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Adultery सपना या हकीकत [ INCEST + ADULT ]

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DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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हो जाइए तैयार
आगामी अपडेट्स के लिए

राज - अनुज और रागिनी
Hard-core threesome
बहुत जल्द

Gsxfg-IAX0-AAa-Jnh
(सिर्फ पनौती न लगे बस 😁)
 
Last edited:

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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Bahut achchi Writing skills hai... Achchi story likhi hai... please keep writing....
Likhi to hai
Lekin logo ko padh kar like aur reply karne me haath Tut Jaa rahe hai

Thank you
Please keep supporting
 

Rock2500

New Member
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UPDATE 06

प्रतापपुर

शाम ढल चुकी थी। रंगीलाल अपने ससुर बनवारी के साथ खेतों से घर की ओर लौट रहा था। उसके कदम थके हुए थे, और शरीर में एक अजीब-सी बेचैनी थी। कुछ देर पहले कमला के साथ जो घटना हुई थी, उसकी वजह से उसके कंधों और कोहनियों पर खरोंचें आ गई थीं। घुटनों में भी हल्का-हल्का दर्द चुभ रहा था, जैसे हर कदम पर उसे उस वाकये की याद दिला रहा हो। बनवारी, जो उम्र के हिसाब से चुस्त-दुरुस्त था, आगे-आगे चल रहा था और रंगीलाल उसके पीछे-पीछे चुपचाप अपने विचारों में खोया हुआ।

जैसे ही दोनों घर के आंगन में दाखिल हुए, बनवारी की नजर अपनी बहू सुनीता पर पड़ी, जो रसोई के पास कुछ काम निपटा रही थी। उसने अपनी पुरानी मगर दमदार आवाज में कहा : बहु, जरा जमाई बाबू के लिए पानी गर्म कर दे नहाने को।


सुनीता ने सिर हिलाकर हामी भरी और चुपचाप चूल्हे की ओर बढ़ गई। दूसरी तरफ, रंगीलाल अपने कपड़े और तौलिया उठाकर घर के पीछे बने छोटे-से बाथरूम की ओर चल पड़ा। पीछे आंगन की दीवारें ऊंची थीं, और छत खुली थी ।

आंगन में जीने के पास पहुंचकर रंगीलाल ने अपने पसीने से सने कपड़े उतारने लगा। वह अभी जांघिया में ही खड़ा था कि अचानक चौखट पर हल्की-सी आहट हुई। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, सुनीता एक भगौने में गर्म पानी लेकर अंदर दाखिल हो गई। उसकी नजर अनायास ही रंगीलाल की नंगी देह पर पड़ी। एक पल के लिए दोनों की सांसें थम सी गईं। सुनीता ने फौरन नजरें फेर लीं और असहज होकर दूसरी ओर मुंह कर लिया। रंगीलाल को भी अपनी सलहज के सामने इस हालत में खड़े होने की शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने जल्दी से तौलिए को कमर पर लपेटने की कोशिश की।

सुनीता ने भगौना जमीन पर रखा और जैसे ही वह जाने को मुड़ी, उसकी नजर रंगीलाल के कंधों पर पड़ी। वहां की खरोंचें और लाल निशान देखकर उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
उसने हिचकिचाते हुए पूछा : ये क्या हुआ जीजा जी? आपके कंधे पर तो चोट लगी है!
रंगीलाल, जो अभी तक अपनी असहजता से उबर नहीं पाया था, ने जल्दी से एक झूठ गढ़ लिया।
रंगी : अरे कुछ नहीं, खेत में टहलते वक्त पैर फिसल गया और गिर पड़ा। बस थोड़ी-सी खरोंच है।
उसकी आवाज में हल्की-सी कांप सुनाई दी, जो शायद सुनीता ने नजरअंदाज कर दी।

सुनीता कुछ पल उसे देखती रही, फिर बिना कुछ कहे बाहर चली गई। थोड़ी देर बाद वह डिटॉल की शीशी और एक कटोरी में पानी लेकर लौटी। उसने रंगीलाल से कहा : आप जरा सीढ़ी पर बैठ जाइए, मैं चोट साफ कर देती हूं। ऐसे ही छोड़ देंगे तो इन्फेक्शन हो सकता है।

रंगीलाल ने हिचकते हुए सीढ़ी पर बैठ गया। सुनीता उसके पास खड़ी होकर बड़े ध्यान से उसके कंधों और कोहनियों को साफ करने लगी। उसके कोमल हाथों का स्पर्श रंगीलाल के लिए एक अजीब-सा अनुभव था। वह बाहर से असहज दिख रहा था, लेकिन भीतर ही भीतर सुनीता की फिक्र और उसके हाथों की नरमी उसे गुदगुदा रही थी।

सुनीता का गदराया हुआ शरीर उसके करीब था। उसकी साड़ी का पल्लू हल्का-हल्का हिल रहा था, और ब्लाउज के नीचे उसका नरम, चर्बीदार पेट और नाभि रंगीलाल के चेहरे के ठीक सामने था। सुनीता के जिस्म से उठती हल्की खुशबू—शायद साबुन और पसीने की मिली-जुली महक—रंगीलाल के मन को भटका रही थी। वह खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी नजर बार-बार सुनीता के चेहरे और ब्लाउज की गोलाईयों पर चली जा रही थी। सुनीता भी इस असहज स्थिति को भांप रही थी, मगर वह चुपचाप अपना काम निपटाने में लगी रही।
चोट साफ करने के बाद उसने कहा : अब ठीक है। आप नहा लीजिए, मैं चलती हूं।
और वह तेजी से बाहर निकल गई।

रंगीलाल ने गहरी सांस ली और नहाने के लिए बाल्टी में पानी डाला। गर्म पानी की भाप और ठंडी हवा का मेल उसके शरीर को सुकून दे रहा था। नहाने के बाद उसने साफ और आरामदायक कुर्ता-पायजामा पहना और बाहर आंगन में आ गया। बनवारी पहले से ही वहां बैठा अपनी हुक्की गुड़गुड़ा रहा था। सुनीता ने खाने की थाली सजा दी—गरम-गरम रोटियां, दाल, और सब्जी की खुशबू से आंगन महक उठा। रंगीलाल और बनवारी ने साथ बैठकर खाना खाया। बनवारी कुछ पुरानी बातें छेड़ रहा था, और रंगीलाल हल्के-हल्के हंसकर उसका साथ दे रहा था। लेकिन उसका मन कहीं और था—सुनीता के कोमल स्पर्श और उसकी चिंता भरी आंखों में। खाना खत्म होने के बाद वह उठा, हाथ धोया, और रात के लिए अपने कमरे की ओर बढ़ गया। बाहर चांदनी छिटकी हुई थी, और रात की खामोशी में उसका मन अभी भी उस अनकहे अनुभव में उलझा हुआ था।

उसका कमरा उसके ससुर बनवारी के बगल में गेस्ट रूम वाला कमरा था जिसमें एक दरवाजा था जो दोनों कमरों को जोड़ता था ।
रंगीलाल बिस्तर पर लेटा हुआ था कि उसे घर का ख्याल आया । तो उनसे राज के पास फोन घुमाया । उससे हाल चाल करते हुए बैग से अपने एक गमछा लेकर पेंट निकाल कर उसे लपेट लिया ।
वो बिस्तर पर टेक लगाए पैर फोल्ड करके लेता था तभी सामने का दरवाजा खुला और सुनीता कमरे में दाखिल हुई । जैसे ही उसने दरवाजा खोला सामने उसकी नजर सीधे रंगी के गमछे के गैप से उसके जांघिये पर गई ।
रंगीलाल भी दरवाजे पर दस्तक होने से चौक गया और जैसे ही कमरे में सुनीता आई वो झट से उठ कर बैठ गया ।



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सुनीता कमरे में साटिन की चमकरदार नाइटी पहन हुए दाखिल हुई , जिसके हल्के कपड़े उसके जिस्म से चिपके हुए थे । बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मम्मे हल्के फुल्के उछाल से ऊपर नीचे हो रहे और कूल्हे पर पड़ी सिलवटें सुनीता की चाल में और भी लचक पैदा कर रहे थी । अब तक रंगीलाल जो अपनी सलहज के गोरे चेहरे और कातिल मुस्कुराहट का दीवाना था अब उसके जिस्म का स्कैन करके और पागल होने लगा । बड़ी आंखों से उसने अपनी सलहज का ये रूप देख कर स्तब्ध था ।

: किससे बात कर रहे थे जीजा जी , दीदी से ? ( सुनीता ने हल्की मुस्कान के साथ कदम बढ़ाए और रंगीलाल के पास बिस्तर पर बैठ गई )


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: हम्ममम बस यूं ही सोचा हाल चाल लेलू ( रंगी ने सहज जवाब दिया उसकी नजर सुनीता के गोल चूचों पर थी जो उसके बाजुओं में कसी थी कूल्हे पर नाइटी अब चुस्त हो गई थी जिससे उसकी चर्बी की नरमी का अहसास रंगी उसे बिना छुए ही अपने अंदर महसूस कर पा रहा था ।
: अरे सीधा सीधा कहिए न कि दीदी की याद आ रही थी और इसीलिए तो आज आप खेतों में भी गिर गए हीही ( सुनीता खिलखिलाई )
: अरे ... क्या भाभी आप भी , वो तो मै यू ही फिसल गया था हाहा ( रंगीलाल ने सफाई दी )
: चलो झूठे , जरूर किसी को देख कर फिसले होगे आप हीही ( सुनीता मजे लेते हुए बोली और रंगी उसके मजाक से चौक गया । हालांकि पहले भी उसकी सुनीता से बात चीत होती थी थोड़े बहुत अप्रत्यक्ष मजाक होते थे मगर हर ऐसे माहौल में लोग हुआ करते थे मगर आज वो अकेली थी उसके साथ । )
: ओहो आपने तो पकड़ लिया मुझे भाभी ( रंगी ने भी बातें बनानी शुरू की , चलो इसी बहाने इतनी sexy सलहज से बात चीत होती रहे )
: अरे कौन है बताइए न , सच्ची में दीदी को नहीं बोलूंगी ( वो खिल कर बोली)
: हा लेकिन क्या फायदा , उसकी तो शादी हो रखी है । अब कोई फायदा नजर नहीं आता मुझे ( मुंह बना कर रंगी बोला )
: अरे उससे क्या , मै बात करूंगी समझा बुझा दूंगी । इतना अच्छा दूल्हा कहा मिलेगा । अरे आपके पास तो पूरा का पूरा एक्सपीरियंस है मै कह दूंगी कि पहली वाली को आज तक कोई शिकायत नहीं मिली हाहाहाहाहा ( सुनीता हस्ती हुई बोली )
सुनीता की बाते सुनकर उसके लंड में हरकत हो रही थी । तौलिए के नीचे जांघिये में उसका लंड बड़ा हो रहा था ।
: और बाउजी से क्या कहोगी ? ( रंगी मुस्कुराया उसकी आंखों में शरारत साफ झलक रही थी )
: उनको भी समझा दूंगी , आपके लिए इतना तो कर ही सकती हूं ( सुनीता हस कर बोली )
: लेकिन फिर राजेश भाई का क्या होगा ? ( रंगी अपने मुंह में हसी का फब्बारा घोंटते है बोला )
: उनको क्या दिक्कत होगी भला ? ( सुनीता अब उलझी और रंगी के शब्दों का मतलब तलाशने लगी )
: अरे उनकी बीवी से शादी करूंगा तो बेचारे रंडवे हो जायेंगे न हाहाहाहाहा ( रंगी ठहाका लगाते हुए बोला )
: क्या ? धत्त जीजाजी आप भी ... तबसे आप मेरे बारे में बात कर रहे थे ( सुनीता लाज से गाढ़ होकर मुस्कुराने लगी )
उसकी लज्जा भरी मुस्कुराहट उसके गोरे गाल और भी गुलाबी होने लगे थे ।
: हा भाई सोनल की मां के बाद मुझे किसी से शादी करनी होगी तो मै आपसे ही करूंगा , वो तो साले साहब आ गए बीच में नहीं मै आपसे ही करता ( रंगी अपने पूरे रंग में आ गया था )
: धत्त जीजा जी , आप भी न ( सुनीता लजाते हुए बोली उसके चेहरे की हसी रुक नहीं रहे थी )
: मै तो आपकी शादी में ही आपको पसंद कर लिया था ... फिर सोचा बेचारे साले के घर में क्यों डाका डाला जाए । उसका घर भी तो चलना चाहिए इसीलिए छोड़ दिया । ( रंगी अपना मजाक जारी रखते हुए बोला ).
: हाय दैय्या , इतने साल से मुझे पसंद कर रखा है और आज तक कुछ कहा नहीं । काश पहले बता देते तो शायद कुछ हो जाता ( सुनीता ने रंगी का मजा लेना चाहा )
: क्यों अब कोई चांस नहीं है क्या ( रंगी ने दाव तलाशा और एक शरारत भरी मुस्कुराहट से सुनीता की आंखों में देखा )
: उम्हू ( सुनीता ने मुस्करा कर लजाते हुए न में सर हिलाया )
: अरे खुद को थोड़ा समझाओ बुझाओ , देखो इतना अच्छा दूल्हा मिलेगा नहीं ( रंगी हस्ते हुए बोला )
: अच्छा जी ( सुनीता इतराई )
: और क्या, फिर पहली वाली को आज तक कोई शिकायत नहीं मिली तो आपको भी नहीं होगी । सोच लो ( रंगीलाल ने साफ साफ लफ्जों में सुनीता को ऑफर दिया कि पट जाओ , तौलिया में उसका लंड अब पंप हो रहा था )
सुनीता अपने ही मजाक के जाल में उलझ गई थी और हसने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था ।

: हा लेकिन , दुनिया समाज का क्या ? मेरे बच्चों का क्या होगा ? बाउजी का क्या होगा ? और उनका ( राजेश ) क्या ? ( सुनीता अभी भी रंगी के ऊपर दाव पलटने के फिराक में थी )
: अरे जहां 3 है 2 और सही , बाउजी का ख्याल सोनल की मां रख लेगी और साले साहब के लिए भी दूसरी लड़की देख लेंगे ( रंगी मजाकिया अंदाज में बोला ) बोलो क्या कहती हो ?
सुनीता की हालत खराब थी , कही न कही वो रंगी की चाल बूझ रही थी और रंगी के जाल में बुरी तरह फंस गई थी । वो रंगी के अप्रत्यक्ष रूप रखे अनैतिक सम्बंध के प्रस्ताव को समझ चुकी थी । मगर यह सब कुछ मजाक के पर्दे में हो रहा था और इसका एक ही तरीका था बचने का कि इस मजाक को मजाक से ही खत्म किया जाए ।
: अरे इतना जल्दी कैसे बता दूं , थोड़ा समय भी दीजिए ( सुनीता मुस्कुराई )
: अरे इतने साल तड़पा हुं अब और कितना समय ? ( रंगी अब इस मजाक को हकीकत में उतार चुका था उसके चेहरे पर बेचैनी के भाव उबाल मार रहे थे जिसकी आग उसके जांघिये में उसके तपते लंड से उठ रही थी । )
: बस आज रात ! ( सुनीता रंगी के चेहरे के बदलते रंग को भाप गई और उसने अब उठना ही सही समझा इसके लिए यही तरीका था कि वो इस बात को टाल दे )
ये कह कर वो उठ गई
: आप आराम करिए , मै बाउजी को दवा दे दूं । ( सुनीता मुस्कुराई और कमरे से निकल गई )
वही रंगीलाल उसके नाइटी में झटके खाते चूतड़ों को देख कर सिहर उठा और भाग कर दरवाजे तक गया । सुनीता मुस्कुराते है किचन की ओर जाती दिखी उसे ।
रंगी कमरे का दरवाजा भीड़का कर अंदर आया और अपना अकड़ा हुआ लंड तौलिए के ऊपर से भींचने लगा

: अह्ह्ह्ह बहनचोद बड़ी कातिल चीज है उफ्फ एक पल को लगा पट ही जाएगी । अह्ह्ह्ह मिल जाए तो मजा ही आ जाए पूरी रसमलाई है उम्मम ( रंगी अपना खड़ा लंड सहलाते हुए बड़बड़ाया फिर बिस्तर पर आराम करने लगा )


चमनपुरा


" अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म बेटा रुक जा, अह्ह्ह्ह्ह अभी रात में कर लेना अह्ह्ह्ह्ह हट अनुज आ रहा है " , रागिनी ने राज का मुंह अपने चूत से हटाया और पेटीकोट गिरा कर उसके कमरे से किचन में निकल गई।

सीढ़ियों से अनुज अपनी किताबें और नोट्स लेकर नीचे आ रहा था ,


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उसने अपनी मां को सामने से किचन में जाते देखा और उसकी मादक चाल देखते ही उसके दिल में लालच पैदा हो गई ।

उसने राज को खोजा और देखा कि वो अपने कमरे में है तो उसने हाल में सोफे पर ऐसे कोने में बैठा जहां से किचन का नजारा मिलता रहे ।
रागिनी का ब्लाउज़ गहरे रंग का था, जो पसीने से पीठ और काँख के नीचे गीला होकर चिपक गया था। पसीने की पतली परत उनकी त्वचा पर चमक रही थी, और ब्लाउज़ का कपड़ा उनकी पीठ की बनावट को उभार रहा था। पेटीकोट हल्के रंग का था, जो गर्मी और पसीने से उनकी कमर और निचले हिस्से से चिपक गया था। उनके चूतड़ बड़े और भारी थे, जैसे मिट्टी के मटके, और पेटीकोट की पतली परत उसके चूतड़ों के आकार को और साफ कर रही थी।

अनुज की माँ चूल्हे के पास से हटीं और कुछ सामान लेने के लिए नीचे वाली अलमारी की ओर बढ़ीं। उन्होंने एक गहरी साँस ली, अपने माथे का पसीना फिर से पोंछा, और फिर धीरे से झुक गईं।


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जैसे ही वे नीचे झुकीं, उसका पेटीकोट, जो पहले से ही पसीने से चिपका हुआ था, उनकी त्वचा पर और कस गया। उनके बड़े, चौड़े चूतड़ उस पतले कॉटन के कपड़े में फैल गए, और गर्मी की वजह से कपड़ा उनकी शारीरिक बनावट को और उभार रहा था।पेटीकोट उनकी गांड की दरारों के बीच खिंच गया, और पीछे से उस गैप का हल्का सा आभास दिखने लगा। चाँदनी की रोशनी भले न हो, लेकिन किचन की पीली बल्ब की रोशनी में वह दृश्य साफ था। उनके झुकने से ब्लाउज़ भी ऊपर खिसक गया, और उनकी कमर का नंगा हिस्सा और चौड़ा दिखने लगा। अनुज की नज़रें उस दृश्य पर ठहर गईं। उसकी साँसें एकदम तेज़ हो गईं, और उसके हाथ में पकड़ी किताब अब हल्के-हल्के काँप रही थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और उसके शरीर में एक अजीब सी गर्मी दौड़ने लगी। उसकी नज़रें अपनी माँ के चूतड़ों पर जमी थीं, और तभी उसे अपने शॉर्ट्स में एक सनसनाहट महसूस हुई। उसका लंड अचानक फड़फड़ाने लगा, जैसे कोई अनियंत्रित उत्तेजना उसे जकड़ रही हो। उसने किताब को अपनी गोद में दबाने की कोशिश की, लेकिन उसका ध्यान अब पूरी तरह अपनी माँ पर था।

अगले ही पल रागिनी खड़ी हुई और फैले हुए पेटीकोट के कपड़े का कुछ हिस्सा उसके गाड़ की दरारों में फंस गया , जिससे उसके दोनों चूतड़ पूरे गोल मटोल शेप में आ गए । अनुज का हलक सूखने लगा अपनी मां का कातिलाना रूप देख कर । शॉर्ट्स में उसका लंड बड़ा हो रहा था और वो किताबों के नीचे छिपा कर उसको मिस रहा था । आज शाम से उसकी हालत खराब थी , पहले उसकी कालेज की टीचर , फिर लाली और फिर उसकी मम्मी और अब खुद अनुज की मां उसकी हालत खराब कर रही थी । उसने कुछ तय किया ताकि इस परेशानी से उसे निजात मिले और वो अपने परीक्षा की तैयारी सही से कर पाए ।
इधर रागिनी भी खाना तैयार कर सबको खाना खिला दी ।
खाने के बाद अनुज ने राज से कहा कि वो अपने मोबाइल का हॉटस्पॉट ऑन कर दे उसे लैपटॉप पर कुछ काम है ।
फिर अनुज ऊपर चला गया ।
एक मां के तौर पर रागिनी चाहती थी कि अनुज उसके पास रहे , अकेले ऊपर सुलाने पर उसे डर लग रहा था मगर वो ये भी जानती थी कि राज से उसने कुछ वादा किया है । वासना और ममता में उसने वासना को चुना और बिना कुछ कहे उसे ऊपर जाने दिया । राज ने भी खुशी खुशी उसको हॉटस्पॉट दे दिया ताकि वो उन्हें डिस्टर्ब न करे ।
इधर अनुज कमरे में पहुंचते ही लैपटॉप में पोर्न साइट खोलकर बैठ गया अपने अरमानों सैलाब बहाने के लिए।
वही नीचे रागिनी के कमरे में जबरजस्त उठापटक मची थी , राज अपनी मां की टांगे उठा कर गचागच पेले जा रहा था । रागिनी की नंगी मोटी चूचियां खूब हिल रही थी ।


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: अह्ह्ह्ह्हमम बेटा अह्ह्ह्ह और ओह्ह्ह्ह्ह कितना गर्म है तेरा लंड , उम्मम हर बार तू मुझे पागल कर देता है अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकते हुए बोली )
: अह्ह्ह्ह्ह मम्मी आप भी कम हो , आते ही कपड़े उतार दी क्या करता मै अह्ह्ह्ह आपकी गाड़ देख कर पागल हो जाता हूं अह्ह्ह्ह फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह मम्मी अह्ह्ह्ह सीईईईईई
: हा बेटा चोद और तेज अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म बेटा चोद मुझे कस कस के अह्ह्ह्ह आ रहा है रुकना नहीं

इधर राज करारे झटके देकर पेल रहा था कि इतने में उसका मोबाइल बजने लगा
राज का लंड एकदम फड़फड़ाने लगा था उसकी मां ने झड़ते हुए उसके लंड को अपनी चूत के छल्ले में का लिया था मानो राज के लंड को निचोड़ रही हो और राज चिंघाड़ता हुआ झड़ने लगा अपनी मां की बुर में
: ओह बहिनचोद अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह फक्क्क् यूयू मम्मी उम्मम अह्ह्ह्ह्ह
राज अपनी मां के ऊपर ढह कर झड़ता रहा और उसकी मां उसको अपने सीने से लगाए रही । आखिरी बूंद निचोड़ने तक
एक बार फिर राज का मोबाइल बजा
हाथ बढ़ा कर अपनी मां की बुर लंड डाले हुए ही उसने मोबाईल देखा और अपनी मां को दे दिया

रागिनी अचरज से : कौन है ?
राज मुस्कुरा कर : आपकी समधन !!
ये बोलकर राज उठ गया और बाथरूम में चला गया ।

वही रागिनी फोन उठाते हुए पेटीकोट से अपनी गीली बुर पोछने लगी
: कैसी हो समधन जी ( रागिनी मुस्कुरा बोली )
: ठीक हूं दीदी और आप ( ममता बोली )
: मेरी भी हालत आपके जैसी हो गई है आज , अह्ह्ह्ह ( रागिनी देह तोड़ती हुई बोली)
: मतलब ?
: अरे आज आपके समधी जी भी नहीं है , ससुराल गए है घूमने ( रागिनी बिस्तर पर बैठते हुए बोली )
: अच्छा , मतलब आज रात आप भी छत पर जाएंगी हीही ( ममता हस कर बोली )
: हा सोच रही हूं उम्मम और आप ? ( रागिनी अपने पैर फैलाते हुई बोली )
: बस बत्तियां बुझा रही हूं हीही ( ममता की आवाज में शरारत झलकी )
: ऊहू तो कल रात का खूब मस्ती हुई उम्मम ( रागिनी ने छेड़ा )
: अह्ह्ह्ह सच कहूं तो ऐसा रोमांचक पहले कभी महसूस नहीं किया लेकिन डर भी लग रहा था हीही ( ममता हस कर बोली )
: इश्क है तो रिश्क होगा न , वैसे आज मै कुछ अलग करने वाली हूं
: क्या ? ( ममता जिज्ञासु होकर बोली )
: आज तो बकायदा खुली छत पर जाऊंगी और चादर डाल कर सोऊंगी खुले आसमान में ।
: क्या सच में ? छत पर ? आस पास का कोई देख लेगा तो ? ( ममता ने चिंता जाहिर की )
: अरे बत्ती बुझी रहेगी और अंधेरी रात है तो कोई टेंशन नहीं ( रागिनी ने ममता को चढ़ाया )
: अरे फिर मुझे नीचे जाना पड़ेगा चादर लेने
: ओहो मतलब मैडम पहले से ही अड्डे पर आ चुकी है ( रागिनी ने छेड़ा उसे )
: बस अभी अभी हीही, लेकिन मैं बालकनी में हू , छत पर जा रही हूं ( ममता ने कहा और वो जीने की ओर बढ़ गई )

उसने बहुत कोशिश की कि वो लोहे का दरवाजा बिना किसी आवाज के खोले मगर ऐसा हो नहीं पाया , चू चू करती हुई वो दरबाजे की सीटखनी खोली और आवाज करता हु दरवाजा बाहार की ओर खुला
रात का सन्नाटा उस मकान में दरवाजा खुलने की आवाज और गहरा हो चला था। चाँद की हल्की रोशनी छत पर बिखरी थी, और हवा में ठंडक थी। ममता, रागिनी से बात करने के बाद, एक बार फिर उस अजीब-सी बेचैनी में थी। उसका मन उसे छत की ओर खींच रहा था, जहाँ वो अपनी दुनिया में खो जाना चाहती थी। उसने धीरे से नंगे पाँव छत पर टहलने निकल गई। उसके कदमों की हल्की आहट छत की फर्श पर गूँज रही थी, और वो उस स्वतंत्रता के अहसास में डूबी थी।लेकिन आज रात कुछ अलग थी। मदन, जो आमतौर पर इस वक्त गहरी नींद में डूबा होता था, आज किसी अनजानी वजह से जाग रहा था। शायद वो दरवाजे की हल्की-सी आहट ने उसका ध्यान खींचा—शायद या शायद हवा ने कोई खिड़की हिलाई। उसने बिस्तर से उठकर मोबाइल उठाया और धीरे से कमरे से बाहर निकला। सबसे पहले उसका दिमाग ममता की ओर गया। घर में सिर्फ वो दोनों ही थे, और अगर कोई आहट थी, तो उसे जानना जरूरी था।मदन ने सबसे पहले ममता के कमरे की ओर रुख किया। उसने दरवाजा हल्का-सा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। उसने धीरे से दरवाजा खोला—कमरा खाली था। बिस्तर पर चादर सिलवटों में थी, मानो ममता जल्दी में उठकर कहीं गई हो। मदन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "भाभी?" उसने हल्की-सी आवाज में पुकारा, लेकिन सन्नाटे ने उसकी आवाज को निगल लिया।

वो बाथरूम के पास पहुंचा और अब थोड़ा तेज और स्पष्ट आवाज में बोला " भाभीई"
इधर, छत पर टहल रही ममता ने अचानक मदन की आवाज सुनी। वो आवाज बाथरूम के पास एयर पैसेज वाले हिस्से आ रही थी सीधे छत पर ।उसका दिल धक् से रह गया। वो एकदम ठिठक गई, और उसकी नजरें जीने के दरवाजे की ओर गईं। "अरे, देवर जी जाग रहे है?" उसने सोचा, और घबराहट में उसका दिमाग तेजी से चलने लगा।
वो नंगी थी, और अगर मदन ने उसे इस हाल में देख लिया, तो क्या होगा? उसने जल्दी से नीचे उतरने का फैसला किया। लेकिन जीने का दरवाजा बंद करना जरूरी था, इससे पहले मदन तुरंत छत तक पहुँचे।ममता ने तेजी से जीने का दरवाजा बंद किया और सीढ़ियों के पास ही स्टोर रूम में छिप गई। अंधेरे में उसकी साँसें तेज चल रही थीं, और पायलों की हल्की खनक से वो और घबरा रही थी। वो सोच रही थी, "बस, किसी तरह अपने कमरे तक पहुँच जाऊँ, फिर सब ठीक हो जाएगा।
उधर, मदन छत की ओर जाने वाले जीने तक पहुँचा, लेकिन दरवाजा बंद पाकर वो ठिठक गया। उसने सोचा, शायद ममता बालिकिनी में गई हो। वो बालिकिनी की ओर मुड़ा, जब तक वो दरवाजे तक पहुंच रहा था कि तभी उसे गलियारे में एक हल्की-सी आहट सुनाई दी—धम्म-धम्म, और फिर पायलों की खनक। उसका ध्यान तुरंत जीने की ओर गया। वो तेजी से वापस लपका।

ये आहट ममता की थी , उसे ममता को लगा कि यही मौका है। स्टोर रूम का दरवाजा हल्का-सा खोलकर वो तेजी से नीचे की ओर भागी थी । सीढ़ियाँ अंधेरी थीं, और उसका भारी शरीर तेजी से भागने में साथ नहीं दे रहा था। उसकी पायलें हर कदम पर खनक रही थीं, और वो बस यही सोच रही थी कि किसी तरह अपने कमरे तक पहुँच जाए।मदन ने जीने की ओर दौड़ लगाई। उसने मोबाइल की टॉर्च जलाई, और उसकी रोशनी में उसे एक परछाई दिखी—कोई तेजी से सीढ़ियों से नीचे जा रहा था

" कौन है , मै कहता हूं रुक जाओ " , मदन तेज गुर्राते हुए आवाज में बोला ।
ममता मदन की आवाज से काफ उठी और उसका कलेजा धकधक होने लगा था , नंगी चूचियां अंधेरे में ऊपर नीचे हो रहे थी । उसके भीतर की गर्मी कही गायब सी हो गई थी ।

हाल में उतरते हुए उसका पांव जीने के पास रखे एक गमले से टकराया : अह्ह्ह्ह मईया उफ्फफ ( ममता दर्द से तड़पी )
उसके कदम धीमे हो गए और इधर मदन तेजी से नीचे आया सामने , उसने जैसे ही ममता की चीख सुनी तो उस ओर टॉर्च जलाते हुए उसे पुकारा : भाभी ? आप है क्या ?

तभी उसे टॉर्च की रोशनी में ममता की आकृति साफ दिखी—उसके कदमों की थिरकन, और वो तेज भागने की कोशिश। मदन ने एक पल को अपनी आँखें मलीं, जैसे उसे यकीन न हो रहा हो। "भाभी" उसने जोर से पुकारा, उसकी आवाज सीढ़ियों पर गूँज उठी।ममता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और वो बस अपने कमरे की ओर भाग रही थी।

मदन तेजी से पीछे आ रहा था, और टॉर्च की रोशनी अब उसे और करीब ला रही थी।

तभी एकाएक मदन ठिठक कर रह गया , मोबाइल के टॉर्च की सीमित रोशनी में उसने वो नजारा देखा जिसकी उसने उम्मीद नहीं की थी ।


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सामने उसकी मां जैसी भाभी , नंगी अपने कमरे की ओर भाग रही थी । उसके बड़े बड़े भड़कीले चूतड हिलकौरे खाते हुए तेजी से उस रोशनी के घेरे से बाहर हो रहे थे ।
आज तक जिन मखमली गुलाबी चूतड़ों को वो सिर्फ सलवार और साड़ी में थिरकते देखता था आज वो उन्हें पूरा नंगा देख रहा था ।

उस दृश्य का असर ऐसा हुआ कि मदन वही जम सा गया , मुंह खुला हुआ लंड में एक अजीब सी हरकत, पेट में अजीब सा घबराहट भरी हलचल और भारी होती सांसे ।
उसकी चेतना तब जागी जब ममता कमरे में पहुंच कर अपना दरवाजा तेजी से बंद कर दी।

वो भागकर उस तरफ गया और ममता के कमरे के दरवाजा खटखटाने लगा

: भाभी , क्या हुआ आप ठीक तो है
इधर ममता की सास फूल रही थी वो खुद को कोसे जा रही थी रागिनी की बातों में आने के लिए, उसने झट से एक नाइटी निकाली और ऊपर से डाल दिया ।
उसके पैर के अंगूठे में चोट आई थी जिससे उसको चलने में दिक्कत हो रही थी ।
: मै ठीक हूं देवर जी आप सो जाइए ( ममता ने हिम्मत करके बोला )
: वो आपको चोट लगी थी न ( मदन भी चाह कर उस चीज के बारे में पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था जो दृश्य उसने अभी अभी देखा था )
: अह मामूली चोट है देवर जी आप सो जाइए ( ममता उखड़ कर बोली , मानो वो बस यही चाहती थी कि मदन उसके कमरे के बाहर से चला जाए और मदन चला भी गया )

ममता ने राहत की सांस ली और बिस्तर पर आ गई , उसने दर्द वाली जगह पर मलहम लगाया और बिस्तर पर लेट गई
उसका शरीर थक चुका था और पैर का दर्द उसकी वासना को निगल लिया था ।
वो धीरे धीरे नींद के आगोश में जा रही थी तभी उसका मोबाइल बजने लगा
ये मुरारी का कॉल था ।

मुरारी खाना पीना करके टहलते हुए सोचा क्यों न ममता की थोड़ी खोज खबर ले ली जाए , आज उसने सारा दिन जो कुछ सहा ऐसा अनुभव उसे अभी तक नहीं हुआ था । इतनी हसीन गदराई औरतें , मंजू के साथ बिताए वो पल और फिर अपनी लाडली बहु की वो हरकतें जो उसने वीडियो में देखी थी , मुरारी का लंड एकदम से अकड़ा हुआ था । आज रात तो उसे नीद नहीं आ रही थी मानो । तड़प और बेचैनी से वो ममता से बातें कर रहा था , और मंजू सारे काम निपटा रही थी और मुरारी का मूड थोड़ा रोमांटिक हो रहा था , उसने सोचा क्यों न जब तक मंजू बिस्तर लगाती है और बाकी काम निपटाती है तबतक वो ममता से थोड़ी गरमा गर्म बातें कर ले और वो धीरे से पीछे आंगन से होकर जीने की खुली सीढ़ियों से ऊपर चला जाता है ।
इधर मंजू सारे काम निपटा चुकी थी और बिस्तर लगा रही थी ।
मंजू के मन में एक हल्की-सी उमंग थी। कल सुबह वो और मुरारी अपने घर के लिए निकलने वाले थे, और इस लंबी यात्रा से पहले उसे बस इतना चाहिए था कि मुरारी जल्दी से बिस्तर पर आ जाए, ताकि दोनों को अच्छी नींद मिल सके। उसने बिस्तर को बड़े जतन से लगाया था—चादर को कसकर बिछाया, तकिए को ठीक किया, और कमरे में हल्की-सी अगरबत्ती की खुशबू बिखेरी थी। मंजू को ये छोटी-छोटी चीज़ें करने में सुकून मिल रहा था। उसका मन आज कुछ हल्का था, शायद इसलिए कि घर लौटने की खुशी उसे बेचैन कर रही थी। वो बिस्तर लगाकर मुरारी को बुलाने के लिए जीने की ओर गई और उसे हलकी सी मुरारी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, सोचा शायद मुरारी किसी दोस्त से बात कर रहा होगा। पर जब वो जीने की सीढ़िया चढ़ कर थोड़ा ऊपर गई , जैसे ही वो और करीब पहुँची, उसकी आवाज़ साफ होने लगी। मुरारी का लहजा कुछ अलग था—नरम, भारी, और एक अजीब-सी सिहरन से भरा हुआ। मंजू के कदम अनायास ही रुक गए। उसने खुद को सीढ़ियों पर झुक कर थोड़ा छिपा लिया, जैसे कोई बच्चा जो छुपकर कुछ देखने की कोशिश कर रहा हो।

: अह जान, कितनी रातें तुम्हारे बिन गुज़रेंगी (मुरारी की आवाज़ में एक गहरी उदासी और लालसा थी। )
: अब और नहीं रहा जाता। जी चाहता है कि बस लौट आऊँ तुम्हारे पास, तुम्हारी बाहों में... तुम्हारे बड़े, रसीले दूध में अपना मुँह लगा कर सारी थकान मिटा लूँ। (मंजू के चेहरे पर एकाएक गर्मी-सी दौड़ गई। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने अपने होंठों को हल्के से दबाया, जैसे उसकी साँसें भी उससे बगावत कर रही हों। )
मुरारी की ये बातें—इतनी निजी, इतनी बेपरवाह—उसके लिए एकदम अनजानी थीं। वो जानती थी कि मुरारी अपनी बीवी ममता से बात कर रहा था, पर ऐसी बातें? मंजू ने कभी नहीं सोचा था कि मुरारी का ये रूप भी हो सकता है। उसका मन एक पल को लजा गया, पर अगले ही पल एक अजीब-सी उत्सुकता ने उसे जकड़ लिया।वो वहीं रुकी रही, सीढ़ियों की आड़ में खड़ी, अपनी साँसों को धीमा करने की कोशिश करती हुई। उसने देखा कि वो फोन को कान से लगाए, एक हाथ से पजामे के ऊपर से कुछ बेचैनी भरे अंदाज़ में खुद को सहला रहा था। उसकी आँखें आधी बंद थीं, और चेहरे पर एक तीव्र भाव था—जैसे वो ममता की बातों में पूरी तरह खो गया हो। मंजू की नज़रें उस पर टिक गईं। वो चाहकर भी अपनी जगह से हिल नहीं पा रही थी। उसका मन बार-बार कह रहा था कि उसे चले जाना चाहिए, कि ये गलत है, पर उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे।मुरारी की आवाज़ फिर गूँजी, इस बार और गहरी, और सिहरन भरी।


: हाँ, अमन की मां ... बस तुम्हारी वो रस भरी फांके याद करके ही... उफ़, तुम यहाँ होती तो... ( उसकी बात अधूरी रह गई, और उसने एक गहरी साँस ली, जैसे कोई तूफान उसके भीतर उठ रहा हो। )
मंजू ने अनायास ही अपनी साड़ी का पल्लू कसकर पकड़ लिया। उसका चेहरा अब पूरी तरह लाल हो चुका था, और उसकी साँसें उथली हो रही थीं। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये जो वो सुन रही थी, वो उसे परेशान कर रहा था या फिर उसके भीतर भी कुछ अजीब-सा जाग रहा था।मंजू का मन एक तूफान में फँस गया था। एक तरफ वो मुरारी को बुलाने आई थी, उसे कहना चाहती थी कि देर हो रही है, सो जाना चाहिए। पर अब? अब वो क्या कहेगी? क्या वो बस वापस नीचे चली जाए और ये सब भूल जाए? या फिर... वो और सुनना चाहती थी? उसने खुद को झटका दिया, जैसे अपनी ही सोच से डर गई हो। पर फिर भी, वो वहीं खड़ी रही, मुरारी की बातों में उलझती हुई, अपने ही मन के उलझे धागों को सुलझाने की कोशिश करती हुई।

: पता है आज मैने तुम्हारे लिए एक नए मॉडल के ब्रा पैंटी लिया है , उसमें तुम्हारे बड़े बड़े मटके जैसे चूतड़ पूरे बाहर आ जायेंगे उम्मम और मै उन्हें ऊपर से खा जाऊंगा ..... मुझे तो पूरा केक जैसा ही लगते है , अह्ह्ह्ह ( मुरारी जोरो से अपना पजामा पकड़ता हुआ सिसकारियां लेता हुआ बोला)
इधर मंजू की की सांसे अटक गई और कि अभी अभी मुरारी ने क्या बोला । अंधेरे में उसकी आंखे बड़ी हो गई , उसकी दिल में अजीज सी बेचैनी होने लगी थी मुरारी की गर्म बातें सुनकर । पैर उसके काप रहे थे , पेट में अजीब सा हलचल मचा था ।
वो रुकी नहीं धीरे से सरक कर नीचे उतर आई उसकी सांसे अभी भी तेज थी ।
भागकर वो कमरे में आई और दो ग्लास गटागट पानी घोंट गई , अभी भी उसका हांफना जारी था ।
उसके जहन में मुरारी के कहे एक एक शब्द चित्रों में घूम रहे थे । धीरे धीरे उसकी सांसे बराबर होने लगी । उसके ख्याल में मदन छाने लगा , फिर एक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आई और वो खुद ही शर्मा गई । फिर अगले ही पल उलझ सी गई , कि क्या जवाब देगी वो मदन को , कैसे उसका सामना करेगी । मदन के ख्यालों में वो उलझ ही गया , मुरारी एकदम से उसके जहन से गायब हो गया ।
करीब 20 मिनट बाद मुरारी की आहट आई शुरू हुई , हल्की मोबाईल के टॉर्च की रोशनी ।

मंजू ने चटाई पर लेटे हुए आंखे बंद कर ली । उसका एक पाव फोल्ड था और उसके अपने आंखों पर अपनी बाजू रखे हुए थी ।
मुरारी गुनगुनाता हुआ कमरे में आया ।
सहसा उसकी नजर चटाई पर सोई हुई मंजू पर गई । कमरे में अंधेरा था, सिवाय उस छोटी-सी रोशनी के, जो अब मंजू के चेहरे पर पड़ रही थी।मंजू ने अपनी साँसों को यथासंभव नियंत्रित रखने की कोशिश की। वह जानती थी कि मुरारी उसे देख रहा है। टॉर्च की रोशनी उसके चेहरे पर धीरे-धीरे घूम रही थी, जैसे मुरारी यह सुनिश्चित करना चाहता हो कि वह गहरी नींद में है। मंजू का शरीर सख्त हो गया, लेकिन उसने अपनी पलकें नहीं हिलाईं। वह नहीं चाहती थी कि मुरारी को ज़रा-सा भी शक हो।

मुरारी का मन अब पूरी तरह उसकी उत्तेजना के हवाले था। उसकी नज़रें मंजू के चेहरे से हटकर नीचे की ओर गईं। उसकी साड़ी का पल्लू हल्का-सा खिसका हुआ था, और नीचे उसकी टाँगें चटाई पर फैली थीं। टॉर्च की रोशनी में मंजू की गोरी टाँगें एकदम चमक रही थीं, जैसे चाँदनी में कोई संगमरमर की मूर्ति हो। मुरारी की साँसें और भारी हो गईं। उसके मन में पिछली रात की यादें ताज़ा हो उठीं—कल रात, जब उसने मंजू की साड़ी को हल्के से उठाया था और उसकी नज़रें वहाँ मंजू के चूत पर गई थीं,

उसका हाथ धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसने साड़ी के किनारे को हल्के से पकड़ा और उसे ऊपर उठाने की कोशिश शुरू की। उसकी हरकत इतनी सावधानी भरी थी कि हवा में कोई आहट तक न हो। लेकिन मंजू जाग रही थी। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसका मन पूरी तरह सजग था। वह मुरारी की हर हरकत को महसूस कर रही थी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, और साँसें जैसे गले में अटक रही थीं।


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मंजू के मन में एक तूफान-सा उठ रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। एक तरफ उसे मुरारी पर गुस्सा आ रहा था—कैसे वह ऐसी नीच हरकत कर सकता है? उसे तो मुरारी को रोकना चाहिए, उसे डाँटना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ, वह डर भी रही थी। अगर वह अभी आँखें खोल दे, तो क्या होगा? मुरारी क्या कहेगा? क्या होगा उस रिश्ते का जिसकी शुरुआत वो करने जा रही है और सबसे बड़ी बात—वह खुद इस स्थिति से कैसे निकलेगी?

इधर, मुरारी की उंगलियाँ धीरे-धीरे साड़ी को और ऊपर खींच रही थीं। टॉर्च की रोशनी अब मंजू की टाँगों पर पूरी तरह केंद्रित थी। उसकी गोरी त्वचा रोशनी में और साफ चमक रही थी। उसने फोल्ड हुई टांगों के गैप में टॉर्च की रोशनी डाली और अंदर झांका ।


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एकदम दूधिया चिकनी जांघें कितनी मुलायम और चर्बीदार और भीतर एक मेहरून रंग की पैंटी पूरी तरफ से उसके बुर में चिपकी ।
मंजू अपने चूत को जांघों से कसने लगी , मानो अपनी इज्जत बचा रही हो और मन ही मन मुरारी को कोश रही थी । खुद को धिक्कार रही थी कि कैसे नीच आदमी से उसने नाता जोड़ लिया ।

उसकी आंखे नम थी मगर आंसुओ को गिरने की इजाजत नहीं थी , सांसे सिसकना चाहती थी लेकिन धड़कने डर रही थी । डर रही थी मुरारी से सामना करने से , डर था कि वो अपना होश न खो बैठे ।

अगर ही पल मुरारी ने उसकी साड़ी छोड़ दी और धीरे से उसके मुंह से निकला : सॉरी मंजू
उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि शायद हवा में ही गुम हो जाए, लेकिन मंजू के कानों तक वह साफ़ पहुँची।मुरारी ने साड़ी को वापस नीचे कर दिया, टॉर्च बंद की, और चुपके से उठकर अपने बिस्तर की ओर चला गया। कमरे में फिर से सन्नाटा छा गया, सिवाय मंजू की धड़कनों के, जो अब भी तेज़ी से चल रही थीं। वह अभी भी आँखें बंद किए लेटी थी, लेकिन उसका मन अब एक नए तूफान में फँस गया था।
लेकिन यह शब्द उसके लिए राहत की जगह और सवाल खड़े कर रहा था। क्या मुरारी सचमुच पछता रहा था? या यह बस उसका डर था कि कहीं मंजू जाग न जाए? मंजू को गुस्सा आ रहा था—उस हरकत के लिए, जिसने उसकी इज्जत को ठेस पहुँचाई थी। लेकिन साथ ही, उस "सॉरी" में कुछ ऐसा था, जो उसे मुरारी के इंसान होने की याद दिला रहा था। शायद उसने ममता के साथ जिस तरह की बातें की वो बहक गया हो , लेकिन एक मर्द को उसकी मर्यादा तो पता होनी ही चाहिए?
इनसब से अलग एक और विचार मंजू के दिमाग में अब घर करने लगा , एक डर जो उसके जहन पर छाने लगा कि क्या उसे अब मुरारी के साथ जाना चाहिए या नहीं ?


वही रात के गुम होते सन्नाटे में अरुण अपने बंद कमरे की कुर्सी पर बैठा लैपटॉप में लाइव sex स्ट्रीम देख रहा था और जोरो से अपना लंड हिला रहा था ।
वही लाइव स्ट्रीम में दो मोटी गदराई औरतें मास्क पहने हुए एक दूसरे के लिप्स चूस रहे थे । एक औरत बगल में बैठी दूसरी औरत की साड़ी के ऊपर से उसके चूचे सहलाते हुए बोली: कॉमन गाइड , क्लब ज्वाइन करो । जिसे भी इस सेक्सी बिच के न्यूड चाहिए क्लब ज्वाइन करें , आज रात ऑफर लिमिटेड है ।

अरुण तेजी से लैपटॉप में कुछ टाइप करता है और लाइव स्ट्रीम पर कुछ टिप के साथ मैसेज डालता " send me private I'll pay u all. "

जारी रहेगी
Excellent update ❤️
 

Raj Kumar Kannada

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UPDATE 06

प्रतापपुर

शाम ढल चुकी थी। रंगीलाल अपने ससुर बनवारी के साथ खेतों से घर की ओर लौट रहा था। उसके कदम थके हुए थे, और शरीर में एक अजीब-सी बेचैनी थी। कुछ देर पहले कमला के साथ जो घटना हुई थी, उसकी वजह से उसके कंधों और कोहनियों पर खरोंचें आ गई थीं। घुटनों में भी हल्का-हल्का दर्द चुभ रहा था, जैसे हर कदम पर उसे उस वाकये की याद दिला रहा हो। बनवारी, जो उम्र के हिसाब से चुस्त-दुरुस्त था, आगे-आगे चल रहा था और रंगीलाल उसके पीछे-पीछे चुपचाप अपने विचारों में खोया हुआ।

जैसे ही दोनों घर के आंगन में दाखिल हुए, बनवारी की नजर अपनी बहू सुनीता पर पड़ी, जो रसोई के पास कुछ काम निपटा रही थी। उसने अपनी पुरानी मगर दमदार आवाज में कहा : बहु, जरा जमाई बाबू के लिए पानी गर्म कर दे नहाने को।


सुनीता ने सिर हिलाकर हामी भरी और चुपचाप चूल्हे की ओर बढ़ गई। दूसरी तरफ, रंगीलाल अपने कपड़े और तौलिया उठाकर घर के पीछे बने छोटे-से बाथरूम की ओर चल पड़ा। पीछे आंगन की दीवारें ऊंची थीं, और छत खुली थी ।

आंगन में जीने के पास पहुंचकर रंगीलाल ने अपने पसीने से सने कपड़े उतारने लगा। वह अभी जांघिया में ही खड़ा था कि अचानक चौखट पर हल्की-सी आहट हुई। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, सुनीता एक भगौने में गर्म पानी लेकर अंदर दाखिल हो गई। उसकी नजर अनायास ही रंगीलाल की नंगी देह पर पड़ी। एक पल के लिए दोनों की सांसें थम सी गईं। सुनीता ने फौरन नजरें फेर लीं और असहज होकर दूसरी ओर मुंह कर लिया। रंगीलाल को भी अपनी सलहज के सामने इस हालत में खड़े होने की शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने जल्दी से तौलिए को कमर पर लपेटने की कोशिश की।

सुनीता ने भगौना जमीन पर रखा और जैसे ही वह जाने को मुड़ी, उसकी नजर रंगीलाल के कंधों पर पड़ी। वहां की खरोंचें और लाल निशान देखकर उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
उसने हिचकिचाते हुए पूछा : ये क्या हुआ जीजा जी? आपके कंधे पर तो चोट लगी है!
रंगीलाल, जो अभी तक अपनी असहजता से उबर नहीं पाया था, ने जल्दी से एक झूठ गढ़ लिया।
रंगी : अरे कुछ नहीं, खेत में टहलते वक्त पैर फिसल गया और गिर पड़ा। बस थोड़ी-सी खरोंच है।
उसकी आवाज में हल्की-सी कांप सुनाई दी, जो शायद सुनीता ने नजरअंदाज कर दी।

सुनीता कुछ पल उसे देखती रही, फिर बिना कुछ कहे बाहर चली गई। थोड़ी देर बाद वह डिटॉल की शीशी और एक कटोरी में पानी लेकर लौटी। उसने रंगीलाल से कहा : आप जरा सीढ़ी पर बैठ जाइए, मैं चोट साफ कर देती हूं। ऐसे ही छोड़ देंगे तो इन्फेक्शन हो सकता है।

रंगीलाल ने हिचकते हुए सीढ़ी पर बैठ गया। सुनीता उसके पास खड़ी होकर बड़े ध्यान से उसके कंधों और कोहनियों को साफ करने लगी। उसके कोमल हाथों का स्पर्श रंगीलाल के लिए एक अजीब-सा अनुभव था। वह बाहर से असहज दिख रहा था, लेकिन भीतर ही भीतर सुनीता की फिक्र और उसके हाथों की नरमी उसे गुदगुदा रही थी।

सुनीता का गदराया हुआ शरीर उसके करीब था। उसकी साड़ी का पल्लू हल्का-हल्का हिल रहा था, और ब्लाउज के नीचे उसका नरम, चर्बीदार पेट और नाभि रंगीलाल के चेहरे के ठीक सामने था। सुनीता के जिस्म से उठती हल्की खुशबू—शायद साबुन और पसीने की मिली-जुली महक—रंगीलाल के मन को भटका रही थी। वह खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी नजर बार-बार सुनीता के चेहरे और ब्लाउज की गोलाईयों पर चली जा रही थी। सुनीता भी इस असहज स्थिति को भांप रही थी, मगर वह चुपचाप अपना काम निपटाने में लगी रही।
चोट साफ करने के बाद उसने कहा : अब ठीक है। आप नहा लीजिए, मैं चलती हूं।
और वह तेजी से बाहर निकल गई।

रंगीलाल ने गहरी सांस ली और नहाने के लिए बाल्टी में पानी डाला। गर्म पानी की भाप और ठंडी हवा का मेल उसके शरीर को सुकून दे रहा था। नहाने के बाद उसने साफ और आरामदायक कुर्ता-पायजामा पहना और बाहर आंगन में आ गया। बनवारी पहले से ही वहां बैठा अपनी हुक्की गुड़गुड़ा रहा था। सुनीता ने खाने की थाली सजा दी—गरम-गरम रोटियां, दाल, और सब्जी की खुशबू से आंगन महक उठा। रंगीलाल और बनवारी ने साथ बैठकर खाना खाया। बनवारी कुछ पुरानी बातें छेड़ रहा था, और रंगीलाल हल्के-हल्के हंसकर उसका साथ दे रहा था। लेकिन उसका मन कहीं और था—सुनीता के कोमल स्पर्श और उसकी चिंता भरी आंखों में। खाना खत्म होने के बाद वह उठा, हाथ धोया, और रात के लिए अपने कमरे की ओर बढ़ गया। बाहर चांदनी छिटकी हुई थी, और रात की खामोशी में उसका मन अभी भी उस अनकहे अनुभव में उलझा हुआ था।

उसका कमरा उसके ससुर बनवारी के बगल में गेस्ट रूम वाला कमरा था जिसमें एक दरवाजा था जो दोनों कमरों को जोड़ता था ।
रंगीलाल बिस्तर पर लेटा हुआ था कि उसे घर का ख्याल आया । तो उनसे राज के पास फोन घुमाया । उससे हाल चाल करते हुए बैग से अपने एक गमछा लेकर पेंट निकाल कर उसे लपेट लिया ।
वो बिस्तर पर टेक लगाए पैर फोल्ड करके लेता था तभी सामने का दरवाजा खुला और सुनीता कमरे में दाखिल हुई । जैसे ही उसने दरवाजा खोला सामने उसकी नजर सीधे रंगी के गमछे के गैप से उसके जांघिये पर गई ।
रंगीलाल भी दरवाजे पर दस्तक होने से चौक गया और जैसे ही कमरे में सुनीता आई वो झट से उठ कर बैठ गया ।



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सुनीता कमरे में साटिन की चमकरदार नाइटी पहन हुए दाखिल हुई , जिसके हल्के कपड़े उसके जिस्म से चिपके हुए थे । बिना ब्रा के उसके गोल मटोल मम्मे हल्के फुल्के उछाल से ऊपर नीचे हो रहे और कूल्हे पर पड़ी सिलवटें सुनीता की चाल में और भी लचक पैदा कर रहे थी । अब तक रंगीलाल जो अपनी सलहज के गोरे चेहरे और कातिल मुस्कुराहट का दीवाना था अब उसके जिस्म का स्कैन करके और पागल होने लगा । बड़ी आंखों से उसने अपनी सलहज का ये रूप देख कर स्तब्ध था ।

: किससे बात कर रहे थे जीजा जी , दीदी से ? ( सुनीता ने हल्की मुस्कान के साथ कदम बढ़ाए और रंगीलाल के पास बिस्तर पर बैठ गई )


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: हम्ममम बस यूं ही सोचा हाल चाल लेलू ( रंगी ने सहज जवाब दिया उसकी नजर सुनीता के गोल चूचों पर थी जो उसके बाजुओं में कसी थी कूल्हे पर नाइटी अब चुस्त हो गई थी जिससे उसकी चर्बी की नरमी का अहसास रंगी उसे बिना छुए ही अपने अंदर महसूस कर पा रहा था ।
: अरे सीधा सीधा कहिए न कि दीदी की याद आ रही थी और इसीलिए तो आज आप खेतों में भी गिर गए हीही ( सुनीता खिलखिलाई )
: अरे ... क्या भाभी आप भी , वो तो मै यू ही फिसल गया था हाहा ( रंगीलाल ने सफाई दी )
: चलो झूठे , जरूर किसी को देख कर फिसले होगे आप हीही ( सुनीता मजे लेते हुए बोली और रंगी उसके मजाक से चौक गया । हालांकि पहले भी उसकी सुनीता से बात चीत होती थी थोड़े बहुत अप्रत्यक्ष मजाक होते थे मगर हर ऐसे माहौल में लोग हुआ करते थे मगर आज वो अकेली थी उसके साथ । )
: ओहो आपने तो पकड़ लिया मुझे भाभी ( रंगी ने भी बातें बनानी शुरू की , चलो इसी बहाने इतनी sexy सलहज से बात चीत होती रहे )
: अरे कौन है बताइए न , सच्ची में दीदी को नहीं बोलूंगी ( वो खिल कर बोली)
: हा लेकिन क्या फायदा , उसकी तो शादी हो रखी है । अब कोई फायदा नजर नहीं आता मुझे ( मुंह बना कर रंगी बोला )
: अरे उससे क्या , मै बात करूंगी समझा बुझा दूंगी । इतना अच्छा दूल्हा कहा मिलेगा । अरे आपके पास तो पूरा का पूरा एक्सपीरियंस है मै कह दूंगी कि पहली वाली को आज तक कोई शिकायत नहीं मिली हाहाहाहाहा ( सुनीता हस्ती हुई बोली )
सुनीता की बाते सुनकर उसके लंड में हरकत हो रही थी । तौलिए के नीचे जांघिये में उसका लंड बड़ा हो रहा था ।
: और बाउजी से क्या कहोगी ? ( रंगी मुस्कुराया उसकी आंखों में शरारत साफ झलक रही थी )
: उनको भी समझा दूंगी , आपके लिए इतना तो कर ही सकती हूं ( सुनीता हस कर बोली )
: लेकिन फिर राजेश भाई का क्या होगा ? ( रंगी अपने मुंह में हसी का फब्बारा घोंटते है बोला )
: उनको क्या दिक्कत होगी भला ? ( सुनीता अब उलझी और रंगी के शब्दों का मतलब तलाशने लगी )
: अरे उनकी बीवी से शादी करूंगा तो बेचारे रंडवे हो जायेंगे न हाहाहाहाहा ( रंगी ठहाका लगाते हुए बोला )
: क्या ? धत्त जीजाजी आप भी ... तबसे आप मेरे बारे में बात कर रहे थे ( सुनीता लाज से गाढ़ होकर मुस्कुराने लगी )
उसकी लज्जा भरी मुस्कुराहट उसके गोरे गाल और भी गुलाबी होने लगे थे ।
: हा भाई सोनल की मां के बाद मुझे किसी से शादी करनी होगी तो मै आपसे ही करूंगा , वो तो साले साहब आ गए बीच में नहीं मै आपसे ही करता ( रंगी अपने पूरे रंग में आ गया था )
: धत्त जीजा जी , आप भी न ( सुनीता लजाते हुए बोली उसके चेहरे की हसी रुक नहीं रहे थी )
: मै तो आपकी शादी में ही आपको पसंद कर लिया था ... फिर सोचा बेचारे साले के घर में क्यों डाका डाला जाए । उसका घर भी तो चलना चाहिए इसीलिए छोड़ दिया । ( रंगी अपना मजाक जारी रखते हुए बोला ).
: हाय दैय्या , इतने साल से मुझे पसंद कर रखा है और आज तक कुछ कहा नहीं । काश पहले बता देते तो शायद कुछ हो जाता ( सुनीता ने रंगी का मजा लेना चाहा )
: क्यों अब कोई चांस नहीं है क्या ( रंगी ने दाव तलाशा और एक शरारत भरी मुस्कुराहट से सुनीता की आंखों में देखा )
: उम्हू ( सुनीता ने मुस्करा कर लजाते हुए न में सर हिलाया )
: अरे खुद को थोड़ा समझाओ बुझाओ , देखो इतना अच्छा दूल्हा मिलेगा नहीं ( रंगी हस्ते हुए बोला )
: अच्छा जी ( सुनीता इतराई )
: और क्या, फिर पहली वाली को आज तक कोई शिकायत नहीं मिली तो आपको भी नहीं होगी । सोच लो ( रंगीलाल ने साफ साफ लफ्जों में सुनीता को ऑफर दिया कि पट जाओ , तौलिया में उसका लंड अब पंप हो रहा था )
सुनीता अपने ही मजाक के जाल में उलझ गई थी और हसने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था ।

: हा लेकिन , दुनिया समाज का क्या ? मेरे बच्चों का क्या होगा ? बाउजी का क्या होगा ? और उनका ( राजेश ) क्या ? ( सुनीता अभी भी रंगी के ऊपर दाव पलटने के फिराक में थी )
: अरे जहां 3 है 2 और सही , बाउजी का ख्याल सोनल की मां रख लेगी और साले साहब के लिए भी दूसरी लड़की देख लेंगे ( रंगी मजाकिया अंदाज में बोला ) बोलो क्या कहती हो ?
सुनीता की हालत खराब थी , कही न कही वो रंगी की चाल बूझ रही थी और रंगी के जाल में बुरी तरह फंस गई थी । वो रंगी के अप्रत्यक्ष रूप रखे अनैतिक सम्बंध के प्रस्ताव को समझ चुकी थी । मगर यह सब कुछ मजाक के पर्दे में हो रहा था और इसका एक ही तरीका था बचने का कि इस मजाक को मजाक से ही खत्म किया जाए ।
: अरे इतना जल्दी कैसे बता दूं , थोड़ा समय भी दीजिए ( सुनीता मुस्कुराई )
: अरे इतने साल तड़पा हुं अब और कितना समय ? ( रंगी अब इस मजाक को हकीकत में उतार चुका था उसके चेहरे पर बेचैनी के भाव उबाल मार रहे थे जिसकी आग उसके जांघिये में उसके तपते लंड से उठ रही थी । )
: बस आज रात ! ( सुनीता रंगी के चेहरे के बदलते रंग को भाप गई और उसने अब उठना ही सही समझा इसके लिए यही तरीका था कि वो इस बात को टाल दे )
ये कह कर वो उठ गई
: आप आराम करिए , मै बाउजी को दवा दे दूं । ( सुनीता मुस्कुराई और कमरे से निकल गई )
वही रंगीलाल उसके नाइटी में झटके खाते चूतड़ों को देख कर सिहर उठा और भाग कर दरवाजे तक गया । सुनीता मुस्कुराते है किचन की ओर जाती दिखी उसे ।
रंगी कमरे का दरवाजा भीड़का कर अंदर आया और अपना अकड़ा हुआ लंड तौलिए के ऊपर से भींचने लगा

: अह्ह्ह्ह बहनचोद बड़ी कातिल चीज है उफ्फ एक पल को लगा पट ही जाएगी । अह्ह्ह्ह मिल जाए तो मजा ही आ जाए पूरी रसमलाई है उम्मम ( रंगी अपना खड़ा लंड सहलाते हुए बड़बड़ाया फिर बिस्तर पर आराम करने लगा )


चमनपुरा


" अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म बेटा रुक जा, अह्ह्ह्ह्ह अभी रात में कर लेना अह्ह्ह्ह्ह हट अनुज आ रहा है " , रागिनी ने राज का मुंह अपने चूत से हटाया और पेटीकोट गिरा कर उसके कमरे से किचन में निकल गई।

सीढ़ियों से अनुज अपनी किताबें और नोट्स लेकर नीचे आ रहा था ,


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उसने अपनी मां को सामने से किचन में जाते देखा और उसकी मादक चाल देखते ही उसके दिल में लालच पैदा हो गई ।

उसने राज को खोजा और देखा कि वो अपने कमरे में है तो उसने हाल में सोफे पर ऐसे कोने में बैठा जहां से किचन का नजारा मिलता रहे ।
रागिनी का ब्लाउज़ गहरे रंग का था, जो पसीने से पीठ और काँख के नीचे गीला होकर चिपक गया था। पसीने की पतली परत उनकी त्वचा पर चमक रही थी, और ब्लाउज़ का कपड़ा उनकी पीठ की बनावट को उभार रहा था। पेटीकोट हल्के रंग का था, जो गर्मी और पसीने से उनकी कमर और निचले हिस्से से चिपक गया था। उनके चूतड़ बड़े और भारी थे, जैसे मिट्टी के मटके, और पेटीकोट की पतली परत उसके चूतड़ों के आकार को और साफ कर रही थी।

अनुज की माँ चूल्हे के पास से हटीं और कुछ सामान लेने के लिए नीचे वाली अलमारी की ओर बढ़ीं। उन्होंने एक गहरी साँस ली, अपने माथे का पसीना फिर से पोंछा, और फिर धीरे से झुक गईं।


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जैसे ही वे नीचे झुकीं, उसका पेटीकोट, जो पहले से ही पसीने से चिपका हुआ था, उनकी त्वचा पर और कस गया। उनके बड़े, चौड़े चूतड़ उस पतले कॉटन के कपड़े में फैल गए, और गर्मी की वजह से कपड़ा उनकी शारीरिक बनावट को और उभार रहा था।पेटीकोट उनकी गांड की दरारों के बीच खिंच गया, और पीछे से उस गैप का हल्का सा आभास दिखने लगा। चाँदनी की रोशनी भले न हो, लेकिन किचन की पीली बल्ब की रोशनी में वह दृश्य साफ था। उनके झुकने से ब्लाउज़ भी ऊपर खिसक गया, और उनकी कमर का नंगा हिस्सा और चौड़ा दिखने लगा। अनुज की नज़रें उस दृश्य पर ठहर गईं। उसकी साँसें एकदम तेज़ हो गईं, और उसके हाथ में पकड़ी किताब अब हल्के-हल्के काँप रही थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और उसके शरीर में एक अजीब सी गर्मी दौड़ने लगी। उसकी नज़रें अपनी माँ के चूतड़ों पर जमी थीं, और तभी उसे अपने शॉर्ट्स में एक सनसनाहट महसूस हुई। उसका लंड अचानक फड़फड़ाने लगा, जैसे कोई अनियंत्रित उत्तेजना उसे जकड़ रही हो। उसने किताब को अपनी गोद में दबाने की कोशिश की, लेकिन उसका ध्यान अब पूरी तरह अपनी माँ पर था।

अगले ही पल रागिनी खड़ी हुई और फैले हुए पेटीकोट के कपड़े का कुछ हिस्सा उसके गाड़ की दरारों में फंस गया , जिससे उसके दोनों चूतड़ पूरे गोल मटोल शेप में आ गए । अनुज का हलक सूखने लगा अपनी मां का कातिलाना रूप देख कर । शॉर्ट्स में उसका लंड बड़ा हो रहा था और वो किताबों के नीचे छिपा कर उसको मिस रहा था । आज शाम से उसकी हालत खराब थी , पहले उसकी कालेज की टीचर , फिर लाली और फिर उसकी मम्मी और अब खुद अनुज की मां उसकी हालत खराब कर रही थी । उसने कुछ तय किया ताकि इस परेशानी से उसे निजात मिले और वो अपने परीक्षा की तैयारी सही से कर पाए ।
इधर रागिनी भी खाना तैयार कर सबको खाना खिला दी ।
खाने के बाद अनुज ने राज से कहा कि वो अपने मोबाइल का हॉटस्पॉट ऑन कर दे उसे लैपटॉप पर कुछ काम है ।
फिर अनुज ऊपर चला गया ।
एक मां के तौर पर रागिनी चाहती थी कि अनुज उसके पास रहे , अकेले ऊपर सुलाने पर उसे डर लग रहा था मगर वो ये भी जानती थी कि राज से उसने कुछ वादा किया है । वासना और ममता में उसने वासना को चुना और बिना कुछ कहे उसे ऊपर जाने दिया । राज ने भी खुशी खुशी उसको हॉटस्पॉट दे दिया ताकि वो उन्हें डिस्टर्ब न करे ।
इधर अनुज कमरे में पहुंचते ही लैपटॉप में पोर्न साइट खोलकर बैठ गया अपने अरमानों सैलाब बहाने के लिए।
वही नीचे रागिनी के कमरे में जबरजस्त उठापटक मची थी , राज अपनी मां की टांगे उठा कर गचागच पेले जा रहा था । रागिनी की नंगी मोटी चूचियां खूब हिल रही थी ।


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: अह्ह्ह्ह्हमम बेटा अह्ह्ह्ह और ओह्ह्ह्ह्ह कितना गर्म है तेरा लंड , उम्मम हर बार तू मुझे पागल कर देता है अह्ह्ह्ह ( रागिनी सिसकते हुए बोली )
: अह्ह्ह्ह्ह मम्मी आप भी कम हो , आते ही कपड़े उतार दी क्या करता मै अह्ह्ह्ह आपकी गाड़ देख कर पागल हो जाता हूं अह्ह्ह्ह फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह मम्मी अह्ह्ह्ह सीईईईईई
: हा बेटा चोद और तेज अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म बेटा चोद मुझे कस कस के अह्ह्ह्ह आ रहा है रुकना नहीं

इधर राज करारे झटके देकर पेल रहा था कि इतने में उसका मोबाइल बजने लगा
राज का लंड एकदम फड़फड़ाने लगा था उसकी मां ने झड़ते हुए उसके लंड को अपनी चूत के छल्ले में का लिया था मानो राज के लंड को निचोड़ रही हो और राज चिंघाड़ता हुआ झड़ने लगा अपनी मां की बुर में
: ओह बहिनचोद अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह फक्क्क् यूयू मम्मी उम्मम अह्ह्ह्ह्ह
राज अपनी मां के ऊपर ढह कर झड़ता रहा और उसकी मां उसको अपने सीने से लगाए रही । आखिरी बूंद निचोड़ने तक
एक बार फिर राज का मोबाइल बजा
हाथ बढ़ा कर अपनी मां की बुर लंड डाले हुए ही उसने मोबाईल देखा और अपनी मां को दे दिया

रागिनी अचरज से : कौन है ?
राज मुस्कुरा कर : आपकी समधन !!
ये बोलकर राज उठ गया और बाथरूम में चला गया ।

वही रागिनी फोन उठाते हुए पेटीकोट से अपनी गीली बुर पोछने लगी
: कैसी हो समधन जी ( रागिनी मुस्कुरा बोली )
: ठीक हूं दीदी और आप ( ममता बोली )
: मेरी भी हालत आपके जैसी हो गई है आज , अह्ह्ह्ह ( रागिनी देह तोड़ती हुई बोली)
: मतलब ?
: अरे आज आपके समधी जी भी नहीं है , ससुराल गए है घूमने ( रागिनी बिस्तर पर बैठते हुए बोली )
: अच्छा , मतलब आज रात आप भी छत पर जाएंगी हीही ( ममता हस कर बोली )
: हा सोच रही हूं उम्मम और आप ? ( रागिनी अपने पैर फैलाते हुई बोली )
: बस बत्तियां बुझा रही हूं हीही ( ममता की आवाज में शरारत झलकी )
: ऊहू तो कल रात का खूब मस्ती हुई उम्मम ( रागिनी ने छेड़ा )
: अह्ह्ह्ह सच कहूं तो ऐसा रोमांचक पहले कभी महसूस नहीं किया लेकिन डर भी लग रहा था हीही ( ममता हस कर बोली )
: इश्क है तो रिश्क होगा न , वैसे आज मै कुछ अलग करने वाली हूं
: क्या ? ( ममता जिज्ञासु होकर बोली )
: आज तो बकायदा खुली छत पर जाऊंगी और चादर डाल कर सोऊंगी खुले आसमान में ।
: क्या सच में ? छत पर ? आस पास का कोई देख लेगा तो ? ( ममता ने चिंता जाहिर की )
: अरे बत्ती बुझी रहेगी और अंधेरी रात है तो कोई टेंशन नहीं ( रागिनी ने ममता को चढ़ाया )
: अरे फिर मुझे नीचे जाना पड़ेगा चादर लेने
: ओहो मतलब मैडम पहले से ही अड्डे पर आ चुकी है ( रागिनी ने छेड़ा उसे )
: बस अभी अभी हीही, लेकिन मैं बालकनी में हू , छत पर जा रही हूं ( ममता ने कहा और वो जीने की ओर बढ़ गई )

उसने बहुत कोशिश की कि वो लोहे का दरवाजा बिना किसी आवाज के खोले मगर ऐसा हो नहीं पाया , चू चू करती हुई वो दरबाजे की सीटखनी खोली और आवाज करता हु दरवाजा बाहार की ओर खुला
रात का सन्नाटा उस मकान में दरवाजा खुलने की आवाज और गहरा हो चला था। चाँद की हल्की रोशनी छत पर बिखरी थी, और हवा में ठंडक थी। ममता, रागिनी से बात करने के बाद, एक बार फिर उस अजीब-सी बेचैनी में थी। उसका मन उसे छत की ओर खींच रहा था, जहाँ वो अपनी दुनिया में खो जाना चाहती थी। उसने धीरे से नंगे पाँव छत पर टहलने निकल गई। उसके कदमों की हल्की आहट छत की फर्श पर गूँज रही थी, और वो उस स्वतंत्रता के अहसास में डूबी थी।लेकिन आज रात कुछ अलग थी। मदन, जो आमतौर पर इस वक्त गहरी नींद में डूबा होता था, आज किसी अनजानी वजह से जाग रहा था। शायद वो दरवाजे की हल्की-सी आहट ने उसका ध्यान खींचा—शायद या शायद हवा ने कोई खिड़की हिलाई। उसने बिस्तर से उठकर मोबाइल उठाया और धीरे से कमरे से बाहर निकला। सबसे पहले उसका दिमाग ममता की ओर गया। घर में सिर्फ वो दोनों ही थे, और अगर कोई आहट थी, तो उसे जानना जरूरी था।मदन ने सबसे पहले ममता के कमरे की ओर रुख किया। उसने दरवाजा हल्का-सा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। उसने धीरे से दरवाजा खोला—कमरा खाली था। बिस्तर पर चादर सिलवटों में थी, मानो ममता जल्दी में उठकर कहीं गई हो। मदन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "भाभी?" उसने हल्की-सी आवाज में पुकारा, लेकिन सन्नाटे ने उसकी आवाज को निगल लिया।

वो बाथरूम के पास पहुंचा और अब थोड़ा तेज और स्पष्ट आवाज में बोला " भाभीई"
इधर, छत पर टहल रही ममता ने अचानक मदन की आवाज सुनी। वो आवाज बाथरूम के पास एयर पैसेज वाले हिस्से आ रही थी सीधे छत पर ।उसका दिल धक् से रह गया। वो एकदम ठिठक गई, और उसकी नजरें जीने के दरवाजे की ओर गईं। "अरे, देवर जी जाग रहे है?" उसने सोचा, और घबराहट में उसका दिमाग तेजी से चलने लगा।
वो नंगी थी, और अगर मदन ने उसे इस हाल में देख लिया, तो क्या होगा? उसने जल्दी से नीचे उतरने का फैसला किया। लेकिन जीने का दरवाजा बंद करना जरूरी था, इससे पहले मदन तुरंत छत तक पहुँचे।ममता ने तेजी से जीने का दरवाजा बंद किया और सीढ़ियों के पास ही स्टोर रूम में छिप गई। अंधेरे में उसकी साँसें तेज चल रही थीं, और पायलों की हल्की खनक से वो और घबरा रही थी। वो सोच रही थी, "बस, किसी तरह अपने कमरे तक पहुँच जाऊँ, फिर सब ठीक हो जाएगा।
उधर, मदन छत की ओर जाने वाले जीने तक पहुँचा, लेकिन दरवाजा बंद पाकर वो ठिठक गया। उसने सोचा, शायद ममता बालिकिनी में गई हो। वो बालिकिनी की ओर मुड़ा, जब तक वो दरवाजे तक पहुंच रहा था कि तभी उसे गलियारे में एक हल्की-सी आहट सुनाई दी—धम्म-धम्म, और फिर पायलों की खनक। उसका ध्यान तुरंत जीने की ओर गया। वो तेजी से वापस लपका।

ये आहट ममता की थी , उसे ममता को लगा कि यही मौका है। स्टोर रूम का दरवाजा हल्का-सा खोलकर वो तेजी से नीचे की ओर भागी थी । सीढ़ियाँ अंधेरी थीं, और उसका भारी शरीर तेजी से भागने में साथ नहीं दे रहा था। उसकी पायलें हर कदम पर खनक रही थीं, और वो बस यही सोच रही थी कि किसी तरह अपने कमरे तक पहुँच जाए।मदन ने जीने की ओर दौड़ लगाई। उसने मोबाइल की टॉर्च जलाई, और उसकी रोशनी में उसे एक परछाई दिखी—कोई तेजी से सीढ़ियों से नीचे जा रहा था

" कौन है , मै कहता हूं रुक जाओ " , मदन तेज गुर्राते हुए आवाज में बोला ।
ममता मदन की आवाज से काफ उठी और उसका कलेजा धकधक होने लगा था , नंगी चूचियां अंधेरे में ऊपर नीचे हो रहे थी । उसके भीतर की गर्मी कही गायब सी हो गई थी ।

हाल में उतरते हुए उसका पांव जीने के पास रखे एक गमले से टकराया : अह्ह्ह्ह मईया उफ्फफ ( ममता दर्द से तड़पी )
उसके कदम धीमे हो गए और इधर मदन तेजी से नीचे आया सामने , उसने जैसे ही ममता की चीख सुनी तो उस ओर टॉर्च जलाते हुए उसे पुकारा : भाभी ? आप है क्या ?

तभी उसे टॉर्च की रोशनी में ममता की आकृति साफ दिखी—उसके कदमों की थिरकन, और वो तेज भागने की कोशिश। मदन ने एक पल को अपनी आँखें मलीं, जैसे उसे यकीन न हो रहा हो। "भाभी" उसने जोर से पुकारा, उसकी आवाज सीढ़ियों पर गूँज उठी।ममता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और वो बस अपने कमरे की ओर भाग रही थी।

मदन तेजी से पीछे आ रहा था, और टॉर्च की रोशनी अब उसे और करीब ला रही थी।

तभी एकाएक मदन ठिठक कर रह गया , मोबाइल के टॉर्च की सीमित रोशनी में उसने वो नजारा देखा जिसकी उसने उम्मीद नहीं की थी ।


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सामने उसकी मां जैसी भाभी , नंगी अपने कमरे की ओर भाग रही थी । उसके बड़े बड़े भड़कीले चूतड हिलकौरे खाते हुए तेजी से उस रोशनी के घेरे से बाहर हो रहे थे ।
आज तक जिन मखमली गुलाबी चूतड़ों को वो सिर्फ सलवार और साड़ी में थिरकते देखता था आज वो उन्हें पूरा नंगा देख रहा था ।

उस दृश्य का असर ऐसा हुआ कि मदन वही जम सा गया , मुंह खुला हुआ लंड में एक अजीब सी हरकत, पेट में अजीब सा घबराहट भरी हलचल और भारी होती सांसे ।
उसकी चेतना तब जागी जब ममता कमरे में पहुंच कर अपना दरवाजा तेजी से बंद कर दी।

वो भागकर उस तरफ गया और ममता के कमरे के दरवाजा खटखटाने लगा

: भाभी , क्या हुआ आप ठीक तो है
इधर ममता की सास फूल रही थी वो खुद को कोसे जा रही थी रागिनी की बातों में आने के लिए, उसने झट से एक नाइटी निकाली और ऊपर से डाल दिया ।
उसके पैर के अंगूठे में चोट आई थी जिससे उसको चलने में दिक्कत हो रही थी ।
: मै ठीक हूं देवर जी आप सो जाइए ( ममता ने हिम्मत करके बोला )
: वो आपको चोट लगी थी न ( मदन भी चाह कर उस चीज के बारे में पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था जो दृश्य उसने अभी अभी देखा था )
: अह मामूली चोट है देवर जी आप सो जाइए ( ममता उखड़ कर बोली , मानो वो बस यही चाहती थी कि मदन उसके कमरे के बाहर से चला जाए और मदन चला भी गया )

ममता ने राहत की सांस ली और बिस्तर पर आ गई , उसने दर्द वाली जगह पर मलहम लगाया और बिस्तर पर लेट गई
उसका शरीर थक चुका था और पैर का दर्द उसकी वासना को निगल लिया था ।
वो धीरे धीरे नींद के आगोश में जा रही थी तभी उसका मोबाइल बजने लगा
ये मुरारी का कॉल था ।

मुरारी खाना पीना करके टहलते हुए सोचा क्यों न ममता की थोड़ी खोज खबर ले ली जाए , आज उसने सारा दिन जो कुछ सहा ऐसा अनुभव उसे अभी तक नहीं हुआ था । इतनी हसीन गदराई औरतें , मंजू के साथ बिताए वो पल और फिर अपनी लाडली बहु की वो हरकतें जो उसने वीडियो में देखी थी , मुरारी का लंड एकदम से अकड़ा हुआ था । आज रात तो उसे नीद नहीं आ रही थी मानो । तड़प और बेचैनी से वो ममता से बातें कर रहा था , और मंजू सारे काम निपटा रही थी और मुरारी का मूड थोड़ा रोमांटिक हो रहा था , उसने सोचा क्यों न जब तक मंजू बिस्तर लगाती है और बाकी काम निपटाती है तबतक वो ममता से थोड़ी गरमा गर्म बातें कर ले और वो धीरे से पीछे आंगन से होकर जीने की खुली सीढ़ियों से ऊपर चला जाता है ।
इधर मंजू सारे काम निपटा चुकी थी और बिस्तर लगा रही थी ।
मंजू के मन में एक हल्की-सी उमंग थी। कल सुबह वो और मुरारी अपने घर के लिए निकलने वाले थे, और इस लंबी यात्रा से पहले उसे बस इतना चाहिए था कि मुरारी जल्दी से बिस्तर पर आ जाए, ताकि दोनों को अच्छी नींद मिल सके। उसने बिस्तर को बड़े जतन से लगाया था—चादर को कसकर बिछाया, तकिए को ठीक किया, और कमरे में हल्की-सी अगरबत्ती की खुशबू बिखेरी थी। मंजू को ये छोटी-छोटी चीज़ें करने में सुकून मिल रहा था। उसका मन आज कुछ हल्का था, शायद इसलिए कि घर लौटने की खुशी उसे बेचैन कर रही थी। वो बिस्तर लगाकर मुरारी को बुलाने के लिए जीने की ओर गई और उसे हलकी सी मुरारी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, सोचा शायद मुरारी किसी दोस्त से बात कर रहा होगा। पर जब वो जीने की सीढ़िया चढ़ कर थोड़ा ऊपर गई , जैसे ही वो और करीब पहुँची, उसकी आवाज़ साफ होने लगी। मुरारी का लहजा कुछ अलग था—नरम, भारी, और एक अजीब-सी सिहरन से भरा हुआ। मंजू के कदम अनायास ही रुक गए। उसने खुद को सीढ़ियों पर झुक कर थोड़ा छिपा लिया, जैसे कोई बच्चा जो छुपकर कुछ देखने की कोशिश कर रहा हो।

: अह जान, कितनी रातें तुम्हारे बिन गुज़रेंगी (मुरारी की आवाज़ में एक गहरी उदासी और लालसा थी। )
: अब और नहीं रहा जाता। जी चाहता है कि बस लौट आऊँ तुम्हारे पास, तुम्हारी बाहों में... तुम्हारे बड़े, रसीले दूध में अपना मुँह लगा कर सारी थकान मिटा लूँ। (मंजू के चेहरे पर एकाएक गर्मी-सी दौड़ गई। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने अपने होंठों को हल्के से दबाया, जैसे उसकी साँसें भी उससे बगावत कर रही हों। )
मुरारी की ये बातें—इतनी निजी, इतनी बेपरवाह—उसके लिए एकदम अनजानी थीं। वो जानती थी कि मुरारी अपनी बीवी ममता से बात कर रहा था, पर ऐसी बातें? मंजू ने कभी नहीं सोचा था कि मुरारी का ये रूप भी हो सकता है। उसका मन एक पल को लजा गया, पर अगले ही पल एक अजीब-सी उत्सुकता ने उसे जकड़ लिया।वो वहीं रुकी रही, सीढ़ियों की आड़ में खड़ी, अपनी साँसों को धीमा करने की कोशिश करती हुई। उसने देखा कि वो फोन को कान से लगाए, एक हाथ से पजामे के ऊपर से कुछ बेचैनी भरे अंदाज़ में खुद को सहला रहा था। उसकी आँखें आधी बंद थीं, और चेहरे पर एक तीव्र भाव था—जैसे वो ममता की बातों में पूरी तरह खो गया हो। मंजू की नज़रें उस पर टिक गईं। वो चाहकर भी अपनी जगह से हिल नहीं पा रही थी। उसका मन बार-बार कह रहा था कि उसे चले जाना चाहिए, कि ये गलत है, पर उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे।मुरारी की आवाज़ फिर गूँजी, इस बार और गहरी, और सिहरन भरी।


: हाँ, अमन की मां ... बस तुम्हारी वो रस भरी फांके याद करके ही... उफ़, तुम यहाँ होती तो... ( उसकी बात अधूरी रह गई, और उसने एक गहरी साँस ली, जैसे कोई तूफान उसके भीतर उठ रहा हो। )
मंजू ने अनायास ही अपनी साड़ी का पल्लू कसकर पकड़ लिया। उसका चेहरा अब पूरी तरह लाल हो चुका था, और उसकी साँसें उथली हो रही थीं। वो समझ नहीं पा रही थी कि ये जो वो सुन रही थी, वो उसे परेशान कर रहा था या फिर उसके भीतर भी कुछ अजीब-सा जाग रहा था।मंजू का मन एक तूफान में फँस गया था। एक तरफ वो मुरारी को बुलाने आई थी, उसे कहना चाहती थी कि देर हो रही है, सो जाना चाहिए। पर अब? अब वो क्या कहेगी? क्या वो बस वापस नीचे चली जाए और ये सब भूल जाए? या फिर... वो और सुनना चाहती थी? उसने खुद को झटका दिया, जैसे अपनी ही सोच से डर गई हो। पर फिर भी, वो वहीं खड़ी रही, मुरारी की बातों में उलझती हुई, अपने ही मन के उलझे धागों को सुलझाने की कोशिश करती हुई।

: पता है आज मैने तुम्हारे लिए एक नए मॉडल के ब्रा पैंटी लिया है , उसमें तुम्हारे बड़े बड़े मटके जैसे चूतड़ पूरे बाहर आ जायेंगे उम्मम और मै उन्हें ऊपर से खा जाऊंगा ..... मुझे तो पूरा केक जैसा ही लगते है , अह्ह्ह्ह ( मुरारी जोरो से अपना पजामा पकड़ता हुआ सिसकारियां लेता हुआ बोला)
इधर मंजू की की सांसे अटक गई और कि अभी अभी मुरारी ने क्या बोला । अंधेरे में उसकी आंखे बड़ी हो गई , उसकी दिल में अजीज सी बेचैनी होने लगी थी मुरारी की गर्म बातें सुनकर । पैर उसके काप रहे थे , पेट में अजीब सा हलचल मचा था ।
वो रुकी नहीं धीरे से सरक कर नीचे उतर आई उसकी सांसे अभी भी तेज थी ।
भागकर वो कमरे में आई और दो ग्लास गटागट पानी घोंट गई , अभी भी उसका हांफना जारी था ।
उसके जहन में मुरारी के कहे एक एक शब्द चित्रों में घूम रहे थे । धीरे धीरे उसकी सांसे बराबर होने लगी । उसके ख्याल में मदन छाने लगा , फिर एक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आई और वो खुद ही शर्मा गई । फिर अगले ही पल उलझ सी गई , कि क्या जवाब देगी वो मदन को , कैसे उसका सामना करेगी । मदन के ख्यालों में वो उलझ ही गया , मुरारी एकदम से उसके जहन से गायब हो गया ।
करीब 20 मिनट बाद मुरारी की आहट आई शुरू हुई , हल्की मोबाईल के टॉर्च की रोशनी ।

मंजू ने चटाई पर लेटे हुए आंखे बंद कर ली । उसका एक पाव फोल्ड था और उसके अपने आंखों पर अपनी बाजू रखे हुए थी ।
मुरारी गुनगुनाता हुआ कमरे में आया ।
सहसा उसकी नजर चटाई पर सोई हुई मंजू पर गई । कमरे में अंधेरा था, सिवाय उस छोटी-सी रोशनी के, जो अब मंजू के चेहरे पर पड़ रही थी।मंजू ने अपनी साँसों को यथासंभव नियंत्रित रखने की कोशिश की। वह जानती थी कि मुरारी उसे देख रहा है। टॉर्च की रोशनी उसके चेहरे पर धीरे-धीरे घूम रही थी, जैसे मुरारी यह सुनिश्चित करना चाहता हो कि वह गहरी नींद में है। मंजू का शरीर सख्त हो गया, लेकिन उसने अपनी पलकें नहीं हिलाईं। वह नहीं चाहती थी कि मुरारी को ज़रा-सा भी शक हो।

मुरारी का मन अब पूरी तरह उसकी उत्तेजना के हवाले था। उसकी नज़रें मंजू के चेहरे से हटकर नीचे की ओर गईं। उसकी साड़ी का पल्लू हल्का-सा खिसका हुआ था, और नीचे उसकी टाँगें चटाई पर फैली थीं। टॉर्च की रोशनी में मंजू की गोरी टाँगें एकदम चमक रही थीं, जैसे चाँदनी में कोई संगमरमर की मूर्ति हो। मुरारी की साँसें और भारी हो गईं। उसके मन में पिछली रात की यादें ताज़ा हो उठीं—कल रात, जब उसने मंजू की साड़ी को हल्के से उठाया था और उसकी नज़रें वहाँ मंजू के चूत पर गई थीं,

उसका हाथ धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसने साड़ी के किनारे को हल्के से पकड़ा और उसे ऊपर उठाने की कोशिश शुरू की। उसकी हरकत इतनी सावधानी भरी थी कि हवा में कोई आहट तक न हो। लेकिन मंजू जाग रही थी। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसका मन पूरी तरह सजग था। वह मुरारी की हर हरकत को महसूस कर रही थी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, और साँसें जैसे गले में अटक रही थीं।


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मंजू के मन में एक तूफान-सा उठ रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। एक तरफ उसे मुरारी पर गुस्सा आ रहा था—कैसे वह ऐसी नीच हरकत कर सकता है? उसे तो मुरारी को रोकना चाहिए, उसे डाँटना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ, वह डर भी रही थी। अगर वह अभी आँखें खोल दे, तो क्या होगा? मुरारी क्या कहेगा? क्या होगा उस रिश्ते का जिसकी शुरुआत वो करने जा रही है और सबसे बड़ी बात—वह खुद इस स्थिति से कैसे निकलेगी?

इधर, मुरारी की उंगलियाँ धीरे-धीरे साड़ी को और ऊपर खींच रही थीं। टॉर्च की रोशनी अब मंजू की टाँगों पर पूरी तरह केंद्रित थी। उसकी गोरी त्वचा रोशनी में और साफ चमक रही थी। उसने फोल्ड हुई टांगों के गैप में टॉर्च की रोशनी डाली और अंदर झांका ।


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एकदम दूधिया चिकनी जांघें कितनी मुलायम और चर्बीदार और भीतर एक मेहरून रंग की पैंटी पूरी तरफ से उसके बुर में चिपकी ।
मंजू अपने चूत को जांघों से कसने लगी , मानो अपनी इज्जत बचा रही हो और मन ही मन मुरारी को कोश रही थी । खुद को धिक्कार रही थी कि कैसे नीच आदमी से उसने नाता जोड़ लिया ।

उसकी आंखे नम थी मगर आंसुओ को गिरने की इजाजत नहीं थी , सांसे सिसकना चाहती थी लेकिन धड़कने डर रही थी । डर रही थी मुरारी से सामना करने से , डर था कि वो अपना होश न खो बैठे ।

अगर ही पल मुरारी ने उसकी साड़ी छोड़ दी और धीरे से उसके मुंह से निकला : सॉरी मंजू
उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि शायद हवा में ही गुम हो जाए, लेकिन मंजू के कानों तक वह साफ़ पहुँची।मुरारी ने साड़ी को वापस नीचे कर दिया, टॉर्च बंद की, और चुपके से उठकर अपने बिस्तर की ओर चला गया। कमरे में फिर से सन्नाटा छा गया, सिवाय मंजू की धड़कनों के, जो अब भी तेज़ी से चल रही थीं। वह अभी भी आँखें बंद किए लेटी थी, लेकिन उसका मन अब एक नए तूफान में फँस गया था।
लेकिन यह शब्द उसके लिए राहत की जगह और सवाल खड़े कर रहा था। क्या मुरारी सचमुच पछता रहा था? या यह बस उसका डर था कि कहीं मंजू जाग न जाए? मंजू को गुस्सा आ रहा था—उस हरकत के लिए, जिसने उसकी इज्जत को ठेस पहुँचाई थी। लेकिन साथ ही, उस "सॉरी" में कुछ ऐसा था, जो उसे मुरारी के इंसान होने की याद दिला रहा था। शायद उसने ममता के साथ जिस तरह की बातें की वो बहक गया हो , लेकिन एक मर्द को उसकी मर्यादा तो पता होनी ही चाहिए?
इनसब से अलग एक और विचार मंजू के दिमाग में अब घर करने लगा , एक डर जो उसके जहन पर छाने लगा कि क्या उसे अब मुरारी के साथ जाना चाहिए या नहीं ?


वही रात के गुम होते सन्नाटे में अरुण अपने बंद कमरे की कुर्सी पर बैठा लैपटॉप में लाइव sex स्ट्रीम देख रहा था और जोरो से अपना लंड हिला रहा था ।
वही लाइव स्ट्रीम में दो मोटी गदराई औरतें मास्क पहने हुए एक दूसरे के लिप्स चूस रहे थे । एक औरत बगल में बैठी दूसरी औरत की साड़ी के ऊपर से उसके चूचे सहलाते हुए बोली: कॉमन गाइड , क्लब ज्वाइन करो । जिसे भी इस सेक्सी बिच के न्यूड चाहिए क्लब ज्वाइन करें , आज रात ऑफर लिमिटेड है ।

अरुण तेजी से लैपटॉप में कुछ टाइप करता है और लाइव स्ट्रीम पर कुछ टिप के साथ मैसेज डालता " send me private I'll pay u all. "

जारी रहेगी
बहुत ही गरमागरम कामुक और एक शानदार लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Rony 1

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:approve: .... अब आगे ऐसा सोचना ही मत 😁
सब अपनी सोच के बैठोगे तो मेरी पढ़ोगे क्या
Har reader ki ek Alag soch Hoti hai jisse wo Kahani padte padte imagine karta hai aur apni soch ko un Kahani o mein sajata
Aur main srif characters partially ki BAAT kar Raha hu jaha update 199 se 205 k andar hi tumne raj rangi shila ka threesome se lekar ragini aur rajjo k sathe fivesome bhi dikha diya waha anuj k update mein itna gap aur Rahul and aman ka sequence bhi smooth Chala tha
Aur jab anuj ne itna chudai ki hai toh usse Apne maa k sathe baat age chaleni mein ITNA dar nahi lagna chahiye Kyu ki usse Shalini aur Rahul k bare mein bhi oata hai ki maa beta chudai karte hai toh usse thodi confidence milna chahiye
Aur Tum sayad khud ki likhi update bhul gaye ki update 155 156 mein anuj ja apni maa ko blouse petticoat mein dekhna uske hug Karke pet ko silaha dikhaya gaya toh ab yeh sab CHOTI moti cheez bachkani lagni hai Kyu ki ragini ne bhi bohut chudai ki hai aur anuj ne bhi rajjo shila etc chudai ki hai toh ab unke bich Thoda aur serious wala hona chaiye naki itna slow
 
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