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Neelaabh jahar ke karan hi nerla hai, aur megna ka dharm pita bhi,romanchak update.. nilabh ka janm kaise hua ye pata chal gaya ..kahani padhne me maja aa raha hai ..naye rahasy saamne aa rahe hai .
Wonderful update brother.#106.
“मायावन: एक रहस्यमय जंगल”
दोस्तों माया सभ्यता अमेरिका की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में गिनी जाती है, जिसके प्राप्त अवशेषों में कई देवताओं जैसे शि..व, ग..श और ना..रा.. आदि देवताओं की मूर्तियां प्रचुर मात्रा में पायी गयी हैं। भारतवर्ष से इतनी दूर आखिर कैसे हिंदू सभ्यता विकसित हुई? यह आज भी रहस्य बना हुआ है।
कुछ पुरातत्वविद् माया सभ्यता का सम्बन्ध दैत्यराज मयासुर से जोड़ते हैं। मयासुर, एक ऐसा दैत्य, जिसे उसके अद्भुत निर्माण कार्य के लिये देवताओं ने भी सराहा। तारका सुर के समय में ‘त्रिपुरा ’ नामक 3 भव्य नगरों का निर्माण, दैत्यराज वृषपर्वन के लिये बिंदु सरोवर के निकट अद्भुत सभा कक्ष का निर्माण, रामायण काल में रावण के लिये सोने की लंका का निर्माण एवं महाभारत काल में पांडवों के लिये, खांडवप्रस्थ के वन में अकल्पनीय इन्द्रप्रस्थ का निर्माण मयासुर की अद्भुत शिल्पकला की कहानी कहतें हैं।
रावण की पत्नि मंदोदरी का पिता मयासुर, वास्तुशिल्प और खगोल शास्त्र में प्रवीण था। खगोल शास्त्र के क्षेत्र में मयासुर ने सूर्य से विद्या सीखकर ‘सूर्य सिद्धान्तम’ की रचना की। आज भी हम ज्योतिष शास्त्र की गणनाएं सूर्य सिद्धान्तम के आधार पर ही करते हैं।
म..देव के इस परमज्ञानी शिष्य ने किस प्रकार की ये अद्भुत रचनाएं? क्या शि..व की पारलौकिक शक्तियां मयासुर के पास थीं ? तो दोस्तों तैयार हो जाइये, इस कथानक के अद्भुत संसार में डूब जाने के लिये, जहां का हर एक दृश्य आपको वस्मीभूत कर देगा। हिमालय की गुफाओं से माया सभ्यता तक, ग्रीस के ओलंपस पर्वत से अंटार्कटिका की बर्फ की चादर तले फैले, अविश्वसनीय और अद्वितीय कहानी को पढ़ने के लिये। जिसका नाम है- “मायावन- एक रहस्यमयी जंगल”
आज से 19000 वर्ष पहले जब अटलांटिस की सभ्यता को, ग्रीक देवता पोसाईडन ने समुद्र में विलीन कर दिया, तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन इसी सभ्यता के अवशेष फिर से पूरी पृथ्वी पर, अपनी विचित्र शक्तियां बिखेरना शुरु कर देंगे और इन्हीं शक्तियों को प्राप्त करने के लिये, ब्रह्मांड के कुछ शक्तिशाली जीव पृथ्वी पर आ जायेंगे।
ब्रह्मांड के निर्माण के समय ईश्वर ने अपनी कुछ अलौकिक शक्तियों को, पृथ्वी के अलग-अलग भागों में छिपा दिया।
उन्हें पता था कि जब पृथ्वी फिर से संकट में आयेगी, तो यही दिव्य शक्तियां मनुष्यों की रक्षा करेंगी। अब ईश्वर को तलाश थी कुछ ऐसे मनुष्यों की, जो बुद्धि, विवेक और अपने ज्ञान से उन अद्भुत शक्तियों का वरण करें और उन शक्तियों के माध्यम से पृथ्वी की रक्षा का भार उठायें। जी हां आज की भाषा में आप इन्हें सुपर हीरोज कह सकते हैं।
‘सुप्रीम’ नामक एक छोटे से जहाज से चले कुछ मनुष्य, दुर्घटना का शिकार होकर, अटलांटिस द्वीप के आखिरी अवशेष अराका द्वीप पर जा पहुंचे।
अराका द्वीप पर उनका सामना मायावन से हुआ। मायावन ईश्वर की विचित्र शक्तियों से निर्मित एक ऐसा जंगल था, जहां पर विचित्र पेड़-पौधे, अनोखे जीव और प्रकृति की अद्भुत शक्तियां, मुसीबत बनकर सभी मनुष्यों पर टूट पड़ीं।
धीरे-धीरे उन मनुष्यों ने सभी को चमत्कृत करते हुए उस रहस्यमयी जंगल को पार कर लिया और प्रवेश कर गये इस ब्रह्मांड के सबसे बड़े तिलिस्म में, जहां उनका सामना होना था- सप्ततत्व, 12 राशियों, ब्रह्मांड के अनोखे ग्रह और जीवों से।
फिर शुरु हुई एक अद्भुत प्रश्नमाला-
1) क्या वह साधारण मनुष्य तिलिस्म को तोड़ पाये?
2) क्या था माया सभ्यता के निर्माण का रहस्य?
3) क्या था रहस्य उस विचित्र ग्रेट ब्लू होल का, जो कैरेबियन सागर
में बेलिज शहर के पास स्थित था ?
4) गंगा की पहली बूंद से बनी गुरुत्व शक्ति, क्या गुरुत्वाकर्षण के
नियमों को नहीं मानती थी ?
5) क्या हिमालय में स्थित ‘वेदालय’ नामक विद्यालय में अद्भुत
शक्तियां छिपी हुईं थीं ?
6) क्या प्रकाश और ओऽम् की शक्ति से ही कैलाश पर्वत और
मानसरोवर का निर्माण हुआ था ?
7) क्या सुदूर ब्रह्मांड से आकर पृथ्वी पर गिरने वाली शक्ति, समय
को नियंत्रित कर भविष्य बदल सकती थी?
8) क्या थी उस पंचशूल की शक्तियां, जो गहरे सागर में स्थित स्वर्ण
महल में छिपा था ?
9) क्या था समुद्र की लहरों पर तैर रहे, अविश्वसनीय माया महल का
रहस्य?
तो दोस्तों देर किस बात की आइये शुरु करते हैं, ब्रह्मांड की अलौकिक शक्तियों के राज को खोलती, एक ऐसी कहानी, जो आपको कल्पनाओं के एक ऐसे अदभुत संसार में ले जाएगी, जहां का हर एक पात्र किसी सुपर हीरो की तरह आपके मस्तिष्क पर छा जायेगा। तो शुरु करते हैं मायावन- एक रहस्यमय जंगल
चैपटर-1
समुद्र मंथन (क्षीर सागर, सतयुग)
सागर में समुद्र मंथन का कार्य चल रहा था। मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया था और नागराज वासुकि को नेति की भांति प्रयोग में लाया गया था।
भगवान वि… स्वयं कछुए के रुप में मंदराचल पर्वत को अपने ऊपर उठाये थे। कछुए की पीठ एक लाख योजन चौड़ी थी।
दैत्यराज बलि के साथ सभी दैत्यों ने वासुकि को मुंह की तरफ से पकड़ रखा था और देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं ने वासुकि को पूंछ की ओर से पकड़ रखा था।
इतने विशालकाय क्षीर सागर के मंथन से एक भयानक कोलाहल उत्पन्न हो रहा था।
अमृत निकलने की कल्पना कर सभी दैत्यों के मुख पर एक अजीब सा तेज दिखाई दे रहा था।
देवता भी उत्सुक निगाहों से समुद्र की ओर देख रहे थे। आसमान से ब्रह्म… भी सारा नजारा देख रहे थे।
तभी एक दैत्य को जोर से खांसी आयी और वह लड़खड़ा कर लहरों पर गिर गया। तुरंत एक दूसरे दैत्य ने उसकी जगह ले ली।
यह देखकर दैत्यराज बलि की निगाहें चारों ओर घूमी और नागराज वासुकि के चेहरे पर जाकर अटक गयी।
वासुकि के चेहरे पर थकावट का भाव था। थकने की वजह से वह जोर-जोर से साँस ले रहा था। जिसके कारण वासुकि के मुंह से जहर भरी हवा निकलकर, दैत्यों की तरफ के वातावरण में मिल रही थी।
उसी जहर भरी हवा के प्रवाह से वह दैत्य बेहोश हुआ था। एक पल में ही दैत्यराज बलि को यह समझ आ गया कि क्यों देवताओं ने वासुकि के पूंछ की तरफ का हिस्सा लिया है?
पर अब जगहों का स्थानांतरण संभव नहीं था, यह सोच बलि ने एक जोर की हुंकार भरकर दैत्यों का जोश बढ़ाया।
अपने राजा की हुंकार भरी आवाज सुन, दैत्य और उत्साह में आ गये। वह और ताकत लगा कर समुद्र मंथन करने लगे। दैत्यों की शक्ति को घटता देख देवताओं में भी उत्साह भर गया।
उन्हों ने भी जोर-जोर से वासुकि की पूंछ को खींचना शुरु कर दिया।
तभी समुद्र से एक जोर की गड़गड़ाहट सुनाई दी। देवता और दैत्य दोनों की लालच भरी निगाहें समुद्र पर टिक गयीं।
तभी समुद्र के नीचे से कोई नीले रंग का द्रव्य निकलकर, क्षीरसागर के श्वेत जल पर फैल गया। सभी दैत्य और देवता उसे अमृत समझ उसकी ओर भागे।
“ठहर जाओ मूर्खों !” वातावरण में दैत्यगुरु शुक्राचार्य की आवाज गूंजी- “पहले ध्यान से देख तो लो कि वह अमृत ही है या कुछ और है?”
लेकिन दैत्यराज बलि के सिवा किसी ने भी शुक्राचार्य की आवाज नहीं सुनी।
तभी क्षीरसागर की सतह पर फैले उस नीले द्रव्य से, जोरदार धुंआ निकलना शुरु हो गया।
यह धुंआ इतना खतरनाक था कि कुछ ही क्षणों में, इसने पूरे आसमान को ढंक लिया।
इस महा विषैले धुंए के प्रभाव से किसी का वहां खड़ा रहना भी संभव नहीं बचा।
सभी को अपना दम घुटता सा महसूस होने लगा। चेहरे पर जलन उत्पन्न कर, इस धुंए ने सभी की त्वचा का भी ह्रास शुरु कर दिया।
“यह ‘कालकूट’ विष है।” ब्रह्म.. ने सभी का मार्गदर्शन करते हुए बताया- “हम इसे ‘हलाहल’ भी कह सकते हैं। यह इस ब्रह्मांड का सबसे खतरनाक विष है।”
तब तक उस विष का प्रभाव सम्पूर्ण सृष्टि पर होने लगा। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव-जन्तु एक-एक कर मरने लगे।
सभी देवता और दैत्यों के चेहरे इस हलाहल से निस्तेज हो गये। घबरा कर सभी देवताओ और दैत्यों ने ब्रह्.. जी की शरण ली।
“हे ब्रह्... आप इस सृष्टि के रचयिता हैं।” देवराज इंद्र ने कहा-“अब आप ही अपने पुत्रों को इस कालकूट विष से बचा सकते हैं। हमारी रक्षा करिये ....हमारी रक्षा करिये।”
इंद्र _________के शब्द सुन सभी देवता और दैत्यों ने ब्रह्.. के सामने अपने हाथ जोड़ लिये।
“मेरे पास भी इस कालकूट विष का कोई तोड़ नहीं है।” ब्रह्.. ने कहा- “आप सबको इसके लिये म….देव की उपासना करनी पड़ेगी। अब वही धरती को इस प्रलय से बचा सकते हैं।”
ब्र….व की बात सुन वहां खड़े सभी देवता और दैत्य, एक साथ म….देव की उपासना करने लगे।
हलाहल का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। उसके प्रभाव से पूरी पृथ्वी का वातावरण इतना दूषित हो गया कि अब सूर्य की किरणें भी धरा पर नहीं पहुंच पा रहीं थीं।
तभी वातावरण में डमरु बजने की जोर की आवाज सुनाई दी, जो कि म…देव के आने का द्योतक थी । आखिरकार भक्तों की पुकार सुनकर आसमान के एक छोर से म…देव प्रकट हुए।
“हे देवाधि देव, हमें इस कालकूट विष से बचाइये।” इंद्र ने म…देव को प्रणाम करते हुए कहा- “यह विष सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश कर रहा है।”
“यह विष तुम सभी के लालच से प्रकट हुआ है।” म…देव ने कहा-“यह विष इतना जहरीला है कि मैं इसे ब्रह्मांड के किसी भी कोने में नहीं फेंक सकता, इसलिये मुझे स्वयं इसका वरण करना पड़ेगा। पर अगर मैं इसका वरण कर भी लूं, तो भी यह इस पृथ्वी से नहीं जायेगा। जब तक पृथ्वी पर एक भी लालची इंसान रहेगा, यह विष पृथ्वी का हिस्सा बना रहेगा।"
यह कहकर म…देव ने अपने शरीर को अत्यंत विशालकाय बना लिया। अब उनका सिर आसमान को छू रहा था।
अब म…..देव के हाथों में एक विशाल शंख नजर आने लगा।
म…देव ने अपने हाथों को क्षीर सागर में डालकर सम्पूर्ण विष को अपने शंख में भर लिया, फिर शंख को अपने होंठों से लगा कर कालकूट विष का पान करने लगे।
चूंकि हलाहल अत्यंत विनाशकारी था, इसलिये म……देव ने उसे अपने कंठ से आगे नहीं जाने दिया, पर उस कालकूट विष ने म….देव के कंठ का रंग नीला कर दिया।
“नीलकंठ देव की जय!” देवताओं और दैत्यों ने विष को समाप्त होते देख हर्षातिरेक में जयकारा लगाया।
तभी कालकूट विष की एक आखिरी बूंद शंख से छलककर पृथ्वी पर जा गिरी ।
उस आखिरी बूंद ने पृथ्वी पर गिरते ही मानव आकार धारण कर लिया।
उसके शरीर का रंग नीला, बाल घुंघराले और आँखें मनमोहक थीं।
“मैं कौन हूं?” उस मनुष्य ने स्वयं को देखते हुए सवाल किया- “मेरा नाम क्या है? मैंने क्यों जन्म लिया?”
तभी उस मनुष्य को आसमान में महा..देव की छाया दिखाई दी और एक आवाज सुनाई दी-
“तुम देवताओं द्वारा उत्पन्न हुए हो। इसलिये तुम्हें आज से, युगों-युगों तक ब्रह्मांड में वेदों के द्वारा लोगों को शिक्षा देनी होगी।
चूंकि तुम्हारे शरीर का रंग नीला है, इसलिये आज से तुम्हारा नाम ‘नीलाभ’ होगा। हिमालय पर जाओ वत्स, वहीं पर तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति होगी।"
“जो आज्ञा महा..देव।” नीलाभ ने हाथ जोड़कर महा..देव को प्रणाम किया।
नीलाभ के सिर उठाते ही महादेव की छाया आसमान से गायब हो गई और नीलाभ हिमालय की ओर चल पड़ा।
जारी रहेगा_________![]()
Koi baat nahi dost, take your time,Wonderful update brother.
Ye story maine kai baar tv par dekha tha ek baar phir se padh kar acha laga.
Lekin kahin par maine Neelabh ke bare mein nahi padha tha.
Mayavan ki story interesting hone wali hai jaise aapne isko start kiya hai. Aur ek character ka introduction ho gaya hai Neelabh ya ye pahle bhi story mein aa chuka hai mujhe yaad nahi aa raha hai.
Let's see ye story mein kya naya lata hai.
Sorry thoda late se padhne ke liye thoda fever tha isliye forum par bahut baar aaya lekin story nahi padha.
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
nice update
romanchak update.. nilabh ka janm kaise hua ye pata chal gaya ..kahani padhne me maja aa raha hai ..naye rahasy saamne aa rahe hai .
Romanchak safar hai chalte rahiye