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Adultery सपना या हकीकत [ INCEST + ADULT ]

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DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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हो जाइए तैयार
आगामी अपडेट्स के लिए

राज - अनुज और रागिनी
Hard-core threesome
बहुत जल्द

Gsxfg-IAX0-AAa-Jnh
(सिर्फ पनौती न लगे बस 😁)
 
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insotter

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💥 अध्याय 02 💥
UPDATE 04

प्रतापपुर


" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।


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सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।


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दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई

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रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।

इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा

रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।

रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा

रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा

बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है

तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया

रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।

बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा

शिला के घर

" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।

रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।

रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था

रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।


वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई


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और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे

रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब

रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।

रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।

रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार


चमनपुरा

कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।


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कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!

एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!

तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।

कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस

फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।

कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।


कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही

कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?

कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।

फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया

रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी

रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क

रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से

रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।

रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।


वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।

: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।

चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।

राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।

चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।

राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा

राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू

चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।

चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।

अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से

राज ने फोन पिक किया

: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।



मुरारी - मंजू


दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई

मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया

फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।

ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।

फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी

मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।


जारी रहेगी
Nice update bro 💯 Waiting for new seen 😀 with new members 😁
 

Sanju@

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💥 अध्याय: 02 💥

UPDATE 002


" ओह येस बेबी उम्ममम कितनी सेक्सी सा चूस रही हो अह्ह्ह्ह्ह बाबू उम्ममम कितनी बड़ी गाड़ है तुम दोनों की एकदम गोरी गोरी दूधिया गाड़ अह्ह्ह्ह पागल कर दे रहे हो ओह्ह्ह्ह " , अमन बेड के किनारे अपना लंड बाहर किए खड़ा था और बिस्तर पर बेट के बल लेट कर सोनल और निशा बारी बारी उसका लंड चूस रही थी ।

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" लुक हियर बेबी अह्ह्ह्ह्ह सेक्सी लग रही हो उम्ममम अह्ह्ह्ह " , अमन सोनल को कैमरे की ओर देखने को कहता है जिसमें वो दोनों की लंड चूसते हुए वीडियो बना रहा था ।
दोनो ने मैचिंग सेक्सी सी ब्रा पैंटी सेट पहनी थी और होटल के बेड पर लेती हुई अमन का लंड साझा करने लगी

निशा : उम्ममम जीजू कितना गर्म है उम्ममम सीईईई ओह्ह्ह्ह लोहे जैसा लंड है तुम्हारा
सोनल अमन से मोबाइल लेकर फ्रंट कैमरे से निशा के साथ वीडियो बनाने लगी : निशा इधर देख अह्ह्ह्ह्ह सीईईई


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निशा कैमरे में देखते हुए अमन का टोपा चुबला रही थी और उसकी आंखो में खुमारी उतर चुकी थी वो मदहोश नजरों से खुद को ही निहार रही थी ।
तभी अमन के मोबाइल पर रिंग हुआ


अमन : किसका है ?
सोनल : पापा जी का है !!
अमन समझ गया कि जरूर कुछ जरूरी बात होगी
अमन मोबाइल लेकर : मै बात करके आता हु
फिर वो वैसे हो कमरे निकल कर बालकनी में नंगा खड़ा होकर बात करने लगा
फोन पर

: नमस्ते पापा , कैसे हो ?
: मै ठीक हूं बेटा , तुम कैसे हो ? ( मुरारी की आवाज आई )
: मै तो एकदम मस्त हु पापा हीही ( अमन ने चहक कर जवाब दिया )
: हा हा भाई तेरी तो डबल मस्ती चल रही होगी क्यों ( मुरारी ने अंदाजा लगाया )
: उफ्फ पापा क्या बताऊं , आपकी बहु और उसकी बहन पूरा दिन मुझे कपड़े नहीं पहनने देते , अभी भी नंगा हु बालकनी में हीही
: ऐसी किस्मत सबको नहीं मिलती बेटा , मै तो 2 रोज से तड़प रहा हूं। शहर के शहर भटक रहा था अब तक आज कही पाव रुके है मेरे
: मतलब चाची मिल गई ( अमन खुश होकर )
: हा बेटा मिल गई , अभी उसके घर पर रुका हु कल सुबह हम लोग निकलेंगे घर के लिए
: वाव पापा फिर तो मै भी जल्दी आता हूं हीही मजा आएगा ( अमन एकदम से खुश हो गया )
: नहीं नहीं बेटा तुम आराम से अपनी ट्रिप इंजॉय करके आना , तबतक मै तैयारिया देख लूंगा , ठीक है (मुरारी बोला )
: पापा?
: हा बोल न बेटा ?
: पापा चाची कैसी दिखती है , मतलब sexy है या नहीं हीही ( अमन कमरे में झाक कर अंदर का माहौल देख कर अपना लंड सहलाते हुए मुरारी से सवाल किया )
: बदमाश कही का , आकर देख लेना न कैसी है ? हाहाहाहा ( मुरारी हंसा)
: पापा बताओ न प्लीज
: अब क्या बताओ बेटे , एकदम कड़क गदराया पीस है उफ्फ तेरी बुआ संगीता के जैसी कसी हुई मोटी मोटी छातियां है और कूल्हे उठे हुए है उसके जैसे ही । उम्मम अब क्या बोलूं , मेरा तो सोच कर ही मूड बन गया अह्ह्ह्ह
: वाव सच में फिर तो चाचू के भाग्य खुल गए हीही ( अमन बोला )
: किस्मत तेरी भी कम बुलंद नहीं है बेटा , बीवी के साथ साली को भी चोद रहा है उम्मम हाहाहा ( मुरारी ने अमन को छेड़ा )
: पापा एक गजब की चीज दिखाऊं, कलेजा थाम के देखना ओके ( अमन कमरे में झांकता हुआ बोला )
फिर वो मुरारी को वीडियो काल उठाने की रिक्वेस्ट भेजता है
: ऐसा क्या दिखाने वाला है तू ( मुरारी अंधेरे में वीडियो काल उठाता है
: श्शशश, चुप रहिएगा (अमन ने मुरारी को टोका और वीडियो काल पर बैक कैमरा से कमरे के अंदर का माहौल दिखाय



1
अंदर दोनो बहने सोनल और निशा 69 पोजिशन में एकदूसरे के बुर और गाड़ चाट रही थी और सोनल तो अपनी एक उंगली निशा की गाड़ में गुब्ब गुब्ब पेलते हुए उसकी झड़ती चूत चाट रही थी )

इधर मुरारी की आंखे फटी की फटी रह गई और लंड एकदम उफान पर था

कमरे से बाहर निकल कर
: क्या हुआ पापा होश उड़ गए न
: बेटा ये तो मैने पहली बार देखा , बहु अपनी बहन के साथ , अह्ह्ह्ह बेटा तेरे तो मजे ही मजे है । ( मुरारी पजामे में अपना लंड मसल कर बोला )
: पापा जल्द ही आपकी बहु को आपके आगे लिटाऊनंगा फिर आप भी मजे लेना , चलो मै चलता हु बाय
: हा बेटा मजे करे ( मुरारी फोन काटकर ) मेरे नसीब में तो अभी दो रात चूत का कोई ठिकाना नहीं है ।

मुरारी छत से नीचे आया और वो मोबाईल का टार्च जला कर नीचे आ रहा था कि उसके जहन में अमन के सवाल कौंधी " चाची कैसी है ? "

मुरारी कमरे में आया और उसकी नजर जमीन पर सोई हुई अपने भाई की प्रेमिका पर गई , जो इस वक्त साड़ी बदल कर नाइटी में सोई थी ।
उसके घुटने फोल्ड थे और पैर की ओर से नाइटी में पूरा गैप बना हुआ था ।
मुरारी का जी ललचा गया

वो दबे पाव दूसरी तरफ आया और मंजू के चेहरे पर टार्च जलाई , वो गहरी नीद में थी और उसने झुक कर हौले से मंजू की खुली नाइटी में टॉर्च दिखाई


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आहे क्या नजारा था , हल्की फुल्की झुरमुट में झांकी एक रसीली फांक

देखते ही मुरारी का लंड एकदम फड़फड़ाने लगा मगर वो ज्यादा देर तक ऐसे नहीं रुक सकता था इसीलिए वो उठ कर बिस्तर पर आ गया ।

वही दूसरी ओर अमन कॉल काट कर वापस आया कमरे में तो सोनल निशा की जांघें फाड़े हुए उसकी बुर में अपना मुंह दिए हुए थी


सोनल : अह्ह्ह्ह कितनी गर्म है तेरी चूत रे अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह , इसको खा जाऊंगी आज उम्ममम
निशा उसके गाड़ के सुराख को गिला कर रही थी वो पागलों के जैसे सिसकने लगी जब सोनल इसके चूत में जीभ घुमाने लगी


निशा : ओह्ह्ह्ह मम्मीईईई उम्ममम सीईईई ओह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् मीईईईई यस्स अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह सोनल उम्ममम मै पागल हो जाऊंगी
अमन अपना लंड सोनल के मुंह पर लाता हुआ : हाय बेबी इसे नहीं चूसोगी उम्मम

सोनल ने नजरे उठा कर देखा और मुस्कुराते हुए अमन का लंड पकड़ कर मुंह में भर ली


2

अमन : ओह्ह्ह्ह गॉड उम्मम माय डर्टी बीच सेक्सी डॉल उम्ममम सक इट बेबी अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह
अमन सिसकने लगा और सोनल उसका लंड गले तक ले जाने लगी उसकी उंगलियां अभी भी निशा के बुर को मसल रही थी

निशा तड़पती हुई : डालो न जीजू उम्ममम प्लीज अह्ह्ह्ह
अगले ही पल सोनल ने लंड को मुंह से निकाल कर अमन का सुपाड़ा निशा के बुर के फांके पर रगड़ने लगा
निशा : अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्ह डाल दे न कामिनी अह्ह्ह्ह बहनचोद अह्ह्ह्ह्ह जाने दे न अह्ह्ह्ह
अगले ही पल अमन ने हचक से लंड को झटका दिया और वो निशा के बुर के फाकों को चौड़ी करता हुआ अंदर घुसता चला गया
निशा : ओह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् मीईईईई यस्स अह्ह्ह्ह्ह जीजू पेलो मुझे उम्मम कितना बड़ा है अह्ह्ह्ह रुकना नहीं उम्ममम यस्स जीजू उम्ममम अह्ह्ह्ह फक्क्क् फ़क्कक्क फक्क्क् ओह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह यस्स बेबी
अमन निशा की जांघें उठा कर तेजी से उसकी बुर में पेलने लगा : अह्ह्ह्ह ले मेरी जान कितनी गर्मी है तेरी बुर में अह्ह्ह्ह्ह मजा आ रहा है ओह बहिनचोद सपना था तुझे पेलने का जबसे तेरे चौड़े कूल्हे देखे थे उम्मम अह्ह्ह्ह्ह


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निशा : अह्ह्ह्ह हा जीजू मै भी पागल हु आपके लिए अह्ह्ह्ह फक्क्क् मीईईई ओह्ह्ह गॉड अह्ह्ह्ह सोनल उम्ममम ममममाआ अह्ह्ह्ह्ह
वही सोनल निशा के निप्पल चूस रही थी और उन्हें मिंज रही थी कि उसकी नजर वापस से अमन के मोबाइल पर गई और लपक कर वो निशा के बगल में अपनी टांगे खोलकर भी लेट गई और सेल्फी कैमरे पर वीडियो बनाने लगी
निशा : अह्ह्ह्ह्ह कामिनी किसको दिखाएगी उम्मम अह्ह्ह्ह्ह जीजू और तेज अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् बहिनचो ताकत नहीं है क्या अह्ह्ह्ह
अमन जोश में उसकी जांघें पकड़ कर फचर फचर पेलने लगा : साली मादरचोद फाड़ दूंगा अह्ह्ह्ह लह्ह्ह ओह्ह्ह्ह कितनी गरम है चूत अह्ह्ह्ह
निशा तेजी से चीख रही थी


3

और सोनल हस्ते हुए सेल्फी कैमरे पर वीडियो ब्लॉग बना रही थी : हाय गाइज वी आर ऑन हनीमून , माय बिग डिक्की हब्बी फकिंग माय सिस्टर हाहा , देखो गाइज मेरी चूत अह्ह्ह्ह कितनी गर्म है मुझे भी लंड चाहिए कोई चोदेगा मुझे हाहाहा


सोनल मस्ती कर रही थी और उसकी बातें सुनकर उसका लंड और फड़कने लगा कि क्या हो अगर ये वीडियो अपने पापा को दिखाएगा
अमन निशा को छोड़ कर लपक कर सोनल को अपनी ओर खींचा और गपक से लंड उसकी चूत में उतार दिया ।

सोनल : ओह्ह्ह्ह बेबी कितना टाइट है आह्ह्ह्ह मम्मा उम्मम्म फक्क्क् मीईईई ओह्ह्ह यस्स बेबी अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह
अमन उसके हाथ से मोबाईल लेकर बैक कैमरा से वीडियो रिकार्ड करने लगा सोनल को चोदते हुए
सोनल अपनी जांघें खोलते हुए : अच्छे से बनाओ न बेबी अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह ओह गॉड फक्क्क् मीईईईई यस्स बेबी उम्मम्म फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्हमम
निशा ने उसके लिप्स से लिप्स जोड़ लिए और चूत सहलाने लगी , सोनल ने बदन और जोश बढ़ने लगा । निशा झुक कर सोनल के बड़े बड़े रसीले मम्में मुंह में भरने लगी अपनी गाड़ फैला कर


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अमन उसकी भी सारी हरकते रिकॉर्ड करता है सोनल को पूरे जोश ने पेले जा रहा : ओह्ह्ह्ह्ह बेबी कितनी मुलायम चूत है तुम्हारी ओह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू बाबू
सोनल : उम्ममम यस्स बेबी फक्क मीईईई अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् मीईईईई यस्स अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह


अगले ही पल निशा लपक कर अमन के हाथ से मोबाइल लेते हुए : जीजू मुझे दो न हिही
निशा ने सेम सेल्फी कैमरे से वीडियो चालू की और अपनी बुर सोनल के मुंह पर ले जाती हुई : देखो गाइज मेरी ये मेरी बहन है , ये मै हु और ये मेरी चूत चाट रही है , अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम और डाल ने जीभ ओह्ह्ह्ह गॉड उम्मम, अह्ह्ह्ह्ह गाइज देखो मेरी बहन को जीजू मेरे चोद रहे है अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म


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सोनल ने निशा की दोनो जांघों को कस लिया और उसकी बुर के फांके चुंबलाने लगी
वही दूसरी ओर अमन सटासट उसकी बुर पेले जा रहा था , सोनल के बाद अब निशा की हरकते उसको और पागल किए जा रही थी , उसके पैर थक रहे थे ।

वो उठा और बिस्तर पर आ गया
लंड आसमान की ओर उठाए : आजाओ बेब्स
निशा : मेरी टर्न मेरी टर्न अह्ह्ह्ह उम्ममम
निशा दोनों पैर फेक कर अमन की ओर अपना गाड़ करके उसका लंड अपनी बुर में लेकर बैठ गई : अह्ह्ह्ह उम्मम अह्ह्ह्ह्ह उम्ममम
निशा कस कर अपने चूतड़ अमन के कड़क लंड पर पटक रहे थी और सोनल अमन के बाहों के लेती हुई उसके लिप्स चूसने लगी
सोनल : मजा आ रहा है मेरी जान उम्मम


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अमन उसके नंगे चूतड़ नोचता हुआ : बहुत ज्यादा मेरी जान अह्ह्ह्ह
निशा : अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्हमम यशस्स जीजू पेलो मुझे अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्हमम यशस्स जीजू आयेगा अह्ह्ह्ह

अमन निशा की बातें सुनकर उसके चूतड़ पकड़ कर नीचे से झटके देने लगा : अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह ले साली रंडी अह्ह्ह्ह मेरी जान अह्ह्ह्ह्ह झड़ जा अह्ह्ह्ह
अमन कस कस कर नीचे से कमर उछाल कर पेलने लगा और निशा अपनी आँखें उलटती हुई झड़ने लगी ,
अमन : ओह्ह्ह यस्स बेबी फक्क मीईईई अह्ह्ह्ह आ रहा है मेरा भी ओह्ह्ह्ह
निशा झट से उसके लंड से उठ गई और सोनल ने लपक कर अमन का लंड मुंह में ले लिया और अमन उसक सर पकड़ कर झटके खाते हुए झड़ने लगा : अह्ह्ह्ह मेरी जान पी ले अह्ह्ह्ह्ह ममीईइई ओह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू बेबी अह्ह्ह्ह्ह


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सोनल अमन के फड़कते लंड को पकड़े हुए आखिर से सारा पानी पीती रही और फिर उसका सुपाड़ा निशा के बहती चूत पर लगा कर वापस से चूसने लगी जिसे देखकर अमन के लंड में फिर से हरकत होने लगी
मगर सुबह से ये चौथी बार था जब वो इतने जोरदार तरीके से झड़ा था और सुस्ती उसके जिस्म पर हावी हो रही थी
फिर वो दोनों के साथ ही सो गया ।


अगली सुबह

मुरारी अंगड़ाई लेता हुआ उठा, उसको आंखों में हल्की फुल्की जलन महसूस हो रही थी और पता चला घर में धुआं उठ रहा था कही ।
मुरारी मच्छरदानी से निकल कर खड़ा हुआ और पजामे में उसके लंड एकदम कड़क उठा था सुबह सुबह । नीचे देखा तो मंजू उठ चुकी थी और पीछे हाते के पास चूल्हे से गर्मागर्म खाने की खुशबू आ रही थी। मुरारी ने घड़ी देखी तो 8 बजने वाले थे ।
अचरज नहीं हुआ मुरारी को मंजू इतनी सुबह क्यों खाना बना रही होगी ।

मुरारी अपना लंड पजामे में सेट करता हुआ हाते में चूल्हे के पास आया जहा मंजू रोटियां बेल कर सेक रही थी
मंजू मुरारी को अपने ओर आते देख मुस्कुरा उठी और झट से अपना दुपट्टा सर पर ले लिया । वो अभी भी रात वाली नाइटी में थी , जाहिर था अभी तक वो नहाई नहीं थी ।
मगर मुरारी को इससे फर्क नहीं पड़ने वाला था उसकी नजर तो मंजू को नाइटी की आधी खुली चैन पर थी जिसमें से मंजू के दो बड़े बड़े रसीले मम्में आपस में चिपके हुए थे और रोटियां बेलते समय मंजू के दोनों मम्मे खूब उछल रहे थे ।


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मुरारी का लंड एक बार फिर से सर उठाने लगा ।

मुरारी : अरे मंजू सुबह सुबह खाना
मंजू मुस्कुरा कर : हा भाईसाहब वो मुझे ऑफिस जाना है न
मुरारी : ऑफिस जाना है मतलब

मुरारी का हलक सूखने लगा कि कही उसने साथ चलने का प्लान कैंसिल तो नहीं कर दिया ।

मंजू : अरे मुझे मेरे सर को बताना पड़ेगा न कि मै अब काम पर नहीं आऊंगी और फिर हिसाब भी कराना पड़ेगा न
मुरारी की जान में जान आई : ओह ऐसा , मै सोचा कि
मंजू उसकी बात समझ कर मुस्कुराने लगी ।

मुरारी : बाथरूम में पानी आ रहा है क्या
मंजू : जी नहीं वो मैं पानी रख दी हूं आप जा सकते है
मंजू थोड़ा शर्मा कर मुस्कुराने लगी ।
फिर वो उठ कर झाड़ू लगाई और इधर मुरारी पाखाने में चला गया ।
मंजू ने सोचा कि जबतक मुरारी पाखाने में है क्यों न तबतक वो नहा ले , नहीं तो कपड़े बदलने की दिक्कत हो जाएगी ।

मंजू फटाफट से नल चला कर पानी भरने लगी और मुरारी को आवाज आने लगी नल चलने की
उसके भी जहन भी यही चल रहा था कि मंजू कैसे नहाएगी । क्या उसे देखना चाहिए ।
मुरारी खुद से बड़बड़ाया: वैसे कसे हुए रसभरे मम्मे है उसके एकदम टाइट ओह्ह्ह्ह लंड खड़ा कर दिया साली ने
तभी बाहर से पानी गिराने की आवाज आने लगी तो मुरारी की झटका लगा उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी ये सोचकर कि कही मंजू बहार नहाने तो नहीं बैठ गई । हड़बड़ी में वो बिना गाड़ धोए ही खड़ा होकर पाखाने के किवाड़ की जाली से बाहर नल की ओर झांका
तो देखा मंजू नाइटी में ही नल के पास बैठ कर अपने बदन पर पानी डाल रही थी ।


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उसने नाइटी को जांघों तक उठा रखा था जिससे उसकी चिकनी नंगी सुडौल जांघें देख कर मुरारी का लंड ऐंठने लगा । उसकी नजर मंजू के भीगती नाइटी पर भी थी जिसमें से मंजू के चूचे शेप में आ रहे थे धीरे धीरे भीगकर
मुरारी : अह्ह्ह्ह बहनचोद बवाल चीज है यार मदन क्या किस्मत है साले तेरी , मस्त माल है आह्ह्ह्ह

मुरारी को फिर से प्रेशर आने लगा तो वो वापस हगने बैठ गया और उधर मंजू झटपट से नहा कर कमरे में चली गई और कड़ी लगा दिया ।
कुछ देर बाद वो कपड़े पहन कर बाहर आई और मुरारी तबतक बाहर आ चुका था । फिर वो भी नहाने बैठ गया और इधर तबतक मंजू ने पैकिंग के लिए ढेर सारे कपड़े बिस्तर पर फैला दिए थे ।
ब्लाउज पेटीकोट सारी नाइटी ब्रा पैंटी दुपट्टे जींस सूट सब कुछ ।
मुरारी नहा कर आया तो उसने बिस्तर पर बिखरे हुए कपड़े देखे , ज्यादातर पुराने थे । मुरारी को देख मंजू ने झट से दुपट्टे ब्रा पैंटी धक दिए ।
मुरारी ने भी थोड़ी नजरे फेरी मगर भीतर से तो वो पूरा जिज्ञासु हुआ जा रहा था कि मंजू की असल साइज क्या होगी ।

मुरारी : अरे इतने सारे समान लेकर कैसे जायेगे हम लोग , बस जरूरी समान और कपड़े रखो बाकी छोड़ दो
मंजू : तो ये सब सामान
मुरारी : देखो ये सब सामान आप पास जो भी तुम्हे खास लगे उसे देदो , वहां किसी चीज की कमी नहीं है ।

मंजू : जी ठीक है भाई साहब

मुरारी की बातों ने मंजू को सोच में डाल दिया था कि क्या करे वो , फिर उसे ये भी समझ नहीं आ रहा था कि उतने बड़े घराने में वो किन कपड़ो में जाएगी । ये सब पुराने कपड़े और अंडर गारमेंट किसी ने देख किया तो क्या सोचेंगे उसके बारे में । मंजू के जहन में झिझक हो रही थी । उसके जहन में कुछ योजना चल रही थी जिससे उसकी सारी झंझट ठीक हो सकती थी मगर वो मुरारी से साझा करने से कतरा रही थी

मुरारी : क्या हुआ , क्या सोच रही हो
मंजू : जी ? कुछ नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता कि हम लोग कल चलें ?
मुरारी : क्या हुआ , बताओ न ?
मंजू : जी वो मुझे कुछ कपड़े लेने है और ऑफिस भी जाना है । पूरा दिन लग जाएगा फिर पैकिंग भी बाकी है और ये सब सामान किसी को सौंपना है ।

मुरारी कुछ सोच कर : अच्छा ठीक है हम कल ही जाएंगे । पहले तुम खाना खा कर ऑफिस जाओ और निकल कर फोन करना मै आ जाऊंगा तो साथ में शॉपिंग पर चलेंगे

मंजू खुश होकर : जी ठीक है
फिर मंजू सारे कपड़े बिस्तर पर एक किनारे बटोर दी और मुरारी के लिए खाना लेने चली गई ।


अरुण के घर

सुबह का नाश्ता कर अरुण कालेज के लिए निकल गया था और रज्जो जो शिला के साथ उसके कमरे में थी वो नहाने चली गई और नहाने के बाद वो तैयार हो गई ।
रज्जो : अरे दीदी कब आयेंगे वो लोग , 9 बज गए है
शिला : रुको यार फोन करती हुं
फिर शिला ने अपने पति को फोन घुमा दिया

फोन पर
शिला : हैलो
मानसिंह : हा शीलू कहो
शिला : कहूं क्या कहू ?आपको तो मेरी फिकर ही नहीं है , सुबह आने वाले थे 9 बज गए है
मानसिंह : बस मेरी जान आधे घंटे में आ रहा हूं
शिला मस्ती भरे लहजे में : जल्दी आओ न मेरे राजा , कबसे तड़प रही हूं अह्ह्ह्ह
मानसिंह : ओहो मेरी जान मूड में है क्या
शिला रज्जो को देख कर मुस्कुराई और अपनी हसी रोक : अह्ह्ह्ह्ह हा बहुत ज्यादा , कितने दिन से मै तड़प रही हूं उम्मम जल्दी से आओ न
मानसिंह : बस मेरी आ ही गया हू रखो मै गाड़ी चला रहा हूं

फोन कट जाता है
रज्जो और शिला खिलखिला कर हस दिए
रज्जो - ये बढ़िया तरीका है जल्दी बुलाने का हीही उम्मम
शिला - अरे जब तड़पकर आयेंगे तभी तो और मजा आएगा हीही

कुछ देर मानसिंह की गाड़ी उसके घर के दरवाजे पर खड़ी थी ।
मानसिंह झट से उतरा और उसके साथ रामसिंह और कम्मो भी ।

कम्मो हस कर : अरे भाई साहब दीदी कही भाई नहीं रही है हाहा
रामसिंह : भाभी ने हड्डी फेक दी है कम्मो , अब भैया कहा किसी की सुनने वाले है हीही
मानसिंह अपना पजामा सेट करता हुआ : तुम दोनों चुप रहो , तुम्हारे आउटडोर क्विकी के चक्कर में लेट हो गया हमें
कम्मो : कॉम डाउन मेरी जान , मजा नहीं आया क्या आपको उम्मम खुले ने मुझे पेल कर
कम्मो पार्किंग में पजामे के ऊपर से ही मानसिंह का खड़ा लंड पकड़ते हुए बोली ।
मानसिंह सिहर उठा : अह्ह्ह्ह्ह कम्मो जाने दे न मुझे अह्ह्ह्ह
और मानसिंह झटके से घर में चला गया । वही कम्मो खिलखिलाने लगी
रामसिंह : भैया को तंग करने में तुम दोनों बहने एक सी हो हीही
कम्मो : क्यों जलन हो रही है
रामसिंह हस कर अपने लंड की ओर इशारा कर : मुझे नहीं इसे जरूर हो रही है
कम्मो ने हाथ बढ़ा कर रामसिंह का लंड पकड़ लिया : चलो इसको थोड़ा दुलार देती हूं मान जायेगा
और रामसिंह ने वही पार्किंग में ही कार पास खड़े हुए कम्मो के लिप्स चूसने लगा ।
कम्मो की सांसे चढ़ने लगी : जान ऊपर चलते है न
रामसिंह साड़ी के ऊपर से उसकी गाड़ दबोचता हुआ : यही कर लेते है न मेरी जान एक और आउटडोर क्विकी
कम्मो लजाई: धत्त
और निकल गई घर में ।

वही मानसिंह बड़े तेजी से हाल में घुसा और किचन में मीरा को काम करता देख शांत हुआ
मानसिंह : मीरा , नीलू की मां कहा है ?
मीरा : जी नमस्ते साहिब वो अपने कमरे में ही होगी
मानसिंह बिना कुछ बोले तेजी से अपने कमरे के पास चला गया ।
कमरे में कोई नहीं दिखा उसे जोरो की पेशाब लगी थी तो वो पहले फ्रेश होने लगा और जैसे ही बाहर आया और सोफे पर बैठ कर अपने जूते निकालने लगा
शिला हाथ में नाश्ते का ट्रे लेकर कमरे में दाखिल हुई , उसने आज नए तरीके से साड़ी पहनी हुई थी


Gid8-HIWWg-AALFGi
शिला के चुस्त ब्लाउज के उसकी छातियां मुश्किल से बिना ब्रा के समा पाई थी । ज्यादातर तो बाहर निकल आई थी । उसने सीधा पल्ला का साड़ी पहन करअपना चेहरा पल्लू से पूरा ढक रखा था और आगे से उसका ब्लाउज से मोटी चूचियां और नंगा बड़ा पेट साफ साफ नजर आ रहा था ।

मानसिंह ने जैसे ही शिला को साड़ी में ऐसे कामुक अवतार में देखा तो उसकी हलक सूखने लगी
मानसिंह : आहा मेरी जान क्या मस्त लग रही हो , अह्ह्ह्ह्ह ये पर्दा क्यों , आओ न बैठो
शिला ने ट्रे टेबल पर रखा और पीछे होकर खड़ी हो गई
मानसिंह : आओ न मेरी जान
शिला ने बिना कुछ बोले न में सर हिलाया
मानसिंह की नजर शिला के गदराई हुई मोटी मोटी चूचियो पर थी जो उसे ललचा रही थी और उसकी गुदाज गहरी नाभि देख मानसिंह का गला सुख रहा था ।
मानसिंह : अह्ह्ह्ह जान अभी भी नाराज हो क्या
शिला ने घूंघट में ही बिना कुछ बोले हा में सर हिलाया तो मानसिंह हाथ आगे बढ़ा कर उसकी कलाई पकड़ ली तो शिला एकदम से चौक गई और कुनमुना कर अपनी कलाई छुड़ाने लगी और उससे दूर होने के लगी कि मानसिंह ने एक बार फिर से उसकी कलाई पकड़ते हुए उसको अपनी ओर खींचा और अपनी गोदी में बिठा लिया
शिला सिसकी और मानसिंह उसके बड़े चौड़े कूल्हे को मसलता हुआ अपने हाथ उसके नंगे पेट कर सहलाने लगा: अह्ह्ह्ह्ह मेरी जान क्यों नाराज है, अब तो आ गया न तेरे पास , जरा एक अपने मीठे होठों का रस तो पिला

जैसे ही मानसिंह ने शिला ने सर से पल्लू हटाया उसको जोर का झटका लगा वो उछल कर फर्श पर खड़ा हो गया और कमरे में एक तेज खिलखिलाहट गूंजने लगी
मानसिंह ने दरवाजे की ओर देखा तो वहां शिला लेगी कुर्ती में हस रही थी और अब तक जिसे मानसिंह शिला समझ रहा था वो रज्जो थी ।
रज्जो थोड़ी लजा शर्मा रही थी क्योंकि उसे ये उम्मीद नहीं थी कि मानसिंह एकदम से उसके जिस्म को मिजने लगेगा ।

मानसिंह : आ दादा , माफ कीजिएगा भाभी जी , मुझे लगा शिला है और आप कब आई तुमने बताया नहीं

मानसिंह जितना हो सकता था माहौल को बदलने की कोशिश कर रहा था मगर शिला ने रज्जो के सामने उसका मजा लेने से बाज नहीं आई और जमकर अपने पति को छेड़ा ।
शिला मजे लेते हुए : वैसे अब पता चल गया कि आप मुझसे जरा भी प्यार नहीं करते हूंह

मानसिंह कभी शिला को तो कभी मुस्कुराती लजाती रज्जो को देख कर सफाई देता हुआ : अरे मुझे कैसे पता कि घूंघट के नीचे भाभीजी होंगी , प्लीज भाभी जी मुझे माफ कीजिएगा प्लीज
रज्जो हस्ती हुई : कोई बात नहीं ये हम दोनो की ही शरारत थी
मानसिंह शिला की ओर देखकर : लो देखो ,
शिला : क्या देखो , भले ही ये हमारी शरारत थी मगर आपको तो मुझे पहचानना चाहिए था न हूह
रज्जो हसने लगी : हा ये भी .. हीही

मानसिंह शर्म से झेप कर : क्या भाभी आप भी मतलब
शिला : चलो भाभी , हम चलते है अब रहिए आप अकेले हूह
मानसिंह : अरे सॉरी न नीलू की मां , प्लीज
शिला मुंह बना कर : हा हा ठीक है , आप नहा धो कर नाश्ता कर लो हम आते है
मानसिंह : अरे कहा जा रहे हो
शिला : अरे रज्जो भाभी के कुछ कपड़े कल देने गई थी गांव में , तो वही लेने जाना है

मानसिंह : ओह ठीक है , जल्दी आना प्लीज
शिला मुंह बनाते ही अंगूठा दिखा कर : ठेंगा आऊंगी जल्दी हा नहीं तो
और दोनों कमरे से बाहर हस्ती खिलखिलाती निकल गई ।

*********************************
वही इन सब के अलग चमनपुरा में
रंगीलाल का बैग पैक हो चुका था और नाश्ता करके वो तैयार था

रंगी : राज बेटा दुकान के साथ घर का भी ध्यान रखना और तुम छोटे सेठ पढ़ाई न रुके बोर्ड है न इस बार
अनुज : जी पापा
रंगी : राज दुकान पर कुछ न समझ आए तो फोन कर लेना
राज : ठीक है पापा
रंगी : राज की मां तुम भी ख्याल रखना अपना
रागिनी कुछ बोले अनुज बीच में टपका : पापा मै हु न , मम्मी के पास हमेशा आप बेफिक्र जाओ
अनुज की बात पर सब हसने लगे
रागिनी मुस्कुरा कर : तेरा बैग रेडी हुआ , कालेज जाना है न तुझे भी
अनुज : कल से न मम्मी प्लीज
राज : कोई ड्रामा नहीं , चुप चाप कालेज जा
अनुज मन मारकर चुप हो गया और
रंगी भी मुस्कुरा कर सबसे विदा लेकर निकल गया आपने ससुराल के लिए।
वही राज आज से अपने पापा वाले दुकान पर बैठने वाला था और रागिनी कास्मेटिक वाले दुकान पर । अनुज भी अपने बैग रेडी कर निकल चुका था कालेज के लिए ।



जारी रहेगी
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है अमन के तो मजे हो रहे हैं साली और सोनल के साथ दमदार चुदाई चल रही है वहीं मुरारी मंजू के पीछे पागल है शीला और रज्जो की मस्तियां शुरू हो गई है
 

ajaydas241

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💥 अध्याय 02 💥
UPDATE 04

प्रतापपुर


" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।


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सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।


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दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई

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रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।

इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा

रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।

रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा

रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा

बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है

तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया

रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।

बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा

शिला के घर

" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।

रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।

रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था

रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।


वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई


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और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे

रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब

रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।

रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।

रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार


चमनपुरा

कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।


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कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!

एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!

तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।

कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस

फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।

कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।


कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही

कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?

कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।

फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया

रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी

रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क

रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से

रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।

रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।


वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।

: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।

चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।

राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।

चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।

राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा

राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू

चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।

चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।

अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से

राज ने फोन पिक किया

: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।



मुरारी - मंजू


दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई

मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया

फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।

ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।

फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी

मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।


जारी रहेगी
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Sanju@

Well-Known Member
5,007
20,093
188
💥 अध्याय 02 💥

UPDATE 003


पिछले 3 हफ्ते थे अनुज घर और शादी के ऐसा उलझा था कि उसे न पढ़ाई के लिए समय मिला और न ही आने वाली परीक्षा की तैयारियों का
आने वाले महीनों उसके प्रैक्टिकल शुरू हो रहे थे और उसके प्रोजेक्ट अधूरे क्या शुरू ही नहीं हो पाए थे ।चिंता भरे मन से अनुज उलझा हुआ कालेज के लिए जा रहा था । उसका कालेज भी वही था जहां से पहले उसके भैया राज ने दसवीं और इंटर पास किया था ।
राज के अच्छे व्यवहार और पढ़ाई में अच्छा होने की वजह से उसके कालेज के टीचर अनुज से अकसर उसके बारे में हाल चाल ले लिया करते यहां तक कि अनुज की पहचान भी अभी तक राज के छोटे भाई के तौर पर ही थी । क्योंकि ना ही अनुज पढ़ाई के उतना अव्वल था और न ही खेल कुद जैसी प्रतियोगीताओ में कोई रुचि रखता था , हालांकि चढ़ती उम्र में वासना ने उसे लालची जरूर बना दिया था ।
कालेज को जाती सड़क पर चल रहा था , आमतौर पर ये सड़के बच्चों से व्यस्त होती थी मगर आज पापा की वजह से उसे थोड़ा लेट हो गया क्योंकि अनुज का तो आज जरा भी मन नहीं था ।
09.30 बजने को हो रहे थे और कालेज कुछ दूर ही था कि उसकी नजर आगे पुलिया पर गई , जहां दो लड़कियां एक दूसरे की तस्वीरें निकाल रही थी ।


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उनमें से कालेज ड्रेस में एक लड़की का गोरा दुधिया चेहरा दूर से चमकता दिखा और अनुज समझ गया कौन थे वो दोनों ।

: अरे वो देख , तेरा हीरो आ रहा है हीही ( दूसरी लड़की ने पहली लड़की को छेड़ा )
: धत्त कमिनी, चुप कर वो आ रहा है ( उसने अपने सूट को कमर के पीछे से खींच कर अपने गोल मटोल चूतड़ों पर चुस्त किया और विजिबल चुन्नी से अपना क्लीवेज ढकती हुई बड़ी सहूलियत से खड़ी होकर अपने जुल्फे कान में खोसने लगी )

" हाय अनुज , बड़े दिन बाद " , उस पहली लड़की ने अनुज को टोकते हुए कहा ।
अनुज : ओह हाय कृतिका , हा वो मै दीदी की शादी में उलझा था । बताया तो था उस दिन दुकान पर ?

अनुज के जवाब पर वो दूसरी लड़की ने आंखे महीन कर कृतिका को घूरा तो कृतिका नजरे चुराती हुई मुस्कुरा दी : अच्छा हा , और कैसे हो ?

अनुज : अच्छा हु और तुम दोनों ?
" अच्छा तो तुम्हे दिख गई मै , ठीक हूं मै भी " , कृतिका के साथ वाली लड़की बोली जिसके नारियल जैसे चूचे सूट को सीने पर पूरा ताने हुए थे जिससे उसका दुपट्टा ज्यादा ही उठा नजर आ रहा था ।
अनुज थोड़ा झेप कर मुस्कुराता हुआ : अरे पूजा वो तो मै , अच्छा सॉरी बाबा
कृतिका पूजा से : क्या तू भी परेशान कर रही है , चलो अनुज
अनुज : हम्म्म चलो

अनुज थोड़ा आगे हुआ कि उसके कानो में पूजा की भुनभुनाहट आई : हरामीन तूने बताया नहीं न मिलने गई थी उम्मम ।
इसके बाद कृतिका की हल्की सी सिसकने की आवाज आई : सीईईई मम्मीई, कुत्ती....

कृतिका और दो चार गालियां पूजा को देती मगर उसकी नजर आगे अनुज से टकराई और वो थोड़ा शर्मा कर अपने कमर के पिछले हिस्से को सहलाते हुए मुस्कुराने लगी ।
" तुम्हारे प्रोजेक्ट्स कहा तक पहुंचे अनुज " , कृतिका ने सवाल किया ।
आगे वो बातें करते हुए निकल गए कालेज की ओर ।


वहीं दुकान पर आज राज का पहले दिन ही बड़ी मगजमारी झेलने पड़ी ।
बबलू काका की मदद से चीजे आसान थी मगर बाप की पहचान और रुतबे के आगे राज फीकी चाय से भी फीका था ।
11 बजने को हो रहे थे और राज केबिन में बैठा हिसाब बना रहा था ।
एक्जाम तो उसके भी आने वाले थे मगर अभी उसके पास डेढ़ माह का समय अतिरिक्त था अनुज से ।

बबलू काका : छोटे सेठ , बड़े घर से ठकुराइन आई है !
राज थोड़ा अचरज से : ठकुराइन कौन ?
बबलू काका थोड़ा हिचक कर : छोटे सेठ वो सेठ जी के दोस्त ठाकुर साहब है न उनकी मैडम ।
राज खुश होकर : अच्छा आंटी जी आई है , अरे तो भेजिए न उनको !
बबलू काका : जी छोटे सेठ
राज : और सुनिए कुछ देर में नाश्ता भेजवा दीजियेगा ओके
बबलू : ठीक है छोटे सेठ

कुछ ही देर में राज के सामने संजीव ठाकुर की बीवी खड़ी थी । ऊपर से नीचे तक खुद को बड़ी ही अदब और सादगी से ऐसे ढकी हुई थी कि उनका गदराया जिस्म की रत्ती भर झलक नहीं मिल पा रही थी सिवाय चेहरे के ।


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पूरी बाजू की ब्लाउज जो क्लिवेज के साथ साथ पीठ गर्दन सब कवर किए हुए थी । सिम्पल हल्की साड़ी जिससे उन्होंने अपना पेट और कमर पूरी तरह से ढक रखा था और कूल्हे पर ऐसी चुस्त की गाड़ का उभार उठा हुआ नजर आ रहा था ।

ठुकराईन : कैसे हो बेटा ?
राज की नजर उसके चेहरे पर गई , गजब का आकर्षन था उनकी आंखों में और मुस्कुराहट से फैले हुए मोटे मोटे होठो के चटक लिपस्टिक और भी ललचा रहे थे ।
राज : जी ठीक हूं आंटी जी , नमस्ते आइए न
राज खड़ा होकर उनका अभिवादन किया और ठकुराइन राज के पास सोफे पर बैठ गई ।
ठकुराइन : बेटा पापा नहीं है ?
राज मुस्कुरा कर : जी वो नानू के यहां गए है हफ्ते दस दिन में आ जायेंगे ।
ठकुराइन हस्ती हुई : हाहा ससुराल गए है घूमने भाईसाहब
राज मुस्कुराकर : जी ,
ठकुराइन : और तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है , या फिर तुम भी पढ़ाई छोड़ कर पहले शादी ही करने वाले हो सोनल के जैसे
राज मुस्कुरा कर : अरे नहीं आंटी , अभी मेरी उम्र नहीं है और दीदी भी अभी अपनी पढ़ाई जारी ही रखेगी ।
ठकुराइन : तो क्या सोनल अपने पति के साथ नहीं जाएगी ?
राज उलझे हुए स्वर में : अभी कुछ कह नहीं सकते आंटी जी , मार्च बाद से हम लोगों के भी एग्जाम शुरू हो जायेंगे तो मुझे नहीं लग रहा है कि वो जा पाएंगी ।
ठकुराइन : बस ससुराल वाले राजी हो जाए उसे पढ़ाने के लिए
राज : मुझे नहीं लगता कोई कुछ कहेगा , अच्छे लोग है सब
ठकुराइन इधर उधर की बातों को खींच रही थी और राज को अब बेचैनी हो रही थी । कुछ देर बाद तो ठकुराइन के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं । अब राज को शक होने लगा कि शायद वो किसी काम से आई थी और उससे कहने में हिचक रही है ।

राज : आंटी आप कुछ काम से आई थी ?
ठकुराइन : हा बेटा वो ...
बबलू काका : छोटे सेठ ये नाश्ता
ठकुराइन कुछ कहती कि बबलू काका आ गए और वो चुप हो गई थी । वो नाश्ता रख कर निकल गए ।

राज : हा आंटी जी कहिए , देखिए पापा नहीं है मगर कुछ भी मेरे लायक होगा मै कर दूंगा आप बेहिचक कहिए ।
ठुकराई थोड़ा सोच कर : बेटा मै तुम्हारे पापा से नहीं तुमसे ही बात करने आई थी ।
राज अचरज से : मुझसे ?
ठकुराईन : मैने कल दुपहर ही तुम्हारे पापा से बात की थी कि तुमसे कैसे मिल सकती हूं।
राज : हा तो कहिए ? क्या बात है ?

ठकुराइन : बेटा वो मै कैसे कहूँ,
राज : आंटी आप टेंशन मत लीजिए और मुझपर भरोसा करिए प्लीज , बताइए ..
ठकुराइन : बेटा वो तुम्हारा दोस्त है न , रामवीर का लकड़ा चंदू ?

चंदू का नाम सुनते ही राज का दिमाग सन्न हो गया , क्योंकि चंदू तो ठकुराइन की बेटी मालती का दीवाना था और काफी दिनों से वो ठाकुर साहब के यहां ही काम पर जाता था अपने बाप के साथ ।
राज का गला सूखने लगा : जी आंटी क्या बात चंदू के बारे में उसने कुछ किया क्या ?

ठकुराइन : बेटा तुम तो समझदार हो , उसको समझाओ ऐसे किसी के घर की इज्जत से खिलवाड़ नहीं करते ..
राज को यकीन होने लगा जरूर चंदू की कोई कारस्तानी की भनक लगी है ठकुराइन को : मै समझा नहीं आंटी , वो तो गोदाम में काम करता है न फिर क्या दिक्कत हो गई ?

ठकुराइन : कभी कभी बेटा वो .. कभी कभी क्या इन दिनों लगभग रोज ही वो घर में आ जाता है और उसने मेरी बेटी मालती के साथ ...
ठकुराइन बोलते हुए चुप हो गई ।

राज और उलझ गया और मन में बड़बड़ाया : बहिनचोद ये साला चंदू खुद भी मरेगा और मुझे भी मरवाएगा हरामी

राज : आंटी , उसकी गलती के लिए मै आपसे माफी मांगता हू। प्लीज इस बात को अंकल या उनके बाऊजी को मत कहिएगा । मै उसको बोल दूंगा वो सुधर जाएगा प्लीज

ठकुराइन कुछ देर चुप हुई और एकदम से उनके तेवर बदले : इसीलिए मै तुम्हारे पास आई हु राज , अगर मै ये बात कह दूं घर में मालती के पापा या फिर बाउजी से तो कही लाश भी नहीं मिलेगी उसकी । उसको समझाओ और दुबारा बिना कहे घर दिखा न तो खैर नहीं रहेगी उसकी ।

ठकुराइन का ऐसा बदला स्वरूप देख कर राज की फट गई और वो मन ही मन गाली दिए जा रहा था चंदू को ।
राज : आप बेफिक्र रहे आंटी जी , मै समझा दूंगा और प्लीज आप ये सब किसी ने मत कहिएगा मै रिक्वेस्ट कर रहा हु ।

ठकुराइन ने आगे कुछ देर तक अपनी बातों को घूमा फिरा कर रखती रही और फिर निकल गई ।
उनके जाते ही राज ने चंदू को फोन घुमाया

: भोसड़ी के जहां भी हो जल्दी से पापा वाली दुकान पर आ
: .......
: हा बर्तन वाले पर , जल्द आ

राज ने चंदू को हड़काया और फोन काट दिया । पानी का ग्लास गटागट खाली करता हुआ राज थोड़ा खुली हवा के लिए बाहर आया ।
मगर उसके जहन में एक सवाल खाए जा रही थी कि आखिर ठकुराइन ने ये बात सिर्फ मुझसे ही क्यों की । वो चाहती तो सीधा ही चंदू से कह देती या फिर उसे काम पर आने से मना कर सकती थी या फिर ऐसा कर देती कि वो घर के अंदर आए ही नहीं । जरूर कुछ बात है और राज गल्ले पर बैठा सोच रहा था कि इतने में चंदू आ गया ।

चंदू हांफता हुआ : क्या हुआ भाई , कुछ अर्जेंट है क्या ?
राज ने गुस्से से उसे घूरा , फिर अन्दर चलने का इशारा किया और दोनों केबिन में चले गए ।

शिला के घर

" चुप करो तुम , अगर एक मिनट और नहीं आती तो अबतक तो नंदोई जी मेरी साड़ी उतार चुके होते " , रज्जो शिला को डांटती हुई बोली ।

शिला खिलखिलाकर : अरे भाभी , आज नहीं तो कल साड़ी तो उठाएंगे ही वो आपकी हीही
रज्जो लजा कर : धत्त तुम भी न , सीधे चलो
शिला हस्ती हुई आगे बढ़ रही थी कि रज्जो की नजर सड़क से लग कर एक मकान पर गई जिसके बाहर एक खूबसूरत औरत साड़ी पहने हुए खड़ी थी ।


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उसके कजरारी आंखो में गजब का आकर्षण था , उसपे से उसकी पतली कमर और गुदाज गोरा पेट , देखते ही रज्जो तो मानो उसके कातिलाना हुस्न की कायल हो गई ।

रज्जो धीरे से उसकी ओर दिखा कर : हे दीदी ये कौन है , बड़ी कातिल चीज है उम्मम किसका माल है ये ? एकदम रसभरी है
शिला मुस्कुरा कर आगे बढ़ गई

रज्जो : अरे बताओ न , क्या हुआ हस क्यों रही हो
शिला : क्यों दिल तो नहीं आ गया उसपे उम्मम

रज्जो मुस्करा कर : मेरा तो पता नहीं मगर जिस तरफ से वो तुम्हे निहार रही है पक्का वो तुम पर लट्टू है । कितना नशा है उसकी आंखों , शायद कल मैने इसको उधर बाग की ओर भी देखा था ।
शिला : हम्म्म हा वो उसका अड्डा है
रज्जो : अड्डा कैसा अड्डा ?
शिला : बताती हु अभी चलो यहां से
कुछ दूर आगे बढ़ते ही रज्जो : क्या हुआ बताओ न
शिला मुस्कुराई : अरे उधर उसके कस्टमर मिलते है उसको , गांव और कस्बा का कोई डायरेक्ट उसके घर में नहीं जाता
रज्जो उत्सुकता से : क्यों ?
शिला मुस्कुरा कर: अरे वो किन्नर है
रज्जो की आँखें फैली : हैं ? सच में .. इतना खूबसूरत
शिला : हा लेकिन उसका टेस्ट थोड़ा अलग है ?
रज्जो : मतलब ?
शिला : अरे उसको मोटी जैसी गदराई औरतें पसन्द है मगर यहां गांव का माहौल देख ही रही हो , इसीलिए उधर जाता है औरतों को निहारने ।

रज्जो : क्या सच में ? तुमको कैसे पता
शिला : अरे पिछले साल जब आया था तब उसने एक बार मेरा भी पीछा किया था , मगर उसको मना कर दिया
रज्जो : अह्ह्ह्ह मना क्यों किया , ले लेती न नए लंड का स्वाद हीही।

शिला हस्ती हुई : भक्क तुम भी न भाभी

फिर दोनों आगे बढ़ गए और गांव वाले घर के लिए।
घर में घुसते ही रज्जो ने बरामदे में बैठे हुए शिला के ससुर के पाव छूए : प्रणाम बाउजी
शिला के ससुर की नजर रज्जो के चुस्त ब्लाउज में चिपके हुए गदराये जोबनो पर गई और वो सिहर उठा ,


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रज्जो ने वही शिला वाली साड़ी ही पहनी थी , जिसमें उसके दूध बुरी तरह से ठुसे हुए थे । शिला के ससुर के बदन में सरसरी फैल गई और रज्जो ने चुपके से शिला को आंख मारी । तो शिला भी मुस्कुरा कर रज्जो की शरारत को समझते हुए अपने ससुर के पाव छूए और फिर खड़ी होकर अपनी कुर्ती को पीछे से उठा कर अपने कूल्हे पर चढ़ाया ।

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जिससे उसके ससुर की नजर लेगी के उभरी हुई उसके तरबूज जैसे चूतड़ों पर गई और वो थूक गटकने लगा ।

फिर दोनों फुसफुसाती हुई घर में चली गई , और अंदर देखा तो शिला की सास अभी नहाने की तैयारी भी थी । झूले हुए नंगे चूचे और नंगा पेट , कमर में अटकी हुई पेटीकोट ।

रज्जो : प्रणाम अम्मा , बड़ी देर से नहाने जा रही हो
शिला की सास : अरे क्या करु बहु वो मीरा कलमुंही टाइम से आती ही नहीं झाड़ू कटका के लिए इसलिए देर हो जाती है
शिला : ठीक है अम्मा आप नहा लो , हम लोग कपड़े लेने आए थे तो उधर से ही निकल जायेंगे
शिला की सास : अरे एक आध रोज के लिए बहु को यही छोड़ जा , आई है तो चार बात मुझसे भी कर लेगी ।
" आऊंगी अम्मा एक दो रोज में तो रुकूंगी ठीक है " , रज्जो ने दरवाजे पर खड़े शिला के ससुर की परछाई देख कर जवाब दिया ।

शिला : ठीक है अम्मा चलती हु प्रणाम
फिर वो निकल गए कपड़े लेने और कुछ देर बाद वो दोनों अपने घर के आगे से वापस टाउन की ओर जा रहे थे कि रज्जो की नजर घर गई , बरामदे में बैठे हुए शिला के ससुर गायब थे ।

रज्जो : हे दीदी बाउजी कहा गए
शिला : अरे भीतर गए होंगे चलो छोड़ो उनको
रज्जो हस कर : अरे अंदर तो अम्मा नहा रही थी न
शिला : हा तो ?
रज्जो के चेहरे पर फिर से शरारत भरी मुस्कुराहट फैलने लगी ।
शिला आंखे बड़ी कर रज्जो के इरादे भांपते हुए : नहीं मै नहीं जाऊंगी , चलो घर
रज्जो : धत्त चलो न , देखे तो हीही और दरवाजा भी खुला है

रज्जो शिला का हाथ पकड़ कर खींचने लगी और शिला ना नुकूर करती हुई उसके साथ चल दी

धीरे धीरे वो अंदर घर में गए और भीतर देखा तो आंगन खाली था , नल के पास पानी गिरा था और शिला के सास के गिले पैरो को छाप एक कमरे की ओर जाती दिख रही थी

रज्जो उसके फूट प्रिंट की ओर इशारा करते हुए उस कमरे का इशारा : हे उधर देखो हीही

शिला फुसफुसा कर : तुम न पागल हो पूरी
रज्जो खिलखिलाई और धीरे धीरे उस कमरे की ओर बढ़ गई
जैसे ही वो खिड़की के पास गए दोनों की आंखे फेल गई और मुंह पर हाथ रख कर एक दूसरे को भौचक्के निहारने लगे
सामने कमरे में शिला की सास पूरी नंगी होकर लेटी हुई थीं और उसका ससुर ऊपर चढ़ कर हचक हचक कर पेले जा रहा था । शिला की सास कराह रही थी


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शिला की सास : अह्ह्ह्ह्ह मन्नू के बाउजी ओह्ह्ह्ह कितनी जल्दी जल्दी आप गर्म हो जाते हो , फिर से बहु को देखा क्या ?
शिला मुस्कुरा कर रज्जो को देखी और अंदर का नजारा देखने लगी
शिला का ससुर अपनी बीवी के फटे भोसड़े में लंड उतारता हुआ : हा मन्नू की अम्मा , बहु के साथ जो आई उसके जोबन देख कर मेरा बुरा हाल हो गया और बड़ी बहु के चौड़े कूल्हे अह्ह्ह्ह

शिला के ससुर की बातें सुनते ही रज्जो के भीतर से हंसी की दबी हुई किलकारी फूट गई और झट से वो खिड़की से हट गए
और कमरे से शिला के ससुर की कड़क आवाज आई : कौन है ?

शिला और रज्जो एकदम से हड़बड़ा उठी और झटपट घर से बाहर निकल गई
शिला रज्जो का हाथ पकड़ कर : इधर से नहीं , पीछे से चलो , बाउजी जान जायेंगे
रज्जो को भी आइडिया सही लगा तो वो घर के बगल की गली से तेजी से निकल गए ।
कुछ ही देर में शिला का ससुर लूंगी लपेटते हुए बाहर आया मगर उसे कोई नहीं दिखा तो वापस चला गया ।
घर से दूर हो जाने के बाद दोनों के जान में जान आई और दोनों खिलखिला कर हस पड़े ।

शिला : तुम न बड़ी पागल हो , चुप नहीं रह सकती थी हीही
रज्जो : अरे मुझे हसी इस बात की आई कि हमारी वजह से बेचारी तेरी सास की सांस चढ़ने लगती है हाहाहाहाहा
शिला हस्ती हुई : हा लेकिन बाल बाल बचे आज ,
रज्जो : बच तो गए मगर वापस घर कैसे जायेंगे
शिला : अरे उधर बागीचे से भी एक रास्ता है पगडंडी वो आगे सड़क में जुड़ेगा चलो
और दोनों आगे बातें करते हुए बगीचे की ओर निकल गए ।

मुरारी - मंजू

11 बजने वाले थे और मुरारी खाली समय बिस्तर पर बिखरे हुए मंजू के कपड़े खोल खोल कर उसके हिसाब से जो ठीक ठाक नजर आ रहे थे उन्हें अलग कर रहा था बाकी सब एक झोले में ठूस रहा था ।
तभी उसके हाथ में एक जींस आई
लेबल देखा तो 38 साइज कमर वाली जींस थी , साफ था मंजू का ही होगा
मुरारी खुद से बड़बड़ाया : उफ्फ कितना चौड़ा चूतड़ होगा इसमें उसका उम्मम
मुरारी ने जींस की मियानी को मुंह पर रख कर सुंघा और फिर उसको फोल्ड कर दिया ।
तभी कपड़े के ढेर एक चटक नीला रंग का फीता नजर आया , मुरारी ने उसको खींचा तो देखा कि वो तो पतले स्ट्राप वाली ब्रा थी , जिसके cups पर खूबसूरत लैस वाली डिजाइन थी ।
उस मुलायम ब्रा को मुठ्ठी में भर कर उसने अपने सर उठाते लंड पर घिसा : अह्ह्ह्ह मंजू क्या चीज है रे तू उम्मम
तभी मुरारी के मोबाईल पर रिंग हुई ये मंजू का ही फोन था

फोन कर
मंजू : हैलो भाई साहब , मेरा ऑफिस का काम हो गया है , आप आ जाइए
मुरारी : ठीक है , लेकिन आना किधर है

फिर मंजू उसको एक मॉल का पता बताती है और मुरारी घर बन्द कर के ऑटो से निकल जाता है
कुछ ही देर में वो मंजू के पास होता
बड़ी सी 4 मंजिला इमारत और सैकड़ों की भीड़ , इतनी चकाचौंध मुरारी के लिए बड़ी बात नहीं थी । मगर वहा की मॉर्डन सेक्सी कपड़ों में गदराई औरतें देख कर उसका ईमान और लंड दोनो डोल रहे थे और मंजू भी मुरारी के हाव भाव पर मुस्कुराती जब वो उसे टाइट जींस में फूली हुई चूतड़ों को निहारता पाती ।

मंजू : चले भइया


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मुरारी एक मोटी औरत के कुर्ती में झटके खाते चूतड़ को मूड कर निहारता हुआ : हा चलो , यहां तो सब ऐसे ही कपड़े पहनते है क्या ?
मंजू मुस्कुरा कर : जी भइया, बड़ा शहर है तो यहां बहुत कामन है
मुरारी आगे देखा तो एक फैमिली जिसमें 2 औरते और दो लड़के और बच्चे थे । उस फैमिली की सभी औरते टाइट जींस और टॉप में थी ।


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बड़े बड़े रसीले मम्में पूरे बाहर उभरे हुए । सनग्लास लगाए हुए आपस में बातें करते हुए आ रही थी ।

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मुरारी तो टॉप में उसके बड़े बड़े रसीले मम्में देखता ही रह गया ।
मंजू मुस्कुरा रही थी जैसा मुरारी हरकते कर रहा था और तभी मुरारी की नजर मंजू से मिली तो वो झेप कर मुस्कुराने लगा ।
दोनो अब थोड़ा हिचक रहे थे नजरे फेर कर बिना कुछ बोले अंदर एंट्री करते है और अंदर और भी चीजें मस्त थी , दुनिया भर की दुकानें और सबसे बढ़ कर नए उम्र के जोड़े , हाथ पकड़े एक दूसरे से चिपके हुए ।
मंजू : भैया ऊपर चलना पड़ेगा लेडीज सेक्शन ऊपर है
मुरारी : सीढ़ी किधर है ?
मंजू मुस्कुरा कर सामने एलिवेटर की ओर इशारा किया मुरारी की हालत खराब ।
अब होने वाली भयोह के आगे कैसे मना करे , मन मार कर हिम्मत जुटाया और दो तीन प्रयास किया मगर कलेजे से ज्यादा तो पाव कांप रहे थे ।
इतने में दो लड़कियां उसके बगल से निकल कर आगे चढ़ गई और उसी धक्के में मुरारी भी उनके पीछे खड़ा हो गया
मगर जैसे ही वो सीधा हुआ आंखे फट कर चार , सामने वाली जो अभी अभी उसके बगल से आगे निकली थी वो ठीक उसके मुंह के आगे


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क्रॉप टॉप और नीचे कसी जींस , मोटी मोटी मांसल गाड़ पूरा शेप लिए बाहर की ओर निकली हुई ।
मुरारी का गला सूखने लगा और जैसे ही उस लड़की ने मूड कर देखा वो नजरे फेरने लगा , लंड एकदम फड़फड़ाने लगा पजामे में ।
ऊपर पहुंचते ही वो लड़कियां तेजी से दूसरी ओर निकल गई और मुरारी उस लड़की के हिलकोर खाते चूतड़ देख कर अपनी बहु सोनल के बार में सोचने लगा

मंजू : भइया इधर से
मंजू के आवाज पर मुरारी उसके पीछे लेडीज सेक्शन की ओर चला गया ।

मंजू अपने पसंद के कंफर्टेबल कपड़े देखने लगी और मुरारी वहां की औरते
तभी उसकी नजर ट्रॉली लेकर घूमती एक औरत पर गई


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" सीईईई क्या चीज है भाई , इतना बड़ा और गोल " , मुरारी मन ही मन बड़बड़ाया । उसके लंड में सुरसुरी होने लगी
जिस लेन में वो खड़ा था उसी लेन में दूसरी ओर एक मोटी गदराई महिला जो कि टीशर्ट और पैंट में थी , पेंट में उसके बड़े बड़े मटके जैसे चूतड़ों का शेप देख कर मुरारी जैसे खो ही गया ।
उसने बहुत से माल और शहर में घूमा था मगर यहां जैसा माहौल कही नहीं दिखा उसे ।

तभी उसे मंजू का ख्याल आया और उसने कुछ पल के लिए उस महिला के चूतड़ से नजरे हटा दी ।
वो मंजू के साथ ही इधर उधर रह कर देख रहा था , मंजू ने कुछ प्लाजो सेट और दो तीन काटन कुर्ती देखे , उसकी नजर जींस स्टॉक पर थी मगर वो मुरारी की वजह से हिचक रही थी ।

मुरारी : इसके साथ क्या लेना , जींस या फिर लेगिंग्स
मंजू मुस्कुराने लगी : मुझे समझ नहीं आ रहा है ,
मुरारी : तुम तो जींस भी पहनती हो न , तो लेलो । इस बात के लिए बेफिक्र रहो तुम्हे कोई कुछ नहीं कहेगा ठीक है
मंजू मुस्कुरा कर : जी ठीक है

फिर मंजू वहां से दो तीन जींस लेकर ट्रायल रूम की ओर बढ़ गई ।

जींस के स्टॉक के पास खड़े खड़े मुरारी ने साइज देखने लगा और उसकी नजर 4XL size की जींस पर गई और उसके ख्यालों के ममता का नाम आया , मगर बात वही थी कि पता नहीं वो पहनेगी या नहीं ।
इतने में मुरारी का मोबाइल रिंग हुआ देखा तो अमन फोन कर रहा था

फोन पर
मुरारी : हा बेटा
अमन : पापा कहा हो , निकल गए क्या ?
मुरारी : नहीं बेटा , वो तेरी चाची को कपड़े लेने थे और कुछ काम भी था तो आज रुक गया कल निकलूंगा
अमन : अरे वाह फिर से मेरी तरफ से भी चाची के लिए ले लेना , वैसे कैसे कपड़े पहनती है चाची
मुरारी : उम्मम बेटा वो लगभग सभी पहनती है , अभी अभी जींस लेकर गई है ट्राई करने
अमन : अरे वाव , पापा मम्मी के लिए भी लेलो न जींस
मुरारी : बेटा मै भी सोच रहा था और ये भी सोच रहा था कि ( मुरारी एक किनारे गया जहा उसकी आवाज कोई और न सुने फिर वो धीमी आवाज में ) तेरी मां के लिए कुछ जोड़ी फैंसी ब्रा पैंटी भी ले लूं , यहां मॉल में सब मिल रहा है
अमन : हा पापा क्यों नहीं , लेलो न फिर
मुरारी : अरे लेकिन वो लेडीज सेक्शन है उधर मै कैसे जाऊंगा और दूर से देखा तो एक से एक बढ़िया फैंसी सेट थे वहा ।
अमन : अरे तो चाची को बोल दो न ?
मुरारी कुछ सोचता हुआ : उससे!!! ठीक है देखता हूं और बता तू ठीक है
अमन : मै तो एकदम मस्त हू अभी जस्ट उठा हु नहाकर आपको फोन किया है
मुरारी : अभी उठा है ?
अमन : हा पापा रात में वैसे भी यहां किसे नीद आती है हीहीही
मुरारी : सही बेटा मजे कर
अमन हंसता हुआ : पापा आप कबतक चाची के घर पहुंचेनंगे ।
मुरारी : अभी एक दो घंटे बाद
अमन : अच्छा, वो मैने आपके व्हाट्सअप पर कुछ भेजा है हीही, फ्री होना तो देख लेना पसंद आएगा आपको
अमन की बात सुनते ही मुरारी के तन बदन में सरसरी उमड़ी और उसके पेट में अजीब सी हड़बड़ाहट होने लगी : क्या , क्या भेजा है बता न
अमन मुस्कुरा कर : आप देख लेना , आपकी लाडली बहु की वीडियो है , ओके मै रखता हु बाय पापा

अमन ने फोन काट दिया और यहां मुरारी एकदम से तड़प उठा , उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे , उसने झट से मोबाईल खोला तो देखा अमन ने 4 5 वीडियो और फोटो भेजे थे । तस्वीरें देखते ही मुरारी ने झट से मोबाईल लॉक कर दिया ।
लंड एकदम फड़फड़ाने लगा सुपाडे में चुनचुनाहट होने लगी , कुर्ते के नीचे हाथ घुसा कर पजामे के ऊपर से उनसे अपना सुपाड़ा मिज़ा। फिर वो चेंजिंग रूम की ओर देखा , मंजू को भी समय लग रहा था , उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे कहा जाए , बाकी से चेंजिंग रूम भी इंगेज दिख रहे थे और ऐसे में उसको बाथरूम का ख्याल आया ।
वो लपक कर बाहर आया और बाथरूम खोजने लगा , इधर उधर भागने पर उसे टॉयलेट बोर्ड दिखा और लपक कर वो उधर निकल गया ।
तेजी से चलते हुए वो बाथरूम में घुस गया और टॉयलेट सीट पर बैठ कर अपनी सास को आराम देने लगा
उसके पैर थरथर कांप रहे थे पेट में अजीब सी हड़बड़ाहट मची थी ।
गहरी सास लेते हुए उसने दुबारा से मोबाइल खोला तो मुरारी का मुंह भी खुला का खुला रह गया ।


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मैचिंग ब्रा पैंटी में दोनों बहनों में बड़े ही कामोत्तेजक लुक दिए थे

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उनके झूलते नंगे बूब्स और बाहर निकली हुई नंगी गाड़ देख कर मुरारी पजामे के ऊपर से ही अपना लंड मसलने लगा : अह्ह्ह्ह्ह बहु कितनी सेक्सी है उम्मम उफ्फ इसके गुलाबी निप्पल और ये लचीली गाड़ उम्मम जी कर रहा है खा जाऊ अह्ह्ह्ह
मुरारी टॉयलेट सीट पर बैठ कर अपना लंड बाहर निकलने लगा
तभी अगली तस्वीर में दोनों बहने अमन का मोटा लंड पकड़े हुए हस रही थी और एक दूसरे को निहार रही थी ।

किसी में सोनल अमन का लंड चूस रही थी किसी में निशा , मुरारी अपना लंड पकड़ कर उसको भींचे जा रहा था और अगली चीज एक वीडियो थी
जैसे ही मुरारी ने उसे क्लिक किया वो वीडियो तेज आवाज में शुरू हो गई , ये वही शॉर्ट ब्लॉग थी जिसे सोनल ने शूट किया था
सोनल की तेज आवाज आते ही मुरारी ने झट से स्पीकर पर हाथ रखते हुए आवाज कम किया और वीडियो में जो देखा उसकी आंखे फटी की फटी रह गई


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और जब वीडियो में सोनल ने बोला " कोई है जो मुझे चोदना चाहेगा " मुरारी का लंड एकदम अकड़ गया , आड़ो में पंपिंग होने लगी
मुरारी अपनी बहु की कामोत्तेजना भरे हरकते देख कर पागल हो गया था , वो जोर से लंड भींचे जा रहा था और सोनल का नाम लेके बडबडा रहा था : अह्ह्ह्ह्ह मेरी प्यारी बहु मै हु न अह्ह्ह्ह तुम्हारे पापाजी तुमको चोदेंगे बेटा आह्ह्ह्ह बहु उम्ममम अह्ह्ह्ह

मुरारी चरम पर था मगर ऐन मौके पर मंजू ने उसको फोन घुमाने लगी
मुरारी : ओह्ह्ह्ह यार , क्या करु
उधर मंजू लगातार मुरारी को काल किए जा रही थी , मुरारी लंड झाड़ना चाहता था मगर मंजू ने उसका फ्लो बिगाड़ दिया।
मन मारकर अपना लंड पजामे में डाल कर बाहर आ गया , अभी भी उसके लंड की अकड़न जस की तस थी , लपक कर वो मंजू की ओर गया ।

मंजू : कहा चले गए थे
मुरारी थोड़ा हिचक कर : वो मै थोड़ा फ्रेश होने ... हो गया तुम्हारा
मंजू : जी , आप भी कुछ ले लीजिए न
मुरारी : अह् मुझे मेरे मतलब का क्या मिलेगा
मंजू : अरे आप भी टीशर्ट जींस ले लीजिए न , मुझे उनके लिए भी लेनी है
मंजू लजाते हुए बोली
मुरारी समझ गया कि वो मदन के लिए भी खरीदारी करना चाहती है ।
मुरारी : ठीक है भई जिसमें तुम्हारी खुशी , अब मदन के लिए लोगी तो मेरे लिए भी एक ले लेना साइज तो एक ही हमारा

मंजू : अच्छा सुनिए , भाभी की साइज क्या होगी
मुरारी हंसकर : तो क्या उसके लिए जींस लोगी
मंजू बड़े ही कैजुअली होकर बोली : हा , अगर वो पहनती हो तो !
मुरारी हस कर : क्यों भाई सिर्फ मुझे ही ये सजा क्यों , अमन की मां भी परेशान हो तंग जींस पहन कर हाहाहाहाहा , उसको 4XL के कपड़े ही होते है ।
मंजू मुस्कुरा: जी ठीक है आइए पहले उनके लिए ही लेती हूं
फिर मंजू मुरारी के साथ ममता के लिए दो जींस , लांग कुर्ती और दो सूट लिए
मुरारी अभी भी हिचक रहा था कि कैसे आखिर वो ममता के लिए ब्रा पैंटी ले । बार बार उसकी नजर अंडरगार्मेंट एरिया में जा रही थी ।

मंजू : चले भइया , जेंस वाला फ्लोर ऊपर है
मुरारी थोड़ा अटक कर : हा चलो , वो जरा मै सोच रहा था । खैर छोड़ो चलो चलते है ।
मंजू : अरे क्या हुआ कहिए न , कुछ दूसरा पसंद आया क्या भाभी जी के लिए, वो देख लेती हु न

मुरारी : नहीं दरअसल , नहीं कुछ नहीं चलो छोड़ो , वो अपना ले लेगी जब शहर जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा कर : अरे भैया बताइए न , क्या चाहिए भाभी के लिए
मुरारी थोड़ा नजरे फेर कर : दरअसल अमन की मां के नाप के अंडर गारमेंट नहीं मिलते चमनपुरा में , मुझे लगा यहां उसके नाप के कपड़े है तो शायद वो सब भी मिल जाए ।

मंजू मुस्कुरा रही थी थोड़ी खुद भी लजा रही थी ।
मुरारी : तुमने लिए क्या अपने लिए ?
मंजू ने शॉक्ड होकर मुस्कुराते होठों से आंखे बड़ी कर मुरारी को देखा ।
मुरारी बड़बड़ाता हुआ : सॉरी ये मै क्या पूछ रहा हूं , प्लीज चलो अब

मंजू ने एक गहरी सास ली और आगे बढ़ते मुरारी का हाथ पकड़ लिया और इशारे से उधर चलने को कहा बिना बोले ।

मंजू का स्पर्श पाकर मुरारी एकदम से चौक गया और मंजू जबरन उसे अंडर गारमेंट वाले काउंटर की ओर ले गई ।

वहा पर कई लड़कीया स्टॉफ में थी और दूसरे भी नवयुवा कपल वहां साथ में खरीदारी कर रहे थे ।

स्टाफ : जी मैम क्या दिखाऊं
मंजू ने बिना कुछ बोले मुरारी की ओर देखा
मुरारी हिचक कर : जी वो बढ़िया फैंसी सेट में अंडर गारमेंट चाहिए
स्टाफ : जी मैम आपका साइज क्या रहेगा
जैसे ही स्टाफ ने मंजू से उसका साइज पूछा दोनों मुंह फेर हसने लगे ।
मंजू ने आंखो से मुरारी को इशारा किया कि वो स्टाफ की बातों का जवाब दे ।
मुरारी थोड़ा असहज होकर : जी वो 44DD की ब्रा और 48 की पैंटी दिखाइए
ममता का साइज सुनकर मंजू और वो स्टाफ दोनों ताज्जुब हुए । मंजू कुछ देर तक मुस्कुराती रही जबतक कि वो स्टाफ कुछ बॉक्स ब्रा और पैंटी के निकाल कर नहीं लाई ।
स्टाफ : सर आपके साइज बड़े एक्सक्लूसिव है तो हमारे पास लिमिटेड ब्रा पैंटी है , इन्हें देखे आप

वो स्टाफ कुछ ब्रा पैंटी खोलकर काउंटर पर बिखेरने लगी और मंजू थोड़ा नजरे चुराने लगी ।
मुरारी उनमें से एक ब्रा जिसके cups विजिबल दिख रहे थे उसे चूना तो मंजू ने मुंह फेर कर मुस्कुराने लगी और मुरारी ने उसे छोड़ दिया और एक फूली कवर ब्रा देखने लगा ।

लेकिन उस ब्रा के साथ जो मैचिंग रंग की पैंटी थी वो एक पतली थांग जैसी थी । मुरारी को समझ नहीं आ रहा था । पसंद तो उसे दोनों आ रहे थे ।

स्टाफ : क्या हुआ सर कोई पसंद आए इसमें से
मुरारी : अह मुझे तो समझ नहीं आ रहा है
मंजू ने मूड कर मुरारी को देखा और उसके करीब होकर बोली : भाभी को कैसे पसंद है
मुरारी मुस्कुराने लगा और धीरे से उसकी ओर झुक कर कान में बोला : वहा उसके नाप की मिलती नहीं तो वो नीचे कभी कभार ही पहनती है ।

मंजू को अजीब लगा मगर वो मुस्कुराने लगी
मुरारी : तुम्हे कौन सा सही लग रहा है , दो सेट फाइनल कर दो
मंजू ने आंखे उठा कर मुरारी को देखा तो मुरारी मिन्नते करता हुआ नजर आया ।
मंजू ने मजबूरी में एक लेस वाली फैंसी और दूसरी सिंपल फूली कवर ब्रा उस थांग पैंटी के साथ फाइनल कर दी

वो स्टाफ दोनों को अजीब नजरो से देख रही थी वहां फिर जेंस वाले फ्लोर पर उन्होंने शॉपिंग की और फिर बिलिंग के लिए निकल गए ।


बिलिंग काउंटर जब मुरारी बिलिंग कराने लगा तो उसकी ट्रॉली में दो जोड़ी और ब्रा पैंटी निकल आई
मुरारी : एक मिनट भाई साहब , अंडरगार्मेंट के दो ही सेट होंगे , लगता है गलती से आ गया होगा

मंजू जो उसके बगल में खड़ी थी वो परेशान हो उठी इससे पहले वो बिलिंग स्टाफ उसके प्रोडक्ट को कैनसिल करता वो बोल पड़ी : अरे वो मैंने रखे है ?
मुरारी ने जैसे ही मंजू की आवाज सुनी उसको अपनी गलती समझ आई और बिलिंग स्टाफ वापस से सारी बिलिंग करने लगा ।

फिर मुरारी ने सारे पेमेंट किए ।
वहा से निकल कर दोनों ऑटो से मंजू के घर के लिए निकल गए ।
रास्ते भर मंजू के चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रही

मुरारी समझ रहा था आज मंजू की नजर में उसकी खूब किरकिरी हुई है
मुरारी : अब बस भी करो भई , मुझे क्या पता था कि वो तुमने लिए थे पहले ही ।
मंजू हंसने लगी : सॉरी
मुरारी भी मुस्कुराने लगा


वही इनसब से अलग रंगीलाल खड़ी दुपहरी में अपने ससुराल पहुंच गया था ।
बरामदे में बनवारी के कमरे के बाहर लगी कुर्सी पर बैठे हुए घर का जायजा ले रहा था और तभी सामने से उसकी खूबसूरत गदराई हुई सलहज सुनीता साड़ी का पल्लू पूरे बरामदे में लहराते हुए हाथों में जलपान का ट्रे लिए आई और जैसे ही उसने रंगीलाल के आगे टेबल पर ट्रे रखा


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बिना पिन की साड़ी का आंचल उसके सीने से सरक कर कलाई में आ गया और कसे चुस्त ब्लाउज में भरे हुए मोटे मोटे मम्मे झूलते हुए रंगीलाल को ललचाने लगे ।



जारी रहेगी ।
कहानी पर पाठकों की प्रतिक्रिया , व्यूज के हिसाब से बहुत कम मिल रही है ।
कहानी पर लेट अपडेट का कारण आप सभी कम प्रतिक्रियाए ही है ।
कृपया पढ़ कर समुचित रिप्लाई जरूर किया करे ।
धन्यवाद
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
 

Sanju@

Well-Known Member
5,007
20,093
188
💥 अध्याय 02 💥
UPDATE 04

प्रतापपुर


" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।


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सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।


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दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई

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रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।

इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा

रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।

रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा

रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा

बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है

तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया

रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।

बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा

शिला के घर

" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।

रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।

रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था

रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।


वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई


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और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे

रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब

रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।

रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।

रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार


चमनपुरा

कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।


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कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!

एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!

तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।

कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस

फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।

कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।


कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही

कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?

कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।

फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया

रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी

रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क

रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से

रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।

रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।


वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।

: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।

चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।

राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।

चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।

राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा

राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू

चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।

चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।

अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से

राज ने फोन पिक किया

: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।



मुरारी - मंजू


दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई

मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया

फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।

ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।

फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी

मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।


जारी रहेगी
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
 

Coolboiy

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💥 अध्याय 02 💥
UPDATE 04

प्रतापपुर


" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।


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सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।


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दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई

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रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।

इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा

रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।

रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा

रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा

बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है

तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया

रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।

बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा

शिला के घर

" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।

रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।

रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था

रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।


वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई


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और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे

रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब

रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।

रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।

रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार


चमनपुरा

कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।


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कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!

एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!

तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।

कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस

फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।

कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।


कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही

कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?

कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।

फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया

रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी

रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क

रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से

रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।

रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।


वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।

: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।

चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।

राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।

चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।

राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा

राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू

चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।

चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।

अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से

राज ने फोन पिक किया

: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।



मुरारी - मंजू


दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई

मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया

फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।

ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।

फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी

मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।


जारी रहेगी
Bahut khoob likha hai, murari utsuk behta hai manju ke size jaane ko...aah maza aayega agle update mai
 
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