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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Chutiyadr

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24 दिसम्बर 2001, सोमवार, 09:30; “सुप्रीम”

आज सुबह से ही शिप का डेक, पूरी तरह भर गया था । मौसम आज भी साफ था । सूर्य की स्निग्ध सी किरणें समुद्र की लहरों से टकरा कर, एक अजीब सी चमक उत्पन्न कर रहीं थीं । सुप्रीम पूरे जोश से
समुद्र का सीना चीरता हुआ, अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा था । प्रोफेसर अलबर्ट, अपनी पत्नि मारिया के साथ एक एकांत जगह ढूंढकर आराम से बैठे थे।

“कितना अच्छा लग रहा है ना मारिया।“ अलबर्ट ने सुनहली धूप पर एक नजर डालते हुए कहा -

“शहर की चीख-पुकार से भरी जिंदगी से दूर, अकेले तन्हाई में बैठना। ना कोई काम करने की टेंशन, न ही पैसे के पीछे भागने वाली जिंदगी। सभी कुछ सुकून से भरा हुआ।“

“सही कह रहे हैं आप।“ मारिया ने भी अलबर्ट की हां में हां मिलाई-

“आपका दिन-रात अपने शोध के पीछे इस तरह भागना । हमें तो बात करने का भी समय नहीं मिल पाता था । अब तो आज को देखकर बस दिल यही कहता है, कि यहीं कहीं आस-पास किसी सुनसान द्वीप पर चल कर रहा जाए। जहां पर हमारे और आपके सिवा और कोई इंसान ना हो।“

“सच! आज जिंदगी को देखकर यह लगता है कि मैंने अपने पूरे जीवन में
आखिर क्या हासिल कर लिया ?“ अलबर्ट ने खड़े होते हुए, एक लंबी सांस लेते हुए कहा-

“जवानी से आज तक भागता रहा,..... भागता रहा...... सिर्फ भागता रहा। किस चीज के पीछे ......पता नहीं ?.....क्या पाया? ...........मालूम नहीं। क्या यही जिंदगी थी ?“

थोड़ी देर रुक कर अलबर्ट ने मारिया को सूनी आंखों में झांकते हुए, पुनः कहना शुरू किया-

“आज हमारी शादी को लगभग 40 साल होने वाले हैं। लेकिन आज तक मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पाया। यहां तक कि वक्त भी नहीं।“
बोलते-बोलते अलबर्ट इतना भावुक हो गया, कि उसकी आंखों की दोनों कोरों में पानी आ गया। फिर वह धीरे से चलकर मारिया के पास आया और उसकी तरफ अपना दाहिना हाथ बढ़ा दिया। मारिया ने भी अपना दांया हाथ उठाकर अलबर्ट के हाथ पर रख दिया अलबर्ट के थोड़ा सहारा देते ही, मारिया उठकर खड़ी हो गई। अलबर्ट ने उसका हाथ, इस तरह से थाम लिया, मानो अब वह पूरी जिंदगी इसे ना छोड़ने वाला हो। धीरे-धीरे चलते हुए दोनों डेक की रेलिंग तक पहुंच गये। दोनों ही शांत भाव से इस तरह से सागर को निहार रहे थे। मानो वह इनकी जिंदगी का आखिरी पड़ाव हो।


“अब तुम बिल्कुल फिक्र ना करना मारिया।“ अलबर्ट ने खामोशी तोड़ते हुए कहा-

“आज से मैं दिन-रात तुम्हारे साथ रहूंगा। तुम जो कहोगी, मैं वही करूंगा। अब तो मौत ही हम दोनों को जुदा कर पायेगी।“

“इन बातों और इन लहरों को देखकर तुम्हें कुछ याद नहीं आता अलबर्ट।“ मारिया ने अलबर्ट को बीते दिनों की याद दिला ते हुए कहा। अलबर्ट ने सोचनीय मुद्रा में दिमाग पर जोर डाला। पर उसे कुछ समझ नहीं आया कि मारिया किस बात को याद दिलाने की कोशिश कर रही है। अन्ततः उसने सिर हिलाकर पूछा-

“क्या ?“

“हम लोग लगभग 40 साल पहले एक ऐसे ही शिप पर पहली बार मिले थे और उसके कुछ दिनों बाद, तुमने मुझसे यही शब्द बोले थे कि’ अब मौत ही हम दोनों को जुदा कर पायेगी’ और उसके कुछ दिनों बाद हम लोगों ने शादी भी कर ली थी।“

“वह दिन तो कुछ और ही थे।“ अलबर्ट भी शायद अतीत के कोने में चला गया-

“तब तो मैं कॉलेज में दोस्तों के साथ शायरी भी लिखा करता था। और........और तुम्हें वो शायरी याद है, जो मैंने तुम्हें पहली बार लिखकर सुनाई थी।“

एकदम से अलबर्ट बीते दिनों को याद कर खुशी से झूम उठा। उसे एकदम से लगने लगा, कि वह फिर से जवान हो गया। लेकिन इससे पहले कि वह किसी कालेज ब्वाय की तरह शायरों के अंदाज में शायरी कर पाता, माइकल को उधर आते देखकर, सामान्य हो गया। अलबर्ट
की इस स्टाइल पर मारिया को इतनी तेज हंसी आई कि हंसते-हंसते उसका बुरा हाल हो गया।

“क्या बात है अलबर्ट सर! मैडम बहुत तेज हंस रहीं हैं? क्या हो गया ?“ माइकल ने आते ही पूछ लिया।

“कुछ नहीं बेटे ! कुछ पुरानी बातें याद आ गई थीं।“ अलबर्ट ने जवाब दिया-

“उन्हें छोड़ो, अपनी सुनाओ, आजकल क्या चल रहा है?“

“फिलहाल सिडनी वापस जा रहा हूं सर। .......“ बोलते-बोलते रुक कर
माइकल ने हवा में हाथ मिलाया जो कि एक इशारा था, दूर खड़े शैफाली व मारथा को उधर बुलाने का।

“अच्छा ! यही है तुम्हारा परिवार।“ अलबर्ट ने मारथा व शैफाली पर नजर डालते हुए कहा-

“और ये है तुम्हारी बच्ची शैफाली। जिसके बारे में अक्सर तुम मिलने पर मुझे बताया करते थे।“ तब तक दोनों नजदीक आ गए थे। मारथा ने सिर झुका कर बारी-बारी से अलबर्ट व मारिया को अभिवादन किया।
आते ही शैफाली ने अंदाजे से अलबर्ट की ओर हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा-

“हैलो ग्रैंड अंकल!“

“ग्रैंड अंकल........।“ अलबर्ट यह शब्द सुन आश्चर्य से भर उठा- ये ग्रैंड अंकल क्या होता है बेटे ? ग्रैंड फादर तो सुना है, पर यह ग्रैंड अंकल.....।“

“मैं तो आपको ग्रैंड अंकल ही बोलूंगी। क्यों कि डैड के जितने दोस्त आते हैं वह मेरे अंकल हुए। तो आप तो मेरे डैड के भी सर हो और ग्रैंड भी। इसलिए मैं आपको ग्रैंड अंकल ही बोलूंगी।“ शैफाली नें तर्क देते हुए कहा।

“अच्छा-अच्छा ठीक है। तुम मुझे ग्रैंड अंकल ही कहना।“ अलबर्ट ने सिर हिलाते हुए कहा।

“तुमने जैसा इसके बारे में बताया था।“ अलबर्ट ने माइकल से मुखातिब होकर कहा- “यह ठीक वैसी ही है।“

तभी शैफाली ने दोनों को बीच में टोकते हुए कहा- “ग्रैंड अंकल आप के बाएं कंधे पर एक चींटी चल रही है, उसे हटा लीजिए।“

“व्हाट! अलबर्ट ने आश्चर्य से पहले शैफाली की तरफ देखा। फिर अपने बाएं कंधे पर, जिस पर वास्तव में एक चींटी चल रही थी। उसने चींटी को कंधे से झाड़ कर दोबारा शैफाली की ओर देखा -

“बेटे तुम्हें तो दिखा ई नहीं देता। फिर तुमने कैसे जाना कि मेरे बाएं कंधे पर चींटी चल रही है?“ अलबर्ट ने विस्मय से शैफाली की तरफ देखते हुए कहा।

“अरे ग्रैंड अंकल! आपने कभी चींटियों को एक कतार में चलते देखा है।“ शैफाली ने अलबर्ट से उल्टा सवाल कर दिया-

“अगर हां ! तो आप यह बताइए कि वह एक कतार में क्यों चलती हैं?“

“सभी चींटियां ‘फेरोमोंस‘ नामक एक विशेष प्रकार की गंध छोड़ती हैं।“ अलबर्ट में अपने ज्ञान का पूरा परिचय देते हुए कहा-

“जिससे उसके पीछे आने वाली
चींटियां उस गंध का अनुसरण करती हुई चलती हैं।“

“बिल्कुल ठीक कहा आपने ग्रैंड अंकल! शैफाली ने चुटकी बजाते हुए कहा-

“तो जो चींटी आपके कंधे पर चल रही थी। वह भी गंध छोड़ती हुई चल रही थी। जिसे सूंघकर मैंने जान लिया, कि एक चींटी आपके कंधे पर है।“

“यह कैसे संभव है?“ अलबर्ट बिल्कुल हैरान रह गया -


“तुम्हें चींटी की गंध कैसे मिल गई। वह तो इतनी हल्की होती है, कि चींटी के अलावा, अन्य बड़े जानवर भी उसे सूंघ नहीं पाते।“

“आपको कैसे पता कि अन्य जानवर उसे सूंघ नहीं पाते?“ शैफाली ने एक प्रश्न का गोला और दाग दिया -

“यह भी तो हो सकता है कि उसे जानवर सूंघ लेता हो पर वह सुगंध उसके मतलब की नहीं रहती, इसलिए वह उस पर ध्यान ना देता हो।“

“हो सकता है ।“ अलबर्ट ने गड़बड़ा कर जवाब दिया- “पर तुम्हें कैसे उसकी गंध मिल गयी ?“

“ग्रैंड अंकल! क्यों कि मैं जन्म से ही अंधी हूं। इसलिए मुझे हर चीज का अनुमान लगाना पड़ता है। जिसके कारण मेरी नाक व कान की इंद्रियां बहुत तीव्र हो गई हैं। मैं जो चीजें सुन व सूंघ सकती हूं, उसे सामान्य आदमी नहीं कर सकता।“

“बड़े आश्चर्य की बात है। मैंने सिर्फ इस बारे में सुना ही था।“ अलबर्ट लगातार विस्मय से बोल रहा था-

“देख पहली बार रहा हूं। अच्छा ये बताओ कि तुम्हें यह कैसे पता चला ? कि वह चींटी, मेरे बांए कंधे पर है।“

“सिंपल सी बात है ! शैफाली ने शांत स्वर में जवाब दिया - “आपने थोड़ी देर पहले मुझसे बात की। जिससे मैं आपकी आवाज सुनकर यह जान गई कि आपकी लंबाई 5 फुट 9 इंच है। आपके मुंह से निकलती आवाज और चींटी के बीच की खुशबू के बीच की दूरी लगभग 6 इंच थी। और आपके बांई तरफ से आ रही थी। जिससे यह पता चला कि वह चींटी आप के बांए कंधे पर है।“

“लेकिन बेटा ! यह भी तो हो सकता था कि मेरे बगल तुम्हारे डैड खड़े हैं। वह चींटी उनके कंधे पर भी तो हो सकती थी।“ अलबर्ट ने अब दिलचस्पी लेते हुए शैफाली का पूरा इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया।

“हो सकती थी ।......... जरूर हो सकती थी । परंतु आप इधर-उधर टहल कर बात कर रहे थे और जैसे-जैसे आप घूम रहे थे। वैसे-वैसे चींटी की गंध भी कम या ज्यादा हो रही थी । जबकि मेरे डैड एक ही स्थान पर खड़े हो कर बात कर रहे हैं।“

अब अलबर्ट का सारा ध्यान इधर-उधर से हटकर, पूरा का पूरा शैफाली की बातों में लग गया, मानो उसे अपने शोध का एक हथियार मिल गया हो।

“अच्छा बेटे! यह बताओ कि मेरे पैंट की दाहिनी जेब में क्या है?“ अलबर्ट ने पूरा परीक्षण लेते हुए कहा।

“आपकी दाहिनी जेब में एक लोहे की छोटी सी डिबिया में सौंफ रखी है।“ शैफाली ने निश्चिंत हो कर जवाब दिया । अलबर्ट शैफाली की बात को सुनकर भौचक्का सा खड़ा रह गया। क्यों कि उसकी पैंट की दाहिनी जेब में, वास्तव में लोहे की छोटी सी डिबिया में सौंफ थी।

“बेटे! यह तुमने कैसे जाना ?“ अलबर्ट ने शैफाली से सवाल किया।

“आपके चलने से बार-बार डिबिया के अंदर रखी सौंफ डिबिया की दीवार से टकरा कर एक ध्वनि उत्पन्न कर रही थी। अगर डिबिया, प्लास्टिक की होती तो वह ध्वनि थोड़ी दूसरे तरीके से आती। इस तरह से बार-बार सौंफ का डिबिया से टकराना, यह साबित करता है, कि उसमें जो भी चीज है, वह बहुत छोटे-छोटे कणों में है।“

“छोटे-छोटे कणों में तो कुछ भी हो सकता है?“ अलबर्ट ने शैफाली की बात को काटते हुए कहा - “फिर यह कैसे जाना कि उसमें सौंफ ही है।“

“आपके मुंह से आती सौंफ की खुशबू से, जो लगभग 1 घंटे पहले आपने खाई थी।“ शैफाली ने कहा। शैफाली का हर जवाब अलबर्ट को आश्चर्य से भर रहा था । अब लगा जैसे अलबर्ट को कोई नया खेल मिल गया हो। उसने पास से जा रहे वेटर को रोककर, उसकी फल वाली टोकरी से एक सेब व एक अमरुद निकाल लिया । फिर वेटर से चाकू लेकर सेब व अमरुद को शैफाली के सामने रखा । और फिर अमरूद के चार टुकड़े कर दिए।

“बेटे! यह बताओ कि तुम्हारे सामने अभी-अभी मैंने एक सेब को काटकर कुछ टुकड़ों में बांट दिया है। क्या तुम बता सकती हो ? कि मैंने सेब के कितने टुकड़े किए हैं?“ अलबर्ट ने झूठ बोलते हुए शैफाली से सवाल किया।

“आप झूठ बोल रहे हैं ग्रैंड अंकल!“ शैफाली ने मुस्कुरा कर कहा- “कि आपने सेब के टुकड़े किए हैं। आपने सेब के बगल में रखे अमरूद के चार टुकड़े किए हैं। सेब के नहीं । क्यों कि सेब के कटने से अलग तरह की ध्वनि होती है और अमरूद के कटने से अलग तरह की ध्वनि । और जो चीज ताजा कटती है, उसकी खुशबू ज्यादा तेज होती है।“

उसके जवाबों को सुनकर अब मारिया भी उत्सुकता से उसकी तरफ देखने लगी । इस बार अलबर्ट ने शैफाली के सामने जा कर, बिना हाथ उठाए पूछा-

“ये कितनी उंगली हैं?“

“पहले उंगली तो उठा लीजिए ग्रैंड अंकल! क्यों कि आपकी आवाज बिना किसी अवरोध के मुझ तक आ रही है।“ शैफाली ने चहक कर जवाब दिया ।

अलबर्ट ने वहीं पास में पड़ा एक पतला लोहे का पाइप उठा कर, अपने व शैफाली के चेहरे के बीच लाते हुए कहा-

“अच्छा ! अब ये बताओ। ये कितनी उंगलियां हैं?“

“ये उंगली नहीं, लोहे का पाइप है।“ शैफाली ने जवाब दिया - “क्यों कि आपकी आवाज इससे टकरा कर, मेरे पास पहुंच रही है। और जब आपकी आवाज इससे टकराती है, तो इसमें बहुत हल्के से कंपन हो रहे हैं। वह कंपन झनझनाहट के रूप में मुझे सुनाई दे रहे हैं।“

अलबर्ट के पास हाल-फिलहाल अब कोई सवाल नहीं था। अतः वह चुप रहा । अलबर्ट अब विस्मय से एकटक, चुपचाप शैफाली को इस तरह निहारने लगा मानो वह धरती का कोई प्राणी ना होकर, अंतरिक्ष से आया कोई जीव हो ।

“लगता है ग्रैंड अंकल के पास सवाल खत्म हो गए।“ शैफाली ने अलबर्ट को ना बोलते देख पूछ लिया ।

“अब मैं आप से पूछती हूं।“ शैफाली ने इस बार अलबर्ट की आंखों के सामने, अपने दाहिने हाथ का पंजा फैलाते हुए पूछा- “ये कितनी उंगलियां हैं?“

अलबर्ट ने अजीब सी नजरों से पास खड़े माइकल, मारथा व मारिया को देखा । उसकी आंखों में प्रश्नवाचक निशान साफ झलक रहे थे।

“आपने बताया नहीं ग्रैंड अंकल! यह कितनी उंगलियां हैं?“ शैफाली ने अलबर्ट को ना बोलते देख पुनः अपने हाथ का पंजा फैलाते हुए पूछ लिया ।

“पाँच! अलबर्ट ने अजीब से भाव से जवाब दिया ।

“बिल्कुल गलत!“ शैफाली ने तेज आवाज में हंस कर कहा-

“अरे ग्रैंड अंकल ! उंगलियां तो चार ही हैं। एक तो अंगूठा है। और अंगूठे की गिनती उंगलि यों में नहीं करते।“

अलबर्ट ने धीरे से जेब से रुमाल निकालकर अपने माथे पर आए पसीने की बूंद को पोंछा और फिर माइकल की तरफ घूमता हुआ बोला-

“बाप ... रे .... बाप ...... ये लड़की है या शैतान की नानी । मुझे ही फंसा दिया।“

अलबर्ट के इतना कहते ही शैफाली को छोड़ बाकी सभी के मुंह से हंसी का एक जबरदस्त ठहाका फूट निकला ।




जारी. रहेगा.........✍️✍️
Shandaar
 

Raj_sharma

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Weaving Words, Weaving Worlds.
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अपडेट 71 :

तो यह अराका द्वीप अटलांटिस का ही अंग है। और वहाँ बर्फ़ के नीचे भी जो भी दबा हुआ है (शलाका का महल), वो मेरे पूर्व के अनुमान के अनुरूप ही अटलांटिस का ही अंग है।

छः फुट की शलाका देवी की मूर्ति आदमक़द ही है। सुयश को उससे महक भी महसूस हुई और शरीर की गर्माहट भी (आपने लिखा नहीं, लेकिन हमने पढ़ लिया... हा हा हा हा)! तो संभव है कि यह मूर्ति शलाका का एक होलोग्राम जैसा प्रतिबिम्ब हो - ऐसा होलोग्राम जो स्थिर है, लेकिन शलाका की जीवन-शक्ति से जुड़ा हुआ है।

एक बात तो है, हमारी पूजा पाठ परंपरा में मूर्तियों का बड़ा ही महत्व है। ईश्वर को निराकार और साकार दोनों रूपों में माना जाता है और मूर्ति ईश्वर के साकार रूप को दर्शाती है और भक्तों में उनकी उपस्थिति का अनुभव करने में सहायता करती है। मूर्तियों के कारण ईश्वर में ध्यान लगाना सरल और सहज हो जाता है। देखा जाए तो मूर्ति ईश्वर का केवल एक प्रतीक मात्र नहीं है, बल्कि भक्त की आस्था और भक्ति का एक सशक्त माध्यम है।

सुयश (आर्यन) और शलाका का पुराना सम्बन्ध है। किस रूप में, यह बताया नहीं अभी तक। लेकिन जिस तरह से सुयश शलाका की मूर्ति की तरफ़ आकर्षित हुआ और जिस तरह से वो उसको स्पर्श करने के बाद बिना क्षति / हानि के बच गया (युगाका को भी आश्चर्य हुआ इस बात पर), उससे तो साफ़ लगता है कि शलाका और सुयश का गहरा सम्बन्ध है। तिलिस्म का टूटना भी सुयश के कारण ही संभव है - मतलब अभी तक का अपना खोटा सिक्का उतना भी खोटा नहीं है! 🙂

वैसे, शलाका शब्द से एक बात याद आ गई, जो संभवतः यहाँ कई पाठकों को पता न हो।

संत तुलसीदास जी की रामचरितमानस में शुरुवात में ही ‘श्री राम शलाका प्रश्नावली’ है। शलाका शब्द के कई अर्थ हैं, लेकिन उसका एक अर्थ तीली/सलाई/सलाख भी होता है। यदि जीवन में कोई बहुत ही कठिन समस्या हो, तो इस प्रश्नावली का प्रयोग करें। संभव है कोई हल मिल जाए। कुछ नहीं तो एक दोहा ही पता चल जाएगा 🙂

[मान्यवर मॉडरेटर महोदय लोग, इस कमेंट को अनावश्यक बैन / एडिट न कर दीजिएगा। यह जानकारी बस सभी का ज्ञान बढ़ाने के लिए शेयर करी है]

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अपडेट 72 :

सात दिन पहले की घटना से पता चलता है कि रोजर जीवित है। उसने एक सिंह-मानव देख लिया। सबसे पहले ऐसे एक जीवों का वर्णन मैंने सुपर कमाण्डो ‘ध्रुव’ की दो कॉमिक्स “आदमखोरों का स्वर्ग” और “स्वर्ग की तबाही” में पढ़ा था - सन 1987 / 1988 में! बचपन की याद ताज़ा हो आई भाई! 🙂

मकोटा ने ज्योतिष विद्या से जान लिया है कि तिलिस्मा अब टूटने ही वाला है। आकृति कौन है, क्यों है, यह नहीं समझा। और सामरा पर अधिकार करना तिलिस्मा के टूटने से पहले ही क्यों आवश्यक है, समझा नहीं।

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अपडेट 73 :

हम्म, तो आकृति भी एक बंधक है यहाँ! और मकोटा की छल के अधीन है।

मकोटा जैगन का भक्त है, जो तमराज है (किल्मिष भाई... हीहीही)! सॉरी शक्तिमान! हा हा हा! 😂

वो पिरामिड जैगन का ही मंदिर है। मतलब बहुत सारा स्यापा इस जैगन और मकोटा के कारण ही है। ये मकोटा थोड़ा थोड़ा "लार्ड ऑफ़ द रिंग्स" के “सारोमान” जैसा ही है। वो सिंह/पशु-मानव लुफासा सिनोर का राजकुमार है! यार - बड़ी दिक्कत हो रही है। अनगिनत पात्र और सबके नाम कठिन! मेरे जैसा भुलक्कड़ कुछ लिखे भी तो कैसे?

हम्म्म, तो वो ऊर्जा/स्वर्ण-मानव अपना रोजर ही था।

आकृति का यह कहना कि तिलिस्मा के टूटने से सभी मुक्त हो जाएँगे - यह एक बचकानी सी बात है। कोई मुक्त नहीं होने वाला। यह खेल बहुत बड़ा है। जैगन इतनी आसानी से किसी को नहीं छोड़ेगा।

अल्बर्ट की यह बात, “यहां की हर वस्तु और जीव ईश्वर के सिद्धांतो से अलग दिख रही है” एकदम सही है। सब कुछ कृत्रिम है यहाँ।

ऐमू ने दो शब्द कहे। अंदाज़ा लगा रहा हूँ कि आरू : मतलब आर्यन, और आकी : मतलब आकृति या फिर अक्का (दीदी)? लेकिन फिर आरू की आकी... ई तो सुसरा प्रेम-त्रिकोण बन जायेगा ऐसे तो (अगर संजू भाई की बात सही है तो)! वैसे ही बरमूडा त्रिकोण के लफ़ड़े से निकल नहीं पा रहे हैं, अब एक और त्रिकोण! दादा रे!

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐमू को कैसे पता कि सुयश की आर्यन है?

बड़े रहस्य हैं भाई! बड़े रहस्य! कहानी ही “तिलिस्मा” है ये तो!

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अपडेट 74 :

आदमखोर पेड़! सुयश भाई का किरदार अचानक से ही खतरे में आ गया। मतलब यह आवश्यक नहीं कि हमारे इन किरदारों को कोई क्षति न हो। पूरी तरह संभव है यह।

“सुयश की पीठ पर बना सुनहरे रंग का सूर्य का टैटू चमकने लगा” -- लेकिन वो गोदना (टैटू) तो काले रंग का था न? हाँ - और यही बात ब्रैंडन ने भी पूछी! वैसे अगर शेफ़ाली का अनुमान सही है, तो यह गोदना एक आवश्यक क्रिया है, जो शलाका के कहने पर पाँच सौ साल पहले शुरू की होगी, सुयश के पुरखों ने।

मतलब, सुयश के किसी पुरखे के साथ शलाका जी का प्रेम/वैवाहिक सम्बन्ध था...

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अपडेट 75 :

ये चूहा बिल्ली लुफासा और उसके ही जैसी शक्ति वाला कोई अन्य सिनोर-वासी तो नहीं? अगर हाँ, तो आकृति और रोजर की सब असलियत उनको पता हैं।

हरे प्राणी, उड़नतश्तरी, झोपड़ी... बाप रे! किन किन बातों को ध्यान में रखें हम! और आप कैसे रख रहे हैं राज भाई!? कमाल है और बलिहारी है आपकी कल्पना और स्मरण-शक्ति के! वाह! अद्भुत!

इन सब बातों के बीच में असलम की याद आ गई। उसको कैसे पता था कि सुप्रीम को अटलांटिस की तरफ़ लाना है?
कहीं वो भी तो मकोटा का ही कोई मातहत (कर्मचारी) नहीं?

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अपडेट 76 :

जैगन -- बुद्ध-ग्रह वासी है। हरे कीड़े भी वहीं की उपज हैं।

लेकिन कुछ भी हो, पृथ्वी और बुद्ध दोनों ही सूर्य की परिक्रमा करते हैं -- अतः सूर्य उन दोनों पर ही भारी पड़ेगा। मतलब, सुयश भाई का पलड़ा खगोलीय दृष्टि से बहुत भारी तो है। सूर्यवंशी है वो! तो जैगन जैसा हरा कीड़ा उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। 😂 मकोटा भी नहीं।

मेरा एक और विचार है -- शायद अनजाने में ही सही, आकृति ने रोजर के रूप में एक ‘भेदी’ को रिक्रूट कर लिया है। समय आने पर रोजर ‘सुयश एंड कं.’ को सारे रहस्य समझा देगा।

नटराज -- भगवान शिव का ताण्डव नृत्य करता हुआ रूप हैं। वैसे तो इस रूप का दार्शनिक ज्ञान मुझको कम ही है, लेकिन इतना पता है कि ताण्डव नृत्य पाँच आदि-शक्तियों को प्रदर्शित करता है -- सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोधन (शुभ का आगमन और अशुभ हटाना), और अनुग्रह (अनुकम्पा)! चूँकि मुझे इस विषय में बहुत कम पता है, इसलिए अनावश्यक बनावटी ज्ञान नहीं झाडूँगा।

देवी शलाका के मंदिर / महल में नटराज की उपस्थिति रोचक है।


Raj_sharma राज भाई -- पढ़ तो लेता हूँ, लेकिन अपने विचार नहीं रख पाता समय पर।

क्या अद्भुत लेखन है भाई! आपको सच में पुस्तक / उपन्यास लिखना चाहिए। बहुत ही अच्छा लेखन है आपका।
उससे भी अच्छी है आपकी कल्पना।
क्या समां बाँधा है इस कहानी में! वाह! वाह!

ऐसे ही लिखते रहें! देर सवेर ही सही, साथ तो बने ही हैं हम आपके!
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Itne saare update???? :yikes:

Itne saare updates padhne me to apan ko 4-5 saal lag jayenge :roll:

Anyway....sabse pahle to :congrats: for starting such a beautiful story. Bade bade dhurandhar writers and readers ke reviews dekh ke pata chal raha hai ki story masterpiece hai....aur apan masterpiece stories hi pasand karta hai :yes1:

Raj_sharma bru story me :sex: ghapaghap to nahi hai na?? Wo kya hai ki apan vikat Shareef aadmi hai...chudaai ki kahaniya padhne me bhaari sharam aati hai apan ko :shy:

Time nikaal kar hi read karega apan is liye reviews der sawer hi milenge...so iske liye pahle se hi sorry worry wala lauda lahsun bol de reha apan :pray: Baaki ju tan man laga ke chempte raho :good:
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kamdev99008

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Raj_sharma bru story me :sex: ghapaghap to nahi hai na?? Wo kya hai ki apan vikat Shareef aadmi hai...chudaai ki kahaniya padhne me bhaari sharam aati hai apan ko :shy:

Time nikaal kar hi read karega apan is liye reviews der sawer hi milenge...so iske liye pahle se hi sorry worry wala lauda lahsun bol de reha apan :pray: Baaki ju tan man laga ke chempte raho :good:
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खुद को मासूम कहने वाला शैतान बच्चा भी आ ही गया

ये सभी प्रकार की कामुकता (व्यभिचार, इन्टरफेथ, कुकोल्ड व इन्सेस्ट आदि) से मुक्त विषय-वस्तु पर आधारित कथा है‌...

आपके हवस के कारनामे यहां नहीं मिलेंगे तो निराश हो कर पढ़ना मत छोड़ना
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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तो यह अराका द्वीप अटलांटिस का ही अंग है। और वहाँ बर्फ़ के नीचे भी जो भी दबा हुआ है (शलाका का महल), वो मेरे पूर्व के अनुमान के अनुरूप ही अटलांटिस का ही अंग है।

छः फुट की शलाका देवी की मूर्ति आदमक़द ही है। सुयश को उससे महक भी महसूस हुई और शरीर की गर्माहट भी (आपने लिखा नहीं, लेकिन हमने पढ़ लिया... हा हा हा हा)! तो संभव है कि यह मूर्ति शलाका का एक होलोग्राम जैसा प्रतिबिम्ब हो - ऐसा होलोग्राम जो स्थिर है, लेकिन शलाका की जीवन-शक्ति से जुड़ा हुआ है।

एक बात तो है, हमारी पूजा पाठ परंपरा में मूर्तियों का बड़ा ही महत्व है। ईश्वर को निराकार और साकार दोनों रूपों में माना जाता है और मूर्ति ईश्वर के साकार रूप को दर्शाती है और भक्तों में उनकी उपस्थिति का अनुभव करने में सहायता करती है। मूर्तियों के कारण ईश्वर में ध्यान लगाना सरल और सहज हो जाता है। देखा जाए तो मूर्ति ईश्वर का केवल एक प्रतीक मात्र नहीं है, बल्कि भक्त की आस्था और भक्ति का एक सशक्त माध्यम है।

सुयश (आर्यन) और शलाका का पुराना सम्बन्ध है। किस रूप में, यह बताया नहीं अभी तक। लेकिन जिस तरह से सुयश शलाका की मूर्ति की तरफ़ आकर्षित हुआ और जिस तरह से वो उसको स्पर्श करने के बाद बिना क्षति / हानि के बच गया (युगाका को भी आश्चर्य हुआ इस बात पर), उससे तो साफ़ लगता है कि शलाका और सुयश का गहरा सम्बन्ध है। तिलिस्म का टूटना भी सुयश के कारण ही संभव है - मतलब अभी तक का अपना खोटा सिक्का उतना भी खोटा नहीं है! 🙂

वैसे, शलाका शब्द से एक बात याद आ गई, जो संभवतः यहाँ कई पाठकों को पता न हो।

संत तुलसीदास जी की रामचरितमानस में शुरुवात में ही ‘श्री राम शलाका प्रश्नावली’ है। शलाका शब्द के कई अर्थ हैं, लेकिन उसका एक अर्थ तीली/सलाई/सलाख भी होता है। यदि जीवन में कोई बहुत ही कठिन समस्या हो, तो इस प्रश्नावली का प्रयोग करें। संभव है कोई हल मिल जाए। कुछ नहीं तो एक दोहा ही पता चल जाएगा 🙂

[मान्यवर मॉडरेटर महोदय लोग, इस कमेंट को अनावश्यक बैन / एडिट न कर दीजिएगा। यह जानकारी बस सभी का ज्ञान बढ़ाने के लिए शेयर करी है]

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अपडेट 72 :

सात दिन पहले की घटना से पता चलता है कि रोजर जीवित है। उसने एक सिंह-मानव देख लिया। सबसे पहले ऐसे एक जीवों का वर्णन मैंने सुपर कमाण्डो ‘ध्रुव’ की दो कॉमिक्स “आदमखोरों का स्वर्ग” और “स्वर्ग की तबाही” में पढ़ा था - सन 1987 / 1988 में! बचपन की याद ताज़ा हो आई भाई! 🙂

मकोटा ने ज्योतिष विद्या से जान लिया है कि तिलिस्मा अब टूटने ही वाला है। आकृति कौन है, क्यों है, यह नहीं समझा। और सामरा पर अधिकार करना तिलिस्मा के टूटने से पहले ही क्यों आवश्यक है, समझा नहीं।

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अपडेट 73 :

हम्म, तो आकृति भी एक बंधक है यहाँ! और मकोटा की छल के अधीन है।

मकोटा जैगन का भक्त है, जो तमराज है (किल्मिष भाई... हीहीही)! सॉरी शक्तिमान! हा हा हा! 😂

वो पिरामिड जैगन का ही मंदिर है। मतलब बहुत सारा स्यापा इस जैगन और मकोटा के कारण ही है। ये मकोटा थोड़ा थोड़ा "लार्ड ऑफ़ द रिंग्स" के “सारोमान” जैसा ही है। वो सिंह/पशु-मानव लुफासा सिनोर का राजकुमार है! यार - बड़ी दिक्कत हो रही है। अनगिनत पात्र और सबके नाम कठिन! मेरे जैसा भुलक्कड़ कुछ लिखे भी तो कैसे?

हम्म्म, तो वो ऊर्जा/स्वर्ण-मानव अपना रोजर ही था।

आकृति का यह कहना कि तिलिस्मा के टूटने से सभी मुक्त हो जाएँगे - यह एक बचकानी सी बात है। कोई मुक्त नहीं होने वाला। यह खेल बहुत बड़ा है। जैगन इतनी आसानी से किसी को नहीं छोड़ेगा।

अल्बर्ट की यह बात, “यहां की हर वस्तु और जीव ईश्वर के सिद्धांतो से अलग दिख रही है” एकदम सही है। सब कुछ कृत्रिम है यहाँ।

ऐमू ने दो शब्द कहे। अंदाज़ा लगा रहा हूँ कि आरू : मतलब आर्यन, और आकी : मतलब आकृति या फिर अक्का (दीदी)? लेकिन फिर आरू की आकी... ई तो सुसरा प्रेम-त्रिकोण बन जायेगा ऐसे तो (अगर संजू भाई की बात सही है तो)! वैसे ही बरमूडा त्रिकोण के लफ़ड़े से निकल नहीं पा रहे हैं, अब एक और त्रिकोण! दादा रे!

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐमू को कैसे पता कि सुयश की आर्यन है?

बड़े रहस्य हैं भाई! बड़े रहस्य! कहानी ही “तिलिस्मा” है ये तो!

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अपडेट 74 :

आदमखोर पेड़! सुयश भाई का किरदार अचानक से ही खतरे में आ गया। मतलब यह आवश्यक नहीं कि हमारे इन किरदारों को कोई क्षति न हो। पूरी तरह संभव है यह।

“सुयश की पीठ पर बना सुनहरे रंग का सूर्य का टैटू चमकने लगा” -- लेकिन वो गोदना (टैटू) तो काले रंग का था न? हाँ - और यही बात ब्रैंडन ने भी पूछी! वैसे अगर शेफ़ाली का अनुमान सही है, तो यह गोदना एक आवश्यक क्रिया है, जो शलाका के कहने पर पाँच सौ साल पहले शुरू की होगी, सुयश के पुरखों ने।

मतलब, सुयश के किसी पुरखे के साथ शलाका जी का प्रेम/वैवाहिक सम्बन्ध था...

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अपडेट 75 :

ये चूहा बिल्ली लुफासा और उसके ही जैसी शक्ति वाला कोई अन्य सिनोर-वासी तो नहीं? अगर हाँ, तो आकृति और रोजर की सब असलियत उनको पता हैं।

हरे प्राणी, उड़नतश्तरी, झोपड़ी... बाप रे! किन किन बातों को ध्यान में रखें हम! और आप कैसे रख रहे हैं राज भाई!? कमाल है और बलिहारी है आपकी कल्पना और स्मरण-शक्ति के! वाह! अद्भुत!

इन सब बातों के बीच में असलम की याद आ गई। उसको कैसे पता था कि सुप्रीम को अटलांटिस की तरफ़ लाना है?
कहीं वो भी तो मकोटा का ही कोई मातहत (कर्मचारी) नहीं?

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अपडेट 76 :

जैगन -- बुद्ध-ग्रह वासी है। हरे कीड़े भी वहीं की उपज हैं।

लेकिन कुछ भी हो, पृथ्वी और बुद्ध दोनों ही सूर्य की परिक्रमा करते हैं -- अतः सूर्य उन दोनों पर ही भारी पड़ेगा। मतलब, सुयश भाई का पलड़ा खगोलीय दृष्टि से बहुत भारी तो है। सूर्यवंशी है वो! तो जैगन जैसा हरा कीड़ा उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। 😂 मकोटा भी नहीं।

मेरा एक और विचार है -- शायद अनजाने में ही सही, आकृति ने रोजर के रूप में एक ‘भेदी’ को रिक्रूट कर लिया है। समय आने पर रोजर ‘सुयश एंड कं.’ को सारे रहस्य समझा देगा।

नटराज -- भगवान शिव का ताण्डव नृत्य करता हुआ रूप हैं। वैसे तो इस रूप का दार्शनिक ज्ञान मुझको कम ही है, लेकिन इतना पता है कि ताण्डव नृत्य पाँच आदि-शक्तियों को प्रदर्शित करता है -- सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोधन (शुभ का आगमन और अशुभ हटाना), और अनुग्रह (अनुकम्पा)! चूँकि मुझे इस विषय में बहुत कम पता है, इसलिए अनावश्यक बनावटी ज्ञान नहीं झाडूँगा।

देवी शलाका के मंदिर / महल में नटराज की उपस्थिति रोचक है।


Raj_sharma राज भाई -- पढ़ तो लेता हूँ, लेकिन अपने विचार नहीं रख पाता समय पर।

क्या अद्भुत लेखन है भाई! आपको सच में पुस्तक / उपन्यास लिखना चाहिए। बहुत ही अच्छा लेखन है आपका।
उससे भी अच्छी है आपकी कल्पना।
क्या समां बाँधा है इस कहानी में! वाह! वाह!

ऐसे ही लिखते रहें! देर सवेर ही सही, साथ तो बने ही हैं हम आपके!
Bhai ... bhai...iss review ka jabaab dena to update likhne se bhi kathin hai..:bow::roflbow: Fir bhi short me kosis karunga..(aur aap bil rahe ho kaise likhte ho:D) aap sath bane rahiye, updates aate rahenge:approve: Abhi to aadhi bhi nahi hui:D
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Itne saare update???? :yikes:

Itne saare updates padhne me to apan ko 4-5 saal lag jayenge :roll:

Anyway....sabse pahle to :congrats: for starting such a beautiful story. Bade bade dhurandhar writers and readers ke reviews dekh ke pata chal raha hai ki story masterpiece hai....aur apan masterpiece stories hi pasand karta hai :yes1:

Raj_sharma bru story me :sex: ghapaghap to nahi hai na?? Wo kya hai ki apan vikat Shareef aadmi hai...chudaai ki kahaniya padhne me bhaari sharam aati hai apan ko :shy:

Time nikaal kar hi read karega apan is liye reviews der sawer hi milenge...so iske liye pahle se hi sorry worry wala lauda lahsun bol de reha apan :pray: Baaki ju tan man laga ke chempte raho :good:
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:reading:
Aakhir der sawer aa hi gaye ju:D
Thank you very much for your valuable words :thanx: And bhale hi ju ko kitna bhi pasand ho, per apni story me ek bhi sex scene nahi hoga:D Yaha saaf suthre readers hain ju ki tarah:approve: Aur jitne bhi Dhurandhar log hai idhar, ye unka hi prem aur aasirwaad hai :declare: So sath bane rahiye, i promise, boring to bilkul nahi lagega:hug:
 

Raj_sharma

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खुद को मासूम कहने वाला शैतान बच्चा भी आ ही गया

ये सभी प्रकार की कामुकता (व्यभिचार, इन्टरफेथ, कुकोल्ड व इन्सेस्ट आदि) से मुक्त विषय-वस्तु पर आधारित कथा है‌...

आपके हवस के कारनामे यहां नहीं मिलेंगे तो निराश हो कर पढ़ना मत छोड़ना
Bilkul yahi bola maine bhi:D
 
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