diary me likhta hai: आपकी मुस्कान ही मेरी दुनिया है, मम्मी। मुझे नहीं पता ये क्या है, पर मैं आपको फिर से हँसते हुए देखना चाहता हूँ।

(नेहा कमरे से आती है, अपनी किताब हाथ में लिए हुए। राज को गिटार बजाते देख वह रुक जाती है।)

नेहा: ओह हो! ये कौन सा दर्द-ए-दिल गाना चल रहा है भाई साहब? आजकल बड़ा गहरे ख्यालों में डूबे रहते हैं।

राज (गिटार रोककर, नेहा को घूरते हुए): तुझे हर बात में कमेंट करना ज़रूरी है क्या, चिपकली? ये माँ के लिए है।

नेहा (राज की तरफ आँख मारते हुए): हाँ-हाँ, मुझे पता है माँ के लिए है। आजकल तो तेरा सारा फोकस मम्मी पर ही है। मेरा क्या? मुझे तो कोई चाय भी नहीं पूछता।

साक्षी (आँखें खोलकर, हल्की हँसती हुई): अरे-अरे, क्यों लड़ रहे हो? नेहा, तू भी आ बैठ। राज, अपनी बहन को भी तो पूछ ले चाय के लिए।

राज (नाक सिकोड़ते हुए): ये तो खुद बना सकती है। वैसे भी, पढ़ाई करती नहीं, बस चाय-चाय करती रहती है।

नेहा (राज की बांह पर हल्का मारकर): ओए, मैं पढ़ाई करती हूँ! और तू? तू तो बस गिटार बजाकर मम्मी को इंप्रेस करता रहता है। मुझे तो लगता है तूने आर्ट्स इसलिए ली है ताकि पढ़ना न पड़े!

राज (गुस्से से): तू क्या जानती है कला की ताकत? मेरी तो कविताएं और धुनें ऐसी होती हैं कि पत्थर भी पिघल जाएँ!

नेहा (हंसते हुए): हाँ-हाँ, बस पत्थर ही पिघलते होंगे। मुझे तो बस नींद आती है तेरी धुन सुनकर।

साक्षी (चाय का कप रखते हुए, प्यार से): बस करो तुम दोनों। दिन भर की लड़ाई खत्म नहीं होती क्या तुम्हारी? नेहा, जा बेटा, मैं तेरे लिए भी चाय बना देती हूँ।

नेहा (मुस्कुराकर राज को जीभ दिखाते हुए): थैंक यू, मम्मी! देखा, मम्मी को मुझसे कितना प्यार है।

राज (मन में): ये नेहा भी ना... सब कुछ मज़ाक में उड़ा देती है। पर पता नहीं क्यों, आज माँ की ये उदासी मुझसे देखी नहीं जा रही। काश मैं कुछ ऐसा कर पाऊँ जिससे वो फिर से पहले जैसी हो जाएँ। वो खिलखिलाती हँसी... वही तो मेरी सबसे बड़ी ताकत है।



### Scene 5: राज का कमरा - रात

(रात गहरा चुकी है। घर में सब सो चुके हैं। राज अपने कमरे में लैंप जलाकर बैठा है, उसकी डायरी खुली पड़ी है। उसका दिमाग आज दिनभर की बातों में उलझा हुआ है—मम्मी की थकावट, उनके चेहरे की उदासी, और फिर उनके होंठों पर आई वो हल्की सी स्माइल। राज को अब पक्के से समझ आ रहा था कि वो मम्मी की लाइफ में फिर से खुशियाँ भरना चाहता है, पर उसकी फीलिंग्स अब सिर्फ़ बेटा-माँ वाले रिश्ते से कहीं आगे निकल चुकी थीं।)

राज (डायरी में लिखता है):
"तेरी आँखों में ना, मुझे गहरा समंदर दिखता है,
शांत सा, पर कभी-कभी उसमें बहुत दर्द भी छलकता है।
तेरी हँसी ऐसी है, जैसे पूरा चाँद खिला हो,
पर कभी लगता है, वो चाँद किसी अंधेरे में खोया हो।

यार, बस यही चाहता हूँ, तेरी वो हँसी फिर से वापस आ जाए,
तेरी सारी उदासी सीधा मुझसे टकराए।
पता नहीं ये कैसा प्यार है, कैसी चाहत है मेरी,
जो अब दिल में बसकर, मुझे ही सताती है तेरी।"

(राज पेन साइड में रखता है। उसकी आँखें थोड़ी नम हैं। उसे अब क्लियरली समझ आ रहा है कि मम्मी के लिए उसकी फीलिंग्स अब एक नए और कॉम्प्लिकेटेड लेवल पर पहुँच गई हैं। ये प्यार है, ये अट्रैक्शन है, ये एक अजीब सा जुनून है जो उसे अंदर ही अंदर परेशान कर रहा है।
वो जानता था कि समाज ये सब कभी accept नहीं करेगा, समाज छोड़ो उसकी माँ इसे कभी भी accept नहीं करेगी(अपने सपनों में भी नहीं)

उसको लग रहा था ये तो सारासार गलत है, पर उसके दिल में उसकी बात सुन ही नहीं रही थी।

आज 'एहसास की पहली दस्तक(First Feeling)' ने उसकी लाइफ में एक ऐसे तूफ़ान की शुरुआत कर दी है, जिसे वो चाहकर भी नहीं रोक पाएगा।)
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दिमाग में चल रही उथल-पुथल: 'पागलपन की हद'

राज अपने बेड पर पड़ा है, पर नींद का तो नामोनिशान नहीं। उसकी आँखों के सामने बस मम्मी का चेहरा बार-बार आ रहा है — वो आँखें, वो हल्की सी मुस्कान, और फिर उनके हाथ का वो टच, जिसने उसके अंदर एक अजीब सी करंट दौड़ा दी थी। उसके दिमाग में एक बवंडर मचा हुआ है, जो उसे बुरी तरह परेशान कर रहा है।

वो एक बेटा है। साक्षी उसकी माँ है, जिन्होंने उसे पैदा किया, पाला-पोसा। यार, ये रिश्ता तो सबसे पवित्र होता है, इसमें कोई डाउट ही नहीं। फिर क्यों उसके अंदर ऐसी फीलिंग्स आ रही हैं, जो इस रिश्ते पर सवाल खड़े कर रही हैं? उसे खुद पर गुस्सा आ रहा है, बहुत शर्मिंदगी भी हो रही है। ये सोचना भी कितना भयानक है! पर उसका दिल है कि कुछ समझ ही नहीं रहा। मम्मी की हर अदा, हर बात उसे एक अलग ही नज़र से दिख रही है।

राज (मन में): ये हो क्या रहा है मुझे? मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ? वो मेरी माँ है! ये गलत है, बहुत गलत है। पर फिर क्यों, जब मैं उन्हें देखता हूँ, तो मेरा दिल ऐसे धड़कने लगता है? क्यों उनकी हर बात मुझे इतनी गहराई तक छू जाती है? क्या ये सिर्फ़ प्यार है, या कुछ ऐसा जिसे मैं नाम भी नहीं दे सकता?

उसे पता है कि सोसाइटी ये सब कभी एक्सेप्ट नहीं करेगी। ये पाप है, गुनाह है। पर अपने अंदर उठ रही इस बेचैनी को वो कैसे रोके? उसने अपनी आँखें जोर से बंद कर लीं, जैसे इन ख्यालों को बाहर निकाल सके। पर मम्मी का चेहरा उसकी पलकों के पीछे भी मुस्कुरा रहा था, कभी उदास दिख रहा था, और फिर उसे अपनी ओर खींच रहा था। राज की साँसें तेज़ हो गईं। उसे लगा जैसे वो एक ऐसे जाल में फंसता जा रहा है, जहाँ से निकलना नामुमकिन है। ये एक अंधेरी सुरंग की शुरुआत थी, और उसे नहीं पता था कि इसका अंत कहाँ होगा।

राज (मन में): अगर ये फीलिंग्स किसी और लड़की के लिए होतीं, तो यार मैं सीधा जाके बोल देता। पर ये तो... ये तो मेरी माँ हैं। मैं उनसे कैसे कह सकता हूँ कि मुझे उनसे प्यार है? ये तो पागलपन है! मुझे खुद पर शर्म आ रही थी, पर साथ ही एक अजीब सी बेचैनी भी थी, जैसे ये फीलिंग्स कंट्रोल ही नहीं हो रही हों। क्या मैं अकेला हूँ जो ऐसा महसूस कर रहा हूँ? या ये बस मेरे दिमाग का फितूर है? यार, ये सब क्या है!

(वो उठकर बैठ जाता है और खिड़की से बाहर अंधेरे को देखता है। दिल्ली की सर्द रात और उसकी अंदरूनी आग उसे झुलसा रही थी। उसे पता था कि ये जर्नी अब बस शुरू हुई है, और ये बहुत मुश्किल होने वाली है। एक गहरी साँस लेकर, वो फिर से डायरी उठाता है, इस बार कुछ ऐसा लिखने की कोशिश करता है जो उसके दिल का बोझ थोड़ा हल्का कर सके।)
 
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Arpan003

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दिल्ली में जनवरी 2012 की कड़कड़ाती ठंड वाली सुबह थी। अभी सूरज की किरणें ठीक से खिड़की में घुसी भी नहीं थीं कि राज के घर में चहल-पहल शुरू हो गई थी।

रोज की तरह, मम्मी साक्षी की मस्त वाली हँसी पूरे घर में ऐसे गूँज रही थी जैसे कोई नदी बह रही हो, और राज का दिल एक अनजान खुशी से भर रहा था।
राज अपने बिस्तर पर करवट बदल रहा था। उसकी आँखें बंद थीं, पर कानों में माँ की हँसी घुल रही थी। ये सिर्फ़ माँ की हँसी नहीं थी, यह उसके लिए सुबह की पहली किरण, दिन की पहली धड़कन थी। अपनी माँ की हर अदा, हर बात में अपनी दुनिया देखता था।

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### Scene 1: राज का कमरा - सुबह का धुंधलका
(राज के कमरे में हल्की रोशनी थी। किचन से साक्षी की हँसी की आवाज़ साफ आ रही थी।)

राज (मन में): मम्मी की हँसी... हर सुबह की पहली धुन।
(नेहा आधी-नींद में, आँखें मलते हुए कमरे में आती है।)
नेहा: राज, उठ भी जा यार! कुंभकर्ण कहीं का।
राज (करवट बदलते हुए, धीमी आवाज़ में): कुछ देर और सोने दे मुझे तू छिपकली।
नेहा: उठ जा बंदर। मम्मी नाश्ता बना रही है। मुझे भूख लग रही है। और तुझे याद है ना, आज मेरा केमिस्ट्री का टेस्ट है।
राज (मुस्कुराते हुए, आँखें बंद): फोड़ देगी तू। वैसे भी तेरा केमिस्ट्री फेवरेट सब्जेक्ट है।

(नेहा कमरे से निकल जाती है। राज आँखें बंद करके भी साक्षी की आवाज़ और किचन की हलचल को महसूस करता रहता है। उसे अंदर ही अंदर एक अजीब सा सुकून और एक्साइटमेंट फील हो रही थी।)



साक्षी की दुनिया और उसका अनकहा दर्द

खिड़की से आती सूरज की पहली किरण से पहले ही साक्षी की हँसी पूरे घर में फैल गई थी। राज अपने बिस्तर पर करवट बदलता हुआ मुस्कुराया। "माँ की यह हँसी... मेरे दिन की पहली धड़कन।"
साक्षी, जो 42 की होकर भी किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी, अपने पति राजदीप को खोने का दर्द आज भी दिल में दबाए हुए थी। चेहरे पर थोड़ी थकान दिखती थी, पर उसकी स्माइल इतनी प्यारी थी कि राज उसमें खो जाता था। वो सिर्फ़ उसकी माँ नहीं थी, वो उसकी पूरी दुनिया थी, उसका सुकून थी।

राज: (अपने मन में) काश... यह आवाज़ हमेशा ऐसे ही गूँजती रहे।

राज उठा, और धीरे-धीरे किचन की ओर बढ़ा। दरवाज़े पर खड़ा होकर वह साक्षी को देखता रहा। उसकी ढीली चोटी, मासूम आँखें, चाय बनाते हुए उसकी नाजुक, नंगी कमर, भारी गोल-गोल गांड।

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Green साड़ी में वो बेहद खूबसूरत & कामूक लग रही थी। राज का दिल एक अनजान धुन पर बजने लगा। ये धुन इतनी धीमी थी, इतनी बारीक थी कि उसे खुद भी नहीं पता था कि यह क्या थी। वह बस देखता रहा, और उसकी नज़रें साक्षी के हर हाव-भाव को अपने अंदर समेटती जा रही थीं।

जब साक्षी किचन में चाय बनाने लगी, तो राज उसके पीछे-पीछे चला गया। वो उसकी हर हरकत को गौर से देख रहा था। कैसे उसकी उँगलियाँ कप पकड़ती हैं, कैसे उसकी पलकें झपकती हैं, कैसे वो साँस लेती है... राज के अंदर एक अजीब सी हलचल हो रही थी। उसकी माँ की हर अदा, हर बात उसके दिल के तार छेड़ जाती थी।

आज राज को कुछ ऐसा महसूस हुआ जो उसने पहले कभी फील नहीं किया था।

साक्षी: (मुड़े बिना) राज, इतनी देर से क्या देख रहे हो? आओ, नाश्ता तैयार है।
राज: (हड़बड़ाकर) नहीं मम्मी... बस, आपको देख रहा था। आज आप... (रुक गया)
साक्षी ने पलटकर देखा। राज की आँखों में वह गहराई थी जिसे वह समझ नहीं पाई।
साक्षी (हल्की मुस्कान): देर हो गई है मुझे, इसलिए शायद तुम्हें अजीब लग रही हूँ।
राज: (उसका हाथ थामकर) अजीब नहीं... आप बेहद सुंदर लग रही हैं।

एक अजीब सी चुप्पी छा गई। साक्षी ने हाथ छुड़ाया, पर राज के दिल में जो फीलिंग शुरू हुई थी, वो अब और गहरी हो गई थी। राज के दिल में जो बीज पड़ा, वह अंकुरित हो चुका था।

साक्षी ने चाय का कप राज की तरफ बढ़ाया। राज ने कप लिया, लेकिन उसकी नज़रें अभी भी साक्षी के चेहरे पर टिकी थीं। उसकी गहरी आँखों में एक उदासी थी, जिसे राज हमेशा नोटिस करता था।

साक्षी (बिना मुड़े): "राज, इतनी देर तक क्या देख रहे हो? आओ बेटा, नाश्ता तैयार है।"

लेकिन उसकी नज़रें साक्षी से हट नहीं रही थीं। आज उसे कुछ अलग महसूस हो रहा था। यह सिर्फ़ माँ-बेटे का प्यार नहीं था, कुछ और था, जो उसके दिल के दरवाज़े खटखटा रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय से राज के अंदर कुछ बदल रहा था. साक्षी की हर बात, हर मुस्कान, हर अदा उसे पहले से ज़्यादा छूने लगी थी. राज जैसे किसी सपने से जागा। वह अंदर आया और टेबल पर बैठ गया। साक्षी ने उसके लिए परांठे और चाय परोसी। राज ने चाय का कप उठाया, लेकिन उसकी नज़रें फिर से साक्षी पर टिक गईं।

राज: "मम्मी आप कितनी खूबसूरत हो।"
साक्षी(मुस्कुरा ke): "तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?"

राज अपनी डायरी में अक्सर ऐसे ही शब्द लिखा करता था. ये शब्द सिर्फ एक बेटे के अपनी माँ के प्रति प्रेम नहीं थे, बल्कि ये एक ऐसे प्यार की शुरुआत थी, जिसे राज खुद भी समझ नहीं पा रहा था.

ये वो प्यार था, जो उम्र और रिश्ते की बेड़ियों को तोड़ता हुआ, उसके दिल में पनप रहा था.

राज (साक्षी का हाथ थामकर, आँखों में देखते हुए): "मम्मी, आप अकेले कितना काम करती हो? सुबह से स्कूल, फिर घर के काम... खुद का ख़्याल भी नहीं रखती।"
साक्षी(मुस्कुराकर राज के बालों पर हाथ फेरा): "नहीं बेटा, तुम हो तो मुझे क्या थकान, तुम दोनों ही तो मेरी दुनिया हो।" साक्षी की यह बात राज के दिल में उतर गई।

राज ने चाय की घूँट भरी। उसे लगा जैसे साक्षी की हर बात, हर स्पर्श उसके दिल में एक नई धड़कन जगा रहा था। यह सिर्फ़ मम्मी-बेटे का रिश्ता नहीं था, यह कुछ और था, एक ऐसा अज्ञात खिंचाव जो उसे साक्षी की ओर खींच रहा था।

वो उसकी हर अदा, हर बात में अपनी दुनिया देखता था। उसकी आँखें उस दर्द को पहचानती थीं जो साक्षी के अंदर, उसके पति, राजदीप की यादों में छिपा था। राज को अपने पापा की याद आई।
उसकी मम्मी की स्माइल, उसके चेहरे की मासूमियत, उसकी आँखों की गहराई... सब कुछ उसे अपनी तरफ़ खींच रहा था। ये एक ऐसा एहसास था जिससे वो अब तक अंजान था।

उसे फील होता है कि उसकी माँ ने खुद को उन लोगों के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया था। उसकी आँखों में वो पुरानी उदासी साफ दिखती थी, जो उसके पापा, राजदीप की मौत के बाद से हमेशा रहती थी। वो तो अपने लिए जीना ही भूल गई थी।

राज ने हमेशा चाहा था कि वह अपनी माँ के इस दर्द को मिटा सके, पर आज उसे अपनी भावनाएँ कुछ और ही लगने लगी थीं – यह सिर्फ़ बेटे का प्यार नहीं था, कुछ अधिक था, कुछ गहरा। उसके भीतर एक हलचल पैदा हो गई थी, एक ऐसा एहसास जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था।)

आज राज को लगा कि उसका प्यार सिर्फ़ इमोशनल नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा गहरा है।



### Scene 2: किचन - सुबह का नाश्ता

(साक्षी किचन में पराठे पलट रही है। नेहा एंट्री मारती है।)

साक्षी: राज, नेहा... नाश्ता तैयार है।
नेहा: मम्मी, बस अभी आई। यार, फिर से आलू के पराठे! सीरियसली मम्मी, आप दुनिया की बेस्ट शेफ हो।
साक्षी (मुस्कुराते हुए): आजा मेरी ड्रामा क्वीन। तेरे इस टेस्ट के लिए फुल एनर्जी चाहिए ना?

(राज दरवाज़े पर खड़ा, साक्षी को टकटकी लगाए देख रहा था। उसकी आँखें साक्षी की चाल पर थीं, उसकी Green Color की साड़ी और उसके पूरे स्टाइल को स्कैन कर रही थीं।)
राज (मन में): उनकी चाल... इतनी sexy है। और ये Green Color की साड़ी... उन पर तो कहर ढा रही है।

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साक्षी (बिना मुड़े, महसूस करते हुए): "राज, इतनी सुबह-सुबह कौन सा फैशन शो चल रहा है? आजा, पराठे ठंडे हो रहे हैं।"
राज (टेबल पर बैठते हुए, नज़रें अभी भी साक्षी पर): अरे नहीं मम्मी, बस ऐसे ही खड़ा था। आप इतनी जल्दी उठ गईं! आज तो संडे था ना, थोड़ी और नींद पूरी कर लेतीं।
साक्षी (हल्की सी चुटकी लेते हुए): बेटा, आज मंडे है! और फिर, अगर मैं देर तक सोऊंगी तो तुझे नाश्ता कौन देगा, Mr. Late-Night Guitarist?

राज (शरमाते हुए): "ओह सॉरी मम्मी! मुझे तो यार, दिन का भी होश नहीं रहता। पर सच कहूँ... आप आज सच में बहुत खूबसूरत लग रही हो।" (थाली सरकाते हुए उसकी उँगलियाँ साक्षी के हाथ से छू जाती हैं।)
राज(मन में): "यार, ऐसा क्यों लगा जैसे शॉक लग गया हो?"

साक्षी (प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए): अच्छा, बस-बस। आ, अब ज़्यादा मक्खन मत लगा। नाश्ता ठंडा हो जाएगा। और सुन, तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है? गिटार ठीक है, पर थोड़ा किताबें भी देख लिया कर। कॉलेज में आर्ट्स ली है, इसका मतलब ये नहीं कि फ्री का पास मिल जाएगा।

राज (चाय का कप उठाते हुए, उसकी उँगलियों का स्पर्श महसूस करता हुआ): अरे मम्मी, कॉलेज में क्या ही पढ़ाई होती है आजकल। बस 'लाइफ एक्सपीरियंसेज' मिल रहे हैं।
साक्षी (आँखें सिकोड़कर): अच्छा, तो ये लाइफ एक्सपीरियंस ही तुझे नंबर दिलाएंगे क्या? देखना, फिर नेहा को बताऊंगी कि तू बस रील्स पर टाइम पास करता रहता है।
राज (नकली गुस्सा दिखाते हुए): ओहो मम्मी! आप भी ना, हर बात में नेहा को क्यों घसीट लेती हो? वो तो आपकी प्राइवेट जासूस है, दिन भर मेरे पीछे पड़ी रहती है।

नेहा (राज को चिढ़ाते हुए): हाँ-हाँ, मैं ही जासूस हूँ। और ये बंदर तो बस गिटार बजाने और कविताएँ लिखने में लगा रहता है मम्मी। पता नहीं क्या हो गया है इसे, आजकल तो ख़यालों में खोया रहता है!
साक्षी (राज की ओर देखते हुए): "शौक पूरा करने दो बेटा... बस पढ़ाई से पीछा न छुड़ाए। और तू नेहा, अपने केमिस्ट्री टेस्ट की तैयारी कर ले।"
राज (नेहा को घूरते हुए): तू चुप कर, छिपकली! हर बात में टांग अड़ाना ज़रूरी है क्या? वैसे भी तू तो सिर्फ साइंस की किताबी-कीड़ा है।
नेहा (तुरंत): और तू? तू तो बस अपनी गिटार की धुन में खोया रहता है, और मम्मी को घूरता रहता है। बड़ा आया फोटोग्राफर कहीं का!
राज (भौंहें चढ़ाकर): ओए, मेरी पसंद की बेइज़्ज़ती मत कर! तेरी तो आँखों पर चश्मा चढ़ा रहता है, तुझे क्या पता असली ब्यूटी क्या होती है!
नेहा (नाक सिकोड़ते हुए): मेरी आँखों पर चश्मा है, पर तेरी अक्ल पर तो ताला लगा है। मम्मी, देखो ना इसे, ये रोज़ मुझे छिपकली बोलता है!

साक्षी (हंसते हुए): अरे-अरे, सुबह-सुबह इतनी महाभारत क्यों? नेहा सही कह रही है, अब चुपचाप पराठा खाओ और आज अपने कमरे की सफ़ाई भी कर लेना, नहीं तो स्कूल और कॉलेज के लिए देर हो जाएगी। तुम दोनों हो तो मेरे ही बच्चे, एक कलाकार और एक Scientist।
राज (मुँह बनाते हुए): हे भगवान! ये सजा क्यों मम्मी?
साक्षी (हंसते हुए): क्योंकि मैं तेरी माँ हूँ, और माँ की बात माननी पड़ती है, Mr. Genius! अब जल्दी करो, मुझे भी स्कूल जाना है।
राज (पराठा खाते हुए, फिर साक्षी की ओर देखता है): मम्मी, आप इतनी मेहनत करती हो... स्कूल, घर... कभी थकती नहीं क्या? थोड़ा खुद के लिए भी टाइम निकालो।


राज की अंदर खिचड़ी

(राज का मन अजीब-सी हलचल में था। उसे अपनी मम्मी की हर बात, हर अदा, हर स्पर्श कुछ अलग ही लगने लगा था। वो सिर्फ़ माँ नहीं थी उसके लिए, वो अब एक ऐसी पहेली थी जिसे वो सुलझाना चाहता था।)

राज (मन में): यार, क्या हो रहा है मुझे? मम्मी को देख कर जो फीलिंग आती है ना, वो नॉर्मल नहीं है। ये क्या है? प्यार तो है, पर कैसा वाला प्यार? ये तो कुछ और ही है, कुछ गहरा, कुछ अटपटा। ये तो वही वाली फीलिंग है जो कविताओं में होती है, पर ये तो मेरी अपनी माँ हैं। दिल में एक अजीब सी उठापटक चल रही थी। मुझे पता है ये गलत है, पर मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। उनकी हर बात, उनकी हर मुस्कान... सब कुछ मुझे अपनी तरफ़ खींच रहा है। काश मैं इस उलझन को समझ पाता। क्या मैं पागल हो रहा हूँ?




### Scene 3: घर का दरवाज़ा - साक्षी स्कूल के लिए निकलीं

जब साक्षी स्कूल जाने के लिए तैयार होकर, अपना पर्स लेते हुए दरवाज़े की ओर बढ़ती है, तो राज ने उसे दरवाज़े तक छोड़ा।

साक्षी(अपना पर्स पकड़कर दरवाज़े की तरफ बढ़ती है, प्यार से राज के बालों पर हाथ फेरा): ठीक है बेटा, मैं चलती हूँ। अपना ध्यान रखना और नेहा का भी।
राज (दरवाज़े पर खड़ा, साक्षी का हाथ पकड़ता हुआ): आप भी, माँ।
(राज अपनी उँगलियों पर हल्की सी पकड़ बनाए हुए है। साक्षी थोड़ी देर रुककर, राज का हाथ थामे हुए देखती है।)

साक्षी: क्या हुआ, राज?
राज (नज़रें साक्षी के चेहरे पर, हल्की सी घबराहट): कुछ नहीं माँ। बस... अपना ख्याल रखना।
साक्षी (हल्की सी मुस्कान के साथ): रखूँगी। बाय।

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(राज के टच में एक अजीब सी गर्माहट थी, जो साक्षी को फील हुई, पर उसने उसे बेटे के प्यार से ज़्यादा कुछ नहीं समझा। साक्षी ने हल्की सी मुस्कान दी और निकल गई। राज वहीं दरवाज़े पर खड़ा उसे तब तक देखता रहा जब तक वो गली के मोड़ पर मुड़ नहीं जाती।)

सूरज की रोशनी अब तेज़ हो गई थी, पर राज के भीतर एक अजीब सी उलझन थी, एक अव्यक्त चाहत जो उसे अंदर ही अंदर जला रही थी। यह क्या था? यह कैसा प्यार था? उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी ये फीलिंग्स उसे किस ओर ले जा रही हैं।

वो अपनी माँ से बहुत प्यार करता था, पर ये प्यार अब एक ऐसे मोड़ पर आ गया था जहाँ से वापस जाना मुश्किल लग रहा था। ये सिर्फ़ माँ-बेटे का पवित्र रिश्ता नहीं था, ये कुछ और था, एक अनजाना, अनकहा एहसास... ये पहली दस्तक थी एक ऐसे Pyar की, जो शायद Society me एक्सेप्टेबल न हो।


### Scene 4: किचन - शाम (साक्षी के लौटने के बाद)

(शाम हो चुकी थी। साक्षी स्कूल से लौट चुकी थी, और थकान उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी। वो किचन में जाकर अपने लिए पानी का ग्लास लेती है। राज किचन के दरवाज़े पर खड़ा उसे देख रहा है।)

राज: माँ, थक गई होंगी आप। मैं चाय बना दूँ आपके लिए?
साक्षी (मुस्कुराने की कोशिश करती हुई): हाँ बेटा, अगर बना दे तो अच्छा रहेगा। आज थोड़ी ज़्यादा ही थकान हो गई है।

(राज तुरंत चाय बनाने लगता है। साक्षी किचन में ही एक स्टूल पर बैठ जाती है, उसकी आँखें आधी बंद हैं। राज उसे चुपचाप देखता रहता है। उसके चेहरे पर दिख रही थकान और उदासी राज के दिल को छू जाती है। उसे याद आता है कैसे उसके पापा, राजदीप, भी साक्षी के थकने पर उसकी हेल्प करते थे। एक अजीब सी कसक उठती है राज के भीतर।)

राज (चाय बनाते हुए): मम्मी, आपने दिन में कुछ खाया था ठीक से?
साक्षी (आँखें खोले बिना): हाँ बेटा, स्कूल में बच्चों के साथ थोड़ा-बहुत खा लिया था। आजकल बस भूख ही नहीं लगती।

(साक्षी की आवाज़ में एक अजीब सी बेफ़िक्री थी। राज को ये फील होता है कि उसके पापा के जाने के बाद से साक्षी ने खुद पर ध्यान देना छोड़ दिया है। वो उसकी इस हालत को बदलना चाहता है, उसे फिर से हँसते-खिलखिलाते देखना चाहता है।)

राज (मन में): वो मेरी माँ है... वो मेरी खुशी है। मैं उन्हें ऐसे उदास नहीं देख सकता। मुझे कुछ करना ही होगा।

(राज चाय साक्षी को देता है। साक्षी चाय का कप लेकर हल्की सी मुस्कान देती है।)

साक्षी: थैंक्स बेटा।

(राज साक्षी के पास आकर बैठ जाता है, उसके गिटार उसके हाथ में है। आज उसने एक उदास, पर मधुर धुन छेड़ी। साक्षी आँखें बंद करके धुन सुनती है। राज साक्षी के चेहरे पर आती हल्की मुस्कान को देखता है। उसे लगता है कि उसका संगीत कहीं न कहीं साक्षी के भीतर उस खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा है। यह एक छोटा सा पल था, पर राज के लिए बहुत मायने रखता था।), राज उसे देखता रहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी लालसा थी, एक अव्यक्त चाहत।

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राज (मन में): आपकी मुस्कान ही मेरी दुनिया है, माँ। मुझे नहीं पता ये क्या है, पर मैं आपको फिर से हँसते हुए देखना चाहता हूँ।

वह अपनी डायरी में अक्सर साक्षी के लिए लिखता था, पर आज उसके पास शब्द नहीं थे। उसके अंदर का तूफ़ान इतना बड़ा था कि उसे बयान कर पाना मुश्किल था।

राज (मन में): ये क्या हो रहा है मुझे? माँ की हँसी... उनकी सादगी... उनकी आँखों में वो उदासी... सब कुछ मुझे अपनी ओर खींच रहा है। ये सिर्फ़ एक बेटे का प्यार नहीं है, मैं जानता हूँ। पर फिर ये क्या है?
(राज अपनी आँखें बंद कर लेता है। उसके दिमाग में साक्षी का चेहरा घूम रहा है। उसकी मुस्कान, उसके बाल, उसके हाथों का स्पर्श... उसे याद आता है सुबह जब उसने साक्षी का हाथ पकड़ा था। वह गर्माहट अभी भी उसकी उँगलियों में महसूस हो रही थी।)

राज (मन में): (तेज़ साँस लेते हुए) नहीं... ये ग़लत है। वो मेरी माँ हैं। पर मेरा दिल... ये क्यों नहीं समझता? क्यों हर पल उन्हीं के बारे में सोचता रहता है?
(वह अपनी डायरी खोलता है और कुछ देर खाली पन्ने को देखता रहता है। फिर धीरे-धीरे पेन उठाता है और कुछ पंक्तियाँ लिखता है, पर उन्हें तुरंत काट देता है। उसे समझ नहीं आ रहा कि अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करे। यह एक ऐसा द्वंद्व था जो उसे अंदर ही अंदर खा रहा था।)

(राज साक्षी के पास आकर बैठ जाता है, उसका गिटार उसके हाथ में है। वो धीमी, उदास धुन बजाने लगता है। साक्षी आँखें बंद करके धुन सुनती है। राज साक्षी के चेहरे पर आती हल्की मुस्कान को देखता है। उसे लगता है कि उसका म्यूजिक कहीं न कहीं साक्षी के अंदर के खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा है। ये एक छोटा सा मोमेंट था, पर राज के लिए बहुत मायने रखता था।)

राज diary me likhta hai: आपकी मुस्कान ही मेरी दुनिया है, मम्मी। मुझे नहीं पता ये क्या है, पर मैं आपको फिर से हँसते हुए देखना चाहता हूँ।

(नेहा कमरे से आती है, अपनी किताब हाथ में लिए हुए। राज को गिटार बजाते देख वह रुक जाती है।)

नेहा: ओह हो! ये कौन सा दर्द-ए-दिल गाना चल रहा है भाई साहब? आजकल बड़ा गहरे ख्यालों में डूबे रहते हैं।

राज (गिटार रोककर, नेहा को घूरते हुए): तुझे हर बात में कमेंट करना ज़रूरी है क्या, चिपकली? ये माँ के लिए है।

नेहा (राज की तरफ आँख मारते हुए): हाँ-हाँ, मुझे पता है माँ के लिए है। आजकल तो तेरा सारा फोकस मम्मी पर ही है। मेरा क्या? मुझे तो कोई चाय भी नहीं पूछता।

साक्षी (आँखें खोलकर, हल्की हँसती हुई): अरे-अरे, क्यों लड़ रहे हो? नेहा, तू भी आ बैठ। राज, अपनी बहन को भी तो पूछ ले चाय के लिए।

राज (नाक सिकोड़ते हुए): ये तो खुद बना सकती है। वैसे भी, पढ़ाई करती नहीं, बस चाय-चाय करती रहती है।

नेहा (राज की बांह पर हल्का मारकर): ओए, मैं पढ़ाई करती हूँ! और तू? तू तो बस गिटार बजाकर मम्मी को इंप्रेस करता रहता है। मुझे तो लगता है तूने आर्ट्स इसलिए ली है ताकि पढ़ना न पड़े!

राज (गुस्से से): तू क्या जानती है कला की ताकत? मेरी तो कविताएं और धुनें ऐसी होती हैं कि पत्थर भी पिघल जाएँ!

नेहा (हंसते हुए): हाँ-हाँ, बस पत्थर ही पिघलते होंगे। मुझे तो बस नींद आती है तेरी धुन सुनकर।

साक्षी (चाय का कप रखते हुए, प्यार से): बस करो तुम दोनों। दिन भर की लड़ाई खत्म नहीं होती क्या तुम्हारी? नेहा, जा बेटा, मैं तेरे लिए भी चाय बना देती हूँ।

नेहा (मुस्कुराकर राज को जीभ दिखाते हुए): थैंक यू, मम्मी! देखा, मम्मी को मुझसे कितना प्यार है।

राज (मन में): ये नेहा भी ना... सब कुछ मज़ाक में उड़ा देती है। पर पता नहीं क्यों, आज माँ की ये उदासी मुझसे देखी नहीं जा रही। काश मैं कुछ ऐसा कर पाऊँ जिससे वो फिर से पहले जैसी हो जाएँ। वो खिलखिलाती हँसी... वही तो मेरी सबसे बड़ी ताकत है।



### Scene 5: राज का कमरा - रात

(रात गहरा चुकी है। घर में सब सो चुके हैं। राज अपने कमरे में लैंप जलाकर बैठा है, उसकी डायरी खुली पड़ी है। उसका दिमाग आज दिनभर की बातों में उलझा हुआ है—मम्मी की थकावट, उनके चेहरे की उदासी, और फिर उनके होंठों पर आई वो हल्की सी स्माइल। राज को अब पक्के से समझ आ रहा था कि वो मम्मी की लाइफ में फिर से खुशियाँ भरना चाहता है, पर उसकी फीलिंग्स अब सिर्फ़ बेटा-माँ वाले रिश्ते से कहीं आगे निकल चुकी थीं।)

राज (डायरी में लिखता है):
"तेरी आँखों में ना, मुझे गहरा समंदर दिखता है,
शांत सा, पर कभी-कभी उसमें बहुत दर्द भी छलकता है।
तेरी हँसी ऐसी है, जैसे पूरा चाँद खिला हो,
पर कभी लगता है, वो चाँद किसी अंधेरे में खोया हो।

यार, बस यही चाहता हूँ, तेरी वो हँसी फिर से वापस आ जाए,
तेरी सारी उदासी सीधा मुझसे टकराए।
पता नहीं ये कैसा प्यार है, कैसी चाहत है मेरी,
जो अब दिल में बसकर, मुझे ही सताती है तेरी।"

(राज पेन साइड में रखता है। उसकी आँखें थोड़ी नम हैं। उसे अब क्लियरली समझ आ रहा है कि मम्मी के लिए उसकी फीलिंग्स अब एक नए और कॉम्प्लिकेटेड लेवल पर पहुँच गई हैं। ये प्यार है, ये अट्रैक्शन है, ये एक अजीब सा जुनून है जो उसे अंदर ही अंदर परेशान कर रहा है।
वो जानता था कि समाज ये सब कभी accept नहीं करेगा, समाज छोड़ो उसकी माँ इसे कभी भी accept नहीं करेगी(अपने सपनों में भी नहीं)

उसको लग रहा था ये तो सारासार गलत है, पर उसके दिल में उसकी बात सुन ही नहीं रही थी।

आज 'एहसास की पहली दस्तक(First Feeling)' ने उसकी लाइफ में एक ऐसे तूफ़ान की शुरुआत कर दी है, जिसे वो चाहकर भी नहीं रोक पाएगा।)
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दिमाग में चल रही उथल-पुथल: 'पागलपन की हद'

राज अपने बेड पर पड़ा है, पर नींद का तो नामोनिशान नहीं। उसकी आँखों के सामने बस मम्मी का चेहरा बार-बार आ रहा है — वो आँखें, वो हल्की सी मुस्कान, और फिर उनके हाथ का वो टच, जिसने उसके अंदर एक अजीब सी करंट दौड़ा दी थी। उसके दिमाग में एक बवंडर मचा हुआ है, जो उसे बुरी तरह परेशान कर रहा है।

वो एक बेटा है। साक्षी उसकी माँ है, जिन्होंने उसे पैदा किया, पाला-पोसा। यार, ये रिश्ता तो सबसे पवित्र होता है, इसमें कोई डाउट ही नहीं। फिर क्यों उसके अंदर ऐसी फीलिंग्स आ रही हैं, जो इस रिश्ते पर सवाल खड़े कर रही हैं? उसे खुद पर गुस्सा आ रहा है, बहुत शर्मिंदगी भी हो रही है। ये सोचना भी कितना भयानक है! पर उसका दिल है कि कुछ समझ ही नहीं रहा। मम्मी की हर अदा, हर बात उसे एक अलग ही नज़र से दिख रही है।

राज (मन में): ये हो क्या रहा है मुझे? मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ? वो मेरी माँ है! ये गलत है, बहुत गलत है। पर फिर क्यों, जब मैं उन्हें देखता हूँ, तो मेरा दिल ऐसे धड़कने लगता है? क्यों उनकी हर बात मुझे इतनी गहराई तक छू जाती है? क्या ये सिर्फ़ प्यार है, या कुछ ऐसा जिसे मैं नाम भी नहीं दे सकता?

उसे पता है कि सोसाइटी ये सब कभी एक्सेप्ट नहीं करेगी। ये पाप है, गुनाह है। पर अपने अंदर उठ रही इस बेचैनी को वो कैसे रोके? उसने अपनी आँखें जोर से बंद कर लीं, जैसे इन ख्यालों को बाहर निकाल सके। पर मम्मी का चेहरा उसकी पलकों के पीछे भी मुस्कुरा रहा था, कभी उदास दिख रहा था, और फिर उसे अपनी ओर खींच रहा था। राज की साँसें तेज़ हो गईं। उसे लगा जैसे वो एक ऐसे जाल में फंसता जा रहा है, जहाँ से निकलना नामुमकिन है। ये एक अंधेरी सुरंग की शुरुआत थी, और उसे नहीं पता था कि इसका अंत कहाँ होगा।

राज (मन में): अगर ये फीलिंग्स किसी और लड़की के लिए होतीं, तो यार मैं सीधा जाके बोल देता। पर ये तो... ये तो मेरी माँ हैं। मैं उनसे कैसे कह सकता हूँ कि मुझे उनसे प्यार है? ये तो पागलपन है! मुझे खुद पर शर्म आ रही थी, पर साथ ही एक अजीब सी बेचैनी भी थी, जैसे ये फीलिंग्स कंट्रोल ही नहीं हो रही हों। क्या मैं अकेला हूँ जो ऐसा महसूस कर रहा हूँ? या ये बस मेरे दिमाग का फितूर है? यार, ये सब क्या है!

(वो उठकर बैठ जाता है और खिड़की से बाहर अंधेरे को देखता है। दिल्ली की सर्द रात और उसकी अंदरूनी आग उसे झुलसा रही थी। उसे पता था कि ये जर्नी अब बस शुरू हुई है, और ये बहुत मुश्किल होने वाली है। एक गहरी साँस लेकर, वो फिर से डायरी उठाता है, इस बार कुछ ऐसा लिखने की कोशिश करता है जो उसके दिल का बोझ थोड़ा हल्का कर सके।)
Nice and sandar update bhai
 
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