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Incest शरीफ बाप और उसकी शैतान बेटी

Devil 888

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लेकिन कोई प्लान के बारे में मैं सोच रही थी और आखिरकार दिमाग में एक प्लान आ ही गया।
मैंने सोच लिया कि इस प्लान को आज ही मौका दूंगी … मैं ज्यादा दिन इंतजार नहीं करूंगी।
क्योंकि जब तक नानी हैं तब तक मम्मी का ध्यान उनकी तरफ ज्यादा रहेगा, हमारे और पापा मेरे पास पूरा टाइम रहेगा अपना काम करने का!


अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी।

शाम को पापा ऑफिस से करीब 6 बजे तक आ गए और रोज की तरह चाय वगैरह पी कर टीवी देखने बैठ गए।

बाहर छोटा सा लॉन था, मम्मी और नानी शाम में अक्सर वही बैठ जाती थी.
मैं भी वही उनके साथ बैठ जाती थी.

इधर-उधर की बात करते-करते करीब 7 बज गए.
मम्मी और नानी दोनों अंदर आ गई और मम्मी रात के खाने की तैयारी करने लगी।

मैं ऊपर अपने कमरे में आकर पढ़ने लगी और 8 बजे का इंतजार करने लगी।

जैसे-जैसे टाइम पास आ रहा था … मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।
हालांकि मुझे डर नहीं लग रहा था बस चूंकि अभी तक तो सब कुछ नींद का बहाना कर के हो रहा था.

मगर आज जो मेरा प्लान था उसमें ना तो आंख बंद करने का नाटक करना था और ना ही नींद में सोने का नाटक … जो कुछ भी होना था, वह खुलकर होना था।
इसलिए थोड़ी सी घबराहट और एक्साइटमेंट हो रही थी।

खैर … 8.30 बजने वाले थे और मैंने तैयारी शुरू कर दी।

मैंने घुटनों तक की स्कर्ट पहन ली जो मैं अक्सर घर में पहनती थी और ऊपर टी-शर्ट डाल लिया।
मैंने अंदर पैंटी और ब्रा दोनों पहनी।
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जब 8.30 बज गए तो स्कूटी की चाभी उठाई और कमरे से निकल कर नीचे आ गई।

नीचे मम्मी रसोई में थीं और पापा अभी भी टीवी देख रहे थे.

पापा रोज की तरह लुंगी और कुर्ता पहनने हुए थे.

मैंने नीचे जाते ही मम्मी से कहा- मम्मी, मुझे एक ज़रूरी किताब लेने अभी मार्केट जाना है।

इस पर मम्मी हल्का सा नाराज़ होते हुए बोली- इस समय कौन सी किताब की ज़रूरत पड़ गई तुम्हें?
मैंने कहा- अरे मम्मी, अभी फोन आया है एक दोस्त का कि कल एक प्रैक्टिकल होना है कॉलेज में! हमें जाना जरूरी है और मेरे पास उसकी किताब नहीं है। तो वह मुझे अभी लेनी होगी. अभी 8.30 बज रहे हैं, दुकानें खुली होंगी।

मम्मी बोली- ठीक है, अकेली मत जाओ, पापा को भी साथ लेती जाओ।

मैं तो बस यही चाह रही थी कि मम्मी खुद बोलें कि पापा के साथ जाओ.

उधर पापा भी हमारी बातें सुन रहे थे।

मैं बोली- ठीक है।
और ये कहकर रसोई से बाहर निकाल कर स्कूटी की चाबी पापा को देते हुए उनसे बोली- पापा, मेरे साथ मार्केट चलिये … एक बुक लेनी है।

पापा बोले- ठीक है, चलो!
यह कह कर वे अपने कमरे की तरफ जाने लगे।

मैंने कहा- कहां जा रहे हैं?
तो वे बोले- अरे कपड़े चेंज कर लूं!
मैंने कहा- जितनी देर में आप कपड़े चेंज करेंगे, उतनी देर दुकान बंद हो जायेगी। ऐसे ही चलिये, रात में कौन देख रहा है।

दरअसल मेरा प्लान ही था पापा को लुंगी में ले चलने का!

पापा बोले- ठीक है, चलो।

फिर हम दोनों बाहर आ गये।

मैंने पापा को स्कूटी की चाभी दी।
स्कूटी स्टार्ट होने पर मैं पीछे बैठ गई, मैं उनके पीछे ऐसे बैठी कि मेरी चूची उनकी पीठ से चिपक गई।
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कॉलोनी की सड़क में थोड़े गड्ढे थे तो उनमें जैसे ही स्कूटी जाती तो मैं थोड़ा जानबूझकर झटके के साथ पापा की पीठ पर अपनी चूचियों को पूरा चिपका देती और अपना हाथ उनकी जाँघ पर रख देती थी।

खैर … जैसे ही हम कॉलोनी से निकल कर मेन रोड पर आये तो मैंने पापा से कहा- पापा, मैं स्कूटी चलाऊँ आप पीछे बैठ जाइये।
पापा पहले थोड़ी हिचकिचायें और बोले- अरे, मैं चल रहा हूँ ना!

मुझे लगा कि वे मेरी चूचियां जो उनकी पीठ से चिपकी थी उनका मजा नहीं छोड़ना चाह रहे थे.
मगर मेरा प्लान कुछ और था।

मैंने कहा- प्लीज पापा मैं चलाऊंगी।
पापा फिर बोले- अरे देर हो रही है, स्पीड में चलकर ले चलूंगा ताकि दुकान बंद होने से पहले पहुंच जाएं।

शायद पापा को अभी भी लग रहा था कि मैं किताब लेने के लिए ही आई हूं.

मगर मैं ज़िद करने लगी।

इस पर पापा बोले- ठीक है, लो तुम्ही चलाओ।
ये कह कर वे स्कूटी से उतरने लगे.

उससे पहले ही मैं तेजी से स्कूटी से उतर गई और उनसे बोली आप मत उतरिए, पीछे खिसक जाइए मैं आगे बैठ जाऊंगी।
वे थोड़े हिचकिचा रहे थे, बोले- नहीं, तुम बैठी रहो, मैं उतर कर पीछे आ जाता हूं।

मगर तब तक मैं उतर चुकी थी और आगे आते हुए बोली- आप खिसक जाएं पीछे!
पता नहीं क्यों … पापा थोड़े नर्वस हो रहे थे पीछे खिसकने में!
मगर मेरे जिद करने पर वे स्कूटी पर बैठे बैठे ही पीछे खिसक गए।

मैं आगे आकर स्कूटी की सीट पर जानबूझ कर अपने कमर को ऊपर उठाए हुए थोड़े पीछे खिसक कर ऐसे बैठी कि मेरी गांड पापा के लंड से चिपक जाए।
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मगर मैं जैसे ही इस तरह बैठी तो मैं सारा माजरा तुरंत समझ गई कि पापा क्यों पीछे बैठने में हिचकिचा रहे थे।

दरअसल शायद पापा लुंगी के नीचे अंडरवियर नहीं पहने थे और मेरी चूचियों को अपनी पीठ पर चिपकाने से वे उत्तेजित हो गई थी और उनका लंड खड़ा हो गया था।
क्योंकि जैसे ही मैं अपनी गांड उठाकर पीछे होकर बैठी तो उनका खड़ा लंड मेरी गांड में छूने लगा था।

मैंने सोचा कि चलो मेरा थोड़ा काम आसान हो गया।
मैं स्कूटी चलाने लगी।

पापा का लंड मेरी गांड पर चिपक रहा था और मैं भी जानबूझ कर अपनी गांड को उनके लंड पर और जोर से दबा रही थी.
मैंने स्कूटी की स्पीड एकदम धीमी कर रखी थी और आराम से मजे लेकर चल रही थी।

रात की ठंडी हवा में अपने पापा के लंड को गांड पर महसूस करते हुए स्कूटी चलाने में अलग ही मजा आ रहा था।
मेरी गांड से सटकर पापा का लंड शायद और भी खड़ा हो गया था क्योंकि मुझे पहले से ज्यादा उसकी चुभन महसूस हो रही थी।

एक जगह रास्ते में स्पीड ब्रेकर आया तो मैंने जल्दी चलते हुए हल्का सा अपनी गांड को सीट से ऊपर उठाया और फिर धीरे से अपने कमर को पीछे कर ऐसी बैठी कि पापा का लंड अब मेरी गांड के नीचे आधा दबा हुआ था.
हल्का सा भी झटका लगने पर मैं अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ देती थी।

रास्ते में रेलवे ओवरब्रिज के ऊपर चढ़ने के बजाये मैं उसके नीचे से स्कूटी ले जाने लगी।
तो पापा चौंकते हुए बोले- अरे ओवरब्रिज से क्यों नहीं चल रही हो बेटा. नीचे तो अंधेरा होगा और हो सकता है ट्रेन का टाइम होने से गेट भी बंद हो।

दरअसल मार्केट हमारी कॉलोनी से थोड़ी दूरी पर था बीच में एक रेलवे का ओवरब्रिज भी था जिसके पार करने के बाद कुछ दूर पर मार्केट शुरू होती थी. ओवरब्रिज के नीचे से मुश्किल से कोई इक्का-दुक्का ही आता जाता था। वही रात में क्योंकि अंधेरा बहुत होता था इसलिए कोई नहीं जाता था।

मैं थोड़ा हंसती हुई बोली- तो क्या हुआ पापा, थोड़ा इंतजार कर लेंगे. कौन सी जल्दी है।

असल में मैं पापा को एहसास दिलाना चाह रही थी कि मैं बुक लेने नहीं कुछ और करने आई हूं.

पापा बोले- और शॉप बंद हो गई तो?
मैं बोली- अरे मेरा तो स्कूटी से घूमने का मन था तो मैं चली आई. कौन सा मुझे कोई किताब लेनी है।

पापा बोले- अरे यार, तो पहले क्यों नहीं बोला? मैं टेंशन में था कि कहीं शॉप बन्द न हो जाए।
इस पर मैं थोड़ा कमेंट करते हुए बोली- हां टेंशन तो मैं महसूस कर रही हूं।

अब मैंने थोड़ा मजे लेना शुरू कर दिया था।
मेरा इशारा उनके खड़े लंड की तरफ था.

पापा समझ गए कि मेरा इशारा किधर है।
तो वे भी थोड़ा मजे लेते हुए बोले- अरे तो तुम्हें तो दे रही हो वह टेंशन!

इस पर हम दोनों थोड़ा हंस दिए।

अब मैं और पापा धीरे-धीरे खुलने लगे थे। वो समझ गए कि आज कुछ तो अच्छा होने वाला है, मैं कुछ शरारत करने वाली हूँ. पर वो क्या है यह तो पापा अभी तक समझ नहीं पाए थे. पर क्योंकि वे भी मुझे चोदने को तरस रहे थे तो उन्होंने भी सोचा की जो भी होगा अच्छा ही होगा. वैसे भी मेरी गांड में लण्ड लगा कर उन्हें मजा आ रहा था. और अगर हम दोनों फ्लाई ओवर से जाते तो वहां तो बहुत लोग और भीड़ होती है. तो वहां तो पापा मेरी गांड में लंड रगड़ने का मजा नहीं ले पाते तो उन्होंने भी नीचे के पुराने रास्ते से जाने का सोच. क्योंकि उस रास्ते से टाइम कोई आता ही नहीं था. तो पापा ने सोचा कि वहां रास्ते में उन्हें मेरी गांड में लण्ड रखने का मौका मिलेगा.
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स्कूटी लेकर जैसे ही मैं ओवरब्रिज के नीचे रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंची तो देखा कि गेट बंद था।
शायद कोई ट्रेन आने वाली थी।
मैं तो बस यही चाह रही थी।

मैंने कहा- ओह … गेट तो बंद है.
पापा बोले- कोई नहीं, थोड़ा इंतज़ार कर लेते हैं.

मैं बस हल्का सा मुस्कुरा कर चुप रही।

फिर मैं स्कूटी को ओवरब्रिज के ठीक बीच में एक पिलर के पास लेकर चली गई और ठीक उसके पीछे डबल स्टैंड पर स्कूटी को खड़ा कर दिया। यहाँ पर कुछ झाड़ियां भी थी. तो उनकी ओट में स्कूटर खड़ा कर देने से वो छुप गया. अब यदि कोई आ भी जाता तो उसे हम दिखाई दे ही नहीं सकते थे.

यह मेरे प्रोग्राम और मेरी चाल के लिए बहुत ठीक था. पापा चुप थे और बस मुझे देख रहे थे. वे अभी तक भी मेरी चाल नहीं समझ पाए थे.

बाहर की तरफ थोड़ी बहुत चाँद की रोशनी आ रही थी मगर यहाँ अँधेरा था और जगह भी ऐसी थी कि कोई अचानक से गुजर भी गया तो हम दोनों को नहीं देख सकता थे। हम दोनों वापस उसी तरह स्कूटी पर बैठ गए थे। पापा का लंड अभी भी मेरी गांड से सटा हुआ था।

रात के सन्नाटे में महौल एकदम सेक्सी हो रहा था … सच कहूं तो मेरी चूत पनियाने लगी थी.

अचानक मैंने बैठे-बैठे आगे झुक कर अपने सिर को स्कूटी पर आगे हेडलाइट पर रख दिया और अपनी गांड को थोड़ा जानबूझ कर उठा दिया।

अब पापा का लंड मेरी गांड से सटा नहीं था मगर स्कर्ट के नीचे मेरी चूत ठीक पापा के लंड के सामने थी।

पापा अब तक समझ गए थे कि आखिर मैं क्यों आई हूं।
वे भी कुछ देर रुके रहे फिर थोड़ा खिसक कर मेरी गांड के पास आ गये और अपने लंड को स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी गांड से सटा कर बैठ गये।
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मैं समझ गयी कि पापा गर्म हो रहे हैं और अपनी बेटी की गांड में लैंड लगाने का मौका ढूंढ रहे हैं. हम दोनों बाप बेटी के बीच इतना कुछ हो चूका था की पापा की हिम्मत बढ़ गयी थी. पापा ने मुझे थोड़ा आगे होने को कहा. मैं जानती थी कि पापा चाहते हैं की मैं जब आगे होने के लिए अपने चूतड़ उठाऊं तो कुछ शरारत कर सकें तो मैंने अपनी गांड थोड़ी ऊपर उठाई. पापा ने झट से मेरी स्कर्ट पीछे से ऊपर कर दी. अब मेरी गांड बिलकुल नंगी थी बस मेरी छोटी सी पैंटी मेरी गांड पर थी. पापा ने भी अब तक होंसला करके अपना लण्ड अपनी अंडरवियर से बाहर निकाल लिया था और उसे अच्छे से मेरी गांड पर लगा दिया.

मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी जो मेरे पापा ने भी रात के सन्नाटे में साफ साफ सुनी.

वे जानते थे कि मैं इस सब के लिए तैयार हूँ. तो उन्होंने मेरी गांड और मेरे नंगे चूतड़ों पर अपना लौड़ा घिसना शुरू कर दिया. उनके लण्ड अब तक बिलकुल सख्त हो चूका था और मुझे अपने चूतड़ों पर गर्म गर्म महसूस हो रहा था।

हम दोनों बाप बेटी को बहुत मजा आ रहा था.
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मैंने तो आज ठान ही लिया था कि इससे पहले कि पापा रात को मम्मी को चोद लें मैं अपना काम तमाम करवा लेना चाहती थी.

15-20 सेकंड तक ऐसे ही रहने के बाद मैं अचानक उठी और स्कूटी से उतरते हुए बोली- पापा मुझे पेशाब लगी है।
पापा बोले- यहां पास में कर लो, अंधेरा है, कोई देखेगा नहीं!
और बोले- ज्यादा दूर मत जाना।
मैंने कहा- ठीक है पापा!

और फिर मुश्किल से 4-5 कदम आगे बढ़ कर स्कर्ट उठाई और बैठ कर पेशाब करने लगी।
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मैं जानबूझकर पास में ही पेशाब करने लगी. मैंने अपनी पैंटी नीचे करके पेशाब करने की बजाए अपनी पैंटी पूरी ही उतार दी और पापा को देते हुए कहा

"पापा यह मेरी पैंटी जरा पकड़ लीजिये मैं पेशाब कर लूँ. कई बार अँधेरे में ठीक से दिखाई नहीं देता तो पेशाब करते हुए पैंटी गीली हो जाने का डर रहता हैं. अब हम लड़कियों के पास आप पुरषों जैसे पेशाब करने की पाइप तो है नहीं जो ऐसा खतरा न हो की पैंटी गीली हो जाएगी. "

पापा मुस्कुरा पड़े. और मेरी पैंटी ले ली। मैं पेशाब करने के लिए उनके पास में ही दूसरी ओर मुंह करके बैठने लगी और ऐसा करते हुए मैंने अपनी स्कर्ट पीछे से पूरी उठा कर बैठी. जिस से पापा को चाँद की रौशनी में मेरी गांड चांदी की तरह चमकती हुई दिखाई दे रही थी. मैं अपनी टांगें पूरी तरह से खोल कर पेशाब करने को बैठी ताकि इस पोज़ में मेरी चूतड़ खूब खुल जाएँ और पापा को अच्छे से सब कुछ दिखाई दे.

पापा को अपने सामने जन्नत का साक्षात् नजारा दिखाई दे रहा था.
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पापा मेरी उतारी हुई पैंटी को अपनी नाक पर रख कर सूंघने लगे और उनकी नजरें मेरी नंगी गांड पर ही थी.

रात के सन्नाटे में चूत से पेशाब की निकल रही छरछराहट दूर तक जा रही थी जो पापा को भी साफ सुनाई दे रही थी।

पेशाब कर के उठने के बाद मैं स्कर्ट से चूत को पौंछते हुए पापा के पास आकर खड़ी हो गई।

फिर अचानक मैंने नाटक करते हुए हल्का सा चिल्लाते हुए बोली- ऊऊऊ ऊइइइइइ इइ इइइइ इइइ!
और तेजी से अपनी स्कर्ट को थोड़ा सा उठा कर ऐसे झाड़ने लगी जैसे कोई कीड़ा घुस गया हो।

पापा को तो लग रहा था जैसे इसी के इंतजार मैं बैठे थे।
वे तेजी से स्कूटी से उतर कर मेरे सामने आकर खड़े हो गए और स्कर्ट की तरफ देखते हुए पूछे- क्या हुआ बेटा … कुछ काट लिया क्या?
मैंने कहा- नहीं पापा, मुझे लगा कि स्कर्ट में कोई कीड़ा घुस गया था. मगर निकल गया है शायद!

पापा ने तुरंत कुर्ते की जेब से मोबाइल निकाला और उसकी टॉर्च जलाते हुए स्कर्ट पर देखने लगे और बोले- अरे रुको बेटा, देखने दो कहीं अभी निकला न हो तो!
शायद पापा तो इसी बहाने कुछ और करना चाह रहे थे।
हालांकि मैं भी मन ही मन यही चाहती थी।

मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी और मेरी चूत में इतनी कुलबुलाहट हो रही थी कि बस चाह रही थी या तो उंगली डाल कर चूत का पानी निकाल दूं या फिर पापा का लंड पकड़ कर चूत से रगड़ लूँ।

फिर भी मैंने थोड़ा नाटक करते हुए कहा- अरे रहने दीजिए पापा … हो सकता है निकल गया हो।
आज यहाँ रात के अँधेरे में बाप बेटी के बीच कुछ होने की भूमिका बन चुकी थी.

पापा अब कहां मानने वाले थे … वे मेरे कंधों को पकड़ कर पीछे स्कूटी का सहारा देकर खड़ा करते हुए बोले- तुम आराम से खड़ी हो जाओ. मैं मोबाइल से ठीक से देख लेता हूं कि कीड़ा निकला या नहीं!
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मैं समझ गई कि पापा इसी बहाने मेरी चूत देखना चाह रहे हैं।
मैंने मन में सोचा कि मतलब आग उधर भी उतनी ही लगी है।

फिर मैंने भी ज्यादा नाटक नहीं किया और स्कूटी का टेक लेकर खड़ी हो गई।

पापा ने लुंगी को अपने घुटनों तक ऊपर उठा लिया और मेरे आगे घुटनों के बल बैठ गये।
वे मुझसे इतना सट कर बैठे थे कि अगर मैं थोड़ा सा भी अपने कमर को आगे कर देती तो मेरी चूत स्कर्ट के ऊपर से ही उनके मुंह से सट जाती।

इसके बाद उन्होंने पहले तो स्कर्ट के ऊपर ही देखने का नाटक किया और फिर धीरे से एक हाथ से मेरी स्कर्ट को ऊपर उठाते हुए मुझसे बोले की- बेटा, जरा इसे पकड़ो तो … मैं देख लूं कि कहीं अंदर तो नहीं बैठा है।

मैंने स्कर्ट को नीचे से पकड़ कर धीरे करके पूरा ऊपर उठा दिया।
अब मेरी पाव रोटी जैसी फूली नंगी चूत पापा के मुंह के ठीक सामने थी।
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पापा भी मोबाइल की रोशनी में मेरी चूत को निहारे जा रहे थे।

तभी मैंने पापा से कहा- पापा, प्लीज मोबाइल का टॉर्च बंद कर दीजिए कोई देख लेगा। हाथ से छूकर देख लीजिए कि कीड़ा बैठा तो नहीं है।
एक तरीके से मैं पापा को अपनी चूत को छूने और सहलाने का इशारा कर रही थी।

पापा भी समझ गए कि मैं क्या चाह रही हूं और वे भी यहीं चाह रहे थे।

उन्होंने मोबाइल का टॉर्च बंद कर अपने कुर्ते की जेब में रख लिया और फिर अपने हाथों को मेरी जाँघ पर आगे-पीछे और ऊपर-नीचे फेरने लगे।
धीरे-धीरे जाँघों को सहलाते हुए वे उन्होंने अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया।

जैसे ही पापा ने अपना हाथ को चूत पर रखा, मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई।

मेरा चेहरा कामुकता से लाल हो रहा था; शरीर एकदम गर्म हो गया था।
मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि मैंने स्कर्ट को हाथ से छोड़ दिया.
अब पापा का सिर मेरी स्कर्ट के अंदर था।

फिर मैंने अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए अपनी कमर को हल्का सा आगे कर दिया।
अब मेरी चूत पापा के मुंह के इतने पास थी कि मैं उनकी गर्म-गर्म सांसों को अपनी चूत पर महसूस कर रही थी।
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पापा भी मेरा इशारा समझ गए।

पापा ने अपनी गर्दन मेरी स्कर्ट में से बाहर निकाली और बोले.

"बेटी लगता है कोई कीड़ा था. दिखाई तो दे नहीं रहा है. पता नहीं लग रहा कि अभी भी यहीं है या निकल गया. यदि अब कोई दिक्कत नहीं है तो ठीक है वर्ना अच्छे से चैक करना पड़ेगा. "

मैं अब भला उन्हें कहाँ छोड़ने वाली थी, तो बोली

"पापा कीड़ा तो लगता है की यहीं है क्योंकि अभी भी दर्द हो रहा है. आप अच्छे से चेक कर लीजिये कहीं इधर उधर न हो. "

अब मैंने पापा को आराम से "इधर उधर" चेक करने की इजाजत खुद ही दे दी थी तो पापा ने आराम से मेरी चूत पर कीड़ा ढूंढने के बहाने से अपनी उँगलियाँ फेरी. पापा ने मेरी चूत की दोनों फांकों को चौड़ा करके खोला और चूत के दरार के अंदर भी अपनी ऊँगली घुमाई. मैं तो जन्नत में थी, इतना मजा आ रहा था की क्या बताऊँ. चूत तो बहुत गीली हो गयी थी और ख़ुशी के आंसू बहा रही थी,

पापा को भी यह मौका अच्छा लग रहा था. अँधेरे में हम किसी को दिखाई भी नहीं दे सकते थे और ओट में भी थे. तो पापा बोले

"बेटी सुमन! लगता है कि जब तुम पेशाब कर रही थी तो कीड़ा तुम्हारी पेशाब वाली जगह यानि तुम्हारी चूत में घुस गया है, इसे मैं ऊँगली से निकालने की कोशिश करता हूँ. "

यह कह कर पापा ने बिना मेरा उत्तर सुने अपनी एक ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी, और कीड़ा निकालने के बहाने से उसे अंदर बाहर करने लगे.
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मुझे बहुत मजा आ रहा था. आज पहली बार पापा मेरे होशोहवाश में मेरी चूत में ऊँगली कर रहे थे और मैं आराम से खड़ी अपनी चूत में पापा से ऊँगली करवा रही थी.

पर मैंने सोचा की हमारे पास ज्यादा समय नहीं है जो ऊँगली करवाती रहूं. पापा का मुंह मेरी चूत के पास ही है तो कुछ और करती हूँ. यह सोच कर मैंने पापा के सर पर अपने हाथ रख कर पापा के सर को अपनी चूत की तरफ खींचा और पापा को बोली

"पापा आप की ऊँगली के शायद नाखून बड़े हैं और मेरे अंदर चुभ रहे हैं. कुछ नरम चीज से कीड़ा निकालने की कोशिश करिये. "
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पापा उनके सर को आगे खींचने से समज गए कि मैं चूत चटवाना चाहती हूँ तो वे बोले

"सुमन बेटी! अब कोई नरम चीज और तो कोई है नहीं. मैं अपनी जीभ को तुम्हारे पेशाब के छेद में डाल कर उसके अंदर से कीड़ा निकालने की कोशिश करता हूँ. "

यह बोल कर पापा ने चूत को सहलाना छोड़ कर अपने दोनों हाथों को स्कर्ट के अंदर से ही पीछे ले जाकर मेरी गांड पर रख दिया और अपने मुंह को आगे कर मेरी चूत को चूम लिया।

मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया.

इसके बाद पापा अपने दोनों हाथों को दोबारा आगे लेकर आएं और मेरी उंगलियों से मेरी गीली हो चुकी चूत की दोनों फाँकों को फैला दिया और जीभ से चूत को चाटने लगे।
मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी।
मैं भी अपने कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए चूत चटवाने लगी।
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चूत चाटते-चाटते पापा बीच-बीच में अपनी जीभ को मेरी चूत में घुसा कर हिलाने लगते थे।
मुझे तो होश ही नहीं था.

तभी पापा ने चूत चाटना छोड़ अपना सिर स्कर्ट से बाहर निकाल लिया और अपने हाथ स्कर्ट के ऊपर मेरी कमर पर ले जाकर रख दिये।
मैंने महसूस किया जैसे वे कुछ ढूंढ रहे हो।

अभी मैं कुछ समझ पाती … तभी पापा को वे मिल गया जिसे ढूंढ रहे थे।
पापा ने मेरी स्कर्ट के हुक खोल दिया जिससे मेरी स्कर्ट एक झटके में नीचे गिर गई।

मैंने भी अपना पैर उठा कर स्कर्ट को पैरों से बाहर कर दिया।
पापा ने खुद ही एक हाथ से उसे उठाकर मेरी स्कर्ट को स्कूटी पर रख दिया।

अब मैं कमर के नीचे से पूरी नंगी थी और मेरी चूत पापा के मुंह के ठीक सामने थी।

इसके बाद मैंने भी अपनी जाँघों को और फैला दिया और उन्हें चूत चाटने की पूरी जगह दे दी।
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पापा ने हाथ से मेरी चूत के दोनों फांकों को फैला दिया और अपने मुँह को मेरी दोनों गोल चिकनी जाघों के बीच लाकर जीभ निकाल कर मेरी चूत को चाटने लगे।

कुछ देर बाद वे चूत चाटने हुए ही अपने दोनों हाथ को पीछे लेजाकर मेरी गांड को सहलाने और दबाने लगे।

मैंने अभी तक ऐसा सिर्फ पॉर्न मूवी में देखा था कि कैसे बाप अपनी बेटी की चूत चाटता है और बेटी अपने बाप से चूत चटवाती है।

मगर आज मेरे ही पापा मेरे सामने घुटनों के बाल बैठ कर अपनी बेटी की चूत चाट रहे थे।
यह सोच कर मैं इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गई थी कि … चूत चटवाते हुए मुश्किल से 2-3 मिनट हुए होंगे कि मुझे ऐसा लगा कि मेरे शरीर का सारा खून चूत की तरफ जा रहा है; मेरी चूत की नसें एकदम फटने वाली हैं।

मैं तेजी से कमर हिलाने लगी और मेरे मुंह से तेज सिसकारियां निकलने लगीं- आआ आआआ आआह हहह हह हहह!

फिर अचानक मेरा शरीर एकदम अकड़ गया और मेरे मुँह से तेज़ सिसकारी निकली- आआ आआ आह हह हहह!
और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
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मैंने एक्साइटमेंट में पापा का मुंह अपनी जांघों के बीच जोर से दबा लिया था … पापा बिना मुंह हटाये मेरी चूत का सारा पानी जीभ से चाट गये।

मैं तेजी से हांफ रही थी … हल्की ठंडी हवा में भी मेरे माथे पर पसीने की बूंदें आ गई थीं।

उधर पापा अभी भी नीचे बैठे रहे और कुछ देर के लिए … उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत से हटा लिया ताकि मैं अपनी सांस पर काबू कर लूं।
जब उन्हें लगा कि मैं थोड़ा नॉर्मल हूं गई हूं … तो उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरी जांघों को फैला कर फिर से मेरी चूत चाटना शुरू कर दिया।
मैं तो जैसे आसमान में उड़ने लगी थी।

मुझे इतना मजा आ रहा था कि मदहोशी में मैंने आंख बंद कर ली और पापा के सिर को पकड़ कर अपनी कमर हिला-हिला कर दोबारा से चूत चटवाने लगी।

करीब 2 मिनट की चूत चटाई से मुझ पर दोबारा चुदाई का नशा चढ़ने लगा।

मेरी चूत भर भर पानी छोड़ रही थी जिस से कि मेरी चूत के पानी से चूत और फिर भी चिकनी हो गई थी पापा ने अपनी एक उंगली मेरी चूत के ऊपर रख दी मेरी चूत चिकनी होने के कारण उनकी उंगली एकदुम सटाक से मेरी चूत के अंदर चली गई जिसे वो मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे, क्योंकि चूत में तो पापा की ऊँगली थी तो पापा ने अपनी जीभ मेरी भगनासा पर रख दी, ज्योंही पापा की जीभ मेरे चने के दाने पर लगी, मैं तो आनंद से उछल पापा का सर अपनी चूत पर जोर से दबा दिया.

अब मेरी चूत में पापा की ऊँगली घूम रही थी और मेरे स्वर्ग के बटन यानि मेरी भगनासा पर पापा की जीभ। ऐसा डबल हमला मेरे पर कभी नहीं हुआ था. मैं तो जैसे आसमान में उड़ रही थी. कीड़ा निकलने के नाम पर हम बाप बेटी आज एक दुसरे के होश में और जानकारी में मजे कर रहे थे.
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जोश में मैं अपने आपको काबू में नहीं रख पा रही थी और बोली, “पापा, कीडा निकला या नहीं. , प्लीज जल्दी कुछ करो ना। नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगी। प्लीज”

पर पापा कहा मनाने वाले थे मुझे स्कूटी के सहारे खड़ा किया पापा का हाथ ने मेरी चूत पर अपना पूरा कब्ज़ा जमा रखा था और वो मेरी चिकनी चूत बड़े प्यार से सहला रहे थे और पापा खुद नीचे बैठ गए ते और अपने दोनों हाथ उन्होंने अब मेरी गांड पर रख दिए और फिर उन्होंने अपने होठ मेरी भगनासा पर रख दिए और जीभ निकल कर भगनासा को चाटने लगे और कभी मेरी भगनासा पर अपने दांत गड़ा देते मस्ती के कारण अब मुझे से बर्दाश्त करना मुश्किल था.

मैं तड़प रही थी और चिल्ला रही थी

"हाए मां, उफ कितनी गर्म है आपकी जीभ? आ आ उई"

मैं बुरी तरह से सिसकारियां निकलने लगीसी सी आह आह उई मां उई उई उफ पापा ने अपनी लपलपाती हुई जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसा दी और जीभ से चोदने लगे.

मस्ती मैं भी पूरी तरह से गरम हो गई थी तो मैंने आगे को होकर झट से पापा के सर को अपने हाथों में थाम लिया मैं पापा के बालो, मैं अपनी उंगली घुमाते पापा को अपनी चूत पर दबाने लगी मुझे पापा के होठों से अपनी चूत की तेज सुगंध और उसके तीखे नमकीन स्वाद का एहसास हो रहा था.
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पापा के हाथ मेरी दोनों चूतड़ों पर थे जिसे वो बड़े ही जोर से दबा रहे थे और सहला रहे थे. मैं इतनी गरम हो उठी थी कि मुझ से अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल ही नहीं नामुकिन था मस्ती, मेरे मुंह से निकला है

"पापा जी आप ने तो मुझे पागल कर दिया ही, कृपया जल्दी से कुछ करो नहीं तो मर जाऊंगी। कितना चाटेंगे कब से ऐसे चाट रहे ही जैसे वहा रसमलाई रखी हो. कीड़ा निकला या नहीं? अब बस कीजिए ना."

मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थी. शायद पापा भी सिसकारियां ले रहे हों पर क्योंकि उनका मुंह तो मेरी चूत पर था तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

थोड़ी देर में फिर मेरा शरीर अकड़ने लगा. दूसरी बार से मेरा निकलने वाला था.

अचानक से मेरा शरीर फिर अकड़ गया और मेरी चूत ने पापा के मुंह पर ही अपना अमृत छोड़ना शुरू कर दिया.

मैं आह आह आह चिल्ला रही थी और पापा ने अपना मुंह मेरी चूत के बिलकुल छेद पर रख लिया था और पापा मेरी चूत से निकलने वाले रस के एक एक कतरे को पी गए. पापा ने चाट चाट कर मेरी चूत बिलकुल साफ़ कर दी.
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मैं जोर से हांफ रही थी.

पापा उठ कर खड़े हुए. उन का लौड़ा इतना सख्त हो गया था कि चांदनी में भी साफ़ साफ़ उनकी लुंगी में से दिखाई दे रहा था.

मैंने अपना मजा तो ले लिया था, चाहे थोड़ा ही सही, पर अब पापा की भी बारी थी.

मैंने पापा से पूछा.

"पापा आप ने तो अपनी पूरी जीभ अंदर तक डाल कर कीड़ा निकलने की कोशिश की है. क्या कीड़ा निकला?"

पापा मुझे बोले

"बेटी सुमन! अब अँधेरा तो इतना है कि कुछ दिखाई नहीं देता. क्या तुम्हारी दर्द या खुजली ख़तम हुई या नहीं. यदि ठीक हो गयी है तो कीड़ा निकल गया होगा वरना कीड़ा अंदर ही होगा. और फिर उससे छुटकारा पाने का कुछ और इलाज सोचना पड़ेगा. "

अब आप लोग खुद ही समझ सकते हो कि मैं कैसे कह सकती थी कि सब ठीक हो गया है. और पापा भी यह जानते थे, इसीलिए तो उन्होंने पूछा था.

तो मैं अपनी चूत को सहलाते बोली

"पापा! अभी भी अंदर खुजली हो रही है. लगता है कीड़ा काफी अंदर चला गया है. और निकला नहीं है. अब क्या करना होगा ?"

पता तो हम दोनों बाप बेटी को था ही कि क्या करना होगा. पर मैं जानबूझ कर अनजान सा बन रही थी.

पापा बोले

"बेटी लगता है कीड़ा काफी अंदर तक घुस गया है. मेरी जीभ जितनी लम्बी है, उतनी साड़ी मैंने तुम्हारी चूत में डाल कर कोशिश कर ली है. पर लगता है कीडा निकला नहीं. है. अब तो लगता है की उसे अंदर ही कूट कूट कर मारना पड़ेगा, वरना वो अंदर काटता रहेगा और तुम्हे कोई जहर भी चढ़ सकता है. अब जीभ से कुछ लम्बा डंडा तुम्हारी चूत में डाल कर उसे अंदर कूटना पड़ेगा ताकि वो अंदर ही मर जाये और फिर वो तुम्हारी पेशाब के साथ निकल जायेगा. "

मैं सब समझ गयी थी, पर अनजान बनते बोली

"पापा अब लम्बा सा डंडा कहाँ मिलेगा. यहाँ तो झाड़ियां ही है, उन के डंडे तो ठीक नहीं हैं, और वैसे भी उनसे मेरे अंदर छिल सकता है. अंदर डालने के लिए तो कोई नरम चीज चाहिए. वो कहाँ पे मिलेगी?"

जानते तो हम दोनों ही थे. कि क्या चीज होगी वह, पर आखिर थे तो हम बाप बेटी ही ना, तो मैं कैसे सीधे ही बोल देती कि पापा अपना लौड़ा डाल दो अपनी बेटी की चूत में। तो अनजान बनने का नाटक कर रही थी,

पापा बोले

"बेटी! एक बार ऐसे ही तुम्हारी मम्मी की चूत में भी कीड़ा घुस गया था. तो जीभ से नहीं निकला था. आखिर में मैंने अपने लौड़े को तुम्हारी माँ की चूत में डाला और कीड़े को अंदर ही कूट कूट कर मार दिया. आदमी का लण्ड नरम भी होता है तो उस से न तो अंदर छिल जाने का डर है और मेरा लंड तो पूरे आठ इंच लम्बा और खूब मोटा है, तो यदि तुम कहो तो मैं तुम्हारी चूत में इसे डाल कर कीड़े को मार देता हूँ. पर तुम आखिर मेरी बेटी हो इसलिए जब तक तुम हाँ नहीं कहोगी मैं तुम्हारी चूत में इसे नहीं घुसाउँगा। "
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अब मैं तो मरी जा रही थी पापा का लंड अपनी चूत में लेने को. यह साड़ी कोशिश तो इसी के लिए थी, मैंने मन ही मन भगवान् का शुक्रिया किया कि आखिर वो समय आ ही गया जब पापा अपना लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने वाले थे. तो मैं अपनी ख़ुशी छुपाने की कोशिश करते बोली

"पापा! अब आप यह सब न सोचो. कोई बात नहीं. आप मेरा इलाज करो और कीड़े को मार दो. नहीं तो अगर उसने अंदर काट लिया तो मुश्किल हो जाएगी."

पापा ने भी अब देर करना उचित नहीं समझा और उठ कर खड़े हो गए और झट से अपनी लुंगी खोल दी.

अब पापा ने सिर्फ अंडरवियर पहना था. उस के अंदर पापा का गधे जैसा लौड़ा, जिस के लिए उनकी बेटी ना जाने कब से तरस रही थी फुंकारें मार रहा था.

लण्ड इतना झटका मार रहा था कि अंडरवियर में से भी साफ़ दिखाई दे रहा था.

मैंने देखा कि पापा ने अपने कुर्ते को अपने कमर से ऊपर उठा कर खोंस लिया है।

मेरी निगाह नीचे गई तो अँधेरे में भी उनका खड़ा लंड साफ दिख रहा था। पापा ने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर उन्हें नीचे दबाया. मैं समझ गयी कि पापा मुझे बैठने का इशारा कर रहे हैं. मैं पापा के बिलकुल सामने बैठ गयी।

पापा का अंडरवियर में तना हुआ लौड़ा बिल्कुल मेरी आंखो के सामने मेरे मुंह के करीब था. जो मेरी गरम सांसो से उनके अंडरवियर मैं और भी उछलकूद मचा रहा था। मैंने अपनी आंखें ऊंची करके स्माइल करते हुए पापा की आंखें देखीं पापा के अंडरवियर की इलास्टिक मैं अपनी अंगुली डाल दी और पल भर में पापा के अंडरवियर को नीचे खींच दिया।

जैसे ही मैंने पापा के अंडरवियर को नीचे किया, उनका काला लम्बा मोटा लंड हवा में किसी मस्त सांड की तरह झूमता मेरी आँखों के सामने था। मुझे आज उनका लंड कल रात के मुकाबले और फिर भी मोटा लग रहा था।
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मैंने अपने हाथ पापा के लंड पर रख दिए जैसे ही मेरा मुलायम नरम हाथ पापा के लंड पर पड़ा मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने कोई गरम रॉड पकड़ ली जिससे मेरा हाथ जल जाएगा।

मैं मस्ती मैं पापा के लंड को अपने हाथ से सहलाने लगी जैसे ये मेरा सब से मनपसंद खिलोना हो मैं नीचे बैठी पापा के लंड को सहला रही थी।

फिर पापा ने मुझे कहा

"बेटी सुमन! मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत के हिसाब से काफी बड़ा है, और मोटा भी. इसे मैं जब कीड़े को मारने के लिए तुम्हारी चूत में डालूंगा तो हो सकता है तुम्हे दर्द हो. यहाँ हमारे पास कोई तेल आदि भी नहीं है जिस से तुम्हारी चूत और मेरे लंड को थोड़ा चिकना कर सकें तो तुम एक काम करों कि अपने पापा के लण्ड को मुंह में ले कर थोड़ा चूस दो ताकि वो गीला हो जाये, तुम्हारी चूत तो पहले ही मेरे चाटने से गीली हो गयी है. लण्ड भी गीला होगा तो आसानी होगी. क्या पापा का लण्ड चूस दोगी?"

अँधा क्या चाहे दो आँखें. और सुमन क्या चाहे- पापा का लण्ड।

मैंने पापा के लण्ड को हाथ में पकडे पापा की तरफ देखा और शर्म के कारण मेरे मुंह से हाँ तो नहीं निकल सकी और मैंने हाँ में गर्दन हिलाते हुए, पापा के लण्ड को अपनी तरफ खींचा और अपना मुंह भी आगे किया.

तभी पापा ने अपना एक हाथ बढ़ाया और मेरे कंधे पर रख कर धीरे से बोले- इसे मुंह में लो बेटा!
पापा की आवाज उत्तेजना में हल्का सा कांप रही थी ऐसा लग रहा था जैसे नशे में बोल रहे हों।

वैसे मैं तो खुद भी यही चाह रही थी।
मैं पापा के सामने घुटनों के बल बैठ गई और उनके लंड की चमड़ी को पूरा पीछे खींच कर सुपारे को मुंह में भर कर चूसने लगी।
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मैंने लंड चूसते हुए हुए ऊपर देखा तो पापा अपने एक हाथ को अपनी कमर पर रखे हुए थे और मुझे देखते हुए अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए मजे से लंड चुसवा रहे थे।

उनका एक हाथ मेरे सिर पर था जिसे वे हल्का सा अपने लंड पर दबा रहे थे.

मुझे लग रहा था कि वे भी शायद अपनी किस्मत पर फूले नहीं समा रहे होंगे कि उनकी 19 साल की मस्त जवान बेटी आधी नंगी बैठी अपने ही बाप का लंड चूस रही है।

जिस तरह पापा अपने कमर हिलाने की स्पीड बढ़ा कर लंड मेरे मुंह में तेजी से आगे पीछे कर रहे थे … मुझे लग रहा था कि वे जल्दी ही झड़ने वाले हैं.
मैं भी लंड के सुपारे को तेजी से अपने सर आगे पीछे कर चूसने लगी थी।
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अभी मुश्किल से 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि उनके मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी और वे तेजी से अपनी कमर को हिलाने लगे.

आआआ आहह हहह … बेटा आआ … और फिर अचानक उनका शरीर एकदम अकड़ गया और उनके मुँह से तेज सिसकारी निकली- आआआ आआह हह हहह!
और दो-तीन तेज झटके देते हुए मेरे मुंह में अपने लंड का सारा पानी निकाल दिया।
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मैंने भी लंड का सारा नमकीन पानी पी लिया।
पापा खड़े-खड़े तेजी से हांफ रहे थे … उनका लंड एकदम ढीला हो गया था.

मगर मैंने अभी भी पापा के लंड को मुंह से नहीं निकाला था और उनके ढीले हो चुके लंड को भी मुंह में लेकर चुपचाप उसी तरह घुटनों की बल बैठी रही।

मैं जान रही थी कि अगर मैं इस तरह पापा के झड़ जाने के बाद खड़ी हो गई तो आज चूत में लंड लेने का सपना अधूरा रह जाएगा और फिर चूत चुदवाने के लिए मुझे दोबारा कोई दूसरा प्लान बनाना पड़ेगा।

वहीं मेरी चूत में फिर से खुजली शुरू हो चुकी थी जो अब लंड से ही शांत होने वाली थी।

इसीलिए जब पापा थोड़े नॉर्मल हुए तो मैंने उनके ढीले पड़ चुके लंड को दोबारा चूसना शुरू कर दिया.

पापा भी मजे से दोबारा कमर हिला-हिला कर लंड चुसवाने लगे.

उधर ट्रेन आने में भी टाइम लग रहा था।

करीब 2 मिनट तक लंड चुसाई के बाद ही पापा का लंड दोबारा होकर टाइट खड़ा हो गया।
फिर कुछ देर और लंड को चूसने के बाद मैंने लण्ड को मुंह से निकाला और उसे हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी और खड़ी हो गई।
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मैं अभी तक लंड को हाथ से पकड़े हुई थी।


मेरी चूत एकदम पनिया चुकी थी और मुझ पर दोबारा मदहोशी छाने लगी थी.
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Motaland2468

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लेकिन कोई प्लान के बारे में मैं सोच रही थी और आखिरकार दिमाग में एक प्लान आ ही गया।
मैंने सोच लिया कि इस प्लान को आज ही मौका दूंगी … मैं ज्यादा दिन इंतजार नहीं करूंगी।
क्योंकि जब तक नानी हैं तब तक मम्मी का ध्यान उनकी तरफ ज्यादा रहेगा, हमारे और पापा मेरे पास पूरा टाइम रहेगा अपना काम करने का!


अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी।

शाम को पापा ऑफिस से करीब 6 बजे तक आ गए और रोज की तरह चाय वगैरह पी कर टीवी देखने बैठ गए।

बाहर छोटा सा लॉन था, मम्मी और नानी शाम में अक्सर वही बैठ जाती थी.
मैं भी वही उनके साथ बैठ जाती थी.

इधर-उधर की बात करते-करते करीब 7 बज गए.
मम्मी और नानी दोनों अंदर आ गई और मम्मी रात के खाने की तैयारी करने लगी।

मैं ऊपर अपने कमरे में आकर पढ़ने लगी और 8 बजे का इंतजार करने लगी।

जैसे-जैसे टाइम पास आ रहा था … मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।
हालांकि मुझे डर नहीं लग रहा था बस चूंकि अभी तक तो सब कुछ नींद का बहाना कर के हो रहा था.

मगर आज जो मेरा प्लान था उसमें ना तो आंख बंद करने का नाटक करना था और ना ही नींद में सोने का नाटक … जो कुछ भी होना था, वह खुलकर होना था।
इसलिए थोड़ी सी घबराहट और एक्साइटमेंट हो रही थी।

खैर … 8.30 बजने वाले थे और मैंने तैयारी शुरू कर दी।

मैंने घुटनों तक की स्कर्ट पहन ली जो मैं अक्सर घर में पहनती थी और ऊपर टी-शर्ट डाल लिया।
मैंने अंदर पैंटी और ब्रा दोनों पहनी।
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जब 8.30 बज गए तो स्कूटी की चाभी उठाई और कमरे से निकल कर नीचे आ गई।

नीचे मम्मी रसोई में थीं और पापा अभी भी टीवी देख रहे थे.

पापा रोज की तरह लुंगी और कुर्ता पहनने हुए थे.

मैंने नीचे जाते ही मम्मी से कहा- मम्मी, मुझे एक ज़रूरी किताब लेने अभी मार्केट जाना है।

इस पर मम्मी हल्का सा नाराज़ होते हुए बोली- इस समय कौन सी किताब की ज़रूरत पड़ गई तुम्हें?
मैंने कहा- अरे मम्मी, अभी फोन आया है एक दोस्त का कि कल एक प्रैक्टिकल होना है कॉलेज में! हमें जाना जरूरी है और मेरे पास उसकी किताब नहीं है। तो वह मुझे अभी लेनी होगी. अभी 8.30 बज रहे हैं, दुकानें खुली होंगी।

मम्मी बोली- ठीक है, अकेली मत जाओ, पापा को भी साथ लेती जाओ।

मैं तो बस यही चाह रही थी कि मम्मी खुद बोलें कि पापा के साथ जाओ.

उधर पापा भी हमारी बातें सुन रहे थे।

मैं बोली- ठीक है।
और ये कहकर रसोई से बाहर निकाल कर स्कूटी की चाबी पापा को देते हुए उनसे बोली- पापा, मेरे साथ मार्केट चलिये … एक बुक लेनी है।

पापा बोले- ठीक है, चलो!
यह कह कर वे अपने कमरे की तरफ जाने लगे।

मैंने कहा- कहां जा रहे हैं?
तो वे बोले- अरे कपड़े चेंज कर लूं!
मैंने कहा- जितनी देर में आप कपड़े चेंज करेंगे, उतनी देर दुकान बंद हो जायेगी। ऐसे ही चलिये, रात में कौन देख रहा है।

दरअसल मेरा प्लान ही था पापा को लुंगी में ले चलने का!

पापा बोले- ठीक है, चलो।

फिर हम दोनों बाहर आ गये।

मैंने पापा को स्कूटी की चाभी दी।
स्कूटी स्टार्ट होने पर मैं पीछे बैठ गई, मैं उनके पीछे ऐसे बैठी कि मेरी चूची उनकी पीठ से चिपक गई।
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कॉलोनी की सड़क में थोड़े गड्ढे थे तो उनमें जैसे ही स्कूटी जाती तो मैं थोड़ा जानबूझकर झटके के साथ पापा की पीठ पर अपनी चूचियों को पूरा चिपका देती और अपना हाथ उनकी जाँघ पर रख देती थी।

खैर … जैसे ही हम कॉलोनी से निकल कर मेन रोड पर आये तो मैंने पापा से कहा- पापा, मैं स्कूटी चलाऊँ आप पीछे बैठ जाइये।
पापा पहले थोड़ी हिचकिचायें और बोले- अरे, मैं चल रहा हूँ ना!

मुझे लगा कि वे मेरी चूचियां जो उनकी पीठ से चिपकी थी उनका मजा नहीं छोड़ना चाह रहे थे.
मगर मेरा प्लान कुछ और था।

मैंने कहा- प्लीज पापा मैं चलाऊंगी।
पापा फिर बोले- अरे देर हो रही है, स्पीड में चलकर ले चलूंगा ताकि दुकान बंद होने से पहले पहुंच जाएं।

शायद पापा को अभी भी लग रहा था कि मैं किताब लेने के लिए ही आई हूं.

मगर मैं ज़िद करने लगी।

इस पर पापा बोले- ठीक है, लो तुम्ही चलाओ।
ये कह कर वे स्कूटी से उतरने लगे.

उससे पहले ही मैं तेजी से स्कूटी से उतर गई और उनसे बोली आप मत उतरिए, पीछे खिसक जाइए मैं आगे बैठ जाऊंगी।
वे थोड़े हिचकिचा रहे थे, बोले- नहीं, तुम बैठी रहो, मैं उतर कर पीछे आ जाता हूं।

मगर तब तक मैं उतर चुकी थी और आगे आते हुए बोली- आप खिसक जाएं पीछे!
पता नहीं क्यों … पापा थोड़े नर्वस हो रहे थे पीछे खिसकने में!
मगर मेरे जिद करने पर वे स्कूटी पर बैठे बैठे ही पीछे खिसक गए।

मैं आगे आकर स्कूटी की सीट पर जानबूझ कर अपने कमर को ऊपर उठाए हुए थोड़े पीछे खिसक कर ऐसे बैठी कि मेरी गांड पापा के लंड से चिपक जाए।
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मगर मैं जैसे ही इस तरह बैठी तो मैं सारा माजरा तुरंत समझ गई कि पापा क्यों पीछे बैठने में हिचकिचा रहे थे।

दरअसल शायद पापा लुंगी के नीचे अंडरवियर नहीं पहने थे और मेरी चूचियों को अपनी पीठ पर चिपकाने से वे उत्तेजित हो गई थी और उनका लंड खड़ा हो गया था।
क्योंकि जैसे ही मैं अपनी गांड उठाकर पीछे होकर बैठी तो उनका खड़ा लंड मेरी गांड में छूने लगा था।

मैंने सोचा कि चलो मेरा थोड़ा काम आसान हो गया।
मैं स्कूटी चलाने लगी।

पापा का लंड मेरी गांड पर चिपक रहा था और मैं भी जानबूझ कर अपनी गांड को उनके लंड पर और जोर से दबा रही थी.
मैंने स्कूटी की स्पीड एकदम धीमी कर रखी थी और आराम से मजे लेकर चल रही थी।

रात की ठंडी हवा में अपने पापा के लंड को गांड पर महसूस करते हुए स्कूटी चलाने में अलग ही मजा आ रहा था।
मेरी गांड से सटकर पापा का लंड शायद और भी खड़ा हो गया था क्योंकि मुझे पहले से ज्यादा उसकी चुभन महसूस हो रही थी।

एक जगह रास्ते में स्पीड ब्रेकर आया तो मैंने जल्दी चलते हुए हल्का सा अपनी गांड को सीट से ऊपर उठाया और फिर धीरे से अपने कमर को पीछे कर ऐसी बैठी कि पापा का लंड अब मेरी गांड के नीचे आधा दबा हुआ था.
हल्का सा भी झटका लगने पर मैं अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ देती थी।

रास्ते में रेलवे ओवरब्रिज के ऊपर चढ़ने के बजाये मैं उसके नीचे से स्कूटी ले जाने लगी।
तो पापा चौंकते हुए बोले- अरे ओवरब्रिज से क्यों नहीं चल रही हो बेटा. नीचे तो अंधेरा होगा और हो सकता है ट्रेन का टाइम होने से गेट भी बंद हो।

दरअसल मार्केट हमारी कॉलोनी से थोड़ी दूरी पर था बीच में एक रेलवे का ओवरब्रिज भी था जिसके पार करने के बाद कुछ दूर पर मार्केट शुरू होती थी. ओवरब्रिज के नीचे से मुश्किल से कोई इक्का-दुक्का ही आता जाता था। वही रात में क्योंकि अंधेरा बहुत होता था इसलिए कोई नहीं जाता था।

मैं थोड़ा हंसती हुई बोली- तो क्या हुआ पापा, थोड़ा इंतजार कर लेंगे. कौन सी जल्दी है।

असल में मैं पापा को एहसास दिलाना चाह रही थी कि मैं बुक लेने नहीं कुछ और करने आई हूं.

पापा बोले- और शॉप बंद हो गई तो?
मैं बोली- अरे मेरा तो स्कूटी से घूमने का मन था तो मैं चली आई. कौन सा मुझे कोई किताब लेनी है।

पापा बोले- अरे यार, तो पहले क्यों नहीं बोला? मैं टेंशन में था कि कहीं शॉप बन्द न हो जाए।
इस पर मैं थोड़ा कमेंट करते हुए बोली- हां टेंशन तो मैं महसूस कर रही हूं।

अब मैंने थोड़ा मजे लेना शुरू कर दिया था।
मेरा इशारा उनके खड़े लंड की तरफ था.

पापा समझ गए कि मेरा इशारा किधर है।
तो वे भी थोड़ा मजे लेते हुए बोले- अरे तो तुम्हें तो दे रही हो वह टेंशन!

इस पर हम दोनों थोड़ा हंस दिए।

अब मैं और पापा धीरे-धीरे खुलने लगे थे। वो समझ गए कि आज कुछ तो अच्छा होने वाला है, मैं कुछ शरारत करने वाली हूँ. पर वो क्या है यह तो पापा अभी तक समझ नहीं पाए थे. पर क्योंकि वे भी मुझे चोदने को तरस रहे थे तो उन्होंने भी सोचा की जो भी होगा अच्छा ही होगा. वैसे भी मेरी गांड में लण्ड लगा कर उन्हें मजा आ रहा था. और अगर हम दोनों फ्लाई ओवर से जाते तो वहां तो बहुत लोग और भीड़ होती है. तो वहां तो पापा मेरी गांड में लंड रगड़ने का मजा नहीं ले पाते तो उन्होंने भी नीचे के पुराने रास्ते से जाने का सोच. क्योंकि उस रास्ते से टाइम कोई आता ही नहीं था. तो पापा ने सोचा कि वहां रास्ते में उन्हें मेरी गांड में लण्ड रखने का मौका मिलेगा.
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स्कूटी लेकर जैसे ही मैं ओवरब्रिज के नीचे रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंची तो देखा कि गेट बंद था।
शायद कोई ट्रेन आने वाली थी।
मैं तो बस यही चाह रही थी।

मैंने कहा- ओह … गेट तो बंद है.
पापा बोले- कोई नहीं, थोड़ा इंतज़ार कर लेते हैं.

मैं बस हल्का सा मुस्कुरा कर चुप रही।

फिर मैं स्कूटी को ओवरब्रिज के ठीक बीच में एक पिलर के पास लेकर चली गई और ठीक उसके पीछे डबल स्टैंड पर स्कूटी को खड़ा कर दिया। यहाँ पर कुछ झाड़ियां भी थी. तो उनकी ओट में स्कूटर खड़ा कर देने से वो छुप गया. अब यदि कोई आ भी जाता तो उसे हम दिखाई दे ही नहीं सकते थे.

यह मेरे प्रोग्राम और मेरी चाल के लिए बहुत ठीक था. पापा चुप थे और बस मुझे देख रहे थे. वे अभी तक भी मेरी चाल नहीं समझ पाए थे.

बाहर की तरफ थोड़ी बहुत चाँद की रोशनी आ रही थी मगर यहाँ अँधेरा था और जगह भी ऐसी थी कि कोई अचानक से गुजर भी गया तो हम दोनों को नहीं देख सकता थे। हम दोनों वापस उसी तरह स्कूटी पर बैठ गए थे। पापा का लंड अभी भी मेरी गांड से सटा हुआ था।

रात के सन्नाटे में महौल एकदम सेक्सी हो रहा था … सच कहूं तो मेरी चूत पनियाने लगी थी.

अचानक मैंने बैठे-बैठे आगे झुक कर अपने सिर को स्कूटी पर आगे हेडलाइट पर रख दिया और अपनी गांड को थोड़ा जानबूझ कर उठा दिया।

अब पापा का लंड मेरी गांड से सटा नहीं था मगर स्कर्ट के नीचे मेरी चूत ठीक पापा के लंड के सामने थी।

पापा अब तक समझ गए थे कि आखिर मैं क्यों आई हूं।
वे भी कुछ देर रुके रहे फिर थोड़ा खिसक कर मेरी गांड के पास आ गये और अपने लंड को स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी गांड से सटा कर बैठ गये।
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मैं समझ गयी कि पापा गर्म हो रहे हैं और अपनी बेटी की गांड में लैंड लगाने का मौका ढूंढ रहे हैं. हम दोनों बाप बेटी के बीच इतना कुछ हो चूका था की पापा की हिम्मत बढ़ गयी थी. पापा ने मुझे थोड़ा आगे होने को कहा. मैं जानती थी कि पापा चाहते हैं की मैं जब आगे होने के लिए अपने चूतड़ उठाऊं तो कुछ शरारत कर सकें तो मैंने अपनी गांड थोड़ी ऊपर उठाई. पापा ने झट से मेरी स्कर्ट पीछे से ऊपर कर दी. अब मेरी गांड बिलकुल नंगी थी बस मेरी छोटी सी पैंटी मेरी गांड पर थी. पापा ने भी अब तक होंसला करके अपना लण्ड अपनी अंडरवियर से बाहर निकाल लिया था और उसे अच्छे से मेरी गांड पर लगा दिया.

मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी जो मेरे पापा ने भी रात के सन्नाटे में साफ साफ सुनी.

वे जानते थे कि मैं इस सब के लिए तैयार हूँ. तो उन्होंने मेरी गांड और मेरे नंगे चूतड़ों पर अपना लौड़ा घिसना शुरू कर दिया. उनके लण्ड अब तक बिलकुल सख्त हो चूका था और मुझे अपने चूतड़ों पर गर्म गर्म महसूस हो रहा था।

हम दोनों बाप बेटी को बहुत मजा आ रहा था.
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मैंने तो आज ठान ही लिया था कि इससे पहले कि पापा रात को मम्मी को चोद लें मैं अपना काम तमाम करवा लेना चाहती थी.

15-20 सेकंड तक ऐसे ही रहने के बाद मैं अचानक उठी और स्कूटी से उतरते हुए बोली- पापा मुझे पेशाब लगी है।
पापा बोले- यहां पास में कर लो, अंधेरा है, कोई देखेगा नहीं!
और बोले- ज्यादा दूर मत जाना।
मैंने कहा- ठीक है पापा!

और फिर मुश्किल से 4-5 कदम आगे बढ़ कर स्कर्ट उठाई और बैठ कर पेशाब करने लगी।
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मैं जानबूझकर पास में ही पेशाब करने लगी. मैंने अपनी पैंटी नीचे करके पेशाब करने की बजाए अपनी पैंटी पूरी ही उतार दी और पापा को देते हुए कहा


"पापा यह मेरी पैंटी जरा पकड़ लीजिये मैं पेशाब कर लूँ. कई बार अँधेरे में ठीक से दिखाई नहीं देता तो पेशाब करते हुए पैंटी गीली हो जाने का डर रहता हैं. अब हम लड़कियों के पास आप पुरषों जैसे पेशाब करने की पाइप तो है नहीं जो ऐसा खतरा न हो की पैंटी गीली हो जाएगी. "

पापा मुस्कुरा पड़े. और मेरी पैंटी ले ली। मैं पेशाब करने के लिए उनके पास में ही दूसरी ओर मुंह करके बैठने लगी और ऐसा करते हुए मैंने अपनी स्कर्ट पीछे से पूरी उठा कर बैठी. जिस से पापा को चाँद की रौशनी में मेरी गांड चांदी की तरह चमकती हुई दिखाई दे रही थी. मैं अपनी टांगें पूरी तरह से खोल कर पेशाब करने को बैठी ताकि इस पोज़ में मेरी चूतड़ खूब खुल जाएँ और पापा को अच्छे से सब कुछ दिखाई दे.

पापा को अपने सामने जन्नत का साक्षात् नजारा दिखाई दे रहा था.
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पापा मेरी उतारी हुई पैंटी को अपनी नाक पर रख कर सूंघने लगे और उनकी नजरें मेरी नंगी गांड पर ही थी.

रात के सन्नाटे में चूत से पेशाब की निकल रही छरछराहट दूर तक जा रही थी जो पापा को भी साफ सुनाई दे रही थी।

पेशाब कर के उठने के बाद मैं स्कर्ट से चूत को पौंछते हुए पापा के पास आकर खड़ी हो गई।

फिर अचानक मैंने नाटक करते हुए हल्का सा चिल्लाते हुए बोली- ऊऊऊ ऊइइइइइ इइ इइइइ इइइ!
और तेजी से अपनी स्कर्ट को थोड़ा सा उठा कर ऐसे झाड़ने लगी जैसे कोई कीड़ा घुस गया हो।

पापा को तो लग रहा था जैसे इसी के इंतजार मैं बैठे थे।
वे तेजी से स्कूटी से उतर कर मेरे सामने आकर खड़े हो गए और स्कर्ट की तरफ देखते हुए पूछे- क्या हुआ बेटा … कुछ काट लिया क्या?
मैंने कहा- नहीं पापा, मुझे लगा कि स्कर्ट में कोई कीड़ा घुस गया था. मगर निकल गया है शायद!

पापा ने तुरंत कुर्ते की जेब से मोबाइल निकाला और उसकी टॉर्च जलाते हुए स्कर्ट पर देखने लगे और बोले- अरे रुको बेटा, देखने दो कहीं अभी निकला न हो तो!
शायद पापा तो इसी बहाने कुछ और करना चाह रहे थे।
हालांकि मैं भी मन ही मन यही चाहती थी।

मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी और मेरी चूत में इतनी कुलबुलाहट हो रही थी कि बस चाह रही थी या तो उंगली डाल कर चूत का पानी निकाल दूं या फिर पापा का लंड पकड़ कर चूत से रगड़ लूँ।

फिर भी मैंने थोड़ा नाटक करते हुए कहा- अरे रहने दीजिए पापा … हो सकता है निकल गया हो।
आज यहाँ रात के अँधेरे में बाप बेटी के बीच कुछ होने की भूमिका बन चुकी थी.

पापा अब कहां मानने वाले थे … वे मेरे कंधों को पकड़ कर पीछे स्कूटी का सहारा देकर खड़ा करते हुए बोले- तुम आराम से खड़ी हो जाओ. मैं मोबाइल से ठीक से देख लेता हूं कि कीड़ा निकला या नहीं!
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मैं समझ गई कि पापा इसी बहाने मेरी चूत देखना चाह रहे हैं।
मैंने मन में सोचा कि मतलब आग उधर भी उतनी ही लगी है।

फिर मैंने भी ज्यादा नाटक नहीं किया और स्कूटी का टेक लेकर खड़ी हो गई।

पापा ने लुंगी को अपने घुटनों तक ऊपर उठा लिया और मेरे आगे घुटनों के बल बैठ गये।
वे मुझसे इतना सट कर बैठे थे कि अगर मैं थोड़ा सा भी अपने कमर को आगे कर देती तो मेरी चूत स्कर्ट के ऊपर से ही उनके मुंह से सट जाती।

इसके बाद उन्होंने पहले तो स्कर्ट के ऊपर ही देखने का नाटक किया और फिर धीरे से एक हाथ से मेरी स्कर्ट को ऊपर उठाते हुए मुझसे बोले की- बेटा, जरा इसे पकड़ो तो … मैं देख लूं कि कहीं अंदर तो नहीं बैठा है।

मैंने स्कर्ट को नीचे से पकड़ कर धीरे करके पूरा ऊपर उठा दिया।
अब मेरी पाव रोटी जैसी फूली नंगी चूत पापा के मुंह के ठीक सामने थी।
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पापा भी मोबाइल की रोशनी में मेरी चूत को निहारे जा रहे थे।

तभी मैंने पापा से कहा- पापा, प्लीज मोबाइल का टॉर्च बंद कर दीजिए कोई देख लेगा। हाथ से छूकर देख लीजिए कि कीड़ा बैठा तो नहीं है।
एक तरीके से मैं पापा को अपनी चूत को छूने और सहलाने का इशारा कर रही थी।

पापा भी समझ गए कि मैं क्या चाह रही हूं और वे भी यहीं चाह रहे थे।

उन्होंने मोबाइल का टॉर्च बंद कर अपने कुर्ते की जेब में रख लिया और फिर अपने हाथों को मेरी जाँघ पर आगे-पीछे और ऊपर-नीचे फेरने लगे।
धीरे-धीरे जाँघों को सहलाते हुए वे उन्होंने अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया।

जैसे ही पापा ने अपना हाथ को चूत पर रखा, मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई।

मेरा चेहरा कामुकता से लाल हो रहा था; शरीर एकदम गर्म हो गया था।
मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि मैंने स्कर्ट को हाथ से छोड़ दिया.
अब पापा का सिर मेरी स्कर्ट के अंदर था।

फिर मैंने अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए अपनी कमर को हल्का सा आगे कर दिया।
अब मेरी चूत पापा के मुंह के इतने पास थी कि मैं उनकी गर्म-गर्म सांसों को अपनी चूत पर महसूस कर रही थी।
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पापा भी मेरा इशारा समझ गए।

पापा ने अपनी गर्दन मेरी स्कर्ट में से बाहर निकाली और बोले.

"बेटी लगता है कोई कीड़ा था. दिखाई तो दे नहीं रहा है. पता नहीं लग रहा कि अभी भी यहीं है या निकल गया. यदि अब कोई दिक्कत नहीं है तो ठीक है वर्ना अच्छे से चैक करना पड़ेगा. "

मैं अब भला उन्हें कहाँ छोड़ने वाली थी, तो बोली

"पापा कीड़ा तो लगता है की यहीं है क्योंकि अभी भी दर्द हो रहा है. आप अच्छे से चेक कर लीजिये कहीं इधर उधर न हो. "

अब मैंने पापा को आराम से "इधर उधर" चेक करने की इजाजत खुद ही दे दी थी तो पापा ने आराम से मेरी चूत पर कीड़ा ढूंढने के बहाने से अपनी उँगलियाँ फेरी. पापा ने मेरी चूत की दोनों फांकों को चौड़ा करके खोला और चूत के दरार के अंदर भी अपनी ऊँगली घुमाई. मैं तो जन्नत में थी, इतना मजा आ रहा था की क्या बताऊँ. चूत तो बहुत गीली हो गयी थी और ख़ुशी के आंसू बहा रही थी,

पापा को भी यह मौका अच्छा लग रहा था. अँधेरे में हम किसी को दिखाई भी नहीं दे सकते थे और ओट में भी थे. तो पापा बोले

"बेटी सुमन! लगता है कि जब तुम पेशाब कर रही थी तो कीड़ा तुम्हारी पेशाब वाली जगह यानि तुम्हारी चूत में घुस गया है, इसे मैं ऊँगली से निकालने की कोशिश करता हूँ. "

यह कह कर पापा ने बिना मेरा उत्तर सुने अपनी एक ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी, और कीड़ा निकालने के बहाने से उसे अंदर बाहर करने लगे.
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मुझे बहुत मजा आ रहा था. आज पहली बार पापा मेरे होशोहवाश में मेरी चूत में ऊँगली कर रहे थे और मैं आराम से खड़ी अपनी चूत में पापा से ऊँगली करवा रही थी.

पर मैंने सोचा की हमारे पास ज्यादा समय नहीं है जो ऊँगली करवाती रहूं. पापा का मुंह मेरी चूत के पास ही है तो कुछ और करती हूँ. यह सोच कर मैंने पापा के सर पर अपने हाथ रख कर पापा के सर को अपनी चूत की तरफ खींचा और पापा को बोली

"पापा आप की ऊँगली के शायद नाखून बड़े हैं और मेरे अंदर चुभ रहे हैं. कुछ नरम चीज से कीड़ा निकालने की कोशिश करिये. "
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पापा उनके सर को आगे खींचने से समज गए कि मैं चूत चटवाना चाहती हूँ तो वे बोले

"सुमन बेटी! अब कोई नरम चीज और तो कोई है नहीं. मैं अपनी जीभ को तुम्हारे पेशाब के छेद में डाल कर उसके अंदर से कीड़ा निकालने की कोशिश करता हूँ. "

यह बोल कर पापा ने चूत को सहलाना छोड़ कर अपने दोनों हाथों को स्कर्ट के अंदर से ही पीछे ले जाकर मेरी गांड पर रख दिया और अपने मुंह को आगे कर मेरी चूत को चूम लिया।

मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया.

इसके बाद पापा अपने दोनों हाथों को दोबारा आगे लेकर आएं और मेरी उंगलियों से मेरी गीली हो चुकी चूत की दोनों फाँकों को फैला दिया और जीभ से चूत को चाटने लगे।
मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी।
मैं भी अपने कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए चूत चटवाने लगी।
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चूत चाटते-चाटते पापा बीच-बीच में अपनी जीभ को मेरी चूत में घुसा कर हिलाने लगते थे।
मुझे तो होश ही नहीं था.

तभी पापा ने चूत चाटना छोड़ अपना सिर स्कर्ट से बाहर निकाल लिया और अपने हाथ स्कर्ट के ऊपर मेरी कमर पर ले जाकर रख दिये।
मैंने महसूस किया जैसे वे कुछ ढूंढ रहे हो।

अभी मैं कुछ समझ पाती … तभी पापा को वे मिल गया जिसे ढूंढ रहे थे।
पापा ने मेरी स्कर्ट के हुक खोल दिया जिससे मेरी स्कर्ट एक झटके में नीचे गिर गई।

मैंने भी अपना पैर उठा कर स्कर्ट को पैरों से बाहर कर दिया।
पापा ने खुद ही एक हाथ से उसे उठाकर मेरी स्कर्ट को स्कूटी पर रख दिया।

अब मैं कमर के नीचे से पूरी नंगी थी और मेरी चूत पापा के मुंह के ठीक सामने थी।

इसके बाद मैंने भी अपनी जाँघों को और फैला दिया और उन्हें चूत चाटने की पूरी जगह दे दी।
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पापा ने हाथ से मेरी चूत के दोनों फांकों को फैला दिया और अपने मुँह को मेरी दोनों गोल चिकनी जाघों के बीच लाकर जीभ निकाल कर मेरी चूत को चाटने लगे।

कुछ देर बाद वे चूत चाटने हुए ही अपने दोनों हाथ को पीछे लेजाकर मेरी गांड को सहलाने और दबाने लगे।

मैंने अभी तक ऐसा सिर्फ पॉर्न मूवी में देखा था कि कैसे बाप अपनी बेटी की चूत चाटता है और बेटी अपने बाप से चूत चटवाती है।

मगर आज मेरे ही पापा मेरे सामने घुटनों के बाल बैठ कर अपनी बेटी की चूत चाट रहे थे।
यह सोच कर मैं इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गई थी कि … चूत चटवाते हुए मुश्किल से 2-3 मिनट हुए होंगे कि मुझे ऐसा लगा कि मेरे शरीर का सारा खून चूत की तरफ जा रहा है; मेरी चूत की नसें एकदम फटने वाली हैं।

मैं तेजी से कमर हिलाने लगी और मेरे मुंह से तेज सिसकारियां निकलने लगीं- आआ आआआ आआह हहह हह हहह!

फिर अचानक मेरा शरीर एकदम अकड़ गया और मेरे मुँह से तेज़ सिसकारी निकली- आआ आआ आह हह हहह!
और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
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मैंने एक्साइटमेंट में पापा का मुंह अपनी जांघों के बीच जोर से दबा लिया था … पापा बिना मुंह हटाये मेरी चूत का सारा पानी जीभ से चाट गये।

मैं तेजी से हांफ रही थी … हल्की ठंडी हवा में भी मेरे माथे पर पसीने की बूंदें आ गई थीं।

उधर पापा अभी भी नीचे बैठे रहे और कुछ देर के लिए … उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत से हटा लिया ताकि मैं अपनी सांस पर काबू कर लूं।
जब उन्हें लगा कि मैं थोड़ा नॉर्मल हूं गई हूं … तो उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरी जांघों को फैला कर फिर से मेरी चूत चाटना शुरू कर दिया।
मैं तो जैसे आसमान में उड़ने लगी थी।

मुझे इतना मजा आ रहा था कि मदहोशी में मैंने आंख बंद कर ली और पापा के सिर को पकड़ कर अपनी कमर हिला-हिला कर दोबारा से चूत चटवाने लगी।

करीब 2 मिनट की चूत चटाई से मुझ पर दोबारा चुदाई का नशा चढ़ने लगा।

मेरी चूत भर भर पानी छोड़ रही थी जिस से कि मेरी चूत के पानी से चूत और फिर भी चिकनी हो गई थी पापा ने अपनी एक उंगली मेरी चूत के ऊपर रख दी मेरी चूत चिकनी होने के कारण उनकी उंगली एकदुम सटाक से मेरी चूत के अंदर चली गई जिसे वो मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे, क्योंकि चूत में तो पापा की ऊँगली थी तो पापा ने अपनी जीभ मेरी भगनासा पर रख दी, ज्योंही पापा की जीभ मेरे चने के दाने पर लगी, मैं तो आनंद से उछल पापा का सर अपनी चूत पर जोर से दबा दिया.

अब मेरी चूत में पापा की ऊँगली घूम रही थी और मेरे स्वर्ग के बटन यानि मेरी भगनासा पर पापा की जीभ। ऐसा डबल हमला मेरे पर कभी नहीं हुआ था. मैं तो जैसे आसमान में उड़ रही थी. कीड़ा निकलने के नाम पर हम बाप बेटी आज एक दुसरे के होश में और जानकारी में मजे कर रहे थे.
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जोश में मैं अपने आपको काबू में नहीं रख पा रही थी और बोली, “पापा, कीडा निकला या नहीं. , प्लीज जल्दी कुछ करो ना। नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगी। प्लीज”

पर पापा कहा मनाने वाले थे मुझे स्कूटी के सहारे खड़ा किया पापा का हाथ ने मेरी चूत पर अपना पूरा कब्ज़ा जमा रखा था और वो मेरी चिकनी चूत बड़े प्यार से सहला रहे थे और पापा खुद नीचे बैठ गए ते और अपने दोनों हाथ उन्होंने अब मेरी गांड पर रख दिए और फिर उन्होंने अपने होठ मेरी भगनासा पर रख दिए और जीभ निकल कर भगनासा को चाटने लगे और कभी मेरी भगनासा पर अपने दांत गड़ा देते मस्ती के कारण अब मुझे से बर्दाश्त करना मुश्किल था.

मैं तड़प रही थी और चिल्ला रही थी

"हाए मां, उफ कितनी गर्म है आपकी जीभ? आ आ उई"

मैं बुरी तरह से सिसकारियां निकलने लगीसी सी आह आह उई मां उई उई उफ पापा ने अपनी लपलपाती हुई जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसा दी और जीभ से चोदने लगे.

मस्ती मैं भी पूरी तरह से गरम हो गई थी तो मैंने आगे को होकर झट से पापा के सर को अपने हाथों में थाम लिया मैं पापा के बालो, मैं अपनी उंगली घुमाते पापा को अपनी चूत पर दबाने लगी मुझे पापा के होठों से अपनी चूत की तेज सुगंध और उसके तीखे नमकीन स्वाद का एहसास हो रहा था.
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पापा के हाथ मेरी दोनों चूतड़ों पर थे जिसे वो बड़े ही जोर से दबा रहे थे और सहला रहे थे. मैं इतनी गरम हो उठी थी कि मुझ से अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल ही नहीं नामुकिन था मस्ती, मेरे मुंह से निकला है

"पापा जी आप ने तो मुझे पागल कर दिया ही, कृपया जल्दी से कुछ करो नहीं तो मर जाऊंगी। कितना चाटेंगे कब से ऐसे चाट रहे ही जैसे वहा रसमलाई रखी हो. कीड़ा निकला या नहीं? अब बस कीजिए ना."

मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थी. शायद पापा भी सिसकारियां ले रहे हों पर क्योंकि उनका मुंह तो मेरी चूत पर था तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

थोड़ी देर में फिर मेरा शरीर अकड़ने लगा. दूसरी बार से मेरा निकलने वाला था.

अचानक से मेरा शरीर फिर अकड़ गया और मेरी चूत ने पापा के मुंह पर ही अपना अमृत छोड़ना शुरू कर दिया.

मैं आह आह आह चिल्ला रही थी और पापा ने अपना मुंह मेरी चूत के बिलकुल छेद पर रख लिया था और पापा मेरी चूत से निकलने वाले रस के एक एक कतरे को पी गए. पापा ने चाट चाट कर मेरी चूत बिलकुल साफ़ कर दी.
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मैं जोर से हांफ रही थी.

पापा उठ कर खड़े हुए. उन का लौड़ा इतना सख्त हो गया था कि चांदनी में भी साफ़ साफ़ उनकी लुंगी में से दिखाई दे रहा था.

मैंने अपना मजा तो ले लिया था, चाहे थोड़ा ही सही, पर अब पापा की भी बारी थी.

मैंने पापा से पूछा.

"पापा आप ने तो अपनी पूरी जीभ अंदर तक डाल कर कीड़ा निकलने की कोशिश की है. क्या कीड़ा निकला?"

पापा मुझे बोले

"बेटी सुमन! अब अँधेरा तो इतना है कि कुछ दिखाई नहीं देता. क्या तुम्हारी दर्द या खुजली ख़तम हुई या नहीं. यदि ठीक हो गयी है तो कीड़ा निकल गया होगा वरना कीड़ा अंदर ही होगा. और फिर उससे छुटकारा पाने का कुछ और इलाज सोचना पड़ेगा. "

अब आप लोग खुद ही समझ सकते हो कि मैं कैसे कह सकती थी कि सब ठीक हो गया है. और पापा भी यह जानते थे, इसीलिए तो उन्होंने पूछा था.

तो मैं अपनी चूत को सहलाते बोली

"पापा! अभी भी अंदर खुजली हो रही है. लगता है कीड़ा काफी अंदर चला गया है. और निकला नहीं है. अब क्या करना होगा ?"

पता तो हम दोनों बाप बेटी को था ही कि क्या करना होगा. पर मैं जानबूझ कर अनजान सा बन रही थी.

पापा बोले

"बेटी लगता है कीड़ा काफी अंदर तक घुस गया है. मेरी जीभ जितनी लम्बी है, उतनी साड़ी मैंने तुम्हारी चूत में डाल कर कोशिश कर ली है. पर लगता है कीडा निकला नहीं. है. अब तो लगता है की उसे अंदर ही कूट कूट कर मारना पड़ेगा, वरना वो अंदर काटता रहेगा और तुम्हे कोई जहर भी चढ़ सकता है. अब जीभ से कुछ लम्बा डंडा तुम्हारी चूत में डाल कर उसे अंदर कूटना पड़ेगा ताकि वो अंदर ही मर जाये और फिर वो तुम्हारी पेशाब के साथ निकल जायेगा. "

मैं सब समझ गयी थी, पर अनजान बनते बोली

"पापा अब लम्बा सा डंडा कहाँ मिलेगा. यहाँ तो झाड़ियां ही है, उन के डंडे तो ठीक नहीं हैं, और वैसे भी उनसे मेरे अंदर छिल सकता है. अंदर डालने के लिए तो कोई नरम चीज चाहिए. वो कहाँ पे मिलेगी?"

जानते तो हम दोनों ही थे. कि क्या चीज होगी वह, पर आखिर थे तो हम बाप बेटी ही ना, तो मैं कैसे सीधे ही बोल देती कि पापा अपना लौड़ा डाल दो अपनी बेटी की चूत में। तो अनजान बनने का नाटक कर रही थी,

पापा बोले

"बेटी! एक बार ऐसे ही तुम्हारी मम्मी की चूत में भी कीड़ा घुस गया था. तो जीभ से नहीं निकला था. आखिर में मैंने अपने लौड़े को तुम्हारी माँ की चूत में डाला और कीड़े को अंदर ही कूट कूट कर मार दिया. आदमी का लण्ड नरम भी होता है तो उस से न तो अंदर छिल जाने का डर है और मेरा लंड तो पूरे आठ इंच लम्बा और खूब मोटा है, तो यदि तुम कहो तो मैं तुम्हारी चूत में इसे डाल कर कीड़े को मार देता हूँ. पर तुम आखिर मेरी बेटी हो इसलिए जब तक तुम हाँ नहीं कहोगी मैं तुम्हारी चूत में इसे नहीं घुसाउँगा। "
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अब मैं तो मरी जा रही थी पापा का लंड अपनी चूत में लेने को. यह साड़ी कोशिश तो इसी के लिए थी, मैंने मन ही मन भगवान् का शुक्रिया किया कि आखिर वो समय आ ही गया जब पापा अपना लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने वाले थे. तो मैं अपनी ख़ुशी छुपाने की कोशिश करते बोली

"पापा! अब आप यह सब न सोचो. कोई बात नहीं. आप मेरा इलाज करो और कीड़े को मार दो. नहीं तो अगर उसने अंदर काट लिया तो मुश्किल हो जाएगी."

पापा ने भी अब देर करना उचित नहीं समझा और उठ कर खड़े हो गए और झट से अपनी लुंगी खोल दी.

अब पापा ने सिर्फ अंडरवियर पहना था. उस के अंदर पापा का गधे जैसा लौड़ा, जिस के लिए उनकी बेटी ना जाने कब से तरस रही थी फुंकारें मार रहा था.

लण्ड इतना झटका मार रहा था कि अंडरवियर में से भी साफ़ दिखाई दे रहा था.

मैंने देखा कि पापा ने अपने कुर्ते को अपने कमर से ऊपर उठा कर खोंस लिया है।

मेरी निगाह नीचे गई तो अँधेरे में भी उनका खड़ा लंड साफ दिख रहा था। पापा ने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर उन्हें नीचे दबाया. मैं समझ गयी कि पापा मुझे बैठने का इशारा कर रहे हैं. मैं पापा के बिलकुल सामने बैठ गयी।

पापा का अंडरवियर में तना हुआ लौड़ा बिल्कुल मेरी आंखो के सामने मेरे मुंह के करीब था. जो मेरी गरम सांसो से उनके अंडरवियर मैं और भी उछलकूद मचा रहा था। मैंने अपनी आंखें ऊंची करके स्माइल करते हुए पापा की आंखें देखीं पापा के अंडरवियर की इलास्टिक मैं अपनी अंगुली डाल दी और पल भर में पापा के अंडरवियर को नीचे खींच दिया।

जैसे ही मैंने पापा के अंडरवियर को नीचे किया, उनका काला लम्बा मोटा लंड हवा में किसी मस्त सांड की तरह झूमता मेरी आँखों के सामने था। मुझे आज उनका लंड कल रात के मुकाबले और फिर भी मोटा लग रहा था।
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मैंने अपने हाथ पापा के लंड पर रख दिए जैसे ही मेरा मुलायम नरम हाथ पापा के लंड पर पड़ा मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने कोई गरम रॉड पकड़ ली जिससे मेरा हाथ जल जाएगा।

मैं मस्ती मैं पापा के लंड को अपने हाथ से सहलाने लगी जैसे ये मेरा सब से मनपसंद खिलोना हो मैं नीचे बैठी पापा के लंड को सहला रही थी।

फिर पापा ने मुझे कहा

"बेटी सुमन! मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत के हिसाब से काफी बड़ा है, और मोटा भी. इसे मैं जब कीड़े को मारने के लिए तुम्हारी चूत में डालूंगा तो हो सकता है तुम्हे दर्द हो. यहाँ हमारे पास कोई तेल आदि भी नहीं है जिस से तुम्हारी चूत और मेरे लंड को थोड़ा चिकना कर सकें तो तुम एक काम करों कि अपने पापा के लण्ड को मुंह में ले कर थोड़ा चूस दो ताकि वो गीला हो जाये, तुम्हारी चूत तो पहले ही मेरे चाटने से गीली हो गयी है. लण्ड भी गीला होगा तो आसानी होगी. क्या पापा का लण्ड चूस दोगी?"

अँधा क्या चाहे दो आँखें. और सुमन क्या चाहे- पापा का लण्ड।

मैंने पापा के लण्ड को हाथ में पकडे पापा की तरफ देखा और शर्म के कारण मेरे मुंह से हाँ तो नहीं निकल सकी और मैंने हाँ में गर्दन हिलाते हुए, पापा के लण्ड को अपनी तरफ खींचा और अपना मुंह भी आगे किया.

तभी पापा ने अपना एक हाथ बढ़ाया और मेरे कंधे पर रख कर धीरे से बोले- इसे मुंह में लो बेटा!
पापा की आवाज उत्तेजना में हल्का सा कांप रही थी ऐसा लग रहा था जैसे नशे में बोल रहे हों।

वैसे मैं तो खुद भी यही चाह रही थी।
मैं पापा के सामने घुटनों के बल बैठ गई और उनके लंड की चमड़ी को पूरा पीछे खींच कर सुपारे को मुंह में भर कर चूसने लगी।
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मैंने लंड चूसते हुए हुए ऊपर देखा तो पापा अपने एक हाथ को अपनी कमर पर रखे हुए थे और मुझे देखते हुए अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए मजे से लंड चुसवा रहे थे।

उनका एक हाथ मेरे सिर पर था जिसे वे हल्का सा अपने लंड पर दबा रहे थे.

मुझे लग रहा था कि वे भी शायद अपनी किस्मत पर फूले नहीं समा रहे होंगे कि उनकी 19 साल की मस्त जवान बेटी आधी नंगी बैठी अपने ही बाप का लंड चूस रही है।

जिस तरह पापा अपने कमर हिलाने की स्पीड बढ़ा कर लंड मेरे मुंह में तेजी से आगे पीछे कर रहे थे … मुझे लग रहा था कि वे जल्दी ही झड़ने वाले हैं.
मैं भी लंड के सुपारे को तेजी से अपने सर आगे पीछे कर चूसने लगी थी।
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अभी मुश्किल से 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि उनके मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी और वे तेजी से अपनी कमर को हिलाने लगे.

आआआ आहह हहह … बेटा आआ … और फिर अचानक उनका शरीर एकदम अकड़ गया और उनके मुँह से तेज सिसकारी निकली- आआआ आआह हह हहह!
और दो-तीन तेज झटके देते हुए मेरे मुंह में अपने लंड का सारा पानी निकाल दिया।
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मैंने भी लंड का सारा नमकीन पानी पी लिया।
पापा खड़े-खड़े तेजी से हांफ रहे थे … उनका लंड एकदम ढीला हो गया था.

मगर मैंने अभी भी पापा के लंड को मुंह से नहीं निकाला था और उनके ढीले हो चुके लंड को भी मुंह में लेकर चुपचाप उसी तरह घुटनों की बल बैठी रही।

मैं जान रही थी कि अगर मैं इस तरह पापा के झड़ जाने के बाद खड़ी हो गई तो आज चूत में लंड लेने का सपना अधूरा रह जाएगा और फिर चूत चुदवाने के लिए मुझे दोबारा कोई दूसरा प्लान बनाना पड़ेगा।

वहीं मेरी चूत में फिर से खुजली शुरू हो चुकी थी जो अब लंड से ही शांत होने वाली थी।

इसीलिए जब पापा थोड़े नॉर्मल हुए तो मैंने उनके ढीले पड़ चुके लंड को दोबारा चूसना शुरू कर दिया.

पापा भी मजे से दोबारा कमर हिला-हिला कर लंड चुसवाने लगे.

उधर ट्रेन आने में भी टाइम लग रहा था।

करीब 2 मिनट तक लंड चुसाई के बाद ही पापा का लंड दोबारा होकर टाइट खड़ा हो गया।
फिर कुछ देर और लंड को चूसने के बाद मैंने लण्ड को मुंह से निकाला और उसे हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी और खड़ी हो गई।
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मैं अभी तक लंड को हाथ से पकड़े हुई थी।

मेरी चूत एकदम पनिया चुकी थी और मुझ पर दोबारा मदहोशी छाने लगी थी.
Jaandaar shaandar behtreen update.bas ek baat ka khayal rakhna jab Tak sex nahi hota story main interest bana rahega ek baar sex ho gaya fir story jyada lambi nahi chalegi abhi sex se pehle bahut kuchh ho sakta hai
 

man186

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अब काफी देर हो रही थी. मैं ज्यादा समय नहीं लेना चाहती थी क्योंकि एक तो घर में मम्मी और नानी थी और फिर हम सिर्फ किताब खरीदने का बहाना कर के आये थे तो कितनी देर लगा सकते थे आखिर,

तो मैंने पापा को कहा

"पापा! अब तो आप का लौड़ा गीला हो गया है. प्लीज देर न लगाएं और इसे जल्दी से मेरे अंदर डाल कर कीड़े को मार दें."

पापा समझ गए की उनकी बेटी चुदाई के लिए तैयार है. तो उन्होंने कहा

"सुमन! यहाँ और कोई जगह तो है नहीं तो ऐसा करो की तुम स्कूटर पर हाथ रख कर घोड़ी बन जाओ और मैं पीछे से तुम्हारी चूत मैं लण्ड घुसाता हूँ. "
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मैं तो आज चुदवाने की पूरी तैयारी कर के आई थी तो मैंने मुस्कुराते हुए स्कूटर की डिग्गी खोली और उस में से एक चादर निकाल कर एक साइड में बिछा दी.

पापा तो हैरान हो गए. वो मुझे पूछे

"अरे बेटी! यह क्या तुम चुदाई के लिए चादर तक ले के आयी हो?"

मैंने अनजान सा बनते हुए कहा

"पापा! यह चादर तो कई दिन से इस में पड़ी थी. मुझे याद आया तो निकाल ली। "

पर पापा समझदार थे वो समझ गए की उनकी बेटी आज चुदाई के लिए पूरी तरह से तैयारी कर के आयी है. यह तो पापा के लिए ख़ुशी की बात थी.

चादर पर हम बाप बेटी आराम से अपनी पहली चुदाई कर सकते थे.
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पहले तो शायद पापा ने घोड़ी बना कर फटाफट चुदाई का सोचा था पर जब उन्होंने मेरे पास चादर तक का इंतजाम देखा तो उन्होंने भी अब पूरे मजे ले कर चोदने का सोचा और बोले

"बेटी ऐसा करो, कि तुम अपनी यह टी शर्ट भी उतार दो फिर आराम से कीड़ा मारने की कोशिश करते हैं."

मैं तो चुदाई करवाने की सोच रही थी तो हैरानी से पूछा

"पापा कीड़ा तो मेरी चूत में घुसा है, और उसे आपने अपने इस हथियार से मारना है, और मेरी स्कर्ट आप खोल चुके हैं और अपनी लुंगी भी उतार चुके हैं तो फिर मेरी टी शर्ट क्यों खोलनी है.?"

पापा अपनी शर्ट खोलते बोले

"सुमन! ऐसा है की तुम अभी छोटी हो. और मेरा लण्ड बहुत मोटा है, इसे अंदर करने के लिए जोर लगाना पड़ेगा. यदि मैं तुम्हारी चूचिया चाटूँगा तो अपने आप मेरा लौड़ा सख्त हो जायेगा और आराम से घुस जायेगा. और नंगे बदन से कीड़ा मरवाने में तुम्हे अच्छा भी बहुत लगेगा. "

मैं समझ गयी कि पापा पूरा नंगा करके मुम्मे चूसते हुए मुझे चोदना चाहते हैं. तो मैंने ख़ुशी से अपनी टी शर्ट उतार दी. अब हम दोनों बाप बेटी पूरे नंगे थे।

पापा ने मुझे नंगा देखा और मुस्कुरा पड़े. मुझे बहुत शर्म आयी और मैंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया.

पापा ने प्यार से अपनी एक ऊँगली मेरी ठोड़ी के नीचे रख कर मेरा चेहरा ऊपर किया और मेरी आँखों में देखा.

मैं चाहे खुदा पापा से चुदवाने को मरी जा रही थी पर अब जब चुदाई का असली टाइम आया तो शर्म आ रही थी,

मैंने आँखें बंद कर ली. पापा मुझे प्यार से बोले

"सुमन! शर्मा क्यों रही है. मेरी तरफ देख तो सही. "

मैंने अपनी आँखें खोली. सामने पापा मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे.

मुझे इतनी शर्म आयी की मैंने झट से आगे बढ़ कर पापा को आलिंगन में ले लिया और अपना चेहरा उनकी नंगी छाती में छुपा लिया.

और पापा के अकड़े हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ कर हिलाते हुए कहा
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"पापा! मुझे अजीब सा लग रहा था. प्लीज मुझे तड़पाओ मत और जल्दी से इस को मेरे अंदर घुसा दो ताकि मेरी तकलीफ जल्दी से ठीक हो सके। "

पापा ने अपना एक हाथ मेरी नंगी चूची पर रख दिया और उसे मसलने लगे.

पापा ने मुझे थोड़ा अलग किया और मेरी दोनों चूचिओं को देखने लगे मुझे शर्म तो आ रही थी पर क्या करती।

पापा कुछ देर मेरी इन नंगी चुचियों को देखते रहे और फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी चुचियों पर रख दिए और मेरी चुचियों को अपनी मुट्ठी में भर कर पहले धीरे-धीरे और फिर से जोर-जोर से मसलने लगे। मुँह से तो "सी सी आह आह उई मां उई उई उफह्हह्हह्हह्ह मर गई, दर्द हो रहा है, मर गयी" की आवाजें निकलने लगी.

मैं चीखी "सी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबू बोली आई लव यू बाबू आराम से करो मुझे बहुत दर्द हो रहा है" तो पापा ने मेरी गुलाबी निप्पल को अपनी दोनों उंगली मैं दबा कर जोर-जोर से मसलने लगे।

मैं दर्द से और कुछ मजे से चिल्ला रही थी पर मुझे उस दर्द मैं भूलभुलैया का एहसास हो रहा था कुछ देर इसी तरह मेरे निप्पल और चुचियों को मसलने के बाद पापा झुके और उन्हें ने अपना मुंह मेरी चुची पर लगा दिया.

और मेरे गुलाबी निप्पल को अपने दांतों के बीच दबा लिया पापा अब मेरे निपल्स को अपने दांतों के बीच दबा कर खिंचने लगे और कभी मेरी पूरी चुची जितनी पापा के मुँह में आ सकती थी उसे दबा कर ऐसे चूसने लगे मर्द जब चुची चुस्ता ही तो इतना मजा आता है ये मुझे आज पता चला था , मेरा पुराना बॉय फ्रेंड तो साला चूत के ही पीछे पड़ा रहता था बस,

पापा बारी बारी से बदल कर मेरी दोनों चुचियों को चूस रहे थे जबकी मेरा हाथ पापा के सर पर था.
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और मैं अपने पापा अपनी चुचिया चुसवाते उनके सर के बालो में अपनी उंगली फिर रही थी। पापा तो मेरी चूचियों को ऐसे चूस रहे थे वो मेरी चूची ना हो कर कोई मीठा रसीला आम हो अब तो पापा मेरी दोनों चूचियों को अपने हाथो मैं दबा कर बारी से अपने होठों पर दबा कर चूसने लगे मेरे चूची को अपने दांतो से खींचने लगे.

मैं तो बस मैं ठे दर्द से आअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह है कर रही थी और मस्ती मैं अपने हाथ पापा के बालो मैं चला रही थी और कभी उनको अपनी चुचियों पर भींच रही थी। पापा अपने होठों का जोश मेरी चुचियों पर कर रहे थे जिस से मेरी चूत भी बे हिसाब पानी छोड़ रही थी , अब पापा ने इसी तरह चूसते चूसते मुझे चादर पर लिटा लिया. और खुद भी साथ में लेट कर मेरे मुम्मे चूसते रहे.

उस समय मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी कि मुझे ऐसा लग रहा था कि अगर पापा कुछ देर करते और इसी तरह मेरी चुचियों से खेलते रहे तो कहीं मुझ से अपने ऊपर कण्ट्रोल ख़त्म न हो जाये और मैं खुद ही उनको चोदने के लिए ना बोल दूं इसलिए मैंने अपनी दोनों बाहें फैला दीं, चादर को कस कर अपने दोनों हाथों से थाम लिया।

पर अब मुझ से कंट्रोल करना मुश्किल लग रहा था, जिसका सबूत मेरी गांड अब मूव हो कर खुद ऊपर नीचे हो रही थी। पापा की बार मेरी चूची चुस्ते ऊपर उठ कर मेरे होठों को चूसने लगते तो मेरी साँसें तेज चलने लगती और मैंने पापा को अपनी बाहो में कस लिया और आलिंगन में कामुक आवाज बोली

"पापा! क्या कर रहे है बस कीजिए ना."

मैं चादर पर किसी मछली की बहुत तड़प रही थी और चादर पर अपनी दोनों बाहें फैला अपनी मुट्ठी मैं चद्दर को भींच कर कस कर चिल्ला रही थी "आआआह्हह्हह्ह जीइइइइइइइ ये क्या कर रही है है गुदगुदी हो रही है आआआआह्हह्हह्ह धीरेईईईईईई रुक जइए ना बुस्भिकिजीईईईईईईईईईईईईई रुक जाइए ना बस भी कजिए आआआआआआह्हह्हह्ह."

पर पापा वो अब कहां रुकने वाले थे। मैं भी पापा का जोश बढ़ाने के लिए उनका साथ दे रही थी और पापा मेरे ऊपर चढ़े अपने मुँह को मेरे मुँह में डाले मेरी चुचियों को दबा रहे थे. कुछ देर इसी तरह मेरी चूचियां चूसते रहे।
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मैं काम उत्तेजना में "सी आह आह उई मां उई" करने लगी और बोली

"पापा मुझे कुछ हो रहा है प्लीज कुछ करो."

पापा ने कहा

"क्या करूं , मैं तो तैयार ही हूँ. बताओ न क्या करें?"

मैं बोली

"मुझे शर्म आती है प्लीज करो ना."

पापा बोले

"जब तक खुलकर नहीं बोलोगी तो मजा भी नहीं आएगा और मैं भी नहीं करूंगा।"

तो मैं बोली

"पापा अब रहा नहीं जाता। जल्दी से अपना यह हथियार मेरी चूत में डाल दो। मेरा कीड़ा मार दो , ठोक दो उसे मेरे अंदर ही, मुझे चोदो।"

पापा बोले

"सुमन! क्या कहा? जरा और खुलकर बोल मुझे सुनाई नहीं दिया."

वो मुस्कुरा रहे थे।

मैं बोली

"मुझे चोदो पापा, मेरे अंदर का कीड़ा मार दो. अपना लंड मेरी बुर में डाल और अपनी सुमन की चूत में घुसा हुआ कीड़ा निकाल दो अपनी बेटी को प्यार से चोदना, दर्द मत देना, मेरे पापा आई लव यू।"
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मुझे पता नहीं लग रहा था की कामवासना की आग में जल रही मैं कह क्या रही हूँ. दिमाग काम ही नहीं कर रहा था. कीड़ा निकालने के बहाने से पापा को चोदने का अवसर दे रही थी, पर बीच में चुदाई शब्द भी मेरे मुंह से निकल रहा था.

मैं तो जैसे पागल ही हो रही थी. पापा का गधे जैसा मोटा लंड मैंने अपने हाथ में पकड़ लिया।

हे राम क्या शाही लंड था पापा का और मेरा एक हाथ अपनी चूत पर चला गया

मेरी चूत पानी छोड़ रही थी, और अपनी चूत को सहलाने लगी

सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी दीवानी हो चुकी थी मेरी नज़र पापा के घोड़े जैसे लंड पर टिक गयी.

आंखो के सामने मुझे मेरे पापा ही पापा दिखायी दे रहे थे। उनका वो मजबूत गठेला शरीर, मजबूत कंधे, उनका चौड़ा सीना और सीना के घने बाल और सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी चूत दीवानी हो चुकी थी.
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सच मेरे पापा का क्या शाही लंड था अब इस शाही लंड पर मेरा नाम लिखा था आज मेरी चूत की आग को पापा अपने उसी शाही लंड से चूत के अंदर डालकर मेरी चूत के अकड़ को ठंडा कर रहे होंगे.

मेरे अंदर भयानक आग लगी हुई

सोचने लगी कि पापा मुझे कैसे और किस पोजीशन में चोदेंगे। और मैं पापा का साथ कितना दूंगी

आज मैंने विशेष तौर पर चूत की सफाई की थी. मेरी चूत जहां पहले थोड़े सी रेशमैं जुल्फी थी वहां अब सफाचट मैदान बन चुका था। अब मेरी पिच पापा के द्वारा बल्लेबाज़ी करने के लिए पूरी तरह से तैयार करा दी

अब कुछ ही मिनट की बात है पापा किसी भंवरे की तरह मेरी जवानी का रस चूस कर मुझे कलीसे फूल बनाने वाले यानी पापा मेरी नथ उतारने वाले थे जिस तरह मेरे पापा से मिलन को बेकरारी थी उसी तरह मेरी चूत भी अपने लिंग महाराज से मिलने को बेकरार थी.

सुबह से मेरी चूत पापा के लंड के स्वागत के लिए पलकें बिछाईं थी मेरी चूत मेरी हल्की हल्की सुरसुराहट हो रही थी सुबह से ..

पापा ने अपनी नज़र मेरे चेहरे पर गड़ा दी। पापा ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर रख और मेरा चेहरा उठा कर बोले, मेरी आँखों ने देखा तो मैंने शर्म और डरे से पापा की आँखों से देखा तो पापा बोले।

"सुमन! आज तो तुम बिना कपड़ों के बिलकुल एकदम स्वर्ग की अप्सरा लग रही हो। "
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पापा बोले

" हम दोनोमैं शर्म का क्या काम, मेरी बेटी। मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ. अगर तुम भी मुझसे प्यार करती हो तो मेरी आंखो में देख कर बोलो।"

तो मैंने पापा की आंखो मैं देख कर कह

"पाप मुझे शर्म आती है. पर पापा आई लव यू."

और तेजी से ये बोल कर अपना मुंह पापा की छाती में छुपा लिया और पापा ने मुझे अपनी बाहों में समेट लिया और मुझे सहलाने लगे।

मेरे पापा के सीने से चिपकी हुई थी अलग ही दुनिया मेरी थी। कुछ देर इसी तरह मुझे अपने सीने से चिपकाया रहने के बाद पापा ने फिर से मेरा चेहरा हाथ में लिया, अब मेरे होंठ पापा के होंठों के बिल्कुल पास थे पापा की गरम सांसे मेरे चेहरे पर पड रही थी कि पापा ने अपने होठों को मेरे होठों की और बढाया ही था.

मैं शर्म से मुंह घुमा

पापा ने फिर से अपने होठों को मेरे होंठों की और बड़ा दिया। मैं अब पापा को रोक नहीं सकती थी पापा ने अपने होठों से मेरे होठों को लॉक कर दिया.
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और मेरे उपर वाला होंठअपने होंठों मैं दबा कर चूसने लगे तो मैं भीपापा के होंठों को चूसने में उनका साथ देने लगी।

पापा के इस तरह मेरे होठों को चूसने से मेरे होठों एक दम बिना लिपस्टिक के गुलाभी हो गए . लेकिन पापा था जो आज ही मेरे होठों का सारा रस निचोड़ लेना चाहते था पापा ने फिर से मेरे होठों को अपने होठों से पकड़ लिया.

मेरी नाक पापा की नाक से और पापा की जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी कि तभी पापा ने मेरी जीभ को अपने होठों पर दबा कर खींच लिया और जीभ को चूसने लगे मेरी सांसे और भी तेज चलने लगी थी.

जिस तरह से पापा मेरे होठों को मेरी जिह्वा को चूस रहे थे मेरी जान गई थी कि आज की रात पापा मेरे बदन के हर अंग को ऐसे ही चूसेंगे। मेरा कच्ची कली से फूल बनने का वक्त आ गया था। पापा तो मेरे होठों का सारा रस ही चूस जाना चाहते हो।
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पापा इतनी मस्ती और अच्छी तरह से मेरे होठों का रस चूस रहे थे जैसा कोई भंवरा किसी कलीका रस चूस रहा हो। पापा के दवारा इस तरह अपने होठों का रस चूस रही थी। और मैंने अपनी दोनो बहे पापा के गले मिल डाल दी। मेरे और पापा दोनों के होंठबुरी तरह से चिपके हुए थे।

पापा मेरे होंठको चूस रहे थे और उनके कठौर हाथ मेरी पीठ सहला रहे थे

आज मुझे एक नया ही एहसास हो रहा था कि पूरे बदन मेरी गुदगुदी सी हो रही थी। मेरे प्यारे पापा ने अपनी जीभ मेरे मेरे मुँह में डाल दी अब उनकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी तो उनको ने मेरी जीभ को अपने होठों पर दबा लिया और मेरी जीभ को चूसने लगे।

यहाँ सिर्फ हमारे चुम्बनो की आवाज ही गूंज रही थी। मेरे और पापा के होंठएक दूसरे के होठों से ऐसे चिपके थे कि जैसे उनको फेविकोल से चिपका दिया हो। पापा मेरे होठों को बुरी तरह से चूस रहे थे और मैं उनकी बांहों मैं मचल रही थी मस्ती से पागल हो रही थी
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मेरे से अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. मैंने अपने हाथ में पकडे हुए पापा के लण्ड को अपनी चूत पर टिका दिया. पापा का लण्ड बहुत गर्म था.

मेरी चूत से भी बहुत पानी चू रहा था. चूत इतनी गीली हो गयी थी कि लौड़ा बिना तेल या किसी चिकनाई के भी घुस सकता था.

मैं पापा के लण्ड के सुपाडे को अपनी चूत की दरार में रगड़ने और घिसने लगी.

पापा समझ रहे थे कि उनकी बेरी बहुत प्यासी हो चुकी है. वो शायद इसी समय का इन्तजार कर रहे थे. क्योंकि वो जानते थे कि उनका लण्ड बहुत मोटा और बड़ा है. मैं अपने पापा से पहली बार चुदने वाली हूँ तो मैं उनका लौड़ा सहन नहीं कर पाऊँगी.

इसीलिए पापा चाहते थे कि मेरी वासना हद से ज्यादा बढ़ जाए और चूत बिलकुल गीली हो जाये तो ही चुदाई करनी चाहिए उन्हें.

उस समय तो पापा का लंड किसी पागल सांड की तरह दिख रहा था जो किसी लहलहाते खेत के पास खड़ा हो कर उस खेत को उजाड़ने के लिए तैयार हो। पापा मेरी दोनों टांगों के बीच थे और उनका घोड़े के जैसा लंड मेरे तालाब में उतर कर मेरे तालाब की गहराई को मापने के लिए मचल रहा था।

पापा का घोड़े के लंड जैसा लंड मेरे तालाब की गहराई में उतर कर ये देखना चाहता था कि मेरे तालाब में कितना पानी है।

मैं उनके सुपाडे को चूत में रगड़ रही थी. और पापा ने मेरी दोनों टांगों को अपने हाथ से पकड़ कर पूरी तरह से खोल दिया.

पापा के लंड का सुपाड़ा अपनी नई नवेली रानी के साथ चुम्मा चाटी कर रहा था उसे बेहला फुसला रहा था। पापा के लौड़े का गरम गरम स्पर्श अपनी चूत पर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी चूत पर कोई गरम गरम लोहे की रॉड रख दी हो.
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मैं बुरी तरह से डर भी रही थी क्योंकि अब मेरी चूत का बाजा बजने वाला था.
hai ab fir wait kerna padega 😅
 

Ting ting

Ting Ting
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139
अब काफी देर हो रही थी. मैं ज्यादा समय नहीं लेना चाहती थी क्योंकि एक तो घर में मम्मी और नानी थी और फिर हम सिर्फ किताब खरीदने का बहाना कर के आये थे तो कितनी देर लगा सकते थे आखिर,

तो मैंने पापा को कहा

"पापा! अब तो आप का लौड़ा गीला हो गया है. प्लीज देर न लगाएं और इसे जल्दी से मेरे अंदर डाल कर कीड़े को मार दें."

पापा समझ गए की उनकी बेटी चुदाई के लिए तैयार है. तो उन्होंने कहा

"सुमन! यहाँ और कोई जगह तो है नहीं तो ऐसा करो की तुम स्कूटर पर हाथ रख कर घोड़ी बन जाओ और मैं पीछे से तुम्हारी चूत मैं लण्ड घुसाता हूँ. "
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मैं तो आज चुदवाने की पूरी तैयारी कर के आई थी तो मैंने मुस्कुराते हुए स्कूटर की डिग्गी खोली और उस में से एक चादर निकाल कर एक साइड में बिछा दी.

पापा तो हैरान हो गए. वो मुझे पूछे

"अरे बेटी! यह क्या तुम चुदाई के लिए चादर तक ले के आयी हो?"

मैंने अनजान सा बनते हुए कहा

"पापा! यह चादर तो कई दिन से इस में पड़ी थी. मुझे याद आया तो निकाल ली। "

पर पापा समझदार थे वो समझ गए की उनकी बेटी आज चुदाई के लिए पूरी तरह से तैयारी कर के आयी है. यह तो पापा के लिए ख़ुशी की बात थी.

चादर पर हम बाप बेटी आराम से अपनी पहली चुदाई कर सकते थे.
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पहले तो शायद पापा ने घोड़ी बना कर फटाफट चुदाई का सोचा था पर जब उन्होंने मेरे पास चादर तक का इंतजाम देखा तो उन्होंने भी अब पूरे मजे ले कर चोदने का सोचा और बोले

"बेटी ऐसा करो, कि तुम अपनी यह टी शर्ट भी उतार दो फिर आराम से कीड़ा मारने की कोशिश करते हैं."

मैं तो चुदाई करवाने की सोच रही थी तो हैरानी से पूछा

"पापा कीड़ा तो मेरी चूत में घुसा है, और उसे आपने अपने इस हथियार से मारना है, और मेरी स्कर्ट आप खोल चुके हैं और अपनी लुंगी भी उतार चुके हैं तो फिर मेरी टी शर्ट क्यों खोलनी है.?"

पापा अपनी शर्ट खोलते बोले

"सुमन! ऐसा है की तुम अभी छोटी हो. और मेरा लण्ड बहुत मोटा है, इसे अंदर करने के लिए जोर लगाना पड़ेगा. यदि मैं तुम्हारी चूचिया चाटूँगा तो अपने आप मेरा लौड़ा सख्त हो जायेगा और आराम से घुस जायेगा. और नंगे बदन से कीड़ा मरवाने में तुम्हे अच्छा भी बहुत लगेगा. "

मैं समझ गयी कि पापा पूरा नंगा करके मुम्मे चूसते हुए मुझे चोदना चाहते हैं. तो मैंने ख़ुशी से अपनी टी शर्ट उतार दी. अब हम दोनों बाप बेटी पूरे नंगे थे।

पापा ने मुझे नंगा देखा और मुस्कुरा पड़े. मुझे बहुत शर्म आयी और मैंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया.

पापा ने प्यार से अपनी एक ऊँगली मेरी ठोड़ी के नीचे रख कर मेरा चेहरा ऊपर किया और मेरी आँखों में देखा.

मैं चाहे खुदा पापा से चुदवाने को मरी जा रही थी पर अब जब चुदाई का असली टाइम आया तो शर्म आ रही थी,

मैंने आँखें बंद कर ली. पापा मुझे प्यार से बोले

"सुमन! शर्मा क्यों रही है. मेरी तरफ देख तो सही. "

मैंने अपनी आँखें खोली. सामने पापा मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे.

मुझे इतनी शर्म आयी की मैंने झट से आगे बढ़ कर पापा को आलिंगन में ले लिया और अपना चेहरा उनकी नंगी छाती में छुपा लिया.

और पापा के अकड़े हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ कर हिलाते हुए कहा
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"पापा! मुझे अजीब सा लग रहा था. प्लीज मुझे तड़पाओ मत और जल्दी से इस को मेरे अंदर घुसा दो ताकि मेरी तकलीफ जल्दी से ठीक हो सके। "

पापा ने अपना एक हाथ मेरी नंगी चूची पर रख दिया और उसे मसलने लगे.

पापा ने मुझे थोड़ा अलग किया और मेरी दोनों चूचिओं को देखने लगे मुझे शर्म तो आ रही थी पर क्या करती।

पापा कुछ देर मेरी इन नंगी चुचियों को देखते रहे और फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी चुचियों पर रख दिए और मेरी चुचियों को अपनी मुट्ठी में भर कर पहले धीरे-धीरे और फिर से जोर-जोर से मसलने लगे। मुँह से तो "सी सी आह आह उई मां उई उई उफह्हह्हह्हह्ह मर गई, दर्द हो रहा है, मर गयी" की आवाजें निकलने लगी.

मैं चीखी "सी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबू बोली आई लव यू बाबू आराम से करो मुझे बहुत दर्द हो रहा है" तो पापा ने मेरी गुलाबी निप्पल को अपनी दोनों उंगली मैं दबा कर जोर-जोर से मसलने लगे।

मैं दर्द से और कुछ मजे से चिल्ला रही थी पर मुझे उस दर्द मैं भूलभुलैया का एहसास हो रहा था कुछ देर इसी तरह मेरे निप्पल और चुचियों को मसलने के बाद पापा झुके और उन्हें ने अपना मुंह मेरी चुची पर लगा दिया.

और मेरे गुलाबी निप्पल को अपने दांतों के बीच दबा लिया पापा अब मेरे निपल्स को अपने दांतों के बीच दबा कर खिंचने लगे और कभी मेरी पूरी चुची जितनी पापा के मुँह में आ सकती थी उसे दबा कर ऐसे चूसने लगे मर्द जब चुची चुस्ता ही तो इतना मजा आता है ये मुझे आज पता चला था , मेरा पुराना बॉय फ्रेंड तो साला चूत के ही पीछे पड़ा रहता था बस,

पापा बारी बारी से बदल कर मेरी दोनों चुचियों को चूस रहे थे जबकी मेरा हाथ पापा के सर पर था.
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और मैं अपने पापा अपनी चुचिया चुसवाते उनके सर के बालो में अपनी उंगली फिर रही थी। पापा तो मेरी चूचियों को ऐसे चूस रहे थे वो मेरी चूची ना हो कर कोई मीठा रसीला आम हो अब तो पापा मेरी दोनों चूचियों को अपने हाथो मैं दबा कर बारी से अपने होठों पर दबा कर चूसने लगे मेरे चूची को अपने दांतो से खींचने लगे.

मैं तो बस मैं ठे दर्द से आअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह है कर रही थी और मस्ती मैं अपने हाथ पापा के बालो मैं चला रही थी और कभी उनको अपनी चुचियों पर भींच रही थी। पापा अपने होठों का जोश मेरी चुचियों पर कर रहे थे जिस से मेरी चूत भी बे हिसाब पानी छोड़ रही थी , अब पापा ने इसी तरह चूसते चूसते मुझे चादर पर लिटा लिया. और खुद भी साथ में लेट कर मेरे मुम्मे चूसते रहे.

उस समय मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी कि मुझे ऐसा लग रहा था कि अगर पापा कुछ देर करते और इसी तरह मेरी चुचियों से खेलते रहे तो कहीं मुझ से अपने ऊपर कण्ट्रोल ख़त्म न हो जाये और मैं खुद ही उनको चोदने के लिए ना बोल दूं इसलिए मैंने अपनी दोनों बाहें फैला दीं, चादर को कस कर अपने दोनों हाथों से थाम लिया।

पर अब मुझ से कंट्रोल करना मुश्किल लग रहा था, जिसका सबूत मेरी गांड अब मूव हो कर खुद ऊपर नीचे हो रही थी। पापा की बार मेरी चूची चुस्ते ऊपर उठ कर मेरे होठों को चूसने लगते तो मेरी साँसें तेज चलने लगती और मैंने पापा को अपनी बाहो में कस लिया और आलिंगन में कामुक आवाज बोली

"पापा! क्या कर रहे है बस कीजिए ना."

मैं चादर पर किसी मछली की बहुत तड़प रही थी और चादर पर अपनी दोनों बाहें फैला अपनी मुट्ठी मैं चद्दर को भींच कर कस कर चिल्ला रही थी "आआआह्हह्हह्ह जीइइइइइइइ ये क्या कर रही है है गुदगुदी हो रही है आआआआह्हह्हह्ह धीरेईईईईईई रुक जइए ना बुस्भिकिजीईईईईईईईईईईईईई रुक जाइए ना बस भी कजिए आआआआआआह्हह्हह्ह."

पर पापा वो अब कहां रुकने वाले थे। मैं भी पापा का जोश बढ़ाने के लिए उनका साथ दे रही थी और पापा मेरे ऊपर चढ़े अपने मुँह को मेरे मुँह में डाले मेरी चुचियों को दबा रहे थे. कुछ देर इसी तरह मेरी चूचियां चूसते रहे।
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मैं काम उत्तेजना में "सी आह आह उई मां उई" करने लगी और बोली

"पापा मुझे कुछ हो रहा है प्लीज कुछ करो."

पापा ने कहा

"क्या करूं , मैं तो तैयार ही हूँ. बताओ न क्या करें?"

मैं बोली

"मुझे शर्म आती है प्लीज करो ना."

पापा बोले

"जब तक खुलकर नहीं बोलोगी तो मजा भी नहीं आएगा और मैं भी नहीं करूंगा।"

तो मैं बोली

"पापा अब रहा नहीं जाता। जल्दी से अपना यह हथियार मेरी चूत में डाल दो। मेरा कीड़ा मार दो , ठोक दो उसे मेरे अंदर ही, मुझे चोदो।"

पापा बोले

"सुमन! क्या कहा? जरा और खुलकर बोल मुझे सुनाई नहीं दिया."

वो मुस्कुरा रहे थे।

मैं बोली

"मुझे चोदो पापा, मेरे अंदर का कीड़ा मार दो. अपना लंड मेरी बुर में डाल और अपनी सुमन की चूत में घुसा हुआ कीड़ा निकाल दो अपनी बेटी को प्यार से चोदना, दर्द मत देना, मेरे पापा आई लव यू।"
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मुझे पता नहीं लग रहा था की कामवासना की आग में जल रही मैं कह क्या रही हूँ. दिमाग काम ही नहीं कर रहा था. कीड़ा निकालने के बहाने से पापा को चोदने का अवसर दे रही थी, पर बीच में चुदाई शब्द भी मेरे मुंह से निकल रहा था.

मैं तो जैसे पागल ही हो रही थी. पापा का गधे जैसा मोटा लंड मैंने अपने हाथ में पकड़ लिया।

हे राम क्या शाही लंड था पापा का और मेरा एक हाथ अपनी चूत पर चला गया

मेरी चूत पानी छोड़ रही थी, और अपनी चूत को सहलाने लगी

सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी दीवानी हो चुकी थी मेरी नज़र पापा के घोड़े जैसे लंड पर टिक गयी.

आंखो के सामने मुझे मेरे पापा ही पापा दिखायी दे रहे थे। उनका वो मजबूत गठेला शरीर, मजबूत कंधे, उनका चौड़ा सीना और सीना के घने बाल और सब से बड़ी बात उनकी टांगों के बीच किसी शेर की तरह दहाड़ता लंड जिसकी तो मेरी चूत दीवानी हो चुकी थी.
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सच मेरे पापा का क्या शाही लंड था अब इस शाही लंड पर मेरा नाम लिखा था आज मेरी चूत की आग को पापा अपने उसी शाही लंड से चूत के अंदर डालकर मेरी चूत के अकड़ को ठंडा कर रहे होंगे.

मेरे अंदर भयानक आग लगी हुई

सोचने लगी कि पापा मुझे कैसे और किस पोजीशन में चोदेंगे। और मैं पापा का साथ कितना दूंगी

आज मैंने विशेष तौर पर चूत की सफाई की थी. मेरी चूत जहां पहले थोड़े सी रेशमैं जुल्फी थी वहां अब सफाचट मैदान बन चुका था। अब मेरी पिच पापा के द्वारा बल्लेबाज़ी करने के लिए पूरी तरह से तैयार करा दी

अब कुछ ही मिनट की बात है पापा किसी भंवरे की तरह मेरी जवानी का रस चूस कर मुझे कलीसे फूल बनाने वाले यानी पापा मेरी नथ उतारने वाले थे जिस तरह मेरे पापा से मिलन को बेकरारी थी उसी तरह मेरी चूत भी अपने लिंग महाराज से मिलने को बेकरार थी.

सुबह से मेरी चूत पापा के लंड के स्वागत के लिए पलकें बिछाईं थी मेरी चूत मेरी हल्की हल्की सुरसुराहट हो रही थी सुबह से ..

पापा ने अपनी नज़र मेरे चेहरे पर गड़ा दी। पापा ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर रख और मेरा चेहरा उठा कर बोले, मेरी आँखों ने देखा तो मैंने शर्म और डरे से पापा की आँखों से देखा तो पापा बोले।

"सुमन! आज तो तुम बिना कपड़ों के बिलकुल एकदम स्वर्ग की अप्सरा लग रही हो। "
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पापा बोले

" हम दोनोमैं शर्म का क्या काम, मेरी बेटी। मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ. अगर तुम भी मुझसे प्यार करती हो तो मेरी आंखो में देख कर बोलो।"

तो मैंने पापा की आंखो मैं देख कर कह

"पाप मुझे शर्म आती है. पर पापा आई लव यू."

और तेजी से ये बोल कर अपना मुंह पापा की छाती में छुपा लिया और पापा ने मुझे अपनी बाहों में समेट लिया और मुझे सहलाने लगे।

मेरे पापा के सीने से चिपकी हुई थी अलग ही दुनिया मेरी थी। कुछ देर इसी तरह मुझे अपने सीने से चिपकाया रहने के बाद पापा ने फिर से मेरा चेहरा हाथ में लिया, अब मेरे होंठ पापा के होंठों के बिल्कुल पास थे पापा की गरम सांसे मेरे चेहरे पर पड रही थी कि पापा ने अपने होठों को मेरे होठों की और बढाया ही था.

मैं शर्म से मुंह घुमा

पापा ने फिर से अपने होठों को मेरे होंठों की और बड़ा दिया। मैं अब पापा को रोक नहीं सकती थी पापा ने अपने होठों से मेरे होठों को लॉक कर दिया.
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और मेरे उपर वाला होंठअपने होंठों मैं दबा कर चूसने लगे तो मैं भीपापा के होंठों को चूसने में उनका साथ देने लगी।

पापा के इस तरह मेरे होठों को चूसने से मेरे होठों एक दम बिना लिपस्टिक के गुलाभी हो गए . लेकिन पापा था जो आज ही मेरे होठों का सारा रस निचोड़ लेना चाहते था पापा ने फिर से मेरे होठों को अपने होठों से पकड़ लिया.

मेरी नाक पापा की नाक से और पापा की जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी कि तभी पापा ने मेरी जीभ को अपने होठों पर दबा कर खींच लिया और जीभ को चूसने लगे मेरी सांसे और भी तेज चलने लगी थी.

जिस तरह से पापा मेरे होठों को मेरी जिह्वा को चूस रहे थे मेरी जान गई थी कि आज की रात पापा मेरे बदन के हर अंग को ऐसे ही चूसेंगे। मेरा कच्ची कली से फूल बनने का वक्त आ गया था। पापा तो मेरे होठों का सारा रस ही चूस जाना चाहते हो।
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पापा इतनी मस्ती और अच्छी तरह से मेरे होठों का रस चूस रहे थे जैसा कोई भंवरा किसी कलीका रस चूस रहा हो। पापा के दवारा इस तरह अपने होठों का रस चूस रही थी। और मैंने अपनी दोनो बहे पापा के गले मिल डाल दी। मेरे और पापा दोनों के होंठबुरी तरह से चिपके हुए थे।

पापा मेरे होंठको चूस रहे थे और उनके कठौर हाथ मेरी पीठ सहला रहे थे

आज मुझे एक नया ही एहसास हो रहा था कि पूरे बदन मेरी गुदगुदी सी हो रही थी। मेरे प्यारे पापा ने अपनी जीभ मेरे मेरे मुँह में डाल दी अब उनकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी तो उनको ने मेरी जीभ को अपने होठों पर दबा लिया और मेरी जीभ को चूसने लगे।

यहाँ सिर्फ हमारे चुम्बनो की आवाज ही गूंज रही थी। मेरे और पापा के होंठएक दूसरे के होठों से ऐसे चिपके थे कि जैसे उनको फेविकोल से चिपका दिया हो। पापा मेरे होठों को बुरी तरह से चूस रहे थे और मैं उनकी बांहों मैं मचल रही थी मस्ती से पागल हो रही थी
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मेरे से अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. मैंने अपने हाथ में पकडे हुए पापा के लण्ड को अपनी चूत पर टिका दिया. पापा का लण्ड बहुत गर्म था.

मेरी चूत से भी बहुत पानी चू रहा था. चूत इतनी गीली हो गयी थी कि लौड़ा बिना तेल या किसी चिकनाई के भी घुस सकता था.

मैं पापा के लण्ड के सुपाडे को अपनी चूत की दरार में रगड़ने और घिसने लगी.

पापा समझ रहे थे कि उनकी बेरी बहुत प्यासी हो चुकी है. वो शायद इसी समय का इन्तजार कर रहे थे. क्योंकि वो जानते थे कि उनका लण्ड बहुत मोटा और बड़ा है. मैं अपने पापा से पहली बार चुदने वाली हूँ तो मैं उनका लौड़ा सहन नहीं कर पाऊँगी.

इसीलिए पापा चाहते थे कि मेरी वासना हद से ज्यादा बढ़ जाए और चूत बिलकुल गीली हो जाये तो ही चुदाई करनी चाहिए उन्हें.

उस समय तो पापा का लंड किसी पागल सांड की तरह दिख रहा था जो किसी लहलहाते खेत के पास खड़ा हो कर उस खेत को उजाड़ने के लिए तैयार हो। पापा मेरी दोनों टांगों के बीच थे और उनका घोड़े के जैसा लंड मेरे तालाब में उतर कर मेरे तालाब की गहराई को मापने के लिए मचल रहा था।

पापा का घोड़े के लंड जैसा लंड मेरे तालाब की गहराई में उतर कर ये देखना चाहता था कि मेरे तालाब में कितना पानी है।

मैं उनके सुपाडे को चूत में रगड़ रही थी. और पापा ने मेरी दोनों टांगों को अपने हाथ से पकड़ कर पूरी तरह से खोल दिया.

पापा के लंड का सुपाड़ा अपनी नई नवेली रानी के साथ चुम्मा चाटी कर रहा था उसे बेहला फुसला रहा था। पापा के लौड़े का गरम गरम स्पर्श अपनी चूत पर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी चूत पर कोई गरम गरम लोहे की रॉड रख दी हो.
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मैं बुरी तरह से डर भी रही थी क्योंकि अब मेरी चूत का बाजा बजने वाला था.
 
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