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Super Update Bhaiअध्याय : 02
UPDATE 07
प्रतापपुर
सुबह का वक्त था, सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था। हल्की ठंडी हवा में खेतों की मिट्टी की सोंधी महक बिखरी हुई थी। रंगी और बनवारी, दोनों गाँव के बाहर खेतों की ओर टहल रहे थे। बनवारी की रोज की आदत थी—सुबह शौच के लिए निकलना, रास्ते में दुनिया-जहान की बातें करना, और हँसी-मजाक में वक्त गुजारना।
घर की वापसी हो रही थी ।
रंगी, चेहरे पर शरारती मुस्कान लिए, अपने खाली लोटे को एक हाथ में लटकाए हुए चल रहा था। बनवारी, भी मूँछों को ताव देता हुआ, कंधे पर पुरानी गमछी डाले, रंगी के पीछे-पीछे था।खेतों की ओर जाने वाली पगडंडी पर हरियाली छाई थी। मक्के के खेतों में हल्की ओस की चमक थी, और दूर कहीं कोयल की कूक सुनाई दे रही थी। रंगी ने चलते-चलते एक ठूंठ पर पैर रखा, संतुलन बनाया, और फिर बनवारी की ओर मुड़कर, आँखों में चमक लिए बोला
: रात बड़ी देर से सोए थे क्या बाउजी ? (उसने अपनी भौंहें उचकाईं, जैसे कोई राज खोलने की फिराक में हो )
बनवारी ने पहले तो रंगी को घूरा, फिर हल्का-सा ठहाका लगाया।
: अच्छा तो जग रहे थे आप भी जमाई बाबू , हाहाहा ( बनवारी झूठी हसी चेहरे पर लाता हुआ बोला , मगर भीतर से वो रंगी की जिज्ञासा के लिए सही जवाब तलाश रहा था )
: इतनी तेज सिसकियां किसी की भी नीद उड़ा देगी बाउजी , थी कौन वैसे ? ( रंगी ने शरारत भरी मुस्कुराहट से अपने ससुर को देखा)
: कमला थी , अरे शाम को उसको डांटा था थोड़ा फुसलाना पड़ता है । मौके बेमौके पर काम आती ही है ( बनवारी ने रंगी को समझाते हुए कहा )
: सही है बाउजी , चोट मुझे लगी थी और मलहम आप लगवा रहे थे हाहाहा ( रंगी ने बनवारी का मजा लेते हुए अंगड़ाई लिया )
: क्या बात है जमाई बाबू , लग रहा है आपकी नींद भी पूरी नहीं हुई ( बनवारी ने बात घुमाई)
: अब सोनल की मां के बगैर तो मुझे नीद ही नहीं आती , उसपे से आपने और जगा दिया ( रंगी मुस्कुरा कर बोला और उसकी नजर एक दूर जा रही एक औरत के लचकदार मटकते चूतड़ों पर जमी थी । बड़े रसीले मटके जैसे )
: अब रहम भी खाओ जमाई बाबू क्या आंखों से कपड़े उतारोगे हाहाहा ( बनवारी मजाक करते हुए बोला )
: अरे क्या बाउजी , नहीं नहीं बस उसे देखा तो सोनल की मां याद आ गई , ऐसी ही लचक ... खैर ( रंगी अपने ही ससुर के आगे अपनी बीवी के मटके जैसे चूतड़ों का गुणगान करने में लजा सा गया )
: अरे अब कह भी दो भाई , इसमें शर्माना कैसा ? बीवी है तुम्हारी और कौन सा हम भरे समाज में है या फिर हमें अपनी दोस्ती के लायक नहीं समझते जमाई बाबू , बोलो ? ( बनवारी चाह रहा था रंगी थोड़ा झिझक कम करे अपनी और उसकी लाडली बेटी रागिनी के बारे में खुल कर बातें करें )
: अरे नहीं नहीं बाउजी क्या आप भी , हाहा , आप मेरे पिता जैसे है कुछ तो लिहाज करना ही होगा न ! ( रंगी मुस्कुराया )
: अच्छा ठीक है भाई , लेकिन इतना भी क्या शरमाना । जैसे तुमने बिना मेरी बेटी के साथ कुछ ही 3-3 पैदा कर दिए हाहा ( बनवारी ने माहौल हल्का किया )
: क्या बाउजी आप भी न ( रंगी हसते हुए शर्म से झेप गया , उसे उम्मीद नहीं थी कि बनवारी उससे ऐसे पेश आयेगा ) चलिए घर आ गया
और दोनों बाहर गेट के पास नल पर हाथ धुलने लगे ।
: भाई तुमने तो दातुन किए नहीं , तुम भाई ब्रश ही करोगे । तो ऐसा है कि तुम ब्रश कुल्ला करो मै जरा नहा लेता हूं ( बनवारी अपने देह से अपनी बनियान उतारता हुआ नीचे बस धोती लपेटे हुए पीछे आंगन की ओर चला गया ।
रंगीलाल भी हाथ धूल कर अपने कमरे में बैग से ब्रश लेने चला गया
अभी वो कमरे में गया ही था कि उसे तेजी से किसी के भागने की आहट आई
आहट इतनी तेज थी कि वो अचरज से बाहर झांकने आया तो देखा घर के बच्चों में कोई बनवारी के कमरे के पास वाले जीने से ऊपर गया है ।
रंगीलाल के इग्नोर किया और अपना समान निकालने लगा ।
वही पीछे आंगन में बनवारी खुले में नहाने बैठ गया , मोटर चालू थी और तेजी से पानी आ रहा था । बनवारी ने आंगन का दरवाजा लगाया और धोती निकाल कर पूरा नंगा हो गया ।
इस बात से बेखबर कि कोई उपर की छत से छिप कर उसे देख रहा था ।
वो पूरा नंगा होकर खुले आंगन में बैठा था और अपने देह पर पानी गिरा रहा था ।
वो एक प्लास्टिक की छोटी स्टूल पर था अपनी टांगे फैलाए हुए एड़ी घिस रहा था और उसके बड़े बड़े झूलते आड़ो के साथ उसका मोटा काला बैगन जैसा लंड सोया हुआ भी विकराल लग रहा था ।
बनवारी अपने देह पर पानी डाल रहा था और उसका लंड भीग रहा था
तभी उसे लगा कि कोई उपर से देख रहा था किसी साए के होने का अहसास
झट से उसने नजर ऊपर की और अपने सीने पर हाथ मलने लगा ।
उसने वहा से ध्यान हटाया क्योंकि जो भी था वो वहा से पीछे हो गया और कुछ देर तक अपने देह को बिना साबुन के मलता रहा और जब बाल्टी के पानी की हलचल हल्की हुई तो उसने एक लहराती हुई झलक पानी की बाल्टी में देखी और वो दो चुटिया वाली लड़की कोई और नहीं गीता थी ।
बनवारी एकदम से असहज हो गया था उसने झटपट से पानी डाला और अपनी धोती लपेटे कर बाहर आया । उसका अंदाजा सही था , उसे बाहर बड़े आंगन में गीता नजरे चुराती हुई ब्रश करती हुई दिखाई दी ।
बनवारी को पसंद नहीं आया कि उसकी नातिन ऐसा कुछ हरकत करेगी । भला अभी उसकी उम्र क्या है और ये कई दिनों से बनवारी महसूस कर रहा था मगर आज गीता की पहचान हो गई थी ।
बनवारी चुपचाप अपने कमरे में चला गया और रंगीलाल अपने कपड़े लेकर एक तौलिया लपेट कर बनियान में बाथरूम की ओर गया ।
उसकी नजर अनायास सुनीता को खोज रही थी और किचन में उसे देखते ही वो उस ओर ही बढ़ गया ।
दरवाजे पर आहट और सुनीता सतर्क होकर रंगीलाल को देख कर मुस्कुराई । उसकी नजर रंगीलाल के कंधे की चोट पर गई जो अब काली पड़ने लगी थी ।
: जख्म कैसा है आपका ? ( सुनीता ने इशारा किया )
: आपने दिया है आप जानो ( रंगी ने सुबह सुबह छेड़ा उसे )
: धत्त क्या आप भी सुबह सुबह ( सुनीता लजाई)
: सुबह का ही तो इंतजार था , आपकी समय सीमा पूरी हो गई है भाभी जी ( रंगीलाल का इशारा रात वाले वाक़िये पर था )
: क्या ? धत्त , आप तो सीरियस हो गए ( सुनीता अब घबराई मगर उसकी खूबसूरत होठों की हसीन मुस्कुराहट के कही खो सी गई )
: तो क्या आपने हमारे प्यार को मजाक समझा था ( रंगी ने भौहें उचका कर पूछा)
: धत्त जीजा जी , आप मुझे कंफ्यूज कर रहे है । क्या आप सच में ? ( सुनीता की सांसे तेज थी )
: अभी भी कोई शक है आपको ( रंगी के भीतर वासना के जज्बात उसके लंड में सुरसुराहट भर रहे थे ) मुझे तो बस आपकी हा का इंतजार रहेगा ।
ये बोलकर रंगी मुस्कुराता हुआ बाथरूम की ओर चला गया और सुनीता वही उलझी हुई खड़ी रही । उसका मन बार बार यही समझा रहा था कि उसके नंदोई उससे मजाक ही कर रहे है । तभी उसका ध्यान अपने पति राजेश को ओर गया और ना जाने क्यों वो चिढ़ सी गई । बीती रात राजेश फिर पी कर आया था और अभी तक उठा नहीं था ।
सुनीता ने बबीता को आवाज दी : गुड़िया , ये गुड़िया ?
बबीता भागकर आई : हा मम्मी !!
सुनीता घुड़क कर : जा तेरे पापा को जगा जल्दी जा
बबीता जो कमरे में सुबह सुबह ही टीवी चालू करके बैठी थी उसकी मां ने उसको काम फरमा दिया ।
वो भी भुनकती हुई अपने पापा को जगाने उनके कमरे में गई
राजेश बेड पर पेट के बल पसरा हुआ था , बबीता बेड के करीब खड़ी होकर अपने पापा को हिला कर आवाज देने लगी
: पापा उठो , पापा
: उम्ममम ( राजेश ने वैसे ही लेटे हुए अपनी आँखें खोलनी चाही तो उसके सामने बबीता की चिकनी जांघें थी । वो इस समय शॉट्स और टॉप में आई थी । )
गोरी चिकनी दूधिया जांघें देखते ही राजेश के जहन में कल वाली छवि उभर आई और उत्तेजना उसके सोए हुई चेतना पर हावी होने लगा
: इधर आ बेटा ( राजेश करवट लेते हुए बबीता की कलाई पकड़ कर बिस्तर पर बिठाया )
: उम्हू छोड़ो नहीं बैठना मुझे आपके पास ( बबीता को उसके बाप के देह से शराब की बू आती महसूस हो रही थी उसने हाथ झटक कर छुड़ाना चाहा )
मगर राजेश जबरन उसे पकड़ कर बिठा लिया और उसके पीठ सहलाने लगा
: क्या हुआ गुड़िया , बेटा ( राजेश ने उससे दुलारा और इसी बहाने वो बबीता के गुदाज नर्म पीठ का स्पर्श ले रहा था )
: उन्हूं छोड़ो मुझे ( बबीता ने कंधे झटके ) आप गंदे हो इसलिए नहीं आती हूं आपके पास हूह ( बबीता ने मुंह बनाया
: अच्छा नहा लूंगा तो रहेगी न मेरे पास ( राजेश ने फुसलाया )
: ना ( बबीता ने ना में सर हिलाया )
: फिर ?
: आप जब शराब नहीं पियोगे तो ही मै आपके पास रहूंगी, पहले प्रोमिस करो कि आप शराब नहीं पियोगे, बोलो ( बबीता उसकी ओर घूम कर बोली )
राजेश अपने नशे की लत से बंधा था मगर एक अनजाना लालच उसे बबीता की ओर खींच रहा था
: ठीक है प्रोमिस , लेकिन तुझे मेरे साथ टीवी देखनी पड़ेगी ठीक है ( राजेश ने उसकी हथेली अपने हाथों में ली )
: ओके पापा , हीही ( बबीता एकदम से खुश हो गई ) चलो अब उठो बहुत बदबू कर रहे हो आप हीही ( बबीता उसका हाथ पकड़ कर खींचने लगी )
शिला के घर
मानसिंह छत से नीचे आया , कल रात रज्जो की वजह से उसे ऊपर सोना पड़ा था , लेकिन कम्मो ने उसे इसका अफसोस नहीं होने दिया ।
मगर उसकी नजर रज्जो पर जम गई थी , कल सुबह जबसे उसने रज्जो को अपनी गोद में खिलाया था उसके मोटे बड़े भड़कीले चूतड़ों को मसला था उसकी नंगी पेट पर अपने हाथ फेरे थे , उस अहसास से मानसिंह उभर नहीं पाया था । जब जब उसकी नजरें रज्जो पर जाती एक बिजली सी कौंध जाती उसके जिस्म में , लंड उसकी भड़कीले चूतड़ों को देख कर पागल हो जाता था । मगर कही न कही वो थोड़ा शर्मिंदा था , रज्जो और मानसिंह दोनों एकदूसरे से नजरे चुरा रहे थे ।
सीढ़िया उतरते हुए मानसिंह की नजर किचन में गई , उसने अभी तक कल वाली वही शिला की साड़ी पहनी थी , मगर इस बार मानसिंह ने धोखा नहीं खाया और चुपचाप बिना उसकी नजर में आए धीरे से अपने कमरे की ओर चला गया
अंदर कमरे में शिला अपने मानसिंह के ही कपड़े स्त्री कर रही थी
अपनी गदराई बीवी को कुर्ती लेगी के देख कर मानसिंह का लंड एकदम से अकड़ गया
उसने पीछे से आकर उसके नरम चर्बीदार चूतड़ों पर पंजा जड़ा
: अह्ह्ह्ह्ह मैयायाह उम्मम क्या करते हो जी अह्ह्ह्ह ( शिला मानसिंह के थप्पड़ से झनझना गई और अपने कूल्हे सहलाने लगी )
: उम्मम मेरी जान आज तो सारी रात तड़पा हु तुम्हारे लिए ( मानसिंह पीछे से हग करता हुआ उसके बड़े बड़े रसीले मम्में कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा )
: अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म क्यों ऑनलाइन देखा नहीं क्या मुझे , कैसे तुम्हारी याद इतना बड़ा डिल्डो डाल रही थी ओह्ह्ह्ह उम्ममम नहीं रुकिए न ( शिला वही दिवाल के लग कर खड़ी हो गई और मानसिंह उसकी कुर्ती उठा कर लेगी के ऊपर से उसकी बुर सहलाने लगा )
: अह्ह्ह्ह्ह मजा तो तब आता जान , जब तुम रज्जो भाभी की बुर के दर्शन भी कराती , अह्ह्ह्ह तुम दोनों की जोड़ी रात में एकदम हिट थी । कितने सारे लोगों ने क्लब ज्वाइन किया ( मानसिंह उससे लिपट कर उसके चूचे कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा और शिला भी उसका लंड पकड़ की ली )
: आज देख लेना मेरी जान , आज दुपहर में कितने सारे क्लाइंट को फोटो भेजनी है , तुम्हारे पास वीडियो भेजूंगी पूरी नंगी करके ( शिला ने उसका लंड भींचते हुए उसकी आंखों में देख कर बोली )
:अह्ह्ह्ह सच में जान, जब से रज्जो भाभी को छुआ है तबसे कुछ भी इतना नरम और मुलायम नहीं लगता है , सोचता हूं एक बार फिर उन्हें अपनी गोद में बिठा लू अह्ह्ह्ह ( मानसिंह बोलते हुए शिला के लिप्स से अपने लिप्स जोड़ लिया और पजामे में बना हुआ लंड का तंबू सीधा उसकी बुर में कोचने लगा )
: अह्ह्ह्ह उफ्फ उम्मम तो जाओ दबोच लो , किचन में होंगी । मीरा भी गांव गई है बाउजी ने बुलाया है । जाओ ( शिला ने उसको उकसाया )
: पक्का , अगर नाराज हो गई तो ? ( मानसिंह ने चिंता जाहिर की )
: अरे मुझसे ज्यादा वो प्यासी है लंड के लिए, आप बस पहल तो करो खुद पकड़ के अपनी बुर में डाल न ले तो कहना ( शिला ने मानसिंह को पूरे जोश से भर दिया )
मानसिंह ने अपनी बीवी के भरोसे इस रिश्क के लिए तैयार हो गया और वापस कमरे के निकल कर किचन की ओर गया तो आधे रास्ते में ही रुक गया , क्योंकि किचन में उसका भाई रामसिंह पहले ही रज्जो के पास खड़ा उससे बातें कर रहा था ।
मानसिंह को रज्जो का मुस्कुराना और अपने भाई के खिल कर बातें करता देख अजीब सी बेताबी हुई और लपक कर छुप कर किचन के पास जीने बाहर ही खड़ा हो गया ।
: वैसे आज मुझे एक पल को पीछे से लगा था कि आप भाभी ही है , फिर याद आया कि कल भैया भी गच्चा खा गए थे हाहाहा ( रामसिंह हंसता हुआ बोला और रज्जो लजा गई )
: क्या दीदी भी न , सबको बता दिया ( रज्जो लाज से हंसी )
रज्जो के हाथ चकले पर तेजी से चल रहे थे, और हर बार जब वह बेलन को दबाती, उसके बड़े, रसीले दूध ब्लाउज में हिलते-डुलते। उसका ब्लाउज थोड़ा तंग था, जिससे उसकी भरी-पूरी देह और भी उभर कर सामने आ रही थी। रामसिंह की नजरें अब उसकी छाती पर ठहर गई थीं, और वह मन ही मन कुछ शरारती खयालों में खो गया।
उसकी नजर रज्जो के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर थी जो साड़ी की ओट में थी ।
: अब किसी को बताए न बताए अपने लाडले देवर से कुछ नहीं छिपाती मेरी भाभी ( रामसिंह शब्दों के दाव पेच अच्छे से जानता था और शिला ने पहले से उसे बता रखा था कि रज्जो का मिजाज कैसे है और कैसे वो शब्दों के दो फाड़ करने में माहिर थी )
: अच्छा जी , कुछ भी नहीं ( रज्जो के चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट थी )
: उन्हू कुछ भी नहीं ( रामसिंह ने बड़े विश्वास से कहा )
: अच्छा तो ... नहीं कुछ नहीं ( रज्जो ने जहन में सहसा कुछ आया लेकिन्वो चुप हो गई )
वही रज्जो के चुप होने से ना सिर्फ रामसिंह बल्कि किचन के बाहर खड़ा मानसिंह भी उत्सुक हो उठा । दोनों भाई भीतर से बेचैन हो गए ।
: अरे क्या हुआ बोलिए न ( रामसिंह ने थोड़ा कैजुअल होकर कहा )
: वो ... नहीं हीही कुछ नहीं ( रज्जो सब्जियां चलाती हुई बोली )
: अरे .. कहिए न झिझक कैसी ( रामसिंह )
: नहीं मै दीदी से पूछ लूंगी ( रज्जो ने मुस्कुरा कर कहा )
: अरे ऐसा कुछ नहीं है जो भाभी को पता है और मुझे नहीं , आप आजमा कर तो देखिए
: पक्का ( रज्जो के चैलेंज सा किया )
दोनों भाई एकदम से जिज्ञासु
: हा हा , कहिए ( रामसिंह विश्वास से बोला )
: कल रात हम दोनो साथ में सोए थे और आपके भैया ऊपर थे अकेले , पता है आपको ? ( रज्जो मुस्कुराई )
: अह हा पता है , इसमें क्या बात हो गई ( इधर रज्जो के इस पहल से रामसिंह और मानसिंह की सांसे चढ़ने लगी , क्योंकि उन्हें डर था कही उनकी योजना खुली किताब न हो जाए )
: अच्छा तो क्या ये बता है कि रात में आपकी भाभी ... हीही आपके भैया का नाम लेकर मुझसे चिपक रही थी हाहा ( रज्जो हस कर बोली )
रज्जो की बात सुनकर दोनों भाई के लंड में हरकत होने लगी
: क्या आप भी न भाभी , वैसे एक राज की बात बताऊं भैया से नहीं कहेंगी न ( रामसिंह उसके पास खड़ा हुआ , उसका लंड पजामे में तंबू बना चुका था और रज्जो की नजर उसपे पड़ चुकी थी । )
: उन्हूं बिल्कुल भी नहीं ( रज्जो की सांसे तेजी से धड़क रही थी वो रामसिंह की आंखों में वासना की बढ़ती भूख को देख पा रही थी । जिसका असर कुछ कुछ उसपे भी हो रहा था )
: पता है एक बार कम्मो नाराज हो गई थी हमारी खूब लड़ाई हुई और मै भी गुस्से में भैया के बिस्तर पर सो गया था और उस रात भाभी ने मुझे भैया समझ कर मुझसे चिपक गई थी ( रामसिंह ने अपने शब्दों में मसाला डाल कर परोसा )
रज्जो साफ साफ उसके झूठ को समझ रही थी क्योंकि वो पहले से ही शिला से उसके घर की सारी कहानी सुन चुकी थी । मगर उसे ये खेल पसंद आ रहा था
वही बाहर खड़ा मानसिंह अलग से अपना लंड मसल रहा था कि उसका छोटा भाई तो काफी तेज निकला और यहां वो एक बार रज्जो को दबोच कर भी कुछ नहीं कर सका ।
: फिर क्या हुआ ? आपने क्या किया ? ( रज्जो ने आंखे बड़ी कर रामसिंह को देखा )
: आपको बुरा तो नहीं लगेगा न, वो क्या है कि बातें थोड़ी वैसी है ( रामसिंह ने ऐसे दिखाया जैसे वो कितना बेबस हो )
: अरे हम लोग कौन सा बच्चे , कही आपकी उम्र तो 18 से कम तो नहीं हीही ( रज्जो मस्ती में बोली ताकि रामसिंह थोड़ा खुले )
रज्जो की बात पर रामसिंह के साथ साथ बाहर छुपा मानसिंह की भी हसी रुक न सकी ।
: हीही, आप भी न भाभी खोज कर रखी है सारे शब्द । वैसे मै 18+ तो तभी हो गया था जब आपको पहली बार देखा था । ( रामसिंह ने शरारत भरी नजरो से रज्जो की आंखों ने देखा)
: वैसे आप कुछ बता रहे थे ( रज्जो ने बात घुमाई , जैसा कि वो सताने में माहिर है )
: हा वो , उसके बाद भाभी ने यहां नीचे पकड़ लिया और दीवानी सी हो गई ( रामसिंह का इशारा अपने पजामे के तंबू पर था )
: हाय दैय्या, फिर ( रज्जो ने नाटक जारी रखा )
: भाभी को अपने देखा ही है कितनी मुलायम है और उनका स्पर्श मुझे पागल कर गया था और फिर .... ( रामसिंह ने मुस्कुराते हुए आंखे मार कर गर्दन झटका )
: क्या सच में , धत्त झूठे मै नहीं मानती कि दीदी ऐसा करेंगी । ( रज्जो ने आजमाया )
इधर बाहर खड़ा मानसिंह ताज्जुब में था कि एक दिन पहले ही आई रज्जो इतना खुल कैसे गई , रज्जो की बातों और जिस तरह वो भूखी नजरों से कभी रामसिंह का लंड का तंबू देखती और कभी उसकी आंखों में देखती। मानसिंह मान गया कि उसकी बीवी शिला ने रज्जो के बारे में सही कहा था ।
: अरे सच में ऐसा हुआ था , और अब तो कई बार ... लेकिन प्लीज भैया या कम्मो से मत कहिएगा ( रामसिंह बोला )
: नहीं कहूंगी , लेकिन एक शर्त है ( रज्जो शरारती मुस्कुराहट के साथ इतराई )
: क्या कहिए न ( रामसिंह बोला ).
: आपको मुझे दिखाना पड़ेगा ( रज्जो ने रामसिंह को उलझाया )
रज्जो के इस वक्तव्य से दोनों भाई एकदम से चौक गए
: क्या देखना चाहती है आप ( रामसिंह का लंड पजामे ने पूरा अकड़ कर पंप होने लगा )
: आपको आपकी भाभी के साथ , थोड़ी सी मस्ती भी चलेगी जिससे मुझे यकीन हो जाए ।( रज्जो उससे एकदम सट कर खड़ी थी )
: लेकिन मेरा क्या फायदा इतना बड़ा रिश्क लेने का ( रामसिंह की सांसे तेज थी और वो रज्जो की आंखों में देख रहा था )
: जितना बढ़िया सो उतना अच्छा इनाम ( रज्जो ने आंखे नचा कर जीभ को अंदर से अपने गाल में कोचते हुए इतराई )
: ठीक है , अभी मुझे कालेज जाना है शाम को मिलता हुं ( रामसिंह ने चैलेंज ऐक्सेप्ट किया और निकल गया वहां से )
वही मानसिंह बाहर खड़ा अपना मूसल मसलने लगा था कि क्या गजब का माहौल होने वाला है आज तो । मानसिंह बिना रज्जो से मिले चुपचाप वापस कमरे में चला गया शिला को साड़ी बात बताने के लिए।
चमनपुरा
: मम्मी देर हो रही है , कितना टाइम !! ( अनुज उखड़ कर बोला )
वो रागिनी के कमरे के बाहर खड़ा था और रागिनी कमरे में तैयार हो रही थी नहाने के बाद
: बस बेटा आ रही हूं , ये डोरी ... ( रागिनी की कुछ उलझन भरी आवाज आई )
अनुज के जहन में इस वक्त लाली की दीदी छाई थी । वो आज अपनी मिस को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था ।
: अनुज सुन बेटा , जरा अंदर आना ( रागिनी ने आवाज दी )
: क्या हुआ मम्मी ( अनुज परेशान होकर कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर गया )
जैसे ही वो अन्दर घुसा उसकी आंखे बड़ी ही गई
"उफ्फ मम्मी कितनी सेक्सी" , अपनी मां के पीछे खड़ा हो कर वो बड़बड़ाया ।
उसकी मां रागिनी के नया ब्लाउज ट्राई का रही थी , जो पीछे से हुक की जगह बांधने वाली थी और बार बार कोशिश करके रागिनी के हाथ दुखने लगे थे
: बेटा ये जरा बांधना ( रंगीनी ने गर्दन घुमा कर बोला )
अनुज का हलक सूखने लगा था , उस साड़ी में अपने मां को देख कर जिस तरह से वो उनके कूल्हे से चिपकी थी चौड़ी कमर से लेकर ऊपर गर्दन तक पीछे से पूरी पीठ नंगी और मुलायम । गिले बालों से पानी के हल्के फुल्के अंश पीठ के बीच में दिख रहे थे ।
अपनी मां के जिस्म की कोमलता को अनुज साफ महसूस कर पा रहा था , उसने बिना कुछ कहे रागिनी के ब्लाउज का फीता पकड़ा यार उसको हल्के से गांठ दी , ये सोच कर कि कही उसकी मां के मुलायम चूचों पर जोर न पड़े , वो कस न जाए
: अरे क्या कर रहा है , टाइट कर न आज ब्रा नहीं डाली है मैने , कस पूरा ( रागिनी ने अनुज को टोका )
अपनी मां के मुंह से ऐसे अलफाज सुन कर अनुज की सांसे चढ़ने लगी और उसके फीते की कस कर गांठ दी
: अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकी )
: ज्यादा कसा गया क्या मम्मी ( अनुज फिकर में बोला )
: नहीं ठीक है , बांध दिया तो ऊपर वाली डोरी भी बांध दे ( रागिनी उखड़ कर बोली )
अनुज मुस्कुरा कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी बांधने लगा जिसकी लंबी गुरीया और मोतियों वाली लटकन उसके उभरे हुए कूल्हे तक जा रही थी ।
: हम्मम अब ठीक है ( रागिनी ने आइने में खुद को देखते हुए उस ओर बढ़ गई जिससे उनकी ब्लाउज का लटकन उनके कूल्हे पर उछल कर इधर उधर छिटकने लगा )
अनुज की नजर अपनी मां की मादक चाल पर थी और वो भीतर से सिहर उठा , रागिनी लिपस्टिक से अपने होठ रंग रही थी ।
जिसे देख कर अनुज की प्यास और बढ़ने लगी थी
: मम्मी , कितना रेडी हो रहे हो ? अच्छे से तो लग रहे हो आप ( अनुज भिनक कर बोला
रागिनी की उंगलियाँ एक पल के लिए रुक गईं। उन्होंने शीशे में अपनी परछाई के साथ-साथ अनुज की झुंझलाई हुई शक्ल को भी देखा। उनकी आँखों में हल्की-सी चमक आई, और फिर वह धीरे से हँस पड़ीं।
वो लिपस्टिक लगा कर खड़ी हुई और उसकी ओर घूम कर बोली: अब कैसी लग रही हूं ( रागिनी हंसी करती हुई अनुज की ओर अपना चेहरा करके आंखे तेजी से मलकाई )
अनुज अपनी मां के भोलेपन पर मुस्कुरा दिया : हील वाली सैंडल पहन लो, मेरी कालेज की मिस जी लगेगी हीही
: हैं सच में ? रुक पहनती हु ( रागिनी खिल कर बेड के नीचे से अपनी एक हील सैंडल निकालने के लिए झुकी जो उसने सोनल की शादी में पहनने के लिए लिया था
: मम्मी यार लेट हो .... उफ्फ ( सहसा अनुज की नजर अपनी मां के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर गई जो झुकने की वजह से उस चुस्त साड़ी के फैलाना चाह रही थी , कूल्हे कैसे पहाड़ हो आगे पूरे गोल ।
: रुक न रुक न हो गया ( रागिनी झुक कर सैंडल पहनती हुई ) अब लग रही हूं न मिस जी तेरी ( रागिनी अपनी साड़ी सही करती हुई इतराई और अपना पल्लू हवा में लहराया )
: हा लेकिन .. (मगर अनुज की नजर कही और अटकी थी )
: क्या हुआ बोल
: वो आपकी ढोंडी नहीं दिख रही है , उनकी दिखती है ( अनुज बोलते हुए दांत में जीभ दबा लिया)
: अरे वो मै थोड़ा ऊपर की हूं .... आह अब सही है ( रागिनी ने झट से अपना पेट पिचकाया और साड़ी को नेवल के नीचे ले जाती हुई सेट करते हुए बोली )
अनुज को यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां ये सब उसके सामने कर रही है । हालांकि उसने बचपन से अपनी मां को अपने आगे तैयार होते कपड़े बदलते देखा था मगर अब बात कुछ और थी ।
: हम्ममम ( अनुज अपनी मां की गुदाज चर्बीदार नाभि देख कर थूक गटकने लगा )
: चलें ( रागिनी मुस्कुरा कर बोली )
: ऐसे ही ( अनुज आंखे बड़ी कर बोला )
: हा क्यों ? अच्छी नहीं लग रही हूं क्या ( रागिनी इतराई )
: नहीं वो सैंडल ? ( अनुज इशारे से )
: अरे हा , हीही ( रागिनी हस्ती हुए अपने पैर से सैंडल को बेड के नीचे झटका और जल्दी से रेगुलर चप्पल पहनती हुई ) चल चल
अनुज मुस्कुराता हुआ अपनी मां के साथ निकल गया
वही राज जो अब तक दुकान पहुंच गया था , ग्राहकों के बीच उलझा हुआ था ।
तभी उसके मोबाइल पर फोन आता है एक नंबर से जिसे देख कर उसकी मुस्कुराहट खिल जाती है पूरे चेहरे पर
जल्दी से वो ग्राहक निपटाता है और केबिन में जाकर कॉल बैक करता है
फोन पर
: ऊहू .. नमस्ते क्यूट भाभी जी ( राज मुस्कुराते हुए बोला )
: अरे .. धत्त आप भी न राज बाबू ( उधर आवाज आई ) छोड़िए ये बताइए कैसे है ?
: आपके बिना कैसे होंगे ? ( राज ने आहे भरता हुआ बोला )
: धत्त बदमाश, अच्छा सुनो न मुझे अभी दो तीन रोज का समय लगेगा चमनपुरा आने में और आज मेरा एक पार्सल आ रहा है । रिसीव कर लेंगे क्या ( काजल भाभी ने बड़ी मीठी आवाज में गुजारिश की )
: उम्हू एक और पार्सल ( राज ने छेड़ा उसे )
: धत्त बदमाश, सही बोलो न ? ( काजल भाभी बोली ) ले लोगे न ?
: आप दो तो सही , अगर हम मना करे तो हमारी गुस्ताखी ( राज ने फिर से छेड़ा उसे )
: अच्छा बाबा ठीक है अब घुमाओ मत ( काजल भाभी गहरी सास लेते हुई बोली ) अच्छा इस बार का उधार नहीं रखूंगी । पक्का
: और पहले वाली उधारी ?
: ठीक है वो भी ले लेना , लेकिन प्लीज याद से रिसीव कर लेना ओके , मै फोन करूंगी ( काजल भाभी ने रिक्वेस्ट की )
: ओके मेरी क्यूट भाभी जी , और कुछ
: उन्हूं कुछ नहीं , बाय
: क्या बस बाय ? ( राज ने फिर से काजल भाभी को छेड़ा )
: हा तो , हिसाब किताब में कुछ भी घलुआ नहीं मिलेगा । काम करोगे पहले फिर दाम मिलेगा ( भाभी तुनक कर बोली और फोन काट दिया )
राज मुस्कुरा कर अपना लंड पेंट में मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह ठीक ही , मै भी गल्ले वाला सेठ हूं भाभी । हिसाब अच्छे से करूंगा ।
वही इनसब से अलग मंजू आज खासा खामोश थी
रात की हरकत से वो मुरारी से बेहद नाराज जी , उसकी इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी उसके साथ जाने की । मगर ता उम्र और जवानी के इतने साल उसने मदन से दूर बिताए थे । मदन ने उसके प्यार में अपनी जिंदगी नहीं बसाई और आज भी उसकी राह देख रहा है , अगर वो हा करके भी नहीं गई तो शायद मदन के साथ ज्यादती होगी । शायद उसे अपने जीवन का ये जहरीला घूंट पीना ही पड़ेगा ।
वही आज मुरारी मंजू को उदास देख रहा था , उसे लग रहा था कि मंजू में शायद इस समाज और घर के लिए मोह है जो उसके बुरे दिनों में उसके साथी रहे है ।
: मंजू मैने गाड़ी वाले से बात कर ली है , वो चौराहे पर है । उसे रास्ता समझ भी आ रहा है । तुम घर में ताला लगाओ मै बस अभी आ रहा हूं लिवा कर
: जी भइया ( मंजू ने उदास लहजे में जवाब दिया और मुरारी ने उससे कुछ नहीं कहा । चुपचाप निकल गया घर से )
मंजू का बैग रेडी था , उसके कमरे में एक बुढ़िया बैठी थी । मंजू दिवाल पर लगी आराध्यों के पुरानी तस्वीरों के खुद को नतमस्क करने लगी । शायद वो आभारी थी उन सबके कि इतने बुरे दिनों में वो उसके साथ खड़े रहे ।
इधर मेन सड़क पर आते समय मंजू के घर के मुहल्ले की ओर 3 4 बाइक्स तेजी से निकली , मुरारी ने उनके चेहरे पर गुस्से से भरी उत्तेजना देखी । मगर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गया ।
कुछ ही देर बाद वो चौराहे से गाड़ी में बैठ कर मंजू के घर के पास पहुंचने लगा
तो देखा , वहां काफी भीड़ जमा हुई है । वो बाईक्स जो कुछ देर पहले उसके नजरो के आगे से गुजरी थी वो वही खड़ी थी ।
मुरारी को संदेह हुआ कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ , वो गाड़ी से उतरने लगा । भीड़ पूरी शांत थी , मगर एक तेज आवाज की गूंज से मुरारी थरथरा उठा ।
भीड़ ने निकल कर सामने देखा तो ये आवाज मंजू के घर से आ रही थी
" साली , रंडी उतर आई न अपनी जात पर , कहा छिपा है वो भोसड़ी है आज उसकी लाश लेकर जाऊंगा , कहा है वो बोल ? " , घर में से एक तेज आवाज आई । जिसे सुनते ही मुरारी का कलेजा उबाल मारने लगा । उसकी सांसे चढ़ने लगी , आंखे लाल होने लगी
“रुक जा, तू!” मुरारी ने उस अड़ियल आदमी को ललकारा, जो मंजू को गालियां दे रहा था। उसकी आवाज में गुस्सा और दृढ़ता थी। भीड़ में एक सन्नाटा सा छा गया। बाकी लोग हैरान थे कि कोई उनकी हिम्मत कैसे कर सकता है। उस आदमी ने मुरारी की ओर घूरते हुए कहा देखा , “तू कौन है बे? तुझे क्या लेना-देना?”
: जिसे तू खोज रहा है वो मै ही हूं , बोल अब ( मुरारी अपना कुर्ता की बाह मरोड़ता हुआ बोला )
मुरारी की बात सुनकर वो आदमी हंस पड़ा, लेकिन उसकी हंसी में क्रूरता थी। “अच्छा, तो तू इसका यार है? चल, देखते हैं कितना दम है तुझमें!”
: नहीं भइया, मत उलझिए इससे । आप प्लीज वापस घर चले जाइए ( मंजू बिलखती हुई बोली, उसकी बेबसी और आंखों के आंसू देख कर मुरारी का खून और खौलने लगा )
: नहीं मंजू , मैने अपने बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा और मै कभी भी अपना वादा नहीं तोड़ता । ( मुरारी उसको विश्वास दिला रहा था कि इतने में तेजी से एक पंजा उसकी पीठ पर और उसके कुर्ते को पकड़ कर खींचते हुए अपनी ओर घुमाया )
: भोसड़ी के तू बड़ा सलमान खां हैं? मादर... चो ( एकदम उस दूसरे आदमी की सांसे अटक गई दिल मानो बैठ ही जाएगा , आंखे बड़ी और एकदम मूर्ति सी बन गई ) हे देख .. देख मस्ती नहीं , भाई गोली है लग जाएगी । देख ऐसे नहीं
: क्यों भोसड़ी के , हैं, निकल गई हवा मादरचोद ... ले तेरी मां का ( मुरारी ने एक उल्टे हाथ कोहनी उसके सीने पर दी और वो कहराते हुए पीछे हो गया )
अब मुरारी ने अपनी रिवॉल्वर का प्वाइंट उस आदमी की ओर किया जिसने ये सारा हंगामा खड़ा किया था
मंजू ने जैसे ही मुरारी के हाथ रिवॉल्वर देखी एकदम से हदस गई , उसकी लाली डबडबाई आंखे पूरी फेल गई , उसका कलेजा धकधक हो रहा था । उसके जहन में वो शब्द गूंज रहे थे जो कुछ देर पहले मुरारी ने उससे कहे थे ।
" मैने मेरे बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर ले आऊंगा " , ये शब्द मानो आकाशवाणी जैसे उसके दिमाग में घूम रही थी । उसका कलेजा काफ रहा था किसी अनहोनी की आशंका में । कही मुरारी ने उस गुंडे को मार दिया तो
वही वो आदमी एकदम से सन्न हो गया था उसके साथी वहां से भाग खड़े हुए थे । उस आदमी का हलक सूखने लगा था पाव पीछे हो रहे थे ।
: द देख भाई , मेरी कोई दुश्मनी नहीं है । इसको ले जाना चाहता है तो ले जा , इतने दिन मेरे साथ थी न तो अपन खुश अब तू ले जा तू खुश । भाई प्लीज मै जा रहा हूं, हा ( वो हाथ खड़े किए हुए अपनी बाइक तक गया और झटके में बाइक स्टार्ट कर निकल गया )
मुरारी ने रिवॉल्वर वापस अपने बेल्ट के खोंसी और कुरता गिरा दिया और मंजू के पास पहुंचा जो घर के दरवाजे पड़ी बिलख रही थी , मुरारी उसके पास बैठा : आओ चलें गाड़ी आ गई
: भइया... ( मंजू रोती हुई एकदम से मुरारी से लिपट गई )
मुरारी को यकीन नहीं था कि मंजू ऐसा कुछ करेगी , वो चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था ।
जारी रहेगी ।
Sahi jaa rahe ho bhaiya,ek sath itne sare equations ban rahe hain aur sab ke sab mazedaar hain, aage ka intezar hai,अध्याय : 02
UPDATE 07
प्रतापपुर
सुबह का वक्त था, सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था। हल्की ठंडी हवा में खेतों की मिट्टी की सोंधी महक बिखरी हुई थी। रंगी और बनवारी, दोनों गाँव के बाहर खेतों की ओर टहल रहे थे। बनवारी की रोज की आदत थी—सुबह शौच के लिए निकलना, रास्ते में दुनिया-जहान की बातें करना, और हँसी-मजाक में वक्त गुजारना।
घर की वापसी हो रही थी ।
रंगी, चेहरे पर शरारती मुस्कान लिए, अपने खाली लोटे को एक हाथ में लटकाए हुए चल रहा था। बनवारी, भी मूँछों को ताव देता हुआ, कंधे पर पुरानी गमछी डाले, रंगी के पीछे-पीछे था।खेतों की ओर जाने वाली पगडंडी पर हरियाली छाई थी। मक्के के खेतों में हल्की ओस की चमक थी, और दूर कहीं कोयल की कूक सुनाई दे रही थी। रंगी ने चलते-चलते एक ठूंठ पर पैर रखा, संतुलन बनाया, और फिर बनवारी की ओर मुड़कर, आँखों में चमक लिए बोला
: रात बड़ी देर से सोए थे क्या बाउजी ? (उसने अपनी भौंहें उचकाईं, जैसे कोई राज खोलने की फिराक में हो )
बनवारी ने पहले तो रंगी को घूरा, फिर हल्का-सा ठहाका लगाया।
: अच्छा तो जग रहे थे आप भी जमाई बाबू , हाहाहा ( बनवारी झूठी हसी चेहरे पर लाता हुआ बोला , मगर भीतर से वो रंगी की जिज्ञासा के लिए सही जवाब तलाश रहा था )
: इतनी तेज सिसकियां किसी की भी नीद उड़ा देगी बाउजी , थी कौन वैसे ? ( रंगी ने शरारत भरी मुस्कुराहट से अपने ससुर को देखा)
: कमला थी , अरे शाम को उसको डांटा था थोड़ा फुसलाना पड़ता है । मौके बेमौके पर काम आती ही है ( बनवारी ने रंगी को समझाते हुए कहा )
: सही है बाउजी , चोट मुझे लगी थी और मलहम आप लगवा रहे थे हाहाहा ( रंगी ने बनवारी का मजा लेते हुए अंगड़ाई लिया )
: क्या बात है जमाई बाबू , लग रहा है आपकी नींद भी पूरी नहीं हुई ( बनवारी ने बात घुमाई)
: अब सोनल की मां के बगैर तो मुझे नीद ही नहीं आती , उसपे से आपने और जगा दिया ( रंगी मुस्कुरा कर बोला और उसकी नजर एक दूर जा रही एक औरत के लचकदार मटकते चूतड़ों पर जमी थी । बड़े रसीले मटके जैसे )
: अब रहम भी खाओ जमाई बाबू क्या आंखों से कपड़े उतारोगे हाहाहा ( बनवारी मजाक करते हुए बोला )
: अरे क्या बाउजी , नहीं नहीं बस उसे देखा तो सोनल की मां याद आ गई , ऐसी ही लचक ... खैर ( रंगी अपने ही ससुर के आगे अपनी बीवी के मटके जैसे चूतड़ों का गुणगान करने में लजा सा गया )
: अरे अब कह भी दो भाई , इसमें शर्माना कैसा ? बीवी है तुम्हारी और कौन सा हम भरे समाज में है या फिर हमें अपनी दोस्ती के लायक नहीं समझते जमाई बाबू , बोलो ? ( बनवारी चाह रहा था रंगी थोड़ा झिझक कम करे अपनी और उसकी लाडली बेटी रागिनी के बारे में खुल कर बातें करें )
: अरे नहीं नहीं बाउजी क्या आप भी , हाहा , आप मेरे पिता जैसे है कुछ तो लिहाज करना ही होगा न ! ( रंगी मुस्कुराया )
: अच्छा ठीक है भाई , लेकिन इतना भी क्या शरमाना । जैसे तुमने बिना मेरी बेटी के साथ कुछ ही 3-3 पैदा कर दिए हाहा ( बनवारी ने माहौल हल्का किया )
: क्या बाउजी आप भी न ( रंगी हसते हुए शर्म से झेप गया , उसे उम्मीद नहीं थी कि बनवारी उससे ऐसे पेश आयेगा ) चलिए घर आ गया
और दोनों बाहर गेट के पास नल पर हाथ धुलने लगे ।
: भाई तुमने तो दातुन किए नहीं , तुम भाई ब्रश ही करोगे । तो ऐसा है कि तुम ब्रश कुल्ला करो मै जरा नहा लेता हूं ( बनवारी अपने देह से अपनी बनियान उतारता हुआ नीचे बस धोती लपेटे हुए पीछे आंगन की ओर चला गया ।
रंगीलाल भी हाथ धूल कर अपने कमरे में बैग से ब्रश लेने चला गया
अभी वो कमरे में गया ही था कि उसे तेजी से किसी के भागने की आहट आई
आहट इतनी तेज थी कि वो अचरज से बाहर झांकने आया तो देखा घर के बच्चों में कोई बनवारी के कमरे के पास वाले जीने से ऊपर गया है ।
रंगीलाल के इग्नोर किया और अपना समान निकालने लगा ।
वही पीछे आंगन में बनवारी खुले में नहाने बैठ गया , मोटर चालू थी और तेजी से पानी आ रहा था । बनवारी ने आंगन का दरवाजा लगाया और धोती निकाल कर पूरा नंगा हो गया ।
इस बात से बेखबर कि कोई उपर की छत से छिप कर उसे देख रहा था ।
वो पूरा नंगा होकर खुले आंगन में बैठा था और अपने देह पर पानी गिरा रहा था ।
वो एक प्लास्टिक की छोटी स्टूल पर था अपनी टांगे फैलाए हुए एड़ी घिस रहा था और उसके बड़े बड़े झूलते आड़ो के साथ उसका मोटा काला बैगन जैसा लंड सोया हुआ भी विकराल लग रहा था ।
बनवारी अपने देह पर पानी डाल रहा था और उसका लंड भीग रहा था
तभी उसे लगा कि कोई उपर से देख रहा था किसी साए के होने का अहसास
झट से उसने नजर ऊपर की और अपने सीने पर हाथ मलने लगा ।
उसने वहा से ध्यान हटाया क्योंकि जो भी था वो वहा से पीछे हो गया और कुछ देर तक अपने देह को बिना साबुन के मलता रहा और जब बाल्टी के पानी की हलचल हल्की हुई तो उसने एक लहराती हुई झलक पानी की बाल्टी में देखी और वो दो चुटिया वाली लड़की कोई और नहीं गीता थी ।
बनवारी एकदम से असहज हो गया था उसने झटपट से पानी डाला और अपनी धोती लपेटे कर बाहर आया । उसका अंदाजा सही था , उसे बाहर बड़े आंगन में गीता नजरे चुराती हुई ब्रश करती हुई दिखाई दी ।
बनवारी को पसंद नहीं आया कि उसकी नातिन ऐसा कुछ हरकत करेगी । भला अभी उसकी उम्र क्या है और ये कई दिनों से बनवारी महसूस कर रहा था मगर आज गीता की पहचान हो गई थी ।
बनवारी चुपचाप अपने कमरे में चला गया और रंगीलाल अपने कपड़े लेकर एक तौलिया लपेट कर बनियान में बाथरूम की ओर गया ।
उसकी नजर अनायास सुनीता को खोज रही थी और किचन में उसे देखते ही वो उस ओर ही बढ़ गया ।
दरवाजे पर आहट और सुनीता सतर्क होकर रंगीलाल को देख कर मुस्कुराई । उसकी नजर रंगीलाल के कंधे की चोट पर गई जो अब काली पड़ने लगी थी ।
: जख्म कैसा है आपका ? ( सुनीता ने इशारा किया )
: आपने दिया है आप जानो ( रंगी ने सुबह सुबह छेड़ा उसे )
: धत्त क्या आप भी सुबह सुबह ( सुनीता लजाई)
: सुबह का ही तो इंतजार था , आपकी समय सीमा पूरी हो गई है भाभी जी ( रंगीलाल का इशारा रात वाले वाक़िये पर था )
: क्या ? धत्त , आप तो सीरियस हो गए ( सुनीता अब घबराई मगर उसकी खूबसूरत होठों की हसीन मुस्कुराहट के कही खो सी गई )
: तो क्या आपने हमारे प्यार को मजाक समझा था ( रंगी ने भौहें उचका कर पूछा)
: धत्त जीजा जी , आप मुझे कंफ्यूज कर रहे है । क्या आप सच में ? ( सुनीता की सांसे तेज थी )
: अभी भी कोई शक है आपको ( रंगी के भीतर वासना के जज्बात उसके लंड में सुरसुराहट भर रहे थे ) मुझे तो बस आपकी हा का इंतजार रहेगा ।
ये बोलकर रंगी मुस्कुराता हुआ बाथरूम की ओर चला गया और सुनीता वही उलझी हुई खड़ी रही । उसका मन बार बार यही समझा रहा था कि उसके नंदोई उससे मजाक ही कर रहे है । तभी उसका ध्यान अपने पति राजेश को ओर गया और ना जाने क्यों वो चिढ़ सी गई । बीती रात राजेश फिर पी कर आया था और अभी तक उठा नहीं था ।
सुनीता ने बबीता को आवाज दी : गुड़िया , ये गुड़िया ?
बबीता भागकर आई : हा मम्मी !!
सुनीता घुड़क कर : जा तेरे पापा को जगा जल्दी जा
बबीता जो कमरे में सुबह सुबह ही टीवी चालू करके बैठी थी उसकी मां ने उसको काम फरमा दिया ।
वो भी भुनकती हुई अपने पापा को जगाने उनके कमरे में गई
राजेश बेड पर पेट के बल पसरा हुआ था , बबीता बेड के करीब खड़ी होकर अपने पापा को हिला कर आवाज देने लगी
: पापा उठो , पापा
: उम्ममम ( राजेश ने वैसे ही लेटे हुए अपनी आँखें खोलनी चाही तो उसके सामने बबीता की चिकनी जांघें थी । वो इस समय शॉट्स और टॉप में आई थी । )
गोरी चिकनी दूधिया जांघें देखते ही राजेश के जहन में कल वाली छवि उभर आई और उत्तेजना उसके सोए हुई चेतना पर हावी होने लगा
: इधर आ बेटा ( राजेश करवट लेते हुए बबीता की कलाई पकड़ कर बिस्तर पर बिठाया )
: उम्हू छोड़ो नहीं बैठना मुझे आपके पास ( बबीता को उसके बाप के देह से शराब की बू आती महसूस हो रही थी उसने हाथ झटक कर छुड़ाना चाहा )
मगर राजेश जबरन उसे पकड़ कर बिठा लिया और उसके पीठ सहलाने लगा
: क्या हुआ गुड़िया , बेटा ( राजेश ने उससे दुलारा और इसी बहाने वो बबीता के गुदाज नर्म पीठ का स्पर्श ले रहा था )
: उन्हूं छोड़ो मुझे ( बबीता ने कंधे झटके ) आप गंदे हो इसलिए नहीं आती हूं आपके पास हूह ( बबीता ने मुंह बनाया
: अच्छा नहा लूंगा तो रहेगी न मेरे पास ( राजेश ने फुसलाया )
: ना ( बबीता ने ना में सर हिलाया )
: फिर ?
: आप जब शराब नहीं पियोगे तो ही मै आपके पास रहूंगी, पहले प्रोमिस करो कि आप शराब नहीं पियोगे, बोलो ( बबीता उसकी ओर घूम कर बोली )
राजेश अपने नशे की लत से बंधा था मगर एक अनजाना लालच उसे बबीता की ओर खींच रहा था
: ठीक है प्रोमिस , लेकिन तुझे मेरे साथ टीवी देखनी पड़ेगी ठीक है ( राजेश ने उसकी हथेली अपने हाथों में ली )
: ओके पापा , हीही ( बबीता एकदम से खुश हो गई ) चलो अब उठो बहुत बदबू कर रहे हो आप हीही ( बबीता उसका हाथ पकड़ कर खींचने लगी )
शिला के घर
मानसिंह छत से नीचे आया , कल रात रज्जो की वजह से उसे ऊपर सोना पड़ा था , लेकिन कम्मो ने उसे इसका अफसोस नहीं होने दिया ।
मगर उसकी नजर रज्जो पर जम गई थी , कल सुबह जबसे उसने रज्जो को अपनी गोद में खिलाया था उसके मोटे बड़े भड़कीले चूतड़ों को मसला था उसकी नंगी पेट पर अपने हाथ फेरे थे , उस अहसास से मानसिंह उभर नहीं पाया था । जब जब उसकी नजरें रज्जो पर जाती एक बिजली सी कौंध जाती उसके जिस्म में , लंड उसकी भड़कीले चूतड़ों को देख कर पागल हो जाता था । मगर कही न कही वो थोड़ा शर्मिंदा था , रज्जो और मानसिंह दोनों एकदूसरे से नजरे चुरा रहे थे ।
सीढ़िया उतरते हुए मानसिंह की नजर किचन में गई , उसने अभी तक कल वाली वही शिला की साड़ी पहनी थी , मगर इस बार मानसिंह ने धोखा नहीं खाया और चुपचाप बिना उसकी नजर में आए धीरे से अपने कमरे की ओर चला गया
अंदर कमरे में शिला अपने मानसिंह के ही कपड़े स्त्री कर रही थी
अपनी गदराई बीवी को कुर्ती लेगी के देख कर मानसिंह का लंड एकदम से अकड़ गया
उसने पीछे से आकर उसके नरम चर्बीदार चूतड़ों पर पंजा जड़ा
: अह्ह्ह्ह्ह मैयायाह उम्मम क्या करते हो जी अह्ह्ह्ह ( शिला मानसिंह के थप्पड़ से झनझना गई और अपने कूल्हे सहलाने लगी )
: उम्मम मेरी जान आज तो सारी रात तड़पा हु तुम्हारे लिए ( मानसिंह पीछे से हग करता हुआ उसके बड़े बड़े रसीले मम्में कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा )
: अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म क्यों ऑनलाइन देखा नहीं क्या मुझे , कैसे तुम्हारी याद इतना बड़ा डिल्डो डाल रही थी ओह्ह्ह्ह उम्ममम नहीं रुकिए न ( शिला वही दिवाल के लग कर खड़ी हो गई और मानसिंह उसकी कुर्ती उठा कर लेगी के ऊपर से उसकी बुर सहलाने लगा )
: अह्ह्ह्ह्ह मजा तो तब आता जान , जब तुम रज्जो भाभी की बुर के दर्शन भी कराती , अह्ह्ह्ह तुम दोनों की जोड़ी रात में एकदम हिट थी । कितने सारे लोगों ने क्लब ज्वाइन किया ( मानसिंह उससे लिपट कर उसके चूचे कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा और शिला भी उसका लंड पकड़ की ली )
: आज देख लेना मेरी जान , आज दुपहर में कितने सारे क्लाइंट को फोटो भेजनी है , तुम्हारे पास वीडियो भेजूंगी पूरी नंगी करके ( शिला ने उसका लंड भींचते हुए उसकी आंखों में देख कर बोली )
:अह्ह्ह्ह सच में जान, जब से रज्जो भाभी को छुआ है तबसे कुछ भी इतना नरम और मुलायम नहीं लगता है , सोचता हूं एक बार फिर उन्हें अपनी गोद में बिठा लू अह्ह्ह्ह ( मानसिंह बोलते हुए शिला के लिप्स से अपने लिप्स जोड़ लिया और पजामे में बना हुआ लंड का तंबू सीधा उसकी बुर में कोचने लगा )
: अह्ह्ह्ह उफ्फ उम्मम तो जाओ दबोच लो , किचन में होंगी । मीरा भी गांव गई है बाउजी ने बुलाया है । जाओ ( शिला ने उसको उकसाया )
: पक्का , अगर नाराज हो गई तो ? ( मानसिंह ने चिंता जाहिर की )
: अरे मुझसे ज्यादा वो प्यासी है लंड के लिए, आप बस पहल तो करो खुद पकड़ के अपनी बुर में डाल न ले तो कहना ( शिला ने मानसिंह को पूरे जोश से भर दिया )
मानसिंह ने अपनी बीवी के भरोसे इस रिश्क के लिए तैयार हो गया और वापस कमरे के निकल कर किचन की ओर गया तो आधे रास्ते में ही रुक गया , क्योंकि किचन में उसका भाई रामसिंह पहले ही रज्जो के पास खड़ा उससे बातें कर रहा था ।
मानसिंह को रज्जो का मुस्कुराना और अपने भाई के खिल कर बातें करता देख अजीब सी बेताबी हुई और लपक कर छुप कर किचन के पास जीने बाहर ही खड़ा हो गया ।
: वैसे आज मुझे एक पल को पीछे से लगा था कि आप भाभी ही है , फिर याद आया कि कल भैया भी गच्चा खा गए थे हाहाहा ( रामसिंह हंसता हुआ बोला और रज्जो लजा गई )
: क्या दीदी भी न , सबको बता दिया ( रज्जो लाज से हंसी )
रज्जो के हाथ चकले पर तेजी से चल रहे थे, और हर बार जब वह बेलन को दबाती, उसके बड़े, रसीले दूध ब्लाउज में हिलते-डुलते। उसका ब्लाउज थोड़ा तंग था, जिससे उसकी भरी-पूरी देह और भी उभर कर सामने आ रही थी। रामसिंह की नजरें अब उसकी छाती पर ठहर गई थीं, और वह मन ही मन कुछ शरारती खयालों में खो गया।
उसकी नजर रज्जो के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर थी जो साड़ी की ओट में थी ।
: अब किसी को बताए न बताए अपने लाडले देवर से कुछ नहीं छिपाती मेरी भाभी ( रामसिंह शब्दों के दाव पेच अच्छे से जानता था और शिला ने पहले से उसे बता रखा था कि रज्जो का मिजाज कैसे है और कैसे वो शब्दों के दो फाड़ करने में माहिर थी )
: अच्छा जी , कुछ भी नहीं ( रज्जो के चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट थी )
: उन्हू कुछ भी नहीं ( रामसिंह ने बड़े विश्वास से कहा )
: अच्छा तो ... नहीं कुछ नहीं ( रज्जो ने जहन में सहसा कुछ आया लेकिन्वो चुप हो गई )
वही रज्जो के चुप होने से ना सिर्फ रामसिंह बल्कि किचन के बाहर खड़ा मानसिंह भी उत्सुक हो उठा । दोनों भाई भीतर से बेचैन हो गए ।
: अरे क्या हुआ बोलिए न ( रामसिंह ने थोड़ा कैजुअल होकर कहा )
: वो ... नहीं हीही कुछ नहीं ( रज्जो सब्जियां चलाती हुई बोली )
: अरे .. कहिए न झिझक कैसी ( रामसिंह )
: नहीं मै दीदी से पूछ लूंगी ( रज्जो ने मुस्कुरा कर कहा )
: अरे ऐसा कुछ नहीं है जो भाभी को पता है और मुझे नहीं , आप आजमा कर तो देखिए
: पक्का ( रज्जो के चैलेंज सा किया )
दोनों भाई एकदम से जिज्ञासु
: हा हा , कहिए ( रामसिंह विश्वास से बोला )
: कल रात हम दोनो साथ में सोए थे और आपके भैया ऊपर थे अकेले , पता है आपको ? ( रज्जो मुस्कुराई )
: अह हा पता है , इसमें क्या बात हो गई ( इधर रज्जो के इस पहल से रामसिंह और मानसिंह की सांसे चढ़ने लगी , क्योंकि उन्हें डर था कही उनकी योजना खुली किताब न हो जाए )
: अच्छा तो क्या ये बता है कि रात में आपकी भाभी ... हीही आपके भैया का नाम लेकर मुझसे चिपक रही थी हाहा ( रज्जो हस कर बोली )
रज्जो की बात सुनकर दोनों भाई के लंड में हरकत होने लगी
: क्या आप भी न भाभी , वैसे एक राज की बात बताऊं भैया से नहीं कहेंगी न ( रामसिंह उसके पास खड़ा हुआ , उसका लंड पजामे में तंबू बना चुका था और रज्जो की नजर उसपे पड़ चुकी थी । )
: उन्हूं बिल्कुल भी नहीं ( रज्जो की सांसे तेजी से धड़क रही थी वो रामसिंह की आंखों में वासना की बढ़ती भूख को देख पा रही थी । जिसका असर कुछ कुछ उसपे भी हो रहा था )
: पता है एक बार कम्मो नाराज हो गई थी हमारी खूब लड़ाई हुई और मै भी गुस्से में भैया के बिस्तर पर सो गया था और उस रात भाभी ने मुझे भैया समझ कर मुझसे चिपक गई थी ( रामसिंह ने अपने शब्दों में मसाला डाल कर परोसा )
रज्जो साफ साफ उसके झूठ को समझ रही थी क्योंकि वो पहले से ही शिला से उसके घर की सारी कहानी सुन चुकी थी । मगर उसे ये खेल पसंद आ रहा था
वही बाहर खड़ा मानसिंह अलग से अपना लंड मसल रहा था कि उसका छोटा भाई तो काफी तेज निकला और यहां वो एक बार रज्जो को दबोच कर भी कुछ नहीं कर सका ।
: फिर क्या हुआ ? आपने क्या किया ? ( रज्जो ने आंखे बड़ी कर रामसिंह को देखा )
: आपको बुरा तो नहीं लगेगा न, वो क्या है कि बातें थोड़ी वैसी है ( रामसिंह ने ऐसे दिखाया जैसे वो कितना बेबस हो )
: अरे हम लोग कौन सा बच्चे , कही आपकी उम्र तो 18 से कम तो नहीं हीही ( रज्जो मस्ती में बोली ताकि रामसिंह थोड़ा खुले )
रज्जो की बात पर रामसिंह के साथ साथ बाहर छुपा मानसिंह की भी हसी रुक न सकी ।
: हीही, आप भी न भाभी खोज कर रखी है सारे शब्द । वैसे मै 18+ तो तभी हो गया था जब आपको पहली बार देखा था । ( रामसिंह ने शरारत भरी नजरो से रज्जो की आंखों ने देखा)
: वैसे आप कुछ बता रहे थे ( रज्जो ने बात घुमाई , जैसा कि वो सताने में माहिर है )
: हा वो , उसके बाद भाभी ने यहां नीचे पकड़ लिया और दीवानी सी हो गई ( रामसिंह का इशारा अपने पजामे के तंबू पर था )
: हाय दैय्या, फिर ( रज्जो ने नाटक जारी रखा )
: भाभी को अपने देखा ही है कितनी मुलायम है और उनका स्पर्श मुझे पागल कर गया था और फिर .... ( रामसिंह ने मुस्कुराते हुए आंखे मार कर गर्दन झटका )
: क्या सच में , धत्त झूठे मै नहीं मानती कि दीदी ऐसा करेंगी । ( रज्जो ने आजमाया )
इधर बाहर खड़ा मानसिंह ताज्जुब में था कि एक दिन पहले ही आई रज्जो इतना खुल कैसे गई , रज्जो की बातों और जिस तरह वो भूखी नजरों से कभी रामसिंह का लंड का तंबू देखती और कभी उसकी आंखों में देखती। मानसिंह मान गया कि उसकी बीवी शिला ने रज्जो के बारे में सही कहा था ।
: अरे सच में ऐसा हुआ था , और अब तो कई बार ... लेकिन प्लीज भैया या कम्मो से मत कहिएगा ( रामसिंह बोला )
: नहीं कहूंगी , लेकिन एक शर्त है ( रज्जो शरारती मुस्कुराहट के साथ इतराई )
: क्या कहिए न ( रामसिंह बोला ).
: आपको मुझे दिखाना पड़ेगा ( रज्जो ने रामसिंह को उलझाया )
रज्जो के इस वक्तव्य से दोनों भाई एकदम से चौक गए
: क्या देखना चाहती है आप ( रामसिंह का लंड पजामे ने पूरा अकड़ कर पंप होने लगा )
: आपको आपकी भाभी के साथ , थोड़ी सी मस्ती भी चलेगी जिससे मुझे यकीन हो जाए ।( रज्जो उससे एकदम सट कर खड़ी थी )
: लेकिन मेरा क्या फायदा इतना बड़ा रिश्क लेने का ( रामसिंह की सांसे तेज थी और वो रज्जो की आंखों में देख रहा था )
: जितना बढ़िया सो उतना अच्छा इनाम ( रज्जो ने आंखे नचा कर जीभ को अंदर से अपने गाल में कोचते हुए इतराई )
: ठीक है , अभी मुझे कालेज जाना है शाम को मिलता हुं ( रामसिंह ने चैलेंज ऐक्सेप्ट किया और निकल गया वहां से )
वही मानसिंह बाहर खड़ा अपना मूसल मसलने लगा था कि क्या गजब का माहौल होने वाला है आज तो । मानसिंह बिना रज्जो से मिले चुपचाप वापस कमरे में चला गया शिला को साड़ी बात बताने के लिए।
चमनपुरा
: मम्मी देर हो रही है , कितना टाइम !! ( अनुज उखड़ कर बोला )
वो रागिनी के कमरे के बाहर खड़ा था और रागिनी कमरे में तैयार हो रही थी नहाने के बाद
: बस बेटा आ रही हूं , ये डोरी ... ( रागिनी की कुछ उलझन भरी आवाज आई )
अनुज के जहन में इस वक्त लाली की दीदी छाई थी । वो आज अपनी मिस को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था ।
: अनुज सुन बेटा , जरा अंदर आना ( रागिनी ने आवाज दी )
: क्या हुआ मम्मी ( अनुज परेशान होकर कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर गया )
जैसे ही वो अन्दर घुसा उसकी आंखे बड़ी ही गई
"उफ्फ मम्मी कितनी सेक्सी" , अपनी मां के पीछे खड़ा हो कर वो बड़बड़ाया ।
उसकी मां रागिनी के नया ब्लाउज ट्राई का रही थी , जो पीछे से हुक की जगह बांधने वाली थी और बार बार कोशिश करके रागिनी के हाथ दुखने लगे थे
: बेटा ये जरा बांधना ( रंगीनी ने गर्दन घुमा कर बोला )
अनुज का हलक सूखने लगा था , उस साड़ी में अपने मां को देख कर जिस तरह से वो उनके कूल्हे से चिपकी थी चौड़ी कमर से लेकर ऊपर गर्दन तक पीछे से पूरी पीठ नंगी और मुलायम । गिले बालों से पानी के हल्के फुल्के अंश पीठ के बीच में दिख रहे थे ।
अपनी मां के जिस्म की कोमलता को अनुज साफ महसूस कर पा रहा था , उसने बिना कुछ कहे रागिनी के ब्लाउज का फीता पकड़ा यार उसको हल्के से गांठ दी , ये सोच कर कि कही उसकी मां के मुलायम चूचों पर जोर न पड़े , वो कस न जाए
: अरे क्या कर रहा है , टाइट कर न आज ब्रा नहीं डाली है मैने , कस पूरा ( रागिनी ने अनुज को टोका )
अपनी मां के मुंह से ऐसे अलफाज सुन कर अनुज की सांसे चढ़ने लगी और उसके फीते की कस कर गांठ दी
: अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकी )
: ज्यादा कसा गया क्या मम्मी ( अनुज फिकर में बोला )
: नहीं ठीक है , बांध दिया तो ऊपर वाली डोरी भी बांध दे ( रागिनी उखड़ कर बोली )
अनुज मुस्कुरा कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी बांधने लगा जिसकी लंबी गुरीया और मोतियों वाली लटकन उसके उभरे हुए कूल्हे तक जा रही थी ।
: हम्मम अब ठीक है ( रागिनी ने आइने में खुद को देखते हुए उस ओर बढ़ गई जिससे उनकी ब्लाउज का लटकन उनके कूल्हे पर उछल कर इधर उधर छिटकने लगा )
अनुज की नजर अपनी मां की मादक चाल पर थी और वो भीतर से सिहर उठा , रागिनी लिपस्टिक से अपने होठ रंग रही थी ।
जिसे देख कर अनुज की प्यास और बढ़ने लगी थी
: मम्मी , कितना रेडी हो रहे हो ? अच्छे से तो लग रहे हो आप ( अनुज भिनक कर बोला
रागिनी की उंगलियाँ एक पल के लिए रुक गईं। उन्होंने शीशे में अपनी परछाई के साथ-साथ अनुज की झुंझलाई हुई शक्ल को भी देखा। उनकी आँखों में हल्की-सी चमक आई, और फिर वह धीरे से हँस पड़ीं।
वो लिपस्टिक लगा कर खड़ी हुई और उसकी ओर घूम कर बोली: अब कैसी लग रही हूं ( रागिनी हंसी करती हुई अनुज की ओर अपना चेहरा करके आंखे तेजी से मलकाई )
अनुज अपनी मां के भोलेपन पर मुस्कुरा दिया : हील वाली सैंडल पहन लो, मेरी कालेज की मिस जी लगेगी हीही
: हैं सच में ? रुक पहनती हु ( रागिनी खिल कर बेड के नीचे से अपनी एक हील सैंडल निकालने के लिए झुकी जो उसने सोनल की शादी में पहनने के लिए लिया था
: मम्मी यार लेट हो .... उफ्फ ( सहसा अनुज की नजर अपनी मां के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर गई जो झुकने की वजह से उस चुस्त साड़ी के फैलाना चाह रही थी , कूल्हे कैसे पहाड़ हो आगे पूरे गोल ।
: रुक न रुक न हो गया ( रागिनी झुक कर सैंडल पहनती हुई ) अब लग रही हूं न मिस जी तेरी ( रागिनी अपनी साड़ी सही करती हुई इतराई और अपना पल्लू हवा में लहराया )
: हा लेकिन .. (मगर अनुज की नजर कही और अटकी थी )
: क्या हुआ बोल
: वो आपकी ढोंडी नहीं दिख रही है , उनकी दिखती है ( अनुज बोलते हुए दांत में जीभ दबा लिया)
: अरे वो मै थोड़ा ऊपर की हूं .... आह अब सही है ( रागिनी ने झट से अपना पेट पिचकाया और साड़ी को नेवल के नीचे ले जाती हुई सेट करते हुए बोली )
अनुज को यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां ये सब उसके सामने कर रही है । हालांकि उसने बचपन से अपनी मां को अपने आगे तैयार होते कपड़े बदलते देखा था मगर अब बात कुछ और थी ।
: हम्ममम ( अनुज अपनी मां की गुदाज चर्बीदार नाभि देख कर थूक गटकने लगा )
: चलें ( रागिनी मुस्कुरा कर बोली )
: ऐसे ही ( अनुज आंखे बड़ी कर बोला )
: हा क्यों ? अच्छी नहीं लग रही हूं क्या ( रागिनी इतराई )
: नहीं वो सैंडल ? ( अनुज इशारे से )
: अरे हा , हीही ( रागिनी हस्ती हुए अपने पैर से सैंडल को बेड के नीचे झटका और जल्दी से रेगुलर चप्पल पहनती हुई ) चल चल
अनुज मुस्कुराता हुआ अपनी मां के साथ निकल गया
वही राज जो अब तक दुकान पहुंच गया था , ग्राहकों के बीच उलझा हुआ था ।
तभी उसके मोबाइल पर फोन आता है एक नंबर से जिसे देख कर उसकी मुस्कुराहट खिल जाती है पूरे चेहरे पर
जल्दी से वो ग्राहक निपटाता है और केबिन में जाकर कॉल बैक करता है
फोन पर
: ऊहू .. नमस्ते क्यूट भाभी जी ( राज मुस्कुराते हुए बोला )
: अरे .. धत्त आप भी न राज बाबू ( उधर आवाज आई ) छोड़िए ये बताइए कैसे है ?
: आपके बिना कैसे होंगे ? ( राज ने आहे भरता हुआ बोला )
: धत्त बदमाश, अच्छा सुनो न मुझे अभी दो तीन रोज का समय लगेगा चमनपुरा आने में और आज मेरा एक पार्सल आ रहा है । रिसीव कर लेंगे क्या ( काजल भाभी ने बड़ी मीठी आवाज में गुजारिश की )
: उम्हू एक और पार्सल ( राज ने छेड़ा उसे )
: धत्त बदमाश, सही बोलो न ? ( काजल भाभी बोली ) ले लोगे न ?
: आप दो तो सही , अगर हम मना करे तो हमारी गुस्ताखी ( राज ने फिर से छेड़ा उसे )
: अच्छा बाबा ठीक है अब घुमाओ मत ( काजल भाभी गहरी सास लेते हुई बोली ) अच्छा इस बार का उधार नहीं रखूंगी । पक्का
: और पहले वाली उधारी ?
: ठीक है वो भी ले लेना , लेकिन प्लीज याद से रिसीव कर लेना ओके , मै फोन करूंगी ( काजल भाभी ने रिक्वेस्ट की )
: ओके मेरी क्यूट भाभी जी , और कुछ
: उन्हूं कुछ नहीं , बाय
: क्या बस बाय ? ( राज ने फिर से काजल भाभी को छेड़ा )
: हा तो , हिसाब किताब में कुछ भी घलुआ नहीं मिलेगा । काम करोगे पहले फिर दाम मिलेगा ( भाभी तुनक कर बोली और फोन काट दिया )
राज मुस्कुरा कर अपना लंड पेंट में मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह ठीक ही , मै भी गल्ले वाला सेठ हूं भाभी । हिसाब अच्छे से करूंगा ।
वही इनसब से अलग मंजू आज खासा खामोश थी
रात की हरकत से वो मुरारी से बेहद नाराज जी , उसकी इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी उसके साथ जाने की । मगर ता उम्र और जवानी के इतने साल उसने मदन से दूर बिताए थे । मदन ने उसके प्यार में अपनी जिंदगी नहीं बसाई और आज भी उसकी राह देख रहा है , अगर वो हा करके भी नहीं गई तो शायद मदन के साथ ज्यादती होगी । शायद उसे अपने जीवन का ये जहरीला घूंट पीना ही पड़ेगा ।
वही आज मुरारी मंजू को उदास देख रहा था , उसे लग रहा था कि मंजू में शायद इस समाज और घर के लिए मोह है जो उसके बुरे दिनों में उसके साथी रहे है ।
: मंजू मैने गाड़ी वाले से बात कर ली है , वो चौराहे पर है । उसे रास्ता समझ भी आ रहा है । तुम घर में ताला लगाओ मै बस अभी आ रहा हूं लिवा कर
: जी भइया ( मंजू ने उदास लहजे में जवाब दिया और मुरारी ने उससे कुछ नहीं कहा । चुपचाप निकल गया घर से )
मंजू का बैग रेडी था , उसके कमरे में एक बुढ़िया बैठी थी । मंजू दिवाल पर लगी आराध्यों के पुरानी तस्वीरों के खुद को नतमस्क करने लगी । शायद वो आभारी थी उन सबके कि इतने बुरे दिनों में वो उसके साथ खड़े रहे ।
इधर मेन सड़क पर आते समय मंजू के घर के मुहल्ले की ओर 3 4 बाइक्स तेजी से निकली , मुरारी ने उनके चेहरे पर गुस्से से भरी उत्तेजना देखी । मगर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गया ।
कुछ ही देर बाद वो चौराहे से गाड़ी में बैठ कर मंजू के घर के पास पहुंचने लगा
तो देखा , वहां काफी भीड़ जमा हुई है । वो बाईक्स जो कुछ देर पहले उसके नजरो के आगे से गुजरी थी वो वही खड़ी थी ।
मुरारी को संदेह हुआ कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ , वो गाड़ी से उतरने लगा । भीड़ पूरी शांत थी , मगर एक तेज आवाज की गूंज से मुरारी थरथरा उठा ।
भीड़ ने निकल कर सामने देखा तो ये आवाज मंजू के घर से आ रही थी
" साली , रंडी उतर आई न अपनी जात पर , कहा छिपा है वो भोसड़ी है आज उसकी लाश लेकर जाऊंगा , कहा है वो बोल ? " , घर में से एक तेज आवाज आई । जिसे सुनते ही मुरारी का कलेजा उबाल मारने लगा । उसकी सांसे चढ़ने लगी , आंखे लाल होने लगी
“रुक जा, तू!” मुरारी ने उस अड़ियल आदमी को ललकारा, जो मंजू को गालियां दे रहा था। उसकी आवाज में गुस्सा और दृढ़ता थी। भीड़ में एक सन्नाटा सा छा गया। बाकी लोग हैरान थे कि कोई उनकी हिम्मत कैसे कर सकता है। उस आदमी ने मुरारी की ओर घूरते हुए कहा देखा , “तू कौन है बे? तुझे क्या लेना-देना?”
: जिसे तू खोज रहा है वो मै ही हूं , बोल अब ( मुरारी अपना कुर्ता की बाह मरोड़ता हुआ बोला )
मुरारी की बात सुनकर वो आदमी हंस पड़ा, लेकिन उसकी हंसी में क्रूरता थी। “अच्छा, तो तू इसका यार है? चल, देखते हैं कितना दम है तुझमें!”
: नहीं भइया, मत उलझिए इससे । आप प्लीज वापस घर चले जाइए ( मंजू बिलखती हुई बोली, उसकी बेबसी और आंखों के आंसू देख कर मुरारी का खून और खौलने लगा )
: नहीं मंजू , मैने अपने बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा और मै कभी भी अपना वादा नहीं तोड़ता । ( मुरारी उसको विश्वास दिला रहा था कि इतने में तेजी से एक पंजा उसकी पीठ पर और उसके कुर्ते को पकड़ कर खींचते हुए अपनी ओर घुमाया )
: भोसड़ी के तू बड़ा सलमान खां हैं? मादर... चो ( एकदम उस दूसरे आदमी की सांसे अटक गई दिल मानो बैठ ही जाएगा , आंखे बड़ी और एकदम मूर्ति सी बन गई ) हे देख .. देख मस्ती नहीं , भाई गोली है लग जाएगी । देख ऐसे नहीं
: क्यों भोसड़ी के , हैं, निकल गई हवा मादरचोद ... ले तेरी मां का ( मुरारी ने एक उल्टे हाथ कोहनी उसके सीने पर दी और वो कहराते हुए पीछे हो गया )
अब मुरारी ने अपनी रिवॉल्वर का प्वाइंट उस आदमी की ओर किया जिसने ये सारा हंगामा खड़ा किया था
मंजू ने जैसे ही मुरारी के हाथ रिवॉल्वर देखी एकदम से हदस गई , उसकी लाली डबडबाई आंखे पूरी फेल गई , उसका कलेजा धकधक हो रहा था । उसके जहन में वो शब्द गूंज रहे थे जो कुछ देर पहले मुरारी ने उससे कहे थे ।
" मैने मेरे बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर ले आऊंगा " , ये शब्द मानो आकाशवाणी जैसे उसके दिमाग में घूम रही थी । उसका कलेजा काफ रहा था किसी अनहोनी की आशंका में । कही मुरारी ने उस गुंडे को मार दिया तो
वही वो आदमी एकदम से सन्न हो गया था उसके साथी वहां से भाग खड़े हुए थे । उस आदमी का हलक सूखने लगा था पाव पीछे हो रहे थे ।
: द देख भाई , मेरी कोई दुश्मनी नहीं है । इसको ले जाना चाहता है तो ले जा , इतने दिन मेरे साथ थी न तो अपन खुश अब तू ले जा तू खुश । भाई प्लीज मै जा रहा हूं, हा ( वो हाथ खड़े किए हुए अपनी बाइक तक गया और झटके में बाइक स्टार्ट कर निकल गया )
मुरारी ने रिवॉल्वर वापस अपने बेल्ट के खोंसी और कुरता गिरा दिया और मंजू के पास पहुंचा जो घर के दरवाजे पड़ी बिलख रही थी , मुरारी उसके पास बैठा : आओ चलें गाड़ी आ गई
: भइया... ( मंजू रोती हुई एकदम से मुरारी से लिपट गई )
मुरारी को यकीन नहीं था कि मंजू ऐसा कुछ करेगी , वो चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था ।
जारी रहेगी ।
बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गयाअध्याय : 02
UPDATE 07
प्रतापपुर
सुबह का वक्त था, सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था। हल्की ठंडी हवा में खेतों की मिट्टी की सोंधी महक बिखरी हुई थी। रंगी और बनवारी, दोनों गाँव के बाहर खेतों की ओर टहल रहे थे। बनवारी की रोज की आदत थी—सुबह शौच के लिए निकलना, रास्ते में दुनिया-जहान की बातें करना, और हँसी-मजाक में वक्त गुजारना।
घर की वापसी हो रही थी ।
रंगी, चेहरे पर शरारती मुस्कान लिए, अपने खाली लोटे को एक हाथ में लटकाए हुए चल रहा था। बनवारी, भी मूँछों को ताव देता हुआ, कंधे पर पुरानी गमछी डाले, रंगी के पीछे-पीछे था।खेतों की ओर जाने वाली पगडंडी पर हरियाली छाई थी। मक्के के खेतों में हल्की ओस की चमक थी, और दूर कहीं कोयल की कूक सुनाई दे रही थी। रंगी ने चलते-चलते एक ठूंठ पर पैर रखा, संतुलन बनाया, और फिर बनवारी की ओर मुड़कर, आँखों में चमक लिए बोला
: रात बड़ी देर से सोए थे क्या बाउजी ? (उसने अपनी भौंहें उचकाईं, जैसे कोई राज खोलने की फिराक में हो )
बनवारी ने पहले तो रंगी को घूरा, फिर हल्का-सा ठहाका लगाया।
: अच्छा तो जग रहे थे आप भी जमाई बाबू , हाहाहा ( बनवारी झूठी हसी चेहरे पर लाता हुआ बोला , मगर भीतर से वो रंगी की जिज्ञासा के लिए सही जवाब तलाश रहा था )
: इतनी तेज सिसकियां किसी की भी नीद उड़ा देगी बाउजी , थी कौन वैसे ? ( रंगी ने शरारत भरी मुस्कुराहट से अपने ससुर को देखा)
: कमला थी , अरे शाम को उसको डांटा था थोड़ा फुसलाना पड़ता है । मौके बेमौके पर काम आती ही है ( बनवारी ने रंगी को समझाते हुए कहा )
: सही है बाउजी , चोट मुझे लगी थी और मलहम आप लगवा रहे थे हाहाहा ( रंगी ने बनवारी का मजा लेते हुए अंगड़ाई लिया )
: क्या बात है जमाई बाबू , लग रहा है आपकी नींद भी पूरी नहीं हुई ( बनवारी ने बात घुमाई)
: अब सोनल की मां के बगैर तो मुझे नीद ही नहीं आती , उसपे से आपने और जगा दिया ( रंगी मुस्कुरा कर बोला और उसकी नजर एक दूर जा रही एक औरत के लचकदार मटकते चूतड़ों पर जमी थी । बड़े रसीले मटके जैसे )
: अब रहम भी खाओ जमाई बाबू क्या आंखों से कपड़े उतारोगे हाहाहा ( बनवारी मजाक करते हुए बोला )
: अरे क्या बाउजी , नहीं नहीं बस उसे देखा तो सोनल की मां याद आ गई , ऐसी ही लचक ... खैर ( रंगी अपने ही ससुर के आगे अपनी बीवी के मटके जैसे चूतड़ों का गुणगान करने में लजा सा गया )
: अरे अब कह भी दो भाई , इसमें शर्माना कैसा ? बीवी है तुम्हारी और कौन सा हम भरे समाज में है या फिर हमें अपनी दोस्ती के लायक नहीं समझते जमाई बाबू , बोलो ? ( बनवारी चाह रहा था रंगी थोड़ा झिझक कम करे अपनी और उसकी लाडली बेटी रागिनी के बारे में खुल कर बातें करें )
: अरे नहीं नहीं बाउजी क्या आप भी , हाहा , आप मेरे पिता जैसे है कुछ तो लिहाज करना ही होगा न ! ( रंगी मुस्कुराया )
: अच्छा ठीक है भाई , लेकिन इतना भी क्या शरमाना । जैसे तुमने बिना मेरी बेटी के साथ कुछ ही 3-3 पैदा कर दिए हाहा ( बनवारी ने माहौल हल्का किया )
: क्या बाउजी आप भी न ( रंगी हसते हुए शर्म से झेप गया , उसे उम्मीद नहीं थी कि बनवारी उससे ऐसे पेश आयेगा ) चलिए घर आ गया
और दोनों बाहर गेट के पास नल पर हाथ धुलने लगे ।
: भाई तुमने तो दातुन किए नहीं , तुम भाई ब्रश ही करोगे । तो ऐसा है कि तुम ब्रश कुल्ला करो मै जरा नहा लेता हूं ( बनवारी अपने देह से अपनी बनियान उतारता हुआ नीचे बस धोती लपेटे हुए पीछे आंगन की ओर चला गया ।
रंगीलाल भी हाथ धूल कर अपने कमरे में बैग से ब्रश लेने चला गया
अभी वो कमरे में गया ही था कि उसे तेजी से किसी के भागने की आहट आई
आहट इतनी तेज थी कि वो अचरज से बाहर झांकने आया तो देखा घर के बच्चों में कोई बनवारी के कमरे के पास वाले जीने से ऊपर गया है ।
रंगीलाल के इग्नोर किया और अपना समान निकालने लगा ।
वही पीछे आंगन में बनवारी खुले में नहाने बैठ गया , मोटर चालू थी और तेजी से पानी आ रहा था । बनवारी ने आंगन का दरवाजा लगाया और धोती निकाल कर पूरा नंगा हो गया ।
इस बात से बेखबर कि कोई उपर की छत से छिप कर उसे देख रहा था ।
वो पूरा नंगा होकर खुले आंगन में बैठा था और अपने देह पर पानी गिरा रहा था ।
वो एक प्लास्टिक की छोटी स्टूल पर था अपनी टांगे फैलाए हुए एड़ी घिस रहा था और उसके बड़े बड़े झूलते आड़ो के साथ उसका मोटा काला बैगन जैसा लंड सोया हुआ भी विकराल लग रहा था ।
बनवारी अपने देह पर पानी डाल रहा था और उसका लंड भीग रहा था
तभी उसे लगा कि कोई उपर से देख रहा था किसी साए के होने का अहसास
झट से उसने नजर ऊपर की और अपने सीने पर हाथ मलने लगा ।
उसने वहा से ध्यान हटाया क्योंकि जो भी था वो वहा से पीछे हो गया और कुछ देर तक अपने देह को बिना साबुन के मलता रहा और जब बाल्टी के पानी की हलचल हल्की हुई तो उसने एक लहराती हुई झलक पानी की बाल्टी में देखी और वो दो चुटिया वाली लड़की कोई और नहीं गीता थी ।
बनवारी एकदम से असहज हो गया था उसने झटपट से पानी डाला और अपनी धोती लपेटे कर बाहर आया । उसका अंदाजा सही था , उसे बाहर बड़े आंगन में गीता नजरे चुराती हुई ब्रश करती हुई दिखाई दी ।
बनवारी को पसंद नहीं आया कि उसकी नातिन ऐसा कुछ हरकत करेगी । भला अभी उसकी उम्र क्या है और ये कई दिनों से बनवारी महसूस कर रहा था मगर आज गीता की पहचान हो गई थी ।
बनवारी चुपचाप अपने कमरे में चला गया और रंगीलाल अपने कपड़े लेकर एक तौलिया लपेट कर बनियान में बाथरूम की ओर गया ।
उसकी नजर अनायास सुनीता को खोज रही थी और किचन में उसे देखते ही वो उस ओर ही बढ़ गया ।
दरवाजे पर आहट और सुनीता सतर्क होकर रंगीलाल को देख कर मुस्कुराई । उसकी नजर रंगीलाल के कंधे की चोट पर गई जो अब काली पड़ने लगी थी ।
: जख्म कैसा है आपका ? ( सुनीता ने इशारा किया )
: आपने दिया है आप जानो ( रंगी ने सुबह सुबह छेड़ा उसे )
: धत्त क्या आप भी सुबह सुबह ( सुनीता लजाई)
: सुबह का ही तो इंतजार था , आपकी समय सीमा पूरी हो गई है भाभी जी ( रंगीलाल का इशारा रात वाले वाक़िये पर था )
: क्या ? धत्त , आप तो सीरियस हो गए ( सुनीता अब घबराई मगर उसकी खूबसूरत होठों की हसीन मुस्कुराहट के कही खो सी गई )
: तो क्या आपने हमारे प्यार को मजाक समझा था ( रंगी ने भौहें उचका कर पूछा)
: धत्त जीजा जी , आप मुझे कंफ्यूज कर रहे है । क्या आप सच में ? ( सुनीता की सांसे तेज थी )
: अभी भी कोई शक है आपको ( रंगी के भीतर वासना के जज्बात उसके लंड में सुरसुराहट भर रहे थे ) मुझे तो बस आपकी हा का इंतजार रहेगा ।
ये बोलकर रंगी मुस्कुराता हुआ बाथरूम की ओर चला गया और सुनीता वही उलझी हुई खड़ी रही । उसका मन बार बार यही समझा रहा था कि उसके नंदोई उससे मजाक ही कर रहे है । तभी उसका ध्यान अपने पति राजेश को ओर गया और ना जाने क्यों वो चिढ़ सी गई । बीती रात राजेश फिर पी कर आया था और अभी तक उठा नहीं था ।
सुनीता ने बबीता को आवाज दी : गुड़िया , ये गुड़िया ?
बबीता भागकर आई : हा मम्मी !!
सुनीता घुड़क कर : जा तेरे पापा को जगा जल्दी जा
बबीता जो कमरे में सुबह सुबह ही टीवी चालू करके बैठी थी उसकी मां ने उसको काम फरमा दिया ।
वो भी भुनकती हुई अपने पापा को जगाने उनके कमरे में गई
राजेश बेड पर पेट के बल पसरा हुआ था , बबीता बेड के करीब खड़ी होकर अपने पापा को हिला कर आवाज देने लगी
: पापा उठो , पापा
: उम्ममम ( राजेश ने वैसे ही लेटे हुए अपनी आँखें खोलनी चाही तो उसके सामने बबीता की चिकनी जांघें थी । वो इस समय शॉट्स और टॉप में आई थी । )
गोरी चिकनी दूधिया जांघें देखते ही राजेश के जहन में कल वाली छवि उभर आई और उत्तेजना उसके सोए हुई चेतना पर हावी होने लगा
: इधर आ बेटा ( राजेश करवट लेते हुए बबीता की कलाई पकड़ कर बिस्तर पर बिठाया )
: उम्हू छोड़ो नहीं बैठना मुझे आपके पास ( बबीता को उसके बाप के देह से शराब की बू आती महसूस हो रही थी उसने हाथ झटक कर छुड़ाना चाहा )
मगर राजेश जबरन उसे पकड़ कर बिठा लिया और उसके पीठ सहलाने लगा
: क्या हुआ गुड़िया , बेटा ( राजेश ने उससे दुलारा और इसी बहाने वो बबीता के गुदाज नर्म पीठ का स्पर्श ले रहा था )
: उन्हूं छोड़ो मुझे ( बबीता ने कंधे झटके ) आप गंदे हो इसलिए नहीं आती हूं आपके पास हूह ( बबीता ने मुंह बनाया
: अच्छा नहा लूंगा तो रहेगी न मेरे पास ( राजेश ने फुसलाया )
: ना ( बबीता ने ना में सर हिलाया )
: फिर ?
: आप जब शराब नहीं पियोगे तो ही मै आपके पास रहूंगी, पहले प्रोमिस करो कि आप शराब नहीं पियोगे, बोलो ( बबीता उसकी ओर घूम कर बोली )
राजेश अपने नशे की लत से बंधा था मगर एक अनजाना लालच उसे बबीता की ओर खींच रहा था
: ठीक है प्रोमिस , लेकिन तुझे मेरे साथ टीवी देखनी पड़ेगी ठीक है ( राजेश ने उसकी हथेली अपने हाथों में ली )
: ओके पापा , हीही ( बबीता एकदम से खुश हो गई ) चलो अब उठो बहुत बदबू कर रहे हो आप हीही ( बबीता उसका हाथ पकड़ कर खींचने लगी )
शिला के घर
मानसिंह छत से नीचे आया , कल रात रज्जो की वजह से उसे ऊपर सोना पड़ा था , लेकिन कम्मो ने उसे इसका अफसोस नहीं होने दिया ।
मगर उसकी नजर रज्जो पर जम गई थी , कल सुबह जबसे उसने रज्जो को अपनी गोद में खिलाया था उसके मोटे बड़े भड़कीले चूतड़ों को मसला था उसकी नंगी पेट पर अपने हाथ फेरे थे , उस अहसास से मानसिंह उभर नहीं पाया था । जब जब उसकी नजरें रज्जो पर जाती एक बिजली सी कौंध जाती उसके जिस्म में , लंड उसकी भड़कीले चूतड़ों को देख कर पागल हो जाता था । मगर कही न कही वो थोड़ा शर्मिंदा था , रज्जो और मानसिंह दोनों एकदूसरे से नजरे चुरा रहे थे ।
सीढ़िया उतरते हुए मानसिंह की नजर किचन में गई , उसने अभी तक कल वाली वही शिला की साड़ी पहनी थी , मगर इस बार मानसिंह ने धोखा नहीं खाया और चुपचाप बिना उसकी नजर में आए धीरे से अपने कमरे की ओर चला गया
अंदर कमरे में शिला अपने मानसिंह के ही कपड़े स्त्री कर रही थी
अपनी गदराई बीवी को कुर्ती लेगी के देख कर मानसिंह का लंड एकदम से अकड़ गया
उसने पीछे से आकर उसके नरम चर्बीदार चूतड़ों पर पंजा जड़ा
: अह्ह्ह्ह्ह मैयायाह उम्मम क्या करते हो जी अह्ह्ह्ह ( शिला मानसिंह के थप्पड़ से झनझना गई और अपने कूल्हे सहलाने लगी )
: उम्मम मेरी जान आज तो सारी रात तड़पा हु तुम्हारे लिए ( मानसिंह पीछे से हग करता हुआ उसके बड़े बड़े रसीले मम्में कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा )
: अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म क्यों ऑनलाइन देखा नहीं क्या मुझे , कैसे तुम्हारी याद इतना बड़ा डिल्डो डाल रही थी ओह्ह्ह्ह उम्ममम नहीं रुकिए न ( शिला वही दिवाल के लग कर खड़ी हो गई और मानसिंह उसकी कुर्ती उठा कर लेगी के ऊपर से उसकी बुर सहलाने लगा )
: अह्ह्ह्ह्ह मजा तो तब आता जान , जब तुम रज्जो भाभी की बुर के दर्शन भी कराती , अह्ह्ह्ह तुम दोनों की जोड़ी रात में एकदम हिट थी । कितने सारे लोगों ने क्लब ज्वाइन किया ( मानसिंह उससे लिपट कर उसके चूचे कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा और शिला भी उसका लंड पकड़ की ली )
: आज देख लेना मेरी जान , आज दुपहर में कितने सारे क्लाइंट को फोटो भेजनी है , तुम्हारे पास वीडियो भेजूंगी पूरी नंगी करके ( शिला ने उसका लंड भींचते हुए उसकी आंखों में देख कर बोली )
:अह्ह्ह्ह सच में जान, जब से रज्जो भाभी को छुआ है तबसे कुछ भी इतना नरम और मुलायम नहीं लगता है , सोचता हूं एक बार फिर उन्हें अपनी गोद में बिठा लू अह्ह्ह्ह ( मानसिंह बोलते हुए शिला के लिप्स से अपने लिप्स जोड़ लिया और पजामे में बना हुआ लंड का तंबू सीधा उसकी बुर में कोचने लगा )
: अह्ह्ह्ह उफ्फ उम्मम तो जाओ दबोच लो , किचन में होंगी । मीरा भी गांव गई है बाउजी ने बुलाया है । जाओ ( शिला ने उसको उकसाया )
: पक्का , अगर नाराज हो गई तो ? ( मानसिंह ने चिंता जाहिर की )
: अरे मुझसे ज्यादा वो प्यासी है लंड के लिए, आप बस पहल तो करो खुद पकड़ के अपनी बुर में डाल न ले तो कहना ( शिला ने मानसिंह को पूरे जोश से भर दिया )
मानसिंह ने अपनी बीवी के भरोसे इस रिश्क के लिए तैयार हो गया और वापस कमरे के निकल कर किचन की ओर गया तो आधे रास्ते में ही रुक गया , क्योंकि किचन में उसका भाई रामसिंह पहले ही रज्जो के पास खड़ा उससे बातें कर रहा था ।
मानसिंह को रज्जो का मुस्कुराना और अपने भाई के खिल कर बातें करता देख अजीब सी बेताबी हुई और लपक कर छुप कर किचन के पास जीने बाहर ही खड़ा हो गया ।
: वैसे आज मुझे एक पल को पीछे से लगा था कि आप भाभी ही है , फिर याद आया कि कल भैया भी गच्चा खा गए थे हाहाहा ( रामसिंह हंसता हुआ बोला और रज्जो लजा गई )
: क्या दीदी भी न , सबको बता दिया ( रज्जो लाज से हंसी )
रज्जो के हाथ चकले पर तेजी से चल रहे थे, और हर बार जब वह बेलन को दबाती, उसके बड़े, रसीले दूध ब्लाउज में हिलते-डुलते। उसका ब्लाउज थोड़ा तंग था, जिससे उसकी भरी-पूरी देह और भी उभर कर सामने आ रही थी। रामसिंह की नजरें अब उसकी छाती पर ठहर गई थीं, और वह मन ही मन कुछ शरारती खयालों में खो गया।
उसकी नजर रज्जो के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर थी जो साड़ी की ओट में थी ।
: अब किसी को बताए न बताए अपने लाडले देवर से कुछ नहीं छिपाती मेरी भाभी ( रामसिंह शब्दों के दाव पेच अच्छे से जानता था और शिला ने पहले से उसे बता रखा था कि रज्जो का मिजाज कैसे है और कैसे वो शब्दों के दो फाड़ करने में माहिर थी )
: अच्छा जी , कुछ भी नहीं ( रज्जो के चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट थी )
: उन्हू कुछ भी नहीं ( रामसिंह ने बड़े विश्वास से कहा )
: अच्छा तो ... नहीं कुछ नहीं ( रज्जो ने जहन में सहसा कुछ आया लेकिन्वो चुप हो गई )
वही रज्जो के चुप होने से ना सिर्फ रामसिंह बल्कि किचन के बाहर खड़ा मानसिंह भी उत्सुक हो उठा । दोनों भाई भीतर से बेचैन हो गए ।
: अरे क्या हुआ बोलिए न ( रामसिंह ने थोड़ा कैजुअल होकर कहा )
: वो ... नहीं हीही कुछ नहीं ( रज्जो सब्जियां चलाती हुई बोली )
: अरे .. कहिए न झिझक कैसी ( रामसिंह )
: नहीं मै दीदी से पूछ लूंगी ( रज्जो ने मुस्कुरा कर कहा )
: अरे ऐसा कुछ नहीं है जो भाभी को पता है और मुझे नहीं , आप आजमा कर तो देखिए
: पक्का ( रज्जो के चैलेंज सा किया )
दोनों भाई एकदम से जिज्ञासु
: हा हा , कहिए ( रामसिंह विश्वास से बोला )
: कल रात हम दोनो साथ में सोए थे और आपके भैया ऊपर थे अकेले , पता है आपको ? ( रज्जो मुस्कुराई )
: अह हा पता है , इसमें क्या बात हो गई ( इधर रज्जो के इस पहल से रामसिंह और मानसिंह की सांसे चढ़ने लगी , क्योंकि उन्हें डर था कही उनकी योजना खुली किताब न हो जाए )
: अच्छा तो क्या ये बता है कि रात में आपकी भाभी ... हीही आपके भैया का नाम लेकर मुझसे चिपक रही थी हाहा ( रज्जो हस कर बोली )
रज्जो की बात सुनकर दोनों भाई के लंड में हरकत होने लगी
: क्या आप भी न भाभी , वैसे एक राज की बात बताऊं भैया से नहीं कहेंगी न ( रामसिंह उसके पास खड़ा हुआ , उसका लंड पजामे में तंबू बना चुका था और रज्जो की नजर उसपे पड़ चुकी थी । )
: उन्हूं बिल्कुल भी नहीं ( रज्जो की सांसे तेजी से धड़क रही थी वो रामसिंह की आंखों में वासना की बढ़ती भूख को देख पा रही थी । जिसका असर कुछ कुछ उसपे भी हो रहा था )
: पता है एक बार कम्मो नाराज हो गई थी हमारी खूब लड़ाई हुई और मै भी गुस्से में भैया के बिस्तर पर सो गया था और उस रात भाभी ने मुझे भैया समझ कर मुझसे चिपक गई थी ( रामसिंह ने अपने शब्दों में मसाला डाल कर परोसा )
रज्जो साफ साफ उसके झूठ को समझ रही थी क्योंकि वो पहले से ही शिला से उसके घर की सारी कहानी सुन चुकी थी । मगर उसे ये खेल पसंद आ रहा था
वही बाहर खड़ा मानसिंह अलग से अपना लंड मसल रहा था कि उसका छोटा भाई तो काफी तेज निकला और यहां वो एक बार रज्जो को दबोच कर भी कुछ नहीं कर सका ।
: फिर क्या हुआ ? आपने क्या किया ? ( रज्जो ने आंखे बड़ी कर रामसिंह को देखा )
: आपको बुरा तो नहीं लगेगा न, वो क्या है कि बातें थोड़ी वैसी है ( रामसिंह ने ऐसे दिखाया जैसे वो कितना बेबस हो )
: अरे हम लोग कौन सा बच्चे , कही आपकी उम्र तो 18 से कम तो नहीं हीही ( रज्जो मस्ती में बोली ताकि रामसिंह थोड़ा खुले )
रज्जो की बात पर रामसिंह के साथ साथ बाहर छुपा मानसिंह की भी हसी रुक न सकी ।
: हीही, आप भी न भाभी खोज कर रखी है सारे शब्द । वैसे मै 18+ तो तभी हो गया था जब आपको पहली बार देखा था । ( रामसिंह ने शरारत भरी नजरो से रज्जो की आंखों ने देखा)
: वैसे आप कुछ बता रहे थे ( रज्जो ने बात घुमाई , जैसा कि वो सताने में माहिर है )
: हा वो , उसके बाद भाभी ने यहां नीचे पकड़ लिया और दीवानी सी हो गई ( रामसिंह का इशारा अपने पजामे के तंबू पर था )
: हाय दैय्या, फिर ( रज्जो ने नाटक जारी रखा )
: भाभी को अपने देखा ही है कितनी मुलायम है और उनका स्पर्श मुझे पागल कर गया था और फिर .... ( रामसिंह ने मुस्कुराते हुए आंखे मार कर गर्दन झटका )
: क्या सच में , धत्त झूठे मै नहीं मानती कि दीदी ऐसा करेंगी । ( रज्जो ने आजमाया )
इधर बाहर खड़ा मानसिंह ताज्जुब में था कि एक दिन पहले ही आई रज्जो इतना खुल कैसे गई , रज्जो की बातों और जिस तरह वो भूखी नजरों से कभी रामसिंह का लंड का तंबू देखती और कभी उसकी आंखों में देखती। मानसिंह मान गया कि उसकी बीवी शिला ने रज्जो के बारे में सही कहा था ।
: अरे सच में ऐसा हुआ था , और अब तो कई बार ... लेकिन प्लीज भैया या कम्मो से मत कहिएगा ( रामसिंह बोला )
: नहीं कहूंगी , लेकिन एक शर्त है ( रज्जो शरारती मुस्कुराहट के साथ इतराई )
: क्या कहिए न ( रामसिंह बोला ).
: आपको मुझे दिखाना पड़ेगा ( रज्जो ने रामसिंह को उलझाया )
रज्जो के इस वक्तव्य से दोनों भाई एकदम से चौक गए
: क्या देखना चाहती है आप ( रामसिंह का लंड पजामे ने पूरा अकड़ कर पंप होने लगा )
: आपको आपकी भाभी के साथ , थोड़ी सी मस्ती भी चलेगी जिससे मुझे यकीन हो जाए ।( रज्जो उससे एकदम सट कर खड़ी थी )
: लेकिन मेरा क्या फायदा इतना बड़ा रिश्क लेने का ( रामसिंह की सांसे तेज थी और वो रज्जो की आंखों में देख रहा था )
: जितना बढ़िया सो उतना अच्छा इनाम ( रज्जो ने आंखे नचा कर जीभ को अंदर से अपने गाल में कोचते हुए इतराई )
: ठीक है , अभी मुझे कालेज जाना है शाम को मिलता हुं ( रामसिंह ने चैलेंज ऐक्सेप्ट किया और निकल गया वहां से )
वही मानसिंह बाहर खड़ा अपना मूसल मसलने लगा था कि क्या गजब का माहौल होने वाला है आज तो । मानसिंह बिना रज्जो से मिले चुपचाप वापस कमरे में चला गया शिला को साड़ी बात बताने के लिए।
चमनपुरा
: मम्मी देर हो रही है , कितना टाइम !! ( अनुज उखड़ कर बोला )
वो रागिनी के कमरे के बाहर खड़ा था और रागिनी कमरे में तैयार हो रही थी नहाने के बाद
: बस बेटा आ रही हूं , ये डोरी ... ( रागिनी की कुछ उलझन भरी आवाज आई )
अनुज के जहन में इस वक्त लाली की दीदी छाई थी । वो आज अपनी मिस को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था ।
: अनुज सुन बेटा , जरा अंदर आना ( रागिनी ने आवाज दी )
: क्या हुआ मम्मी ( अनुज परेशान होकर कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर गया )
जैसे ही वो अन्दर घुसा उसकी आंखे बड़ी ही गई
"उफ्फ मम्मी कितनी सेक्सी" , अपनी मां के पीछे खड़ा हो कर वो बड़बड़ाया ।
उसकी मां रागिनी के नया ब्लाउज ट्राई का रही थी , जो पीछे से हुक की जगह बांधने वाली थी और बार बार कोशिश करके रागिनी के हाथ दुखने लगे थे
: बेटा ये जरा बांधना ( रंगीनी ने गर्दन घुमा कर बोला )
अनुज का हलक सूखने लगा था , उस साड़ी में अपने मां को देख कर जिस तरह से वो उनके कूल्हे से चिपकी थी चौड़ी कमर से लेकर ऊपर गर्दन तक पीछे से पूरी पीठ नंगी और मुलायम । गिले बालों से पानी के हल्के फुल्के अंश पीठ के बीच में दिख रहे थे ।
अपनी मां के जिस्म की कोमलता को अनुज साफ महसूस कर पा रहा था , उसने बिना कुछ कहे रागिनी के ब्लाउज का फीता पकड़ा यार उसको हल्के से गांठ दी , ये सोच कर कि कही उसकी मां के मुलायम चूचों पर जोर न पड़े , वो कस न जाए
: अरे क्या कर रहा है , टाइट कर न आज ब्रा नहीं डाली है मैने , कस पूरा ( रागिनी ने अनुज को टोका )
अपनी मां के मुंह से ऐसे अलफाज सुन कर अनुज की सांसे चढ़ने लगी और उसके फीते की कस कर गांठ दी
: अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकी )
: ज्यादा कसा गया क्या मम्मी ( अनुज फिकर में बोला )
: नहीं ठीक है , बांध दिया तो ऊपर वाली डोरी भी बांध दे ( रागिनी उखड़ कर बोली )
अनुज मुस्कुरा कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी बांधने लगा जिसकी लंबी गुरीया और मोतियों वाली लटकन उसके उभरे हुए कूल्हे तक जा रही थी ।
: हम्मम अब ठीक है ( रागिनी ने आइने में खुद को देखते हुए उस ओर बढ़ गई जिससे उनकी ब्लाउज का लटकन उनके कूल्हे पर उछल कर इधर उधर छिटकने लगा )
अनुज की नजर अपनी मां की मादक चाल पर थी और वो भीतर से सिहर उठा , रागिनी लिपस्टिक से अपने होठ रंग रही थी ।
जिसे देख कर अनुज की प्यास और बढ़ने लगी थी
: मम्मी , कितना रेडी हो रहे हो ? अच्छे से तो लग रहे हो आप ( अनुज भिनक कर बोला
रागिनी की उंगलियाँ एक पल के लिए रुक गईं। उन्होंने शीशे में अपनी परछाई के साथ-साथ अनुज की झुंझलाई हुई शक्ल को भी देखा। उनकी आँखों में हल्की-सी चमक आई, और फिर वह धीरे से हँस पड़ीं।
वो लिपस्टिक लगा कर खड़ी हुई और उसकी ओर घूम कर बोली: अब कैसी लग रही हूं ( रागिनी हंसी करती हुई अनुज की ओर अपना चेहरा करके आंखे तेजी से मलकाई )
अनुज अपनी मां के भोलेपन पर मुस्कुरा दिया : हील वाली सैंडल पहन लो, मेरी कालेज की मिस जी लगेगी हीही
: हैं सच में ? रुक पहनती हु ( रागिनी खिल कर बेड के नीचे से अपनी एक हील सैंडल निकालने के लिए झुकी जो उसने सोनल की शादी में पहनने के लिए लिया था
: मम्मी यार लेट हो .... उफ्फ ( सहसा अनुज की नजर अपनी मां के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर गई जो झुकने की वजह से उस चुस्त साड़ी के फैलाना चाह रही थी , कूल्हे कैसे पहाड़ हो आगे पूरे गोल ।
: रुक न रुक न हो गया ( रागिनी झुक कर सैंडल पहनती हुई ) अब लग रही हूं न मिस जी तेरी ( रागिनी अपनी साड़ी सही करती हुई इतराई और अपना पल्लू हवा में लहराया )
: हा लेकिन .. (मगर अनुज की नजर कही और अटकी थी )
: क्या हुआ बोल
: वो आपकी ढोंडी नहीं दिख रही है , उनकी दिखती है ( अनुज बोलते हुए दांत में जीभ दबा लिया)
: अरे वो मै थोड़ा ऊपर की हूं .... आह अब सही है ( रागिनी ने झट से अपना पेट पिचकाया और साड़ी को नेवल के नीचे ले जाती हुई सेट करते हुए बोली )
अनुज को यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां ये सब उसके सामने कर रही है । हालांकि उसने बचपन से अपनी मां को अपने आगे तैयार होते कपड़े बदलते देखा था मगर अब बात कुछ और थी ।
: हम्ममम ( अनुज अपनी मां की गुदाज चर्बीदार नाभि देख कर थूक गटकने लगा )
: चलें ( रागिनी मुस्कुरा कर बोली )
: ऐसे ही ( अनुज आंखे बड़ी कर बोला )
: हा क्यों ? अच्छी नहीं लग रही हूं क्या ( रागिनी इतराई )
: नहीं वो सैंडल ? ( अनुज इशारे से )
: अरे हा , हीही ( रागिनी हस्ती हुए अपने पैर से सैंडल को बेड के नीचे झटका और जल्दी से रेगुलर चप्पल पहनती हुई ) चल चल
अनुज मुस्कुराता हुआ अपनी मां के साथ निकल गया
वही राज जो अब तक दुकान पहुंच गया था , ग्राहकों के बीच उलझा हुआ था ।
तभी उसके मोबाइल पर फोन आता है एक नंबर से जिसे देख कर उसकी मुस्कुराहट खिल जाती है पूरे चेहरे पर
जल्दी से वो ग्राहक निपटाता है और केबिन में जाकर कॉल बैक करता है
फोन पर
: ऊहू .. नमस्ते क्यूट भाभी जी ( राज मुस्कुराते हुए बोला )
: अरे .. धत्त आप भी न राज बाबू ( उधर आवाज आई ) छोड़िए ये बताइए कैसे है ?
: आपके बिना कैसे होंगे ? ( राज ने आहे भरता हुआ बोला )
: धत्त बदमाश, अच्छा सुनो न मुझे अभी दो तीन रोज का समय लगेगा चमनपुरा आने में और आज मेरा एक पार्सल आ रहा है । रिसीव कर लेंगे क्या ( काजल भाभी ने बड़ी मीठी आवाज में गुजारिश की )
: उम्हू एक और पार्सल ( राज ने छेड़ा उसे )
: धत्त बदमाश, सही बोलो न ? ( काजल भाभी बोली ) ले लोगे न ?
: आप दो तो सही , अगर हम मना करे तो हमारी गुस्ताखी ( राज ने फिर से छेड़ा उसे )
: अच्छा बाबा ठीक है अब घुमाओ मत ( काजल भाभी गहरी सास लेते हुई बोली ) अच्छा इस बार का उधार नहीं रखूंगी । पक्का
: और पहले वाली उधारी ?
: ठीक है वो भी ले लेना , लेकिन प्लीज याद से रिसीव कर लेना ओके , मै फोन करूंगी ( काजल भाभी ने रिक्वेस्ट की )
: ओके मेरी क्यूट भाभी जी , और कुछ
: उन्हूं कुछ नहीं , बाय
: क्या बस बाय ? ( राज ने फिर से काजल भाभी को छेड़ा )
: हा तो , हिसाब किताब में कुछ भी घलुआ नहीं मिलेगा । काम करोगे पहले फिर दाम मिलेगा ( भाभी तुनक कर बोली और फोन काट दिया )
राज मुस्कुरा कर अपना लंड पेंट में मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह ठीक ही , मै भी गल्ले वाला सेठ हूं भाभी । हिसाब अच्छे से करूंगा ।
वही इनसब से अलग मंजू आज खासा खामोश थी
रात की हरकत से वो मुरारी से बेहद नाराज जी , उसकी इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी उसके साथ जाने की । मगर ता उम्र और जवानी के इतने साल उसने मदन से दूर बिताए थे । मदन ने उसके प्यार में अपनी जिंदगी नहीं बसाई और आज भी उसकी राह देख रहा है , अगर वो हा करके भी नहीं गई तो शायद मदन के साथ ज्यादती होगी । शायद उसे अपने जीवन का ये जहरीला घूंट पीना ही पड़ेगा ।
वही आज मुरारी मंजू को उदास देख रहा था , उसे लग रहा था कि मंजू में शायद इस समाज और घर के लिए मोह है जो उसके बुरे दिनों में उसके साथी रहे है ।
: मंजू मैने गाड़ी वाले से बात कर ली है , वो चौराहे पर है । उसे रास्ता समझ भी आ रहा है । तुम घर में ताला लगाओ मै बस अभी आ रहा हूं लिवा कर
: जी भइया ( मंजू ने उदास लहजे में जवाब दिया और मुरारी ने उससे कुछ नहीं कहा । चुपचाप निकल गया घर से )
मंजू का बैग रेडी था , उसके कमरे में एक बुढ़िया बैठी थी । मंजू दिवाल पर लगी आराध्यों के पुरानी तस्वीरों के खुद को नतमस्क करने लगी । शायद वो आभारी थी उन सबके कि इतने बुरे दिनों में वो उसके साथ खड़े रहे ।
इधर मेन सड़क पर आते समय मंजू के घर के मुहल्ले की ओर 3 4 बाइक्स तेजी से निकली , मुरारी ने उनके चेहरे पर गुस्से से भरी उत्तेजना देखी । मगर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गया ।
कुछ ही देर बाद वो चौराहे से गाड़ी में बैठ कर मंजू के घर के पास पहुंचने लगा
तो देखा , वहां काफी भीड़ जमा हुई है । वो बाईक्स जो कुछ देर पहले उसके नजरो के आगे से गुजरी थी वो वही खड़ी थी ।
मुरारी को संदेह हुआ कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ , वो गाड़ी से उतरने लगा । भीड़ पूरी शांत थी , मगर एक तेज आवाज की गूंज से मुरारी थरथरा उठा ।
भीड़ ने निकल कर सामने देखा तो ये आवाज मंजू के घर से आ रही थी
" साली , रंडी उतर आई न अपनी जात पर , कहा छिपा है वो भोसड़ी है आज उसकी लाश लेकर जाऊंगा , कहा है वो बोल ? " , घर में से एक तेज आवाज आई । जिसे सुनते ही मुरारी का कलेजा उबाल मारने लगा । उसकी सांसे चढ़ने लगी , आंखे लाल होने लगी
“रुक जा, तू!” मुरारी ने उस अड़ियल आदमी को ललकारा, जो मंजू को गालियां दे रहा था। उसकी आवाज में गुस्सा और दृढ़ता थी। भीड़ में एक सन्नाटा सा छा गया। बाकी लोग हैरान थे कि कोई उनकी हिम्मत कैसे कर सकता है। उस आदमी ने मुरारी की ओर घूरते हुए कहा देखा , “तू कौन है बे? तुझे क्या लेना-देना?”
: जिसे तू खोज रहा है वो मै ही हूं , बोल अब ( मुरारी अपना कुर्ता की बाह मरोड़ता हुआ बोला )
मुरारी की बात सुनकर वो आदमी हंस पड़ा, लेकिन उसकी हंसी में क्रूरता थी। “अच्छा, तो तू इसका यार है? चल, देखते हैं कितना दम है तुझमें!”
: नहीं भइया, मत उलझिए इससे । आप प्लीज वापस घर चले जाइए ( मंजू बिलखती हुई बोली, उसकी बेबसी और आंखों के आंसू देख कर मुरारी का खून और खौलने लगा )
: नहीं मंजू , मैने अपने बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा और मै कभी भी अपना वादा नहीं तोड़ता । ( मुरारी उसको विश्वास दिला रहा था कि इतने में तेजी से एक पंजा उसकी पीठ पर और उसके कुर्ते को पकड़ कर खींचते हुए अपनी ओर घुमाया )
: भोसड़ी के तू बड़ा सलमान खां हैं? मादर... चो ( एकदम उस दूसरे आदमी की सांसे अटक गई दिल मानो बैठ ही जाएगा , आंखे बड़ी और एकदम मूर्ति सी बन गई ) हे देख .. देख मस्ती नहीं , भाई गोली है लग जाएगी । देख ऐसे नहीं
: क्यों भोसड़ी के , हैं, निकल गई हवा मादरचोद ... ले तेरी मां का ( मुरारी ने एक उल्टे हाथ कोहनी उसके सीने पर दी और वो कहराते हुए पीछे हो गया )
अब मुरारी ने अपनी रिवॉल्वर का प्वाइंट उस आदमी की ओर किया जिसने ये सारा हंगामा खड़ा किया था
मंजू ने जैसे ही मुरारी के हाथ रिवॉल्वर देखी एकदम से हदस गई , उसकी लाली डबडबाई आंखे पूरी फेल गई , उसका कलेजा धकधक हो रहा था । उसके जहन में वो शब्द गूंज रहे थे जो कुछ देर पहले मुरारी ने उससे कहे थे ।
" मैने मेरे बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर ले आऊंगा " , ये शब्द मानो आकाशवाणी जैसे उसके दिमाग में घूम रही थी । उसका कलेजा काफ रहा था किसी अनहोनी की आशंका में । कही मुरारी ने उस गुंडे को मार दिया तो
वही वो आदमी एकदम से सन्न हो गया था उसके साथी वहां से भाग खड़े हुए थे । उस आदमी का हलक सूखने लगा था पाव पीछे हो रहे थे ।
: द देख भाई , मेरी कोई दुश्मनी नहीं है । इसको ले जाना चाहता है तो ले जा , इतने दिन मेरे साथ थी न तो अपन खुश अब तू ले जा तू खुश । भाई प्लीज मै जा रहा हूं, हा ( वो हाथ खड़े किए हुए अपनी बाइक तक गया और झटके में बाइक स्टार्ट कर निकल गया )
मुरारी ने रिवॉल्वर वापस अपने बेल्ट के खोंसी और कुरता गिरा दिया और मंजू के पास पहुंचा जो घर के दरवाजे पड़ी बिलख रही थी , मुरारी उसके पास बैठा : आओ चलें गाड़ी आ गई
: भइया... ( मंजू रोती हुई एकदम से मुरारी से लिपट गई )
मुरारी को यकीन नहीं था कि मंजू ऐसा कुछ करेगी , वो चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था ।
जारी रहेगी ।
Excellent update अध्याय : 02
UPDATE 07
प्रतापपुर
सुबह का वक्त था, सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था। हल्की ठंडी हवा में खेतों की मिट्टी की सोंधी महक बिखरी हुई थी। रंगी और बनवारी, दोनों गाँव के बाहर खेतों की ओर टहल रहे थे। बनवारी की रोज की आदत थी—सुबह शौच के लिए निकलना, रास्ते में दुनिया-जहान की बातें करना, और हँसी-मजाक में वक्त गुजारना।
घर की वापसी हो रही थी ।
रंगी, चेहरे पर शरारती मुस्कान लिए, अपने खाली लोटे को एक हाथ में लटकाए हुए चल रहा था। बनवारी, भी मूँछों को ताव देता हुआ, कंधे पर पुरानी गमछी डाले, रंगी के पीछे-पीछे था।खेतों की ओर जाने वाली पगडंडी पर हरियाली छाई थी। मक्के के खेतों में हल्की ओस की चमक थी, और दूर कहीं कोयल की कूक सुनाई दे रही थी। रंगी ने चलते-चलते एक ठूंठ पर पैर रखा, संतुलन बनाया, और फिर बनवारी की ओर मुड़कर, आँखों में चमक लिए बोला
: रात बड़ी देर से सोए थे क्या बाउजी ? (उसने अपनी भौंहें उचकाईं, जैसे कोई राज खोलने की फिराक में हो )
बनवारी ने पहले तो रंगी को घूरा, फिर हल्का-सा ठहाका लगाया।
: अच्छा तो जग रहे थे आप भी जमाई बाबू , हाहाहा ( बनवारी झूठी हसी चेहरे पर लाता हुआ बोला , मगर भीतर से वो रंगी की जिज्ञासा के लिए सही जवाब तलाश रहा था )
: इतनी तेज सिसकियां किसी की भी नीद उड़ा देगी बाउजी , थी कौन वैसे ? ( रंगी ने शरारत भरी मुस्कुराहट से अपने ससुर को देखा)
: कमला थी , अरे शाम को उसको डांटा था थोड़ा फुसलाना पड़ता है । मौके बेमौके पर काम आती ही है ( बनवारी ने रंगी को समझाते हुए कहा )
: सही है बाउजी , चोट मुझे लगी थी और मलहम आप लगवा रहे थे हाहाहा ( रंगी ने बनवारी का मजा लेते हुए अंगड़ाई लिया )
: क्या बात है जमाई बाबू , लग रहा है आपकी नींद भी पूरी नहीं हुई ( बनवारी ने बात घुमाई)
: अब सोनल की मां के बगैर तो मुझे नीद ही नहीं आती , उसपे से आपने और जगा दिया ( रंगी मुस्कुरा कर बोला और उसकी नजर एक दूर जा रही एक औरत के लचकदार मटकते चूतड़ों पर जमी थी । बड़े रसीले मटके जैसे )
: अब रहम भी खाओ जमाई बाबू क्या आंखों से कपड़े उतारोगे हाहाहा ( बनवारी मजाक करते हुए बोला )
: अरे क्या बाउजी , नहीं नहीं बस उसे देखा तो सोनल की मां याद आ गई , ऐसी ही लचक ... खैर ( रंगी अपने ही ससुर के आगे अपनी बीवी के मटके जैसे चूतड़ों का गुणगान करने में लजा सा गया )
: अरे अब कह भी दो भाई , इसमें शर्माना कैसा ? बीवी है तुम्हारी और कौन सा हम भरे समाज में है या फिर हमें अपनी दोस्ती के लायक नहीं समझते जमाई बाबू , बोलो ? ( बनवारी चाह रहा था रंगी थोड़ा झिझक कम करे अपनी और उसकी लाडली बेटी रागिनी के बारे में खुल कर बातें करें )
: अरे नहीं नहीं बाउजी क्या आप भी , हाहा , आप मेरे पिता जैसे है कुछ तो लिहाज करना ही होगा न ! ( रंगी मुस्कुराया )
: अच्छा ठीक है भाई , लेकिन इतना भी क्या शरमाना । जैसे तुमने बिना मेरी बेटी के साथ कुछ ही 3-3 पैदा कर दिए हाहा ( बनवारी ने माहौल हल्का किया )
: क्या बाउजी आप भी न ( रंगी हसते हुए शर्म से झेप गया , उसे उम्मीद नहीं थी कि बनवारी उससे ऐसे पेश आयेगा ) चलिए घर आ गया
और दोनों बाहर गेट के पास नल पर हाथ धुलने लगे ।
: भाई तुमने तो दातुन किए नहीं , तुम भाई ब्रश ही करोगे । तो ऐसा है कि तुम ब्रश कुल्ला करो मै जरा नहा लेता हूं ( बनवारी अपने देह से अपनी बनियान उतारता हुआ नीचे बस धोती लपेटे हुए पीछे आंगन की ओर चला गया ।
रंगीलाल भी हाथ धूल कर अपने कमरे में बैग से ब्रश लेने चला गया
अभी वो कमरे में गया ही था कि उसे तेजी से किसी के भागने की आहट आई
आहट इतनी तेज थी कि वो अचरज से बाहर झांकने आया तो देखा घर के बच्चों में कोई बनवारी के कमरे के पास वाले जीने से ऊपर गया है ।
रंगीलाल के इग्नोर किया और अपना समान निकालने लगा ।
वही पीछे आंगन में बनवारी खुले में नहाने बैठ गया , मोटर चालू थी और तेजी से पानी आ रहा था । बनवारी ने आंगन का दरवाजा लगाया और धोती निकाल कर पूरा नंगा हो गया ।
इस बात से बेखबर कि कोई उपर की छत से छिप कर उसे देख रहा था ।
वो पूरा नंगा होकर खुले आंगन में बैठा था और अपने देह पर पानी गिरा रहा था ।
वो एक प्लास्टिक की छोटी स्टूल पर था अपनी टांगे फैलाए हुए एड़ी घिस रहा था और उसके बड़े बड़े झूलते आड़ो के साथ उसका मोटा काला बैगन जैसा लंड सोया हुआ भी विकराल लग रहा था ।
बनवारी अपने देह पर पानी डाल रहा था और उसका लंड भीग रहा था
तभी उसे लगा कि कोई उपर से देख रहा था किसी साए के होने का अहसास
झट से उसने नजर ऊपर की और अपने सीने पर हाथ मलने लगा ।
उसने वहा से ध्यान हटाया क्योंकि जो भी था वो वहा से पीछे हो गया और कुछ देर तक अपने देह को बिना साबुन के मलता रहा और जब बाल्टी के पानी की हलचल हल्की हुई तो उसने एक लहराती हुई झलक पानी की बाल्टी में देखी और वो दो चुटिया वाली लड़की कोई और नहीं गीता थी ।
बनवारी एकदम से असहज हो गया था उसने झटपट से पानी डाला और अपनी धोती लपेटे कर बाहर आया । उसका अंदाजा सही था , उसे बाहर बड़े आंगन में गीता नजरे चुराती हुई ब्रश करती हुई दिखाई दी ।
बनवारी को पसंद नहीं आया कि उसकी नातिन ऐसा कुछ हरकत करेगी । भला अभी उसकी उम्र क्या है और ये कई दिनों से बनवारी महसूस कर रहा था मगर आज गीता की पहचान हो गई थी ।
बनवारी चुपचाप अपने कमरे में चला गया और रंगीलाल अपने कपड़े लेकर एक तौलिया लपेट कर बनियान में बाथरूम की ओर गया ।
उसकी नजर अनायास सुनीता को खोज रही थी और किचन में उसे देखते ही वो उस ओर ही बढ़ गया ।
दरवाजे पर आहट और सुनीता सतर्क होकर रंगीलाल को देख कर मुस्कुराई । उसकी नजर रंगीलाल के कंधे की चोट पर गई जो अब काली पड़ने लगी थी ।
: जख्म कैसा है आपका ? ( सुनीता ने इशारा किया )
: आपने दिया है आप जानो ( रंगी ने सुबह सुबह छेड़ा उसे )
: धत्त क्या आप भी सुबह सुबह ( सुनीता लजाई)
: सुबह का ही तो इंतजार था , आपकी समय सीमा पूरी हो गई है भाभी जी ( रंगीलाल का इशारा रात वाले वाक़िये पर था )
: क्या ? धत्त , आप तो सीरियस हो गए ( सुनीता अब घबराई मगर उसकी खूबसूरत होठों की हसीन मुस्कुराहट के कही खो सी गई )
: तो क्या आपने हमारे प्यार को मजाक समझा था ( रंगी ने भौहें उचका कर पूछा)
: धत्त जीजा जी , आप मुझे कंफ्यूज कर रहे है । क्या आप सच में ? ( सुनीता की सांसे तेज थी )
: अभी भी कोई शक है आपको ( रंगी के भीतर वासना के जज्बात उसके लंड में सुरसुराहट भर रहे थे ) मुझे तो बस आपकी हा का इंतजार रहेगा ।
ये बोलकर रंगी मुस्कुराता हुआ बाथरूम की ओर चला गया और सुनीता वही उलझी हुई खड़ी रही । उसका मन बार बार यही समझा रहा था कि उसके नंदोई उससे मजाक ही कर रहे है । तभी उसका ध्यान अपने पति राजेश को ओर गया और ना जाने क्यों वो चिढ़ सी गई । बीती रात राजेश फिर पी कर आया था और अभी तक उठा नहीं था ।
सुनीता ने बबीता को आवाज दी : गुड़िया , ये गुड़िया ?
बबीता भागकर आई : हा मम्मी !!
सुनीता घुड़क कर : जा तेरे पापा को जगा जल्दी जा
बबीता जो कमरे में सुबह सुबह ही टीवी चालू करके बैठी थी उसकी मां ने उसको काम फरमा दिया ।
वो भी भुनकती हुई अपने पापा को जगाने उनके कमरे में गई
राजेश बेड पर पेट के बल पसरा हुआ था , बबीता बेड के करीब खड़ी होकर अपने पापा को हिला कर आवाज देने लगी
: पापा उठो , पापा
: उम्ममम ( राजेश ने वैसे ही लेटे हुए अपनी आँखें खोलनी चाही तो उसके सामने बबीता की चिकनी जांघें थी । वो इस समय शॉट्स और टॉप में आई थी । )
गोरी चिकनी दूधिया जांघें देखते ही राजेश के जहन में कल वाली छवि उभर आई और उत्तेजना उसके सोए हुई चेतना पर हावी होने लगा
: इधर आ बेटा ( राजेश करवट लेते हुए बबीता की कलाई पकड़ कर बिस्तर पर बिठाया )
: उम्हू छोड़ो नहीं बैठना मुझे आपके पास ( बबीता को उसके बाप के देह से शराब की बू आती महसूस हो रही थी उसने हाथ झटक कर छुड़ाना चाहा )
मगर राजेश जबरन उसे पकड़ कर बिठा लिया और उसके पीठ सहलाने लगा
: क्या हुआ गुड़िया , बेटा ( राजेश ने उससे दुलारा और इसी बहाने वो बबीता के गुदाज नर्म पीठ का स्पर्श ले रहा था )
: उन्हूं छोड़ो मुझे ( बबीता ने कंधे झटके ) आप गंदे हो इसलिए नहीं आती हूं आपके पास हूह ( बबीता ने मुंह बनाया
: अच्छा नहा लूंगा तो रहेगी न मेरे पास ( राजेश ने फुसलाया )
: ना ( बबीता ने ना में सर हिलाया )
: फिर ?
: आप जब शराब नहीं पियोगे तो ही मै आपके पास रहूंगी, पहले प्रोमिस करो कि आप शराब नहीं पियोगे, बोलो ( बबीता उसकी ओर घूम कर बोली )
राजेश अपने नशे की लत से बंधा था मगर एक अनजाना लालच उसे बबीता की ओर खींच रहा था
: ठीक है प्रोमिस , लेकिन तुझे मेरे साथ टीवी देखनी पड़ेगी ठीक है ( राजेश ने उसकी हथेली अपने हाथों में ली )
: ओके पापा , हीही ( बबीता एकदम से खुश हो गई ) चलो अब उठो बहुत बदबू कर रहे हो आप हीही ( बबीता उसका हाथ पकड़ कर खींचने लगी )
शिला के घर
मानसिंह छत से नीचे आया , कल रात रज्जो की वजह से उसे ऊपर सोना पड़ा था , लेकिन कम्मो ने उसे इसका अफसोस नहीं होने दिया ।
मगर उसकी नजर रज्जो पर जम गई थी , कल सुबह जबसे उसने रज्जो को अपनी गोद में खिलाया था उसके मोटे बड़े भड़कीले चूतड़ों को मसला था उसकी नंगी पेट पर अपने हाथ फेरे थे , उस अहसास से मानसिंह उभर नहीं पाया था । जब जब उसकी नजरें रज्जो पर जाती एक बिजली सी कौंध जाती उसके जिस्म में , लंड उसकी भड़कीले चूतड़ों को देख कर पागल हो जाता था । मगर कही न कही वो थोड़ा शर्मिंदा था , रज्जो और मानसिंह दोनों एकदूसरे से नजरे चुरा रहे थे ।
सीढ़िया उतरते हुए मानसिंह की नजर किचन में गई , उसने अभी तक कल वाली वही शिला की साड़ी पहनी थी , मगर इस बार मानसिंह ने धोखा नहीं खाया और चुपचाप बिना उसकी नजर में आए धीरे से अपने कमरे की ओर चला गया
अंदर कमरे में शिला अपने मानसिंह के ही कपड़े स्त्री कर रही थी
अपनी गदराई बीवी को कुर्ती लेगी के देख कर मानसिंह का लंड एकदम से अकड़ गया
उसने पीछे से आकर उसके नरम चर्बीदार चूतड़ों पर पंजा जड़ा
: अह्ह्ह्ह्ह मैयायाह उम्मम क्या करते हो जी अह्ह्ह्ह ( शिला मानसिंह के थप्पड़ से झनझना गई और अपने कूल्हे सहलाने लगी )
: उम्मम मेरी जान आज तो सारी रात तड़पा हु तुम्हारे लिए ( मानसिंह पीछे से हग करता हुआ उसके बड़े बड़े रसीले मम्में कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा )
: अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म क्यों ऑनलाइन देखा नहीं क्या मुझे , कैसे तुम्हारी याद इतना बड़ा डिल्डो डाल रही थी ओह्ह्ह्ह उम्ममम नहीं रुकिए न ( शिला वही दिवाल के लग कर खड़ी हो गई और मानसिंह उसकी कुर्ती उठा कर लेगी के ऊपर से उसकी बुर सहलाने लगा )
: अह्ह्ह्ह्ह मजा तो तब आता जान , जब तुम रज्जो भाभी की बुर के दर्शन भी कराती , अह्ह्ह्ह तुम दोनों की जोड़ी रात में एकदम हिट थी । कितने सारे लोगों ने क्लब ज्वाइन किया ( मानसिंह उससे लिपट कर उसके चूचे कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा और शिला भी उसका लंड पकड़ की ली )
: आज देख लेना मेरी जान , आज दुपहर में कितने सारे क्लाइंट को फोटो भेजनी है , तुम्हारे पास वीडियो भेजूंगी पूरी नंगी करके ( शिला ने उसका लंड भींचते हुए उसकी आंखों में देख कर बोली )
:अह्ह्ह्ह सच में जान, जब से रज्जो भाभी को छुआ है तबसे कुछ भी इतना नरम और मुलायम नहीं लगता है , सोचता हूं एक बार फिर उन्हें अपनी गोद में बिठा लू अह्ह्ह्ह ( मानसिंह बोलते हुए शिला के लिप्स से अपने लिप्स जोड़ लिया और पजामे में बना हुआ लंड का तंबू सीधा उसकी बुर में कोचने लगा )
: अह्ह्ह्ह उफ्फ उम्मम तो जाओ दबोच लो , किचन में होंगी । मीरा भी गांव गई है बाउजी ने बुलाया है । जाओ ( शिला ने उसको उकसाया )
: पक्का , अगर नाराज हो गई तो ? ( मानसिंह ने चिंता जाहिर की )
: अरे मुझसे ज्यादा वो प्यासी है लंड के लिए, आप बस पहल तो करो खुद पकड़ के अपनी बुर में डाल न ले तो कहना ( शिला ने मानसिंह को पूरे जोश से भर दिया )
मानसिंह ने अपनी बीवी के भरोसे इस रिश्क के लिए तैयार हो गया और वापस कमरे के निकल कर किचन की ओर गया तो आधे रास्ते में ही रुक गया , क्योंकि किचन में उसका भाई रामसिंह पहले ही रज्जो के पास खड़ा उससे बातें कर रहा था ।
मानसिंह को रज्जो का मुस्कुराना और अपने भाई के खिल कर बातें करता देख अजीब सी बेताबी हुई और लपक कर छुप कर किचन के पास जीने बाहर ही खड़ा हो गया ।
: वैसे आज मुझे एक पल को पीछे से लगा था कि आप भाभी ही है , फिर याद आया कि कल भैया भी गच्चा खा गए थे हाहाहा ( रामसिंह हंसता हुआ बोला और रज्जो लजा गई )
: क्या दीदी भी न , सबको बता दिया ( रज्जो लाज से हंसी )
रज्जो के हाथ चकले पर तेजी से चल रहे थे, और हर बार जब वह बेलन को दबाती, उसके बड़े, रसीले दूध ब्लाउज में हिलते-डुलते। उसका ब्लाउज थोड़ा तंग था, जिससे उसकी भरी-पूरी देह और भी उभर कर सामने आ रही थी। रामसिंह की नजरें अब उसकी छाती पर ठहर गई थीं, और वह मन ही मन कुछ शरारती खयालों में खो गया।
उसकी नजर रज्जो के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर थी जो साड़ी की ओट में थी ।
: अब किसी को बताए न बताए अपने लाडले देवर से कुछ नहीं छिपाती मेरी भाभी ( रामसिंह शब्दों के दाव पेच अच्छे से जानता था और शिला ने पहले से उसे बता रखा था कि रज्जो का मिजाज कैसे है और कैसे वो शब्दों के दो फाड़ करने में माहिर थी )
: अच्छा जी , कुछ भी नहीं ( रज्जो के चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट थी )
: उन्हू कुछ भी नहीं ( रामसिंह ने बड़े विश्वास से कहा )
: अच्छा तो ... नहीं कुछ नहीं ( रज्जो ने जहन में सहसा कुछ आया लेकिन्वो चुप हो गई )
वही रज्जो के चुप होने से ना सिर्फ रामसिंह बल्कि किचन के बाहर खड़ा मानसिंह भी उत्सुक हो उठा । दोनों भाई भीतर से बेचैन हो गए ।
: अरे क्या हुआ बोलिए न ( रामसिंह ने थोड़ा कैजुअल होकर कहा )
: वो ... नहीं हीही कुछ नहीं ( रज्जो सब्जियां चलाती हुई बोली )
: अरे .. कहिए न झिझक कैसी ( रामसिंह )
: नहीं मै दीदी से पूछ लूंगी ( रज्जो ने मुस्कुरा कर कहा )
: अरे ऐसा कुछ नहीं है जो भाभी को पता है और मुझे नहीं , आप आजमा कर तो देखिए
: पक्का ( रज्जो के चैलेंज सा किया )
दोनों भाई एकदम से जिज्ञासु
: हा हा , कहिए ( रामसिंह विश्वास से बोला )
: कल रात हम दोनो साथ में सोए थे और आपके भैया ऊपर थे अकेले , पता है आपको ? ( रज्जो मुस्कुराई )
: अह हा पता है , इसमें क्या बात हो गई ( इधर रज्जो के इस पहल से रामसिंह और मानसिंह की सांसे चढ़ने लगी , क्योंकि उन्हें डर था कही उनकी योजना खुली किताब न हो जाए )
: अच्छा तो क्या ये बता है कि रात में आपकी भाभी ... हीही आपके भैया का नाम लेकर मुझसे चिपक रही थी हाहा ( रज्जो हस कर बोली )
रज्जो की बात सुनकर दोनों भाई के लंड में हरकत होने लगी
: क्या आप भी न भाभी , वैसे एक राज की बात बताऊं भैया से नहीं कहेंगी न ( रामसिंह उसके पास खड़ा हुआ , उसका लंड पजामे में तंबू बना चुका था और रज्जो की नजर उसपे पड़ चुकी थी । )
: उन्हूं बिल्कुल भी नहीं ( रज्जो की सांसे तेजी से धड़क रही थी वो रामसिंह की आंखों में वासना की बढ़ती भूख को देख पा रही थी । जिसका असर कुछ कुछ उसपे भी हो रहा था )
: पता है एक बार कम्मो नाराज हो गई थी हमारी खूब लड़ाई हुई और मै भी गुस्से में भैया के बिस्तर पर सो गया था और उस रात भाभी ने मुझे भैया समझ कर मुझसे चिपक गई थी ( रामसिंह ने अपने शब्दों में मसाला डाल कर परोसा )
रज्जो साफ साफ उसके झूठ को समझ रही थी क्योंकि वो पहले से ही शिला से उसके घर की सारी कहानी सुन चुकी थी । मगर उसे ये खेल पसंद आ रहा था
वही बाहर खड़ा मानसिंह अलग से अपना लंड मसल रहा था कि उसका छोटा भाई तो काफी तेज निकला और यहां वो एक बार रज्जो को दबोच कर भी कुछ नहीं कर सका ।
: फिर क्या हुआ ? आपने क्या किया ? ( रज्जो ने आंखे बड़ी कर रामसिंह को देखा )
: आपको बुरा तो नहीं लगेगा न, वो क्या है कि बातें थोड़ी वैसी है ( रामसिंह ने ऐसे दिखाया जैसे वो कितना बेबस हो )
: अरे हम लोग कौन सा बच्चे , कही आपकी उम्र तो 18 से कम तो नहीं हीही ( रज्जो मस्ती में बोली ताकि रामसिंह थोड़ा खुले )
रज्जो की बात पर रामसिंह के साथ साथ बाहर छुपा मानसिंह की भी हसी रुक न सकी ।
: हीही, आप भी न भाभी खोज कर रखी है सारे शब्द । वैसे मै 18+ तो तभी हो गया था जब आपको पहली बार देखा था । ( रामसिंह ने शरारत भरी नजरो से रज्जो की आंखों ने देखा)
: वैसे आप कुछ बता रहे थे ( रज्जो ने बात घुमाई , जैसा कि वो सताने में माहिर है )
: हा वो , उसके बाद भाभी ने यहां नीचे पकड़ लिया और दीवानी सी हो गई ( रामसिंह का इशारा अपने पजामे के तंबू पर था )
: हाय दैय्या, फिर ( रज्जो ने नाटक जारी रखा )
: भाभी को अपने देखा ही है कितनी मुलायम है और उनका स्पर्श मुझे पागल कर गया था और फिर .... ( रामसिंह ने मुस्कुराते हुए आंखे मार कर गर्दन झटका )
: क्या सच में , धत्त झूठे मै नहीं मानती कि दीदी ऐसा करेंगी । ( रज्जो ने आजमाया )
इधर बाहर खड़ा मानसिंह ताज्जुब में था कि एक दिन पहले ही आई रज्जो इतना खुल कैसे गई , रज्जो की बातों और जिस तरह वो भूखी नजरों से कभी रामसिंह का लंड का तंबू देखती और कभी उसकी आंखों में देखती। मानसिंह मान गया कि उसकी बीवी शिला ने रज्जो के बारे में सही कहा था ।
: अरे सच में ऐसा हुआ था , और अब तो कई बार ... लेकिन प्लीज भैया या कम्मो से मत कहिएगा ( रामसिंह बोला )
: नहीं कहूंगी , लेकिन एक शर्त है ( रज्जो शरारती मुस्कुराहट के साथ इतराई )
: क्या कहिए न ( रामसिंह बोला ).
: आपको मुझे दिखाना पड़ेगा ( रज्जो ने रामसिंह को उलझाया )
रज्जो के इस वक्तव्य से दोनों भाई एकदम से चौक गए
: क्या देखना चाहती है आप ( रामसिंह का लंड पजामे ने पूरा अकड़ कर पंप होने लगा )
: आपको आपकी भाभी के साथ , थोड़ी सी मस्ती भी चलेगी जिससे मुझे यकीन हो जाए ।( रज्जो उससे एकदम सट कर खड़ी थी )
: लेकिन मेरा क्या फायदा इतना बड़ा रिश्क लेने का ( रामसिंह की सांसे तेज थी और वो रज्जो की आंखों में देख रहा था )
: जितना बढ़िया सो उतना अच्छा इनाम ( रज्जो ने आंखे नचा कर जीभ को अंदर से अपने गाल में कोचते हुए इतराई )
: ठीक है , अभी मुझे कालेज जाना है शाम को मिलता हुं ( रामसिंह ने चैलेंज ऐक्सेप्ट किया और निकल गया वहां से )
वही मानसिंह बाहर खड़ा अपना मूसल मसलने लगा था कि क्या गजब का माहौल होने वाला है आज तो । मानसिंह बिना रज्जो से मिले चुपचाप वापस कमरे में चला गया शिला को साड़ी बात बताने के लिए।
चमनपुरा
: मम्मी देर हो रही है , कितना टाइम !! ( अनुज उखड़ कर बोला )
वो रागिनी के कमरे के बाहर खड़ा था और रागिनी कमरे में तैयार हो रही थी नहाने के बाद
: बस बेटा आ रही हूं , ये डोरी ... ( रागिनी की कुछ उलझन भरी आवाज आई )
अनुज के जहन में इस वक्त लाली की दीदी छाई थी । वो आज अपनी मिस को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था ।
: अनुज सुन बेटा , जरा अंदर आना ( रागिनी ने आवाज दी )
: क्या हुआ मम्मी ( अनुज परेशान होकर कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर गया )
जैसे ही वो अन्दर घुसा उसकी आंखे बड़ी ही गई
"उफ्फ मम्मी कितनी सेक्सी" , अपनी मां के पीछे खड़ा हो कर वो बड़बड़ाया ।
उसकी मां रागिनी के नया ब्लाउज ट्राई का रही थी , जो पीछे से हुक की जगह बांधने वाली थी और बार बार कोशिश करके रागिनी के हाथ दुखने लगे थे
: बेटा ये जरा बांधना ( रंगीनी ने गर्दन घुमा कर बोला )
अनुज का हलक सूखने लगा था , उस साड़ी में अपने मां को देख कर जिस तरह से वो उनके कूल्हे से चिपकी थी चौड़ी कमर से लेकर ऊपर गर्दन तक पीछे से पूरी पीठ नंगी और मुलायम । गिले बालों से पानी के हल्के फुल्के अंश पीठ के बीच में दिख रहे थे ।
अपनी मां के जिस्म की कोमलता को अनुज साफ महसूस कर पा रहा था , उसने बिना कुछ कहे रागिनी के ब्लाउज का फीता पकड़ा यार उसको हल्के से गांठ दी , ये सोच कर कि कही उसकी मां के मुलायम चूचों पर जोर न पड़े , वो कस न जाए
: अरे क्या कर रहा है , टाइट कर न आज ब्रा नहीं डाली है मैने , कस पूरा ( रागिनी ने अनुज को टोका )
अपनी मां के मुंह से ऐसे अलफाज सुन कर अनुज की सांसे चढ़ने लगी और उसके फीते की कस कर गांठ दी
: अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकी )
: ज्यादा कसा गया क्या मम्मी ( अनुज फिकर में बोला )
: नहीं ठीक है , बांध दिया तो ऊपर वाली डोरी भी बांध दे ( रागिनी उखड़ कर बोली )
अनुज मुस्कुरा कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी बांधने लगा जिसकी लंबी गुरीया और मोतियों वाली लटकन उसके उभरे हुए कूल्हे तक जा रही थी ।
: हम्मम अब ठीक है ( रागिनी ने आइने में खुद को देखते हुए उस ओर बढ़ गई जिससे उनकी ब्लाउज का लटकन उनके कूल्हे पर उछल कर इधर उधर छिटकने लगा )
अनुज की नजर अपनी मां की मादक चाल पर थी और वो भीतर से सिहर उठा , रागिनी लिपस्टिक से अपने होठ रंग रही थी ।
जिसे देख कर अनुज की प्यास और बढ़ने लगी थी
: मम्मी , कितना रेडी हो रहे हो ? अच्छे से तो लग रहे हो आप ( अनुज भिनक कर बोला
रागिनी की उंगलियाँ एक पल के लिए रुक गईं। उन्होंने शीशे में अपनी परछाई के साथ-साथ अनुज की झुंझलाई हुई शक्ल को भी देखा। उनकी आँखों में हल्की-सी चमक आई, और फिर वह धीरे से हँस पड़ीं।
वो लिपस्टिक लगा कर खड़ी हुई और उसकी ओर घूम कर बोली: अब कैसी लग रही हूं ( रागिनी हंसी करती हुई अनुज की ओर अपना चेहरा करके आंखे तेजी से मलकाई )
अनुज अपनी मां के भोलेपन पर मुस्कुरा दिया : हील वाली सैंडल पहन लो, मेरी कालेज की मिस जी लगेगी हीही
: हैं सच में ? रुक पहनती हु ( रागिनी खिल कर बेड के नीचे से अपनी एक हील सैंडल निकालने के लिए झुकी जो उसने सोनल की शादी में पहनने के लिए लिया था
: मम्मी यार लेट हो .... उफ्फ ( सहसा अनुज की नजर अपनी मां के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर गई जो झुकने की वजह से उस चुस्त साड़ी के फैलाना चाह रही थी , कूल्हे कैसे पहाड़ हो आगे पूरे गोल ।
: रुक न रुक न हो गया ( रागिनी झुक कर सैंडल पहनती हुई ) अब लग रही हूं न मिस जी तेरी ( रागिनी अपनी साड़ी सही करती हुई इतराई और अपना पल्लू हवा में लहराया )
: हा लेकिन .. (मगर अनुज की नजर कही और अटकी थी )
: क्या हुआ बोल
: वो आपकी ढोंडी नहीं दिख रही है , उनकी दिखती है ( अनुज बोलते हुए दांत में जीभ दबा लिया)
: अरे वो मै थोड़ा ऊपर की हूं .... आह अब सही है ( रागिनी ने झट से अपना पेट पिचकाया और साड़ी को नेवल के नीचे ले जाती हुई सेट करते हुए बोली )
अनुज को यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां ये सब उसके सामने कर रही है । हालांकि उसने बचपन से अपनी मां को अपने आगे तैयार होते कपड़े बदलते देखा था मगर अब बात कुछ और थी ।
: हम्ममम ( अनुज अपनी मां की गुदाज चर्बीदार नाभि देख कर थूक गटकने लगा )
: चलें ( रागिनी मुस्कुरा कर बोली )
: ऐसे ही ( अनुज आंखे बड़ी कर बोला )
: हा क्यों ? अच्छी नहीं लग रही हूं क्या ( रागिनी इतराई )
: नहीं वो सैंडल ? ( अनुज इशारे से )
: अरे हा , हीही ( रागिनी हस्ती हुए अपने पैर से सैंडल को बेड के नीचे झटका और जल्दी से रेगुलर चप्पल पहनती हुई ) चल चल
अनुज मुस्कुराता हुआ अपनी मां के साथ निकल गया
वही राज जो अब तक दुकान पहुंच गया था , ग्राहकों के बीच उलझा हुआ था ।
तभी उसके मोबाइल पर फोन आता है एक नंबर से जिसे देख कर उसकी मुस्कुराहट खिल जाती है पूरे चेहरे पर
जल्दी से वो ग्राहक निपटाता है और केबिन में जाकर कॉल बैक करता है
फोन पर
: ऊहू .. नमस्ते क्यूट भाभी जी ( राज मुस्कुराते हुए बोला )
: अरे .. धत्त आप भी न राज बाबू ( उधर आवाज आई ) छोड़िए ये बताइए कैसे है ?
: आपके बिना कैसे होंगे ? ( राज ने आहे भरता हुआ बोला )
: धत्त बदमाश, अच्छा सुनो न मुझे अभी दो तीन रोज का समय लगेगा चमनपुरा आने में और आज मेरा एक पार्सल आ रहा है । रिसीव कर लेंगे क्या ( काजल भाभी ने बड़ी मीठी आवाज में गुजारिश की )
: उम्हू एक और पार्सल ( राज ने छेड़ा उसे )
: धत्त बदमाश, सही बोलो न ? ( काजल भाभी बोली ) ले लोगे न ?
: आप दो तो सही , अगर हम मना करे तो हमारी गुस्ताखी ( राज ने फिर से छेड़ा उसे )
: अच्छा बाबा ठीक है अब घुमाओ मत ( काजल भाभी गहरी सास लेते हुई बोली ) अच्छा इस बार का उधार नहीं रखूंगी । पक्का
: और पहले वाली उधारी ?
: ठीक है वो भी ले लेना , लेकिन प्लीज याद से रिसीव कर लेना ओके , मै फोन करूंगी ( काजल भाभी ने रिक्वेस्ट की )
: ओके मेरी क्यूट भाभी जी , और कुछ
: उन्हूं कुछ नहीं , बाय
: क्या बस बाय ? ( राज ने फिर से काजल भाभी को छेड़ा )
: हा तो , हिसाब किताब में कुछ भी घलुआ नहीं मिलेगा । काम करोगे पहले फिर दाम मिलेगा ( भाभी तुनक कर बोली और फोन काट दिया )
राज मुस्कुरा कर अपना लंड पेंट में मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह ठीक ही , मै भी गल्ले वाला सेठ हूं भाभी । हिसाब अच्छे से करूंगा ।
वही इनसब से अलग मंजू आज खासा खामोश थी
रात की हरकत से वो मुरारी से बेहद नाराज जी , उसकी इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी उसके साथ जाने की । मगर ता उम्र और जवानी के इतने साल उसने मदन से दूर बिताए थे । मदन ने उसके प्यार में अपनी जिंदगी नहीं बसाई और आज भी उसकी राह देख रहा है , अगर वो हा करके भी नहीं गई तो शायद मदन के साथ ज्यादती होगी । शायद उसे अपने जीवन का ये जहरीला घूंट पीना ही पड़ेगा ।
वही आज मुरारी मंजू को उदास देख रहा था , उसे लग रहा था कि मंजू में शायद इस समाज और घर के लिए मोह है जो उसके बुरे दिनों में उसके साथी रहे है ।
: मंजू मैने गाड़ी वाले से बात कर ली है , वो चौराहे पर है । उसे रास्ता समझ भी आ रहा है । तुम घर में ताला लगाओ मै बस अभी आ रहा हूं लिवा कर
: जी भइया ( मंजू ने उदास लहजे में जवाब दिया और मुरारी ने उससे कुछ नहीं कहा । चुपचाप निकल गया घर से )
मंजू का बैग रेडी था , उसके कमरे में एक बुढ़िया बैठी थी । मंजू दिवाल पर लगी आराध्यों के पुरानी तस्वीरों के खुद को नतमस्क करने लगी । शायद वो आभारी थी उन सबके कि इतने बुरे दिनों में वो उसके साथ खड़े रहे ।
इधर मेन सड़क पर आते समय मंजू के घर के मुहल्ले की ओर 3 4 बाइक्स तेजी से निकली , मुरारी ने उनके चेहरे पर गुस्से से भरी उत्तेजना देखी । मगर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गया ।
कुछ ही देर बाद वो चौराहे से गाड़ी में बैठ कर मंजू के घर के पास पहुंचने लगा
तो देखा , वहां काफी भीड़ जमा हुई है । वो बाईक्स जो कुछ देर पहले उसके नजरो के आगे से गुजरी थी वो वही खड़ी थी ।
मुरारी को संदेह हुआ कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ , वो गाड़ी से उतरने लगा । भीड़ पूरी शांत थी , मगर एक तेज आवाज की गूंज से मुरारी थरथरा उठा ।
भीड़ ने निकल कर सामने देखा तो ये आवाज मंजू के घर से आ रही थी
" साली , रंडी उतर आई न अपनी जात पर , कहा छिपा है वो भोसड़ी है आज उसकी लाश लेकर जाऊंगा , कहा है वो बोल ? " , घर में से एक तेज आवाज आई । जिसे सुनते ही मुरारी का कलेजा उबाल मारने लगा । उसकी सांसे चढ़ने लगी , आंखे लाल होने लगी
“रुक जा, तू!” मुरारी ने उस अड़ियल आदमी को ललकारा, जो मंजू को गालियां दे रहा था। उसकी आवाज में गुस्सा और दृढ़ता थी। भीड़ में एक सन्नाटा सा छा गया। बाकी लोग हैरान थे कि कोई उनकी हिम्मत कैसे कर सकता है। उस आदमी ने मुरारी की ओर घूरते हुए कहा देखा , “तू कौन है बे? तुझे क्या लेना-देना?”
: जिसे तू खोज रहा है वो मै ही हूं , बोल अब ( मुरारी अपना कुर्ता की बाह मरोड़ता हुआ बोला )
मुरारी की बात सुनकर वो आदमी हंस पड़ा, लेकिन उसकी हंसी में क्रूरता थी। “अच्छा, तो तू इसका यार है? चल, देखते हैं कितना दम है तुझमें!”
: नहीं भइया, मत उलझिए इससे । आप प्लीज वापस घर चले जाइए ( मंजू बिलखती हुई बोली, उसकी बेबसी और आंखों के आंसू देख कर मुरारी का खून और खौलने लगा )
: नहीं मंजू , मैने अपने बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा और मै कभी भी अपना वादा नहीं तोड़ता । ( मुरारी उसको विश्वास दिला रहा था कि इतने में तेजी से एक पंजा उसकी पीठ पर और उसके कुर्ते को पकड़ कर खींचते हुए अपनी ओर घुमाया )
: भोसड़ी के तू बड़ा सलमान खां हैं? मादर... चो ( एकदम उस दूसरे आदमी की सांसे अटक गई दिल मानो बैठ ही जाएगा , आंखे बड़ी और एकदम मूर्ति सी बन गई ) हे देख .. देख मस्ती नहीं , भाई गोली है लग जाएगी । देख ऐसे नहीं
: क्यों भोसड़ी के , हैं, निकल गई हवा मादरचोद ... ले तेरी मां का ( मुरारी ने एक उल्टे हाथ कोहनी उसके सीने पर दी और वो कहराते हुए पीछे हो गया )
अब मुरारी ने अपनी रिवॉल्वर का प्वाइंट उस आदमी की ओर किया जिसने ये सारा हंगामा खड़ा किया था
मंजू ने जैसे ही मुरारी के हाथ रिवॉल्वर देखी एकदम से हदस गई , उसकी लाली डबडबाई आंखे पूरी फेल गई , उसका कलेजा धकधक हो रहा था । उसके जहन में वो शब्द गूंज रहे थे जो कुछ देर पहले मुरारी ने उससे कहे थे ।
" मैने मेरे बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर ले आऊंगा " , ये शब्द मानो आकाशवाणी जैसे उसके दिमाग में घूम रही थी । उसका कलेजा काफ रहा था किसी अनहोनी की आशंका में । कही मुरारी ने उस गुंडे को मार दिया तो
वही वो आदमी एकदम से सन्न हो गया था उसके साथी वहां से भाग खड़े हुए थे । उस आदमी का हलक सूखने लगा था पाव पीछे हो रहे थे ।
: द देख भाई , मेरी कोई दुश्मनी नहीं है । इसको ले जाना चाहता है तो ले जा , इतने दिन मेरे साथ थी न तो अपन खुश अब तू ले जा तू खुश । भाई प्लीज मै जा रहा हूं, हा ( वो हाथ खड़े किए हुए अपनी बाइक तक गया और झटके में बाइक स्टार्ट कर निकल गया )
मुरारी ने रिवॉल्वर वापस अपने बेल्ट के खोंसी और कुरता गिरा दिया और मंजू के पास पहुंचा जो घर के दरवाजे पड़ी बिलख रही थी , मुरारी उसके पास बैठा : आओ चलें गाड़ी आ गई
: भइया... ( मंजू रोती हुई एकदम से मुरारी से लिपट गई )
मुरारी को यकीन नहीं था कि मंजू ऐसा कुछ करेगी , वो चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था ।
जारी रहेगी ।
mazedaar updateअध्याय : 02
UPDATE 07
प्रतापपुर
सुबह का वक्त था, सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था। हल्की ठंडी हवा में खेतों की मिट्टी की सोंधी महक बिखरी हुई थी। रंगी और बनवारी, दोनों गाँव के बाहर खेतों की ओर टहल रहे थे। बनवारी की रोज की आदत थी—सुबह शौच के लिए निकलना, रास्ते में दुनिया-जहान की बातें करना, और हँसी-मजाक में वक्त गुजारना।
घर की वापसी हो रही थी ।
रंगी, चेहरे पर शरारती मुस्कान लिए, अपने खाली लोटे को एक हाथ में लटकाए हुए चल रहा था। बनवारी, भी मूँछों को ताव देता हुआ, कंधे पर पुरानी गमछी डाले, रंगी के पीछे-पीछे था।खेतों की ओर जाने वाली पगडंडी पर हरियाली छाई थी। मक्के के खेतों में हल्की ओस की चमक थी, और दूर कहीं कोयल की कूक सुनाई दे रही थी। रंगी ने चलते-चलते एक ठूंठ पर पैर रखा, संतुलन बनाया, और फिर बनवारी की ओर मुड़कर, आँखों में चमक लिए बोला
: रात बड़ी देर से सोए थे क्या बाउजी ? (उसने अपनी भौंहें उचकाईं, जैसे कोई राज खोलने की फिराक में हो )
बनवारी ने पहले तो रंगी को घूरा, फिर हल्का-सा ठहाका लगाया।
: अच्छा तो जग रहे थे आप भी जमाई बाबू , हाहाहा ( बनवारी झूठी हसी चेहरे पर लाता हुआ बोला , मगर भीतर से वो रंगी की जिज्ञासा के लिए सही जवाब तलाश रहा था )
: इतनी तेज सिसकियां किसी की भी नीद उड़ा देगी बाउजी , थी कौन वैसे ? ( रंगी ने शरारत भरी मुस्कुराहट से अपने ससुर को देखा)
: कमला थी , अरे शाम को उसको डांटा था थोड़ा फुसलाना पड़ता है । मौके बेमौके पर काम आती ही है ( बनवारी ने रंगी को समझाते हुए कहा )
: सही है बाउजी , चोट मुझे लगी थी और मलहम आप लगवा रहे थे हाहाहा ( रंगी ने बनवारी का मजा लेते हुए अंगड़ाई लिया )
: क्या बात है जमाई बाबू , लग रहा है आपकी नींद भी पूरी नहीं हुई ( बनवारी ने बात घुमाई)
: अब सोनल की मां के बगैर तो मुझे नीद ही नहीं आती , उसपे से आपने और जगा दिया ( रंगी मुस्कुरा कर बोला और उसकी नजर एक दूर जा रही एक औरत के लचकदार मटकते चूतड़ों पर जमी थी । बड़े रसीले मटके जैसे )
: अब रहम भी खाओ जमाई बाबू क्या आंखों से कपड़े उतारोगे हाहाहा ( बनवारी मजाक करते हुए बोला )
: अरे क्या बाउजी , नहीं नहीं बस उसे देखा तो सोनल की मां याद आ गई , ऐसी ही लचक ... खैर ( रंगी अपने ही ससुर के आगे अपनी बीवी के मटके जैसे चूतड़ों का गुणगान करने में लजा सा गया )
: अरे अब कह भी दो भाई , इसमें शर्माना कैसा ? बीवी है तुम्हारी और कौन सा हम भरे समाज में है या फिर हमें अपनी दोस्ती के लायक नहीं समझते जमाई बाबू , बोलो ? ( बनवारी चाह रहा था रंगी थोड़ा झिझक कम करे अपनी और उसकी लाडली बेटी रागिनी के बारे में खुल कर बातें करें )
: अरे नहीं नहीं बाउजी क्या आप भी , हाहा , आप मेरे पिता जैसे है कुछ तो लिहाज करना ही होगा न ! ( रंगी मुस्कुराया )
: अच्छा ठीक है भाई , लेकिन इतना भी क्या शरमाना । जैसे तुमने बिना मेरी बेटी के साथ कुछ ही 3-3 पैदा कर दिए हाहा ( बनवारी ने माहौल हल्का किया )
: क्या बाउजी आप भी न ( रंगी हसते हुए शर्म से झेप गया , उसे उम्मीद नहीं थी कि बनवारी उससे ऐसे पेश आयेगा ) चलिए घर आ गया
और दोनों बाहर गेट के पास नल पर हाथ धुलने लगे ।
: भाई तुमने तो दातुन किए नहीं , तुम भाई ब्रश ही करोगे । तो ऐसा है कि तुम ब्रश कुल्ला करो मै जरा नहा लेता हूं ( बनवारी अपने देह से अपनी बनियान उतारता हुआ नीचे बस धोती लपेटे हुए पीछे आंगन की ओर चला गया ।
रंगीलाल भी हाथ धूल कर अपने कमरे में बैग से ब्रश लेने चला गया
अभी वो कमरे में गया ही था कि उसे तेजी से किसी के भागने की आहट आई
आहट इतनी तेज थी कि वो अचरज से बाहर झांकने आया तो देखा घर के बच्चों में कोई बनवारी के कमरे के पास वाले जीने से ऊपर गया है ।
रंगीलाल के इग्नोर किया और अपना समान निकालने लगा ।
वही पीछे आंगन में बनवारी खुले में नहाने बैठ गया , मोटर चालू थी और तेजी से पानी आ रहा था । बनवारी ने आंगन का दरवाजा लगाया और धोती निकाल कर पूरा नंगा हो गया ।
इस बात से बेखबर कि कोई उपर की छत से छिप कर उसे देख रहा था ।
वो पूरा नंगा होकर खुले आंगन में बैठा था और अपने देह पर पानी गिरा रहा था ।
वो एक प्लास्टिक की छोटी स्टूल पर था अपनी टांगे फैलाए हुए एड़ी घिस रहा था और उसके बड़े बड़े झूलते आड़ो के साथ उसका मोटा काला बैगन जैसा लंड सोया हुआ भी विकराल लग रहा था ।
बनवारी अपने देह पर पानी डाल रहा था और उसका लंड भीग रहा था
तभी उसे लगा कि कोई उपर से देख रहा था किसी साए के होने का अहसास
झट से उसने नजर ऊपर की और अपने सीने पर हाथ मलने लगा ।
उसने वहा से ध्यान हटाया क्योंकि जो भी था वो वहा से पीछे हो गया और कुछ देर तक अपने देह को बिना साबुन के मलता रहा और जब बाल्टी के पानी की हलचल हल्की हुई तो उसने एक लहराती हुई झलक पानी की बाल्टी में देखी और वो दो चुटिया वाली लड़की कोई और नहीं गीता थी ।
बनवारी एकदम से असहज हो गया था उसने झटपट से पानी डाला और अपनी धोती लपेटे कर बाहर आया । उसका अंदाजा सही था , उसे बाहर बड़े आंगन में गीता नजरे चुराती हुई ब्रश करती हुई दिखाई दी ।
बनवारी को पसंद नहीं आया कि उसकी नातिन ऐसा कुछ हरकत करेगी । भला अभी उसकी उम्र क्या है और ये कई दिनों से बनवारी महसूस कर रहा था मगर आज गीता की पहचान हो गई थी ।
बनवारी चुपचाप अपने कमरे में चला गया और रंगीलाल अपने कपड़े लेकर एक तौलिया लपेट कर बनियान में बाथरूम की ओर गया ।
उसकी नजर अनायास सुनीता को खोज रही थी और किचन में उसे देखते ही वो उस ओर ही बढ़ गया ।
दरवाजे पर आहट और सुनीता सतर्क होकर रंगीलाल को देख कर मुस्कुराई । उसकी नजर रंगीलाल के कंधे की चोट पर गई जो अब काली पड़ने लगी थी ।
: जख्म कैसा है आपका ? ( सुनीता ने इशारा किया )
: आपने दिया है आप जानो ( रंगी ने सुबह सुबह छेड़ा उसे )
: धत्त क्या आप भी सुबह सुबह ( सुनीता लजाई)
: सुबह का ही तो इंतजार था , आपकी समय सीमा पूरी हो गई है भाभी जी ( रंगीलाल का इशारा रात वाले वाक़िये पर था )
: क्या ? धत्त , आप तो सीरियस हो गए ( सुनीता अब घबराई मगर उसकी खूबसूरत होठों की हसीन मुस्कुराहट के कही खो सी गई )
: तो क्या आपने हमारे प्यार को मजाक समझा था ( रंगी ने भौहें उचका कर पूछा)
: धत्त जीजा जी , आप मुझे कंफ्यूज कर रहे है । क्या आप सच में ? ( सुनीता की सांसे तेज थी )
: अभी भी कोई शक है आपको ( रंगी के भीतर वासना के जज्बात उसके लंड में सुरसुराहट भर रहे थे ) मुझे तो बस आपकी हा का इंतजार रहेगा ।
ये बोलकर रंगी मुस्कुराता हुआ बाथरूम की ओर चला गया और सुनीता वही उलझी हुई खड़ी रही । उसका मन बार बार यही समझा रहा था कि उसके नंदोई उससे मजाक ही कर रहे है । तभी उसका ध्यान अपने पति राजेश को ओर गया और ना जाने क्यों वो चिढ़ सी गई । बीती रात राजेश फिर पी कर आया था और अभी तक उठा नहीं था ।
सुनीता ने बबीता को आवाज दी : गुड़िया , ये गुड़िया ?
बबीता भागकर आई : हा मम्मी !!
सुनीता घुड़क कर : जा तेरे पापा को जगा जल्दी जा
बबीता जो कमरे में सुबह सुबह ही टीवी चालू करके बैठी थी उसकी मां ने उसको काम फरमा दिया ।
वो भी भुनकती हुई अपने पापा को जगाने उनके कमरे में गई
राजेश बेड पर पेट के बल पसरा हुआ था , बबीता बेड के करीब खड़ी होकर अपने पापा को हिला कर आवाज देने लगी
: पापा उठो , पापा
: उम्ममम ( राजेश ने वैसे ही लेटे हुए अपनी आँखें खोलनी चाही तो उसके सामने बबीता की चिकनी जांघें थी । वो इस समय शॉट्स और टॉप में आई थी । )
गोरी चिकनी दूधिया जांघें देखते ही राजेश के जहन में कल वाली छवि उभर आई और उत्तेजना उसके सोए हुई चेतना पर हावी होने लगा
: इधर आ बेटा ( राजेश करवट लेते हुए बबीता की कलाई पकड़ कर बिस्तर पर बिठाया )
: उम्हू छोड़ो नहीं बैठना मुझे आपके पास ( बबीता को उसके बाप के देह से शराब की बू आती महसूस हो रही थी उसने हाथ झटक कर छुड़ाना चाहा )
मगर राजेश जबरन उसे पकड़ कर बिठा लिया और उसके पीठ सहलाने लगा
: क्या हुआ गुड़िया , बेटा ( राजेश ने उससे दुलारा और इसी बहाने वो बबीता के गुदाज नर्म पीठ का स्पर्श ले रहा था )
: उन्हूं छोड़ो मुझे ( बबीता ने कंधे झटके ) आप गंदे हो इसलिए नहीं आती हूं आपके पास हूह ( बबीता ने मुंह बनाया
: अच्छा नहा लूंगा तो रहेगी न मेरे पास ( राजेश ने फुसलाया )
: ना ( बबीता ने ना में सर हिलाया )
: फिर ?
: आप जब शराब नहीं पियोगे तो ही मै आपके पास रहूंगी, पहले प्रोमिस करो कि आप शराब नहीं पियोगे, बोलो ( बबीता उसकी ओर घूम कर बोली )
राजेश अपने नशे की लत से बंधा था मगर एक अनजाना लालच उसे बबीता की ओर खींच रहा था
: ठीक है प्रोमिस , लेकिन तुझे मेरे साथ टीवी देखनी पड़ेगी ठीक है ( राजेश ने उसकी हथेली अपने हाथों में ली )
: ओके पापा , हीही ( बबीता एकदम से खुश हो गई ) चलो अब उठो बहुत बदबू कर रहे हो आप हीही ( बबीता उसका हाथ पकड़ कर खींचने लगी )
शिला के घर
मानसिंह छत से नीचे आया , कल रात रज्जो की वजह से उसे ऊपर सोना पड़ा था , लेकिन कम्मो ने उसे इसका अफसोस नहीं होने दिया ।
मगर उसकी नजर रज्जो पर जम गई थी , कल सुबह जबसे उसने रज्जो को अपनी गोद में खिलाया था उसके मोटे बड़े भड़कीले चूतड़ों को मसला था उसकी नंगी पेट पर अपने हाथ फेरे थे , उस अहसास से मानसिंह उभर नहीं पाया था । जब जब उसकी नजरें रज्जो पर जाती एक बिजली सी कौंध जाती उसके जिस्म में , लंड उसकी भड़कीले चूतड़ों को देख कर पागल हो जाता था । मगर कही न कही वो थोड़ा शर्मिंदा था , रज्जो और मानसिंह दोनों एकदूसरे से नजरे चुरा रहे थे ।
सीढ़िया उतरते हुए मानसिंह की नजर किचन में गई , उसने अभी तक कल वाली वही शिला की साड़ी पहनी थी , मगर इस बार मानसिंह ने धोखा नहीं खाया और चुपचाप बिना उसकी नजर में आए धीरे से अपने कमरे की ओर चला गया
अंदर कमरे में शिला अपने मानसिंह के ही कपड़े स्त्री कर रही थी
अपनी गदराई बीवी को कुर्ती लेगी के देख कर मानसिंह का लंड एकदम से अकड़ गया
उसने पीछे से आकर उसके नरम चर्बीदार चूतड़ों पर पंजा जड़ा
: अह्ह्ह्ह्ह मैयायाह उम्मम क्या करते हो जी अह्ह्ह्ह ( शिला मानसिंह के थप्पड़ से झनझना गई और अपने कूल्हे सहलाने लगी )
: उम्मम मेरी जान आज तो सारी रात तड़पा हु तुम्हारे लिए ( मानसिंह पीछे से हग करता हुआ उसके बड़े बड़े रसीले मम्में कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा )
: अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म क्यों ऑनलाइन देखा नहीं क्या मुझे , कैसे तुम्हारी याद इतना बड़ा डिल्डो डाल रही थी ओह्ह्ह्ह उम्ममम नहीं रुकिए न ( शिला वही दिवाल के लग कर खड़ी हो गई और मानसिंह उसकी कुर्ती उठा कर लेगी के ऊपर से उसकी बुर सहलाने लगा )
: अह्ह्ह्ह्ह मजा तो तब आता जान , जब तुम रज्जो भाभी की बुर के दर्शन भी कराती , अह्ह्ह्ह तुम दोनों की जोड़ी रात में एकदम हिट थी । कितने सारे लोगों ने क्लब ज्वाइन किया ( मानसिंह उससे लिपट कर उसके चूचे कुर्ती के ऊपर से मसलने लगा और शिला भी उसका लंड पकड़ की ली )
: आज देख लेना मेरी जान , आज दुपहर में कितने सारे क्लाइंट को फोटो भेजनी है , तुम्हारे पास वीडियो भेजूंगी पूरी नंगी करके ( शिला ने उसका लंड भींचते हुए उसकी आंखों में देख कर बोली )
:अह्ह्ह्ह सच में जान, जब से रज्जो भाभी को छुआ है तबसे कुछ भी इतना नरम और मुलायम नहीं लगता है , सोचता हूं एक बार फिर उन्हें अपनी गोद में बिठा लू अह्ह्ह्ह ( मानसिंह बोलते हुए शिला के लिप्स से अपने लिप्स जोड़ लिया और पजामे में बना हुआ लंड का तंबू सीधा उसकी बुर में कोचने लगा )
: अह्ह्ह्ह उफ्फ उम्मम तो जाओ दबोच लो , किचन में होंगी । मीरा भी गांव गई है बाउजी ने बुलाया है । जाओ ( शिला ने उसको उकसाया )
: पक्का , अगर नाराज हो गई तो ? ( मानसिंह ने चिंता जाहिर की )
: अरे मुझसे ज्यादा वो प्यासी है लंड के लिए, आप बस पहल तो करो खुद पकड़ के अपनी बुर में डाल न ले तो कहना ( शिला ने मानसिंह को पूरे जोश से भर दिया )
मानसिंह ने अपनी बीवी के भरोसे इस रिश्क के लिए तैयार हो गया और वापस कमरे के निकल कर किचन की ओर गया तो आधे रास्ते में ही रुक गया , क्योंकि किचन में उसका भाई रामसिंह पहले ही रज्जो के पास खड़ा उससे बातें कर रहा था ।
मानसिंह को रज्जो का मुस्कुराना और अपने भाई के खिल कर बातें करता देख अजीब सी बेताबी हुई और लपक कर छुप कर किचन के पास जीने बाहर ही खड़ा हो गया ।
: वैसे आज मुझे एक पल को पीछे से लगा था कि आप भाभी ही है , फिर याद आया कि कल भैया भी गच्चा खा गए थे हाहाहा ( रामसिंह हंसता हुआ बोला और रज्जो लजा गई )
: क्या दीदी भी न , सबको बता दिया ( रज्जो लाज से हंसी )
रज्जो के हाथ चकले पर तेजी से चल रहे थे, और हर बार जब वह बेलन को दबाती, उसके बड़े, रसीले दूध ब्लाउज में हिलते-डुलते। उसका ब्लाउज थोड़ा तंग था, जिससे उसकी भरी-पूरी देह और भी उभर कर सामने आ रही थी। रामसिंह की नजरें अब उसकी छाती पर ठहर गई थीं, और वह मन ही मन कुछ शरारती खयालों में खो गया।
उसकी नजर रज्जो के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर थी जो साड़ी की ओट में थी ।
: अब किसी को बताए न बताए अपने लाडले देवर से कुछ नहीं छिपाती मेरी भाभी ( रामसिंह शब्दों के दाव पेच अच्छे से जानता था और शिला ने पहले से उसे बता रखा था कि रज्जो का मिजाज कैसे है और कैसे वो शब्दों के दो फाड़ करने में माहिर थी )
: अच्छा जी , कुछ भी नहीं ( रज्जो के चेहरे पर शरारती मुस्कुराहट थी )
: उन्हू कुछ भी नहीं ( रामसिंह ने बड़े विश्वास से कहा )
: अच्छा तो ... नहीं कुछ नहीं ( रज्जो ने जहन में सहसा कुछ आया लेकिन्वो चुप हो गई )
वही रज्जो के चुप होने से ना सिर्फ रामसिंह बल्कि किचन के बाहर खड़ा मानसिंह भी उत्सुक हो उठा । दोनों भाई भीतर से बेचैन हो गए ।
: अरे क्या हुआ बोलिए न ( रामसिंह ने थोड़ा कैजुअल होकर कहा )
: वो ... नहीं हीही कुछ नहीं ( रज्जो सब्जियां चलाती हुई बोली )
: अरे .. कहिए न झिझक कैसी ( रामसिंह )
: नहीं मै दीदी से पूछ लूंगी ( रज्जो ने मुस्कुरा कर कहा )
: अरे ऐसा कुछ नहीं है जो भाभी को पता है और मुझे नहीं , आप आजमा कर तो देखिए
: पक्का ( रज्जो के चैलेंज सा किया )
दोनों भाई एकदम से जिज्ञासु
: हा हा , कहिए ( रामसिंह विश्वास से बोला )
: कल रात हम दोनो साथ में सोए थे और आपके भैया ऊपर थे अकेले , पता है आपको ? ( रज्जो मुस्कुराई )
: अह हा पता है , इसमें क्या बात हो गई ( इधर रज्जो के इस पहल से रामसिंह और मानसिंह की सांसे चढ़ने लगी , क्योंकि उन्हें डर था कही उनकी योजना खुली किताब न हो जाए )
: अच्छा तो क्या ये बता है कि रात में आपकी भाभी ... हीही आपके भैया का नाम लेकर मुझसे चिपक रही थी हाहा ( रज्जो हस कर बोली )
रज्जो की बात सुनकर दोनों भाई के लंड में हरकत होने लगी
: क्या आप भी न भाभी , वैसे एक राज की बात बताऊं भैया से नहीं कहेंगी न ( रामसिंह उसके पास खड़ा हुआ , उसका लंड पजामे में तंबू बना चुका था और रज्जो की नजर उसपे पड़ चुकी थी । )
: उन्हूं बिल्कुल भी नहीं ( रज्जो की सांसे तेजी से धड़क रही थी वो रामसिंह की आंखों में वासना की बढ़ती भूख को देख पा रही थी । जिसका असर कुछ कुछ उसपे भी हो रहा था )
: पता है एक बार कम्मो नाराज हो गई थी हमारी खूब लड़ाई हुई और मै भी गुस्से में भैया के बिस्तर पर सो गया था और उस रात भाभी ने मुझे भैया समझ कर मुझसे चिपक गई थी ( रामसिंह ने अपने शब्दों में मसाला डाल कर परोसा )
रज्जो साफ साफ उसके झूठ को समझ रही थी क्योंकि वो पहले से ही शिला से उसके घर की सारी कहानी सुन चुकी थी । मगर उसे ये खेल पसंद आ रहा था
वही बाहर खड़ा मानसिंह अलग से अपना लंड मसल रहा था कि उसका छोटा भाई तो काफी तेज निकला और यहां वो एक बार रज्जो को दबोच कर भी कुछ नहीं कर सका ।
: फिर क्या हुआ ? आपने क्या किया ? ( रज्जो ने आंखे बड़ी कर रामसिंह को देखा )
: आपको बुरा तो नहीं लगेगा न, वो क्या है कि बातें थोड़ी वैसी है ( रामसिंह ने ऐसे दिखाया जैसे वो कितना बेबस हो )
: अरे हम लोग कौन सा बच्चे , कही आपकी उम्र तो 18 से कम तो नहीं हीही ( रज्जो मस्ती में बोली ताकि रामसिंह थोड़ा खुले )
रज्जो की बात पर रामसिंह के साथ साथ बाहर छुपा मानसिंह की भी हसी रुक न सकी ।
: हीही, आप भी न भाभी खोज कर रखी है सारे शब्द । वैसे मै 18+ तो तभी हो गया था जब आपको पहली बार देखा था । ( रामसिंह ने शरारत भरी नजरो से रज्जो की आंखों ने देखा)
: वैसे आप कुछ बता रहे थे ( रज्जो ने बात घुमाई , जैसा कि वो सताने में माहिर है )
: हा वो , उसके बाद भाभी ने यहां नीचे पकड़ लिया और दीवानी सी हो गई ( रामसिंह का इशारा अपने पजामे के तंबू पर था )
: हाय दैय्या, फिर ( रज्जो ने नाटक जारी रखा )
: भाभी को अपने देखा ही है कितनी मुलायम है और उनका स्पर्श मुझे पागल कर गया था और फिर .... ( रामसिंह ने मुस्कुराते हुए आंखे मार कर गर्दन झटका )
: क्या सच में , धत्त झूठे मै नहीं मानती कि दीदी ऐसा करेंगी । ( रज्जो ने आजमाया )
इधर बाहर खड़ा मानसिंह ताज्जुब में था कि एक दिन पहले ही आई रज्जो इतना खुल कैसे गई , रज्जो की बातों और जिस तरह वो भूखी नजरों से कभी रामसिंह का लंड का तंबू देखती और कभी उसकी आंखों में देखती। मानसिंह मान गया कि उसकी बीवी शिला ने रज्जो के बारे में सही कहा था ।
: अरे सच में ऐसा हुआ था , और अब तो कई बार ... लेकिन प्लीज भैया या कम्मो से मत कहिएगा ( रामसिंह बोला )
: नहीं कहूंगी , लेकिन एक शर्त है ( रज्जो शरारती मुस्कुराहट के साथ इतराई )
: क्या कहिए न ( रामसिंह बोला ).
: आपको मुझे दिखाना पड़ेगा ( रज्जो ने रामसिंह को उलझाया )
रज्जो के इस वक्तव्य से दोनों भाई एकदम से चौक गए
: क्या देखना चाहती है आप ( रामसिंह का लंड पजामे ने पूरा अकड़ कर पंप होने लगा )
: आपको आपकी भाभी के साथ , थोड़ी सी मस्ती भी चलेगी जिससे मुझे यकीन हो जाए ।( रज्जो उससे एकदम सट कर खड़ी थी )
: लेकिन मेरा क्या फायदा इतना बड़ा रिश्क लेने का ( रामसिंह की सांसे तेज थी और वो रज्जो की आंखों में देख रहा था )
: जितना बढ़िया सो उतना अच्छा इनाम ( रज्जो ने आंखे नचा कर जीभ को अंदर से अपने गाल में कोचते हुए इतराई )
: ठीक है , अभी मुझे कालेज जाना है शाम को मिलता हुं ( रामसिंह ने चैलेंज ऐक्सेप्ट किया और निकल गया वहां से )
वही मानसिंह बाहर खड़ा अपना मूसल मसलने लगा था कि क्या गजब का माहौल होने वाला है आज तो । मानसिंह बिना रज्जो से मिले चुपचाप वापस कमरे में चला गया शिला को साड़ी बात बताने के लिए।
चमनपुरा
: मम्मी देर हो रही है , कितना टाइम !! ( अनुज उखड़ कर बोला )
वो रागिनी के कमरे के बाहर खड़ा था और रागिनी कमरे में तैयार हो रही थी नहाने के बाद
: बस बेटा आ रही हूं , ये डोरी ... ( रागिनी की कुछ उलझन भरी आवाज आई )
अनुज के जहन में इस वक्त लाली की दीदी छाई थी । वो आज अपनी मिस को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा था ।
: अनुज सुन बेटा , जरा अंदर आना ( रागिनी ने आवाज दी )
: क्या हुआ मम्मी ( अनुज परेशान होकर कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर गया )
जैसे ही वो अन्दर घुसा उसकी आंखे बड़ी ही गई
"उफ्फ मम्मी कितनी सेक्सी" , अपनी मां के पीछे खड़ा हो कर वो बड़बड़ाया ।
उसकी मां रागिनी के नया ब्लाउज ट्राई का रही थी , जो पीछे से हुक की जगह बांधने वाली थी और बार बार कोशिश करके रागिनी के हाथ दुखने लगे थे
: बेटा ये जरा बांधना ( रंगीनी ने गर्दन घुमा कर बोला )
अनुज का हलक सूखने लगा था , उस साड़ी में अपने मां को देख कर जिस तरह से वो उनके कूल्हे से चिपकी थी चौड़ी कमर से लेकर ऊपर गर्दन तक पीछे से पूरी पीठ नंगी और मुलायम । गिले बालों से पानी के हल्के फुल्के अंश पीठ के बीच में दिख रहे थे ।
अपनी मां के जिस्म की कोमलता को अनुज साफ महसूस कर पा रहा था , उसने बिना कुछ कहे रागिनी के ब्लाउज का फीता पकड़ा यार उसको हल्के से गांठ दी , ये सोच कर कि कही उसकी मां के मुलायम चूचों पर जोर न पड़े , वो कस न जाए
: अरे क्या कर रहा है , टाइट कर न आज ब्रा नहीं डाली है मैने , कस पूरा ( रागिनी ने अनुज को टोका )
अपनी मां के मुंह से ऐसे अलफाज सुन कर अनुज की सांसे चढ़ने लगी और उसके फीते की कस कर गांठ दी
: अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकी )
: ज्यादा कसा गया क्या मम्मी ( अनुज फिकर में बोला )
: नहीं ठीक है , बांध दिया तो ऊपर वाली डोरी भी बांध दे ( रागिनी उखड़ कर बोली )
अनुज मुस्कुरा कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी बांधने लगा जिसकी लंबी गुरीया और मोतियों वाली लटकन उसके उभरे हुए कूल्हे तक जा रही थी ।
: हम्मम अब ठीक है ( रागिनी ने आइने में खुद को देखते हुए उस ओर बढ़ गई जिससे उनकी ब्लाउज का लटकन उनके कूल्हे पर उछल कर इधर उधर छिटकने लगा )
अनुज की नजर अपनी मां की मादक चाल पर थी और वो भीतर से सिहर उठा , रागिनी लिपस्टिक से अपने होठ रंग रही थी ।
जिसे देख कर अनुज की प्यास और बढ़ने लगी थी
: मम्मी , कितना रेडी हो रहे हो ? अच्छे से तो लग रहे हो आप ( अनुज भिनक कर बोला
रागिनी की उंगलियाँ एक पल के लिए रुक गईं। उन्होंने शीशे में अपनी परछाई के साथ-साथ अनुज की झुंझलाई हुई शक्ल को भी देखा। उनकी आँखों में हल्की-सी चमक आई, और फिर वह धीरे से हँस पड़ीं।
वो लिपस्टिक लगा कर खड़ी हुई और उसकी ओर घूम कर बोली: अब कैसी लग रही हूं ( रागिनी हंसी करती हुई अनुज की ओर अपना चेहरा करके आंखे तेजी से मलकाई )
अनुज अपनी मां के भोलेपन पर मुस्कुरा दिया : हील वाली सैंडल पहन लो, मेरी कालेज की मिस जी लगेगी हीही
: हैं सच में ? रुक पहनती हु ( रागिनी खिल कर बेड के नीचे से अपनी एक हील सैंडल निकालने के लिए झुकी जो उसने सोनल की शादी में पहनने के लिए लिया था
: मम्मी यार लेट हो .... उफ्फ ( सहसा अनुज की नजर अपनी मां के बड़े भड़कीले चूतड़ों पर गई जो झुकने की वजह से उस चुस्त साड़ी के फैलाना चाह रही थी , कूल्हे कैसे पहाड़ हो आगे पूरे गोल ।
: रुक न रुक न हो गया ( रागिनी झुक कर सैंडल पहनती हुई ) अब लग रही हूं न मिस जी तेरी ( रागिनी अपनी साड़ी सही करती हुई इतराई और अपना पल्लू हवा में लहराया )
: हा लेकिन .. (मगर अनुज की नजर कही और अटकी थी )
: क्या हुआ बोल
: वो आपकी ढोंडी नहीं दिख रही है , उनकी दिखती है ( अनुज बोलते हुए दांत में जीभ दबा लिया)
: अरे वो मै थोड़ा ऊपर की हूं .... आह अब सही है ( रागिनी ने झट से अपना पेट पिचकाया और साड़ी को नेवल के नीचे ले जाती हुई सेट करते हुए बोली )
अनुज को यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां ये सब उसके सामने कर रही है । हालांकि उसने बचपन से अपनी मां को अपने आगे तैयार होते कपड़े बदलते देखा था मगर अब बात कुछ और थी ।
: हम्ममम ( अनुज अपनी मां की गुदाज चर्बीदार नाभि देख कर थूक गटकने लगा )
: चलें ( रागिनी मुस्कुरा कर बोली )
: ऐसे ही ( अनुज आंखे बड़ी कर बोला )
: हा क्यों ? अच्छी नहीं लग रही हूं क्या ( रागिनी इतराई )
: नहीं वो सैंडल ? ( अनुज इशारे से )
: अरे हा , हीही ( रागिनी हस्ती हुए अपने पैर से सैंडल को बेड के नीचे झटका और जल्दी से रेगुलर चप्पल पहनती हुई ) चल चल
अनुज मुस्कुराता हुआ अपनी मां के साथ निकल गया
वही राज जो अब तक दुकान पहुंच गया था , ग्राहकों के बीच उलझा हुआ था ।
तभी उसके मोबाइल पर फोन आता है एक नंबर से जिसे देख कर उसकी मुस्कुराहट खिल जाती है पूरे चेहरे पर
जल्दी से वो ग्राहक निपटाता है और केबिन में जाकर कॉल बैक करता है
फोन पर
: ऊहू .. नमस्ते क्यूट भाभी जी ( राज मुस्कुराते हुए बोला )
: अरे .. धत्त आप भी न राज बाबू ( उधर आवाज आई ) छोड़िए ये बताइए कैसे है ?
: आपके बिना कैसे होंगे ? ( राज ने आहे भरता हुआ बोला )
: धत्त बदमाश, अच्छा सुनो न मुझे अभी दो तीन रोज का समय लगेगा चमनपुरा आने में और आज मेरा एक पार्सल आ रहा है । रिसीव कर लेंगे क्या ( काजल भाभी ने बड़ी मीठी आवाज में गुजारिश की )
: उम्हू एक और पार्सल ( राज ने छेड़ा उसे )
: धत्त बदमाश, सही बोलो न ? ( काजल भाभी बोली ) ले लोगे न ?
: आप दो तो सही , अगर हम मना करे तो हमारी गुस्ताखी ( राज ने फिर से छेड़ा उसे )
: अच्छा बाबा ठीक है अब घुमाओ मत ( काजल भाभी गहरी सास लेते हुई बोली ) अच्छा इस बार का उधार नहीं रखूंगी । पक्का
: और पहले वाली उधारी ?
: ठीक है वो भी ले लेना , लेकिन प्लीज याद से रिसीव कर लेना ओके , मै फोन करूंगी ( काजल भाभी ने रिक्वेस्ट की )
: ओके मेरी क्यूट भाभी जी , और कुछ
: उन्हूं कुछ नहीं , बाय
: क्या बस बाय ? ( राज ने फिर से काजल भाभी को छेड़ा )
: हा तो , हिसाब किताब में कुछ भी घलुआ नहीं मिलेगा । काम करोगे पहले फिर दाम मिलेगा ( भाभी तुनक कर बोली और फोन काट दिया )
राज मुस्कुरा कर अपना लंड पेंट में मसलता हुआ : अह्ह्ह्ह ठीक ही , मै भी गल्ले वाला सेठ हूं भाभी । हिसाब अच्छे से करूंगा ।
वही इनसब से अलग मंजू आज खासा खामोश थी
रात की हरकत से वो मुरारी से बेहद नाराज जी , उसकी इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी उसके साथ जाने की । मगर ता उम्र और जवानी के इतने साल उसने मदन से दूर बिताए थे । मदन ने उसके प्यार में अपनी जिंदगी नहीं बसाई और आज भी उसकी राह देख रहा है , अगर वो हा करके भी नहीं गई तो शायद मदन के साथ ज्यादती होगी । शायद उसे अपने जीवन का ये जहरीला घूंट पीना ही पड़ेगा ।
वही आज मुरारी मंजू को उदास देख रहा था , उसे लग रहा था कि मंजू में शायद इस समाज और घर के लिए मोह है जो उसके बुरे दिनों में उसके साथी रहे है ।
: मंजू मैने गाड़ी वाले से बात कर ली है , वो चौराहे पर है । उसे रास्ता समझ भी आ रहा है । तुम घर में ताला लगाओ मै बस अभी आ रहा हूं लिवा कर
: जी भइया ( मंजू ने उदास लहजे में जवाब दिया और मुरारी ने उससे कुछ नहीं कहा । चुपचाप निकल गया घर से )
मंजू का बैग रेडी था , उसके कमरे में एक बुढ़िया बैठी थी । मंजू दिवाल पर लगी आराध्यों के पुरानी तस्वीरों के खुद को नतमस्क करने लगी । शायद वो आभारी थी उन सबके कि इतने बुरे दिनों में वो उसके साथ खड़े रहे ।
इधर मेन सड़क पर आते समय मंजू के घर के मुहल्ले की ओर 3 4 बाइक्स तेजी से निकली , मुरारी ने उनके चेहरे पर गुस्से से भरी उत्तेजना देखी । मगर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गया ।
कुछ ही देर बाद वो चौराहे से गाड़ी में बैठ कर मंजू के घर के पास पहुंचने लगा
तो देखा , वहां काफी भीड़ जमा हुई है । वो बाईक्स जो कुछ देर पहले उसके नजरो के आगे से गुजरी थी वो वही खड़ी थी ।
मुरारी को संदेह हुआ कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ , वो गाड़ी से उतरने लगा । भीड़ पूरी शांत थी , मगर एक तेज आवाज की गूंज से मुरारी थरथरा उठा ।
भीड़ ने निकल कर सामने देखा तो ये आवाज मंजू के घर से आ रही थी
" साली , रंडी उतर आई न अपनी जात पर , कहा छिपा है वो भोसड़ी है आज उसकी लाश लेकर जाऊंगा , कहा है वो बोल ? " , घर में से एक तेज आवाज आई । जिसे सुनते ही मुरारी का कलेजा उबाल मारने लगा । उसकी सांसे चढ़ने लगी , आंखे लाल होने लगी
“रुक जा, तू!” मुरारी ने उस अड़ियल आदमी को ललकारा, जो मंजू को गालियां दे रहा था। उसकी आवाज में गुस्सा और दृढ़ता थी। भीड़ में एक सन्नाटा सा छा गया। बाकी लोग हैरान थे कि कोई उनकी हिम्मत कैसे कर सकता है। उस आदमी ने मुरारी की ओर घूरते हुए कहा देखा , “तू कौन है बे? तुझे क्या लेना-देना?”
: जिसे तू खोज रहा है वो मै ही हूं , बोल अब ( मुरारी अपना कुर्ता की बाह मरोड़ता हुआ बोला )
मुरारी की बात सुनकर वो आदमी हंस पड़ा, लेकिन उसकी हंसी में क्रूरता थी। “अच्छा, तो तू इसका यार है? चल, देखते हैं कितना दम है तुझमें!”
: नहीं भइया, मत उलझिए इससे । आप प्लीज वापस घर चले जाइए ( मंजू बिलखती हुई बोली, उसकी बेबसी और आंखों के आंसू देख कर मुरारी का खून और खौलने लगा )
: नहीं मंजू , मैने अपने बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर लेकर आऊंगा और मै कभी भी अपना वादा नहीं तोड़ता । ( मुरारी उसको विश्वास दिला रहा था कि इतने में तेजी से एक पंजा उसकी पीठ पर और उसके कुर्ते को पकड़ कर खींचते हुए अपनी ओर घुमाया )
: भोसड़ी के तू बड़ा सलमान खां हैं? मादर... चो ( एकदम उस दूसरे आदमी की सांसे अटक गई दिल मानो बैठ ही जाएगा , आंखे बड़ी और एकदम मूर्ति सी बन गई ) हे देख .. देख मस्ती नहीं , भाई गोली है लग जाएगी । देख ऐसे नहीं
: क्यों भोसड़ी के , हैं, निकल गई हवा मादरचोद ... ले तेरी मां का ( मुरारी ने एक उल्टे हाथ कोहनी उसके सीने पर दी और वो कहराते हुए पीछे हो गया )
अब मुरारी ने अपनी रिवॉल्वर का प्वाइंट उस आदमी की ओर किया जिसने ये सारा हंगामा खड़ा किया था
मंजू ने जैसे ही मुरारी के हाथ रिवॉल्वर देखी एकदम से हदस गई , उसकी लाली डबडबाई आंखे पूरी फेल गई , उसका कलेजा धकधक हो रहा था । उसके जहन में वो शब्द गूंज रहे थे जो कुछ देर पहले मुरारी ने उससे कहे थे ।
" मैने मेरे बेटे से वादा किया है कि उसकी चाची को हर कीमत पर घर ले आऊंगा " , ये शब्द मानो आकाशवाणी जैसे उसके दिमाग में घूम रही थी । उसका कलेजा काफ रहा था किसी अनहोनी की आशंका में । कही मुरारी ने उस गुंडे को मार दिया तो
वही वो आदमी एकदम से सन्न हो गया था उसके साथी वहां से भाग खड़े हुए थे । उस आदमी का हलक सूखने लगा था पाव पीछे हो रहे थे ।
: द देख भाई , मेरी कोई दुश्मनी नहीं है । इसको ले जाना चाहता है तो ले जा , इतने दिन मेरे साथ थी न तो अपन खुश अब तू ले जा तू खुश । भाई प्लीज मै जा रहा हूं, हा ( वो हाथ खड़े किए हुए अपनी बाइक तक गया और झटके में बाइक स्टार्ट कर निकल गया )
मुरारी ने रिवॉल्वर वापस अपने बेल्ट के खोंसी और कुरता गिरा दिया और मंजू के पास पहुंचा जो घर के दरवाजे पड़ी बिलख रही थी , मुरारी उसके पास बैठा : आओ चलें गाड़ी आ गई
: भइया... ( मंजू रोती हुई एकदम से मुरारी से लिपट गई )
मुरारी को यकीन नहीं था कि मंजू ऐसा कुछ करेगी , वो चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था ।
जारी रहेगी ।